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माखन लाल चतुर्वेदी की गद्यांश रचना 'पुष्प की अभिलाषा' और जवानी , का सन्दर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्य सौन्दर्य

 माखन लाल चतुर्वेदी की गद्यांश रचना 'पुष्प की अभिलाषा' और जवानी , का सन्दर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्य सौन्दर्य



गद्यांश रचना 'पुष्प की अभिलाषा' और जवानी , की संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्य सौन्दर्य


माखन लाल चतुर्वेदी की गद्यांश रचना 'पुष्प की अभिलाषा' और जवानी , का सन्दर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्य सौन्दर्य




              पुष्प की अभिलाषा




  1. चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ, चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ, मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ में देना तुम फेंक। तृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।



सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'हिन्दी' के काव्यखण्ड 'पुष्प की अभिलाषा' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवि माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित 'युगचरण' से लिया गया है।


प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पुष्प के माध्यम से मातृभूमि पर बलिदान होने की प्रेरणा दी है।


व्याख्या – कवि स्वयं को पुष्प मानकर अपनी अभिलाषा प्रकट करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! मेरी यह अभिलाषा नहीं है कि मैं देवकन्या के आभूषणों में जड़कर उसके शृंगार की वस्तु बनूँ और न ही मेरी इच्छा पुष्पों की सुन्दर माला में गुँथकर प्रेमिका को रिझाने की है। वह कहता है कि हे ईश्वर! मेरी यह भी अभिलाषा नहीं है कि मैं सम्राटों के पार्थिव शरीर पर चढ़ाया जाऊँ और न ही मेरी इच्छा देवों के मस्तक पर सुशोभित होकर गर्व से इठलाने की है। वह कहता है कि मेरी तो केवल यही इच्छा है कि हे वनमाली! तुम मुझे उस पथ पर बिखेर देना, जिससे हमारी मातृ-भूमि के रक्षक, वीर सैनिक गुजरें। मैं उनके चरणों के स्पर्श से ही स्वयं को सौभाग्यशाली व गौरवान्वित अनुभव करूंगा, क्योंकि उनके चरणों का स्पर्श ही देश के बलिदानी वीरों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि है।



काव्य सौन्दर्य


काव्यांश में पुष्प की अभिलाषा मुखरित हुई है। वह भी अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान होने का भाव प्रकट कर रहा है।


भाषा           सरल खड़ी बोली 



शैली         प्रतीकात्मक, आत्मपरक तथा भावात्मक


गुण          ओज


छन्द        तुकान्त मुक्त



शब्द-शक्ति         अभिधा एवं लक्षणा


अलंकार 


अनुप्रास अलंकार 'चाह नहीं', 'प्रेमी-माला', 'लेना बनमाली' और 'जिस पथ जायें वीर' में क्रमशः 'ह', 'म', 'न' और 'व' वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।



                    जवानी


  1. पहन ले नर-मुंड-माला,उठ स्वमुंड सुमेरु कर ले, भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी, प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी!द्वार बलि का खोल चल,भूडोल कर दें,एक हिम-गिरि एक सिर, का मोल कर दें,मसल कर,अपने इरादों सी, उठा कर,दो हथेली हैं कि पृथ्वी गोल कर दें?रक्त है?या है नसों में क्षुद्र पानी! जाँच कर, तू सीस दे-देकर जवानी?




सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'काव्यखण्ड' के 'जवानी' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवि माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित 'हिमकिरीटनी' से ली गई है।


प्रसंग माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रवादी कवि हैं। 'जवानी' कविता से वे देश के युवाओं को उद्बोधित और प्रेरित करते हुए उन्हें उत्साहित कर रहे हैं कि वे देश की वर्तमान परिस्थिति को बदल दें।


व्याख्या वह कहते हैं कि यदि समर्पण की स्थिति आ जाए तो तुम देश के लिए खुद को समर्पित भी कर दो, पीछे मत हटो; जैसे- पृथ्वी हरे धानों की हरियाली से जीवन्त हो उठती है, वैसे ही युवा भी उत्साह से भर कर अपने नियत कार्य को करें। जीवन का उद्गम उनका प्राण साथ में है। अत: उस प्राणशक्ति के साथ आलस्य का त्याग करके अपने कर्त्तव्यों का पालन युवा वर्ग करें तथा आगे बढ़े।


कवि युवाओं को सम्बोधित करते हुए कह रहे हैं कि हे युवा वर्ग! तुम अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान का द्वार खोल दो। तुम चलो, आगे बढ़ो। तुम्हारे आगे बढ़ते उत्साहित कदमों में इतनी शक्ति हो कि उस पैर से पृथ्वी कम्पित हो उठे। हिमालय की रक्षा के लिए तुम सब अपने एक-एक सिर को समर्पित कर दो, अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दो। तुम्हारे इरादे (संकल्प) अत्यन्त मजबूत हो और तुम अपने इरादे रूपी हथेलियों को ऊंचे संकल्पों के समान उठाकर पृथ्वी को मसलकर गोल कर दो अर्थात् तुम अपने संकल्पों को दृढ़ करके कठिन से कठिन काम करने में सामर्थ्यवान बनो। हे वीरों! तुम अपनी युवावस्था की परख अपने शीश देकर कर सकते हो। इस बलिदानी परीक्षण से तुम्हें यह भी ज्ञात हो जाएगा कि तुम्हारी धमनियों में शक्तिशाली रक्त दौड़ रहा है अथवा उनमें केवल शक्तिहीन पानी ही भरा हुआ है।



काव्य सौन्दर्य


भाषा      शुद्ध परिमार्जित खड़ी बोली


गुण       ओज


छन्द       तुकान्त मुक्त


शैली         भावात्मक, उद्बोधन


रस                वीर


शब्द-शक्ति।        व्यंजना



अलंकार


'स्वमुण्ड सुमेरु', 'पहन बाना', 'बलि का खोल चल' आदि में अनुप्रास अलंकार तथा अपने इरादों सी उठा कर में रूपक अलंकार है।




  1. वह कली के गर्भ से फल रूप में, अरमान आया।देख तो मीठा इरादा, किस तरह, सिर तान आया! डालियों ने भूमि रुख लटका दिए फल, देख आली! मस्तकों को दे रही संकेत कैसे, वृक्ष डाली।



सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'काव्यखण्ड' के 'जवानी' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवि माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित 'हिमकिरीटनी' से ली गई है।


प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपनी वाणी में वृक्ष और उसके फलों के माध्यम से युवकों को देश के लिए बलिदान होने की प्रेरणा प्रदान की है।



 व्याख्या कवि युवाओं को प्रकृति के माध्यम से देशहित के लिए स्वयं को समर्पित करने का आग्रह करते हुए कहते हैं कि हे वीरों! तुम अपनी युवावस्था की परख अपने शीश देकर कर सकते हों। इस बलिदानी परीक्षा से तुम्हें यह भी ज्ञात हो जाएगा कि तुम्हारी धमनियों में शक्तिशाली रक्त दौड़ रहा है अथवा उनमें केवल शक्तिहीन पानी ही भरा हुआ है। फल से लदे हुए वृक्षों की ओर देखो, जो कि पृथ्वी की ओर अपना सिर झुकाए हुए हैं। जिस प्रकार कली के भीतर से झाँकते फल कली के संकल्पों (अरमानों) को बता रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हारे हृदय से भी समर्पित हो जाने का संकल्प प्रकट हो जाना चाहिए। अर्थात् देश के युवाओं तुम्हें भी अपने भीतर देश की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प लेना होगा और दूसरों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए तत्पर रहना होगा। वृक्षों की डालियों ने भी अपने मस्तक रूपी फलों को बलिदान के लिए दे दिया है, अब तुम भी उनके इस आत्म-बलिदान की परम्परा को अपने आचरण में आत्मसात् कर लो और युग की आवश्यकतानुसार स्वयं को उसकी प्रगतिरूपी माला में गूंथते हुए आगे बढ़ते रहो।


काव्य सौन्दर्य


कवि ने युवा पीढ़ी को उनकी शक्ति व वीरता के गुणों को प्रकृति के उपादानों के माध्यम से जागृत किया है।


भाषा।        ओजपूर्ण खड़ी बोली


गुण            ओज


छन्द         तुकान्त मुक्त


शैली            उद्बोधन


रस                वीर


शब्द-शक्ति।       व्यंजना




अलंकार


अनुप्रास अलंकार 'दे-देकर', 'अरमान आया' में 'द' और 'अ' वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।



 रूपक अलंकार 'गर्भ से फल- रूप में अरमान आया' में अरमान रूपी फल का वर्णन किया गया, इसलिए यहाँ रूपक अलंकार है।



  1.  विश्व है असि का? नहीं संकल्प का है! हर प्रलय का कोण कायाकल्प का है; फूल गिरते, शूल शिर ऊँचा लिए है; रसों के अभिमान को नीरस किए हैं। खून हो जाए न तेरा देख, पानी, मरण का त्योहार, जीवन की जवानी।




सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'काव्यखण्ड' के 'जवानी' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवि माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित 'हिमकिरीटनी' से ली गई है।


प्रसंग कवि युवाओं को क्रान्ति का दूत मानते हुए उन्हें मातृभूमि के लिए आत्मोत्सर्ग की प्रेरणा दे रहा है।


व्याख्या कवि युवाओं को क्रान्ति के लिए उत्साहित करते हुए उनसे पूछता है कि क्या यह संसार तलवार का है? क्या यह संसार तलवार और अन्य हिंसक हथियारों से ही जीता जा सकता है? कवि उनको स्वयं ही उत्तर देते हुए कह रहा है कि नहीं! ऐसी बात नहीं है। संसार दृढ़ संकल्प वाले व्यक्तियों का है। इसे दृढ़ संकल्प से जीता जा सकता है। संसार की प्रत्येक प्रलय का उद्देश्य संसार में क्रान्ति और बदलाव लाना होता है। इसी प्रकार युवा वर्ग यदि किसी बात के लिए संकल्प कर लेता है तो क्रान्ति आ सकती है और परिवर्तन प्रारम्भ हो सकता है। अतः युवाओं को अपने संकल्प से क्रान्ति के लिए आगे आना चाहिए।

व्यक्ति के अन्दर जब दृढ़ संकल्पों की कमी होती है, तो उसका पतन आरम्भ हो जाता है। हवा के हल्के से झोंके से कोमल होने के कारण पुष्प जमीन पर गिर जाते हैं और अपना सौन्दर्य खो बैठते हैं, परन्तु काँटे आँधी और तूफान में भी अपना सीना गर्व से ताने खड़े रहते हैं। हे नवयुवकों! दृढ़ संकल्प से उत्पन्न आत्मोत्सर्ग की भावना कभी विचलित नहीं होती है। काँटे फूलों की कोमलता और उनके सौन्दर्य के अभिमान को अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति से नष्ट कर देते हैं। कवि युवाओं से कहता है कि हे युवा-वर्ग! तुम्हारी नसों के रक्त में जो उत्साह है, जो उष्णता है, वह जोश शीतल होकर नष्ट न हो जाए। जवानी उसी का नाम है, जो मृत्यु को त्योहार अर्थात् उल्लास का क्षण माने। मरण का त्योहार अर्थात् बलिदान का दिन ही जवानी का सबसे आनन्दमय दिन होता है।


काव्य सौन्दर्य


समाज में क्रान्ति लाने के लिए दृढ़ संकल्प अति आवश्यक है। युवाओं के संकल्प फूलों के नान कोमल नहीं, बल्कि काँटों के समान कठोर होने चाहिए।


भाषा             खड़ी बोली


शैली             उद्बोधनात्मक


गुण               ओज


रस                वीर


छन्द              तुकान्त मुक्त


शब्द-शक्ति       लक्षणा एवं व्यंजना



अलंकार


रूपक अलंकार 'मरण का त्योहार' में आत्म बलिदान को उत्साह का पर्व मानने के कारण यहाँ रूपक अलंकार है।


अनुप्रास अलंकार 'शूल शिर' और 'जीवन की जवानी' में 'श', 'ज' और 'व' वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।


 कवि माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय // Makhanlal Chaturvedi ka jivan Parichay


कवि माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय // Makhanlal Chaturvedi Biography In Hindi



माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी

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 दोस्तों आज की पोस्ट में हम चर्चा करने जा रहे हैं, हिंदी साहित्य जगत के एक महान कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी की। दोस्तों यह तो सभी जानते हैं कि जब जब हिंदी साहित्य एवं खड़ी बोली के रचनाओं की बात होगी उस समय सबसे पहले जो नाम सबसे अगर पंक्ति में होगा वह नाम होगा महा कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी। माखनलाल चतुर्वेदी जी एक ऐसा नाम जिसने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का ऐसा रस आम जनमानस में घोला कि आज नैतिक शिक्षा, नैतिकता  की रसमयी काव्य धारा केवल हिंदुस्तान में ही नहीं अपितु समस्त विश्व में बह रही है। दोस्तों यदि यह पोस्ट आप लोगों को पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में अधिक से अधिक शेयर करिएगा।



जीवन परिचय (Jivan Parichay)



माखनलाल चतुर्वेदी



जीवन परिचय : एक दृष्टि में



नाम

माखनलाल चतुर्वेदी

जन्म

सन 1889 ई. में

जन्मस्थान

मध्य प्रदेश राज्य के बाबई (होशंगाबाद जिले में)

मृत्यु

30 जनवरी, सन 1968 ई. में।

पिताजी का नाम

पंडित नंदलाल चतुर्वेदी

माता जी का नाम

सुंदरीबाई

संपादन

प्रभा, कर्मवीर

भाषा

खड़ी बोली

शैली

ओजपूर्ण भावात्मक

रचनाएं

युगचरण, समर्पण, हिमकिरीटनी इत्यादि

उपलब्धियां

हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष, पदम विभूषण की उपाधि एवं भारतीय आत्मा के रूप में प्रसिद्धि से विभूषित।

व्यवसाय

लेखक, साहित्यकार, कवि एवं पत्रकार

लेख

हिम कीर्तिनी, साहित्य देवता, हिम तरंगिणी और वेणु लो गूंजें धरा

साहित्य का प्रकार

  नव छायाकार

सम्मान

मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा देश के श्रेष्ठ कवियों को माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार दिया जाता है।




उनके नाम पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भी है।




उनके नाम पर पोस्टेज स्टांप जारी किए गए।

शिक्षा

प्राथमिक शिक्षा के बाद घर पर ही अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, गुजराती भाषा का अध्ययन

पत्नी का नाम

ज्ञात नहीं है।



जीवन परिचय- राष्ट्रीय हित को ही अपना परम लक्ष्य मान लेने वाले तथा क्रांति के अमर गायक माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 1889 ईसवी में मध्यप्रदेश के बाबई नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था, जो पेशे से अध्यापक थे। प्राथमिक शिक्षा प्राप्ति के बाद माखनलाल चतुर्वेदी ने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया और कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद इन्होंने खंडवा से 'कर्मवीर' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला।



वर्ष 1913 में ये प्रसिद्ध मासिक पत्रिका 'प्रभा' के संपादक नियुक्त हुए। द्विवेदी जी ने कई बार राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया। इससे इन्हें अनेक बार जेल की यात्राएं करनी पड़ीं। वर्ष 1943 में ये हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बने। भारत सरकार द्वारा इन्हें पदम विभूषण की उपाधि प्रदान की गई। 80 वर्ष की आयु में इस महान साहित्यकार का निधन 30 जनवरी, 1968 को हो गया।



साहित्यिक परिचय- पत्रकारिता से अपना साहित्यिक जीवन शुरू करने वाले माखनलाल चतुर्वेदी जी की रचनाओं में देश-प्रेम की भावना सशक्त रूप में विद्यमान थीं।


इन्होंने अपने निजी संघर्षों, वेदनाओं और यातनाओं को अपनी कविता के माध्यम से व्यक्त किया। चतुर्वेदी जी आजीवन देश-प्रेम और राष्ट्र कल्याण के गीत गाते रहे। राष्ट्रवादी विचारधारा वाले इनके काव्यों में त्याग, बलिदान, कर्तव्य-भावना और समर्पण के भाव समाए हुए हैं।



रचनाएं- 


चतुर्वेदी जी की कृतियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैं-



काव्य संग्रह- युग चरण, समर्पण, हिमकिरीटनी, वेणु लो गूंजें धरा।



स्मृतियां- संतोष, बंधन-सुख



कहानी संग्रह- कला का अनुवाद



निबंध संग्रह- साहित्य देवता



नाट्य रचना- कृष्णार्जुन युद्ध



इनकी 'हिमतरंगिणी' साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत रचना है।



भाषा शैली-  चतुर्वेदी जी ने अपनी काव्य रचनाओं में ओजपूर्ण भावात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसमें छायावादी लाक्षणिकता परिलक्षित होती है।


इनकी कविताओं में कल्पना की ऊंची उड़ान के साथ-साथ भावों की तीव्रता भी दृष्टिगोचर होती है।



हिंदी साहित्य में स्थान - राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत माखनलाल चतुर्वेदी जी की रचनाएं हिंदी साहित्य की अक्षय-निधि हैं, जिन पर हिंदी साहित्य प्रेमियों को गौरव की अनुभूति होती है। वे हिंदी साहित्य में अत्यंत ऊंचा स्थान रखते हैं।



माखनलाल चतुर्वेदी का कैरियर ( Profession of Makhanlal Chaturvedi ) 


1910 में अध्यापन का कार्य छोड़ने के बाद माखनलाल राष्ट्रीय पत्रिकाओं में संपादक का काम देखने लगे थे। उन्होंने प्रभा और कर्मवीर नाम की राष्ट्रीय पत्रिकाओं में संपादन का काम किया। माखनलाल ने अपनी लेखन शैली से देश के एक बहुत बड़े वर्ग में देश प्रेम भाव को जागृत किया। उनके भाषण भी उनके लेखों की तरह ही ओजस्वी और देश प्रेम से ओतप्रोत होते थे। उन्होंने 1943 में अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की उनकी कई रचनाएं तब देश के युवाओं में जोश भरने और उन्हें जागृत करने के लिए बहुत सहायक सिद्ध हुई।



माखनलाल चतुर्वेदी अवॉर्ड्स और सम्मान



1 . माखनलाल चतुर्वेदी को 1955 में साहित्य अकैडमी का अवार्ड जीतने वाले पहले व्यक्ति बने।



2. हिंदी साहित्य में अभूतपूर्व योगदान देने के कारण ही पंडित जी को 1959 में सागर यूनिवर्सिटी से डी. लिट की उपाधि भी प्रदान की गई।



3. 1963 में माखनलाल चतुर्वेदी को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपूर्व योगदान के कारण पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।



धरोहर 




माखनलाल चतुर्वेदी के साहित्य की विधा में दिए योगदान के सम्मान में बहुत से यूनिवर्सिटी ने विविध अवॉर्ड्स के नाम उनके नाम पर रखे। मध्य प्रदेश सांस्कृतिक काउंसिल द्वारा नियंत्रित मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी देश की किसी भी भाषा में योग्य कवियों को माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार देती है। पंडित जी के देहांत के 19 वर्ष बाद 1987 से यह सम्मान देना शुरू किया गया। 



भोपाल मध्य प्रदेश में स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय पूरे एशिया में अपने प्रकार का पहला विश्वविद्यालय है इसकी स्थापना पंडित जी के राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता और लेखन के द्वारा दिए योगदान को सम्मान देते हुए 1991 में हुई। भारत के पोस्ट और टेलीग्राम डिपार्टमेंट ने भी पंडित माखनलाल चतुर्वेदी को सम्मान देते हुए पोस्टेज स्टांप की शुरुआत की। यह स्टांप पंडित जी के 88वे जन्मदिन 4 अप्रैल 1977 को जारी हुआ।




माखनलाल चतुर्वेदी जी की रचनाएं - 



1.समय के पांव


2.गरीब इरादे अमीरी इरादे


3.हिम तरंगिणी


4.युग चार 


5.बीजुरी


6.काजल


7.साहित्य के देवता





महान कवि माखनलाल चतुर्वेदी के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य



मध्य प्रदेश के महान साहित्यकार श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म कहां हुआ था?


राष्ट्रीय हित को ही अपना परम लक्ष्य मान लेने वाले तथा क्रांति के अमर गायक माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 1889 ईसवी में मध्यप्रदेश के बाबई नामक ग्राम में हुआ था।



माखनलाल चतुर्वेदी का उपनाम क्या है?


माखनलाल चतुर्वेदी सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे हिंदी रचनाकार थे। उन्हें एक भारतीय आत्मा उपनाम से भी जाना जाता है।



माखनलाल चतुर्वेदी जी की मृत्यु कब हुई?


माखनलाल चतुर्वेदी जी की मृत्यु 80 वर्ष की आयु में इस महान साहित्यकार का निधन 30 जनवरी, 1968 को हो गया।



माखनलाल चतुर्वेदी के माता-पिता का क्या नाम था?


जीवनी श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम नंद लाल चतुर्वेदी था जो गांव के एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। तथा इनकी माता का नाम सुंदरबाई था।



एक भारतीय आत्मा के नाम से कौन प्रसिद्ध है?


एक भारतीय आत्मा उपनाम से माखनलाल चतुर्वेदी जी प्रसिद्ध है।



हिंदी के कवि कौन है?


हिंदी भाषा के प्रथम कवि सिद्ध सरपहा को कहा जाता है। हिंदी के प्रथम कवि सर पास राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी का प्रथम कवि जैन साहित्य के रचयिता सरकार को माना है जिनका जन्म काल आठवीं सदी माना जाता है। परंतु हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी का प्रथम कवि अब्दुल रहमान को माना है यह मुल्तान के निवासी और जाति के जुलाहे थे।



माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म स्थान क्या है?


मध्यप्रदेश के बाबई नामक ग्राम में हुआ था।



माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म कब और कहां हुआ था और मृत्यु कब हुई?


राष्ट्रीय हित को ही अपना परम लक्ष्य मान लेने वाले तथा क्रांति के अमर गायक माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 1889 ईसवी में मध्यप्रदेश के बाबई नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था, जो पेशे से अध्यापक थे। प्राथमिक शिक्षा प्राप्ति के बाद माखनलाल चतुर्वेदी ने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया और कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद इन्होंने खंडवा से 'कर्मवीर' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला।


वर्ष 1913 में ये प्रसिद्ध मासिक पत्रिका 'प्रभा' के संपादक नियुक्त हुए। द्विवेदी जी ने कई बार राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया। इससे इन्हें अनेक बार जेल की यात्राएं करनी पड़ीं। वर्ष 1943 में ये हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बने। भारत सरकार द्वारा इन्हें पदम विभूषण की उपाधि प्रदान की गई। 80 वर्ष की आयु में इस महान साहित्यकार का निधन 30 जनवरी, 1968 को हो गया।



माखनलाल चतुर्वेदी चतुर्वेदी का साहित्य में स्थान क्या था?


राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत माखनलाल चतुर्वेदी जी की रचनाएं हिंदी साहित्य की अक्षय-निधि हैं, जिन पर हिंदी साहित्य प्रेमियों को गौरव की अनुभूति होती है। वे हिंदी साहित्य में अत्यंत ऊंचा स्थान रखते हैं।



माखनलाल चतुर्वेदी की भाषा शैली क्या थी?


चतुर्वेदी जी ने अपनी काव्य रचनाओं में ओजपूर्ण भावात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसमें छायावादी लाक्षणिकता परिलक्षित होती है।


इनकी कविताओं में कल्पना की ऊंची उड़ान के साथ-साथ भावों की तीव्रता भी दृष्टिगोचर होती है।



माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाएं बताइए?


चतुर्वेदी जी की कृतियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैं-



काव्य संग्रह- युग चरण, समर्पण, हिमकिरीटनी, वेणु लो गूंजें धरा।



स्मृतियां- संतोष, बंधन-सुख



कहानी संग्रह- कला का अनुवाद



निबंध संग्रह- साहित्य देवता



नाट्य रचना- कृष्णार्जुन युद्ध



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