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व्यायाम और स्वास्थ्य पर निबंध/Essay on exercise and health in hindi

व्यायाम और स्वास्थ्य पर निबंध


Essay on exercise and health in hindi


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              व्यायाम और स्वास्थ्य




रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) व्यायाम का अर्थ, (3) व्यायाम के रूप, (4) व्यायाम की मात्रा, (5) व्यायाम के लिए आवश्यक बातें, (6) व्यायाम लाभ एवं हानियाँ, (7) उपसंहार।


प्रस्तावना -मानव-जीवन में स्वास्थ्य का अत्यधिक महत्त्व है। यदि मनुष्य का शरीर स्वस्थ है तो वह जीवन में अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकता है। यह मानव-जीवन की सर्वश्रेष्ठ पूँजी है। 'एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत' के अनुसार, स्वास्थ्य वह सम्पदा है जिसके द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कर सकता है-'धर्मार्थ-काम-मोक्षाणाम्, आरोग्य मूलकारणम्।' अंग्रेजी में भी कहावत है- 'Health is wealth: अर्थात् स्वास्थ्य ही धन है। प्राचीन काल से ही स्वास्थ्य की महत्ता पर बल दिया जाता रहा है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक भोजन, चिन्तामुक्त जीवन, उचित विश्राम और पर्याप्त व्यायाम की आवश्यकता होती है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्यायाम सर्वोत्तम साधन है।


व्यायाम का अर्थ-मन को प्रफुल्लित रखने एवं तन को सशक्त एवं स्फूर्तिमय बनाने के लिए हम कुछ नियमों के अनुसार जो शारीरिक गति करते हैं, उसे ही व्यायाम कहते हैं। केवल दण्ड- -बैठक, कुश्ती, आसन आदि ही व्यायाम नहीं हैं, वरन् शरीर के अंग-प्रत्यंग का संचालन भी, जिससे स्वास्थ्य की वृद्धि होती है, व्यायाम कहा जाता है। टहलना, दौड़ लगाना, कूदना, कबड्डी, क्रिकेट आदि खेलना, दण्ड-बैठक लगाना, शरीर का संचालन करके योगासन करना आदि व्यायाम के अन्तर्गत आते हैं। तैरना, मुग्दर घुमाना, वजन उठाना, पी० टी० आदि भी व्यायाम के ही रूप हैं।


व्यायाम के रूप – मन की शक्ति के विकास के लिए चिन्तन-मनन करना आदि मानसिक व्यायाम कहे जाते हैं। शारीरिक बल व स्फूर्ति बढ़ाने को शारीरिक व्यायाम कहा जाता है। प्रधान रूप से व्यायाम शरीर को पुष्ट करने के लिए किया जाता है।


शारीरिक व्यायाम को दो वर्गों में रखा गया है—(1) खेल-कूद तथा (2) नियमित व्यायाम। खेल-कूद में रस्साकशी, कूदना, दौड़ना, कबड्डी, तैरना आदि व्यायाम आते हैं। इनके करने से रक्त का तेजी से संचार होता है और प्राण-वायु की वृद्धि होती है। आधुनिक खेलों में हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, क्रिकेट आदि खेल व्यायाम के रूप हैं। खेल-कूद सभी स्थानों पर सभी लोग

सुविधापूर्वक नहीं कर पाते, इसलिए वे शरीर को पुष्ट रखने के लिए कुश्ती, मुग्दर घुमाना, योगासन आदि अन्य नियमित व्यायाम करते हैं। व्यायाम केवल पुरुषों के लिए ही आवश्यक नहीं है, अपितु स्त्रियों को भी व्यायाम करना चाहिए। रस्सी कूदना, नृत्य करना आदि स्त्रियों के लिए परम उपयोगी व्यायाम हैं।


व्यायाम की मात्रा-व्यायाम कितना किया जाये, यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। बालक, युवा, स्त्री, वृद्ध आदि के लिए व्यायाम की अलग-अलग मात्रा है। कुछ के लिए हल्के व्यायाम, कुछ के लिए प्रातः भ्रमण तथा कुछ के लिए अन्य प्रकार के खेल व्यायाम का कार्य करते हैं। आयु, शक्ति, लिंग एवं स्थान के भेद से व्यायाम की मात्रा में अन्तर हो जाता है।


व्यायाम के लिए आवश्यक बातें-व्यायाम का उचित समय प्रातःकाल है। प्रातः शौच आदि से निवृत्त होकर बिना कुछ खाये, शरीर पर तेल लगाकर व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम शुद्ध वायु में लाभकारी होता है। व्यायाम प्रत्येक अंग का होना चाहिए। शरीर के कुछ अंग जोर पड़ते ही पुष्ट होते प्रतीत होते हैं। व्यायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। व्यायाम के विभिन्न रूप प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रत्येक अवस्था में लाभदायक नहीं हो सकते; अतः उपयुक्त समय में उचित मात्रा में अपने लिए उपयुक्त व्यायाम का चुनाव करना चाहिए। व्यायाम करते समय नाक से साँस लेना चाहिए और व्यायाम के बाद कुछ देर रुककर स्नान करना चाहिए। व्यायाम करने के बाद दूध आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन आवश्यकता व सामर्थ्य के अनुसार अवश्य करना चाहिए।


व्यायाम से लाभ-व्यायाम से शरीर पुष्ट होता है, बुद्धि और तेज बढ़ता है। अंग-प्रत्यंग में उष्ण रक्त प्रवाहित होने से स्फूर्ति आती है। मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं। पाचन शक्ति ठीक रहती है। शरीर स्वस्थ और हल्का प्रतीत होता है। व्यायाम के साथ मनोरंजन का समावेश होने से लाभ द्विगुणित होता है। इससे मन प्रफुल्लित रहता है और व्यायाम की थकावट भी अनुभव नहीं होती। शरीर स्वस्थ होने से सभी इन्द्रियाँ सुचारु रूप से काम करती हैं। व्यायाम से शरीर ह नीरोग, मन प्रसन्न और जीवन सरस हो जाता है।


शरीर और मन के स्वस्थ रहने से बुद्धि भी ठीक कार्य करती है। अंग्रेजी में कहावत है— 'Sound mind exists in a sound body' अर्थात् 'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।' मन प्रसन्न और बुद्धि सक्रिय रहने से मनुष्य की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। वह परिश्रमी और स्वावलम्बी हो जाता है।व्यायाम का अभ्यास होने से मनुष्य में संयम के गुण का समावेश हो जाता है। जिससे उसका व्यवहार विनम्र हो जाता है। ठीक समय पर व्यायाम करने के लिए सूर्योदय से पूर्व सोकर उठने की आदत पड़ जाती है। इससे सारे दिन शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है।


व्यायाम करने से अनेक लाभ होते हैं, परन्तु इसमें असावधानी करने के कारण हो हानियाँ भी हो सकती हैं। व्यायाम का चुनाव करते समय, आयु एवं शारीरिक वि शक्ति का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। उचित समय पर, उचित मात्रा में और शि उपयुक्त व्यायाम न करने से लाभ के बजाय हानि होती है। व्यायाम करने वालों के लिए बह्मचर्य का पालन करना अधिक लाभकारी होता है।


 उपसंहार-आज के इस मशीनी युग में व्यायाम की उपयोगिता अत्यधिक बढ़ में गयी है; क्योंकि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मशीनों का आधिपत्य हो गया है। दिन-भर कार्यालय में कुर्सी पर बैठकर कलम घिसना अब गौरव की बात समझी जाती है तथा शारीरिक श्रम को तिरस्कार और उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। परिणामस्वरूप हमारा स्वास्थ्य क्षीण हो गया है, शारीरिक क्षमता पंगु हो गयी है और रोगों ने हमारे शरीर को जर्जर कर दिया है। अत: आज देश के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह सुन्दर शरीर, निर्मल मन तथा विवेकपूर्ण बुद्धि के लिए उपयुक्त व्यायाम नियमित रूप से प्रतिदिन करते रहे।


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