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class 10th sanskrit model paper 2023 up board/कक्षा 10वी संस्कृत मॉडल पेपर 2023 का सम्पूर्ण हल

 up board class 10th sanskrit model paper 2023 

class 10th sanskrit model paper 2023 up board


कक्षा 10वी संस्कृत मॉडल पेपर 2023 का सम्पूर्ण हल

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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट Subhansh classes.com पर यदि आप गूगल पर Class 10 model paper सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आ गए हैं हम आपको अपनी पोस्ट में कक्षा 10 संस्कृत विषय के मॉडल पेपर का सम्पूर्ण हल बताएंगे इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें। यदि आपको पोस्ट पसन्द आए तो अपने दोस्तो को भी शेयर करें यदि आप कुछ पूछना चाहते हैं तो आप हमारे youtube chennal Subhansh classes पर कॉमेंट करके ज़रूर बताइएगा


  यूपी बोर्ड वार्षिक परीक्षा मॉडल पेपर 2023


                  कक्षा – 10वी 


                 विषय – संस्कृत


समय: 3 घण्टे 15 मिनट



(i) प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं। 

(ii) प्रश्नपत्र दो खण्डों में विभाजित है खण्ड 'अ' तथा खण्ड 'ब' 

 (iii) प्रश्नपत्र के खण्ड 'अ' में बहुविकल्पीय प्रश्न है जिसमें से सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखा जाये तथा खण्ड 'ब' में वर्णनात्मक प्रश्न है। 

(iv) प्रत्येक प्रश्न के सम्मुख उनके निर्धारित अंक दिये गये हैं।


                          खण्ड 'अ'

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न


प्रश्न संख्या 1-3 गद्यांश आधारित प्रश्न है गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और उत्तर का चयन करें।


शङ्करः केरलप्रदेशे मालावारप्रान्ते पूर्णाख्यायाः नद्यास्तटे स्थिते शलकग्रामे अष्टाशीत्यधिके सप्तशततमे ईस्वीयाब्दे नम्बूद्रकुले जन्म लेभे तस्य पितुर्नाम शिवगुरुरासीत् मातुश्च सुभद्रा । शैशवादेव शङ्करः अलौकिक प्रतिभासम्पन्न आसीत्। अष्टवर्षदेशीयः सन्नपि परममेधावी असौ वेदवेदाङ्गेषु प्रावीण्यमवाप दुर्दैवात् बाल्यकाले एव तस्य पिता श्रीमान् शिवगुरुः पञ्चत्वमवाप । पितृवात्सल्यविरहितः मात्रैव लालितश्चासौ प्राक्तनसंस्कारवशात् जगतः मायामयत्वमाकलय्य तत्त्वसन्धाने मनश्चकार। प्ररूढवैराग्यप्रभावात् स प्रव्रजितुमियेष, परञ्च मातुरनुज्ञां विना प्रव्रज्यामङ्गीकर्तुं न शशाक।

परमस्नेहनिर्भरा तदेकतनयाम्बा नानुज्ञां ददौ। लोकरीतिपरः शङ्करः


1. उक्त गद्यांश का शीर्षक है(1)


(क) नैतिक मूल्यानि 


(ख) जीवनं निहितं वने


(ग) आदिशङ्कराचार्यः


(घ) मदनमोहन मालवीयः-


उत्तर (ग) आदिशङ्कराचार्यः


2. शंङ्करः कस्मिन् प्रदेशे जन्म लेभे ?(1)


(क) राजस्थान प्रदेशे 


(ख) केरल प्रदेशे


(ग) उड़ीसा प्रदेशे


(घ) असम प्रदेशे


उत्तर (ख) केरल प्रदेशे


3. आदिशंङ्कराचार्यस्य मातुः कः आसीत्?(1)


(क) सुभद्रा 


(ख) सुमाला


(ग) सुनीति


(घ) सुमन्त्रा


उत्तर (क) सुभद्रा


4. उपमा……भणितिः प्रसिद्धस्ति। (1)


(क)सुभद्रा


(ख) शुद्रकस्य


(ग) कालिदासस्य 


(घ) वाल्मीकि


उत्तर (ग) कालिदासस्य


5. 'विद्यार्थिचर्या' पाठ ग्रन्थ से संकलित है।(1)


(क) महाभारत


(ख) मनुस्मृति


(ग) याज्ञवल्क्य स्मृति


(घ) रामायण


उत्तर (ख) मनुस्मृति


6. दोणाचार्यः कस्य गुरुः आसीत्?(1)


(क) पाण्डवों


(ख) कौरवों


(ग) पाण्डवों और कौरवों


(घ) कर्ण


उत्तर (ग) पाण्डवों और कौरवों


7. 'गीतामृतम्' पाठ के श्लोक ……से उदधृत है।(1)


(क) रामायण


(ख) महाभारत


(ग) श्रीमद्भगवद्गीता


(घ) रामचरितमानस


उत्तर (ग) श्रीमद्भगवद्गीता


8. पृथिव्यां ……. रत्नानि सन्ति ।(1)


(क) चत्वारि


(ख) एकम्


(ग) त्रीणी


(घ) द्वे


उत्तर (ग) त्रीणी


9. मोहनदास मातुर्नाम आसीत्(1)


(क) पुतलीबाई


(ख) तितलीबाई


(ग) कमलीबाई


(घ) कस्तूरबाबाई


उत्तर (क) पुतलीबाई


10. जीमूतवाहनः ………पुत्रः आसीत्।(1)


(क) शंखचूडस्य


(ख) जीमूतकेतो


(ग) गरुड़स्य


(घ) श्वेतकेतो


उत्तर (ख) जीमूतकेतो


11. माहेश्वर सूत्रों की संख्या हैं(1)


(क) चौबीस 


(ख) बारह


(ग) पन्द्रह


(घ) चौदह


उत्तर (घ) चौदह


12. सङ्गति में सन्धि है(1)


(क) दीर्घ 


(ख) अनुस्वार


(ग) जशत्व


(घ) चर्च

उत्तर (ख) अनुस्वार


13. 'पित्रे' किस विभक्ति एवं वचन का रूप है?(1)


(क) प्रथमा विभक्ति एकवचन


(ख) द्वितीया विभक्ति एकवचन


(ग) तृतीया विभक्ति एकवचन


(घ) चतुर्थी विभक्ति एकवचन


उत्तर (घ) चतुर्थी विभक्ति एकवचन


14. 'पास्यथ:' रूप है(1)


(क) लट् लकार, प्रथम पुरुष, द्विवचन


(ख) लृट् लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन


(ग) लोट् लकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन


(घ) लट् लकार उत्तम पुरुष, बहुवचन


उत्तर (ख) लृट् लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन


15. 'यथाशक्ति' में समास है 


(क) कर्मधारय समास


(ख) द्वन्द्व समास


(ग) अव्ययीभाव समास


(घ) तत्पुरुष समास


उत्तर (ग) अव्ययीभाव समास


16.'रामः ग्रन्थ पठितः' वाक्य के 'ग्रन्थ' पद में कौन-सा कारक है?


(क) कर्म कारक


(ख) कर्ता कारक


(ग) करण कारक


(घ) अपादान कारक


उत्तर (क) कर्म कारक


17. 'आनीत' में कौन-सा प्रत्यय है?(1)


(क) क्त


(ख) क्त्वा


(ग) क्तवतु


(घ) यत्


उत्तर (क) क्त


18. “त्वं पाठशाला गच्छसि। इत्यस्य वाच्यपरिवर्तनं अस्ति।(1)


(क) त्वया पाठशालां गच्छसि।


(ख) त्वम् पाठशालां गम्यते।


(ग) अहं पाठशालां गम्यते ।


(घ) त्वया पाठशालां गम्यते ।


उत्तर (घ) त्वया पाठशाला गम्यते।


19. "रामः ग्रामं गच्छति।” वाक्यस्य वाच्यपरिवर्तनं भविष्यति


(क) रामेण ग्रामः गम्यते ।


(ख) रामः ग्रामं गम्यते 


(ग) रामेण ग्रामं गच्छति।


(घ) रामः ग्रामेण गच्छति।


उत्तर (क) रामेण ग्रामः गम्यते।


20. "सः मां रक्षति।" इति वाक्यस्य वाच्यपरिवर्तनं अस्ति(1)


(क) सः मां रक्ष्यते


(ख) तेन अहं रक्ष्यते। 


(ग) ताः मां रक्षति


(घ) तेन मां रक्ष्यते।


उत्तर (ख) तेन अहं रक्ष्यते।


                    खण्ड 'ब'


वर्णनात्मक प्रश्न


निर्देश सभी प्रश्न अनिवार्य है।


1. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद कीजिए। (4)


(क) एका जनश्रुतिः अतिप्रसिद्धास्ति यया कविकालिदासः विक्रमादित्यस्य सभारत्नेषु मुख्यतमः इति ख्यापितः । परन्तु अत्रापरा विडम्बना समुत्पद्यते। विक्रमादित्यस्यापि स्थितिकालः सुतरां स्पष्टो नास्ति। केचिन्मन्यन्ते यत् विक्रमादित्योपाधिधारिणो द्वितीयचन्द्रगुप्तस्य समकालिक आसीत् कविरसौ कालिदासस्य मालविकाग्निमित्रनाटकस्य नायकोग्निमित्रः शुङ्गवंशीय आसीत्। स एव विक्रमादित्योपाधि धृतवान् यस्य सभारलेष्वेकः कालिदासः आसीत्। तस्य राज्ञः स्थितिकालः ख्रीष्टाब्दात्प्रागासीत्। स एव स्थितिकालः कवेरपि सिध्यति।


(ख) नैतिक मूल्यै व्यक्तेः सामाजिकी प्रतिष्ठाभिवर्धते। मानवकल्याणाय नैतिकता आवश्यकी नैतिकर्तव व्यक्तेः समाजस्य राष्ट्रस्य, विश्वस्य कल्याणं कुरुते। नैतिकताचरणेनैव मनुष्येषु त्यागः, तपः, विनयः, सत्यं, न्यायप्रियता एवमन्येऽपि मानवीयाः गुणाः उत्पद्यन्ते । नैतिकतया मनुष्योऽन्वप्राणिभ्यः भिन्नः जायते। तदाचरणेन व्यक्तेः समाजस्य च जीवनम् अनुशासितम् निष्कण्टकं च भवति। व्यक्तेः समाजस्य, वर्गस्य, देशस्य च समुन्नयनावसरो लभ्यते। समाज: ईर्ष्या-द्वेषच्छल- कलहादिदोषेभ्यः मुक्तो भवति ।

उत्तर 

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'संस्कृत गद्य-भारती' के 'नैतिकमूल्यानि नामक पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में 'नैतिकता का महत्त्व' बताते हुए उसे मानव समाज, राष्ट्र आदि का उन्नायक एवं मानव जीवन का आधार बताया गया है।


अनुवाद – नैतिक मूल्यों से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। मानव कल्याण के लिए नैतिकता जरूरी है। नैतिकता ही व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व का कल्याण करती है। नैतिकता के आचरण से ही मनुष्यों में त्याग, तप, विनय, सत्य, न्यायप्रियता और इसी प्रकार के दूसरे मानवीय गुण भी उत्पन्न होते हैं। नैतिकता से मानव दूसरे प्राणियों से भिन्न होता है। उसके आचरण से व्यक्ति और समाज का जीवन अनुशासित और बाधा रहित होता है। व्यक्ति, समाज, वर्ग और देश की उन्नति का अवसर प्राप्त होता है। समाज ईर्ष्या, द्वेष, छल, कलह आदि दोषों से मुक्त होता है। हमारे सामाजिक और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध नैतिकता के आचरण से दृढ़ होते हैं। अत: 'नैतिकता' शब्द सच्चरित्रता का वाचक और सुखमय मानव जीवन का आधार है।


2. निम्नलिखित में से किसी एक पाठ का सारांश हिन्दी में लिखिए। (4)


(क) आदिशंकराचार्यः


(ख) विश्वकविः रवीन्द्रः


(ग) दीनबन्धुः ज्योतिबा फुले


उत्तर –

(क) आदिशंकराचार्यः

शंकराचार्य का जीवन-परिचय


शंकर का जन्म मालावार प्रान्त में पूर्णा नदी के किनारे पर शलक ग्राम में 788 ई. में नम्बूद्र कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम सुभद्रा था। उन्होंने 8 वर्ष की आयु में ही समस्त वेद-वेदांगों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी।


ईश्वर के अवतार


गीता में कहा गया है, कि जब-जब धर्म का आचरण करने वाले साधुजनों पर अत्याचार किया जाता है अर्थात् धर्म की हानि होती है, तब-तब साधुजनों की रक्षा करने और पापियों का विनाश करने के लिए ईश्वर किसी महापुरुष के रूप में धरा (धरती) पर जीवन धारण करते हैं। त्रेता युग में राक्षसों का संहार करने के लिए 'राम' के रूप में, द्वापर युग में कुनृपतियों के विनाश के लिए 'कृष्ण' के रूप में ईश्वर ने भूमि पर जन्म लिया। उसी प्रकार से कलियुग में भगवान् शिव ने देश में व्याप्त मोह मालिन्य को दूर करने के लिए और वैदिक धर्म की स्थापना करने के लिए शंकराचार्य के रूप में जन्म लिया।


संन्यास की दीक्षा लेना


वन के मार्ग में घूमते हुए एक गुफा में बैठे हुए गौड़पाद के शिष्य गोविन्दपाद के पास गए। शंकर की अद्वितीय प्रतिभा से प्रभावित होकर गोविन्दपाद ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दे दी और विधिवत् वेदान्त के तत्त्वों का अध्ययन कराया।


भाष्यों की रचना


शंकर ने वैदिक धर्म के उद्धार के लिए गाँव-गाँव और नगर-नगर का भ्रमण किया तथा काशी पहुँचे। वहाँ उन्होंने व्यास सूत्रों, उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता के भाष्यों की रचना की ।


संन्यास ग्रहण करना


एक बार शंकर पूर्णा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी एक शक्तिशाली घड़ियाल (मगरमच्छ) ने उनका पैर पकड़ लिया। घड़ियाल ने उन्हें तब तक नहीं छोड़ा, जब तक उनकी माता ने उन्हें संन्यास लेने की आज्ञा न दे दी। माता की आज्ञा और घड़ियाल से मुक्ति पाकर उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया।


मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ


एक दिन शंकर के मन में महान् विद्वान् मण्डन मिश्र से मिलने की इच्छा इस उद्देश्य को लेकर हुई कि उनसे शास्त्रार्थ किया जाए। मण्डन मिश्र के घर जाकर शंकर ने उनसे शास्त्रार्थ करके उन्हें पराजित कर दिया।

मण्डन मिश्र की पत्नी के कामशास्त्र के प्रश्नों का उत्तर देकर उसे भी पराजित कर दिया। अन्त में मण्डन मिश्र ने आचार्य शंकर का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया।


वैदिक धर्म का प्रचार


प्रयाग में शंकर ने वैदिक धर्म उद्धार के लिए प्रयत्नशील कुमारिल भट्ट के दर्शन किए। कुमारिल भट्ट ने वैदिक धर्म के कर्मकाण्ड को लेकर सम्प्रदायवादियों को परास्त कर दिया था, लेकिन शंकर ने कर्मकाण्ड की मोक्ष में व्यर्थता बताकर कुमारिल के मत का खण्डन करके ज्ञान की महिमा का प्रतिपादन किया। अन्त में 32 वर्ष की अल्पायु में ही शंकर ने अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया।


शंकर के सिद्धान्त


शंकर ने महर्षि व्यास द्वारा रचित 'ब्रह्मसूत्र' पर भाष्य की रचना की और व्यास के मत के आधार पर ही वैदिक धर्म को पुनर्जीवित किया। उन्होंने वेद और उपनिषदों के तत्त्व का ही निरूपण किया। उनके मत के अनुसार, संसार में सुख-दुःख भोगता हुआ जीव ब्रह्म ही है। माया द्वारा उत्पन्न अज्ञान से व्यापक ब्रह्म दुःख का अनुभव करता है। उन्होंने जीव और ब्रह्म की एकता का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार, अनेक रूपात्मक सृष्टि का आधार ब्रह्म ही है।



3. निम्नलिखित पद्मों में से किसी एक की हिन्दी में व्याख्या कीजिए।(4)


(क) नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायाह्यकर्मणः ।शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः ।।

उत्तर 

सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'संस्कृत पद्य-पीयूषम्' में संकलित 'गीतामृतम्' नामक पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं। 


व्याख्या – श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! परिणाम की इच्छा को छोड़कर उन्नति और अवनति में समान भाव रखकर योग में स्थित रहकर तुम कर्म करो। उन्नति और अवनति में समान भाव रखकर कार्य करना ही योग कहलाता है।


(ख) सर्व परवशं दुःखं, सर्वमात्मवशं सुखम्।

एतद्विद्यात् समासेन, लक्षणं सुखदुःखयोः ।।


4. निम्नलिखित सूक्तियों में से किसी एक सूक्ति की हिन्दी में व्याख्या कीजिए। (3)


(क) विद्या न याडप्यच्युतभक्तिकारिणी

उत्तर –सन्दर्भ प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'संस्कृत पद्य-पीयूषम्' में संकलित 'सूक्ति-सुधा' नामक पाठ से उद्धृत है।


प्रसंग – प्रस्तुत सूक्ति में विद्या की सार्थकता पर प्रकाश डाला गया है। अर्थ जो विद्या भगवान् विष्णु की भक्ति में प्रवृत्त करने वाली नहीं है, वह विद्या नहीं है।


व्याख्या – विद्या वही सार्थक है, जो मानव मन में भगवान् विष्णु के प्रति भक्ति उत्पन्न करती है, जो विद्या व्यक्ति को भक्ति से अलग करती है, वह किसी भी तरह से विद्या कहलाने की अधिकारिणी नहीं है। विद्या वही होती है, जो व्यक्ति को जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त करे। विद्या ही मानव मन से अज्ञान रूपी अन्धकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश करती है तथा उसे मोक्ष का मार्ग दिखाती है। यह सब भगवान् विष्णु की भक्ति से ही हो सकता है।


(ख) शतं वषीणी जीवति।


(ग) नु तु वृक्षं भवन्तं वा।


5. निम्नलिखित में से किसी एक श्लोक का अर्थ संस्कृत में लिखिए। (4)


(क) भासं पश्यसि यद्येनं तथा ब्रूहि पुनर्वचः।

 शिरः पश्यामि भासस्य न गात्रमिति सोऽब्रवीत्॥


(ख) अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्

उत्तर –संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके कविः अभिवादनशीलतायाः वृद्ध-सेवायाः च वर्णन कुर्वन कथयति यत् यस्य स्वभावः स्वपूज्यानाम् अभिवादनम् कुर्वन् अस्ति यः सर्वदा वृद्धानां सेवां करोति, तेषां आशीर्वादेन तस्य जनस्य आयुः, विद्या कीर्तिः, शक्ति च एतानि चत्वारि वस्तूनि वर्धन्ते ।


6. 'महात्मन: संस्मरणानि' पाठ के आधार पर गाँधीजी का चरित्र-चित्रण हिन्दी में लिखिए।(6)


उत्तर –परिचय भारतवर्ष की पुण्य भूमि पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया, उनमें से एक थे-महात्मा गाँधी । उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। उनका जन्म पोरबन्दर में 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था। उनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी और माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गाँधी मातृ भूमि की स्वतन्त्रता के प्रेमी थे। पाठ के आधार पर गाँधीजी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


सत्यपालक के रूप में


गाँधीजी ने बचपन से ही अपने जीवन में सत्य का पालन किया। एक बार गाँधीजी ने हरिश्चन्द्र नाटक देखा। उस नाटक का उनके मन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि हरिश्चन्द्र नाटक को देखकर गाँधीजी ने झूठ न बोलने का दृढ़ निश्चय किया। कठिन परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर भी गाँधीजी ने आजीवन सत्य का पथ नहीं छोड़ा।


दृढ़ प्रतिज्ञावादी


गाँधीजी किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व दृढ़ प्रतिज्ञा करते थे कि जब तक मैं इस कार्य को सम्पन्न नहीं कर लूँगा, तब तक चैन की नींद नहीं सोऊँगा। इसी दृढ़ शक्ति के आधार पर उन्होंने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का बिगुल बजाया। अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा के आधार पर ही उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया।


कष्ट सहिष्णु


गाँधीजी कष्ट सहिष्णु व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन में अनेक कष्टों का सामना किया, लेकिन कभी भी हार नहीं मानी। वे उन कष्टों का समाधान भी अवश्य ही निकाल लिया करते थे। 1893 ई. की बात है, जब गाँधीजी बम्बई नगर से अफ्रीका के 'नेटाल' नगर पहुँचे, तो वहाँ पर उन्होंने भारतीयों को अपमानित होते हुए देखा। अफ्रीका के नेटाल नगर के यूरोपीय व्यक्तियों से शिक्षित भारतीय नहीं मिल सकते थे। वहाँ रह रहे भारतीयों को 'कुली' और गाँधीजी को 'कुलियों का वकील' कहा जाता था। उन्होंने इस अपमान को सहन किया तथा निरन्तर संघर्ष किया।


नैतिकता के पालक गाँधीजी के जीवन में नैतिकता का महत्त्वपूर्ण स्थान था। वह नैतिकता के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं करते थे। नैतिकता के प्रबल पक्षधर होने का प्रमाण इस बात से मिलता है कि जब एक बार उनके विद्यालय में भाषा के ज्ञान की परीक्षा के लिए निरीक्षक आए और निरीक्षक ने जब कक्षा में बैठे सभी विद्यार्थियों से 'केटल' शब्द लिखने के लिए कहा, तब 'गाँधीजी ने 'केटल' शब्द अशुद्ध लिख दिया। कक्षा अध्यापक के कहने पर भी गाँधीजी ने "केटल' शब्द को नकल करके ठीक नहीं किया।


दीन-हीनों के नेता


गाँधीजी दीन-हीनों के नेता थे तथा उन्हीं के हित चिन्तक थे। उनके हितों की रक्षा के लिए उन्होंने लगातार संघर्ष किया। अपने इसी आचरण के कारण उन्हें अनेक बार गोरे लोगों द्वारा अपमानित भी होना पड़ा, किन्तु उन्होंने उनका पक्ष लेना नहीं छोड़ा। भारतीय जनता की वास्तविक दशा जानने के लिए उन्होंने भारत भ्रमण भी किया।


शान्ति के अग्रदूत.


गाँधीजी अहिंसा के पुजारी और शान्ति के अग्रदूत थे। अतः वे अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उग्रवाद का सहारा लेना उचित नहीं मानते थे, क्योंकि उनका मानना था। कि उग्रवाद हमेशा ही व्यक्तियों के मन में ईर्ष्या पैदा करता है। ईर्ष्या के कारण ही व्यक्तियों के घर-के-घर नष्ट हो जाते हैं। सामान्य जीवन में तो वे उग्रवाद के पक्षधर थे ही नहीं, परन्तु उन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए भी कभी भी उग्रवाद का समर्थन नहीं किया। उनके समय में पंजाब में उग्रवादियों द्वारा लोगों के साथ क्रूरता का व्यवहार किया जाता था और उन्हें कोड़ों से शारीरिक दण्ड दिया जाता था। गाँधीजी ने इसका पूर्णतः विरोध किया था।


स्वदेशी वस्तुओं के पक्षधर


गाँधीजी स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने के पक्षधर थे। विदेशी वस्त्रों के उपयोग से भारतीय उद्योगों के विकास पर प्रभाव पड़ेगा, इसी कारण उनका मानना था कि यदि हम स्वदेशी वस्तुओं को अपनाएँगे, तो हमारे देश का विकास होगा। अपनी इसी स्वदेशी आन्दोलनरूपी विचारधारा के बल पर उन्होंने बम्बई में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, जिसमें हजारों लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने लोगों को बताया कि विदेशी वस्त्र पहनना पाप है और विदेशी वस्त्रों को जलाकर हमने पाप को जला दिया है। इस प्रकार गाँधीजी के नेतृत्व में भारतीयों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्त्रों के उपयोग पर बल दिया।


भेदभाव के विरोधी


गाँधीजी भेदभाव के विरोधी थे। वे मानते थे हम सब ईश्वर की सन्तान हैं, न कोई छोटा है और न कोई बड़ा, सभी समान हैं। वे व्यक्तियों में कोई अन्तर नहीं मानते थे, भले ही वह किसी भी जाति, रंग अथवा लिंग का हो। उन्होंने इस सामाजिक बुराई का अनेक कष्ट भी कड़ा विरोध किया। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने रंगभेद के विरुद्ध आन्दोलन चलाया और इसमें सफलता प्राप्त करके लौटे। इस प्रकार निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि गाँधीजी सत्यपालक, नैतिकता के पक्षधर, रंगभेद के विरोधी आदि अनेक चारित्रिक गुणों से विभूषित होते हुए, भारतमाता के सच्चे सपूत तथा मानवता के सच्चे पुजारी थे।


7. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए। (4)


(क) महात्मा गाँधी 'नेटालनगरे' कदा अगच्छत?


(ख) मनसि किं जायते?


(ग) जीमूतवाहनः कथं प्रत्युज्जीवितः कृतः ? 


(घ)अनभ्रा वृष्टिः कथम् अभवत्।


8. निम्नलिखित वर्णों में से किसी एक वर्ण का उच्चारण स्थान लिखिए।(1)


(क) इ


 (ख) च


(ग) न


 (घ)ध 


9. निम्नलिखित में से किसी एक का सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा सन्धि का नाम लिखिए।(2)


(क) मुनिस्तपति


(ख) विद्यालय


(ग) दिगन्त 


(घ) त्वमपि 


10. निम्नलिखित में से किसी एक शब्द का रूप लिखिए।(1)


(क) 'पितृ' शब्द का चतुर्थी, बहुवचन ।


(ख) 'मनस्' शब्द का पञ्चमी, द्विवचन।


(ग) 'वारि' शब्द का षष्ठी, एकवचन। 


(घ) 'गो' शब्द का तृतीया द्विवचन।


11. निम्नलिखित में से किसी एक धातु का रूप लिखिए।(1)


 (क) 'पा' धातु लोट् लकार, मध्यम पुरुष द्विवचन


(ख) 'स्था' धातु लड्. लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन


(ग) 'दा' धातु लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन


(घ) 'जन' धातु लङ्ग लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन


12. निम्नलिखित पदों में से किसी एक पद का समास विग्रह कीजिए तथा समास का नाम लिखिए।(1)


(क) गजाननः


(ख) पञ्चगवम्


(ग) प्रतिदिशम


(घ) अनुरूपम्


13. निम्नलिखित रेखांकित पदों में से किसी एक पद का निर्देशानुसार विभक्ति का नाम लिखिए।(1)


(क) माता पुत्रेण सह आगच्छति।


(ख) गां दोग्धि पयः।


(ग) पित्रे नमः।


(घ) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति ।


14. निम्नलिखित में से किसी एक पद में धातु एवं प्रत्यय लिखिए। (1)


(क) पीत्वा


(ख) नष्टः


(ग) पठितुम्


(घ) निर्गत्य


15. निम्नलिखित में से किसी एक वाक्य का वाच्य परिवर्तन कीजिए। (1)


(क) रामः दुग्धं पिबति ।


(ख) बालकः पुस्तकं पठति ।


(ग) त्वं स्वकार्यं कुरु ।


(घ) ते कन्दुकं नयन्ति


16. निम्नलिखित वाक्यों में से किन्ही तीन वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए।(4)


(क) आज मैं प्रयाग जाऊँगा।


(ख) माली फूलों से माला बनाता है।


(ग) तुम असत्य बोलते हो।


(घ) रीना अपने कार्य में लगी है।


(ङ) सरोवरों में कमल खिलते हैं। 


(च) ईश्वर निर्बलों की सहायता करता है।


17. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर संस्कृत में आठ वाक्यों में निबन्ध लिखिए।(4)


(क) अनुशासनम्


(ख) कालिदासः


(ग) संस्कृत भाषाया: महत्त्वम्


(घ) यातायातस्य नियमाः


(ङ) नारी-समस्याः


18. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं चार का संस्कृत में वाक्य प्रयोग कीजिए। (4)


(क) चत्वारः


(ख) क्रन्दनम्


(घ) गुरो:


(ग) मधुरम्


(ङ) अपिबत


(च) युष्मान्

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