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Social Science class 10 up board


यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान ncert किताब का सम्पूर्ण हल












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यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान


  अध्याय 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय


सामाजिक विज्ञान के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर


Up board Class 10 Social Science Chapter 1




याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.यूरोप में राष्ट्रवाद के उदय के कारण ही वहाँ राजतन्त्र व साम्राज्यवाद के विरुद्ध अनेक विद्रोह और क्रांतियों हुई और यूरोप में राष्ट्र-राज्यों की स्थापना सम्भत हो सकी।



2.राष्ट्रवाद पर आधारित यूरोपीय क्रांतिकारियों के प्रयासों के दौरान फ्रांस के दार्शनिक अर्न्स्ट रेनन ने राष्ट्र के स्वरूप और राष्ट्र की विशेषताओं को अपने 

व्याख्यान के द्वारा स्पष्ट किया था।



3.राष्ट्रवाद की सबसे पहली अभिव्यक्ति 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति में हुई। फ्रांस की इस क्रांति में मध्यम वर्ग की प्रमुख भूमिका थी। फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने राष्ट्रीय भावना के विकास हेतु ऐसे अनेक कदम उठाए, जिनसे देशवासियों में एक 'सामूहिक पहचान की भावना का विकास हो सके। 



4.फ्रांस में नागरिक संहिता', जिसे नेपोलियन की संहिता' के नाम से भी जाना जाता है, का निर्माण 1804 ई. में हुआ।


5.यूरोपीय महाद्वीप में कुलीन वर्ग ही सबसे अधिक शक्तिशाली सामाजिक वर्ग था। औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप यूरोप में अनेक नवीन सामाजिक वर्गों का उदय हुआ। इनके श्रमिक वर्ग और मध्यम वर्ग की विद्रोह और क्रांतियों में विशेष भूमिका रही। 



6.  1815 ई. में ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशा जैसी वे शक्तियाँ, जिन्होंने नेपोलियन को हराया था, उनके प्रतिनिधि यूरोप के लिए एक समझौता तैयार करने हेतु वियना में मिले। 1815 ई. में आयोजित वियना शांति-संधि की अध्यक्षता ड्यूक मैटरनिख ने की थी। वियना कांग्रेस में हुई वियना संधि में फ्रांस को कमजोर करके तथा रूस, प्रशा, ऑस्ट्रिया आदि को शक्तिशाली बनाकर नेपोलियन द्वारा समाप्त किए गए राजतन्त्रों को बहाल करने का प्रयास किया गया था। इसका उद्देश्य नेपोलियन द्वारा युद्धों के दौरान किए गए बदलावों का समाप्त करना था।


7.  1815 ई. के बाद के वर्षों में क्रांतिकारियों का प्रमुख उद्देश्य उन राजतन्त्रीय व्यवस्थाओं का विरोध करना था, जो वियना कांग्रेस के बाद सामने आई थीं। इस समय अनेक क्रांतिकारी भूमिगत हो गए थे और उन्होंने अनेक गुप्त संगठन बना लिए थे।



8. इटली में क्रांतिकारी ज्युसेपे मेत्सिनी द्वारा इटली के एकीकरण हेतु प्रयास किए गए। इस उद्देश्य के लिए उसने यंग इटली' और यंग-यूरोप' नामक संगठन और उसने राजतन्त्रीय शक्तियों व रूढ़िवादी शक्तियों को हरा दिया। अपने प्रयासों से अन्ततः वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुआ मैटरनिख ने उसे हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन बताया।


9.राजतन्त्रीय रूढ़िवाद के विरुद्ध उदारवादी राष्ट्रवादियों के नेतृत्व में इटली, जर्मनी, ऑटोमन साम्राज्य, आयरलैण्ड और पोलैण्ड जैसे देशों में क्रांति की दिशा में प्रयास किए गए। पहली क्रांति: जुलाई, 1830 में फ्रांस में हुई और उसमें रूढ़िवादी ताकतों को परास्त कर दिया गया। इसके बाद लुई फिलिप की अध्यक्षता में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई। इस घटना का सारे यूरोप पर प्रभाव पड़ा और वहाँ भी विद्रोह हुए। फ्रांस के सन्दर्भ में मैटरनिख ने एक बार कहा था, जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी हो जाती है।"


10.इंग्लैण्ड के औद्योगीकरण की दृष्टि से आगे होने के कारण यूरोप के अन्य देशों के उद्योगों की परेशानियों बढ़ गयीं। दूसरी ओर कुलीन वर्ग के कारण यूरोप के किसानों की दयनीय दशा हो गयी। 1848 ई. में इन्हीं कारणों से पेरिस के लोग सड़कों पर उतर आए और उन्होंने विद्रोह कर दिया। लुई फिलिप को भागने के लिए विवश होना पड़ा और राष्ट्रीय सभा के द्वारा एक नवीन गणतन्त्र की घोषणा की गयी। 



11.1848 ई. का वर्ष 'उदारवादियों की क्रांति का वर्ष' कहलाता है।


12.इस समय फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड, ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के उदारवादी मध्यवगों द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण हेतु क्रांतिकारी प्रयास किए गए और जर्मनी में सर्व-जर्मन नेशनल एसेंबली की जीत हुई। वहाँ सेंट पॉल चर्च में 18 मई, 1848 ई. को फ्रैंकफर्ट संसद में जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों ने अपना स्थान ग्रहण किया। उनके द्वारा एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया।


13.नए जर्मन राष्ट्र के लिए सेंट पॉल चर्च में आयोजित फ्रैंकफर्ट संसद की अध्यक्षता हेतु प्रशा के राजा फ्रेडरीख विल्हेम चतुर्थ को न्योता दिया गया और उन्हें ताज पहनाने की कोशिश की गयी, परन्तु उसके द्वारा यह पेशकश अस्वीकार कर दी गयी। इससे कुलीन वर्ग और सेना का विरोध बढ़ गया और एसेंबली भंग कर दी गयी। 



14.जर्मनी में प्रशा के ऑटो वॉन बिस्मार्क द्वारा जर्मनी के एकीकरण का नेतृत्व सम्भाला गया। बिस्मार्क के नेतृत्व में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से हुए युद्धों में प्रशा की जीत हुई और जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ। इसके बाद 1871 ई. में वर्साय में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया। 18 जनवरी, 1871 ई. को वर्साय के महल के बेहद ठण्डे शीशमहल (हॉल ऑफ मिरर्स) में नए स्वतन्त्र जर्मन साम्राज्य की घोषणा हुई।



15.19वीं सदी के मध्य इटली 7 राज्यों में बैठा हुआ था। 1830 ई. के दशक में ज्युरोपे मेत्सिनी और उसके द्वारा मार्गेई नामक स्थान पर गठित एक गुप्त संगठन 'यंग इटली' के सदस्यों द्वारा इटली के एकीकरण हेतु प्रयास शुरू हुआ, परन्तु 1831 ई. और 1848 ई. में इटली में क्रांतिकारी विद्रोहियों को असफलता प्राप्त हुई। इसके बाद इटली के एकीकरण हेतु विक्टर इमेनुएल द्वितीय, उसके मंत्री कातूर और ज्युरोपेगैबॉलीने प्रयास शुरू किए और अन्ततः उन्हें अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई।


20.1707 ई. में इंग्लैण्ड तथा स्कॉटलैण्ड के बीच 'ऐक्ट ऑफ यूनियन' नामक एक समझौता हुआ था, जिसके फलस्वरूप ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन हुआ। इससे इंग्लैण्ड का स्कॉटलैण्ड पर प्रभुत्व स्थापित हुआ। आयरलैण्ड को भी बलपूर्वक यूनाइटेट किंगडम में शामिल कर लिया गया और एक नष्ट ब्रितानी राज्य का निर्माण हुआ।




 21.उन्नीसवीं शताब्दी में एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की स्मृति को बनाए रखने हेतु फ्रांस में स्वतन्त्रता और गणतन्त्र के प्रतीकों द्वारा मारीआन के रूप में जन-राष्ट्र का विचार दर्शाया गया। इसी प्रकार जर्मन राष्ट्र का प्रतीक अर्मेनिया बन गयी। उसे वीरता का प्रतीक बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहने दर्शाया गया है।



 22.1871 ई. के बाद यूरोप में गम्भीर राष्ट्रवादी तनाव का क्षेत्र बाल्कन क्षेत्र और वहाँ के निवासी स्लाव बने। बाल्कन क्षेत्र का अधिकांश क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य के अधीन थे।


23.बाल्कन क्षेत्र में तनाव के कारण इस क्षेत्र में कई युद्ध हुए और अन्ततः यही बाल्कन क्षेत्र 1914 ई. के प्रथम विश्वयुद्ध का कारण बना।





महत्त्वपूर्ण शब्दावली




निरंकुशवाद-ऐसी सरकार या शासन व्यवस्था, जिसकी सत्ता पर किसी का कोई अंकुश नहीं होता। यह केन्द्रीकृत, सैन्य बल पर आधारित और दमनकारी सरकारें होती हैं।



 कल्पनादर्श – इसे युटोपिया भी कहा जाता है। इसमें ऐसे आदर्श समाज की कल्पना की जाती है, जिसका साकार होना लगभग असम्भव होता है।


जनमत संग्रह – एक प्रत्यक्ष मतदान, जिसके माध्यम से एक क्षेत्र के समस्त लोगों से किसी प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए कहा जाता है। सढ़िवाद ऐसा राजनीतिक दर्शन, जो परम्पराओं, रिवाजों और स्थापित संस्थाओं पर बल देता है। यह तीव्र परिवर्तन की उपेक्षा करते हुए धीरे-धीरे परिवर्तन को प्राथमिकता देता है।


विचारधारा-एक विशेष प्रकार की सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि को दर्शाने वाला विचारों का समूह


नारीवाद - स्त्री-पुरुषों की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक समानता की सोच के आधार पर महिलाओं के हितों और अधिकारों का बोध कराने वाली विचारधारा नृजातीय-एक साझा, नस्ली, जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम अथवा पृष्ठभूमि, जिसे कोई समुदाय अपनी पहचान मानता है।



 उदारवाद यह लैटिन भाषा के लिवर शब्द से बना है, जिसका अर्थ है- 'आजाद। यूरोप में मध्यवर्गों के लिए इसका अर्थ या व्यक्ति के लिए आजादी या

कानूनी दृष्टि से समानता। 



 घोषणा-पत्र एक प्रकार का प्रपन्न, जिसमें किसी प्रकार की घोषणाएँ दी होती हैं। ये घोषणाऐं उस विषय से सम्बन्धित होती हैं, जिस पर यह आधारित होता है। 



राष्ट्रवाद वह भावना अथवा विचारधारा, जिसके माध्यम से जनता में राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक एकीकरण सम्भव हुआ।


प्रभुसत्ता-राष्ट्रीय विषयों पर निर्णय लेने की स्वतन्त्रता, जो पहले राजतन्त्रों के पास थी और राष्ट्र राज्यों के बनने के बाद वहाँ के नागरिकों के पास आ गयी। 



 संहिता ऐसी नियमावली, जिसमें नियमों की विस्तृत सूची होती है।


मताधिकार किसी भी विषय के निर्णय अथवा सरकार को चुनने की प्रक्रिया में जनता को प्राप्त मत देने का अधिकार।


महासंघ-छोटी-छोटी इकाइयों से बना एक बड़ा संघ। यह राज्यों अथवा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि किसी भी प्रकार की इकाइयों का हो सकता है। में 


राष्ट्र राज्य-एक ऐसा आधुनिक राज्य, जिसमें एक केन्द्रीय शक्ति की प्रभुसत्ता हो तथा उसके शासकों व नागरिकों में एक साझा पहचान का भाव हो।



 जर्मेनिया यह जर्मन राष्ट्र का रूपक थी। इसे वीरता के प्रतीक बलूत के वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहने हुए दर्शाया गया है।


मारीआन-फ्रांस में राष्ट्रीय भावना के रूपक के रूप में दर्शाई गयी एक नारी की छवि। यह ईसाइयों का लोकप्रिय नाम था और इसे सिक्कों और डाक टिकटों पर दर्शाया गया था।




महत्त्वपूर्ण तिथियाँ


• 1688 ई. -इंग्लैंड की गौरवमयी क्रांति


● 1707 ई. -इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच 'ऐक्ट ऑफ यूनियन' द्वारा 'यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन' का गठन।


• 1789 ई.-फ्रांसीसी क्रांति का आरम्भ और लुई सोलहवें के शासन का अन्त


● 1797 ई. - नेपोलियन का इटली पर हमला, नेपोलियाई युद्धों की शुरुआत


● 1801 ई.-यूनाइटेड किंगडम और आयरलैंड का मिलाप


● 1804 ई. -नेपोलियन द्वारा 'नागरिक संहिता' बनाया जाना


● 1807 ई.-ज्युसेपे मेत्सिनी का जन्म


● 1814-1815 ई.-नेपोलियन का पतन, वियना शांति संधि


● 1821 ई. -यूनानी स्वतन्त्रता संग्राम का आरम्भ


● 1830 ई. -फ्रांस की जुलाई क्रांति



● 1891 ई.-मेत्सिनी द्वारा 'यंग इटली' नामक संगठन का गठन


● 1832 ई. -यूनान एक स्वतन्त्र राष्ट्र बना


● 1848 ई. -फ्रांस की क्रांति, आर्थिक परेशानियों से ग्रस्त कारीगरों, औद्योगिक मजदूरों और किसानों की बगावत, मध्यवर्ग द्वारा संविधान व प्रतिनिध्यात्मक सरकार के गठन की माँग, इतालवी, जर्मन, मैग्यार, पोलिश, चेक आदि की राष्ट्र-राज्यों की माँग।


● 1859-1870 ई. -इटली का एकीकरण


● 1861 ई. -इमेनुएल द्वितीय इटली का शासक बना


● 1866 ई.-ऑस्ट्रिया और प्रशा के बीच युद्ध


● 1866-1871 ई. -जर्मनी का एकीकरण


● 1870 ई. -इटली के एकीकरण की प्रक्रिया पूरी होना


• 1871 ई. -जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया पूरी होना


● 1905 ई. -हैब्सबर्ग और ऑटोमन साम्राज्यों में स्लाव राष्ट्रवाद का मजबूत होना


• 1914 ई.-प्रथम विश्वयुद्ध का आरम्भ




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. इनमें से किस वर्ष में फ्रांस में नागरिक संहिता, जिसे नेपोलियन की संहिता के नाम से भी जाना जाता है, का उदय हुआ?


(क) 1800 ई.


(ख) 1802 ई.


(ग) 1804 ई.


(घ) 1806 ई.


उत्तर-(ग) 1804 ई.



प्रश्न 2.'यंग इटली सोसाइटी' का संस्थापक कौन था?



(क) गैरीबॉल्डी 


(ख) बिस्मार्क


 (ग) काबूर


(घ) मेजिनी


उत्तर-


(घ) मेजिनी


प्रश्न 3. फ्रांस में गणतंत्र की घोषणा किस वर्ष हुई?


(क) 1815 ई.


(ख) 1830 ई.


(ग) 1848 ई.


(घ) 1871 ई.


उत्तर- (ग) 1848 ई.




प्रश्न 4.निम्न में से किस संधि के फलस्वरूप यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता मिली?


(क) पेरिस की संधि


(ख) वर्साय की संधि


(ग) वियना की संधि


(घ) कुस्तुनतुनिया की संधि


उत्तर(घ) कुस्तुनतुनिया की संधि


प्रश्न 5.निम्न में से यह किसका कथन है-"जब फ्रांस छींकता है, तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है?”


(क) मैटरनिख 


(ख) कावूर 


(ग) बिस्मार्क 


(घ) मेत्सिनी


उत्तर-


(क) मैटरनिख


प्रश्न 6.फ्रांस की क्रांति हुई



(क) 1788 ई. 


(ख) 1789 ई.


(ग) 1790 ई.


 (घ) 1787 ई.


उत्तर-


(ख) 1789 ई.


प्रश्न 7.राष्ट्रवाद का प्रारम्भ जिस देश से हुआ, वह है



(क) जमनी


(ख) इटली


(ग) फ्रांस


(घ) इंग्लैण्ड


उत्तर- (ग) फ्रांस



प्रश्न 8.जर्मनी को किस वर्ष एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया गया?


(क) 1871 ई. 


(ख) 1872 ई.


 (ग) 1876 ई.


 (घ) 1880 ई.


उत्तर- (क) 1871 ई.


प्रश्न 9.जर्मनी का एकीकरण का श्रेय इनमें से किसे दिया जाता है? 


(क) ऑटो वॉन बिस्मार्क


(ख) काइजर विलियम प्रथम


(ग) हिटलर


(घ) मेत्सिनी


उत्तर-


(क) ऑटो वॉन बिस्मार्क


प्रश्न 10. नेपोलियन का सम्बन्ध किस देश से था?




(क) जर्मनी


(ख) इटली 


(ग) फ्रांस


(घ) इंग्लैंड


उत्तर-


(ग) फ्रांस


प्रश्न 11. इटली का एकीकरण किसके नेतृत्व में किया गया?


(क) ज्युसेपे गैरीबॉल्डी


(ख) ऑटो वान बिस्मार्क


(ग) नेपोलियन


(घ) विलियम प्रथम


उत्तर-


(क) ज्युसेपे गैरीबॉल्डी


प्रश्न 12.1848 की फ्रांसीसी राज्य क्रांति के फलस्वरूप


(क) निरंकुश राजतंत्र की स्थापना हुई।


(ख) सीमित राजतंत्र की स्थापना हुई।


(ग) सैन्य शासन की स्थापना हुई।


(घ) गणतंत्र की स्थापना हुई।


उत्तर


(घ) गणतंत्र की स्थापना हुई।




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. किस प्रसिद्ध फ्रांसीसी चित्रकार ने चार चित्रों की श्रृंखला बनाई?



 उत्तर- फ्रेडरिक सॉरयू ने (1848 ई. में)।



प्रश्न 2. उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में राजनीतिक एवं मानसिक जगत् भारी परिवर्तन आने के क्या कारण थे? 


उत्तर- राष्ट्र राज्य का उदय।


प्रश्न 3. निरंकुशवाद से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- एक ऐसी सरकार या शासन-व्यवस्था जिसका सत्ता पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं होता। ऐसी सरकार जनता के अनुकूल कार्य नहीं करती। ये अत्यंत केंद्रीकृत, सैन्य बल पर आधारित और दमनकारी सरकारें होती थीं।


प्रश्न 4. जर्मनी के एकीकरण में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान किसका था? जर्मन राष्ट्र का प्रथम सम्राट कौन घोषित किया गया? 


 उत्तर- जर्मनी के एकीकरण में ऑटो वॉन बिस्मार्क का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान था। प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मन राष्ट्र का प्रथम सम्राट घोषित किया गया।


प्रश्न 5. जनमत संग्रह क्या है?


उत्तर- जनमत संग्रह एक प्रत्यक्ष मतदान है जिसके जरिए एक क्षेत्र के सभी लोगों से एक प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए पूछा जाता है।


प्रश्न 6. उदारवाद क्या है?


उत्तर


उदारवाद liberalism शब्द का हिंदी रूपांतरण है। liberalism शब्द लैटिन भाषा के liber पर आधारित है, जिसका अर्थ है-स्वतंत्रता। नए मध्य वर्गों के लिए उदारवाद का मतलब था-व्यक्ति के लिए आजादी और

कानून के समक्ष सबकी बराबरी।


प्रश्न 7. नृजातीय शब्द का अर्थ बताइए। 


उत्तर- एक साझा नस्ली जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम अथवा पृष्ठभूमि जिसे कोई समुदाय अपनी पहचान मानता है।




प्रश्न 8.. जर्मन राष्ट्र का रूपक क्या था? वह किस बात का प्रतीक था?


उत्तर- जर्मेनिया जर्मन राष्ट्र की रूपक थी। चाक्षुष अभिव्यक्तियों में जर्मेनिया बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है।


प्रश्न 9. नारीवाद क्या था?


उत्तर- स्त्री-पुरुष को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समानता की सोच के आधार पर महिलाओं के अधिकारों और हितों का बोध नारीवाद है।


प्रश्न 10. ऑटो वॉन बिस्मार्क को जर्मनी के एकीकरण का जनक क्यों कहा जाता है? दो कारण लिखिए।


उत्तर- (i) बिस्मार्क ने सुधार एवं कूटनीति के अंतर्गत जर्मनी के क्षेत्रों का प्रशाकरण अथवा प्रशा का एकीकरण करने का प्रयास किया।


(ii) बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए 'रक्त और लौह की नीति का पालन किया। इस नीति से तात्पर्य था कि सैन्य उपायों द्वारा ही जर्मनी का एकीकरण करना।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. यूरोप में 'राष्ट्र के विचार के निर्माण में संस्कृति ने किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर- यूरोप में राष्ट्र के विचार के निर्माण में संस्कृति ने निम्नलिखित भूमिका निभाई


(i) यूरोप में कला, काव्य, कहानियों, किस्सों और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को निर्मित करने और उन्हें व्यक्त करने में काफी सहयोग दिया। जर्मनी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।


(ii) रूमानी कलाकारों और कवियों ने एक साझा संस्कृति तथा साझा सामूहिक विरासत की अनुभूति को राष्ट्र का आधार बनाया। ग्रीक इसका एक अच्छा उदाहरण है।


(iii) राष्ट्रीय संदेश को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए स्थानीय बोलियों पर बल दिया गया और स्थानीय लोक साहित्य को एकत्र किया गया। उदाहरण-पोलैंड व जर्मनी आदि।


(iv) राष्ट्रवाद की भावना को जिंदा रखने के लिए संगीत का उपयोग किया गया। भाषा ने इसमें विशेष योगदान दिया।


प्रश्न 2."ज्युसेपे मेत्सिनी और कावूर ने इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।


उत्तर- 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। उसने अपने उद्देश्यों के प्रसार के लिए यंग इटली नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया था। 1831 से 1848 तक क्रांतिकारी विद्रोह हुए लेकिन इसे असफलता हाथ लगी। सार्डिनिया पीडमॉण्ट के राजा विक्टर इमेनुएल द्वितीय के मंत्री प्रमुख कावूर ने इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया न तो वह एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला। इतालवी अभिजात वर्ग के तमाम अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था। फ्रांस से सार्डिनिया-पीडमॉण्ट की एक चतुर कूटनीतिक संधि, जिसके पीछे कावूर का हाथ था, से वह 1859 में ऑस्ट्रिया को हराने में कामयाब रहा।


प्रश्न 3. "नेपोलियन ने निःसंदेह फ्रांस में लोकतंत्र को नष्ट किया था, परंतु प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था,

ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।



उत्तर नेपोलियन ने नि:संदेह फ्रांस में लोकतंत्र को नष्ट किया था परंतु प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके। 1804 ई. की नागरिक संहिता (जिसे आमतौर पर नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है),


के तहत निम्नलिखित परिवर्तन किए गए थे


 (1) जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए थे।


(ii) उसने कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।


 (iii) डच गणतंत्र, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया। सामंती व्यवस्था को खत्म किया।


(iv) किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।


 (v) शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया।


 (vi) यातायात और संचार व्यवस्थाओं को सुधारा गया।



प्रश्न 4. 1848 की उदारवादियों की क्रांति में किन विचारों को आगे बढ़ाया गया?


उत्तर 1848 में जब अनेक यूरोपीय देशों में किसान और मज़दूर विद्रोह कर रहे थे तब वहाँ पढ़े-लिखे मध्य वर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी। इस क्रांति से राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी और एक गणतंत्र की घोषणा की गई जो सभी पुरुषों के सार्विक मताधिकार पर आधारित थी। यूरोप के अन्य भागों में न जहाँ अभी तक स्वतंत्र राष्ट्र अस्तित्व में नहीं आए थे; जैसे-जर्मनी, इटली, पोलैंड। वहाँ के उदारवादी मध्यम वर्गों ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। उन्होंने बढ़ते जन-असंतोष का फायदा उठाया और एक राष्ट्र राज्य के निर्माण की मांगों को आगे बढ़ाया। यह राष्ट्र राज्य संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आजादी जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था।



प्रश्न 5. 1848 की उदारवादी क्रांति का क्या परिणाम हुआ?


उत्तर- रूढ़िवादी शक्तियाँ 1848 में उदारवादी आंदोलनों को दबा पाने में कामयाब हुईं किंतु वे पुरानी व्यवस्था बहाल नहीं कर पाईं। राजाओं को यह वे समझ में आना शुरू हो गया था कि उदारवादी राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को रियायतें देकर ही क्रांति को समाप्त किया जा सकता था। अत: 1848 के बाद के वर्षों में मध्य और पूर्वी यूरोप की निरंकुश राजशाहियों ने उन परिवर्तनों को प्रारंभ किया जो पश्चिमी यूरोप में 1815 से पहले हो चुके थे। इस प्रकार हैब्सबर्ग अधिकार वाले क्षेत्रों और रूस से भू-दासत्व और बँधुआ समाप्त कर दी गई हैब्सबर्ग शासकों ने हंगरी के लोगों को ज्यादा स्वायत्तता प्रदान की हालाँकि इससे निरंकुश मैग्यारों के प्रभुत्व का रास्ता ही साफ हुआ।


प्रश्न 6. उदारवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।



 उत्तर- उदारवाद लैटिन भाषा के शब्द 'लिबर' से बना है, जिसका अर्थ है-आजाद। नए मध्यम वर्गों के लिए उदारवाद का अर्थ था-व्यक्ति के लिए आज़ादी और कानून के समक्ष बराबरी। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थी


(i) उदारवाद एक ऐसी सरकार पर ज़ोर देता था जो सहमति से बनी हो। 


(ii) उदारवाद निरंकुश शासक और पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति, संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था। 


(iii) 19वीं सदी के उदारवादी निजी संपत्ति के स्वामित्व की अनिवार्यता पर भी बल देते थे।


 (iv) आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद, बाज़ारों की मुक्ति और चीजों तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को खत्म करने के पक्ष में था। ये एक ऐसे एकीकृत आर्थिक क्षेत्र में निर्माण के पक्ष में थे जहाँ वस्तुओं, लोगों और पूँजी का आवागमन बाधारहित हो।



प्रश्न 7. नेपोलियन द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन कीजिए।


 उत्तर- नेपोलियन बोनापार्ट विश्व के महानतम व्यक्तियों में से एक था। उसके असाधारण कार्यों और आश्चर्यजनक विजयों ने 1799 ई. से 1815 ई.तक सम्पूर्ण यूरोप को प्रभावित किया। उसके प्रमुख सुधार निम्नलिखित हैं 


1. शासन सम्बन्धी सुधार नेपोलियन की शासन व्यवस्था प्रतिभा, व्यापकता और कार्यक्षमता के सिद्धान्तों पर आधारित थी। देश की अराजकता को समाप्त करने के लिए उसने शासन का केन्द्रीकरण कर दिया।


2. आर्थिक सुधार- नेपोलियन ने पेरिस में बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना कराई। मादक द्रव्यों, नमक आदि पर कर लगाया, मजदूरों का वेतन निश्चित किया, चोरबाजारी, सट्टेबाजी, मुनाफाखोरी को समाप्त किया। 


3. धार्मिक सवार-नेपोलियन ने अपने देशवासियों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करने का प्रयत्न किया। राज्य की ओर से सभी को अपने धर्म काआचरण करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई थी।



 4. न्याय सम्बन्धी सुधार- नेपोलियन ने फ्रांस के लिए विधि संहिताओं का निर्माण करवाया। इसे 'नेपोलियन कोड' के नाम से भी जाना गया। नेपोलियन का यह कार्य फ्रांस को एक स्थायी देन थी।


5. शिक्षा सम्बन्धी सुधार-नेपोलियन ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने फ्रांस में राष्ट्रीय शिक्षा की नींव डाली और पेरिस में एक विश्वविद्यालय की स्थापना भी की।


6. सार्वजनिक सुधार - नेपोलियन ने सार्वजनिक हित के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने बेरोजगारी को दूर किया। आवागमन को सुगम बनाने के लिए 229 पक्की सड़कों का निर्माण कराया।



 प्रश्न 8. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति का क्या योगदान था?


उत्तर- यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है 


प्रथम उदाहरण के रूप में हम रूमानीवाद नामक सांस्कृतिक आन्दोलन को ले सकते हैं। रूमानीवाद एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन था जो विशिष्ट प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।


द्वितीय उदाहरण के रूप में हम क्षेत्रीय बोलियों को ले सकते हैं। क्षेत्रीय बोलियाँ राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती थीं, क्योंकि यही यथार्थ रूप में आधुनिक राष्ट्रवादियों के सन्देश को अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाती थीं जो अधिकांशतः निरक्षर थे।


तृतीय उदाहरण के रूप में हम संगीत को ले सकते हैं। कैरोल कुर्पिस्की, एक पोलिश नागरिक, ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा में संगीत के रूप में गुणगान किया और पोलेनेस और माजुरला जैसे लोकनृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया।


प्रश्न 9. रेनन की समझ के अनुसार एक राष्ट्र की विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण दें। उसके मतानुसार राष्ट्र क्यों महत्त्वपूर्ण है? 


उत्तर- रेनन की समझ के अनुसार एक राष्ट्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


(i) रेनन के अनुसार एक राष्ट्र तब बनता है जब वहाँ के लोगों द्वारा लंबे प्रयास और निष्ठा से इसके लिए काम किया जाता है। 


(ii) अतीत में समान गौरव का होना, वर्तमान में समान इच्छा संकल्प का होना, साथ मिलकर महान काम करना और आगे ऐसे काम और करने की इच्छा एक जनसमूह होने की यह सब ज़रूरी शर्तें हैं।


(iii) राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता है। उसका अस्तित्व रोज़ होने वाला जनमत संग्रह है...। प्रांत उसके निवासी हैं; अगर सलाह लिए जाने का किसी को अधिकार है तो वह निवासी ही है, किसी देश का विलय करने या किसी देश पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कब्ज़ा जमाए रखने में एक राष्ट्र की वास्तव में कोई दिलचस्पी होती नहीं है। 


(iv) राष्ट्रों का अस्तित्व में होना एक अच्छी बात ही नहीं है, बल्कि यह एक ज़रूरत भी है। उनका होना स्वतंत्रता की गारंटी है और अगर दुनिया में केवल एक कानून और उसका केवल एक मालिक होगा तो स्वतंत्रता का लोप हो जाएगा।


प्रश्न 10. जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ या जर्मनी का एकीकरण कब और कैसे हुआ?


उत्तर- राष्ट्रवादी भावनाएँ मध्यमवर्गीय जर्मन लोगों में काफी व्याप्त थीं। उन्होंने 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया था। मगर इस पहल को राजशाही और फौज की ताकत ने मिलकर दबा दिया। उनका प्रशा के बड़े भू-स्वामियों ने भी समर्थन किया। उसके बाद प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व सँभाल लिया। उसका मुख्य मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था, जिसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली। 7 वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से तीन युद्धों में प्रशा की जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई। जनवरी 1871 में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया। इस तरह 1871 में जर्मनी का एकीकरण हुआ।


प्रश्न 11. फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए ?


उत्तर

 प्रारंभ से ही फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने ऐसे अनेक कदम उठाए, जिनसे फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की भावना उत्पन्न हो सकती थी। ये कदम निम्नलिखित थे


(i) पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया, जिसे एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार प्राप्त थे। 


(ii) एक नया फ्रांसीसी झंडा चुना गया, जिसने पहले के राष्ट्रध्वज की जगह ले ली।


(iii) स्टेट जनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा और उसका नाम बदलकर नेशनल एसेंबली कर दिया गया।


 (iv) नई स्तुतियाँ रची गईं, शपथें ली गईं, शहीदों का गुणगान हुआ और यह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ।


(v) एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई, जिसने अपने भू-भाग में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए।


 (vi) आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एक समाने व्यवस्था लागू की गई।


 (vii) क्षेत्रिय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में फ्रेंच जैसी बोली और लिखी जाती थी, वही राष्ट्र की साझा भाषा बन गई।


प्रश्न 12. मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महत्त्व था?



उत्तर फ्रांसीसी क्रांति के समय कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी प्रतीकों का सहारा लिया। इनमें मारीआन और जर्मेनिया अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।


मारीआन – यह लोकप्रिय ईसाई नाम है। अतः फ्रांस ने अपने स्वतंत्रता के नारी प्रतीक को यही नाम दिया। यह छवि जन राष्ट्र के विचार का प्रतीक थी। इसके चिह्न स्वतंत्रता व गणतंत्र के प्रतीक लाल टोपी, तिरंगा और कलगी थे। मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौराहों और अन्य महत्त्वपूर्ण स्थानों पर लगाई गई ताकि जनता को राष्ट्रीय एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और वह उससे अपना तादात्मय (तालमेल) स्थापित कर सके। मारीआन की छवि सिक्कों डाक टिकटों पर अंकित की गई थी।


 जर्मेनिया - यह जर्मन राष्ट्र की नारी रूपक थी। चाक्षुष अभिव्यक्तियों में वह

 बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है क्योंकि जर्मनी में बलूत वीरता का प्रतीक है, उसने हाथ में जो तलवार पकड़ी हुई थी उस पर यह लिखा हुआ है "जर्मन तलवार जर्मन राइन की रक्षा करती है।" इस प्रकार जर्मेनिया, जर्मनी में स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र की प्रतीक बनकर उभरी एक नारी छवि थी।


प्रश्न 13. बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा?


उत्तर. 1871 ई. के बाद यूरोप में बाल्कन क्षेत्र (प्रदेश) गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का क्षेत्र बन गया। इस राष्ट्रवादी तनाव के निम्नलिखित कारण थे 


(i) इस क्षेत्र की अपनी भौगोलिक व जातीय भिन्नता थी।


(ii) इस क्षेत्र में आधुनिक यूनान, रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्वेरिया, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया, मॉन्टिनिग्रो आदि देश थे जहाँ पर स्लाव भाषा बोलने वाले लोग रहते थे। ये सभी तुर्कों से भिन्न थे।


(iii) तुर्की और इन ईसाई प्रजातियों के बीच मतभेदों के कारण यहाँ पर हालात भयंकर हो गए।


(iv) जब स्लाव राष्ट्रीय समूहों में स्वतंत्रता व राष्ट्रवाद का विकास हुआ। तो तनाव की स्थिति और भी भयंकर हो गई।


(v) इस कारण इन राज्यों में आपसी प्रतिस्पर्धा और हथियारों की होड़ लग गई। इसने स्थिति को और गंभीर बना दिया।


(vi) यूरोपीय देश (रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, हंगरी) भी इन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे ताकि काला सागर से होने वाले व्यापार और व्यापारिक मार्ग पर उनका नियंत्रण हो। उपर्युक्त कारणों से इस क्षेत्र में यूरोपीय देशों और इन राज्यों में आपस में कई युद्ध हुए, जिसका अंतिम परिणाम प्रथम विश्वयुद्ध के रूप में सामने आया।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक




प्रश्न 1. किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएँ कि 19वीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए?



उत्तर- 19वीं शताब्दी में लगभग पूरे यूरोप में राष्ट्रीयता का विकास हुआ जिस कारण राष्ट्र राज्यों का उदय हुआ। इनमें बेल्जियम व पोलैंड भी ऐसे ही देश थे। 1815 ई. में नेपोलियन की हार के बाद वियना संधि द्वारा बेल्जियम और पोलैंड को मनमाने तरीके से अन्य देशों के साथ जोड़ दिया गया, जिनका आधार यूरोपीय सरकारों की यह रूढ़िवादी विचारधारा थी कि राज्य व समाज की स्थापित पारंपरिक संस्थाएँ; जैसे— राजतंत्र, चर्च, सामाजिक ऊँच-नीच, संपत्ति और परिवार आदि बने रहने चाहिए। इसका बेल्जियम व पोलैंड ने विरोध किया। अपने को स्वतंत्र राष्ट्र-राज्य के रूप में स्थापित किया। इनका निर्माण इस प्रकार हुआ


1. बेल्जियम - वियना कांग्रेस द्वारा बेल्जियम को हॉलैंड के साथ मिला दिया गया। परंतु दोनों देशों में ईसाई धर्म के कट्टर विरोधी मतानुयायी रहते थे। जहाँ बेल्जियम में कैथोलिक थे, वहीं हॉलैंड में प्रोटेस्टेट । हॉलैंड का शासक भी हॉलैंडवासियों को बेल्जियमवासियों से श्रेष्ठ मानता था। अत: इस श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए उसने सभी स्कूलों में प्रोटेस्टेंट धर्म की शिक्षा देने की राजाज्ञा जारी की। इसका बेल्जियमवासियों ने कड़ा विरोध किया, इसमें इंग्लैंड ने उनका साथ दिया जिस कारण हॉलैंड को बेल्जियम को 1830 में स्वतंत्र करना पड़ा। बाद में यहाँ पर इंग्लैंड जैसी संवैधानिक व्यवस्था कायम हुई।


2. पोलैंड-वियना संधि द्वारा ही पोलैंड को दो भागों में बाँटा गया और इसका बड़ा भाग रूस को इनाम के तौर पर दे दिया गया। परंतु जब वहाँ के लोगों में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ तो 1848 में पोलैंड और वारसा में क्रांति आरंभ हुई। इसे रूसी सेनाओं ने कठोरता से दबा दिया, परंतु राष्ट्रवादियों ने हार नहीं मानी और दुबारा विद्रोह किया, जिसमें उन्हें सफलता मिली।


प्रश्न 2. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के


(NCERT)


लिए तीन उदाहरण दीजिए। उत्तर- राष्ट्रवाद के विकास में नवीन परिस्थितियों, जैसे कि युद्ध, क्षेत्रीय विस्तार, शिक्षा आदि का जितना योगदान रहा है, उतना ही योगदान संस्कृति का


भी रहा है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित है


1. फ्रेडरिक सॉरयू का युटोपिया - 1848 ई. में फ्रांस के फ्रेडरिक सॉरयू ने चार चित्रों की एक श्रृंखला बनाई, जिसके द्वारा विश्वव्यापी प्रजातांत्रिक और सामाजिक गणराज्यों के स्वप्न को साकार रूप देने का प्रयास किया गया। उसने कल्पना पर आधारित आदर्श राज्य या समाज (युटोपिया) को दर्शाया। इन चित्रों में सभी स्त्री, पुरुषों और बच्चों को स्वतंत्रता की प्रतिमा की वंदना करते हुए दिखाया गया है। जिनके हाथों में मशाल व मानव के अधिकारों का घोषणा-पत्र है। इनमें उनकी पोशाकों को भी राष्ट्रीय आधार देने के लिए एक जैसी रखी गई, तिरंगे झंडे, भाषा व राष्ट्रगान द्वारा भी राष्ट्र राज्य के रूप को प्रकट करने का प्रयास किया गया।


2. कार्लकैस्पर फ्रिट्ज का स्वतंत्रता के वृक्ष का रोपण-जर्मन चित्रकार कार्लकैस्पर फ्रिट्ज ने स्वतंत्रता के वृक्ष का रोपण करते हुए एक चित्र बनाया है। इसकी पृष्ठभूमि में फ्रेंच सेनाओं को ज्वेब्रकेन शहर पर कब्जा करते हुए दिखाया गया। इसमें फ्रांसीसी सैनिकों को नीली, सफेद व लाल पोशाकों में दिखाया गया है जो वहाँ के नागरिकों का दमन कर रहे हैं, जैसे-किसी किसान की गाड़ी छीन रहे हैं, कुछ महिलाओं को तंग कर रहे हैं या किसी को घुटने के बल बैठने पर मजबूर कर रहे हैं। अतः शोषितों द्वारा जो स्वतंत्रता का वृक्ष रोपते हुए दर्शाया गया है उस पर एक तख्ती लगी है जिस पर जर्मन में लिखा हुआ है—“हमसे आज़ादी और समानता ले लो - यह मानवता का आदर्श रूप है।" यह एक तरह से फ्रांसीसियों पर किया गया व्यंग्य था क्योंकि वे कहते थे कि वे जहाँ जाते हैं, वहाँ राजतंत्र का अंत करके नई आदर्श व्यवस्था कायम करते हैं यानी वे मुक्तिदाता


3. यूजीन देलाक्रोआ की 'द मसैकर ऐट किऑस'- फ्रांस के रूमानीवादी चित्रकार देलाक्रोआ ने 1824 ई. में एक चित्र बनाया था। इसमें एक घटना को चित्रित किया गया है जब तुर्कों ने 20,000 यूनानियों को मार डाला था। इसे किऑस द्वीप कहा जाता है। इसमें महिलाओं व बच्चों की पीड़ा को केन्द्रबिंदु बनाया गया है जिसे चटकीले रंगों से रँगा गया है ताकि देखने वालों की भावनाएँ जागृत हों और उनके मन में यूनानियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो। इस प्रकार कलाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रवाद को उभारा और संस्कृति का इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।


प्रश्न 3.1789 की फ्रांसीसी क्रांति का फ्रांस व यूरोप पर क्या प्रभाव पड़ा?


या फ्रांस की क्रांति के दो परिणाम बताइए। 



उत्तर- 1789 में फ्रांस में जो क्रांति हुई उसके फ्रांस और यूरोप पर निम्नलिखित व्यापक प्रभाव पड़े थे फ्रांस पर प्रभाव


(i) लुई वंश के शासन का अंत हुआ और उसके स्थान पर लोकतांत्रिक शासन की स्थापना हुई।


(ii) सरकार द्वारा लोक-कल्याणकारी कार्य किए गए, जैसे-सड़कों, पुलों, नहरों, अस्पतालों, बाँधों, स्कूलों आदि का निर्माण। 


(iii) समानता, स्वतंत्रता, भ्रातृत्व की भावना से भरे हुए नए समाज की नींव रखी गई।


(iv) न्याय व्यवस्था का पुनर्गठन करके देश के लिए नवीन कानून संहिता लागू की गई।


(v) प्रभुसत्ता, राजतंत्र के हाथों से निकलकर जनता में निवास करने लगी।


(vi) इस्टेट जनरल के स्थान पर सक्रिय नागरिकों द्वारा चुनी गई नेशनल एसेंबली का गठन किया गया।


 (vii) फ्रेंच भाषा को राष्ट्र भाषा और फ्रेंच तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया गया।


(viii) आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क हटा दिए गए। साथ ही भार व नाप की एकसमान व्यवस्था लागू की गई। 


(ix) शासक और पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों का अंत किया गया तथा कानून के समक्ष सबको बराबर माना गया। संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया गया। 



यूरोप पर प्रभाव


 (i) यूरोप में भी राष्ट्रवाद को मजबूती मिली और राष्ट्र राज्यों का उदय होने लगा।


(ii) लोकतंत्रीय सिद्धांत को विश्व आधार मिला तथा 'सरकार जनता द्वारा और जनता के लिए होनी चाहिए' इस विचार को बल मिला।


 (iii) यूरोप में भी समाजवादी विचारधारा का प्रचार होने लगा, जिस कारण सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक समानता के सिद्धांतों पर बल दिया जाने लगा।


(iv) यूरोप के अन्य राष्ट्र के लोग भी मानवीय अधिकारों की माँग करने लगे।


(v) यूरोप के निरंकुश राजतंत्रों ने अपने यहाँ क्रांतिकारियों का दमन करना आरंभ कर दिया।


प्रश्न 4. फ्रांस की क्रांति के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।


 उत्तर- 1789 ई. में फ्रांस में एक क्रांति हुई जिसके द्वारा वहाँ पर लुई वंश की गई। इस क्रांति के शासन का अंत हुआ और वहाँ पर लोकतंत्र की स्थापना के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे


1. अयोग्य शासक–फ्रांस की क्रांति के समय यहाँ पर लुई वंश का शासन था जिसका शासक लुई XVI था। वह एक अयोग्य, जिद्दी और अदूरदर्शी, कर्त्तव्यहीन शासक था। वह सुधारों का पक्षधर नहीं था बल्कि अपनी निरंकुशता को कायम रखना चाहता था। इस कारण जनता उसके विरुद्ध हो गई।


2. मध्यम वर्ग–यहाँ पर औद्योगिक क्रांति होने के कारण मध्यम वर्ग का उदय हो गया था जिसमें छोटे उद्योगपति, डॉक्टर, वकील, अध्यापक और निम्न पदों पर कार्य करने वाले अधिकारी आते थे। यह वर्ग नवीन विचारों और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत था और लोकतंत्र का पक्षधर और निरंकुश राजशाही का विरोधी था। अतः जब जनता राजशाही के विरुद्ध हुई तो इसने उसका पूर्ण समर्थन किया।


3. आम जनता की दयनीय स्थिति-इस समय शासक, उच्च वर्ग और कुलीन वर्ग जहाँ विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था, वहीं आम जनता की स्थिति बड़ी दयनीय थी तथा लोग रोजी-रोटी को तरस रहे थे।



4. मजदूर वर्ग की दुर्दशा- इस समय फ्रांस में जो उद्योग स्थापित हुए थे, उनमें मजदूरों के कार्य करने के लिए स्वास्थ्यवर्धक परिस्थितियाँ नहीं थीं। इनके काम के घंटे निश्चित नहीं थे, न ही प इन्हें उचित वेतन मिलता था। यदि कोई मजदूर किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता था तो उद्योगपति उसे मुआवजा नहीं देते थे। इस कारण इस वर्ग में असंतोष था। मौका आते ही यह वर्ग क्रांति का ने पक्ष लेने लगा।


5. दार्शनिकों का प्रभाव- इस समय जो दार्शनिक वर्ग उदित हुआ उसने जनता को प्रशासन की दुर्दशा, न्याय व्यवस्था की कमियों व फ्रांसीसी समाज की बुराइयों से अवगत करवाया। इन्होंने जनता में क्रांतिकारी भावनाओं का संचार किया जिस कारण जनता क्रांति करने के लिए अग्रसर हो गई।


6. स्वतंत्रता पर प्रतिबंध - इस समय फ्रांसीसी सरकार ने लोगों की स्वतंत्रता पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा रखे थे, यहाँ तक कि उनके धार्मिक विश्वासों पर भी प्रतिबंध लगे हुए थे। फ्रांस में प्रोटेस्टेंट धर्मावलंबियों पर अत्याचार होते थे। इस पर सरकार ने न्याय व स्वतंत्रता की अवहेलना करते हुए 'लेत्र द काशे' (बिना कार बताए कैद के आदेश-पत्र) जारी करके स्थिति को और भी भयानक बना दिया, जिससे जनता में असंतोष की भावना जागृत हो गई और वह क्रांति के मार्ग पर बढ़ गई।


प्रश्न 5. अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए?


 उत्तर- नेपोलियन के नियंत्रण में जो क्षेत्र आया वहाँ उसने अनेक सुधारों की शुरुआत की। उनके द्वारा किए गए सुधार निम्नलिखित थे


 (i) प्राचीन सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक व्यवस्था को नष्ट किया गया।


(ii) सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए निम्न व उच्च वर्ग के भेद को खत्म किया गया।


(iii) 1804 ई. की नेपोलियन संहिता ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे। उसने कानून के समक्ष समानता और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।


(iv) समान कर प्रणाली लागू की गई। प्रतिष्ठा मंडल की स्थापना करके विद्वानों, कलाकारों व देशभक्तों को सम्मानित किया गया।


(v) डच गणतंत्र, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया। 


(vi) सामंती व्यवस्था को खत्म किया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।


 (vii) शहरों में कारीगरों के श्रेणी संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया।यातायात और संचार व्यवस्थाओं को सुधारा गया।


 (viii) आर्थिक सुधार करने के उद्देश्य से 'बैंक ऑफ फ्रांस' की स्थापना की गई। 


(ix) उसने दंड विधान को कठोर बनाया तथा जूरी प्रथा व मुद्रित पत्रों को पुनः प्रारंभ किया।


(x) शिक्षा की उन्नति के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ फ्रांस की स्थापना की, जहाँ लैटिन, फ्रेंच भाषा, साधारण विज्ञान व गणित की मुख्य तौर पर शिक्षा दी जाती थी।


(xi) कैथोलिक धर्म को राजधर्म बनाया। इस प्रकार किसानों, कारीगरों, मजदूरों और नए उद्योगपतियों ने नई-नई मिली आजादी को चखा।


प्रश्न 6. वियना संधि क्या थी? इसके प्रमुख उद्देश्यों और व्यवस्थाओं का वर्णन कीजिए। 



या वियना कांग्रेस सम्मेलन कब और कहाँ हुआ?



उत्तर 1815 ई. में ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों, जिन्होंने मिलकर नेपोलियन को हराया था, के प्रतिनिधि यूरोप के लिए  एक समझौता तैयार करने के लिए वियना में मिले। इस सम्मेलन की मेजबानी ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने की। इसमें प्रतिनिधियों ने 1815 ई. की वियना संधि तैयार की, जिसका उद्देश्य उन सारे बदलावों को खत्म करना था जो नेपोलियन युद्धों के दौरान हुए थे। इस संधि की मुख्य व्यवस्थाएँ निम्नलिखित थी




(i) फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हटाए गए बूब वंश को सत्ता में बहाल किया गया और फ्रांस ने उन इलाकों को खो दिया जिन पर कब्जा उसने नेपोलियन के अधीन किया था।


 (ii) फ्रांस की सीमाओं पर कई राज्य कायम कर दिए गए ताकि भविष्य में फ्रांस विस्तार न कर सके।


 (iii) फ्रांस के उत्तर में नीदरलैंड्स का राज्य स्थापित किया गया, जिसमें बेल्जियम शामिल था और दक्षिण में पीडमॉण्ट में जेनेवा जोड़ दिया गया। 


(iv) प्रशा को उसकी पश्चिमी सीमाओं पर महत्त्वपूर्ण नए इलाके दिए गए जबकि ऑस्ट्रिया को उत्तरी इटली का नियंत्रण सौंपा गया।


 (v) नेपोलियन ने 39 राज्यों का जो जर्मन महासंघ स्थापित किया था, उसे बरकरार रखा गया।


(vi) पूर्व में रूस को पोलैंड का एक हिस्सा दिया गया जबकि प्रशा को मैक्सनी का एक हिस्सा प्रदान किया गया। 



(vii) इन सबका मुख्य उद्देश्य उन राजतंत्रों की बहाली था जिन्हें नेपोलियन ने बर्खास्त कर दिया था। साथ ही यूरोप में एक नयी रूढ़िवादी व्यवस्था कायम करने का लक्ष्य भी था।



प्रश्न 7. इटली के एकीकरण पर प्रकाश डालिए।


या इटली के एकीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।


 या इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तीन नेताओं के नाम लिखिए। 


 उत्तर- 19वीं शताब्दी में इटली के एकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई, जो निम्न प्रकार थी


(i) इस समय इटली अनेक वंशानुगत राज्यों व बहुराष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था।


(ii) इतालवी भाषा संपूर्ण इटली में नहीं बोली जाती थी। अनेक स्थानों पर इसके अनेक रूप प्रचलित थे।


 (iii) 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने इटली को एकीकृत करने के लिए सबसे ज्यादा प्रयास किया और उसने यंग इटली नामक गुप्त संगठन स्थापित किया।


(iv) 1831 और 1848 में जो क्रांतिकारी विद्रोह असफल हुए उनके कारण इतालवी राज्यों में एक बिखराव आ गया जिन्हें संगठित करने के लिए सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय आगे आया।


(v) सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के प्रधानमंत्री कावूर ने इटली के राज्यों को संगठित करने के लिए प्रारंभ हुए आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया और फ्रांस व सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के बीच एक कूटनीतिक संधि की। 


(vi) 1859 ई. में सार्डिनिया-पीडमॉण्ट ने ऑस्ट्रिया को पराजित किया। इस युद्ध में ज्युसेपे गैरीबॉल्डी के नेतृत्व में अनेक सैनिकों ने भी भाग लिया।


(vii) 1860 ई. में दक्षिणी इटली व दो सिसलियों के राज्यों में सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के सैनिकों ने प्रवेश किया। यहाँ पर स्थानीय किसानों की मदद से वे स्पेन को पराजित कर सके।



(vii) 1861 में विक्टर इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया और 1870 में यह एकीकरण पूर्ण हुआ


 प्रश्न 8. यूरोप में राष्ट्रवाद के उत्थान के लिए कौन-से कारण उत्तरदायी थे? विस्तारपूर्वक लिखिए।


उत्तर- 18वीं शताब्दी के मध्य तक राष्ट्र राज्यों का उदय नहीं हुआ था। विभिन्न देश अलग-अलग भागों में, भाषाओं में, कैंटनों में बंटे हुए थे। किंतु 19वीं शताब्दी के प्रारंभ तक राष्ट्रवादी भावनाएँ फैलने लगी और राष्ट्र राज्यों का निर्माण हुआ। यूरोप में राष्ट्रवादी भावनाएँ फैलने के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे


1. मध्यम वर्ग का उदय– 18वीं सदी तक यूरोप के विभिन्न देशों में दो प्रमुख वर्ग थे-कुलीन तथा दास या कृषक वर्ग। औद्योगीकरण के कारण नए सामाजिक समूह अस्तित्व में आए। श्रमिक वर्ग तथा मध्यम वर्ग जो उद्योगपतियों, व्यापारियों और सेवा क्षेत्र के लोगों से बने थे। इस वर्ग ने कुलीन विशेषाधिकारों की समाप्ति तथा शिक्षित और उदारवादी मध्यम वर्गों के बीच राष्ट्रीय एकता के विचारों को बढ़ाया।


2. उदारवादी विचारधारा का प्रारंभ-19वीं शताब्दी में यूरोप में एक नई विचारधारा (उदारवाद) पनपने लगी। नए मध्य वर्गों के लिए इसका अर्थ था-व्यक्ति के लिए आजादी और कानून के समक्ष सबकी बराबरी उदारवाद एक ऐसी सरकार पर जोर देता था जो आपसी सहमति से बनी हो। आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद, बाजारों की मुक्ति और चीजों तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को समाप्त करने के पक्ष में था। नया व्यापारी वर्ग एक ऐसी आर्थिक नीति का पक्षधर था जहाँ वस्तुओं, लोगों, पूँजी का आवागमन बाधारहित हो। इस विचारधारा ने राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा दिया।


3. यूनान का स्वतंत्रता संग्राम-यूनान के स्वतंत्रता संग्राम ने पूरे यूरोप में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया। यूनानियों का आजादी के लिए संघर्ष 1821 में प्रारंभ हुआ। 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी। इस स्वतंत्रता संग्राम ने यूरोप के अन्य देशों को भी एकीकरण करने के लिए प्रेरित किया।


4. संस्कृति की भूमिका- राष्ट्रवाद के विकास में युद्धों व क्रांतियों के साथ-साथ संस्कृति की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कला, काव्य, कहानियों और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को विकसित करने तथा व्यक्त करने में सहयोग दिया। राष्ट्र की सच्ची आत्मा लोकगीतों, जन-काव्य और लोक नृत्यों से प्रकट होती थी। स्थानीय बोलियों पर बल और लोक साहित्य को एकत्र करने का उद्देश्य राष्ट्रीय भावना को फैलाना था, ; जैसे—पोलैंड अब स्वतंत्र भू-क्षेत्र नहीं था किंतु संगीत और भाषा के माध्यम से राष्ट्रीय संघर्ष का संगीत से गुणगान किया गया तथा विभिन्न लोकनृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया गया।


5. भाषा-भाषा ने राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रूसी कब्जे के बाद पोलैंड में रूसी भाषा को लाद दिया गया। इसके सदस्यों ने राष्ट्रवादी विरोध के लिए भाषा को हथियार बनाया। चर्च के आयोजनों में पोलिश भाषा का प्रयोग हुआ। परिणामस्वरूप पादरियों और बिशपों को जेल में डाल दिया गया। पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी।


6. जन विद्रोह-1830 के दशक में यूरोप में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई। यूरोप के उन इलाकों में जहाँ कुलीन वर्ग अभी भी सत्ता में था और कृषक कर्ज के बोझ तले दबे थे। शहरों और गाँवों में कई कारणों से गरीबी थी। बेरोजगारी तथा खाद्यान्न की कमी के कारण लोगों ने विद्रोह करने शुरू कर दिये। इन विद्रोहों के कारण रूढ़िवादी सरकारें कमजोर पड़ने लगीं तथा राष्ट्रवादी भावनाएँ विकसित होने लगीं।



प्रश्न 10. ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था


उत्तर- ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का विकास एक लंबी संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा हुआ। इसमें किसी प्रकार की रक्तरंजित क्रांति नहीं हुई। अतः इस प्रक्रिया को आमतौर पर हम 'रक्तहीन क्रांति' के नाम से भी जानते हैं। यह प्रक्रिया निम्नलिखित

प्रकार है


(i) 18वीं शताब्दी से पूर्व ब्रितानी एक राष्ट्र नहीं था जबकि ब्रितानी द्वीप समूह में अंग्रेज, वेल्श, स्कॉट या आयरिश पहचान वाले नृजातीय समूह रहते थे जिनकी अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक व राजनैतिक परंपराएं थीं।


(ii) इनमें आंग्ल राष्ट्र ने अपनी धन-दौलत, अहमियत और सत्ता के बल पर अन्य द्वीप समूह के राष्ट्रों पर अपना प्रभाव स्थापित करना प्रारंभ किया। 


(iii) 1688 ई. में एक लंबे संघर्ष के माध्यम से राजतंत्र की समस्त शक्ति आंग्ल संसद के अधीन आ गई और एक राष्ट्र का निर्माण किया गया जिसका केन्द्र इंग्लैंड था।


(iv) इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच ऐक्ट ऑफ यूनियन 1707 ई. में हुआ जिसके द्वारा यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन किया गया। इसी के माध्यम से स्कॉटलैंड पर इंग्लैंड का प्रभुत्व स्थापित हो गया। 


(v) स्कॉटलैंड में ब्रितानी पहचान का विकास करने के लिए यहाँ की संस्कृति व राजनैतिक संस्थाओं को योजनाबद्ध ढंग से नष्ट किया

गया; जैसे—स्कॉटिश हाइलैंड्स के वासियों को उनकी गेलिक भाषा बोलने और राष्ट्रीय पोशाक पहनने से रोका गया। इस कारण मजबूर होकर लोगों को अपना देश छोड़कर अन्य जगहों पर जाना पड़ा। 


(vi) आयरलैंड में भी ऐसा किया गया और यहाँ पर अंग्रेजों ने धार्मिक मतभेद को हथियार बनाया। आयरलैंड में कैथोलिक व प्रोटेस्टेंट दो धार्मिक गुट थे। अंग्रेजों ने प्रोटेस्टेंटों की मदद करके कैथोलिक को दबाया।


(vii) 1798 ई. में वोल्फ़ टोन और उसकी यूनाइटेड आयरिशमेन नेतृत्व में जो विद्रोह हुआ उसे दबा दिया गया और आयरलैंड को यूनाइटेड किंगडम का भाग बना लिया गया।


(viii) ब्रितानी राष्ट्र का निर्माण करके इसके राष्ट्रीय प्रतीकों— यूनियन बैंक (ब्रिटेन का झंडा) और गॉड सेव आवर नोबल किंग (राष्ट्रीय गान) - को संपूर्ण यूनाइटेड किंगडम में प्रचारित व प्रसारित किया गया।


प्रश्न 12.निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए (क) ज्युसेपे मेत्सिनी, (ख) काउंट कैमिलो दे कातूर, (ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध, (घ) फ्रैंकफर्ट संसद, (ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका। 



उत्तर- (क) ज्युसेपे मेत्सिनी-मेत्सिनी इटली का एक क्रांतिकारी था।


इसका जन्म 1807 में जेनोआ में हुआ था और वह कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। 24 वर्ष की अवस्था में लिगुरिया में क्रांति करने के लिए उसे देश से बहिष्कृत कर दिया गया। तत्पश्चात् इसने दो और भूमिगत संगठनों की स्थापना की- पहला था मार्सेई में यंग इटली और दूसरा बर्न में यंग यूरोप, जिसके सदस्य पोलैंड, फ्रांस, इटली और जर्मन राज्यों में समान विचार रखने वाले युवा थे। मेत्सिनी का विश्वास था कि ईश्वर की मर्जी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। अतः इटली का एकीकरण ही इटली की मुक्ति का आधार हो सकता था। उसने राजतंत्र का घोर विरोध किया और उसके मॉडल पर जर्मनी, पोलैंड, फ्रांस, स्विट्जरलैंड में भी गुप्त संगठन बने। इसी कारण मैटरनिख ने उसके विषय में कहा कि वह 'हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन' है।


 (ख) काउंट कैमिलो दे काबूर-कावूर इटली में मंत्री प्रमुख था, जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया। वैचारिक तौर पर न तो वह क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला। इतालवी अभिजात वर्ग के तमाम अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था। अत: इटली के सम्राट विक्टर इमेनुएल ने उसे 1852 को सार्डिनिया-पीडमॉण्ट का प्रधानमंत्री बनाया। उसने यहाँ पर आर्थिक, शैक्षिक कृषि के विकास के लिए कार्य किए तथा सेना में सुधार किया। उसने फ्रांस व सार्डिनिया पीडमॉण्ट के बीच एक कूटनीतिक संघि की। अपनी इन कूटनीतिक चालों के कारण उसने इटली की समस्याओं की तरफ यूरोपीय देशों का ध्यान आकर्षित किया। 6 जून, 1861 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। फिर भी वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहा जिनके कारण 18 फरवरी, 1861 ई. में इटली की संसद ने इमेनुएल द्वितीय को 'इटली का सम्राट' घोषित किया तथा इटली का एकीकरण संभव हुआ। सार्डिनिया-पीडमॉण्ट 1859 में ऑस्ट्रियाई बलों को हरा पाने में कामयाब हुआ।


 (ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध-यूनानी स्वतंत्रता युद्ध ने पूरे यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया। 15वीं सदी से यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। यूरोप में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों का आजादी के लिए संघर्ष 1821 में आरंभ हो गया। यूनान में राष्ट्रवादियों को निर्वासन में रह रहे यूनानियों के साथ पश्चिमी यूरोप के अनेक लोगों का भी समर्थन मिला जो प्राचीन यूनानी संस्कृति के प्रति सहानुभूति रखते थे। कवियों और कलाकारों ने यूनान को 'यूरोपीय सभ्यता का पालना' बताकर प्रशंसा की और एक मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध यूनान के संघर्ष के लिए जनमत जुटाया। अंग्रेज कवि लॉर्ड बायरन ने धन एकत्रित किया और बाद में युद्ध लड़ने भी गए, जहाँ 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गई। अंततः 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।


(घ) फ्रैंकफर्ट संसद-जर्मन इलाकों में बड़ी संख्या में राजनीतिक संगठनों ने फ्रैंकफर्ट शहर में मिलकर एक सर्व-जर्मन नेशनल एसेंबली के पक्ष में मतदान का फैसला किया। 18 मई, 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जाकर फ्रैंकफर्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेंट पॉल चर्च में आयोजित हुई। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस राष्ट्र की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था। जब प्रतिनिधियों ने प्रशा के राजा फ्रेडरीख विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनाने की पेशकश की तो उसने उसे अस्वीकार कर उन राजाओं का साथ दिया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे। इस प्रकार जहाँ कुलीन वर्ग और सेना का विरोध बढ़ गया, वहीं संसद का सामाजिक आधार कमजोर हो गया। संसद में मध्यम वर्गों का प्रभाव अधिक था, जिन्होंने मजदूरों और कारीगरों की माँगों का विरोध किया, जिससे वे उनका समर्थन खो बैठे। अंत में प्रशा के राजा के इंकार के कारण फ्रैंकफर्ट संसद के सभी निर्णय स्वतः समाप्त हो गए जिससे उदारवादियों व राष्ट्रवादियों में निराशा हुई। प्रशा के सैनिकों ने क्रांतिकारियों को कुचल दिया जिससे यह संसद भंग हो गई।


(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका- राष्ट्रवादी संघर्षों के वर्षों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। महिलाओं ने अपने राजनीतिक संगठन स्थापित किए, अखबार शुरू किए और राजनीतिक बैठकों और प्रदर्शनों में भाग लिया। इसके बावजूद उन्हें एसेंबली के चुनाव के दौरान मताधिकार से वंचित रखा गया था। जब सेंट पॉल चर्च में फ्रैंकफर्ट संसद की सभा आयोजित की गई थी तब महिलाओं को केवल प्रेक्षकों की हैसियत से दर्शक दीर्घा में खड़े होने दिया गया।






यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 2 भारत में राष्ट्रवाद का सम्पूर्ण हल



Up board class 10 social science full notes in hindi



         अध्याय 2 भारत में राष्ट्रवाद


      



      




                  भारत में राष्ट्रवाद




याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1•भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय में उपनिवेशवाद विरोधी आन्दोलन की विशेष भूमिका थी। 


2● प्रथम विश्वयुद्ध के कारण विश्व के अन्य देशों के समान भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति में भी अनेक परिवर्तन हुए। देश में प्रायः सभी

वस्तुओं की कीमतें दोगुनी हो गई ,जिसके परिणामस्वरूप लोगों की कठिनाइयाँ बढ़ गयीं। ग्रामीण क्षेत्रों में अंग्रेज सरकार ने युवकों की जबरन भर्ती शुरू कर दी. जिससे वहाँ चारों तरफ रोष व्याप्त हो गया। उधर 1918-1919 और 1920-1921 की अवधियों में देश के अनेक भागों में फसल खराब हो गयीं। इसी समय देश के अधिकांश भागों में पलू की महामारी भी फैल गयी। एक अनुमान के अनुसार इस दुर्भिक्ष और अकाल के कारण देश में 120-130 लाख लोग मारे गए।


3• 1915 ई. में महात्मा गांधी दक्षिणी अफ्रीका से भारत वापस लौटे। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने एक नए प्रकार के जन-आन्दोलन का मार्ग अपनाकर वहाँ की नस्लभेदी सरकार से लोहा लिया। अपने इसी नए प्रकार के विरोध करने के मार्ग अथवा तरीके को उन्होंने बाद में 'सत्याग्रह' का नाम दिया। भारत आने पर उन्होंने अपने इसी सत्याग्रह के तरीके से अंग्रेजों के विरुद्ध किए जाने वाले आन्दोलनों का संचालन किया।


4• भारत आने के बाद गांधीजी ने देश के अनेक स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन का संचालन किया। 1916 ई. में उन्होंने बिहार प्रान्त के चम्पारण क्षेत्र का दौरा किया और अंग्रेजों की दमनकारी बागान व्यवस्था के विरुद्ध किसानों को संघर्ष करने हेतु प्रेरित किया। 1917 ई. में उन्होंने गुजरात के खेड़ा नामक जिले के किसानों की सहायता के लिए सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। इसके उपरान्त 1918 ई. में अहमदाबाद में सूती कपड़ा कारखाने के मजदूरों के समर्थन में सत्याग्रह आन्दोलन के लिए भी गए। 



5.1919 ई. में ब्रिटिश सरकार के द्वारा रॉलट ऐक्ट के नाम से एक कानून पारित किया। इस ऐक्ट के आधार पर अंग्रेजी प्रशासन को आन्दोलनकारियों की

राजनीतिक गतिविधियों का दमन करने और राजनीतिक कैदियों को उन पर बिना मुकदमा चलाए ही दो साल तक कैद में रखने का अधिकार प्राप्त हो गया।

भारतीयों ने इसे काला कानून के नाम से सम्बोधित किया। 



6.13 अप्रैल, 1919 ई. जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ। इस दिन अमृतसर में शांतिपूर्ण ढंग से सभा कर रहे सत्याग्रहियों पर जनरल डायर ने गोलियाँ चलवा डीं। आस-पास के गाँवों के बहुत से लोग इस दिन इसी बाग में वैसाखी का मेला देखने के लिए भी आए हुए थे। जनरल डायर ने इस मैदान से बाहर निकलने के सभी रास्तों को बन्द करवा दिया और इसके बाद अपने सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया। इस हत्याकांड में सैकड़ों लोगों ने वहीं दम तोड़ दिया।


7. 1920 ई. में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौता हुआ और असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम की स्वीकृति पर मोहर लगा दी गयी। जनवरी, 1921 ई. में यह असहयोग खिलाफत आन्दोलन आरम्भ कर दिया गया।


8.1922 ई. में गोरखपुर के चौरी-चौरा नामक स्थान पर आन्दोलनकारियों पर पुलिस ने हिंसक कार्यवाही करनी शुरू कर दी। इससे आन्दोलनकारी हिंसक हो। उठे और उनका पुलिस से टकराव हुआ। इसके बाद उग्र भीड़ ने वहाँ के पुलिस थाने को आग लगा दी, जिसमें कुछ अंग्रेज सिपाहियों की मृत्यु हो गयी। जब गांधीजी ने इस घटना के बारे में सुना तो उन्होंने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने का निर्णय किया। 


9● 1928 ई. में साइमन कमीशन भारत आया। भारतीय आन्दोलनकारियों ने साइमन कमीशन वापस जाओ' के नारों और प्रदर्शन से उसका विरोध किया।

साइमन कमीशन के विरुद्ध होने वाले इस आन्दोलन में कांग्रेस के साथ मुस्लिम लीग ने भी भाग लिया। 



10● 1928 ई. में गुजरात के बारडोली तालुका में अंग्रेजों द्वारा भूमि राजस्व बढ़ाने के विरुद्ध एक आन्दोलन किया गया। इस आन्दोलन को 'बारडोली सत्याग्रह' के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन का नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल के द्वारा किया गया और उनके प्रयासों से अन्ततः यह आन्दोलन सफल रहा। 


11● 1929 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की माँग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया। इस अधिवेशन में यह निर्णय किया गया कि 26 जनवरी, 1930 ई. को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। साथ ही इसी दिन लोग पूर्ण स्वराज के संघर्ष हेतु शपथ लेंगे।


12• 1930 ई. में महात्मा गांधी ने वायसराय लॉर्ड इरविन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने अपनी 11 माँगों का उल्लेख किया। उन्होंने यह भी लिखा कि यदि 11 मार्च तक उनकी माँगें नहीं मानी गयीं तो कांग्रेस के द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर दिया जाएगा। इरविन झुकने को तैयार नहीं हुए। परिणामतः महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वसनीय वॉलंटियरों के साथ दांडी यात्रा शुरू कर दी और इसी के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हो गया। 



13.दांडी यात्रा: गांधीजी के साबरमती आश्रम से 240 किलोमीटर दूर गुजरात के दांडी नामक कस्बे में जाकर समाप्त होनी थी। अपनी इस यात्रा में गांधीजी और उनकी टोली ने 24 दिन तक प्रत्येक दिन 10 किलोमीटर की दूरी तय करके अपनी इस यात्रा को पूरा किया।


14● 1931 ई. में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस ले लिया तथा दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लन्दन गए। इससे पूर्व कांग्रेस पहले गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार कर चुकी थी। लंदन में उनके साथ हुई वार्ता बीच में ही टूट गयी और गांधीजी को निराश ही भारत वापस लौटना पड़ा।



15• 1932 ई. में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः शुरू कर दिया। लगभग सालभर तक यह आन्दोलन चला, परन्तु इसके उपरान्त इसकी गति धीमी होती गयी। 1934 ई. में याद आन्दोलन समाप्त हो गया।


16● क्रिप्स मिशन की असफलता और द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रभावस्वरूप भारत में व्यापक रूप से असंतोष उत्पन्न हुआ। 1942 ई. में महात्मा गांधी के द्वारा 'भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू कर दिया गया। इस आन्दोलन में अंग्रेजों को पूरी तरह भारत को छोड़कर जाने और भारत को पूर्ण रूप से मुक्त करके उन्हें आजादी देने की माँग की गयी थी।


महत्त्वपूर्ण शब्दावली


1• बहिष्कार किसी भी व्यक्ति के साथ जुड़ने अथवा उसके साथ किसी भी प्रकार का सम्पर्क रखने से मना कर देना या किसी प्रकार की गतिविधियों में अपनी

हिस्सेदारी व वस्तुओं के प्रयोग व खरीदारी से इनकार करना प्रायः यह विरोध प्रदर्शित करने का एक रूप होता था। गिरमिटिया मजदूर-औपनिवेशिक शासन के समय अनेक लोगों को काम करने के लिए फिजी, गुयाना, वेस्टइंडीज आदि स्थानों पर ले जाया गया था। इन्हीं लोगों को बाद में गिरमिटिया कहा जाने लगा। उन्हें इन स्थानों पर एक अनुबंध के तहत ले जाया जाता था। बाद में इस अनुबंध को ही मजदूर 'गिरमिट कहने

लगे। इसी कारण आगे चलकर इन मजदूरों को गिरमिटिया कहा जाने लगा।


2• सत्याग्रह सत्याग्रह' का अर्थ है- सत्य के लिए आग्रह करना। सत्याग्रह करने वाला केवल अहिंसक मार्ग के द्वारा ही अपनी माँग के लिए आग्रह करता है। 


3● रौलट ऐक्ट-अंग्रेज सरकार के द्वारा बनाया गया एक कानून: जिसके आधार पर अंग्रेज सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को सख्ती के साथ बन्द करने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में रखने का अधिकार था। भारतीयों के द्वारा इस कानून को काला कानून के नाम से सम्बोधित किया गया।


4• साइमन कमीशन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में गठित एक आयोगः जो भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्य-शैली का अध्ययन करने के लिए आया था।

हरिजन महात्मा गांधी के द्वारा अछूतों को 'हरिजन' अर्थात् 'ईश्वर की संतान कहा गया था। 


5• स्वदेशी अपने देश में बनी वस्तुओं का प्रयोग करना; जिससे स्वदेशी उद्योगों के हितों को प्रोत्साहन प्राप्त हो सके।


सविनय अवज्ञा–विनम्रतापूर्वक सरकार की आज्ञा की अवेहलना करना, जिससे ब्रिटिश सरकार अपना शासन संचालित न कर पाए। इस आन्दोलन को गांधीजी के द्वारा आरम्भ किया गया था। असहयोग किसी को किसी भी प्रकार का सहयोग न देना। असहयोग आन्दोलन: भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाया गया। इस आन्दोलन में उन्होंने भारतवासियों से सरकार के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग न करने का आह्वान किया था।


महत्त्वपूर्ण तिथियाँ


1.1914-1918 ई. प्रथम विश्वयुद्ध


2• 1918-1919 ई. - बाबा रामचन्द्र द्वारा उत्तर प्रदेश के किसानों को संगठित किया गया।


3● 1916 ई. -लखनऊ समझौता।


4 • 1917-1918 ई. चम्पारण सत्याग्रह


5• अप्रैल, 1919 ई. -रॉलट ऐक्ट के खिलाफ गांधीवादी हड़ताल, जलियाँवाला बाग हत्याकांड।


6 • जनवरी, 1921 ई. -असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन का आरम्भ।


फरवरी, 1922 ई-चौरी-चौरा काण्ड, गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को वापस लेना।


7• मई, 1924 ई.- अल्लूरी सीताराम की गिरफ्तारी, हथियारबन्द्र आदिवासी संघर्ष समाप्त।


 8• दिसम्बर 1929 ई. -लाहौर अधिवेशन, कांग्रेस के द्वारा पूर्ण स्वराज की माँग को स्वीकार कर लेना।


9. 1930 ई. -भीमराव अम्बेडकर द्वारा दलित वर्ग एसोसिएशन की स्थापना।


10• मार्च, 1930 ई. गांधीजी द्वारा दांही में नमक कानून का उल्लंघन व सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत।


11● मार्च, 1931 ई. गांधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लिया जाना। 


12● 1931 ई.-गांधी-इर्विन समझौता।


13• दिसम्बर 1931 ई.दूसरा गोलमेज सम्मेलन ।


14● 1932 ई. सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः आरम्भ, पूना समझौता।


15 ● 1934 ई. - सविनय अवज्ञा आन्दोलन की समाप्ति।


16● 1940 ई. मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग


17● 1942 ई.-क्रिप्स मिशन: भारत छोड़ो आन्दोलन।।


18● 1946 ई. - भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम पारित 


19● 1947 ई.-भारत को आजादी प्राप्त हुई।


20• 26 जनवरी, 1950 ई. भारत में संविधान लागू हुआ।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक




प्रश्न 1.महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से वापस कब लौटे?


 (क) 1914 


(ख) 1915


 (ग) 1918 


(घ) 1919


उत्तर-


(ख) 1915




प्रश्न 2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन में महात्मा गांधी ने नमक को अत्यधिक महत्त्व क्यों दिया?




(क) नमक का प्रयोग अमीर-गरीब सभी करते थे


(ख) यह भोजन का अभिन्न हिस्सा था


(ग) नमक तैयार करने पर सरकार का एकाधिकार था


(घ) उपर्युक्त में से सभी




उत्तर-


(क) नमक का प्रयोग अमीर-गरीब सभी करते थे



प्रश्न 3 अप्रैल, 1919 किस घटना से सम्बन्धित है?



(क) सत्याग्रह आन्दोलन की शुरुआत


 (ख) साइमन कमीशन का भारत आगमन


(ग) असहयोग आन्दोलन की शुरुआत 


(घ) जलियाँवाला बाग हत्याकांड


उत्तर-


(घ) जलियाँवाला बाग हत्याकांड महात्मा गांधी ने 




प्रश्न 4.असहयोग आन्दोलन कब आरम्भ किया?


(क) 1919 ई. को


(ख) 1920 ई. को


(ग) 1922 ई. को


(घ) 1923 ई. को


उत्तर-


(ख) 1920 ई.





प्रश्न 5.पूना पैक्ट किन दो नेताओं के बीच हुआ?



(क) गांधीजी और डॉ. अम्बेडकर


(ख) गांधीजी और नेहरू


(ग) गांधीजी और सरदार पटेल


(घ) नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस



उत्तर


 (क) गांधीजी और डॉ. अम्बेडकर


प्रश्न 6.सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब चलाया गया?



(क) 1920


 (ख) 1927


 (ग) 1930


(घ) 1935


उत्तर- (ग) 1930


प्रश्न 7.भारत के लिए डोमेनियन स्टेट्स का ऐलान किसके द्वारा किया गया?



(क) लॉर्ड लिटन द्वारा (ग) लॉर्ड कर्जन द्वारा


(ख) लॉर्ड इरविन द्वारा (घ) लॉर्ड रिपन द्वारा


उत्तर-


(ख) लॉर्ड इरविन द्वारा


प्रश्नः 8. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत किस महत्त्वपूर्ण घटना के साथ की गयी?


(क) रॉलेट ऐक्ट की घोषणा


(ख) नमक-कानून तोड़कर


(ग) साइमन कमीशन के आगमन


 (घ) जलियाँवाला बाग हत्याकांड


उत्तर-


(ख) नमक-कानून तोड़कर 



प्रश्न 9'करो या मरो' का नारा किसका था?




(क) सुभाष चन्द्र बोस


(ख) चन्द्रशेखर आजाद


(ग) भगत सिंह


(घ) महात्मा गांधी


उत्तर-


(घ) महात्मा गांधी




प्रश्न 10.'वन्दे मातरम्' गीत किसके द्वारा लिखा गया था?


(क) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वार


 (ख) रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा


(ग) अबनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा


(घ) महात्मा गांधी द्वारा


उत्तर


(क) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा 



प्रश्न 11. असहयोग आन्दोलन का मुख्य कारण क्या था?




(क) रॉलेट ऐक्ट


(ख) प्रथम विश्वयुद्ध


(ग) खिलाफत आन्दोलन


(घ) प्रथम विश्वयुद्ध


उत्तर-


(ग) खिलाफत आन्दोलन


प्रश्न 12. भारत आने पर गांधी जी ने अपना सबसे पहला सत्याग्रह आन्दोलन कौन-सा किया?




(क) बारडोली सत्याग्रह आन्दोलन


(ख) खेड़ा सत्याग्रह आन्दोलन


(ग) चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन


(घ) अहमदाबाद आन्दोलन


उत्तर- (ग) चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन





अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक




प्रश्न 1. रॉलेट ऐक्ट क्या था?


उत्तर- रॉलेट ऐक्ट 1919 ई. में पारित एक ऐसा कानून था जिसमें भारतीयों पर किसी तरह के मुकदमे को चलाए बिना शंका के आधार पर गिरफ्तार कर दो साल तक जेल में बंद किया जा सकता था।


प्रश्न 2. भारत आने के बाद गांधी जी द्वारा चलाया गया पहला आंदोलन कौन-सा था?


उत्तर दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटने के बाद गांधी जी ने 1916 ई. में बिहार के चम्पारण से अपने पहले सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की, यहाँ के किसान नील की खेती के विरोध में आंदोलन चला रहे थे।


प्रश्न 3, गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को ही क्यों चुना?


 या गांधी जी ने अपनी पुस्तक 'हिन्द स्वराज' में असहयोग आंदोलन के पक्ष में क्या तर्क दिया?



उत्तर महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक 'हिन्द स्वराज' में कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है। अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले ले तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी।


प्रश्न 4. असहयोग आन्दोलन कब और क्यों वापस लिया गया? 


उत्तर. असहयोग आन्दोलन 1922 ई० में चौरी-चौरा की घटना के कारण वापस लिया गया।


प्रश्न 5.खिलाफत आंदोलन किसने शुरू किया था? 


उत्तर- मोहम्मद अली तथा शौकत अली ने।


प्रश्न6. साइमन कमीशन का गठन क्यों किया गया था, इसका विरोध क्यों हुआ? 


उत्तर- सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया। राष्ट्रवादी आंदोलन के जवाब में गठित किए गए इस आयोग को भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्य-शैली का अध्ययन करना था और उसके बारे में सुझाव देने थे। इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था, सारे अंग्रेज थे। इसलिए साइमन कमीशन का भारत में विरोध हुआ।


प्रश्न 7..जब सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ उस समय किन समुदायों के बीच संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था?


 उत्तर.जब सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ उस समय कुछ मुस्लिम उत्तर समुदायों के बीच संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था। कांग्रेस से कटे हुए मुसलमानों का बड़ा वर्ग किसी संयुक्त संघर्ष के लिए तैयार नहीं था। बहुत सारे मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवी भारत में अल्पसंख्यकों के रूप में मुसलमानों की हैसियत को लेकर चिंता जता रहे थे। उनको भय था कि हिंदू बहुसंख्यक के वर्चस्व की स्थिति में अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान खो जाएगी।


प्रश्न 8. लोगों को एकजुट करने में झंडे का क्या योगदान था ?


 उत्तर.राष्ट्रवादी नेता लोगों को एकजुट करने के लिए बंगाल में स्वदेशी उत्तर आंदोलन के दौरान एक तिरंगा झंडा (हरा, पीला, लाल) तैयार किया गया। इसमें ब्रिटिश भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते कमल के आठ फूल और हिंदुओं व मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता एक अर्द्धचंद्र दर्शाया गया था। 1921 तक गांधी जी ने भी तिरंगा सफेद, हरा और लाल, जिसके मध्य में चरखा था, तैयार कर लिया था। जुलूसों में यह झंडा थामे शासन के प्रति अवज्ञा का

संकेत था। 




 प्रश्न 9. स्वदेशी आंदोलन की प्रेरणा से अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता की विख्यात छवि को किस प्रकार चित्रित किया?


उतर इस पेंटिंग में भारत माता की एक संन्यासिनी के रूप में दर्शाया गया है। वह शांत, गंभीर, देवी और आध्यात्मिक गुणों से युक्त दिखाई देती है। इस से मातृछवि के प्रति श्रद्धा को राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा।


प्रश्न 10. गांधी-इरविन समझौता कब हुआ? इसकी कोई एक शर्त बताइए। 


उत्तर 5 मार्च, 1931 को गांधी जी और इरविन के बीच समझौता हुआ था। इस समझौते में सरकार ने वचन दिया कि हिंसा के आरोप में गिरफ्तार लोगों को छोड़कर सभी राजनीतिक बंदी रिहा कर दिए जाएंगे।


प्रश्न 11. असहयोग आंदोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से विदेशी वस्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ा?


उत्तर- असहयोग आंदोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी। 1921 से 1922 के बीच विदेशी कपड़ों का आयात आधा रह गया था। उसकी कीमत 102 करोड़ से घटकर 57 करोड़ रह गई। बहुत सारे स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करने या विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इंकार कर दिया।


प्रश्न 12. 'केसरी' समाचार पत्र का प्रकाशन किसके द्वारा किया गया? 


उत्तर- बाल गंगाधर तिलक द्वारा।


प्रश्न 13. 1859 के 'इनलैंड इमिग्रेशन ऐक्ट की कोई एक विशेषता लिखिए।


 उत्तर- बागान में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी।


प्रश्न 14. पूर्ण स्वराज का उद्घोष कब किया गया?


उत्तर- 31 दिसम्बर, 1929 को लाहौर अधिवेशन में।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक



प्रश्न1. भारत में लोगों द्वारा 'रॉलेट ऐक्ट' का किस प्रकार विरोध किया गया? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।


या रॉलेट ऐक्ट क्या था? उसका विरोध कैसे किया गया? क्या परिणाम हुआ?



उत्तर- रॉलेट ऐक्ट- रॉलेट ऐक्ट 1919 ई. में पारित एक ऐसा कानून था जिसमें भारतीयों पर किसी तरह के मुकदमे को चलाए बिना शंका के आधार पर गिरफ्तार कर दो साल तक जेल में बंद किया जा सकता था।


 परिणाम-अंग्रेजों ने राष्ट्रवादियों पर दमन शुरू करने के साथ मार्शल लॉ लागू कर दिया। 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ।


विरोध-भारत में लोगों द्वारा 'रॉलेट ऐक्ट' का विरोध निम्न प्रकार से किया गया था 


(i) विभिन्न शहरों में रैली-जुलूसों का आयोजन किया गया।


(ii) रेलवे वर्कशॉप्स में कामगार हड़ताल पर चले गए। 


(iii) कई शहरों में दुकानदारों ने दुकान बंद करके अपना विरोध जताया।


प्रश्न 2. साइमन कमीशन की रिपोर्ट से कांग्रेस क्यों असन्तुष्ट थी? कांग्रेस ने किस नई नीति की घोषणा की?


उत्तर- साइमन कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य के शामिल नहीं के कारण कांग्रेस इसकी रिपोर्ट से असन्तुष्ट थी। कांग्रेस ने 'पूर्ण स्वराज' की नई नीति की घोषणा की। दिसम्बर 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन मे ‘पूर्ण स्वराज' की माँग को औपचारिक रूप से मान लिया गया तथा तय किया गया कि 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा और उस दिन लोग पूर्ण स्वराज के लिए संघर्ष की शपथ लेंगे।




प्रश्न 3. पूना पैक्ट पर किसके हस्ताक्षर हुए? उसकी दो शर्तें लिखिए।



उत्तर- पूना पैक्ट पर गांधी जी और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के हस्ताक्षर हुए। सितम्बर 1932 में हुए पूना पैक्ट की दो शर्तें निम्नलिखित हैं


(i) अम्बेडकर द्वारा दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की माँग को वापस लेना।


(ii) दलित वर्गों को प्रांतीय एवं केन्द्रीय विधायी परिषदों में आरक्षण दिया जाना।


प्रश्न 4. अल्लूरी सीताराम राजू कौन थे? विद्रोहियों को गांधी जी के विचारों से प्रेरित करने में उनकी भूमिका को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर- अल्लूरी सीताराम राजू आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र के रहने वाले थे तथा उन्होंने गुडेंम विद्रोहियों को नेतृत्व प्रदान किया था। वे बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। वे खगोलीय घटनाओं का सटीक अनुमान लगा सकते थे, बीमार लोगों का इलाज करते थे।


राजू महात्मा गांधी की महानता के गुण गाते थे। उनका कहना था कि वह असहयोग * आंदोलन से प्रेरित हैं। उन्होंने लोगों को खादी पहनने तथा शराब छोड़ने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने यह दावा भी किया कि भारत अहिंसा के बल पर नहीं बल्कि केवल बल प्रयोग के जरिए ही आजाद हो सकता है।


प्रश्न 5. नमक यात्रा उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक थी। स्पष्ट कीजिए।


उत्तर- 31 जनवरी, 1930 को गांधी जी ने वायसराय इरविन को एक खत लिखा। इस खत में उन्होंने ग्यारह माँगों का उल्लेख किया था। इनमें से कुछ सामान्य माँगें थीं, जबकि कुछ माँगें उद्योगपतियों से लेकर किसानों तक विभिन्न तबकों से जुड़ी हुई थीं। गांधी जी इन माँगों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ना चाहते थे ताकि सभी उनके अभियान में शामिल हो सकें। इनमें से सर्वाधिक प्रमुख माँग नमक कर को समाप्त करने के बारे में थी। सफलतापूर्वक नमक यात्रा निकालकर गांधी जी ने औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार को अपने सत्याग्रह के तरीके से उत्तर दिया। नमक यात्रा वास्तव में उपनिवेशवाद के विरुद्ध प्रतिरोध का एक सबसे बड़ा प्रतीक थी।


प्रश्न 6. उन परिस्थितियों की व्याख्या कीजिए जिनमें गांधीजी ने 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया।


उत्तर- गांधी जी ने समझौता के तहत 1931 ई. में सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया था, इसके निम्नलिखित कारण थे


(i) सरकार राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राजी हो गयी थी। 


(ii) सरकार ने दमनकारी नीति चला रखी थी जिसके तहत शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर हमले किए गए, महिलाओं और बच्चों को मारा पीटा गया और लगभग एक लाख लोग गिरफ्तार किए गए।


(iii) औद्योगिक मजदूरों ने अंग्रेजी शासन का प्रतीक पुलिस चौकियों, नगरपालिका भवनों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए थे।




प्रश्न 7. सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति लोगों और उपनिवेशक सरकार ने किस प्रकार प्रतिक्रिया व्यक्त की? स्पष्ट कीजिए।


उत्तर- देश के विभिन्न भागों में हजारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन किए। आंदोलन फैला तो विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया जाने लगा। शराब की दुकानों की पिकेटिंग होने लगी। किसानों ने लगान और चौकीदारी कर चुकाने से इंकार कर दिया। गाँवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफे देने लगे। बहुत सारे स्थानों पर जंगलों में रहने वाले वन कानूनों का उल्लंघन करने लगे।


औपनिवेशिकं सरकार कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने लगी। जब महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया तो शोलापुर के औद्योगिक मजदूरों ने अंग्रेजी शासन का प्रतीक पुलिस चौकियों, नगरपालिका भवनों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए। सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए औरतों, बच्चों और शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों को मारा-पीटा और लगभग एक लाख लोगों को गिरफ्तार किया।


प्रश्न 8 रॉलेट ऐक्ट के खिलाफ़ चले आंदोलन का दमन किस प्रकार किया गया?


उत्तर- गांधी जी रॉलेट ऐक्ट जैसे अन्यायपूर्ण कानून के खिलाफ़ अहिंसक नागरिक अवज्ञा चाहते थे। इसे 6 अप्रैल, 1919 को एक हड़ताल से शुरू होना था। विभिन्न शहरों में रैली-जुलूसों का आयोजन किया गया। रेलवे वर्कशॉप्स में कामगार हड़ताल पर चले गए। दुकानें बंद हो गईं। इस व्यापक जन उभार से चिंतित तथा रेलवे व टेलीग्राफ़ जैसी संचार सुविधाओं के भंग हो जाने की आशंका से भयभीत अंग्रेज़ों ने राष्ट्रवादियों का दमन शुरू कर दिया। अमृतसर में बहुत सारे स्थानीय नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। गांधी जी के दिल्ली प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। 10 अप्रैल को पुलिस ने अमृतसर में एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चला दी। इसके बाद लोग बैंकों, डाकखानों और रेलवे स्टेशनों पर हमले करने लगे। मार्शल लॉ लागू कर दिया गया और जनरल डायर ने पंजाब में कमान सँभाल ली।


प्रश्न 9


खिलाफत आंदोलन क्यों शुरू हुआ?


उत्तर- पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन तुर्की की हार हो चुकी थी। इस आशय की अफ़वाह फैली हुई थी कि इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफ़ा) ऑटोमन सम्राट पर एक बहुत सख्त शांति संधि थोपी जाएगी। खलीफ़ा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए 1919 में बंबई में एक खिलाफ़त समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जन कार्यवाही की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी। सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी दूसरे नेताओं को राजी कर लिया कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए।


प्रश्न 10. गांधी-इरविन समझौते के प्रावधानों का वर्णन कीजिए। 


उत्तर- सविनय अवज्ञा आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में 5 मार्च, 1931 को गांधी-इरविन समझौता हुआ। इरविन उस समय भारत के वायसराय थे। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे


(i) सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित कर दिया जाएगा।


(ii) सरकार अध्यादेशों व मुकदमों को वापस ले लेगी। 


(iii) हिंसात्मक अपराधियों को छोड़कर अन्य समस्त राजनीतिक बन्दियों को मुक्त कर दिया जाएगा।


 (iv) शराब, अफीम व विदेशी वस्तुओं की दुकानों पर धरना देने वालों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।


(v) समुद्र तट से एक निश्चित दूरी पर नमक बनाने की छूट होगी।


(vi) जमानतें व जुर्माने वसूल नहीं किए जाएँगे।


 (vii) जिन व्यक्तियों ने सरकारी नौकरी छोड़ दी है, उन्हें वापस लेने में उदार नीति अपनाई जाएगी। 


(viii) कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी। 


(ix) विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग नहीं किया जाएगा।


(x) कांग्रेस पुलिस अत्याचारों के विरुद्ध निष्पक्ष जाँच की माँग को त्याग देगी।



प्रश्न 11. राष्ट्रवाद के विकास का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा?


उत्तर- राष्ट्रवाद के विकास के विश्व पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े


(i) विश्व में राष्ट्र-राज्यों का उदय हुआ।


(ii) समस्त जनसमुदाय यह विचारने लगा कि वे कौन हैं, उनकी पहचान किस बात से परिभाषित होती है। अतः वे अपने आप को किसी देश के नागरिक के रूप में परिभाषित करने लगे जिससे उनमें राष्ट्र के प्रति लगाव उत्पन्न होने लगा।


(iii) इस परिभाषा के लिए नए प्रतीकों, नए चिह्नों, नए गीतों व विचारों के नए संपर्क स्थापित किए तथा समुदायों की सीमाओं को दोबारा परिभाषित किया।


(iv) इस परिभाषा के निर्माण के लिए समस्त जनसमुदायों ने अपने-अपने ढंग से संघर्ष किया, जो कई स्थानों पर काफी लम्बा भी चला।



प्रश्न 12. सक्रिय राजनीति में भाग लेने से पूर्व गांधी जी ने किन-किन स्थानों पर सत्याग्रह आंदोलन किए? इनके प्रारंभ करने के क्या कारण थे?


उत्तर सक्रिय राजनीति में भाग लेने से पहले गांधी जी ने अपने गुरु गोपालकृष्ण गोखले के कहने पर 'भारत भ्रमण' किया। इस दौरान उन्होंने कई स्थानों पर सत्याग्रह आंदोलन चलाए, जिनमें प्रमुख हैं


1. चम्पारण सत्याग्रह - 1916 ई. में उन्होंने बिहार के चम्पारण क्षेत्र का दौरा किया और वहाँ के किसानों को दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए प्रेरित किया।


2. गुजरात सत्याग्रह - 1917 ई. में गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह किया क्योंकि फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण किसान लगान नहीं चुका पा रहे थे जबकि सरकार उनसे जबरन लगान वसूल कर रही थी।


3. अहमदाबाद सत्याग्रह - 1918 ई. में अहमदाबाद के सूती कपड़ा कारखानों में कार्य करने वाले मज़दूरों के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन किया।


उपर्युक्त आंदोलन में उन्हें सफलता भी मिली जिस कारण आम आदमी में उनकी अलग पहचान स्थापित हुई।


प्रश्न 13. जलियाँवाला बाग काण्ड पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


उत्तर


रॉलेट ऐक्ट के विरोध में पंजाब के अमृतसर जिले की जनता अत्यन्त आक्रोशित थी। इस शहर में सैनिक शासन लागू करके नियन्त्रण जनरल डायर को दिया गया था। 12 अप्रैल, 1919 को नगर में सार्वजनिक सभा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, जिसकी पूरी जानकारी जनता को नहीं कराई गई।


13 अप्रैल को बैसाखी का त्योहार था। इसी दिन सरकार की नीति का विरोध करने के लिए जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया।


सभा शान्तिपूर्वक चल रही थी। तभी जनरल डायर ने 200 देशी और 50 गोरे सिपाहियों को साथ लेकर बाग के एकमात्र दरवाजे को रोक लिया और निहत्थी जनता पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। 10 मिनट तक निहत्थी भीड़ पर गोलियों की बौछार होती रही। इस हत्याकाण्ड में हजारों व्यक्ति मारे गए और असंख्य घायल हुए। इस घटना से भारतीयों में भयंकर असन्तोष की लहर दौड़ गई।




प्रश्न 13. जलियाँवाला बाग काण्ड पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


उत्तर- रॉलेट ऐक्ट के विरोध में पंजाब के अमृतसर जिले की जनता अत्यन्त आक्रोशित थी। इस शहर में सैनिक शासन लागू करके नियन्त्रण जनरल डायर को दिया गया था। 12 अप्रैल, 1919 को नगर में सार्वजनिक सभा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, जिसकी पूरी जानकारी जनता को नहीं कराई गई।


13 अप्रैल को बैसाखी का त्योहार था। इसी दिन सरकार की नीति का विरोध करने के लिए जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया।


सभा शान्तिपूर्वक चल रही थी। तभी जनरल डायर ने 200 देशी और 50 गोरे सिपाहियों को साथ लेकर बाग के एकमात्र दरवाजे को रोक लिया और निहत्थी जनता पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। 10 मिनट तक निहत्थी भीड़ पर गोलियों की बौछार होती रही। इस हत्याकाण्ड में हजारों व्यक्ति मारे गए और असंख्य घायल हुए। इस घटना से भारतीयों में भयंकर असन्तोष की लहर दौड़ गई।


प्रश्न 14. प्रथम विश्वयुद्ध के भारतीय समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा? 



उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध के भारतीय समाज व अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े


(i) इस विश्वयुद्ध ने एक नयी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी।


 (ii) इसके कारण रक्षा व्यय में भारी इजाफ़ा हुआ।


(iii) इस खर्चे की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर कर्जे लिए गए। और करों में वृद्धि की गई। 


(iv) सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया। युद्ध के दौरान कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं।


(v) 1913 से 1918 के बीच कीमतें दोगुनी हो चुकी थीं, जिसके कारण आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई थीं।


(vi) गाँवों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया गया जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में व्यापक गुस्सा था।


(vii) 1918-19 और 1920-21 में देश के बहुत सारे हिस्सों की फसलें खराब हो गई, जिसके कारण खाद्य-पदार्थों का भारी अभाव पैदा हो गया। 


(viii) उसी समय फ्लू की महामारी फैल गई।


(ix) 1921 की जनगणना के मुताबिक दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।




प्रश्न 15. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?


उत्तर सत्याग्रह के विचार का मूल आधार सत्य की शक्ति पर आग्रह तथा सत्य की खोज करना है। गांधी जी इसके प्रबल समर्थक थे तथा उन्होंने इसकी व्याख्या इस प्रकार की


(i) अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं।


(ii) प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।


(iii) इसके लिए दमनकारी शत्रु की चेतना को झिंझोड़ना चाहिए। उत्पीड़क शत्रु को ही नहीं बल्कि सभी लोगों को हिंसा के जरिए सत्य को स्वीकार करने पर विवश करने की बजाय सच्चाई को देखने और उसे सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।


(iv) इस संघर्ष में अंततः सत्य की ही जीत होती है। गांधी जी का अटूट विश्वास था कि अहिंसा का धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक




प्रश्न 1.भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्व का वर्णन कीजिए।


उत्तर


1929 ई. के अपने लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता की माँग को अपना आदर्श घोषित किया, परंतु यह आदर्श तब तक पूरा नहीं हो सकता था जब तक ब्रिटिश सरकार का जोर-शोर से विरोध न किया जाए। इस तरह महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1930 ई. में कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन का श्रीगणेश महात्मा गांधी की दांडी यात्रा और नमक कानूनों को तोड़कर शुरू किया गया। कई उतार-चढ़ाव के साथ यह आंदोलन 1934 ई. तक चलता रहा। इस आंदोलन को 1934 में वापस ले लिया गया। फिर भी इसने राष्ट्रीय आंदोलन पर अपने गहरे प्रभाव छोड़े


(i) सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान लोगों का ब्रिटिश शासन विश्वास जाता रहा और वे ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लड़ने के लिए। एकजुट होने लगे।


(ii) सविनय अवज्ञा आंदोलन के चलाए जाने के साथ भारत में क्रांतिकारी आंदोलन फिर से जागृत हो गए। इसी काल में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त आदि क्रांतिकारी देशभक्तों ने दिल्ली में एसेंबली में दो बम फेंके।


(iii) इस आंदोलन के दौरान भारतीयों को ब्रिटिश सरकार की कठोर यातनाओं को सहना पड़ा परंतु अपने संघर्ष से जो अनुभव उन्हें मिला वह अमूल्य था। इस अनुभव ने आगे आने वाले स्वतंत्रता संघर्ष में उनका बड़ा मार्गदर्शन किया और एक सफल संघर्ष के दाँव-पेंच समझा दिए।


प्रश्न 2. गांधी जी की नमक यात्रा का वर्णन कीजिए।


या नमक सत्याग्रह क्यों प्रारम्भ किया गया था? उसका संक्षिप्त विवरण दीजिए। 


उत्तर 31 जनवरी, 1930 को गांधी जी ने वायसराय इरविन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था। इन माँगों के जरिए वे समाज के सभी वर्गों को जोड़ना चाहते थे। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे में थी। नमक का अमीर-गरीब सभी इस्तेमाल करते थे। यह भोजन का एक अभिन्न हिस्सा था। इसलिए नमक पर कर और उसके उत्पादन पर सरकारी इजारेदारी को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार का सबसे दमनात्मक पहलू बताया था।


महात्मा गांधी का यह पत्र एक चेतावनी की तरह था। उन्होंने लिखा था कि यदि 11 मार्च तक इन माँगों को नहीं माना गया तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर देगी। इरविन झुकने को तैयार नहीं थे। महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में गांधी जी के आश्रम से 240 किलोमीटर दूर दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। गांधी जी की टोली ने 24 दिन तक हर रोज लगभग 10 मील का सफ़र तय किया। गांधी जी जहाँ भी रुकते हज़ारों लोग उन्हें सुनने आते। इन सभाओं में गांधी जी ने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया और आह्वान किया कि लोग शांतिपूर्वक अंग्रेजों की अवज्ञा करें। 6 अप्रैल को वे दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था।


हज़ारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखाने के सामने प्रदर्शन किए। आंदोलन फैला तो विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया जाने लगा। शराब की दुकानों की पिकेटिंग होने लगी। किसानों ने लगान और चौकीदारी कर चुकाने से इनकार कर दिया। गाँवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफ़े देने लगे।


इन घटनाओं से चिंतित औपनिवेशिक सरकार कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने लगी। सरकार ने दमन चक्र चलाया तो गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया।



प्रश्न 3. सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल विभिन्न सामाजिक समूह कौन-से थे? उन्होंने आंदोलन में क्यों हिस्सा लिया?


उत्तर सविनय अवज्ञा आंदोलन में निम्नलिखित सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया


संपन्न किसान— गाँवों में व्यवसायी वर्ग की तरह संपन्न किसानों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का पूर्णरूपेण समर्थन किया। उन्होंने अपने समुदायों को एकजुट किया और कई बार अनिच्छुक सदस्यों को बहिष्कार के लिए मजबूर किया। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ़ लड़ाई थी, लेकिन जब 1931 में लगानों के घंटे बिना आंदोलन वापस ले लिया गया तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। गरीब किसान केवल लगान में ही कमी नहीं चाहते थे, वे चाहते थे कि उन्हें ज़मीदारों को जो भाड़ा चुकाना था उसे माफ़ कर दिया जाए। इसके लिए उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में हिस्सा लिया, जिनका नेतृत्व अक्सर समाजवादियों और कम्युनिस्टों के हाथों में होता था।


व्यवसायी वर्ग-व्यवसायी वर्ग ने अपने कारोबार को फैलाने के लिए ऐसी औपनिवेशिक नीतियों का विरोध किया जिनके कारण उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावट आती थी। वे विदेशी वस्तुओं के आयात से सुरक्षा चाहते थे। इसके लिए इन्होंने पहले सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन किया।


मजदूर वर्ग जैसे जैसे उद्योगपति कांग्रेस के निकट आने लगे मजदूर कांप्रेस से दूर होते गए। फिर भी कुछ मज़दूरों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार जैसे कुछ गांधीवादी विचारों को कम वेतन व खराब कार्य स्थितियों के खिलाफ अपनी लड़ाई से जोड़ लिया था। 1930 में रेलवे कामगारों की और 1932 में गोदी कामगारों की हड़ताल हुई। 1930 में छोटानागपुर के टीन खानों के हजारों मजदूरों ने गांधी टोपी पहनकर रैलियों और बहिष्कार अभियानों में हिस्सा लिया।


महिलाएं- सविनय अवज्ञा आंदोलन में महिलाओं ने बड़े पैमाने पर भाग लिया। गांधी जी के नमक सत्याग्रह के दौरान हजारों महिलाएँ उनको बात सुनने के लिए घर से बाहर आ जाती थी। उन्होंने जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों की होली जलाई। बहुत सारी महिलाएं जेल भी गई। गांधी जी के आह्वान के बाद महिलाओं ने बड़ी संख्या में इस आंदोलन में भाग लिया।



प्रश्न 4. भारत में राष्ट्रवाद की भावना पनपने में किन-किन कारकों का योगदान था ?


या भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के तीन कारणों को लिखिए।


 उत्तर


राष्ट्रवाद की भावना तब पनपती है जब लोग ये महसूस करने लगते  हैं कि वे एक ही राष्ट्र के अंग हैं। तब वे एक-दूसरे को एकता के सूत्र में बाँधने वाली कोई साझा बात ढूँढ लेते हैं। सामूहिक अपनेपन की यह भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षों से पैदा हुई थी। इतिहास व साहित्य, लोक-कथाएँ व गीत, चित्र व प्रतीक सभी ने राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना योगदान दिया था। भारत में राष्ट्रवाद की भावना पनपने में योगदान देने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं


(i) 20वीं सदी में राष्ट्रवाद के विकास के साथ भारत की पहचान भी भारत माता की छवि का रूप लेने लगी। यह तस्वीर पहली बार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने बनाई थी। 1870 के दशक में उन्होंने मातृभूमि की स्तुति के रूप में 'वंदे-मातरम्' गीत लिखा था। बाद में इसे उन्होंने अपने उपन्यास 'आनंदमठ' में शामिल कर लिया। यह गीत बंगाल में स्वदेशी आंदोलन में खूब गाया गया। स्वदेशी आंदोलन की प्रेरणा से अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता की विख्यात छवि को चित्रित किया। इस पेंटिंग में भारत माता को एक संन्यासिनी के रूप में दर्शाया गया है। इस मातृछवि के प्रति श्रद्धा को राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा।


(ii) राष्ट्रवाद का विचार भारतीय लोक कथाओं को पुनर्जीवित करने के आंदोलन से भी मज़बूत हुआ। 19वीं सदी के अंत में राष्ट्रवादियों ने भाटों व चारणों द्वारा गाई-सुनाई जाने वाली लोक कथाओं को दर्ज करना शुरू कर दिया। उनका मानना था कि यही कहानियाँ हमारी परंपरागत संस्कृति की तस्वीर पेश करती हैं जो बाहरी ताकतों के • प्रभाव से भ्रष्ट और दूषित हो चुकी हैं। अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूंढ़ने और अपने अतीत में गौरव का भाव पैदा करने के लिए लोक परंपरा को बचाकर रखना जरूरी था।


(iii) राष्ट्रवादी नेता लोगों में राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए चिह्नों और प्रतीकों के बारे में जागरूक होते गए। 1921 तक गांधी जी ने भी स्वराज का झंडा तैयार कर लिया था। यह तिरंगा था (सफेद, हरा और लाल)। इसके मध्य में गांधीवाद प्रतीक चरखे को जगह दी गई जो आत्मसहायता का प्रतीक था। जुलूसों में यह झंडा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत था।


(iv) इतिहास की पुर्नव्याख्या राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का एक और साधन था। अंग्रेज़ों की नज़र में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं सँभाल सकते। इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे। उन्होंने इस गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू किया जब कला और वास्तुशिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे। इस ने राष्ट्रवादी इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन के तहत दुर्दशा से ची मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था। इस प्रकार राष्ट्रवाद की भावना फैलाने में विभिन्न तत्त्वों ने योगदान दिया।



प्रश्न 5. गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया? उनके द्वारा यह आन्दोलन वापस लेने के प्रमुख कारण क्या थे?


 या असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया गया? आन्दोलनकारियों केचार कार्य लिखिए।


उत्तर

 कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1920 ई. में असहयोग आन्दोलन शुरू करने का निर्णय लिया। यह एक क्रान्तिकारी कदम था। कांग्रेस ने पहली बार सक्रिय कार्यवाही अपनाने का निश्चय किया। इस क्रान्तिकारी परिवर्तन के अनेक कारण थे। अब तक महात्मा गांधी ब्रिटिश सरकार की न्यायप्रियता में विश्वास करते थे और उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को पूरा सहयोग दिया था, किन्तु जलियाँवाला बाग नरसंहार, पंजाब में मार्शल लॉ और हण्टर कमेटी की जाँच ने उनका अंग्रेजों के न्याय से विश्वास उठा दिया। उन्होंने अनुभव किया कि अब पुराने तरीके छोड़ने होंगे। कांग्रेस से उदारवादियों के अलग हो जाने के बाद कांग्रेस पर पूरी तरह से गरमपन्थियों का नियन्त्रण हो गया। उधर तुर्की और मित्रराष्ट्रों में सेवर्स की सन्धि की कठोर शर्तों से मुसलमान भी रुष्ट थे। देश में अंग्रेजों के प्रति बड़ा असन्तोष था। महात्मा गांधी ने मुसलमानों के खिलाफत आन्दोलन में उनका साथ दिया तथा असहयोग आन्दोलन छेड़ने का विचार किया।


सितम्बर, 1920 ई. में कलकत्ता में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव रखा। सी.आर. दास, बी.सी. पाल, ऐनी बेसेण्ट, जिन्ना और मालवीय जी ने इसका विरोध किया, लेकिन दिसम्बर, 1920 ई. में कांग्रेस के नियमित अधिवेशन में असहयोग का प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया तथा विरोधियों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया।


इस आन्दोलन के मुख्य बिन्दु थे-खिताबों तथा मानव पदों का त्याग, स्थानीय निकायों में नामजदगी वाले पदों से इस्तीफा, सरकारी दरबारों या सरकारी अफसरों के सम्मान में आयोजित उत्सवों में भाग न लेना, बच्चों को स्कूलों से हटा लेना, अदालतों का बहिष्कार, फौज में भरती का बहिष्कार आदि। असहयोगियों के लिए अहिंसा तथा सत्य का पालन करना आवश्यक था। गांधी जी को विश्वास था कि इस आन्दोलन से एक वर्ष में 'स्वराज' की प्राप्ति हो जाएगी। इस आन्दोलन का भारतीय जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा। विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई। बहुत से छात्रों ने स्कूल तथा कॉलेजों का बहिष्कार किया। महात्मा गांधी ने 'केसर-ए-हिन्द' का खिताब छोड़ दिया। 13 नवम्बर, 1921 को प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के समय बम्बई (मुम्बई) में हड़ताल रखी गई। दिसम्बर, 1921 में प्रिंस के कोलकाता आगमन पर भी हड़ताल रखी गई। ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन को कुचलने के लिए व्यापक दमन चक्र चलाया। महात्मा गांधी के अलावा सभी कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। चौरी-चौरा की एक अप्रिय घटना के कारण महात्मा गांधी ने यह आन्दोलन 1922 ई. में वापस ले लिया।


प्रश्न 6. महात्मा गांधी जी के सत्याग्रह पर एक निबन्ध लिखिए। 


 या भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी जी के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।



उत्तर- महात्मा गांधी अप्रैल 1893 में दक्षिण अफ्रीका गये थे तथा जनवरी 1915 में वे भारत लौटे। उन्होंने एक नए तरह के जनांदोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस पद्धति को वे सत्याग्रह कहते थे।


भारत आने के बाद गांधी जी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। 1917 में उन्होंने बिहार के चम्पारण इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। 1917 में ही उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। वे चाहते थे कि लगान वसूली में ढील दी जाए। 1918 में गांधी जी सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद जा पहुँचे।


इस कामयाबी से उत्साहित गांधी जी ने 1919 में प्रस्तावित रॉलेट ऐक्ट के - खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन चलाने का फैसला लिया। भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इस कानून को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने बहुत जल्दबाजी में पारित कर दिया था। इस कानून के जरिए । सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो 1 साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने को अधिकार मिल गया था। महात्मा गांधी ऐसे अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक ढंग से नागरिक अवज्ञा चाहते थे।


■रॉलेट सत्याग्रह में सफलता मिलने के बाद उन्होंने असहयोग आन्दोलन शुरु किया। यह आन्दोलन 1 अगस्त, 1920 को शुरु हुआ था और इसके तहत । ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग जताने के लिए लोगों से अपील की थी। इस आन्दोलन में स्कूल, कॉलेज, न्यायालय न जाएँ और न ही कर चुकाएँ, ये सारी चीजें लोगों को करने के लिए कहा गया था। तत्पश्चात् इस आन्दोलन का स्वरूप सविनय अवज्ञा आन्दोलन में परिवर्तित हो गया।



इसके बाद गांधी जी ने नमक सत्याग्रह (जिसे दांडी सत्याग्रह या दांडी आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है।) शुरु किया। ब्रिटिश हुकूमत ने नमक पर एकाधिकार कर दिया था जिसके बाद 12 मार्च, 1930 को गांधी जी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी गाँव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था। गांधी जी ने फिर ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन शुरु किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का 8 अगस्त, 1942 को बंबई में सत्र हुआ था जिसमें गांधी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया था। इस आन्दोलन के बाद गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन उसके बाद भी युवा कार्यकर्ता हड़ताल और तोड़फोड़ करते रहे और आन्दोलन को जारी रखा। अंततः 15 अगस्त, 1947 को भारत एक अलग देश बना। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आन्दोलन, दांडी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे जिनमें गांधी जी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।




यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना


Class 10 social science chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना का सम्पूर्ण हल



up board class 10 social science notes in hindi








खण्ड 2 :जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज


3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना







याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु



1."वैश्वीकरण या भूमंडलीकृत विश्व की प्रक्रिया का अपना एक दीर्घकालिक इतिहास रहा है। प्राचीनकाल से ही एक-दूसरे देश के बीच यात्रा व्यापार,सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता रहा था। यहाँ तक कि विभिन्न बीमारियों का प्रसार भी एक स्थान के लोगों अथवा उनके जानवरों आदि के कारण हुआ। 



2.सिल्क मार्ग को ही सिल्क रूट कहा जाता है। इस मार्ग से चीन में बना सिल्क या रेशम दूसरे देशों में पहुँचता था। इस मार्ग ने व्यापार तथा धर्म व संस्कृति के प्रसार के माध्यम से विश्व को जोड़ने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।


3. कोलम्बस के अमेरिका पहुँचने के साथ ही आलू, सोया आदि खाद्य पदार्थों का यूरोप और एशिया पहुँचना शुरू हो गया। यूरोप और आयरलैंड के जन-जीवन पर आलू का सबसे अधिक प्रभाव हुआ। यहाँ तक कि जब किसी बीमारी के कारण वहाँ आलू की फसल खराब हो गयी तो आयरलैंड के लाखों लोग मौत के मुँह में समा गए।



4. पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं के विजय अभियान के समय उनके साथ बीमारियों का वैश्विक प्रसार भी हुआ। उनके पास किसी भी प्रकार के परम्परागत हथियार तो नहीं थे। उनके साथ चेचक के कीटाणु भी अमेरिका पहुॅचे और इस बीमारी के प्रकोप से वहाँ लाखों लोग मर गए। इससे उनकी जीत का रास्ता और भी अधिक आसान हो गया। इसीलिए यह कहा जाता है कि उनके साथ हुआ बीमारियों का वैश्विक प्रसार: अमेरिकी क्षेत्रों के उपनिवेशीकरण में सहायक हुआ। 



5• अठारहवी शताब्दी तक चीन और भारत संसार के सर्वाधिक धनी देश माने जाते थे। इसके बाद यूरोप विश्व व्यापार का केन्द्र बन गया।


6.अर्थशास्त्रीयो ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की एक-दूसरे से सम्बद्ध गतियों या प्रवाहों का उल्लेख किया है। इनका लोगों के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इनमें पहला प्रवाह व्यापार का होता है, दूसरा प्रवाह श्रम का होता है और तीसरा प्रवाह पूंजी का होता है।


7• 19 वीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटेन के स्वरूप को परिवर्तित करने में अनेक परिवर्तन सहायक हुए। साथ ही ब्रिटेन की सरकार ने भी ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाने हेतु कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए।


कॉर्न-लॉ कहा जाता था।


8.ब्रिटेन की सरकार ने बड़े भूस्वामियों के दबाव में आकर मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। जिन कानूनों के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी, उन्हें 

कॉर्न-लॉ कहा जाता था।




9.1890 ई. तक वैश्विक कृषि व्यवस्था का उदय हो चुका था और इसके फलस्वरूप संसार के देशों में अनेक उल्लेखनीय परिवर्तन हुए। भोजन हेतु के साथ ही कपास, रबड़ व अन्य उत्पादनों में विश्व व्यापार की वृद्धि हुई।





10. भारत के पंजाब में जमीन को उपजाऊ बनाकर गेहूँ व कपास की खेती हेतु कैनाल कॉलोनी' (नहर बस्ती) बसायी गयी। इस कैनाल कॉलोनी में उन मजदूरों को था जिन्हें खेतों, नहर निर्माण आदि के काम में लगाया जाता था।



11. यूरोप के शक्तिशाली देश अफ्रीका के विशाल क्षेत्र और वहाँ के खनिज पदार्थों को देखकर वहाँ आकर्षित हुए। उन्होंने एक-एक करके आफ्रीका के क्षेत्रों पर करना करना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि 1885 ई. में बर्लिन की बैठक में यूरोपीय देशों ने अफ्रीका के मानचित्र पर लकीरें खींचकर उसका आपस में बँटवारा कर लिया। इस प्रकार यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका को गुलाम बना लिया।


12.अफ्रीका में 1890 के दशक में रिडरपेस्ट नामक बीमारी तेजी से फैल गई। मवेशियों में प्लेग की तरह फैलने वाली यह बीमारी 1892 में अफ्रीका के अटलांटिक तट तक जा पहुँची। इस बीमारी ने अपने रास्ते में आने वाले 90 प्रतिशत मवेशियों को मौत की नींद सुला दिया।



13. भारत के लाखों मजदूरों को भी एक अनुबंध के तहत अपना देश छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। अनुबंधित (गिरमिटिया) श्रमिकों का बाहर के देशों में ले जाने के लिए उनकी भर्ती एजेंटों के द्वारा की जाती थी। ये एजेंट लोगों को अनेक प्रकार के झूठ बोलकर उन्हें बहकाते थे। अनुबंध व्यवस्था को नयी दास प्रथा भी कहा जाता था।अनुबंध समाप्त हो जाने के उपरान्त भी अधिकांश श्रमिक उन्हीं देशों में बस गए। भारत में इस नयी दास प्रथा का विरोध हुआ और अन्ततः उसकी समाप्ति हो गयी।


14. 1914 ई. से 1919 ई. के बीच विश्व के शक्तिशाली देशों की आपसी औपनिवेशिक प्रतिस्पर्द्धा और उनके साम्राज्यवादी इरादों के कारण प्रथम विश्वयुद्ध हुआ। यह मानव सभ्यता के इतिहास का भीषण युद्ध कहा जाता है। इसमें सभी प्रकार के मारक हथियारों आदि का प्रयोग किया गया। इसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व की भारी तबाही हुई। लाखों लोग इसके कारण प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूप में मारे गए और असंख्य लोग घायल हुए। इस युद्ध के न केवल यूरोप पर, समस्त विश्व की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव हुए।


15.1929 ई. में सम्पूर्ण विश्व को महामंदी के संकट का सामना करना पड़ा। इस महामंदी के प्रमुख कारण थे-कृषि क्षेत्रों में अति उत्पादकता की समस्या और अमेरिका से लिए कर्जे को न चुका पाना। इस महामंदी ने समस्त यूरोप और अमेरिका को बुरी तरह प्रभावित किया। यहाँ तक कि भारत पर भी इसके प्रभाव हुए। 



16● 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ और 1945 ई. तक यह युद्ध लगातार चलता रहा। इस युद्ध के भी अत्यन्त विनाशकारी प्रभाव हुए। युद्धोत्तर काल में पुनर्निर्माण के कार्य करना एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया। इस युद्ध के बाद विश्व में दो बड़ी शक्तियों 

अमेरिका और सोवियत संघ का उदय हुआ और सम्पूर्ण विश्व इन दोनों शक्तियों के खेमों में बट गया।




17● 1944 ई. में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटन वहस नामक स्थान पर ब्रेटन वुड्स समझौता' हुआ। इसके साथ ही इस समझौते के आधार पर विश्व की वही शक्तियों की आर्थिक शक्तियों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने हेतु विश्व बैंक और आई. एम. एफ. की स्थापना की गयी। इन दोनों को 'ब्रेटन वुड्स

की जुड़वाँ संताने भी कहा जाता है। इन दोनों संस्थानों

ने 1947 ने औपचारिक रूप से काम करना शुरू किया। 


18.द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त विकासशील देशों ने अपनी आर्थिक उन्नति हेतु नयी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की माँग की और इसी के परिणामस्वरूप जी-77 देश के नाम से विकासशील देशों का एक संगठन बना।




महत्त्वपूर्ण शब्दावली




1.वीटो-इसे निषेधाधिकार भी कहा जाता है। इसके माध्यम से एक ही सदस्य की असहमति द्वारा किसी भी प्रस्ताव को खारिज किया जा सकता है।


 2.आयात शुल्क यह किसी दूसरे देश से आने वाली वस्तुओं पर वसूल किया जाने वाला एक कर होता है। यह कर या शुल्क उस स्थान पर लिया जाता है जहाँ से

वह वस्तु देश में आती है अर्थात् किसी सड़क सीमा बन्दरगाह अथवा हवाई अड्डे पर



 3.विनिमय दर - इस व्यवस्था के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा हेतु विभिन्न देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं को एक-दूसरे से जोड़ा जाता है। यह दो प्रकार की होती है स्थिर विनिमय दर और परिवर्तनशील विनिमय दर कहा जाता है।


4.स्थिर विनिमय दर-जब विनिमय दर स्थिर होती है और उसमें आने वाले उतार-चढ़ावों को नियंत्रित करने हेतु सरकारों को हस्तक्षेप करना होता है तो इस प्रकार की विनिमय दर को स्थिर विनिमय दर' कहा जाता है। 



5. लचीली विनिमय दर-इस प्रकार की विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में विभिन्न मुद्राओं की माँग या आपूर्ति के आधार पर सिद्धान्ततः सरकारों के हस्तक्षेप के बिना ही घटती या बढ़ती रहती है।


6.वैश्वीकरण विश्व को आर्थिक रूप से एकीकृत करने की प्रक्रिया।


7.कौड़ियों-प्राचीन काल में पैसे या मुद्रा के रूप में प्रयुक्त की आने वाली वस्तुएँ 


8.कुटीर उद्योग-ग्रामीण क्षेत्रों में घरों में चलाए जाने वाले उद्योग।


9. पूजी का प्रवाह- इस प्रकार के प्रवाह में पूँजीपति अपनी पूँजी को दूर स्थित क्षेत्रों में अल्प या दीर्घ अवधि के लिए निवेश कर देते हैं।


10• सिल्क मार्ग-जमीन या समुद्र से होकर गुजरने वाले ये मार्ग न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़ते थे, बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से जोइते थे। इस मार्ग से ही चीन से पश्चिमी देशों को विशेष रूप से रेशम (सिल्क) का निर्यात किया जाता था। इसी कारण इस मार्ग को सिल्क मार्ग कहा जाता था। 


11● प्राथमिक उत्पाद जो उत्पाद सीधे प्रकृति की सहायता से प्राप्त किए जाते हैं, उन्हें प्राथमिक उत्पाद' कहा जाता है, जैसे- कृषि उत्पादों में गेहूँ और कपास

और खनिज उत्पादों में कोयला आदि। 


12• उपनिवेशवाद-अपने राजनीतिक, आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए एक शक्तिशाली देश के द्वारा किसी दूसरे देश की अर्थव्यवस्था और उसके शासन पर कब्जा करके उसका शोषण करना: उपनिदेशवाद' कहा जाता है। 



13● कॉर्न लॉ-ब्रिटेन में बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर वहाँ की सरकार ने मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। जिन कानूनों के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी थी. उन्हें ही 'कॉर्न-लॉ' कहा जाता था।


14• होसे-त्रिनिदाद में आप्रवासी लोगों के द्वारा मुहर्रम के सालाना जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले का रूप दिया गया था। इस मेले को ही 'होसे कहा जाता है।



15 • गिरमिटिया मजदूर-औपनिवेशिक शासन के समय अनेक लोगों को काम करने के लिए फिजी, गुयाना, वेस्टइंडीज आदि स्थानों पर ले जाया गया था। इन मजदूरों को ही बाद में गिरमिटिया मजदूर कहा जाने लगा। मजदूरों को एक अनुबंध के तहत ले जाया जाता था। बाद में इस अनुबंध को गिरमिट' कहा जाने लगाते


16● व्यापार अधिशेष वह व्यापारिक स्थिति, जिसमें आपसी व्यापार से किसी देश को लाभ हो, उसे व्यापार अधिशेष' कहा जाता है।


17 • हायर परवेज-वस्तुओं को खरीदने की वह व्यवस्था, जिसमें खरीदार उस वस्तु की कीमत किश्तों (साप्ताहिक या मासिक) में चुकाता है, 'हायर परचेज के नाम से जानी जाती है।






            महत्त्वपूर्ण तिथियाँ


1● 15वीं शताब्दी कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज।


2● 19वीं शताब्दी- श्रमिकों की अनुबंध व्यवस्था का आरम्भ।


3.1820 ई-चीन के साथ अफीम का व्यापार शुरू होना।


4• 1660 ई. इस दशक में संसार के बन्दरगाहों पर बड़े एम्पोरियम खोले गए।


5● 1885 ई. यूरोपीय के शक्तिशाली देशों की वर्लिन में बैठक।


6•1890 ई.- अफ्रीका में रिडरपेस्ट नामक बीमारी का प्रसार ।


7 ● 19वीं सदी का अन्त-उपनिवेशवाद का विस्तार ।


8● 1914-1919 ई. प्रथम विश्वयुद्ध ।



9.1920 ई. अमेरिका में बृहत् उत्पादन पद्धति के आधार पर उत्पादन का शुरू होना।


10.1929 ई.- विश्व में आर्थिक महामंदी का संकट।


11.1944 ई.-ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर विश्व के बड़े देशों का मौद्रिक एवं आर्थिक सम्मेलन। साथ ही मुद्राकोष-आई.एम.एफ. और विश्व बैंक का गठन।


12● 1939 ई. और 1945 ई.-द्वितीय विश्वयुद्ध । 1947 ई. विश्व बैंक और आई.एम.एफ. का औपचारिक रूप से कार्य आरम्भ करना।


13 ● 1949 ई.-चीन की क्रांति।


14.1970 ई. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का एशिया के देशों में विस्तार ।





बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. अठारहवीं शताब्दी तक संसार के कौन-से देश सबसे धनी देश माने जाते थे?


(क) जापान और भारत


(ख) फ्रांस और अमेरिका


(घ) चीन और इटली


(ग) चीन और भारत


उत्तर-


(ग) चीन और भारत


प्रश्न 2. महामंदी का प्रारम्भ किस वर्ष हुआ?



(क) 1919 ई.


 (ख) 1924 ई.


 (ग) 1929 ई.


 (घ) 1934 ई.


उत्तर- (ग) 1929 ई.


प्रश्न 3. ब्रिटेन की सरकार ने बड़े भूस्वामियों के दबाव में आकर मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। जिस कानून के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी, उसे क्या कहा जाता है?


(क) ब्लैक-लॉ


 (ख) कॉर्न-लॉ 


(ग) क्रोप-लॉ 


(घ) प्रोडक्शन-लॉ


उत्तर (ख) कॉर्न-लॉ



प्रश्न 4. जमीन को उपजाऊ बनाकर गेहूँ व कपास की खेती हेतु 'कैनाल कॉलोनी कहाँ बसायी गयी?


(क) गुजरात में


(ख) उत्तर प्रदेश में


(ग) पंजाब में


(घ) ओडिशा में




उत्तर


(ग) पंजाब में


प्रश्न 5.यूरोपीय देशों ने मानचित्र पर लकीरें खींचकर किस महाद्वीप का आपस में बँटवारा कर लिया?


(क) एशिया


(ख) अफ्रीका


(ग) अमेरिका


(घ) ऑस्ट्रेलिया


उत्तर-


(ख) अफ्रीका


प्रश्न 6. संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?


(क) वाशिंगटन


(ख) जिनेवा


(ग) न्यूयॉर्क


(घ) ऑस्ट्रिया


उत्तर


(ग) न्यूयॉर्क



प्रश्न 7.अफ्रीका में किस बीमारी के प्रसार से अधिकांश जानवरों की मृत्यु हो गयी?


(क) प्लेग


(ख) रिंडरपेस्ट


(ग) मलेरिया


(घ) एनीमल फीवर


उत्तर


(ख) रिंडरपेस्ट


प्रश्न 8. अनुबंध व्यवस्था' को और किस नाम से जाना जाता है?


(क) आपसी समझौता


(ख) गुलाम-प्रथा


(ग) सशर्त प्रथा


(घ) नयी दास-प्रथा


उत्तर-


(घ) नयी दास-प्रथा


प्रश्न 9.1914 ई. से 1919 ई. के बीच विश्व के शक्तिशाली देशों की आपसी औपनिवेशिक प्रतिस्पर्द्धा और उनके साम्राज्यवादी इरादों के कारण कौन-सा युद्ध हुआ?


(क) प्रथम विश्वयुद्ध


(ख) द्वितीय विश्वयुद्ध


(ग) रूस-जापान युद्ध


(घ) अणुबम युद्ध


उत्तर-


(क) प्रथम विश्वयुद्ध


प्रश्न 10. युद्धोत्तर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में किस कार-निर्माता की 'बृहत् उत्पादन पद्धति' का योगदान रहा?


(क) हेनरी फोर्ड का


(ख) टाटा का


(ग) मार्कोनी का


(घ) बिड़ला का



उत्तर


(क) हेनरी फोर्ड का




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक




प्रश्न 1. नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- इसका तात्पर्य एक ऐसी व्यवस्था से था, जिसमें विकासशील देश अपने संसाधनों पर सही मायनों में नियंत्रण कर सके, जिसमें उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिले, कच्चे माल के सही दाम मिलें और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिल सके।


प्रश्न 2. स्थिर विनिमय दर प्रणाली से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- जब विनिमय दर स्थिर होती है और उनमें आने वाले उतार-चढ़ावों को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को हस्तक्षेप करना पड़ता है तो ऐसी विनिमय दर को स्थिर विनिमय दर कहा जाता है।


प्रश्न 3.आयात शुल्क से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- किसी दूसरे देश से आने वाली चीजों पर वसूल किया जाने वाला शुल्क। यह कर या शुल्क उस जगह लिया जाता है जिस जगह से वह चीज देश में प्रवेश करती है यानी सीमा पर, बंदरगाह पर या हवाई अड्डे पर।


प्रश्न 4. भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण से क्या तात्पर्य है? 


उत्तर – एक देश की अर्थव्यवस्था को दूसरे देश की अर्थव्यवस्था से तथा संपूर्ण विश्व के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था का एक-दूसरे से विभिन्न क्षेत्रों के माध्यम से जुड़ा होना ही भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण कहलाता है।


प्रश्न 5. रेशम मार्ग क्यों महत्त्वपूर्ण था?


उत्तर- रेशम मार्ग एक ऐसा मार्ग था जो एशिया के विशाल भागों को परस्पर जोड़ने के साथ ही यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका से जा मिलता था। यह मार्ग ईसा पूर्व में ही अस्तित्व में आ चुका था और लगभग 15वीं शताब्दी तक अस्तित्व में था, इस मार्ग से अधिकांशतः रेशम का व्यापार होता था इसलिए इसे रेशम मार्ग कहा जाता था।



प्रश्न 6. व्यापार अधिशेष की परिभाषा दीजिए। भारत के साथ ब्रिटेन को व्यापार अधिशेष कैसे प्राप्त होता था?


उत्तर- व्यापार अधिशेष के अन्तर्गत निर्यात की कीमत आयात से अधिक होती है। ब्रिटेन में भारत से खनिज सम्पदा और खाद्यान्न भेजा जाता था और उसके बदले में ब्रिटेन के उद्योगों में तैयार माल भारत में आयात होता था उसकी बाजार कीमत भेजे गए माल से कहीं ज्यादा होती थी। 


प्रश्न 7. 19वीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा उपनिवेश कायम करने के क्या प्रभाव पड़े?


 उत्तर- उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा उपनिवेश कायम करने पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े


(i) एशिया और अफ्रीका महाद्वीप में कष्टदायक आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय परिवर्तन आए।


 (ii) साम्राज्यवादी देशों ने अफ्रीका देशों को आपस में एक मेज पर बैठकर बाँट लिया था।


प्रश्न 8. अफ्रीका में आने के लिए यूरोपियों के लिए प्रमुख आकर्षण के कारण क्या थे?


उत्तर- यूरोपीय देश खनिज संसाधनों के लिए अफ्रीका की ओर आकर्षित हुए तथा अफ्रीका के विशाल भू-क्षेत्रों और बाजार पर यूरोपीय देशों की नजर थी।


प्रश्न 9.उन्नीसवीं शताब्दी में हजारों लोग यूरोप से अमेरिका क्यों जाने लगे थे?


उत्तर- यूरोप में गरीबी की भरमार, भूखमरी, बीमारियाँ, धार्मिक टकराव व धार्मिक असंतुष्टों को कठोर दण्ड देने के कारण, अमेरिका में संसाधनों की बहुलता के कारण तथा अमेरिका में खेती योग्य भूमि ज्यादा थी और जनसंख्या कम थी।


प्रश्न 10. जब हम कहते हैं कि सोलहवीं सदी में दुनिया 'सिकुड़ने' लगी थी तो इसका क्या मतलब है?


उत्तर- यहाँ दुनिया के 'सिकुड़ने' का मतलब है- विश्व के विभिन्न महाद्वीपों के व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों में वृद्धि होना।







लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक




प्रश्न 1. 1929 की महामंदी का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा? 


उत्तर- 1929 की महामंदी का प्रभाव भारत पर भी पड़ा। महामंदी ने भारतीय व्यापार को फौरन प्रभावित किया। 1928 से 1934 के बीच देश के आयात-निर्यात घटकर लगभग आधे रह गए थे। 1928 से 1934 के बीच भारत में गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत गिर गई। शहरी निवासियों के मुकाबले किसानों और काश्तकारों को ज्यादा नुकसान हुआ। यद्यपि कृषि उत्पादों की कीमत तेजी से नीचे गिरी लेकिन सरकार ने लगान वसूली में छूट देने से इन्कार कर दिया। सबसे बुरी मार उन काश्तकारों पर पड़ी जो विश्व बाजार के लिए - उपज पैदा करते थे। टाट का निर्यात बंद होने से कच्चे पटसन की कीमतों में 60 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट आ गई। मंदी के इन्हीं सालों में भारत कीमती धातुओं खासतौर से सोने का निर्यात करने लगा। 1931 में मंदी अपने चरम पर थी और ग्रामीण भारत असंतोष व उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। यह मंदी शहरी भारत के लिए अधिक दुखदायी नहीं रही। कीमतें गिरते जाने के बावजूद शहरों में रहने वाले ऐसे लोगों की हालत ठीक रही जिनकी आय निश्चित थी।



प्रश्न 2: हमारे खाद्य पदार्थ विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का किस प्रकार उदाहरण पेश करते हैं? 


उत्तर हमारे खाद्य पदार्थ दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कई उदाहरण पेश करते हैं। जब भी व्यापारी और मुसाफिर किसी नए देश में जाते थे, जाने-अनजाने वहाँ नयी फसलों के बीज बो आते थे। माना जाता है कि नूडल्स चीन से पश्चिम में पहुँचे या संभव है कि पास्ता अरब यात्रियों के द्वारा पाँचवीं सदी में सिसली पहुँचा। इसी तरह के आहार भारत और जापान में भी पाए जाते हैं। आलू, सोया, मूँगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद और ऐसे ही बहुत सारे खाद्य पदार्थ लगभग पाँच सौ साल पहले हमारे पूर्वजों के पास नहीं थे। ये खाद्य पदार्थ यूरोप और एशिया में तब पहुँचे जब कोलंबस ने अमेरिका को खोजा। इन अनुमानों के आधार पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि आधुनिक काल से पहले भी दूर देशों के बीच सांस्कृतिक लेन-देन चल रहा होगा।


प्रश्न 3. अमेरिका की खोज से दुनिया में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- 16वीं सदी में जब यूरोपीय जहाजियों ने एशिया तक का समुद्री रास्ता ढूंढ़ लिया और जब वे अमेरिका तक जा पहुँचे तो दुनिया छोटी-सी दिखाई देने लगी। कई सदियों से हिंद महासागर के पानी में फलता-फूलता व्यापार तरह-तरह के सामान, लोग, ज्ञान और परंपराएँ एक जगह से दूसरी जगह आ जा रही थीं। भारतीय उपमहाद्वीप इसमें अहम भूमिका रखता था। यूरोपियों के आगमन से यह आवाजाही बढ़ने लगी। अब तक अमेरिका का दुनिया से कोई संपर्क नहीं था लेकिन 16वीं सदी से उसकी विशाल भूमि और बेहिसाब फसलें व खनिज पदार्थ हर दिशा में जीवन का रंग-रूप बदलने लगी। 17वीं सदी के आते-आते पूरे यूरोप में दक्षिण अमेरिका की धन-संपदा के बारे में तरह-तरह के किस्से बनने लगे थे। 16वीं सदी के मध्य तक आते-आते पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की विजय का सिलसिला शुरू हो गया था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था। इस प्रकार दुनिया में बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने शुरू हो गए थे।


प्रश्न 4. 19वीं सदी के अंत में विश्व में किस प्रकार उपनिवेशवाद फैला?


उत्तर- 19वीं सदी के आखिरी दशकों में व्यापार बढ़ा और बाजार तेजी से फैलने लगे। यह केवल फैलते व्यापार और संपन्नता का ही दौर नहीं था। व्यापार में बढ़ोतरी और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ निकटता का एक परिणाम यह हुआ कि दुनिया के बहुत सारे भागों में स्वतंत्रता और आजीविका के साधन छिनने लगे। 19वीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपियों की विजयों से बहुत सारे कष्टदायक आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय परिवर्तन आए और औपनिवेशिक समाजों को विश्व अर्थव्यवस्था में समाहित कर लिया गया। 1885 में यूरोप के ताकतवर देशों की बर्लिन में एक बैठक हुई, जिसमें अफ्रीका के नक्शे पर लकीरें खींचकर उनको आपस में बाँट लिया गया। 19वीं सदी के अंत में ब्रिटेन और फ्रांस ने अपने शासन वाले विदेशी क्षेत्रफल में भारी वृद्धि कर ली थी। बेल्जियम और जर्मनी नयी औपनिवेशिक ताकतों के रूप में सामने आए। 1890 के दशक के आखिरी वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका भी औपनिवेशिक ताकत बन गया।



प्रश्न 5. भारत के सूती वस्त्र उद्योग पर उपनिवेशवाद का क्या प्रभाव पड़ा?


उत्तर


भारत में पैदा होने वाली महीन कपास का यूरोपीय देशों को निर्यात किया जाता था। औद्योगीकरण के बाद ब्रिटेन में भी कपास का उत्पादन बढ़ने लगा था। इस कारण वहाँ के उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह कपास तथा सूती वस्त्रों के आयात पर रोक लगाए। फलस्वरूप ब्रिटेन में आयतित कपड़ों पर सीमा शुल्क थोप दिए गए। वहाँ महीन भारतीय कपड़े का आयात कम होने लगा। 19वीं सदी की शुरुआत में ही ब्रिटिश कपड़ा उत्पादक दूसरे देशों में भी अपने कपड़ों के लिए नए-नए बाजार ढूँढ़ने लगे थे। सीमा ■ शुल्क की व्यवस्था के कारण ब्रिटिश बाजारों से बेदखल हो जाने के बाद भारतीय कपड़ों को दूसरे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। सन् 1800 के आसपास निर्यात में सूती कपड़े का प्रतिशत 30 था जो 1815 में घटकर 15 प्रतिशत रह गया। 1870 तक यह अनुपात केवल = 3 प्रतिशत रह गया।


प्रश्न 6.प्रथम विश्वयुद्ध के ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।


उत्तर


प्रथम विश्व युद्ध से पहले ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। युद्ध के बाद सबसे लंबा संकट उसे ही झेलना पड़ा। युद्ध के बाद भारतीय बाजार में पहले वाली (वर्चस्व वाली) स्थिति प्राप्त करना ब्रिटेन के लिए बहुत मुश्किल हो गया था। युद्ध के खर्चे की भरपाई करने के लिए ब्रिटेन ने अमेरिका से जमकर कर्जे लिए थे। इसका परिणाम यह हुआ कि युद्ध खत्म होने तक ब्रिटेन भारी विदेशी कर्जों में दब चुका था। युद्ध के कारण आर्थिक उछाल का जो माहौल था अब वह खत्म हो चुका था, जिससे उत्पादन गिरने लगा और बेरोजगारी बढ़ गई। सरकार ने भारी भरकम युद्ध संबंधी व्यय में भी कटौती शुरू कर दी ताकि शांतिकालीन करों के सहारे ही उनकी भरपाई की जा सके। इन सारे प्रयासों से रोजगार भारी तादाद में खत्म हो गए। 1921 में हर पाँच में से एक ब्रिटिश मजदूर के पास काम नहीं था।


प्रश्न 7.अफ्रीका में रिंडरपेस्ट आने के प्रभावों का उल्लेख कीजिए। 


उत्तर .जमीन और मवेशी अफ्रीकी लोगों की आय के मुख्य स्रोत थे। जब यूरोपियनों ने अफ्रीकी लोगों को श्रमिक बनाना चाहा तो उन्होंने इनकार कर दिया। रिंडरपेस्ट पशुओं का एक रोग है जो अफ्रीकी पशुओं में फैल गया था। इसके फैलने से अफ्रीका के 90 प्रतिशत मवेशी मौत का शिकार हुए। पशुओं के मारे जाने से अफ्रीकियों के रोजी-रोटी के साधन नष्ट हो गए। अपनी सत्ता को और सुदृढ़ करने तथा अफ्रीकियों को श्रम बाजार में ढकेलने के लिए वहाँ के बागान मालिकों, खान मालिकों और औपनिवेशिक सरकारों ने बचे हुए पशु अपने कब्जे में ले लिए। इस प्रकार बचे हुए पशु संसाधनों पर कब्जे से यूरोपीय उपनिवेशकारों को पूरे अफ्रीका को जीतने व गुलाम बना लेने का सुनहरा अवसर हाथ लग गया था।


प्रश्न 8. सिल्क मार्ग ने किस प्रकार विश्व को जोड़ने का प्रयास किया?


 उत्तर- सिल्क मार्ग वह मार्ग था जिसके द्वारा चीनी रेशम का व्यापार होता था। यह मार्ग जमीन और समुद्र दोनों में थे। इन मार्गों ने विश्व को जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो निम्नलिखित थी


 (i) ये मार्ग एशिया के विशाल क्षेत्रों को जोड़ने के साथ-साथ एशिया,यूरोप और उत्तरी अमेरिका महाद्वीपों को भी आपस में जोड़ते थे।


 (ii) इन मार्गों द्वारा रेशम के साथ-साथ चीनी पॉटरी का भी निर्यात होता था। साथ ही भारत व दक्षिण पूर्व एशिया से कपड़े, मसाले और चीन व विश्व के अन्य भागों में जाते थे।


(iii) इन सामानों की कीमत यूरोप द्वारा सोने व चाँदी के रूप में चुकाई जाती थी।


(iv) इन मार्गों द्वारा व्यापार के साथ-साथ सांस्कृतिक व धार्मिक आदान-प्रदान भी होता था। 


(v) बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, मुस्लिम धर्म इसी मार्ग द्वारा ही संभवतः विश्व के अन्य भागों में फैले।


प्रथा 9 वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था पर प्रकाश डालिए।


उत्तर 1890 में वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का उदय हो गया था। इसके कारण श्रम विस्थापन रुझानों, पूँजी प्रवाह, पारिस्थितिकी और तकनीक में कई बदलाव आए, जो इस प्रकार थे


(i) इसमें खाद्य पदार्थ गाँव या कस्बों की बजाए विश्व के अन्य स्थानों से पहुंचने लगे।


(ii) इस व्यवस्था में जमीन के मालिक स्वयं कृषि कार्य नहीं करते थे। वे यह कार्य औद्योगिक मजदूरों से करवाने लगे।


 (iii) खाद्य पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए रेलनेटवर्क, पानी के जहाजों का प्रयोग किया जाने लगा।


 (iv) दक्षिणी यूरोप, एशिया, अफ्रीका तथा कैरीबियन द्वीप समूह के मजदूरों को ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन तथा अमेरिका ले जाकर कम वेतन पर कार्य करवाया गया।


प्रश्न 10. 19वीं शताब्दी की अनुबंध व्यवस्था (नयी दास प्रथा) ने एक नई संस्कृति को जन्म दिया। कैसे? 



उत्तर

19वीं शताब्दी की अनुबंध व्यवस्था (नयी दास प्रथा) द्वारा एशिया, अफ्रीका व चीन आदि देशों और महाद्वीपों से आए लोगों ने अपने नए स्थानों पर एक नई संस्कृति को जन्म दिया। इसका स्वरूप निम्नलिखित था


(i) त्रिनिदाद में मुहर्रम के सालाना जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले का रूप दे दिया गया, जिसे 'होसे हुसैन' के नाम से जाना गया। इसमें सभी धर्मों व नस्लों के मजदूर हिस्सा लेते थे।


(ii) भारतीय आप्रवासियों व कैरीबियन द्वीप समूह के लोगों ने मिलकर एक नए धर्म 'रास्ताफरियानवाद' को जन्म दिया। बाद में जैमेका के रैगे गायक बॉव मालें ने इसे विश्व ख्याति दिलाई। 


(iii) त्रिनिदाद, गुयाना में मशहूर चटनी म्यूजिक भी भारतीय आप्रवासियों की देन है जो उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति का प्रतीक है। इस प्रकार 'नई दास प्रथा' ने नई सांस्कृतिक वातावरण को जन्म दिया जो अनुबंधित श्रमिकों की नई जगहों पर नई पहचान बनी।


प्रश्न 11. सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। 


एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिकी महाद्वीपों के बारे में चुनिए ।



उत्तर एशिया (चीन)- 15वीं शताब्दी तक बहुत सारे 'सिल्क मार्ग' क अस्तित्व में आ चुके थे। इसी रास्ते से चीनी पॉटरी जाती थी और इसी रास्ते से अ भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले दुनिया के दूसरे भागों में पहुँचते थे। वापसी में सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ यूरोप से एशिया पहुँचती थी। अमेरिका-सोलहवीं सदी में जब यूरोपीय जहाजियों ने एशिया तक का समुद्री जि रास्ता खोज लिया और वे अमेरिका तक जा पहुँचे तो अमेरिका की विशाल भूमि वि और बेहिसाब फसलें और खनिज पदार्थ हर दिशा में जीवन का रंग-रूप बदलने उ लगे। आज के पेरू और मैक्सिको में मौजूद खानों से निकलने वाली कीमती जु धातुओं, खासतौर से चाँदी ने भी यूरोप की संपदा को बढ़ाया और पश्चिम कि एशिया के साथ होने वाले उसके व्यापार को गति प्रदान की।




प्रश्न 12. ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है ?


उत्तर युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह था कि औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोज़गार बनाए रखा जाए। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। इसी को ब्रेटन वुड्स समझौते के नाम से जाना जाता है।


सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गई। युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए पैसे का इंतजाम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक का गठन किया गया। इसी वजह से विश्व बैंक और आई.एम.एफ. को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रिटेन वुड्स ट्विन भी कहा जाता है। इसी आधार अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को अक्सर ब्रेटन वुड्स व्यवस्था भी कहा जाता है। 


प्रश्न 13. महामंदी के कारणों की व्याख्या कीजिए। 


उत्तर 1929 में आर्थिक महामंदी की शुरुआत हुई। इस मंदी के प्रमुख न कारण निम्नलिखित थे


(i) औद्योगिक क्रांति के कारण अमेरिका तथा ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य होने लगा था। 1930 तक तैयार माल का इतना बड़ा भण्डार एकत्र हो गया कि उनका कोई खरीददार न रहा।


(ii) कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन के कारण कृषि उत्पादों की कीमतें गिरने लगी। किसानों ने अपनी घटती आय को बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन करना शुरू कर दिया किंतु इससे कीमतें और गिरने लगी। खरीददारों के अभाव में कृषि उपज पड़ी पड़ी सड़ने लगी। 


(iii) संकट से पूर्व बहुत-से देश अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था चलाते थे। 1928 के कुछ समय पहले विदेशों में अमेरिका का कर्ज एक अरब डॉलर था। साल भर के भीतर यह कर्ज घटकर केवल चौथाई रह गया था। जो देश अमेरिकी कर्ज पर सबसे ज्यादा निर्भर थे उनके सामने गहरा संकट खड़ा हो गया।


(iv) यूरोप में कई बड़े बैंक धराशायी हो गये। कई देशों की मुद्रा की कीमत बुरी तरह गिर गई। अमेरिकी सरकार इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आयातित पदार्थों पर दो गुना सीमा शुल्क वसूल करने लगी।


(v) अमेरिका के शेयर बाजार में शेयरों की कीमत में गिरावट आ गई। इसकी वजह से वहाँ लाखों व्यापारियों का दीवाला निकल गया। 


प्रश्न 14. जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं? जी-77 को किस आधार पर ब्रेटन वुड्स । की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है? व्याख्या कीजिए।




उत्तर- वे विकासशील देश जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए थे किंतु 50 से 60 के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तेज प्रगति से उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। इस समस्या को देखते हुए उन्होंने एक नई अंतर्राष्ट्रीय  आर्थिक प्रणाली के लिए आवाज उठाई और अपना एक संगठन बनाया जिसे समूह-77 या जी-77 के नाम से जाना जाता है। ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का जन्म हुआ था


जिन्हें ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानें कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर केवल कुछ शक्तिशाली विकसित देशों का ही प्रभुत्व था इसलिए


उनसे विकासशील देशों को कोई लाभ नहीं हुआ। इसलिए ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की प्रतिक्रिया स्वरूप विकासशील देशों ने जी-77 नामक संगठन बनाकर नई आर्थिक प्रणाली की माँग की ताकि उनके आर्थिक उद्देश्य पूरे हो सकें। उनके प्रमुख आर्थिक उद्देश्यथे-अपने संसाधनों पर उनका पूरा नियंत्रण हो, कच्चे माल के सही दाम मिले और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजारों से बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिले।





दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1.बताइए पूर्व-आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद की ?


उत्तरं


(i) 16वीं सदी के मध्य तक पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की। विजय का सिलसिला शुरू हो गया था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था।


(ii) यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक ताकत के दम पर नहीं जीतती थीं। स्पेनिश विजेताओं के पास तो कोई परंपरागत किस्म का सैनिक हथियार नहीं था। यह हथियार तो चेचक जैसे थे जो स्पेनिश सैनिकों और अफ़सरों के साथ वहाँ जा पहुंचे थे।


 (iii) लाखों साल से दुनिया से अलग-थलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग-प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी।


(iv) इस नए स्थान पर चेचक बहुत मारक साबित हुई। एक बार संक्रमण शुरू होने के बाद तो यह बीमारी पूरे महाद्वीप में फैल गई।


 (v) जहाँ यूरोपीय लोग नहीं पहुँचे थे, वहाँ के लोग भी इसकी चपेट में आने लगे। इसने सभी समुदायों को खत्म कर डाला। इस तरह घुसपैठियों की जीत का रास्ता आसान होता चला गया।


(vi) बंदूकों को तो खरीदकर या छीनकर हमलावरों के खिलाफ़ भी इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु चेचक जैसी बीमारियों के मामले में तो ऐसा नहीं किया जा सकता था क्योंकि हमलावरों के पास उससे बचाव का तरीका भी था और उनके शरीर में रोग-प्रतिरोधी क्षमता भी विकसित हो चुकी थी। इस तरह से बिना किसी चुनौती के बड़े साम्राज्यों को जीतकर अमेरिका में उपनिवेशों की स्थापना हुई।


प्रश्न 2.खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दीजिए।



उत्तर 1890 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था सामने आ चुकी थी। इससे तकनीक में भी बदलाव आ चुके थे। खाद्य उपलब्धता पर भी तकनीक का प्रभाव पड़ने लगा जो इस प्रकार था


1. रेलवे का विकास -अब भोजन किसी आस-पास के गाँव या कस्बे से नहीं बल्कि हज़ारों मील दूर से आने लगा था। खाद्य पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। पानी के जहाजों से इसे दूसरे देशों में पहुँचाया जाता था।


2. नहरों का विकास-खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव का बहुत अच्छा उदाहरण हम पंजाब में देखते हैं। यहाँ ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अर्द्ध-रेगिस्तानी परती जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया ताकि निर्यात के लिए गेहूं की खेती की जा सके। इससे पंजाब में गेहूं का उत्पादन कई गुना बढ़ गया और गेहूँ को बाहर बेचा जाने लगा।


3. रेफ्रिजरेशन तकनीक का विकास - 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था। उस समय जिंदा जानवर ही भेजे जाते थे, जिन्हें यूरोप ले जाकर काटा जाता था। लेकिन जिंदा जानवर बहुत ज्यादा जगह घेरते थे। काफी संख्या में ये लंबे सफर में मर जाते थे। अधिकांश का वजन गिर जाता था या वे खाने लायक नहीं रहते थे। इसलिए मांस खाना एक महँगा सौदा था। नई तकनीक के आने पर यह स्थिति बदल गई। पानी के जहाज़ों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गई, जिससे जल्दी खराब होने वाली चीजों को भी लंबी यात्राओं पर ले जाया जा सकता था। अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सब जगह से जानवरों की बजाए उनका मांस ही यूरोप भेजा जाने लगा। इससे न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्चा कम हो गया। बल्कि यूरोप में मांस के दाम भी गिर गए। अब अधिकांश लोगों के भोजन में मांसाहार शामिल हो गया।


प्रश्न 18वीं शताब्दी के अंत में हुए उन परिवर्तनों का वर्णन कीजिए जिन्होंने ब्रिटेन के स्वरूप को बदल दिया। 


उत्तर


18वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटेन में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए जिन्होंने इसके स्वरूप को बदल दिया। ये परिवर्तन निम्नलिखित थे


(i) 18वीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटेन की आबादी तेजी से बढ़ने लगी थी। इससे देश में भोजन की माँग बढ़ी।


 (ii) जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योग बढ़ने लगे, कृषि उत्पादों की माँग भी बढ़ने लगी।


(iii) कृषि उत्पाद महंगे होने लगे। 


(iv) बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर सरकार ने मक्का के आयात पर 'कॉर्न-लॉ' द्वारा पाबंदी लगा दी।


(v) खाद्य पदार्थों की ऊँची कीमतों से परेशान उद्योगपतियों और शहरी बाशिंदों ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वह कॉर्न लॉ को समाप्त कर दें।


(vi) कॉर्न-लॉ के खत्म होने के बाद कम कीमत पर खाद्य पदार्थों का आयात किया जाने लगा। आयातित खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से भी कम थी। फलस्वरूप ब्रिटिश किसानों की हालत बिगड़ने लगी क्योंकि वे आयातित माल की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे।


(vii) विशाल भू-भागों पर खेती बंद हो गई थी। हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए। 


(viii) खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट आई तो ब्रिटेन में उपभोग का स्तर बढ़ गया।


(ix) 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटेन की औद्योगिक प्रगति काफी तेज़ रही जिससे लोगों की आय में वृद्धि हुई।


(x) खाद्य पदार्थों का और ज्यादा मात्रा में आयात होने लगा।


 (xi) दुनिया के हर हिस्से में ब्रिटेन का पेट भरने के लिए ज़मीनों को साफ करके खेती की जाने लगी। इन कृषि क्षेत्रों को बंदरगाहों से जोड़ने के लिए रेलवे का विकास किया।


(xii) ज्यादा मात्रा में माल ढुलाई के लिए नई गोदियाँ बनाई और पुरानी गोदियों को फैलाया गया। 


(xiii) नयी ज़मीनों पर खेती करने के लिए यह ज़रूरी था कि दूसरे इलाकों के लोग वहाँ आकर बस गए। 


(xiv) इन सारे कामों के लिए पूँजी और श्रम की ज़रूरत थी। इसके लिए लंदन जैसे वित्तीय केंद्रों से पूँजी आने लगी।


(xv) 1890 तक तकनीकी परिवर्तन हो चुके थे। भोजन किसी आस-पास के गाँव या कस्बे से नहीं बल्कि हज़ारों मील दूर से आने लगा था।


(xvi) अपने खेतों पर खुद काम करने वाले किसान ही खाद्य पदार्थ पैदा नहीं कर रहे थे। अब यह काम ऐसे औद्योगिक मज़दूर करने लगे थे जो संभवतः हाल ही में वहाँ आए थे। 


(xvii) खाद्य पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। पानी के जहाज़ों से इसे दूसरे देशों में पहुँचाया जाता था। इन जहाजों पर दक्षिण यूरोप, एशिया और अफ्रीका के मज़दूरों से बहुत कम वेतन पर काम करवाया जाता था।


प्रश्न 4. यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने किस प्रकार अफ्रीका को गुलाम बनाया


उत्तर


यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने अफ्रीका को गुलाम इस प्रकार बनाया


(i) प्राचीन काल से ही अफ्रीका में जमीन की कोई कमी नहीं रही जबकि वहाँ की आबादी बहुत कम थी। सदियों तक अफ्रीकियों की ज़िंदगी व कामकाज ज़मीन और पालतू पशुओं के सहारे ही चलता रहा है।


(ii) वहाँ पैसे या वेतन पर काम करने का चलन नहीं था। 19वीं सदी के आखिर में अफ्रीका में ऐसे उपभोक्ता बहुत कम थे, जिन्हें वेतन के पैसे से खरीदा जा सकता था।


(iii) 19वीं सदी के अंत में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका के विशाल भू-क्षेत्र और खनिज भंडारों को देखकर इस महाद्वीप की ओर आकर्षित हुई थीं।



(iv) यूरोपीय लोग अफ्रीका में बागानी खेती करने और खादानों का दोहन करना चाहते थे ताकि उन्हें वापस यूरोप भेजा जा सके। 


(v) लेकिन वहाँ के लोग वेतन पर काम नहीं करना चाहते थे। अतः मजदूरों की भर्ती के लिए मालिकों ने कई तरीके अपनाए। 


(vi) उन पर भारी-भरकम कर लाद दिए गए जिनका भुगतान केवल तभी किया जा सकता था जब करदाता खादानों या बागानों में काम करता हो। खानकर्मियों को बाड़ों में बंद कर दिया गया।


(vii) उनके खुलेआम घूमने-फिरने पर पाबंदी लगा दी गई। 


(viii) तभी वहाँ रिडरपेस्ट नामक विनाशकारी पशु रोग फैल गया। यह बीमारी ब्रिटिश आधिपत्य वाले एशियाई देशों से आये जानवरों के जरिए फैली थी।


(ix) अफ्रीका के पूर्वी हिस्से से शुरू होकर बीमारी पूरे महाद्वीप में जंगल की आग की तरह फैल गई।


(x) इस बीमारी ने अफ्रीका के 90 प्रतिशत मवेशियों को मौत की नींद सुला दिया। 


(xi) पशुओं के खत्म हो जाने से अफ्रीकियों के रोजी-रोटी के साधन ही खत्म हो गए।


(xii) अपनी सत्ता को और मज़बूत करने तथा अफ्रीकियों को श्रम बाज़ार में ढकेलने के लिए वहाँ के बागान मालिकों, खान मालिकों और औपनिवेशिक सरकारों ने बचे-खुचे पशु भी अपने कब्जे में ले लिए। 


(xiii) इससे यूरोपीय उपनिवेशकारों को पूरे अफ्रीका को जीतने व उसे गुलाम बना लेने का बेहतरीन मौका हाथ लग गया।


प्रश्न 5. 19वीं सदी की अनुबंध व्यवस्था, जिसे नयी दास प्रथा भी कहा जाता था, का अर्थ बताइए। भारत के संदर्भ में इसका उल्लेख कीजिए।


या उन्नीसवीं शताब्दी में भारत से विदेश को श्रमिकों को क्यों ले जाया गया? ये श्रमिक अधिकतर किस प्रदेश के थे? उन्हें किस शर्त पर स्वदेश लौटने की छूट दी जाती थी?




उत्तर 19वीं सदी की अनुबंध व्यवस्था को काफी लोगों ने 'नयी दास प्रथा' का नाम दिया है। 19वीं सदी में भारत और चीन के लाखों मज़दूरों को बागानों, खादानों और सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था।


भारत के संदर्भ में-भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को खास तरह के अनुबंध या एग्रीमेंट के तहत ले जाया जाता था। इन अनुबंधों में यह शर्त होती थी कि यदि मजदूर अपने मालिक के बागानों में पाँच साल काम कर लेंगे तो वे स्वदेश लौट सकते हैं।


भारत के ज्यादातर अनुबंधित श्रमिक मौजूदा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु के सूखे इलाकों से जाते थे। 19वीं सदी के मध्य में इन इलाकों में भारी बदलाव आने लगे थे। कुटीर उद्योग खत्म हो रहे थे, ज़मीनों का किराया बढ़ रहा था। खानों और बागानों के लिए ज़मीनों को साफ किया जा रहा था। इन परिवर्तनों से गरीबों के जीवन पर गहरा असर पड़ा। वे बँटाई पर ज़मीन तो ले लेते थे लेकिन उसका भाड़ा नहीं चुका पाते थे। काम की तलाश में उन्हें इ अपने घर-बार छोड़ने पड़े। भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को मुख्य रूप से कैरीबियाई द्वीप समूह, मॉरीशस व फ़िजी से लाया जाता था। तमिल अप्रवासी भ सीलोन और मलाया जाकर काम करते थे। अधिकांश अनुबंधित श्रमिकों को असम के चाय बागानों में काम करवाने के लिए ले जाया जाता था।


मजदूरों की भर्ती का काम मालिकों के एजेंट किया करते थे। एजेंटों को कमीशन मिलता था। अधिकतर अप्रवासी अपने गाँव में होने वाले उत्पीड़न और गरीबी से बचने के लिए भी इन अनुबंधों को मान लेते थे। एजेंट भी भावी अप्रवासियों को फुसलाने के लिए झूठी जानकारियाँ देते थे। अधिकतर श्रमिकों को यह भी नहीं बताया जाता था कि उन्हें लंबी समुद्री यात्रा पर जाना







यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 4 संसाधन एवं विकास


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इकाई 2 : समकालीन भारत-2 (भूगोल)


अध्याय 1 संसाधन एवं विकास









याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1• हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है


जो आर्थिक रूप से संभाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक संसाधन है।


2• संसाधनों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है


(क) उत्पत्ति के आधार पर – जैव और अजैव


(ख) समाप्यता के आधार पर नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य


 (ग) स्वामित्व के आधार पर व्यक्तिगत सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय


(घ) विकास के स्तर के आधार पर संभावी विकसित भंडार और संचित कोष 



3• एजेंडा 21 एक घोषणा है जिसे 1992 में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन के तत्वावधान में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा

स्वीकृत किया गया था। इसका उद्देश्य भूमंडलीय सतत् पोषणीय विकास हासिल करना है।


4● भू-उपयोग को निर्धारित करने वाले तत्वों में भौतिक कारक: जैसे- भू-आकृति जलवायु और मृदा के प्रकार तथा मानवीय कारक: जैसे – जनसंख्या घनद


5.प्रौद्योगिक क्षमता, संस्कृति और परंपरा इत्यादि सम्मिलित हैं। - हमारे देश में राष्ट्रीय वन नीति (1952) द्वारा निर्धारित वनों के अंतर्गत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र होना चाहिए जिसकी तुलना में वन के अंतर्गत क्षेत्र काफी कम है।


6• मृदा बनने की प्रक्रिया को निर्धारित करने वाले तत्वों, उनके रंग, गहराई, गठन, आयु व रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर मृदा को जलोद काली मिट्टी लेटराइट मिट्टी, मत्स्थलीय मुढा ताल और पीली मिट्टी के रूप में विभाजित किया जाता है।






महत्त्वपूर्ण शब्दावली


1●संसाधन प्रकृति से प्राप्त विभिन्न वस्तुएँ जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जाती है और जिनको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है। संसाधन कहलाती हैं।




2.जैव संसाधन-वे संसाधन जो जैवमंडल से प्राप्त होते हैं और जिनमें जीवन व्याप्त है जैसे मनुष्य, वनस्पति जगत, प्राणि जगत, मत्स्य जीवन,आदि जैव संसाधन कहलाते हैं।





3.अजैव संसाधन संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बनते हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं जैसे-चट्टाने, धातुएँ आदि।


4• नवीकरणीय संसाधन – जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत किया जा सकता है या पुनः उपयोगी बनाया जा स है. उन्हें नवीकरणीय संसाधन कहते हैं, जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन व वन्य जीवन 




5.अनवीकरणीय संसाधन जो एक बार प्रयोग करने पर समाप्त हो जाते हैं. अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। इन संसाधनों का विकास एवं लंबे भू-वैज्ञानिक अन्तराल में होता है। खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण है। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं।



6 • राष्ट्रीय संसाधन-तणनीकी तौर पर देश में पाए जाने वाले सभी संसाधन राष्ट्रीय है। देश की सरकार व्यक्तिगत संसाधनों को भी आम जनता के हित में अधिगृहीत कर सकती है। खनिज पदार्थ, जल संसाधन, वन, वन्य जीवन, समस्त भू क्षेत्र, महासागरीय क्षेत्र व इसमें पाए आने वाले संसाधन राष्ट्र की संपता है।


7• सुमाली साधन – ये वे संसाधन हैं जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं, किंतु इनका उपयोग नहीं किया गया है, जैसे- राजस्थान और गुजरात में पवन और तौर ऊर्जा के संभावी संसाधन विद्यमान है।


8●विकसित संसाधन-संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित कहलाते हैं। 



9.भंडार– पर्यावरण में उपलब्ध ये पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परंतु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में उसकी पहुँच से बाहर है.

भंडार कहलाते हैं। 



10● संसाधन संरक्षण संसाधनों का न्यायसंगत और योजनाबद्ध प्रयोग जिससे संसाधन व्यर्थ न आएँ, संसाधन संरक्षण कहलाता है।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.भूमि एक संसाधन है।



(क) प्राकृतिक


(ख) मानव-निर्मित


(ग) सौर ऊर्जा से निर्मित


(घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर

(क) प्राकृतिक




प्रश्न 2.निम्नलिखित में से एक मिट्टी का प्रकार नहीं है -


(क) काली


(ख) पीली


(ग) लेटराइट


(घ) सीमेन्ट


उत्तर

(घ) सीमेन्ट




प्रश्न 3. रियो-डी-जेनेरो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन का आयोजन किस वर्ष हुआ था?


 (क) वर्ष 1972 


(ख) वर्ष 1992 


(ग) वर्ष 1979 


(घ) वर्ष 1998



उत्तर-


(ख) वर्ष 1992


प्रश्न 4.निम्न में से कौन अजैवीय संसाधन है?


(क) चट्टानें 


(ख) पशु


(ग) पौधे


(घ) मछलियाँ


उत्तर


(क) चट्टानें


प्रश्न 5 .निम्नलिखित में से किस राज्य में काली मिट्टी पाई जाती है?



(क) झारखण्ड


 (ख) गुजरात


(ग) राजस्थान


(घ) बिहार 


उत्तर


(ख) गुजरात


प्रश्न 6 पर्वतों पर मृदा अपरदन का साधन है


(क) पवन


(ग) जल


(घ) पशुचारण


उत्तर-


(ख) हिमनद


प्रश्न 7.लाल-पीली मिट्टी पाई जाती है


(क) दक्कन के पठार में


(ख) मालवा प्रदेश में


(ग) ब्रह्मपुत्र घाटी में


(घ) थार रेगिस्तान में


उत्तर

(क) दक्कन के पठार में


प्रश्न 8.पंजाब में भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण क्या है?



(क) गहन खेती


(ग) अधिक सिंचाई


(ख) वनोन्मूलन


(घ) अति पशुचारण


उत्तर-


(ग) अधिक सिंचाई



प्रश्न 9.निम्नलिखित में से कौन-सा नवीकरण योग्य संसाधन नहीं है?



(क) पवन ऊर्जा


 (ख) जल


(ग) जीवाश्म ईंधन


(घ) वन


उत्तर-


(ग) जीवाश्म ईंधन



प्रश्न 10.कपास की खेती के लिए कौन-सी मृदा उपयुक्त है? 


(क) काली मृदा


(ख) लाल मृदा


(ग) जलोढ़ मृदा


(घ) लेटराइट मृदा



उत्तर

(क) काली मृदा




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1.भारत में सबसे अधिक कौन-सी मिट्टी पाई जाती है, इसका निर्माण किस प्रकार हुआ है?


उत्तर- भारत में सबसे अधिक जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, इसका निर्माण नदियों द्वारा लाए गए अवसादों से हुआ है। यह बहुत अधिक उपजाऊ तथा गहन कृषि योग्य होती है।


प्रश्न 2.दक्षिण भारत के पठारी भागों के दक्षिणी और पूर्वी भागों में आग्नेय चट्टानों पर कम वर्षा वाले भागों में कौन-सी मिट्टी पाई जाती है? इस मिट्टी की दो विशेषताएँ बताइए।


उत्तर- दक्षिण भारत के पठारी भागों के दक्षिणी और पूर्वी भागों में लाल एवं पीली मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी में लोहा, ऐलुमिनियम और चूना पर्याप्त मात्रा में होता है। फॉस्फोरस और वनस्पति का अंश कम होता है।


प्रश्न 3.किन आधारों पर भारत की मृदाओं को बाँटा जा सकता है?


उत्तर- मृदा बनने की प्रक्रिया को निर्धारित करने वाले तत्त्वों; उनके रंग, गहराई, गठन, आयु व रासायनिक और भौगोलिक गुणों के आधार पर भारत की मृदाओं को अनेक प्रकारों में बाँटा जा सकता है।




प्रश्न 4. भारत में कौन-कौन सी मृदाएँ पाई जाती हैं? 


उत्तर भारत में जलोढ़ मृदा, काली मृदा, लाल व पीली मृदा, लेटराइट मृदा, मरुस्थली मृदा और वन मृदा पाई जाती हैं।


प्रश्न 5.चादर अपरदन किसे कहते हैं?


उत्तर कई बार जल विस्तृत क्षेत्र को ढके हुए ढाल के साथ नीचे की ओर बहता है, ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र की ऊपरी मृदा घुलकर जल के साथ बह जाती है। उसे चादर अपरदन कहा जाता है।


प्रश्न 6.पवन अपरदन किसे कहते हैं?


उत्तर- पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।



प्रश्न 7. वन मृदा की दो विशेषताएँ बताइए। 


उत्तर- वन मृदा की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


(i) नदी घाटियों में ये मृदाएँ दोमट और सिल्टदार होती हैं परंतु ऊपरी •ढालों पर इनका गठन मोटे कणों का होता है।


(ii) हिमालय के हिम क्षेत्रों में ये अधिसिलिक तथा ह्यूमस रहित होती हैं।


 प्रश्न 8. मरुस्थलीय मृदा की विशेषताएँ बताइए।


उत्तर- मरुस्थलीय मृदा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


(i) मरुस्थलीय मृदाओं का रंग लाल और भूरा होता है।


(ii) ये मृदाएँ आमतौर पर रेतीली और लवणीय होती हैं।


(iii) मृदाओं में ह्यूमस और नमी की मात्रा कम होती है। 



प्रश्न 9. तीन राज्यों के नाम बताइए जहाँ काली मृदा पाई जाती है। इस पर मुख्य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है?


उत्तर- काली मृदा का रंग काला होता है। इसे रेगर मृदा भी कहते है। यह लावाजनक शैलों से बनती है। यह मृदा महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार में पाई जाती है। काली मृदा कपास की खेती के लिए उचित समझी जाती है। इसे काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है।


प्रश्न 10. जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं? कुछ उदाहरण दीजिए।


उत्तर- जैव संसाधन-वे संसाधन जिनकी प्राप्ति जीवमंडल से होती है और जिनमें जीवन व्याप्त होता है; जैव संसाधन कहलाते हैं; जैसे—मनुष्य, वनस्पति जगत, प्राणी जगत्, पशुधन तथा मत्स्य जीवन आदि। अजैव संसाधन-वे सारे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं; जैसे-चट्टानें और धातुएँ।




लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक




प्रश्न1. नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधनों में अंतर स्पष्ट कीजिए।


उत्तर नवीकरणीय संसाधन-वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरण, योग्य अथवा पुनः पूर्ति योग्य संसाधन कहा जाता है। उदाहरणार्थ- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन व वन्य जीवन। इन संसाधनों को सतत अथवा प्रवाह संसाधनों में विभाजित किया गया है।


अनवीकरणीय संसाधन-इन संसाधनों का विकास एक लंबे भू-वैज्ञानिक अंतराल में होता है। खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण हैं। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। इनमें से कुछ संसाधन जैसे धातुएँ पुनः चक्रीय हैं और पेट्रोल, डीजल जैसे कुछ संसाधन अचक्रीय हैं। वे एक बार के प्रयोग के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।


प्रश्न 2. संभावी संसाधन तथा विकसित संसाधन में अंतर बताइए।


 उत्तर- संभावी संसाधन-वे संसाधन जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं। परन्तु इनका उपयोग नहीं किया गया है। उदाहरण के तौर पर भारत के पश्चिमी भाग, विशेषकर राजस्थान और गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की अपार संभावनाएँ हैं। परंतु इनका सही ढंग से विकास नहीं हुआ है।


विकसित संसाधन-वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास प्रौद्योगिकी और उनकी संभाव्यता के स्तर पर निर्भर करता है।


प्रश्न 3. लाल मृदा और लेटराइट मृदा में अंतर स्पष्ट कीजिए।


उत्तर लाल मृदा- इस मृदा में लोहे की मात्रा अधिक होने के कारण इसका रंग लाल होता है। यह मृदा तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड में पाई जाती है। इसका विकास पठारों पर पाये जाने वाले शैलों से जलवाष्प परिवर्तनों के प्रभाव से होता है। यह मृदा उर्वर होती है और कृषि योग्य होती है।


लेटराइट मृदा – यह मृदा पहाड़ी या ऊँची समतल भूमि में पाई जाती है। इसकी ऊपर की तह प्रायः सख्त होती है। यह मृदा गर्म और अधिक वर्षा वाली जलवायु में पाई जाती है और इसका निर्माण निक्षालन क्रिया से होता है। इसमें बॉक्साइट और ऐलुमिनियम ऑक्साइड अधिक होता है। लेटराइट मृदा पर अधिक मात्रा में खाद और रासायनिक उर्वरक डालकर खेती की जा सकती है।


प्रश्न 4. मृदा अपरदन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


या मृदा अपरदन क्या है?


उत्तर- भूमि की ऊपरी परत के हट जाने की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन का सबसे पहला कारण तेज बहने वाला जल तथा तेज बहने वाली पवनें हैं। ये दोनों मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं और भूमि को कृषि के लिए अनुपयोगी बना देते हैं। कुछ मानवीय कारक भी मृदा अपरदन को बढ़ावा देते हैं। वे अपने भवन निर्माण कार्यों से प्रेरित होकर रोड़ी, बजरी, संगमरमर, बदरपुर आदि प्राप्त करने की इच्छा से छोटी-बड़ी पहाड़ियों को गहरे खड्डों में परिवर्तित कर देते हैं। मृदा अपरदन के कारण मृदा के उपजाऊपन पर बड़ा विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।



प्रश्न 5. संसाधन नियोजन क्या है? संसाधन नियोजन की प्रक्रिया के सोपानों (चरणों) का उल्लेख कीजिए।


उत्तर संसाधन नियोजन का अर्थ-संसाधन नियोजन वह कला अथवा तकनीक है, जिसके द्वारा हम अपने संसाधनों का प्रयोग विवेकपूर्ण ढंग से करते हैं। संसाधन नियोजन की प्रक्रिया-संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है।


जिसमें निम्नलिखित चरण हैं


(i) देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान और उसकी तालिका तैयार करना। इसके लिए क्षेत्रीय सर्वेक्षण के साथ मानचित्र बनाना तथा संसाधनों की गुणवत्ता एवं मात्रात्मक प्रवृत्तियों का अनुमान लगाना तथा मापन करना है।


 (ii) संसाधन विकास योजनाएँ लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी,कौशल और संस्थागत नियोजन ढाँचा तैयार करना।


(iii) संसाधन विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजनाओं में समन्वय स्थापित करना।



प्रश्न 6. संसाधनों के दुरुपयोग से कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?


 उत्तर- संसाधनों के दुरुपयोग से उत्पन्न मुख्य समस्याएँ निम्नवत् हैं 


(i) इससे संसाधनों का ह्रास हुआ है।


(ii) ये समाज के कुछ ही लोगों के हाथ में आ गए हैं, जिससे समाज दो हिस्सों— संसाधन संपन्न व संसाधनहीन अर्थात् अमीर व गरीब में बँट गया है।


(iii) संसाधनों के अंधाधुंध शोषण से वैश्विक पारिस्थितिकी संकट उत्पन्न मी हो गया है; जैसे— भूमंडलीय तापन, ओजोन परत अवक्षय, पर्यावरण की प्रदूषण और भूमि-निम्नीकरण आदि ।



प्रश्न.7 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संसाधन संरक्षण के लिए क्या-क्या प्रयास किए गए हैं? 



उत्तर- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 'संसाधन संरक्षण' के लिए निम्न प्रयास किए गए हैं


(i) 1968 ई. में 'क्लब ऑफ रोम' ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत की।


(ii) 1974 में शुमेसर ने अपनी पुस्तक 'स्माल इज ब्यूटीफुल में इस विषय पर गांधी जी के दर्शन की पुनरावृत्ति की।


(iii) 1987 में ब्रुन्डटलैंड आयोग रिपोर्ट द्वारा वैश्विक स्तर पर संसाधन संरक्षण में मूलाधार योगदान किया गया। इसने 'सतत् पोषणीय विकास' की संकल्पना प्रस्तुत की और संसाधन संरक्षण की वकालत की। यह रिपोर्ट बाद में 'हमारा साझा भविष्य' शीर्षक से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई।


(iv) इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण योगदान रियो डी जेनेरो, ब्राजील में 1992 में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन द्वारा किया गया।


प्रश्न 8. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? 


उत्तर पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर जलोढ़ मृदा पाई जाती है। इस जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—


(i) यह मृदा हिमालय के तीन महत्त्वपूर्ण नदी तंत्रों - सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गए निक्षेपों से बनी है।


(ii) जलोढ़ मृदा में रेत, सिल्ट और मृत्तिका के विभिन्न अनुपात पाए जाते हैं। जैसे-जैसे हम नदी के मुहाने से घाटी में ऊपर की ओर जाते हैं, मृदा के कणों का आकार बढ़ता चला जाता है।


(iii) जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है। अधिकतर जलोढ़ मृदाएँ पोटाश, फॉस्फोरस और चूनायुक्त होती हैं जो इनको गन्ने, चावल, गेहूँ और अन्य अनाजों और दलहन फसलों की खेती के लिए उपयुक्त बनाती हैं। अधिक उपजाऊपन के कारण जलोढ़ मृदा वाले क्षेत्रों में गहन कृषि की जाती है।



प्रश्न 8. भूमि के हास (निम्नीकरण) का क्या अर्थ है? भूमि हास के उत्तरदायी कारण क्या हैं?


या कोई दो मानवीय क्रियाएँ लिखिए जो भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी हैं। 


उत्तर- मिट्टी के कटाव अथवा भू-क्षरण का अर्थ


मिट्टी के कटाव का अर्थ है— भूमि की उर्वरा शक्ति का नष्ट होना। दूसरे शब्दों में, मिट्टी की ऊपरी परत के कोमल तथा उपजाऊ कणों को प्राकृतिक कारकों (जल, नदी, वर्षा तथा वायु) या प्रक्रमों द्वारा एक स्थान से हटाया जाना ही भूमि का ह्रास (कटाव) कहलाता है। यह कटाव अत्यधिक उपजाऊ भूमि को शीघ्र ही बंजर बना देता है। भारत में लगभग एक-चौथाई कृषि-भूमि, भूमि कटाव से प्रभावित है। असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्य भूमि-कटाव की समस्या से अत्यधिक प्रभावित हैं।


भूमि (मिट्टी) कटाव के प्रकार मिट्टी का कटाव निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है—


1. धरातलीय या परतदार कटाव-तेज मूसलाधार वर्षा के कारण जब धरातल का ऊपरी उत्पादक भाग तेज पानी से बह जाता है, तब उसे धरातलीय या परतदार कटाव कहते हैं।


2. कछार वाला कटाव – नदियाँ अथवा तेज बहने वाली जल-धाराओं के द्वारा जो कटाव होता है, उसे कछार वाला कटाव कहते हैं। इसमें मिट्टी कुछ गहराई तक कट जाती है तथा भूमि सतह पर नालियाँ व गड्ढे बन जाते


3. वायु का कटाव-तेज मरुस्थलीय हवाओं के द्वारा धरातल की सतह की उपजाऊ मिट्टी उड़ जाती है जो उड़कर अन्य स्थानों पर ऊँचे-ऊँचे मिट्टी के टीले बना देती है।


मिट्टी के कटाव के कारण


मिट्टी के कटाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं


(i) तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा 


(ii) नदियों का तीव्र बहाव एवं उनमें उत्पन्न बाढ़


(iii) वनों का अत्यधिक विनाश


(iv) खेतों को जोतकर खुला छोड़ देना। 


(v) तेज हवाएँ चलना।


(vi) कृषि भूमि पर पशुओं द्वारा अनियन्त्रित चराई।


(vii) खेतों पर मेड़ों का न होना।


(viii) भूमि का अत्यधिक ढालू होना।


(ix) पानी के निकास की उचित व्यवस्था न होना।


(x) कृषि करने के दोषपूर्ण ढंग; जैसे-ढालू भूमि पर सीढ़ीदार जुताई न करना, फसलों के हेर-फेर के दोषपूर्ण ढंग इत्यादि।


प्रश्न 10. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?


उत्तर- मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं। विभिन्न मानवीय तथा प्राकृतिक कारणों से मृदा अपरदन होता रहता है। पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जाने चाहिए


(i) पर्वतीय ढालों पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती है। इसे समोच्च जुताई कहा जाता है।


(ii) पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर अवनालिका अपरदन को रोका जा सकता है। पश्चिमी और मध्य हिमालय में सोपान अथवा सीढ़ीदार कृषि काफी विकसित है।


(iii) पर्वतीय क्षेत्रों में पट्टी कृषि के द्वारा मृदा अपरदन को रोका जाता है। इसमें बड़े खेतों को पट्टियों में बाँटा जाता है। फसलों के बीच में घास की पट्टियाँ उगाई जाती हैं। ये पवनों द्वारा जनित बल को कमज़ोर करती हैं।


(iv) पर्वतीय ढालों पर बाँध बनाकर जल प्रवाह को समुचित ढंग से खेती के काम में लाया जा सकता है। मृदारोधक बाँध अवनालिकाओं के फैलाव को रोकते हैं।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1.स्वामित्व के आधार पर संसाधनों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- स्वामित्व के आधार पर संसाधनों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है


1. व्यक्तिगत संसाधन-संसाधन निजी व्यक्तियों के स्वामित्व में भी होते हैं। बहुत-से किसानों के पास सरकार द्वारा आवंटित भूमि होती है जिसके बदले में वे सरकार को लगान चुकाते हैं। गाँव में बहुत-से लोग भूमि के स्वामी भी होते हैं और शहरों में लोग भूखंडों, घरों व अन्य प्रकार की सम्पत्ति के मालिक होते हैं। बाग, चरागाह, तालाब और कुँओं का जल आदि संसाधनों के निजी स्वामित्व के कुछ उदाहरण हैं।


2. सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन-ये संसाधन समुदाय के सभी सदस्यों को उपलब्ध होते हैं। गाँव की चारण भूमि, श्मशान भूमि, तालाब और नगरीय क्षेत्रों के सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्थल और खेल के मैदान। वहाँ रहने वाले सभी लोगों के लिए उपलब्ध हैं।


3. राष्ट्रीय संसाधन-तकनीकी तौर पर देश में पाए जाने वाले सभी संसाधन राष्ट्रीय हैं। देश की सरकार को कानूनी अधिकार है कि वह व्यक्तिगत संसाधनों को भी आम जनता के हित में अधिगृहित कर सकती है। सभी खनिज पदार्थ, जल संसाधन, वन तथा वन्य जीवन,राजनीतिक सीमाओं के अंदर सम्पूर्ण भूमि और 12 समुद्री 'मील' तक महासागरीय क्षेत्र व इसमें पाए जाने वाले संसाधन राष्ट्र की संपदा हैं।


4. अंतर्राष्ट्रीय संसाधन-कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ संसाधनों को नियंत्रित करती हैं। तट रेखा से 200 किमी की दूरी से पूरे खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी देश का अधिकार नहीं है। इन संसाधनों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता।


प्रश्न 2.प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपयोग कैसे हुआ है?


उत्तर- किसी क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता अत्यन्त आवश्यक है, परन्तु प्रौद्योगिकी और संस्थाओं में तद्नुरूप परिवर्तन के अभाव में मात्र संसाधनों की उपलब्धता से विकास को सम्भव नहीं किया जा सकता है। देश में बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जो संसाधनों में समृद्ध होते हुए भी प्रौद्योगिकी के अभाव में संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं कर पाए और विकास में पिछड़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखण्ड जल एवं वन संसाधनों की दृष्टि से सम्पन्न राज्य है किन्तु उचित प्रौद्योगिकी के अभाव से इन संसाधनों का यहाँ पर्याप्त उपयोग नहीं किया जा रहा है, जबकि यही संसाधन एवं भौगोलिक परिस्थिति स्विट्जरलैण्ड के पास हैं और वहाँ इनको पर्यटन के रूप में ही नहीं, आर्थिक विकास की दृष्टि से भी प्रौद्योगिकी उपयोग से विकसित किया गया है। अत: यह कहना उचित है कि प्रौद्योगिक आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है तथा इन दोनों के द्वारा संसाधनों का अधिक मात्रा में उपयोग होने लगता है। वास्तव में प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास दोनों ही संसाधनों के उचित उपयोग के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। विकसित देशों के पास यह दोनों ही उपलब्ध हैं। इसलिए ये देश अपने ही संसाधनों का नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों के संसाधनों को भी आयात करके उनका उपयोग कर रहे हैं।



प्रश्न 3. मृदा के निर्माण में कौन-से चार कारक सहायक होते हैं?


उत्तर- मृदा के निर्माण की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। उदाहरण के लिए, धरती की ऊपरी 2 सेंटीमीटर की परत निर्मित होने में हज़ारों वर्ष लग जाते हैं। मृदा के निर्माण और उसकी उर्वरता के विकास के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं; इनमें शैल, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, स्थानीय स्थलाकृति, जलवायु और एक लंबी अवधि आदि विशेषकर उल्लेखनीय हैं।


(i) सबसे पहला कारक शैल है जिनसे मृदा के लिए उचित सामग्री मिलती है।


(ii) जलवायु - जलवायु शैलों को एक लंबी अवधि में छोटे-छोटे टुकड़ों और कणों में बदल देती है।


(iii) पेड़-पौधे-पेड़-पौधों की जड़ें शैलों में घुसकर उन्हें तोड़-फोड़ देती हैं।


(iv) अत्यंत चराई-पशु भी निरंतर चरने की क्रिया से इन शैलों में अनेक परिवर्तन ला देते हैं।


(v) वर्षा-निरंतर होने वाली वर्षा का जल भी इन शैलों के छिद्रों में घुसकर तोड़-फोड़ का कार्य करता है। एक लंबे समय तक अनेक कारकों के क्रियाशील रहने के कारण इन शैलों के कणों के टूटने की प्रक्रिया चलती रहती है जिससे धीरे-धीरे मृदा का निर्माण होता है। यह मृदा वायु, वर्षा आदि के प्रभाव के अधीन एक स्थान से दूसरे स्थानों पर निक्षेपित होती रहती है।


प्रश्न 4. मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है? मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिए।



उत्तर मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है। मृदा के बनने और अपरदन की क्रियाएँ आमतौर पर साथ-साथ चलती हैं। किंतु विभिन्न मानवीय क्रियाओं से मृदा अपरदन तेजी से होने लगता है। इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं


1. भौतिक कारक-मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी मुख्य भौतिक कारक निम्नलिखित हैं


(i) ढाल वाली भूमि पर अपरदन, समतल भूमि की अपेक्षा ज्यादा होता है।


 (ii) तीव्र व मूसलाधार वर्षा से मृदा अपरदन होता है। यह मृदा की ऊपरी परत को अपने साथ बहाकर ले जाती है।


(iii) पवनें जब आँधी का रूप ले लेती हैं तो बहुत बड़ी मात्रा में मृदा उड़ाकर ले जाती हैं। शुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों में मृदा अपरदन का यह एक बड़ा कारक है।


2. मानवीय कारक – निम्नलिखित कुछ मानवीय कारकों को भी मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी माना जाता है—

(i) पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई से भूमि पर वनस्पति का आवरण समाप्त हो जाता है। इस स्थिति में मृदा पर जल और वायु का प्रभाव हाँ तीव्र होता है।



(ii) वृक्षों की जड़ें मृदा की रक्षा करती हैं। वनों के कटाव से मृदा अपरदन में तेजी आ गई हैं, क्योंकि पानी और पवनों के बहाव को वृक्ष कम कर सकते हैं।


(iii) कृषि के गलत तरीकों से भी मृदा अपरदन होता है। गलत ढंग से हल चलाने; जैसे-ढाल पर ऊपर से नीचे की ओर हल चलाने से वाहिकाएँ बन जाती हैं, जिसके अंदर से बहता पानी आसानी से मृदा का कटाव करता है।


(iv) खनिज पदार्थ निकालने के लिए खनन कार्य से भी मृदा अपरदन होता है।


(v) मनुष्य भवन निर्माण कार्य के लिए रोड़ी, बजरी, संगमरमर, बदरपुर आदि प्राप्त करने के लिए छोटी-बड़ी पहाड़ियों को गहरे खड्डों में परिणत कर देते हैं।



प्रश्न 5. मृदा अपरदन को रोकने के उपायों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- मृदा अपरदन के कारण भूमि कृषि योग्य नहीं रहती, उसकी उपजाऊ शक्ति समाप्त हो जाती है। मृदा अपरदन को रोकना आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं


(i) वनारोपण या काफी मात्रा में पेड़ लगाने से मृदा अपरदन की प्रक्रिया रोकी जा सकती है। पेड़ों का बंजर भूमि तथा पहाड़ी ढालों पर लगाना अधिक लाभदायक सिद्ध होता है। इस ढंग से वायु अपरदन को भी रोका जा सकता है।


(ii) ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती है। इसे समोच्च जुताई कहा जाता है।


(iii) ढाल वाली भूमि पर सोपान बनाए जा सकते हैं। सोपान कृषि मृदा अपरदन को नियंत्रित करती है। पश्चिमी और मध्य हिमालय में सोपान अथवा सीढ़ीदार खेत काफी विकसित हैं।


(iv) बड़े खेतों को पट्टियों में बाँधकर फसलों के बीच में घास की पट्टियाँ उगाई जाती हैं। ये पवनों द्वारा जनित बल को कम करती हैं। इस तरीके की कृषि को पट्टी कृषि कहते हैं।


(v) पेड़ों को कतारों में लगाकर रक्षक मेखला बनाना भी पवनों की गति को कम करता है। इन रक्षक पट्टियों का पश्चिमी भारत में रेत के टीलों के स्थायीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।




यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 5 वन एवं वन्य जीव संसाधन


up board class 10 social science chapter 5 van avm vany jeev sansadhan






       वन एवं वन्य जीव संसाधन





याद रखने योग्य बिन्दु


1● वन पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादक हैं जिन पर दूसरे सभी जीव निर्भर करते हैं।


2● भारत, जैव विविधता के संदर्भ में विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है। यहाँ विश्व की सारी जैव उपजातियों की 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पाई जाती है।


3• IUCN का पूर्ण विस्तार है-अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ।


4● पश्चिम बंगाल में बक्सा टाईगर रिजर्व, डोलोमाइट के खनन के कारण गंभीर खतरे में हैं।


5• वन पारिस्थितिकी तंत्र देश के मूल्यवान वन पदार्थों, खनिजों और अन्य संसाधनों के संचय कोष हैं जो तेजी से विकसित होती औद्योगिक शहरी अर्थव्यवस्था की माँग की पूर्ति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।


6● भारत में जैव-विविधता को कम करने वाले कारकों में वन्य जीव के आवास का विनाश, जंगली जानवरों को मारना व आखेटन, पर्यावरणीय प्रदूषण व विषाक्तिकरण और दावानल आदि शामिल हैं।


7● भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम 1972 में लागू किया गया जिसमें वन्य जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे। तत्पश्चात् केंद्रीय सरकार व कई राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव पशुविहार (sanctuary) स्थापित किए।


8.'प्रोजेक्ट टाईगर' विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है और इसकी शुरुआत 1973 में हुई।


9• मध्य प्रदेश में स्थायी वनों के अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्र है जोकि प्रदेश के कुल वन क्षेत्र का भी 75 प्रतिशत है।


10● वन विभाग के अंतर्गत 'संयुक्त वन प्रबंधन' क्षरित वनों के बचाव के लिए कार्य करता है। और इसमें गाँव के स्तर पर संस्थाएँ बनाई जाती हैं जिसमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप में कार्य करते हैं।




               महत्त्वपूर्ण शब्दावली


● संकटग्रस्त जातियाँ – वे जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है। उदाहरणार्थ-काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, गैंडा आदि ।


● स्थानिक जातियाँ – प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियाँ। उदाहरणार्थ-अंडमानी टील, निकोबारी कबूतर, अंडमानी जंगली सुअर आदि।


● लुप्त जातियाँ – वे जातियाँ जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पाई गई हैं। उदाहरणार्थ—–एशियाई चीता और गुलाबी सिर वाली बत्तख आदि।


● हिमालयन यव – हिमाचल प्रदेश तथा अरुणाचल प्रदेश में पाये जाने वाला औषधीय पौधा। इससे स्रावित होने वाले टकसोल नामक रासायनिक पदार्थ का उपयोग कैंसर के उपचार में किया जाता है।




           महत्त्वपूर्ण तिथियाँ


1● 1952 ई. – भारत में चीता लुप्त घोषित किया गया।


2● 1972 ई. - भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम लागू किया गया।


3• 1973 ई. - प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया।


● 1991 ई. - पहली बार पौधों की 6 जातियों को संरक्षित जातियों में शामिल किया गया।


● 1988 ई. - ओडिशा राज्य ने संयुक्त वन प्रबंधन का पहला प्रस्ताव पास किया।





बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1:भारत में कितने प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा है ?


(क) 10%


(ख) 20%


(ग) 30%


(घ) 40%


उत्तर-


(ख) 20%


प्रश्न 2. देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत हिस्सा वनाच्छादित है?


(क) 21.32% 


(ख) 24.40% 


(ग) 18.90% 


(घ) 17.21%


उत्तर-


(ख) 24.40%


प्रश्न 3.संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची निम्न में से कौन-सी संस्था तैयार करती है?


(क) IUCN


(ख) WTO


(ग) UN


(घ) FAO



उत्तर-

(क) IUCN



प्रश्न 4.चिपको आन्दोलन सम्बन्धित है


(क) मृदा संरक्षण


(ख) वन संरक्षण


(ग) जल संरक्षण


(घ) वायु संरक्षण


उत्तर


(ख) वन संरक्षण



प्रश्न 5. भारत में सबसे पहले वन एवं वन्य जीव संरक्षण अधिनियम किस वर्ष लागू किया गया?


(क) 1970


(ख) 1972


(ग) 1983


(घ) 1990


उत्तर-(ख) 1972


प्रश्न 6.'टाइगर प्रोजेक्ट' किस वर्ष आरंभ किया गया?


(क) 1973


(ख) 1975


(ग) 1980


(घ) 1989


उत्तर-


(क) 1973


प्रश्न 7.इनमें से कौन-सी टिप्पणी प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास का सही कारण नहीं है?


(क) कृषि प्रसार


(ख) पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना


(ग) वृहत् स्तरीय विकास परियोजनाएँ


(घ) तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण


उत्तर


(ख) पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना




प्रश्न 8.इनमें से कौन-सा संरक्षण तरीका समुदायों की सीधी भागीदारी नहीं करता?


(क) संयुक्त वन प्रबंधन


(ख) बीज बचाओ आंदोलन


(ग) चिपको आंदोलन


(घ) वन्य जीव पशुविहार का परिसीमन


उत्तर- (घ) वन्य जीव पशुविहार का परिसीमन


प्रश्न 9. सुन्दरवन राष्ट्रीय पार्क किस राज्य में स्थित है?


(क) असम


(ख) उड़ीसा


(ग) पश्चिम बंगाल


(घ) मध्य प्रदेश


उत्तर- (ग) पश्चिम बंगाल



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक



प्रश्न 1.दो संकटापन्न पादपों के नाम लिखिए। 


उत्तर 1. मधुका इनसिगनिस तथा 2. हुबरड़िया हेप्टान्यूरोन ।



 प्रश्न 2. भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत हिस्सा वन आवरण के अंतर्गत आता है?


उत्तर 24.39% (24.4%) 


प्रश्न 3. आईयूसीएन का पूर्ण विस्तार बताइए। 


उत्तर- आईयूसीएन (IUCN)–अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ।


प्रश्न 4. संकटग्रस्त जातियों से क्या अभिप्राय है?


उत्तर- संकटग्रस्त जातियों से अभिप्राय उन जातियों से है जिनके विलुप्त होने का खतरा है। उदाहरणार्थ- काला हिरण, भारतीय जंगली गधा तथा संगाई हिरण (मणिपुर) इत्यादि ।


प्रश्न 5. सुभेद्य जातियों के दो उदाहरण दीजिए।


उत्तर- 1. एशियाई हाथी तथा 2. गंगा डाल्फिन ।


प्रश्न 6. भारत में चीता के लुप्त होने की घोषणा किस वर्ष की गई थी ?


उत्तर- वर्ष 1952 में।


 प्रश्न 7. टकसोल क्या है?


उत्तर- टकसोल (Taxol) हिमालयन यव नामक औषधीय पौधे की छाल,टहनियों तथा जड़ों से स्रावित होने वाला रासायनिक पदार्थ है। यह कैंसर के उपचार में सहायक होता है।


प्रश्न 8. वनों की कटाई के दो परोक्ष प्रभाव बताइए। उत्तर- 1. सूखा तथा 2. बाढ़।


प्रश्न 9. भारतीय वन्य जीव (रक्षण) अधिनियम किस वर्ष लागू किया गया?


उत्तर वर्ष 1972 में


प्रश्न 10. वर्ष 1973 में शुरू किए गए 'प्रोजेक्ट टाइगर' का सम्बन्ध किससे है?


उत्तर- बाघों के संरक्षण से।


प्रश्न 11. भैरोंदेव डाक व सेंक्चुरी कहाँ स्थित हैं?


उत्तर राजस्थान के अलवर जिले में।


प्रश्न 12. भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम की शुरुआत किस वर्ष की  गई?


उत्तर- वर्ष 1988 में।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1.राष्ट्रीय उद्यान किसे कहते हैं?


उत्तर राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) ऐसे रक्षित क्षेत्रों को कहते हैं जहाँ वन्य प्राणियों सहित प्राकृतिक वनस्पति को एक साथ सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे स्थानों की सुरक्षा और प्रबन्ध की ओर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है। इनमें बहुत कम मानव हस्तक्षेप होता है, केवल इतना कि अधिकारी वर्ग आ जा सकें और अपने कार्य की देखभाल कर सकें। पर्यटकों को भी एक नियमित और नियन्त्रित संख्या में जाने दिया जाता है।


प्रश्न 2. जैव-विविधता क्या है? मानव-जीवन में इसकी महत्ता का वर्णन कीजिए। 


या जैव-विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?


उत्तर- जैव-विविधता का अर्थ-जैव विविधता जीवमण्डलों में पाए जाने वाले जीवों की विभिन्न जातियों में पायी जाने वाली विविधता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जैव-विविधता वनस्पति एवं प्राणियों में पाए जाने वाले जातीय विभेद को प्रकट करती है। भू-पृष्ठ पर वर्तमान जैव-विविधता अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया का परिणाम है। पर्यावरण ह्रास के कारण जैव-विविधता का क्षय हुआ है। जीवों की अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं तथा कई संकटग्रस्त हैं।


मानव जीवन के लिए महत्त्व - मानव अपने उत्पत्तिकाल से ही विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति जीव जगत से ही करता चला आ रहा है। मानव को भोजन, आवास एवं परिवेश सम्बन्धी विभिन्न आवश्यकताओं और अपने अस्तित्व के लिए जैव-विविधता पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जैव-विविधता के उपभोग की दृष्टि से ही मानव ने अधिक उपयोगी प्राणियों और पौधों का पालतूकरण किया। कृषि एवं पशुपालन इसी आवश्यकता का परिणाम है।


प्रश्न 3. भारत के कोई दो पूर्वोत्तर राज्यों के नाम बताइए जिनमें 60 प्रतिशत से अधिक वन का आवरण है। दो कारण दीजिए।


 उत्तर- अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर दो ऐसे पूर्वोत्तर राज्य हैं जहाँ 60 प्रतिशत से अधिक वनों का आवरण है। इसके दो मुख्य कारण निम्नलिखित हैं


1. इन राज्यों में वर्षा खूब होती है जो वनों के विकास में सहायक सिद्ध होती है। 


2. इन राज्यों की भूमि पहाड़ी है और ऊँची-नीची है जिसके कारण वनों का शोषण आसानी से नहीं हो सकता और वन सुरक्षित रहते हैं। 


प्रश्न 4. जीव आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फीयर रिजर्व) किसे कहते हैं?


उत्तर ऐसे क्षेत्र, जहाँ वन्य जीव-जन्तुओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है, जीव आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फीयर रिजर्व) कहलाते हैं। इनके क्षेत्रों के निर्धारण द्वारा जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति की उनकी प्रजातियों को विशेष संरक्षण प्रदान करने का प्रयास किया जाता है, जो दुर्लभ या संकटग्रस्त हैं। हमारे देश में जीव-जन्तुओं और जैव-विविधता के संरक्षण हेतु इस प्रकार के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। उदाहरणार्थ- उत्तराखण्ड में नन्दादेवी आरक्षित क्षेत्र।


प्रश्न 5. पारिस्थितिक तन्त्र किसे कहते हैं? वन एवं वन्य जीवों के लिए इसका क्या महत्त्व है?


 उत्तर- पेड़-पौधे (वनस्पति), जीव-जन्तु, सूक्ष्म जीवाणु तथा भौतिक पर्यावरण मिलकर पारितन्त्र की रचना करते हैं। इसे पारिस्थितिक तन्त्र भी कहते हैं। "पारिस्थितिकी जीवविज्ञान का वह भाग है जिसके द्वारा हमें जीव तथा पर्यावरण की पारस्परिक प्रतिक्रियाओं का बोध होता है।" इस प्रकार विभिन्न जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों द्वारा पुनः उनका भौतिक पर्यावरण से सम्बन्धों का अध्ययन पारिस्थितिक विज्ञान (Ecology) कहलाता है। जीव और उसका पर्यावरण प्रकृति के जटिल तथा गतिशील घटक हैं। पर्यावरण अनेक कारकों द्वारा निर्धारित होता है। ये कारक जीवों को प्रभावित करते रहते हैं। जीव भी अपनी वृद्धि, व्यवहार तथा जीवन-वृत्त के पारस्परिक प्रभाव से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। किसी क्षेत्र में रहने वाले जीव-जन्तु एवं पादप एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, परन्तु उनमें परस्पर तथा भौतिक पर्यावरण के साथ पदार्थों एवं ऊर्जा का विनिमय होता रहता है। निरन्तर पारस्परिक क्रियाओं के कारण पारितन्त्र भी उतना ही गतिशील हो जाता है जितना कि भौतिक पर्यावरण। विभिन्न प्रकार के जीव भौतिक पर्यावरण में होने वाले किसी भी परिवर्तन के अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं अर्थात् वे भौतिक पर्यावरण का अपनी आवश्यकतानुसार अनुकूलन कर लेते हैं।


प्रश्न 6. "जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक वनस्पतियों में गहन सम्बन्ध है।" इस कथन की विवेचना कीजिए। 


उत्तर- किसी प्रदेश के जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक वनस्पतियों में गहन सम्बन्ध होता है। प्राकृतिक वनस्पति से जीव-जन्तुओं को न केवल भोजन ही प्राप्त होता है, अपितु सुरक्षित प्राकृतिक आवास भी सुलभ होता है। वास्तव में, ये जीव-जन्तु जहाँ पर भी अपना रैन-बसेरा बना लेते हैं, वहाँ के पारितन्त्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यद्यपि जीव-जन्तु एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्वतन्त्र विचरण करते हैं, परन्तु जीव-जन्तुओं की प्रत्येक जाति जलवायु दशाओं में सीमित परिवर्तनों को ही सहन कर सकती है। उनकी शारीरिक संरचना, रंग-रूप, भोजन की आदतें आदि सभी उनके प्राकृतिक पर्यावरण के अनुरूप होते हैं। पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन हो जाने से जीव-जन्तु स्वयं को उनके अनुसार कुछ सीमा तक ढाल लेते हैं अथवा वहाँ से प्रवास कर जाते हैं। पक्षियों का मौसमी प्रवास महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कुछ वन क्षेत्रों में तो जीव-जन्तुओं की नवीन प्रजातियाँ विकसित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, रेण्डियर टुण्ड्रा एवं टैगा वनस्पति का वन्य प्राणी है जो विषुवतीय सदाबहार वनस्पति के क्षेत्रों में अपना प्राकृतिक आवास निर्मित नहीं कर सकता। इसी प्रकार विषुवतीय वन प्रदेशों का स्थूलकाय प्राणी- हाथी, टुण्ड्रा एवं टैगा प्रदेशों में अपना आवास नहीं बना सकता है। अतः जीव-जन्तु और प्राकृतिक वनस्पति परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। 


प्रश्न 7. मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास की कारक हैं?


उत्तर- मानव ने अपनी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति के अनेक पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित कर लिया है। इसी कारण मानव ने वन एवं वन्य जीवों को भारी नुकसान पहुंचाया है। भारत में वनों घ एवं वन्य जीवों की सबसे अधिक हानि उपनिवेश काल में रेललाइन, कृषि उ व्यवसाय, वाणिज्य, वानिकी और खनन क्रियाओं में वृद्धि से हुई है। स्वतन्त्रता स प्राप्ति के बाद जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई, जैव-विविधता का विनाश और म भी अधिक तीव्र गति से हुआ। कृषि के अतिरिक्त मानव ने बड़े बाँध और ब आवास भी बनाए हैं। भूमि के इस उपयोग से भी जैव-विविधता का ह्रास हुआ जै है। अतः मानव अन्य सभी कारकों की अपेक्षा जैव-विविधता के ह्रास एवं कृ विनाश के लिए अपेक्षाकृत अधिक उत्तरदायी है। भा


प्रश्न 8."चिपको आन्दोलन" क्या है?


 उत्तर- चिपको आन्दोलन वनों की रक्षा के लिए चलाया गया आन्दोलन है। इस आन्दोलन का सूत्रपात सुन्दरलाल बहुगुणा ने हिमालय क्षेत्र में किया। इसके का अन्तर्गत लोग पेड़ों से चिपककर उनकी रक्षा करते हैं और उन्हें काटने नहीं देते।


यह आन्दोलन वनों/वृक्षों की कटाई रोकने में सफल हुआ। साथ ही इस आन्दोलन ने यह भी दिखाया कि स्थानीय पौधों की प्रजातियों का प्रयोग करके सामुदायिक वनीकरण अभियान भी सफल बनाया जा सकता है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।


उत्तर भारत में प्रकृति एवं उसके तत्त्वों के प्रति आस्था-पूजा सदियों पुरानी परम्परा रही है। शायद इन्हीं विश्वासों के कारण विभिन्न वनों को मूल एवं कौमार्य रूप में आज भी बचाकर रखा है, जिन्हें पवित्र पेड़ों के झुरमुट या देवी-देवताओं के वन कहते हैं।


भारतीय समाज में विभिन्न संस्कृतियाँ हैं और प्रत्येक संस्कृति में प्रकृति और इसकी कृतियों को संरक्षित करने के अपने-अपने पारम्परिक तरीके हैं। आमतौर पर झरनों, पहाड़ी चोटियों, पेड़ों और पशुओं को पवित्र समझकर उनके सम्मान और संरक्षण के लिए एक रिवाज बना दिया गया है। कुछ समाज कुछ विशेष पेड़; जैसे—पीपल, बरगद, महुआ, बेल आदि की पूजा करते हैं। तुलसी और पीपल के वृक्ष देव-निवास समझे जाते हैं। विभिन्न धार्मिक आयोजनों में इनका विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है। छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदम्ब के पेड़ों की पूजा करते हैं। ओडिशा और बिहार की जनजातियाँ शादी के समय इमली और आम के पेड़ की पूजा करती हैं। इसी प्रकार गाय, बन्दर, लंगूर आदि की लोग उपासना करते हैं। राजस्थान में विश्नोई समाज के गाँवों के आस-पास काले हिरण, चिंकारा, नीलगाय और भौरों के झुण्ड हैं जो वहाँ के अभिन्न अंग है, यहाँ इनको कोई नुकसान नहीं पहुँचता तथा इनका संरक्षण किया जाता है। अतः हिन्दू एवं विभिन्न जातीय समुदायों द्वारा ऐसी अनेक धार्मिक परम्पराएँ हैं जिनके द्वारा वन और वन्य जीव संरक्षण में रीति-रिवाज सहयोग प्रदान करते हैं।



प्रश्न 2. भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों और वन्य जीवन संरक्षण और रक्षण में योगदान किया है?



उत्तर- भारत में वन संरक्षण और रक्षण की प्राचीन परम्परा रही है। वन हमारे देश में कुछ समुदायों के आवास भी हैं, इसलिए ये समुदाय इनके संरक्षण के लिए आज भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में तो स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारियों के साथ अपने वन आवास स्थलों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। सरिस्का बाघ रिजर्व में राजस्थान के गाँवों के लोग वन्य जीव रक्षण अधिनियम के तहत वहाँ से खनन कार्य बन्द करवाने के लिए संघर्षरत हैं। राजस्थान के ही अलवर जिले में 5 गाँवों के लोगों ने तो 1,200 हेक्टेयर वन भूमि भैरोंदेव डाक व सेंक्चुरी घोषित कर दी जिसके अपने ही नियम कानून हैं, जो शिकार को वर्जित करते हैं तथा बाहरी लोगों की सपैठ से यहाँ के वन्य जीवों को बचाते हैं।


उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध 'चिपको आन्दोलन' कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने में ही सफल नहीं रहा अपितु इसने स्थानीय पौधों की जातियों की वृद्धि में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उत्तराखण्ड में ही टिहरी जनपद के किसानों का 'बीज बचाओ आन्दोलन' और 'नवदानय' ने रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक खाद का प्रयोग करके यह दिखा दिया है कि आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन सम्भव है।


भारत में संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम ने भी वनों के प्रबन्धन और पुनर्निर्माण में स्थानीय समुदाय की भूमिका को उजागर किया है। औपचारिक रूप से इन कार्यक्रमों का आरम्भ 1988 में ओडिशा से हुआ था। यहाँ ग्रामस्तर पर इस कार्यक्रम को सफल बनाने के उद्देश्य से संस्थाएँ बनाई गईं जिनमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप कार्य करते हैं।




कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 6 जल संसाधन का सम्पूर्ण हल


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 3.         जल संसाधन





याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1• तीन-चौथाई धरातल जल से ढका हुआ है। जल एक नवीकरणीय संसाधन है।


2 • सारा जल जलीय चक्र में गतिशील रहता है जिससे जल नवीकरण सुनिश्चित होता है।


3● विश्व में जल के कुल आयतन का 96.5 प्रतिशत भाग महासागरों में पाया जाता है और केवल 2.5 प्रतिशत भाग अलवणीय जल है। विश्व में अलवणीय जल का लगभग 70 प्रतिशत भाग अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ की चादरों और हिमनदों के रूप में मिलता है।



4. एक ओर इजराइल जैसे 25 सेमी औसत वार्षिक वाले देश में जल का कोई अभाव नहीं है तो दूसरी ओर 114 सेमी औसत वार्षिक वर्षा वाले हमारे देश में प्रतिवर्ष किसी भाग में सूखा अवश्य पड़ता है।


5• बाँधों को बहुउद्देश्य परियोजनाएँ भी कहा जाता है जहाँ एकत्रित जल के अनके उपयोग समन्वित होते हैं।


6• जवाहरलाल नेहरू बाँधों को आधुनिक भारत के मंदिर कहा करते थे। 



7.नर्मदा बचाओ आंदोलन एक गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) है जो जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में लामबंद करता है। मूल रूप से शुरू में यह आंदोलन जंगलों के बाँध के पानी में डूबने जैसे पर्यावरण मुद्दों पर केंद्रित था। अब इस आंदोलन का लक्ष्य बाँध से विस्थापित गरीब लोगों को सरकार से संपूर्ण पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया है।


8• कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोयना पर जल विद्युत परियोजना के लिए बाँध बनाकर जल की दिशा में परिवर्तन कर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सरकारों द्वारा आपत्ति जताए जाने से हुई। इससे इन राज्यों में पड़ने वाले नदी के निचले हिस्सों में जल प्रवाह कम हो जाएगा और कृषि और उद्योग पर विपरीत असर पड़ेगा। • मेघालय में नदियों व झरनों के जल को बाँस द्वारा बने पाइप द्वारा एकत्रित करके 200 वर्ष पुरानी विधि प्रचालित है।





महत्त्वपूर्ण शब्दावली


बाँध-बाँध बहते जल को रोकने, दिशा देने या बहाव कम करने के लिए खड़ी की गई बाधा है जो आमतौर पर जलाशय, झील अथवा जलभरण बनाती है। बाँध का अर्थ जलाशय से लिया जाता है न कि इसके ढाँचे से। 



बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना उसे कहते हैं जिसमें नदियों पर बाँध बनाकर एक बार में अनेक उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है: जैसे-सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, बिजली उत्पादन, मछली पालन आदि। 


भौम जल-जल जो रिस-रिसकर भूमि में समा जाता है।


वर्षाजल संग्रहण वर्षाजल संग्रहण का अर्थ है कि वर्षा के जल को उसी स्थान पर एकत्रित करना जहाँ वर्षा हो रही है। 



बॉस ट्रिप सिंचाई प्रणाली नदियों व झरनों के जल को बॉस के बने पाइप द्वारा एकत्रित करके सिंचाई करना बॉस ड्रिप सिंचाई प्रणाली कहलाती है। इसमें पानी का बहाव 20 से 80 बूँद प्रति मिनट तक घटाकर पौधे पर छोड़ दिया जाता है।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. भारत विश्व वृष्टि मात्रा का कितना प्रतिशत प्राप्त करता है?


(क) 4%


(ख) 6%


(ग) 8%


(घ) 10%


उत्तर-


(क) 4%


प्रश्न 2.विश्व में सर्वाधिक वर्षा किस स्थान पर होती है?


(क) मॉसिनराम


(ख) चेन्नई


(ग) ब्लादिवोस्टक


(घ) न्यूयॉर्क


उत्तर- (क) मॉसिनराम


प्रश्न 3. भारत की पहली नदी घाटी परियोजना किस नदी पर बनायी गई?


(क) दामोदर 


(ख) नर्मदा 


(ग) कोसी


(घ) चिनाब


उत्तर


(क) दामोदर


प्रश्न 4. बहु-उद्देशीय परियोजनाओं को किसने 'आधुनिक भारत का मंदिर' कहा ?


(क) महात्मा गांधी


(ख) जवाहरलाल नेहरू 


(ग) विनोबा भावे


(घ) अन्ना हजारे



उत्तर-


(ख) जवाहरलाल नेहरू


प्रश्न 5. टिहरी बाँध परियोजना किस राज्य में स्थित है?


(क) पंजाब


ख) गुजरात


 (ग) उत्तराखण्ड 


(घ) मध्य प्रदेश


उत्तर-


(ग) उत्तराखण्ड


प्रश्न 6.निम्नलिखित में से कौन-सा वक्तव्य बहु-उद्देशीय नदी परियोजनाओं के पक्ष में दिया गया तर्क नहीं है



 (क) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ उन क्षेत्रों में जल लाती हैं जहाँ जल की कमी होती है।


(ख) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ जल बहाव को नियंत्रित करके बाढ़ पर काबू पाती हैं। 


(ग) बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से बृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।


 (घ) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ हमारे उद्योग और घरों के लिए विद्युत पैदा करती हैं।


उत्तर (ग) बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से बृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।


प्रश्न 7.सलाल बाँध किस नदी पर बना है?



(क) महानदी


 (ख) चिनाव


(ग) सतलुज


(घ) कृष्णा



उत्तर-


(ख) चिनाव




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. जल के बारे में क्या भविष्यवाणी की गई है?


उत्तर 2025 में विश्व के अनेक देशों में 20 करोड़ लोग जल की नितांत कमी झेलेंगे। भविष्यवाणी है कि 2025 तक भारत का एक बड़ा हिस्सा विश्व के अन्य देशों और क्षेत्रों की तरह जल की नितान्त कमी महसूस करेगा।


प्रश्न 2. सरदार सरोवर बाँध कहाँ और किस नदी पर बना है?


उत्तर सरदार सरोवर बाँध गुजरात राज्य में नर्मदा नदी पर बना है। 



प्रश्न 3. कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत क्यों हुई थी?


उत्तर कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोयना पर जल विद्युत परियोजना के लिए बाँध बनाकर जल की दिशा में परिवर्तन कर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सरकारों द्वारा आपत्ति जताए जाने से हुई। इससे इन राज्यों में पड़ने वाले नदी के निचले हिस्से में जल प्रवाह कम हो जाएगा और कृषि उद्योग पर विपरीत असर पड़ेगा।


प्रश्न 4.भारत के एक ऐसे क्षेत्र का उदाहरण दीजिए जहाँ पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है फिर भी जल की कमी है।


उत्तर- मेघालय की राजधानी शिलांग में छत वर्षा जल संग्रहण प्रचलित है।


यह रोचक इसलिए है क्योंकि चेरापूँजी और मॉसिनराम जहाँ विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है शिलांग से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह शहर पीने के जल की कमी की गंभीर समस्या का सामना करता है।


प्रश्न 5. भारत का कौन-सा राज्य है जहाँ छत वर्षाजल संग्रहण ढाँचों को बनाना आवश्यक कर दिया गया है?


उत्तर- तमिलनाडु देश का एकमात्र राज्य है जहाँ पूरे राज्य में हर घर में छत वर्षा जल संग्रहण ढाँचों का बनाना आवश्यक कर दिया गया है। इस संदर्भ में दोषी व्यक्तियों पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है।


प्रश्न 6. अलवणीय जल किस प्रकार से प्राप्त होता है?


उत्तर- अलवणीय जल हमें सतही अपवाह और भौम जल स्रोत से प्राप्त होता है जिसका लगातार नवीकरण और पुनर्भरण जलीय चक्र द्वारा होता रहता है।


प्रश्न 7. स्वतंत्रता के बाद भारत में बहु-उद्देशीय योजनाओं को आरम्भ करने का प्रमुख उद्देश्य क्या था?


उत्तर- इससे कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास होगा, औद्योगीकरण में तेजी आएगी तथा शहरी अर्थव्यवस्था का विकास होगा।


प्रश्न 8. व्याख्या कीजिए कि जल किस प्रकार नवीकरण योग्य संसाधन है?


 उत्तर- जल एक नवीकरण योग्य संसाधन है क्योंकि जल एक बार प्रयोग करने पर समाप्त नहीं होता। हम इसका बार-बार प्रयोग कर सकते हैं अर्थात इसकी पुन: पूर्ति संभव है; जैसे-जल का प्रयोग यदि उद्योगों में या घरेल कामकाज में किया जाता है तो इससे जल दूषित हो जाता है किंतु समाप्त नहीं होता। इस जल को साफ करके फिर से इस्तेमाल करने योग्य बनाया जा सकता है।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. दुर्लभता क्या है और इसके मुख्य कारण क्या हैं? 


या जल दुर्लभता क्या है? इसके तीन मुख्य कारण बताइए ।


उत्तर- जल के विशाल भंडार तथा नवीकरणीय गुणों के होते हुए भी यदि जल की कमी महसूस की जाए तो उसे जल दुर्लभता कहते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में जल की कमी या दुर्लभता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हो सकते हैं


1. बढ़ती जनसंख्या - जल अधिक जनसंख्या के घरेलू उपयोग में ही नहीं बल्कि अधिक अनाज उगाने के लिए भी चाहिए। अतः अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए जल संसाधनों का अतिशोषण करके सिंचित क्षेत्र को बढ़ा दिया जाता है।


2. जल का असमान वितरण - भारत में बहुत-से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ सूख पड़ता है। वर्षा बहुत कम होती है। ऐसे क्षेत्रों में भी जल दुर्लभता या जल की कमी देखी जा सकती है।


3. निजी कुएँ या नलकूप - बहुत-से किसान अपने खेतों में निजी कुएँ व नलकूपों से सिंचाई करके उत्पादन बढ़ा रहे हैं किंतु इसके कारण लगातार भू-जल का स्तर नीचे गिर रहा है और लोगों के लिए जल की उपलब्धता में कमी हो सकती है।


4. औद्योगीकरण – स्वतंत्रता के बाद हुए औद्योगीकरण के कारण भारत में अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। उद्योगों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति जल विद्युत से की जाती है। इस कारण भी जल की कमी का सामना करना पड़ता है।



प्रश्न 2. बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से होने वाले लाभ और हानियों की तुलना कीजिए।



उत्तर नदियों पर बांध बनाकर एक साथ कई उद्देश्यों को पूरा किया जाता है, जैसे-बाद नियंत्रण, सिचाई, विद्युत उत्पादन तथा मत्स्य पालन। ऐसी योजनाओं को बहुउद्देशीय योजनाएँ कहा जाता है। इस परियोजना से कुछ लाभ होते हैं तो कुछ हानियाँ भी होती हैं।


लाभ-नदियों पर बाँध बनाकर केवल सिंचाई ही नहीं की जाती अपितु इनका उद्देश्य विद्युत उत्पादन, घरेलू और औद्योगिक उत्पादन, जल आपूर्ति, बाढ़ नियंत्रण, मनोरंजन, आंतरिक नौचालन और मछली पालन भी है। इसलिए बाँधों को बहुउद्देशीय परियोजनाएँ भी कहा जाता है। यहाँ एकत्रित जल के अनेक उपयोग समन्वित होते हैं।


हानियाँ- नदियों पर बाँध बनाने और उनका बहाव नियंत्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो जाता है जिसके कारण तलछट बहाव कम हो जाता है। अत्यधिक तलछट जलाशय की तलों पर जमा होता रहता है जिससे नदी का तल अधिक चट्टानी हो जाता है। नदी जलीय जीव आवासों में भोजन की कमी हो जाती है। बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँट देते हैं जिससे जलीय जीवों का नदियों में स्थानांतरण अवरुद्ध हो जाता है। बाढ़ के मैदान में बने जलाशयों से वहाँ मौजूद वनस्पति और मिट्टियाँ जल में डूब जाती हैं। इन परियोजनाओं के कारण स्थानीय लोगों को अपनी जमीन, आजीविका और संसाधनों से लगाव व नियंत्रण आदि को कुर्बान करना पड़ता है।


प्रश्न 3.औद्योगीकरण और शहरीकरण किस प्रकार जल दुर्लभता के लिए उत्तरदायी रहे हैं?


उत्तर


स्वतंत्रता के बाद भारत में तेजी से औद्योगीकरण और शहरीकरण हुआ। उद्योगों की बढ़ती हुई संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। उद्योगों को अत्यधिक जल के अलावा उनको चलाने के लिए ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है। इसकी काफी हद तक पूर्ति जल विद्युत से होती है। शहरों की बढ़ती संख्या और जनसंख्या तथा शहरी जीवन-शैली के कारण न केवल जल और ऊर्जा की आवश्यकता में बढ़ोतरी हुई है अपितु इनसे संबंधित समस्याएँ और भी गहरी हुई हैं। यदि शहरी आवास समितियों को देखें तो पाएँगे कि उनके अंदर जल आपूर्ति के लिए नलकूप स्थापित किए गए हैं। इस प्रकार शहरों में जल संसाधनों का अतिशोषण हो रहा है और जल दुर्लभता उत्पन्न हो रही है।




प्रश्न4. 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' से आप क्या समझते हैं?


उत्तर


कुछ सामाजिक संगठन बहुउद्देशीय नदी परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं। इसमें एक आंदोलन 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' है। यह आंदोलन एक गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाया जा रहा है जो जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं को गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में लामबंद करता है। मूल रूप से शुरू में यह आंदोलन जंगलों के बाँध के पानी में डूबने जैसे मुद्दों पर केन्द्रित था। हाल ही में इस आंदोलन का लक्ष्य बाँध से विस्थापित गरीब लोगों को सरकार से संपूर्ण पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया है।


प्रश्न 5. प्राचीन काल के जल संग्रहण के साक्ष्यों पर प्रकाश डालिए।


उत्तर- पुरातत्त्व व ऐतिहासिक अभिलेख/दस्तावेज बताते हैं कि हमने प्राचीन काल से ही सिंचाई के लिए पत्थरों और मलबे से बाँध, जलाशय या झीलों के तटबंध और नहरों जैसी सर्वश्रेष्ठ जलीय कृतियाँ बनाई हैं, जो निम्नलिखित हैं—


(i) ईसा से एक शताब्दी पहले इलाहाबाद के नजदीक श्रिंगवेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था।


(ii) चंद्रगुप्त मौर्य के समय में बृहत् स्तर पर बाँध, झील व सिंचाई तंत्रों का निर्माण करवाया गया।


 (iii) कलिंग (ओडिशा), नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश), बेन्नूर (कर्नाटक) तथा कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में उत्कृष्ट सिंचाई तंत्र बनाए गए। 


(iv) 11वीं शताब्दी में सबसे बड़ी कृत्रिम झील भोपाल झील बनाई गई।


 (v) 14वीं सदी में इल्तुतमिश ने दिल्ली में सिरी फोर्ट झील में जल की सप्लाई के लिए हौज खास (एक विशिष्ट तालाब) बनवाया।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. बहुउद्देशीय परियोजना से होने वाले प्रमुख लाभों का वर्णन कीजिए। 



उत्तर स्वतंत्रता से पहले जो सिंचाई योजनाएं बनाई जाती थीं, वे केवल एक ही कार्य करती थी अर्थात् सिंचाई की व्यवस्था करना तथा खेतों तक पानी पहुंचाना। इसलिए इन योजनाओं का लाभ काफी सीमित था। किंतु स्वतंत्रता के पश्चात् बनाई गई विभिन्न परियोजनाओं के बहुमुखी उद्देश्य होते हैं इसलिए इनसे अनेक लाभ भी होते हैं जो निम्नलिखित हैं


(i) इन परियोजनाओं से जल संग्रहण तथा भंडारण में सहायता मिलती है जिसे हम सिंचाई आदि कार्य के लिए प्रयोग कर सकते हैं: जैसे- राजस्थान नहर में सतलुज नदी का पानी सिंचाई के लिए, उपयोग में लाया जाता है।


(ii) बहुमुखी परियोजनाओं से बाढ़ रोकने में सहायता मिलती है; जैसे- दामोदर नदी को पहले 'बंगाल का शोक' कहा जाता था. क्योंकि इस नदी की बाढ़े पश्चिम बंगाल के लोगों के दुःख का कारण बनती थी, किंतु दामोदर परियोजना के निर्माण के बाद बाढ़ पर नियंत्रण पा लिया गया है।


(iii) ये परियोजनाएँ जल विद्युत के विकास में भी अनेक प्रकार से सहायक होती हैं। वर्षा के दिनों में यह बड़ी मात्रा में पानी एकत्र कर लेती है। जिससे पूरे वर्ष जल विद्युत प्राप्त होती रहती है। जल को बार-बार ऊँचाई से नीचे गिराकर जल विद्युत पैदा की जाती है। जल से प्राप्त की जाने वाली विद्युत प्रदूषणरहित होती है।


(iv) इन परियोजनाओं से वनरोपण में भी जल का उपयोग किया जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में नहरों द्वारा नौका परिवहन में सहायता मिलती है।


(v) बहुउद्देशीय परियोजनाएँ एक ही समय में अनेक प्रयोजनों की सिद्धि करती हैं। ये जल विद्युत के अतिरिक्त सिंचाई के लिए उपयुक्त सुविधाएँ, नौका परिवहन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ और मत्स्य पालन के लिए उत्तम क्षेत्र प्रदान करती है।


प्रश्न 2. वर्षाजल संग्रहण से क्या अभिप्राय है? वर्षाजल संग्रहण के मुख्य तरीके कौन-से हैं? इसके लाभों का वर्णन कीजिए।


उत्तर वर्षाजल संग्रहण का अर्थ यह है कि वर्षा के जल का उसी स्थान पर प्रयोग करना जहाँ यह भूमि पर गिरती है। वर्षाजल संग्रहण के प्रमुख तरीके निम्नलिखित है


(i) पहला तरीका यह है कि पानी को भवनों की छतों से ही इकट्ठा कर लेना चाहिए।


(ii) दूसरा तरीका है कि आस-पास पड़ने वाली वर्षा का बहने वाला पानी तालाबों आदि में इकट्ठा कर लेना चाहिए ताकि बाद में उसका उपयोग किया जा सके।


(iii) जल संग्रहण का तीसरा तरीका यह है कि वर्षा के मौसम में जब नदियों में बाढ़ आई हुई हो तो इस पानी को अतिरिक्त भूमि में खड्ड बनाकर भर लेना चाहिए।



इस प्रकार से किए वर्षाजल संग्रहण का अनेक प्रकार से लाभ उठाया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं


(i) इसे साफ करके स्थानीय लोगों की पानी की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है।


(ii) इस पानी का वर्षा के कम होने या न होने के समय खेतों की सिंचाई के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।


(iii) इस खड़े पानी का यह भी लाभ होता है कि धरातल के नीचे पानी का स्तर ऊँचा रहता है जिसे कुओं और नलकूपों द्वारा बाहर निकालकर प्रयोग में लाया जा सकता है।


 (iv) 'वर्षाजल संग्रहण से अधिक वर्षा के समय बाढ़ की स्थिति से भी बचा जा सकता है।


(v) वर्षाजल संग्रहण के परिणामस्वरूप शहरों में गंदे जल की निकास व्यवस्था पर भी इतना बोझ नहीं पड़ता।


प्रश्न 3. राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल संग्रहण किस प्रकार किया जाता है? व्याख्या कीजिए।



उत्तर- राजस्थान के अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में विशेषकर बीकानेर, फलोदी और बाड़मेर में पीने का जल एकत्र करने के लिए छत वर्षाजल संग्रहण का तरीका आमतौर पर अपनाया जाता है। इस तकनीक में हर घर में पीने का पानी संगृहीत करने के लिए भूमिगत टैंक अथवा 'टाँका' हुआ करते हैं। इनका आकार एक बड़े कमरे जितना हो सकता है। इसे मुख्य घर या आँगन में बनाया जाता है। ये घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े होते हैं। छत से वर्षा का पानी इन पाइपों से होकर भूमिगत टाँका तक पहुँचता था जहाँ इसे एकत्रित किया जाता था। वर्षा का पहला जल छत और पाइपों को साफ करने में प्रयोग होता था और उसे संगृहीत नहीं किया जाता था। इसके बाद होने वाली वर्षा का जल संग्रह किया जाता


ढाँका में वर्षा जल अगली वर्षा ऋतु तक संगृहीत किया जा सकता है। यह इसे जल की कमी वाली ग्रीष्म ऋतु तक पीने का जल उपलब्ध करवाने वाला स्रोत बनाता है। वर्षा जल को प्राकृतिक जल का शुद्धतम रूप माना जाता है। कुछ घरों में तो टाँकों के साथ-साथ भूमिगत कमरे भी बनाए जाते हैं क्योंकि जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठंडा रखता था जिससे ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।


आज राजस्थान में छत वर्षाजल संग्रहण की रीति इंदिरा गांधी नहर से उपलब्ध बारहमासी पेयजल के कारण कम होती जा रही है। हालाँकि कुछ घरों में टाँकों की सुविधा अभी भी है क्योंकि उन्हें नल के पानी का स्वाद पसन्द नहीं है।


प्रश्न 4. परंपरागत वर्षाजल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपनाकर जल संरक्षण एवं भंडारण किस प्रकार किया जा रहा है?



उत्तर प्राचीन भारत में उत्कृष्ट जलीय निर्माणों के साथ-साथ जल संग्रहण ढाँचे भी पाए जाते थे। लोगों को वर्षा पद्धति और मृदा के गुणों के बारे में गहरा ज्ञान था। उन्होंने स्थानीय पारिस्थितिकीय परिस्थितियों और अपनी जल आवश्यकतानुसार वर्षाजल, भौमजल, नदी जल और बाढ़ जल संग्रहण के अनेक तरीके विकसित कर लिए थे। आधुनिक काल में भी भारत के कई राज्यों में इन परंपरागत विधियों को अपनाकर जल संरक्षण किया जा रहा है; जैसे- राजस्थान के बहुत-से घरों में छत वर्षा जल संग्रहण के लिए भूमिगत 'ढाँचों का निर्माण किया जाता है। इसमें वर्षा के जल को संगृहीत करके उपयोग में लाया जाता है। इसी प्रकार कर्नाटक के मैसूर जिले में स्थित एक गाँव में ग्रामीणों ने अपने घरों में जल आवश्यकता की पूर्ति छत वर्षाजल संग्रहण व्यवस्था से की हुई है। मेघालय में नदियों व झरनों के जल को बाँस द्वारा बने पाइप द्वारा एकत्रित करने की 200 वर्ष पुरानी विधि प्रचलित है। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खेतों में वर्षा जल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाए जाते थे ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके। राजस्थान के जैसलमेर जिले में 'खदीन' और अन्य क्षेत्रों में 'जोहड़' इसके उदाहरण हैं। पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने 'गुल' अथवा 'कुल' जैसी वाहिकाएँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए बनाई हैं। पश्चिम बंगाल में बाढ़ के मैदान में लोग अपने खेतों की सिंचाई के लिए बाढ़ जल वाहिकाएँ बनाते थे। यही तरीका आधुनिक समय में भी अपनाया जाता है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक काल में भी परंपरागत वर्षाजल संग्रहण की पद्धतियों को अपनाकर जल संरक्षण एवं भंडारण किया जा रहा है।





यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 7 कृषि का सम्पूर्ण हल


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7            कृषि


याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.कृषि हमारे देश की प्राचीन आर्थिक क्रिया है। इसकी दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है।


2.कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है। साथ ही, विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी पैदा करती है।


3● भारत विश्व में सबसे अधिक फलों और सब्जियों का उत्पादन करता है।


4. रोपण कृषि एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है। इस प्रकार की खेती में लंबे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। रोपण कृषि उद्योग और कृषि के बीच एक अंतरापृष्ठ हैं। भारत में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण फसलें हैं।


5● भारत में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें-चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दालें, चाय, कॉफी, गन्ना, तिलहन, कपास और जूट इत्यादि हैं।



6● रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य में बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों कुछ मुख्य रबी फसलें हैं।


7 ● भारत में अधिकांश लोगों का खाद्यान्न चावल है। भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है।


8● ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। भारत विश्व में दालों और तिलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है। देश में कुल बोए गए क्षेत्र के 12 प्रतिशत भाग पर कई तिलहन की फसलें उगाई जाती हैं। ब्राजील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। गन्ना, चीनी, गुड़, खांडसारी और शीरा बनाने के काम आता है।


9.मूँगफली खरीफ की फसल है तथा देश में मुख्य तिलहनों के कुछ उत्पादन का आधा भाग इसी फसल से प्राप्त होता है। आंध्र प्रदेश मूँगफली का सबसे बड़ा

उत्पादक राज्य है।


10● चाय की खेती रोपन कृषि का एक उदाहरण है। इस महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ की फसल को शुरूआत में अंग्रेज भारत लाए थे। असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि चाय के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।


11. भारत में अरेबिका किस्म की कॉफी पैदा की जाती है। जो आरंभ में यमन से लाई गई थी।




महत्त्वपूर्ण शब्दावली




निर्वाह कृषि- ऐसी कृषि प्रणाली जिसमें किसान अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए उत्पादन करता है। इसमें भूमि के छोटे टुकड़े पर आदिम कृषि औजारों तथा परिवार के श्रम की मदद से की जाती है।


गहन कृषि यह श्रम-गहन खेती है जहाँ अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में जैव-रासायनिक निवेशों और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।


रोपण कृषि–यह एक प्रकार की वाणिज्यिक कृषि हैं जिसमें लंबे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। यह कृषि और उद्योगों के बीच एक अंतरापृष्ठ है। यह कृषि एक व्यापक क्षेत्र में अत्यधिक पूँजी और श्रमिकों की सहायता से की जाती है। भारत में चाय, कॉफी, रबड़ तथा गन्ना इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण फसलें हैं।


विस्तृत कृषि–वह कृषि जिसमें किसान भूमि के नए-नए क्षेत्रों को कृषि के अधीन लाकर अधिक उत्पादन करता है।


हरित क्रांति कृषि के क्षेत्र में अधिक उपज वाले बीजों का प्रयोग, आधुनिक तकनीक, अच्छी खाद, उर्वरकों का प्रयोग करने से कुछ फसलों विशेषकर गेहूँ के उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि को हरित क्रांति का नाम दिया गया है।


श्वेत क्रांति दूध के उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि के लिए पशुओं की नस्लें सुधारने की कोशिश की गई। इससे दूध के उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि हुई जिसे

श्वेत क्रांति कहते हैं।


सार्वजनिक वितरण प्रणाली सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक कार्यक्रम है जो ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में खाद्य पदार्थ और अन्य आवश्यक वस्तुएँ सस्ती दरों पर उपलब्ध कराती है।


वैश्वीकरण एक देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था से जोड़ना वैश्वीकरण कहलाता है।


रेशम उत्पादन रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन रेशम उत्पादन कहलाता है।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.निम्नलिखित में से कौन-सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल लंबे-चौड़े क्षेत्र में उगायी जाती है?



(क) स्थानांतरी कृषि


(ख) रोपण कृषि


(ग) बागवानी


(घ) गहन कृषि


उत्तर- (ख) रोपण कृषि


प्रश्न 2.इनमें से कौन-सी रबी फसल है?



(क) चावल


(ख) मोटे अनाज


(ग) चना (काला चना)


(घ) कपास


उत्तर-


(ग) चना (काला चना)


प्रश्न 3. इनमें से कौन-सी एक फलीदार फसल है?



(क) दालें


(ख) मोटे अनाज


 (घ) तिल


(ग) ज्वार तिल


उत्तर


(क) दालें


(ग) दीपा


(ख) रोका


(क) जूट


(घ) रबर


प्रश्न 4. सरकार निम्नलिखित में से कौन-सी घोषणा फसलों को सहायता देने के लिए करती है?




(क) अधिकतम सहायता मूल्य


 (ख) न्यूनतम सहायता मूल्य


(ग) मध्यम सहायता मूल्य


(घ) प्रभावी सहायता मूल्य


उत्तर-


(ख) न्यूनतम सहायता मूल्य


प्रश्न 5.निम्न में से कौन खरीफ की फसल है?


(क) चना


(ख) धान


(ग) कपास


(घ) ख तथा ग दोनों


उत्तर- (घ) ख तथा ग दोनों


प्रश्न 6.निम्नलिखित में से कौन-सी रबी की फसल है?


(क) धान


(ख) बाजरा


(ग) गेहूँ


(घ) मक्का


उत्तर- (ग) गेहूँ


प्रश्न  7.भूदान-आन्दोलन किसके द्वारा आरम्भ किया गया?


(क) महात्मा गांधी 


(ग) विनोबा भावे


(ख) जवाहरलाल नेहरू


(घ) इन्दिरा गांधी


उत्तर


(ग) विनोबा भावे



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. भारत की महत्त्वपूर्ण रोपण फसलें कौन-कौन सी हैं?


उत्तर


भारत में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण फसलें हैं।


प्रश्न 2. भारत की चार रबी और चार खरीफ फसलों के नाम बताइए।


उत्तर


भारत की चार प्रमुख रबी फसलें गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों हैं तथा खरीफ फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली आदि प्रमुख हैं।



प्रश्न 3. कर्तन दहन कृषि या स्थानांतरित कृषि किस प्रकार की जाती है?


उत्तर किसान जमीन के पेड़-पौधों को साफ करके फसल उगाते हैं। जब मृदा की उर्वरता कम हो जाती है तो किसान उस भूमि के टुकड़े से स्थानांतरित हो जाते हैं और कृषि के लिए भूमि का दूसरा टुकड़ा साफ करते हैं।


प्रश्न 4. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानांतरित या कर्तन दहन कृषि को किन नामों से पुकारा जाता है ?


उत्तर- भारत में स्थानांतरित कृषि को मध्य प्रदेश में बेबर या दहिया, आंध्र प्रदेश में 'पोडू' अथवा 'पेंडा' उड़ीसा (ओडिशा) में पामाडाबी, कोमान या बरीगाँ, पश्चिम घाट में कुमारी, दक्षिण पूर्वी राजस्थान में वालरे-या वाल्टरे हिमालयन क्षेत्र में खिल झारखंड में कुरुवा उत्तर पूर्वी प्रदेशों में झूम और अंडमान निकोबार में दीपा के नाम से जाना जाता है।


प्रश्न 5. रोपण कृषि की दो विशेषताएँ बताइए।


उत्तर-


रोपण कृषि की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—


(i) रोपण कृषि व्यापक क्षेत्र में की जाती है। 


(ii) इस कृषि में अधिक पूँजी और श्रमिकों की आवश्यकता होती है।





प्रश्न 6. जीविका निर्वाह कृषि की दो विशेषताएँ बताइए।


उत्तर जीविका निर्वाह कृषि की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


 (i) निर्वाह कृषि भूमि के छोटे टुकड़ों में पौराणिक ढंग से की जाती है।


(ii) इस प्रकार की कृषि प्रायः मानसून मृदा को प्राकृतिक उर्वरता और फसल उगाने के लिए पर्यावरणीय परिस्थितियों की निर्भर करती है। 


प्रश्न 7.गहन कृषि की दो विशेषताएँ बताइए।


उत्तर


गहन कृषि की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


 (i) उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में रासायनिक खाद और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।



(ii) भूमि का आकार छोटा होने के कारण भूमि पर कई-कई फसलें उगाई गई



प्रश्न 8. चाय की भौगोलिक दशाओं के बारे में वर्णन कीजिए।


उत्तर- चाय के लिए भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं—


(i) चाय का पौधा उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु, ह्यूमस और जीवांश युक्त गहरी मिट्टी तथा सुगम जल निकास वाले ढलवाँ क्षेत्रों में उगाया जाता है।


(ii) चाय को उगाने के लिए वर्ष भर कोष्ण, नम और पालारहित जलवा की आवश्यकता होती है।



प्रश्न 9 भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएँ और जहाँ यह पैदा की जाती है उन क्षेत्रों का विवरण दीजिए।



उत्तर- गेहूँ भारत की एक प्रमुख खाद्य फसल है। यह देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भागों में पैदा की जाती है। देश में गेहूँ उगाने वाले दो मुख्य क्षेत्र हैं- उत्तर पश्चिम में गंगा-सतलुज का मैदान और दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ भाग गेहूँ पैदा करने वाले प्रमुख राज्य हैं।


लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक




प्रश्न 1. भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का क्या महत्त्व है? 


उत्तर कृषि की दृष्टि से भारत एक महत्त्वपूर्ण देश है। इसकी दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है। कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है। खाद्यान्नों के अतिरिक्त यह विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त कुछ उत्पादों; जैसे—चाय, कॉफी, मसाले इत्यादि का भी निर्यात किया जाता है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। सकल घरेलू उत्पादन में 26% योगदान कृषि का है। कृषि हमारे देश की प्राचीन आर्थिक क्रिया है। पिछले हजारों वर्षों में भौतिक पर्यावरण, प्रौद्योगिकी और सामाजिक, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुसार खेती करने की विधियों में परिवर्तन हुआ है।


प्रश्न 2. भारतीय कृषि की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।




कृषि की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


1. प्रकृति पर निर्भरता - भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है।यही कारण है कि वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था को सर्वाधिक प्रभावित करती है। जिस वर्ष मानसूनी वर्षा नियमित होती है, कृषि उत्पादन भी यथेष्ट मात्रा में प्राप्त होता है। 


2. कृषि की निम्न उत्पादकता- भारत में कृषि उपजों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अपेक्षाकृत अन्य देशों से कम है। प्रति श्रमिक की दृष्टि से भारत में कृषि श्रमिक की औसत वार्षिक उत्पादकता केवल 105 डॉलर है।



 3. खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता- भारतीय कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता रहती है क्योंकि 100 करोड़ से अधिक जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए ऐसा किया जाना आवश्यक है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुल कृषि भूमि के लगभग 65.8% भाग पर खाद्यान्न तथा शेष भाग में व्यापारिक व अन्य फसलों का उत्पादन किया जाता है।



प्रश्न 3. गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त लिक दशाओं का वर्णन कीजिए। 


उत्तर

गन्ना एक उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय फसल है। यह फसल 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान और 75 सेमी से 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाली उष्ण और आर्द्र जलवायु में बोई जाती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसे अनेक मिट्टियों में उगाया जा सकता है। इसके लिए बुआई से लेकर कटाई तक काफी शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। गन्ना, चीनी, गुड़, खांडसारी और शीरा बनाने के काम आता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा गन्ना के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।


प्रश्न 4. भारत में पाई जाने वाली प्रमुख रेशेदार फसलों का वर्णन कीजिए।


 उत्तर कपास, जूट, सन और प्राकृतिक रेशम भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख रेशेदार फसलें हैं।


1, प्राकृतिक रेशम–रेशम कीड़े के कोकून से प्राप्त होता जो


मलबरी पेड़ की हरी पत्तियों पर पलता है। 2. कपास-भारत को कपास के पौधे का मूल स्थान माना जाता है। कपास सूती वस्त्र उद्योग का मुख्य कच्चा माल है। दक्कन पठार के शुष्कतर भागों में काली मिट्टी कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसके लिए उच्च तापमान, हल्की वर्षा या सिंचाई, डी 210 पालारहित दिन और खिली धूप की आवश्यकता होती है। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश कपास के मुख्य उत्पादक राज्य हैं। 3. जूट-जूट को 'सुनहरा रेशा' कहते हैं। जूट की फसल बाढ़ के मैदानों में 'जल निकास' वाली उर्वरक मिट्टी में उगाई जाती है। इसके बढ़ने के



समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। पश्चिम बंगाल, बिहार,


असम और ओडिशा तथा मेघालय जूट के मुख्य उत्पादक राज्य है।


प्रश्न 5 आत्मनिर्वाह या जीविका कृषि क्या है? इसके मुख्य प्रकारों का


विवरण दीजिए। उत्तर आत्मनिर्वाह या जीविका खेती-जो खेती व्यापारिक उद्देश्यों के



स्थान पर जीवन निर्वाह के उद्देश्यों के लिए की जाती है, आत्मनिर्वाह या नजीविका खेती कहलाती है। इस खेती में परम्परागत पद्धति और अल्पतम पूँजी न निवेश किया जाता है। अमेजन नदी की घाटी, अफ्रीका में सहारा के दक्षिण, में मध्य व पश्चिमी तथा पूर्वी अफ्रीकी देश तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के भारत, 5 चीन आदि देशों में इस प्रकार की खेती की जाती है। इस खेती के दो प्रकार


प्रचलित हैं— (क) स्थानान्तरण कृषि अथवा झूमिंग कृषि, (ख) स्थायी कृषि 



(क) स्थानान्तरण कृषि अथवा झूमिंग कृषि- इस कृषि के अन्तर्गत कृषक अपने आवास और कृषि क्षेत्र परिवर्तित करते रहते हैं। इस खेती में वनों को साफ करके दो-तीन वर्षों तक खेती करने पर खाली छोड़ दिया जाता है। स्थानान्तरण कृषि में मोटे अनाज मक्का, ज्वार, बाजरा आदि का उत्पादन किया जाता है।


(ख) स्थायी कृषि—इस कृषि में कृषि क्षेत्र बदला नहीं जाता है। इस खेती का विकास स्थानान्तरण कृषि से ही हुआ है। इसकी खेती की मुख्य विशेषताएँ भी स्थानान्तरण कृषि के समान हैं। यह कृषि प्रमुख रूप से उष्णार्द्र प्रदेशों की निम्न भूमियों में अर्द्ध-उष्ण और शीतोष्ण कटिबन्धीय पठारों पर उष्ण कटिबन्धीय पहाड़ी भागों में की जाती है। प्रश्न 


प्रश्न 6. भारत में घटते खाद्य उत्पादन के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।


उत्तर भारत में खाद्य फसलों की कृषि का स्थान फलों, सब्जियों, तिलहनों और औद्योगिक फसलों की कृषि लेती जा रही है। इससे अनाजों और दालों के अंतर्गत निवल बोया गया क्षेत्र कम होता जा रहा है। इसके कई निम्न कारण हैं-


(i) भूमि के गैर कृषि भू-उपयोगों और कृषि के बीच बढ़ती भूमि की प्रतिस्पर्धा के कारण बोए गए क्षेत्र में कमी आई है।


(ii) उर्वरकों, कीटनाशकों के अधिक प्रयोग ने भूमि की उपजाऊ क्षमता को कम किया है।


 (iii) असक्षम जल प्रबंधन से जलाक्रांतता और लवणता की समस्याएँ खड़ी हो गई हैं। 


(iv) कुएँ और नलकूप अत्यधिक सिंचाई के कारण सूख गए हैं। इससे सीमांत और छोटे किसान कृषि छोड़ने पर मजबूर हो गए।


 (v) अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ और बाजार के अभाव में भी किसान हतोत्साहित होते हैं। इससे किसानों को खरीद मूल्य कम मिलता है. परंतु उन्हें मजबूरी में अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं।


प्रश्न 7. रबड़ की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- रबड़ भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है। परंतु विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है। इसको 200 सेमी से अधिक वर्षा और 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। रबड़ एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है जो उद्योगों से प्रयुक्त होता है। इसे मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और मेघालय में गारों पहाड़ियों में उगाया जाता है।




प्रश्न 8. उपनिवेशकाल में वैश्वीकरण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?


उत्तर- उपनिवेशकाल में भी वैश्वीकरण की स्थिति मौजूद थी। 19वीं शताब्दी में जब यूरोपीय व्यापारी भारत आए तो उस समय भी भारतीय मसाले विश्व के विभिन्न देशों में निर्यात किए जाते थे और दक्षिण भारत में किसानों को इन फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। ब्रिटिश काल में अंग्रेज़ व्यापारी भारत के कपास क्षेत्र की ओर आकर्षित हुए और भारतीय कपास को • ब्रिटेन में सूती वस्त्र उद्योग के लिए कच्चे माल के रूप में निर्यात किया गया। बिहार के चम्पारण गाँव के किसानों को खाद्यान्नों के स्थान पर नील की खेती करने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि यह ब्रिटेन के सूती वस्त्र उद्योगों के लिए कच्चा माल था। इस प्रकार उपनिवेशकाल में वैश्वीकरण के कारण भारतीय किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा।


प्रश्न 9. भूदान-ग्रामदान आंदोलन के विषय में विस्तृत जानकारी दीजिए।


उत्तर- महात्मा गांधी ने विनोबा भावे, जिन्होंने उनकी सत्याग्रह आंदोलन में •महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभायी थी, को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित किया। भावे जी गांधीजी की 'ग्राम स्वराज' अवधारणा से अत्यधिक प्रभावित थे। अतः गांधी जी की हत्या के बाद उनके संदेश को लोगों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने लग पूरे देश की पदयात्रा की। जब वे आंध्र प्रदेश के गाँव पोचमपल्ली पहुँचकर वहाँ भाषण दे रहे थे, उसी समय कुछ भूमिहीन गरीब ग्रामीणों ने उनसे अपने आर्थिक भरण-पोषण के लिए कुछ भूमि माँगी। भावे जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि यदि वे सहकारी खेती करें तो वे भारत सरकार से बात करके उनके लिए ज़मीन उपलब्ध करवा सकते हैं। इसी समय श्री रामचंद्र रेड्डी नामक धनवान किसान ने अपनी 80 एकड़ भूमि 80 भूमिहीन किसानों को देने की पेशकश की। इस प्रयास को 'भूदान' के नाम से जाना गया। इसके बाद भावे जी ने कई यात्राएँ की और कुछ बड़े जमींदारों ने उनके विचारों से प्रभावित होकर अपने कई गाँव भूमिहीनों में बाँटने की पेशकश की जिसे 'ग्रामदान के नाम से जाना गया। इस कार्य में कुछ ऐसे जमींदार भी सम्मिलित थे जिन्होंने भूमि सीमा कानून से बचने के लिए अपनी भूमि का कुछ हिस्सा दान में दिया था। भावे जी के द्वारा आरंभ किए गए इस भूदान-ग्रामदान आंदोलन को भारत में रक्तहीन


क्रांति के नाम से जाना गया है।



 प्रश्न 10. सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाइए। 




उत्तर- सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रम निम्नलिखित हैं


(i) जोतों की चकबंदी।


(ii) जमींदारी प्रथा की समाप्ति। 


(iii) अधिक उपज देने वाले बीजों के द्वारा हरित क्रांति।


(iv) पशुओं की नस्ल में सुधार कर दुग्ध उत्पादन में श्वेत क्रांति ।



 (v) बाढ़, चक्रवात, आग तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रावधान।


(vi) किसानों को कम दर पर ऋण दिलाने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना की गई।


(vii) किसानों के लाभ के लिए किसान क्रेडिट कार्ड और दुर्घटना बीमा योजना शुरू की गई। व्यक्तिगत


(viii) आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विशेष किसान कार्यक्रम प्रसारित किए गए। 


(ix) किसानों को दलालों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य की घोषणा सरकार करती है।


(x) कुछ महत्त्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की घोषणा भी सरकार करती है।



प्रश्न 11. दिन-प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसके परिणामों की कल्पना कर सकते हैं?


उत्तर- भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि भूमि में कमी आई है। भूमि के आवासन इत्यादि गैर कृषि उपयोगों तथा कृषि के बीच बढ़ती भूमि की प्रतिस्पर्धा के कारण कृषि भूमि में कमी आई है। भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ घटता खाद्य उत्पादन देश की भविष्य की खाद्य सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लगाता है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण घटते आकार के जोतों पर यदि खाद्यान्नों की खेती ही होती रही तो भारतीय किसानों का भविष्य अंधकारमय है। भारत में 60 करोड़ लोग लगभग 25 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर निर्भर हैं। इस प्रकार एक व्यक्ति के हिस्से में औसतन आधा हेक्टेयर से भी कम कृषि भूमि आती है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रित करने की कोशिश करनी होगी नहीं तो खाद्य संकट उत्पन्न हो जाएगा। तथा किसानों की स्थिति दयनीय हो जाएगी।



प्रश्न 12. चावल (धान) की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।



या चावल की उपज के लिए आवश्यक तीन भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।



उत्तर- भारत में अधिकांश लोगों का खाद्यान्न चावल है। चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। चावल एक खरीफ फसल है जिसे उगाने के लिए उच्च तापमान (25° सेल्सियस से ऊपर) और अधिक आर्द्रता (100 सेमी से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे सिंचाई करके उगाया जाता है। चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है। नदी घाटियों और डेल्टा प्रदेशों में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी चावल के लिए आदर्श होती है। नहरों के जल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है। चावल जून-जुलाई में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के शुरू होने पर उगाया जाता है और पतझड़ की ऋतु में काटा जाता है।





दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. भारत में पाए जाने वाले मोटे अनाजों का वर्णन कीजिए। इन अनाजों के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियाँ बताइए।


उत्तर- ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा अत्यधिक होती है।


ज्वार – क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है। अधिकतर आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। महाराष्ट्र राज्य इस फसल का सबसे बड़ा उत्पादक है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश इसके अन्य मुख्य उत्पादक राज्य हैं।


बाजरा - यह बलुआ और उथली काली मिट्टी में उगाया जाता है। राजस्थान बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा इसके अन्य मुख्य उत्पादक राज्य हैं।



रागी – यह शुष्क प्रदेशों की फसल है। यह लाल, काली, बलुआ दोमट और उथली काली मिट्टी पर अच्छी तरह उगायी जाती है। कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, झारखंड में भी यह महत्त्वपूर्ण फसल है।



मक्का – यह खाद्यान्न व चारा दोनों रूपों में प्रयोग होती है। यह एक खरीफ की फसल है जो 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान में और पुरानी जलोद मिट्टी पर अच्छी प्रकार से उगायी जाती है। कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश मक्का के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।



प्रश्न 2. भारतीय कृषि ने खाद्य उत्पादन में घटती प्रवृत्ति क्यों प्रारंभ कर दी है?


या कृषि की तीन प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए। या भारत में कृषि क्षेत्र की समस्याएँ लिखिए।


 उत्तर भारत में हजारों वर्षों से कृषि की जा रही है, परंतु प्रौद्योगिकी और संस्थागत परिवर्तन के अभाव में लगातार भूमि संसाधन के प्रयोग से कृषि का विकास अवरुद्ध हो जाता है। भारत में कृषि के पिछड़ेपन के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं


1. भूमि की उपजाऊ शक्ति का ह्रास-भारत की कृषि भूमि पर हजारों वर्षों से खेती की जा रही है जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो गई है। अधिक रसायनों तथा उर्वरकों का प्रयोग करने से भी भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो गई है।


2. मृदा अपरदन - भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का एक अन्य बड़ा कारण मृदा अपरदन है। पेड़ों को काटने, पशुओं द्वारा अतिचराई से पानी तथा हवा के तेज बहाव के कारण मृदा अपरदन तेजी से होता है। जिससे भूमि खेती के योग्य नहीं रहती।


3. खेती के पुराने उपकरण तथा ढंग- देश के कई भागों में किसान अभी भी पुराने उपकरणों से खेती करता है जिससे कम उत्पादन होता है। अभी भी किसान मानसून और भूमि की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करता है।


4. खेतों का छोटा आकार-भारत में अभी भी किसान गरीब है। उसके खेतों का आकार छोटा है तथा उत्तराधिकार कानून के अनुसार खेतों का आकार और भी छोटा हो जाता है जिससे खेत आर्थिक रूप से अलाभकारी हो जाते हैं।


5. सिंचाई सुविधाओं का अभाव-जल की कमी के कारण सिंचाई क्षेत्र में कमी आई है। भूमिगत जल के भण्डार में कमी आती जा रही है। परिणामस्वरूप कई कुएँ और नलकूप सूख गए हैं इससे सीमांत और छोटे किसान कृषि छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं।


6. अपर्याप्त भण्डारण सुविधाएँ- अपर्याप्त भण्डारण सुविधाएँ तथा बाजार के अभाव में भी किसान हतोत्साहित होते हैं। इस प्रकार किसान दोहरा नुकसान उठाते हैं। एक तो कृषि लागतों के लिए उ अधिक दाम देने पड़ते हैं तथा दूसरी ओर खरीद मूल्य बढ़ाने के लिए अ संघर्ष करना पड़ता है। किसानों की पैदावार एक साथ मंडी में पहुँचती अ है जिसके कारण खरीद मूल्य कम मिलता है।


आज भारतीय कृषि दोराहे पर है। भारतीय कृषि को सक्षम और लाभदायक बनाना है तो सीमांत और छोटे किसानों की स्थिति सुधारने पर जोर देना होगा। भारत में जलवायु विभिन्नता का विभिन्न प्रकार की कीमती फसलें उगाकर उपयोग किया जा सकता है।


प्रश्न  कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा गए उपाय सुझाइए।


उत्तर लोगों को आजीविका प्रदान करने वाली कृषि में कुछ संस्थागत तथा प्रौद्योगिक भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश के 60 प्रतिशत से भी अधिक सुधार किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं


(i) जमींदारी प्रथा का उन्मूलन-किसानों के लिए जमींदारी प्रथा एक अभिशाप थी। इसलिए सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करके वै भूमिहीन काश्तकारों को जमीन का मालिकाना हक दे दिया तथा जोतों की अधिकतम सीमा निश्चित कर दी गई।



(ii) खेतों की चकबंदी- पहले किसानों के पास छोटे-छोटे खेत थे जो आर्थिक रूप से गैर-लाभकारी होते थे इसलिए छोटे खेतों की चकबंदी कर दी गई। 


(iii) हरित क्रांति—सरकार ने किसानों को अधिक उपज देने वाले बीज उपलब्ध करवाये जिससे कृषि विशेषकर गेहूँ की कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इसे 'हरित क्रांति' का नाम दिया गया।


 (iv) प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण किसानों को पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए कई छोटी-बड़ी सिंचाई परियोजनाएँ शुरू की गईं। 



(v) फसल बीमा-फसले प्रायः सूखा, बाढ़, आग आदि के कारण नष्ट हो जाती थीं जिससे किसानों को बहुत हानि उठानी पड़ती थी। इन आपदाओं से बचने के लिए फसल बीमा योजना शुरू की गई। इसके द्वारा फसल नष्ट हो जाने पर किसानों को पूरा मुआवजा मिलने लगा जिससे उसे सुरक्षा प्राप्त हुई।


(vi) सरकारी संस्थाएँ-किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना की गई। ये संस्थाएँ किसानों को महाजनों के चंगुल से बचाती हैं। रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा मौसम की जानकारी तथा कृषि संबंधी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।


(vii) किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने 'किसान क्रेडिट कार्ड' और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना शुरू की है।


 (viii) किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य और कुछ महत्त्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की सरकार घोषणा करती है।


(ix) खेती में आधुनिक उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया जाने लगा। इससे उत्पादन में वृद्धि हुई।


(x) भारतीय कृषि में सुधार के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिससे कृषि के उत्पादन में वृद्धि हो सके।


प्रश्न 4.भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए।


 उत्तर- वैश्वीकरण से हमारा तात्पर्य है- विश्व के अनेक देशों का आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में एक-दूसरे के निकट आ जाना। वैश्वीकरण के कारण विभिन्न चीजें एक देश से दूसरे देश में आने-जाने लगीं जिससे उच्चकोटि की चीजें ही बाजार में टिक सकी हैं। वैश्वीकरण के कृषि पर कुछ अच्छे प्रभाव पड़े, जो निम्नलिखित हैं


(i) भारत दूसरे देशों को अन्न का निर्यात कर अपनी जरूरत का अन्य सामान खरीदने लगा।


 (ii) विभिन्न फसलों की माँग बढ़ने से भारत में इन चीजों का अधिक उत्पादन होने लगा।


(iii) अंतर्राष्ट्रीय बाजार में टिकने के लिए भारतीय किसानों ने अपने उत्पादन की गुणवत्ता व उसका स्तर बढ़ाने की कोशिश की।


 (iv) वैश्वीकरण के कारण अधिक उत्पादित होने वाली चीजों को दूसरे देशों को बेचकर अच्छे दाम प्राप्त किए जा सकते हैं।


(v) कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से बहुत से देशों में नई-नई चीजों की पैदावार होने लगी जो पहले सम्भव नहीं था। 



वैश्वीकरण के कृषि पर कुछ बुरे प्रभाव भी पड़े, जो निम्नलिखित हैं


(i) विश्व के धनी देशों ने विभिन्न विकासशील देशों में अपना सस्ता अनाज और अन्य कृषि से प्राप्त वस्तुएँ बड़ी मात्रा में भरनी शुरू कर दीं जिससे विकासशील देशों के किसान उनका मुकाबला न कर सकें तथा कृषि का काम छोड़ने पर मजबूर हो गए।


(ii) विश्व के धनी देश निर्धन देशों से सस्ती दरों पर अनाज खरीदने की कोशिश करते हैं।


(iii) कृषि के वैश्वीकरण के कारण छोटे किसानों को कृषि कार्य को छोड़ना पड़ा क्योंकि वे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाए।


(iv) कृषि के वैश्वीकरण ने व्यापारिक कृषि को बढ़ावा दिया। किसानों ने वही वस्तु पैदा की जिसकी बाजार में माँग थी, न कि जनता की आवश्यकता पूरी करने वाली चीजों का उत्पादन किया।


(v) कृषि के वैश्वीकरण के कारण ही भारत को लंबे समय तक ब्रिटेन का उपनिवेश बनकर कृषि पर अतिरिक्त बोझ को वहन करना पड़ा। 1990 के बाद, वैश्वीकरण के तहत भारतीय किसानों को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चावल, कपास, रबड़, चाय, कॉफी, जूट, मसालों का मुख्य उत्पादक होने के बावजूद भारतीय कृषि विश्व के विकसित देशों से स्पर्धा करने में असमर्थ है, क्योंकि उन देशों में कृषि को अत्यधिक सब्सिडी दी जाती है। यदि भारतीय कृषि को सक्षम बनाना है तो छोटे किसानों की स्थिति सुधारनी होगी।





यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 8 का सम्पूर्ण हल     


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class 10 social science chapter खनिज तथा ऊर्जा संसाधन






  खनिज तथा ऊर्जा संसाधन





याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.भू-पर्पटी (पृथ्वी की ऊपरी परत) विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है।


2.सामान्यतः खनिज अयस्कों में पाए जाते हैं। उत्तर पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत को प्राप्त है।


3. भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टर्शियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रैप में पाई जाती है। भारत में कुल पेट्रोलियम उत्पादन का 63 प्रतिशत भाग मुम्बई हाईवे से 18 प्रतिशत गुजरात से और 16 प्रतिशत असम से प्राप्त होता है।


4.भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से अधिक है और दूसरा टर्शियरी निक्षेप जो

लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं।


5.भारत में उड़ीसा (ओडिशा) मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। वर्ष 2015-16 में देश के कुल उत्पादन का एक-तिहाई भाग यहाँ से प्राप्त हुआ। मैंगनीज मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है। एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा मैंगनीज की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है।


6.अभ्रक एक ऐसा खनिज है जो प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है।



 7. भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यतः अमरकंटक पठार, मैकाल, पहाड़ियों तथा बिलासपुर कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।


• कोयला चार प्रकार का होता है- (1) एन्थ्रेसाइट (2) बिटुमिनस (3) लिग्नाइट (4) पीट कोयला


लोहा चार प्रकार प्रकार का होता है-


(1) मैग्नेटाइट (2) हेमेटाइट (3) साइडेराइट (4) लिमोनाइट।


8. नवीकरणीय योग्य ऊर्जा संसाधन: जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा को ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधन कहा जाता है।


9.यूरेनियम और थोरियम का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। ये झारखण्ड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं।






महत्त्वपूर्ण शब्दावली


खनिज-भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। 



धात्विक खानेज – जिन खनिजों से धातु प्राप्त होती है, जिनमें चमक होती है तथा जिनको कूट-पीटकर चादरों के रूप में ढाला जा सकता है और तारों के रूप में खींचा जा सकता है, धात्विक खनिज कहलाते हैं, जैसे-लोहा, सोना आदि।


अधात्विक खनिज – इनसे धातु प्राप्त नहीं होती। इन खनिजों में चमक नहीं होती। ये कूटने-पीटने पर टूट जाते हैं जैसे-संगमरमर, कोयला, आदि



लौह खनिज – वे खनिज जिनमें लोहे का अंश अधिक होता है जैसे-लौह-अयस्क, मैंगनीज, निकल व कोबाल्ट आदि।



 अलौह खनिज–जिन खनिजों में लोहे का अंश नहीं होता या बहुत कम होता है, अलौह खनिज कहलाते हैं; जैसे-सोना, चाँदी, प्लेटिनम अभ्रक आदि।


खनिज अयस्क भूमि से निकाले गये अयस्क जो अपनी कच्ची अवस्था के रूप में मिलते हैं।


नवीकरणीय संसाधन–वे साधन जो एक बार प्रयोग करने से समाप्त नहीं होते तथा जिनका बार-बार प्रयोग किया जा सकता है, नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं; जैसे-सौर ऊर्जा, जल, पवन आदि।


अनवीकरणीय संसाधन-ऐसे साधन जो एक बार खनन करने तथा प्रयोग करने के बाद समाप्त हो जाते हैं, उन्हें अनापूर्ति साधन या अनवीकरणीय संसाधन कहा जाता है; जैसे-कोयला, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस आदि।


बायो गैस–बायो गैस झाड़-झंखाड़ों, कृषि के अवशिष्टों, जीव-जंतुओं और मानव के मल-मूत्र के उपयोग से पैदा की जाती है। यह गैस ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू उपयोग के काम आती है।


जल विद्युत – इसका उत्पादन गिरते हुए जल की शक्ति का प्रयोग करके टरबाइन को चलाने से होता है। इससे जल विद्युत का निर्माण होता है।


खनिज तेल –भूमि के नीचे से प्राप्त हाइड्रोकार्बन का मिश्रण जो द्रव्य रूप में होता है, जिसे हम पेट्रोलियम भी कहते हैं, खनिज तेल कहलाता है।


 खनिज ईंधन–अधात्विक पदार्थ जिन्हें ईंधन के रूप में काम में लाया जाता है; जैसे-कोयला और पेट्रोलियम


शक्ति साधन –वे सभी साधन जिनसे शक्ति प्राप्त होती है; जैसे-सूर्य, कोयला, खनिज तेल, पानी, हवा आदि। इन्हें ऊर्जा संसाधन भी कहते हैं।


भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज अपक्षयित पदार्थ के अवशिष्ट भार को त्यागता हुआ चट्टानों के अपघटन से बनता है?


(क) कोयला


(ख) बॉक्साइट


 (ग) सोना


(घ) जस्ता


उत्तर-


(ख) बॉक्साइट




प्रश्न 2.झारखंड में स्थित कोडरमा निम्नलिखित से किस खनिज का अग्रणी उत्पादक है?



(क) बॉक्साइट


(ख) अभ्रक


(ग) लौह-अयस्क


(घ) ताँबा


उत्तर


(ख) अभ्रक


प्रश्न 3.निम्नलिखित चट्टानों में से किस चट्टान के स्तरों में खनिजों का निक्षेपण और संचयन होता है?


(क) तलछटी चट्टानें


(ख) आग्नेय चट्टानें


(ग) कायांतरित चट्टानें


(घ) इनमें से कोई नहीं



उत्तर-


(क) तलछटी चट्टानें


प्रश्न 4.झरिया प्रसिद्ध है


(क) लौह-अयस्क के लिए


(ख) कोयला के लिए


(ग) ताँबा के लिए


(घ) बॉक्साइट के लिए



उत्तर

(ख) कोयला के लिए



प्रश्न 5.निम्नलिखित में से कौन-सा गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत है


(क) कोयला


(ख) पेट्रोलियम


(ग) सौर ऊर्जा


(घ) प्राकृतिक गैस



उत्तर

 (ग) सौर ऊर्जा



प्रश्न 6.भारत में पवन ऊर्जा का विशाल केन्द्र कहाँ स्थित है?


(क) उत्तराखण्ड


(ख) तमिलनाडु


(ग) हिमाचल प्रदेश


(घ) राजस्थान


उत्तर- (ख) तमिलनाडु


प्रश्न 7.'अंकलेश्वर' किसके उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है?



(क) पेट्रोलियम


 (ख) ताँबा


(ग) जस्ता


(घ) यूरेनियम


उत्तर-


(क) पेट्रोलियम


प्रश्न 8."मुम्बई-हाई" प्रसिद्ध है



(क) तेल-शोधक कारखानों के लिए


(ख) फिल्मी सिटी के लिए 


(ग) गेट-वे ऑफ इंडिया के लिए


(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं


उत्तर-


(क) तेल-शोधक कारखानों के लिए


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक




प्रश्न 1. रैट होल खनन क्या है?


उत्तर- जोवाई व चेरापूँजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्य द्वारा एक लंबी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट होल खनन कहते हैं।


प्रश्न 2. पेट्रोलियम कौन-सी चट्टानों में पाया जाता है? पेट्रोलियम उत्पादन क्षेत्रों को बताइए। 


उत्तर पेट्रोलियम सरंध्र और असरंध्र चट्टानों के बीच भ्रंश ट्रैप में भी पाया जाता है। भारत में मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख पेट्रोलियम उत्पदक क्षेत्र हैं।


प्रश्न 3. बायोगैस कैसे उत्पन्न होती है?


उत्तर- ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपयोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है।


प्रश्न 4. खेतड़ी कहाँ स्थित है? यह क्यों प्रसिद्ध है? 


उत्तर- खेतड़ी राजस्थान में स्थित है। यह ताँबा खनन के लिए प्रसिद्ध है।


प्रश्न 5. भारत को किस ऊर्जा में महाशक्ति का दर्जा प्राप्त है? भारत में यह ऊर्जा किस क्षेत्र में स्थापित है?


उत्तर भारत को अब विश्व में 'पवन महाशक्ति' का दर्जा प्राप्त है। भारत में पवन ऊर्जा फार्म के विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं।


प्रश्न 6 कोडरमा किस राज्य में स्थित है? यह किस खनिज से सम्बन्धित है?


 उत्तर कोडरमा झारखण्ड राज्य में स्थित है। यह अभ्रक से सम्बन्धित है।


प्रश्न 7. भारत के परमाणु संयंत्रों के नाम बताइए।


या भारत के दो आणविक ऊर्जा केन्द्रों के नाम लिखिए। 


उत्तर- भारत के प्रमुख परमाणु संयंत्रों में काकरापारा (गुजरात), तारापुर (महाराष्ट्र), रावतभाटा (राजस्थान), नरौरा (उत्तर प्रदेश), कैगा (कर्नाटक),कलपक्कम (तमिलनाडु) प्रमुख हैं।


प्रश्न 8. जल विद्युत और ताप विद्युत में दो अंतर बताइए। उत्तर- जल विद्युत और ताप विद्युत में दो अंतर


क्रम


ताप विद्युत

जल विद्युत

(i)यह प्रदूषण युक्त होती है।

यह प्रदूषण रहित होती है।

(ii) यह कोयला, खनिज तेल, यूरेनियम  के प्रयोग से बनाई जाती है।


इसका मुख्य साधन जल हैं, जिसे ऊँचाई से गिराकर विद्युत पैदा की जाती है।






प्रश्न 9. खनिज क्या हैं?


उत्तर- खनिज उन प्राकृतिक साधनों को कहते हैं जो शैलों से प्राप्त होते हैं। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं जिसमें कठोर, ठोस एवं नरम चूना तक शामिल है।


प्रश्न 10. धात्विक खनिज किसे कहते हैं? ऐसे दो खनिजों के नाम लिखिए।


उत्तर- जिन खनिजों से धातु प्राप्त होती है, जिनमें चमक होती है तथा जिनको कूट-पीटकर चादरों के रूप में ढाला जा सकता है और तारों के रूप में खींचा जा सकता है, धात्विक खनिज कहलाते हैं; जैसे—लोहा, सोना आदि।



प्रश्न 11. ऊर्जा के परम्परागत स्रोत किसे कहते हैं? भारत में खनिज तेल के दो क्षेत्रों के नाम दीजिए।


उत्तर ऊर्जा के वे स्रोत जिनका उपयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है, उत्त ऊर्जा के परम्परागत स्रोत कहलाते हैं। इन स्रोतों में लकड़ी, उपले, कोयला, मैंगन पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत आदि सम्मिलित हैं। भारत में मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख खनिज तेल क्षेत्र हैं।


लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. खनिजों के सतत् पोषणीय उपयोग से किन्हीं तीन मूल्यों की व्याख्या कीजिए।



उत्तर- खनिज सीमित मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए इसका उपयोग करते समय सतत् पोषणीय उपयोग पर बल देना चाहिए। इसके लिए इन तीन मूल्यों पर ध्यान देना चाहिए


(i) उन्हीं खनिज संसाधनों का अधिक उपयोग करना चाहिए जिसका पुन: उपयोग किया जा सके; जैसे-लोहा, ताँबा, बॉक्साइट आदि।


(ii) खनिज संसाधनों का इस तरह से उपयोग किया जाना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ियों को दिक्कत का सामना न करना पड़े।


(iii) खनिज का किफायत से उपयोग किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके एक बार खत्म होने पर इसे बनने में लाखों करोड़ों वर्ष लग जाते हैं।


 प्रश्न 2.भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बायोगैस उत्पन्न करने के महत्त्व के किन्हीं पाँच बिंदुओं को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बायोगैस उत्पन्न करने के निम्नलिखित महत्त्व हैं।


(i) ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है।


(ii) जैविक पदार्थों के अपघटन से गैस उत्पन्न होती है, जिसकी तापीय सक्षमता मिट्टी के तेल, उपलों व चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है।


(iii) बायोगैस संयंत्र नगरपालिका, सहकारिता तथा निजी स्तर पर लगाये जाते हैं।


(iv) पशुओं के गोबर से उत्पन्न बायो गैस से किसानों को दो तरह से लाभ मिलता है। एक ऊर्जा के रूप में और दूसरा उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में।


(v) बायोगैस अब तक पशुओं के गोबर का प्रयोग करने में सबसे दक्ष है। यह उर्वरक की गुणवत्ता को बढ़ाता है और उपलों तथा लकड़ी को जलाने से होने वाले वृक्षों के नुकसान को रोकता है।





प्रश्न 3. धात्विक और अधात्विक खनिजों में अंतर स्पष्ट कीजिए।


उत्तर- धात्विक और अधात्विक खनिजों में अंतर


क्रम

धात्विक खनिज

अधात्विक खनिज

i

धात्विक खनिज विद्युत के सुचालक होते हैं

अधात्विक खनिज विद्युत के कुचालक होते हैं।

ii

धात्विक खनिज चमकदार होते हैं तथा उन पर पॉलिश की जा सकती है।


अधात्विक खनिज चमकदार नहीं होते और न ही उन पर पॉलिश होती है।

iii

धात्विक खनिज ठोस अवस्था में होते हैं।

अधात्विक खनिज ठोस, द्रव या गैस तीनों अवस्था में हो सकते हैं।



प्रश्न4. भारत में मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है? मैंगनीज के किन्हीं चार उपयोगों का उल्लेख कीजिए। 


उत्तर भारत में मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य उड़ीसा (ओडिशा) है।


मैंगनीज का उपयोग


(i) मैंगनीज मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में किया जाता है।


(ii) ब्लीचिंग पाउडर


(iii) कीटनाशक दवाएँ


(iv) रंग-रोगन और पेंट बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।


प्रश्न5. भारत की सबसे दक्षिणी लौह-अयस्क की पेटी की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।


उत्तर भारत की सबसे दक्षिणी लौह अयस्क पेटी बेलारी-चित्रदुर्ग, चिकमंगलूर-तुमकूर पेटी है। इसकी तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—


(i) कर्नाटक की इस पेटी में लौह-अयस्क की वृहत राशि संचित है।


 (ii) कर्नाटक में पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रमुख की खानें शत-प्रतिशत निर्यात इकाई हैं।


(iii) कुद्रमुख निक्षेप संसार के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक माने जाते हैं। 



प्रश्न 6. अधात्विक खनिज किसे कहते हैं? ऐसे दो खनिजों के नाम लिखिए।



उत्तर- वे खनिज जिनसे धातु प्राप्त नहीं होती है, अधात्विक खनिज कहलाते हैं। इन खनिजों में चमक नहीं होती है तथा कूटने-पीटने पर ये टूट जाते हैं। उदाहरण-अभ्रक, कोयला तथा संगमरमर आदि।


प्रश्न 7. भारत में पेट्रोलियम के वितरण का वर्णन कीजिए।


उत्तर भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टर्शियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रैप में पाई जाती है। वलन, अपनति और गुंबदों वाले प्रदेशों में यह वहाँ पाया जाता है जहाँ उद्धलन के शीर्ष में तेल ट्रैप हुआ होता है। तेल धारक परत सरंध्र चूना पत्थर या बालू पत्थर होता है जिसमें से तेल प्रवाहित हो सकता है। पेट्रोलियम सरंध्र और असरंध्र चट्टानों के बीच भ्रंश ट्रैप ह में भी पाया जाता है। भारत में कुल पेट्रोलियम उत्पादन का 63 प्रतिशत भाग मुंबई हाई से, 18 प्रतिशत गुजरात से और 16 प्रतिशत असम से प्राप्त होता है। अंकलेश्वर गुजरात का सबसे महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्र है। असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है। डिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन इस स राज्य के महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।




प्रश्न 8. भू-तापीय ऊर्जा किसे कहते हैं? इसका प्रयोग कैसे किया जा सकता है?



उत्तर- पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं। भू-तापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में होती है, क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी प्रगामी ढंग से तप्त होती जाती है। जहाँ भी भू-तापीय प्रवणता अधिक होती है वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान पाया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में भूमिगत जल चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर तप्त हो जाता है। यह इतना तप्त हो जाता है कि यह पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप में परिवर्तित हो जाता है। इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए भारत में दो प्रायोगिक परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में स्थित है तथा प्रश दूसरी लद्दाख में पूगा घाटी में स्थित है।



प्रश्न 9.'बॉम्बे हाई' क्यों प्रसिद्ध है? देश के आर्थिक विकास में इसका क्या योगदान है?


उत्तर  स्वाधीनता के पश्चात् अपतटीय क्षेत्रों में तेल तथा प्राकृतिक गैस मिलने की अपार सम्भावनाएँ व्यक्त की गईं। फलस्वरूप मुम्बई तट से 115 किमी दूर और वड़ोदरा से 80 किमी दक्षिण में अरब सागर में पेट्रोल के विशाल भण्डारों का पता चला जिसे तेल क्षेत्र में बॉम्बे (मुम्बई) हाई के नाम से जाना जाता है। यह भारत का सबसे बड़ा अपतटीय तेल क्षेत्र है, जो 143 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है। यहाँ तेल 1,416 मीटर की गहराई से निकाला जाता है तथा जापान से आयात किए गए सागर सम्राट नामक विशाल जलयान द्वारा सन् 1974 ई. से तेल का उत्पादन किया जा रहा है। ओएनजीसी के रिकॉर्ड के अनुसार यहाँ 125 कुओं से तेल का उत्पादन किया जा रहा है। यहाँ लगभग 262 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन किया जाता है।


इस प्रकार तेल उत्पादन क्षेत्र में बॉम्बे हाई का देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।


प्रश्न 10. भारत में पाए जाने वाले लौह-अयस्क पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


 उत्तर भारत में लौह-अयस्क के विशाल भंडार पाए जाते हैं। इसे तीन भागों में बाँटा जाता है


1. मैग्नेटाइट - यह सर्वोत्तम प्रकार का लौह-अयस्क है। इसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुम्बकीय गुण होते हैं जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी हैं।


 2. हेमेटाइट – यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह-अयस्क है।इसका अत्यधिक उपयोग होता है। इसमें लोहांश की मात्रा 50 से 60 प्रतिशत होती है। 


3. लिग्नेटाइट – यह अति निम्नकोटि का लौह-अयस्क है। इसमें लोहांश की मात्रा 30 से 40 प्रतिशत होती है। 


प्रश्न 11. निम्नलिखित में अंतर 30 शब्दों में बताइए


(क) लौह और अलौह खनिज,


 (ख) परंपरागत तथा गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधन



उत्तर- (क) लौह और अलौह खनिज-वे खनिज जिनमें लोहे का अंश अधिक होता है, लौह खनिज कहलाते हैं, 


जैसे— लौह-अयस्क, मैंगनीज, निकल व कोबाल्ट आदि। जिन खनिजों में लोहे का अंश नहीं होता या बहुत कम होता है, अलौह खनिज कहलाते हैं, जैसे- सोना, चाँदी, प्लेटिनम आदि ।



 (ख) परंपरागत तथा गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधन– कोयला, तेल और । प्राकृतिक गैस से उत्पन्न की गई ताप विद्युत, जल विद्युत और परमाणु शक्ति आदि ऊर्जा के परंपरागत साधन हैं। इन साधनों का नवीकरण नहीं किया जा न सकता। ये स्रोत सीमित तथा लगातार प्रयोग से समाप्त होने के कगार पर है। सूर्य, वायु, ज्वार-भाटे, जियो-थर्मल, बायो गैस, खेतों और पशुओं का कूड़ा करकट, मनुष्य का मलमूत्र आदि ऊर्जा के गैर, परंपरागत साधन हैं। ये साधन नवीकरण योग्य हैं। इनका बार-बार प्रयोग किया जा सकता है।



प्रश्न 12. आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण कैसे होता है?


उत्तर आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विवरों में मिलते हैं। छोटे जमाव शिराओं के रूप में और वृहत् जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं। इनका निर्माण भी अधिकतर उस समय होता है जब ये तरल अथवा गैसीय अवस्था में दरारों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं। ऊपर आते हुए ये ठंडे होकर जम जाते हैं। मुख्य धात्विक खनिज; जैसे— जस्ता, ताँबा, जिक और सीसा आदि इसी तरह शिराओं व जमावों के रूप में प्राप्त होते हैं।


प्रश्न 13. हमें खनिजों के संरक्षण की क्यों आवश्यकता है? 


या खनिज संरक्षण की आवश्यकता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


 उत्तर- वर्तमान औद्योगिक युग में विभिन्न प्रकार के खनिजों का भारी प्रयोग किया जाने लगा है। खनिज निर्माण की भूगर्भिक प्रक्रियाएँ इतनी धीमी हैं कि उनके वर्तमान उपभोग की दर की तुलना में उनके पुनर्भरण की दर अपरिमित रूप से थोड़ी है। इसलिए खनिज संसाधन सीमित तथा अनवीकरण योग्य हैं। ना समृद्ध खनिज निक्षेप हमारे देश की मूल्यवान संपत्ति हैं लेकिन ये अल्पजीवी हैं। र्ग अयस्क के सतत उत्खनन की गहराई बढ़ने के साथ उनकी गुणवत्ता घटती जाती है। इसलिए खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता है। इसके लिए खनिजों का न सुनियोजित एवं सतत् पोषणीय ढंग से प्रयोग करना होगा।



 खनिज संरक्षण की विधि


(i) खनन तथा संसाधन की प्रक्रियाओं में होने वाली बर्बादी को कम-से-कम करने के प्रयत्न किए जाने चाहिए।


 (ii) खनिजों को बचाने के लिए उनके स्थान पर वस्तुओं के उपयोग के बारे में सोचना चाहिए।


(iii) उन खनिज संसाधनों का ही अधिक उपयोग किया जाना चाहिए जो पुन: उपयोगी हों और अधिक मात्रा में उपलब्ध हों; जैसे- लोहा आदि।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक




प्रश्न 1. भारत में लौह-अयस्क के वितरण पर प्रकाश डालिए।


या भारत में लौह अयस्क के उत्पादन पर संक्षेप में लिखिए। 


उत्तर लौह-अयस्क एक महत्त्वपूर्ण खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है। भारत में लौह-अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं। मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह-अयस्क है जिसमें 70% लोहांश पाया जाता है। हेमेटाइट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह-अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है। भारत में लौह-अयस्क की पेटियाँ निम्नवत् हैं—


1. उड़ीसा झारखंड पेटी-उड़ीसा (अब ओडिशा) में उच्चकोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह-अयस्क मयूरभंज व केंदूझर जिलों में बादाम पहाड़ी खदानों से निकाला जाता है। झारखंड के सिंहभूम जिले में हेमेटाइट-अयस्क का खनन किया जाता है।


2. दुर्ग- बस्तर- चन्द्रपुर पेटी-यह पेटी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ राज्यों के अंतर्गत पाई जाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में बेलाडिला पहाड़ी शृंखलाओं में अति उत्तमकोटि का हेमेटाइट पाया जाता है। इन खदानों का लौह-अयस्क विशाखापट्टनम् पत्तन से जापान तथा दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।


3. बेलारी-चित्रदुर्ग, चिकमंगलूर-तुमकुर पेटी- कर्नाटक की इस पेटी में लौह-अयस्क की वृहत् राशि संचित है। कर्नाटक में पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानें शत-प्रतिशत निर्यात इकाइयाँ हैं।


4. महाराष्ट्र-गोआ पेटी-यह पेटी गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले में स्थित है। यद्यपि यहाँ का लोहा उत्तम प्रकार का नहीं है तथापि इसका दक्षता से दोहन किया जाता है। मर्मागाओ पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है।


प्रश्न 2. भारत में अलौह खनिजों के वितरण को समझाइए।


उत्तर अलौह खनिजों में ताँबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना आते हैं। भारत में अलौह खनिजों की संचित राशि व उत्पादन अधिक संतोषजनक नहीं है। भारत में ताँबे के भंडार व उत्पादन न्यून हैं। ताप का सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है। मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं। झारखंड का सिंहभूम तथा राजस्थान की खेतड़ी खदानें भी ताँबे के लिए प्रसिद्ध थीं।


ऐलुमिनियम बॉक्साइट से प्राप्त होता है। यह एक महत्त्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है। भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यतः अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों तथा बिलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेशों में पाए जाते हैं। ओडिशा भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है। यहाँ कोरापुट जिले में पंचपतमाली निक्षेप राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण बॉक्साइट निक्षेप हैं।


प्रश्न 3. ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। 


या ऊर्जा के गैर-परम्परागत चार स्रोतों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।



या ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत किसे कहते हैं? भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य कैसा है?



उत्तर- ऊर्जा के वे साधन जो एक बार प्रयोग करने पर समाप्त नहीं होते और जिनकी पुन: पूर्ति संभव है, गैर-परंपरागत या नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं, 


जैसे—सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा तथा जैविक ऊर्जा आदि।


1. सौर ऊर्जा- भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ हैं। फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र भुज के निकट माधोपुर में स्थित है।


2. पवन ऊर्जा - पवन ऊर्जा का प्रयोग पानी बाहर निकालने, खेतों में सिंचाई करने और बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है। वायु ऊर्जा का प्रयोग गुजरात, तमिलनाडु, ओडिशा और महाराष्ट्र में किया जाता है।


3. बायोगैस- ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि-अपशिष्ट, पशुओं और मानवजनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपयोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है। बायोगैस संयंत्र नगरपालिका, सहकारिता तथा निजी स्तर पर लगाए जाते हैं।


4. ज्वारीय ऊर्जा-महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। सँकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार बनाकर बाँध बनाए जाते हैं। उच्च ज्वार में इस सँकरी खाड़ीनुमा प्रवेशद्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बंद होने पर बाँध में ही रह जाता है। बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरने पर बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की ओर बहाया जाता है जो ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है। इससे विद्युत बनती है।



5. भू-तापीय ऊर्जा - पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर मी उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं। भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए लद्दाख तथा हिमाचल प्रदेश में दो प्रायोगिक परियोजनाएँ शुरू की गई हैं।



6. जियो थर्मल ऊर्जा - हिमाचल प्रदेश में गर्म पानी के चश्मों से ये पैदा से की जाती है। इसका प्रयोग ठंडे भंडार केंद्रों में किया जाता है। 




प्रश्न 4. भारत में कोयले के वितरण का वर्णन कीजिए।



उत्तर- मानव के विकास में कोयले का विशेष महत्त्व है। कोयले के चार प्रकार हैं



1. पीठ- इसमें कम कार्बन, नमी की अधिक मात्रा व निम्न ताप क्षमता होती है।


2. लिग्नाइट-—यह निम्नकोटि का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है। 


3. बिटुमिनस-गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है।


4. एंथेसाइट- यह सबसे उत्तम प्रकार का कोयला होता है जिसमें कार्बन की मात्रा 80 प्रतिशत से अधिक होती है। यह ठोस काला व कठोर होता कोयले के भारत में विस्तृत भंडार हैं। 



भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगो के शैल क्रम में पाया जाता है। एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक हैं और दूसरा टर्शियरी निक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं। गोंडवाना कोयला, जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी (प. बंगाल तथा झारखंड), झरिया, रानीगंज, बोकारो में स्थित हैं जो महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। गोदावरी, महानदी, सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं। टर्शियरी कोयला क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों-मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है।



प्रश्न 5. भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है। क्यों?


उत्तर भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य बहुत उज्ज्वल है जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं


(i) भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ हैं। एक अनुमान के अनुसार यह लगभग 20 मेगावाट प्रति वर्ग किलोमीटर प्रतिवर्ष है।


(ii) भारत में फोटोवोल्टाइक तकनीक द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है।


(iii) भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र भुज के निकट माधोपुर में स्थित है, जहाँ सौर ऊर्जा से दूध के बड़े बर्तनों को कीटाणुमुक्त किया जाता है।


(iv) सूर्य का प्रकाश प्रकृति का मुख्य उपहार है। इसलिए निम्न वर्ग के लोग आसानी से सौर ऊर्जा का लाभ उठा सकते हैं।


(v) कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि ऊर्जा के ऐसे स्रोत हैं जो एक बार प्रयोग के बाद दोबारा प्रयोग में नहीं लाए जा सकते, वही सौर ऊर्जा नवीकरणीय संसाधन हैं। इसे बार-बार प्रयोग में लाया जा सकता है।


(vi) ऐसी अपेक्षा है कि सौर ऊर्जा के प्रयोग से घरों में उपलों तथा लकड़ी पर निर्भरता को न्यूनतम किया जा सकेगा। फलस्वरूप यह पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा और कृषि में भी खाद्य की पर्याप्त आपूर्ति होगी


(vii) सौर ऊर्जा का प्रयोग हम अनेक प्रकार से कर सकते हैं; जैसे-खाना बनाने, पंप द्वारा जल निकालने, पानी को गरम करने, दूध कीटाणुरहित बनाने तथा सड़कों पर रोशनी करने आदि के लिए।





यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 9 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ नोट्स


up board class 10 social science chapter 9 pdf notes in hindi






राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ




याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1. एक देश के विकास की गति वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के साथ उनके एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन की सुविधा पर भी निर्भर करता है।


2. वस्तुओं तथा सेवाओं का लाना- लेजाना पृथ्वी के तीन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर किया जाता है-स्थल, जल तथा वायु।


3. भारत विश्व के सर्वाधिक सड़क जाल वाले देशों में से एक है, यह सड़क जाल लगभग 54.7 लाख किमी है। 


4. राष्ट्रीय राजमार्ग-7 (अब 44) सर्वाधिक लंबा राजमार्ग है जो 2369 किमी लंबा है। यह वाराणसी को जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद, बंगलुरु, मदुरई के रास्ते कन्याकुमारी से जोड़ता है।


5.भारत की 7516.6 किमी लंबी समुद्री तट रेखा के साथ 12 प्रमुख तथा 181 मध्यम व छोटे पत्तन हैं। ये प्रमुख पत्तन देश का 95 प्रतिशत विदेशी व्यापार संचालित करते हैं।


6. अप्रैल 2019 में भारतीय रेल परिवहन की मार्गीय लंबाई 69, 182 किमी [बड़ी लाइन (ब्रॉड गेज)-64298 किमी, मीटर लाइन (मीटर गेज)-3200 किमी तथा छोटी लाइन (नैरो गेज)-1684 किमी] थी जिस पर 7349 स्टेशन थे।


7. भारतीय रेल परिवहन देश का सर्वाधिक बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का प्राधिकरण है। देश की पहली रेलगाड़ी 1853 में मुंबई और थाणे के मध्य चलाई गई जो 34 किमी की दूरी तय करती थी।


8. सन् 1953 में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण किया गया। व्यावहारिक तौर पर इंडियन एयर लाइंस और कई निजी एयरलाइंस घरेलू विमान सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं। एयर इंडिया अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवाएँ प्रदान करती है।


9. बड़े शहरों व नगरों में डाक संचार में शीघ्रता हेतु हाल ही में छः डाक मार्ग बनाए गए हैं। इन्हें राजधानी मार्ग, मेट्रो चैनल, ग्रीन चैनल, व्यापार चैनल, भारी चैनल तथा दस्तावेज चैनल के नाम से जाना जाता है।


10.भारत में पाइपलाइन परिवहन का एक नया साधन है। ठोस पदार्थों को तरल अवस्था में परिवर्तित कर पाइपलाइनों के द्वारा ले जाया जाता है। • हल्दिया तथा इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) के मध्य गंगा जलमार्ग (नौगम्य जलमार्ग संख्या-1) की लम्बाई 1620 किमी है। यह भारत का सबसे लंबा जलमार्ग है।


11. कांडला एक ज्वारीय पत्तन है। मुंबई वृहत्तम पत्तन है जिसके प्राकृतिक खुले, विस्तृत व सुचारु पोताश्रय हैं।


12.भारत में सन् 1953 में वायु परिवहन का राष्ट्रीकरण किया गया।




महत्त्वपूर्ण शब्दावली


व्यापारी –जो व्यक्ति उत्पाद को परिवहन द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं, उन्हें व्यापारी कहा जाता है।


देश की जीवन रेखाएँ – परिवहन तथा संचार के आधुनिक साधन जो लोगों, वस्तुओं और सेवाओं को करीब लाते हैं, किसी देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में अनेक प्रकार से सहायक होते हैं, इसलिए इन्हें देश की जीवन रेखाएँ कहते हैं।


 परिवहन –लोगों तथा वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान के बीच लाने, ले जाने का कार्य परिवहन या यातायात कहलाता है। 


आयात–किसी देश में किसी अन्य देश से किसी वस्तु को खरीदना आयात कहलाता है।


निर्यात–किसी देश द्वारा किसी दूसरे देश को वस्तु बेचना निर्यात कहलाता है। 


व्यापार-राज्यों व देशों में व्यक्तियों के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान व्यापार कहलाता है।


अंतर्राष्ट्रीय व्यापार- दो देश जब विभिन्न वस्तुओं का आदान-प्रदान करें तो यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। देश के कुल निर्यात और आयात मूल्यों का अंतर व्यापार संतुलन कहलाता है।


व्यापार संतुलन—किसी देश के कुल निर्यात और आयात मूल्यों का अन्तर व्यापार सन्तुलन कहलाता है।


अनुकूल व्यापार संतुलन-अगर निर्यात मूल्य आयात मूल्य से अधिक हो तो उसे अनुकूल व्यापार संतुलन कहेंगे।



 प्रतिकूल व्यापार संतुलन-यदि निर्यात मूल्य की अपेक्षा आयात मूल्य अधिक हो तो उसे प्रतिकूल व्यापार संतुलन कहेंगे।


राष्ट्रीय राजमार्ग—देश के दूरस्थ भागों को जोड़ने वाली सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाती हैं। इनका निर्माण व रख-रखाव केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अधिकार क्षेत्र में है।


राज्य राजमार्ग-राज्यों की राजधानियों को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाली सड़कें राज्य राज्यमार्ग कहलाती हैं।


जिला मार्ग–वे सड़कें जो जिले के विभिन्न प्रशासनिक केंद्रों को जिला मुख्यालय से जोड़ती हैं जिला मार्ग कहलाती हैं।


अंतर्राष्ट्रीय महामार्ग-वे स्थलीय एवं सामुद्रिक मार्ग जो एक देश को विश्व के अन्य देशों से मिलाते हैं।



प्रश्न 1. निम्न से कौन-से दो दूरस्थ स्थित स्थान पूर्वी-पश्चिमी गलियारे से जुड़े हैं?


(क) मुंबई तथा नागपुर


(ख) सिलचर तथा पोरबंदर


(ग) मुंबई और कोलकाता


(घ) नागपुर तथा सिलिगुड़ी



उत्तर-


(ख) सिलचर तथा पोरबंदर



प्रश्न 2. निम्नलिखित में से परिवहन का कौन-सा साधन वहनांतरण हानियों तथा देरी को घटाता है?



(क) रेल परिवहन


(ख) सड़क परिवहन


(ग) पाइपलाइन


(घ) जल परिवहन


उत्तर-


(ग) पाइपलाइन



प्रश्न 3. निम्न में से कौन-सा राज्य हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर पाइपलाइन से नहीं जुड़ा है?



(क) मध्य प्रदेश


 (ख) महाराष्ट्र 


(ग) गुजरात


 (घ) उत्तर प्रदेश


उत्तर-


(ख) महाराष्ट्र


प्रश्न 4.इनमें से कौन-सा पत्तन पूर्वी तट पर स्थित है जो अंतःस्थलीय तथा अधिकतम गहराई का पत्तन है तथा पूर्ण सुरक्षित है?




(क) चेन्नई


(ख) पारादीप


(ग) तूतीकोरिन


(घ) विशाखापट्टनम


उत्तर-


(घ) विशाखापट्टनम


प्रश्न 5.निम्न में से कौन-सा परिवहन साधन भारत में प्रमुख साधन है?


(क) पाइपलाइन


(ख) रेल परिवहन


(ग) सड़क परिवहन


(घ) वायु परिवहन


उत्तर-


(ग) सड़क परिवहन


प्रश्न 6.निम्न से कौन-सा शब्द दो या अधिक देशों के व्यापार को दर्शाता है?




(क) आंतरिक व्यापार


(ख) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार


(ग) बाहरी व्यापार


(घ) स्थानीय व्यापार


उत्तर-


(ख) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार



प्रश्न 7. भारत का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) कौन-सा है?


(क) एन एच 44


(ख) एन एच 8


(ग) एन एच 11


(घ) एन एच 88


उत्तर


(क) एन एच 44


प्रश्न 8.सीमांत सड़कों का निर्माण तथा नियंत्रण करने वाली संस्था है?


(क) सीमा सड़क संगठन


(ख) केन्द्रीय निर्माण विभाग


(ग) सार्वजनिक निर्माण विभाग 


(घ) शहरी मामलों का मंत्रालय


उत्तर-


(क) सीमा सड़क संगठन


प्रश्न 9. बड़ी लाइन की चौड़ाई क्या है?


(क) 1676 मिमी


(ग) 762 मिमी


(ख) 1000 मिमी


(घ) 610 मिमी


उत्तर-


(क) 1676 मिमी


प्रश्न 10. निम्नलिखित में से किस वस्तु का निर्यातक भारत नहीं है? 


(क) कॉफी


(ख) उर्वरक


(ग) तम्बाकू


(घ) चाय



उत्तर-


(ख) उर्वरक


प्रश्न 1. भारत का सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग कौन है? इसकी लंबाई और उससे जुड़ने वाले नगर कौन-कौन से हैं?


उत्तर- राष्ट्रीय राजमार्ग-7 (अब 44) सर्वाधिक लंबा राजमार्ग है जो 2369 किमी लंबा है। यह वाराणसी को जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद, बंगलुरु, मदुरई के रास्ते कन्याकुमारी से जोड़ता है।


प्रश्न 2. 'प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना' के तहत क्या प्रस्ताव है?


 उत्तर- इस सड़क परियोजना के तहत देश के प्रत्येक गाँव को प्रमुख शहरों से पक्की सड़कों द्वारा जोड़ना प्रस्तावित है।


प्रश्न 3. भारत में पहली रेलगाड़ी की शुरुआत कब और कहाँ से कहाँ तक की गई थी? भारतीय रेलमार्ग को कितने गेजों में बाँटा जा सकता है?


उत्तर- देश की पहली रेलगाड़ी 1853 में मुंबई और थाणे के मध्य चलाई गई जो 34 किमी की दूरी तय करती थी। भारतीय रेलमार्ग को तीन गेजों में ब्रॉड गेज (बड़ी लाइन), मीटर गेज (छोटी लाइन) और नैरो गेज में बाँटा जा सकता है।


प्रश्न 4. भारत में आयात होने वाली वस्तुओं के नाम लिखिए।


उत्तर भारत में आयात होने वाली वस्तुओं में पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद, मोती व बहुमूल्य रत्न, अकार्बनिक रसायन, कोयला, मशीनरी, उर्वरक, वनस्पति तेल, छपाई मशीनें आदि प्रमुख हैं।


प्रश्न 5.भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के नाम लिखिए।


उत्तर भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में जूट के सामान, चाय, मैंगनीज, लोहा, तंबाकू, रत्न व जवाहरात, रसायन व संबंधित उत्पाद, सॉफ्टवेयर आदि प्रमुख हैं।


प्रश्न 6.जनसंचार के साधन कौन-कौन से हैं?


उत्तर- जनसंचार के साधनों में रेडियो, दूरदर्शन, डाक्तार, इंटरनेट, चलचित्र, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीफोन, मोबाइल आदि प्रमुख हैं। 



प्रश्न 7. भारत में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण कब किया गया था? भारत में कितने प्रकार की वायु सेवाएँ उपलब्ध हैं?


उत्तर- सन् 1953 में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण किया गया। भारत में इंडियन एयरलाइंस, एयर इंडिया तथा कई निजी एयरलाइंस घरेलू विमान सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक




प्रश्न 1. भारत में जनसंचार के क्षेत्र में हुए किन्हीं तीन प्रमुख विकासों की व्याख्या कीजिए।


उत्तर- भारत में जनसंचार के क्षेत्र में निम्नलिखित तरह के विकास हुए हैं


 (i) भारत में दो दशक से इंटरनेट की सुविधा हो गई है जिससे काफी लोग सूचना प्राप्त करते हैं।


(ii) पिछले दो दशकों से दूरसंचार के साधनों में काफी विकास हुआ है, भारत में जब से मोबाइल का शुभारंभ हुआ है सूचना क्षेत्र में क्रांति आ गई है।


(iii) बड़े शहरों व नगरों में डाक संचार में शीघ्रता हेतु, हाल ही में छ: डाक मार्ग बनाए गए हैं। इन्हें राजधानी मार्ग, मेट्रो चैनल, ग्रीन चैनल, व्यापार चैनल, भारी चैनल तथा दस्तावेज चैनल के नाम से जाना जाता है।


प्रश्न 2. भारत में सड़क परिवहन के सम्मुख उपस्थित किन्हीं पाँच प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।


उत्तर- भारतीय सड़क निम्नलिखित समस्याओं का सामना कर रही है


 (i) यात्रियों की अधिक संख्या और माल की ढुलाई की अधिक मात्रा को देखते हुए भारत में सड़क जाल अपेक्षाकृत कम है।


(ii) भारत में लगभग 50 प्रतिशत सड़कें कच्ची हैं। इसलिए यह यातायात के साधनों के लिए सुगम नहीं है।


(iii) वर्षा ऋतु में कच्ची सड़कें कीचड़ से भर जाती हैं। इसलिए वर्षा ऋतु में ये सड़कें अनुपयोगी हो जाती हैं।


(iv) अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सड़कें जल्दी खराब हो जाती हैं।


 (v) भारत की अधिकांश पक्की सड़कें संकरी है, जिन पर एक साथ दो गाड़ियों का आवागमन आसानी से नहीं होता।



प्रश्न 3. वायु परिवहन के किन्हीं चार गुणों और किन्हीं दो अवगुणों का उल्लेख कीजिए।


उत्तर- वायु परिवहन के चार गुण निम्नलिखित हैं—


(i) परिवहन के अन्य साधनों की अपेक्षा यह दूसरे स्थानों पर पहुँचने में बहुत कम समय लेता है। 


(ii) विदेश यात्रा के लिए सबसे सुगम परिवहन का साधन है।


(iii) अन्य परिवहन के साधनों की अपेक्षा इसमें दुर्घटना कम होती है।


(iv) यह परिवहन का बहुत आरामदायक साधन है। 


वायु परिवहन के दो अवगुण निम्नलिखित हैं


(i) यह बहुत महँगा परिवहन का साधन है।


(ii) हवाई पट्टी के लिए काफी जगह की आवश्यकता होती है इसलिए दुर्गम स्थानों में हवाई पट्टी नहीं बनाई जा सकती।


प्रश्न 4. वायु परिवहन का महत्त्व बताइए। भारत की कुछ प्रमुख एयरलाइंस के नाम बताइए।


उत्तर आज वायु परिवहन तीव्रतम, आरामदायक व प्रतिष्ठित परिवहन का साधन है। इसके द्वारा अति दुर्गम स्थानों; जैसे—ऊँचे पर्वत, मरुस्थलों, घने जंगलों व लंबे समुद्री रास्तों को सुगमता से पार किया जा सकता है। सन् 1953 में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण किया गया है। इंडियन एयरलाइंस तथा कई निजी एयरलाइंस घरेलू विमान सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं। एयर इंडिया अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवाएँ प्रदान करती हैं। पवन हंस हेलीकॉप्टर लिमिटेड, तेल व प्राकृतिक गैस आयोग को इसकी अपतटीय संक्रियाओं में तथा अगम्य व दुर्लभ भू-भागों; जैसे-उत्तरी-पूर्वी राज्यों तथा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के आंतरिक क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर सेवाएँ उपलब्ध करवाता है।


प्रश्न 5.भारत के आर्थिक विकास में परिवहन के साधनों का क्या महत्त्व है?



उत्तर भारत के आर्थिक विकास में परिवहन के साधनों का महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट होता है


(i) सम्पर्क प्रदान करना - परिवहन के साधन देश की जीवन रेखाएँ हैं। ये देश के एक भाग को दूसरे भाग से जोड़ती हैं। परिवहन के साधनों द्वारा ही आवश्यक वस्तुएँ दूर-दूर के स्थानों तक पहँचती हैं।


(ii) अर्थव्यवस्था का विकास-परिवहन तथा संचार के साधनों के माध्यम से उद्योगों तक कच्चा माल पहुँचता है तथा उनके तैयार उत्पाद रेल मार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा ले जाए जाते हैं। कृषि भी अधिकतर परिवहन पर निर्भर करती है।


(iii) वैश्विक गाँव-सक्षम एवं तीव्र गति वाले परिवहन से आज विश्व एक बड़े गाँव में परिवर्तित हो गया है। परिवहन का यह विकास संचार साधनों के विकास की सहायता से ही सम्भव हो सका है। इसीलिए परिवहन, संचार व व्यापार एक-दूसरे के पूरक हैं।


प्रश्न 6 पाइपलाइन क्या है? पाइपलाइन का उपयोग क्यों किया जाता है?


उत्तर पाइपलाइन एक नया परिवहन का साधन है। पहले पाइपलाइन का उपयोग शहरों व उद्योगों में पानी पहुँचाने हेतु होता था। आज इसका उपयोग कच्चे तेल, पेट्रोल उत्पाद तथा तेल से प्राप्त प्राकृतिक तथा गैस क्षेत्र में उपलब्ध गैस शोधनशालाओं, उर्वरक कारखानों व बड़े ताप विद्युत गृहों तक पहुँचाने में प्र किया जाता है। ठोस पदार्थों को तरल अवस्था में परिवर्तित कर पाइपलाइनों द्वारा ले जाया जाता है। सुदूर आंतरिक भागों में स्थित शोधनशालाएँ; जैसे—बरौनी, मथुरा, पानीपत तथा गैस पर आधारित उर्वरक कारखानों की स्थापना पाइपलाइनों के जाल के कारण ही संभव हो पाई है। पाइपलाइन बिछाने की प्रारंभिक लागत अधिक है, लेकिन इसको चलाने की लागत न्यूनतम है। 


प्रश्न 7.रेल परिवहन की अपेक्षा सड़क परिवहन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।


उत्तर- सड़क परिवहन, रेल परिवहन से अधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि


(i) सड़कों के निर्माण में कम खर्च आता है।


(ii) इनका निर्माण ऊबड़-खाबड़ व विच्छिन्न भू-भाग पर आसानी से हो सकता है।


(iii) इनका निर्माण ढाल वाले क्षेत्रों व पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से हो सकता है।


(iv) यह अन्य परिवहन साधनों से सस्ता है।


 (v) यह हमें, हमारे घरों से भी जोड़ता है।


(vi) यह अन्य परिवहन साधनों (जल, वायु) को जोड़ने का भी कार्य करता है।


प्रश्न 8. सड़क परिवहन के तीन गुण बताइए। या सड़क परिवहन के कोई तीन लाभ बताइए।


उत्तर भारत विश्व के सर्वाधिक सड़क जाल वाले देशों में से एक है।


 सड़क परिवहन के तीन प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं—


(i) सड़क परिवहन, अन्य परिवहन साधनों के उपयोग में एक कड़ी के रूप में भी कार्य करता है; जैसे-सड़कें, रेलवे स्टेशन, वायु व समुद्री पत्तनों को जोड़ती हैं।


(ii) सड़कों की निर्माण लागत कम होती है तथा यह ऊबड़-खाबड़ भू-भागों पर भी बनाई जा सकती है।



(iii) यह घर-घर सेवाएँ उपलब्ध करवाता है तथा सामान चढ़ाने व उतारने


की लागत भी अपेक्षाकृत कम है।


प्रश्न 9.


रेल परिवहन कहाँ पर अत्यधिक सुविधाजनक परिवहन का साधन है तथा क्यों?


(NCERT)


उत्तर भारत में रेल परिवहन वस्तुओं तथा यात्रियों के परिवहन का प्रमुख साधन है। रेल परिवहन अनेक कार्यों में सहायक है; जैसे—व्यापार, भ्रमण, तीर्थ यात्राएँ व लंबी दूरी तक सामान का परिवहन आदि। भारत के उत्तरी मैदानों में रेल परिवहन अत्यधिक सुविधाजनक परिवहन है, क्योंकि उत्तरी मैदान अपनी विस्तृत समतल भूमि, सघन जनसंख्या घनत्व, संपन्न कृषि व प्रचुर संसाधनों के कारण रेल परिवहन के विकास व वृद्धि में सहायक रहा है।


प्रश्र.10 सीमांत सड़कों का महत्त्व बताइए।


उत्तर

भारत के सीमांत क्षेत्र में सड़कों के निर्माण व देख-रेख का कार्य सीमा सड़क संगठन करता है। यह उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सामरिक महत्त्व की सड़कों का विकास करता है। इन सड़कों का महत्त्व इस प्रकार है


(i) ये सड़कें सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों विशेषकर चौकियों की रखवाली करने वाले सैनिकों की प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने में बड़ी सहायक सिद्ध होती हैं।


(ii) युद्ध के समय इन्हीं सड़कों से फौजियों को लड़ाई का सामान, खाद्य सामग्री तथा अन्य सहायता पहुँचाई जाती है।


(iii) इन सड़कों से दुर्गम क्षेत्रों में आना-जाना सरल हुआ है। 


(iv) ये सड़कें इन क्षेत्रों के आर्थिक विकास में भी सहायक हुई हैं।


प्रश्न 11. व्यापार से आप क्या समझते हैं? स्थानीय व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अंतर स्पष्ट कीजिए।


उत्तर- राज्यों व देशों के बीच विभिन्न वस्तुओं का आदान-प्रदान व्यापार कहलाता है। स्थानीय व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अंतर निम्नलिखित हैं


अंतर्राष्ट्रीय व्यापार - दो देशों के मध्य विभिन्न वस्तुओं का आदान-प्रदान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। यह समुद्री, हवाई व स्थलीय मार्गों द्वारा हो सकता है। किसी देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रगति उसके आर्थिक विकास का सूचक है।


स्थानीय व्यापार– एक देश के अंदर विभिन्न वस्तुओं का आदान-प्रदान स्थानीय व्यापार कहलाता है। स्थानीय व्यापार शहरों, कस्बों व गाँवों में होता है।



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न1. भारत में सड़कों का वर्गीकरण कीजिए।


या निम्नलिखित प्रत्येक का वर्णन लगभग 40 शब्दों में कीजिए



(1) स्वर्णिम चतुर्भुज महाराजमार्ग


(2) राष्ट्रीय राजमार्ग


(3) राज्य राजमार्ग


उत्तर- भारत में सड़कों की सक्षमता के आधार पर इन्हें निम्नलिखित छः वर्गों में बाँटा जाता है -


1. स्वर्णिम चतुर्भुज महाराजमार्ग- भारत सरकार ने दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुंबई को जोड़ने वाली 6 लेन वाली महा राजमार्गों की सड़क परियोजना प्रारंभ की है। इसमें दो गलियारे प्रस्तावित हैं-उत्तर-दक्षिण गलियारा जो श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ता है तथा द्वितीय, पूर्व-पश्चिम गलियारा जो सिल्चर और पोरबंदर को जोड़ता है।


2. राष्ट्रीय राजमार्ग-राष्ट्रीय राजमार्ग देश के दूरस्थ भागों को जोड़ते हैं। इनका निर्माण व देखभाल केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अधिकार में है। अनेक प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम में फैले हैं।


3. राज्य राजमार्ग – राज्य की राजधानियों को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाली सड़कें राज्य राजमार्ग कहलाती हैं। राज्य तथा केंद्रशासित क्षेत्रों में इनकी व्यवस्था तथा निर्माण का दायित्व राज्य के सार्वजनिक निर्माण विभाग का होता है।


4. जिला मार्ग-ये सड़कें जिले के विभिन्न प्रशासनिक केंद्रों को जिला मुख्यालय से जोड़ती हैं। इन सड़कों की व्यवस्था का उत्तरदायित्व जिला परिषद् का है।


5. अन्य सड़कें- इस वर्ग के अंतर्गत वे सड़कें आती हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों तथा गाँवों को शहरों से जोड़ती हैं। 'प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना' के तहत इन सड़कों के विकास को विशेष प्रोत्साहन मिला है।


6. सीमांत सड़कें-भारत सरकार प्राधिकरण के अधीन सीमा सड़क संगठन है जो देश के सीमांत क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण व उनकी देख-रेख करता है। यह संगठन 1960 में बनाया गया जिसका कार्य उत्तर तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सामरिक महत्त्व की सड़कों का विकास करना था।


सड़क निर्माण में प्रयुक्त पदार्थ के आधार पर भी सड़कों को कच्ची व पक्की सड़कों में वर्गीकृत किया जाता है। पक्की सड़कें, सीमेंट, कंक्रीट व तारकोल द्वारा निर्मित होती हैं। अतः ये बारहमासी सड़कें हैं। कच्ची सड़कें वर्षा ऋतु में अनुपयोगी हो जाती हैं।




प्रश्न 2. आधुनिक समय में संचार के साधनों की महत्ता का वर्णन कीजिए। 


उत्तर जब से मानव पृथ्वी पर अवतरित हुआ है, उसने विभिन्न संचार माध्यमों का प्रयोग किया है। संचार का चाहे कोई भी साधन हो उनका अपना विशेष महत्त्व है


(i) संचार के विभिन्न साधन जीवन के लिए बड़े महत्त्वपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि इनके माध्यम से लोग दूर-दराज में रहने वाले अपने संबंधियों से संपर्क बनाए रखते हैं।


(ii) संचार मानव को मनोरंजन के साथ बहुत-से राष्ट्रीय कार्यक्रमों व नीतियों के विषय में जागरूक करता है।


(iii) संचार के विभिन्न साधनों से राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा मिला है।


 (iv) संचार के साधनों का प्रयोग युद्ध के समय तथा देश में आंतरिक शांति बनाए रखने के लिए भी सरकार द्वारा किया जाता है।


(v) देश के किसी भी हिस्से से आने वाली कृत्रिम व प्राकृतिक विपदा से निपटने के लिए संचार के साधनों का प्रयोग करके तुरंत सहायता पहुँचाई जा सकती है।


(vi) संचार साधनों के विकास से देश के आंतरिक तथा बाहरी व्यापार को बढ़ावा मिला है।


(vii) सक्षम संचार साधनों ने दुनिया को छोटा कर दिया है। पूरे विश्व को एक बड़े गाँव में परिवर्तित कर दिया है।


(viii) संचार साधनों ने हमारे जीवन को समृद्ध किया है तथा आरामदायक जीवन के लिए सुविधाओं व साधनों में बढ़ोतरी की है। संचार साधनों को किसी भी देश की जीवन रेखाएँ कहा जा सकता है क्योंकि ये साधन देश के सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देते हैं।



प्रश्न 3. परिवहन तथा संचार के साधन किसी देश की जीवन रेखा तथा अर्थव्यवस्था क्यों कहे जाते हैं?



उत्तर- वस्तुओं, सेवाओं तथा लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना परिवहन कहलाता है। यह परिवहन तीन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से किया जाता है— स्थल, जल तथा वायु ।


संचार के साधन वे साधन हैं जिनका प्रयोग एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश भेजने के लिए किया जाता है। ये दोनों ही किसी देश की जीवन रेखा कहे जाते हैं। क्योंकि


(i) एक देश के विकास की गति वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के साथ उनके एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन की सुविधा पर भी निर्भर करता है। इसलिए सक्षम परिवहन के साधन तीव्र विकास हेतु पूर्व-अपेक्षित हैं।


(ii) भारत अपने विशाल आकार, विविधताओं, भाषाई तथा सामाजिक व सांस्कृतिक बहुलताओं के बावजूद संसार के सभी क्षेत्रों से सुचारु रूप से जुड़ा है। इसका कारण अच्छे परिवहन तथा संचार के साधन हैं।


(iii) सक्षम व तीव्र गति वाले परिवहन से आज संसार एक बड़े गाँव में परिवर्तित हो गया है। परिवहन का यह विकास संचार साधनों के विकास की सहायता से ही संभव हो सका है।


(iv) युद्ध के समय इन साधनों का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है। इनके द्वारा सारा देश रक्षा सेनाओं की सहायता में कटिबद्ध हो जाता है। हथियारों, गोला-बारूद तथा रसद पहुँचाने का काम आसान हो जाता है।



प्रश्न4. भारत में संचार के साधनों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- जब से मानव पृथ्वी पर अवतरित हुआ है, उसने विभिन्न संचार माध्यमों का प्रयोग किया है। लेकिन आधुनिक समय में बदलाव की गति तीव्र है। संदेश प्राप्तकर्ता या संदेश भेजने वाले के गतिविहीन रहते हुए भी लंबी दूरी का संचार बहुत आसान है। निजी दूरसंचार तथा जनसंचार में दूरदर्शन, रेडियो, समाचार-पत्र समूह, प्रेस तथा सिनेमा, आदि देश के प्रमुख संचार साधन हैं। भारत का डाक-संचार तंत्र विश्व का वृहत्तम है। यह पार्सल, निजी पत्र व्यवहार तथा तार आदि को संचालित करता है। कार्ड व लिफाफा बंद चिट्ठी, पहली श्रेणी की डाक समझी जाती है तथा विभिन्न स्थानों पर वायुयान द्वारा पहुँचाए जाते हैं। द्वितीय श्रेणी की डाक में रजिस्टर्ड पैकेट, किताबें, अखबार तथा मैगजीन (पत्रिकाएँ) शामिल हैं। ये धरातलीय डाक द्वारा पहुँचाए जाते हैं तथा इनके लिए स्थल व जल परिवहन का प्रयोग किया जाता है।


दूर संचार तंत्र में भारत एशिया महाद्वीप में अग्रणी है। नगरीय क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत के दो-तिहाई से अधिक गाँव एसटीडी दूरभाष सेवा से जुड़े हैं। सूचनाओं के प्रसार को आधार स्तर से उच्च स्तर तक समृद्ध करने हेतु भारत सरकार ने देश के प्रत्येक गाँव में चौबीस घंटे एसटीडी सुविधा के विशेष प्रबंध किए हैं। जन-संचार, मानव को मनोरंजन के साथ बहुत-से राष्ट्रीय कार्यक्रमों व नीतियों के विषय में जागरूक करता है। इसमें रेडियो, दूरदर्शन, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, किताबें तथा चलचित्र सम्मिलित हैं। आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा स्थानीय भाषा में देश के विभिन्न भागों में अनेक वर्गों के व्यक्तियों के लिए विविध कार्यक्रम प्रसारित करता है। दूरदर्शन, देश का राष्ट्रीय समाचार व संदेश माध्यम है तथा विश्व के बृहत्तम संचार-तंत्र में एक है। यह विभिन्न आयु वर्ग के व्यक्तियों हेतु मनोरंजक, ज्ञानवर्धक व खेल-जगत संबंधी कार्यक्रम प्रसारित करता है।


भारत में वर्ष भर अनेक समाचार-पत्र तथा सामयिक पत्रिकाएँ प्रकाशित की जाती हैं। ये पत्रिकाएँ सामयिक होने के नाते (जैसे–मासिक, साप्ताहिक आदि) कई प्रकार की हैं। समाचार-पत्र लगभग 100 भाषाओं तथा बोलियों में प्रकाशित होते हैं। हमारे देश में सर्वाधिक समाचार पत्र हिन्दी भाषा में प्रकाशित होते हैं तथा इसके बाद अंग्रेजी व उर्दू के समाचार-पत्र आते हैं। भारत विश्व में सर्वाधिक चलचित्रों का उत्पादक भी है। यह कम अवधि वाली फिल्में, वीडियो फीचर फिल्म तथा छोटी वीडियो फिल्में बनाता है। भारतीय व विदेशी सभी व फिल्मों को प्रमाणित करने का अधिकार केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (Central Board of Film Certification) को है।




यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 11 संघवाद का सम्पूर्ण हल


संघवाद(नागरिक शास्त्र)





याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु




1.संघीय शासन व्यवस्था में सर्वोच्च सत्ता केन्द्रीय प्राधिकार और उसकी विभिन्न आनुषंगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है।



2.संघीय व्यवस्था में दो या दो से अधिक सरकारें होती हैं। अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार क्षेत्र होता है।



3."संघीय व्यवस्था में विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं, इसलिए संविधान सरकार के हर स्तर के अस्तित्व और प्राधिकार की गारंटी और सुरक्षा देता है।



4."संघीय व्यवस्था में संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों की सहमति से ही हो सकते हैं। अदालतों को संविधान एवं विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों के विवाद की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय निर्णायक की भूमिका निभाता है।




5.संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य हैं- देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना। इस व्यवस्था में वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित हैं।



6.संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड और ऑस्ट्रेलिया की संघीय व्यवस्था वाले मुल्कों में आमतौर पर प्रांतों को समान अधिकार होता है और वे केन्द्र की तुलना में ज्यादा ताकतवर हैं।



7. भारत, बेल्जियम और स्पेन में राज्यों की तुलना में केन्द्र सरकार ज्यादा शक्तिशाली है।



8.भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों को तीन सूचियों में वर्गीकृत किया गया है-संघ सूची, राज्य सूची समवर्ती सूची। व



9. भारत में जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य था जिसका अपना संविधान था। इस राज्य में विधानसभा की अनुमति के बगैर भारतीय संविधान के कई प्रावधानों को लागू नहीं किया जाता था। इस राज्य के स्थायी निवासियों के अतिरिक्त कोई भी भारतीय नागरिक यहाँ जमीन या मकान नहीं खरीद सकता था। 




10. भारतीय संविधान में हिंदी सहित कुल 22 भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।



11. भारत में 1990 के बाद देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। इसी दौर में केन्द्र में गठबंधन सरकार की शुरूआत हुई। 




12.गाँवों के स्तर पर मौजूद स्थानीय शासन व्यवस्था को पंचायती राज के नाम से जाना जाता है।






महत्त्वपूर्ण शब्दावली



एकात्मक व्यवस्था—जिन देशों में एक ही सामान्य सरकार काम करती है जिसे हम केंद्रीय सरकार कहते हैं, और बाकी इकाइयाँ उसके अधीन होकर काम करती हैं, एकात्मक व्यवस्था होती है। इसमें केन्द्रीय सरकार प्रांतीय या स्थानीय सरकारों को आदेश दे सकती है।



संघात्मक व्यवस्था-वह शासन व्यवस्था जिसमें एक ही समय में दो या अधिक सरकारें काम करें, संघात्मक व्यवस्था कहलाती है। इस व्यवस्था में केंद्र व राज्य, दो सरकारें प्रमुख होती हैं। दोनों को अपनी शक्तियाँ संविधान से मिली होती हैं। दोनों सरकारें एक-दूसरे के प्रति जवाबदेह न होकर जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं।



संघ सूची–विषयों की वह सूची जिस पर केंद्र सरकार कानून बनाए, संघ सूची कहलाती है। इसमें ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय रखे जाते हैं जो पूरे देश पर प्रभाव डालते हैं।



राज्य सूची विषयों की वह सूची जिस पर राज्य सरकार कानून बनाती है। इसमें कृषि, सिंचाई, व्यापार जैसे विषय पाए जाते हैं। 




समवर्ती सूची–विषयों की वह सूची जिस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य और केंद्र सरकार दोनों का होता है। लेकिन जब दोनों के कानून में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है।




अवशिष्ट सूची विषयों की वह सूची जिस पर केंद्र सरकार कानून बनाती है। इसमें वे विषय रखे गए हैं जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं हो पाए थे।




 स्थानीय शासन सत्ता के तीन स्तरीय ढाँचे का तीसरा स्तर स्थानीय शासन कहलाता है जिसमें एक स्थान विशेष के लोग अपने लिए स्वयं कानून बनाते हैं।



पंच प्रत्येक गाँव में एक ग्राम पंचायत होती है। इसके सदस्यों को पंच कहा जाता है।



सरपंच ग्राम पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं। इसका चुनाव गाँव में रहने वाले सभी वयस्क लोग करते हैं।



 पंचायत समिति कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का निर्माण किया जाता है। इसे मंडल या प्रखंड स्तरीय पंचायत भी कह सकते हैं।



जिला परिषद्-किसी जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद् का गठन किया जाता है। " 



मेयर–शहरों में नगरपालिका स्थानीय सरकार के रूप में काम करती है। नगरपालिका के राजनीतिक प्रधान को मेयर कहते हैं।





बहुविकल्पीय प्रश्न               1 अंक



प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा संघीय राज्य नहीं है?



(क) मणिपुर 



(ख) हिमाचल प्रदेश



(ग) अरुणाचल प्रदेश



(घ) दिल्ली



उत्तर- (घ) दिल्ली




प्रश्न2. भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में कितनी भाषाओं का समावेश है?




(क) 20



(ख) 22



(ग) 24



(घ) 26



उत्तर-



(ख) 22




प्रश्न 3.निम्नलिखित में से किसमें महिलाओं के लिए 'आरक्षण' सुनिश्चित है?




(क) विधानसभाओं में



(ख) लोकसभा में



(ग) पंचायती राज संस्थाओं में 



(घ) राज्यसभा में 




उत्तर-



(ग) पंचायती राज संस्थाओं में




प्रश्न 4.भारत में पंचायती राज्य की स्थापना हुई थी




(क) 1980 में



(ख) 1990 में



(ग) 1992 में



(घ) 2004 में



उत्तर- (ग) 1992 में 



प्रश्न 5.भारत में कुल कितने संघीय राज्य हैं?




(क) 27



(ख) 28



(ग) 29



(घ) 30



उत्तर



ख 28



प्रश्न 6.संविधान में उल्लिखित तीन सूचियों में से, निम्नलिखित में से कौन-सा विषय समवर्ती सूची में शामिल है?



(क) शिक्षा



(ख) कृषि



(ग) पुलिस



(घ) रक्षा



उत्तर-



(क) शिक्षा



प्रश्न 7. ग्रामीण स्तर पर संचालित प्रशासन को क्या कहते हैं?



(क) स्थानीय प्रशासन



(ख) पंचायत



(ग) ग्राम सभा



(घ) ग्रामोदय



उत्तर-



(क) स्थानीय प्रशासन



प्रश्न 8.वर्तमान भारतीय संघ प्रणाली में कितने केन्द्रशासित प्रदेश हैं?



(क) 09



(ख) 07



(ग) 10



(घ) 08





उत्तर-



(घ) 08



प्रश्न 9. संघात्मक शासन प्रणाली में अधिकारों का विभाजन होता है





(क) केन्द्र एवं राज्यों (इकाइयों) के मध्य



(ख) एक राज्य एवं अन्य राज्यों के मध्य 



(ग) व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका के मध्य



(घ) व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका के मध्य 



उत्तर


(क) केन्द्र एवं राज्यों (इकाइयों) के मध्य





प्रश्न10. प्रान्तीय प्रशासन का संचालन कौन करता है?



(क) प्रधानमंत्री



(ख) मुख्यमंत्री



(ग) राज्यपाल



(घ) जिलाधिकारी




उत्तर (ख) मुख्यमंत्री




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक



प्रश्न 1. अधिकार क्षेत्र से क्या तात्पर्य है?



उत्तर- ऐसा दायरा जिस पर किसी का वैधानिक अधिकार हो। यह दायरा भौगोलिक सीमा के अंतर्गत परिभाषित होता है अथवा इसके अंतर्गत कुछ विषयों


को भी रखा जा सकता है।



प्रश्न 2. एकात्मक शासन व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?



उत्तर- एकात्मक शासन व्यवस्था में एक स्तरीय सरकार होती है बाकी इकाइयाँ उसके अधीन होकर काम करती हैं। इसमें केंद्रीय सरकार प्रांतीय या स्थानीय सरकारों को आदेश दे सकती है।



प्रश्न 3. संघीय शासन व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?



उत्तर- वह शासन व्यवस्था जिसमें एक ही समय में दो अधिक सरकारें काम करें, संघात्मक व्यवस्था कहलाती है।



प्रश्न 4. गठबंधन सरकार से क्या तात्पर्य है?



 उत्तर- एक से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों द्वारा साथ मिलकर बनाई गई सरकार को गठबंधन सरकार कहते हैं।



प्रश्न 5. संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य क्या हैं? 



उत्तर- देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना। विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच सत्ता के बँटवारे के नियमों पर सहमति होनी चाहिए और इनका एक-दूसरे पर भरोसा होना चाहिए कि वे अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों को मानेंगे।



प्रश्न 6. समवर्ती सूची क्या है?



या समवर्ती सूची के चार विषयों का उल्लेख कीजिए।




उत्तर- विषयों की सूची जिस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य और केंद्र सरकार दोनों का होता है। लेकिन जब दोनों के कानून में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। इस सूची में शिक्षा, वन मजदूर संघ, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे विषय शामिल हैं।



प्रश्न 7. अवशिष्ट सूची क्या है?



उत्तर विषयों की वह सूची जिस पर केंद्र सरकार कानून बनाती है। इसमें वे विषय रखे गए हैं जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं हो पाए थे।



प्रश्न 8.भारत में विकेंद्रीकरण के पीछे बुनियादी सोच क्या है?



उत्तर



(i) शक्ति का संतुलन बना रहे।



(ii) केंद्र सरकार निरंकुश न हो।



(iii) अनेक मुद्दे और समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही बढ़िया ढंग से हो सकता है।



 प्रश्न 9. संघीय शासन व्यवस्था के गठन का दूसरा तरीका क्या है?



उत्तर- (i) बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना।



(ii) राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा कर देना



(iii) भारत, बेल्जियम और स्पेन संघीय व्यवस्था का तरीका।



प्रश्न 10. विश्व के दो संघात्मक राज्यों के नाम बताइए।



उत्तर


1. भारत तथा



2. अमेरिका




लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक



प्रश्न1. संघात्मक शासन की स्थापना के दो प्रमुख तरीकों का वर्णन कीजिए। 




उत्तर .संघात्मक शासन की स्थापना के दो तरीके निम्नलिखित हैं



(i) दो या अधिक स्वतंत्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करके संघ का निर्माण किया जाता है। इसमें सभी स्वतंत्र राष्ट्र अपनी संप्रभुता के साथ रहते हैं, अपनी अलग-अलग पहचान बनाए रखते हैं और अपनी सुरक्षा और खुशहाली बढ़ाते हैं। इसके उदाहरण हैं— संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया। इस व्यवस्था में प्रांतों को समान अधिकार होता है।



(ii) दूसरा तरीका है, एक बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा कर देना। भारत, बेल्जियम और स्पेन इसके उदाहरण हैं। इस श्रेणी में राज्यों से केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली होती है। अक्सर इस व्यवस्था में विभिन्न राज्यों को समान अधिकार दिए जाते हैं।




प्रश्न 2. भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा किस प्रकार किया गया है?



उत्तर- संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों का बँटवारा निम्न प्रकार किया गया है



1. संघ सूची - इसमें प्रतिरक्षा, विदेश, बैकिंग, संचार, मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के विषय हैं। इन पर केंद्र सरकार कानून बनाती है।



2. राज्य सूची – इसमें पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, सिंचाई जैसे प्रांतीय महत्त्व के विषय आते हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है।



3. समवर्ती सूची– इसमें शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह जैसे विषय शामिल हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों को है। लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया कानून ही मान्य होता है।



4. अवशिष्ट – अवशिष्ट विषयों की सूची में वे विषय रखे गए जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं थे या जो नए विषय उभरे हैं। इन पर केंद्र सरकार कानून बनाती है।



प्रश्न 3. स्थानीय सरकारों के महत्त्व का वर्णन कीजिए।



उत्तर- जब केंद्र और राज्य सरकारों से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेंद्रीकरण कहते हैं। इसमें तीसरे स्तर को स्थानीय शासन कहा जाता है। स्थानीय शासन का महत्त्व निम्नलिखित है



(i) अनेक समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही बढ़िया ढंग से हो सकता है क्योंकि लोगों को अपने इलाके की समस्याओं की बेहतर समझ होती है।



(ii) लोगों को इस बात की भी जानकारी होती है कि पैसा कहाँ खर्च किया जाए और चीजों का अधिक कुशलता से उपयोग किस तरह किया जा सकता है।



(iii) स्थानीय स्तर पर लोगों को फैसलों में सीधे भागीदार बनाना भी संभव हो जाता है। इससे लोकतांत्रिक भागीदारी की आदत पड़ती है।



इस प्रकार स्थानीय सरकारों की स्थापना स्वशासन के लोकतांत्रिक सिद्धांत को वास्तविक बनाने का सबसे अच्छा तरीका है।




प्रश्न 4. संघवाद क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।



उत्तर- संघवाद – संघवाद सरकार का एक प्रारूप है जिसमें सर्वोच्च सत्ता केन्द्रीय प्राधिकार और उसकी विभिन्न आनुषंगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है।



संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ - संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं



(i) यहाँ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है।



(ii) अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार-क्षेत्र होता है।



(iii) विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं। इसलिए संविधान सरकार के हर स्तर के अस्तित्व और प्राधिकार की गारंटी और सुरक्षा देता है।



(iv) संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों की सहमति से ही हो सकते हैं।



(v) अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों के विवाद की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय निर्णायक की भूमिका निभाता है।



(vi) वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित हैं।



(vii) इस प्रकार संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य हैं—देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना ।




प्रश्न 5.1992 के संविधान संशोधन के पहले और बाद के स्थानीय शासन के दो महत्त्वपूर्ण अंतरों को बताइए।




या विकेन्द्रीकरण क्या है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या व्यवस्था दी गई? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।





उत्तर- जन केन्द्र और राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं। इसके पीछे बुनियादी सोच यह है कि अनेक मुद्दों और समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही बढ़िया ढंग से हो सकता है। भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए सभी राज्यों में गाँव के स्तर पर ग्राम पंचायतों और शहरों में नगरपालिकाओं की स्थापना की गई थी। लेकिन उन्हें राज्य सरकारों के सीधे नियंत्रण में रखा गया था। इन स्थानीय सरकारों के लिए नियमित ढंग से चुनाव भी नहीं कराए जाते थे। इनके पास न तो कोई अधिकार था न कोई संसाधन।



1992 में संविधान में संशोधन करके लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के तीसरे. स्तर को मजबूत बनाया गया।



(i) अब स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक बाध्यता है।



(ii) निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के पदों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं।



(iii) राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ हिस्सा इन स्थानीय स्वशासी निकायों को देना पड़ता है।



(iv) कम-से-कम एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।



 (v) हर राज्य में पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन किया गया है।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक



प्रश्न 1. भारत में संघीय व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। या भारत में संघीय व्यवस्था कैसी है? इसके चार लक्षण बताइए।




उत्तर- स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान ने भारत को राज्यों का संघ घोषित किया। इसमें संघ शब्द नहीं आया पर भारतीय संघ का गठन संघीय शासन व्यवस्था के सिद्धांत पर हुआ। भारतीय संघात्मक शासन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -



1. दो स्तरीय शासन व्यवस्था - संविधान ने दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था-संघ सरकार और राज्य सरकारें। बाद में पंचायतों और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का तीसरा स्तर भी जोड़ा गया।



2. शक्तियों का बँटवारा- संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के विधायी अधिकारों को तीन हिस्सों में बाँटा गया। संघ सूची में राष्ट्रीय महत्त्व के विषय रखे गए जिन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया। राज्य सूची में कम महत्त्व के विषय थे जिन पर राज्य सरकार कानून बना सकती है। समवर्ती सूची पर राज्य और केंद्र दोनों कानून बना सकते हैं। किंतु टकराव की स्थिति में केंद्र का कानून मान्य होगा।



3. कठोर संविधान - हमारे संविधान में केंद्र व राज्य के बीच सत्ता का बँटवारा लिखित रूप से किया गया है। इसमें परिवर्तन करना आसान नहीं है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करके कम-से-कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से उसे मंजूर कराया जाता है। इस प्रकार कठोर संविधान संघात्मक शासन की प्रमुख विशेषता है।



4. शक्तिशाली न्यायपालिका – संघात्मक शासन में न्यायपालिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। भारत में शक्तियों के बँटवारे से संबंधित कोई विवाद होने की स्थिति में फैसला उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में ही होता है।



5. वित्तीय स्वायत्तता - सरकार चलाने और अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कर लगाने, राजस्व उगाहने और संसाधन जमा करने का अधिकार है। राज्य सरकारों को वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त है। 



6. एकीकृत न्यायपालिका - भारत में संघात्मक शासन के कारण केंद्र और राज्य सरकारों की अलग-अलग कार्यपालिका और व्यवस्थापिका है किंतु न्यायपालिका दोनों के लिए एक ही है। ऐसा इसलिए किया गया जिससे केंद्र व राज्यों के झगड़ों का निपटारा किया जा सके।



7. राज्यों के अपने संविधान नहीं हैं- भारतीय संघ के सारे राज्यों को उ बराबर अधिकार नहीं है। भारत के राज्यों के अपने संविधान नहीं हैं।



8. केंद्रीकृत संघवाद - भारतीय संघात्मक शासन अन्य देशों के शासन से भिन्न है। भारत में दो प्रकार की सरकारें होते हुए भी केंद्र को शक्तिशाली बनाया गया है। केंद्र को अधिक अधिकार दिए गए हैं। इसलिए भारतीय संघ को एकीकृत संघवाद कहा जाता है।



प्रश्न 2. भारत का संघात्मक स्वरूप अन्य संघों से किस प्रकार भिन्न है? 



या "भारतीय संघात्मक शासन केंद्रीकृत संघवाद का नमूना है।" इस कथन को तर्क सहित स्पष्ट करें।



उत्तर भारतीय संघात्मक शासन अन्य देशों के संघात्मक शासन से भिन्न है। अमेरिका, कनाड़ा आदि देशों में पूर्ण संघात्मक शासन है। किंतु भारतीय संघ में कुछ एकात्मक शासन की विशेषताएँ भी हैं जो उसे अन्य देशों के संघात्मक शासन से अलग बनाती हैं। भारतीय संविधान की निम्नलिखित विशेषताएँ उसे अन्य देशों के संघात्मक शासन से अलग बनाती हैं



 (i) भारतीय संविधान में कहीं भी संघात्मक शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इसमें केवल यह कहा गया है कि भारत राज्यों का संघ है।




 (ii) केंद्र सरकार को राज्य सरकारों से अधिक विषय दिए गए हैं। संघ सूची में सबसे अधिक तथा महत्त्वपूर्ण विषय हैं। विशेष परिस्थितियों में, आपातकाल के समय केंद्र राज्य सूची पर भी कानून बना सकता है। यदि राज्यपाल यह सिफारिश करे कि किसी विषय पर केंद्र कानून बनाए तो केंद्र राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकता है। समवर्ती सूची भी केंद्र के कानूनों को महत्त्व दिया जाता है। प्र अवशिष्ट विषय भी केन्द्र के अधिकार में रखे गए हैं। इस प्रकार केन्द्र  सरकार को राज्य सरकार से अधिक अधिकार दिए गए हैं।



(iii) एकीकृत न्यायपालिका– संघात्मक शासन में केंद्र व राज्यों के लिए अलग-अलग न्यायपालिका होती है किंतु भारत में केंद्र और राज्यों के लिए न्यायपालिका का एक ही ढाँचा काम करता है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय तथा फिर जिला अदालतें काम करती हैं।



(iv) राज्यों के अपने संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत नहीं हैं। अमेरिका आदि संघात्मक देशों में राज्यों के अपने अलग-अलग संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत है किंतु भारत में राज्यों के अपने अलग-अलग संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत नहीं हैं। पूरे देश का एक संविधान, एक राष्ट्रध्वज व एक राष्ट्रगीत है जो देश को एकात्मकता की ओर ले जाते हैं।



(v) भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति केवल भारत का नागरिक कहलाता है। उसे अलग-अलग राज्यों की नागरिकता प्राप्त नहीं होती, जबकि संघात्मक शासन में नागरिक अपने देश का तथा जिस राज्य में निवास करता हो, उसका भी नागरिक होता है, जैसे—अमेरिका में दोहरी नागरिकता है।



(vi) आपातकालीन परिस्थितियों में विदेशी आक्रमण या आर्थिक संकट के समय पूरे देश में शासन का स्वरूप एकात्मक हो जाता है। राज्य सरकारों को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया जाता है। सभी अधिकार केंद्र सरकार के पास आ जाते हैं।



इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में ऐसा संघात्मक शासन है जिसका झुकाव एकात्मकता की ओर है। यह कभी भी आवश्यकतानुसार एकात्मक स्वरूप ग्रहण कर सकता है।



प्रश्न 3.शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूपों में क्या-क्या प्रमुख अन्तर हैं? इसे उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करें।





उत्तर- शासन के संघात्मक तथा एकात्मक स्वरूप में अन्तर शासन के संघात्मक तथा एकात्मक स्वरूप में निहित अन्तर को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है



(i) संघात्मक शासन में दोहरी शासन व्यवस्था होती है—एक केन्द्र स्तर पर तथा दूसरी राज्य स्तर पर, जबकि एकात्मक शासन में सम्पूर्ण शक्तियाँ केन्द्र में निहित होती हैं। प्रान्तों की शासन व्यवस्था केन्द्र के अधीन होती है। संघात्मक व्यवस्था में शक्तियाँ केन्द्र तथा राज्यों में विभाजित होती हैं। अमेरिका, बेल्जियम तथा भारत में संघीय व्यवस्था है। भारत में 28 राज्य हैं, जबकि अमेरिका में राज्यों की संख्या 50 है। ब्रिटेन तथा श्रीलंका में एकात्मक सरकारें हैं।



(ii) संघात्मक शासन व्यवस्था में लिखित तथा कठोर संविधान का होना अत्यावश्यक है, जैसा कि अमेरिका का संविधान है, जबकि एकात्मक शासन के लिए यह अनिवार्य शर्त नहीं है। ब्रिटेन में अलिखित तथा लचीला संविधान है।




(iii) संघात्मक शासन व्यवस्था में दोहरा संविधान तथा दोहरी नागरिकता का प्रावधान होता है, परन्तु भारत में संघीय शासन व्यवस्था होने के बावजूद भी इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान है। एकात्मक शासन में इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान होता है। 



(iv) संघात्मक शासन व्यवस्था में न्यायपालिका का स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष होना अति आवश्यक है, जबकि एकात्मक शासन के लिए यह आवश्यक नहीं है।



प्रश्न 4. भारत में पंचायती राज व्यवस्था का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।




 उत्तर- भारत में गाँवों के स्तर पर मौजूद स्थानीय शासन व्यवस्था को पंचायती राज के नाम से जाना जाता है। भारत में पंचायती राज का त्रिस्तरीय ढाँचा पाया जाता है। निचले स्तर पर ग्राम पंचायत, उसके ऊपर पंचायत समिति तथा सबसे ऊपर जिला परिषद् काम करती है।



1. ग्रामीण स्तर–ग्रामीण स्तर पर, प्रत्येक गाँव में एक ग्राम पंचायत होती है। यह एक तरह की परिषद् है जिसमें कई सदस्य और एक अध्यक्ष होता है। सदस्य वार्डों से चुने जाते हैं और उन्हें पंच कहा जाता है। अध्यक्ष को प्रधान या सरपंच कहा जाता है। इनका चुनाव गाँव में रहने वाले सभी वयस्क व्यक्ति करते हैं। यह पूरे पंचायत के लिए फैसला लेने वाली संस्था है। पंचायतों का काम ग्रामसभा की देख-रेख में चलता है। इसे ग्राम पंचायत का बजट पास करने और इसके काम-काज की समीक्षा के लिए साल में कम-से-कम दो या तीन बार बैठक करनी होती है।



2. पंचायत समिति- कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है। इसे मंडल या प्रखंड स्तरीय पंचायत भी कह सकते हैं। इसके सदस्यों का चुनाव उस इलाके में सभी पंचायत सदस्य करते हैं।



3. जिला परिषद्- किसी जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद् का गठन होता है। जिला परिषद् के अधिकांश सदस्यों का चुनाव होता है। जिला परिषद् में उस जिले से लोकसभा और विधानसभा के लिए चुने गए सांसद और विधायक तथा जिला स्तर की संस्थाओं के कुछ अधिकारी भी सदस्य के रूप में होते हैं। जिला परिषद् का प्रमुख इस परिषद् का राजनीतिक प्रधान होता है।





प्रश्न 5. भारतीय संघ में केन्द्र-राज्य सम्बन्धों का वर्णन कीजिए| 



 उत्तर- केन्द्र-राज्य संबंध-सत्ता की साझेदारी की संवैधानिक व्यवस्था वास्तविकता में कैसा रूप लेगी यह ज्यादातर इस बात पर निर्भर करता है कि शासक दल और नेता किस तरह इस व्यवस्था का अनुसरण करते हैं। काफी समय तक हमारे यहाँ एक ही पार्टी का केन्द्र और अधिकांश राज्यों में शासन रहा। इसका व्यावहारिक मतलब यह हुआ कि राज्य सरकारों ने स्वायत्त संघीय इकाई के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं किया। जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें रहीं तो केन्द्र सरकार ने राज्यों के अधिकारों की अनदेखी करने की कोशिश की। उन दिनों केन्द्र सरकार अक्सर संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करके विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को भंग कर देती थी। यह संघवाद की भावना के प्रतिकूल काम था।



1990 के बाद से यह स्थिति काफी बदल गई। इस अवधि में देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। यही दौर केन्द्र में गठबंधन सरकार की शुरुआत का भी था। चूँकि किसी एक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिए प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सरकार बनानी पड़ी। इससे सत्ता में साझेदारी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता का आदर करने की नई संस्कृति पनपी। इस प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले से भी बल मिला। इस फैसले के कारण राज्य सरकार को मनमाने ढंग से भंग करना केन्द्र सरकार के लिए मुश्किल हो गया। इस प्रकार आज संघीय व्यवस्था के तहत सत्ता की साझेदारी संविधान लागू होने के तत्काल बाद वाले दौर की तुलना में ज्यादा प्रभावी है।




यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 12 लोकतंत्र और विविधता


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3.    लोकतंत्र और विविधता





याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु



1.एफ्रो अमेरिकन अश्वेत अमेरिकी या अश्वेत शब्द उन अफ्रीकी लोगों के वंशजों के लिए प्रयुक्त iहोता है जिन्हें 17वीं सदी से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक अमेरिका में गुलाम बनाकर लाया गया था।



2.अश्वेत शक्ति आंदोलन 1966 में शुरू हुआ और 1975 तक चलता रहा। नस्लवाद को लेकर इस आंदोलन का रवैया ज्यादा उग्र था। इसका मानना था कि अमेरिका से नस्लवाद मिटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने में भी हर्ज नहीं है।



3.नीदरलैंड में वर्ग और धर्म के बीच मेल दिखाई नहीं देता। वहाँ कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों में अमीर और गरीब हैं। परिणाम यह है कि उत्तरी आयरलैंड में कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटों के बीच भारी मारकाट चलती रही है पर नीदरलैंड में ऐसा नहीं होता।



4.उत्तरी आयरलैंड में 53 फीसदी आबादी प्रोटेस्टेंट हैं जबकि 44 फीसदी रोमन कैथोलिक हैं। कैथोलिकों का प्रतिनिधित्व नेशनलिस्ट पार्टियाँ करती हैं। प्रोटेस्टेंट लोगों का प्रतिनिधित्व यूनियनिस्ट पार्टियाँ करती हैं।



5.जर्मनी और स्वीडन जैसे देशों में समरूप समाज है। भारत काफी बड़ा देश है और इसमें अनेक समुदायों के लोग रहते हैं।



6.अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं तथा भेदभाव के शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है।



7.सामाजिक विभाजन अधिकांशतः जन्म पर आधारित होता है। किसी देश में सामाजिक विभिन्नताओं पर जोर देने की बात को हमेशा खतरा मानकर नहीं चलना चाहिए। लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और एक स्वस्थ राजनीति का लक्षण भी हो सकता है।





महत्त्वपूर्ण शब्दावली



नस्लभेद –किसी देश या समाज में नस्ल के आधार पर कुछ लोगों को नीचा या हीन समझना नस्लभेद कहलाता है।



रंगभेद - रंग के आधार पर भेदभाव करना अर्थात् जहाँ श्वेत और अश्वेत लोग रहते थे वहाँ अश्वेतों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था; जैसे अफ्रीका में रंगभेद की नीति अपनाई गई और अश्वेतों को सभी अधिकारों से वंचित रखा गया। दक्षिण



समरूप समाज – एक ऐसा समाज जिसमें सामुदायिक, सांस्कृतिक या जातीय विभिन्नताएँ ज्यादा गहरी नहीं होतीं।



 विभाजित समाज–एक ऐसा समाज जिसमें सामुदायिक, सांस्कृतिक या जातीय विभिन्नताएँ बहुत गहरी होती हैं।






बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक





प्रश्न 1.काले दस्ताने और बँधी मुट्ठियाँ किसकी प्रतीक थीं?



(क) क्रोध की



(ख) शान्ति की



(ग) अश्वेत शक्ति की



(घ) खुशी की




उत्तर



(ग) अश्वेत शक्ति की




प्रश्न 2.अमेरिका सामाजिक विभाजन के कारण कौन थे? 



(क) अमीर और गरीब



(ख) आधुनिक तथा रूढ़िवादी 



(ग) श्वेत और अश्वेत



(घ) इनमें से कोई नहीं



उत्तर-



(ग) श्वेत और अश्वेत






प्रश्न 3.सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम कितनी चीजों पर निर्भर करता है?



(क) चार



(ख) सात



(ग) तीन



(घ) दो



उत्तर



(ग) तीन



प्रश्न 4.लोकतंत्र का सबसे अच्छा तरीका क्या है? 



(क) विविधता को समाहित करना



(ख) विभिन्नता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखना



(ग) समरूप समाज बनाने का प्रयास करना



(घ) उपर्युक्त सभी



उत्तर



(घ) उपर्युक्त सभी



प्रश्न 5.सामाजिक विभाजनों को सँभालने के संदर्भ में इनमें से कौन-सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?



(क) लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया राजनीति पर भी पड़ती है।



(ख) लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें ज़ाहिर करना संभव है।



(ग) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल करने का सबसेअच्छा तरीका है। 



(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।



उत्तर



(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक



प्रश्न 1.एफ्रो अमेरिकी से क्या तात्पर्य है?



उत्तर- एफ्रो अमेरिकी, अश्वेत शब्द उन अफ्रीकी लोगों के वंशजों के लिए प्रयुक्त होता है जिन्हें 17वीं सदी से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक अमेरिका में गुलाम बनाकर लाया गया था। 



प्रश्न 2. अश्वेत शक्ति आंदोलन से क्या तात्पर्य है?



उत्तर- अश्वेत शक्ति आंदोलन 1966 में उभरा और 1975 तक चलता रहा। नस्लवाद को लेकर इस आंदोलन का रवैया उग्र था। इसका मानना था कि अमेरिका से नस्लवाद मिटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने में भी हर्ज नहीं है।



प्रश्न 3. नस्लभेद से क्या तात्पर्य है?



उत्तर किसी देश या समाज में नस्ल के आधार पर कुछ लोगों को नीचा या हीन समझना नस्लभेद कहलाता है। 




 प्रश्न 4. रंगभेद से क्या तात्पर्य है?



उत्तर रंग के आधार पर भेदभाव करना अर्थात् जहाँ श्वेत और अश्वेत लोग रहते थे वहाँ अश्वेतों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था; जैसे—दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति अपनाई गई और अश्वेतों को सभी अधिकारों से वंचित रखा गया।



प्रश्न 5. यूगोस्लाविया का विभाजन क्यों हुआ?



उत्तर- धार्मिक और जातीय विभाजन के आधार पर शुरू हुई राजनीतिक होड़ में यूगोस्लाविया कई टुकड़ों में बँट गया।



प्रश्न 6. अमेरिका में नागरिक सुधार आंदोलन क्या था?



उत्तर- मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व में 1954 से नागरिक अधिकार आंदोलन को चलाया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य एफ्रो-अमेरिकी लोगों के विरुद्ध होने वाले नस्ल आधारित भेदभाव को मिटाना था। यह आंदोलन अहिंसक था।



प्रश्न 7. मैक्सिको ओलंपिक खेल 1968 में किन दो खिलाड़ियों ने अमेरिका में चल रहे नस्लवाद का विरोध किया था?



उत्तर- टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस ने।



प्रश्न 8. भारत में सामाजिक विभाजन का आधार बताइए। 



उत्तर- धार्मिक आधार तथा सांस्कृतिक विभिन्नताएँ भारत में सामाजिक विभाजन का आधार हैं।



प्रश्न 9. नागरिक अधिकार आन्दोलन किस देश से शुरू किया जाता था?



उत्तर- संयुक्त राज्य अमेरिका से।



प्रश्न 10. मार्टिन लूथर किंग की हत्या कब की गई?



उत्तर- 4 अप्रैल, 1968 को।




लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक



प्रश्न 1. लोकतंत्रीय देशों में सामाजिक विभाजन का क्या प्रभाव पड़ता है?



उत्तर- लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच प्रतिद्वन्द्विता का माहौल होता है। इस प्रतिद्वन्द्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है। अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगें तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखंडन की तरफ जा सकता है। ऐसा कई देशों में हो चुका है। किंतु सच्चाई यह है कि राजनीति में सामाजिक विभाजन की हर अभिव्यक्ति फूट पैदा नहीं करती। कई देशों में ऐसी पार्टियाँ हैं जो सिर्फ एक ही समुदाय पर ध्यान देती हैं और उसी के हित में राजनीति करती हैं पर इन सबकी परिणति देश के विखंडन में नहीं होती।



प्रश्न 2. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?



उत्तर- हर सामाजिक भिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती। सामाजिक अंतर लोगों के बीच बँटवारे का एक बड़ा कारण ज़रूर होता है किंतु यही अंतर कई बार अलग-अलग तरह के लोगों के बीच पुल का काम भी करती है। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं, भेदभाव के शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है। जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे एक सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक



प्रश्न 1.सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारकों की चर्चा करें।




उत्तर- सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम तीन कारकों पर निर्भर करता है



1. लोगों में अपनी पहचान के प्रति आग्रह की भावना- यदि लोग स्वयं को सबसे विशिष्ट और अलग मानने लगते हैं तो उनके लिए दूसरों के साथ तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल हो जाता है। यदि लोग अपनी बहुस्तरीय पहचान के प्रति सचेत हैं और उन्हें राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा या सहयोगी मानते हैं तब कोई समस्या नहीं होती; जैसे-बेल्जियम के लोगों में भाषायी विभिन्नता के बावजूद वे अपने को बेल्जियाई ही मानते हैं। इससे उन्हें देश में साथ-साथ रहने में मदद मिलती है। भारत में भी लोग स्वयं को पहले भारतीय मानते हैं फिर किसी प्रदेश, क्षेत्र या धार्मिक, सामाजिक समूह का सदस्य।



2. राजनीतिक दलों की भूमिका- दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है कि किसी समुदाय की माँगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं। संविधान की सीमाओं में आने वाली और दूसरे समुदाय को नुकसान न पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना आसान है। श्रीलंका में केवल सिंहलियों के लिए ही काम करने की नीति तमिल समुदाय की पहचान और हितों के खिलाफ थी।



3. सरकार का रुख- सरकार इन माँगों पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, यह महत्त्वपूर्ण है। यदि शासन सत्ता में साझेदारी करने को तैयार हो और अल्पसंख्यक समुदाय की उचित माँगों को पूरा करने का प्रयास ईमानदारी से किया जाए तो सामाजिक विभाजन मुल्क के लिए खतरा नहीं बनते। यदि शासन राष्ट्रीय एकता के नाम पर किसी ऐसी माँग को दबाना शुरू कर देता है तो अक्सर उल्टे और नुकसानदेह परिणाम ही निकलते हैं। ताकत के दम पर एकता बनाने की कोशिश विभाजन की ओर ले जाती है।



इस प्रकार लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और यह एक स्वस्थ राजनीति का लक्षण भी हो सकता है। राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजनों की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों के बीच संतुलन पैदा करने का काम भी करती है। इस स्थिति में लोकतंत्र मज़बूत ही होता है।





प्रश्न 2. सामाजिक विभाजन किस तरह से राजनीति को प्रभावित करते हैं? दो उदाहरण भी दीजिए।




उत्तर- सामाजिक विभाजन और राजनीति का मेल काफी खतरनाक और विस्फोटक हो सकता है। लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक दलों में प्रतिद्वन्द्विता का माहौल होता है। इस प्रतिद्वन्द्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है। यदि राजनीतिक दल इन विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगें तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल जाएगा। ऐसा कई देशों में हो चुका है, जैसे- आयरलैंड इसका एक उदाहरण है। यह ग्रेट ब्रिटेन का एक हिस्सा है। इसमें काफी समय तक हिंसा, जातीय कटुता रही है। यहाँ की मुख्य आबादी ईसाई है किंतु उनमें से 53 फीसदी आबादी प्रोटेस्टेंट है जबकि 44 फीसदी रोमन कैथोलिक। कैथोलिकों का प्रतिनिधित्व नेशनलिस्ट पार्टियाँ करती हैं। उनकी माँग है कि उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड गणराज्य के साथ मिलाया जाए। प्रोटेस्टेंट लोगों का प्रतिनिधित्व यूनियनिस्ट पार्टियाँ करती हैं जो ग्रेट ब्रिटेन के साथ ही रहने के पक्ष में हैं। 1998 में ब्रिटेन की सरकार और नेशनलिस्टों के बीच शांति समझौता हुआ, जिसमें दोनों पक्षों ने हिंसक आंदोलन बंद करने की बात की।




यूगोस्लाविया भी इसका एक उदाहरण है। वहाँ धार्मिक और जातीय विभाजन के आधार पर शुरू हुई राजनीतिक होड़ में यूगोस्लाविया कई टुकड़ों में बँट गया। इन उदाहरणों से लगता है कि किसी देश में यदि सामाजिक विभाजन है तो उसे राजनीति में अभिव्यक्त नहीं होने देना चाहिए। किंतु राजनीति में सामाजिक विभाजन की हर अभिव्यक्ति फूट पैदा नहीं करती। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के लिए सामाजिक विभाजनों की बात करना तथा विभिन्न समुदायों की उचित माँगों और जरूरतों को पूरा करने वाली नीतियाँ बनाना भी इसी कड़ी का हिस्सा है। अधिकतर देशों में मतदान के स्वरूप और सामाजिक विभाजनों के बीच एक प्रत्यक्ष संबंध दिखाई देता है। इसके तहत एक समुदाय के लोग आमतौर पर किसी एक दल को दूसरों के मुकाबले ज्यादा पसंद करते हैं और उसी को वोट देते हैं। कई देशों में ऐसी पार्टियाँ हैं जो सिर्फ एक ही समुदाय पर ध्यान देती हैं और उसी के हित में राजनीति करती हैं पर इन सबकी परिणति देश के विखंडन में नहीं होती।




प्रश्न 3. मार्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा मानवीय अधिकारों के सन्दर्भ में किए गए योगदान का वर्णन कीजिए।



उत्तर- मार्टिन लूथर किंग का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक रहे थे। उनके विचारों पर गांधी जी के विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा। अतः उन्होंने जीवन का उद्देश्य समाज में अन्याय, उत्पीड़न, शोषण तथा भेदभाव को समाप्त करना बना लिया। उन्होंने अमेरिकन समाज में जाति तथा रंग के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाई। उन्होंने सभी व्यक्तियों को बिना किसी जाति, धर्म, रंग तथा लिंग के भेदभाव के समान नागरिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक अधिकारों के लिए सत्याग्रह पर आधारित अहिंसात्मक आन्दोलन प्रारम्भ किया। मार्टिन लूथर किंग नागरिक अधिकारों के एक प्रमुख तथा शक्तिशाली नेता थे। उनके द्वारा पृथकतावाद तथा नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध चलाए गए अहिंसात्मक आन्दोलन का सामान्य जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा। रंगभेद तथा जातिभेद के विरुद्ध होटलों, बसों तथा सार्वजनिक स्थलों पर घरने तथा प्रदर्शन किए गए। इसमें विद्यार्थियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। अश्वेत लोगों के नामों को मतदाता सूची में सम्मिलित करने के लिए भी आन्दोलन प्रारम्भ किया गया। 1963 ई. में लूथर किंग के नेतृत्व में विज्ञान रैली का आयोजन किया गया। लूथर किंग के प्रयासों से नागरिक अधिकारों को कानूनी अधिकारों का स्तर प्राप्त हुआ। इसके पश्चात् अन्य नेताओं ने युद्ध विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ कर दिए। अश्वेत लोगों के आन्दोलन ने धीरे-धीरे उग्र रूप धारण कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि 1968 ई. में मार्टिन लूथर किंग की हत्या कर दी गई। तत्पश्चात् नवयुवकों तथा बुद्धिजीवियों के गुट ने वियतनाम के युद्ध के विरुद्ध एक शक्तिशाली युद्ध-विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। बाद में इस आन्दोलन ने विश्व-शान्ति, निःशस्त्रीयकरण तथा पर्यावरण संरक्षण आदि विषयों पर भी बल दिया।



मार्टिन लूथर किंग विश्व में मानवाधिकारों के मसीहा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। उनके द्वारा किए गए प्रयास सार्थक सिद्ध हुए। वे अमेरिका के इतिहास में एक चमकता हुआ सितारा हैं। उन्होंने सामाजिक न्याय पर आधारित समतावादी समाज की नींव रखी।



प्रश्न 4. सामाजिक भेदभाव का आशय क्या है? इसके मुख्य दो कारण बताइए। इसे समाप्त करने के दो उपाय भी बताइए। 



उत्तर- सामाजिक भेदभाव का आशय- सामाजिक भेदभाव से आशय समाज में जन्मजात या जैविक एवं सामाजिक रूप से उत्पन्न असमानताओं से है। यह मुख्यत: नस्ल, जाति, वर्ग, धर्म, भाषा, संस्कृति आदि पर आधारित होता है।



सामाजिक भेदभाव के दो कारण



1. जन्म पर आधारित- सामान्य तौर पर अपना समुदाय चुनना हमारे वश में नहीं होता। हम सिर्फ़ इस आधार पर किसी खास समुदाय के सदस्य हो सकते हैं कि हमारा जन्म उस समुदाय के एक परिवार में हुआ होता है। जन्म पर आधारित सामाजिक विभाजन का अनुभव हम अपने दैनिक जीवन में लगभग रोज़ करते हैं।



2. पसंद या चुनाव पर आधारित- सभी सामाजिक विभाजन जन्म के आधार पर नहीं होते। कुछ चीज़ें हमारी पसंद या चुनाव के आधार पर भी तय होती हैं। कई लोग अपने माँ-बाप और परिवार से अलग अपनी पसंद का भी धर्म चुन लेते हैं। हम सभी लोग पढ़ाई के विषय, पेशे, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियों का चुनाव अपनी पसंद से करते हैं। इन सबके आधार पर भी सामाजिक भेदभाव उत्पन्न होता है।



सामाजिक भेदभाव समाप्त करने के दो उपाय



(i) अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देना।



(ii) विभिन्न जातियों व सामाजिक समूहों द्वारा आपस में सामूहिक भोजन को बढ़ावा देना।




यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 13 जाति, धर्म और लैंगिक मसले का सम्पूर्ण हल


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4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले




याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु



1.श्रम के लैंगिक विभाजन में औरतें घर के अंदर का सारा काम काज: जैसे- खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना और बच्चों की देखरेख करना आदि करती हैं, जबकि मर्द घर के बाहर का काम करते हैं।


2.भारत में महिलाओं में साक्षरता की दर (जनगणना-2011) महिलाओं में 64.6 फीसदी और पुरुषों में 80.9 फीसदी है। 



3.भारत के ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या 10 लाख से ज्यादा है।



4.भारतीय राज्य ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अंगीकार नहीं किया है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैण्ड में ईसाई धर्म का

जो दर्जा रहा है उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता। 



5. लिंग और धर्म पर आधारित विभाजन तो दुनिया भर में है पर जाति पर आधारित विभाजन सिर्फ भारतीय समाज में ही देखने को मिलता है। सभी समाजों में कुछ सामाजिक असमानताएँ और एक न एक तरह का श्रम का विभाजन मौजूद होता है। 



6. भारत में लड़के की चाह के कारण शिशु लिंग अनुपात 919 (जनगणना-2011) रह गया है।


7.1961 के बाद से हिंदू, जैन और ईसाई समुदाय का हिस्सा मामूली रूप से घटा है, जबकि मुसलमान, सिख और बौद्धों का हिस्सा मामूली रूप से बढ़ा है। 


8.हर जाति में गरीब लोग हैं पर भारी दरिद्रता में जीवन बसर करने वालों में ज्यादा बड़ी संख्या सबसे निचली जातियों के लोगों की है। ऊँची जातियों में गरीबी का प्रतिशत सबसे कम है। इस मामले में भी पिछड़ी जातियों के लोग बीच की स्थिति में हैं।


9.ग्रामीण इलाकों से निकलकर लोगों का शहरों में बसना शहरीकरण कहलाता है।


महत्त्वपूर्ण शब्दावली


लैंगिक असमानता – लिंग के आधार पर स्त्री और पुरुषों में भेदभाव करना लैंगिक असमानता कहलाता है। लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरुष की जैविक बनावट नहीं बल्कि इन दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं।


नारीवादी आंदोलन – महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने, उनके लिए शिक्षा और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने की माँग करने और उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की माँग करने वाले आंदोलनों को नारीवादी आंदोलन कहा जाता है।


पारिवारिक कानून –विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से संबंधित कानून। हमारे देश में सभी धर्मों के लिए। अलग-अलग पारिवारिक कानून हैं।


सांप्रदायिकता–जब किसी संप्रदाय विशेष के लोग अपने संप्रदाय को श्रेष्ठ तथा दूसरे संप्रदायों को हीन समझें और इसके लिए उग्र रूप धारण करें तो यह सांप्रदायिकता बन जाती है।


 धर्मनिरपेक्षता – राज्य का अपना कोई धर्म न होना तथा सभी धर्मों को समान समझना धर्मनिरपेक्षता कहलाता है। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में रहने वाले नागरिक किसी भी धर्म को अपना सकते हैं, राज्य उसके धार्मिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।


लिंग अनुपात -प्रति हज़ार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या लिंग अनुपात कहलाती है।


 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार – किसी भी देश में रहने वाले सभी वयस्क व्यक्ति बिना किसी जाति, धर्म, भाषा या आर्थिक असमानता के आधार पर वोट डालने का अधिकार रखते हैं, इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहते हैं।


वोट बैंक – कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट हासिल नहीं कर सकती। यदि किसी जाति के ज्यादातर लोग उसी पार्टी को वोट दें तो वह उस पार्टी का वोट बैंक कहलाता है।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.महिलाओं की समाज में बराबरी की माँग के आंदोलन को क्या कहा जाता है ?


(क) महिला मुक्ति आंदोलन


(ख) नारीवादी आंदोलन


(ग) स्त्री शक्ति


(घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर-


(ख) नारीवादी आंदोलन


प्रश्न 2.भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात क्या है?


(क) बहुत ही कम (ग) एकसमान


(ख) बहुत अधिक (घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर-


(क) बहुत ही कम


प्रश्न 3. गांधीजी की मान्यता थी कि राजनीति स्थापित मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए।


(क) धर्म द्वारा


(ख) राजनीति द्वारा


(ग) अध्ययन द्वारा


(घ) शिक्षा द्वारा


उत्तर


(क) धर्म द्वारा


प्रश्न 4.धर्म ही सामाजिक समुदाय का काम करता है, यह मान्यता किस पर आधारित है?


(क) धर्म पर


(ख) सम्प्रदाय पर


(ग) समुदाय पर


(घ) सांप्रदायिकता पर


उत्तर


(घ) सांप्रदायिकता पर


प्रश्न 5. धर्मनिरपेक्ष राज्य में –




(क) धर्म का कोई स्थान नहीं (ख) एक राष्ट्र एक धर्म में विश्वास


(ग) केवल बहुसंख्यक वर्ग के धर्म को मान्यता


(घ) सभी धर्मों को समान समझना


उत्तर


(घ) सभी धर्मों को समान समझना


प्रश्न 6.जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है



(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अंतर


(ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी असमान भूमिकाएँ 


(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात


(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना



उत्तर

(ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ 


प्रश्न 7.भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है- 



(क) लोकसभा


(ख) विधानसभा


(ग) मंत्रिमण्डल


(घ) पंचायती राज की संस्थाएँ



उत्तर


(घ) पंचायती राज की संस्थाएँ



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. वर्ण-व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें एक जाति के लोग हर हाल में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी अन्य जाति समूह के लोग क्रमागत के रूप से उनके नीचे।


प्रश्न 2. पारिवारिक कानून से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से संबंधित कानून। हमारे देश में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पारिवारिक कानून हैं।



प्रश्न 3. नारीवादी आंदोलन क्या है?


उत्तर

महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने, उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की माँग करने और उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की माँग करने वाले आंदोलनों को नारीवादी आंदोलन कहा जाता है, श्रम का लैंगिक विभाजन कहलाता है।


प्रश्न 4.श्रम का लैंगिक विभाजन से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- काम के बँटवारे का वह तरीका जिसमें घर के अंदर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देखरेख में काम कराती हैं तथा बाहर का सार्वजनिक जीवन पुरुषों के कब्जे में रहता है, श्रम का लैंगिक विभाजन कहलाता हैं।


प्रश्न 5.लोकतंत्र के लिए जातिवाद घातक है। इसके दो कारण बताइए।


उत्तर- (i) जातिवाद ने देश के विभिन्न जातीय समूहों में आपसी संघर्ष और टकराव को जन्म दिया है जोकि राष्ट्रीय एकता के लिए एक बड़ा खतरा है। 


(ii) जातिवाद के आधार पर आरक्षण की राजनीति ने भी भारतीय लोकतंत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया है।


प्रश्न 6. सांप्रदायिकता क्या होती है?


उत्तर जब किसी संप्रदाय विशेष के लोग अपने संप्रदाय को श्रेष्ठ तथा दूसरे संप्रदायों को हीन समझें और उसके लिए उग्र रूप धारण करें. उसे सांप्रदायिकता कहते हैं।


प्रश्न 7. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- किसी भी देश में रहने वाले सभी वयस्क व्यक्ति बिना किसी जाति धर्म, भाषा या आर्थिक असमानता के आधार पर वोट डालने का अधिकार रखते हैं, इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहते हैं।


प्रश्न 8. यदि सत्तारूढ़ दल धर्म को शासन का आधार मानता है, तो उससे क्या हानि होगी? दो तर्क दीजिए।


उत्तर


(i) सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा मिलेगा।


(ii) बहुसंख्यकवाद तथा अल्पसंख्यकवाद को बढ़ावा मिलेगा।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. सांप्रदायिकता किस प्रकार एक समस्या बन जाती है?


उत्तर- किसी एक धर्म के लोगों का समूह संप्रदाय कहलाता है। जब यह संप्रदाय अपने-आप को श्रेष्ठ तथा अन्य संप्रदायों को हीन समझने लगे तो सांप्रदायिकता की समस्या उत्पन्न होती है। यह समस्या तब शुरू होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है। समस्या तब और विकराल हो जाती है जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशिष्टताओं के दावे और पक्षपोषण का रूप लेने लगती है तथा इसके अनुयायी दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं। ऐसा तब होता है जब एक धर्म के विचारों को दूसरों से श्रेष्ठ माना जाने लगता है और कोई एक धार्मिक समूह अपनी माँगों को दूसरे समूह के विरोध में खड़ा करने लगता है। इस प्रक्रिया में जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग किसी एक धर्म के पक्ष में करने लगता है तो स्थिति और विकट होने लगती है। राजनीति से धर्म को जोड़ना ही सांप्रदायिकता है।


प्रश्न 2.भारत में धर्मनिरपेक्ष शासन के लिए कौन-से प्रावधान किए गए हैं? 


उत्तर

भारत में धर्मनिरपेक्ष शासन के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं



(i) भारत राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है; जैसे-श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैंड में ईसाई धर्म का जो दर्जा रहा है उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।


(ii) संविधान सभी नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी देता है।


(iii) संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है।


 (iv) इसके साथ ही संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है; जैसे—यह छुआछूत की इजाजत नहीं देता।


प्रश्न 3. राजनीति किस प्रकार जाति व्यवस्था को प्रभावित करती है? या भारत में जाति प्रथा का राजनीति एवं समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?



उत्तर जाति प्रथा का राजनीति पर प्रभाव-जिस प्रकार जाति राजनीति को प्रभावित करती है उसी प्रकार राजनीति भी जाति पर प्रभाव डालती है। इस प्रकार जाति भी राजनीतिग्रस्त हो जाती है


(i) हर जाति खुद को बड़ा बनाना चाहती है। इसलिए पहले वह अपने समूह की जिन जातियों को छोटा या नीच बताकर अपने से बाहर रखना चाहती थी, अब वह उन्हें साथ लाने की कोशिश करती है। 


(ii) चूँकि एक जाति अपने दम पर सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकती इसलिए वह ज्यादा राजनीतिक ताकत पाने के लिए दूसरी जातियों या समुदायों को साथ लेने की कोशिश करती है।


(iii) राजनीति में नए किस्म की जातिगत गोलबंदी भी हुई है; जैसे-अगड़ा और पिछड़ा।


इस प्रकार राजनीति जाति व्यवस्था को प्रभावित करती है। 


प्रश्न 4. धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संविधान प्रावधान किए गए हैं?


उत्तर- धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं


 (i) भारतीय राज्य की तरफ से किसी भी धर्म को संरक्षण नहीं दिया गया है। यहाँ सभी धर्मों को समान माना जाता है।


(ii) धर्म के आधार पर किसी भी भेदभाव को अवैधानिक घोषित किया गया है।


(iii) संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है। उदाहरणार्थ, यह छुआछूत की इजाजत नहीं देता।


प्रश्न 5. चुनाव किस प्रकार जातियों का खेल बन गया है?


उत्तर- चुनाव निम्न प्रकार से जातियों का खेल बन गया है 


(i) चुनावों में जाति विशेष का वोट प्राप्त करने के लिए जाति के आधार पर प्रत्याशी चुने जाते हैं।


(ii) जाति विशेष को 'वोट बैंक' में बदलने के लिए उन्हें कई प्रकार से राजनैतिक दल अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करते हैं।


 (iii) राजनैतिक दल अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए जाति विशेष के दबंगों को अपने साथ रखते हैं। 


प्रश्न 6. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है


उत्तर भारत की विधायिकाओं में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है; जैसे- लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या कुल सांसदों की दस प्रतिशत भी नहीं है। राज्यों की विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 5 प्रतिशत से भी कम है। इस मामले में भारत दुनिया के अन्य देशों से बहुत नीचे है। भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई देशों से पीछे है। कभी-कभार कोई महिला प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बन भी जाए तो मंत्रिमंडलों में पुरुषों का ही वर्चस्व रहा है।


प्रश्न 7. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं।


 उत्तर- संविधान निर्माताओं ने सांप्रदायिकता से निपटने के लिए भारत के लिए धर्मनिरपेक्ष शासन का मॉडल चुना और इसके लिए संविधान में महत्त्वपूर्ण प्रावधान किए गए


(i) भारतीय राज्य ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अंगीकार नहीं किया है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैंड में ईसाई धर्म का जो दर्जा रहा है उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।


(ii) संविधान सभी नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार-प्रसार करने की आज़ादी देता है। 


(iii) संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है।


प्रश्न 8.दो कारण बताएँ कि क्यों सिर्फ़ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते?


उत्तर भारत में जाति व्यवस्था भी धर्म की तरह चुनावों को प्रभावित करती है किंतु केवल जाति के आधार पर ही चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते 


(i) देश के किसी भी एक संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं है। इसलिए हर पार्टी और उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए एक जाति और समुदाय से ज्यादा लोगों का भरोसा हासिल करना होता है।


(ii) कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट हासिल नहीं कर सकती। जब लोग किसी जाति विशेष को किसी एक पार्टी का 'वोट बैंक' कहते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि उस जाति के ज्यादातर लोग उसी पार्टी को वोट देते हैं।


इस प्रकार चुनाव में जाति की भूमिका महत्त्वपूर्ण तो होती है किंतु दूसरे कारण भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। मतदाताओं का लगाव जाति के साथ-साथ राजनीतिक दलों से भी होता है। सरकार के काम-काज के बारे में लोगों की राय और नेताओं की लोकप्रियता का चुनावों पर निर्णायक असर होता है।



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न1. लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए। 


उत्तर- हमारे समाज में लैंगिक असमानता प्राचीनकाल से पाई जाती है।


लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित है


1. श्रम का लैंगिक विभाजन-भारत में श्रम का लैंगिक विभाजन कर दिया गया है। इसके द्वारा तय किया गया कि महिलाएं केवल घर का काम-काज करेगी तथा पुरुष घर के बाहर सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य करेंगे। ऐसे में महिलाओं के श्रम का कोई मूल्य नहीं होता, जबकि आँकड़े बताते हैं कि महिलाएँ पुरुषों से अधिक काम करती है।



2. बालिकाओं के प्रति उपेक्षा—आज भी बालिकाओं की अनेक प्रकार से अवहेलना की जाती है। लड़के के जन्म पर आज भी खुशियाँ मनाई जाती हैं और लड़की का जन्म लेना अच्छा नहीं माना जाता। शिक्षा के क्षेत्र में भी उनके साथ भेदभाव किया जाता है। भारत में कुल 64.6 प्रतिशत महिलाएँ ही शिक्षित हैं क्योंकि माता-पिता लड़कों पर अधिक धन खर्च करते हैं किंतु लड़कियों की शिक्षा पर धन खर्च नहीं करना चाहते।


3. बाल विवाह- सरकार ने बाल विवाह के विरुद्ध कानून पास कर रखे हैं किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह की घटनाएँ अभी भी सुनने को मिलती हैं।


4. विधवा विवाह की आज्ञा न होना-आज भी भारत के बहुत-से भागों में यदि कोई महिला विधवा हो जाए तो उसे पुन: विवाह करने की आज्ञा नहीं दी जाती। ऐसी विधवाओं को नारकीय जीवन जीने के लिए छोड़ दिया जाता है।


5. भारत की विधायिकाओं में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत कम है। भारत इस मामले में अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई विकासशील देशों से पीछे है। इस प्रकार सार्वजनिक जीवन खासकर राजनीति में उनकी भूमिका नगण्य है।


इस प्रकार उक्त विभिन्न कारकों ने भारत में लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने का कार्य किया है।



प्रश्न 2. जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र कीजिए जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है 

या वे कमज़ोर स्थिति में होती हैं।


या 


अपने देश में महिलाओं को सामाजिक तथा राजनैतिक अधिकार दिये जाने के पक्ष में तीन तर्क दीजिए। क्या उन्हें किसी संवैधानिक संस्था में आरक्षण प्राप्त है?




उत्तर- हमारे देश में आज़ादी के बाद से महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। पर वे अभी भी पुरुषों से काफी पीछे हैं। हमारा समाज अभी भी पितृप्रधान है। औरतों के साथ अभी भी कई तरह के भेदभाव होते हैं—


(i) जनगणना 2011 के अनुसार महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी मात्र 64.6 फीसदी है, जबकि पुरुषों में 80.9 फीसदी। स्कूल पास करने वाली लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पाती है। अभी भी माँ-बाप अपने संसाधनों को लड़के-लड़की दोनों पर बराबर खर्च करने की जगह लड़कों पर ज्यादा खर्च करना पसंद करते हैं।


(ii) साक्षरता दर कम होने के कारण ऊँची तनख्वाह वाले और ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है। भारत में स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक काम करती हैं किंतु अक्सर उनके काम को मूल्यवान नहीं माना जाता।


(iii) काम के हर क्षेत्र में यानी खेल-कूद की दुनिया से लेकर सिनेमा के संसार तक और कल-कारखानों से लेकर खेत-खलिहानों तक महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है। भले ही दोनों ने समान काम किया हो।


(iv) भारत के अनेक हिस्सों में अभी भी लड़की को जन्म लेते ही मार दिया जाता है। अधिकांश परिवार लड़के की चाह रखते हैं। इस कारण लिंग अनुपात गिरकर प्रति हज़ार लड़कों पर 943 (शिशु लिंग अनुपात 919) रह गया है।


(v) भारत में सार्वजनिक जीवन में, खासकर राजनीति में महिलाओं की भूमिका नगण्य ही है। अभी भी महिलाओं को घर की चहारदीवारी के भीतर रखा जाता है।


महिलाओं के लिए पंचायती राज के अंतर्गत स्थानीय सरकारों और ई नगरपालिकाओं में एक-तिहाई पद आरक्षित हैं।



प्रश्न 3. विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण भी दीजिए।


या सांप्रदायिकता लोकतंत्र के लिए घातक है। दो कारण लिखिए।


या सांप्रदायिकता लोकतंत्र के लिए हानिकारक क्यों है? दो तर्क दीजिए।



उत्तर-सांप्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण कर सकती है 


(i) सांप्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में ही दिखती है। इनमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी-बनाई धारणाएँ और एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल हैं।


(ii) सांप्रदायिक भावना वाले धार्मिक समुदाय राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन किया जाता है तथा फिर धीरे-धीरे धर्म पर आधारित अलग राज्य की माँग करके देश की एकता को नुकसान पहुँचाया जाता है; जैसे— भारत में अकाली दल, हिंदू महासभा आदि दल धर्म के आधार पर बनाए गए। धर्म के आधार पर सिखों की खालिस्तान की माँग इसका उदाहरण है।


(iii) सांप्रदायिक आधार पर राजनीतिक दलों द्वारा धर्म और राजनीति का मिश्रण किया जाता है। राजनीतिक दलों द्वारा अधिक वोट प्राप्त करने के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया जाता है; जैसे भारत में भारतीय जनता पार्टी धर्म के नाम पर वोट हासिल करने की कोशिश करती है। बाबरी मस्जिद का मुद्दा इसका उदाहरण है।


(iv) कई बार सांप्रदायिकता सबसे गंदा रूप लेकर संप्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार कराती है। विभाजन के समय भारत और पाकिस्तान में भयानक सांप्रदायिक दंगे हुए थे। आजादी के बाद भी बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई है। 1984 के हिंदू-सिख दंगे इसका प्रमुख उदाहरण हैं।


प्रश्न 4. बताइए कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं?


उत्तर- आधुनिक भारत में जाति की संरचना और जाति व्यवस्था में भारी बदलाव आया है। किंतु फिर भी समकालीन भारत से जाति प्रथा विदा नहीं हुई है। जातिगत असमानता के कुछ पुराने पहलू अभी भी बरकरार हैं


(i) अभी भी ज्यादातर लोग अपनी जाति या कबीले में ही शादी करते हैं।


(ii) संवैधानिक प्रावधान के बावजूद छुआछूत की प्रथा अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।


(iii) जाति व्यवस्था के अंतर्गत कुछ जातियाँ लाभ की स्थिति में रहीं तथा कुछ को दबाकर रखा गया। इसका प्रभाव आज भी नजर आता है। यानी ऊँची जाति के लोगों की आर्थिक स्थिति सबसे अच्छी है व दलित तथा आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सबसे खराब है।


(iv) हर जाति में गरीब लोग हैं पर गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वालों में अधिक संख्या निचली जातियों के लोगों की है। ऊँची जातियों में गरीबी का प्रतिशत सबसे कम है।


(v) आज सभी जातियों में अमीर लोग हैं पर यहाँ भी ऊँची जाति वालों का अनुपात बहुत ज्यादा है और निचली जातियों का बहुत कम।



(vi) जो जातियाँ पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र में आगे थीं, आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में भी उन्हीं का बोलबाला है। जिन जातियों को पहले शिक्षा से वंचित रखा जाता था, उनके सदस्य अभी भी पिछड़े हुए हैं। आज भी जाति आर्थिक हैसियत के निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं।


प्रश्न 5. राजनीति में जाति किस प्रकार अनेक रूप ले सकती है? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।


उत्तर


राजनीति में जाति


सांप्रदायिकता की तरह जातिवाद भी इस मान्यता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है। इस चिंतन पद्धति के अनुसार एक जाति के लोग एक स्वाभाविक सामाजिक समुदाय का निर्माण करते हैं और उनके हित एक जैसे होते हैं तथा दूसरी जाति के लोगों से उनके हितों का कोई मेल नहीं होता।


जैसा कि हमने सांप्रदायिकता के मामले में देखा है, यह मान्यता हमारे अनुभव से पुष्ट नहीं होती। हमारे अनुभव बताते हैं कि जाति हमारे जीवन का एक पहलू  जरूर है लेकिन यही एकमात्र या सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण पहलू नहीं है। राजनीति में जाति अनेक रूप ले सकती है -


(i) जब पार्टियाँ चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करती हैं तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखती हैं। ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल जाए। जब सरकार का गठन किया जाता है, तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों और कबीलों के लोगों का उचित जगह दी जाए।


(ii) राजनीतिक पार्टियाँ और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए। जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं। कुछ दलों को कुछ जातियों के मददगार और प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।


(iii) सार्वभौम वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति-एक वोट की व्यवस्था ने राजनीतिक दलों को विवश किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने और लोगों को गोलबंद करने के लिए सक्रिय हों। इससे उन जातियों के लोगों में नयी चेतना पैदा हुई जिन्हें अभी तक छोटा और नीच माना जाता था।




यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 14 जन-संघर्ष और आंदोलन 


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5    जन-संघर्ष और आंदोलन




याद रखने योग्य बिन्दु




1.नेपाल लोकतंत्र की तीसरी लहर' के देशों में एक है जहाँ लोकतंत्र 1990 के दशक में कायम हुआ। नेपाल में राजा औपचारिक रूप से राज्य का प्रधान बना रह लेकिन वास्तविक सत्ता का प्रयोग जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथों में था।


2.फरवरी 2005 में राजा ज्ञानेंद्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया। अप्रैल 2006 में हुए आंदोलन क लक्ष्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर दोबारा जनता के हाथों में सौंपना था।


3.संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने एक 'सेवेन पार्टी अलायंस' (सप्तदलीय गठबंधन-एस.पी.ए.) बनाया और नेपाल की राजधानी काठमांडू में चार

दिन के 'बंद' का आह्वान किया।


4. 24 अप्रैल, 2006 अल्टीमेटम का अंतिम दिन था। इस दिन राजा बाध्य होकर तीनों माँगों को मान लिया। एस.पी.ए. ने गिरिजा प्रसाद कोईराला को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री चुना। संसद पुनः बहाल हुई और इसने अपनी बैठक में कानून पारित किए।


5.  2008 में राजतंत्र के खत्म होने पर नेपाल संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बना तथा 2015 में यहाँ एक नये संविधान को अपनाया गया।


6.बोलिविया लातिनी अमेरिका का एक गरीब देश है।


7.सरकार ने कोचबंबा शहर में जलापूर्ति के अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कंपनी को बेच दिए। इस कंपनी ने आनन-फानन में पानी की कीमत में चार गुना इजाफा कर दिया।


8.अप्रैल 2000 में हुई हड़ताल के कारण सरकार ने 'मार्शल लॉ' लगा दिया। लेकिन, जनता की ताकत के आगे बहुराष्ट्रीय कंपनी के अधिकारियों को शहर छोड़कर भागना पड़ा। सरकार को आंदोलनकारियों की सारी माँगें माननी पड़ी। बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ किया गया करार रद्द कर दिया गया और जलापूर्ति दोबारा नगरपालिका को सौंपकार पुरानी दरें कायम कर दी गई। इस आंदोलन को 'बोलिविया के जलयुद्ध के नाम से जाना गया।


9.सन् 2006 में बोलिविया में सोशलिस्ट पार्टी को सत्ता हासिल हुई।




महत्त्वपूर्ण शब्दावली 




माओवादी- चीनी-क्रांति के नेता माओ की विचारधारा को मानने वाले साम्यवादी। माओवादी, मजदूरों और किसानों के शासन को स्थापित करने के लिए सशस्त्र क्रांति के जरिए सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं। 


दबाव-समूह – दबाव-समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं। 



 बामसेफ- 'बामसेफ' (बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाइज फेडरेशन—BAMCEF) मुख्यतया सरकारी कर्मचारियों का संगठन है जो जातिगत भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाता है।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. लोकतंत्र की जड़ें किस प्रकार मजबूत होती हैं?


(क) परस्पर सामंजस्य द्वारा


(ख) जन-विरोधी गतिविधियों द्वारा


 (ग) जन-आंदोलनों द्वारा


(घ) धरना प्रदर्शन द्वारा


उत्तर-


(ग) जन-आंदोलनों द्वारा


प्रश्न 2. आंदोलन जनता की …...भागीदारी पर निर्भर होते हैं। 


(क) दबाव-समूह


(ख) बंद हड़ताल


(ग) विरोध


(घ) स्वतः स्फूर्त


उत्तर-


(क) दबाव-समूह


प्रश्न 3. दबाव-समूह सरकारी नीतियों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?


(क) संगठन द्वारा


(ग) नियंत्रण द्वारा


(ख) एकजुटता द्वारा


 (घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर-


(ख) एकजुटता द्वारा


प्रश्न 4. नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है?


(क) सतलुज बाँध


(ख) हीराकुड बाँध


(ग) नागार्जुन बाँध


(घ) सरदार सरोवर बाँध


उत्तर-


(घ) सरदार सरोवर बाँध



प्रश्न 5. नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना हुई



(क) 2005 में 


(ख) 2006 में


 (ग) 2008 में 


(घ) 2015 में 


उत्तर- (ग) 2008 में



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. नेपाल की राजधानी कौन-सी है?


उत्तर- नेपाल की राजधानी काठमाण्डू है।


प्रश्न 2. एस.पी.ए. ने किसको नेपाल का प्रधानमंत्री चुना?


 उत्तर- एस.पी.ए. ने गिरिजाप्रसाद कोईराला को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री चुना।


प्रश्न 3. बहुराष्ट्रीय कंपनी ने जलमूल्य कितना बढ़ा दिया?


उत्तर- बहुराष्ट्रीय कंपनी ने जलमूल्य में चार गुना वृद्धि कर दी।


प्रश्न 4. सन् 2006 में बोलिविया में किसे सत्ता प्राप्त हुई?


उत्तर- सन् 2006 में बोलिविया में "सोशलिस्ट पार्टी" को सत्ता प्राप्त हुई।


प्रश्न 5. जन-आंदोलन किस पर निर्भर होते हैं?


उत्तर- जन-आंदोलन अथवा जन-संघर्ष जनता की स्वतः स्फूर्त भागीदारी पर निर्भर होते हैं।


प्रश्न 6. असम गण परिषद् क्या है?


उत्तर- विदेशी लोगों के विरुद्ध छात्रों का असम आंदोलन असमगण परिषद् में परिवर्तित हो गया।



प्रश्न 7. भारत के लोकतंत्र को दबाव-समूह किस प्रकार प्रभावित करते हैं? 


उत्तर- दबाव-समूह के आंदोलन राजनीति में भागीदारी तो नहीं करते अपितु उसे प्रभावित अवश्य करते हैं।


प्रश्न 8. साधारण जनता प्रशासन से किस प्रकार अपनी आवश्यकताएँ बता सकती है? 


उत्तर- साधारण जनता की प्रशासन से अनेक अपेक्षाएँ तथा आकांक्षाए होती हैं, जिन्हें वह आंदोलनों द्वारा व्यक्त करती है।


प्रश्न 9. संतुलित दृष्टिकोण क्या है?


उत्तर- सत्तारूढ़ दल द्वारा दबाव समूह आंदोलन को लोकतंत्र के आलोक में समझना तथा समाधान करना, संतुलित दृष्टिकोण है। 


प्रश्न 10. दबाव समूहों का निर्माण किस प्रकार होता है?


उत्तर- किसी विशेष समूह के हितार्थ अथवा किसी विशेष योजना के हितार्थ अथवा विरोध में जन-समूहों द्वारा संगठन कर सत्तासीन दल पर दबाव बनाना, दवाब समूहों का निर्माण करना है।


प्रश्न 11. भारत के दो पड़ोसी देशों के नाम बताइए।


उत्तर- श्रीलंका और नेपाल।



प्रश्न 12. एस.पी.ए. से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर एक सप्तदलीय गठबंधन एस.पी.ए. तैयार किया। एस.पी.ए. (सेवेन पार्टी अलांइस) सप्तदलीय

गठबंधन है।


प्रश्न 13. सामान्य नागरिक सत्ता में किस प्रकार की भागीदारी करते हैं?


उत्तर- सामान्य नागरिक विवेकपूर्ण निर्णय लेकर मतदान कर सत्ता में जागरूक भागीदारी कर सकते हैं।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1."नर्मदा बचाओ" आंदोलन क्या है?


उत्तर- भारत में नर्मदा बचाओ आंदोलन एक विशिष्ट मुद्दे को लेकर किया गया आंदोलन है। इस आंदोलन का उद्देश्य नर्मदा नदी पर बाँध बनने को रोकना था। शनैः शनैः इस आंदोलन का रूप व्यापक होता गया।


प्रश्न 2. वर्ग विशेषी हित-समूह क्या है?


उत्तर- किसी एक वर्ग के विशेष वर्ग के हित में दबाव बनाने वाले समूह को वर्ग विशेषी हित-समूह कहते हैं। वर्ग विशेषी हित-समूह भी महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वाह करते हैं।


प्रश्न 3.दबाव समूह और राजनीतिक दल में दो अन्तर बताइए। 


या

दबाव समूह और राजनीतिक दल में क्या अन्तर है? समझाकर लिखिए। दबाव समूह का एक उदाहरण दीजिए।


या राजनैतिक दल और दबाव समूह का अन्तर लिखिए। किन्हीं तीन बिंदुओं पर प्रकाश डालिए।


उत्तर


दबाव समूह     राजनीतिक दल


दबाव समूह

राजनीतिक दल

(i) ये चुनाव नहीं लड़ते हैं।

(i) ये चुनाव लड़ते हैं।


(ii)इनका प्रत्यक्ष उद्देश्य राजनीतिक सत्ता पर नियन्त्रण करने का नहीं होता।


(ii)इनका प्रत्यक्ष उद्देश्य राजनीतिक सत्ता पर नियन्त्रण करने का होता है।

(iii)दबाव समूहों का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं।


(iii)राजनीतिक दल समूह के कल्याण के लिए कुछ नीतियों तथा कार्यक्रमों पर समझौता करते हैं।




(iv)उदाहरण नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन, ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन तथा जमात-ए-इस्लामिक आदि।

(iv) उदाहरण – (भारतीय जनता पार्टी) भाजपा, सोशलिस्ट पार्टी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आदि।





दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6. अंक


प्रश्न 1. दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?



उत्तर- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, हमारी प्रत्येक गतिविधियों का समाज पर प्रभाव पड़ता है। हमारे द्वारा किए गए सामूहिक क्रियाकलाप यदि एक संगठन अथवा गतिविधि का रूप लेते हैं, तो उनका व्यापक रूप आंदोलन अथवा दबाव-समूह बन जाता है। इस प्रकार के समूह राजनीति को अनेक प्रकार से प्रभावित करते हैं—


#.आंदोलन तथा दबाव समूह अपने लक्ष्य प्राप्ति एवम् संबंधित गतिविधियों के लिए जनमानस का समर्थन तथा सहानुभूति प्राप्त करने हेतु भरसक प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार के समूह जन-संचार माध्यमों को भी प्रभावित करने की चेष्टा करते हैं, जिससे कि संचार माध्यमों द्वारा उनके आंदोलनों को अधिक लोकप्रियता प्राप्त हो सके।


#.दबाय समूह अधिकतर हड़ताल, धरना, प्रदर्शन तथा सरकारी कार्यों को बाधित करने के प्रयासों का आश्रय लेते हैं।



#.व्यापारी वर्ग अधिकृत व्यावसायिक “लाबिस्ट" नियुक्त करते हैं अथवा बहुमूल्य विज्ञापनों को प्रायोजित करते हैं। दबाव-समूह अथवा आंदोलनकारी समूह के कुछ व्यक्ति प्रशासन के परामर्श समितियों तथा अधिकारी निकायों में प्रतिभागिता करते हैं।



#.यद्यपि दबाव-समूह तथा जन-आंदोलन दलीय राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से प्रतिभागी नहीं होते किन्तु राजनीतिक दलों को वह प्रभावित करना चाहते हैं। इस प्रकार के समूह किसी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं होते, किन्तु उनका भी एक राजनीतिक पक्ष नहीं होता है, एक विचारधारा होती है। अत: अनेक रूपों में दबाव समूह तथा राजनीति एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।


#.अनेक कारणों से तो दबाव-समूहों का जन्म ही राजनीतिक दलों द्वारा होता है तथा कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में ही कार्यरत हैं। भारत के अनेक मजदूर-संगठन, छात्र-संगठन, कृषक आंदोलन या तो बड़े-बड़े राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए जाते हैं अथवा उनकी संबद्धता राजनीतिक दलों से किसी-न-किसी प्रकार होती है।


#.यदा-कदा इस प्रकार के आंदोलन राजनीतिक रूप में परिवर्तित भी हो जाते हैं। यथा असम में 1970 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने विदेशियों (बाहरी लोग) के विरोध में एक आंदोलन चलाया जिसकी परिणिति “असम गण परिषद्” के रूप में हुई।



#. अधिकांश दबाव-समूहों तथा आंदोलनों का राजनीतिक दलों से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। दोनों परस्पर विरोधी होते हैं। दोनों दलों के मध्य संवाद स्थापित रहता है तथा आपसी सामंजस्य की वार्ता जारी रहती है। राजनीतिक दलों के अधिकतर नवीन नेताओं का आविर्भाव दबाव समूह तथा आंदोलनकारी समूहों से होता है।


प्रश्न 2. आंदोलन तथा दबाव-समूहों के प्रभाव किस प्रकार सकारात्मक होते हैं?


उत्तर- जन-आंदोलन के विषय अधिक सकारात्मक होते हैं। प्रथम दृष्टव्य के आधार पर तो ऐसा आभास होता है कि किसी एक वर्ग के हितों की रक्षा करने वाले दबाव-समूह लोकतंत्र के लिए अहितकर हैं। लोकतंत्र के अंतर्गत किसी एक वर्ग की नहीं अपितु सभी हितों की सुरक्षा होनी चाहिए अथवा ऐसा भी प्रतीत हो सकता है कि इस प्रकार के लोग सत्ता का उपयोग तो करना चाहते हैं, किन्तु उत्तरदायित्व की भावना से बचना भी चाहते हैं। चुनावी काल में सभी राजनीतिक दलों को जनता का सामना करना पड़ता है लेकिन इस प्रकार के समूह जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होते। संभव है कि दबाव-समूहों को जन समर्थन तथा धनार्जन की सुविधा प्राप्त न हो लेकिन यह समूह अपने प्रभावपूर्ण विचारों के बल पर सत्तारूढ़ दल का तथा जनमानस का दृष्टिकोण परिवर्तित करने में सफल हो जाते हैं, किन्तु यदि कुछ संतुलित दृष्टिकोण अपनाएँ तो स्पष्ट होगा कि जड़ें और अधिक सुदृढ़ हुई हैं। प्रशासन के ऊपर दबाव डालना कोई अहितकर गतिविधि नहीं अपितु लोकतांत्रिक प्रक्रिया के आधार पर एक सर्वमान्य अधिकार है। सामान्यतः प्रशासन धनिक वर्ग तथा शक्तिशाली वर्ग के प्रभाव में आ जाता है। ऐसी स्थिति में जनसाधारण के हितों से संबंधित आंदोलन, दबाव-समूह इस अनुचित दबाव के प्रतिकार में उपयोगी भूमिका का निर्वाह करते हैं तथा जनसाधारण की समस्याओं तथा आवश्यकताओं से सरकार को परिचित कराते हैं। इस प्रकार इनकी भूमिका सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।



यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 15 लोकतंत्र के परिणाम का सम्पूर्ण हल



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6         लोकतंत्र के परिणाम


याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.लोकतंत्र शासन की अन्य व्यवस्थाओं से बेहतर है। तानाशाही और अन्य व्यवस्थाएँ ज्यादा दोषपूर्ण हैं। 



2.लोकतांत्रिक शासन में नागरिकों में समानता, व्यक्ति की गरिमा कायम रहना, बेहतर फैसले किये जाते हैं, टकरावों को रोकता है, गलतियों को सुधारने की गुंजाइश होती है।


3.लोकतंत्र में सबसे बड़ी चिंता होती है कि लोगों का अपना शासक चुनने का अधिकार और शासकों पर नियंत्रण बरकरार रहे। 


4.लोकतांत्रिक व्यवस्था राजनीतिक समानता पर आधारित होती है। प्रतिनिधियों के चुनाव में हर व्यक्ति का वजन बराबर होता है। व्यक्तियों को राजनीतिक


5.क्षेत्र में परस्पर बराबरी का दर्जा तो मिल जाता है लेकिन इसके साथ-साथ हम आर्थिक समानता को भी बढ़ता हुआ पाते हैं।


6.लोकतंत्र का सीधे-सीधे अर्थ बहुमत की राय से शासन करना नहीं है। बहुमत को सदा ही अल्पमत का ध्यान रखना होता है। व्यक्ति की गरिमा और आजादी के मामले में लोकतांत्रिक व्यवस्था किसी भी अन्य शासन प्रणाली से काफी आगे है। 



7.बहुमत के शासन का अर्थ धर्म, नस्ल अथवा भाषायी आधार के बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं होता। बहुमत के शासन का मतलब होता है कि हर फैसले या

चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं या बहुमत में हो सकते हैं।




महत्त्वपूर्ण शब्दावली


 लोकतंत्र – एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। ये प्रतिनिधि जनता के हितों को ध्यान में रखकर कानून बनाते हैं तथा जनता की इच्छा तक अपने पद पर रहते हैं।


वैध शासन-वह शासन व्यवस्था जो कुछ नियमों और कानूनों के आधार पर काम करें।


तानाशाही एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें एक व्यक्ति या एक दल का शासन हो। उसी का आदेश कानून माना जाए, लोगों को अपने विचार व्यक्त करने, अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार न हो यह व्यवस्था तानाशाही कहलाती है।


राजनीतिक समानता लोकतंत्र में सभी व्यक्ति समान रूप से प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं तथा सभी को राजनीतिक क्षेत्र में परस्पर बराबर का दर्जा मिलता है। इसे राजनीतिक समानता कहते हैं।


आर्थिक समानता—किसी भी देश में होने वाली आय का वितरण इस प्रकार हो जिससे सभी को उसका बराबर लाभ मिले और सभी लोग बेहतर जीवन गुजार सकें। इस स्थिति को आर्थिक समानता कहते हैं।


आर्थिक असमानता—किसी देश की कुल आय का अधिकांश भाग मुट्ठी भर लोगों के पास हो तथा समाज के अन्य लोग जीवन बसर करने के लिए काफी कम साधन प्राप्त कर सकें तथा उनकी आमदनी भी कम हो, यह स्थिति आर्थिक असमानता कहलाती है।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.लोकतंत्र शासन अन्य व्यवस्थाओं से है।


(क) समान्तर


(ख) बेहतर


(ग) बेकार


(घ) कुछ नहीं


उत्तर- (ख) बेहतर


प्रश्न 2.विश्व के सौ से भी अधिक देश दावा करते हैं।


(क) लोकतंत्र का


(ख) राजतंत्र का


(ग) तानाशाही का


(घ) किसी का नहीं


उत्तर-


(क) लोकतंत्र का


प्रश्न 3.लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को अधिकार प्राप्त है


(क) स्वयं राज करने का


(ख) शासन-व्यवस्था ठीक करने का


(ग) अपनी सरकार चुनने का


(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं


उत्तर


(ग) अपनी सरकार चुनने का


प्रश्न 4. 'मानवाधिकार दिवस' कब मनाया जाता है?



(क) 10 दिसम्बर


(ख) 5 सितम्बर


(ग) 14 नवम्बर


(घ) 15 अगस्त


उत्तर


(क) 10 दिसम्बर


प्रश्न 5.लोकतांत्रिक सरकार में सभी नागरिक….. हैं।


(क) एकसमान


(ख) अलग-अलग


(ग) अच्छे


(घ) बुरे



उत्तर

(क) एकसमान


प्रश्न 6.शिकायतों का बना रहना लोकतंत्र की ….का प्रतीक है।


(क) असफलता


(ख) सफलता


(ग) आजादी


(घ) खुशी


उत्तर- (ख) सफलता



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. लोकतंत्र का अर्थ बताइए।


उत्तर- एक ऐसी शासन-व्यवस्था जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। ये प्रतिनिधि जनता के हितों को ध्यान में रखकर कानून बनाते हैं तथा जनता की इच्छा तक अपने पद पर रहते हैं।


प्रश्न 2. पारदर्शिता से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- लोकतांत्रिक शासन में यदि कोई नागरिक यह जानना चाहे कि फैसले लेने में नियमों का पालन हुआ है या नहीं तो वह इसका पता कर सकता है। उसे यह न सिर्फ जानने का अधिकार है बल्कि उसके पास उसके साधन भी उपलब्ध हैं। इसे पारदर्शिता कहते हैं।


प्रश्न 3. तानाशाही शासन-व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- एक ऐसी शासन-व्यवस्था जिसमें एक व्यक्ति या एक दल का शासन हो। उसी का आदेश कानून माना जाए, लोगों को अपने विचार व्यक्त करने, अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार न हो, यह व्यवस्था तानाशाही कहलाती है।



प्रश्न 4. राजनीतिक समानता का अर्थ बताइए।


उत्तर- लोकतंत्र में सभी व्यक्ति समान रूप से प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं तथा सभी को राजनीतिक क्षेत्र में परस्पर बराबरी का दर्जा मिलता है। इसे राजनीतिक समानता कहते हैं।


प्रश्न 5. आर्थिक समानता का अर्थ बताइए।


उत्तर- किसी भी देश में होने वाली आय का वितरण इस प्रकार हो जिससे सभी को उसका बराबर लाभ मिले और सभी लोग बेहतर जीवन गुजार सकें। इस स्थिति को आर्थिक समानता कहते हैं।


प्रश्न 6.लोकतंत्र में सबसे बड़ी चिंता क्या होती है?


उत्तर- लोकतंत्र में सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि लोगों को अपना शासक चुनने का अधिकार होता है ताकि शासकों पर नियंत्रण बरकरार रहे।


प्रश्न 7. देश का आर्थिक विकास किन कारकों पर निर्भर करता है?


उत्तर-देश का आर्थिक विकास निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है


(i) देश की जनसंख्या का आकार।


(ii) वैश्विक स्थिति।


(iii) अन्य देशों से सहयोग।


प्रश्न 8.'कानून का शासन' किस शासन-व्यवस्था का नाम है?


उत्तर  लोकतंत्रात्मक शासन-व्यवस्था का।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1.किन्हीं चार तरीकों को स्पष्ट कीजिए, जिनमें लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ असमानता और गरीबी को कम करने में समर्थ रही हैं?


उत्तर- लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब देश में आर्थिक विकास तेज होता है तो ऐसी स्थिति में राजनीतिक समानता तो कायम रहती है लेकिन आर्थिक समानता कायम नहीं रह पाती। ऐसी स्थिति में सरकार अधिक आय वालों से कर के रूप में रकम वसूल करती है तथा गरीब और मध्यम वर्ग के लिए कई लोककल्याणकारी कार्य करती है; जैसे—सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल, जन-वितरण प्रणाली की दुकान तथा अन्य जन-सुविधाएँ उपलब्ध कराती है जिससे आर्थिक विषमता में कमी आती है।


असमानता और गरीबी कम करने के लिए किए गए उपाय निम्नलिखित हैं


 (i) गरीबों के लिए जनकल्याण योजनाएँ चलाना।


(ii) बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देना।


(iii) निर्धन छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करना।


(iv) निर्धन वृद्ध व्यक्ति को वृद्धावस्था पेंशन प्रदान करना।


प्रश्न 2."सैद्धांतिक रूप में लोकतंत्र को अच्छा माना जाता है, परंतु व्यवहार में इसे इतना अच्छा नहीं माना जाता।" इस कथन की पुष्टि तर्क सहित कीजिए।


उत्तर- लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही सरकार का गठन करते हैं। उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे जनता के अनुकूल और उनकी भावनाओं के अनुरूप शासन करें। लेकिन चुने हुए प्रतिनिधि जनता की उपेक्षा करने लगते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते। इसलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन-आंदोलन भी काफी देखने को मिलते हैं क्योंकि जनता अपना असंतोष जन-आंदोलन के माध्यम से दिखाती है। इसलिए पिछले 50 वर्षों से लगातार लोकतंत्र बहुत कम ही देशों में कायम रहा है।




प्रश्न 3.भारतीय लोकतंत्र की तीन बताइए।



उत्तर-भारतीय लोकतंत्र की तीन प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं


1. सरकार का निर्माण जन-निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा होता है और वे लोगों के प्रति उत्तरदायी होते हैं।


2. राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति के लिए एक से अधिक दलों के मध्य प्रतिस्पर्धा होती है।


3. चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर समय-समय पर होते हैं।


प्रश्न 4. लोकतंत्रीय व्यवस्थाएँ आर्थिक असमानताओं को कम क्यों नहीं कर पाई हैं?


उत्तर- लोकतंत्रीय व्यवस्था में हम आर्थिक असमानता को बढ़ा हुआ पाते हैं। मुट्ठी भर लोग आय और संपत्ति में अपने अनुपात से बहुत ज्यादा हिस्सा पाते हैं। समाज के सबसे निचले हिस्से के लोगों को जीवन-बसर करने के लिए काफी कम साधन मिलते हैं। उनकी आमदनी गिरती जा रही है। वास्तविक जीवन में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ आर्थिक असमानताओं को कम करने में ज्यादा सफल नहीं हो पाई हैं। हमारे मतदाताओं में गरीबों की संख्या काफी बड़ी है इसलिए कोई भी पार्टी उनके मतों से हाथ धोना नहीं चाहेगी। फिर भी लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकारें गरीबी के सवाल पर उतना ध्यान देने को तत्पर नहीं जान पड़तीं जितने की हम उनसे उम्मीद करते हैं। अनेक गरीब देशों के लोग अपनी खाद्य-आपूर्ति के लिए भी अब अमीर देशों पर निर्भर हो गए हैं।



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. भारत में लोकतांत्रिक सरकार नागरिकों की गरिमा और आजादी के लिए किस प्रकार प्रयत्नशील है?


उत्तर- व्यक्ति की गरिमा और आजादी के मामले में लोकतांत्रिक व्यवस्था किसी भी अन्य शासन-प्रणाली से काफी आगे है। प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ के लोगों से सम्मान पाना चाहता है। अकसर टकराव तभी पैदा होते हैं जब कुछ लोगों को लगता है कि उनके साथ सम्मान का व्यवहार नहीं किया गया। गरिमा और आजादी की चाह ही लोकतंत्र का आधार है। वैसे लोकतांत्रिक सरकारें सदा नागरिकों के अधिकारों का सम्मान नहीं करतीं फिर जो समाज लंबे समय गुलाम रहे हैं उनके लिए यह अहसास करना आसान नहीं है कि सभी व्यक्ति समान हैं।


दुनिया के अधिकांश समाज पुरुष-प्रधान रहे हैं। महिलाओं के लंबे संघर्ष के बाद यह माना जाने लगा है कि महिलाओं के साथ गरिमा और समानता का व्यवहार लोकतंत्र की जरूरी शर्त है। भारत में स्वतंत्रता के तुरंत बाद महिलाओं को भी पुरुषों के समान दर्जा देते हुए सभी आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार बिना किसी भेदभाव के दिए गए। स्त्रियों की साक्षरता सुधारने के लिए बहुत से स्कूल-कॉलेज खोले गए। पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण दिया गया। इस प्रकार महिलाओं की गरिमा के लिए बहुत-से काम किए गए। यही बात जातिगत असमानता पर भी लागू होती है। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था ने कमजोर और भेदभाव का शिकार हुई जातियों के लोगों को समान दर्जे और अवसर के दावे को बल दिया है। आज भी जातिगत भेदभाव और दमन के उदाहरण देखने को मिलते हैं पर इनके पक्ष में कानूनी या नैतिक बल नहीं मिलता। भारत में जातिगत भेदभाव दूर करने के लिए अस्पृश्यता कानून बनाया गया है जिसके द्वारा छुआछूत के व्यवहार का निषेध किया गया है। इसके अतिरिक्त सभी जातियों को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार दिए गए हैं। और पिछड़ी हुई जातियों को अपना उत्थान करने के, उन्हें और लोगों के बराबर लाने के लिए विशेषाधिकार दिए गए हैं। इस प्रकार भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था ने व्यक्ति की गरिमा और आजादी के लिए बहुत प्रयत्न किए हैं।



प्रश्न 2. लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करता है?


 या लोकतांत्रिक शासन प्रणाली से होने वाले कोई चार लाभ लिखिए।



उत्तर लोकतांत्रिक व्यवस्था उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करती है। निम्नलिखित तत्त्वों से इसे समझा जा सकता है


1. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव-सभी लोकतांत्रिक देशों में एक निश्चित अवधि के बाद चुनाव कराए जाते हैं। ये चुनाव निष्पक्ष होते हैं। सभी दल स्वतंत्र रूप से अपने उम्मीदवारों को खड़ा करते हैं और मतदाता अपनी इच्छानुसार किसी को भी चुन सकते हैं। ये प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं और जनता की इच्छा पर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं।


2. कानूनों पर खुली चर्चा- लोकतांत्रिक देशों में सरकार जो भी कानून बनाती है वह एक लंबी प्रक्रिया के बाद बनता है। उस पर पूरी बहस तथा विचार-विमर्श किया जाता है फिर उसे जनता के समक्ष रखा जाता है। इसलिए इस बात की संभावना होती है कि लोग उसके फैसलों को मानेंगे और वे ज्यादा प्रभावी होंगे।


3. सूचना का अधिकार - लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों को सरकार तथा काम-काज के बारे में जानकारी पाने का अधिकार प्राप्त है। यदि कोई नागरिक यह जानना चाहे कि फैसले लेने में नियमों का पालन हुआ है या नहीं तो वह इसका पता कर सकता है। उसे यह न सिर्फ जानने का अधिकार है बल्कि उसके पास इसके साधन भी उपलब्ध हैं।


4. जवाबदेह सरकार का गठन-लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक ऐसी सरकार का गठन होता है जो कायदे-कानून को मानती है और लोगों के प्रति जवाबदेह होती है। लोकतांत्रिक सरकार नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदार बनाने और खुद को उनके प्रति जवाबदेह बनाने वाली कार्यविधि भी विकसित कर लेती है। इस प्रकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था निश्चित रूप से अन्य शासनों से बेहतर है, यह वैध शासन-व्यवस्था है, इसलिए पूरी दुनिया में लोकतंत्र के विचार के प्रति समर्थन का भाव है।



प्रश्न 3. लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है?



उत्तर- लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अनेक तरह के सामाजिक विभाजनों को सँभालती हैं। इससे इन टकरावों के विस्फोटक या हिंसक रूप लेने का अंदेशा कम हो जाता है। कोई भी समाज अपने विभिन्न समूहों के बीच के टकरावों को स्थायी तौर पर खत्म नहीं कर सकता। इनके बीच बातचीत से सामंजस्य बैठाने का तरीका विकसित कर सकते हैं। सामाजिक अंतर, विभाजन और टकरावों को सँभालना निश्चित रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक बड़ा गुण है। इसके लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की दो शर्तों को पूरा करना होता है


(i) लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से शासन करना नहीं है। बहुमत को सदा ही अल्पमत का ध्यान रखना होता है। उनके साथ काम करने की जरूरत होती है तभी सरकार जन-सामान्य की इच्छा का प्रतिनिधित्व कर पाती है। बहुमत और अल्पमत की राय कोई स्थायी चीज नहीं होती।


(ii) बहुमत के शासन का अर्थ धर्म, नस्ल अथवा भाषायी आधार के बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं होता। बहुमत के शासन का मतलब होता है कि हर फैसले या चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं। लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र रहता है जब तक प्रत्येक नागरिक को किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बनने का मौका मिलता है।


प्रश्न 4. भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए किन्हीं चार आवश्यक दशाओं का वर्णन कीजिए।


उत्तर- भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक चार दशाएँ निम्नलिखित हैं—


1. निष्पक्ष प्रेस–लोकतंत्र की सफलता के लिए निष्पक्ष प्रेस का होना अति आवश्यक है। प्रेस दलों और पूँजीपतियों से स्वतन्त्र होनी चाहिए, ताकि वह सच्चे समाचार दे सके। स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए आवश्यक है कि प्रेस ईमानदार, निष्पक्ष और संकुचित साम्प्रदायिक भावनाओं से ऊपर हो।


2. गरीबी का अन्त-लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि गरीबी का अन्त किया जाये, जनता को भरपेट भोजन मिले और मजदूरों का शोषण न हो तथा समाज में आर्थिक समानता हो।


3. राजनीतिक दलों का आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होना–लोकतंत्र की सफलता में राजनीतिक दलों का विशेष हाथ होता है। राजनीतिक दल धर्म व जाति पर आधारित न होकर आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होने चाहिए।


4. नागरिकों का उच्च चरित्र - लोकतंत्र की सफलता के लिए नागरिकों का चरित्र ऊँचा होना चाहिए। नागरिकों में सामाजिक एकता की भावना होनी चाहिए और उन्हें प्रत्येक समस्या पर राष्ट्रीय हित से सोचना चाहिए। उच्च चरित्र का नागरिक अपना मत नहीं बेचता और न ही झूठी बातों का प्रचार करता है। वह उन्हीं बातों तथा सिद्धान्तों का साथ देता है, जिन्हें वह ठीक समझता है।




यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 16 लोकतंत्र की चुनौतियाँ


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7     लोकतंत्र की चुनौतियाँ


याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु




1. लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में सभी सुझाव या प्रस्ताव 'लोकतांत्रिक सुधार' या 'राजनीतिक सुधार' कहे जाते हैं। 



2.लोकतांत्रिक सुधार तो मुख्यतः राजनीतिक दल ही करते हैं। इसलिए राजनीतिक सुधारों का जोर मुख्यतः लोकतांत्रिक कामकाज को ज्यादा मजबूत बनाने पर होना चाहिए।


3.यह मान लेना समझदारी नहीं कि संसद कोई ऐसा कानून बना देगी जो हर राजनीतिक दल और सांसद के हितों के खिलाफ हो।


4.सबसे बढ़िया कानून वे हैं जो लोगों को लोकतांत्रिक सुधार करने की ताकत देते हैं। सूचना का अधिकार कानून लोगों को जानकार बनाने और लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने का अच्छा उदाहरण है। ऐसा कानून भ्रष्टाचार पर रोक लगाने तथा कठोर दंड का प्रावधान करने वाले मौजूदा कानूनों की मदद करता है।



5. उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्वेक्षण कराया और पाया कि ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर पदस्थ अधिकतर डॉक्टर अनुपस्थित थे। वे शहरों में रहते हैं, निजी प्रैक्टिस करते हैं और महीने में सिर्फ एक या दो बार अपनी नियुक्ति वाली जगह पर घूम आते हैं। गाँव वालों को साधारण रोगों के इलाज के लिए भी शहर जाना होता है।


महत्त्वपूर्ण शब्दावली


चुनौतियाँ-लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली वे बाधाएँ जिन्हें दूर किए बिना लोकतंत्र का विकास संभव नहीं होता।


लोकतांत्रिक व्यवस्था—यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके केंद्र में लोग हों अर्थात् लोगों के द्वारा बनाई सरकार, जो लोगों के हितों के लिए काम करेगी तथा लोगों की इच्छा तक ही बनी रहेगी।


 सांप्रदायिकता–जब किसी एक धर्म के लोग अपने-आपको दूसरे धर्मों से ऊपर समझते हैं तथा अपने धर्म के लिए दूसरे धर्मों को नीचा दिखाते हैं तो यह प्रवृत्ति सांप्रदायिकता कहलाती है। 


जातिवाद-जब समाज का मुख्य आधार जाति हो तथा एक जाति के लोग अपनी जाति को श्रेष्ठ तथा अन्य जातियों को हीन समझें तो यह स्थिति जातिवाद

कहलाती है।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.चुनौतियों से लोकतांत्रिक व्यवस्था


(ख) मजबूत होती है


(घ) व्यवस्थित होती है


(क) कमजोर होती है.


(ग) मजबूर होती है


उत्तर


(ख) मजबूत होती है


प्रश्न 2.राजनीति एक …...का क्षेत्र है।


(क) संभावनाओं 


(ख) विकल्पों


(ग) प्रयासों


(घ) ये सभी


उत्तर-


(क) संभावनाओं


प्रश्न 3. लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के विषयक सभी प्रस्ताव कहलाते हैं।


(क) लोकतांत्रिक सुधार


(ख) राजनीतिक सुधार


 (ग) (क) और (ख) दोनों 


(घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर-


(ग) (क) और (ख) दोनों




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1.धर्मनिरपेक्षता से क्या तात्पर्य है?



उत्तर राज्य का अपना कोई धर्म न हो तथा राज्य में रहने वाले व्यक्ति स्वेच्छा से कोई भी धर्म अपना सकें तथा राज्य धर्म के आधार पर नागरिकों में भेदभाव न करे तो यह स्थिति धर्म-निरपेक्षता कहलाती है।


प्रश्न 2.लोकतांत्रिक व्यवस्था क्या है?


उत्तर यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके केंद्र में लोग हों अर्थात् लोगों के द्वारा बनाई सरकार, जो लोगों के हितों के लिए काम करेगी तथा लोगों की इच्छा तक ही बनी रहेगी।


प्रश्न 3. एक अच्छे लोकतंत्र को किस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है?


उत्तर- जनता शासक को चुने और शासक जनता की भावनाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप काम करे।


प्रश्न 4. उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्वेक्षण के उपरांत क्या पाया?


उत्तर


उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्वेक्षण कराया और पाया कि ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पदस्थ अधिकतर डॉक्टर अनुपस्थित थे। वे शहरों में रहते हैं, निजी प्रैक्टिस करते हैं और महीने में सिर्फ एक या दो बार अपनी नियुक्ति वाली जगह पर घूम आते हैं। गाँव वालों को साधारण रोगों के इलाज के लिए भी शहर जाना होता है।



प्रश्न 5 चुनौतियों का अर्थ बताइए।


उत्तर


चुनौतियों का अर्थ है— लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली वे बाधाएँ जिन्हें दूर किए बिना लोकतंत्र का विकास संभव नहीं होता।


प्रश्न 6.लोकतंत्र के लिए किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख करें।


उत्तर- (i) बुनियादी आधार बनाने की चुनौती


(ii) विस्तार की चुनौती |


प्रश्न 7. लोकतांत्रिक सुधार अथवा राजनीतिक सुधार क्या हैं? आमतौर पर, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के बारे में सभी सुझाव


उत्तर


प्रस्ताव 'लोकतांत्रिक सुधार' या 'राजनीतिक सुधार' कहे जाते हैं।


प्रश्न 8. सूचना का अधिकार कानून क्या है?


 उत्तर- सूचना का अधिकार-कानून लोगों को जानकार बनाने और लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने का एक अच्छा उदाहरण है।


लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1."विधिक-संवैधानिक बदलावों को लाने मात्र से ही लोकतंत्र की चुनौतियों का हल नहीं किया जा सकता।" उदाहरण सहित इस कथन की न्यायसंगत पुष्टि कीजिए।



उत्तर- कानून बनाकर राजनीति को सुधारने की बात सोचना बहुत लुभावना न लग सकता है। नए कानून सारी अवांछित चीजें खत्म कर देंगे, यह सोच लेना भले ही सुखद हो लेकिन इस लालच पर लगाम लगाना ही बेहतर है। निश्चित रूप से सुधारों के मामले में कानून की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सावधानी से 1 बनाए गए कानून गलत राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित और अच्छे र कामकाज को प्रोत्साहित करेंगे। पर विधिक संवैधानिक बदलावों को ला देने भर से लोकतंत्र की चुनौतियों को हल नहीं किया जा सकता। उदाहरणस्वरूप क्रिकेट एल.बी.डब्ल्यू. के नियम में बदलाव से बल्लेबाजों द्वारा अपनाए वाले बल्लेबाजी के नकारात्मक दाँव-पेंच को कम किया जा सकता है पर यह जाने कोई भी नहीं सोच सकता कि सिर्फ नियमों में बदलाव कर देने भर से क्रिकेट में खेल सुधर जाएगा उचित नहीं है।


प्रश्न 2.संसार के कुछ देश 'लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती' का किस प्रकार सामना कर रहे हैं? 


उत्तर संसार के कुछ देश लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का सामना कर रहे हैं। कई देशों में एकात्मक शासन व्यवस्था कायम है, ऐसी स्थिति में शासन का केंद्र एक स्थान पर होता है, जबकि लोकतंत्र का विस्तार तभी हो सकता है जब स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ हैं।


प्रश्न 3.विश्व में कुछ देश किस प्रकार लोकतंत्र को बुनियादी आधार बनाने की चुनौती का सामना कर रहे हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।



उत्तर- दुनिया के एक-चौथाई हिस्से में अभी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है। इन इलाकों में लोकतंत्र के लिए बहुत ही मुश्किल चुनौतियाँ हैं। इन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ जाने और लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए जरूरी बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इसमें मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करने और एक संप्रभु तथा कारगर शासन-व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।


प्रश्न 4.भारत में लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का वर्णन कीजिए।



उत्तर- अधिकांश लोकतंत्रीय व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना शामिल है। भारत में भी लोकतंत्र के विस्तार की ज़रूरत है। इसके लिए स्थानीय संस्थाओं को अधिक अधिकार-संपन्न बनाना होगा। संघात्मक शासन के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना होगा, राज्यों की स्वायत्तता को बढ़ाना होगा, केंद्र का राज्यों पर नियंत्रण कम करना होगा। महिलाओं, अल्पसंख्यकों तथा अन्य समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। लोगों को जागरूक बनाना होगा, तभी लोकतंत्र का विस्तार हो सकेगा।


प्रश्न 5 लोकतंत्र के लिए ज़रूरी पहलुओं का वर्णन कीजिए।


उत्तर- लोकतंत्र के लिए कुछ ज़रूरी पहलू निम्नलिखित हैं


(i) लोकतांत्रिक अधिकार लोकतंत्र का प्रमुख पहलू है। यह अधिकार सिर्फ़ वोट देने, चुनाव लड़ने और राजनीतिक संगठन बनाने भर के लिए नहीं है। इसमें सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को शामिल करते हैं, जिन्हें लोकतांत्रिक शासन को अपने नागरिकों को देना ही चाहिए।


(ii) सत्ता में हिस्सेदारी को लोकतंत्र की भावना के अनुकूल माना गया है। इस प्रकार सरकारों और सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है।


(iii) लोकतंत्र बहुमत की तानाशाही या क्रूर शासन व्यवस्था नहीं हो सकता और अल्पसंख्यक आवाजों का आदर करना लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है।


(iv) समाज में विद्यमान हर प्रकार के भेदभाव को मिटाना लोकतांत्रिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण काम है। 


(v) लोकतांत्रिक व्यवस्था में हमें कुछ न्यूनतम नतीजों की उम्मीद तो करनी ही चाहिए।



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. लोकतंत्र के सम्मुख प्रमुख चुनौतियों का वर्णन कीजिए। 



 उत्तर अलग-अलग देशों के सामने अलग-अलग तरह की चुनौतियाँ होती हैं। तीन प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं


(i) दुनिया के जिन देशों में अभी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है इन इलाकों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ जाने और लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए ज़रूरी बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इसमें मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करने और एक संप्रभु तथा कारगर शासन-व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।


(ii) अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना शामिल है। स्थानीय अधिकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ हैं। इसका यह भी मतलब है कि कम-से-कम चीजें ही लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रहनी चाहिए। भारत और दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों में से एक अमेरिका जैसे देशों के सामने भी यह चुनौती है।


(iii) तीसरी चुनौती लोकतंत्र को मज़बूत करने की है। हर लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने किसी-न-किसी रूप में यह चुनौती रहती ही है। इसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं और व्यवहारों को मज़बूत बनाना शामिल है। यह काम इस तरह से होना चाहिए कि लोग लोकतंत्र से जुड़ी अपनी उम्मीदों को पूरा कर सकें। लेकिन अलग-अलग समाजों में आम आदमी की लोकतंत्र में अलग-अलग तरह की अपेक्षाएँ होती हैं। इसलिए यह चुनौती दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग अर्थ और अलग स्वरूप ले लेती है। संक्षेप में कहें तो इसका मतलब संस्थाओं की कार्य-पद्धति को सुधारना और मज़बूत करना होता है, ताकि लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में वृद्धि हो। इसके लिए फैसला लेने की प्रक्रिया पर अमीर और प्रभावशाली लोगों के नियंत्रण और प्रभाव को कम करने की ज़रूरत होती है।


प्रश्न 2.एक अच्छे लोकतंत्र की परिभाषा दीजिए। इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।


उत्तर- लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें लोग अपने शासकों का स्वयं चुनाव करते हैं। ये शासक संविधान के बुनियादी नियमों और नागरिकों के अधिकारों को मानते हुए कानून बनाते हैं। चुनाव में लोगों को शासकों को बदलने और अपनी पसंद जाहिर करने का पर्याप्त अवसर और विकल्प मिलता है। ये अवसर सबको समान रूप से मिलते हैं।


लोकतांत्रिक शासन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 


(i) लोकतांत्रिक शासन में अंतिम सत्ता जनता के हाथों में होती है। जनता अपने शासकों का चुनाव करती है और जब चाहे तब उन्हें उनके पद से हटा सकती है।



(ii) लोकतांत्रिक शासन में सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है, इसलिए वह संविधान के नियमों तथा जनता के हितों को ध्यान में रखकर कानून बनाती है। '


(iii) लोकतांत्रिक देशों में लोगों को वोट डालने, चुनाव लड़ने और राजनीतिक संगठन बनाने के अतिरिक्त विभिन्न सामाजिक और आर्थिक अधिकार भी प्राप्त होते हैं।


(iv) लोकतांत्रिक शासन समाज में विद्यमान मतभेदों का शांतिपूर्ण तरीके से निपटारा कर सकता है। लोकतंत्र विभिन्न सामाजिक टकरावों को कम करने की कोशिश करता है।


(v) लोकतंत्र में नागरिकों को सरकार गलत नीतियों की आलोचना करने का पूरा अधिकार होता है।


(vi) लोकतंत्र देश के बहुसंख्यक समुदाय के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय के हितों की भी रक्षा करता है।


(vii) एक अच्छा लोकतांत्रिक शासन वह होगा जिसमें अधिक-से-अधिक जनता अधिक-से-अधिक भागीदारी दिखाए। सरकारी मसलों पर जनता अपनी राय दे, यदि जनता राजनीतिक रूप से शिक्षित होगी तो वह लोकतंत्र में भागीदारी कर सकेगी, जो एक अच्छे लोकतंत्र की प्रमुख विशेषता है।


(viii) अच्छे लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराए जाने चाहिए, जिससे सही प्रतिनिधि चुनकर सरकार में आ सकें।


(ix) लोकतांत्रिक देश में जनता को राजनीतिक समानता प्राप्त होती है। कोई भी व्यक्ति सरकार में जा सकता है और राजनीतिक दल का निर्माण कर सकता है।


(x)एक लोकतांत्रिक देश में सरकार विभिन्न प्रकार की असमानताओं को कम करने की कोशिश करती है।



इस प्रकार एक अच्छे लोकतंत्र की कई विशेषताएँ हैं। जहाँ ये सभी विशेषताएँ में होती हैं वहाँ लोकतंत्र को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।


प्रश्न 3. भारतीय लोकतंत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं? किन्हीं तीन का उल्लेख कीजिए।


उत्तर


भारतीय लोकतंत्र के समक्ष तीन प्रमुख चुनौतियाँ निम्न प्रकार हैं


 1. असामाजिक तत्त्वों की भूमिका- भारत में चुनावों में असामाजिक तत्त्वों की भूमिका बहुत बढ़ गयी है। चुनावों के दौरान मतदाताओं पर किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में मतदान करने के लिए दबाव डाला जाता है। चुनाव के दौरान मत खरीदे और बचे जाते हैं और मतदान केन्द्रों पर कब्जा किया जाता है।


2. जातिवाद और संप्रदायवाद- जातिवाद एवं संप्रदायवाद भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख उपस्थित एक गम्भीर समस्या है। चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन करते समय सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण को महत्त्व देते हैं। मतदाता भी मतदान करते समय जातिवाद तथा संप्रदायवाद से प्रभावित होकर मतदान करते हैं। कई राजनीतिक दलों का गठन भी संप्रदाय तथा जातिवाद के आधार पर किया गया है। जातिवाद के आधार पर लोगों में आपसी झगड़े होते रहते हैं जो लोकतन्त्र की बड़ी समस्या का कारण बनते हैं।


3. सामाजिक तथा आर्थिक असमानता- किसी भी देश में लोकतंत्र की सफलता के लिए सामाजिक एवं आर्थिक समानता का होना अनिवार्य होता है। भारत में इसका अभाव है। समाज में सभी नागरिकों को समान नहीं समझा जाता। जाति, धर्म तथा वंश आदि के आधार पर नागरिकों में भेदभाव किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से अमीर तथा गरीब की खाई बहुत बड़ी है।




यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 17 विकास का सम्पूर्ण हल


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इकाई 4 : आर्थिक विकास की समझ (अर्थशास्त्र)


Chapter 1  विकास







याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1. द्रव्य या उससे खरीदी जा सकने वाली भौतिक वस्तुएँ एक कारक है जिस पर हमारा जीवन निर्भर करता है।


2. केरल में शिशु मृत्यु दर कम है क्योंकि यहाँ स्वास्थ्य और शिक्षा की मौलिक सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।


3.लोग चाहते हैं कि उन्हें नियमित काम, बेहतर मजदूरी और अपनी उपज अथवा अन्य उत्पादों के लिए अच्छी कीमतें मिलें। दूसरे शब्दों में, वे ज्यादा आय चाहते हैं।


4.ज्यादा आय चाहने के अतिरिक्त, लोग बराबरी का व्यवहार, स्वतन्त्रता, सुरक्षा और दूसरों से आदर मिलने की इच्छा भी रखते हैं।


5.लोगों के विकास के लक्ष्य भिन्न हो सकते हैं और दूसरा एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास न हो। यहाँ तक कि यह दूसरे के लिए विनाशकारी भी साबित हो सकता है।


6.संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.इं आय के आधार पर करती है। 1.डी.पी.) द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति


7.औसत आय देश की कुल आय में से जनसंख्या को भाग देकर निकाली जाती है। औसत आय को प्रति व्यक्ति आय भी कहा जाता है।


महत्त्वपूर्ण शब्दावली



 आर्थिक विकास–आर्थिक विकास वह परिस्थिति है जिसमें कोई देश अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में इतनी प्रगति करे, जो कि उसकी जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक है।


प्रतिव्यक्ति आय–किसी देश की कुल राष्ट्रीय आय को कुल जनसंख्या से भाग देने पर प्राप्त राशि को प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं। 



राष्ट्रीय आय–एक लेखा वर्ष में देश के अंदर सभी आर्थिक क्रियाओं से प्राप्त आय में जब विदेशों से प्राप्त आय को जोड़ते हैं, तो राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है।


साक्षरता दर किसी देश में पढ़े-लिखे लोगों की दर



 शिशु मृत्यु दर–प्रतिवर्ष प्रति 1,000 जीवित बच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले मृत्यु को प्राप्त बच्चों का अनुपात शिशु मृत्यु दर कहलाता है। 


 मानव विकास–मानव विकास का अर्थ है-एक व्यक्ति का इस प्रकार से विकास किया जाए कि वह अपनी प्रतिभा के अनुसार सृजनात्मक जीवन बिता सके।


 जीवन प्रत्याशा-जीवन के प्रति आशा अर्थात् किसी देश में लोगों की औसत आयु जीवन प्रत्याशा कहलाती है। 



 नवीकरणीय साधन-ये वे साधन हैं जो एक बार प्रयोग करने पर खत्म नहीं होते, बल्कि उन्हें दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।


अनवीकरणीय साधन-ये वे साधन हैं जो एक बार प्रयोग करने के बाद समाप्त हो जाते हैं। उनकी पुनः पूर्ति संभव नहीं होती।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. प्रति व्यक्ति आय से क्या तात्पर्य है?


(क) एक देश की वस्तुओं व सेवाओं से अर्जित आय  


(ख) एक देश के आधे से अधिक सामान्य निवासियों द्वारा अर्जित आय 


(ग) राष्ट्रीय आय में जनसंख्या को भाग देकर प्राप्त आय


(घ) उपर्युक्त सभी


उत्तर- (ग) राष्ट्रीय आय में जनसंख्या को भाग देकर प्राप्त आय


प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा संगठन 'मानव विकास रिपोर्ट तैयार करता है?


(क) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष 


(ख) यू.एन.डी.पी.


(घ) संयुक्त राष्ट्र संघ


(ग) विश्व बैंक




उत्तर-

(ख) यू.एन.डी.पी.



प्रश्न 3. निम्नलिखित में से किसे औसत आय भी कहते हैं?



(क) कुल आय (ग) प्रतिव्यक्ति आय


(ख) राष्ट्रीय आय (घ) ये सभी


उत्तर


(ग) प्रतिव्यक्ति आय


प्रश्न 4. निम्नलिखित देशों में से किस देश का मानव विकास सूचकांक (2016) के अनुसार भारत से अधिक ऊँचा स्थान है? 


(क) श्रीलंका


(ख) बांग्लादेश


(ग) पाकिस्तान


(घ) नेपाल


उत्तर- (क) श्रीलंका


प्रश्न 5. निम्न में से किस राज्य की प्रति व्यक्ति आय सर्वाधिक है?


(क) हरियाणा (ख) बिहार (ग) राजस्थान (घ) मेघालय 


उत्तर-

(क) हरियाणा



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. प्रतिव्यक्ति आय से क्या तात्पर्य है?


या औसत आय का अर्थ लिखिए।



उत्तर- किसी देश की कुल आय को कुल जनसंख्या से भाग देने पर प्राप्त आय को औसत आय कहते हैं। इसे प्रतिव्यक्ति आय भी कहते हैं।


प्रश्न 2. आर्थिक विकास से क्या तात्पर्य है?


 उत्तर- आर्थिक विकास वह परिस्थिति है जिसमें कोई देश अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में इतनी प्रगति करे, जो कि उसकी जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक हो। 


प्रश्न 3. राष्ट्रीय आय से क्या तात्पर्य है?


उत्तर एक लेखा वर्ष में, देश के अंदर सभी आर्थिक क्रियाओं आय में जब विदेशों से प्राप्त आय को जोड़ते हैं तो राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है।


प्रश्न 4. मानव विकास से क्या तात्पर्य है? 


उत्तर- मानव विकास का अर्थ है-एक व्यक्ति का इस प्रकार से विकास

किया जाए कि वह अपनी प्रतिभा के अनुसार सृजनात्मक जीवन बिता सके।



 प्रश्न 5. केरल में अन्य राज्यों की तुलना में शिशु मृत्यु दर कम क्यों है?


उत्तर- केरल में अन्य राज्यों की तुलना में शिशु मृत्यु दर कम होने के मुख्य कारण अग्रवत् हैं



(i) केरल की साक्षरता दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है। 


(ii) केरल में निवल उपस्थिति अनुपात अन्य राज्यों की तुलना में उच्च है। 


प्रश्न6. एक ग्रामीण महिला के किन्हीं दो विकास के लक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।


उत्तर (1) परिवार में सम्मान तथा (2) सुरक्षित एवं संरक्षित वातावरण । 



प्रश्न 7. धन से नहीं खरीदी जा सकने वाली किन्हीं दो वस्तुओं के नाम बताइए।


उत्तर


(1) शान्ति तथा (2) स्वतन्त्रता ।


लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. मानव विकास में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?


उत्तर- मानव विकास में स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। स्वास्थ्य से तात्पर्य व्यक्ति के सर्वमुखी विकास से है। स्वास्थ्य से अभिप्राय केवल जीवित रहना या रोगों का निवारण करना ही नहीं है बल्कि जनसंख्या नियंत्रण, परिवार कल्याण तथा नशीले पदार्थों पर रोक लगाने आदि पक्षों पर भी ध्यान दिया जाता है। जिन देशों में लोगों को स्वास्थ्य संबंधी ये सभी सुविधाएँ मिलती हैं, उन देशों में स्वस्थ मानव संसाधन देश के सामाजिक तथा आर्थिक विकास में सक्रिय योगदान देकर देश को विकसित देशों की श्रेणी में ला सकते हैं।


प्रश्न 2. आय के आधार पर विभिन्न देशों की तुलना कैसे की जाती है?


उत्तर- देशों की तुलना करने के लिए उनकी आय सबसे महत्त्वपूर्ण मानक समझी जाती है। जिन देशों की आय अधिक है उन्हें अधिक विकसित समझा जाता है और कम आय वाले देशों को कम विकसित। यह धारणा इस बात पर आधारित है कि अधिक आय से इंसान की जरूरत की सभी चीजें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराई जा सकती हैं। इसलिए ज्यादा आय अपने आप में विकास का प्रमुख मापदंड है।


प्रश्न 3.धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण (आवश्यक) है?


उत्तर- धारणीयता से अभिप्राय है- 'सतत्' पोषणीय विकास अर्थात् ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी तक ही सीमित न रहे बल्कि आगे आने वाली पीढ़ी को भी मिले। वैज्ञानिकों का कहना है कि हम संसाधनों का जैसे प्रयोग कर रहे हैं, उससे लगता है कि संसाधन शीघ्र समाप्त हो जाएँगे और आगे आने वाली पीढ़ी के लिए नहीं बचेंगे। यदि हमें विकास को धारणीय बनाना है अर्थात् निरंतर जारी रखना है, तो हमें संसाधनों का प्रयोग इस तरह से करना होगा जिससे विकास की प्रक्रिया निरंतर जारी रहे और भावी पीढ़ी के लिए संसाधन बचे रहें।


प्रश्न 4. एक विकसित देश की क्या विशेषताएँ होती हैं? स्पष्ट कीजिए।


उत्तर- एक विकसित देश की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं- उच्च जीवन स्तर, उच्च जीडीपी, उच्च बाल कल्याण, उत्कृष्ट स्वास्थ्य सुविधाएँ, उत्कृष्ट परिवहन, संचार और शैक्षिक सुविधाएँ, बेहतर आवास और रहने की स्थिति, औद्योगिक, बुनियादी ढाँचा और तकनीकी उन्नति, उच्च प्रति व्यक्ति आय और जीवन प्रत्याशा आदि में वृद्धि।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1.मानव विकास सूचकांक क्या है? मानव विकास नापने वाले मूलभूत अवयवों का वर्णन कीजिए।



उत्तर


मानव विकास सूचकांक एक ऐसा मापदंड है जिसके द्वारा विश्व के प्र विभिन्न देशों का सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में उपलब्धियों के आधार पर स्थान निर्धारित किया जाता है। इस मापदंड द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न देशों की तुलनात्मक प्रगति का ज्ञान प्राप्त करने में सफल हुआ। ऐसा इसलिए किया गया 


 जिससे कुछ ऐसे देशों की सहायता की जा सके जो उनके विकास के लिए आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने 1990 में अपनी प्रथम मानव विकास रिपोर्ट में 'मानव विकास सूचकांक' का प्रयोग किया ताकि विश्व के विभिन्न देशों की सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में उपलब्धियों को आँका जा सके।


मानव विकास नापने वाले मूलभूत अवयव - मानव विकास एक विस्तृत धारणा है। इसमें मनुष्य के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन का विकास शामिल है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव विकास को नापने के लिए तीन प्रमुख अवयवों को आधार बनाया है—


1. दीर्घ आयु – मानव विकास सूचकांक के अनुसार जिन देशों में जीवन प्रत्याशा अधिक होगी, उन्हें विकसित देश माना जाएगा। इसमें केवल दीर्घ आयु ही शामिल नहीं है बल्कि एक अच्छा व स्वस्थ जीवन जीना भी विकास के लिए जरूरी है। शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति देश के विकास के लिए काम कर सकता है।


2. शिक्षा अथवा ज्ञान - किसी देश में जितने अधिक लोग साक्षर होंगे, उस देश के विकास का स्तर भी उतना अधिक ऊँचा होगा। एक साक्षर व्यक्ति देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।


3. जीवन स्तर – जिस देश के लोगों की प्रति व्यक्ति आय अधिक होगी, वह देश विकास की श्रेणी में उच्च स्तर पर गिना जाएगा क्योंकि ऐसे देश में लोग न केवल अपनी आवश्यकताओं को ही पूरा करेंगे बल्कि एक अच्छा जीवन-स्तर बनाएँगे जो विकास के लिए जरूरी है।


प्रश्न 2. विश्व बैंक विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने के लिए किस प्रमुख मापदंड का प्रयोग करता है? इस मापदंड की, अगर कोई है, तो सीमाएँ क्या हैं?



उत्तर- विश्व बैंक विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने के लिए किसी देश की आय को प्रमुख मापदंड मानता है। जिन देशों की आय अधिक है, उन्हें अधिक विकसित समझा जाता है और कम आय के देशों को कम विकसित। ऐसा माना जाता है कि अधिक आय का अर्थ है-इंसान की ज़रूरतों की सभी चीजें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध की जा सकती हैं। जो भी लोगों को पसंद है और जो उनके पास होना चाहिए, वे उन सभी चीज़ों को अधिक आय के जरिए प्राप्त कर पाएँगे। इसलिए ज्यादा आय विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने का प्रमुख मापदंड माना जाता है।


विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार, देशों का वर्गीकरण करने में इस मापदण्ड का प्रयोग किया गया है। वे देश जिनकी 2017 में प्रतिव्यक्ति आय US $12,056 प्रति वर्ष या उससे अधिक है उसे समृद्ध देश और वे देश जिनकी प्रतिव्यक्ति आय US $ 995 प्रति वर्ष या उससे कम है उन्हें निम्न आय वाला देश कहा गया है। भारत मध्य आय के देशों में आता है क्योंकि उसकी प्रतिव्यक्ति आय 2017 में केवल US $ 1820 प्रति वर्ष थी। समृद्ध देशों, जिनमें मध्य पूर्व के देश और कुछ अन्य छोटे देश शामिल नहीं हैं, को आमतौर पर विकसित देश कहा जाता है।


सीमाएँ – विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए किसी देश की राष्ट्रीय आय को अच्छा मापदंड नहीं माना जा सकता, क्योंकि विभिन्न देशों की जनसंख्या विभिन्न होती है। कुल आय की तुलना करने से हमें यह पता नहीं चलेगा कि औसत व्यक्ति क्या कमा सकता है। इससे हमें विभिन्न देशों के लोगों की परिस्थितियों का भी पता नहीं चल पाता। इसलिए राष्ट्रीय आय वर्गीकरण का अच्छा मापदंड नहीं है।



प्रश्न 3. विकास मापने का यू.एन.डी.पी. का मापदंड किन पहलुओं में विश्व बैंक के मापदंड से अलग है? 


उत्तर विश्व बैंक का मापदंड केवल 'आय' पर आधारित है। इस मापदंड की बहुत-सी सीमाएँ हैं। आय के अतिरिक्त भी कई अन्य मापदंड हैं जो विकास मापने के लिए ज़रूरी हैं, क्योंकि मनुष्य केवल बेहतर आय के बारे में ही नहीं सोचता, बल्कि वह अपनी सुरक्षा, दूसरों से आदर और बराबरी का व्यवहार पाना, आज़ादी आदि जैसे अन्य लक्ष्यों के बारे में भी सोचता है। यू.एन.डी.पी. द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट में विकास के लिए


निम्नलिखित मापदंड अपनाए गए


1. लोगों का स्वास्थ्य – मानव विकास का प्रमुख मापदंड है स्वास्थ्य या दीर्घायु । विभिन्न देशों के लोगों की जीवन प्रत्याशा जितनी अधिक होगी, वह मानव विकास की दृष्टि से उतना ही अधिक विकसित देश माना जाएगा।


2. शैक्षिक स्तर मानव विकास का दूसरा प्रमुख मापदंड शैक्षिक स्तर है। किसी देश में साक्षरता की दर जितनी ज्यादा होगी वह उतना ही विकसित माना जाएगा और यह दर यदि कम होगी तो उस देश को अल्पविकसित कहा जाएगा।


3. प्रतिव्यक्ति आय - मानव विकास का तीसरा मापदंड है— प्रतिव्यक्ति आय। जिस देश में प्रतिव्यक्ति आय अधिक होगी उस देश में लोगों का जीवन-स्तर भी अच्छा होगा और अच्छा जीवन स्तर विकास की पहचान है। जिन देशों में लोगों की प्रति व्यक्ति आय कम होगी, लोगों का जीवन स्तर भी अच्छा नहीं होगा। ऐसे देश को विकसित देश नहीं माना जा सकता।


प्रश्न 4. हम औसत का प्रयोग क्यों करते हैं? इनके प्रयोग करने की क्या कोई सीमाएँ हैं? विकास से जुड़े अपने उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।



उत्तर- औसत का प्रयोग किसी भी विषय या क्षेत्र का अनुमान विभिन्न स्तरों पर लगाने के लिए किया जाता है, जैसे—किसी देश में सभी लोग अलग-अलग आय प्राप्त करते हैं किंतु देश के विकास स्तर को जानने के लिए प्रतिव्यक्ति आय निकाली जाती है जो औसत के माध्यम से ही निकाली जाती है। इससे हमें एक देश के विकास के स्तर का पता चलता है। किंतु औसत का प्रयोग करने में कई समस्याएँ आती हैं। औसत से किसी भी चीज़ का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसमें असमानताएँ छिप जाती हैं। उदाहरणतः किसी देश में रहने वाले चार परिवारों में से तीन परिवार ₹500-500 कमाते हैं तथा एक परिवार ₹48,000 कमा रहा है, जबकि दूसरे देश में सभी परिवार ₹9,000 और ₹10,000 के बीच में कमाते हैं। दोनों देशों की औसत आय समान है किंतु एक देश में आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है, जबकि दूसरे देश में सभी नागरिक आर्थिक रूप से समान स्तर के हैं। इस प्रकार 'औसत' तुलना के लिए तो. उपयोगी है किंतु इससे असमानताएँ छिप जाती हैं। इससे यह पता नहीं चलता कि यह आय लोगों में किस तरह वितरित है।


प्रश्न 5. भारत के लोगों द्वारा ऊर्जा के किन स्रोतों का प्रयोग किया जाता है? ज्ञात कीजिए। अब से 50 वर्ष पश्चात् क्या संभावनाएँ हो सकती हैं?



उत्तर- भारत के लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे ऊर्जा के वर्तमान स्रोत निम्नलिखित हैं


1. कोयला – कोयले का प्रयोग ईंधन के रूप में तथा उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। वाष्प इंजन जिसमें कोयले का प्रयोग होता है, रेलों और उद्योगों में काम में लाया जाता है।


2. खनिज तेल - खनिज तेल का प्रयोग सड़क परिवहन, जहाजों, वायुयानों आदि में किया जाता है। तेल को परिष्कृत करके डीजल, मिट्टी का तेल, पेट्रोल आदि प्राप्त किए जाते हैं।


3. प्राकृतिक गैस- प्राकृतिक गैस का भी अब शक्ति के साधन के रूप में बहुत प्रयोग किया जाने लगा है। गैस को पाइपों के सहारे दूर-दूर के स्थानों पर पहुँचाया जाता है। इससे अनेक औद्योगिक इकाइयाँ चल रही हैं।


4. जल विद्युत – यह ऊर्जा का नवीकरणीय संसाधन है। अब तक ज्ञात सभी संसाधनों में यह सबसे सस्ता है। इसका प्रयोग घरों, दफ्तरों तथा औद्योगिक इकाइयों में बड़े पैमाने पर किया जाता है।


5. ऊर्जा के अन्य स्त्रोत – ऊर्जा के कुछ ऐसे स्रोत भी हैं जिनका प्रयोग अभी कुछ समय पूर्व से ही किया जाने लगा है। ये सभी स्रोत नवीकरणीय हैं; जैसे—पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, बायोगैस, भूतापीय ऊर्जा आदि।


ऊर्जा के अधिकांश परंपरागत साधनों का प्रयोग लंबे समय से हो रहा है। ये सभी स्रोत अनवीकरणीय हैं अर्थात् एक बार प्रयोग करने पर समाप्त हो जाते हैं। इनकी पुन:पूर्ति संभव नहीं है। आने वाले 50 वर्षों में से संसाधन यदि इसी तरह इस्तेमाल किए जाते रहे, तो समाप्त प्राय: हो जाएँगे। यदि हमें इन संसाधनों को बचाना है तो ऊर्जा के नए और नवीकरणीय संसाधनों को खोजकर उनका अधिकाधिक प्रयोग करना होगा।


प्रश्न 6 विकसित देशों की किन्हीं तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।


उत्तर- जिन देशों ने प्राकृतिक संसाधनों तथा तकनीकी ज्ञान के बल पर पर्याप्त आर्थिक विकास कर लिया है, वे विकसित देश कहलाते हैं; उदाहरणार्थ – ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान व जर्मनी। 


विकसित देशों - की तीन प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं



1. उन्नत विज्ञान तथा तकनीकी द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग - प्राकृतिक संसाधन किसी भी देश के आर्थिक विकास की आधारशिला होते हैं। पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन देश के आर्थिक विकास की कुंजी हैं। विकसित देश उन्नत विज्ञान तथा तकनीकी द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं। जापान तथा इंग्लैण्ड ने बड़ी मात्रा में कच्चे माल का आयात करके मात्र विज्ञान एवं उन्नत तकनीकी का समुचित उपयोग करके तीवत्रा से विकास किया है।


2. वृहत् स्तर पर औद्योगीकरण सभी विकसित देशों ने आर्थिक स्तर को प्राप्त करने की दृष्टि से बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना वृहत् स्तर पर कर ली है। ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी आदि देशों ने औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया है। इन देशों में लोहा-इस्पात उद्योग, रसायन उद्योग, इन्जीनियरिंग उद्योग, मोटरगाड़ी निर्माण उद्योग; पोत व वायुयान निर्माण उद्योग आदि का तीव्र गति से विकास हुआ है।


3. अत्यधिक विकसित यातायात एवं संचार-व्यवस्था - विकसित देशों में यातायात एवं संचार-व्यवस्था का विकास उच्च स्तर पर कर लिया गया है। इन देशों में सड़क तथा वृहत् रेल-पथों का जाल बिछा है। ट्रान्स-साइबेरियन रेलमार्ग विश्व का सबसे लम्बा रेलमार्ग है। इन देशों में रेल तथा वायु परिवहन का भी विकास कर लिया गया है। जल परिवहन नदियों, झीलों तथा नहरों द्वारा सम्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त स्वचालित मोटरगाड़ियों, विद्युत रेलगाड़ियों, पनडुब्बियों, आधुनिक जलयानों तथा तीव्रगामी हवाई जहाजों ने भी इन देशों को एक-दूसरे के निकट ला दिया है। इन देशों में संचार साधनों का भी अत्यधिक विकास हुआ है।




यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 18 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक


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2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक




याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग पर आधारित अनेक गतिविधियाँ हैं। इन्हें प्राथमिक क्षेत्रक की गतिवविधि कहा जाता है। ये गतिविधियाँ कृषि, पशुपालन, खनन, मत्स्य पालन, वनोत्पाद से संबंधित हैं।


2.प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है।


3.द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के जरिए अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों में उद्योग विनिर्माण, बाँध, जल आपूर्ति, विद्युत आदि प्रमुख हैं।


4.द्वितीयक क्षेत्रक को 'औद्योगिक क्षेत्रक' भी कहा जाता है।


5.तृतीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत सेवा क्षेत्र सम्मिलित होते हैं। तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियों में संचार, यातायात के साधन, भण्डारण, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार आदि सम्मिलित हैं।


6.तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है।




7.भारत के संदर्भ में एक उल्लेखनीय तथ्य है कि यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद में तीनों क्षेत्रकों की हिस्सेदारी में परिवर्तन हुआ है। तृतीयक क्षेत्रक की सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी लगभग 50% है, जबकि रोजगार के क्षेत्र में तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या लगभग 20% है। भारत में सबसे अधिक रोजगार प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्त होता है।


8.संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य-स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। वे क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं।


महत्त्वपूर्ण शब्दावली


आर्थिक क्रियाएँ–वे सभी गतिविधियाँ जिनसे लोगों को कोई-न-कोई आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं: जैसे-खेतों में काम करना, दुकानों, दफ्तरों, बैंकों, स्कूलों आदि में काम करना आदि।



 प्राथमिक क्रियाएँ–जब हम प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो इसे प्राथमिक क्रियाएँ या प्राथमिक क्षेत्रक गतिविधियाँ

कहा जाता है जैसे कृषि करना, मत्स्य पालन, डेयरी उत्पाद तथा खनिज अयस्क निकालना आदि। द्वितीयक 


क्षेत्रक गतिविधियाँ—इसके अंतर्गत प्राकृतिक उत्पादों का प्रयोग करके मनुष्य के लिए जरूरी वस्तुओं का विनिर्माण किया जाता है। यह प्रक्रिया किसी कारखाने, कार्यशाला या घर में हो सकती है; जैसे-कपास के पौधे से प्राप्त रेशे का उपयोग कर हम कपड़ा तैयार करते हैं। मिट्टी से ईंट बनाते हैं और ईंटों से भवनों का निर्माण करते हैं।


तृतीयक क्षेत्रक गतिविधियाँ—ये वे गतिविधियाँ हैं जो किसी वस्तु का उत्पादन नहीं करतीं बल्कि अपनी सेवाएँ प्रदान करती हैं। ये क्रियाएँ प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं, जैसे-परिवहन सेवाएँ, वकील, डॉक्टर तथा शिक्षकों की सेवाएँ आदि इसी क्षेत्र में आती हैं।


सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) –किसी विशेष वर्ष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य, उस वर्ष में कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है। तीनों क्षेत्रकों के उत्पादों के योगफल को देश का सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।



सार्वजनिक क्षेत्रक–सार्वजनिक क्षेत्रक में उत्पादन तथा वितरण के सभी साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है। इनका ध्येय लाभ कमाना नहीं होता। सरकारी सेवाओं पर किए गए व्यय की भरपाई करों द्वारा की जाती है। रेलवे अथवा डाकघर इसके उदाहरण हैं।


निजी क्षेत्रक–निजी क्षेत्रक में उत्पादन तथा वितरण के सभी साधनों का स्वामित्व एकल व्यक्ति या कंपनी के हाथों में होता है। इनका ध्येय लाभ प्राप्त करना होता है। इनकी सेवाओं को प्राप्त करने के लिए हमें कंपनी के स्वामियों को भुगतान करना पड़ता है। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड तथा रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड जैसी कंपनियाँ निजी स्वामित्व की हैं।


मौसमी बेरोजगारी—यह बेरोजगारी की वह स्थिति है जिसमें लोगों को पूरे साल काम नहीं मिलता। साल के कुछ महीनों में ये लोग बेरोजगार रहते हैं: जैसे-ग्रामीण क्षेत्र में खराब मौसम के कारण ऐसी बेरोजगारी उत्पन्न होती है।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. भारत में सबसे अधिक शिशु मृत्यु दर वाले दो राज्य हैं


(क) ओडिशा और मध्य प्रदेश


(ख) बिहार और गोवा


(ग) तेलंगाना और पश्चिम बंगाल


(घ) सिक्किम और असोम


उत्तर


(क) ओडिशा और मध्य प्रदेश


प्रश्न 2. कौन-सा क्षेत्रक सबसे अधिक रोजगार देता है?


(क) द्वितीयक क्षेत्रक


(ख) प्राथमिक क्षेत्रक


(ग) तृतीयक क्षेत्रक


(घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर-


(ख) प्राथमिक क्षेत्रक


प्रश्न 3. निम्नलिखित में से किसे प्रच्छन्न रोजगार के नाम से भी जाना जाता है?


(क) अति रोजगार


(ख) नियमित रोजगार


(ग) अनियमित रोजगार


(घ) अल्प रोजगार


उत्तर


(घ) अल्प रोजगार


प्रश्न 4. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक आधार पर विभाजित हैं—


(क) रोजगार की शर्तें


(ख) आर्थिक गतिविधि के स्वभाव


(ग) उद्यमों के स्वामित्व


(घ) उद्यम में नियोजित श्रमिकों की संख्या


उत्तर


(ग) उद्यमों के स्वामित्व



प्रश्न 5. एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन क्षेत्रक की गतिविधि है।


या एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन कहा जाता है


(क) प्राथमिक


 (ग) तृतीयक


(ख) द्वितीयक


 (घ) सूचना प्रौद्योगिकी


उत्तर


(क) प्राथमिक


प्रश्न 6. निम्नलिखित में से किस वर्ष महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी ऐक्ट (योजना) चलायी गयी? 



(क) 2008


(ख) 2010 


(ग) 2005


 (घ) 2000



उत्तर

(ग) 2005


प्रश्न 7. जी.डी.पी. से क्या तात्पर्य है?


(क) सकरल घरेलू उत्पाद


(ख) विशाल घरेलू उत्पाद 


(ग) सकल घरेलू उत्पाद


 (घ) सकल दैनिक उत्पाद


उत्तर-


(ग) सकल घरेलू उत्पाद


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1.आर्थिक क्रियाएँ क्या हैं?



 उत्तर वे सभी गतिविधियाँ जिनसे लोगों को कोई-न-कोई आय प्राप्त होती है या धन की प्राप्ति होती है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं; जैसे-एक नर्स का हॉस्पिटल में काम करना, बैंकों में काम करना आदि।


प्रश्न 2. प्राथमिक क्रियाएँ क्या हैं?


उत्तर- जब हम प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक गतिविधियाँ कहा जाता है; जैसे—कृषि, मत्स्य पालन, पशुपालन, खनन, वनोत्पाद आदि।


प्रश्न 3. बेरोजगारी से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- वह स्थिति जिसमें कोई व्यक्ति काम करना चाहता है तथा उसमें काम करने की क्षमता भी है किंतु फिर भी उसे काम नहीं मिलता है तो उसे बेरोजगारी कहते हैं।


प्रश्न 4.सकल घरेलू उत्पाद से क्या तात्पर्य है? 


उत्तर  एक अर्थव्यवस्था में एक लेखांकन वर्ष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के कुल जोड़ को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।


प्रश्न 5. द्वितीयक क्षेत्रक क्या है?


उत्तर इसके अंतर्गत प्राकृतिक उत्पादों को उद्योगों में निर्मित करके उपयोग के लायक बनाया जाता है। यह द्वितीयक क्षेत्रक कहलाता है।


प्रश्न 6 तृतीयक क्षेत्रक से क्या तात्पर्य है?


या अर्थव्यवस्था के तृतीयक क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? कोई दो उदाहरण दीजिए।



उत्तर इसके अंतर्गत क्रियाएँ किसी वस्तु का उत्पादन नहीं करती बल्कि सेवाओं का उत्पादन करती है। ये क्रियाएँ प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं, जैसे-वकील, डॉक्टर, शिक्षक, परिवहन सेवाएँ आदि सेवाएँ प्रमुख हैं।


प्रश्न 7. मौसमी बेरोजगारी क्या है?


उत्तर- मौसमी बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें लोगों को पूरे साल काम नहीं मिलता। साल के कुछ महीनों में ये लोग बेरोजगार रहते हैं।


प्रश्न 8. सार्वजनिक क्षेत्रक से क्या तात्पर्य है?


उत्तर सार्वजनिक क्षेत्रक में अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी सेवाएँ उपलब्ध कराती है। रेलवे और डाकघर सार्वजनिक क्षेत्रक के उदाहरण हैं।


प्रश्न 9. द्वितीयक क्षेत्रक के दो उदाहरण दीजिए।


उत्तर- (1) बस का निर्माण तथा (2) मेज का निर्माण।


प्रश्न 10. रोजगार के 'संगठित क्षेत्र' को परिभाषित कीजिए। 


उत्तर- संगठित क्षेत्र (क्षेत्रक) से तात्पर्य उन उद्यमों अथवा कार्य-स्थानों से है जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। ये क्षेत्र सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और उन्हें सरकारी नियमों एवं विनियमों का अनुपालन करना होता है।


प्रश्न 11. अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की किन्हीं तीन समस्याओं का उल्लेख कीजिए।


उत्तर- (i) श्रमिकों को कम वेतन मिलता है और प्राय: यह नियमित नहीं होता है।


(ii) श्रमिकों का रोजगार अनिश्चित होता है।


(iii) श्रमिकों को सवेतन छुट्टी तथा बीमारी के कारण छुट्टी आदि नहीं मिलती है।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1.आर्थिक क्रियाओं से क्या अभिप्राय है? प्रमुख आर्थिक क्रियाओं का वर्णन कीजिए।


या आर्थिक क्रियाओं के तीन प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए |


उत्तर- वे सभी क्रियाएँ जिनसे मनुष्य को धन प्राप्त होता है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं; जैसे—खेती करना, नौकरी करना आदि। आर्थिक क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं


1. प्राथमिक आर्थिक क्रियाएँ-प्रकृति के सहयोग से जो आर्थिक क्रियाएँ की जाती हैं उन्हें प्राथमिक आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं, जैसे- -खनन कार्य, कृषि कार्य तथा मत्स्य पालन आदि।


2. द्वितीयक आर्थिक क्रियाएँ-वे क्रियाएँ जो प्राकृतिक उत्पादों की सहायता से विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करती हैं, उन्हें द्वितीयक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे—कपास से कपड़े बनाना, लकड़ी से कागज बनाना आदि।


3. तृतीयक आर्थिक क्रियाएँ –वे क्रियाएँ जो किसी वस्तु का उत्पादन नहीं करतीं, बल्कि प्राथमिक व द्वितीयक आर्थिक क्रियाओं के विकास में सहायता करती हैं, उन्हें तृतीयक आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे—परिवहन के साधन, बैंक तथा बीमा कंपनियाँ आदि।


प्रश्न 2. प्रच्छन्न बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए।



उत्तर- प्रच्छन्न बेरोजगारी से अभिप्राय ऐसी परिस्थिति से है जिसमें लोग प्रत्यक्ष रूप से काम करते दिखाई दे रहे हैं किंतु वास्तव में उनकी उत्पादकता शून्य होती है अर्थात् यदि उन्हें उनके काम से हटा दिया जाए तो भी कुल उत्पादकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। भारत के गाँवों में कृषि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रच्छन्न बेरोजगारी पाई जाती है; जैसे-भूमि के एक छोटे-से टुकड़े पर जरूरत से ज्यादा श्रमिक काम करते हैं क्योंकि उनके पास कोई और काम नहीं होता। इससे प्रच्छन्न बेरोजगारी की स्थिति पैदा होती है। इसी प्रकार शहरों में प्रच्छन्न बेरोजगारी छोटी दुकानों में तथा छोटे व्यवसायों में पाई जाती है।



प्रश्न 3. खुली बेरोजगारी एवं प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच विभेद कीजिए।


उत्तर खुली बेरोजगारी—वह परिस्थिति जिसमें किसी देश में श्रमशक्ति तो अधिक होती है किंतु औद्योगिक ढाँचा छोटा होता है, वह सारी श्रमशक्ति को नहीं खपा पाता अर्थात् श्रमिक काम करना चाहता है किंतु उसे काम नहीं मिलता। यह बेरोजगारी भारत के अधिकतर औद्योगिक क्षेत्र में पाई जाती है। प्रच्छन्न या गुप्त बेरोजगारी-वह परिस्थिति जिसमें व्यक्ति काम में लगे हुए दिखाई देते हैं किंतु वास्तव में वे बेरोजगार होते हैं; जैसे- भूमि के किसी टुकड़े पर आठ लोग काम कर रहे हैं किंतु उत्पादन उतना ही हो रहा है जितना पाँच लोगों के काम करने से होता है। ऐसे में तीन अतिरिक्त व्यक्ति जो काम में लगे हैं वह छुपे हुए बेरोजगार हैं क्योंकि उनके काम से उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।


प्रश्न 4. रा.ग्रा.रो.गा.अ.-2005 (NREGA-2005) के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।



उत्तर


केंद्र सरकार ने भारत के 200 जिलों में 'काम का अधिकार' लागू करने के लिए एक कानून बनाया है। इसे 'राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम-2005' (NREGA-2005) कहते हैं। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं


(i) उन सभी लोगों को जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, को सरकार द्वारा वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है।


(ii) यदि सरकार रोजगार उपलब्ध कराने में असफल रहती है तो वह लोगों को बेरोजगारी भत्ता देगी।


(iii) इस अधिनियम में उन कामों को वरीयता दी जाएगी, जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।


प्रश्न 5.अपने क्षेत्र से उदाहरण लेकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों की तुलना कीजिए



उत्तर- सार्वजनिक क्षेत्रक-वे उद्योग जो सरकारी तंत्र के अधीन होते हैं सार्वजनिक उद्योग कहलाते हैं; जैसे-भारतीय रेल, लोहा-इस्पात उद्योग, जहाज निर्माण आदि। सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसी वस्तुओं या सेवाओं का निर्माण होता है जो लोगों के लिए कल्याणकारी हैं। इनका उद्देश्य निजी हित या लाभ कमाना नहीं होता बल्कि सार्वजनिक लाभ इनका उद्देश्य होता है। इस क्षेत्र में वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है।


निजी क्षेत्रक–वे उद्योग जो निजी व्यक्तियों के स्वामित्व में होते हैं निजी क्षेत्रक कहलाते हैं। इसमें वे उद्योग आते हैं जो आम जनता की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं; जैसे—टेलीविजन, एयर कंडीशनर, फ्रिज आदि बनाने वाले उद्योग। ये गतिविधियाँ निजी लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती हैं। निजी क्षेत्र कल्याणकारी कार्य करने के लिए बाध्य नहीं है। यदि वह ऐसा कोई काम करता भी है तो उसकी अधिक कीमत लेता है; जैसे—निजी विद्यालय सरकारी विद्यालयों से अधिक फीस वसूलते हैं। निजी क्षेत्र के उद्योगों में वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण बाजारी शक्तियों द्वारा होता है।


प्रश्न 6. व्याख्या कीजिए कि किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक कैसे योगदान करता है?


या देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के योगदान पर एक टिप्पणी लिखिए।


उत्तर- किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्रक का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता। सभी है। महत्त्वपूर्ण गतिविधियों का संचालन सार्वजनिक क्षेत्रक के द्वारा किया जाता




ऐसी गतिविधियाँ जिनकी आवश्यकता समाज के सभी सदस्यों को होती है; जैसे—सड़कों, पुलों, रेलवे, पत्तनों, बिजली आदि का निर्माण और बाँध आदि से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना सार्वजनिक क्षेत्रक का काम है। सरकार ऐसे भारी व्यय स्वयं उठाती है। सरकार किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए गेहूँ और चावल खरीदती है। इसे अपने गोदामों में भंडारित करती है और राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर बेचती है। इस प्रकार सरकार किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को सहायता पहुँचाती है।


सभी के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराना जैसे प्राथमिक कार्य भी सार्वजनिक क्षेत्रक में आते हैं। समुचित ढंग से विद्यालय चलाना और गुणात्मक शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार का कर्त्तव्य है। इस प्रकार किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक का योगदान महत्त्वपूर्ण है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के आधार पर आर्थिक गतिविधियों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- आर्थिक गतिविधियों को विभाजित करने का एक तरीका यह है कि परिसंपत्तियों के स्वामित्व और सेवाओं के वितरण के लिए जिम्मेदार कौन है? इस आधार पर दो प्रकार के उद्यम पाए जाते हैं- (i) सार्वजनिक तथा (ii) निजी।



1. सार्वजनिक क्षेत्रक—इसमें उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी सेवाएँ उपलब्ध कराती है। सार्वजनिक क्षेत्रक का ध्येय लाभ कमाना नहीं बल्कि जन-सेवा होता है। सरकारें सेवाओं (Services) पर किए गए व्यय की भरपाई करों (Taxes) या अन्य तरीकों से करती हैं। रेलवे, डाक-व्यवस्था, बैंक तथा बीमा कंपनियाँ आदि सार्वजनिक क्षेत्रक के उदाहरण हैं। ऐसे काम जो देश हित से जुड़े हैं तथा जिनका प्रभाव पूरे देश पर पड़ता है, सरकार के नियंत्रण में ही रहते हैं।


2. निजी क्षेत्रक-निजी क्षेत्रक में परिसंपत्तियों पर स्वामित्व और सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति या कंपनी के हाथों में होती है। निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का ध्येय लाभ अर्जित करना होता है। इनकी सेवाओं को प्राप्त करने के लिए हमें इन एकल स्वामियों और कंपनियों को भुगतान करना पड़ता है। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड अथवा रिलायन्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड जैसी कंपनियाँ निजी स्वामित्व में हैं।


अधिकांश गतिविधियाँ ऐसी है जिनकी प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार पर है। इन पर व्यय करने की अनिवार्यता भी सरकार की है; जैसे-स्वास्थ्य व शिक्षा री सुविधाएँ उपलब्ध कराना। कुछ गतिविधियाँ ऐसी हैं जिन्हें सरकारी समर्थन की की आवश्यकता होती है। निजी क्षेत्रक उन उत्पादनों अथवा व्यवसायों को तब तक जारी नहीं रख सकते जब तक सरकार उन्हें प्रोत्साहित नहीं करती।



प्रश्न 2. "भारत में विकास प्रक्रिया से जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? विस्तार से बताइए।


उत्तर भारत में विकास प्रक्रिया से जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। वर्ष 1973-74 और 2013-14 के बीच चालीस वर्षों में यद्यपि सभी क्षेत्रको में उत्पादन में वृद्धि हुई है किंतु सबसे अधिक वृद्धि तृतीयक क्षेत्रक के उत्पादन में हुई है। वर्ष 2013-14 में तृतीयक क्षेत्रक सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्रक के रूप में उभरा। भारत में प्राथमिक क्षेत्रक का जी.डी.पी. में योगदान केवल एक-चौथाई है जबकि द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रको का योगदान जी.डी.पी. में तीन-चौथाई है। भारत में तृतीयक क्षेत्रक के महत्त्वपूर्ण होने के कई कारण हैं; जैसे- 1. कृषि के क्षेत्र में तथा द्वितीयक क्रियाओं के क्षेत्र में विकास हुआ, जिससे उनसे संबंधित सेवाओं की माँग बढ़ गई। 2. भारत जैसे विकासशील देश में इन सुविधाओं/सेवाओं को बुनियादी सुविधाएँ/सेवाएँ माना जाता है। इसलिए सरकार इनका प्रबंध अच्छी तरह से करती है। 3. आय के बढ़ने के साथ-साथ लोग होटल, पर्यटन, निजी अस्पताल, निजी विद्यालयों की माँग शुरू कर देते हैं। इससे भी सेवाओं का क्षेत्र विस्तृत होता है। 4. विगत दशकों में सूचना व संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाओं में तीव्र वृद्धि हुई है। इस प्रकार स्पष्ट है कि तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में काफी वृद्धि हुई है। इससे जी.डी.पी. में प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रकों के मुकाबले तृतीयक क्षेत्रक का योगदान बढ़ता जा रहा है।


प्रश्न 3. संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना कीजिए।


या संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में अन्तर कीजिए। 



उत्तर- संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों में बहुत अंतर पाया जाता है। इन दोनों क्षेत्रकों की तुलना निम्नलिखित प्रकार से कर



संगठित क्षेत्रक


असंगठित क्षेत्रक


1.ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं।


ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होते।

2.इसमें सरकारी नियमों, विनियमों का पालन किया जाता है।

इसमें सरकारी नियमों, विनियमों का पालन नहीं किया जाता।


3.यहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है।

यहाँ रोजगार की अवधि नियमित नहीं होती।


4.इस क्षेत्रक में कर्मचारियों को रोजगार-सुरक्षा के लाभ मिलते हैं। उन्हें सवेतन छुट्टी, भविष्य निधि,सेवानुदान आदि प्राप्त होता है।

इस क्षेत्रक में कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा नहीं मिलती। यहाँ सवेतन छुट्टी, भविष्य निधि, सेवानुदान आदि का कोई प्रावधान नहीं होता है।

5.सरकारी संस्थानों, सरकारी सहायता प्राप्त संस्थाओं तथा  बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करना इसके उदाहरण हैं।


इसमें भूमिहीन श्रमिक, छोटे किसान, सड़कों पर विक्रय करने वाले, श्रमिक तथा कबाड़ उठाने वाले लोग शामिल हैं।





यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 19 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था 



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3 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था




याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की सीमाओं के अंदर ही सीमित था। इन देशों की सीमाओं को लाँघने वाली वस्तुओं में केवल कच्चा माल, खाद्य पदार्थ और तैयार उत्पाद ही थे। भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चा माल एवं खाद्य पदार्थ निर्यात होते थे और तैयार वस्तुओं का आयात होता था। व्यापार हो दूरस्थ देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य जरिया था।


2.परिसंपत्तियोंः जैसे-भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं।


3.बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ केवल वैश्विक स्तर पर ही अपना तैयार उत्पाद नहीं बेच रही हैं बल्कि अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन विश्व स्तर पर कर रही हैं। परिणामतः उत्पादन प्रक्रिया क्रमशः जटिल ढंग से संगठित हुई है।



4.सामान्यतः बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं जो बाजार के नजदीक हो, जहाँ कम लागत पर कुशल और अकुशल श्रम उपलब्ध हो और जहाँ उत्पादन के अन्य कारकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो।



5. एक अमेरिकी कंपनी फोर्ड मोटर्स विश्व के 26 देशों में प्रसार के साथ विश्व की सबसे बड़ी मोटरगाड़ी निर्माता कंपनी है। फोर्ड मोटर्स 1995 में भारत आयी और चेन्नई के निकट र 1700 करोड़ का निवेश करके एक विशाल संयंत्र की स्थापना की। यह संयंत्र भारत में जीपों एवं ट्रकों के प्रमुख निर्माता महिन्द्रा एंड महिन्द्रा के सहयोग से स्थापित किया गया।


6.विदेश व्यापार घेरलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। 


7.वैश्वीकरण ने सेवा प्रदाता कम्पनियों विशेषकर सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों के लिए नए अवसरों का सृजन किया है।


महत्त्वपूर्ण शब्दावली


बहुराष्ट्रीय कंपनी—एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वह है, जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व रखती है।


विदेशी निवेश बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विभिन्न परिसंपत्तियों पर किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं। 


 वैश्वीकरण अधिक विदेश व्यापार और अधिक विदेशी निवेश के कारण विभिन्न देशों के बाजारों एवं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है। विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है।


उदारीकरण- सरकार द्वारा अवरोधकों अथवा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहते हैं।


उपभोक्ता—जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु या सेवा के लिए उसका मूल्य चुकाता है तथा अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए उस वस्तु या सेवा का उपभोग करता है तो वह उपभोक्ता कहलाता है।


उपभोग ऐसी वस्तुओं का प्रयोग करना जो लोगों की आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से पूरा करती हैं।


उत्पादक ऐसा व्यक्ति जो वस्तुओं का उत्पादन करता है।


विकसित देश–वे देश जहाँ विकास की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लोगों का जीवन स्तर अच्छा है तथा राष्ट्रीय आय ऊँची है।


विकासशील देश–वे देश जहाँ विकास की प्रक्रिया अभी चल रही है, लोगों का जीवन स्तर ज्यादा अच्छा नहीं है तथा राष्ट्रीय आय भी अधिक नहीं है।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.विदेशी व्यापार किनके मध्य होता है?



(क) दो देशों के मध्य


(ख) दो प्रदेशों के मध्य


(ग) दो नगरों के मध्य


(घ) दो गाँवों के मध्य


उत्तर-


(क) दो देशों के मध्य


प्रश्न 2. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किए गए निवेश को कहते हैं


(क) उत्पादन


(ख) वितरण


(ग) विदेशी निवेश


(घ) व्यय


उत्तर-


(ग) विदेशी निवेश


प्रश्न 3. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब हुई?


(क) 1 जनवरी, 1993 में


(ख) 1 जनवरी, 1995 में


(ग) 1 जनवरी, 1990 में


(घ) 1 जनवरी, 1985 में


उत्तर-


(ख) 1 जनवरी, 1995 में



प्रश्न 4. निम्नलिखित में से उत्पादन का साधन है


(क) पूँजी


(ख) लाभ


(ग) सेवाएँ


(घ) कर


उत्तर- (क) पूँजी


प्रश्न 5. विश्व के देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निवेश का सबसे अधिक सामान्य मार्ग है


 (क) नये कारखानों की स्थापना


(ख) स्थानीय कंपनियों को खरीद लेना


(ग) स्थानीय कंपनियों से साझेदारी करना


(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं


उत्तर- (ग) स्थानीय कंपनियों से साझेदारी करना


प्रश्न 6. वैश्वीकरण ने जीवन-स्तर के सुधार में सहायता पहुँचाई है


(क) सभी लोगों के


(ग) विकासशील देशों के श्रमिकों के


(ख) विकसित देशों के लोगों के


(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं


उत्तर-


(ख) विकसित देशों के लोगों के



प्रश्न 7. सर्वप्रथम विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) किसके द्वारा हुआ? 


(क) विकसित देश


(ख) विकासशील देश 


(ग) अल्प-विकसित देश 


(घ) निर्धन देश



उत्तर-


(क) विकसित देश


प्रश्न 8. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कहाँ हुई थी?


(क) न्यूयॉर्क                   (ग) जेनेवा


(ख) वाशिंगटन               (घ) ऑस्ट्रेलिया


उत्तर- (ग) जेनेवा


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. वैश्वीकरण से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- अधिक विदेश व्यापार और अधिक विदेशी निवेश के कारण विभिन्न देशों के बाजारों एवं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है। विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। 


प्रश्न 2. विश्व व्यापार संगठन क्या है?


उत्तर- विश्व व्यापार संगठन एक ऐसा संगठन है जिसका ध्येय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। विकसित देशों की पहल पर शुरू विश्व संगठन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को लागू करता है।



प्रश्न 3. व्यापार अवरोधक से क्या तात्पर्य है?


 उत्तर विभिन्न प्रकार के व्यापार पर अवरोधक या प्रतिबंध लगाना अवरोधक कहलाता है। इसका प्रयोग विदेशी व्यापार में कटौती या वृद्धि करने के लिए किया जाता है।


प्रश्न 4. उदारीकरण क्या है?


उत्तर- उत्तर- सरकार द्वारा निजी क्षेत्रों पर से अवरोधों अथवा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहा जाता है।



प्रश्न 5. विदेशी निवेश से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विभिन्न परिसंपत्तियों पर किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं।


प्रश्न 6. देशों के बीच उत्पादन को संगठित करने में किसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है?


उत्तर- देशों के बीच उत्पादन को संगठित करने में प्रौद्योगिकी विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी ने एक बड़ी भूमिका निभायी है।


प्रश्न 7. वैश्वीकरण को बढ़ावा देने वाले कारक कौन-कौन से हैं? 


उत्तर- वैश्वीकरण को बढ़ावा देने वाले कारकों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ,उच्च प्रौद्योगिकी, यातायात के विकसित साधन, विश्व व्यापार संगठन, सूचना

प्रौद्योगिकी आदि प्रमुख हैं।


प्रश्न 8. बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने किन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा निवेश किया?


उत्तर- बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने शहरी इलाकों के उद्योगों; जैसे-सेलफोन, मोटरगाड़ियों, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, ठंडे पेय पदार्थों और जंक खाद्य पदार्थों एवं बैंकिंग क्षेत्रों में ज्यादा निवेश किया।


प्रश्न 9. भारत की दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नाम


 उत्तर- (i) टाटा मोटर्स तथा (ii) एशियन पेंट्स लिखिए।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद की उत्पादन लागत कम बनाए रखने में किस प्रकार प्रबंधन करती हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।


 उत्तर- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद की उत्पादन लागत को कम करने के लिए निम्न प्रबंधन करती हैं


(i) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ काफी मात्रा में पूँजी निवेश करके अधिक मात्रा में उत्पादन करती हैं जिससे उत्पादन लागत में कमी हो।


(ii) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ काफी मात्रा में कच्चे माल को खरीदती हैं जिससे कि उसे कम लागत में कच्चा माल प्राप्त हो सके। 


(iii) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ स्थानीय कंपनियों के साथ मिलकर बाजार पर नियंत्रण स्थापित करती हैं।


प्रश्न 2. विदेशी व्यापार संसार में विभिन्न देशों के बाजारों को किस प्रकार जोड़ता रहा है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।



 उत्तर- लंबे समय से विदेशी व्यापार विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य माध्यम रहा है। प्राचीनकाल से ही भारत का व्यापार अरब देशों, चीन, मिस्र की सभ्यता से होता था। मध्यकाल में भारत का व्यापार पूर्वी एशियाई देशों से भी काफी होने लगा। आधुनिक काल में यूरोपीय देशों से भारत का व्यापार = होने लगा। सरल शब्दों में, विदेश व्यापार घरेलू बाजारों, अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों का एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं, बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।


प्रश्न 3. "सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच उत्पादों और सेवाओं के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाई है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।


उत्तर- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास ने विभिन्न देशों के बीच उत्पादों और सेवाओं के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान समय में दूरसंचार कंप्यूटर और इंटरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी द्रुत गति से परिवर्तित हो रही है। दूरसंचार सुविधाओं; जैसे- टेलीग्राफ, टेलीफोन, मोबाइल फोन एवं फैक्स का विश्व भर में एक-दूसरे से संवाद करने में प्रयोग किया जाता है। ये सुविधाएँ संचार उपग्रहों द्वारा सुगम हुई हैं। इससे व्यापार में तेजी से विकास हुआ है। इस तरह से विश्व के व्यापारी आसानी से एक-दूसरे से संपर्क करने में कामयाब हो रहे हैं।


प्रश्न 4.बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार अपने उत्पादों का दूसरे देशों में प्रसार कर रही हैं? एक उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।


उत्तर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कई तरह से अपने उत्पादन कार्य का प्रसार कर रही हैं और विश्व के कई देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ पारस्परिक संबंध स्थापित कर रही है। स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी द्वारा, आपूर्ति के लिए • स्थानीय कंपनियों का इस्तेमाल करके और स्थानीय कंपनियों से निकट 1 प्रतिस्पर्धा करके अथवा उन्हें खरीदकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूरस्थ स्थानों के उत्पादन पर अपना प्रभाव जमा रही है। परिणामस्वरूप दूर-दूर स्थानों पर फैला उत्पादन परस्पर संबंधित हो रहा है, जैसे- भारत में फोर्ड मोटर्स का कार संयंत्र, केवल भारत के लिए ही कारों का निर्माण नहीं करता, बल्कि वह अन्य १ विकासशील देशों को कारें और विश्व भर में अपने कारखानों के लिए। कार-पूजों का भी निर्यात करता है।


प्रश्न 5 श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों में कैसे मदद करेगा?


 उत्तर- श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों में अग्र प्रकार से मदद करेगा 


(i) कम्पनियाँ छोटी अवधि के लिए श्रमिकों को कार्य पर रख सकती हैं।


(ii) कम्पनियाँ मजदूरों को अनुबंध पर काम पर रख सकती है। (iii) श्रम कानूनों में लचीलेपन के कारण कम्पनी के लिए मजदूरों की लागत में कमी आती है।


प्रश्न 6.भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कोई तीन उपाय सुझाइए। 



उत्तर


विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम निम्नलिखित हैं



(i) विदेशी निवेश के प्रतिबंध को हटाया गया। 


(ii) तकनीकी तथा विदेशी कच्चे माल के आयात पर से प्रतिबंध हटाया गया।


(iii) उद्यमों को स्थापित करने के लिए लाइसेंसिंग प्रथा को हटाया गया।


प्रश्न 7. "विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में सहायक रहा है।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।


 या विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायता करता है? संक्षेप में समझाइए। 



या विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके लाभों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- दो या दो से अधिक देशों के बीच होने वाले व्यापार को विदेशी व्यापार कहते हैं। दूसरे शब्दों में, विदेशी व्यापार से तात्पर्य दो या दो से अधिक देशों में वस्तुओं तथा सेवाओं के विनिमय से है। इसमें आयात तथा निर्यात शामिल है।


विदेश व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेचते हैं बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष उन वस्तुओं के विकल्पों का विस्तार होता है जिनका घरेलू उत्पादन होता है। बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। दो बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक समान होता है। अब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार, विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या एकीकरण में सहायक हुआ है


प्रश्न 8. सन् 1991 में भारत सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में क्या परिवर्तन किए गए?


उत्तर- सन् 1991 के प्रारंभ में भारत सरकार द्वारा आर्थिक नीतियों में दूरगामी परिवर्तन किए गए। सरकार ने निश्चय किया कि भारतीय उत्पादकों को विश्व के उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी। यह महसूस किया गया कि प्रतिस्पर्धा से देश के उत्पादकों के प्रदर्शन में सुधार होगा क्योंकि वे अपनी गुणवत्ता में सुधार करेंगे। इसलिए विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर से अवरोधकों को काफी हद तक हटा दिया गया। सरकार द्वारा अवरोधकों को हटाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहते हैं। आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों को अपनाकर भारत की अर्थव्यवस्था को विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ने का प्रयास किया गया।


 प्रश्न. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? अपने शब्दों से स्पष्ट कीजिए।


या वैश्वीकरण क्या है? इसका कोई एक लाभ बताइए। 


उत्तर वैश्वीकरण का अर्थ एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से विदेशी व्यापार एवं


विदेशी निवेश द्वारा जोड़ा जाता है। वैश्वीकरण के कारण आज विश्व में विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, तकनीकी तथा श्रम का आदान प्रदान हो रहा है। इस कार्य में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जब वे अपनी इकाइयाँ संसार के विभिन्न देशों में स्थापित करती हैं।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न1. वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है? वैश्वीकरण की प्रक्रिया में सहायक कारकों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- अधिक विदेश व्यापार और अधिक विदेशी निवेश के कारण 7 विभिन्न देशों के बाजारों एवं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है। विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देने में निम्नलिखित कारकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है


1. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ- बहुराष्ट्रीय कंपनियां वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। विभिन्न देशों के बीच अधिक-से-अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है। इससे विश्व के अधिकांश भाग एक-दूसरे के अपेक्षाकृत अधिक पास रहे हैं।


2. उन्नत प्रौद्योगिकी-वैश्वीकरण को उत्प्रेरित करने में प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। परिवहन में उन्नति से दो देशों के बीच दूरी कम हो गई है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी के विकास से वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला है। दूरसंचार कंप्यूटर, इंटरनेट के क्षेत्र में प्रगति हुई है। दूरसंचार सुविधाओं का विश्व भर में एक-दूसरे से संपर्क करके, सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों में संवाद करने में प्रयोग किया जाता है। जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में कंप्यूटरों का प्रवेश हो गया है। इंटरनेट से हम इलेक्ट्रॉनिक डाक भेज सकते हैं और अत्यंत कम मूल्य पर विश्व भर में बात कर सकते हैं। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाई है।


3. उदारीकरण- सरकार द्वारा व्यापार अवरोधकों को हटाने की प्रक्रिया को ही उदारीकरण कहते हैं। उदारीकरण के कारण अनेक देशों के बीच व्यापार तथा निवेश को बढ़ावा मिला है। व्यापार के उदारीकरण से व्यापारियों को मुक्त रूप से निर्णय लेने की अनुमति मिल जाती है। इससे आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। साथ ही व्यापार और निवेश के उदारीकरण ने व्यापार और निवेश अवरोधकों को हटाकर वैश्वीकरण को सुगम बनाया है।


प्रश्न 2. भारत में वैश्वीकरण के प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। 


उत्तर भारत में वैश्वीकरण के सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़े है। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है


सकारात्मक प्रभाव


(i) वैश्वीकरण के कारण उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अनेक उत्पादों की उत्कृष्टता, गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। ये लोग पहले की तुलना में उच्चतर जीवन-स्तर का प्रयोग कर रहे हैं।


 (ii) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भारत में माल और सेवाओं में किया जाने वाला निवेश भी उत्तरोत्तर बढ़ाया जा रहा है। 1991 से अब तक यह निवेश बढ़ता जा रहा है।



(iii) बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं में निवेश किया है। विदेशी निवेश भी इन्हीं उद्योगों और सेवाओं में जिसमें निर्यात वृद्धि की संभावना है। हुआ है,


(iv) वैश्वीकरण के कारण नए उद्योग स्थापित होने से रोजगार के नए अवसरों का सृजन भी हुआ है।


(v) उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कंपनियों का विस्तार भी हुआ है।


(vi) वैश्वीकरण ने कुछ बड़ी कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने में सक्षम बनाया है। टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी, एशियन पेन्ट्स कुछ ऐसी भारतीय कंपनियाँ हैं जो विश्व स्तर पर अपने क्रिया-कलापों का प्रसार कर रही हैं।


(vii) वैश्वीकरण से सेवा प्रदाता कंपनियों से सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कंपनियों के लिए नए अवसरों का सृजन हुआ है। प्रशासनिक कार्य, इंजीनियरिंग इत्यादि जैसी कई सेवाएँ भारत जैसे देशों में अब सस्ते में उपलब्ध हैं और विकसित देशों को निर्यात की जाती हैं।


नकारात्मक प्रभाव


वैश्वीकरण के बहुत-से अच्छे प्रभावों के बावजूद इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी रहे हैं। उत्पादकों और कर्मचारियों पर वैश्वीकरण का समान प्रभाव नहीं पड़ा है। इसके कुछ नकारात्मक पक्ष निम्नवत् हैं


(i) वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण श्रमिकों का रोजगार लंबे समय के लिए सुनिश्चित नहीं है। जहाँ पहले कारखाने श्रमिकों को स्थायी आधार पर रोजगार देते थे, वहीं वे अब अस्थायी रोजगार देते हैं, ताकि श्रमिकों को वर्ष भर वेतन न देना पड़े।


 (ii) श्रमिकों से बहुत लंबे कार्य-घंटों तक काम लिया जाता है। मजदूरी काफी कम होती है। श्रमिकों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिएअतिरिक्त समय में भी काम करना पड़ता है।


इस प्रकार हमने देखा कि वैश्वीकरण के कारण मिले लाभों में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं मिला। इससे धनी उपभोक्ता, कुशल व शिक्षित लोग, धनी उत्पादक आदि ही लाभान्वित हुए हैं।


प्रश्न 3. दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार उत्पादन पर नियंत्रण स्थापित करती हैं?


उत्तर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वे कंपनियाँ हैं जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व रखती हैं। ये कंपनियाँ उन देशों में अपने कारखाने स्थापित करती हैं जहाँ उन्हें सस्ता श्रम एवं अन्य साधन मिल सकते हैं। जहाँ सरकारी नीतियाँ भी उनके अनुकूल हों। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं, लेकिन अधिकांशतः बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ स्थानीय कंपनियों को खरीदकर उत्पादन का प्रसार करती हैं; जैसे—एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी 'कारगिल फूड्स' ने अत्यंत छोटी भारतीय कंपनी 'परख फूड्स' को खरीद लिया है।


बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ एक अन्य तरीके से उत्पादन नियंत्रित करती हैं।


विकसित देशों में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आदेश देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल के सामान ऐसे उद्योग हैं, जिनका विश्वभर में बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों द्वारा उत्पादन किया जाता है।बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इनकी आपूर्ति कर दी जाती है, जो अपने ब्रांड नाम से इसे ग्राहकों को बेचती हैं।


प्रश्न 4. "वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान नहीं है।" इस कथन की अपने शब्दो में व्याख्या कीजिए।


उत्तर- विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण ही वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण का विश्व के सभी देशों पर गहरा प्रभाव पड़ा किंतु यह प्रभाव एकसमान नहीं है। स्थानीय एवं विदेशी उत्पादकों के बीच  प्रतिस्पर्धाओं में धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अनेक उत्पादों की उत्कृष्टता, गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। परिणामत: ये लोग पहले की अपेक्षा एक उच्चतर जीवन स्तर का उपभोग कर रहे हैं।


वैश्वीकरण से बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों और कर्मचारियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। बैटरी, प्लास्टिक, खिलौने, टायर, डेयरी उत्पाद एवं खाद्य तेल उद्योग कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे निर्माता टिक नहीं सके। कई इकाइयाँ बंद हो गईं। जिसके चलते अनेक श्रमिक बेरोजगार हो गए। वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया। बढती प्रतिस्पर्धा के कारण श्रमिकों का रोजगार लंबे समय के लिए सुनिश्चित नहीं रहा। वैश्वीकरण के कारण मिले लाभ में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं मिला। ये सभी प्रमाण संकेत करते हैं कि वैश्वीकरण सभी के लिए लाभप्रद नहीं रहा है। शिक्षित, कुशल और संपन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नए अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है। दूसरी ओर अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है।


प्रश्न 5.व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण, वैश्वीकरण प्रक्रिया की किस प्रकार सहायता करता है?


उत्तर- व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण वैश्वीकरण प्रक्रिया में निम्नलिखित प्रकार से सहायता पहुँचाता है


 (i) इससे व्यक्ति या कम्पनी अपनी इच्छा व आवश्यकता के अनुसार आयात और निर्यात कर सकती है। 



(ii) व्यापार अवरोधक समाप्त हो जाने से आयात और निर्यात में आसानी होती है।


(iii) विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में उदारीकरण के फलस्वरूप विदेशी कम्पनियाँ अन्य देशों में अपने कार्यालय और कारखाने खोल लेती हैं।


(iv) इससे व्यापारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने की अनुमति मिलती है। इस प्रकार व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को विभिन्न देशों में उत्पादन करने को प्रोत्साहन देता है। जहाँ कहीं भी सस्ता श्रम तथा अन्य सुविधाएँ होती हैं वहाँ पर कारखाने या अन्य उत्पादन क्रिया प्रारम्भ

की जा सकती है। इस तरह वैश्वीकरण में वृद्धि होती है। 


प्रश्न 6. भारत में विदेशी व्यापार की तीन विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।


उत्तर- भारत में विदेशी व्यापार की तीन विशेषताएँ निम्नवत् हैं—



1. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग-एक देश ऐसे उद्योगों की स्थापना एवं संचालन करता है, जिनसे उसे अधिकतम तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है और उस बाजार (देश) में वह अपनी उत्पादित वस्तुओं को बेचता है, जहाँ उसे वस्तुओं का सबसे अधिक मूल्य मिलता है। फलस्वरूप वह उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करता है।


2. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन-विदेशी व्यापार के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिए आवश्यक उपकरण, कच्चा माल व तकनीकी ज्ञान सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं। फलतः देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। 


3. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सद्भावना में वृद्धि-विदेश व्यापार के फलस्वरूप विभिन्न देशों के नागरिक एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और एक-दूसरे के विचारों एवं दृष्टिकोण से परिचित होते हैं। फलस्वरूप सांस्कृतिक सहयोग एवं परस्पर विश्वास में वृद्धि होती है। 




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यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 20 उपभोक्ता अधिकार




4   उपभोक्ता अधिकार





याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.उपभोक्ताओं की भागीदारी बाजार में तब होती है, जब वे अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं। उपभोक्ता के रूप में लोगों द्वारा उपभोग किये जानेवाली में अंतिम वस्तुएँ होती है।


2.अत्यधिक खाद्यकमी, जमाखोरी, कालाबाजारी खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट के कारण भारत में 1960 के दशक में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ।


3.उपभोक्ता आन्दोलन के जन्मदाता रेलफ नाडर थे जिन्होंने उपभोक्ता आन्दोलन को 1962 ई. में शुरू किया था।



4. भारत सरकार ने 1986 ई. में उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया, जिसे COPRA (कोपरा) कानून के नाम से जाना जाता है।


5." सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया जो 'RTI (राइट टू इनफॉरमेशन)' या 'सूचना पाने का अधिकार' के नाम से जाना जाता है. और जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्य-कलापों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।


6.जिला स्तर का न्यायालय ₹20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता है, राज्य स्तरीय अदालते ₹20 लाख से ₹ 1 करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की अदालते ₹1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं।


7.इलेक्ट्रिक सामान के लिए आई. एस. आई. शब्द चिह्न (लोगो) और खाद्य पदार्थ के लिए एगमार्क या हॉलमार्क के शब्द चिह्न (लोगो) को प्रमाणक चिह्न के रूप में जारी किया गया है जो वस्तुओं के अच्छी गुणवत्ता के प्रमाणक हैं।


8.24 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज देश में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं जिनमें से केवल 20-25 ही अपने कार्यों के लिए पूर्ण संगठित और मान्यता प्राप्त हैं।


महत्त्वपूर्ण शब्दावली


उपभोक्ता-ऐसे व्यक्ति जो अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं और उनका उपभोग करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं।


 उत्पादक ऐसा व्यक्ति जो चीजों का निर्माण या उत्पादन करता है। 


उपभोक्ता इंटरनेशनल-सन् 1985 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के दिशा-निर्देशों को अपनाया और उपभोक्ताओं को

शोषण से बचाने के लिए उपभोक्ता इंटरनेशनल का गठन किया। 


 कोपरा (COPRA) – सन् 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून बनाया गया जो

'कोपरा' के नाम से प्रसिद्ध हैं।


सूचना का अधिकार (RT.I.)- सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून बनाया जो सूचना के अधिकार के नाम से जाना जाता है। इसमें नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्य-कलापों की सूचनाएँ पाने का अधिकार है।


राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस–24 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1986 को इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता

सुरक्षा अधिनियम पारित किया था।


आई.एस.आई औद्योगिक और उपभोक्ता वस्तुओं के लिए मानक निर्धारित किया जाता है। इसके लिए उनकी गुणवत्ता की जाँच करके आई. एस. आई. की मोहर लगाई जाती है, जिसका अर्थ है-'भारतीय मानक संस्थान ।


बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.भारत में उपभोक्ता आंदोलन किस रूप में हुआ?


(क) उपभोक्ता जागरूकता


(ख) सामाजिक बल


(ग) अनैतिक व अनुचित व्यवसाय


(घ) उपरोक्त सभी


उत्तर-


(क) उपभोक्ता जागरूकता


प्रश्न 2. भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम कब पारित किया गया?


(क) 1982


(ख) 1984


(ग) 1985


(घ) 1986


उत्तर-


(घ) 1986


प्रश्न 3. 'सूचना पाने का अधिकार अधिनियम कब पारित हुआ?


(क) अक्टूबर, 2005 में   (ख) मार्च, 2005 में


(ग) जनवरी, 2006 में     (घ) अप्रैल, 2007 में


उत्तर


(क) अक्टूबर, 2005 में


प्रश्न 4. एगमार्क किन वस्तुओं के लिए प्रामाणिक चिह्न है?


(क) उत्पादित सामान


(ख) स्वर्ण व चाँदी


(ग) उत्पादित मशीन


 (घ) खाद्य-पदार्थ


उत्तर-


(घ) खाद्य-पदार्थ


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. उपभोक्ता किसे कहते हैं?


उत्तर- ऐसे व्यक्ति जो अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं और उनका उपभोग करते हैं, उन्हें उपभोक्ता कहते हैं।


प्रश्न 2. उपभोक्ता इंटरनेशनल क्या है?


उत्तर- सन् 1985 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त को शोषण से बचाने राष्ट्र संघ के दिशा-निर्देशों को अपनाया और उपभोक्ताओं के लिए उपभोक्ता इंटरनेशनल का गठन किया।



प्रश्न 3. सूचना का अधिकार क्या है?


उत्तर- सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून बनाया जो 'सूचना पाने के अधिकार' के नाम से जाना जाता है। इसमें नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्य-कलापों की सूचनाएँ पाने का अधिकार है।


प्रश्न 4. कोपरा कानून क्या है?


उत्तर- सन् 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून बनाया गया जो कोपरा के नाम से

प्रसिद्ध है।


प्रश्न 5. आई.एस.आई. किन वस्तुओं के लिए प्रमाणक चिह्न है? 


उत्तर- आई.एस.आई. इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक सामान का प्रमाणक चिह्न है।


प्रश्न 6. उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई?


 उत्तर- उपभोक्ताओं का विक्रेताओं और उत्पादकों द्वारा विभिन्न तरीकों से शोषण; जैसे—उपभोक्ता से अधिक कीमत वसूल करना, वस्तुओं में मिलावट करना, कम माप-तौल करना, असली के स्थान पर नकली वस्तुओं को देना आदि के कारण उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत हुई। है?


प्रश्न 7. एगमार्क किन वस्तुओं के लिए प्रमाणक चिह्न

 उत्तर- एगमार्क खाद्य पदार्थ के लिए प्रमाणक चिह्न है।


प्रश्न 8. राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? 


उत्तर 24 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया

जाता है। सन् 1986 को इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया था।


प्रश्न 9. उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?



उत्तर उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन उपभोक्ता दल बनाकर, उपभोक्ता आंदोलनों के द्वारा तथा उपभोक्ता सुरक्षा परिषदों को बनाकर कर सकते हैं।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक



प्रश्न 1. उपभोक्ता सुरक्षा परिषदें' किस प्रकार उपभोक्ताओं की मदद करती हैं? तीन तरीके स्पष्ट कीजिए। 



उत्तर

उपभोक्ता सुरक्षा परिषदें निम्नलिखित प्रकार से उपभोक्ताओं की मदद करती है


(i) विक्रेताओं या उत्पादकों द्वारा शोषण होने पर उपभोक्ता सुरक्षा परिषद् या उपभोक्ता अदालत, उपभोक्ताओं द्वारा शिकायत करने पर सुनवाई करती है।


(ii) उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है। 


(iii) जिला स्तर के न्यायालय ₹20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करते हैं, राज्य स्तरीय अदालतें ₹20 लाख से ₹1 करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की अदालतें ₹1 करोड़ से ऊपर


प्रश्न 2.की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं। हम बाजार में उत्पादक और उपभोक्ता के रूप में किस प्रकार भागीदारी करते हैं? तीन उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।


उत्तर- हम बाजार में उत्पादक और उपभोक्ता के रूप में निम्न प्रकार से भागीदारी करते हैं 


(i) अगर एक व्यक्ति किसी कार्यालय, उद्योग या अन्य क्षेत्रों में काम करता है तो वह सेवा का उत्पादक है।


(ii) जब कोई भी व्यक्ति विक्रेता या उत्पादक से वस्तुओं या सेवाओं को खरीदता है तो उसे उपभोक्ता कहा जा सकता है।


(iii) एक व्यक्ति किसी एक वस्तु या सेवा का उत्पादक है तो वह दूसरी वस्तु के लिए उपभोक्ता है। टाटा मोटर कार, नमक, चाय आदि के उत्पादक हैं, तो वहीं दूसरी ओर वे अनाज, सब्जी, तेल, घी को खरीदते हैं तो वह उसका उपभोक्ता है।


प्रश्न 3. मानकीकरण से क्या अभिप्राय है? कुछ

ऐसे उपायों के नाम बताइए,


उत्तर –जिनका मानकीकरण जरूरी है। मानकीकरण से अभिप्राय है-विभिन्न उत्पादों की गुणवत्ता देखकर उत्तर उनके लिए मानक या प्रमाण चिह्न निर्धारित करना । जब उपभोक्ता कोई वस्तु खरीदे तो ये प्रमाण चिह्न उन्हें अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित कराने में मदद करते हैं। कुछ उत्पाद जो उपभोक्ता की सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है, जैसे-एल.पी.जी. सिलेंडर्स, खाद्य रंग एवं उसमें प्रयुक्त सामग्री, सीमेंट, बोतलबंद पेयजल आदि। इनके उत्पादन के लिए यह जरूरी होता है कि उत्पादक इन संगठनों से प्रमाण प्राप्त करें।


प्रश्न 4. कोपरा (COPRA) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


उत्तर- सन् 1986 में भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया गया। सन् 1986 में उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 बनाया गया जो कोपरा (COPRA) के नाम से प्रसिद्ध है। इस अधिनियम के द्वारा उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए गए। सर्वप्रथम- राष्ट्रीय राज्य और जिला स्तर पर तीन स्तरीय उपभोक्ता अदालतों का निर्माण किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर इसे राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत कहते हैं। राज्य स्तर पर इसे राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर इसे जिला मंच कहा जाता है।


प्रश्न 5.उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की ज़रूरत क्यों पड़ी?


उत्तर- बाज़ार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लंबे समय तक उपभोक्ताओं का शोषण उत्पादकों तथा विक्रेताओं के द्वारा किया जाता रहा। इस शोषण से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकार पर उपभोक्ता आंदोलनों के द्वारा दबाव डाला गया। यह वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून बनाया गया, जो कोपरा (COPRA) के नाम से प्रसिद्ध है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. उपभोक्ता की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों का वर्णन कीजिए।


या भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मापदंडों को लागू करना चाहिए?


 उत्तर- सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं


1. कानूनी उपाय – उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए भारत सरकार ने सन् 1986 में उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम बनाया। इस कानून के द्वारा राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर तीन स्तरीय उपभोक्ता अदालतों का निर्माण किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर इसे राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, राज्य स्तर पर इसे राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर इसे जिला मंच कहा जाता है। इस अधिनियम में 1991 और 1993 में संशोधन करके कानून को और कड़ा बनाया गया है ताकि उपभोक्ताओं की शिकायतों का जल्दी और बेहतर निपटारा हो सके।


सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून बनाया जिसे 'सूचना पाने व अधिकार' के नाम से जाना जाता है। यह सभी नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्य-कलापों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।


2. प्रशासनिक उपाय- सरकार ने आवश्यक वस्तुओं का वितरण सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा करके कालाबाजारी, जमाखोरी तथा मुनाफा वसूली को रोकने का प्रयास किया है जिससे उपभोक्ताओं का शोषण न हो।


3. तकनीकी उपाय- तकनीकी उपाय में सरकार द्वारा विभिन्न वस्तुओं का मानकीकरण करना शामिल है। इसमें विभिन्न चीजों की गुणवत्ता की जाँच करके एगमार्क व आई.एस.आई. की मोहर लगाई जाती है। अब उपभोक्ता के लिए विभिन्न उत्पादों की खरीद के समय इन प्रामाणिक चिह्नों को देखना संभव है।


इस प्रकार सरकार ने तकनीकी, प्रशासनिक तथा कानूनी उपाय अपनाकर उपभोक्ताओं को उत्पादकों, व्यापारियों तथा दुकानदारों के शोषण से बचाने में मदद की है।


प्रश्न 2.भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाइए


या भारत में उपभोक्ता आंदोलन का आरम्भ करने के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए।


 उत्तर उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुई क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यवसायों में शामिल होते थे। बाज़ार में

उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। यह माना जाता था कि एक उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह एक वस्तु या सेवा को खरीदते समय सावधानी बरते। संस्थाओं को लोगों में जागरूकता लाने में भारत और पूरे विश्व में कई वर्ष लग गए। इन्होंने वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर भी डाल दी।


भारत में सामाजिक बल के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के फलस्वरूप हुआ। अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ। 1970 तक उपभोक्ता संस्थाएँ बड़े पैमाने पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शन का आयोजन करने लगी। इसके लिए उपभोक्ता दल बनाए गए। भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई।


इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप यह आंदोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ।


प्रश्न 3. कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।


या वे कौन-से विभिन्न कारक हैं जिनके द्वारा बाजार में उपभोक्ताओं का शोषण किया जाता है?


या उपभोक्ताओं का शोषण किस प्रकार किया जाता है? उदाहरण देकर समझाइए।


या तीन ऐसे कारकों को बताइए जिसमें उपभोक्ताओं का शोषण होता है।


या उपभोक्ता जागरुकता की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए। 


 उत्तर- व्यापारी, दुकानदार और उत्पादक कई तरीकों से उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। अतः उपभोक्ताओं का जागरूक होना अति आवश्यक है। उपभोक्ताओं को शोषित करने के कुछ प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं


1. घटिया सामान– कुछ बेईमान उत्पादक जल्दी धन एकत्र करने के उद्देश्य से घटिया किस्म का माल बाजार में बेचने लगते हैं। दुकानदार भी ग्राहक को घटिया माल दे देता है क्योंकि ऐसा करने से उसे अधिक लाभ होता है।


2. कम तोलना या मापना-बहुत-से चालाक व लालची दुकानदार ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की चीजें कम तोलकर या कम मापकर उनको ठगने का प्रयत्न करते हैं।


3. अधिक मूल्य–जिन चीजों के ऊपर विक्रय मूल्य नहीं लिखा होता, वहाँ कुछ दुकानदारों का यह प्रयत्न होता है कि ऊँचे दामों पर चीजों को बेचकर अपने लाभ को बढ़ा लें।


4. मिलावट करना - लालची उत्पादक अपने लाभ को बढ़ाने के लिए खाने-पीने की चीजों; जैसे—घी, तेल, मक्खन, मसालों आदि में मिलावट करने से बाज नहीं आते। ऐसे में उपभोक्ताओं को दोहरा नुकसान होता है। एक तो उन्हें घटिया माल की अधिक कीमत देनी पड़ती है दूसरे, उनके स्वास्थ्य को भी नुकसान होता है।


5. सुरक्षा उपायों की अवहेलना-कुछ उत्पादक विभिन्न वस्तुओं को बनाते समय सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते। बहुत-सी चीजें हैं जिन्हें सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है; जैसे—प्रेशर कुकर में खराब सेफ्टी वॉल्व के होने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है। ऐसे में उत्पादक थोड़े-से लालच के कारण जानलेवा उपकरणों को बेचते हैं।


6. अधूरी या गलत जानकारी-बहुत-से उत्पादक अपने सामान की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर पैकेट के ऊपर लिख देते हैं जिससे उपभोक्ता धोखा खाते हैं। जब वे ऐसी चीजों का प्रयोग करते हैं तो उल्टा ही पाते हैं और अपने-आपको ठगा हुआ महसूस करते हैं।


7. असंतोषजनक सेवा- बहुत-सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें खरीदने के बाद एक लंबे समय तक सेवाओं की आवश्यकता होती है; जैसे -कूलर, , फ्रिज, वाशिंग मशीन, स्कूटर और कार आदि। परंतु खरीदते समय जो वादे उपभोक्ता से किए जाते हैं, वे खरीदने के बाद पूरे नहीं किए जाते। विक्रेता और उत्पादक एक-दूसरे पर इसकी जिम्मेदारी डालकर उपभोक्ताओं को परेशान करते हैं।


8. कृत्रिम अभाव – लालच में आकर विक्रेता बहुत-सी चीजें होने पर भी उन्हें दबा लेते हैं। इसकी वजह से बाजार में वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा हो जाता है। बाद में इसी सामान को ऊंचे दामों पर बेचकर दुकानदार लाभ कमाते हैं। इस प्रकार विभिन्न तरीकों द्वारा उत्पादक, विक्रेता और व्यापारी उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। उक्त कारणों से स्पष्ट है कि उपभोक्ता जागरुकता अति आवश्यक है।


प्रश्न 4. उपभोक्ता के अधिकारों की व्याख्या कीजिए। 


उत्तर- उपभोक्ताओं से सम्बन्धित मुख्य अधिकार निम्नलिखित हैं


1. सुरक्षा का अधिकार-(i) जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत-सी वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते हैं, तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार होता है क्योंकि ये जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक होते हैं। 


(ii) उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा नियमों और विनियमों वे का पालन करें।


(iii) ऐसी बहुत सी वस्तुएँ और सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है।


2. सूचना का अधिकार- उपभोक्ताओं को यह अधिकार दिया गया है कि वे वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य की मात्रा की गुणवत्ता के बारे में सूचना प्राप्त करें।


3. चुनने का अधिकार- उपभोक्ताओं को यह अधिकार है कि वह वस्तुओं तथा सेवाओं की किस्म तथा उचित मूल्य की जानकारी रखें और यदि एक ही विक्रेता है, तो उपभोक्ता को पूर्ण अधिकार है कि वह इच्छानुसार ठीक मूल्य पर सही वस्तु का चुनाव कर सके।



 4. सुनवाई का अधिकार - हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि उपभोक्ता के हितों से जुड़ी विभिन्न संस्थाएँ उन्हें यह आश्वासन दें कि उनकी समस्याओं का पूरा ध्यान दिया जाएगा।


5. शिकायतें निपटाने का अधिकार-हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह जब उत्पादकों द्वारा शोषित हो अथवा ठगा जाए तो उनकी शिकायत कर उसके हक में ठीक प्रकार से निपटारा हो।


 6. प्रतिनिधित्व का अधिकार-(i) कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रि-स्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है।


 (ii) यदि कोई मुकदमा जिला स्तर के न्यायालय में खारिज कर दिया जाता है, तो उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय में भी अपील कर सकता है।











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