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Gadh kise kehte hai//गद्य किसे कहते हैं

 गद्य किसे कहते हैं ? 


गद्य किसे कहते हैं ? /Gadya Kise Kahate Hain ?


gadya kavya kise kahate hain ?

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हिंदी साहित्य रचना की दो विधा गद्य और पद्य। गद्य विधा के अंतर्गत कहानी ,उपन्यास नाटक, निबंध, संस्मरण, व्यंग, आत्मकथा और पत्र वगैरह लिखे जाते हैं। वहीं पद्य के अंतर्गत कविता, गीत, गाना आदि आता है। मूलतः गद्य में अलंकारों का प्रयोग नहीं होता है लेकिन पद्य में अलंकारों का खूब प्रयोग होता है। सामान्य भाषा में कहा जाए तो अलंकार पद्य का गहना मान जाता है। गद्य विधा की रचनाओं को हम सीधा सपाट पढ़ सकते हैं, क्योंकि उनमें लयात्मकता नहीं होती है। इसके ठीक विपरीत पद्य विधा की रचनाओं में लयात्मकता होती है। ऐसी रचनाएं गेय होते हैं।



गद्य की परिभाषा


एक ऐसी रचना जो छंद, ताल एवं तुकबंदी से मुक्त तथा विचार पूर्ण हो उसे गद्य कहते हैं। गधे शब्द गद् धातु के यत प्रत्यय जोड़ने से बना है । समानता दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली बोलचाल की भाषा में गद्य का ही प्रयोग किया जाता है । गद्य का लक्ष्य विचारों या भाव को सहज सरल एवं सामान्य भाषा में विशेष प्रयोजन सहित संप्रेषित करना है । ज्ञान विज्ञान से लेकर कथा साहित्य आदि के अभिव्यक्ति का माध्यम तथा साधारण व्यवहार की भाषा गद्य ही है । जिसका प्रयोग सोचने-समझने वर्णन करने विवेचन करने आदि के लिए होता है । वक्ता जो कुछ भी सोचता है उसे वह गद्य के रूप में ही बोल के सबके सामने लाता है । ज्ञान विज्ञान की समृद्धि  के साथ ही गद्य की उपादेयता और महत्ता में भी वृद्धि होती जा रही है ।


किसी लेखक या विचारक के भाव को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है और गद्य ज्ञान व्यक्ति का एक सफल साधन है ।इसलिए इतिहास राजनीतिक शास्त्र धर्म दर्शन आदि के क्षेत्र में ही नहीं अपितु नाटक और कथा साहित्य आदि के क्षेत्र में भी गद्य का ही प्रभाव स्थापित हो गया है ।




गद्य-विधा का नाम

रचनाकार

मुख्य रचनाएं

आलोचना

डॉ श्याम सुंदर दास

साहित्यालोचन

आलोचना

डॉ नागेंद्र

भारतीय सौंदर्य शास्त्र की भूमिका



हिंदी गद्य के संबंध में यह धारणा है कि विराट और दिल्ली के आसपास बोली जाने वाली खड़ी बोली के साहित्यिक रूप को ही हिंदी गद्य कहा जाता है ।भाषा विज्ञान की दृष्टि से ब्रजभाषा खड़ी बोली कन्नौजी हरियाणवी बुंदेलखंडी अवधि बघेली और छत्तीसगढ़ी इन 8 बोलियों को ही हिंदी गद्य के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है ।हिंदी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग हमें राजस्थानी एवं ब्रज भाषा में मिलते हैं । अगर घंटा से देखा जाए तो हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं कि आधुनिक हिंदी साहित्य की सबसे अधिक घटनाएं गद्य में ही लिखी गई है।


रोज के जीवन में हम बातचीत करने पत्र लिखने अपने विचार प्रकट करने और प्रार्थना पत्र इत्यादि को भेजने के लिए जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते हैं वह भाषा का गद्य रूप ही होता है गद्य की भाषा सरल और आसानी से समझने लायक होती है जबकि काव्य की भाषा विशेष होती है।



इसमें से पहला वर्ग प्रमुख विधाओं का है जिसमें नाटक एकांकी उपन्यास कहानी निबंध और आलोचना को रखा जाता है। दूसरा वर्ग गौण या प्रकीर्णन गद्य विधाओं का है । इसके अंतर्गत जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी भेंट वार्ता पत्र साहित्य आदि का उल्लेख किया जाता है।



विविध गद्य विधाओं की प्रथम रचना



विधा

रचना

रचनाकार

खड़ी बोली हिंदी की प्रथम रचना

गोरा बादल की कथा

जटमल

हिंदी का प्रथम नाटक

नहूष

श्री गोपाल चंद्र गिरिधरदास

हिंदी का प्रथम उपन्यास

परीक्षा गुरु

लाला श्रीनिवास दास

हिंदी की प्रथम कहानी

इंदुमती

किशोरी लाल गोस्वामी

हिंदी का प्रथम यात्रावृत

सरयू पार की यात्रा

भारतेंदु हरिश्चंद्र



गद्य प्रबंध के प्रकार रामचंद्र शुक्ल 



1.वर्णनात्मक प्रबंध


2.विचारात्मक निबंध


3.कथात्मक निबंध


4.भावात्मक निबंध



वर्णनात्मक प्रबंध


वर्णनात्मक प्रबंध - वर्णनात्मक प्रबंध काला छोटा है पाठक की कल्पना को जगा कर उसके सामने कुछ वस्तुएं या व्यापार मूर्त रूप में लाना। वस्तु या व्यापार ओके अंतर्दृष्टि के सामने लाने के उद्देश्य हो सकते हैं -



उनके संबंध में पूरा बोध जानकारी कराना।


उनके प्रति आनंद, विस्मय,भय,करुणा प्रेम इत्यादि भाव जगाना।




विचारात्मक निबंध


विचारात्मक निबंध - विचारात्मक निबंधों में लेखक इस बात का प्रत्यय करता है कि किसी विषय में जो विचार या सिद्धांत उसके हैं वही विचार या सिद्धांत पाठक के भी हो जाए। इसके लिए आवश्यक यह होता है कि सब बातें बड़ी स्पष्टता के साथ रखी जाए। विचारों की श्रंखला उखली ना हो। सब विचार एक दूसरे से संबंध में हो शब्द और वाक्य नपे तुले हो अनावश्यक और फालतू शब्दों और वाक्यों के बीच में आ जाने से विचार ढक जाते हैं। और पाठक का ध्यान गड़बड़ी में पड़ जाता है मनुष्य जीवन में विचार क्षेत्र बड़े महत्व का है उसके भाषा के प्रयोग की बड़ी सफाई और सावधानी अपेक्षित है पॉलीग्राम उसमें भाषा की उछल कूद सजावट अलंकार चमत्कार इत्यादि के लिए बहुत कम जगह मिल सकती है ऐसे में लेखकों में मुख्यता ध्यान विषय के स्पष्टीकरण की ओर होना चाहिए भाषा की रंगीली दिखाने की ओर नहीं।




कथात्मक निबंध


कथात्मक निबंध - कथात्मक निबंध किसे उपाख्यान, वृतांत या घटना को लेकर चलते हैं। विचारात्मक निबंध ओं के समान इनमें भी संबंध निर्वाह अत्यंत आवश्यक होता है। इसमें घटनाओं को एक दूसरे के पीछे इस क्रम से रखना पड़ता है की उलझन ना पड़े और साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि आगे की घटनाओं को जानने की उत्कंठा पाठक को बराबर बनी रहे और बढ़ती जाए। भाषा चलती और सरल रखनी पड़ती है। शुद्ध कथा या कहानी कहने वाले वर्णन के विस्तार या भावों की व्यंजना में नहीं उलझते। कहानी सुनने वाले की उत्कंठा तो जिज्ञासा के रूप में होती है जिससे पाठक बीच-बीच में तब क्या हुआ कहकर प्रकट करता है।




भावात्मक निबंध


भावात्मक निबंध - भावात्मक निबंध में लेखक अपने प्रेम, हर्ष, करुणा, क्रोध, विस्मय या किसी और भाव की व्यंजना करता है। भाव के आदेश के अनुसार कहीं-कहीं भाषा में असम्बद्धता वितरखलता और वेग या तीव्रता दिखाई पड़ती है। कथन की सीमा पर मर्यादा का अतिक्रमण भी प्राय:अनिवार्य हो जाता है, इससे अत्युक्ति या अतिशयोक्ति का सहारा प्राय: लिया जाता है। यदि किसी वेजना की व्यंजना हो रही है। तो अनंत ज्वाला में जन्मे पहाड़ के नीचे पीसने आदि की बातें कही जाती हैं।





गद्य से आप क्या समझते हैं?


एक ऐसी रचना जो छंद, ताल एवं तुकबंदी से मुक्त तथा विचार पूर्ण हो उसे गद्य कहते हैं। गधे शब्द गद् धातु के यत प्रत्यय जोड़ने से बना है । समानता दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली बोलचाल की भाषा में गद्य का ही प्रयोग किया जाता है । गद्य का लक्ष्य विचारों या भाव को सहज सरल एवं सामान्य भाषा में विशेष प्रयोजन सहित संप्रेषित करना है।



गद्य काव्य से आप क्या समझते हैं?


रोज के जीवन में हम बातचीत करने पत्र लिखने अपने विचार प्रकट करने और प्रार्थना पत्र इत्यादि को भेजने के लिए जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते हैं वह भाषा का गद्य रूप ही होता है गद्य की भाषा सरल और आसानी से समझने लायक होती है जबकि काव्य की भाषा विशेष होती है।



हिंदी में कितनी विधाएं होती है?


इसमें से पहला वर्ग प्रमुख विधाओं का है जिसमें नाटक एकांकी, उपन्यास, कहानी ,निबंध और आलोचना को रखा जाता है। दूसरा वर्ग गौण या प्रकीर्णन गद्य विधाओं का है । इसके अंतर्गत जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी भेंट वार्ता पत्र साहित्य आदि का उल्लेख किया जाता है।



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