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Sandhi kise kahate hai paribhasha udaharan sahit//sandhi or samas kitne prakar ke hote h//samas kise kahte hai paribhasha udaharan sahit//संधि एवं समास किसे कहते है


  समास एवं संधि किसे कहते हैं

संधि एवं समास किसे कहते है ?

Sandhi aiwam Samas mein kya antar hain ?

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संधि किसे कहते है।

संधि शब्द का व्युत्पत्ति सम् उपसर्ग धातु एवं धि प्रत्यय मिलकर हुई है।


जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - "परस्पर मिलाना"


अर्थात्

जब दो या दो से अधिक वर्णों का परस्पर मेल एवं उनमें कोई परिवर्तन भी हो तो उसे संधि कहा जाता है।



संधि जिसका शाब्दिक अर्थ है मेल या जोड़, हिंदी भाषा में वर्णों का एक गुण है जिसमें उनके सहयोग एक नई सार्थक ध्वनि की उत्पत्ति करते हैं। इसमें पहले शब्द की अंतिम ध्वनि दूसरे शब्द की पहली धोने से मिलकर परिवर्तन लाती है।



संधि की परिभाषा



संधि की परिभाषा देते हुए हम कह सकते हैं कि दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार पैदा होता है उसे संधि कहते हैं।



नोट :- दो वर्णों का मेल हो तो लेकिन उनमें कोई परिवर्तन ना हो तो उसे संधि, ना कह कर सहयोग कहा जाता है।



उदाहरण :- उद + योग = उदयोग



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संधि – विच्छेद 



°वर्णों के मेल से उत्पन्न ध्वनि परिवर्तन को ही संधि कहते हैं। परिणाम स्वरूप उच्चारण एवं लेखन दोनों ही स्तरों पर अपने मूल रूप से भिन्नता आ जाती है। अतः उन वर्णों / ध्वनियों को पुनः मूल रूप में लाना ही संधि विच्छेद चलाता है।



संधि के उदाहरण 



महेश - महान + ईश


मनोबल - मन + बल


गणेश - गण + ईश



संधि के प्रकार 



परस्पर मिलने वाले वर्णों के आधार पर हिंदी भाषा में संधि के प्रकार तीन हैं। संधि तीन प्रकार की होती है।



स्वर संधि



व्यंजन संधि



विसर्ग संधि




स्वर संधि :-  दो स्वरो में मेल से जो ध्वनि पैदा होती है उसे स्वर संधि कहते हैं।



जैसे - विद्या + आलय = विद्यालय


मुनि + इंद्र = मुनींद्र ।



 स्वर संधि पांच प्रकार की होती हैं।



दीर्घ संधि


गुण संधि


वृद्धि संधि


यण संधि


अयादि संधि


दीर्घ संधि की परिभाषा तथा इसके उदाहरण



जब दो शब्दों की संधि करते समय (अ, आ) के साथ (अ, आ) हो तो ‘आ‘ बनता है, जब (इ, ई) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ई‘ बनता है, जब (उ, ऊ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है।


इस संधि को हम ह्रस्व संधि भी कह सकते हैं।


जैसे: पुस्तक + आलय : पुस्तकालय बनता है। यहाँ अ+आ मिलकर बनाते हैं।



दीर्घ संधि के कुछ उदाहरण :

विद्या + अभ्यास : विद्याभ्यास (आ + अ = आ)


जैसा कि आप ऊपर दिये गए दीर्घ संधि के उदाहरण में देख सकते हैं, दोनों स्वर मिलकर संधि करने पर परिवर्तन ला रहे हैं।



आ एवं अ मिलकर बना रहे हैं एवं संधि होने के बाद शब्द में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। ये स्वर हैं अतः यह उदाहरण दीर्घ संधि के अंतर्गत आयेगा।



विद्या + अभ्यास : विद्याभ्यास (आ + अ = आ)


ऊपर दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं कि जब आ एवं अ दो स्वरों को मिलाया गया तो उन्होंने आ का निर्माण किया।



जब संधि हुई तो मुख्य शब्द में संधि होने के बाद परिवर्तन की वजह से देखने को मिला। अतः यह दीर्घ संधि के अंतर्गत आएगा।



परम + अर्थ : परमार्थ (अ + अ = आ)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि यहाँ पर संधि करते समय जब अ एवं अ दो स्वरों को मिलाया गया तो उन शब्दों ने मिलकर आ बना दिया। जब संधि की गयी


गुण संधि की परिभाषा तथा इसके उदाहरण



जब संधि करते समय (अ, आ) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ए‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ओ‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ () हो तो ‘अर‘ बनता है तो यह गुण संधि कहलाती है।



गुण संधि के कुछ उदाहरण


महा + ईश : महेश (आ + ई =)


ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं कि जब शब्दों की संधि होती है तब एवं मिलकर बना देते हैं।



यह परिवर्तन होने से पूरे शब्द में संधि होने के बाद परिवर्तन हो जाता है। इन स्वरों से परिवर्तन होता है। अतः यह उदाहरण गुण संधि के अंतर्गत आयेगा।



नर + ईश : नरेश (अ + ई = )


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं अ एवं ई मिलकर संधि होते समय बना देते हैं। इस परिवर्तन की वजह से ही पूरे शब्द में संधि होते समय परिवर्तन आ जाता है। अतः यह उदाहरण गुण संधि के अंतर्गत आएगा।



नर + इंद्र : नरेन्द्र (अ + इ = )


ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आपने देखा अ एवं इ मिलकर संधि होते समय बना देते हैं। जब यह परिवर्तन स्वरों के बीच होता है तो संधि होते समय शब्द में भी परिवर्तन आ जाता है।



अ, अ जैसा कि हमें पता है कि जब अ, ई आदि से संधि में कुछ परिवर्तन परिवर्तन आता है तो वहाँ पर गुण संधि होती है। अतः यह उदाहरण गुण संधि के अंतर्गत आएगा।



ज्ञान + उपदेश : ज्ञानोपदेश (अ + उ = ओ)



जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं स्वर अ एवं उ मिलकर बना देते हैं। इसी परिवर्तन कि वजह से जब पूरे शब्द की संधि होती है तो पूरे शब्द में भी परिवर्तन आ जाता है। यहाँ हम देख सकते हैं कि परिवर्तन भी अ एवं उ की वजह से आ रहा है। अतः यह उदाहरण गुण संधि के अंतर्गत आएगा।



देव + ऋषि : देवर्षि (अ + ऋ = अर्)


ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं कि वाक्य में अ ओर  ऋ डो स्वर हैं। ये मिलने पर अर् बनाते हैं। तो जब हम डो शब्दों की  संधि करते है तो उसमे इन स्वरों कि वजह से परिवर्तन आ जाता है। यहाँ हम देख सकते हैं कि परिवर्तन भी अ एवं उ की वजह से आ रहा है। अतः यह उदाहरण गुण संधि के अंतर्गत आएगा।



ग्राम + उत्थान : ग्रामोत्थान (अ + उ = ओ)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते कि अ एवं  उ ये दो स्वर हैं जिनसे की परिवर्तन आ रहा है। ये दोनों वर्ण मिलकर ओ बना रहे हैं। जब शब्दों की संधि हो रही है तो इन वर्णों की वजह से पूरे शब्द में परिवर्तन आ रहा है। अतः यह उदाहरण गुण संधि के अंतर्गत आएगा।



सर्व + उदय : सर्वोदय (अ + उ = ओ)


ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं अ एवं उ दो स्वर हैं। यही दो स्वर संधि के समय आपस में मिलकर ओ बन जाते हैं। इसी परिवर्तन कि वजह से जब दो शब्दों की संधि की जाती है तो उनमे भी इन स्वरों की वजह से परिवर्तन आ जात है। अतः यह उदाहरण गुण संधि के अंतर्गत आएगा।



गुण संधि के कुछ अन्य उदाहरण


जीर्ण + उद्धार : जीर्णोद्वार (अ + उ = ओ)


महा + उत्सव :  महोत्सव  (आ + उ = ओ)


आत्मा + उत्सर्ग : आत्मोत्सर्ग (आ + उ = ओ)


धन + उपार्जन : धनोपार्जन (अ + उ = ओ)


सुर + इंद्र : सुरेन्द्र (अ + इ = ए)


महा + ऋषि : महर्षि (आ + ऋ = अर)


वृद्धि संधि की परिभाषा तथा इसके उदाहरण



सदा + एव : सदैव (आ + ए = ऐ)


ऊपर दिए गये उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं यहाँ आ एवं ए स्वरों के मेल की वजह से कुछ परिवर्तन आया है। ये दोनों स्वर मिलने के बाद बन गए है। जब यह परिवर्तन होता है तो शब्द कि संधि होते समय इन स्वरों कि वजह से ही परिवर्तन होता है। अतः यह उदाहरण वृद्धि संधि के अंतर्गत आएगा।



तत + एव : ततैव (अ + ए = ऐ)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि जब दोनों शब्दों की संधि की जाती है व जब वो मिलते हैं तो इन स्वरों की वजह से शब्द में परिवर्तन आ जाता है। यहाँ अ एवं ए मिलकर ऐ बनाते हैं एवं शब्द परिवर्तित हो जाता है। अतः यह उदाहरण वृद्धि संधि के अंतर्गत आएगा।



मत + एक्य : मतैक्य (अ + ए = )


ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं की अ एवं ए की वजह से परिवर्तन हो रहा है। जब शब्दों की संधि की जाती है तो अ एवं ए मिलकर बना देते हैं। जब ऐसा होता है तो संधि करते समय शब्द में भी परिवर्तन आ जाता है। अतः यह उदाहरण वृद्धि संधि के अंतर्गत आएगा।



एक + एक : एकैक (अ + ए =)


ऊपर दिए गये उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं यहाँ अ एवं ए स्वरों के मेल की वजह से कुछ परिवर्तन आया है। ये दोनों स्वर मिलने के बाद ऐ बन गए है। जब यह परिवर्तन होता है तो शब्द की संधि होते समय इन स्वरों कि वजह से ही परिवर्तन होता है। अतः यह उदाहरण वृद्धि संधि के अंतर्गत आएगा।



जल + ओघ : जलौघ (अ + ओ = औ)


ऊपर दिए गये उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं यहाँ अ एवं ओ स्वरों के मेल की वजह से कुछ परिवर्तन आया है। ये दोनों स्वर मिलने के बाद बन गए है। जब यह परिवर्तन होता है तो शब्द कि संधि होते समय इन स्वरों कि वजह से ही परिवर्तन होता है। अतः यह उदाहरण वृद्धि संधि के अंतर्गत आएगा।



महा + औषध : महौषद (आ + औ = औ)


ऊपर दिए गये उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं यहाँ आ एवं ए स्वरों के मेल की वजह से कुछ परिवर्तन आया है। ये दोनों स्वर मिलने के बाद बन गए है। जब यह परिवर्तन होता है तो शब्द कि संधि होते समय इन स्वरों कि वजह से ही परिवर्तन होता है। अतः यह उदाहरण वृद्धि संधि के अंतर्गत आएगा।


यण संधि की परिभाषा




जब संधि करते समय इ, ई के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ ‘ बन जाता है, जब उ, ऊ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है।



यण संधि के उदाहरण


अधि + आय : अध्याय (इ + आ = या)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं इ एवं आ वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर या बना देते हैं। अधि और आय का अध्याय बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।



अनु + एषण : अन्वेषण (उ + ए = व्)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं उ एवं ए वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर' व' बना देते हैं। अनु और एषण का अन्वेषण बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।



अधि + अयन : अध्ययन (इ + अ = य)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं इ एवं अ वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर 'य' बना देते हैं। अधि और अयन का अध्ययन



बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।


अनु + इत : अन्वित (उ + इ = वि)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं इ एवं आ वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर 'वि' बना देते हैं। अनु और इत का अन्वित बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।



इति + आदि : इत्यादि (इ + आ = या )


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं इ एवं आ वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर 'या' बना देते हैं। इति और आदि का इत्यादि बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।



प्रति + एक : प्रत्येक (इ + ए = ये)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं एवं ए वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर 'ये' बना देते हैं। प्रति और एक का प्रत्येक बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।



अति + आवश्यक : अत्यावश्यक (इ + आ = या)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं इ एवं आ वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर 'या' बना देते हैं। अति और आवश्यक का अत्यावश्यक बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।



यण संधि के कुछ अन्य उदाहरण :


अति + अधिक : अत्यधिक (इ + अ =)


प्रति + अक्ष : प्रत्यक्ष (इ + अ = )


प्रति + आघात : प्रत्याघात (इ + आ = या)


अति + अंत : अत्यंत (इ + अ = )


अयादि संधि की परिभाषा




जब संधि करते समय ए , ऐ , ओ , औ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो (ए का अय), (ऐ का आय), (ओ का अव), (औ – आव) बन जाता है। यही अयादि संधि कहलाती है।


य , व् से पहले व्यंजन पर अ , आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा।


अयादि संधि के उदाहरण


ने + अन : नयन (ए + अ = अय)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि ए एवं अ ये दोनों स्वर शब्दों में है। जब शब्दों की संधि की जाती है तो इन ही दोनों स्वरों के कारण शब्दों में परिवर्तन आता है। जब संधि होती है तो ए एवं अ मिलकर अय बनाते हैं। ने एवं अन से मिलकर नयन बनता है। अतएव यह उदाहरण अयादि संधि के अंतर्गत आएगा।



नौ + इक : नाविक (औ + इ = आव)


ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं – औ एवं इ ये दोनों स्वर शब्दों में है। जब शब्दों की संधि की जाती है तो इन ही दोनों स्वरों के कारण शब्दों में परिवर्तन आता है। जब संधि होती है तो औ एवं इ मिलकर आव बनाते हैं। नौ एवं इक से मिलकर नाविक बनता है। अतएव यह उदाहरण अयादि संधि के अंतर्गत आएगा।



भो + अन : भवन (ओ + अ =अव)



जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि ओ एवं अ ये दोनों स्वर शब्दों में है। जब शब्दों की संधि की जाती है तो इन ही दोनों स्वरों के कारण शब्दों में परिवर्तन आता है। जब संधि होती है तो ओ  एवं अ मिलकर अव बनाते हैं। भो एवं अन से मिलकर भवन बनता है। अतएव यह उदाहरण अयादि संधि के अंतर्गत आएगा।



पो + इत्र : पवित्र (ओ + इ = आव)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि ओ एवं इ ये दोनों स्वर शब्दों में है। जब शब्दों की संधि की जाती है तो इन ही दोनों स्वरों के कारण शब्दों में परिवर्तन आता है। जब संधि होती है तो ओ  एवं इ मिलकर आव बनाते हैं। पो एवं इत्र  से मिलकर पवित्र बनता है। अतएव यह उदाहरण अयादि संधि के अंतर्गत आएगा।



चे + अन : चयन (ए + अ = अय)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि ए एवं अ ये दोनों स्वर शब्दों में है। जब शब्दों की संधि की जाती है तो इन ही दोनों स्वरों के कारण शब्दों में परिवर्तन आता है। जब संधि होती है तो ए एवं अ मिलकर अय बनाते हैं। चे एवं अन से मिलकर चयन बनता है। अतएव यह उदाहरण अयादि संधि के अंतर्गत आएगा।



पो + अन : पवन (ओ + अ = अव)


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि ओ एवं अ ये दोनों स्वर शब्दों में है। जब शब्दों की संधि की जाती है तो इन ही दोनों स्वरों के कारण शब्दों में परिवर्तन आता है। जब संधि होती है तो ओ एवं अ मिलकर अव बनाते हैं। पो एवं अन से मिलकर पवन बनता है। अतएव यह उदाहरण अयादि संधि के अंतर्गत आएगा।


अयादि संधि के कुछ अन्य उदाहरण :


श्री + अन : श्रवण


पौ + अक : पावक


पौ + अन : पावन


नै + अक : नायक



समास किसे कहते हैं? | समास के कितने भेद हैं और कौन कौन से?



आपस में संबंध रखने वाले जब दो या दो से अधिक शब्दों के बीच में से विभक्ति हटाकर उन दोनों शब्दों को मिलाया जाता है तब इस मेल को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में, दो या दो से अधिक शब्द मिलकर जब एक नया उस से मिलता जुलता शब्द का निर्माण करते हैं वह समास कहलाता है। समास शब्द 'सम्' (पूर्ण रूप से) एवं 'आस' (शब्द) से मिलकर बना होता है। जिसका अर्थ होता है विस्तार से कहना। और इसी के अंतर्गत समास के नियमों से बना शब्द सामासिक पद या समस्त पद कहलाता है। जैसे - देश भक्ति, चौराहा, महात्मा, रसोईघर।




समास विग्रह किसे कहते हैं?



सर्वप्रथम हम यह जानेंगे कि विग्रह का क्या अर्थ होता है, विग्रह का अर्थ होता है अलग करना। समास के नियमों से बने शब्द या समस्त पद के सभी पदों को अलग अलग करने की प्रक्रिया समास विग्रह कहलाती है। जैसे उपर्युक्त कुछ समस्त पद को समास विग्रह में बदलते हैं। देशभक्ति का समास विग्रह 'देश के लिए भक्ति' होगा। चौराहा का समास विग्रह 'चार राहो का समूह' होगा। समास रचना में 2 पद होते हैं। पहले को पूर्व (पहला) पद कहते हैं, वह दूसरे को उत्तरपद (बाद) कहते हैं। जैसे- धर्म ग्रंथ इसमें पूर्व पद धर्म व उत्तर पद ग्रंथ है। रथचालक  इसमें पूर्व पद रथ है, और उत्तर पद चालक है। इस कारण से इनमें समास प्रक्रिया के कारण बीच की विभक्ति लुप्त हो जाती है। रथचालक में बीच की विभक्ति 'को' है। तथा धर्मग्रंथ में बीच की विभक्ति 'का' है। इसके अतिरिक्त कुछ शब्दों में विकार भी उत्पन्न हो जाते हैं जैसे – काठ की पुतली = कठपुतली। इसमें काठ 'का' से 'क' बन गया है।



समास के कितने भेद हैं


समास के मुख्यतः छह प्रकार या भेद होते हैं जो निम्नलिखित इस प्रकार है–



1. अव्ययीभाव समास

2. तत्पुरुष समास

3. कर्मधारय समास

4. द्विगु समास 

5. द्वंद समास

6. बहुव्रीहि समास 



यदि पदों की प्रधानता के आधार पर समाज का और वर्गीकरण किया जाए तो अव्ययीभाव समास पूर्व पद प्रधान, तत्पुरुष, कर्मधारय व द्विगु समास उत्तर प्रधान पद। और अंत में बहुव्रीहि समास दोनों पद प्रधान है।



अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?


जिस समास का पहला पद प्रधान हो या अव्यय (अविकारी) हो। तथा दूसरा पद या उत्तर पद गौण हो उसे अवयवभावी समास कहते हैं। 



उदाहरण के लिए 


शक्ति के अनुसार – यथाशक्ति


जन्म से लेकर – आजन्म


पेटभर के – भरपेट



उपर्युक्त कुछ उदाहरण में यथा, आ, भर, आदि पूर्व पद है जो प्रधान है, जबकि शक्ति, जन्म, पेट उत्तर पद जो गौण या प्रधान पद पर आश्रित हैं। अव्ययीभाव के कुछ निम्नलिखित उदाहरण इस प्रकार हैं–


हाथों हाथ – एक हाथ से दूसरे हाथ में


हरफ़नमौला – हर फन में मौला


अनुरूप – रूप के योग्य


यथासंभव – जैसा संभव हो


प्रतिदिन – दिन-दिन 


बीचों-बीच – ठीक बीच में


आजन्म – जन्म से लेकर


आमरण – मरण तक


तत्पुरुष समास किसे कहते हैं?



जिस समास में बात का बाद का पद या उत्तर पद प्रधान होता है, तथा प्रथम पद गौण हो जाता है। के अतिरिक्त दोनों पदों के बीच की कारक विभक्ति का लॉक हो जाता है तो इसे तत्पुरुष समास कहते हैं।।



उदाहरण के लिए


राजा का कुमार — राजकुमार


शोक से ग्रस्त — शोक ग्रस्त


रचना को करने वाला — रचनाकार



उपर्युक्त उदाहरण में कुमार, ग्रस्त, करने वाला आदि उत्तर प्रद हैं, और तत्पुरुष में उत्तर पद ही प्रधान होता है। तथा इन दोनों पदों के बीच की विभक्ति का,से,को आदि का लोप हो जाता है।



तत्पुरुष समास के भेद 



व्यक्तियों के नामों के क्रमौ के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं।



1. कर्म तत्पुरुष (द्वितीया)


2. करण तत्पुरुष (तृतीया)


3. संप्रदान तत्पुरुष (चतुर्थी)


4. अपादान तत्पुरुष (पंचमी)


5. संबंध तत्पुरुष (षष्ठी)


6. अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी)



आप हम उपर्युक्त भेदो को संक्षिप्त रूप से समझने का प्रयास करते हैं



कर्म तत्पुरुष (द्वितीया) —



इसमें 2 पदों के बीच में लगने वाली कारक चिन्ह 'को' गायब हो जाता है। कर्म तत्पुरुष का उदाहरण निम्नलिखित इस प्रकार है। 

 

उदाहरण 


गगन को चूमने वाला - गगनचुंबी 


काठ को फोड़ने वाला - कठफोड़वा


कुंभ को बनाने वाला - कुंभकार (कुंभ को घड़ा कहते हैं)


रथ को चलाने वाला – रथ चालक


शिल्प को बनाने वाला – शिल्पकार


यश को प्राप्त करने वाला – यशप्राप्त 


जेब को कतरने वाला - जेबकतरा


करण तत्पुरुष (तृतीया) —


इसमें करण कारक की विभक्ति 'से' के द्वारा का लोप हो जाता है। निम्नलिखित कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं



 उदाहरण 

उत्तर से पूर्व – उत्तरपूर्व 


व्याधि से ग्रसित – व्याधिग्रसित 


नेत्र से हीन – नेत्रहीन


कर्म से हीन – कर्महीन 


रेखा से अंकित – रेखांकित


मन से चाहा – मनचाहा 


वाल्मीकि द्वारा रचित – बाल्मीकि रचित


पद से दलित – पददलित 


संप्रदान तत्पुरुष (चतुर्थी) —



इसमें संप्रदान कारक विभक्ति 'के लिए' का लोप हो जाता है निम्नलिखित कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं



 उदाहरण 

स्वर्ग के लिए पर – स्वर्गपथ

स्नान के लिए घर – स्नानघर

पाठ के लिए शाला – पाठशाला

हाथ के लिए कड़ी – हथकड़ी

देश के लिए भक्ति – देशभक्ति

परीक्षा के लिए भवन – परीक्षाभवन 

प्रयोग के लिए शाला – प्रयोगशाला

गौ के लिए शाला – गौशाला



अपादान तत्पुरुष (पंचमी) —



इसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से' (अलग होने का भाव किस चीज से) लुप्त हो जाता है। यहां पर हमें एक बात समझनी होगी। करण तत्पुरुष में 'से' का अर्थ अलग होता है जबकि अपादान तत्पुरुष में 'से' का अलग अर्थ होता है। करण तत्पुरुष में 'से' का अर्थ - मिलना अपादान तत्पुरुष में 'से' का अर्थ - अलग होना।



 उदाहरण 


धन से हीन – धनहीन


जल से हीन – जलहीन 


देश से निकाला – देशनिकाला 


गुण से हीन – गुणहीन 


मार्ग से हीन – मार्गहीन 


संबंध तत्पुरुष (षष्ठी) —



इसमें संबंध कारक की विभक्ति ‘का' ‘के', 'की' का लॉक हो जाता है' यह विभक्ति संबंध को दर्शाता है' संबंध तत्पुरुष के कुछ उदाहरण निम्नलिखित इस प्रकार हैं:



 उदाहरण 

विद्या का सागर – विद्यासागर

राजा का पुत्र – राजपूत्र

राजा का कुमार – राजकुमार

ग्रंथों का आलय – ग्रंथालय

देश की रक्षा – देशरक्षा 

पशुओं की रक्षा – पशुरक्षा 

पर के आधीन – पराधीन

जगत की जननी – जगतजननी 


अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी) –



इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में',‘पर' का लोप हो जाता है, अधिकरण तत्पुरुष के उदाहरण निम्नलिखित इस प्रकार हैं:



 उदाहरण 

शरण में आगत – शरणागत 

आप पर बीती – आपबीती

कला में श्रेष्ठ – कलाश्रेष्ठ 

गृह में प्रवेश – गृहप्रवेश 

उत्तर में प्रदेश – उत्तर प्रदेश


कर्मधारय समास किसे कहते हैं?


जिस समास में पहला पद और दूसरे पद के बीच विशेषण विशेष्य या उपमान उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारिय  समास कहलाता हैं। इसकी मुख्य पहचान है विग्रह करने पर दोनों पदों के बीच में 'है जो' 'के समान' आदि आता है।  दूसरे शब्दों में एक पद का दूसरे पर से तुलना की जाती है। कर्मधारय समास के कुछ उदाहरण निम्नलिखित इस प्रकार हैं:



उदाहरण :-

कमल के समान नयन – कमलनयन

कनक की सी लता – कनक लता

नीला है जो कमल – नीलकमल

लौहा के समान है जो पुरुष – लौह पुरुष 

विद्युत के समान है जो वेग – विद्युतवेग 

नीला है जो कंठ – नील कंठ

आधा है जो मरा – अधमरा 


द्विगु समास किसे कहते हैं?



जब समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण हो, और उत्तर प्रधान हो वह दिगु समास कहलाता है। इसमें समूह, समाहार की आवृत्ति होती है। दिगु समास के कुछ उदाहरण निम्नलिखित इस प्रकार हैं:


 उदाहरण 

सात टापुओं का समूह – सप्त टापू


तीन रंगों का समूह – तिरंगा


तीन भुजाओं का समाहार – त्रिभुज


तीन कालो का समाहार – त्रिकाल


दो पहरो का समूह – दोपहर 


 सात ऋषियों का समूह – सप्त ऋषि 


नौ प्रकार के रत्न  – नवरत्न



द्वंद समास किसे कहते हैं?



जिस समास में दोनों पद प्रधान हो और अलग करने पर 'और', 'एवं', 'या' , 'अथवा' लगता हो उसे द्वंद समास कहते हैं। द्वंद समास में दोनों पदों के बीच में ( - ) लगता है। द्वंद समास के कुछ उदाहरण निम्नलिखित इस प्रकार है



 उदाहरण 

दाल और रोटी – दाल-रोटी


पाप और पुण्य – पाप-पुण्य


गाड़ी और घोड़ा – गाड़ी-घोड़ा


शिव और पार्वती – शिव-पार्वती


राधा और कृष्ण – राधा-कृष्ण


नर और नारी – नर-नारी


भला या बुरा –भला-बुरा


हर और फन और मौला – हर-फ़न-मौला 


तन और मन और धन – तन-मन-धन


 वहुव्रिही समास किसे कहते हैं ?



जब समास के समस्त पद में कोई भी पद प्रधान नहीं हो बल्कि इसके अलावा कोई तीसरा पद वहुव्रिही समास कहते हैं। इसमें समास का अर्थ न देकर विशेष अर्थ देते हैं। वहुव्रिही समास के कुछ उदाहरण निम्नलिखित इस प्रकार हैं :



 उदाहरण 


गिरी को धारण किया है जिसने (कृष्ण) –गिरिधर



लंबा है उदर जिसका (गणेश) – लंबोदर 



चक्र है पाणी में जिसके (विष्णु) – चक्रपाणि



मृत्यु को जीतने वाला (शिव) – मृत्युंजय



दस है आनन् जिसके(रावण) - दशानन 



महान वीर है जो (हनुमान) – महावीर



दानवीर है जो (कर्ण) – दानवीर



मंत्रीयो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री) – प्रधानमंत्री



पीला है अंबर जिसका (कृष्ण) – पीतांबर



निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)– निशाचर।



संधि और समास में अंतर 




संधि दो वर्णो के मेल से उत्पन्न विकार को कहते हैं जबकि समास दो पदों के मेल से बने शब्द होते हैं।



संधि को तोड़ने की क्रिया संधिविच्छेद कहलाती है वहीँ समास को तोड़ने की क्रिया समास विग्रह कहलाती है।




संधि तीन प्रकार की होती है जबकि समास छ प्रकार के होते हैं।



संधि के लिए दो वर्णों के मेल और विकार की गुंजाईश रहती है जबकि समास को इस मेल या विकार से कोई मतलब नहीं रहता है।



संधि में वर्णों के योग से वर्ण परिवर्तन हो सकता है किन्तु समास में ऐसा नहीं होता।



संधि हिंदी के केवल तत्सम पदों में होती है वहीँ समास संस्कृत तत्सम, हिंदी, उर्दू हर प्रकार के पदों में हो सकता है।



संधि में विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता किन्तु समास में विभक्ति या पद का लोप हो सकता है।





उपसंहार 



संधि जहाँ वर्णों के मेल पर निर्भर करती है वहीँ समास में पदों का मिलना होता है। संधि और समास किसी भाषा में नए शब्दों की रचना करते हैं और साथ ही शब्द संक्षिप्तीकरण भी करते हैं। 




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