भारतीय संविधान Indian Constitution
भारतीय संविधान के महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद Indian Constitution Articles in hindi
भारतीय संविधान से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर जो की आने वाली सभी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए उपयोगी है। जीके प्रश्न " जो विभिन्न सरकारी परीक्षाओं UPSC, SSC, Railway, Banking, State PSC, CDS, NDA, SSC CGL, SSC CHSL, Patwari, Samvida, Police, SI, CTET, TET, Army, MAT, CLAT, NIFT, IBPS PO, IBPS Clerk, CET, के लिए बहुत उपयोगी हैं ।भारतीय संविधान सभा की विभिन्न समितियों के अध्यक्ष
Gk Indian Constituent assembly Committees and President
प्रश्न 1.प्रक्रिया विषयक नियमों संबंधी समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्न 2.संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्न 3.वित्त एवं स्टाफ समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्न 4.प्रत्यय-पत्र संबंधी समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – अलादि कृष्णास्वामी अय्यर
प्रश्न 5.आवास समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – बी पट्टाभि सीतारमैय्या
प्रश्न 6.कार्य संचालन संबंधी समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – के. एम. मुन्शी
प्रश्न 7.राष्ट्रीय ध्वज संबंधी तदर्थ समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्न 8.संविधान सभा के कार्यकरण संबंधी समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – जी. वी. मावलंकर
प्रश्न 9.राज्यों संबंधी समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – जवाहर लाल नेहरू
प्रश्न 10.मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक एवं जनजातीय और अपवर्जित क्षेत्रों संबंधी सलाहकार समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – वल्लभ भाई पटेल
प्रश्न 11.अल्पसंख्यकों के उप-समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – एच.सी. मुखर्जी
प्रश्न 12.मौलिक अधिकारों संबंधी उप-समिति का अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – जे. बी. कृपलानी
प्रश्न 13.पूर्वोत्तर सीमांत जनजातीय क्षेत्रों और आसाम के अपवर्जित और आंशिक रूप से अपवर्जित क्षेत्रों संबंधी उपसमिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – गोपीनाथ बारदोलोई
प्रश्न 14.अपवर्जित और आंशिक रूप से अपवर्जित क्षेत्रों (असम के क्षेत्रों को छोड़कर) संबंधी उपसमिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – ए.वी. ठक्कर
प्रश्न 15.संघीय शक्तियों संबंधी समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – जवाहर लाल नेहरू
प्रश्न 16.संघीय संविधान समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – जवाहर लाल नेहरू
प्रश्न 17.प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर – बी. आर. अम्बेडकर
भारतीय संविधान किन देशों के संविधान से प्रेरित है
1.ब्रिटेन का संविधान से - संसदीय व्यवस्था, मंत्रिमंडल प्रणाली, विधायी प्रक्रिया, राज्याध्यक्ष का प्रतीकात्मक या नाममात्र का महत्त्व, एकल नागरिकता, परमाधिकार रिटे, द्विसदनवाद, संसदीय विशेषाधिकार।
2. अमेरिका का संविधान से - मूल अधिकार, व्यापालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन का सिद्धांत, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को पद से हटाया जाना और राष्ट्रपति पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति का पद ।
3.आयरलैंड का संविधान से - राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन, राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति।
4.कनाडा का संविधान से - केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति, सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था, उच्चतम न्यायालय का परामर्शी न्यायनिर्णयन, अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना।
5. फ्रांस का संविधान से - गणतंत्रात्मक ढाँचा, स्वतंत्रता समता और बंधुता के आदर्श।
6.ऑस्ट्रेलिया का संविधान से - समवर्ती सूची, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक, व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता।
7.जर्मनी का संविधान से - आपातकाल के समय मूल अधिकारों का स्थगन।
8. दक्षिणी अफ्रीका का संविधान - राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन, संविधान में संशोधन की प्रक्रिया।
9. सोवियत संघ का संविधान—प्रस्तावना में सामजिक,आर्थिक और राजनीति न्याय का आदर्श।
10.सोवियत संघ के संविधान से – मौलिक कर्तव्य ,विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया।
संविधान की प्रस्तावना
* बेरुबारी यूनियन केस 1960 के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना, संविधान का हिस्सा नहीं है।
* केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 के मामले में, सुप्रीम कोर्ट मे बेरुसंघ बाद में दिए फैसले को बदल दिया और कहा कि भारत की प्रस्तावना, संविधान का हिस्सा है।
*भारतीय जीवन बीमा निगम एवं अन्य बनाम कंज्यूमर एजुकेशन और रिसर्च एवं अन्य 1995 के मामले में उच्चतम न्यायालय के अनुसार प्रस्तावना भारत के संविधान का अभिन्न अंग है।
* 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्द जोड़े गए।
मूल रूप से भारतीय संविधान के भाग की संख्या 22 है।
*भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसमें मूल रूप से कुल 395 अनुच्छेद 8 अनुसूचियां तथा 22 भाग थे।
* वर्तमान में अनुच्छेदों की संख्या, 470 तथा अनुसूचियों की संख्या 12 और कुल 25 भाग हो गए हैं। सर आईवर जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को विश्व का सबसे बड़ा एवं विस्तृत संविधान तथा वकीलों का स्वर्ग कहाँ है।
* 9वीं अनुसूची को प्रथम संविधान संशोधन द्वारा 1951 में भूमि सुधार के संबंधित अधिनियमो को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए जोड़ा गया।
* 10वीं अनुसूची इसमें दलबदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है जो कि 52 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा 1985 में जोड़ा गया है।
*11वीं अनुसूची इसमें पंचायतों को शक्तियां तथा प्राधिकार प्रदान किया गया है। इसके अंतर्गत पंचायतों को 29 विषय प्रदान किए गए हैं और इसे 73वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।
*12वीं अनुसूची इसमें नगर पालिका की शक्तियों का उल्लेख है, अट्ठारह विषय प्रदान किए गए हैं। इस अनुसूची को 74वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।
*अभी तक भारत के संविधान में कुल मिलाकर 104 संशोधन हो चुके है।
[ संघ और उसका राज्य क्षेत्र ]
* संविधान का भाग एक, अनुच्छेद 1 से 4 भारत के संघ और उसके राज्य क्षेत्रों से संबंधित है। इस भाग में यह प्रस्ताव किया गया है कि यदि भारत में किसी नये राज्य का निर्माण उसकी सीमाओं में परिवर्तन या राज्य का कोई भी भूभाग किसी विदेशी देश को स्थानांतरित करना है तो इसकी शक्ति केवल और केवल संसद में निहित है।
*वर्तमान में भारत में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश है। 4 अगस्त 2019 तक जम्मू कश्मीर जो एक राज्य था को दो अलग-अलग जम्मू कश्मीर और लद्दाख 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया है।
*आजादी के बाद 1953 में आंध्र प्रदेश भाषाई आधार पर गठित होने वाला भारत का पहला राज्य था। इसकी सिफारिश फजल अली कमीशन की रिपोर्ट के पश्चात किया गया था।
*आजादी के समय भारत 3652 रियासतों में विभाजित था, जिसमें 650 रियासतों ने स्वेच्छा से अपना विलय भारत में कर लिया था।
[ नागरिकता ]
* भारतीय संविधान का भाग 2 अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता के बारे में है। भारत में ब्रिटेन के समान एकल नागरिकता का प्रावधान किया गया है जबकि अमेरिका में दोहरी नागरिकता का प्रावधान है।
*अनुच्छेद 11 के अंतर्गत संसद को नागरिकता के संबंध में विधि बनाने को शक्ति दी गई है। जिसके तहत संसद द्वारा भारतीय नागरिकता अधिनियम 1966 में पारित किया गया।
* इसी में विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम 12 दिसंबर, 2019 को कानून बनाया गया था , जिसमें पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश की अल्पसंख्यक जो कि 2014 के पहले भारत में रह रहे हैं, को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
*भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय नागरिकता निम्नलिखित पांच प्रकार से प्राप्त की जाती है (1) जन्म से, (2) वंशपरम्परा से, (3) पंजीकरण से, (4) देशीयकरण से, (5) भूमि के अर्जन द्वारा।
* दिसंबर 2013 में लक्ष्मीमल सिंघवी समिति की सिफारिश पर भारत की संसद ने ओवरसीज सिटिजन आफ इंडिया नाम से नागरिकता संशोधन किया और विदेश में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों को नियमित रूप से भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया।
[ मूल अधिकार ]
* मूल अधिकारों का सर्वप्रथम विकास ब्रिटेन में हुआ था। ब्रिटिश सम्राट जॉन द्वारा 1215AD हस्ताक्षरित अधिकार पत्र (मैग्राकाटी) मूल अधिकार संबंधी प्रथम लिखित दस्तावेज हैं।
* भारतीय संविधान का भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 मूल अधिकारों के बारे में है। यह भाग अमेरिका के संविधान बिल आफ राइट्स से प्रेरित है।
*मूल अधिकार राज्य के विरुद्ध नागरिकों को प्रदान किया गया है।
*संविधान द्वारा कुछ मूल अधिकार केवल नागरिकों को ही दिए गए हैं। जैसे अनुच्छेद 15, 16, 19, 29 और 30 यह केवल भारतीय नागरिको को प्राप्त है।
*आपातकाल के समय राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को निलंबित नहीं कर सकता है।
* मूल अधिकार न्याय योग्य है और इसे न्यायालय द्वारा प्रवर्तित कराया जा सकता है।
*संसद साधारण विधि द्वारा किसी भी प्रकार से मूल अधिकारों में कमी नहीं कर सकती है। लेकिन अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन कर मूल अधिकारों को परिवर्तित कर सकती है।
*अनुच्छेद 13 में मूल अधिकारों की सुरक्षा कवच दिया गया है। इसके द्वारा न्यायालय को मूल अधिकारों का सजग प्रहरी बनाया गया है।
*भारतीय संविधान वर्तमान में भारतीय नागरिकों को 6 मौलिक अधिकार प्रदान है।
* अनुच्छेद 14 भारत में सभी व्यक्तियों को विधि के समक्ष समता और विधियों का समान संरक्षण प्रदान करता है।
*अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत तथा अनुच्छेद 18 उपाधियों के अंत से संबंधित है।
*इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अन्य पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27% का आरक्षण दिया जाए।
*अनुच्छेद 19-22 स्वतंत्रता के अधिकार से सम्बंधित है।
*अनुच्छेद 21 A को 86वे संविधान संशोधन द्वारा 2002 में जोड़ा गया जो शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार में परिवर्तित करने के लिए किया गया था।
*अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है तथा यह विधायिका तथा कार्यपालिका दोनों के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है।
*अनुच्छेद 22 गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के अधिकार और उनके स्वतंत्रता से संबंधित है।
* अनुच्छेद 23 व 24 के अंतर्गत शोषण के विरुद्ध मूल अधिकार को प्रदान किया गया है।
*अनुच्छेद 25 से 28 सभी व्यक्तियों के लिए चाहे वह विदेशी हो या भारतीय धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को प्रदान करता है।
*अनुच्छेद 29 के अंतर्गत अल्पसंख्यक वर्गों के हितो को संरक्षण प्रदान किया गया है।
*अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक वर्गों को शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार दिया गया है।
*अनुच्छेद 32 के तहत संवैधानिक उपचारों का अधिकार एक अत्यंत महत्वपूर्ण मूल अधिकार है जिसको भीमराव अंबेडकर ने भारतीय संविधान का हृदय और आत्मा कहा है। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति उच्चतम न्यायालय में जा सकता है और मौलिक अधिकारों को प्रवर्तन करा सकता है।
*अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय 5 तरीके की रिट जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है जो निम्न है बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश प्रतिषेध, उत्प्रेषण और अधिकार प्रेक्षा ।
[ राज्य के नीति निर्देशक तत्व ]
*भारतीय संविधान के भाग 4 अनुच्छेद 36 से 51 तक में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का वर्णन किया गया है, जिसे आयरलैंड के संविधान से लिया गया है।
*इस भाग को किसी भी न्यायालय के द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता है।
*अनुच्छेद 39क के अनुसार राज्य निरोग्य व्यक्तियों के तथा कमजोर व्यक्तियों के लिए राज्य निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करेगा।
*अनुच्छेद 40 के अनुसार राज्य ग्राम पंचायतो गठन के लिए कदम उठाएगा।
*मनरेगा योजना में काम करने का अधिकार अनुच्छेद 41 के अंतर्गत है।
*अनुच्छेद 44, राज्य समान नागरिक संहिता लागू कराने का प्रयास करेगा।
*अनुच्छेद 48 क के अनुसार राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य करेगा।
*अनुच्छेद 49, राज्य प्रत्येक ऐतिहासिक स्थानों को जिसे संसद में राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दिया हो, रक्षा करने का प्रयास करेगा।
*अनुच्छेद 51 इसके अनुसार राज्य अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अधोलिखित आदर्शों को प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
[ मूल कर्तव्य ]
*संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 51 क को जोड़कर नागरिकों के लिए, कुल 11 मौलिक कर्तव्यों का समावेश किया गया है।
*संविधान के आरंभ में नागरिकों के लिए मूल कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था। इसे स्वर्ण सिंह समिति की संस्तुति के आधार पर 42वे संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में जोड़ा गया था।
*संविधान में मूल कर्तव्यों को न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं किया गया है।
[ संघ की कार्यपालिका ]
*संविधान का भाग 5 संघ से संबंधित है। भाग 5 का अध्याय एक अनुच्छेद 52 से 78 संघीय कार्यपालिका के बारे में विवेचन करता है।
*कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका भारतीय लोकतंत्र के तीन स्तंभ है जिन पर भारतीय शासन प्रणाली टिकी हुई है।
*भारत का राष्ट्रपति भारत में संघीय कार्यपालिका का प्रधान संघ की सभी कार्य कालीय शक्तिया उसमें निहित है जिसका प्रयोग व संविधान के अनुसार स्वयं या अधीनस्थ पदाधिकारियों के माध्यम से करता है।
*राष्ट्रपति के लिए योग्यता अनुच्छेद 58 में वर्णित है जिससे वह भारत का नागरिक हो 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो तथा लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो और किसी लाभ के पद पर कार्यरत ना हो।
*राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते है।
* राष्ट्रपति के चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा किया जाता है जो कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति पर आधारित होता है।
*राष्ट्रपति का निर्वाचन भारतीय निर्वाचन आयोग के द्वारा किया जाता है। यदि निर्वाचन में कोई विवाद है तो उसके लिए उच्चतम न्यायालय ही इसका समाधान कर सकता है।
*अनुच्छेद 61 में उपबंध है कि राष्ट्रपति को संविधान के अतिक्रमण पर महाभियोग लगाकर हटाया जा सकता है। यह महाभियोग भी संसद द्वारा चलाई जाने वाली एक अर्थ न्यायिक कार्यवाही है।
*अनुच्छेद 60 के तहत राष्ट्रपति को उपन्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय की प्रथम द्वारा
भारत के राष्ट्रपति को शपत दिलाई जाए
* भारत के राष्ट्रपति को वर्तमान में ₹500000 प्रति माह वेतन तथा अन्य सुविधा प्राप्त है।
*अनुच्छेद 44, राज्य समान नागरिक संहिता लागू कराने का प्रयास करेगा।
*अनुच्छेद 48 क के अनुसार राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य करेगा।
*अनुच्छेद 19, राज्य प्रत्येक ऐतिहासिक स्थानों को जिसे संसद में राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दिया हो, रक्षा करने का प्रयास करेगा।
* अनुच्छेद 51 इसके अनुसार राज्य अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अधोलिखित आदशों को प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
[ मूल कर्तव्य ]
*संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 61 क को जोड़कर नागरिकों के लिए, कुल 11 मौलिक कर्तव्यों का समावेश किया गया है।
*संविधान के आरंभ में नागरिकों के लिए मूल कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था। इसे स्वर्ण सिंह समिति की संस्तुति के आधार पर 42वे संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में जोड़ा गया था।
*संविधान में मूल कर्तव्यों को न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं किया गया है।
[ संघ की कार्यपालिका ]
*संविधान का भाग 5 संघ से संबंधित है। भाग 5 का अध्याय एक अनुच्छेद 52 से 78 संघीय कार्यपालिका के बारे में विवेचन करता है।
*कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका भारतीय लोकतंत्र के तीन स्तंभ है जिन पर भारतीय शासन प्रणाली टिकी हुई है।
*भारत का राष्ट्रपति भारत में संघीय कार्यपालिका का प्रधान संघ की सभी कार्य कालीय शक्तिया उसमें निहित है जिसका प्रयोग व संविधान के अनुसार स्वयं या अधीनस्थ पदाधिकारियों के माध्यम से करता है।
*राष्ट्रपति के लिए योग्यता अनुच्छेद 58 में वर्णित है जिससे वह भारत का नागरिक हो 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो तथा लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो और किसी लाभ के पद पर कार्यरत ना हो।
* राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते है।
* राष्ट्रपति के चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा किया जाता है जो कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति पर आधारित होता है।
*राष्ट्रपति का निर्वाचन भारतीय निर्वाचन आयोग के द्वारा किया जाता है। यदि निर्वाचन में कोई विवाद है तो उसके लिए उच्चतम न्यायालय ही इसका समाधान कर सकता है।
*अनुच्छेद 61 में उपबंध है कि राष्ट्रपति को संविधान के अतिक्रमण पर महाभियोग लगाकर हटाया जा सकता है। यह महाभियोग भी संसद द्वारा चलाई जाने वाली एक अर्थ न्यायिक कार्यवाही है।
*अनुच्छेद 60 के तहत राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय की प्रथम न्यायाधीश द्वारा भारत के राष्ट्रपति को शपत दिलाई जाए
* भारत के राष्ट्रपति को वर्तमान में ₹500000 प्रति माह वेतन तथा अन्य सुविधा प्राप्त है।
* अनुच्छेद 78 के अनुसार प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य है कि वह राष्ट्रपति को मंत्री परिषद के सभी निर्णय और प्रशासन संबंधी उन सभी मामलों की सूचना दें जिसके बारे में राष्ट्रपति द्वारा ऐसी सूचना मांगी जाए।
* अनुच्छेद 123 के अनुसार राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति है।
*अनुच्छेद 111 के अनुसार राष्ट्रपति को पकिर वीटो का प्रयोग करने को शक्ति दी गई है।
*अनुच्छेद 108 के अनुसार राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित कर सकता है।
* अनुच्छेद 80 के अनुसार राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्यों का नॉमिनेशन कर सकता है।
*अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को क्षमादान करने की शक्ति प्रदान की गई है। अतः राष्ट्रपति अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति का दंड क्षमा कर सकता है।
* अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय से परामर्श का अधिकार दिया गया है। जब राष्ट्रपति को यह प्रतीत हो कि विद्या तथ्य का सार्वजनिक महत्व का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है जिस पर उच्चतम न्यायालय की राय जानना आवश्यक है तो वह ऐसा कर सकता है।
*वर्तमान में 25 जुलाई 2022 को भारत के 15 वे राष्ट्रपति के रूप में द्रोप्ति मुर्मू ने शपथ ग्रहण किया ।
* वीवी गिरी भारत के प्रथम निर्दलीय प्रत्याशी थे जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में जीत दर्ज किया था।
* नीलम संजीवा रेड्डी भारत के प्रथम निर्विरोध निर्वाचित राष्ट्रपति है जो कि राष्ट्रपति बनने से पहले लोकसभा के अध्यक्ष भी थे।
* ज्ञानी जैल सिंह भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे जिन्होंने राजीव गांधी से मतभेद होने के कारण भारतीय डाक संशोधन विधेयक 1986 में 'पॉकेट वीटो का प्रयोग किया था।
[ भारत का उप राष्ट्रपति ]
* संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार भारत का उपराष्ट्रपति होगा। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है तथा अपनी अवधि के दौरान अन्य कोई लाभ का पद ग्रहण नहीं करता है।
*भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन तथा मोहम्मद हामिद अंसारी ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जिन्हें की दो कार्यकाल के लिए चुना गया है।
* भारत का उपराष्ट्रपति चुने जाने के लिए भारत का नागरिक 35 वर्ष की आयु पूरी तथा राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
* उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित और नामित सदस्य भाग ले सकते हैं। उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य भाग नहीं लेते हैं।
*संघीय मंत्रिपरिषद केंद्रीय मंत्री परिषद भी कहा जाता है। अनुच्छेद 53 में कहा गया है कि संघ की कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी।
* अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा।
*प्रधानमंत्री की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा। मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की परामर्श पर ही किया जाता है और अपने पद की शपथ लेने के पश्चात प्रधानमंत्री अन्य मंत्रियों के नामों और उनके विभागों की सूची राष्ट्रपति को देता है।
*मंत्री परिषद का सदस्य बनने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति संसद के किसी भी सदन का सदस्य हो यदि कोई मंत्री बनते समय संसद का सदस्य नहीं है तो इसी 6 महीने के अंदर संसद का सदस्य बनना अनिवार्य है।
*गुलजारी लाल नंदा दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री चुने गए थे। लाल बहादुर शास्त्री जिनकी मृत्यु 11 जनवरी 1966 को भारत से बाहर ताशकंद में हुई थी।
*प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने वाले प्रथम व्यक्ति मोरारजी देसाई थे और वह प्रथम गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी थे।
*राजीव गांधी सबसे कम उम्र में प्रधानमंत्री बने तथा मोरारजी देसाई सबसे अधिक उम्र के प्रधानमंत्री बने थे।
* 91 संविधान संशोधन 2003 के अनुसार अनुच्छेद 75 में उपकरण जोड़कर यह प्रावधान किया गया है कि मंत्रिपरिषद प्रधानमंत्री सहित सदस्यों की कुल संख्या लोकसभा के सदस्यों की संख्या का 15% से नहीं ज्यादा नहीं होगा।
*मंत्रियों के प्रकार इस तरह से हैं। मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री राज्य मंत्री तथा उप मंत्री ।
*अनुच्छेद 76 के तहत भारत के महान्यायवादी के पद का सृजन किया गया है। महान्यायवादी भारत सरकार का प्रथम विधिक अधिकारी होता है भारत सरकार को विधिक मामलों पर सलाह देता है, उसकी नियुक्ति संघीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है
*और वह राष्ट्रपति के आदेशानुसार काम करता है। राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को महान्यायवादी नियुक्त करता है। उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो।
* अनुच्छेद 88 के तहत महान्यायवादी कई अधिकार प्रदान किया गया है कि वह संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है तथा विचार व्यक्त कर सकता है, किंतु मतदान नहीं कर सकता है।
*महान्यायवादी को निजी प्रैक्टिस से रोका नहीं गया है। किंतु अब भारत सरकार के विरुद्ध ना तो सलाह दे सकता है और ना ही किसी मुकदमे की पैरवी कर सकता है। वर्तमान में भारत सरकार के महान्यायवादी के के. वेणुगोपाल है।
* अनुच्छेद 79 में कहा गया है कि संघ के लिए एक सदन होगा जो राष्ट्रपति और दो सदनो से मिलकर बना होगा, जिनके नाम, राज्यसभा और लोकसभा होंगे।
* लोकसभा संसद का प्रथम या निम्न सदन होता है, इसे लोकप्रिय सदन भी कहते हैं क्योंकि इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। लोकसभा के गठन के बारे में प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 81 में किया गया है। इसके तहत मूल संविधान में लोकसभा के सदस्यों की संख्या 552 से अधिक नहीं होगी।
* 104वां संविधान संशोधन के अंतर्गत 2 सदस्य जिन्हें आंग्ल भारतीय वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 331 के तहत मनोनीत किया जाता है को समाप्त कर दिया गया है।
* लोकसभा में अनुसूचित जाति और जनजातियों को भी अनुच्छेद 330 के तहत आरक्षण प्राप्त है।
*84वे संविधान संशोधन द्वारा लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या और लोकसभा में राज्यवार प्रतिनिधित्व 2026 तक यथावत रखने का निर्णय लिया गया है।
*संविधान के 61 वे संविधान संशोधन 1989 के द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है।
*अनुच्छेद 84 में दी गई है। इसमें के अनुसार कोई व्यक्ति लोकसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य होगा यदि वह भारत का नागरिक है। उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष है, तथा उसे अन्य ऐसी योग्यतों हैं जो संसद द्वारा निर्धारित की गई है।
*संविधान के अनुच्छेद 83 के अनुसार लोकसभा का कार्यकाल प्रथम बैठक की तारीख से 5 वर्ष का होता है। किंतु राष्ट्रीय आपात की स्थिति में लोकसभा का कार्यकाल 1 वर्ष के लिए बढ़ा दिया जाता है।
* राष्ट्रपति वर्ष में कम से कम 2 बार लोकसभा का अधिवेशन करता है। लोकसभा के एक सत्र की अंतिम बैठक तथा आगामी सत्र की प्रथम बैठक की तारीख के बीच 6 माह से अधिक का अंतर नहीं किया जाता है।
*अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति सदन की कुल संख्या का एक बटे 10 भाग होना आवश्यक है।
* लोकसभा का अध्यक्ष संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है। लोकसभा का अध्यक्ष राज्यसभा और लोकसभा के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करता है।
* उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक 80 सीट लोकसभा में प्राप्त है, 48 सीटों के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर जबकि 42 सीटों के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर हैं। 40 सीटों के साथ बिहार का चौथा स्थान है। जबकि 39 सीटों के साथ तमिलनाडु का पांचवा स्थान दिया गया है।
* राज्यसभा भारतीय संसद का द्वितीय सदन है। इसमें राज्यों के सदस्य होते हैं। यह सदस्य संघ और राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
*राज्य सभा की अधिकतम संख्या 250 है जिसमें से 12 सदस्यों को भारत का राष्ट्रपति नामित करता है। राज्यसभा सदस्य बनने के लिए योग्यतो निम्नतम उम्र 30 वर्ष निर्धारित की गई है।
*राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष के लिए निर्धारित किया गया है।
*यदि कोई संसद सदस्य सदन की एक बार की बैठकों में 60 दिन या उससे लगातार सदन की अनुमति के बिना अनुपस्थित रहता है। तो उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाती है।
* दल बदल कानून के अधीन लोकसभा के मामले में लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के मामले में उपराष्ट्रपति द्वारा सदस्यों को अयोग्य ठहराया जाता है तो उसकी सदस्यता स्वत समाप्त हो जाती है।
* संविधान का अनुच्छेद 105 संसद तथा उसके सदस्यों के विशेष अधिकार के बारे में है। संसद के सदस्यों को संसद के अधिवेशन के दौरान या अधिवेशन के 40 दिन पूर्व या पश्चात किसी सिविल मामले में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
*संसद सदस्यों को संबंधित सदन या समितियों में बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता है। इसके लिए उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। किंतु उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विरुद्ध कोई टिप्पणी नहीं की जा सकेगी।
*संसद सदस्य संबंधित सदन के अध्यक्ष की अनुमति के बिना संसद के परिसर में किसी को भी किसी के द्वारा गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
*अनुच्छेद 85 के अंतर्गत राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने, सत्रावसान करने तथा लोकसभा को विघटित करने का अधिकार प्राप्त है।
*प्रश्नकाल सामान्यतया संसद के दोनों सदनों में बैठकों की कार्यवाही का प्रथम घंटा दोपहर 11:00 बजे से 12:00 बजे तक पश्नकाल होता है। यह प्रश्नकाल सर्वप्रथम इंग्लैंड में 1721 में शुरू हुआ था।
*शून्यकाल 12:00 से 1:00 का समय होता है। इसका जन्म भारत में हुआ था।
[ उच्चतम तथा उच्च न्यायलय ]
*संविधान का भाग 5 अनुच्छेद 124 से 147 सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित है। सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 28 जनवरी 1950 को की गई थी।
*वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 33 न्यायधीश तथा एक मुख्य न्यायाधीश और इनकी संख्या को बढ़ाना संसद की अधिकारिता में आता है।
*सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा इन्हें संसद द्वारा स्थापित विधि के द्वारा पदमुक्त या हटाया जाता है।
*उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीश व अन्य न्यायधीश 65 वर्ष की आयु तक अपना पद धारण करते हैं जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपना पद धारण करते हैं।
* प्रथम न्यायाधीश वी नारायणस्वामी जिनको संसद में हटाने के लिए प्रस्ताव लाया गया था।
* भारत की 11वीं मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एम हिदायतुल्ला एकमात्र ऐसे न्यायाधीश हैं जिन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद भी धारण किया था।
*भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर सबसे लंबी अवधि तक कार्य करने वाले 7 वर्ष 5 महीने न्यायमूर्ति वी वी चंद्रचूड है। तथा सबसे कम समय तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर काम करने वाले मात्र 18 दिन न्यायमूर्ति के० एन० सिंह है।
* न्यायमूर्ति फातिमा बीबी उच्चतम न्यायालय की प्रथम महिला न्यायाधीश थी।
*37वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन भारत के प्रथम दलित न्यायाधीश थे।
*उच्चतम न्यायालय का अवकाश प्राप्त न्यायाधीश भारत की किसी भी कोर्ट में अपनी वकालत नहीं कर सकता।
[ उच्च न्यायालय ]
* संविधान के भाग 6 के अध्याय 5 अनुच्छेद 214 से 232 में राज्यों के उच्च न्यायालयों के बारे में प्रावधान किया गया है।
*अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को रेट जारी करने की शक्ति है तथा 227 के अंतर्गत उसे अधीनस्थ न्यायालयों के अधीक्षण की शक्ति प्रदान की गई है।
*वर्तमान में कुल 25 उच्च न्यायालय है और दिल्ली और जम्मू-कश्मीर ऐसे दो संघ शासित प्रदेश हैं जिनका अपना उच्च न्यायालय है।
* जब कोई उच्च न्यायालय दो या अधिक राज्यों के लिए गठित होता है तब ऐसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को शपथ उस राज्य का राज्यपाल जहाँ उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ स्थित है।
*भारत में सर्वप्रथम उच्च न्यायालय, मुंबई, कोलकाता तथा चेन्नई में हुए थे।
*एक उच्च न्यायालय एक या एक से अधिक राज्यों के लिए बनाए जा सकते है।
*संघ शासित राज्य पांडिचेरी का चेन्नई उच्च न्यायालय पर लक्ष्य द्वीप पर एर्नाकुलम उच्च न्यायालय का अंडमान निकोबार पर कोलकाता, उच्च न्यायालय का दादरा नगर हवेली दमन और दीव पर मुंबई उच्च न्यायालय का तथा चंडीगढ़ पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार है।
*गोवा मुंबई उच्च न्यायालय की अधिकारिता में आता है।
*गुवाहाटी उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार भारत में सर्वाधिक 4 राज्यों पर है।
[ राज्य की कार्यपालिका ]
*राज्यों की शासन व्यवस्था संबंधी प्रावधान भाग 6 के अनुच्छेद 152 से 237 में दिया गया है जो सभी राज्यों के लिए है।
* इस भाग को राज्यों का संविधान भी कहा जाता है।
[ राज्यपाल ]
*संघ के समान राज्यों में भी संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। अतः राज्य कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता है। राज्य के सभी कार्य उसके नाम से संचालित किए जाते हैं। राज्यपाल की सहायता और सलाह के लिए एक मंत्री परिषद होती है। राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करता है।
* मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होती है।
* राज्यपाल के बारे में प्रावधान अनुच्छेद 153 से 162 में किया गया है।
* अनुच्छेद 153 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा परंतु एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का भी राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।
*संविधान के अनुच्छेद 156 के तहत राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति की जाती है और वह राष्ट्रपति के आदेशानुशार अपने पद पर काम करता है।
*राज्यपाल पद पर नियुक्ति के लिए दो योग्यतों होनी चाहिए। वो भारत का नागरिक हो और उसकी उम्र 35 वर्ष से अधिक हो।
* अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा मुख्यमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
* अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने पर राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करता है और राष्ट्रपति शासन लागू हो जाने के बाद वह केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्य का शासन चलाता है।
*अनुच्छेद 174 के अनुसार राज्यपाल राज्य विधानमंडल के एक या दोनों सदनों का समय समय पर अधिवेशन सत्र बुला सकता है और इसका सत्रावसान कर सकता है।
*अनुच्छेद 213 के अंतर्गत राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने की शक्ति दी गई है।
* अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को क्षमादान का अधिकार प्राप्त है।
[ राज्य मंत्रिपरिषद ]
*संविधान के अनुच्छेद राज्य मंत्रिपरिषद् संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत राज्य मंत्री परिषद् का उपबंध किया गया है।
* मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्य मंत्री परिषद के गठन का प्रथम चरण है। अनुच्छेद 164 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह से करेगा।
*राज्य मंत्री परिषद में मंत्रियों की अधिकतम संख्या मुख्यमंत्री सहित विधानसभा की कुल संख्या का 15% नियत किया गया है। विधानसभा की सदस्य की संख्या वाले छोटे राज्यों के लिए कम से कम 12 मंत्रियों का प्रावधान इसे संवैधानिक संशोधन में किया गया है।
*मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होती है। विधानसभा किसी मंत्री के विरुद्ध प्रस्ताव पारित कर दे या किसी मंत्री द्वारा रखे गए विधेयक को अस्वीकार कर दे तो समस्त मंत्री परिषद का त्यागपत्र माना जाता है।
* मुख्यमंत्री राज्य कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान होता है। राज्य के प्रशासनिक ढांचे में उसे वही स्थिति प्राप्त है जो केंद्र में प्रधानमंत्री को प्राप्त है।
* मुख्यमंत्री विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। वही सदन में सरकार की महत्वपूर्ण नीतियों की घोषणा करता है।
* राज्यपाल अनुच्छेद 165 के तहत महाधिवक्ता नामक पदाधिकारी की नियुक्ति करता है महाधिवक्ता राज्य का सर्वोच्च विधिक अधिकारी होता है जिसकी योग्यता उच्च न्यायालय का न्यायधीश बनने की बराबर होती है।
[ राज्य विधानमंडल ]
* संविधान का भाग से अनुच्छेद 168 से 212 राज्यों के विधान मंडल के बाद है। अनुच्छेद 168 कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए विधानमंडल होगा जो राज्यपाल तथा कुछ राज्यों में दो व अन्य राज्यों में 1 सदन से मिलकर बनेगा।
* विधानमंडल के दो सदन होंगे वहां एक नाम विधान परिषद तथा दूसरे का नाम विधान सभा होगा।
* विधानपरिषद की स्थापना या उन्मूलन का अधिकार अनुच्छेद 169 के अंतर्गत संसद को प्रदान किया गया है।
* केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली तथा पांडिचेरी में विधान सभा स्थापित है यह मंडल लोकप्रिय सदन है। इसमें सदस्य प्रत्यक्ष के लिए जाते हैं।
* अनुच्छेद 170 में कहा गया है कि राज्य की विधानसभा सीट प्रदेश निर्वाचन क्षेत्रों के द्वारा चुने गए अधिकतम 500 और कम से कम 60 सदस्यों से मिलकर बनेगी।
* परंतु अरुणाचल गोवा तथा पुडुचेरी इसके अपवाद हैं, इनकी विधानसभाओं से कंचा ऊंचा 32, 40, 40 तथा वर्तमान में सबसे छोटी विधानसभा पुडुचेरी की 30 है राज्यों में सबसे बड़ी विधान सभा उत्तर प्रदेश की है, जहां पर 403 सीटें है।
*विधानसभा सदस्यों की योग्यता के लिए अनुच्छेद 173 के अनुसार व्यक्ति को भारत का नागरिक, उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष की होनी चाहिए।
*अनुच्छेद 172 के अनुसार विधानसभा का कार्यकाल उसके प्रथम बैठक की तिथि से 5 वर्ष का होता है। इससे पूर्व भी मुख्यमंत्री के परामर्श पर वह राज्यपाल द्वारा विघटित की जा सकती है।
*विधान सभा के पदाधिकारियों में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष होते हैं। इन दोनों का चुनाव विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
*विधानसभा का अध्यक्ष विधानसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है और वहां सदन की कार्यवाही का संचालन शांति व्यवस्था बनाए रखना धन विधेयक के बारे में अपनी राय देना तथा बराबरी की दशा में निर्णायक मत देने का अधिकार है।
[ विधान परिषद ]
*राज्य विधान मंडल का दूसरा और उच्च सदन विधान परिषद है या विधानसभा से कम महत्वपूर्ण है यह राज्य सभा के समान यह ही एक स्थाई सदन है।
*अनुच्छेद 169 के तहत संसद को किसी भी राज्य में विधान परिषद को स्थापित करने तथा उसे समाप्त करने का अधिकार है।
* अनुच्छेद 171 के अनुसार किसी भी राज्य में विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य के विधानसभा के एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है।
* अनुच्छेद 173 के अनुसार विधान परिषद के सदस्यों का भारत का नागरिक होना तथा 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका होना अनिवार्य है।
* वर्तमान में भारत में 6 राज्यों में जिनमें आंध्र प्रदेश बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में विधान परिषद का गठन किया गया है।
*हाल ही में असम, उड़ीसा में भी अपने यहाँ विधान परिषद के गठन की स्वीकृति प्रदान करी है। विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
*2020 में आंध्र प्रदेश राज्य ने अपनी विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पास किया था, जिसे अभी संसद की मंजूरी नहीं मिली है। 2019 में जम्मू और कश्मीर में भी इसे समाप्त किया जा चुका है।
[ संघ राज्य क्षेत्र और उसका प्रशासन ]
* संघ राज्य क्षेत्रों के बारे में उल्लेख संविधान के भाग 8 अनुच्छेद 239 से 242 के अंतर्गत किया गया है। इसमें अनुच्छेद 239 संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में है।
* संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। इसके लिए राष्ट्रपति अपने अभिकर्ता के रूप में एक प्रशासक की नियुक्ति करता है जो कि निर्दिष्ट पद नाम से जाना जाता है।
* दिल्ली पांडिचेरी और अंडमान निकोबार दीप समूह के प्रशासक को उपराज्यपाल चंडीगढ़ के प्रशासक को मुख्य आयुक्त के नाम से जाना जाता है।
*14 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 239A जोड़कर यह प्रावधान किया गया कि संसद कुछ राज्यों के लिए विधानमंडल या मंत्री परिषद या दोनों का सृजन कर सकती है।
[ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का प्रशासन ]
*अनुच्छेद 239 A A और अनुच्छेद 239 का B के अंतर्गत आता है। 69वां संविधान संशोधन अधिनियम 1991 पारित कर संविधान में अनुच्छेद 299 AA और अनुच्छेद 239 AB को जोड़ा गया था तथा इसके तहत संघ राज्य क्षेत्र दिल्ली के लिए विशेष प्रावधान किया गया। संघ राज्य क्षेत्र दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नाम से जाना जाएगा। उपराज्यपाल यहां का प्रशासक होगा जो राज्यपाल के प्रतिनिधि के रूप में कार्यकाल करेगा।
*दिल्ली को पूर्ण राज्य का नहीं दिया गया है। यह भी संघ राज्य क्षेत्र है ।लेकिन मंत्री परिषद और विधानसभा की व्यवस्था की गई है।
*दिल्ली विधानसभा में सदस्यों की संख्या कुल 70 है। यहां पर अधिकतम में मंडल के सदस्यों की संख्या 7 से अधिक नहीं हो सकती है।
[ नीति आयोग ]
* अध्यक्ष प्रधानमंत्री, यह एक सलाहकार थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है। यह सहकारी संघवाद की भावना पर कार्य करता है क्योंकि यह राज्यों की समान भागीदारी सुनिश्चित करता है।
* समकालीन आर्थिक परिवेश से समन्वय स्थापित करने तथा बाजार केन्द्रित अर्थव्यवस्था के प्रति संवेदनशील सम्बन्ध की आवश्यकता को देखते हुए भारत सरकार द्वारा 'नीति आयोग' के गठन की घोषणा 1 जनवरी, 2015 को की गई। नीति आयोग का पूरा नाम 'नेशनल इन्स्टीट्यूट फॉर ट्रासफार्मिंग इण्डिया' है।
● अध्यक्ष प्रधानमंत्री
● उपाध्यक्ष- राजीव कुमार
● पूर्णकालिक सदस्य- वी० के० सारस्वत
• प्रो. रमेश चंद
• डॉ. वी के पॉल
[ पदेन सदस्य ]
* राज नाथ सिंह, रक्षा मंत्री
*अमित शाह, गृह मंत्री
* निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री और कॉपोरेट मामलों की मंत्री
* नरेन्द्र सिंह तोमर, कृषि मंत्री और किसान कल्याण, ग्रामीण विकास मंत्री, पंचायती राज मंत्री
[ विशेष आमंत्रित सदस्य ]
* नितिन गडकरी, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री
* पीयूष गोयल, पूर्व रेलमंत्री
* राव इंद्रजीत सिंह, सांख्यिकी मंत्री, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
[ संघ और राज्यों के मध्य संबंध ]
● भारत की संघीय व्यवस्था कनाडा से प्रेरित है, कनाडा के समान ही भारत में भी संघ तथा राज्यों की शक्तियों का संविधान में स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
● केंद्र राज्य संबंधों को अधोलिखित तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है, विधायी संबंध प्रशासनिक संबंध और वित्तीय संबंध।
[ विधायी संबंध ]
● संघ और राज्यों के मध्य विधायी संबंधी प्रावधान के भाग 11 अनुच्छेद 245 से दिया गया है।
● अनुच्छेद 245 के अनुसार संघ और राज्यों के मध्य विधायी शक्तियों का विभाजन राज्य क्षेत्र के आधार पर करता है। संसद संपूर्ण भारतीय राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकती है तथा किसी राज्य का विधान मंडल अपने संपूर्ण राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकती है।
● भारतीय संविधान के सातवीं अनुसूची विधायी विषयों को 3 अनुसूचियों में दिया गया है, जिसमें संघ सूची, राज्य, सूची और समवर्ती सूची में विभाजित किया गया है।
● संघ सूची में कुल 100 विषय है, इसमें राष्ट्रीय महत्व के विषयों को रखा गया है, इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद को दिया गया है।
● राज्य सूची में कुल स्थानीय और प्रादेशिक महत्व के विषयों को स्थान दिया गया है इस सूची में कुल 61 विषय दिये गए है, इन विषयों पर राज्य का विधान मण्डल को कानून बनाने का एकाधिकार है।
● समवर्ती सूची इसके अंतर्गत राष्ट्रीय और स्थानीय दोनो प्रकार के विषयों को रखा गया है इसमें कुल 52 विषय दिये गये। इन विषयों पर संघ और राज्य दोनो विधि बना सकते हैं।
● अनुच्छेद 248 अवशिष्ट विधायी शक्तियों के बारे में है, जिनका उल्लेख 7वी अनुसूची में नही किया गया है इन पर विधि बनाने की शक्ति केवल संसद को दिया गया है।
[ प्रशासनिक सम्बंध ]
● अनुच्छेद 256 से 263 तक में केंद्र और राज्य के प्रशासनिक सम्बंध का वर्णन किया गया है। संविधान की इस सिद्धांत की मान्यता दी गई है कि कार्यपालिका विधान पालिका की सहविस्तारी होगी।
● अनुच्छेद 256 के तहत संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और उस राज्य में विद्यमान कानूनों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकारों को निर्देश दे सकती है।
● अनुच्छेद 353 के अनुसार जब आपात काल की उद्घोषणा परिवर्तन में हो तब केंद्र राज्य सरकारों को निर्देश दे सकता है कि वह शक्ति का प्रयोग किस रीती से करेगा।
●अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो तो राष्ट्रपति उद्घोषणा के द्वारा राज्य की शक्ति को केंद्रीय सरकार अपने हाथ में ले सकता है।
● अनुच्छेद 262 के तहत संसद विभिन्न राज्यों के मध्य नदियों, जलाशयों संबंधी विवादों के न्याय निर्णय के लिए प्रावधान कर सकता है।
● अनुच्छेद 263 के तहत संघ अंतरराज्य परिषद के गठन करने का प्रावधान है। इसकी बैठक साल में तीन बार आयोजित की जाती है।
[ वित्तीय संबंध ]
* समिति भाग 12 के अनुच्छेद 268 से 293 में संघ तथा राज्यों के बीच वित्तीय संबंध के प्रावधान दिये गये है।
*अनुच्छेद 265 कर लगाने का प्रतिषेध करता है, शुल्क लगाने का नहीं। इसके अनुसार कोई कर विधि के प्राधिकार से ही आरोपित या संग्रहित किया जाएगा।
* सूची के वर्णित विषयों पर कर लगाने का अधिकार केंद्र को है, इसे संघ यह कर कहा जाएगा इसमें कुल 14 विषय दिए गए है।
*राज्य सूची में वर्णित विधियों पर कर लगाने का अधिकार राज्यों का है। इसमें कुल 19 विषय शामिल है।
*भारत का राष्ट्रपति अनुच्छेद 280 के तहत हर पांचवी वर्ष वित्त आयोग का गठन करता है। जो केंद्र और राज्यों के मध्य केंद्रीय करों के बंटवारे पर अपनी अनुशंसा प्रदान करता है, इस तरह से राज्य अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए केंद्र पर निर्भर रहते हैं।
[ संघ और राज्य के अधीन सेवों ]
* कंपनी के शासनकाल में भारत में लोक सेवकों का चयन हेली बेरी कॉलेज से एक चयन समिति तथा बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के द्वारा किया जाता था।
*1854 में मैकाले की अध्यक्षता में गठित कमेटी ऑन इंडियन सिविल सर्विसेज ने लोक सेवकों की नियुक्ति प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर करने का सुझाव दिया।
* इसकी अनुसरण में भारतीय सिविल सेवा की पहली प्रतियोगिता 16 जुलाई 1855 को लंदन में आयोजित की गई थी।
*मैकाले ने प्रतियोगिता के लिए आयु सीमा 18 से 23 वर्ष नियत किया था।
* 1886 में वायसराय लॉर्ड डफरिन ने एक आयोग सर चार्ल्स की अध्यक्षता में नियुक्ति की गई थी। आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा एक साथ इंग्लैंड और भारत में लेने का विरोध किया लेकिन परीक्षा में बैठने की अधिकतम आयु 23 वर्ष करने का सुझाव दे दिया था।
*पहली बार सिविल सेवा परीक्षा लंदन और इलाहाबाद में 1922 में आयोजित हुई। ज्ञात है कि 1855 से 1921 तक सिविल सेवा परीक्षा लंदन में ही आयोजित होती थी।
*ली आयोग के सुझाव पर पहली बार आयोग लोक सेवा आयोग की स्थापना केंद्रीय लोकसेवा आयोग के रूप में 1926 में की गई। इसमें एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य थे। वर्तमान में इसमें एक अध्यक्ष तथा 10 सदस्य होते हैं।
* भारत में लोक सेवकों के तीन प्रकार हैं। अखिल भारतीय सेव केंद्रीय या संघीय सेवा और राज्यों की लोक सेवाएँ।
* अनुच्छेद 312 के तहत अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान किया गया है। अखिल भारतीय सेवाओं का नियमन अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 के अनुसार होता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के नाम से दो अखिल भारतीय सेवाओं का उल्लेख किया गया था। लेकिन 1966 में भारतीय वन सेवा को भी तीसरी अखिल भारतीय सेवा के रूप में मान्यता दे दी गई। अर्थात वर्तमान तीन अखिल भारतीय सेवा है।
* केंद्रीय सेवाओं इस सेवा केंद्र की अधीन राष्ट्रीय स्तर की सेवा हैं। यह अपनी सेवा सिर्फ केंद्र सरकार को ही देते हैं जैसे भारतीय आबकारी सेवा भारतीय रेलवे अभियंता सेवा, भारतीय प्रतिरक्षा कौन सेवा भारतीय डाक सेवा भारतीय रेलवे ट्रैफिक सेवा।
* राज्यों की सेवाओं में राज्य प्रशासनिक सेवा राज्य पुलिस सेवा, राज्य ऑडिटेड अकाउंट्स सेवा राज्य शिक्षा सेवा इन सेवाओं में चार प्रकार की कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं। जिन्हें प्रथम द्वितीय तृतीय तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी कहा जाता है।
*अनुच्छेद 311 लोक सेवकों को अपने पद के विरुद्ध संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया है। इसके तहत राज्य के सिविल सेवा के सदस्यों अखिल भारतीय सेवा के सदस्यों तथा राज्य के अधीन कोई सिविल पद धारण करने वाले लोक सेवकों को अधोलिखित दो संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। प्रथम है लोकसेवक नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा पद से हटाया पदच्युत नहीं किया जाएगा तथा किसी भी लोक सेवक के विरुद्ध हटाए जाने का प्रावधान किए जाने का आदेश कब तक नहीं दिया जाएगा, जब तक की जांच न कर ली जाए।
* लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है तथा राज्य सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा किया जाता कि अपने पदों पर 65 वर्ष सकते हैं और अवकाश प्राप्त करने के पश्चात किसी भी लाभ के पद पर कार्य नहीं सकते हैं।
[ अधिकरण ]
● भारतीय संविधान के तहत 42 वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भाग 14 का तथा अनुच्छेद 323 क और 323 ख हो जोड़कर अधिकरण (ट्रिब्यूनल) के बारे में प्रावधान किया गया है।
●अनुच्छेद 323 क प्रशासनिक अधिकरण तथा अनुच्छेद 323 ख अन्य विषयों के अधिकरण के लिए गठित किए जाने के बारे में प्रावधान है। वर्तमान में भारत में अट्ठारह अधिकरण बनाये गये हैं। प्रशासनिक अधिकरण, जम्मू और कश्मीर के लिए बनाया गया है। इसका मुख्यालय वर्तमान में नई दिल्ली में है और इसके अध्यक्ष जस्टिस एल नराशिम्हा रेडी है।
[ निर्वाचन आयोग ]
● निर्वाचन संबंधी प्रावधान संविधान के भाग 15 अनुच्छेद 324 से 329 तक में दिया गया है।
●भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग के बारे में उपबंध किया गया है। भारत का निर्वाचन आयोग एक स्थाई संवैधानिक निकाय है। इसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई। थी।
● इस दिन को 2011 से भारत सरकार राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाती है। 2023 में 13वाँ राष्ट्रीय मतदाता दिन के रूप में मनाया गया है।
● इसका मुख्य कर्तव्य स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन सुनिश्चित करना है। यह संसद और राज्य विधान मंडलों के प्रत्येक सदन के लिए तथा राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिए होने वाले सभी निर्वाचन का अधीक्षण निर्देशन और नियंत्रण करती है।
●16 अक्टूबर 1989 से एक सदस्य निर्वाचन आयोग को 3 सदस्य निर्वाचन आयोग कर दिया गया है। जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो निर्वाचन आयुक्त बनाए गए है।
●वर्तमान में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार तथा निर्वाचन आयुक्तों में अरुण गोयल और अनूप चंद्र पांडे हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त अपने पद पर 65 वर्ष की आयु 6 वर्ष जो भी पहले पूर्ण हो जाए तक बना रहता है।
● भारत में पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव का संचालन राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है।
●श्रीमती रमा देवी एकमात्र महिला मुख्य निर्वाचन आयुक्त रही है, भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त टी०एन० सेशन जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था।
●भारत में मुख्य रूप से वर्तमान में चुनाव आयोग द्वारा 8 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है तथा 48 राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दल से और 600 छोटे राजनीतिक दल हैं जिनको चुनाव आयोग ने मान्यता दी है।
● अनुच्छेद 326 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुका है तथा संविधान या विधान मंडल द्वारा निर्मित किसी विधि के अधीन अनिवासी चित्र विकृत अपराध अथवा भ्रष्ट आचरण के आधार पर मताधिकार के लिए अयोग्य घोषित ना किया गया हो। निर्वाचक नामावली में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का अधिकार है।
●वी एन तारकुंडे समिति दिनेश गोस्वामी समिति के संथानम समिति इंद्रजीत गुप्ता समिति इन समितियों का संबंध चुनाव सुधार से रहा है।
●मतदान में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ईवीएम का प्रयोग करने, लोकसभा में सरकारी विधियां मतदाताओं को फोटो युक्त पहचान पत्र उपलब्ध कराने तथा प्रतिनिधियों के लिए रिक्त स्थानों को 6 माह के भीतर भरे जाने आज की सिफारिश दिनेश गोस्वामी ने किया था।
●चुनाव में भाग लेने वालों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित करने की सिफारिश के संथानम समिति ने किया था।
● लोक प्रतिनिधित्व संशोधन अधिनियम 1989 द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के उपयोग को मान्यता किया गया था।
● किसी भी निर्वाचन में प्रत्याशी अपने ज़मानत राशि खो देता है, इसका अर्थ है कि किसी चुनाव में कुल प्राप्त मतों का यदि उसे 1/6 से कम मत मिले होते हैं तो उसकी जमानत की राशि चुनाव आयोग ज़ब्त कर लेता है।
●इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रथम 1979 में किया गया तथा वर्ष 1982 में केरल क्षेत्र के कुछ पोलिंग पर ई०वी०एम० का सबसे पहले इस्तेमाल किया गया था।
●जून 1999 में गोवा विधान सभा चुनाव में पहली बार EVM का प्रयोग निर्वाचित विधानसभा का संपूर्ण चुनाव कराया गया था और, 2014 लोकसभा चुनाव में ऐसा प्रथम चुनाव है जिसमें लगभग पूरा चुनाव EVM से ही कराया गया था।
●भारत में लोकसभा के अबतक कुल 17 बार आम चुनाव हो चुके है।
[ कुछ वर्गों के संबंध में विशेष प्रावधान ]
*अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति तथा अनुच्छेद 342 के तहत राज्यपाल को अधिकार प्राप्त है कि वह किसी राज्य संघ इसी राज्य संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में किसी जाति मूल वंश जनजातिया उनकी भाग को अनुसूचित जाति के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकता है।
*अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए अनुच्छेद 330 तथा 332 के तहत लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लोकसभा की 548 सीटों में से अनुसूचित जाति के लिए 79 तथा अनुसूचित जनजाति के लिए 40 सीटों का आरक्षण किया गया है।
[ राजभाषा ]
*भारत में ही स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्रभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ। 14 सितंबर 1949 को हिंदी को संवैधानिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया। इसीलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
*संविधान का भाग 17 अनुच्छेद 343 से 361 राजभाषा के बारे में है। अनुच्छेद 343 के तहत संघ की राजभाषा संबंधी प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी लिपि होगी।
*अनुच्छेद 344 के तहत राष्ट्रपति को राजभाषा के संबंध में सलाह देने के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान है। राष्ट्रपति ने इस अधिकार का प्रयोग करते हुए जून 1955 में बीजी खेर की अध्यक्षता मे प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया था।
*अनुच्छेद 339 के तहत उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय की कार्यवाही तथा संसद राज्य विधान मंडलों के शब्दों के विधेयेको, अधिनियम और अन्य न्यायाधीशों आदि के प्रयोग की जाने वाली भाषा अंग्रेजी भाषा होगी। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत मातृभाषा में हो बच्चों को कक्षा आठवीं तक मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाएगी।
[ आपात उपबंध ]
* संविधान का भाग 18, अनुच्छेद 352-360 तक आपात उपबंधो के बारे में है। यह भाग जर्मनी के संविधान से प्रेरित है। भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपात की परिकल्पना की गई है।
1. राष्ट्रीय आपात अनुच्छेद 352 के अंतर्गत
2. राष्ट्रपति शासन 356 अनुच्छेद,
3. वित्तीय आपात अनुच्छेद 360
*राष्ट्रीय आपात अनुच्छेद 352 की उद्घोषणा तथा उससे संबंधित अन्य विषयों के बारे में अनुच्छेद 353 तथा 354 के तहत राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा के प्रभावो को दिया गया है।
*आपात की उद्घोषणा का मूलअधिकारों पर पड़ने वाला प्रभाव अनुच्छेद 358 तथा अनुच्छेद 359 में दिया गया है।
* राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। जब कभी राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि कोई ऐसा गंभीर आपात विद्यमान है जिसमें युद्ध या बाहर आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसकी किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग के संबंध में राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा कर सकता है।
* ज्ञात कि मूल संविधान में सशस्त्र विद्रोह शब्द के स्थान पर आंतरिक अशांति था, जिसे 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा स्थापित कर दिया गया है।
* 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात को तभी लागू करता है जब मंत्रिमंडल उसे इस आशय की लिखित सूचना उसे देती है।
*उस घोषणा का अनुमोदन राष्ट्रपति द्वारा की गई प्रत्येक उद्घोषणा शिवाय वापस लेने की घोषणा की, संसद के दोनों सदनों के समक्ष अनुमोदन के लिए रखा जाना चाहिए। यदि दोनों सदन उद्घोषणा को एक माह के भीतर अनुमोदित नहीं करते हैं तो वह घोषणा समाप्त हो जाती है।
* एक बार अनुमोदित हो जाने पर आपात की उदघोषणा छह माह तक प्रवर्तन रहती है। इस बार इस प्रकार हर बार अनुमोदित होने पर यह 6-6 महीने तक अनंत काल तक बढ़ाई जा सकती है।
* आपात की उद्घोषणा को राष्ट्रपति कभी भी वापस ले सकता है। वापस लेने वाली उद्घोषणा का संसद द्वारा अनुमोदन आवश्यक नहीं है।
*आपात की परिवर्तन के दौरान संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्यों को यह निर्देश देने तक हो जाता है कि वह अपनी कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग किस रीति से करेगा।
* आपात काल के दौरान संसद की विधायी शक्ति का विस्तार हो जाता है और वह राज्य सूची के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है। लेकिन यह कानून आपातकाल के हटने के 6 महीने बाद तक ही प्रवर्तन में सकता है।
* इस तरह से जब आपातकाल की उदघोषणा प्रवर्तन में है तो संसद को वह अधिकार है कि वह एक बार में लोकसभा का कार्यकाल एक साल तक बढ़ा सकती है।
*आपातकाल के दौरान मूल अधिकारों का निलंबन हो जाता है। अनुच्छेद 358 के अनुसार युद्ध या बाहरी आक्रमण किया। आधार पर की गई आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत। स्वतंत्रता का अधिकार स्वता निलंबित हो जाता है।
* राज्य में राष्ट्रपति शासन राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 356 के तहत जारी किए जाने वाले उद्घोषणा को आम बोलचाल की भाषा में राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।
* राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा 356 के तहत जारी की जाती है जिसके अनुसार यदि राष्ट्रपति को किसी राज्य के राज्यपाल के प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा यह समाधान हो जाता है। उस राज्य का शासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो वह उस राज्य में राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा कर सकता है।
* अनुच्छेद 356 के अधीन जारी प्रत्येक घोषणा संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखी जाती है। उसे प्रत्येक सदन द्वारा उपस्थित मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से 2 माह के भीतर करना होता है अन्यथा ये समाप्त हो जाती है। इस तरह से 6-6 माह तक इसी तरह 3 वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है। अतः राष्ट्रपति शासन की अधिकतम अवधि 3 वर्ष तक हो सकती है।
*वित्तीय आपातकाल संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल के बारे में प्रावधान किया गया है। यह तीसरे प्रकार का आपात उपबंध है।
* यदि उसका समाधान हो जाए, ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसने भारत या उसके किसी भाग में वित्तीय आपात अथवा साख का संकट है तो इसकी उद्घोषणा मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति कर सकता है।
* वित्तीय आपात बिना अनुमोदन के 2 माह तक परिवर्तन नहीं रह सकती है। किंतु यदि संसद इसका अनुमोदन कर दे तो यह 2 माह से अधिक अनिश्चितकाल तक अनुमोदन में रह सकती है।
[ स्थानीय स्वशासन ]
• 1935 के अधिनियम द्वारा स्थानीय स्वशासन को पूर्णतया राज्य का विषय बना दिया गया। 2 अक्टूबर 1952 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पहल पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम को प्रारंभ किया गया।
•बलवंत राय मेहता समिति सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफल होने के बाद पंचायत राज व्यवस्था को मजबूत बनाने की सिफारिश करने के लिए 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्राम उद्धार समिति का गठन किया।
•1957 के अंत में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में इस समिति ने स्थानीय स्वशासन हेतु गांव से लेकर जिला स्तर तक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का सुझाव दिया। बलवंत राय मेहता समिति को भारत में पंचायती राज का जनक के रूप में भी जाना जाता है। सबसे पहले आंध्र प्रदेश में प्रायोगिक तौर पर अगस्त 1958 में कुछ भागों में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया।
• 2 अक्टूबर 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज व्यवस्था की औपचारिक शुरूआत किया। इसी दिन से संपूर्ण राजस्थान में लागू कर दिया गया था। राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है जहां संपूर्ण राज्य में सर्वप्रथम पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया।
• 1959 में आंध्र प्रदेश में 1960 में असम तमिलनाडु कर्नाटक में 1962 में महाराष्ट्र में उसके पश्चात गुजरात पश्चिम बंगाल में यह व्यवस्था लागू की गई।
• पंचायती राज को कानूनी रूप से मान्यता 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा दिया गया पंचायती राज संस्थाओं को इसे संवैधानिक दर्जी प्राप्त हो गया। इस संविधान संशोधन द्वारा संविधान में 16 अनुच्छेद और ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई।
• ग्यारहवीं अनुसूची में कुल 29 विषयों का उल्लेख है जिन पर पंचायतों को विधि बनाने की और कार्य करने की शक्ति दी गई। यह संशोधन 24 अप्रैल 1993 को परिवर्तित हुआ। इसलिए 24 अप्रैल को प्रतिवर्ष भारत में पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।
•इसके अनुसार त्रिस्तरीय पंचायती राज की व्यवस्था की गई जिसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लाक स्तर पर ब्लॉक पंचायत और जिला स्तर पर जिला पंचायत की व्यवस्था की गई है।
•अनुच्छेद 243 भी भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान करता है।
•अनुच्छेद 243 D के तहत पंचायतों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा महिलाओं के लिए स्थानों का आरक्षण का प्रावधान किया गया है। एक तिहाई स्थान सभी वर्ग स्त्रियों के लिए आरक्षित होगा जिसमें अनुसूचित जाति स्त्रियों के लिए आरक्षित सम्मिलित होंगे। आंध्र प्रदेश भारत का एक ऐसा मात्र राज्य है जहां अल्पसंख्यकों के लिए पंचायतों में आरक्षण का प्रावधान है।
•मध्य प्रदेश बिहार तथा उड़ीसा के पंचायत अधिनियम में महिलाओं के लिए पंचायतों के तीनों स्तरों पर 50% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
• लगभग सभी राज्यों में सांसदों तथा विधायकों को पंचायती राज संस्थाओं में पदेन सदस्यता दी गई है। किंतु केरल में ऐसा व्यवस्था नहीं किया गया है।
•तमिलनाडु के अतिरिक्त सभी राज्यों में आरक्षण को चक्कर अनुक्रम पद्धति 5 वर्ष में परिवर्तित हो जाती है, जबकि तमिलनाडु में यह व्यवस्था 10 वर्ष के लिए रखी गई है।
[ नगरीय प्रशासन ]
*भारत में नगरीय शासन व्यवस्था भी प्राचीन काल से प्रचलन में रही है। इसे कानूनी रूप से सर्वप्रथम 1887 में दिया गया। जब ब्रिटिश सरकार द्वारा मद्रास शहर के लिए नगर नमक निगम नामक संस्था ने संस्था की स्थापना की गई है।
*भारत में 74वें संविधान संशोधन द्वारा नगरीय शासन के संबंध में संवैधानिक प्रावधान किया गया है। इसे पी वी नरसिंह राव सरकार द्वारा 1992 में पास किया गया जो कि 1993 में 20 अप्रैल से लागू हो गया। इस अधिनियम द्वारा संविधान सभा में एक नया भाग भाग 9 क तथा अनुच्छेद 243 त से अनुच्छेद 243 यछ जोड़ा गया।
* एक नई अनुसूची बारहवीं अनुसूची जोड़कर नगर प्रशासन के विषय में विस्तृत प्रावधान किए गए हैं। प्रत्येक राज्य में नगर पंचायत नगर पालिका परिषद नगर निगम का गठन किया गया है।
* नगर पालिकाओं में भी अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान अनुच्छेद 243 ऊ के तहत किया गया है। इन आरक्षित स्थानों का एक तिहाई स्थान विभिन्न वर्गी की महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगा।
*नगर पालिकाओं की अवधि पंचायतों के समान प्रथम अधिवेशन से 5 वर्ष तक होती है।
* नगर उनको बारहवीं अनुसूची में वर्णित कुल 18 विषयों पर विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई है।
* राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन 19 फरवरी 2004 को किया गया वर्तमान में इसके अध्यक्ष,डा0 रामेश्वर उरांव है।
* राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का गठन 19 फरवरी 2004 को किया गया था इसके वर्तमान अध्यक्ष विजय सापला है।
* राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग 1992 के तहत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना की। छह धार्मिक समुदाय, अर्थात; मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी (पारसी) और जैन को पूरे भारत में केंद्र सरकार द्वारा भारत के राजपत्र में अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है। इसके वर्तमान अध्यक्ष सरदार इकबाल सिंह है।
* राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत का एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के अनुसार की गई थी, वर्तमान में इसके अध्यक्ष अरुण कुमार मिश्रा है।
*नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल-पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित मामलों के शीघ्र निपटान को संभालने के लिए विशेष ट्रिब्यूनल, 2010 में स्थापित। प्रमुख न्यायमूर्ति ए०के० गोयल वर्तमान में ट्रिब्यूनल इसमें 10 विशेषज्ञ सदस्य और 10 न्यायिक सदस्य हैं, हालांकि अधिनियम प्रत्येक में से 20 तक की अनुमति देता है।
* केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) सरकारी भ्रष्टाचार्य को दूर करने के लिए 1964 में बनाया गया. वर्तमान केंद्रीय सतर्कता आयुक्त प्रवीण कुमार श्रीवास्तव है।
*भारत का वित्त आयोग 1951 में अस्तित्व में आया, अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित किया गया था।
* राज्यों और सिद्धांतों को जो राज्यों को दिए जाने वाले सहायता अनुदान को नियंत्रित करना चाहिए।
* अध्यक्ष एन के सिंहा
* लोक लेखा समिति, हर साल 22 से अधिक की ताकत के साथ गठित जिनमें से 15 लोकसभा से और 7 राज्यसभा से हैं, वर्तमान पी०ए०सी० के अध्यक्षता अधीर रंजन चौधरी है।
*सार्वजनिक धन के उपयोग के लिए कार्यपालिका को जिम्मेदार ठहराना एक है, पी० ए०सी० की प्रमुख भूमिका, जिसे सभी संसदीय समितियों की जननी' भी कहा जाता है।
*राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एन०सी०डी०आर०सी)-एक अर्ध-न्यायिक आयोग है।
* भारत में आयोग जिसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत 1988 में स्थापित किया गया था, वर्तमान प्रमुख न्यायमूर्ति आर०के० अग्रवाल है।
* राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, 2007 में स्थापित, अध्यक्ष -प्रियांक कानूनगो
[ संविधान संशोधन की प्रकृया ]
*संविधान संशोधन की प्रकृया दक्षिण अफ्रीका के संविधान से ग्रहण की गई है संविधान का भाग 20 अनुछेद 368 संविधान संशोधन से संबंधित है भारत में अब तक 104 संविधान संशोधन किये गए है।
*संसद प्रस्थान तथा मूल अधिकारो साहित किसी भी भाग में सशोधन कर शक्ति है किंतु संविधान के आधार भूत ढाँचे संशोधन नहीं कर सकती है ऐसा केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य में निश्चित किया गया है, भारतीय संविधान में मुख्य संसोधन निम्न है-
* प्रथम संशोधन, 1951-इसमें नवीन अनुच्छेद अर्थात् 31 क और 31ख को संविधान में अंतः स्थापित किया गया है। इसके द्वारा संविधान में एक नवीन अर्थात् नौवीं अनुसूची जोड़ी गई।
*7वां संविधान संशोधन, 1956 - यह संविधान संशोधन राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और परिणामिक परिवर्तनों को शामिल करने के उद्देश्य से किया गया था। मोटे तौर पर तत्कालीन राज्यों और राज्य क्षेत्रों का राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में वर्गीकरण किया गया। इस संशोधन में लोकसभा का गठन, प्रत्येक जन गणना के पश्चात पुनः समायोजन, नए उच्च न्यायालयों की स्थापना और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि के बारे में उपबंधों की व्यवस्था की गई है।
* 9 वां संशोधन अधिनियम, 1960- भारत और पाकिस्तान के मध्य हुए समझौते के क्रियान्वयन हेतु असम, पंजाब, प० बंगाल और त्रिपुरा के संघ राज्य क्षेत्र से पाकिस्तान को कुछ राज्य क्षेत्र प्रदान करने के लिए इस अधिनियम द्वारा प्रथम अनुसूची में संशोधन किया गया।
*10वां संविधान संशोधन, 1960- इस संविधान संशोधन के अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतः क्षत्रों-दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया।
*11वां संविधान संशोधन, 1961- इस संविधान संशोधन के अंतर्गत उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि मान्यता को प्रशगत करने के अधिकार को संकुचित बना दिया गया।
*12वां संविधान संशोधन, 1962- इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमन और दीव को भारत में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया।
*13वां संविधान संशोधन, 1962 – इस संविधान संशोधन के द्वारा एक नवीन अधिनियम अर्थात् 371 के संविधान में स्थापित किया गया। इसके द्वारा नागालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपना कर उसे एक
राज्य का दर्जा दे दिया गया।
*14 वां संविधान संशोधन 1963- इस संविधान संशोधन के द्वारा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया तथा संघ राज्य क्षेत्रों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व 20 से बढ़ाकर 25 कर दिया गया।
*15वाँ संविधान संशोधन, 1963 – इस संसोधन के अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ती की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया।
*16वाँ संविधान संशोधन, 1963 – इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 19 में संशोधन करके संसद को यह शक्ति दी गई कि वह देश की संप्रभुता और अखंडता के हित में कार्य करने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विधि द्वारा प्रतिबंध लगाए।
*18वां संविधान संशोधन, 1966-इस अधिनियम द्वारा भाषा के आधार पर पंजाब का विभाजन करके पंजाब का विभाजन करके पंजाब और हरियाणा दो प्रथक राज्य बनाने का उपबंध किया गया।
*19वां संविधान संशोधन, 1966- इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया तथा उच्च न्यायालयों को याचिकों सुनने का अधिकार दिया गया।
* 20वां संविधान संशोधन, 1966-इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 233 क संविधान में स्थापित कर के जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति विधिमान्य घोषित किया गया।
* 22वां संविधान संशोधन, 1969 – इसके द्वारा असम राज्य को छठी अनुसूची के भाग 2 क में विनिर्दिष्ट कुछ क्षेत्र को मिलाकर एक अलग नया राज्य मेघालय बनाया गया।
*24वां संविधान संशोधन 1971- इस संशोधन के अंतर्गत संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया की वह संशोधन के किसी भी भाग को, जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं। संशोधन कर सकती है, साथ ही यह भी निर्धारित किया गया कि संशोधन संबंधी विधेयक जब दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के समक्ष जाएगा तो इस पर राष्ट्रपति द्वारा संपत्ति दिया जाना बाध्यकारी होगा।
* 26वां संविधान संशोधन 1971-इसके अंतर्गत भूतपूर्व देशी राज्यों के शासकों की मान्यता को समाप्त करके उनकी पेंशन भी समाप्त कर दी गई है।
• 31वां संविधान संशोधन 1973-इस अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 81S,330 और 382 में संशोधन किया गया और लोक सभा निर्वाचित सदस्य की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गई।
•35वां संविधान संशोधन 1974 – इस संविधान संशोधन के तहत सिक्किम का संक्षिप्त राज्य का दर्जी समाप्त कर उससे संबद्ध राज्य के रूप में भारत में प्रवेश दिया गया।
•36वां संविधान संशोधन 1975- इस संविधान संशोधन के अंतर्गत सिक्किम को भारत का 22वा राज्य बनाया गया।
* 37वां संविधान संशोधन, 1975- इस संविधान संशोधन के अंतर्गत आपात स्थिति को घोषणा और राष्ट्रपति, राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया।
*39वां संविधान संशोधन 1975- इसके संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों के न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया।
*42 संशोधन अधिनियम, 1976- यह सबसे महत्वपूर्ण संशोधन है इसे लघु संविधान के रूप में भी जाना जाता है तथा इसने स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों को प्रभावी बनाया।
•संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष तथा अखंडता तीन नए शब्दों को जोड़ा गया। एक नये भाग-iv (क) में नागरिकों के लिये मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया। कैबिनेट की सलाह मानने के लिये राष्ट्रपति को बाध्य कर दिया गया।
•प्रशासनिक अधिकरणों तथा अन्य मामलों के लिये अधिकरणों की व्यवस्था की गई। (भाग (xiiv) (क) जोड़ा गया)
* 44वां संविधान संशोधन, 1978 – इसके तहत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए 'आंतरिक अशांति' के स्थान पर 'सैन्य विद्रोह' का आधार रखा गया और आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया, जिससे उनका दुरुपयोग ना हो। इसके द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटाकर विधिक (कानूनी) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया। लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर 15 वर्ष कर दी गई। उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल कने की अधिकारिता प्रदान की गई।
* 52वां संविधान संशोधन, 1985– इसके द्वारा राजनीतिक दल बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया। इसके अंतर्गत संसद या विधानमंडलों के उन सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, जो उस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिन्ह पर उन्होंने चुनाव लड़ा था। लेकिन यदि किसी दल की संसदीय पार्टी की एक तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी। दल बदल विरोधी इन प्रावधानों की संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया।
*56वां संविधान संशोधन, 1987 इसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 371 Pe अंतास्थापीत किया गया। इसके द्वारा गोवा को एक राज्य का दर्जा दिया गया और दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया।
*61वां संविधान संशोधन, 1989- इसके संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 376 में संशोधन करके मतदान के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष लाने का प्रस्ताव था।
*65वां संविधान संशोधन, 1990- इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है।
*69वां संविधान संशोधन, 1990 इसके तहत अनुच्छेद 54 और 368 का संशोधन करके दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गयाvएवं दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद का उपबंध किया गया।
*73वां संविधान संशोधन, 1992- इसके अंतर्गत संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गई। इसके पंचायती राज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया। इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 जोड़ा गया। इसमें अनुच्छेद 243 और अनुच्छेद 243 क से 243 ण तक अनुच्छेद हैं।
*74वें संविधान संशोधन, 1993- इस संशोधन के अंतर्गत संविधान में 12वीं अनुसूची शामिल की गई। जिसमें नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं। इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 क जोड़ा गया। इसमें अनुच्छेद 243 से अनुच्छेद 243 तक के अनुच्छेद है।
*76वां संविधान संशोधन, 1994 – इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69% आरक्षण का उपबंध करने वाली अधिनियम को 9वी अनुसूची में शामिल कर दिया गया है।
*84वां संविधान संशोधन, 2001 – इसके द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन ना करने का प्रावधान किया गया है।
*86वां संविधान संशोधन, 2002 - इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है। इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान में जोड़ा गया है। इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 51 (क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है।
*88वां संविधान संशोधन, 2003 - इसमें सेवाओं पर कर का प्रावधान किया गया।
* 89वां संविधान संशोधन, 2003 - इस संविधान संशोधन के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था की गई।
*91वां संविधान संशोधन, 2003 - इसके तहत दलबदल व्यवस्था में संशोधन, केवल संपूर्ण दल के विलय को मान्यता, केंद्र तथा राज्य में मंत्री परिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोकसभा एवं विधानसभा की सदस्य संख्या का 15% होगा।
* 92वां संविधान संशोधन, 2003 - इस संविधान संशोधन में संविधान की आठवीं अनुसूची में डोगरी, बोडो, संथाली, मैथिली भाषाओं का समावेश।
* 93वां संविधान संशोधन, 2006 - इसमें शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति / जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई और संविधान के अनुच्छेद 15 की धारा 4 के प्रावधानों के तहत की गई।
* 94वां संविधान संशोधन, 2006 - इस संशोधन के द्वारा बिहार राज्य को एक जनजाति कल्याण मंत्री नियुक्त करने के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया और इस प्रावधान को झारखंड एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में लागू करने की व्यवस्था की गई साथ ही, मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्य में यह प्रावधान पहले से ही लागू है।
* 95वां संविधान संशोधन, 2009- इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 334 में संशोधन कर लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण तथा आंग्ल भारतीयों को मनोनीत करने संबंधी प्रावधान को 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
* 96वां संविधान संशोधन, 2011 इसमें संविधान की आठवीं अनुसूची में 'उड़िया' के स्थान पर 'ओड़िया' लिखा गया।
* 97 वां संविधान संशोधन, 2011 इस संशोधन के द्वारा सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान तथा संरक्षण प्रदान किया गया। इस संशोधन द्वारा संविधान में निम्न तीन बदलाव किए गए के विकास हेतु कदम उठाने के लिए सशक्त करना था।
* 99वाँ संशोधन अधिनियम 2014- उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नए निकाय 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' (National Judicial Appintment Commission NJAC) की स्थापना की गई।
• हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में इस संशोधन को असंवैधानिक एवं शून्य घोषित करते हुए कॉलेजियम प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया।
* 100वाँ संशोधन अधिनियम 2014 भारत और बांग्लादेश के बीच वर्ष 1974 का भूमि सीमा समझौता तथा इसके प्रोटोकॉल वर्ष 2011 के अनुपालन में भारत द्वारा कुछ भू-भागों का अधिग्रहण एवं कुछ अन्य भू-भागों को बांग्लादेश को हस्तांतरण किया गया। (भूखंडों का आदान-प्रदान तथा अवैध अधिग्रहण को हस्तांतरित कर)।
• इस उद्देश्य के लिये, संविधान की प्रथम अनुसूची में चार राज्यों के क्षेत्र (असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय एवं त्रिपुरा) से संबंधित प्रावधानों में संशोधन किया गया।
*101वाँ संशोधन अधिनियम 2017 - वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरुआत की गई।
• यह (GST) एक अप्रत्यक्ष कर है जो भारत में वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लगता है। यह एक व्यापक बहुचरणीय, गंतव्य आधारित कर है। यह इस संदर्भ में व्यापक जो यह कुछ ही करों को छोड़कर अन्य सभी अप्रत्यक्ष करों को समाहित करता है।
*102वाँ संशोधन अधिनियम 2018 – सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन गठित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया।
•संविधान में अनुच्छेद 338 तथा 338(A) के साथ 388(B) को भी शामिल किया गया जिनका संबंध राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से है।
* 104वाँ संशोधन अधिनियम 2019-स्वतंत्र भारत में पहली बार आर्थिक रूप से कमजोर वगी के लिये आरक्षण की व्यवस्था की गई। अनुच्छेद 16 में संशोधन कर सार्वजनिक रोजगार में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिये 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई।
[ संविधान के अनुच्छेदो के बारे में विस्तार से ]
■ अनुच्छेद 1. संघ का नाम और राज्य क्षेत्र
■ अनुच्छेद 2. नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
■ अनुच्छेद 3. राज्य का निर्माण तथा सीमाओं या नामों में परिवर्तन
■ अनुच्छेद 4. पहली अनुसूचित व चौथी अनुसूची के संशोधन तथा दो और तीन के अधीन बनाई गई विधियां
■ अनुच्छेद 5. संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
■ अनुच्छेद 6. भारत आने वाले व्यक्तियों को नागरिकता
■ अनुच्छेद 7. पाकिस्तान जाने वालों को नागरिकता
■ अनुच्छेद 8. भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों का नागरिकता
■ अनुच्छेद 9. विदेशी राज्य की नागरिकता लेने पर नागरिकता का ना होना
■ अनुच्छेद 10. नागरिकता के अधिकारों का बना रहना
■ अनुच्छेद 11. संसद द्वारा नागरिकता के लिए कानून का
■ अनुच्छेद 12 . राज्य की परिभाषा
■ अनुच्छेद 13. मूल अधिकारों को असंगत या अल्पीकरण करने वाली विधियां
■ अनुच्छेद 14. विधि के समक्ष समानता
■ अनुच्छेद 15. धर्म जाति लिंग पर भेद का प्रतिशेध
■ अनुच्छेद 16. लोक नियोजन में अवसर की समानता
■ अनुच्छेद 17. अस्पृश्यता का अंत
■ अनुच्छेद 18. उपाधीयों का अंत
■ अनुच्छेद 19. वाक् की स्वतंत्रता
■ अनुच्छेद 20. अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण
■ अनुच्छेद 21. प्राण और दैहिक स्वतंत्रता
■ अनुच्छेद 21 क. 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अधिकार
■ अनुच्छेद 22. कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से सरंक्षण
■ अनुच्छेद 23. मानव के दुर्व्यापार और बाल श्रम
■ अनुच्छेद 24. कारखानों में बालक का नियोजन का प्रतिशेध
■ अनुच्छेद 25. धर्म का आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता
■ अनुच्छेद 26. धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
■ अनुच्छेद 29. अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
■ अनुच्छेद 30. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
■ अनुच्छेद 32. अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार।
■ अनुच्छेद 36. परिभाषा
■ अनुच्छेद 40. ग्राम पंचायतों का संगठन
■ अनुच्छेद 48. कृषि और पशुपालन संगठन
■ अनुच्छेद 48 क. पर्यावरण वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
■ अनुच्छेद 49. राष्ट्री य स्मारक स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
■ अनुच्छेद 50. कार्यपालिका से न्यायपालिका का प्रथक्करण
■ अनुच्छेद 51. अंतर्राष्ट्री य शांति और सुरक्षा
■ अनुच्छेद 51 क. मूल कर्तव्य
■ अनुच्छेद 52. भारत का राष्ट्रपति अनुच्छेद
■ अनुच्छेद 53. संघ की कार्यपालिका शक्ति
■अनुच्छेद 54. राष्ट्रपति का निर्वाचन
■ अनुच्छेद 55.राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीती
■अनुच्छेद 56. राष्ट्रपति की पदावधि
■ अनुच्छेद 57. पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
■ अनुच्छेद 58. राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए आहर्ताए
■ अनुच्छेद 59. राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें
■ अनुच्छेद 60. राष्ट्रपति की शपथ
■ अनुच्छेद 61. राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
■ अनुच्छेद 62. राष्ट्रपति पद पर व्यक्ति को भरने के लिए निर्वाचन का समय और रीतियों
■ अनुच्छेद 63. भारत का उपराष्ट्रपति
■ अनुच्छेद 64. उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
■ अनुच्छेद 65. राष्ट्रपति के पद को रिक्त पर उप राष्ट्रपति के कार्य
■ अनुच्छेद 66. उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
■ अनुच्छेद 67. उपराष्ट्रपति की पदावधि
■ अनुच्छेद 68. उप राष्ट्रपति के पद की रिक्त पद भरने के लिए
■ अनुच्छेद 69 .उप राष्ट्रपति द्वारा शपथ
■ अनुच्छेद 70. अन्य आकस्मिकता में राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन
■ अनुच्छेद 71. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधित
■ अनुच्छेद 72 .क्षमादान की शक्ति
■ अनुच्छेद 73. संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
■ अनुच्छेद 74. राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
■ अनुच्छेद 75. मंत्रियों के बारे में उपबंध
■ अनुच्छेद 76. भारत का महान्यायवादी
■ अनुच्छेद 77. भारत सरकार के कार्य का संचालन
■ अनुच्छेद 78. राष्ट्रपति को जानकारी देने के प्रधानमंत्री के कर्तव्य
■ अनुच्छेद 79. संसद का गठन
■ अनुच्छेद 80. राज्य सभा की सरंचना
■ अनुच्छेद 81. लोकसभा की संरचना
■ अनुच्छेद 83. संसद के सदनों की अवधि
■ अनुच्छेद 84. संसद के सदस्यों के लिए अहती जाना
■ अनुच्छेद 85. संसद का सत्र सत्रावसान और विघटन
■ अनुच्छेद 87. राष्ट्रपति का विशेष अभीभाषण ससंद में
■ अनुच्छेद 88.सदनों के बारे में मंत्रियों और महानयायवादी अधिकार
■ अनुच्छेद 89. राज्यसभा का सभापति और उपसभापति
■ अनुच्छेद 90. उपसभापति का पद रिक्त होना या पद हटाया
■ अनुच्छेद 91. सभापति के कर्तव्यों का पालन और शक्ति
■ अनुच्छेद 92. सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन हो तब उसका पीठासीन ना होना
■ अनुच्छेद 93. लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
■ अनुच्छेद 94. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना
■ अनुच्छेद 95. अध्यक्ष में कर्तव्य एवं शक्तियां
विषय
■अनुच्छेद 96. अध्यक्ष उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प हो तब उसका पीठासीन ना होना
■अनुच्छेद 97. सभापति उपसभापति तथा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के,वेतन और भते
■ अनुच्छेद 98. संसद का सविचालय
■ अनुच्छेद 99. सदस्य द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
■ अनुच्छेद 100. संसाधनों में मतदान रिक्तियां के होते हुए भी सदनों के कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
■ अनुच्छेद 108. कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
■ अनुच्छेद 109. धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया
■ अनुच्छेद 110. घन विधायक की परिभाषा
■ अनुच्छेद 111. विधेयकों पर अनुमति
■ अनुच्छेद 112. वार्षिक वित्तीय विवरण
■ अनुच्छेद 118. प्रक्रिया के नियम
■ अनुच्छेद 120. संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
■ अनुच्छेद 123. संसद विश्रांति काल में राष्ट्रपति की अध्यादेश,शक्ति
■ अनुच्छेद 124. उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
■ अनुच्छेद 125. न्यायाधीशों का वेतन
■ अनुच्छेद 126. कार्यकारी मुख्य न्याय मूर्ति की नियुक्ति
■ अनुच्छेद 127. तदर्थ न्यायमूर्तियों की नियुक्ति
■ अनुच्छेद 128. सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति
■ अनुच्छेद 129. उच्चतम न्यायालय का अभिलेख नयायालय होना
■ अनुच्छेद 130. उच्चतम न्यायालय का स्थान
■ अनुच्छेद 131. उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता
■ अनुच्छेद 137. निर्णय एवं आदेशों का पुनर्विलोकन
■ अनुच्छेद 143. उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति
■ अनुच्छेद 144. सिविल एवं न्यायिक पदाधिकारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय की सहायता
■ अनुच्छेद 148. भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक
■ अनुच्छेद 149. नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कर्तव्य शक्तिया
■ अनुच्छेद 150. संघ के राज्यों के लेखन का प्रारूप
■ अनुच्छेद 153. राज्यों के राज्यपाल
■ अनुच्छेद 154. राज्य की कार्यपालिका शक्ति
■ अनुच्छेद 155. राज्यपाल की नियुक्ति
■ अनुच्छेद 156. राज्यपाल की पदावधि
■ अनुच्छेद 157. राज्यपाल नियुक्त होने की अन्हतों
■ अनुच्छेद 158. राज्यपाल के पद के लिए शर्तें
■अनुच्छेद 159. राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
■ अनुच्छेद 163. राज्यपाल को सलाह देने के लिए मंत्री परिषद
■ अनुच्छेद 164. मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध
■ अनुच्छेद 165. राज्य का महाधिवक्ता
■ अनुच्छेद 166. राज्य सरकार का संचालन
■अनुच्छेद 167. राज्यपाल को जानकारी देने के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य
■अनुच्छेद 168. राज्य के विधान मंडल का गठन
■ अनुच्छेद 248. अवशिष्ट विधाई शक्तियां
■ अनुच्छेद 252. दो या अधिक राज्य के लिए सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति
■ अनुच्छेद 254.संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडल द्वारा बनाए गए विधियों में असंगति
■ अनुच्छेद 256. राज्यों की और संघ की बाध्यता
■ अनुच्छेद 257. कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण
■ अनुच्छेद 262. अंतर्राज्यक नदियों या नदी दूनों के जल संबंधी विवादों का न्याय निर्णय
■ अनुच्छेद 263, अंतर्राज्यीय विकास परिषद का गठन
■ अनुच्छेद 266. संचित निधि
■ अनुच्छेद 267. आकस्मिकता निधि
■ अनुच्छेद 269, संघ द्वारा उद्ग्रहित और संग्रहित किंतु राज्यों को सौपे जाने वाले कर
■ अनुच्छेद 270. संघ द्वारा इकट्ठे किए कर संघ और राज्यों के बीच वितरित किए जाने वाले कर
■ अनुच्छेद 280. वित्त आयोग
■ अनुच्छेद 281. वित्त आयोग की सिफारिशे
■ अनुच्छेद 292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना
■ अनुच्छेद 293. राज्य द्वारा उधार लेना
■ अनुच्छेद 300 क. संपत्ति का अधिकार
■ अनुच्छेद 301. व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता
■ अनुच्छेद 309. राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती
■ अनुच्छेद 310. संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की और सेवा की शतीं पदावधि
■ अनुच्छेद 313. संक्रमण कालीन उपबंध
■ अनुच्छेद 315. संघ राज्य के लिए लोक सेवा आयोग
■ अनुच्छेद 316. सदस्यों की नियुक्ति एवं पदावधि
■ अनुच्छेद 323 क. प्रशासनिक अधिकरण
■ अनुच्छेद 323 ख. अन्य विषयों के लिए अधिकरण
■ अनुच्छेद 317. लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को हटाया जाना या निलंबित किया जाना
■ अनुच्छेद 320. लोकसेवा आयोग के कृत्य जनजाति के लिये स्थानो का
■ अनुच्छेद 324. निर्वाचनो के अधिक्षण निर्देशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना
■ अनुच्छेद 329. निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप का वर्णन
■ अनुच्छेद 330. लोक सभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित
■ अनुच्छेद 331. लोक सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व
■अनुच्छेद 332. राज्य के विधान सभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण
■ अनुच्छेद 333. राज्य की विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व
■ अनुच्छेद 343. संघ की परिभाषा
■ अनुच्छेद 344. राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति
■ अनुच्छेद 350 क. प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधों
■ अनुच्छेद 351. हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश
■ अनुच्छेद 352. राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा का प्रभाव
■ अनुच्छेद 356. राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध
■ अनुच्छेद 360. वित्तीय आपात के बारे में उपबंध
■ अनुच्छेद 368. सविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसकी प्रक्रिया
■ अनुच्छेद 377. भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के बारे में उपबंध
■ अनुच्छेद 378. लोक सेवा आयोग के बार
■104 संशोधन अधिनियम 2019 इसके तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया और लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जानतयों एवं जनजानतयों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष के लिए और बढा दिया गया था। इससे पहले इस अरक्षण की सीमा 25 जनवरी 2020 थी।
[ संविधान की अनुसचियाँ ]
भारतीय संविधान के मूल पाठ में 8 अनुसूचियां थी, लेकिन वर्तमान समय में भारतीय संविधान में 12 अनुसूचियां हैं। अग्र वर्तमान में संविधान की अनुसूचियां प्रकार है-
■ प्रथम अनुसूची- इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों का उल्लेख है।
■ द्वितीय अनुसूची- इसमें भारतीय राज व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और उप सभापति विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधानपरिषद् के सभापति और उप सभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियन्त्रक महालेखा परीक्षक, आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेन्शन आदि का उल्लेख किया गया है। द्वितीय अनुसूची में इन पदो के उल्लेख का आशय यह है कि इन पदों की संवैधानिक स्थिति प्राप्त है।
■ तृतीय अनुसूची- इसमें विभिन्न पद धारियों (राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, मन्त्री, संसद सदस्य, उच्चतम और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, आदि) द्वारा पद ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है।
■ चतुर्थ अनुसूची- इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों के राज्यसभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है।
■पांचवी अनुसूची- इसमें विभिन्न अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियन्त्रण के बारे में उल्लेख है।
■ छठी अनुसूची- इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है।
■सतवीं अनुसूची- इसमें संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों का उल्लेख किया गया है।
■आठवीं अनुसूची-इसमें भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया है। मूल रूप से आठवीं अनुसूची में 14 भाषों थीं, 1967 में सिंधी की ओर 1992 में कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली इन तीन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया।
■ नवीं अनुसूची—संविधान में यह अनुसूची प्रथम 'संविधान संशोधन अधिनियम' (1951) द्वारा जोड़ी गई। इसके अन्तर्गत राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है। इस अनुसूची में ! सम्मिलित विधियों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। इस अनुसूची में विभिन्न अधिनियमों को शामिल किया जाना जारी रहा और आज इस अनुसूची में 284 अधिनियमों ने स्थान पा लिया है।
■दसवीं अनुसूची- यह संविधान में 52वें संवैधानिक संशोधन (1985) द्वारा जोड़ी गई है। इसमें दल-बदल से सम्बन्धित प्रावधानों का उल्लेख है। पिछले अनेक वषीं से इन बात की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी कि स्थानीय स्वशासन (ग्रामीण क्षेत्र और शहरी क्षेत्र) की व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाना चाहिए: अतः 1992 में संविधान में 11वीं और 12वीं अनुसूचियां जोड़ी गई हैं।
■ग्यारहवी अनुसूची - संविधान में यह अनुसूची 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) से जुड़ी है। इस अनुसूची के आधार पर 'पंचायती राज-संस्थाओं' की कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किये गये हैं।
■ बारहवीं अनुसूची- संविधान में यह अनुसूची 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के आधार पर जुड़ी है। इस अनुसूची में शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने के लिए 18 विषय प्रदान किये गये हैं।