जंतु कोशिका और पादप कोशिका में अंतर
Jantu koshika aur padap koshika mein antar
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जंतु कोशिका और पादप कोशिका में अंतर लिखिए।
जंतु कोशिका किसे कहते हैं?
मूल रूप से जो कोशिका जंतु में पाई जाती है उसे जंतु कोशिका कहते हैं। एक कोशिकीय प्रोटोजोअन यूग्लीना के अतिरिक्त,किसी भी जंतु कोशिका में लवक नहीं होते हैं ।भोज्य पदार्थ ग्लाइकोजन एवं वॉल्यूटिन के कणों के रूप में संचित रहता है।जंतु कोशिका आकार में प्राया छोटी होती हैं।कोशिका विभाजन के समय कोशिका एक खांच द्वारा दो भागों में बंटती है जो बाहर से अंदर की ओर बढ़ती है।
तारककाय ( सेण्ट्रोसोम) व्यापक रुप में पाया जाता है।रिक्तकाऍ नहीं होती अथवा बहुत छोटी होती हैं। प्राय: लवक नहीं पाए जाते हैं। कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती है।
पादप कोशिका किसे कहते हैं?
पेड़ पौधों में पाई जाने वाली कोशिका को पादप कोशिका कहते हैं जो कि जंतु कोशिका से भिन्न होती है अगर भिन्नता की बात करें तो जंतु कोशिका के बाहरी आवरण भाग को प्लाज्मा झिल्ली का जाता है जबकि पादप कोशिका के बाहरी आवरण को कोशिका भित्ति कहा जाता है जो सैलूलोज से बनी होती है।कोशिका विभाजन के समय पादप कोशिका के मध्य में एक पट्टिका बनती है जो अंदर से बाहर की ओर बढ़ती है।
कवक के अतिरिक्त पादप कोशिका में भोजन मण्ड के रूप में संचित रहता है। सेल्यूलोज की बनी कोशिका भित्ति पाई जाती है। पादप कोशिका, जंतु कोशिका से बड़ी होती हैं। तारककाय केवल शैवाल एवं कवकों में पाया जाता है।
एक जन्तु कोशिका का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- जन्तु कोशिका का वर्णन - जन्तु कोशिका में अग्रलिखित भाग होते हैं -
( 1 ) कोशिका कला ( झिल्ली ) -यह तीन परतों की बनी होती है- बीच की परत लिपिड की तथा शेष दो प्रोटीन की । यह अर्द्ध - पारगम्य झिल्ली होती है ।
(2) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका - झिल्लियों से बना नलिकाकार तन्त्र जो बाहर कोशिका कला से तथा अन्दर केन्द्रक कला से जुड़ा हुआ है । इस तन्त्र की सतह पर राइबोसोम पाये जाते हैं ।
( 3 ) राइबोसोम - प्रोटीन एवं राइबोन्यूक्लिक अम्ल से बनी कणिकामय संरचनाएँ ।
( 4 ) लाइसोसोम- एकल झिल्ली से घिरी गोल संरचनाएँ जिनमें हाइड्रोजन एन्जाइम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है ।
( 5 ) सेण्ट्रोसोम- केन्द्रक के निकट पाई जाने वाली संरचना जिसके खोखले भाग में तीन - तीन सूक्ष्म नलिकाओं के 9 समूह होते हैं ।
( 6 ) माइटोकॉण्ड्रिया- दो झिल्लियों से घिरी गोल अथवा चपटी संरचना जिसकी बाहरी झिल्ली चिकनी तथा भीतरी झिल्ली माइटोकॉण्ड्रिया की गुहिका में धँसी होती है जिसमें क्रिस्टी नामक अंग्रलासर प्रवर्ध निकले रहते हैं । यह कोशिका का ऊर्जा घर ( Power house ) होती है ।
( 7 ) गॉल्जी बॉडी - सिस्टर्नी नलिकाओं तथा गुहिकाओं से मिलकर बनी अर्द्धचन्द्राकार रचनाएँ हैं । यह सिस्टर्नी जाल के रूप में होती है।
( 8 ) केन्द्रक - यह दोहरी केन्द्रक कला से घिरा हुआ गोल अथवा चपटे आकार का सबसे बड़ा कोशिकांग है । केन्द्रक में उपस्थित कणिकामय द्रव्य केन्द्रकद्रव्य कहलाता है । इसमें क्रोमेटिन तन्तुओं का जाल - सा बिछा रहता है ।
माइट्रोकॉण्ड्यिा के कार्य लिखिए ।
माइट्रोकॉण्ड्रिया के कार्य --
( 1 ) ये भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा मुक्त करते हैं तथा इस ऊर्जा को ATP के रूप में संचित करते हैं जो जैविक कार्यों में प्रयुक्त होती है ।
( 2 ) ये प्रोटीन का संश्लेषण भी करते हैं।
( 3 ) ये अण्डों का योक तथा शुक्राणुओं के मध्यमान का निर्माण करते हैं ।
लाइसोसोम के कार्य लिखिए ।
लाइसोसोम के कार्य ---
(1).ये कोशिका में पाये जाने वाले प्रकीर्णो ( Enzyme ) का स्त्रावण एवं संग्रहण करते हैं । ये मृत या पुरानी कोशिकाओं का भक्षण करते हैं ।
(2).ये कोशिका में प्रवेश करने वाले सूक्ष्म जीवों व कणों का पाचन करते हैं ।
(3).ये भोजन की कमी के समय कोशिकाओं तथा कोशिकाद्रव्य में उपस्थित अवयवों का पाचन करते हैं ।
(4).ये उपवास या रोग की स्थिति में शरीर को पोषण देते हैं ।
(5).शुक्राणु इन्हीं के कारण अण्डाणु में प्रवेश करते हैं । इन्हें आत्महत्या करने वाली थैली ( Suicide bags ) कहते हैं ।
तारककाय ( सेण्ट्रोसोम ) के कार्य लिखिए ।
उत्तर- तारककाय ( सेण्ट्रोसोम ) के कार्य -
( 1 ) ये जन्तु कोशिकाओं में कोशिका विभाजन के समय तर्क रूप रेशों का निर्माण करते हैं ।
( 2 ) ये शुक्राणु में स्थित दो सेण्ट्रिओल में से कशाभ का अक्षीय तन्तु बनाते हैं ।
( 3 ) ये सेण्ट्रिओल पक्ष्मों व कशाभों के काइनेटोसोम या आधारकाय बनाते हैं ।
सूक्ष्मकाओं के कार्य लिखिए ।
उत्तर- सूक्ष्मकाओं के कार्य -
( 1 ) ये कोशिकाओं के कंकाल का निर्माण करती हैं । -
( 2 ) ये कोशिका के आकार , विस्तार को नियमित करती हैं ।
( 3 ) ये कोशिकाओं की गति एवं गुणसूत्रों का नियन्त्रण करती हैं ।
( 4 ) ये कोशिकाद्रव्य चक्रण में सहायता करती हैं ।
रिक्तिकाओं के कार्य लिखिए ।
उत्तर - रिक्तिकाओं के कार्य --
( 1 ) ये भोजन के पाचन , उत्सर्जन आदि क्रियाओं में सहायता करती हैं ।
( 2 ) ये कोशाओं में परासरण नियन्त्रण का कार्य करती हैं ।
( 3 ) ये भोज्य पदार्थों का संग्रहण करती हैं ।
( 4 ) टोनोप्लास्ट के अर्द्ध - पारगम्य होने के कारण , ये कोशा के अन्दर विभिन्न पदार्थों के संवहन का कार्य करती हैं ।
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