कक्षा 12वी जीव विज्ञान अध्याय 05 वंशागति का आण्विक आधार नोट्स
Molecular basis of inheritance class 12 notes pdf
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{ Molecular basis of inheritance class 12 notes pdf Short Introduction }
वंशागति का आण्विक आधार से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी
आनुवंशिक पदार्थ
वे पदार्थ, जो आनुवंशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाते हैं, आनुवंशिक पदार्थ कहलाते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगों में यह पाया गया कि अधिकांश जीवधारियों में DNA आनुवंशिक पदार्थ होता है।
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में आनुवंशिक पदार्थ वर्तुल (DNA) कोशिकाद्रव्य में स्वतन्त्र अवस्था में पाया जाता है तथा किसी प्रोटीन से संयुग्मित नहीं होता है।
यूकैरियोटिक कोशिकाओं में आनुवंशिक पदार्थ (DNA) क्षारीय हिस्टोन प्रोटीन के. अणुओं के साथ मिलकर गुणसूत्र का निर्माण करते हैं, जो केन्द्रक में पाए जाते हैं। इनमें कुछ मात्रा में DNA माइटोकॉण्ड्रिया व लवक में भी पाया जाता है। यूकैरियोटिक DNA रेखीय होता है। मानव में 46 व ड्रोसोफिला में 8 गुणसूत्र पाए जाते हैं।
नोट यूकैरियोटिक गुणसूत्र के टीलोमीयर्स के अनुक्रम में ग्वानीन अधिक पुनरावर्तित होता है।
न्यूक्लिक अम्ल
ये किसी कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले वे अम्लीय पदार्थ हैं, जो न्यूक्लियोटाइड की पॉलीमर श्रृंखलाएँ होते हैं तथा कोशिका के जैविक कार्यों का नियमन करते हैं।
न्यूक्लिक अम्ल मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं- DNA व RNA
न्यूक्लिक अम्ल मुख्यतया तीन अणुओं से बना होता है
1. शर्करा (Sugar) यह दो प्रकार की होती है
(a) डीऑक्सीराइबोस (Deoxyribose) C₅H₁₀O₄
(b) राइबोस (Ribose) C₅H₁₀O₅
2. फॉस्फोरिक अम्ल (Phosphoric acid :P) इसकी उपस्थिति के कारण न्यूक्लिक अम्ल की प्रवृत्ति अम्लीय होती है।
3. नाइट्रोजनी क्षारक (Nitrogenous base) ये नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिक हैं, जो मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं
(a) प्यूरीन क्षारक (Purine base) ये दो प्रकार के होते हैं
एडिनीन (Adenine : A) एवं ग्वानीन (Guanine : G)
(b) पिरिमिडीन क्षारक (Pyrimidine base) ये तीन प्रकार के होते हैं थाइमीन (Thymine : T), साइटोसिन (Cytosine : C) तथा यूरेसिल (Uracil : U)
प्रत्येक न्यूक्लिक अम्ल की दो मूलभूत इकाईयों होती हैं
1. न्यूक्लियोसाइड्स न्यूक्लिक अम्ल में उपस्थित शर्करा, नाइट्रोजनी क्षारक के साथ जुड़कर न्यूक्लियोसाइड बनाती है।
2. न्यूक्लियोटाइड्स शर्करा एवं नाइट्रोजनी क्षारक से बने न्यूक्लियोसाइड्स, फॉस्फोरिक अम्ल से फॉस्फोडाइएस्टर बन्धों के द्वारा जुड़कर न्यूक्लियोटाइड्स बनाते हैं। ये न्यूक्लियोटाइड्स ही न्यूक्लिक अम्लों (DNA एवं RNA) के वास्तविक एकलक (Monomers) होते हैं।
आनुवंशिक पदार्थ की खोज
ग्रिफिथ ने सर्वप्रथम जीवाणु में रूपान्तरण का प्रयोग कर बताया कि आनुवंशिक पदार्थ के कारण रूपान्तरण होता है तथा एवेरी, मैक्लियॉड तथा मैक्कार्टी ने जीवाणु में रूपान्तरण के प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि DNA आनुवंशिक पदार्थ होता है। DNA की अम्लीय प्रकृति की खोज फ्रेडरिक मीश्चर ने की थीं। DNA के आनुवंशिक पदार्थ होने का इसका सुस्पष्ट प्रमाण हर्षे एवं चेज़ के प्रयोगों से प्राप्त हुआ।
नोट पारक्रमण क्रिया में विषाणु के द्वारा DNA का स्थानान्तरण एक जीवाणु से दूसरे जीवाणु में किया जाता है।
DNA
डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल (DNA) यह मुख्यतया केन्द्रक में पाया जाता है और माइटोकॉण्ड्रिया, हरितलवक में भी DNA अल्प मात्रा में पाया जाता है। DNA का एकलक डीऑक्सीराइबोन्यूक्लियोटाइड अणु, डीऑक्सीराइबोस शर्करा, फॉस्फेट मूलक तथा एक नाइट्रोजनी क्षारक (एडिनीन, ग्वानीन, साइटोसिन तथा थाइमीन) के जुड़ने से बनता है। ये तीनों इकाईयाँ मिलकर न्यूक्लियोटाइड का निर्माण करती हैं। ये चार प्रकार की होती हैं-
डीऑक्सीएडीनाइलिक अम्ल, डीऑक्सीगुएनाइलिक अम्ल, डीऑक्सीसाइटिडाइलिङ अम्ल तथा डीऑक्सीथाइमिडाइलिक अम्ल
वाट्सन एवं क्रिक (Watson and Crick) ने सन् 1953 में DNA की संरचना का द्विचक्राकार (द्विकुण्डलित) मॉडल प्रस्तुत किया।
इनके अनुसार DNA की संरचना निम्न प्रकार से होती है
1. DNA का प्रत्येक अणु दो कुण्डलित पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं का बना होता है। ये दोनों श्रृंखलाएं एक-दूसरे से सर्पिल क्रम में जुड़ी रहती है एवं इस द्विकुण्डलन का व्यास लगभग 20 A होता है।
2• प्रत्येक पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला में डीऑक्सीराइबोस शर्करा और फॉस्फेट समूह एकान्तर क्रम में जुड़े होते हैं। इसी क्रम के द्वारा श्रृंखला का आधार बनता है। फॉस्फेट समूह एक ओर की शर्करा के 5 कार्बन से तथा दूसरी ओर कार्बन पर फॉस्फोटाइएस्टर बन्धों (Phosphodester bonds) द्वारा जुड़े रहते हैं।
नोट CAMP में भी फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध पाया जाता है।
3. एक श्रृंखला के प्यूरीन क्षार दूसरी श्रृंखला के पिरिमिडीन से हाइड्रोजन आबन्धों द्वारा जुड़े होते हैं। A सदैव से तथा C सदैव G क्रमश: 2 एवं 3 से जुड़ा होता है। 4. एक ही श्रृंखला के किन्हीं दो न्यूक्लियोटाइड्स के बीच 3.4A की दूरी होती है।
नोट यूकेरियोट्स में Z-DNA व B-DNA पाए जाते हैं। Z-DNA वामावर्त कुंडलित होता है तथा इसकी द्विकुण्डलिनी टेढ़ी-मेढ़ी (Zig zag) होती है। Z-DNA के प्रत्येक कुण्डलन में 12 जोड़ी लियोटाइड होते हैं। DNA के दोनों रज्जुक क्षार युग्मन में पूरक होते हैं तथा एक दूसरे से विपरीत दिशा में होते हैं, इसी लक्षण ने वाट्सन एवं क्रिक को DNA प्रतिकृति के अर्धसरक्षी रूप को कल्पित करने में सहयोग किया।
चारगाफ के नियम
1. DNA अणु में प्यूरीन व पिरिमिडीन क्षार समान मात्रा में होते हैं।
2. DNA में एडिनीन की आण्विक मात्रा थाइमीन के बराबर ( A=T) तथा साइटोसिन की मात्रा ग्वानीन के बराबर (C = G) होती है।
3. DNA में क्षार अनुपात, A+T: G+ C प्रत्येक जाति के लिए विशिष्ट होता है और उस जाति के सभी सदस्यों में समान होता है। उदाहरण यदि एक द्विरज्जुक - DNA में 20% साइटोसिन है तो उसमें उतना ही ग्वानीन होगा, इस प्रकार शेष 60% में 30% एडिनीन तथा 30% ही थाइमीन भी होगा।
नोट ATP में तीन फॉस्फेट अणु व ADP में दो फॉस्फेट अणु होते हैं।
DNA कुण्डली की पैकेजिंग
सुकेन्द्रकीय कोशिका में DNA की पैकेजिंग लाइसीन व आर्जिनीन युक्त क्षारीय प्रोटीन्स, जिन्हें हिस्टोन (Histone) कहते हैं, की सहायता से होती है।
हिस्टोन प्रोटीन्स पाँच प्रकार की होती हैं-H₁,H₂A, H₂B, H₃, H₄l इनमें से चार अर्थात् H₂A, H₂B, H₃, H₄, युग्मों में पाई जाती हैं और हिस्टोन अष्टक (Histone octamer) का निर्माण करती हैं, इसे न्यू-काय (Nu-body) कहते हैं। इनके धनावेशित छोर बाहर की ओर होते हैं।
ये ऋणावेशित DNA को आकर्षित कर न्यूक्लियोसोम का निर्माण करते हैं। DNA के लगभग 166 क्षार युग्म न्यू-काय पर लिपटकर न्यूक्लियोसोम को 110 x 60 A का आकार प्रदान करते हैं।
न्यूक्लियोसोम श्रृंखलाबद्ध होकर क्रोमैटिन का निर्माण करते हैं, जो इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में मणिकाबद्ध (Beaded string) संरचना के रूप में दिखाई देता है, जो कुण्डलित होकर सोलेनॉइड (Solenoid) बनाती है।
• केन्द्रक में उपस्थित ढीले-ढाले बँधे हल्के अभिरंजित क्रोमैटिन को यूक्रोमैटिन कहते . है तथा सुद्ध रूप से बंधे गाठे रंग से अभिरंजित क्रोमैटिन को हेटेरोक्रोमैटिन कहते है।
. सोलेनॉइड और कुण्डलित होकर क्रोमैटिन तन्तु (Chromatin fibre) फिर और कुण्डलन द्वारा गुणसूत्र का क्रोमैटिड (Chromatid) बनाता है।
DNA का द्विगुणन (प्रतिकृतिकरण)
DNA का द्विगुणन कोशिका चक्र की S-प्रावस्था में होता है। मेसेल्सन एवं स्टाइल (Meselson and Stahil) ने सन् 1958 में ई. कोलाई पर N¹⁵ के प्रयोग द्वारा DNA अर्द्धसंरक्षी द्विगुणन का प्रमाण दिया।
• DNA अणु के दोनों रज्जुक हेलीकेज (Helicase) एन्ज़ाइम की सहायता से एक- के दूसरे से अलग हो जाते हैं, जबकि टोपोआइसोमरेज (Topoisomerase) DNA में कुण्डलन के तनाव को समाप्त करता है।
•अलग हुए DNA रज्जुक पर RNA प्राइमेज (RNA primase] एन्जाइम की सहायता से प्राइमर का निर्माण होता है।
RNA प्राइमर के 3 सिरे पर DNA पॉलीमरेज-11 द्वारा डीऑक्सी राइबोन्यूक्लियोटाइड्स का संकलन (Addition) होता है, क्योंकि यह अपने आधारी पदार्थ के लिए विशिष्ट होता है, इसलिए यह राइबोन्यूक्लियोटाइड की अधिक मात्रा के बावजूद डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिइकाईयों का ही संकल करता है।
DNA के अग्रग रज्जुक (Leading strand) पर द्विगुणन सतत् (Continuous), जबकि पश्चगामी रज्जुक (Lagging strand) पर छोटे-छोटे टुकड़ों में होता है। इन टुकड़ों को ओकाजाकी टुकड़े (Okazaki fragments) कहते हैं। DNA लाइगेज एन्जाइम इन ओजाकी टुकड़ों को जोड़ने का कार्य करता है।
नोट DNA पॉलीमरेज एन्जाइम की खोज कॉर्नवर्ग ने की थी।
RNA
राइबोन्यूक्लिक अम्ल (RNA) कोशिकाद्रव्य, केन्द्रक व राइबोसोम में पाया जाता है। RNA का न्यूक्लियोटाइड भी DNA जैसा ही होता है, परन्तु इसमें उपस्थित शर्करा राइबोस (Ribose) होती है, डीऑक्सीराइबोस नहीं। इसमें थाइमीन नामक नाइट्रोजन क्षारक यूरेसिल द्वारा विस्थापित हो जाता है।
• यह सामान्य आनुवंशिक पदार्थ नहीं होता है, परन्तु अपवाद स्वरूप ये द्विरज्जुकी (Double helical) एवं आनुवंशिक भी होता है; जैसे रियोवाइरस में यह आनुवंशिक पदार्थ का कार्य करता है। ये मुख्यतया तीन प्रकार के होते हैं
1. राइबोसोमल RNA (rRNA) यह मुख्य रूप से राइबोसोम निर्माण में भाग लेता है।
2. स्थानान्तरण RNA (tRNA) यह प्रोटीन संश्लेषण की अनुलेखन प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करता है।
3. सन्देशवाहक RNA (mRNA) यह प्रोटीन संश्लेषण की अनुलेखिन प्रक्रिया में भाग लेता है।
आण्विक जीव विज्ञान का केन्द्रीय सिद्धान्त
क्रिक (1958) ने आण्विक जीव विज्ञान का केन्द्रीय सिद्धान्त दिया। इसके अनुसार, DNA से आनुवंशिक सूचनाओं का प्रवाह mRNA तत्पश्चात् प्रोटीन में एकदिशीय (Unidirectional) होता है अर्थात्
अनुलेखन अनुवादन
DNA → mRNA → प्रोटीन
tRNA+rRNA
नोट रेट्रोविषाणु में आनुवंशिक पदार्थ RNA होता है, अतः इसकी अभिव्यक्ति के समय RNA से पहले DNA (प्रतीप अनुलेखन) बनता हैं, फिर DNA से mRNA व प्रोटीन बनती है।
जीन अभिव्यक्ति
जीन अभिव्यक्ति वह क्रिया है, जिसके अन्तर्गत, जीन्स में कूटित सूचनाओं का अन्य पदार्थों में प्रकटीकरण होता है। ये पदार्थ (प्रोटीन) विभिन्न जीवों में लक्षणप्रारूप (Phenotypes) का निर्धारण करते हैं। इस प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्न प्रकार से है
1. केन्द्रक में mRNA (सन्देशवाहक RNA) अणु का संश्लेषण, RNA पॉलीमरेज नामक एन्जाइम की उपस्थिति में होता है। इस क्रिया में DNA का एक खण्ड 'साँधे' (Template) के रूप में प्रयुक्त होता है। यह प्रक्रिया अनुलेखन (Transcription) कहलाती है।
2. सुकेन्द्रकीय कोशिका में निर्मित प्रारम्भिक mRNA से कार्यात्मक mRNA का रासायनिक प्रतिरूपण (Chemical modification) होता है, जिसे RNA प्रसंस्करण (RNA processing) कहते हैं।
3. पूर्ण रूप से प्रतिरूपित RNA द्वारा प्रोटीन्स में अमीनो अम्लों के अनुक्रम का निर्धारण होता है। यह प्रक्रिया अनुवादन (Translation) कहलाती है।
नोट .जीन की क्रियाशील इकाई को सिस्ट्रॉन कहते हैं।
.प्रोटीन संश्लेषण के समय, स्थानान्तरण के दौरान, राइबोसोम mRNA की बाइन्डिंग करते हैं तथा इन पर उपस्थित PA-site पर tRNA जुड़ता है।
आनुवंशिक कूट
इसकी खोज डॉ. हरगोविन्द खुराना एवं निरेनबर्ग ने की थी। AUG तथा GUG (कभी-कभी) सूत्रपात समारम्भन कोडॉन जबकि UAA, UGA, UAG, समापन कोडॉन होते हैं। हरगोविन्द खुराना को कृत्रिम रूप से प्रोटीन संश्लेषण की खोज के लिए भी जाना जाता है।
नोट AUG प्रोकैरियोट्स व यूकैरियोट्स में मिथियोनीन को कोड करता है।
जीन अभिव्यक्ति का नियमन (लैक ओपेरॉन मॉडल) जैकोब एवं मोनॉड ने प्रोकैरियोटिक कोशिका में जीन नियमन तथा संगठन के लिए ओपेरॉन मॉडल प्रस्तावित किया था। ई. कोलाई में लैक ओपेरॉन एक प्रेरक ओपेरॉन का उदाहरण है। जब माध्यम में लैक्टोस मिलाते हैं, तब इसमें से कुछ लैक्टोस कोशिका के भीतर प्रवेश कर जाता है, क्योंकि कुछ मात्रा में परमिएज (Permease) एन्जाइम सदैव उपस्थित रहता है।
• कोशिका के भीतर लैक्टोस संदमनात्मक प्रोटीन से बन्ध जाता है। अब संदमनात्मक प्रोटीन ऑपरेटर जीन से नहीं बन्ध सकता। अतः ऑपरेटर जीन स्वतन्त्र रहता है तथा सभी संरचनात्मक जीनों का अनुलेखन होता है।
• इन सभी जीनों का एक इकाई की भाँति नियमन (Regulation) प्रचालक या ऑपरेटर जीन (Operator gene) करता है। इस पूरी इकाई को ओपेरॉन (Operon) कहते हैं।
• नियामक जीन (Regulatory gene) प्रचालक जीन को ऑन (शुरू) या ऑफ (बन्द) करता है, जबकि प्रचालक जीन संरचनात्मक जीनों की क्रिया का नियमन करती है। यह प्रक्रम अभिप्रेरणा (Induction) कहलाती है।
मानव जीनोम परियोजना
जीवधारियों की कोशिकाओं में पाए जाने वाले गुणसूत्रों का एक अगुणित समुच्चय (Haploid set), जो युग्मक के द्वारा वंशागत होता है, जीनोम (Genome ) कहलाता है। इस अन्तर्राष्ट्रीय परियोजना का प्रारम्भ संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने सन् 1990 में, मानव जीनोम के DNA के न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम को निर्धारित करने हेतु किया गया था। इस परियोजना से प्राप्त परिणामों का प्रयोग विकारों के अध्ययन, जीन चिकित्सा व मानव उद्विकास को समझने हेतु किया गया।
DNA फिंगरप्रिंटिंग
DNA फिंगरप्रिंटिंग वह तकनीक है, जिसके द्वारा DNA के निश्चित क्षेत्रों के न्यूक्लियोटाइड क्रम ज्ञात किए जाते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का DNA फिंगरप्रिंट भिन्न होता है। यह पैतृत्व परीक्षण, बलात्कार, हत्या व अन्य अपराधों में अपराधी की पहचान करने में सहायक है।
नोट बैक्टीरियोफेज की अंगुलीछापी हेतु VNTR जैसे DNA प्रोब्स का प्रयोग नहीं होता, क्योंकि इनके जीनोम में पुनरावृत्त DNA अनुक्रम उपस्थित नहीं होते हैं।
{ अभी तक हमने जाना है वंशागति का आण्विक आधार के बारे में अब इससे संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर भी जान लेते हैं }
{ Molecular basis of inheritance class 12 questions Answers.}
[ Molecular basis of inheritance objective Questions ]
बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक
प्रश्न 1. न्यूक्लियोसाइड है
(a) नाइट्रोजनी क्षारक + शर्करा
(b) नाइट्रोजनी क्षारक + शर्करा + फॉस्फेट
(c) शर्करा + फॉस्फेट
(d) नाइट्रोजनी क्षारक + फॉस्फेट
उत्तर (a) नाइट्रोजनी क्षारक + शर्करा
प्रश्न 2. एक DNA रज्जुक में न्यूक्लियोटाइड आपस में किस बन्ध से जुड़े रहते हैं ?
(a) ग्लाइकोसिडिक बन्ध
(b) फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध
(c) पेप्टाइड बन्ध
(d) हाइड्रोजन बन्ध
उत्तर (b) फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध
प्रश्न 3. फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध उपस्थित है
(a) ADP में
(c) CAMP में
(b) ATP में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) CAMP मे
प्रश्न 4. DNA और RNA में समानता है।
(a) दोनों न्यूक्लियोटाइड्स की पॉलीमर श्रृंखलाएँ है
(b) दोनों में एक समान शर्करा पाई जाती है।
(c)एक समान पिरमिडन्स से युक्त होते हैं
(d) दोनों एकल पॉलीयूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं के रूप में होते हैं
उत्तर (a) दोनों न्यूक्लियोटाइड्स की पॉलीमर श्रृंखलाएं हैं।
प्रश्न 5. RNA अणु में थाइमीन का विस्थापन होता है
(a) ग्वानीन द्वारा
(b) यूरेसिल द्वारा
(c)साइटोसिन द्वारा
(d) एडिनीन द्वारा
उत्तर (b) यूरेसिल (U) द्वारा
प्रश्न 6. निम्न में से कौन-सा RNA का कार्य है?
(a) यह DNA से पॉलीपेप्टाइड का संश्लेषण कर रहे राइबोसोम तक आनुवंशिक सूचना का वाहक है
(b) यह राइबोसोम तक अमीनो अम्ल का वाहक है
(c) यह राइबोसोम का संरचनात्मक घटक है
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर (d) उपरोक्त सभी
प्रश्न 7. फ्रेडरिक ग्रिफिथ ने खोज की
(a) स्थान परिवर्तन की
(b) रूपान्तरण की
(d) लिप्यन्तरण की
उत्तर (b) रूपान्तरण की
प्रश्न 8. गुणसूत्रों का निर्माण होता है।
(a) यूक्रोमैटिन से
(b) हेट्रोक्रोमैटिन से से
(c) दोनों (a) तथा (b)
(d) इनमें में से कोई नहीं
उत्तर (c) गुणसूत्र यूक्रोमैटिन व हेट्रोक्रोमैटिन दोनों से मिलकर बने होते हैं।
प्रश्न 9. यूकैरियोटिक गुणसूत्र के टीलोमियर्स के अनुक्रम में
(a) ग्वानीन अधिक पुनरावर्तित होता है।
(b) थाइमीन अधिक पुनरावर्तित होता है।
(c) साइटोसिन अधिक पुनरावर्तित होता है।
(d) एडिनीन अधिक पुनरावर्तित होता है।
उत्तर (a) ग्वानीन अधिक पुनरावर्तित होता है।
प्रश्न 10.DNA पॉलीमरेज एन्जाइम की खोज करने वाले वैज्ञानिक थे
(a) कॉर्नवर्ग
(b) निरेनबर्ग
(c) वाट्सन
(d) क्रिक
उत्तर (a) कॉर्नवर्ग
प्रश्न 11. सन्देशवाहक RNA का निर्माण होता है।
(a) केन्द्रक में
(b) राइबोसोम्स मे
(d) गॉल्जीकार्य में
(d) एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम में
उत्तर (a) केन्द्रक में
प्रश्न 12. निम्न में समारम्भन कोडॉन है। अथना प्रोटीन संश्लेषण के प्रारम्भन हेतु प्रारम्भिक प्रकूट हैं
(a) AUG
(b) AJU
(c) LIAC
(d) UUU
उत्तर (a) AUG
प्रश्न 13. AUG के लिए निम्न में से कौन-सा कथन सही है?
(a)यह मिथियोनीन को कोड करता है
(b) यह आरम्भन कोडॉन है।
(c) यह प्रोकैरियोटिक यूकैरियोटिक दोनों में ही निथियोनीन का कोड करता है।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर (d) उपरोक्त सभी
प्रश्न 14. हरगोविन्द खुराना जाने जाते हैं.
(a) प्रोटीन संश्लेषण के लिए
(b) RNA की खोज के लिए
(c) DNA की खोज के लिए
(d)DNA लाइगेज एंजाइम की खोज के लिए
उत्तर (a) प्रोटीन संश्लेषण के लिए
प्रश्न 15. प्रोकैरियोटिक कोशिका में जीन नियमन तथा संगठन के लिए ओपेरॉन मॉडल प्रस्तावित किया था
(a) जैकोब एवं मोनॉड ने
(b) बीडल एवं टाटम ने
(c) मेसेल्सन एवं स्टाहल ने
(d) विलिकंसन एवं फैकलिन ने
उत्तर (a) जैकोब एवं मोनॉड ने
{ अभी तक हमने इस अध्याय से पूछे जाने वाले सभी बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर जाने है अब लिखित प्रश्नों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं }
Molecular basis of inheritance short questions
(अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक)
प्रश्न 1. प्रत्येक डीऑक्सीराइबोन्यूक्लियोटाइड अणु किन यौगिकों के एक एक-एक अणु के जुड़ने से बनता है?
अथवा DNA में कितनी न्यूक्लियोटाइड इकाइयाँ होती हैं?
अथवा DNA में पाई जाने वाली चार न्यूक्लियोटाइड इकाइयों के नाम लिखिए।
उत्तर – प्रत्येक डीऑक्सीराइबोन्यूक्लियोटाइड (DNA) अणु, डीऑक्सीराइबोस शर्करा, फॉस्फेट मूलक तथा एक नाइट्रोजनी क्षारक (एडिनीन, ग्वानीन, साइटोसिन तथा थाइमीन) के जुड़ने से बनता है। ये तीनों इकाइयों मिलकर एक न्यूक्लियोटाइड का निर्माण करती है, जो चार प्रकार का होता है- डीऑक्सीएडीनाइलिक अम्ल डीऑक्सीगुएनाइलिक अम्ल,डीऑक्सीसाइटिडाइलिक अम्ल तथा डीऑक्सीथाइमिडाइलिक अम्ल।
प्रश्न 2. यूकैरियोटिक कोशिकाओं में कौन-से दो प्रकार के DNA पाए जाते हैं?
अथवा Z-DNA क्या है? इसके प्रत्येक कुण्डलन में कितने न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं?
उत्तर – यूकैरियोटिक कोशिकाओं में दो प्रकार के DNA पाए जाते हैं-
(i) B-DNA तथा (ii) Z-DNA
Z-DNA वामावर्त कुण्डलित होता है व इसकी द्विकुण्डलिनो टेढ़ी-मेढ़ी (Zag Zag) होती है। इसके प्रत्येक कुण्डलन में 12 जोड़ी न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं।
प्रश्न 3. DNA को केन्द्रक में मिलने वाले अम्लीय पदार्थ के रूप में सर्वप्रथम किसने पहचाना?
उत्तर – DNA की अम्लीय प्रकृति की खोज फ्रेडरिक मौश्चर ने की थी।
प्रश्न 4. न्यूक्लियोटाइड्स में पाए जाने वाले प्यूरीन के नाम लिखिए।
उत्तर – एडिनीन तथा ग्वानीन
प्रश्न 5. प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक DNA में अन्तर बताइए।
उत्तर –प्रोकैरियोटिक DNA के साथ हिस्टोन प्रोटीन जुड़े नहीं रहते हैं, जबकि यूकैरियोटिक DNA के साथ हिस्टोन प्रोटीन जुड़े रहते हैं। प्रोकैरियोटिक DNA वृताकार, जबकि यूकेरियोटिक DNA रेखीय होता है।
प्रश्न 6. न्यूक्लियोसाइड्स तथा न्यूक्लियोटाइड्स में अन्तर बताइए
उत्तर – न्यूक्लियोसाइड्स तथा न्यूक्लियोटाइड्स में निम्नलिखित अन्तर हैं
प्रश्न 7. न्यूक्लियोटाइड्स में पाई जाने वाली दो शर्कराओं के नाम एवं सूत्र लिखिए।
उत्तर – (i) डीऑक्सीराइबोस शर्करा - C₅H₁₀O₄ तथा (ii)राइबोस शर्करा C₅H₁₀O₅
प्रश्न 8. DNA अणु का द्विकुण्डलित मॉडल किसने और कब प्रतिपादित किया?
उत्तर - वाटसन एवं क्रिक ने सन् 1963 में द्विकुण्डलित मॉडल प्रस्तुत किया, इसके लिए उन्हें सन् 1962 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
प्रश्न 9. यदि एक द्विरज्जुक DNA में 20 प्रतिशत साइटोसिन है, तो DNA में मिलने वाले एडिनीन के प्रतिशत की गणना कीजिए।
उत्तर - एडिनीन [A] = थाइमीन [T] एवं [G] ग्वानीन =साइटोसीन [C], यदि C 20% है, तो G भी 20% होगा।
G+ C = 40%, A + T = 100 – 40 = 60%
क्योंकि A = T इसलिए A = 30%, T = 30%
प्रश्न 10. चारगाफ के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – इस नियम के अनुसार, DNA में एडिनीन की मात्रा थाइमीन के बराबर (A = T) तथा ग्वानीन की मात्रा साइटोसिन (G = C) के बराबर होती है और प्रत्येक जाति के लिए एडिनीन थाइमीन व ग्वानीन साइटोसिन का अनुपात विशिष्ट होता है।
प्रश्न 11. कोशिका में DNA तथा RNA की उपस्थिति का स्थान बताइए।
उत्तर –RNA कोशिकाद्रव्य, राइबोसोम्स, केन्द्रक, आदि में उपस्थित होता है, जबकि DNA मुख्यतया केन्द्रक में पाया जाता है। माइटोकॉण्डिया एवं हरितलवक में भी DNA एवं RNA अल्प मात्रा में उपस्थित होता है।
प्रश्न 12. विभिन्न प्रकार के RNA के नाम लिखिए।
उत्तर – RNA निम्न प्रकार के होते है; जैसे-mRNA (सन्देशवाहक),RNA (स्थानान्तरण) तथा RNA (राइबोसोमल)।
प्रश्न 13. DNA एवं RNA के बीच दो रासायनिक अन्तरों का उल्लेख कीजिए
अथवा DNA एवं RNA में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर – DNA में डीऑक्सीराइबोस शर्करा होती है तथा इसमें थायमीन पाया जाता है, जबकि RNA में राइबोस शर्करा उपस्थित होती है तथा थायमीन के स्थान पर यूरेसिल पाया जाता है।
प्रश्न 14. जीवाणु में रूपान्तरण का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया और क्या निष्कर्ष निकाला ?
अथवा आनुवंशिक सूचनाओं का वाहक अणु कौन-सा है? प्रयोग द्वारा सिद्ध करने वाले वैज्ञानिकों के नाम लिखिए।
उत्तर – ग्रिफिथ ने सर्वप्रथम जीवाणु में रूपान्तरण का प्रयोग कर बताया कि आनुवंशिक पदार्थ के कारण रूपान्तरण होता है तथा ऐवेरी, मैक्लिॉड एवं मैक्का ने जीवाणु में रूपान्तरण प्रयोग द्वारा सिद्ध किया, कि DNA आनुवंशिक पदार्थ होता है।
प्रश्न 15. पारक्रमण क्या है?
उत्तर –पारक्रमण में विषाणु के द्वारा DNA का स्थानान्तरण एक जीवाणु से जीवाणु में किया जाता है।
प्रश्न 16. जीन की क्रियाशील इकाई कों क्या कहते हैं?
उत्तर –जीन की क्रियाशील इकाई को सिस्ट्रॉन कहते हैं।
प्रश्न 17. आनुवंशिक कूट की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर आनुवंशिक कूट सार्वत्रिक, कोमा रहित, अपभ्रष्ट एवं असंदिग्ध होता हैं।
प्रश्न 18. प्रोटीन संश्लेषण में सूत्रपात तथा समापन प्रकूट का नाम लिखिए।
अथवा mRNA पर समापन कोडॉन कौन से हैं?
उत्तर – AUG सूत्रपात (समारम्भन) प्रकूट एवं UAA, UGA, UAG समापन प्रकूट है।
प्रश्न 19. स्थानान्तरण के दौरान राइबोसोम की दो मुख्य भूमिकाओं की सूची बनाइए ।
उत्तर – (i) यह प्रोटीन संश्लेषण के समय mRNA की बाइन्डिंग करते हैं।
(ii) इसमें उपस्थित PA-स्थल पर tRNA जुड़ता है।
प्रश्न 25. जैव सूचना विज्ञान क्या है?
उत्तर जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत (जीनोमिक्स) की विशाल सूचना का रख-रखाव डेटाबेस के रूप में किय जाता है। जैव अणुओं के विभिन्न पहलुओं को जैव सूचना विज्ञान के द्वारा समझाय जाता है।
{अभी तक हमने 1 अंक वाले लिखित प्रश्नों के प्रश्न उत्तर जाने है अब हम 2 अंको के प्रश्न उत्तर शीखेगे}
Molecular basis of inheritance Long question
{ लघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक }
प्रश्न 1. डीऑक्सीराइबोस शर्करा क्या है? इस शर्करा की अणु संरचना बनाइए।
उत्तर – यह शर्करा DNA में पाई जाती है, जो पाँच कार्बन युक्त (5 C) होती है। इसका पाँचवाँ कार्बन अणु वलय से बाहर होता है। इसका पहला कार्बन सदैव नाइट्रोजन क्षारक के साथ ग्लाइकोसिडिक बन्ध द्वारा जुड़ा रहता है। तीसरा तथा पाँचवाँ कार्बन फॉस्फेट अणु के साथ फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध द्वारा जुड़ता है।
प्रश्न 2. प्यूरीन एवं पिरमिडीन क्षारकों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – प्यूरीन एवं पिरोमिहीन क्षारों में निम्न अन्तर हैं
प्रश्न 3. DNA अणु की संरचना में चारगाफ के नियमों की महत्ता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – चारगाफ़ ने विभिन्न जीवों में DNA का अध्ययन कर निम्न निष्कर्ष प्रतिपादित किए
1. सभी DNA में प्यूरीन व पिरमिडीन क्षारकों की मात्रा समान होती है।
(एडिनीन + ग्वानीन)/प्यूरीन
= (थाइमीन + साइटोसिन)/ पिरिमिडीन
2. एक ही जाति के जीवों में DNA के कुल अणुओं में धारकों की संख्या समान होती है।
3. भिन्न जातियों के जीवों में DNA में एडिनीन + थाइमीन तथा ग्यानीन +साइटोसिन का अनुपात भिन्न-भिन्न होता है, परन्तु एक जाति में समान होता है।
प्रश्न 4. हेटेरोक्रोमैटिन तथा यूक्रोमैटिन में अन्तर लिखिए।
अथवा हेटेरोक्रोमैटिन तथा यूक्रोमैटिन में अन्तर बताइए। दोनों में से कौन अनुलेखनीय रूप से सक्रिय होता है?
उत्तर – हेटेरोक्रोमैटिन तथा यूक्रोमैटिन में निम्नलिखित अन्तर हैं।
प्रश्न 5. यदि हिस्टोन प्रोटीन में उत्परिवर्तन के कारण लाइसिन व आर्जिनिन अम्ल जैसे क्षारीय अम्ल की जगह एस्पार्टिक व ग्लूटामिक अम्ल जैसे अम्लीय अम्ल की अधिकता हो जाए, तो इसका क्या परिणाम होगा?
उत्तर – यदि हिस्टोन प्रोटीन में उत्परिवर्तन के कारण उसमें अम्लीय अमीनो अम्ल की अधिकता हो जाए, तो वे अपने ऊपर DNA को कुण्डलित रूप में बांधकर रखने में सक्षम नहीं रह पाएंगे। DNA ऋणात्मक रूप से आवेशित होते हैं, जबकि हिस्टोन क्षारीय अमीनो अम्ल की वजह से धनात्मक रूप से आवेशित होते है, फलतः दोनों परस्पर रूप से एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। हिस्टोन प्रोटीन में उत्परिवर्तन द्वारा अम्लीय अम्लों की अधिकता हो जाने से यह ऋणात्मक रूप से आवेशित हो जाएगा। जिस कारण हिस्टोन व DNA के बीच आकर्षण समाप्त हो जाएगा और प्रतिकर्षण प्रारम्भ हो जाएगा जिसके फलस्वरूप DNA असंघनित हो जाएगा।
प्रश्न 6. DNA कुण्डलनी की कौन-सी विशेषता ने वाटसन व क्रिक को DNA प्रतिकृति के सेमीकन्जरवेटिव रूप की कल्पित करने में सहयोग किया? इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर – डी. एन. ए. के दो रज्जुक क्षार युग्मन में पूरक होते हैं तथा एक-दूसरे से विपरीत दिशा में होते हैं। इसी लक्षण ने वाटसन व क्रिक को DNA प्रतिकृति के अर्द्धसंरक्षी रूप को कल्पित करने में सहयोग किया। इसमें दोनो रज्जुक अलग होकर टेम्पलेट के रुप में कार्य कर नए पूरक रज्जुको का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 7. कोडॉन एवं एण्टीकोडॉन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – आनुवंशिक कूट (Genetic code) mRNA अणुओं में स्थित नाइट्रोजनी क्षारों का वह क्रम है, जिसमें प्रोटीन संश्लेषण के लिए सन्देश निहित होते हैं। एक अमीनो अम्ल के लिए सन्देश देने वाला तीन न्यूक्लियोटाइड्स का प्रय कोडॉन (Codon) कहलाता है।
एण्डी-कोडॉन (Anti-codon) यह tRNA पर स्थित होता है। इस भुजा में 5 क्षार युग्म तथा 7 अयुग्मित नाइट्रोजनी क्षार पाए जाते हैं। यह अनुवादन में भुजा mRNA पर स्थित कूटों से जुड़ती है।
प्रश्न 8. जीन तथा प्रोटीन में क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – जीन, DNA का एक भाग है, जो आनुवंशिक लक्षणों के लिए उत्तरदायी है। जीन प्रोटीन संश्लेषण के द्वारा आनुवंशिक लक्षणों को नियन्त्रित करते हैं। किसी भी प्रोटीन की संरचना उसमें उपस्थित अमीनो अम्लों की संख्या व अनुक्रम पर निर्भर करती है। प्रोटीन की पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में अमीनो अम्लों का अनुक्रम सन्देशवाहक RNA पर पाए जाने वाले कूटों पर निर्भर करता है।
सन्देशवाहक RNA के कूट DNA पर पाए जाने वाले क्षारक क्रमों के अनुसार, व्यवस्थित रहते हैं। अतः किसी प्रोटीन का निर्माण होना है या नहीं यह DNA निर्धारित करता है, क्योंकि आनुवंशिक लक्षणों के प्रकटन के लिए प्रोटीन ही उत्तरदायी है।
त्वचा का रंग मिलैनिन वर्णक (Melanin pigment) नामक प्रोटीन के कारण होता है। शरीर की उपापचयी क्रियाएँ एन्जाइम की उपस्थिति में होती हैं। एन्जाइम भी एक प्रोटीन है। उपापचयी क्रियाओं को किसी भी श्रृंखला में एक एन्जाइम के अव्यवस्थित हो जाने से विभिन्न आनुवंशिक रोग हो सकते हैं; जैसे- फिनाइलकीटोन्यूरिया, रंजकहीनता, आदि। अतः हम कह सकते हैं कि जीन व प्रोटीन में गहरा सम्बन्ध है। जीन अपने आप को प्रोटीन के रूप में प्रकट (Express) करते हैं।
प्रश्न 9. लैक ओपेरॉन में निम्न स्तर की अभिव्यक्ति की आवश्यकता सदैव होती है। इस परिघटना के पीछे क्या कारण है? समझाइए |
उत्तर – लैक ओपेरॉन में निम्न स्तर की अभिव्यक्ति की आवश्यकता इसलिए होती है, क्योंकि कोशिका में लैक्टोस के प्रवेश हेतु परमिएज एन्जाइम (Permease enzyme) का उपस्थित होना आवश्यक है तथा कोशिका में परमिएज एन्जाइम तभी उपस्थित हो सकता है जब लैक ओपेरॉन ऑन (ON) हो। परमिएज एन्जाइम लैक ओपेरॉन द्वारा कोडित होने वाले तीन प्रोटीन एन्जाइमों में से एक है।
प्रश्न 10. पुनरावृत्त DNA एवं अनुषंगी DNA में अन्तर बताइए ।
उत्तर – पुनरावृत्त DNA
इसमें नाइट्रोजन क्षारों के समान अनुक्रमों की अनेक प्रतिलिपियाँ पाई जाती है। जिस DNA पर क्षार अनुक्रमों की एकल प्रतिलिपि पाई जाती है, उसे विशिष्ट (Specific) DNA कहते हैं। इस पर सक्रिय जीन्स पाए जाते हैं।
अनुषंगी DNA
यह पुनरावृत्त DNA का वह भाग होता है, जिस पर लम्बे पुनरावृत्त न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम पाए जाते हैं। ये दो प्रकार का होता है
(a) सूक्ष्मअनुषंगी DNA (1-6bp)
(b) लघुअनुषंगी DNA (11-60 bp)
प्रश्न 11. बहुरूपता का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए
उत्तर – बहुरूपता (Polymorphism) आनुवंशिक बहुरूपता आनुवंशिक पदार्थ में एक से अधिक रूप में मिलती है। हर प्रकार की होती है। जैसे-एलीलिक, SNP और RFLP)
एलीलिक बहुरूपता (Allelic polymorphism) इस प्रकार की बहुरूपता बहू एलीलो के जीन में होती है, जो उत्परिवर्तन द्वारा प्रोटीन की संरचना व कार्य परिवर्तित कर देता है।
SNP (Single Nucleotide polymorphism) इस प्रकार की बहुरूपता मनुष्यों में 1.4 मिलियन एकल क्षार DNA के रूप में मिलती है। यह एलीलों को पहचानने में उपयोगी होती है।
RFLP (Restriction Fragment Length Polymorphism) इस प्रकार की बहुरूपता का उपयोग अंगुली छापन में किया जाता है।
प्रश्न 12. DNA फिंगरप्रिंटिंग से आप क्या समझते हैं? मानव जीवन में इसके उपयोग पर प्रकाश डालिए।
अथवा DNA फिंगरप्रिंटिंग का वर्णन कीजिए। अथवा डी. एन. ए. फिंगरप्रिंटिंग से आप क्या समझते हैं?
अथवा DNA फिंगरप्रिंटिंग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –DNA फिंगरप्रिंटिंग को DNA टाइपिंग या आनुवंशिकी फिंगरप्रिंटिंग भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति के DNA के आधार पर उसकी पहचान की जाती है। इसे सर्वप्रथम सन् 1984 में एलेक जैफरी ने बताया था DNA का 99.9% भाग सभी प्राणियों में समान तथा 0.1% भाग सभी प्राणियों में भिन्न-भिन्न होता है, परन्तु एक युग्मनज जुड़वाँ बच्चों में DNA पूर्ण रूप से समान होता है। इस तकनीक में कुछ विशिष्ट जगहों के बीच विभिन्नता का पता लगाते हैं, जिन्हें पुनरावृत्ति DNA (Repetitive DNA) कहते है। इन्हीं की उपस्थिति के कारण दो व्यक्तियों के DNA में तुलना की जाती है। ये प्रोटीन संश्लेषण हेतु कूटों को नहीं रखते हैं। इनके स्थान को VNTRs (Variable Number of Tandem Repeats) कहते हैं।.
DNA फिंगरप्रिंटिंग के लिए रुधिर, लार, बाल या किसी भी जीव तरल से या पदार्थ (रेंजर एवं दन्तब्रश) से DNA लेते हैं। DNA को संचित शुक्राणु या अन्य संचित जैविक अणुओं से भी ले लेते हैं। इसी प्रकार दूसरे व्यक्ति का भी DNA लेते हैं तथा दोनों के न्यूक्लियोटाइड अणुओं के क्रम की समानता पर उन दोनों व्यक्तियों की समानता देखते हैं। दो व्यक्तियों के DNA अनुक्रमों के बीच तुलना करने हेतु DNA फिंगरप्रिंटिंग का प्रयोग किया जाता है।
DNA फिंगरप्रिंटिंग के उपयोग
1. यह पैतृत्व परीक्षण में सहायक है।
2. यह गैर कानूनी यौन सम्बन्धों हत्या व अन्य अपराधों के अपराधी के निर्धारण करने में सहायक है।
3. यह विलुप्तता की कगार पर खड़े जन्तुओं के संरक्षण में सहायक है।
प्रश्न 13. निम्न को परिभाषित कीजिए।
1. जीनोम
2. जम्पिंग जीन
3. ओपेरॉन
4. एक्सॉन एवं इन्ट्रॉन
उत्तर
1. जीनोम (Genome) जीवधारियों में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चय (Haploid set), जो युग्मक के द्वारा वंशागत होता है, को जीनोम कहते हैं।
2. जम्पिंग जीन (Jumping gene) यूकैरियोटिक कोशिकाओं के गुणसूत्रों में कुछ जीन अपना स्थान बदलते रहते हैं, इन्हें जम्पिंग जीन कहते हैं।
3. ओपेरॉन (Operon) पास-पास स्थित संरचनात्मक जीन तथा सम्बन्धित नियन्त्रक जीन का एक समूह ओपेरॉन कहलाता है।
ओपेरॉन = नियामक जीन + प्रोमोटर जीन + प्रचालक जीन + संरचनात्मक जीन
4. एक्सॉन एवं इन्ट्रॉन (Exon and Intron) यूकैरियोटिक कोशिकाओं के DNA अणु के मध्य क्रियाशील खण्ड जिन पर प्रोटीन के लिए कोड होता है, एक्सॉन कहलाते हैं। इसके विपरीत DNA में बीच-बीच में स्थित क्रियाहीन खण्ड जिन पर कोई कोड नहीं होता, इन्ट्रॉन कहलाते हैं।
Molecular basis of inheritance questions ans
{ लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक }
प्रश्न 1. DNA तथा RNA में अन्तर लिखिए।
उत्तर – DNA तथा RNA में निम्नलिखित अन्तर हैं
प्रश्न 2. B. डी. एन. ए. एवं Z. डी. एन. ए. में अन्तर बताइए।
उत्तर – B. डी. एन. ए. एवं z.डी. एन. ए. में अन्तर निम्न हैं
प्रश्न 3. DNA का अर्द्धसंरक्षी प्रतिकृतियन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – मेसेलसन एवं स्टाइल (Meselson and Stahl) ने सन् 1958 में ई. कोलाई जीवाणु पर नाइट्रोजन के प्रयोग द्वारा अर्द्धसंरक्षी द्विगुणन का प्रमाण दिया। इस प्रयोग के अन्तर्गत उन्होंने जीवाणु कोशिका को पहले भारी नाइट्रोजन (N¹⁵) के संवर्धन माध्यम में कुछ पीढ़ियों तक संवर्द्धित किया। इसके उपरान्त इन्हें सामान्य, हल्के नाइट्रोजन (N¹⁴) के माध्यम में स्थानान्तरित किया।
विभिन्न समयान्तरालों पर जीवाणुओं के नमूने एकत्रित करके तथा इनके जननिक DNA को सीजियम क्लोराइड (CsCI) विलयन में घोलने पर इस विलयन में आयनों की उपस्थिति के कारण अपकेन्द्रण में DNA शीघ्र ही कुण्डलित हो जाता है। N¹⁵ युक्त DNA अधिक सघन होने के कारण इस विलयन में नीचे जा कर रुकता है, N¹⁴ युक्त माध्यम में एक पीढ़ी के बाद एक पट्टी (Band) प्रदर्शित होती है, जिसका घनत्व N¹⁴ एवं N¹⁵के मध्य होता है।
N¹⁴ युक्त माध्यम में दो पीढ़ियों के बाद दो पट्टियों का निर्माण होता है, जिसमें एक पट्टी का घनत्व N¹⁴ के बराबर तथा दूसरी पट्टी का घनत्व माध्यमिक (N¹⁵ एवं N¹⁴के मध्य) होता है। मेसेलसन एवं स्टाइल के प्रयोगों से सम्बन्धित परिणामों को निम्न चित्र के माध्यम से समझाया जा सकता है
RNA इस प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करता है। यह निम्न तीन प्रकार का होता है
• राइबोसोमल RNA (rRNA) मात्रात्मक दृष्टि से यह RNA कोशिकाओं में सर्वाधिक (60%) मात्रा में पाया जाता है। ये लम्बी पॉली न्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का बना होता है और मुख्य रूप से राइबासोम के निर्माण में भाग लेता है।
स्थानान्तरण RNA (tRNA) यह 1M NaCl में घुलनशील होता है, इसलिए इसे घुलनशील RNA (sRNA) भी कहा जाता है। कोशिकीय RNA की कुल मात्रा में इसका भाग लगभग 15% होता है। यह प्रोटीन संश्लेषण की अनुलिपिकरण प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करता है तथा 75-90 न्यूक्लियोटाइडस का बना होता है, जो क्लोवर की पत्ती की आकृति में व्यवस्थित रहते है।
सन्देशवाहक RNA (mRNA) विशिष्ट प्रोटीन संश्लेषण हेतु DNA के द्वारा आवश्यक संकेत mRNA के रूप में अलेखित किए जाते हैं।यूकैरियोट्स में यह विजातीय प्रकार का होता है। इस कारण इसे
विजातीय RNA (hnRNA) भी कहते हैं।
प्रश्न 4. संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(i) उत्परिवर्तन (ii) RNA
उत्तर (i) जीव के शरीर के आनुवंशिक गुणों का निर्धारण जीन (DNA) द्वारा ( किया जाता है। ये जोनपैतृकों से उनकी सन्तति में पहुंचते हैं, परन्तु कभी-कभी जीव के इन जीनो या DNA की संरचना या व्यवस्था में आकस्मिक परिवर्तन आ जाते हैं। इन आकस्मिक वंशागत परिवर्तनों को ही उत्परिवर्तन कहते हैं। इन उत्परिवर्तनों के कारण सन्ततियाँ भी अपने जनको ये भिन्न हो जाती है।
प्रश्न 5. सेन्ट्रल डोम्मा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर –फ्रांसिस क्रिक (Francis Crick: 1958) ने अणुजैविकी का केन्द्रीय सिद्धान्त प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार DNA से आनुवंशिक सूचनाओं का प्रवाह mRNA तक केन्द्रक से बाहर कोशिकाद्रव्य की तरफ होता है, तत्पश्चात् mRNA में न्यूक्लियोटाइड के क्रम का अमीनो अम्लों के क्रम के रूप में अनुवाद होता है। इसे सूचनाओं का केन्द्रीय सिद्धान्त या सेन्ट्रल डोग्मा (Central dogma) कहते हैं। अतः इसके दो पद हैं।
(a) अनुलेखन (Transcription) एवं (b) जनुवादन (Translation)
DNA अनुलेखन→ RNA अनुवादन →प्रोटीन
टेमिन एवं बाल्टीमोर (Temin and Baltimore) ने सन् 1970 में विपरीत अनुलेखन (Reverse transcription) का पता लगाया। इन्होंने रिवर्स ट्रान्सक्रिप्टेज (Reverse transcriptase) एंजाइम की खोज की। यह एन्ज़ाइम RNA द्वारा DNA के संश्लेषण को उत्प्रेरित करता है। विपरीत अनुलेखन क्रिया की उपस्थिति के कारण ही इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को विपरीत केन्द्रीय सिद्धान्त अथवा सेन्ट्रल डोम्मा रिवर्स (Central dogma reverse) भी कहते हैं।
प्रश्न 6. अनुलेखन पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
अथवा mRNA के अनुलेखन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर - पूर्वकेन्द्रीय जीवों में RNA अनुलेखन को सम्पूर्ण प्रक्रिया को निम्न तीन प्रावस्थाओं में बांटा जा सकता है
1. प्रारम्भन (Initiation) कोशिकाद्रव्य से किसी विशिष्ट प्रोटीन के निर्माण के संकेत पर DNA (जोन) से सम्बन्धित हिस्टोन प्रोटीन पृथक हो जाते है व DNA का खण्ड (जोन) अनावृत हो जाता है।
प्रत्येक जीन के समीपस्थ में सिरे पर प्रारम्भन स्थल से ठीक पहले, समाक्षार जोड़ियों के एक विशेष अनुक्रम के रूप में, DNA अणु का एक छोटा नियामक खण्ड होता है, जिसे प्रोत्साहक (Promoter) कहते हैं।
• जिस जोन का अनुलेखन होना होता है, उसके प्रोत्साहक खण्ड से RNA पॉलीमरेज एन्जाइम का एक अणु जुड़ जाता है।
•पूर्वकेन्द्रकीय कोशिकाओं में प्रोत्साहक की पहचान के लिए पहले विशिष्ट सिग्मा कारक (Sigma factor) का जुड़ना आवश्यक होता है।
• प्रोत्साहक के बाद, जीन के छोटे-से प्रथम भाग में केवल A = T' समाक्षार जोड़ियां होती है। RNA पॉलीमरेज इन्हीं जोड़ियों के हाइड्रोजन बन्धों को तोड़कर द्विकुण्डलित DNA का अकुण्डलन करके इसके दो सूत्रों को पृथक कर देता है।
•पृथक् हुए DNA सूत्रों में से एक सूत्र की दिशा 5'→3' जबकि दूसरे सूत्र की दिशा 3'→5' होती है।
•RNA पॉलीमरेज एन्जाइम केवल 5'→3' दिशा में ही RNA का निर्माण कर सकता है। इस कारण DNA के 3' →5' सूत्र पर ही RNA अणु का निर्माण हो पाता है। अतः DNA के 3'→5' सूत्र को साँचा सूत्र (Template strand) या सार्थक सूत्र (Sense strand) कहते है।
DNA के 5'→ 3' सूत्र का अनुलेखन न होने के कारण इसे असाँचा सूत्र (Non-template strand) या निरर्थक सूत्र (Non-sense strand) कहते हैं।
2. दीर्घीकरण (Elongation) इस चरण के अन्तर्गत DNA के साँचा सूत्र पर एन्जाइम RNA पॉलीमरेज पूरकता के नियम का पालन करते हुए आधारी पदार्थ के रूप में चारों प्रकार के न्यूक्लियोटाइड का उपयोग करता है व RNA की नई श्रृंखला का निर्माण 5'→ 3' दिशा में करता है।
जैसे-जैसे RNA पॉलीमरेज DNA के साँचा सूत्र पर आगे बढ़ता जाता है, DNA के साँचा सूत्र का अकुण्डलन होता रहता है व नई RNA श्रृंखला का निर्माण होता रहता है।
3. समापन (Termination) RNA अणु के संश्लेषण का समापन जीन के दूरस्थ सिरे के ठीक बाद में स्थित एक विशेष भाग में होता है, जिसे
विलोमपद (Palindrome) कहते हैं।
•जैसे ही RNA पॉलीमरेज एन्जाइम समापन क्षेत्र पर पहुँचता है। यह DNA के साँचा सूत्र से पृथक हो जाता है।
•समापन स्थल पर रो (Rho) कारक जुड़कर, RNA पॉलीमरेज के DNAसाँचा सूत्र से पृथक् होने में सहायता करता है।
प्रश्न 7. मानव जीनोम परियोजना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर - मानव जीनोम परियोजना की शुरूआत सन् 1990 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने एक अन्तर्राष्ट्रीय अनुसन्धान कार्यक्रम के रूप में की। इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य मानव जीनोम के DNA क्रम को निर्धारित करना था। HGP के बारे में जानकारी से जीव विज्ञान के उस नए क्षेत्र के तेजी से विस्तार से सम्भव हो पाई है, जिसे जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) कहते हैं।
मानव जीनोम परियोजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नवत् हैं
1. मानव जीनोम पर उपस्थित सभी क्षार युग्मों की संख्या तथा उनके अनुक्रमों का निर्धारण करना।
2. मानव जीनोम पर उपस्थित सभी जीन्स को ज्ञात करना।
3. मानव जीन्स के कार्यों का निर्धारण करना ।
4. जीवाणु कृत्रिम गुणसूत्रों (Bacterial Artificial Chromosomes or BACs) तथा यीस्ट कृत्रिम गुणसूत्रों (Yeast Artificial Chromosomes or YACs) में मनुष्य के DNA खण्डों में क्लोनिंग करके मानव के जीनोम का चित्रण तैयार करना अर्थात् जीन चित्रण करना।
5. मानव जीनोम में उपस्थित आनुवंशिक चिन्ह्क (Genetic markers) या आण्विक चिन्हकों का निर्धारण करना, ताकि जीनोम का आनुवंशिक चित्रण (Genetic mapping) तथा भौतिक चित्रण (Physical mapping) किया जा सके।
6. आनुवंशिक विकार (Genetic disorder) उत्पन्न करने वाले विभिन्न जीन्स की पहचान करना।
7. विभिन्न विकारों के लिए आनुवंशिक संवेदनशीलता तथा प्रतिरोधकता का निर्धारण करना।
8. सूचनाओं को इस प्रकार संग्रहित करना कि आवश्यकतानुसार उन्हें सरलता से प्राप्त किया जा सके।
9. आँकड़े विश्लेषण हेतु उपलब्ध साधनों में सुधार करना।
10 मानव जीनोम परियोजना के दौरान विकसित की गई तकनीकों को उद्योगों में स्थानान्तरित करने की सम्भावनाओं को खोजना।
Molecular basis of inheritance class 12th ncert notes
{ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5 अंक }
प्रश्न 1. DNA आनुवंशिक पदार्थ है। इसे सिद्ध करने के लिए हर्षे व चेज़ के द्वारा किए गए प्रयोग का वर्णन कीजिए।
अथवा DNA आनुवंशिक पदार्थ है, इसे सिद्ध करने हेतु अपने प्रयोग के साथ हर्षे व चेज़ ने DNA व प्रोटीन के बीच कैसे अन्तर स्थापित किए?
अथवा DNA आनुवंशिक पदार्थ है। प्रयोग द्वारा पुष्टि कीजिए।
अथवा नामांकित चित्र की सहायता से हर्षे-चेंज के प्रयोग का वर्णन कीजिए। वैज्ञानिक ने अपने प्रयोग के बाद जो निष्कर्ष निकाला, उसे लिखिए।
उत्तर -आनुवंशिक पदार्थ वह तत्व है, जो विशेषकों (Traits) की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागति को नियन्त्रित करता है। यह पदार्थ आनुवंशिक लक्षणों की संकेत सूचनाओं (Coded informations) को
संचित रखता है तथा सन्तति पीढ़ी के जीवों में स्थानान्तरित करता है। ये सन्तति जीव इन लक्षणों (गुणों) को विकसित करते हैं।
DNA की आनुवंशिक पदार्थ के रूप में उपस्थिति के अनेक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं, किन्तु इसका ठोस प्रमाण सर्वप्रथम हर्षे व चेज़ ने दिया।
वैज्ञानिक ग्रिफिथ (Griffith), हर्षे (Hershey) तथा चेज़ (Chase) ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि DNA ही आनुवंशिक सूचनाओं का वाहक अणु होता है। इसके लिए सर्वप्रथम ग्रिफिथ (Griffith; 1928) ने डिप्लोकोकस न्यूमोनी (Diplococcus pneumoniae) नामक जीवाणु पर प्रयोग किए और इसे चूहों में प्रविष्ट करके निष्कर्ष निकाला कि यह न्यूमोनिया रोग उत्पन्न करता है। इसके दो प्रभेद (Strains) पाए जाते हैं
1. उग्र विभेद (Smooth or Virulant strain) यह रोग कारक है।
2. अनुग्र विभेद (Rough or Non-virulant strain) यह रोग कारक नहीं है।
ग्रिफिथ ने विभिन्न प्रयोगों द्वारा निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले
(a) उच्च ताप से उपचारित उग्र विभेद के जीवाणुओं को चूहे में प्रविष्ट कराया तो न्यूमोनिया नहीं हुआ।
(b) उच्च ताप से उपचारित उग्र विभेद तथा जीवित अनुग्र विभेद के जीवाणुओं का मिश्रण चूहों में प्रविष्ट कराया, तो न्यूमोनिया हो गया तथा चूहों में जीवित उम्र विभेद के जीवाणु पाए गए।
इन प्रयोगों से ग्रिफिथ ने अनुमान लगाया कि उग्र विभेद के जीवाणुओं ने अपनी उग्रता (Virulence) अनुग्र विभेद के जीवाणुओं में स्थानान्तरित कर दी। ओ. टी. ऐवेरी, सी. मैक्लियॉड तथा मैक्कार्टी (OT Avery, C MacLeod and MacCarty) ने सन् 1944 में इस प्रयोग की आण्विक व्याख्या (Molecular explanation) की।
इन्होंने बताया कि, जब उच्च ताप से उपचारित उग्र विभेद की कोशिकाओं का DNA अनुग्र विभेद की कोशिकाओं के साथ मिलाया जाता है, तब इनका स्वभाव बदल जाता है तथा ये अनुग्र से उग्र विभेद में बदल जाते हैं, अत: DNA ही आनुवंशिक सूचनाओं का वाहक अणु है।
प्रश्न 2. DNA की आण्विक संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा DNA के द्विगुणन में इसका महत्त्व समझाइए ।
अथवा DNA की संरचना के वाट्सन एवं क्रिक मॉडल को उपयुक्त चित्र बनाकर समझाइए ।
अथवा वाट्सन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तुत DNA की रासायनिक संरचना का वर्णन कीजिए तथा उसकी आनुवंशिक पदार्थ के रूप में मान्यता का उल्लेख कीजिए।
अस वाट्सन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तुत किए गए DNA की संरचना का नामांकित चित्र बनाइए। (वर्णन की आवश्यकता नहीं है।
अथवा वाट्सन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तुत द्विकुण्डलीय DNA की संरचना का वर्णन कीजिए।
अथवा न्यूक्लिक अम्ल क्या है? वाट्सन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तावित DNA अणु की द्विकुण्डलीय संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर -न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic acid) सर्वप्रथम फ्रेडरिक मीश्चर ने पस कोशिकाओं तथा मछलियों के शुक्राणु से न्यूक्लिक अम्ल को पृथक् करने में सफलता प्राप्त की थी। अधिकांश जीवधारियों में न्यूक्लिक अम्ल दो रूपों में पाया जाता है
1. DNA
2. RNA
DNA तथा RNA दोनों का ही निर्माण पेन्टोस शर्करा, फॉस्फोरिक अम्ल के अणु तथा नाइट्रोनी क्षारकों के द्वारा होता है। नाइट्रोनी क्षारक दो प्रकार के होते हैं
पिरिमिडीन्स इसके अन्तर्गत साइटोसीन, थाइमीन तथा यूरेसिल को सम्मिलित किया जाता है तथा प्यूरीन्स इसके अन्तर्गत एडीनीन तथा ग्वानीन को सम्मिलित किया जाता है। DNA के निर्माण में भाग लेने वाली शर्करा डीऑक्सीराइबोस प्रकार की होती है, जबकि RNA के निर्माण में राइबोस शर्करा भाग लेती है। शर्करा तथा फॉस्फेट अणु न्यूक्लिक अम्ल का निर्माण करते हैं, जबकि क्षारक उनके पार्श्व भागों से जुड़े होते हैं। DNA के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्षण निम्नलिखित हैं।
1. इसके दोहरे कुण्डलाकार मॉडल को सर्वप्रथम सन् 1953 में वाट्सन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
2. दोहरे कुण्डलन में DNA की दोनों पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाएँ एक-दूसरे के प्रति समान्तर होती हैं।
3. पॉलीन्यूक्लियोटाइड्स के निर्माण में न्यूक्लियोटाइड्स एक-दूसरे से शर्करा फॉस्फेट सहलग्नता द्वारा जुड़ते हैं।
4. DNA की दोनों पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाएँ, एक-दूसरे से हाइड्रोजन बन्धों के द्वारा जुड़ी रहती हैं।
(i) साइटोसिन तथा ग्वानीन क्षारकों का युग्मन तीन हाइड्रोजन बन्धों के द्वारा होती है।
(ii) एडिनीन तथा थाइमीन या यूरेसिल के मध्य केवल दो हाइड्रोजन बन्धों द्वारा युग्मन स्थापित होता है।
5. दोनों पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं में शर्करा के अणु एक-दूसरे से 11 Ä की दूरी पर होते हैं।
6. DNA अणु का व्यास 20 À होता है।
7. कुण्डलाकार रचना में एक पूर्ण चक्र 34A की दूरी पर होता है और इतनी दूरी में 10 युगल क्षारक उपस्थित रहते हैं।
8. आवश्यक एन्जाइमों की उपस्थिति में DNA का केन्द्रक में अन्तरावस्था काल में रेप्लीकेशन होता है।
9. DNA अणु के प्रति पिया की बाई 31 सेमी होती
है।
10. DNA के विपरीत की स्थिति एक-दूसरे के विपरीत होती है अर्थात् यदि एक सूत्र में शर्करा अणुओं की दिशा 5' व 3' है, तो दूसरे में 3'व 5' ही होगी।
11. पिरमिडीन तथा प्यूरीन का अनुपात 1:1होता है।
DNA के द्विगुणन में द्विकुण्डलित मॉडल का महत्त्व 1. द्विगुणन के समय दोनों रज्जुक अलग-अलग होकर टेम्प्लेट का कार्य करते हैं।
2. एक DNA खण्ड से दो खण्डों का संश्लेषण होता है।
3. नई कोशिका में DNA का क्रम समान रहता है।
4. पूरक रज्जुक में यूक्लियोटाइडका क्रम समान बना रहता है।
प्रश्न 3. DNA पैकेजिंग क्या है? इसके महत्व को समझाइए |
उत्तर – अत्यधिक लम्बा DNA कोशिका के छोटे से केन्द्रक में पाया जाता है। इसके लिए DNA की कुण्डलन व पराकुण्डलन द्वारा पैकेजिंग होती है।
सुकेन्द्रकीय कोशिका में DNA की पैकेजिंग (Packaging of DNA in eukaryotes) सुकेन्द्रकीय कोशिका में DNA की पैकेजिंग लाइसीन व आर्जिनीन युक्त क्षारीय प्रोटीन्स, जिन्हें हिस्टोन (Histone) कहते हैं, की सहायता से होता है। बैडबरी (Bredbury) ने सन् 1981 में न्यूक्लियोसोम की संरचना का वर्णन किया। इनके अनुसार, हिस्टोन प्रोटीन्स पाँच प्रकार की होती है- H₁. H₂A. H₂B, H₃. H₄, इनमें से चार अर्थात् HA, H.B. H. H, युग्मों में पाई जाती है और हिस्टोन अष्टक (Histone octamer) का निर्माण करती हैं।
इसे नू काय (Nu-body) या न्यूक्लियोसोम का कोर (Core of nucleosome) कहते हैं। इनके धनावेशित छोर बाहर की और होते हैं। ये ऋणावेशित DNA को आकर्षित करते हैं। DNA के लगभग 166 क्षार युग्म नू-काय पर लिपटकर न्यूक्लियोसोम को 110 x 60 A का आकार प्रदान करते हैं। वह DNA जो दो निकटवर्ती
न्यूक्लियोसोम्स को जोड़ता है, लिंकर DNA (Linker DNA) कहलाता है। पर H₁, हिस्टोन प्रोटीन पाई जाती है। न्यूक्लियोसोम व लिंकर DNA संयुक्त रूप से क्रोमैटोसोम (Chromatosome) का निर्माण करते हैं। न्यूक्लियोसोम इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में मणिकाबद्ध (Beaded string) संरचना के रूप में दिखाई देता है। मणिकाबद्ध शृंखला कुण्डलित होकर सोलेनॉइड (Solenoid) बनाती है, जिसके प्रत्येक घुमाव (Turn) में 6 न्यूक्लियोसोम होते हैं। इसकी मोटाई 10 nm होती है, जो संघनित व कुण्डलित होकर 30 nm मोटाई का हो जाता है। सोलेनॉइड और कुण्डलित होकर 300 nm के क्रोमैटिन तन्तु (Chromatin fibre) व और कुण्डलन द्वारा 700 nm का क्रोमैटिड (Chromatid) बनाता है। क्रोमैटिन नॉन-हिस्टोन गुणसूत्रीय प्रोटीन्स (Non-Histone Chromosomal or NHC proteins) पर पाया जाता है। कुछ स्थानों पर क्रोमैटिन अत्यधिक संघनित होकर गहरे अभिरंजित होने वाला हेटेरोक्रोमैटिन (Heterochromatin) बनाता है। कुछ स्थानों पर यह ढीला होकर हल्का अभिरंजित होने वाला यूक्रोमैटिन (Euchromatin) बनाता है, यह अनुलेखन हेतु सक्रिय भाग होता है।
DNA. → न्यूक्लियोसोम →सोलेनॉइड →क्रोमैटिन तन्तु क्रोमैटिड→ गुणसूत्र -
(2nm व्यास) (10nm व्यास) (30nm व्यास) (300nm व्यास) (700nm व्यास) (1400nm व्यास)
प्रश्न 4. DNA द्विगुणन में प्रमुख चरणों का उल्लेख कीजिए। DNA के महत्त्वपूर्ण कार्य क्या हैं?
अथवा DNA के द्विगुणन का वर्णन कीजिए।
उत्तर -ADNA का द्विगुणन (Replication of DNA) यह अन्तरावस्था की S-प्रावस्था में होता है। वाट्सन तथा क्रिक ने DNA द्विगुणन की अर्द्धसंरक्षी विधि का प्रतिपादन किया। मेसेल्सन एवं स्टाइल (1958) ने ई. कोलाई (E. coli) पर रेडियोएक्टिव नाइट्रोजन के प्रयोग द्वारा अर्द्धसंरक्षी द्विगुणन का प्रमाण दिया।
1. DNA का द्विगुणन प्रारम्भन बिन्दु (Initiation point) से शुरू होता है। यूकैरियोट्स में कई या अनगिनत प्रारम्भन बिन्दु होते हैं, जबकि प्रोकैरियोट्स में एक ही प्रारम्भन बिन्दु होता है, क्योंकि यूकैरियोट्स का DNA बड़ा व सम्मिश्र होता है।
2. हेलिकेज एन्जाइम DNA के दोनों रज्जुको को पृथक कर देता है तथा प्रत्येक रज्जुक बन्धन प्रोटीन की सहायता से स्थिर हो जाता है।
3. टोपोआइसोमरेज एन्ज़ाइम रज्जुक में कुण्डलन के तनाव को समाप्त करता है।
4. प्रत्येक रज्जुक साँचे की तरह कार्य करता है। बहुलीकरण (Polymerisation) से पूर्व प्राइमेज एन्जाइम को सहायता से रज्जुक के 3' छोर के पूरक RNA प्राइमर का संश्लेषण होता है, जिससे आगे DNA पॉलीमरेज- III द्वारा बहुलीकरण होता है।
5. अग्रग रज्जुक (Leading strand) पर DNA का 5-3 दिशा में सतत् है। (Continuous) संश्लेषण होता है, जबकि पश्चगामी रज्जुक (Lagging strand) पर छोटे-छोटे टुकड़ों, जिन्हें ओकाजाकी टुकड़े (Okazaki fragments) कहते हैं, के रूप में असतत् संश्लेषण होता है। प्रत्येक ओकाजाकी टुकड़े के लिए एक अलग RNA प्राइमर बनता है।
6. ओकाजाकी टुकड़े के पूर्ण निर्मित होने पर DNA पॉलीमरेज - I द्वारा RNA प्राइमर को हटा दिया जाता है और DNA लाइगेज एन्जाइम ओकाजाकी टुकड़ों को जोड़ने का कार्य करता है।
DNA के महत्त्वपूर्ण कार्य इनके कार्य निम्नलिखित हैं
1. ये आनुवंशिक सूचनाओं के वाहक होते हैं।
2. इसके द्वारा निर्मित RNA विभिन्न अमीनो अम्लो (Amino acids) से DNA द्वारा निर्देशित प्रोटीन का संश्लेषण करते हैं।
3. DNA द्वारा निर्मित कुछ न्यूलियोटाइड हॉर्मोन्स व सहएन्जाइमों(Coenzymes), आदि के रूप में कार्य करते हैं।
4. जन्म से मृत्यु तक जीव की कोशिकाओं का निर्माण DNA के अनुसार होता है। इसकी मूल रूप रेखा (Original blue print) DNA के रूप में ही होती है।
प्रश्न 5. राइबोन्यूक्लिक अम्ल की रचना, प्रकार एवं कार्य समझाइए |
अथवा RNA कितने प्रकार के होते हैं? IRNA की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर -राइबोन्यूक्लिक अम्ल (Ribonucleic Acid or RNA) इसका निर्माण DNA से होता है। यह भी मॉलीन्यूक्लियोटाइड्स श्रृंखला से बना होता है, जिसका निर्माण हजारों न्यूक्लियोटाइड्स से होता है। RNA का न्यूक्लियोटाइड भी DNA जैसा ही होता है, परन्तु यह निम्न दो बातों में DNA न्यूक्लियोटाइड से भिन्न होता है।
1. इसमें उपस्थित शर्करा राइबोस (Ribose) होती है, डीऑक्सीराइबोस नहीं तथा थाइमीन नामक नाइट्रोजन क्षारक के स्थान पर यूरेसिल होता है।
2. यह सामान्य आनुवंशिक पदार्थ नहीं होता है, परन्तु अपवाद स्वरूप ये द्विरज्जुकी (Double helical) एवं आनुवंशिक भी होता है; जैसे रियोवाइरस में यह आनुवंशिक भी होता है।
स्थानान्तरण- RNA (tRNA)
क्लोवर पत्ती प्रतिरूप (Clover leaf model) (tRNA की प्राथमिक संरचना है। !RNA की संरचना में पाँच भुजाएं होती हैं, प्रत्येक भुजा में एक लूप तथा एक
स्तम्भ होता है। वे निम्नलिखित है
1. संग्राहक स्तम्भ (Acceptor stem) इस भुजा को अमीनो अम्ल भुजा भी कहते हैं। इस भुजा के सिरे पर लूप नहीं होता है, बल्कि द्विकुण्डलिनी का एक सूत्र 5' सिरे वाला तथा दूसरा 3' सिरे वाला होता है।
3' सिरे वाले सूत्र के सिरे पर साइटोसीन साइटोसीन एडीनीन (CCA) क्षार वाले राइबोन्यूक्लियोटाइड का क्रम होता है। इस स्तम्भ में 7 क्षार युग्म तथा 4 अयुग्मित क्षार होते हैं। 20 में से एक विशेष प्रकार का अमीनो अम्ल अणु, कार्बोक्सिल समूह (-COOH) द्वारा CCA की एडीनोसीन के 2' या 3' क्रम के हाइड्रोक्सिल समूह (-OH) से सहसंयोजी आबन्ध द्वारा जुड़ा रहता है। यह ATP की सहायता से बनने वाला एक उच्च ऊर्जा एस्टर बन्ध है, जिसका उत्प्रेरण एक मैग्नीशियम युक्त एन्जाइम करता है।
2. D-भुजा (D-arm) इस भुजा में 7 क्षार युग्म तथा 7-11 नाइट्रोजनी क्षार पाए जाते हैं। यह एक एन्जाइम स्थल है।
3. एण्टीकोडॉन भुजा (Anticodon arm) इस भुजा में 5 क्षार युग्म तथा 7 अयुग्मित नाइट्रोजनी क्षार पाए जाते हैं। यह भुजा mRNA पर स्थित कूटों से जुड़ती है, जिसमें अमीनो अम्ल भुजा से संकेत सूचना प्राप्त होती है।
4. परिवर्ती भुजा (Variable arm) यह भुजा परिवर्तित होती रहती है तथा इसमें स्तम्भ उपस्थित या अनुपस्थित हो सकता है।
5. TφC भुजा (TφC arm) इस भुजा में पाँच क्षार युग्म होते हैं तथा 7 अयुग्मित क्षार पाए जाते हैं। यह भुजा tRNA अणु को राइबोसोम से जोड़ती है। tRNA का मुख्य कार्य, अमीनो अम्लों को सन्देशवाहक RNA पर स्थित कूटों की सीध में लाना होता है।
प्रश्न 6. आनुवंशिक कूट क्या हैं? आनुवंशिक कोड में पाए जाने वाले एक प्रारम्भन व एक समापन कोडॉन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा आनुवंशिक कूट क्या हैं? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा आनुवंशिक कूट पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर -आनुवंशिक कूट की खोज निरेनबर्ग एवं मथाई (1961) ने की थी।
आनुवंशिक कूट या कोड नाइट्रोजन क्षारकों का वह अनुक्रम है, जिसमें प्रोटीन अणु के संश्लेषण की सूचना उपस्थित होती है। तीन न्यूक्लियोटाइड का वह अनुक्रम, जो किसी विशिष्ट अमीनो अम्ल का निर्माण करता है, प्रकूट (Codon) कहलाता है। आनुवंशिक संकेत प्रणाली में 64 प्रकूट होते हैं। आनुवंशिक कूट की सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. आनुवंशिक कूट त्रिक (Triplet) होता है।
2. आनुवंशिक प्रकूट कोड की खोज निरेनबर्ग एवं मैथाई (Nirenberg and Matthaei; 1961) ने की थी।
3 .AUG तथा GUG (कभी-कभी) प्रारम्भिक प्रकूट, जबकि UAA, UGA, UAG समापन ग्रकूट हैं। समापन प्रकूट किसी भी अमीनो अम्ल का निर्माण नहीं करते हैं।
4. आनुवंशिक कूट कोमाविहीन है तथा सार्वत्रिकता (Universality) दर्शाता है। सार्वत्रिकता से तात्पर्य है कि जीव चाहे पूर्वकेन्द्रकीय हो या सुकेन्द्रकीय, आनुवंशिक कूट समान प्रकार के अमीनो अम्ल का ही निर्माण करेगा।
5. आनुवंशिक कूट अनअतिव्यापी (Non-overlapping) होता है अर्थात् प्रकूट के एक ही अक्षर का उपयोग दो विभिन्न प्रकूटों में नहीं किया जा सकता।
6. आनुवंशिक कूट असंदिग्धता (Non-ambiguity) दर्शाता है अर्थात् एक विशिष्ट प्रकूट एक ही अमीनो अम्ल को कोड करता है।
7. वोबल परिकल्पना (Wobble Hypothesis) सन् 1968 में एफ. एच. सी. क्रिक (HFC Crick) द्वारा दी गई थी। इसके अनुसार, प्रकूट के पहले दो अक्षर अमीनो अम्ल निर्धारण के लिए आवश्यक होते हैं और तीसरे कोड को 'कूट प्रभावित किए बिना भिन्नता प्रदर्शित करते हैं; जैसे-CCA, CCC, Ccc को और CCUI ये सभी प्रोलीन अमीनो अम्ल को कोड करते हैं। इसी तरह CUU, CUC, CUA तथा CUG ये सभी ल्यूसीन अमीनो अम्ल करते हैं। यही कारण है कि एक (RNA एक से अधिक प्रकूट को पहचान सकता है। ऐसा माना गया है कि तीसरे स्थान पर क्षारकों में वोबलिंग या डगमगाहट होती है और स्थाई युग्मन नहीं हो पाता है। वोबलिंग के कारण tRNA की संख्या प्रकूट की तुलना में कम हो जाती है।
8. आनुवंशिक कूट अपभ्रष्टता (Degeneracy) दर्शाता है अर्थात् केवल दो अमीनो अम्ल (मिथिओनीन तथा ट्रिप्टोफेन) को छोड़कर शेष सभी अमीनो अम्लों को एक से अधिक प्रकूट कूटित करते हैं।
प्रश्न 7. प्रोटीन संश्लेषण का वर्णन कीजिए।
अथवा पूर्वकेन्द्रकीय जीवों में प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर -प्रोटीन श्रृंखला निर्माण के चरण (Steps in Polypeptide Chain Synthesis) ये निम्नवत् हैं
1. सूत्रपात अथवा समारम्भन (Initiation) प्रोटीन संश्लेषण का सूत्रपात कई सूत्रपात प्रोटीन्स की सहायता से होने वाली एक जटिल प्रक्रिया होती है। पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं का निर्माण अमीनो अम्लों के एक-दूसरे से पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़ने से होता है। एक अमीनो अम्ल का - COOH वर्ग दूसरे अमीनो अम्ल के -NH₂ वर्ग से आबन्धित होकर पेप्टाइड बन्ध बनाता है। इसके लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। कुछ विशेष कारक होते हैं, जिन्हें समारम्भी कारक (Initiation factors) कहते हैं। इनकी उपस्थिति में mRNA, राइबोसोम की छोटी यूनिट के साथ संलग्न हो जाता है। राइबोसोम की छोटी यूनिट mRNA के साथ इस प्रकार से संलग्न हो जाती है कि पहला प्रकूट, जिसे समारम्भी प्रकूट (Initiator codon) भी कहते हैं, राइबोसोम की बड़ी यूनिट पर एक स्थान, P के समीप आ जाता प्राय: प्रोटीन संश्लेषण की शुरूआत मिथियोनीन (Methionine) से होती है तथा मीथियोनाइल tRNA (tRNAfᵐᵉᵗ) जिस पर मिथियोनीन लगा होता है-P बिन्दु के निकट mRNA पर आरम्भ प्रकूट से संलग्न हो जाता है।
समारम्भन की प्रक्रिया निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट होती है
2. दीर्घीकरण (Elongation) इस प्रक्रिया के अन्तर्गत एक और RNA, जिस पर उपयुक्त अमीनो अम्ल लगा हो, mRNA के दूसरे प्रकूट के हाइड्रोजन से आबन्ध बना लेता है, परन्तु तभी जब इस पर प्रकूट का पूरक प्रतिकूट हो। दूसरा अमीनो एसाइल tRNA, राइबोसोम में P बिन्दु के निकट A बिन्दु पर प्रवेश करता है। प्रथम अमीनो अम्ल (मिथियोनीन) तथा दूसरे अमीनो अम्ल के बीच पेप्टाइड बन्ध बन जाता है। यह अभिक्रिया पेप्टाडाइल ट्रान्सफरेज (Peptidyl transferase) नामक विकर द्वारा उत्प्रेरित होती है।
इस प्रक्रिया में, मिथिओनीन व उसके RNA के बीच सम्बन्ध टूट जाता है और इसका - COOH वर्ग अब दूसरे अमीनो अम्ल के स्वतन्त्र - NH₂ समूह के साथ पेप्टाइड आबन्ध बना लेता है। इस प्रकार, A बिन्दु पर लगे हुए द्वितीय tRNA पर दो अमीनो अम्लों वाली डाइपेप्टाइड श्रृंखला बन जाती है। इसके उपरान्त A बिन्दु पर स्थित tRNA, mRNA सहित P-बिन्दु पर पहुँच जाता है इस क्रिया को स्थानान्तरण (Translocation) कहते हैं। दीर्घीकरण की प्रक्रिया को निम्न चित्र द्वारा समझा जा सकता है
3. समापन (Termination) mRNA के निरर्थक प्रकूटों (Non-sense codons) के A बिन्दु पर आने से, उनमें कोई अमीनो अम्ल नहीं जुड़ता। अतः इस दशा में प्रोटीन संश्लेषण रुक जाता है। इस क्रिया का चित्रीय प्रदर्शन निम्न प्रकार से
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में अनेक प्रोटीन कारकों तथा GTP से प्राप्त ऊर्जा प्रयुक्त होती है।
प्रश्न 8. जीन प्रकटन तथा नियमन का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर -जीन प्रकटन जीन अभिव्यक्ति, वह क्रिया है जिसके अन्तर्गत, जीन्स में कूटित सूचनाओं का अन्य पदार्थों में प्रकटीकरण होता है, ये पदार्थ (प्रोटीन) विभिन्न जीवों में लक्षणप्रारूप (Phenotypes) का निर्धारण करते हैं।
DNA में उपस्थित सूचनाएँ mRNA में अनुलेखित होकर कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में आती है, यहाँ पर ये राइबोसोम, अमीनो अम्ल, tRNA व विशिष्ट एन्जाइमों की सहायता से नवीन प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करती हैं अर्थात् जीन की अभिव्यक्ति में DNA, RNA व प्रोटीन में सम्बन्ध निम्नलिखित हैं
DNA → RNA →प्रोटीन
इस प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्न प्रकार से हैं
1. अनुलेखन (Transcription)
2. RNA प्रसंस्करण (RNA processing)
3. अनुवादन (Translation)
जीन नियमन
किसी विशिष्ट प्रोटीन या एन्जाइम के निर्माण करने वाली जीन को प्रेरित करने या अवाँछनीय उत्पाद का निर्माण करने वाली जीन को निष्क्रिय करने की प्रक्रिया को ही जीन अभिव्यक्ति का नियमन कहते हैं।
कोशिकाओं में जीन प्रकटन का नियमन विभिन्न स्तरों पर होता है.
1. जीन के अनुलेखन के स्तर पर (At gene transcriptional level) सुकेन्द्रकीय कोशिका में DNA, बन्धक प्रोटीन के साथ उपस्थित होता है। जब तक DNA बन्धक प्रोटीन के साथ जुड़ा है, तब तक जीन निष्क्रिय अवस्था में रहता है। अतः अनुलेखन की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती है, परन्तु बन्धक प्रोटीन के अलग होने पर जीव सक्रिय हो जाते हैं।
इस स्तर में कुछ विशेष प्रकार के DNA बन्धन प्रोटीन्स की सहायता से सक्रिय जीन को निष्क्रिय जीन्स अर्थात् निष्क्रिय जीन को सक्रिय जीन्स में परिवर्तित किया जा सकता है अथवा जीन्स के अनुलेखन की दर को कम या अधिक किया जा सकता है। इन प्रोटीन के जीन्स को नियन्त्रण जीन्स (Control gene) कहते हैं।
2. पश्च-अनुलेखन के स्तर पर (At post-transcriptional level) अनुलेखन की प्रक्रिया द्वारा निर्मित प्राथमिक अनुलेखन कार्यात्मक रूप से सक्रिय नहीं होता है। इसके संस्करण की आवश्यकता पड़ती है। अनुलेखन में बनी प्राथमिक mRNA अनुलेखन का प्रसंस्करण न करके इसे सक्रिय अणु में बदलने के बजाए विघटन कर सकते हैं या प्रसंस्करण की दर को कम या अधिक कर सकते हैं। यह नियमन सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में होता है।
3. अनुवादन के स्तर पर (At translational level) mRNA अणु के अनुवादन के द्वारा पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण को रोका जा सकता है। अर्थात् संश्लेषण की दर को कम या अधिक कर सकते हैं।
4. पश्च-अनुवादन के स्तर पर (At post-translational level) अनुवादन के फलस्वरूप बनी प्रोटीन श्रृंखला सक्रिय नहीं होती है। इसका तृतीयक सक्रिय स्वरूप में बदलना आवश्यक होता है। अन्त में अनुवादन के द्वारा निर्मित नई पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला को कार्य करने के बजाय इसका विघटन कर सकते हैं तथा इसकी भूमिका को बदला जा सकता है।
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