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Ramdhari Singh Dinkar ji ka jivan Parichay//रामधारी सिंह दिनकर जी का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय


  रामधारी सिंह दिनकर जी का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय, रचनाए, भाषा शैली


  Ramdhari Singh Dinkar ji ki jivan


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                        जीवन परिचय


                रामधारी सिंह ‘ दिनकर’





जीवन-परिचय –


हिन्दी के समर्थ राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म सन् 1908 में बिहार के मुंगेर जिले के अन्तर्गत सिमरिया घाट नामक ग्राम में हुआ था, इनके पिता का नाम रवि सिंह तथा माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था। इन्होंने मोकामा घाट से मैट्रिक तथा पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. (ऑनर्स) किया। इनकी काव्य प्रतिभा का परिचय बाल्यावस्था में ही उस समय हो गया था, जब इन्होंने मिडिल कक्षा में पढ़ते हुए 'वीरबाला' नामक काव्य की रचना कर ली थी। मैट्रिक में पढ़ते समय इनका ' प्राणभंग' नामक काव्य प्रकाशित हो गया था। सन् 1928-29 में इन्होंने काव्य सृजन के क्षेत्र में विधिवत् कदम रखा। बीए (आनर्स) करने के बाद दिनकर जी मोकामा घाट हाईस्कूल में एक वर्ष तक प्रधानाचार्य रहे। सन् 1934 में ब्रिटिश सरकार के युद्ध प्रचार विभाग में उपनिदेशक रहे। कुछ समय पश्चात् मुजफ्फरपुर भावात्मक, समीक्षात्मक 'राष्ट्रकवि' की ख्याति प्राप्त थी। कॉलेज में हिन्दी विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए। सन् 1952 में इन्हें राज्यसभा का सदस्य धरोह मनोनीत किया गया, जहाँ ये सन् 1962 तक रहे। सन् 1963 में भागलपुरविश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त किए गए। दिनकर जी ने भारत सरकार की हिन्दी समिति के सलाहकार और आकाशवाणी के निदेशक के रूप में भी कार्य किया, इन्हें सन् 1959 में 'पद्मविभूषण' पुरस्कार की उपाधि से अलंकृत किया गया। ये 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' और 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से भी सम्मानित किए गए। यह महान् साहित्यकार सन् 1974 में इस संसार से विदा हो गया।

 दिनकर जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे, इन्होंने गद्य और पद्य दोनों विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ निम्नलिखित हैं


निबन्ध संग्रह –  मिट्टी की ओर, अर्द्धनारीश्वर, रेती के फूल, उजली आग।


संस्कृति ग्रन्थसंस्कृति के चार अध्याय, भारतीय संस्कृति की एकता।


आलोचना ग्रन्थशुद्ध कविता की खोज।


काव्य ग्रन्थरेणुका, हुँकार, सामधेनी, रूपवन्ती, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा।


भाषा-शैली – दिनकर जी की भाषा में तत्सम शब्दों की बहुलता होती है, फिर भी सुबोधता और स्पष्टता सर्वत्र विद्यमान रहती है। इनकी भाषा में उर्दू, फारसी और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग मिलता है। इसमें तद्भव, देशज शब्दों तथा मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी सहज-स्वाभाविक रूप में हुआ है, इन्होंने अपने निबन्धों में विवेचनात्मक, समीक्षात्मक और भावात्मक शैली का प्रयोग किया है।


हिन्दी साहित्य में स्थान


दिनकर जी उत्कृष्ट कोटि के कवि ही नहीं, बल्कि उच्चकोटि के गद्यकार भी थे। इन्होंने अपने काव्य में देश के प्रति असीम राष्ट्रीय भावना का परिचय दिया है। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित इनका साहित्य भारतीय साहित्य की अनमोल धरोहर है। इनकी गणना विश्व के महान् साहित्यकारों में की जाती है।



       

             संक्षिप्त में जीवन परिचय


नाम

रामधारी सिंह दिनकर

जन्म

सन् 1908 ई. में।

जन्म स्थान

बिहार राज्य के (सिमरिया) मुंगेर जिले में।

शिक्षा

बैचलर ऑफ एजुकेशन।

अवधि

आधुनिक काल

मृत्यु

सन 1974 ई. में।

भाषा

शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली।

पिताजी का नाम

श्री रवि सिंह

माता जी का नाम

श्रीमती मनरूप देवी

भाषा एवं शैली

विवेचनात्मक, समीक्षात्मक एवं भावनात्मक

साहित्य में स्थान

रामधारी सिंह दिनकर जी का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।



जीवन परिचय:- रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। बी.ए. की परीक्षा पास करने के पश्चात इन्होंने कुछ दिनों के लिए उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक का कार्य संभाला। उसके बाद ये सरकारी नौकरी में चले आए। इनकी सरकारी सेवा अवर-निबंधक के रूप में प्रारंभ हुई। बाद में ये उपनिदेशक, प्रचार विभाग के पद पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तक कार्य करते रहे। तदंतर इन्होंने कुछ समय तक बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया। सन् 1952 ई० में ये भारतीय संसद के सदस्य मनोनीत हुए। कुछ समय ये भागलपुर विश्वविद्यालय के उप कुलपति भी रहे। उसके पश्चात भारत सरकार के गृह विभाग में हिंदी सलाहकार के रूप में एक लंबे अरसे तक हिंदी के संवर्धन एवं प्रचार प्रसार के लिए कार्यरत रहे। इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। सन् 1959 ईस्वी में भारत सरकार ने इन्हें 'पदम भूषण' से सम्मानित किया। तथा सन 1962 ईस्वी में भागलपुर विश्वविद्यालय ने डी. लिट्. की उपाधि प्रदान की। प्रतिनिधि लेखक व कवि के रूप में इन्होंने अनेक प्रतिनिधि मंडलों में रहकर विदेश यात्राएं की। दिनकर जी की असामयिक मृत्यु सन् 1974 ईस्वी में हुई।



साहित्यिक परिचय:- इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार कविता है तथा देश और विदेश में ये मुख्यता कवि रूप में प्रसिद्ध हैं। लेकिन गद्य लेखन में भी ये आगे रहे और अनेक अनमोल ग्रंथ लिखकर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की। इसका ज्वलंत उदाहरण है 'संस्कृति के चार अध्याय' जो साहित्य अकादमी से पुरस्कृत है। इसमें इन्होंने प्रधानतय: शोध और अनुशीलन के आधार पर मानव सभ्यता के इतिहास को चार मंजिलों में बांटकर अध्ययन किया है। इसके अतिरिक्त 'दिनकर' के स्फुट, समीक्षात्मक तथा विविध निबंधों के संग्रह हैं। जो पठनीय हैं, विशेषता: इस कारण कि उनसे 'दिनकर' के कविता को समझने परखने में यथेष्ट सहायता मिलती है। इनके गद्य में विषयों की विविधता और शैली की प्राण्जलता के सर्वत्र दर्शन होते हैं। भाषा की भूलों के बावजूद शैली की प्राण्जलता ही 'दिनकर' के गद्य को आकर्षक बना देती है। इनका गद्य-साहित्य काव्य की भांति ही अत्यंत सजीव एवं स्फूर्तिमय है तथा भाषा ओज से ओत-प्रोत है। इन्होंने काव्य, संस्कृति, समाज, जीवन आदि विषयों पर बहुत ही उत्कृष्ट लेख लिखे हैं।



रचनाएं:- रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा (काव्य); अर्धनारीश्वर, वट-पीपल, उजली आग, संस्कृति के चार अध्याय (निबंध), देश-विदेश (यात्रा) आदि इनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं।



भाषा शैली:- दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। इन्होंने तद्भव और देशज शब्दों तथा मुहावरों और लोकोक्तियां का भी सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनकी शैलियों में विवेचनात्मक, समीक्षात्मक, भावात्मक सूक्ति परक शैली प्रमुख रूप से है।



शिक्षा:- संस्कृत के एक पंडित के पास अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ करते हुए दिनकर जी ने गांव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की एवं निकटवर्ती बोरो नामक ग्राम में राष्ट्रीय मंडल स्कूल जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विरोध में खोला गया था, में प्रवेश प्राप्त किया। यहीं से इनके मनोमस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था। हाई स्कूल की शिक्षा इन्होंने मोकामा घाट हाई स्कूल से प्राप्त की। इसी बीच इनका विवाह भी हो चुका था तथा यह एक पुत्र के पिता भी बन चुके थे। 1928 इसवी में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बैचलर ऑफ ऑनर्स किया।



पद :- पटना विश्वविद्यालय से बीए ऑनर्स करने के बाद अगले ही वर्ष एक स्कूल में प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए, पर 1934 में बिहार सरकार के अधीन इन्होंने सब रजिस्ट्रार का पर स्वीकार कर लिया। लगभग 9 वर्षों तक वह इस पद पर रहे और उनका समूचा कार्यकाल बिहार के देहातों में बीता तथा जीवन का जो पीड़ित रूप उन्होंने बचपन से देखा था, उसका और अधिकारी उनके मन को मथ गया।


फिर जो ज्वार उमरा और  रेणुका,हुंकार, रसवंती और द्वंद गीत रचे गए। रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाएं यहां वहां प्रकाश में आई। अंग्रेज प्रशासकों को समझने देर न लगी कि वे एक गलत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं और दिनकर की फाइल तैयार होने लगी, बार-बार पर कैफियत तलब होती और चेतावनी मिला करती थी। 4 वर्ष में 22 बार उनका तबादला किया गया।



रेणुका - में अतीत के गौरव के प्रति कवि का सहज आदर और आकर्षण परिलक्षित होता है। पर साथ ही वर्तमान परिवेश की नीरसता से त्रस्त मन की वेदना का परिचय भी मिलता है।



हुंकार - में कभी अतीत के गौरव गान की अपेक्षा वर्तमान दैत्य के प्रति आक्रोश प्रदर्शन की और अधिक उन्मुख जान पड़ता है।



रसवंती - में कवि की सौंदर्यन्वेषी वृत्ति काव्यमयी हो जाती है। पर यह अंधेरे में ध्येयसौंदर्य का अन्वेषण नहीं,उजाले में सुंदर का आराधन है ।




सामधेनी (1947 .) - में दिनकर की की सामाजिक चेतना स्वदेश और परिचित परिवेश की परिधि से बढ़कर भी संवेदना का अनुभव करते जान पड़ती है। कवि के स्वर का रोज नए वेग से नए शिखर तक पहुंच जाता है।



काव्य रचना - एक मुक्त काव्य संग्रहों के अतिरिक्त दिनकर ने अनेक प्रबंध काव्य की रचना भी की है जिसमें कुरुक्षेत्र (1946), रश्मिरथी (1952), उर्वशी (1961) प्रमुख है कुरुक्षेत्र में महाभारत के शांति पूर्व के मूल कथाकार का ढांचा लेकर दिनकर ने युद्ध और शांति के विशाल गंभीर और महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार भीष्म और युधिष्ठिर के संलाप के रूप में प्रस्तुत किए हैं दिनकर के काव्य में विचार तत्व इस तरह उभर कर सामने पहले कभी नहीं आए थे। कुरुक्षेत्र के बाद उनके नवीनतम कब उर्वशी में फिर हमें विचार तत्व की प्रधानता मिलती है। साहस पूर्वक गांधीजी अहिंसा के आलोचना करने वाले कुरुक्षेत्र का हिंदी जगत में श्रेष्ठ आदर हुआ। उर्वशी जिसे कवि ने स्वयं अध्याय की उपाधि प्रदान की है। दिनकर की कविता को नए शिखर पर पहुंचा दिया है ।





रामधारी सिंह दिनकर की प्रथम रचना कौन सी थी?


दिनकर जी की प्रथम रचना रेणुका 1935 में थी



रामधारी सिंह दिनकर जी सब रजिस्टार के रूप में कब तक कार्यरत रहे? 


बीए ऑनर्स की परीक्षा अध्ययन करने के पश्चात दिनकर ने पहले सब रजिस्टार के पद पर और फिर प्रचार विभाग के उप निर्देशक के रूप में कुछ वर्षों तक सरकारी नौकरी की। वह लगभग 9 वर्षों तक इस पद पर रहे।




रामधारी सिंह दिनकर जी की महा विद्यालय शिक्षा कहां हुई थी?


दिनकर के प्रथम तीन काव्य संग्रह प्रमुख हैं- रेगुणा (1935 ), हुंकार (1938), और रसवंती (1939), उनके आरंभिक आत्ममंथन के युग की रचनाएं हैं।



रामधारी सिंह दिनकर की कविता संग्रह के नाम लिखिए?


रामधारी सिंह दिनकर की कविता संग्रह में उर्वशी ,परशुराम की प्रतीक्षा, सपनों का धुआं, आत्ममंथन रश्मिरथी एवं कुरुक्षेत्र हैं।


रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र का सारांश बताइए?


कुरुक्षेत्र छटा सर्ग - कुरुक्षेत्र एक प्रबंध काव्य है। इसका प्रणयन अहिंसा और हिंसा के बीच अंत द्वंद के फल स्वरुप हुआ कुरुक्षेत्र की कथावस्तु का आधार महाभारत के युद्ध की घटना है, जिसमें वर्तमान युग की ज्वलंत युद्ध समस्या का उल्लंघन है , दिनकर के कुरुक्षेत्र प्रबंध काव्य की कथावस्तु 7 वर्गों में विभक्त है।



रामधारी सिंह दिनकर कहां के रहने वाले थे?


दिनकर जी का जन्म 24 दिसंबर 1960 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। वह बिहार में रहने वाले थे।



रामधारी सिंह दिनकर किस युग के कवि थे?


रामधारी सिंह दिनकर छायावादी युग के कवि थे छायावादोत्तर कवियों में पहली पीढ़ी के कवि रामधारी सिंह दिनकर जी थे।


रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कब हुआ?


रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था।



रामधारी सिंह दिनकर के निबंध कौन-कौन से हैं?


प्रस्तुत संकलन में संकलित रचनाएं उनकी जिन कृतियों से ली गई है वह हैं - रेगुणा (1935 ), हुंकार (1938), और रसवंती (1939),अर्धनारीश्वर, वट-पीपल, उजली आग, संस्कृति के चार अध्याय (निबंध), देश-विदेश (यात्रा) आदि इनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं।



रामधारी सिंह दिनकर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए?


रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रमुख लेखक कामा का विवाह निबंधकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित है, दिनकर स्वतंत्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र कवि के नाम से जाने गए कमावे छायावादोत्तर कवियों की पहली कवि थे।



रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली क्या थी?


दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। इन्होंने तद्भव और देशज शब्दों तथा मुहावरों और लोकोक्तियां का भी सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनकी शैलियों में विवेचनात्मक, समीक्षात्मक, भावात्मक सूक्ति परक शैली प्रमुख रूप से है।




रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी का क्या नाम था ?


रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी का नाम रूप देवी था।



रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कब और कहां हुआ था?


रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था।



रामधारी सिंह दिनकर का हिंदी साहित्य में योगदान बताइए ?



राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य में नासिर पर वीर रस के काम को एक नई ऊंचाई दी बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का सृजन किया। उन्होंने टैगोर की रचनाओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद किया। दिनकर का पहला काव्य संग्रह विजय संदेश वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ।दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। इन्होंने तद्भव और देशज शब्दों तथा मुहावरों और लोकोक्तियां का भी सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनकी शैलियों में विवेचनात्मक, समीक्षात्मक, भावात्मक सूक्ति परक शैली प्रमुख रूप से है।



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