up board class 10 hindi half yearly exam paper 2022-23 full solutions
class 10 hindi up board half yearly exam paper full solutions 2022-23
यूपी बोर्ड अर्द्ध वार्षिक परीक्षा पेपर कक्षा 10 हिन्दी का सम्पूर्ण हल 2022–23
अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2022-23
कक्षा - 10वी
विषय – हिन्दी
निर्धारित समय: 3:15 घण्टे पूर्णांक : 70
सामान्य निर्देश :
1.प्रत्येक प्रश्नों के उत्तर खण्डों के क्रमानुसार ही करिए।
2. कृपया जांच लें प्रश्न पत्र में प्रश्नों की कुल संख्या 28 तथा मुद्रित पृष्ठों की संख्या 04 है। कृपया प्रश्न का उत्तर लिखना शुरू करने से पहले प्रश्न का क्रमांक अवश्य लिखें।
3. घण्टी का प्रथम संकेत प्रश्न पत्रों के वितरण एवं प्रश्न पत्र को पढ़ने के लिए है। 15 मिनट के पश्चात घण्टी के द्वितीय संकेत पर प्रश्न पत्र हल करना प्रारम्भ करें।
4.प्रश्न पत्र दो खण्डों में विभाजित है। खण्ड-अ और खण्ड-व। खण्ड-अ में 20 अंक के बहुविकल्पीय प्रश्न दिये गये हैं। खण्ड-ब में 50 अंक के वर्णनात्मक प्रश्न दिये गये हैं। प्रत्येक के सम्मुख अंक निर्धारित हैं।
खण्ड-अ
1.रायकृष्णदास कौन थे
क. निबन्धकार
ख. गद्य-गीतकार
ग. कहानीकार
घ. नाटककार
उत्तर – ख. गद्य-गीतकार
2.'धर्मयुग' नामक पत्रिका के सम्पादक थे
क. मोहन राकेश
ख. भारतेन्दु
ग. धर्मवीर भारती
घ. महावीर प्रसाद द्विवेदी
उत्तर – ग. धर्मवीर भारती
3.गुलाबराय द्वारा रचित है
क. मेरा जीवन प्रवाह
ख. मेरी आत्म कहानी
ग. मेरी असफलताएं
घ. मेरी आत्मकथा
उत्तर – ग. मेरी असफलताएं
4.खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है
क. प्रिय प्रवास
ख. कामायनी
ग. साकेत
घ. उर्वशी
उत्तर – क. प्रिय प्रवास
5.ममता पाठ गद्य की किस विधा में है
क. उपन्यास
ख. एकांकी
ग. नाटक
घ. कहानी
उत्तर – घ. कहानी
6.घनानन्द कवि थे ।
क. आदिकाल
ख. भक्तिकाल
ग. रीतिकाल
घ. आधुनिक काल
उत्तर – ग. रीतिकाल
7.कामायनी महाकाव्य के रचनाकार हैं
क्र. मैथिलीशरण गुप्त
ख. सूर्यकान्त त्रिपाठी
ग. सुमित्रानन्दन पंत
घ. जयशंकर प्रसाद
उत्तर – घ. जयशंकर प्रसाद
8.रीति सिद्ध कवि हैं
क. बोधा
ख. आलम
ग. बिहारी
घ. केशवदास
उत्तर – ग. बिहारी
9. कठिन काव्य का प्रेत किस कवि को कहा जाता है
क. घनानन्द
ख. भूषण
ग. सेनापति
घ. केशवदास
उत्तर – घ. केशवदास
10.द्विवेदी युग का नाम किस साहित्यकार के नाम पर पड़ा
क. भारतेन्दु
ख. प्रेमचन्द
ग. महावीर प्रसाद द्विवेदी
घ. जयशंकर प्रसाद
उत्तर – ग. महावीर प्रसाद द्विवेदी
11.करुण रस का स्थायी भाव है।
क. निर्वेद
ख. शोक
ग. हास
घ. रति
उत्तर – शोक
12.सोरठा छन्द के पहले एवं तीसरे तथा दूसरे एवं चौथे चरण में क्रमश: मात्राएं होती हैं
क. 13-11
ख. 12-12
ग.11-13
घ. 24-24
उत्तर – ग.11-13
13.पीपर पात सरिस मन डोला में अलंकार है
क. रूपक
ख. उपमा
ग. उत्प्रेक्षा
घ. अनुप्रास
उत्तर – ख. उपमा
14.चौराहा में समास है
क. द्वन्द्व
ख. बहुब्रीहि
ग. कर्मधारय
घ. द्विगु
उत्तर – घ. द्विगु
15.मकान का तत्सम है
क. भुवन
ख. घर
ग. भवन
घ. उपवन
उत्तर – ख. घर
16.प्रत्येक शब्द में उपसर्ग है
क. प्रत्य
ख. प्र
ग. प्रति
घ. प्रत्
उत्तर – प्र
17. पंकज, वारिज, जलज शब्द किसके पर्यायवाची हैं
क. पानी
ख. चन्द्रमा
ग. कीचड़
घ. कमल
उत्तर – क. पानी
18.अत्याचार में सन्धि है
क. दीर्घ
ख. गुण
ग. यण
घ. वृद्धि
उत्तर– ग. यण
19.फले शब्द में विभक्ति एवं वचन है
क. सप्तमी एकवचन
ख. द्वितीया बहुवचन
ग. प्रथमा द्विवचन
घ. चतुर्थी एकवचन
उत्तर – ग. प्रथमा द्विवचन
20.अपठत में लकार, पुरुष एवं वचन है
क. लट् लकार, प्र.पु. एकवचन
ख. लङलकार, म.प. बहुवचन
ग. लोट् लकार, उ.पु. द्विवचन
घ. लट्लकार, म.पु. बहुवचन
उत्तर –घ. लट्लकार, म.पु. बहुवचन
खण्ड-ख
21.निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(2x3=6)
मित्रता के लिए यह आवश्यक नही है कि दो मित्र एक ही प्रकार के कार्य करते हों या एक ही रुचि के हों इसी प्रकार प्रकृति एवं आचरण की समानता भी वांछनीय नहीं है। दो भिन्न प्रकृति के मनुष्यों में भी बराबर प्रीति एवं मित्रता रही है।
क. उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर – सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'गद्य खण्ड' में संकलित 'मित्रता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' हैं
ख.रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – लेखक हमे इस कहानी के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि यह जरूरी नहीं है कि दो मित्रों के गुणों में समानता होनी जरुरी है, एक जैसी सोच हो या एक जैसा कार्य करे, लेकिन फिर भी वो अच्छे दोस्त बन सकते हैं।
ग.मित्रता के लिए क्या बाछनीय नहीं है।
उत्तर –मित्रता के लिए यह आवश्यक नही है कि दो मित्र एक ही प्रकार के कार्य करते हों इसी प्रकार प्रकृति एवं आचरण की समानता भी वांछनीय नहीं है।
अथवा
मैंने सुना था कि वह मेरा घर बनवाने की आज्ञा दे चुका था। मैं आजीवन अपनी झोपड़ी खोदवाने के डर से भयभीत रही। भगवान ने सुन लिया, मैं आज इसे छोड़े जाती हूँ अब तुम इसका मकान बनाओ या महल ।
क. गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
ख. रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
ग. झोपड़ी खोदवाने के भय से कौन भयभीत था ?
22.निम्नलिखित पद्यांशों में से किसी एक की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथाकाव्यगत सौन्दर्य भी लिखिए।
क. सोहत ओढ़े पीत पटु, स्याम सलान गात
मनौं नीलमनि शैल पर आतपु परयौ प्रभात ।।
ख. ऊधौ मोहि व्रज बिसरत नाहीं वृंदावन गोकुल वन उपवन, सघन कुंज की छांही।प्रात समय माता जसुमति, अरु नन्द देखि सुख पावत।। माखन रोटी दही सजायौ, अति हित साथ खवावत ।। सूरदास धनि धनि ब्रजवासी, जिनसौ हित यदुतात ।।
उत्तर – सन्दर्भ–प्रस्तुत पद्यांश महाकवि सूरदास जी द्वारा रचित 'सूरसागर' महाकाव्य से हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड में संकलित 'पद' शीर्षक से उद्धृत है।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में सूरदास जी ने श्रीकृष्ण की मनोदशा का चित्रण किया है। उद्धव ने मथुरा पहुँचकर श्रीकृष्ण को वहाँ की सारी स्थिति बताई, जिसे सुनकर श्रीकृष्ण भाव-विभोर हो गए।
व्याख्या श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे उद्धव! मैं ब्रज को भूल नहीं पाता हूँ। मैं सबको भुलाने का बहुत प्रयत्न करता हूँ, पर ऐसा करना मेरे लिए सम्भव नहीं हो पाता। वृन्दावन और गोकुल, वन, उपवन सभी मुझे बहुत याद आते हैं। वहाँ के कुंजों की घनी छाँव भी मुझसे भुलाए नहीं भूलती। प्रातः काल माता यशोदा और नन्द बाबा मुझे देखकर हर्षित होते तथा अत्यन्त सुख का अनुभव करते थे। माता यशोदा मक्खन, रोटी और दही मुझे बड़े प्रेम से खिलाती थी। गोपियाँ और ग्वाल-बालों के साथ अनेक प्रकार की क्रीड़ाएँ करते थे और सारा दिन हँसते-खेलते हुए व्यतीत होता था। ये सभी बाते मुझे बहुत याद आती हैं।
सूरदास जी ब्रजवासियों की सराहना करते हुए कहते हैं कि वे ब्रजवासी धन्य हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण स्वयं उनके हित की चिन्ता करते हैं और इनका प्रतिक्षण ध्यान करते हैं। उन्हें श्रीकृष्ण के अतिरिक्त ऐसा हितैषी और कौन मिल सकता है।
काव्य सौन्दर्य
श्रीकृष्ण साधारण मनुष्य की भाँति अपने प्रियजनों को याद कर द्रवित हो रहे हैं। यद्यपि उनका व्यक्तित्व अलौकिक है फिर भी ब्रज की स्मृतियाँ उन्हें व्याकुल कर देती हैं।
भाषा ब्रज
गुण माधुर्य
रस श्रृंगार
छन्द गेयात्मक
शब्द-शक्ति अभिधा और व्यंजना
अलंकार
अनुप्रास अलंकार 'ब्रज बिसरत', 'गोपी ग्वाल' और 'अति हित' में क्रमश: 'ब', 'ग' और 'त' वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार 'धनि-धनि' में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने से यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
23.निम्नलिखित का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए-। (2+3=5)
एषा नगरी भारतीय संस्कृतेः संस्कृतभाषायाश्च केन्द्रस्थलम् अस्ति । इत एव संस्कृत वाङमयस्य संस्कृतेश्च आलोकः सर्वत्र प्रसृतः । मुगल युवराजः दाराशिकोहः अत्रागत्य भारतीय दर्शन शास्त्राणाम् अध्ययनम अकरोत। सः तेषां ज्ञानेन तथा प्रभावितः अभवत्, यत तेन उपनिषदाम अनुवाद: पारसी भाषायाम् कारितः ।
उत्तर – सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के संस्कृत खण्ड' में संकलित वाराणसी' नामक पाठ से लिया गया है। इस गद्यांश में वाराणसी नामक प्राचीन नगर के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।
इस अंश में वाराणसी के प्राचीन गौरव एवं महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।
अनुवाद यह नगरी भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा का केन्द्रस्थल है। यहीं से संस्कृत साहित्य और संस्कृति का प्रकाश चारों ओर फैला है। मुगल युवराज दाराशिकोह ने यहीं आकर भारतीय दर्शनशास्त्रों का अध्ययन किया था। वह उनके ज्ञान से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उपनिषदों का अनुवाद फारसी भाषा में करवाया।
अथवा
अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः । अमुखः स्फुटवक्ता च यो जानाति सः पण्डितः । ।
24 .क. अपनी पाठ्य पुस्तक से कण्ठस्थ किया हुआ कोई एक श्लोक लिखिए जो इस प्रश्न पत्र में न आया हो
उत्तर –
नितरां नीचोऽस्मीति त्वं खेदं कूप! कदापि मा कृथाः।
अत्यन्तसरसहृदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि
ख. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नो के उत्तर संस्कृत में लिखिए।
1. क. वीरेण पूज्यते ?
उत्तर वीर: वीरेण पूज्यते ।
2. पदेन बिना कि दूरं याति ।
3. दुर्मुखः कः आसीत् ?
उत्तर – दुर्मुख: चाण्डाल: आसीत्
4. संस्कृत विश्वविद्यालयः कुत्र अस्ति?
25.क. निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का जीवन परिचय एवं रचनाएं लिखिए
1. जयशंकर प्रसाद
2. डा. राजेन्द्र प्रसाद
3. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
उत्तर –
जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय
जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उनका जन्म 1890 ई. में काशी के 'सुँघनी साहू' नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके यहाँ तम्बाकू का व्यापार होता था। उनके पिता देवीप्रसाद और पितामह शिवरत्न साहू थे। इनके पितामह परम शिवभक्त और दयालु थे। उनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य प्रेमी थे। प्रसाद जी का बचपन सुखमय था। बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थों की यात्राएँ कीं। यात्रा से लौटने के बाद पहले उनके पिता का और फिर चार वर्ष पश्चात् ही उनकी माता का निधन हो गया।
प्रसाद जी की शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण का प्रबन्ध उनके बड़े भाई शम्भूरत्न ने किया और क्वीन्स कॉलेज में उनका नाम लिखवाया, किन्तु उनका मन वहाँ न लगा। उन्होंने अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन स्वाध्याय से घर पर ही प्राप्त किया। उनमें बचपन से ही साहित्यानुराग था। वे साहित्यिक पुस्तकें पढ़ते और काव्य रचना करते रहे। पहले तो उनके भाई उनकी काव्य-रचना में बाधा डालते रहे, परन्तु जब उन्होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्य-रचना में अधिक लगता है, तब उन्होंने इसकी पूरी स्वतन्त्रता उन्हें दे दी। प्रसाद जी स्वतन्त्र रूप से काव्य-रचना के मार्ग पर बढ़ने लगे। इसी बीच उनके बड़े भाई शम्भूरन जी का निधन हो जाने से घर की स्थिति खराब हो गई। व्यापार भी नष्ट हो गया। पैतृक सम्पत्ति बेचने से कर्ज से मुक्ति तो मिली,
पर वे क्षय रोग का शिकार होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में 15 नवम्बर, 1937 को इस संसार से विदा हो गए।
रचनाएँ – जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के स्वनाम धन्य रत्न हैं। उन्होंने काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है।
ख. - निम्नलिखित में से किसी एक कवि का जीवन परिचय एवं रचनाएं लिखिए
1. तुलसीदास
2. रसखान
3. पन्त
उत्तर –
तुलसीदास का जीवन-परिचय
लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास भारत के ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता तथा संसार के कवि हैं। उनके जन्म से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। इनका जन्म 1532 ई. (भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी, विक्रम संवत् 1589) स्वीकार किया गया है। तुलसीदास जी के जन्म और जन्म स्थान के सम्बन्ध को लेकर सभी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। इनके जन्म के सम्बन्ध में एक दोहा प्रचलित है
"पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर। श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो सरीर ।। "
'तुलसीदास' का जन्म बाँदा जिले के 'राजापुर' गाँव में माना जाता है। कुछ विद्वान् इनका जन्म स्थल एटा जिले के 'सोरो' नामक स्थान को मानते हैं। तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल-नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ।
इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध सन्त नरहरिदास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इनका विवाह पण्डित दीनबन्धु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम था और उनके सौन्दर्य रूप के प्रति वे अत्यन्त आसक्त थे। एक बार इनकी पत्नी बिना बताए मायके चली गईं तब ये भी अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए उनके पीछे-पीछे ससुराल जा पहुँचे। इस पर इनकी पत्नी ने उनकी भर्त्सना करते हुए कहा
"लाज न आयी आपको दौरे आयेहु साथ।"
पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह-माया से विरक्त कर दिया और उनके हृदय में श्रीराम के प्रति भक्ति भाव जाग्रत हो उठा। तुलसीदास जी ने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया और ये राम के अनन्य भक्त बन गए। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। 1574 ई. में इन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना की तथा मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। 1623 ई. में काशी में इनका निधन हो गया।
कृतियाँ (रचनाएँ)
महाकवि तुलसीदास जी ने बारह ग्रन्थों की रचना की। इनके द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस सम्पूर्ण विश्व के अद्भुत ग्रन्थों में से एक है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है
1. रामलला नहछू गोस्वामी तुलसीदास ने लोकगीत की सोहर' शैली में इस ग्रन्थ की रचना की थी। यह इनकी प्रारम्भिक रचना है।
2. वैराग्य-सन्दीपनी इसके तीन भाग हैं, पहले भाग में छः छन्दों में मंगलाचरण है तथा दूसरे भाग में 'सन्त-महिमा वर्णन' एवं तीसरे भाग में 'शान्ति-भाव वर्णन है।
3. रामाज्ञा प्रश्न यह ग्रन्थ सात सर्गों में विभाजित है, जिसमें शुभ-अशुभ शकुनी का वर्णन है। इसमें रामकथा का वर्णन किया गया है।
4. जानकी-मंगल इसमें कवि ने श्रीराम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर वर्णन किया है। 5. रामचरितमानस इस विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन के चरित्र का वर्णन किया गया है।
6. पार्वती-मंगल यह मंगल काव्य है, इसमें पूर्वी अवधि में 'शिव-पार्वती के विवाह' का वर्णन किया गया है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण भी विद्यमान है।
7. गीतावली इसमें 230 पद संकलित हैं, जिसमें श्रीराम के चरित्र का वर्णन किया गया है। कथानक के आधार पर ये पद सात काण्डों में विभाजित हैं।
8. विनयपत्रिका इसका विषय भगवान श्रीराम को कलियुग के विरुद्ध प्रार्थना-पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में प्रतीत होते हैं। इसमें तुलसीदास की भक्ति-भावना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।
9. गीतावली इसमें 61 पदों में कवि ने ब्रजभाषा में श्रीकृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।
10. बरवै-रामायण यह तुलसीदास की स्फुट रचना है, जिसमें श्रीराम कथा संक्षेप में वर्णित है। बरवै छन्दों में वर्णित इस लघु काव्य में अवधि भाषा का प्रयोग किया गया है।
11. दोहावली इस संग्रह ग्रन्थ में कवि की सूक्ति शैली के दर्शन होते हैं। इसमें दोहा शैली में नीति, भक्ति और राम महिमा का वर्णन है।
12. कवितावली इस कृति में कवित्त और सवैया शैली में रामकथा का वर्णन किया गया है। यह ब्रजभाषा में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है।
26.किन्हीं तीन वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
क. मैं विद्यालय जाऊंगा
उत्तर –अहं विद्यालयं गमिष्यामि
ख. मोहन पढ़ता है।
घ. राष्ट्र भाषा हिन्दी है ।
ग. सोहन जाता है।
ड. वे गाते हैं।
27.निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए
क राष्ट्रीय त्योहार
ख. भारतीय कृषक
ग. मेरा प्रिय कवि
घ. बढ़ती जनसंख्या एक समस्या
उत्तर – ग. मेरा प्रिय कवि
मुख्य बिंदु – प्रस्तावना, आरम्भिक जीवन-परिचय, काव्यगत विशेषताएँ, उपसंहार
प्रस्तावना – संसार में अनेक प्रसिद्ध साहित्यकार हुए हैं, जिनकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। यदि मुझसे पूछा जाए कि मेरा प्रिय साहित्यकार कौन है? तो मेरा उत्तर होगा-महाकवि तुलसीदास। यद्यपि तुलसी के काव्य में भक्ति-भावना प्रधान है, परन्तु उनका काव्य कई सौ वर्षों के बाद भी भारतीय जनमानस में रचा-बसा हुआ है और उनका मार्ग दर्शन कर रहा है, इसलिए तुलसीदास मेरे प्रिय साहित्यकार हैं।
आरम्भिक जीवन-परिचय – प्रायः प्राचीन कवियों और लेखकों के जन्म के बारे में सही-सही जानकारी नहीं मिलती। तुलसीदास के विषय में भी ऐसा ही है, किन्तु माना जाता है कि 1511 ई. (संवत् 1568 वि.) में बाँदा जिले में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। इनके ब्राह्मण माता-पिता ने इन्हें अशुभ मानकर जन्म लेने के बाद ही इनका त्याग कर दिया था। अत: इनका बचपन बहुत ही कठिनाइयों में बीता। गुरु नरहरिदास ने इनको शिक्षा दी।
इनका विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ था। विवाह उपरान्त उसकी एक कटु उक्ति सुनकर इन्होंने राम-भक्ति को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया, इन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग सैंतीस ग्रन्थों की रचना की, परन्तु इनके बारह ग्रन्थ ही प्रामाणिक माने जाते हैं। इस महान् भक्त कवि का देहावसान 1623 ई. (संवत् 1680 वि.) में हुआ।
काव्यगत विशेषताएँ – तुलसीदास का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब हिन्दू समाज मुसलमान शासकों के अत्याचारों से आतंकित था। लोगों का नैतिक चरित्र गिर रहा था और लोग संस्कारहीन हो रहे थे। ऐसे में समाज के सामने एक आदर्श स्थापित करने की आवश्यकता थी, ताकि लोग उचित-अनुचित का भेद समझकर सही आचरण कर सकें। यह भार तुलसीदास ने सँभाला और 'रामचरितमानस' नामक महान् काव्य की रचना की। इसके माध्यम से इन्होंने अपने प्रभु श्रीराम का चरित्र-चित्रण किया, हालाँकि यह एक भक्ति-भावना प्रधान काव्य है। 'रामचरितमानस' के अतिरिक्त इन्होंने कवितावली, गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका, जानकीमंगल, रामलला नहछू, रामायण, वैराग्य सन्दीपनी, पार्वतीमंगल आदि ग्रन्थों की रचना भी की है, परन्त इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार 'रामचरितमानस' ही है।
तुलसीदास जी वास्तव में, एक सच्चे लोकनायक थे, क्योंकि इन्होंने कभी किसी सम्प्रदाय या मत का खण्डन नहीं किया, वरन् सभी को सम्मान दिया, इन्होंने निर्गुण एवं सगुण दोनों धाराओं की स्तुति की। अपने काव्य के माध्यम से इन्होंने कर्म, ज्ञान एवं भक्ति की प्रेरणा दी। 'रामचरितमानस' के आधार पर इन्होंने एक आदर्श भारतवर्ष की कल्पना की थी, जिसका सकारात्मक प्रभाव हुआ भी, इन्होंने लोकमंगल को सर्वाधिक महत्त्व दिया। साहित्य की दृष्टि से भी तुलसी का काव्य अद्वितीय है। इनके काव्य में सभी रसों को स्थान मिला है। इन्हें संस्कृत के साथ-साथ राजस्थानी, भोजपुरी, बुन्देलखण्डी, प्राकृत, अवधी, ब्रज, अरबी आदि भाषाओं का ज्ञान भी था, जिनका प्रभाव इनके काव्य में दिखाई देता है। इन्होंने विभिन्न छन्दों में रचना करके अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन किया है। तुलसी ने प्रबन्ध तथा मुक्त दोनों प्रकार के काव्यों में रचनाएँ कीं। इनकी प्रशंसा में कवि जयशंकर प्रसाद ने लिखा
"प्रभु का निर्भय सेवक था, स्वामी था अपना, जाग चुका था, जग था जिसके आगे सपना। प्रबल प्रचारक था जो उस प्रभु की प्रभुता का, अनुभव था सम्पूर्ण जिसे उसकी विभुता का। राम छोड़कर और की, जिसने कभी न आस की, रामचरितमानस-कमल, जय हो तुलसीदास की।
उपसंहार– तुलसीदास जी अपनी इन्हीं सब विशेषताओं के कारण हिन्दी साहित्य के अमर कवि हैं। निःसन्देह इनका काव्य महान् है। तुलसी ने अपने युग और भविष्य, स्वदेश और विश्व, व्यक्ति और समाज सभी के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री दी है। अतः ये मेरे प्रिय कवि हैं। अन्त में इनके बारे में यही कहा जा सकता है
“कविता करके तुलसी न लसे,
कविता लसी पा तुलसी की कला।”
28.स्वपठित खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए ।
अथवा
स्वपठित खण्ड काव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
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