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रस किसे कहते हैं? रस की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण बिल्कुल सरल भाषा में/Ras kise kahte hai paribhasha udaharan sahit

 रस किसे कहते हैं? रस की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण बिल्कुल सरल भाषा में


Ras kise kahte hai paribhasha udaharan sahit



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रस किसे कहते हैं?


रस हमारे अंदर के भाव Emotions को कहते हैं। रस यानी हमारे अंदर छुपे हुए ऐसे भाव होते हैं जिन्हें हम हर दिन अलग-अलग तरीके से व्यक्त करते रहते हैं।


इन्हीं रस के वजह से हर इंसान अपने अंदर के भाव को प्रगट करके दूसरों के सामने रखता है जिससे सामने वालों को पता चलता है असल में वह क्या कहना चाहता है या उसका उद्देश्य क्या है।रस को  किसी भाषा की जरूरत नहीं होती अपने चेहरे के भाव से यह प्रगट होते  रहते हैं।


रस के कितने अंग होते हैं


रस के चार अंग है और हर एक का अलग ही महत्व है।


1 विभाव 


2 अनुभाव

 

3 स्थाई भाव


4 संचारी भाव


रस कितने प्रकार के होते हैं


रस एक प्रकार के होते हैं इसलिए उन्हें नवरस  भी कहा जाता है। इन्हें अपनी जिंदगी के साथ साथ एक्टिंग और डांस में भी बहुत महत्व है नवरस मतलब जो एक इमोशंस है वह कौन से हैं, नौ रसों के नाम से बारे में हम अभी विस्तार से पड़ेंगे इन्हें नवरस के जरिए लोग अंदाजा लगाते हैं कि आपका Character कैसा है।


रस के प्रकार और स्थाई भाव


1.श्रृंगार रस का स्थाई भाव  -  रति



2 हास्य रस का स्थाई भाव - हास



3 करूणा रस का स्थाई भाव - शोक



रौद्र रस का स्थाई भाव - क्रोध


 


5 वीर रस का स्थाई भाव - उत्साह



वीभत्स रस का स्थाई भाव - जुगुप्सा



7 भयानक रस का स्थाई भाव - भय



8 अद्भुत रस रस का स्थाई भाव - विस्मय



9 शांत रस का स्थाई भाव - निर्वेद



10 वात्सल्य रस का स्थाई भाव - वत्सल्य




1 श्रृंगार रस श्रृंगार रस को रसराज और रसपति पिक आ जाता है। नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित प्रेम या प्रति जब रस की अवस्था को पहुंचकर आस्वादन के योग हो जाता है तो वह श्रृंगार रस कहलाता है।


सरल शब्दों में बताएं तो श्रृंगार रस की प्रेम समझना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का प्यार जताने का तरीका अलग अलग होता है।


यदि आप अपने माता पिता को प्रेम जता रहे हैं तो आपका प्यार का तरीका अलग होगा और यदि आप अपने पति या पत्नी को प्यार जता रहे हैं तो उसका तरीका बिल्कुल अलग होगा श्रृंगार रस को समझने के लिए सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि आप किस व्यक्ति के प्रति अपना प्यार जता रहे हैं। 


मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।

 जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।


2 हास्य रस  लोगों को हंसाना बहुत ही मुश्किल काम है एक्टिंग की दुनिया में खुद सामने वाले ऑडियंस को हासाना  वह भी आसान काम नहीं होता है एक एक्टर को ऑडियंस को हंसाने के लिए बहुत ही ज्यादा presence of Mind और Sense of हुनर होना जरूरी है


हास रस इसमें ऐसी सिचुएशन होते हैं जिसमें हंसी की बात ज्यादा होती है अगर कोई आपका दोस्त आपसे पूछता है कि कैसा है और आप भी हंसी मजाक में ही उसका जवाब देंगे एकदम मस्त हूं यार यह अलग तरीके की हंसी होती है।


''मैं यह तोही मैं लाखी भगति अपूरब बाल ।

 लाही प्रसाद माला जु भौ  तनु कदम्य की माल'।।


3.करुण रस  सहृदय हृदय में स्थित अशोक नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ सहयोग होता है उसे करुण रस कहते हैं।


सब बंघुन उनको सोच ताजी-ताजी गुरुकुल को नेह।

हां सुशील सूत! किमी कियो अंनत लोक में गेह।।


4.वीर रस सहृदय के हृदय में स्थित उत्साह नामक स्थाई भाव का जब विभव अनुभव और संचारी भाव के साथ सहयोग होता है उसे वीर रस कहते हैं।


सहृदय बलि का खोल, चल,भूडोल कर दे।


एक हिम गिरी एक्सर का मॉल करते।।


5.रौद्र रस  सहृदय के ह्रदय में स्थित क्रोध नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव से संयोग होता है उसे रौंद्र रस कहते हैं।


रे बालक ! कलवास बोलत रोही ना संभार।

 धनुहि सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार।।


6.भयानक रस सहृदय के हृदय में स्थित बैनामा की स्थाई भाव का जब भी भाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है उसे भयानक रस कहते हैं।


नभ ते झपटत बाज  लखि भूल्यो सकल प्रपंच।

 कंपित तन व्याकुल नयन, लावक के हिल्यो न रंच।।


7.अद्भुत रस सहृदय ह्रदय में स्थित आश्चर्य में स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ सहयोग होता है उसे अद्रुत रस कहते हैं।


हनुमान की पूंछ में लगन ना पाई आग।

सिग्री लंका जर गई गए निशाचर भाग।।


8.वीभत्स रस  सह्रदय ह्रदय में स्थित निर्वेद नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव संचारी भाव के साथ सहयोग होता है तो उसे वीभत्स रस कहते हैं।


''विस्टा पूय रुधिर कच हाड़ा ।

बरषइ कबहुं उपल बहु हाडा''


9.शांत रस शांत रस में अध्यात्म और मौक्ष की भावना उत्पन्न होती है जिसमें परमात्मा की वास्तविक रूप को जानकर शांति मिलती है। वह है शांत रस  का स्थाई भाव निर्वेद यानी उदासीनता होता है।


मन रे तन कागद का पुतला।

 लोगै बूंद बिनसि जाए छिन में, गरब करें क्या इतना।।


10.वात्सल्य रस - जहां से छोटे बच्चे के प्रति प्रेम, स्नेह, दुलारा आदि का प्रमुखता से वर्णन किया जाता है वहां वात्सल्य रस होता है इसका स्थाई भाव वात्सल है। सूरदास ने वात्सल्य रस का सुंदर निरूपण किया है।



बाल दसा सुख निरखी जसोदा, पुनी पुनी नंद बुलवाति अंचरा - तर लैं ढाकी सूर , प्रभु कौ दूध पियावति



                     रस किसे कहते है


काव्य को पढ़ने, सुनने या उस पर आधारित अभिनय देखने से मन में (अर्थात् सहृदय को) जो आनन्द प्राप्त होता है, उसे रस कहते हैं। रस को काव्य की आत्मा' भी कहा जाता है। भरतमुनि के अनुसार, "विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।""


रस के अवयव


रस के चार अवयव या अंग हैं-स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव तथा संचारी या व्यभिचारी भाव। इन चारों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। 


स्थायी भाव


स्थायी भाव का अर्थ है-प्रधान भाव। जो भाव मनुष्य के हृदय में सदैव स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं। स्थायी भावों की संख्या 9 मानी गई है, किन्तु बाद में आचार्यों ने दो और भावों (वात्सल्य और भक्ति रस) को स्थायी भाव मान लिया। इस प्रकार स्थायी भावों की संख्या 11 हो गई है, जो निम्न प्रकार हैं




क्र.सं

स्थायी भाव

रस

अर्थ

1.

रति/प्रेम

श्रृंगार रस

स्त्री-पुरुष का प्रेम

2

शोक

करुण रस

प्रिय के वियोग या हानि के कारण शोक भाव

3

निर्वेद

शान्त रस

संसार के प्रति उदासीन भाव


4

क्रोध

रौद्र रस

किसी कार्य की असफलता के कारण उत्पन्न भाव

5

उत्साह

वीर रस

दया, दान, वीरता आदि के सम्बन्ध में प्रसन्नता का भाव


6

हास


हास्य रस

अंगों या वाणी के विकास से उत्पन्न

उल्लास, हँसी


7

भय

भयानक रस

भयानक जीव या वस्तु को देखकर मन में उत्पन्न डर

8

जुगुप्सा/घृणा/ग्लानि

वीभत्स रस

घिनौने पदार्थ से मन में ग्लानि उत्पन्न होना; दूसरों की की जाने वाली निन्दा

9

विस्मय / आश्चर्य

अद्भुत रस

आकर्षक वस्तु देखकर मन में उत्पन्न आश्चर्य का भाव

10

वत्सलता/स्नेह

वात्सल्य रस

माता-पिता का सन्तान के प्रति प्रेम भाव


11

देव विषयक,

रति / अनुराग

भक्ति रस

ईश्वर के प्रति मन में उत्पन्न प्रेम भाव






विभाव


विभाव से अभिप्राय उन वस्तुओं, परिस्थितियों एवं विषयों के वर्णन से है, जिनके प्रति मन में किसी प्रकार का भाव या संवेदना जाग्रत होती है अर्थात् भाव के जो कारण होते हैं, उन्हें 'विभाव' कहते हैं। विभाग दो प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं


(i) आलम्बन विभाव किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के कारण किसी व्यक्ति के मन में जब कोई स्थायी भाव जाग्रत होता है, तो उस व्यक्ति या वस्तु को उस भाव का 'आलम्बन विभाव' कहते हैं।


उदाहरण यदि किसी व्यक्ति के मन में मगरमच्छ को देखकर भय का स्थायी भाव जाग्रत हो जाए, तो यहाँ मगरमच्छ उस व्यक्ति के मन में उत्पन्न भय' नामक स्थायी भाव का आलम्बन विभाव होगा।


(ii) उद्दीपन विभाव – आश्रय के मन में भाव को उद्दीप्त करने वाले विषय की बाहरी चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को 'उद्दीपन विभाव' कहते हैं। उदाहरण दुष्यन्त शिकार खेलते हुए कण्व के आश्रम में पहुँच जाते हैं। वहाँ वे शकुन्तला को देखते हैं। शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त के मन में आकर्षण या रति भाव उत्पन्न होता है। उस समय शकुन्तला की शारीरिक चेष्टाएँ दुष्यन्त के मन में रति भाव को और अधिक तीव्र करती हैं। इस प्रकार, शकुन्तला की शारीरिक चेष्टाओं को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।


अनुभाव


जहाँ विषय की बाहरी चेष्टाओं को उद्दीपन कहा जाता है, वहीं आश्रय के शारीरिक विकारों को 'अनुभाव' कहते हैं। अनु का अर्थ है-पीछे अर्थात् बाद में स्थायी भाव के उत्पन्न होने पर उसके पश्चात् जो भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें अनुभाव कहा जाता है। अनुभावों के चार भेद होते हैं


1. कायिक शरीर की बनावटी (कृत्रिम) चेष्टा को कायिक अनुभाव कहते हैं।


2. मानसिक हृदय की भावना के अनुकूल मन में आनन्द, सुख, दुःख या मस्तिष्क में तनाव आदि से उत्पन्न होने वाले भाव, मानसिक अनुभाव कहलाते हैं। 


3. आहार्य मन के भावों के अनुसार अलग-अलग प्रकार की बनावटी वेश-रचना करने को आहार्य अनुभाव कहते हैं।



 4. सात्विक जो अनुभाव मन में आए भाव के कारण स्वयं प्रकट हो जाते हैं, सात्विक भाव कहलाते हैं। ऐसे शारीरिक विकारों पर आश्रय का कोई वश नहीं चलता।


सामान्यतः आठ प्रकार के सात्विक अनुभाव माने गए हैं- (i) स्तम्भ (शरीर के अंगों का जड़ हो जाना), (ii) स्वेद (पसीने-पसीने हो जाना), (iii) रोमांच (रोंगटे खड़े हो जाना), (iv) स्वर भंग (आवाज़ न निकलना), हकलाना (v) कम्प (काँपना), (vi) विवर्णता (चेहरे के रंग उड़ जाना), (vii) अश्रु (आँसू), (viii) प्रलाप (सुध-बुध खो बैठना)


संचारी या व्यभिचारी भाव


स्थायी भाव के साथ आते-जाते रहने वाले अन्य भावों को अर्थात् मन के चंचल विकारों को 'संचारी या व्यभिचारी भाव' कहते हैं। यह भी आश्रय के मन में उत्पन्न होता है। एक ही संचारी भाव कई रसों के साथ हो सकता है। वह पानी के बुलबुले की तरह उठता और शान्त होता रहता है। उदाहरण के लिए; शकुन्तला के प्रति रति भाव के कारण उसे देखकर दुष्यन्त के


मन में मोह, हर्ष, आवेग आदि जो भाव उत्पन्न हुए, उन्हें संचारी भाव कहते हैं। 


संचारी भावों की संख्या तैंतीस (33) बताई गई है।  जो इस प्रकार हैं-(1) निर्वेद, (2) आवेग, (3) दैन्य, (4) श्रम, (5) मद, (6) जड़ता (7) उग्रता, (8) मोह. (9) विबोध, (10) स्वप्न, (11) अपस्मार (12) गर्व, (13) मरण, (14) अलसता, (15) अमर्ष, (16) निद्रा, (17) अवहित्था, (18) औसुक्य, (19) उन्माद, (20) शंका, (21) स्मृति, (22) मति, (23) व्याधि, (24) सन्त्रास, (25) लज्जा, (26) हर्ष, (27) असूया, (28) विषाद, (29) धृति, (30) चपलता, (31) ग्लानि, (32) चिन्ता (33) वितर्क ।


रस के भेद


रस के मुख्यतः ग्यारह भेद होते हैं-शृंगार, करुण, शान्त, रौद्र, वीर, हास्य भयानक, वीभत्स, अद्भुत, वात्सल्य, भक्ति आदि।


हास्य रस


किसी पदार्थ या व्यक्ति की आकृति, वेशभूषा, चेष्टा आदि को देखकर सहृदय में जो विनोद का भाव जाग्रत होता है, उसे हास कहा जाता है। यही हास जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से पुष्ट हो जाता है, तो उसे 'हास्य रस' कहा जाता है।


उदाहरण


"गोपियाँ कृष्ण को बाला बना, वृष भावन के भवन चली मुसकाती वहाँ उनको निज सजनि बता,

रहीं उसके गुणों को बतलातीं। स्वागत में उठ राधा ने ज्यों, निज कंठ लगाया तो वे थीं ठठातीं

'होली है, होली है' कहके भी सब भेद बताकर खूब हँसाती।"


उपरोक्त उदाहरण में, कृष्ण का गोपी रूप धारण करना आलम्बन है तथा गोपियाँ आश्रय हैं। होली के त्योहार का वातावरण उद्दीपन विभाव है। गोपियों का हँसना, मुस्काना, कृष्ण की चेष्टाएँ अनुभाव हैं तथा लज्जा, हर्ष, चपलता आदि संचारी भाव हैं।


करुण रस


जब प्रिय व्यक्ति या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब 'करुण रस' जाग्रत होता है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के मेल से शोक स्थायी भाव का जन्म होता है।


उदाहरण


"मेरे हृदय के हर्ष हा! अभिमन्यु अब तू है कहाँ?”


उपरोक्त उदाहरण में, द्रौपदी अभिमन्यु की मृत्यु के दुःख में डूबी हुई हैं। यहाँ द्रौपदी आश्रय है, अभिमन्यु का मृत शरीर आलम्बन है तथा शोकाकुल वातावरण उद्दीपन है। रोना, विलाप करना अनुभाव है। द्रौपदी का अभिमन्यु को याद करना, बीच-बीच में जड़ा (स्थिर) हो जाना इत्यादि संचारी भाव हैं। इस प्रकार यहाँ 'शोक' स्थायी भाव के कारण करुण रस की उत्पत्ति हुई है।


                  


                   प्रश्न – उत्तर



प्रश्न 1. हास्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।


अथवा


 हास्य रस की परिभाषा लिखिए तथा उसका एक उदाहरण दीजिए।


 अथवा


 हास्य रस का स्थायी भाव लिखिए तथा एक उदाहरण बताइए।



अथवा हास्य रस की परिभाषा लिखते हुए एक उदाहरण दीजिए। 


 उत्तर परिभाषा किसी पदार्थ या व्यक्ति की असाधारण आकृति, वेशभूषा, चेष्टा आदि को देखकर सहृदय में जो विनोद का भाव जाग्रत होता है, उसे हास कहा जाता है। यही हास जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से पुष्ट हो जाता है, तो उसे 'हास्य रस' कहा जाता है। 



उदाहरण "नाना वाहन नाना वेषा। विंहसे सिव समाज निज देखा।

कोउ मुखहीन, बिपुल मुख काहू। बिन पद-कर कोउ बहु पदबाहू।।"


स्पष्टीकरण


1. स्थायी भाव।      हास


 2. विभाव


(i) आलम्बन विभाव शिव समाज


(ii) आश्रयालम्बन स्वयं शिव


(iii) उद्दीपन  विचित्र वेशभूषा 


3. अनुभाव शिवजी का हँसना


4. संचारी भाव रोमांच, हर्ष, चापल्य अत: यहाँ 'हास्य रस' की निष्पत्ति हुई है।


प्रश्न 2. करुण रस की परिभाषा/लक्षण उदाहरण सहित लिखिए।


अथना 


करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए। 


अथना 


करुण रस की परिभाषा लिखिए एवं उसका एक उदाहरण भी दीजिए।


अथना 

करुण रस को परिभाषित करते हुए उसका एक उदाहरण दीजिए।


अथवा 


करुण रस का स्थायी भाव लिखिए और एक उदाहरण भी दीजिए। 


अथना 


करुण रस का स्थायी भाव बताते हुए एक उदाहरण दीजिए।


 उत्तर परिभाषा प्रिय व्यक्ति या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है। इसमे विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के संयोग से शीक स्थायी भाव का संचार होता है। 


उदाहरण


"अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल।।हाय रुक गया यहीं संसार,बना सिन्दूर अनल अंगार वातहत लतिका यह सुकुमार, पड़ी है छिन्नाधार!"


स्पष्टीकरण


1. स्थायी भाव शोक


 2. विभाव


(i) आलम्बन विभाव मृत पति


 (ii) आश्रयालम्बन नवविवाहित विधवा


(iii) उद्दीपन मुकुट का बँधना, हल्दी के हाथ होना, लाज के बोल न खुलना। 


3. अनुभाव वायु से आहत लता के समान नायिका का बेसहारा और बेसुध पड़े रहना।


 4. संचारी भाव दैन्य, स्मृति, जड़ता, विषाद आदि।


इस प्रकार यहाँ 'करुण रस' की अभिव्यक्ति हुई है। 



प्रश्न 3. निम्नलिखित में प्रयुक्त रस को पहचानकर लिखिए।


"बिन्ध्य के बासी उदासी तपोव्रतधारि महा बिनु नारि दुखारे। गौतमतीय तरी तुलसी, सो कथा सुनि भै मुनिबृन्द सुखारे ।।है हैं सिला सब चन्द्रमुखी, परसे पद-मंजुल-केज तिहारे।कीन्हीं भली रघुनायक जू करुना करि कानन को पगु धारे।।” 


उत्तर प्रस्तुत पद में हास्य रस है।


 स्पष्टीकरण


1. स्थायी भाव हास


2. विभाव


(i) आश्रयालम्बन पाठक


(ii) आलम्बन विन्ध्य के उदास वासी


(iii) उद्दीपन गौतम की स्त्री का उद्धार, स्तुति करना, अहिल्या की कथा सुनना, राम के आगमन पर प्रसन्न होना।


3. अनुभाव हँसना, मुनियों की कथा आदि सुनना। 


4. संचारी भाव हर्ष, स्मृति आदि।

अतः यहाँ 'हास्य रस' की निष्पत्ति हुई है।



प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त रस का उल्लेख कीजिए


 अथवा 


निम्नलिखित पद्यांश में कौन-सा रस है? उसका नाम और स्थायी भाव लिखकर उस रस की परिभाषा लिखिए।


"हॉस-हॉस भाजै देखि दूलह दिगम्बर को, पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में।"


अथवा


 "सीस पर गंगा हँसै, भुजनि भुजंगा हँसै, हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में।।




उत्तर प्रस्तुत पंक्तियों में 'हास्य रस' है तथा इसका स्थायी भाव 'हास' है।


 परिभाषा किसी पदार्थ या व्यक्ति की असाधारण आकृति, वेशभूषा, चेष्टा आदि को देखकर सहृदय के मन में जो विनोद का भाव जाग्रत होता है, उसे 'हास' कहा जाता है। यही हास जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से पुष्ट हो जाता है, तो उसे 'हास्य रस' कहा जाता है।


प्रश्न 5. निम्नलिखित पद्यांश में कौन-सा रस है? उस रस का नाम तथा परिभाषा लिखिए।


हा! वृद्धा के अतुल धन हा! वृद्धता के सहारे!

हा! प्राणों के परम प्रिय हा! एक मेरे दुलारे!”


उत्तर उपरोक्त पद्यांश में 'करुण रस' है। इसका स्थायी भाव 'शोक' है।


परिभाषा जब प्रिय या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब करुण रस की निष्पत्ति होती है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के मेल से शोक स्थायी भाव का संचार होता है। 



प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।


(i) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फन करिबर कर हीना।। अस मम जिवन बन्धु बिन तोही। जौ जड़ दैव जियावै मोही।।



(ii) राम-राम कहि राम कहि, राम-राम कहि राम।


तन परिहरि रघुपति विरह, राउ गयउ सुरधाम ।।


(iii) चहुँ दिसि कान्ह-कान्ह कहि टेरत, अँसुवन बहत पनारे। 


(iv) हे खग-मृग हे मधुकर श्रेनी! तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।।


(v) मम अनुज पड़ा है चेतनाहीन होके, तरल हृदयवाली जानकी भी नहीं है। अब बहु दुःख से अल्प बोला न जाता, क्षणभर रह जाता है न उद्विग्नता से।।


(vi) तात तात हा तात पुकारी परे भूमितल व्याकुल भारी ।। चलन न देखन पायउँ तोही। तात न रामहि सौंपेउ मोही।।


(vii) जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेही न बिलोकी भूली ।। पुनि-पुनि मुनि उकसहि अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसुकाहीं।।


उत्तर


(i) रस - करुण


स्थायी भाव – शोक


(ii) रस – करुण 


स्थायी भाव – शोक


(iii) रस  – करुण


 स्थायी भाव – शोक



(iv) रस   – करुण


स्थायी भाव – शोक



(v) रस  - करुण

स्थायी भाव – शोक



(vi) रस - करुण

स्थायी भाव – शोक


(vii) रस  –   हास्य


स्थायी भाव –हास


प्रश्न. निम्नलिखित में से किसी एक रस के स्थायी भाव के साथ उसकी परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए- शृंगार, वीर, करुण, हास्य, शान्त।




              श्रृंगार रस 


अर्थ- सहृदय नायक-नायिका के चित्त में रति नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग होता है तो वह शृंगार रस का रूप धारण कर लेता है। इस रस के दो भेद होते हैं


संयोग और वियोग, जिन्हें क्रमशः सम्भोग और विप्रलम्भ भी कहते हैं।


संयोग शृंगार  –संयोग-काल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को संयोग शृंगार कहा जाता है। 


उदाहरण


कौन हो तुम वसन्त के दूत विरस पतझड़ में अति सुकुमार; घन तिमिर में चपला की रेख

तपन में शीतल मन्द बयार! - प्रसाद: कामायनी 



इस प्रकरण में रति स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव है-श्रद्धा (विषय) और मनु (आश्रय)। उद्दीपन विभाव है-एकान्त प्रदेश, श्रद्धा की कमनीयता, कोकिल-कण्ठ और रम्य परिधान संचारी भाव है— आश्रय मनु के हर्ष, चपलता, आशा, उत्सुकता आदि भाव। इस प्रकार विभावादि से पुष्टि रति स्थायी भाव संयोग शृंगार रस की दशा को प्राप्त हुआ है।




वियोग शृंगार – जिस रचना में नायक एवं नायिका के मिलन का अभाव रहता है और विरह का वर्णन होता है, वहाँ वियोग शृंगार होता है।


 उदाहरण


मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले जाके आये न मधुवन से औ न भेजा सँदेशा। मैं रो-रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ जा के मेरी सब दुख-कथा श्याम को तू सुना दे ।।


- हरिऔध: प्रियप्रवास 


इस छन्द में विरहिणी राधा की विरह-दशा का वर्णन किया गया है। रति स्थायी भाव है। राधा आश्रय और श्रीकृष्ण आलम्बन विभाव है। शीतल, मन्द पवन और एकान्त उद्दीपन विभाव है। स्मृति, रुदन, चपलता, आवेग, उन्माद आदि संचारियों से पुष्ट श्रीकृष्ण से मिलन के अभाव में यहाँ वियोग शृंगार रस का परिपाक हुआ है।




वीर रस


अर्थ- -उत्साह की अभिव्यक्ति जीवन के कई क्षेत्रों में होती है। शास्त्रकारों ने मुख्य रूप से ऐसे चार क्षेत्रों का उल्लेख किया है - युद्ध, धर्म, दया और दान। अतः इन चारों को लक्ष्य कर जब उत्साह का भाव जाग्रत और पुष्ट होता है तब वीर रस उत्पन्न होता है। उत्साह नामक स्थायी भाव; विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से वीर रस की दशा को प्राप्त होता है। 


उदाहरण


साजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धारि, सरजा सिवाजी जंग जीनत चलत हैं।भूषन भनत नाद बिहद नगारन के,

नदी नद मद गैबरन के रलत हैं।


स्पष्टीकरण प्रस्तुत पद में शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रयाण का चित्रण है। 'शिवाजी के हृदय का उत्साह' स्थायी भाव है। 'युद्ध को जीतने की इच्छा' आलम्बन है। 'नगाड़ों का बजना' उद्दीपन है। 'हाथियों के मद का बहना' अनुभाव है तथा 'उग्रता' संचारी भाव है।



करुण रस


अर्थ -बन्धु - विनाश, बन्धु - वियोग, द्रव्य-नाश और प्रेमी के सदैव के लिए बिछड़ जाने से करुण रस उत्पन्न होता है। शोक नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से करुण रस दशा को प्राप्त होता है। 


उदाहरण


क्यों छलक रहा दुःख मेरा ऊषा की मृदु पलकों में, हाँ! उलझ रहा सुख मेरा सन्ध्या की घन अलकों में।


 – ‘आँसू' से


स्पष्टीकरण- प्रस्तुत पद में कवि के अपनी प्रेयसी के विरह में रुदन का वर्णन किया गया है। इसमें 'कवि के हृदय का शोक' स्थायी भाव है। यहाँ प्रियतमा आलम्बन है तथा प्रेमी (कवि) आश्रय है। कवि के हृदय के उद्गार अनुभाव हैं। के अन्धकाररूपी केशपाश तथा सन्ध्या उद्दीपन हैं। अश्रुरूपी प्रातःकालीन ओस की बूँदें संचारी भाव हैं। इस सबसे पुष्ट शोक नायक स्थायी भाव करुण रस की दशा को प्राप्त हुआ है।


वियोग शृंगार तथा करुण रस में अन्तर—वियोग शृंगार तथा करुण रस में मुख्य अन्तर प्रियजन के वियोग का है। वियोग शृंगार में बिछड़े हुए प्रियजन से पुन: मिलन की आशा बनी रहती है, परन्तु करुण रस में इस प्रकार के मिलन की कोई सम्भावना नहीं रहती।



हास्य रस


अर्थ-अपने अथवा पराये के परिधान (वेशभूषा), वचन अथवा क्रियाकला आदि से उत्पन्न हुआ हास नामक स्थायी भाव; विभाव, अनुभाव और संचार भावों के संयोग से हास्य रस का रूप ग्रहण करता है। 


उदाहरण


नाना वाहन नाना वेषा। विहसे सिव समाज निज देखा । कोउ मुखहीन, बिपुल मुख काहु। बिन पद-कर कोउ बहु पदबाहु।।

 - तुलसी : श्रीरामचरितमानस


स्पष्टीकरण शिव-विवाह के समय की ये पंक्तियाँ हास्यमय उक्ति हैं। इस उदाहरण में स्थायी भाव 'हास' का आलम्बन शिव-समाज है, आश्रय शिव स्वयं हैं, उद्दीपन विचित्र वेशभूषा है, अनुभाव शिवजी का हँसना है तथा रोमांच, हर्ष, चापल्य आदि संचारी भाव हैं। इनसे पुष्ट हुआ हास नामक स्थायी भाव हास्य रस की अवस्था को प्राप्त हुआ है।




शान्त रस


अर्थ-संसार की निस्सारता तथा इसकी वस्तुओं की नश्वरता का अनुभव करने से ही चित्त में वैराग्य उत्पन्न होता है। वैराग्य होने पर शान्त रस की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार निर्वेद नामक स्थायी भाव; विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से शान्त रस का रूप ग्रहण करता है।


 उदाहरण


अब लौं नसानी अब न नसैहौं । राम कृपा भव निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं । पायो नाम चारु चिंतामनि उरकर तें न खसैहौं । श्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचर्नाह कसैहौं ॥ परबस जानि हँस्यों इन इन्द्रिन निज बस है न हँसैहौं । मन मधुकर पन करि तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं ।


- तुलसी : विनय पत्रिका


स्पष्टीकरण–यहाँ 'निर्वेद' स्थायी भाव है। सांसारिक असारता और इन्द्रियों द्वारा उपहास उद्दीपन है। स्वतन्त्र होने तथा राम के चरणों में रति का कथन अनुभाव है। धृति, वितर्क, मति आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट निर्वेद शान्त रस को प्राप्त हुआ है।



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