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कक्षा 11वी हिंदी यूपी बोर्ड अर्द्ध वार्षिक परीक्षा पेपर का सम्पूर्ण हल 2022–23

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                अर्द्धवार्षिक परीक्षा


                      कक्षा-11वी

 

                विषय – सामान्य हिन्दी


समय: 3.00 घंटे.                  SOMB पूर्णांक: 100


नोट: सभी प्रश्न अनिवार्य है


 1. (क) भारत भारती की रचना है।


(अ) कहानी


(ब) उपन्यास


(स) नाटक


(द) काव्य

उत्तर –(द) काव्य

(ख)निम्नलिखित में अष्टयाम की भाषा है


(अ) राजस्थानी 


(ब) ब्रज भाषा 


(स) अवधी 


(द) खड़ी बोली

उत्तर –(ब) ब्रज भाषा


(ग) सुखसागर के लेखक है


(अ) लल्लूलाल 


(ब) मुंशीसदासुख लाल


 (स) इशा अल्ला खाँ


 (द) सदल मिश्र

उत्तर –(ब) मुंशीसदासुख लाल


 (घ) 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ की रचना है।


(अ) डायरी


(ब) गद्यगीत 


(स) आत्मकथा


(द) संस्मरण

उत्तर –(स) आत्मकथा


 (ङ) आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा सम्पादित कौन-सी पत्रिका थी?


(अ) हस


(ब) सरस्वती


(स) ब्राह्मण


(द) इन्दु

उत्तर –(ब) सरस्वती

2. (क) सुरदास की दो रचनाओं के नाम लिखिए।

उत्तर – सूरसागर, सूर सारावली 

 (ख) तार सप्तक' का प्रकाशन कब हुआ तथा उसके सम्पादक कौन है?

उत्तर – अज्ञेय,1943 ई.

(ग) वीरगाथा काल के कवि कौन है ?

उत्तर – नरपति 


3. निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 


सूर्य और चन्द्रमा, ये दोनों ही आकाश की वो आँखों के समान है। उनमें से सहस्रकिरणात्मक मूर्तिधारी सूर्य ने ऊपर उठकर जब अशेष लोको का अन्धकार दूर कर दिया, तब वहयुद्ध ही चमक उठा। उधर बेचारा चन्दमा किरण--हीन हो जाने से बहुत ही धूमिल हो गया। इस तरह आकाश की एक आँख तो खूब तेजरक और दूसरी तेजोहीन हो गई। अतएव ऐसा मालूम हुआ जैसे एक आँख प्रकाशवती और दूसरी अन्धी वाला, आकाश काना हो गया है। 


(क) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ का नाम तथा लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर – पाठ का नाम – महाकवि माघ का प्रभात वर्णन

लेखक– महावीर प्रसाद द्विवेदी,

(ख) रेखांकित पक्तियों की व्याख्या कीजिए।


उत्तर –व्याख्या- प्रातःकालीन सौन्दर्य का सजीव चित्र प्रस्तुत करते हुए द्विवेदी जी कहते हैं कि प्रात:काल जब सूर्य अपनी सहस्रों किरणों की चमक बिखेरते हुए आसमान में ऊपर उठता है, तभी चन्द्रमा निस्तेज एवं किरणहीन होकर पश्चिम के आकाश में धूमिल हो चुका होता है; क्योंकि शक्तिशाली, तेजस्वी और वीर पुरुष के समक्ष सामान्य व्यक्ति प्रभावहीन हो जाता है ।। लेखक प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि सूर्य और चन्द्रमा मानो आकाश की दो आँखें हैं ।। उसकी सूर्यरूपी एक आँख तेजयुक्त तथा चन्द्ररूपी दूसरी आँख निस्तेज हो गई है ।। ऐसा प्रतीत होता है, मानो आकाश में कानेपन का विकास उत्पन्न हो गया है ।।


(ग) प्रस्तुत गद्यांश में किसका मानवीकरण किया गया है ?

उत्तर – लेखक ने प्राकृति का मानवीकरण किया है 


(घ) सूर्य की किरणों की चमक चन्द्रमा पर क्या प्रभाव डालती है 

उत्तर – जब सूर्य की किरणे निकलती है तो चन्द्रमा निस्तेज एवं किरणहीन होकर पश्चिम के आकाश में धूमिल हो जाता है


(इ) आँख और आकाश' शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए। 

उत्तर –आँख = नेत्र,नयन

आकाश= नभ, गगन 


4.निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 


हमारे हरि हारिल की लकरी मन क्रम बचन नन्दनन्दन उर यह दृढ़ कर पकरी ।। जागत सोवत स्वप्न दिवस निसि कान्ह-कान्ह जकरी सुनत जोग लागत है ऐसो. ज्या करूई ककरी।।सुतो व्याधि हमको ले आए, देखी सुनी न करो। यह तो सूर तिनहिं से सौपा जिनके मन चकरी।।


(क) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक व उसके कवि का नाम बताओ। 

उत्तर – सूर दास के पद

लेखक – सूरदास 


(ख) गोपियों के लिए श्रीकृष्ण किसके समान है ?

उत्तर –हारिल का पक्षी जिस प्रकार अपने पैरो पर लकड़ी लिया रहता है, और उसे कभी छोड़ता नही है उसी प्रकार गोपियों के लिए कृष्ण है


(ग) ब्रह्म और योग की बात सुनकर गोपियों को कैसा लगता है ?

उत्तर – ब्रह्म और योग की बात उन्हें करई ककड़ी के सामान लगती है।


 (घ) गोपियों ने बीमारी किसे कहा?

उत्तर – गोपियों ने योग को बिमारी कहा है


(ङ) प्रस्तुत पधांश की काव्य शैली की दो  विशेषताये।


5.निम्नलिखित में से किसी एक जीवन परिचय देते हुये उनकी कृतिय पर प्रकाश डालिये।


 (क) आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी


 (ख) गोस्वामी तुलसी दास 

उत्तर –

जीवन-परिचय


लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास भारत के ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता तथा संसार के कवि हैं। उनके जन्म से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। इनका जन्म 1532 ई. (भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी, विक्रम संवत् 1589) स्वीकार किया गया है। तुलसीदास जी के जन्म और जन्म स्थान के सम्बन्ध को लेकर सभी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। इनके जन्म के सम्बन्ध में एक दोहा प्रचलित है

"पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर। श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो सरीर ।। "

'तुलसीदास' का जन्म बाँदा जिले के 'राजापुर' गाँव में माना जाता है। कुछ विद्वान् इनका जन्म स्थल एटा जिले के 'सोरो' नामक स्थान को मानते हैं। तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल-नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ।


इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध सन्त नरहरिदास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इनका विवाह पण्डित दीनबन्धु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम था और उनके सौन्दर्य रूप के प्रति वे अत्यन्त आसक्त थे। एक बार इनकी पत्नी बिना बताए मायके चली गईं तब ये भी अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए उनके पीछे-पीछे ससुराल जा पहुँचे। इस पर इनकी पत्नी ने उनकी भर्त्सना करते हुए कहा


"लाज न आयी आपको दौरे आयेहु साथ।"

पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह-माया से विरक्त कर दिया और उनके हृदय में श्रीराम के प्रति भक्ति भाव जाग्रत हो उठा। तुलसीदास जी ने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया और ये राम के अनन्य भक्त बन गए। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। 1574 ई. में इन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना की तथा मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। 1623 ई. में काशी में इनका निधन हो गया।


साहित्यिक परिचय

तुलसीदास जी महान् लोकनायक और श्रीराम के महान् भक्त थे। इनके द्वारा रचित 'रामचरितमानस' सम्पूर्ण विश्व साहित्य के अद्भुत ग्रन्थों में से एक है। यह एक अद्वितीय ग्रन्थ है, जिसमें भाषा, उद्देश्य, कथावस्तु, संवाद एवं चरित्र-चित्रण का बड़ा ही मोहक चित्रण किया गया है। इस ग्रन्थ के माध्यम से इन्होंने जिन आदर्शों का भावपूर्ण चित्र अंकित किया है, वे युग-युग तक मानव समाज का पथ-प्रशस्त करते रहेंगे। इनके इस ग्रन्थ में श्रीराम के चरित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। मानव जीवन के सभी उच्च आदर्शों का समावेश करके इन्होंने श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया है। तुलसीदास जी ने सगुण-निर्गुण, ज्ञान-भक्ति, शैव-वैष्णव और विभिन्न मतों एवं सम्प्रदायों में समन्वय के उद्देश्य से अत्यन्त प्रभावपूर्ण भावों की अभिव्यक्ति की।


कृतियाँ (रचनाएँ)

महाकवि तुलसीदास जी ने बारह ग्रन्थों की रचना की। इनके द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस सम्पूर्ण विश्व के अद्भुत ग्रन्थों में से एक है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है


1. रामलला नहछू गोस्वामी तुलसीदास ने लोकगीत की सोहर' शैली में इस ग्रन्थ की रचना की थी। यह इनकी प्रारम्भिक रचना है।


2. वैराग्य-सन्दीपनी इसके तीन भाग हैं, पहले भाग में छः छन्दों में मंगलाचरण है तथा दूसरे भाग में 'सन्त-महिमा वर्णन' एवं तीसरे भाग में 'शान्ति-भाव वर्णन है।


3. रामाज्ञा प्रश्न यह ग्रन्थ सात सर्गों में विभाजित है, जिसमें शुभ-अशुभ शकुनी का वर्णन है। इसमें रामकथा का वर्णन किया गया है।


4. जानकी-मंगल इसमें कवि ने श्रीराम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर वर्णन किया है। 5. रामचरितमानस इस विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन के चरित्र का वर्णन किया गया है।


6. पार्वती-मंगल यह मंगल काव्य है, इसमें पूर्वी अवधि में 'शिव-पार्वती के विवाह' का वर्णन किया गया है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण भी विद्यमान है।


7. गीतावली इसमें 230 पद संकलित हैं, जिसमें श्रीराम के चरित्र का वर्णन किया गया है। कथानक के आधार पर ये पद सात काण्डों में विभाजित हैं।


8. विनयपत्रिका इसका विषय भगवान श्रीराम को कलियुग के विरुद्ध प्रार्थना-पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में प्रतीत होते हैं। इसमें तुलसीदास की भक्ति-भावना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।


9. गीतावली इसमें 61 पदों में कवि ने ब्रजभाषा में श्रीकृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।


(ग) महाकवि भूषण


6. निम्नलिखित कवियों में से किसी एक जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिये।


(अ) कविवर बिहारी 


(ब) गौरवामी तुलसीदास


 (स)सरकार पूर्ण सिंह

सरदार पूर्णसिंह का 'जीवन-परिचय'


सरदार पूर्णसिंह का जन्म सन् 1881 ई. में एबटाबाद जिले में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। मैट्रिक तक की शिक्षा रावलपिण्डी में पाने के बाद आपने इण्टर की परीक्षा लाहौर से उत्तीर्ण की और रसायन शास्त्र की शिक्षा पाने के लिए 1900 ई. में एक विशेष छात्रवृत्ति पाकर जापान चले गए। वहां तीन वर्ष तक 'इम्पीरियल यूनीवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त की।


जापान में ही उनकी भेंट भारतीय सन्त स्वामी रामतीर्थ से हुई और उनसे प्रभावित होकर अपने संन्यास ले लिया तथा उन्हीं के साथ भारत लौट आए। स्वामी जी की मृत्यु के उपरान्त इनके विचारों में पुनः परिवर्तन आया और इन्होंने संन्यास त्यागकर विवाह कर लिया। और गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे।


इसके बाद देहरादून के फारेस्ट कॉलेज में अध्यापक हो गए। यहीं से उनके नाम के साथ 'अध्यापक' शब्द जुड़ गया। यहां से त्याग-पत्र देने के बाद वे ग्वालियर महाराज की सेवा में चले गए किन्तु दरबारियों के षड्यन्त्र से महाराज से इनका मनमुटाव हो गया और ये नौकरी छोड़कर पंजाब के जड़ांवाला गांव में आकर खेती करने लगे। जीवन के अन्तिम दिनों में इन्हें आर्थिक अभाव झेलना पड़ा। अध्यापक पूर्णसिंह की मृत्यु सन् 1931 ई. में हुई।


सरदार पूर्णसिंह की कृतियां'


सरदार पूर्णसिंह के कुल छः निबन्ध हिन्दी में उपलब्ध होते हैं:

1. सच्ची वीरता

2. आचरण की सभ्यता

3. मजदूरी और प्रेम

4. अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन

5. कन्यादान

6. पवित्रता

इन्हीं निबन्धों के बल पर इन्होंने हिन्दी गद्य साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। अध्यात्म और विज्ञान इनकी जीवन दृष्टि की प्रमुख विशेषता है। निबन्ध रचना के लिए इन्होंने प्रमुख रूप से नैतिक विषयों को चुना है। इनके निबन्ध मुख्यतः भावात्मक कोटि में आते हैं जिनमें विचारों के सूत्र भी भरे पड़े हैं।


 7.'आकाशदीप कहानी का सारांश लिखिये।

अथवा 

बलिदान कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर –इस कहानी का मूल उद्देश्य जमींदार, कृषक और श्रमिक तीनों के बीच के दारुण संबंधों को जनसामान्य के सम्मुख स्पष्ट करना है। निष्कर्ष रूप में कहानी कला के तत्वों की दृष्टि से 'बलिदान' प्रेमचंद की सफल कहानी है। कहानी में यथार्थवादी चित्रण है


8.निम्नलिखित अवतरणो का संदर्भ सहित अनुवाद कीजिए।


यादृस्क्ष पोपपन्न स्वर्गद्वारसंघावृत्तम। सुखिनः सत्रिया: पार्थ समदृश 

अथवा

अस्योपत्यकासु सुदीर्घाः दनराय विराजन्ते यत्र विविध यो वनस्पतयस्तस्वश्व तिष्ठन्ति । इम ओषधय जनान् आमयेभ्यो रक्षन्ति तरश्च आसन्द्यादिग्रक्षेपकरण णार्थे प्रयुज्यन्ते । हिमालयः वर्षता दक्षिण समुदेमा प्रवर्तयति।

हिंदी मे अनुवाद –इस नदी की घाटियों में लंबे जंगल हैं जहां तरह-तरह के पौधे उगते हैं। ये जड़ी-बूटियाँ लोगों को बीमारियों से बचाती हैं और दौरे और अन्य संक्रमणों के इलाज के लिए उपयोग की जाती हैं। हिमालय के कारण दक्षिणी समुद्र में वर्षा होती है।

9.(क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तिया मे से दो का अर्थ लिखते हुए वाक्य योग कीजिए।


(अ) उल्टे बॉस बरेली को


(ब) घरका भेदी लंका बाए


(स) अस्तीन का साँप

उत्तर – साथ में रहने वाला ऐसा व्यक्ति जो ऊपर से मित्र या वफादार बना रहता हो परंतु अंदर ही अंदर जड़ काटने में लगा हो‌‌‌‌‌‌।


(द) ऊँट के मुंह में जीरा

उत्तर – बहुत कम मिलना – राम को श्याम की बारात में सिर्फ 2 पकोड़ी खाने को मिली


(ख) निम्नलिखित शब्द किसी एक शब्द के दो अर्थ लिखिए


(अ) मुद्रा – पैसा, धन, संपति 


(घ) लगन


(स) अनन्त


(ग) निम्नलिखित वाक्याशी में से किन्हीं दो के लिये एक एक शब्द लिखिए।


(अ) जो कभी दिखाई न दे।

उत्तर – अदृश्य 

(ब) जो अधिक बोलता हो।


(स) अदा करने योग्य


(द) जिसे लज्जा न हो।

उत्तर – बेशर्म


(घ) निम्नलिखित शब्द रूपों में से किसी एक का वचन और विभक्ति लिखिए


 (अ) सरितम


 (ब) राज्ञे


(स) यानि


(ख) निम्नलिखित मे किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए


 (अ) शरत वरिष्ट पत्रकार है।

उत्तर – शरत एक वरिष्ट पत्रकार है।


(ब) उसने सारी बातें कह सुनाई।


(स) शिक्षिका ने सविता से कविता पढाई 


(द) तुम्हे अध्ययन जारी रखना चाहिए। 

उत्तर – तुम्हे ज्यादा पढ़ाई करनी चाहिए।


10. (क) वीर रस अथवा करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिये।

उत्तर – करुण रस परिभाषा-करुण रस का स्थायी भाव शोक है। शोक नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है। 

उदाहरण

मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन सा पटक रही थी शीश। अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश ॥ श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता के विलाप का यह उदाहरण करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।

(ख) उपमा अथवा अनुप्रास अलंकार का लक्षण उदाहरण सहित लिखिये। 

उत्तर –अनुप्रास अलंकार

अनुप्रास अलंकार जब किसी भी वर्ण की बार-बार आवृत्ति हो तब जो चमत्कार होता है वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है।

अथवा 

जिस रचना में व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न होता है वहां पर अनुप्रास अलंकार होता है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

1."तरनि-तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये।"

2.कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि ।

3.प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि


(ग) चौपाई अथवा सोरठा छन्द का लक्षण उदाहरण सहित लिखिये।

उत्तर –सोरठा (परिभाषा )–परिभाषा दोहे का उल्टा रूप सोरठा' कहलाता है। यह एक अर्द्धसम मात्रिक छन्द है अर्थात् इसके पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों में मात्राओं की संख्या समान रहती है। इसके विषम (पहले और तीसरे चरणों में 11-11 और सम (दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में ही होता है तथा सम चरणों के अन्त में जगण (ISI) का निषेध होता है।

उदाहरण

"मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़े गिरिवर गहन ।

जासु कृपा सु दयाल, द्रवौ सकल कलिमल दहन।।

11. किसी विद्यालय के प्रबन्धक के नाम हिन्दी प्रवक्ता पद के लिए अपनी नियुक्ति हेतु आवेदन पत्र लिखिए। 


12. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा शैली में निबन्ध लिखिये।


(क) मेरी प्रिय पुस्तक


(ख) महगाई की समस्या और समाधान


 (ग) पद्मा मुक्ति अभियान 


(घ) भारत में कम्प्यूटर की महत्ता


मुख्य बिन्दु – भूमिका, कम्प्यूटर के विकास का इतिहास, कम्प्यूटर की उपयोगिता, सूचना प्रौद्योगिकी में क्रान्ति, उपसंहार।


भूमिका –  विज्ञान ने मनुष्य को सुख-सुविधा के अनेक साधन प्रदान किए हैं, जिनमें कम्प्यूटर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। विज्ञान द्वारा विकसित यह यन्त्र मनुष्य के दिमाग की तरह काम करता है। इसने हमारे जीवन को अनेक सुख-सुविधाओं सेभर दिया है। कम्प्यूटर के कारण ही सूचनाओं की प्राप्ति और इनके संवहन में क्रान्तिकारी वृद्धि हुई है।

कम्प्यूटर के विकास का इतिहास – कम्प्यूटर के विकास का इतिहास कैलकुलेटर से जुड़ा हुआ है। प्रारम्भ में गणना के लिए कैलकुलेटर का आविष्कार हुआ। समय और आवश्यकताओं के अनुसार कैलकुलेटर का स्वरूप बदलता गया और इस प्रकार वर्ष 1944 में पहला विद्युतचालित कम्प्यूटर अस्तित्व में आया। इसके बाद वर्ष 1946 में विश्व का पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर बना। तब से अब तक लगातार इनका स्वरूप बदलता रहा है। आज के युग में कम्प्यूटर का उपयोग केवल गणना के लिए नहीं होता, वरन् आज के कम्प्यूटर तो कृत्रिम बुद्धि वाले बन गए हैं।


कम्प्यूटर की उपयोगिता – कम्प्यूटर ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं, जहाँ इसके महत्त्व को रेखांकित न किया जा सके। भारत में शुरुआती दौर में कम्प्यूटरों का प्रयोग बहुत सीमित था, लेकिन वर्तमान में अस्पताल, बैंक, अनुसन्धान केन्द्र, प्रयोगशाला, विद्यालय, दफ़्तर आदि सहित ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहाँ कम्प्यूटर का उपयोग न किया जाता हो।


कम्प्यूटर के आने से शिक्षा का स्वरूप ही बदल गया है। आजकल कम्प्यूटर के माध्यम से ही पढ़ाई की जा सकती है। दुनियाभर के विद्यार्थी कम्प्यूटर के द्वारा ही पढ़ रहे हैं। कम्प्यूटर के आने से चिकित्सा के क्षेत्र में भी बहुत बदलाव हुए हैं। इसके द्वारा भविष्य में होने वाली बीमारियों का पहले ही पता लगा लिया जाता है। बीमारी का पता लगने से शीघ्र ही उसका उपचार भी आरम्भ कर दिया जाता है। रेलगाड़ियों तथा हवाई जहाजों का आरक्षण कम्प्यूटर द्वारा ही होता है। आजकल पुस्तकों को कम्प्यूटर द्वारा ही तैयार किया जाता है एवं उन्हें कम्प्यूटर पर पढ़ा भी जाता है।


सूचना प्रौद्योगिकी में क्रान्ति – कम्प्यूटर के कारण सूचना प्रौद्योगिकी में अद्भुत क्रान्ति आ गई है। कम्प्यूटर द्वारा जनित इण्टरनेट से जनसंचार का स्वरूप ही बदल गया है। इसके द्वारा हम एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर उपस्थित व्यक्ति को सन्देश भेज सकते हैं, उससे बात कर सकते हैं, उसे बात करते हुए देख सकते

हैं। कम्प्यूटर के कारण हमारा संवाद करने का तरीका ही बदल गया है। अब पुराने माध्यम अनुपयोगी हो गए हैं। इसी कारण भारत सरकार को वर्ष 2013 में अपनी टेलीग्राफ सर्विस बन्द करनी पड़ी। इसके अतिरिक्त कम्प्यूटर रेडियो, टेलीविजन के कार्यक्रमों के प्रसारण तथा अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी में भी अपना अभूतपूर्व योगदान दे रहा है।

उपसंहार – कम्प्यूटर की उपलब्धियाँ अनगिनत हैं। यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। यह अभी भी सम्भावनाओं से भरा हुआ क्षेत्र है। इसका उपयोग वैज्ञानिक और व्यापारिक प्रक्रियाओं में कितना ही क्यों न बढ़ जाए, परन्तु यह मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं ले सकता।


मनुष्य ने कम्प्यूटर बनाया है, कम्प्यूटर ने मनुष्य को नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि कम्प्यूटर मनुष्य का स्थान नहीं ले सकता, इसके अलावा थोड़ा-सा चूक पर यह विपरीत परिणाम भी देता है। अतः विज्ञान के इस चमत्कार का उचित ढंग से प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे मानव-जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़े।

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