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कक्षा 10वी गृह विज्ञान वार्षिक परीक्षा मॉडल पेपर का सम्पूर्ण हल 2023
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यूपी बोर्ड वार्षिक परीक्षा मॉडल पेपर 2023
कक्षा – 10वी
विषय – गृह विज्ञान
समय: 3 घण्टे 15 मिनट पूर्णांक : 70
निर्देश : प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं। सामान्य निर्देश :
(i) सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
(ii) प्रश्न-पत्र के दो खण्ड हैं। खण्ड अ में बहुविकल्पीय प्रश्न हैं तथा खण्ड ब में अतिलघु उत्तरीय, लघु उत्तरीय और दीर्घ उत्तरीय तीन प्रकार के प्रश्न हैं। उनके उत्तर हेतु निर्देश प्रत्येक प्रश्न के पहले दिए गए हैं।
खण्ड (क)
निर्देश: प्रश्न संख्या 1 से 20 तक बहुविकल्पीय प्रश्न हैं। निम्नलिखित प्रश्नों में प्रत्येक के चार-चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। उनमें से सही विकल्प चुनकर उन्हें क्रमवार अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए। (1 x 20 )
1. बी. सी. जी. का टीका किस रोग की रोकथाम के लिए लगाया जाता है?
(a) कर्णफेर
(b) तपेदिक
(c) मलेरिया
(d) पोलियो
उत्तर (b) तपेदिक
2. एंजिल के अनुसार कम आय वर्ग की आय का अधिकांश प्रतिशत व्यय इस मद पर होता है?
(a) वस्त्र
(b) भोजन
(c) आवास
(d) ईंधन
उत्तर (b) भोजन
3. रिंग कुशन का प्रयोग कब किया जाता है?
(a) सर्दी लगने पर
(b) हैजा होने पर
(c) मोच आने पर
(d) शैय्या घाव होने पर
उत्तर (d) शैय्या घाव होने पर
4. दूध मापने की इकाई क्या है?
(a) मिलीलीटर, लीटर
(b) किलोग्राम, ग्राम
(c) सेण्टीमीटर, मीटर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) मिलीलीटर, लीटर
5. 'वरिष्ठ नागरिक जमा योजना' खाता खोला जाता है।
(a) 60 वर्ष के उपरान्त
(b) 69 वर्ष के पूर्व
(c) 50 वर्ष से पूर्व
(d) 21 वर्ष के बाद
उत्तर (a) 60 वर्ष के उपरान्त
6. बचत सुरक्षित रखने का प्रमुख साधन है
(a) बॉक्स में रखना
(b) बैंक में जमा रखना
(d) इनमें से कोई नहीं
(c) पड़ोसियों के घर रखना
उत्तर (b) बैंक में जमा रखना
7. गर्म पानी की बोतल का प्रयोग किया जाता है।
(a) पेट दर्द में
(b) मोच आने पर
(c) घाव में
(d) इनमें से कोई नही
उत्तर (a) पेट दर्द में
8. लौह तत्त्व की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है?
(a) बेरी-बेरी (c) एनीमिया
(b) मराम्मस (d) तपेदिक
उत्तर (c) एनीमिया
9. भार मापने की इकाई है।
(a) सेण्टी, मीटर
(b) ग्राम, किलोग्राम
(c) मिली, लीटर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) ग्राम, किलोग्राम
10. अस्थिभंग का लक्षण है
(a) सूजन आ जाती है।
(b) दर्द होता है
(c) अंग निष्क्रिय हो जाता है
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
11. बेकिंग पाउडर अथवा खाने का सोड़ा मिलाकर पकाने से भोजन का नष्ट होने वाला पोषक तत्त्व है
(a) प्रोटीन
(b) कार्बोहाइड्रेट
(d) विटामिन बी
(c) खनिज लवण
उत्तर (d) विटामिन बी
12. डबलरोटी व बिस्कुट बनाने की विधि कहलाती है।
(a) ग्रिलिंग
(b) रोस्टिंग
(c) बेकिंग
(d) टोस्टिंग
उत्तर (c) बेकिंग
13. पेचिश के रोगी का भोजन कैसा होना चाहिए?
(a) केवल फल
(b) केवल दूध
(c) दही चावल
(d) रोटी सब्जी
उत्तर (c) दही चावल
14. डी.पी.टी. का टीका किन रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है?
(a) डायरिया, पोलियो, टिटनस
(b) डिफ्थीरिया, कुकर खाँसी, टिटनस
(c) डिफ्थीरिया, पोलियो, टायफाइड
(d) डायरिया, कुकर खाँसी, टिटनस
उत्तर (c) डिफ्थीरिया, पोलियो, टायफाइड
15. बजट में आय-व्यय का विवरण कितनी अवधि का होता है?
(a) एक सप्ताह
(b) एक माह
(c) एक वर्ष
(d) एक निश्चित अवधि
उत्तर (d) एक निश्चित अवधि
16. एक बोतल शर्बत का मूल्य₹ 55.50 है, तो 4 बोतल शर्बत का मूल्य होगा
(a) 210.00
(b) ₹220.50
(d) ₹225.00
(c) 222.00
उत्तर (c) ₹222.00
17. कपड़ा काटने से पूर्व की जाने वाली क्रिया है
(a) कपड़े को लिंक करना
(b) कपड़े को इस्तरी करना
(c) 'a' और 'b' दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) 'a' और 'b' दोनों
18. शरीर का तापमान मापने के लिए प्रयोग किया जाता है
(a) लैक्टोमीटर
(b) थर्मामीटर
(d) बैरोमीटर
(c) हाइड्रोमीटर
उत्तर (b) थर्मामीटर
19. स्नान न करा सकने की दशा में शारीरिक सफाई का उपाय है
(a) माप देना
(b) स्पंज देना
(c) टैल्कम पाउडर छिडकना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) स्पंज देना
20. रक्त शुद्धिकरण होता है
(a) आमाशय में
(b) फेफड़ों में
(c) ह्रदय में
(d) त्वचा में
उत्तर (b) फेफड़ों में
खण्ड : (ब)
निर्देश: प्रश्न संख्या 21 से 26 तक अतिलघु उत्तरीय प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 25 शब्दों में लिखिए।(2x6)
21. हैजा रोग किस जीवाणु से फैलता है? इसके बचाव के कोई दो उपाय लिखिए।
उत्तर हैजा रोग विब्रियो कॉलेरी नामक जीवाणु से फैलता है। इस रोग से बचने के दो प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं
1. हैजा का टीका नियमित रूप से लगवाएं।
2. दूध एवं पानी को उबालकर पीना चाहिए।
22. राम ने एक दर्जन केले ₹10 में खरीदें तथा र12 में बेचें बताइए कि उसे कितने प्रतिशत लाभ हुआ?
उत्तर ₹ 10 में खरीदकर ₹ 12 में बेचा, अर्थात् लाभ = 12-10= ₹2
प्रतिशत लाभ =(2/10) x 100 = 20%,
20% लाभ हुआ।
23. बजट सम्बन्धी एंजिल का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर आय-व्यय से सम्बन्धित इस सिद्धान्त के अनुसार, “पारिवारिक आय बढ़ने के साथ-साथ किसी परिवार के भोजन एवं खाद्य सामग्री पर किए जाने वाले व्ययों
में प्रतिशत कमी तथा विलासिता की मदों (शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य) पर होने बाले व्ययों में प्रतिशत वृद्धि अंकित की जाती है।"
24. पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते है?
उत्तर पर्यावरण के किसी एक भाग अथवा सभी भागों का दूषित होना ही पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है।
25. कब्ज के रोगी के आहार में मुख्यतः किन भोज्य पदार्थों का समावेश होना चाहिए?
उत्तर कब्ज के रोगी को रेशेदार भोज्य पदार्थों की अधिकता वाले भोजन के साथ हरी सब्जियाँ, फल, सम्पूर्ण दालें तथा चोकरयुक्त आटे की रोटियाँ आदि पदार्थों का अपने भोजन में समावेश करना चाहिए।
26. वाहक चेक किसे कहते हैं? इसके लाभ बताइए।
उत्तर यह साधारण प्रकार का चेक है। इस चेक के द्वारा खाताधारी स्वयं अथवा किसी वाहक द्वारा बैंक से धन निकाल सकता है। इस चेक का लाभ यह है कि खाताधारी अपने किसी विश्वासपात्र व्यक्ति को भेजकर भी बैंक से धन निकलवा सकता है।
निर्देश: प्रश्न संख्या 27 से 31 तक लघु उत्तरीय प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 50 शब्दों के अन्तर्गत लिखिए। (4 x 5)
27. बैंक के बचत खाते तथा चालू खाते में क्या अन्तर है? दोनों की उपयोगिता बताइए।
उत्तर
बचत खाते एवं चालू खाते में अन्तर
बचत व चालू खाते की उपयोगिता
1. बचत खाता व्यक्तिगत एवं पारिवारिक बचतों के लाभकारी विनियोग की सुविधा प्रदान करता है। इस खाते में जमा धनराशि पर निर्धारित दर से ब्याज प्राप्त होता है। अतः अतिरिक्त आय की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त इस खाते में जमा धनराशि का अन्यत्र महत्त्वपूर्ण योजनाओं में भी विनियोग किया जाता है।
2. चालू खाता व्यापारिक लेन-देन की सुविधा उपलब्ध कराता है। उल्लेखनीय है कि बैंक इस खाते में जमा धन का कहीं अन्यत्र विनियोग नहीं कर सकता। अतः खाताधारी आवश्यकता पड़ने पर, चाहे जितनी बार खाते में जमा धन निकाल सकता है।
अथवा पारिवारिक बजट बनाने के लाभों का उल्लेख कीजिए।
28. आय कितने प्रकार की होती है?
अथवा किसान विकास पत्र के विषय में आप क्या जानती हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर इस योजना के अन्तर्गत धन जमा करने के लिए निर्धारित फार्म भरकर डाकखाने से किसान विकास पत्र प्राप्त किया जा सकता है। श्यामला गोपीनाथ समिति की सिफारिशों के आधार पर 30 नवम्बर, 2011 को किसान विकास पत्र बन्द कर दिया गया था। वर्तमान में वर्ष 2015 में इसे पुनः आरम्भ किया गया। इस योजना की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. जमा की गई राशि 100 महीनों में दोगुनी ।
2. ₹ 1,000, 5,000, 10,000 एवं 50,000 के मूल्य वर्ग में उपलब्ध।
3. न्यूनतम ₹ 1,000 और अधिकतम की कोई सीमा नहीं।
4. किसी वयस्क के द्वारा स्वयं के लिए या किसी अवयस्क की ओर से खरीदा जा सकता है। दो वयस्कों द्वारा संयुक्त रूप से खरीदा जा सकता है।
5. सभी विभागीय डाकघरों में उपलब्ध। शीघ्र ही विभिन्न बैंकों की निर्धारित शाखाओं से भी खरीदा जा सकेगा।
6. एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को तथा एक डाकघर से दूसरे डाकघर में स्थानान्तरण की सुविधा उपलब्ध।
29. गृह-गणित का ज्ञान होना गृहिणी के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर गृह गणित का गृहिणियों को ज्ञान होना
गृह अर्थव्यवस्था के संचालन का कार्य मुख्यतः गृहिणियों पर ही होता है। घरेलू कार्यों में बजट बनाना, आय-व्यय का हिसाब रखना, दूध, सब्जी, राशन आदि का हिसाब रखना तथा उनकी कीमत अथवा मूल्य के अनुसार भुगतान करना आदि कार्य आते हैं।
इन सभी कार्यों हेतु गणितीय गणनाओं की आवश्यकता होती है। इन सभी कार्यों को सुचारु रूप से करने हेतु गृह गणित का ज्ञान होना प्रत्येक गृहिणी के लिए आवश्यक है
अथवा गृह विज्ञान की छात्राओं के लिए गृह गणित के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
30. पेचिश तथा अतिसार में क्या अन्तर है?
उत्तर
पेचिश तथा अतिसार में अन्तर
अथवा रोग-प्रतिरक्षा से आप क्या समझते हैं? रोग प्रतिरक्षा के प्रकार व प्राप्ति के स्रोत का विवरण दीजिए।
31. पर्यावरण संरक्षण के लिए जनता को कैसे जागरूक किया जा सकता है?
उत्तर पर्यावरण का मानव जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है, पर्यावरण संरक्षण के लिए जनचेतना का होना बहुत आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण का लक्ष्य निम्नलिखित उपायों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है
1. पर्यावरण शिक्षा द्वारा जनता में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाई जा सकती है। सामान्य जनता को पर्यावरण के महत्त्व, भूमिका तथा प्रभाव आदि से अवगत कराना आवश्यक है।
2. वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कराना चाहिए; जैसे-स्टॉकहोम सम्मेलन (1972), रियो डि जेनेरियो सम्मेलन (1992)।
3. गाँव, शहर, जिला, प्रदेश, राष्ट्र आदि सभी स्तरों पर पर्यावरण संरक्षण में लोगों को शामिल करना चाहिए। 4. पर्यावरण अध्ययन से सम्बन्धित विभिन्न सेमिनार पुनश्चर्या, कार्य-गोष्ठियाँ,
दृश्य-श्रव्य प्रदर्शनी आदि का आयोजन कराया जा सकता है।
5. विद्यालय, विश्वविद्यालय स्तर पर 'पर्यावरण अध्ययन' विषय को लागू करना एवं प्रौढ़ शिक्षा में भी पर्यावरण-शिक्षा को स्थान देना महत्त्वपूर्ण उपाय है।
6. जनसंचार माध्यमों- रेडियो, दूरदर्शन तथा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के प्रति जनजागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
7. पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करना महत्त्वपूर्ण प्रयास है; जैसे-इन्दिरा गाँधी प्रियदर्शिनी पुरस्कार, वृक्ष मित्र पुरस्कार, महावृक्ष पुरस्कार, इन्दिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार आदि ।
8. विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) का आयोजन जागरूकता लाने की दिशा में उठाया गया महत्त्वपूर्ण कदम है।
अथना पर्यावरण प्रदूषण जनजीवन को कैसे प्रभावित करता है?
निर्देश: प्रश्न संख्या 32 से 34 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। प्रश्न संख्या 32 व 33 के विकल्प दिए गए हैं। प्रत्येक प्रश्न के उत्तर 100 शब्दों के अन्तर्गत लिखिए। (6 x 3)
32. एंजिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर
एंजिल द्वारा प्रतिपादित बजट का सिद्धान्त
पारिवारिक बजट के सन्दर्भ में अनेक विद्वानों द्वारा विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इन विद्वानों में जर्मनी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. अर्नेस्ट एंजिल का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। एंजिल ने समाज के विभिन्न वर्गों से सम्बन्धित परिवारों की गृह अर्थव्यवस्था का विस्तृत अध्ययन किया तथा 1857 ई. में निष्कर्ष स्वरूप एक नियम प्रस्तुत किया, जिसे पारिवारिक बजट सम्बन्धी एंजिल का नियम कहा जाता है। एंजिल ने सामाजिक व्यवस्था को तीन वर्गों-धनी या उच्च, मध्यम तथा निम्न में विभाजित किया है।
इस वर्गीकरण का आधार केवल पारिवारिक आय को ही स्वीकार किया गया था। अपने अध्ययनों के आधार पर उसने स्पष्ट किया कि पारिवारिक आय के बढ़ने के साथ-साथ परिवार द्वारा भोजन एवं खाद्य सामग्री पर किए जाने वाले व्यय का प्रतिशत मान घटता जाता है तथा शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन या विलासिता की मदों पर होने वाले व्यय का प्रतिशत मान बढ़ता जाता है। जहाँ तक वस्त्र, गृह, प्रकाश एवं ईंधन जैसी मदों का प्रश्न है, इन पर होने वाले व्यय का प्रतिशत मान प्रायः स्थिर ही रहता है।
एंजिल के पारिवारिक बजट सम्बन्धी नियम की आलोचना
एंजिल के नियम का वर्तमान सन्दर्भ में मूल्यांकन करने से पता चलता है कि वर्तमान में यह नियम उतना प्रासंगिक नहीं रह गया। पारिवारिक बजट के विभिन्न पक्षों को आधार बनाकर इस नियम की निम्नलिखित आलोचनाएँ प्रस्तुत की गई हैं।
1. भोजन व्यय के सन्दर्भ में आलोचकों का मत है कि एंजिल द्वारा अपने बजट में अध्यापक तथा डॉक्टर के भोजन के लिए किया गया धन का प्रावधान अधिक प्रतीत होता है।
2. आवास व्यय के सन्दर्भ में आधुनिक परिस्थितियों में आवास समस्या गम्भीर है। अध्यापक तथा डॉक्टर के मकान के लिए निर्धारित किया गया धन कम प्रतीत होता है। आय के 12% भाग को व्यय करके ये वर्ग अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल आवास प्राप्त नहीं कर सकते।
3. शिक्षा, स्वास्थ्य तथा मनोरंजन व्यय के सन्दर्भ में एंजिल ने अपने नियम में मध्यम तथा उच्च वर्ग की शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन की मद के लिए जो व्यय का प्रावधान किया है, वह बहुत अधिक प्रतीत होता है।
4. ईंधन तथा प्रकाश व्यय के सन्दर्भ में एंजिल ने अपने नियम में स्वीकार किया है कि ईंधन एवं प्रकाश आदि पर होने वाले व्यय का प्रतिशत भाग सदैव स्थिर रहता है। यह मान्यता उचित नहीं है। व्यवहार में आय के बढ़ने के साथ-साथ इन मदों पर होने वाले व्यय के प्रतिशत मान में कुछ-न-कुछ वृद्धि अवश्य ही होती है।
5. बचत की अवहेलना के सन्दर्भ में एंजिल द्वारा प्रतिपादित बजट सम्बन्धी नियम के अन्तर्गत कहीं भी बचत का उल्लेख नहीं है। आधुनिक मान्यताओं के अनुसार समाज के प्रत्येक वर्ग के बजट में अनिवार्य रूप से नियमित बचत का प्रावधान होना चाहिए। एंजिल द्वारा की गई बचत की अवहेलना आलोचना का विषय है।
अथवा डाकघर द्वारा संचालित मुख्य बचत योजनाओं का वर्णन कीजिए।
33. स्वस्थ व्यक्ति के भोजन से आप क्या समझते हैं? सामान्य स्वस्थ व्यक्ति और रोगी के भोजन में क्या अन्तर होते हैं? रोगी को भोजन देते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर
स्वस्थ व्यक्ति एवं रोगी के भोजन में अन्तर
स्वस्थ व्यक्ति को सामान्य, पौष्टिक तथा सन्तुलित आहार ग्रहण करना चाहिए, परन्तु यदि व्यक्ति किसी साधारण अथवा गम्भीर रोग से पीड़ित है, तो रोग की प्रकृति के अनुसार रोगी के आहार में आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए। इस प्रकार के आहार को आहार एवं पोषण विज्ञान की भाषा में 'उपचारार्थ आहार' कहते हैं। कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो किसी पोषक तत्त्व की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं, जबकि कुछ रोग पाचन तन्त्र अथवा उत्सर्जन तन्त्र की अव्यवस्था के कारण उत्पन्न होते हैं। अतः रोग की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए उपचारार्थ आहार के तत्त्वों के अनुपात एवं मात्रा आदि का निर्धारण किया जाता है। आहार के निर्धारण में यह ध्यान रखा जाता है कि रोगी को जिन पोषक तत्त्वों की आवश्यकता हो, उन सभी तत्त्वों का आहार में समुचित मात्रा में समावेश होना चाहिए। रोग की अवस्था में रोगी को दो प्रकार का आहार देना चाहिए-तरल आहार एवं अर्द्ध-तरल आहार।
रोगी को भोजन कराना
रोग की अवस्था में व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसकी शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। इससे व्यक्ति की भूख व पाचन क्रिया भी प्रभावित होती है। इससे कुछ रोगी अत्यधिक कमजोर हो • जाते हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए रोगी को भोजन कराते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
1. रोग की अवस्था में रोगी के भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोगी को नियमित भोजन देना चाहिए, जिससे उसकी भूख नष्ट न हो।
2. रोगी को भोजन डॉक्टर की सलाह से उचित रूप में तथा समयानुसार देना चाहिए।
3. रात्रि की अपेक्षा दिन में भोजन देना अधिक उचित है।
4. सोते हुए रोगी को जगाकर भोजन नहीं देना चाहिए।
5. रोगी के पास भोजन लाने से पूर्व उसे और उसके आस-पास के स्थान को भोजन हेतु पूरी तरह तैयार कर लेना चाहिए;
जैसे-(i) रोगी के मुँह-हाथ को स्पंज कर देना चाहिए।
(ii) रोगी के आस-पास का स्थान पूर्णतः स्वच्छ कर लेना चाहिए।
(iii) बिस्तर तथा वस्त्रों की रक्षा के लिए तौलिए का प्रयोग करना चाहिए।
(iv) यदि डॉक्टर ने उठने से मना किया है, तो तकिए के सहारे उसे पलंग पर , ही बैठा देना चाहिए।
6. भोजन अपेक्षित ठण्डा या गर्म होना चाहिए।
7. भोजन लाने में स्वच्छता एवं आकर्षण हो, जिससे भोजन के प्रति रोगी की , रुचि बढ़े। भोजन कराने में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।
8. रोगी के भोजन करने के पश्चात् जूठे बर्तन तुरन्त हटा देने चाहिए।
9. उठने में असमर्थ रोगी को केवल तरल पदार्थ ही भोजन के रूप में दिए जाने चाहिए। रोगी को भोजन कराते समय प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। भोजन की प्यालियाँ, कटोरियाँ तथा प्लेट अधिक भरी नहीं होनी चाहिए।
अथवा सेंक से क्या तात्पर्य है? यह कितने प्रकार की होती है? किसी एक विधि का विवरण दीजिए।
34. कृत्रिम श्वसन से आप क्या समझती हैं? कृत्रिम श्वसन की किन्हीं दो विधियों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर – कृत्रिम श्वसन का अर्थ एवं आवश्यकता
जब किसी कारणवश फेफड़ों में स्वाभाविक तौर से स्वच्छ वायु का आना-जाना बाधित हो जाए, जिसके फलस्वरूप प्राणी की दम घुटने की स्थिति आ जाती है, तो इस स्थिति में प्राणी को मरने से बचाने के लिए कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता पड़ती है। यह भी कहा जा सकता है कि कृत्रिम श्वसन का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन को बचाना है, जोकि किसी अन्य व्यक्ति के प्रयास द्वारा सम्भव है। फेफड़ों में वायु का आना-जाना बाधित होने के कारण कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आवश्यक पूर्ति नहीं हो पाती है। इस ऑक्सीजन पूर्ति के अभाव में व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। इस स्थिति में कोशिकाओं में ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए व्यक्ति के फेफड़ों में किसी कृत्रिम विधि द्वारा स्वच्छ तथा ताजी ऑक्सीजन युक्त वायु को भरा जाना ही कृत्रिम श्वसन कहलाता है।
दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि किसी अन्य व्यक्ति के प्रयासों द्वारा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की श्वसन क्रिया को चलाना ही कृत्रिम श्वसन क्रिया है। कृत्रिम श्वसन क्रिया का मुख्य उद्देश्य सम्बन्धित व्यक्ति के जीवन को बचाना होता है।
कृत्रिम श्वसन की विधियाँ
कृत्रिम श्वसन की तीन प्रमुख विधियों है, जिनका विवरण निम्नलिखित हैं-
1. शेफर विधि
पानी में डूबे व्यक्ति को इस विधि द्वारा कृत्रिम श्वसन दिया जाता है, इस विधि में जिस व्यक्ति को कृत्रिम श्वसन देना होता है, सर्वप्रथम उसके वस्त्र उतार दिए जाते है। यदि यह सम्भव न हो, तो कम-से-कम उसके वक्षस्थल के वस्त्र उतार देने चाहिए। यदि किसी कारणवश यह भी सम्भव न हो तो उन्हें इतना ढीला कर देना चाहिए कि वक्षीय कटहरे पर किसी प्रकार का दबाव न रहे।
शेफर विधि के लिए रोगी के पास इस प्रकार आसन जमाइर (हाथ के अंगूठों की स्थिति देखिए)
तत्पश्चात् निम्नलिखित प्रक्रिया अपनानी चाहिए
1. दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को पेट की ओर से लिटाकर मुँह को एक ओर कर देना चाहिए। टाँगों को फैला देना चाहिए।
2. नाक, मुँह इत्यादि को अच्छी तरह साफ कर दें, ताकि श्वास भली-भाँति आ-जा सके। प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति को रोगी के एक ओर उसके पार्श्व में, कमर के पास अपने घुटने भूमि पर टिकाकर, पैरों को थोड़ा-सा रोगी की टांगों के साथ कोण बनाते हुए बैठ जाना चाहिए। इसके बाद रोगी की पीठ पर अपने दोनों हाथों को फैलाकर इस प्रकार रखना चाहिए कि दोनों हाथों के अंगूठे रीढ़ की हड्डी के ऊपर समानान्तर रूप में सिर की ओर मिलाकर रखें। ध्यान रखना चाहिए कि इस समय अंगुलियाँ फैली हुई अर्थात् अंगूठे लगभग 90° के कोण पर रोगी की कमर पर रहें। चिकित्सक को अपने हाथ रोगी की पसलियों के पीछे रखने चाहिए।
शेफर विधि से कृत्रिम श्वसन देना
3. अब दोनों हाथों को पूरी तरह जमाते हुए तथा बिना कोहनी को मोड़े चिकित्सक को आगे की ओर झुकना चाहिए। इस समय चिकित्सक का वजन घुटने तथा हाथ पर रहेगा। इससे रोगी के पेट पर दबाव पड़ेगा तथा इस क्रिया से वक्षीय गुहा फैल जाएगी और फेफड़ों में उपस्थित वायु दबाव के कारण बाहर निकल जाएगी। यदि रोगी के फेफड़ों में पानी भर गया है तो वह भी इस क्रिया से बाहर निकल जाएगा।
4. चिकित्सक को अपना हाथ यथास्थान रखकर ही धीरे-धीरे झुकाव कम करना चाहिए, यहाँ तक कि बिल्कुल दबाव न रहे। इस क्रिया से वक्षीय गुहा पूर्व स्थिति में आ जाएगी एवं फेफड़ों में वायु का दबाव कम होने से वायुमण्डल की वायु स्वतः ही अन्दर आ जाएगी।
5. इस प्रकार दबाव डालने एवं हटाने की प्रक्रिया को एक मिनट में 12-13 बार धीरे-धीरे क्रमिक रूप से दोहराते रहना चाहिए।
शेफर विधि की सावधानियाँ
1. वक्ष पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए; जैसे-कपड़ा, इत्यादि का कसाव ।
2. गर्दन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए।
3. नाक, मुँह आदि भली-भाँति साफ कर लेने चाहिए। दबाव डालने एवं कम करने की क्रिया लगातार एवं एक बराबर क्रम से होनी चाहिए।
4. प्राकृतिक श्वसन प्रारम्भ हो जाने पर भी कुछ समय तक रोगी को देखते रहना चाहिए।
2. सिल्वेस्टर विधि
इस विधि में रोगी को किसी समतल स्थान पर लिटाया जाता है, उसके वस्त्रों को ढीला करके गर्दन के पीछे कन्धों के बीच में कोई तकिया इत्यादि लगाया जाता है, जिससे सिर पीछे को नीचा हो जाए।
इस विधि से रोगी को श्वसन कराने के लिए दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। एक व्यक्ति सिर की ओर घुटने के सहारे बैठकर रोगी के दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों के द्वारा अलग-अलग पकड़ लेता है।
इस समय दूसरा व्यक्ति रूमाल या किसी अन्य साफ कपड़े से रोगी की जीभ को पकड़कर बाहर की तरफ खींचे रहता है। पहला व्यक्ति रोगी के दोनों हाथों को उसके वक्ष की ओर ले जाते हुए अपने घुटने पर सीधा होकर आगे की ओर झुकता हुआ रोगी की छाती पर दबाव डालता है।
इस प्रकार उस रोगी की भुजाओं को उसके वक्ष की ओर ले जाया जाता है और फिर पूर्व स्थिति में सिर की ओर खींच लेता है। क्रमिक रूप से 1 मिनट में लगभग 12 बार इस क्रिया को दुहराने से रोगी की श्वास क्रिया प्रारम्भ हो जाती है।
सिल्वेस्टर विधि द्वारा कृत्रिम श्वास देने की विधि
सिल्वेस्टर विधि की सावधानियाँ
1. रोगी की जीभ को कसकर पकड़ना चाहिए।
2. रोगी को किसी समतल स्थान पर लिटाना चाहिए तथा उसके वस्त्र इत्यादि
ढीले कर देने चाहिए, जिससे वक्ष पर किसी प्रकार का दबाव न रहे। 3. जिस क्रम से चिकित्सक ऊपर उठे, उसी क्रम से नीचे बैठे अर्थात् दबाव डालने और दबाव कम करने की प्रक्रिया एक जैसी होनी चाहिए।
3. लाबार्ड विधि
यदि शेफर्स और सिल्वेस्टर विधियों द्वारा श्वास देना सम्भव न हो तो इस विधि का प्रयोग किया जाता है, जैसे वक्ष स्थल की कोई हड्डी इत्यादि टूटने पर डॉक्टर के आने तक इस विधि द्वारा रोगी को ऑक्सीजन उपलब्ध कराकर जीवित रखा जा सकता है। दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को एक करवट से लिटाकर उसके समीप एक ओर चिकित्सक को अपने घुटने के आधार पर बैठकर रोगी की नाक, मुँह इत्यादि को भलीभाँति साफ कर लेना चाहिए। किसी स्वच्छ रुमाल या कपड़े से रोगी की जीभ पकड़कर बाहर खींचनी चाहिए और 2 सेकण्ड के लिए छोड़ देनी चाहिए। इस समय रोगी का मुँह खुला रहना चाहिए तथा इसके लिए रोगी के मुँह में कोई चम्मच इत्यादि डाली जा सकती है। इस क्रिया को तब तक दोहराते रहना चाहिए जब तक कि रोगी को प्राकृतिक श्वसन प्रारम्भ न हो जाए।
लाबार्ड विधि की सावधानियाँ
जीभ दाँतों के बीच नहीं दबनी चाहिए, इसके लिए चम्मच अथवा लकड़ी इत्यादि कोई कड़ी वस्तु रोगी के मुँह में रखनी चाहिए।
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