कक्षा 10वी हिन्दी संस्कृत खण्ड 07 आरुणि श्वेतकेतु संवाद (आरुणि श्वेतकेतु संवाद)गद्यांशों का सन्दर्भ सहित अनुवाद
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गद्यांश 1
सह द्वादश वर्ष उपेत्य चतुर्विंशति वर्षः सर्वान् वेदानधीत्य महामना अनूचानमानी स्तब्ध एयाय। तं हपितोवाच श्वेतकेतो यन्नु सोम्येदं महामना अनूचानमानी स्तब्धोऽस्युत तमादेशमप्रायः ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित "छांदोग्य उपनिषद् पष्ठोध्याय से "आरुणि श्वेतकेतु संवाद" नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद कुमार श्वेतकेतु बारह वर्ष तक गुरु के समीप रहते हुए 24 वर्ष की आयु तक सभी वेदों का अध्ययन करके बड़े ही गर्वित भाव से अपने घर वापस आया। तब उसके पिता आरुणि ने कहा हे पुत्र श्वेतकेतु! तुम्हारे द्वारा जो कुछ भी अपने गुरु से सीखा गया है वह मुझे बतलाओ तब महान् मन वाले पुत्र श्वेतकेतु पिता के द्वारा यह पूछने पर स्तब्ध रह गया।
आरुणि ने श्वेतकेतु से पूछा बेटे क्या तुम्हारे गुरु जी ने वह रहस्य भी बताया है, जिससे सारा अज्ञात ज्ञात हो जाता है। श्वेतकेतु वह नहीं जानता था। इसलिए वह स्तब्ध रह गया। उसने नम्रता पूर्वक पिता से पूछा ऐसा वह कौन सा रहस्य है, जो मेरे आचार्य ने मुझे नहीं बताया तब आरुणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को उस रहस्य के बारे में प्रवचन किया।
गद्यांश 2
श्वेतकेतुर्हारुणेय आस त् हँ पितोवाच श्वेतकेतो वस ब्रह्मचर्यम । न वै सौम्यास्मत्कुलीनोऽननूच्य बृहमबन्धुरिव भवतीति । येनाश्रुतं श्रुतम् भवत्यमत। मतमविज्ञानं विज्ञातंमिति। कथं नु भगवः से आदेशो भवतीति। न वै नूनं भगवन्तस्त एतदवेदिषुर्यद्धयेतद वेदिष्यन् कथं मे नावक्ष्यन्निति भगवान् स्त्वेव मे तद्ब्रवीत्विति तथा सोम्येति होवाच ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित "छांदोग्य उपनिषद् पष्ठोध्याय से "आरुणि श्वेतकेतु संवाद" नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद एक दिन आरुणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा कि बेटा, किसी गुरु के आश्रम में जाकर तुम ब्रह्मचर्य की साधना करो। वहाँ नम्रता पूर्वक सभी वेदों का गहन अध्ययन करो। यही हमारे कुल की परम्परा रही है कि हमारे वंश में कोई भी केवल 'ब्रह्म बन्धु' (अर्थात् केवल ब्राह्मणों का सम्बन्धी अथवा स्वयं वेदों को न जानने वाला) नहीं रहा, अर्थात् तुम्हारे सभी पूर्वज ब्रह्म ज्ञानी हुए हैं। आरुणि ने पुत्र श्वेतकेतु से पूछा हे वत्स! क्या तुम्हारे गुरु जी ने से वह रहस्य तुम्हें समझाया है, जिससे सारा अज्ञात ज्ञात हो जाता है।
बिना सुना भी सुनाई देने लगता है। अमत भी मत बन जाता है। बिना विशेष ज्ञात हुआ भी विशिष्ट रूप से ज्ञात हो जाता है तथा कैसे वह भगवान् का आदेश होता है यह सब कुछ ज्ञान-विज्ञान, सत्- असत् आदि का रहस्य क्या तुम्हें मालूम है। श्वेतकेतु स्तब्ध रह गया, उसने पिता से निवेदन किया कि है पिता जी अज्ञात को ज्ञात करने वाले उस रहस्य को आप मेरे लिए आदेश अथवा उपदेश कीजिए। ऐसा श्वेतकेतु ने अपने पिता आरुणि से कहा।
गद्यांश 3
यथा सोम्यैकेन नखनिकृन्तनेन सर्व कार्ष्णायसं विज्ञातं स्याद्वाचा रम्भण विकारो नामधेयं कृष्णायसमित्येव सत्यमेव सोम्य स आदेशो भवतीति।। यथा सोम्यैकेन लोहमणिना सर्व लोहमयं विज्ञातं, स्याद्वाचारम्भणं विकारो नामधेयं लोहमित्येव सत्यम् ॥
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित "छांदोग्य उपनिषद् पष्ठोध्याय से "आरुणि श्वेतकेतु संवाद" नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद – जब आरुणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को वेदाध्ययन के बाद गर्वित / घमण्डी जाना तो उन्होंने पुत्र श्वेतकेतु का घमण्ड दूर करने के लिए उससे पूछा कि पुत्र क्या तुम्हें मालूम है कि वह कौन-सी शक्ति है जिसे प्राप्त करने से हम वह सब जान लेते हैं जिसे हमने न तो देखा है, न उसके बारे में कभी सुना है और न ही कभी सोचा है। यह सुन कर श्वेतकेतु स्तब्ध रह गया। वह बोला कि पिता जी यह सब तो मेरे गुरु जी ने मुझे नहीं सिखाया। मेरे गुरु जी से मुझे जो विद्या / ज्ञान मिला है। वह मुझे मालूम है। कृपया करके आप मुझे उस रहस्य के बारे में बताइए। पिता ने पूछा हे सौम्य!
जिस प्रकार जो लोहा नाखून काटने वाले औजार (नेल कटर) में है वहीं लोहा लोहे से बनी अन्य वस्तुओं में भी है विद्यमान है। यह कैसे मालूम पड़ता है। श्वेतकेतु ने निवदेन किंया कि हे पिता श्री आप मुझे वह सब बतलाएँ। पिता ने कहा कि लोहे से बनी सभी चीजों में एक तत्त्व सर्वमान्य होता है वह है लौह तत्त्व / यही ज्ञान हमें मिट्टी से बनी चीजों में मिट्टी तत्त्व तथा सोने से बनी चीजों में सर्वमान्य 'सोना' तत्त्व समझना चाहिए। यही आदेश है तथा यही उपदेश भी है।
प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. श्वेतकेतु: कस्य पुत्रः आसीत् ?
उत्तर श्वेतकेतुः आरुणेः पुत्रः असीत् ।
प्रश्न 2. श्वेतकेतुः कति वर्षाणि उपेत्य विद्याध्ययनम् अकरोत् ?
उत्तर श्वेतकेतुः द्वादश वर्षाणि उपेत्य विद्याध्ययनम अकरोत् ।
प्रश्न 3. कः वेदान् अधीत्य स्तब्ध एयाय?
उत्तर श्वेतकेतुः सर्वान् वेदान् अधीत्य स्तब्ध एयाय
प्रश्न 4. ब्रह्मबन्धुरिव कस्य कुले न अभवत् ?
उत्तर ब्रह्मबन्धुरिव श्वेतकेतोः कुले न अभवत्।
प्रश्न 5. "आरुणिः श्वेतकेतुः संवादः" कस्मात्, ग्रन्थात् उद्धृतः अस्ति?
उत्तर "आरुणि: श्वेतकेतु : संवादः" छान्दोग्योपनिषदस्य षष्ठोध्यायात् उद्धृतःअस्ति।
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