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संस्कृत समास और समास-विग्रह की परिभाषा, नियम, महत्तवपूर्ण उदाहरण Samas In Sanskrit

संस्कृत समास परिभाषा, नियम महत्तवपूर्ण उदाहरण Samas In Sanskrit

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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट subhanshclasses.com पर हम आपको अपनी इस पोस्ट में संस्कृत के समास और समास विग्रह को विस्तार से बताएंगे इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें हम आपको इस पोस्ट में महत्त्वपूर्ण समास विग्रह भी बताएंगे जो आपकी परीक्षाओं में हर बार पूछे जाते है?

समास की परिभाषा

दो या दो से अधिक पदों को इस प्रकार मिलाना कि उनके आकार में कमी आ जाए तथा अर्थ भी पूरा निकल जाए, इसी क्रिया को समास कहते हैं; 

जैसे- नराणां पतिः = नरपतिः, राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः 


यहाँ पर 'नराणां पतिः' का वही अर्थ है, जो 'नरपति:' का है, किन्तु 'नरपति:' आकार में छोटा हो गया है।


समास-विग्रह

समास किए गए पदों को अलग करने की विधि को 'समास-विग्रह' कहते हैं। उदाहरण 'नराणां पतिः', 'नरपतिः' का समास-विग्रह है।


समास के भेद

समास के निम्न भेद होते हैं


1. अव्ययीभाव समास जिस समास में पहला पद प्रधान होता है और सम्पूर्ण शब्द क्रिया-विशेषण होकर अव्यय की भाँति प्रयुक्त होता है, वह 'अव्ययीभाव समास' होता है।


सूत्र – 'पूर्वपदप्रधानः अव्ययीभावः । '


उदाहरण


समस्त पद        समास-विग्रह            अर्थ


प्रतिदिनम्       दिनं दिनं प्रति         प्रत्येक दिन


2. द्विगु समास जब कर्मधारय समास का पूर्व पद संख्यावाचक होता है, तो वह 'द्विगु समास' कहलाता है। इस समास का विग्रह करते समय अन्त में समाहारः शब्द जोड़ते हैं।

सूत्र - 'संख्या पूर्वो द्विगुः।'


उदाहरण


समस्त पद            समास विग्रह             अर्थ

द्वियमनम्  द्वयोः यमनयोः समाहारः  दो यमनों का समूह

त्रिलोकी त्रयाणां लोकानां समाहारः तीन लोकों का समूह


3. बहुव्रीहि समास जिस समास में अनेक पद हैं, परन्तु वे किसी अन्य पद के विशेषण होते हैं। इसमें अन्य पद के अर्थ की प्रधानता होती है। ये अपना स्वतन्त्र अर्थ न देकर अन्य पद के लिए विशेषण का कार्य करते हैं, वहाँ 'बहुव्रीहि समास' होता है। इसमें विग्रह करते समय 'यत्' शब्द के रूपों (यस्य, येन, यस्मै आदि) का प्रयोग किया जाता है।

सूत्र 'अनेकामन्य पदार्थे।'

उदाहरण

समस्त पद  समास-विग्रह              अर्थ

लम्बोदरः     - लम्बम् उदरं यस्य सः -      (गणेशः) लम्बा है उदर जिसका, वह (गणेश)

पीताम्बरः -  पीतम् अम्बरं यस्य सः -  (श्रीकृष्णः) पीला है वस्त्र जिसका, वह (श्रीकृष्ण)



            [ महत्त्वपूर्ण समास-विग्रह ]


पद              विग्रह                   समास का नाम

                  .     .

प्रत्येकम्      एक एक प्रति            अव्ययीभाव


यथासंख्यम्    संख्यम् अनतिक्रम्य    अव्ययीभाव


प्रतिदिशम्      दिशं दिशं प्रति          अव्ययीभाव


आशातीतः    आशाम् अतिक्रम्य       अव्ययीभाव


उपगङ्गम्         गङ्गायाः समीपम्        अव्ययीभाव


उपतटम्           तटस्य समीपम्       अव्ययीभाव


उपकृष्णम्        कृष्णस्य समीपम्      अव्ययीभाव


प्रतिदिनम्         दिनं दिनं प्रति          अव्ययीभाव


प्रत्यक्षं            अक्षम् अक्षं प्रति       अव्ययीभाव


प्रत्यर्थम्          अर्थम् अर्थं प्रति         अव्ययीभाव


उपकूलम्        कूलस्य समीपम्         अव्ययीभाव


आजीवनम्      जीवन पर्यन्तम्          अव्ययीभाव


अनुरूपम्         रूपस्य योग्यम्         अव्ययीभाव


यथाशक्ति      शक्तिम् अनतिक्रम्य     अव्ययीभाव


सहरि             हरेः सादृश्यम्           अव्ययीभाव


निर्दोषः          दोषाणां अभावः        अव्ययीभाव


आकण्ठ          कण्ठ पर्यन्तम्         अव्ययीभाव


आजन्म          जन्मपर्यन्तम्          अव्ययीभाव


यथाभक्ति   भक्तिम् अनतिक्रम्य        अव्ययीभाव


त्रिभुवनम्   त्रयाणां भुवनानां समाहारः    द्विगु


चतुर्फलम्    चतुर्णां फलानां समाहारः     द्विगु


पञ्चवटी     पञ्चानां वटानां समाहारः     द्विगु


त्रिफला       त्रयाणां फलानां समाहारः     द्विगु


नवरात्रम्        नवानां रात्रीणां समाहारः    द्विगु


सप्ताध्यायी सप्तानाम् अध्यायानां समाहारः द्विगु


त्रिनेत्र         त्रयाणां नेत्राणां समाहारः       द्विगु


पञ्चपात्रम्   पञ्चानां पात्राणां समाहारः    द्विगु


त्रिलोकी       त्रयाणां लोकानां समाहारः    द्विगु


शताब्दी      शतानाम् अब्दानां समाहारः    द्विगु


पञ्चगवम्       पञ्चानां गवानां समाहारः   द्विगु


सप्तशती      सप्तानांशतीनां समाहारः      द्विगु


त्रिवेणी त्रिणाम्    वेणीनाम् समाहारः       द्विगु


पीताम्बरः   पीतम् अम्बरं यस्य सः अर्थात् श्रीकृष्णः           बहुव्रीहि


मयूरवाहनः        यस्य सः                 बहुव्रीहि


चन्द्रशेखरः   चन्द्रः शिखरे यस्य सः अर्थात् शिव       बहुव्रीहि


चक्रपाणिः   चक्रं पाणौ यस्य सः अर्थात् विष्णु  बहुव्रीहि


लम्बोदरः        लम्बम् उदरं यस्य सः      बहुव्रीहि


यशोधनः       यशः एव धनं यस्य सः     बहुव्रीहि


दशाननः      दश आननानि यस्य सः      बहुव्रीहि


गजाननः      गजस्य आनन: यस्य स:      बहुव्रीहि


चन्द्रमौलिः     चन्द्रः मौलौ यस्य सः        बहुव्रीहि


महाशयः        महान् आशय यस्य सः   बहुव्रीहि


नीलाम्बरः     नीलानि अम्बराणि यस्य सः बहुव्रीहि


लम्बकर्णः       लम्बौ कर्णो यस्य सः       बहुव्रीहि


केशाकेशि  केशेषु केशेषु गृहीत्वा इदं युद्धं प्रवृत्तं बहुव्रीहि  

नीलकण्ठः    नीलः कण्ठः यस्य सः      बहुव्रीहि


वीरपुरुषकः   वीरपुरुषक:ग्रामः यस्य सः  बहुव्रीहि


सानुजः     अनुजेन सहितः यस्य सः      बहुव्रीहि


सार्जुनः      अर्जुनेन सहितः यस्य सः     बहुव्रीहि


रामलक्ष्मणौ    राम च लक्ष्मण च            द्वन्द्व


कमला सनः  कमलम् आसनं यस्य सः    बहुव्रीहि


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