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Class 10th Hindi Up board Exam paper 2023 full solutions।।कक्षा 10वी हिन्दी यूपी बोर्ड वार्षिक परीक्षा पेपर 2023 का सम्पूर्ण हल

Class 10th Hindi Up board Exam paper full solutions 2023

कक्षा 10वी हिन्दी यूपी बोर्ड वार्षिक परीक्षा पेपर 2023 का सम्पूर्ण हल 

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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट Subhansh classes.com पर यदि आप गूगल पर up board class 10th hindi paper solutions 2023 सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आ गए हैं हम आपको अपनी इस पोस्ट में कक्षा 10वी हिंदी वार्षिक परीक्षा पेपर का सम्पूर्ण हल बताएंगे इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें यदि आपको पोस्ट पसन्द आए तो अपने दोस्तो को भी शेयर करें।


अनुक्रमार                      मुद्रित पृष्ठों की संख्या : 8


नाम,                                       801 (DE)


                      कक्षा – 10वी 


                      विषय – हिन्दी


समय: तीन घण्टे 15 मिनट                   पूर्णांक: 70


निर्देश:


(i)प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढने के लिए निर्धारित है।


(ii)प्रश्न-पत्र दो खण्ड तथा खण्ड में विभाजित है ।


(iii)प्राण-पत्र के खण्ड़ अ में बहुविकल्पीय प्रश्न है जिसमें सही विकल्प का चयन करके O.M.R. शीट पर नीले अथवा काले बाल प्वाइंट एन से सही विकल्प वाले गोले को पूर्ण रूप से काला करें। 

(iv)खण्ड अ में बहुविकल्पीय प्रश्त हेतु प्रत्येक प्रश्न के लिए 1 अंक निर्धारित है। 


(v)प्रत्येक प्रश्न के सम्मुख उनके निर्धारित अंक दिए गए है। 


                          खण्ड अ


बहुविकल्पीय प्रश्न:


1.प. प्रताप नारायण मिश्र लेखक है :1


(A) द्विवेदी युग के


(B) भारतेन्दु युग के


(C) शुभल युग के


(D) शुक्लोत्तर युग के

उत्तर –(B) भारतेन्दु युग के


2.'गुनाहों का देवता' रचना की विधा है:1


(A) कहानी


(B) उपन्यास


(C) नाटक


(D) एकाकी

उत्तर –(B) उपन्यास


3.'हंस' पत्रिका के सम्पादक थे.     1


(A)मुंशी प्रेमचन्द


(B) जयशंकर प्रसाद


(C) निराला


(D) महादेवी वर्मा

उत्तर –(A)मुंशी प्रेमचन्द


4.'कलम का सिपाही' की विधा है:1


(A) संस्मरण


(B) रेखाचित्र


(C) जीवनी


(D) आत्मकथा

उत्तर –(C) जीवनी


5.'लहरों के राजहंस' के लेखक हैं:1


(A) धर्मवीर भारती 


(B) मोहन राकेश


(C) कमलेश्वर


(D) राजेन्द्र यादव

उत्तर –(B) मोहन राकेश


6.'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' एक हैं :1


(A) कवि


(B) उपन्यासकार


(C) आलोचक


(D) नाटककार

उत्तर –(C) आलोचक


7.'आकाश दीप' के लेखक हैं :1


(A) अमरकान्त


(B)आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


(C) जयशंकर प्रसाद


(D) निराला

उत्तर –(C) जयशंकर प्रसाद


8.'मैला आँचल' के रचनाकार हैं :1


(A) मोहन राकेश


(B) फणीश्वरनाथ 'रेणु'


(C) प्रेमचन्द


(D) जयशंकर प्रसाद

उत्तर –(B) फणीश्वरनाथ 'रेणु'


9.केशवदास काव्यधारा के कवि हैं:1


(A) रीतिबद्ध


(B) रीतिसिद्ध


(C) रीतिमुक्त


(D) प्रयोगवादी

उत्तर –(A) रीतिबद्ध


10.'रामचन्द्रिका' रचना है :1


 (A) केशवदास की


(B) बिहारीलाल की


(C) घनानन्द की


(D) भूषण की

उत्तर –(A) केशवदास की


11.'करुण रस' का स्थायी भाव है :1


(A) रति


(B) शोक


(D) निर्वेद


(C) हास

उत्तर –(B) शोक


12. सोहत ओढे पीत पट श्याम सलोने गात । मनो नील मणि शैल पर आतप परयो प्रकाश ।। उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है


(A) उपमा


(B) रूपक


(C) उत्प्रेक्षा


(D) यमक

उत्तर –(C) उत्प्रेक्षा


13. रोला छन्द में कुल कितने चरण होते हैं ?


(A) तीन


(B) दो


(C) चार


(D)पाँच 

उत्तर –(C) चार


14. 'अधिग्रहण' शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग है :


(A) अति


(B)अधि


(C)अघ


(D)अ


उत्तर (B)अधि


15. प्रत्यय के कितने भेद हैं ?


(A) दो


(B) तीन


(C) चार


(D)एक

उत्तर –(A) दो


16. 'तिरंगा' में कौन-सा समास है ?


(A) द्वन्द्व 


(B) द्विगु


(C) कर्मधारय


(D) तत्पुरुष

उत्तर –(B) द्विगु


17.'प्रत्येक' शब्द में कौन-सी सन्धि है ?


(A) दीर्घ सन्धि


(B)यण सन्धि


(C) वृद्धि सन्धि


(D) गुण सन्धि

उत्तर –(B)यण सन्धि


18.'खीर' का तत्सम रूप है :


(A) छीर


(B) क्षीर


(C) क्षीण


(D) खीन

उत्तर –(B) क्षीर


19.'नदयै' शब्द का वचन और विभक्ति है :


(A) चतुर्थी, द्विवचन


(B) पंचमी, बहुवचन


(C) षष्ठी, एकवचन


(D) चतुर्थी, एकवचन

उत्तर –(D) चतुर्थी, एकवचन


20.'हसिष्यथः ' धातु का वचन एवं पुरुष है :


(A) एकवचन, मध्यम पुरुष


 (B) बहुवचन, उत्तम पुरुष


(C) द्विवचन, मध्यम पुरुष


(D)एकवचन, प्रथम पुरुष

उत्तर –(C) द्विवचन, मध्यम पुरुष


                    खण्ड ब 


वर्णनात्मक प्रश्न :


21. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए:3x2=6


(क) मित्रता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दो मित्र एक ही प्रकार का कार्य करते हों या एक ही रुचि के हों। इसी प्रकार प्रकृति और आचरण की समानता भी आवश्यक या वांछनीय नहीं है। दो भिन्न प्रकृति के मनुष्यों में बराबर प्रीति और मित्रता रही है। राम धीर और शान्त प्रकृति के थे, लक्ष्मण उम्र और उद्धत स्वभाव के थे दोनों भाइयों में अत्यन्त प्रगाढ़ स्नेह था । उदार तथा उच्चाशय कर्ण और लोभी दुर्योधन के स्वभावों में कुछ विशेष समानता न थी, पर उन दोनों की मित्रता खूब निभी।


(i) प्रस्तुत अवतरण का संदर्भ लिखिए ।

उत्तर– सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'गद्य खण्ड' में संकलित 'मित्रता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' हैं।


(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए

उत्तर – लेखक इस कहानी के माध्यम से बताते हैं कि यदि दो लोगों का अच्छे मित्र होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वो दोनो एक ही कार्य करते हो या एक ही चीज मे रुचि लेते हो इसी प्रकार लेखल कहते हैं कि वातावरण और आचरण दोनो ही अलग अलग होते हैं।


(iii) राम और लक्ष्मण के स्वभाव में क्या अंतर है ?

उत्तर –राम धीर और शान्त प्रकृति के थे, लक्ष्मण उम्र और उद्धत स्वभाव के थे


                     अथवा


(ख) अहिंसा का दूसरा नाम या दूसरा रूप त्याग है और हिंसा का दूसरा रूप या दूसरा नाम स्वार्थ है,

जो प्रायः भोग के रूप में हमारे सामने आता है पर हमारी सभ्यता ने तो भोग भी त्याग से निकाला है और भोग भी त्याग में ही पाया जाता है। श्रुति कहती है – 'तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः' इसी के द्वारा हम व्यक्ति-व्यक्ति के बीच का विरोध,व्यक्ति और समाज के बीच विरोध समाज और समाज के बीच का विरोध, देश और देश के बीच के विरोध को मिटाना चाहते हैं। हमारी सारी नैतिक चेतना इसी तत्त्व से ओत-प्रोत है।



(i) प्रस्तुत गद्यांश का शीर्षक लिखिए ।


(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए ।


(iii) हमारे नैतिक सिद्धान्तों में किस चीज़ को प्रमुख स्थान दिया गया है ?


22.दिए गए पद्यांश पर आधारित तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए:3x2-6


(क) अतुलनीय जिसके प्रताप का


साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकरः ।


घूम-घूम कर देख चुका है


जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर ।।


देख चुके हैं जिनका वैभव


ये नभ के अनन्त तारागण ।


अगणित बार सुन चुका है नभ


जिनका विजय घोष रण गर्जन ||


(i) उपर्युक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए ।


(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए


(iii) उपर्युक्त पंक्तियों में कौन-सा रस है ?


अथवा


(ख) ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं । वृन्दावन गोकुल बन उपवन, सघन कुंज की छाँही प्रात समय माता जसुमति अरू नंद देखि सुख पावत माखन रोटी दह्यो सजायौ, अति हित साथ खवावत ।। गोपी ग्वाल बाल सँग खेलत, सब दिन हँसत सिरात सूरदास धनि धनि ब्रजवासी, जिनसौ हित जदु-तात ।।


(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश महाकवि सूरदास जी द्वारा रचित 'सूरसागर' महाकाव्य से हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड में संकलित 'पद' शीर्षक से उद्धृत है।


(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर –व्याख्या श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे उद्धव! मैं ब्रज को भूल नहीं पाता हूँ। मैं सबको भुलाने का बहुत प्रयत्न करता हूँ, पर ऐसा करना मेरे लिए सम्भव नहीं हो पाता। वृन्दावन और गोकुल, वन, उपवन सभी मुझे बहुत याद आते हैं। वहाँ के कुंजों की घनी छाँव भी मुझसे भुलाए नहीं भूलती। प्रातःकाल माता यशोदा और नन्द बाबा मुझे देखकर हर्षित होते तथा अत्यन्त सुख का अनुभव करते थे। माता यशोदा मक्खन, रोटी और दही मुझे बड़े प्रेम से खिलाती थीं। गोपियाँ और ग्वाल-बालों के साथ अनेक प्रकार की क्रीड़ाएँ करते थे और सारा दिन हँसते-खेलते होता था। ये सभी बातें मुझे बहुत याद आती हैं। हुए व्यतीत


सूरदास जी ब्रजवासियों की सराहना करते हुए कहते हैं कि वे ब्रजवासी धन्य हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण स्वयं उनके हित की चिन्ता करते हैं और इनका प्रतिक्षण ध्यान करते हैं। उन्हें श्रीकृष्ण के अतिरिक्त ऐसा हितैषी और कौन मिल सकता है।


(iii) उपर्युक्त पंक्तियों में किस समय का वर्णन है ?

उत्तर –जब भगवान गोकुल छोड़ कर मथुरा चले गए थे वो वहा पर वह अपने मित्र ऊधौ से अपने और गोकुल वासियों के बीच गहरे प्रेम की वेदना को प्रकट करते हैं।


 23. दिए गए संस्कृत गद्यांश में से किसी एक का संदर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए: 2+3=5


(क) इयं नगरी विविधधर्माणां सङ्गमस्थली । महात्मा बुद्धः तीर्थङ्करः पार्श्वनाथः, शङ्कराचार्यः कबीरः, गोस्वामी तुलसीदास, अन्ये च बहवः महात्मानः अत्रागत्य स्वीयान् विचारान् प्रासारायन् । न केवलं दर्शने, साहित्ये, धर्मे, अपितु कलाक्षेत्रेऽपि इयं नगरी विविधानां कलाना, शिल्पानां च कृते लोके विश्रुता । अत्रत्याः कौशेयशाटिकाः देशे-देशे सर्वत्र स्पृहान्ते ।


सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'वाराणसी' नामक पाठ से लिया गया है।

इस गद्यांश में वाराणसी नामक प्राचीन नगर के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।


अनुवाद यह नगरी (अर्थात काशी) अनेक धर्मों की संगमस्थली (मिलन स्थल) है। महात्मा बुद्ध, तीर्थंकर पार्श्वनाथ, शंकराचार्य, कबीर, गोस्वामी तुलसीदास तथा अन्य बहुत-से महात्माओं ने यहाँ आकर अपने विचारों का प्रसार किया, केवल दर्शन, साहित्य और धर्म में ही नहीं, अपितु कला के क्षेत्र में भी यह नगरी वर सुरह की कलाओं और शिल्पों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ की रेशमी साड़ियाँ देश-देश में हर जगह पसन्द की जाती हैं। 

यहाँ की पत्थर की मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं। यह अपनी प्राचीन परम्परा का इस समय भी पालन कर रही है। इसलिए कवियों के द्वारा गाया गया है।


श्लोक "जहाँ मरना कल्याणकारी है, जहाँ भस्म ही आभूषण (गहना) है और जहाँ लंगोट ही रेशमी वस्त्र है, वह काशी किसके द्वारा मापी जा सकती है?" अर्थात् काशी अतुलनीय है। इसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है।


                        अथवा


(ख) एषा कर्मवीराणां संस्कृतिः “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः” इति अस्याः उद्घोषः । पूर्वं कर्म, तदनन्तरं फलम् इति अस्माकं संस्कृते नियमः । इदानीं यदा वयम् राष्ट्रस्य नवनिर्माणे संलग्नाः स्मः निरन्तरम् कर्मकरणम् अस्माकं मुख्यं कर्त्तव्यम् निजस्य श्रमस्य फलं भोग्यं अन्यस्य श्रमस्य शोषणं सर्वथा वर्जनीयम् । यदि वयं विपरीत आचरामः तदा न वयं सत्यं भारतीय संस्कृतेः उपासकाः ।


24. दिए गए संस्कृत पद्यांश में से किसी एक का संदर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए: 2+3=5


(क) किंस्विद् गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात् ? किंस्विद् शीघ्रतरं वातात् किंस्विद् बहुतरं तृणात् ?

 माता गुरुतरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा । मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात् ।।


उत्तर –सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'जीवन-सूत्राणि' पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं।


अनुवाद (यक्ष पूछता है) भूमि से अधिक श्रेष्ठ क्या है? आकाश से ऊँचा क्या है? वायु से ज्यादा तेज चलने वाला क्या है? (और) तिनकों से भी अधिक (दुर्बल बनाने वाला) क्या है?

(युधिष्ठिर जवाब देते हैं)-माता भूमि से अधिक भारी है (और)। पिता आकाश से भी ऊँचा है। मन वायु से भी तेज चलने है। चिन्ता तिनकों से अधिक (दुर्बल बनाने है।


अथवा


(ख) हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ।।


25. अपने पठित खण्डकाव्य के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर दीजिए 1x3=3 


(क) (i)'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के आधार पर नायक महात्मा गाँधी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए ।


(ii) 'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के 'चतुर्थ सर्ग' की कथावस्तु लिखिए ।


(ख)(i) ‘ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए ।


(ii)'ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य के आधार पर जवाहरलाल नेहरू का चरित्र-चित्रण कीजिए । 


(ग) (i) 'मेवाड़-मुकुट' खण्डकाव्य के 'लक्ष्मी सर्ग' की कथा संक्षेप में लिखिए


(ii) 'मेवाड-मुकुट' खण्डकाव्य का कथासार लिखिए ।


(घ) (i)'अग्रपूजा' खण्डकाव्य के 'आयोजन सर्ग' का कथासार अपने शब्दों में लिखिए ।


(ii) 'अग्रपूजा' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए ।


(ङ)(i) 'जय सुभाष' खण्डकाव्य की कथावस्तु लिखिए । 


(ii)'जय सुभाष' खण्डकाव्य के आधार पर उसके नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए ।


(च) (i)'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के आधार पर 'तृतीय सर्ग (बलिदान सर्ग) का सारांश लिखिए ।


(ii) 'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के नायक चन्द्रशेखर 'आजाद' का चरित्र-चित्रण कीजिए ।


(छ)(i). 'कर्ण' खण्डकाव्य के 'वष्ठ सर्ग' (कर्ण वध) की कथा संक्षेप में लिखिए ।


(ii) 'कर्ण' खण्डकाव्य के आधार पर नायक 'कर्ण' की वीरता और त्याग पर प्रकाश डालिए ।


(ज) (i)'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए ।

(ii)'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के 'द्वितीय सर्ग' की कथा संक्षेप में लिखिए


(झ) (i)'तुमुल' खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए


(ii) 'तुमुल' खण्डकाव्य की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए ।


26.(क) दिए गए लेखकों में से किसी एक का जीवन परिचय देते हुए उनकी एक प्रमुख रचना का

उल्लेख कीजिए :3+2=5


(i) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


(ii) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद


(iii) जयशंकर प्रसाद


उत्तर –(i) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


 जीवन-परिचय


हिन्दी भाषा के उच्चकोटि के साहित्यकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की गणना प्रतिभा सम्पन्न निबन्धकार, समालोचक, इतिहासकार, अनुवादक एवं महानु शैलीकार के रूप में की जाती है। गुलाबराय के अनुसार, "उपन्यास साहित्य में जो स्थान मुंशी प्रेमचन्द का है, वही स्थान निबन्ध साहित्य में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का है। "


आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 1884 ई. में बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रबली शुक्ल था। इण्टरमीडिएट में आते ही इनकी पढ़ाई छूट गई। ये सरकारी नौकरी करने लगे, किन्तु स्वाभिमान के कारण यह नौकरी छोड़कर मिर्ज़ापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला अध्यापक हो गए। हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं का ज्ञान इन्होंने स्वाध्याय से प्राप्त किया। बाद में 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' काशी से जुड़कर इन्होंने 'शब्द-सागर' के सहायक सम्पादक का कार्यभार सँभाला। इन्होंने काशी विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष का पद भी सुशोभित किया।


शुक्ल जी ने लेखन का शुभारम्भ कविता से किया था। नाटक लेखन की ओर भी इनकी रुचि रही, पर इनकी प्रखर बुद्धि इनको निबन्ध लेखन एवं आलोचना की ओर ले गई। निबन्ध लेखन और आलोचना के क्षेत्र में इनका सर्वोपरि स्थान आज तक बना हुआ है।


जीवन के अन्तिम समय तक साहित्य साधना करने वाले शुक्ल जी का निधन सन् 1941 में हुआ।


रचनाएँ शुक्ल जी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। इनकी रचनाएँ निम्नांकित हैं। 

निबन्ध चिन्तामणि (दो भाग), विचारवीथी ।


आलोचना रसमीमांसा, त्रिवेणी (सूर, तुलसी और जायसी पर आलोचनाएँ)। 

इतिहास हिन्दी साहित्य का इतिहास।


सम्पादन तुलसी ग्रन्थावली, जायसी ग्रन्थावली, हिन्दी-शब्द सागर, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भ्रमरगीत सार, आनन्द कादम्बिनी ।


(ख) दिए गए कवियों में से किसी एक का जीवन परिचय देते हुए उनकी एक प्रमुख रचना का उल्लेख कीजिए :3+2=5


(i) गोस्वामी तुलसीदास


(ii) सुमित्रानन्दन पन्त


(iii) महाकवि सूरदास


उत्तर –

जीवन-परिचय


लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास भारत के ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता तथा संसार के कवि हैं। उनके जन्म से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। इनका जन्म 1532 ई. (भाद्रपद, शुक्ल पक्ष एकादशी, विक्रम संवत् 1589) स्वीकार किया गया है। तुलसीदास जी के जन्म और जन्म स्थान के सम्बन्ध को लेकर सभी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। इनके जन्म के सम्बन्ध में एक दोहा प्रचलित है


"पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो सरीर ।। "


'तुलसीदास' का जन्म बाँदा जिले के 'राजापुर गाँव में माना जाता है। कुछ विद्वान् इनका जन्म स्थल एटा जिले के 'सोरो' नामक स्थान को मानते हैं। तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल-नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ। 


इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध सन्त नरहरिदास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इनका विवाह पण्डित दीनबन्धु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम था और उनके सौन्दर्य रूप के प्रति वे अत्यन्त आसक्त थे। एक बार इनकी पत्नी बिना बताए मायके चली गईं तब ये भी अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए उनके पीछे-पीछे ससुराल जा पहुँचे। इस पर इनकी पत्नी ने उनकी भर्त्सना करते हुए कहा


"लाज न आयी आपको दौरे आयेहु साथ।"


पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह-माया से विरक्त कर दिया और उनके हृदय में श्रीराम के प्रति भक्ति भाव जाग्रत हो उठा। तुलसीदास जी ने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया और ये राम के अनन्य भक्त बन गए। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। 1574 ई. में इन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना की तथा मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। 1623 ई. में काशी में इनका निधन हो गया।


कृतियाँ (रचनाएँ)


महाकवि तुलसीदास जी ने बारह ग्रन्थों की रचना की। इनके द्वारा रचित महाकाव्य 'रामचरितमानस' सम्पूर्ण विश्व के अद्भुत ग्रन्थों में से एक है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं.


1. रामलला नहछू गोस्वामी तुलसीदास ने लोकगीत की 'सोहर' शैली में इस ग्रन्थ की रचना की थी। यह इनकी प्रारम्भिक रचना है।


2. वैराग्य- सन्दीपनी इसके तीन भाग हैं, पहले भाग में छ: छन्दों में 'मंगलाचरण' है तथा दूसरे भाग में 'सन्त-महिमा वर्णन' एवं तीसरे भाग में 'शान्ति-भाव वर्णन' है।


3. रामाज्ञा प्रश्न यह ग्रन्थ सात सर्गों में विभाजित है, जिसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। इसमें रामकथा का वर्णन किया गया है।


4. जानकी-मंगल इसमें कवि ने श्रीराम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर वर्णन किया है।


5. रामचरितमानस इस विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन के चरित्र का वर्णन किया गया है।


6. पार्वती- मंगल यह मंगल काव्य है, इसमें पूर्वी अवधि में 'शिव-पार्वती के विवाह' का वर्णन किया गया है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण भी विद्यमान है।


7. गीतावली इसमें 230 पद संकलित हैं, जिसमें श्रीराम के चरित्र का वर्णन किया गया है। कथानक के आधार पर ये पद सात काण्डों में विभाजित हैं।


8. विनयपत्रिका इसका विषय भगवान श्रीराम को कलियुग के विरुद्ध प्रार्थना-पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में प्रतीत होते हैं। इसमें तुलसीदास की भक्ति-भावना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।


9. गीतावली इसमें 61 पदों में कवि ने ब्रजभाषा में श्रीकृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।


10. बरवै-रामायण यह तुलसीदास की स्फुट रचना है, जिसमें श्रीराम कथा संक्षेप में वर्णित है। बरवै छन्दों में वर्णित इस लघु काव्य में अवधि भाषा का प्रयोग किया गया है।


11. दोहावली इस संग्रह ग्रन्थ में कवि की सूक्ति शैली के दर्शन होते हैं। इसमें दोहा शैली में नीति, भक्ति और राम महिमा का वर्णन है।


12. कवितावली इस कृति में कवित्त और सवैया शैली में रामकथा का वर्णन किया गया है। यह ब्रजभाषा में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है।


27. अपनी पाठ्य-पुस्तक में से कण्ठस्थ कोई एक श्लोक लिखिए जो इस प्रश्न-पत्र में न आया हो ।2+2=4

उत्तर –किंस्विद प्रवसतो मित्रं किंस्विन् मित्रं गृहे सतः। आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन् मित्रं मरिष्यतः।


28.निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए:2


(i) पुरुराजः कः आसीत् ?


(ii) वीरः केन पूज्यते ?

उत्तर –  वीरः वीरेन पूज्यते।


(iii) कुत्र मरणं मङ्गलम् भवति ?


(iv) चन्द्रशेखरः कः आसीत् ?

उत्तर – चन्द्रशेखरः एक: प्रसिद्ध: क्रांतिकारी देशभक्त आसीत।

29.निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए 9


(i) भारत में आतंकवाद – कारण और निवारण


(ii) जनसंख्या वृद्धि के कारण लाभ और हानि


(iii) बेरोज़गारी की समस्या


(iv) विज्ञान के चमत्कार


(v) मेरा प्रिय कवि


उत्तर –(iii) बेरोज़गारी की समस्या

संकेत बिन्दु प्रस्तावना, बेरोज़गारी का अर्थ, बेरोज़गारी के कारण,बेरोज़गारी कम करने के उपाय, बेरोज़गारी के दुष्प्रभाव, उपसंहार


 प्रस्तावना आज अनेक समस्याएँ भारत के विकास में बाधा उत्पन्न कर रही हैं। बेरोज़गारी की समस्या इनमें से एक है। हर वर्ग का युवक इस समस्या से जूझ रहा है।


बेरोज़गारी का अर्थ बेकारी का अर्थ है-जब कोई योग्य तथा काम करने का | इच्छुक व्यक्ति काम माँगे और उसे काम न मिल सके अथवा जो अनपढ़ और अप्रशिक्षित हैं, वे भी काम के अभाव में बेकार हैं।


कुछ बेरोज़गार काम पर तो लगे हैं, लेकिन वे अपनी योग्यता से बहुत कम धन कमा पाते हैं, इसलिए वे स्वयं को बेरोज़गार ही मानते हैं। बेरोज़गारी के कारण देश का आर्थिक विकास रुक जाता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, यह संख्या वर्ष 1985 में 13 करोड़ से अधिक थी, जबकि एक अन्य अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष यह संख्या लगभग 70 लाख की गति से बढ़ रही है।


बेरोज़गारी के कारण


बेरोज़गारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।


1. जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होना।


2. शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक शिक्षा के स्थान पर सैद्धान्तिक शिक्षा को अधिक महत्त्व दिया जाना।


3. कुटीर उद्योगों की उपेक्षा करना ।


4. देश के प्राकृतिक संसाधनों का पूरी तरह से उपयोग नहीं करना । 


5. भारतीय कृषि की दशा अत्यन्त पिछड़ी होने के कारण कृषि क्षेत्र में भी बेरोज़गारी का बढ़ना ।


6. कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी के कारण उद्योगों को संचालित करने के लिए विदेशी कर्मचारियों को बाहर से लाना।


बेरोज़गारी कम करने के उपाय


बेरोज़गारी कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए 


1. जनता को शिक्षित कर जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना।


2. शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन तथा सुधार करना।


3. कुटीर उद्योगों की दशा सुधारने पर ज़ोर देना।


4. देश में विशाल उद्योगों की अपेक्षा लघु उद्योगों पर अधिक ध्यान देना। मुख्य उद्योगों के साथ-साथ सहायक उद्योगों का भी विकास करना।


5. सड़कों का निर्माण, रेल परिवहन का विकास, पुलों व बांधों का निर्माण तथा वृक्षारोपण आदि करना, जिससे अधिक से अधिक संख्या में बेरोजगारों को रोज़गार मिल सके।


6. सरकार द्वारा कृषि को विशेष प्रोत्साहन एवं सुविधाएं देना, जिससे युवा गाँवों को छोड़कर शहरों की ओर न जाएँ।


बेरोज़गारी के दुष्प्रभाव बेरोज़गारी अपने आप में एक समस्या होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक समस्याओं को भी जन्म देती है। उन्हें यदि हम बेरोजगारी के अथवा दुष्प्रभाव कहें, तो अनुचित नहीं होगा। बेरोज़गारी के कारण निर्धनता में वृद्धि होती है तथा भुखमरी की समस्या उत्पन्न होती है। बेरोजगारी के कारण मानसिक अशान्ति की स्थिति में लोगों के चोरी, डकैती, हिंसा, अपराध, हत्या आदि की ओर प्रवृत्त होने की पूरी सम्भावना बनी रहती है। अपराध एवं हिंसा में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण बेरोज़गारी ही है। कई बार तो बेरोज़गारी की भयावह स्थिति से तंग आकर लोग आत्महत्या भी कर बैठते हैं।


उपसंहार बेरोज़गारी किसी भी देश के लिए एक अभिशाप से कम नहीं है। इसके कारण नागरिकों का जीवन स्तर बुरी तरह से प्रभावित होता है तथा देश की आर्थिक वृद्धि भी बाधित होती है, इसलिए सरकार तथा सक्षम निजी संस्थाओं द्वारा इस समस्या को हल करने लिए ठोस कदम उठाए जाने की तत्काल आवश्यकता है


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