वन महोत्सव पर निबंध
Essay on van mahotsav in hindi
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वन महोत्सव पर निबंध
रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) वन महोत्सव का उद्देश्य, (3) वन महोत्सव की आवश्यकता, (4) वनों की कटाई के कारण, (5) वनों के लाभ, (6) वनों की कटाई के दुष्प्रभाव, (7) प्रदूषण का बढ़ना, (8) अकाल, (9) बाढ़, (10) वन्य जीव-जन्तुओं का विलुप्त होना, (11) ग्लोबल वार्मिंग, (12) वन क्षेत्र बचाने के उपाय अथवा उपसंहार।
प्रस्तावना- भारत में निरंतर वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण हमारे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था, और जितने पेड़ों की कटाई की जा रही थी उसमें से आधे भी नहीं लगाई जा रहे थे। जिसके कारण वनों को बचाने के लिए सरकार द्वारा जुलाई माह में वन महोत्सव का आयोजन किया गया इसको वन महोत्सव नाम इसलिए दिया गया ताकि ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में लोग पेड़ लगाएँ और एक-दूसरे को पेड़ लगाने के लाभ बताएँ।
वन महोत्सव का उद्देश्य—वन महोत्सव का मुख्य उद्देश्य ही यह है कि सभी जगह पेड़-पौधे लगाए जाएँ और वनों के सिकुड़ते क्षेत्र को बचाया जाए। वन महोत्सव सप्ताह में हमारे पूरे देश में लाखों पेड़ लगाए जाते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश इनमें से कुछ प्रतिशत ही पेड़ बच पाते हैं क्योंकि इनकी देखभाल नहीं की जाती है जिसके कारण यह या तो जीव-जन्तुओं द्वारा खा लिए जाते हैं या फिर जल नहीं मिलने के कारण नष्ट हो जाते हैं। हमारे देश में वनों को बचाने के लिए चिपको आन्दोलन और अप्पिको आन्दोलन बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इन आन्दोलनों के कारण ही वन क्षेत्रों की कटाई में थोड़ी कमी आई है।
वन महोत्सव की आवश्यकता-पेड़ों की कटाई के कारण पृथ्वी का वातावरण दूषित होने के साथ-साथ बदल रहा है जिसके फलस्वरूप आपने देखा होगा कि हिमालय तेजी से निकल रहा है पृथ्वी का तापमान फिर से बढ़ने लगा है असमय वर्षा होती है कहीं पर बाढ़ आ जाती है और कहीं पर आँधी तूफान आ रहे हैं जो कि प्रकृति की साफ चेतावनी है कि अगर हम अभी भी अचेत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी का विनाश हो जाएगा। वर्तमान में गर्मियों का समय बढ़ गया है और सर्दियों का समय बहुत कम नाममात्र का ही रह गया है। गर्मियों में तो राजस्थान में पारा 50 डिग्री तक पहुँच जाता है। इसका मतलब अगर इतनी तेज धूप में कोई व्यक्ति अगर आधे घंटे भी खड़ा हो जाए तो उसको हैजा जैसी बीमारी हो सकती है या फिर उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
भारत में जितनी तेजी से औद्योगीकरण हुआ है उतनी ही तेजी से वनों की कटाई भी हुई है, लेकिन हम लोगों ने जितनी तेजी से वनों की कटाई की थी पुनः वृक्षारोपण नहीं किया। वन नीति 1988 के अनुसार धरती के कुल क्षेत्रफल के 33% हिस्से पर वन होने चाहिए तभी प्रकृति का संतुलन कायम रह सकेगा। लेकिन वर्ष 2001 की रिपोर्ट में चौकाने वाले नतीजे सामने आए जिसके अनुसार भारत में केवल 20% प्रतिशत ही वन बचे रह गए हैं। 2017 की वन-विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्षों की तुलना में 2017 में वनों में 1% की वृद्धि हुई है। लेकिन यह वृद्धि दर काफी नहीं है क्योंकि जनसंख्या लगातार बढ़ रही है और साथ ही प्रदूषण भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है इस प्रदूषण को अवशोषित करने के लिए हमारे वन अब भी काफी कम है। हमारे भारत देश में कुछ राज्यों में तो बहुत ज्यादा वन हैं। जैसे कि लक्षद्वीप, मिजोरम, अंडमान निकोबार द्वीप समूह लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा वनों से ढका हुआ है। लेकिन हमारे देश में कुछ ऐसे में राज्य भी हैं जो कि धीरे-धीरे रेगिस्तान बनते जा रहे हैं जैसे कि गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि ऐसे राज्य हैं। इन राज्यों में वन क्षेत्र को बढ़ाने की बहुत सख्त जरूरत है नहीं तो आने वाले दिनों में यहाँ पर भयंकर अकाल की स्थिति देखने को मिल सकती है।
वनों की कटाई के कारण-हमारे देश की बढ़ती हुई जनसंख्या वनों की कटाई का मुख्य कारण है क्योंकि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है उस जनसंख्या को निवास स्थान और खाने-पीने की वस्तुओं की जरूरत भी बढ़ गई है इसलिए वनों की कटाई करके इस सबकी पूर्ति की जा रही है। आजकल आपने देखा होगा कि आपके घरों में ज्यादातर दरवाजे और खिड़कियाँ और अन्य घरेलू सामान लकड़ी से बनता है और जनसंख्या वृद्धि के साथ लकड़ी की माँग में वृद्धि हुई है। इस वृद्धि को पूरा करने के लिए वनों की कटाई की जा रही है। वनों से हमें कई प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं। इन जड़ी-बूटियों को हासिल करने के लिए मानव द्वारा वनों को नष्ट किया जा रहा है। भारत में आजकल कई ऐसे अवैध उद्योग धंधे जिनमें लकड़ी का उपयोग ज्यादा मात्रा में किया जाता है, उसकी पूर्ति के लिए पेड़ों की कटाई की जाती है। वनों की कटाई का एक अन्य कारण यह भी है कि आजकल लकड़ी के कई अवैध धंधे भी चल रहे हैं वे लोग बिना सरकार की मंजूरी के वनों से पेड़ों की कटाई करते हैं और अधिक मूल्य में लोगों को बेच देते हैं। मानव अपनी भोग विलास की वस्तु की इच्छा को पूरा करने के लिए बेवजह पेड़ों की कटाई करता है।
वनों के लाभ-वनों के कारण हमारी पृथ्वी के वातावरण में समानता बनी रहती. है, मिट्टी का कटाव नहीं होता है, पेड़-पौधों से हमें ऑक्सीजन मिलती है जो कि प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए बहुत आवश्यक है। पेड़-पौधे कार्बन डाइ-ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों को अवशोषित कर लेते हैं। वनों में हमें कीमती चंदन जैसी लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं। बीमारियों को दूर भगाने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ मिलती हैं। पेड़-पौधों के कारण वर्षा अच्छी होती हैं जिससे हर तरफ हरियाली-ही-हरियाली रहती है। आपातकालीन आपदा, सूखे की स्थिति, आँधी, तूफान और बाढ़ कम आती है। वन अन्य जीव-जन्तुओं के रहने का घर है।
वनों की कटाई के कारण-हमारे देश की बढ़ती हुई जनसंख्या वनों की कटाई का मुख्य कारण है क्योंकि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है उस जनसंख्या को निवास स्थान और खाने-पीने की वस्तुओं की जरूरत भी बढ़ गई है इसलिए वनों की कटाई करके इस सबकी पूर्ति की जा रही है। आजकल आपने देखा होगा कि आपके घरों में ज्यादातर दरवाजे और खिड़कियाँ और अन्य घरेलू सामान लकड़ी से बनता है और जनसंख्या वृद्धि के साथ लकड़ी की माँग में वृद्धि हुई है। इस वृद्धि को पूरा करने के लिए वनों की कटाई की जा रही है। वनों से हमें कई प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं। इन जड़ी-बूटियों को हासिल करने के लिए मानव द्वारा वनों को नष्ट किया जा रहा है। भारत में आजकल कई ऐसे अवैध उद्योग धंधे जिनमें लकड़ी का उपयोग ज्यादा मात्रा में किया जाता है, उसकी पूर्ति के लिए पेड़ों की कटाई की जाती है। वनों की कटाई का एक अन्य कारण यह भी है कि आजकल लकड़ी के कई अवैध धंधे भी चल रहे हैं वे लोग बिना सरकार की मंजूरी के वनों से पेड़ों की कटाई करते हैं और अधिक मूल्य में लोगों को बेच देते हैं। मानव अपनी भोग विलास की वस्तु की इच्छा को पूरा करने के लिए बेवजह पेड़ों की कटाई करता है।
वनों के लाभ–वनों के कारण हमारी पृथ्वी के वातावरण में समानता बनी रहती है, मिट्टी का कटाव नहीं होता है, पेड़-पौधों से हमें ऑक्सीजन मिलती है जो कि प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए बहुत आवश्यक है। पेड़-पौधे कार्बन डाइ-ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों को अवशोषित कर लेते हैं। वनों में हमें कीमतो चंदन जैसी लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं। बीमारियों को दूर भगाने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ मिलती हैं। पेड़-पौधों के कारण वर्षा अच्छी होती हैं जिससे हर तरफ हरियाली-ही-हरियाली रहती है। आपातकालीन आपदा, सूखे की स्थिति, आँधी, तूफान और बाढ़ कम आती है। वन अन्य जीव-जन्तुओं के रहने का घर है।
वनों की कटाई के दुष्प्रभाव-वनों की कटाई के कारण केवल मानव जाति पर ही प्रभाव नहीं पड़ा है इसका प्रभाव सम्पूर्ण पृथ्वी पर पड़ा है, जिसके कारण आज ग्लोबल वॉर्मिंग की स्थिति पैदा हो गई आइए जानते हैं कि वनों की क कटाई के कारण क्या-क्या दुष्प्रभाव पड़ते हैं। वन क्षेत्र जैसे-जैसे सीमित होता न्य जा रहा है वैसे-वैसे पृथ्वी के तापमान में भी वृद्धि हो रही है। आपने देखा होगा कि सर्दियों की ऋतु का मौसम वर्ष में कुछ समय के लिए ही आता है और वह ज्यादातर समय गर्मियाँ ही रहती हैं। पिछले 10 सालों में पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी हुई है और हर साल इसमें बढ़ोतरी ही हो रही है।
प्रदूषण का बढ़ना – पेड़-पौधे उद्योग-धंधों एवं अन्य पदार्थों से निकलने वाली जहरीली गैसों को अवशोषित कर लेते हैं। अगर इनकी कटाई कर दी जाएगी तो यह जहरीली गैसें वातावरण में ज्यों-की-त्यों ही रहेंगी, जिनके कारण अनेक भयंकर बीमारियाँ जन्म लेंगी और अगर इसी प्रकार वनों की कटाई चलती रही तो मानव को साँस लेने में भी दिक्कत होगी क्योंकि पेड़ों द्वारा ही ऑक्सीजन का निर्माण किया जाता है और कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लिया जाता है।
अकाल – वनों की कटाई के कारण अकाल की स्थिति भी उत्पन्न हो रही है, क्योंकि पेड़ों से ही अधिक वर्षा होती है। अगर पृथ्वी पर पेड़ ही नहीं रहेंगे तो वर्षा भी नहीं होगी। जिसके कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। भारत के कई ऐसे राज्य हैं जिनमें वन क्षेत्र कम पाए जाते हैं जैसे कि गुजरात और राजस्थान तो यहाँ पर अक्सर अकाल की स्थिति बनी रहती है। इन राज्यों में वन क्षेत्र कम होने के कारण जल की कमी भी पाई जाती है।
बाढ़ – पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण कई जगह अधिक वर्षा भी हो जाती है और वन क्षेत्र कम होने के कारण पानी का बहाव कम नहीं हो पाता है और जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
वन्य जीव-जन्तुओं का विलुप्त होना-बढ़ती हुई आबादी के कारण वन क्षेत्र सीमित हो गए हैं जिसके कारण वनों में रहने वाले वन्य जीवों को रहने के लिए बहुत कम जगह मिल रही है और साथ ही कई ऐसे पेड़ों की कटाई कर दी गई है। जो कि कई वन्य जीवों के जीने के लिए बहुत जरूरी थे। वनों की कटाई के कारण कई जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और अगर ऐसे ही वनों की कटाई होती रही तो जल्द ही सभी वन्य जीवों की प्रजातियाँ लुप्त हो जाएँगी।
ग्लोबल वॉर्मिंग - पृथ्वी पर जलवायु में हो रहे परिवर्तन ग्लोबल वॉर्मिंग के अंतर्गत ही आते हैं। वर्तमान में आपने समाचारपत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा होगा कि गर्मियों के समय बर्फ गिर रही है, रेगिस्तान क्षेत्र में बाढ़ आ रही है, हिमालय पिघल रहा है और साथ ही पृथ्वी का तापमान भी बढ़ रहा है यह सभी कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के अंतर्गत आते हैं।
वन क्षेत्र बचाने के उपाय अथवा उपसंहार-वन क्षेत्र को बचाने के लिए हमें लोगों में अधिक-से-अधिक से जागरूकता फैलानी होगी। जनसंख्यावृद्धि दर को कम करना होगा। हमें वन महोत्सव जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना होगा जिससे कि अधिक-से-अधिक मात्रा में पेड़ लगाए जा सकें। वनों को बचाने का काम सिर्फ सरकार का ही नहीं है यह काम हमारा भी है क्योंकि जब तक हम स्वयं पेड़ नहीं लगाएँगे तब तक वन क्षेत्र नहीं बढ़ सकते हैं। हमें अवैध वनों की कटाई करने वाले लोगों के लिए सख्त कानून का निर्माण करना होगा। सभी लोगों को पेड़-पौधों के लाभ बताने होंगे जिससे कि वह अधिक-से-अधिक पेड़ लगाएँ। हमें लकड़ियों से बनी वस्तुओं का उपयोग कम करना होगा।
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