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Principles of Inheritance and Variation Class 12th ncert notes pdf।।कक्षा 12वी जीव विज्ञान अध्याय 04 वंशागति और विविधता

 कक्षा 12वी जीव विज्ञान अध्याय 04 वंशागति और विविधता

Principles of Inheritance and Variation Class 12th ncert notes pdf

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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट Subhansh classes.com पर यदि आप गूगल पर Principles of Inheritance and Variation notes pdf  सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आ गए हैं हम आपको अपनी इस पोस्ट में वंशागति और विविधता के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले है इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें यदि आपको पोस्ट पसन्द आए तो अपने दोस्तो को भी शेयर करें।


आइए जानते हैं वंशागति और विविधता के बारे में

Short introduction of principles of inheritance and Variation


आनुवंशिकी

विज्ञान की वह शाखा, जिसमें वंशानुगति एवं विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं, आनुवंशिकी कहलाती है। आनुवंशिकी का जनक ग्रेगर जॉन मेण्डल को कहा जाता है। जीवों की आकारिकी में अन्तर ही विभिन्नता कहलाती है।


वंशानुगति या आनुवंशिकता के अन्तर्गत वे लक्षण आते हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पारगमित (Transmit) होते हैं। 'आनुवंशिकी' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम डब्ल्यू. बेटसन ने सन् 1905 में किया था।


आनुवंशिकी के कुछ तकनीकी शब्द


1. जीन या कारक (Gene or Factor) जीन आनुवंशिकी की क्रियात्मक इकाई (Functional unit) है, जो किसी लक्षण की वंशागति एवं इसके प्रदर्शन के लिए उत्तरदायी होते हैं। 'जीन' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जोहन्सन (Johansen) ने किया।


2. युग्मविकल्पी (Allele) एक लक्षण के तुलनात्मक या विपर्यासी रूपों के जीन्स के जोड़े एलील (Allele) कहलाते हैं; जैसे-पुष्प का रंग (लाल एवं सफेद), तने की लम्बाई (लम्बा एवं बौना-Tt)


3. लक्षणप्रारूप एवं जीनप्रारूप (Phenotype and Genotype) लक्षणप्रारूप जीव के विभिन्न दैहिक लक्षण; जैसे-आकार, आकृति, रंग एवं स्वभाव, आदि को व्यक्त करता है। जीनप्रारूप जीव के जीन स्तर पर आनुवंशिक संगठन को व्यक्त करता है, जोकि उसमें विभिन्न दिखाई न देने वाले लक्षणों को भी निर्धारित करता है।


4. एकसंकर संकरण (Monohybrid cross), जब एक समय में केवल एक तुलनात्मक आनुवंशिक लक्षण की वंशागति का अध्ययन किया जाता है, तो इसे एकसंकर संकरण कहते हैं; जैसे-लाल पुष्प वाले पादप तथा सफेद पुष्प वाले पादप के मध्य संकरण ।


5. द्विसंकर संकरण (Dihybrid cross) जब दो तुलनात्मक आनुवंशिक लक्षणों को ध्यान में रखकर संकरण कराया जाता है, तो इसे द्विसंकर संकरण कहते हैं; जैसे-गोल व पीले बीज वाले पादप तथा हरे व झुर्रीदार बीज वाले पादप के मध्य संकरण।


6. संकर पूर्वज या प्रतीप संकरण (Back cross) F-पीढ़ी में प्राप्त सन्तानों और उनके किसी भी एक जनक के बीच होने वाले संकरण को संकर पूर्वज संकरण कहते हैं; जैसे-Tt x tt या Tt × .TT


7. परीक्षार्थ संकरण (Test cross) जब P-पीढ़ी में प्राप्त अज्ञात जीनप्रारूप वाली संतान का संकरण, उसके समयुग्मजी अप्रभावी जनक के साथ कराया जाता है, तो इसे परीक्षार्थ संकरण कहते हैं; जैसे- पीढ़ी में प्राप्त सन्तति संकर लम्बे (T) तथा शुद्ध बौने पादप (it) के मध्य संकरण। इस संकरण में बनने वाली सन्तानों में 11 का अनुपात पाया जाता है अर्थात् इसमें से 50% बौने पादप होंगे।


8. अन्योन्यता या व्युत्क्रम संकरण (Reciprocal cross) इसमें बौने तथा लम्बे पौधों को क्रमशः मादा (Pistillate) तथा नर (Staminate) पौधों के रूप में प्रयोग किया। इसके पश्चात् अन्योन्यता या व्युत्क्रम प्रसंकरण में बौने तथा लम्बे पौधों को क्रमशः नर तथा मादा पौधों के रूप में प्रयोग किया गया। मेण्डल ने पाया कि दोनों ही प्रसंकरण में F, तथा F-पीढ़ी में समान परिणाम प्राप्त होते हैं।


" मेण्डल के वंशागति के नियम


मेण्डल ने सन् 1856 में सामान्य उद्यान मटर पर अपने आनुवंशिकी के प्रयोग प्रारम्भ किए। इसके लिए इन्होंने मटर के सात जोड़ी परस्पर विपरीत लक्षणों का चुनाव किया; जैसे पादप की लम्बाई, पुष्प की स्थिति, फली का रंग, फली की प्रकृति, बीज का आकार, पुष्प का रंग तथा बीजपत्र का रंग। डच वैज्ञानिक ह्यूगो डी व्रीज, जर्मन वैज्ञानिक कार्ल कॉरेन्स तथा ऑस्ट्रियन


वैज्ञानिक वी. शरमाक ने स्वतन्त्र रूप से मेण्डल के निष्कर्षों का पुनः वर्णन किया। मेण्डल की सफलता के कारण मटर का एकवर्षीय व द्विलिंगी होना, स्व-परागण की उपस्थिति, पर-परागण की सम्भवता विपरीत या विभेदात्मक लक्षणों की उपस्थिति आदि थे।


एक जीन की वंशागति


एक जीन की वंशागति अर्थात् एक संकर संकरण के आधार पर मेण्डल ने निम्न दो नियम दिए


1. प्रभाविता का नियम जब विपरीत लक्षणों वाले शुद्ध पादपों में क्रॉस कराया जाता है, तो F₁-पीढ़ी में केवल प्रभावी लक्षण ही दृष्टिगत होते हैं तथा यह पीढ़ी

विषमयुग्मजी होती है।


 2.पृथक्करण या विसंयोजन का नियम जब F₁-पीढ़ी के संकर पादपों में स्व-परागण कराया जाता है, तो द्वितीय पीढ़ी में पैतृक लक्षण 3: 1 के निश्चित अनुपात में पृथक् हो जाते हैं। अतः प्रत्येक युग्म के विपरीत लक्षण, युग्मकों के बनते समय एक-दूसरे से पृथक् होकर अलग-अलग युग्मकों में चले जाते हैं।


दो जीनों की वंशागति


दो जीनों की वंशागति अर्थात् द्विसंकर संकरण के आधार पर मेण्डल ने निम्न नियम दिया 


स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम इस नियम के अनुसार, जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले जीवों में क्रॉस कराया जाता है, तो एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति से पूर्णतया स्वतन्त्र होता है।


नोट यदि मेण्डल द्वारा चुने गए लक्षण एक ही गुणसूत्र पर स्थित होते, तो सहलग्नता के कारण उनका स्वतन्त्र रूप से अपव्यूहन नहीं होता। अतः यह नियम प्रतिपादित न हुआ होता।


मेण्डलवाद के अपवाद


1. अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance) इसमें F₁-पीढ़ी की सन्तति में कोई भी लक्षण प्रभावी या अप्रभावी ना होकर मध्यवर्ती (Intermediate) परिणाम देता है: उदाहरण-गुलाबॉस | Mirabilis jalape) के लाल व सफेद पुष्पों के पादपों के मध्य क्रॉस कराने पर F₁ , -पीढ़ी में गुलाबी पुष्प वाले पादप उत्पन्न हुए, जब इन F₁,-पीढ़ी के पादपों का स्वनिषेचन कराया गया तो लक्षण प्रारूपी अनुपात 2:1 प्राप्त हुआ।


2. सहप्रभाविता (Codominance) इसमें दोनों ही जनकों के लक्षण पृथक रूप से फलF₁-पीढ़ी में प्रकट होते हैं उदाहरण-यदि एक लाल रंग के पशु का श्वेत रंग के पशु से क्रॉस कराया जाता है, तो F₁ - पीढ़ी में चितकबरी सन्तान उत्पन्न होती है। इसी तरह मानव में AB रुधिर वर्ग सहप्रभाविता प्रदर्शित करता है।


3. बहुप्रभाविता (Pleiotropy) इसमें एक जीन कई फीनोटाइप लक्षणों को नियन्त्रि करता है; उदाहरण-रोग दौत्र कोशिका अरक्तता की जीन Hbˢ के कारण हीमोग्लोबिन की β श्रृंखला में ग्लूटामीन अमीनो अम्ल के स्थान पर बैलीन होता है, जो मलेरिया के प्रति प्रतिरोधकता भी दर्शाता है।


4. बहुविकल्पिता (Multiple allelism) यदि किसी लक्षण का निर्धारण करने वाले तीन या तीन से अधिक जीन्स में कोई भी जीन समजात गुणसूत्रों में समान स्थान (Loci) पर उपस्थित होता है, तो इसे बहु विकल्पिता कहते हैं;


उदाहरण मनुष्य में रुधिर वर्गों की वंशागति।


5. बहुजीनी वंशागति (Polygenic inheritance) इसमें एक लक्षण एक से अधिक जीनों द्वारा नियन्त्रित होता है। गेहूँ में करनल रंग के लिए बहुजीनी वंशागति की खोज एन. एहले (1908) ने की थी। इसमें द्वित्तीय पीढ़ी में 1:4:6:4:1 का अनुपात प्राप्त होता है।


रूधिर वर्गों की वंशागति


मनुष्यों में चार प्रकार के रुधिर वर्ग पाए जाते हैं A, B, AB, O इनके 6 जीनप्रारूप सम्भव हैं। लाल रुधिराणुओं पर उपस्थित प्रतिजन एक प्रभावी जीन के द्वारा नियन्त्रित होते हैं। यदि अप्रभावी जीन उपस्थित होता है, तब लाल रुधिराणु पर कोई प्रतिजन नहीं पाए जाते तथा रुधिर वर्ग O होता है।


जीन Iᴬ प्रतिजन A तथा जीन Iᴮ प्रतिजन B का निर्माण करती है। जीन Iᴬ तथा Iᴮ सहप्रभावी हैं। अत: एक विषमयुग्मकी व्यक्ति (जिसका जीनोटाइप Iᴬ Iᴮ है) में प्रतिजान A तथा B दोनों ही पाए जाते हैं, जिस कारण उसका रुधिर वर्ग AB होता है। 


रुधिर वर्ग AB सर्वग्राही तथा 'O' सर्वदाता कहलाता है। 

नोट रुधिर वर्ग O वाली स्त्री AB रुधिर वर्ग के पुरुष के साथ विवाह करती है तो उनके पुत्र का रुधिर वर्ग A या B होगा।


वंशागति का क्रोमोसोमल (गुणसूत्रीय) सिद्धान्त

यह सिद्धान्त सटन और बोवेरी (Sutton and Boveri) ने सन् 1902 में दिया। इसका समर्थन सन् 1933 में टी. एच. मॉर्गन (TH Morganj ने किया।


इस सिद्धान्त के अनुसार,


1. मेण्डल के कारकों (जीन) का जोड़ा समजात गुणसूत्रों (Homologous chromosomes) के जोड़े पर भौतिक रूप से स्थित होता है। 


2. अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis division) की प्रक्रिया के दौरान समजात गुणसूत्रों का ही पृथक्करण तथा स्वतन्त्र अपव्यूहन होता है।


वंशागति का जीनीय वाद


टी. एच. मॉर्गन (TH Morgan) ने सन् 1910 में वंशागति का जीनी मत प्रतिपादित किया था। इस मत के अनुसार,


1. जीन्स माला के मनकों (Beads) की भाँति गुणसूत्रों पर रेखीय क्रम में लगे हुए कण होते हैं। 


2. गुणसूत्र में डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल का अणु उपस्थित होता है तथा जीन्स में भी इसी के छोटे-छोटे खण्ड होते हैं। 


3. जीन वंशागति की एक भौतिक इकाई है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होते हैं।


 4. सभी जीवों में जीन्स की संख्या, गुणसूत्रों की संख्या से कहीं अधिक होती है।


सहलग्नता


कुछ विशिष्ट जीनों का एकसाथ वंशागत होना तथा सन्तानों द्वारा पैतृक संयोजनों को प्रतिनिर्धारित किए रखने की क्रिया सहलग्नता कहलाती है। सहलग्नता की खोज बेटसन तथा पुन्नेट (1906) ने लेथाइरस ऑडोरेटस में की थी।


पूर्ण सहलग्नता (Complete inkage) में पैतृक संयोजन दो या तीन पीढ़ी में लगातार प्राप्त होते हैं, जबकि अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete linkage) में सहलग्न जीन, जीन विनिमय (Crossing over) के कारण अलग हो जाते हैं और 50% से कम पुनसंयोजन (Recombination) मिलते हैं; उदाहरण- ड्रोसोफिला में शरीर का रंग व पंखों का प्रकार।


नोट मॉर्गन के अनुसार, यदि एक गुणसूत्र पर स्थित होने से जीनों में सहलग्नता अधिक है, तो उनमें जीन विनिमय या पुनर्योजन कम होगा व F-पीढ़ी में लक्षणप्रारूप जनकों के अधिक समान होंगे।


जीन विनिमय


अर्द्धसूत्री विभाजन के समय समजात गुणसूत्रों वाले अबहन अर्द्धगुणसूत्रों (Non-sister chromatids) के बीच DNA के खण्डों के आदान-प्रदान को जीन विनिमय कहते हैं। यह प्रथम पूर्वावस्था की पैकीटीन उप-अवस्था में चार सूत्रीय अवस्था (Tetrad stage) में होता है।


पुनर्योजन


पुनर्योजन अर्द्धसूत्री विभाजन का वह प्रक्रम है, जो जीन्स के नए सम्मिश्रणों द्वारा पैतृक उत्पाद से भिन्न नया अगुणित उत्पाद उत्पन्न करता है। पुनर्योजन के उत्पाद को पुनर्योगंज (Recombinant ) कहते हैं।


लिंग निर्धारण


जन्म से पूर्व किसी जीव के लिंग का स्थायीकरण लिंग निर्धारण कहलाता है।


. एच.जे. मुलर ने बताया कि ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण गुणसूत्र व ऑटोसोम की आपेक्षिक संख्या पर निर्भर करता है। इस आधार पर ब्रिज ने लिंग निर्धारण

का जीनीय सन्तुलन सिद्धान्त प्रस्तुत किया।


 • अधिकांश कीटों, ड्रोसोफिला मानव तथा कुछ पादपों, जैसे-लाइकनिस, कोक्सिनिया, आदि में XXX-XY प्रकार का नर विषमयुग्मकी लिंग निर्धारण पाया जाता है। इसे लायगोयस प्रक्रिया भी कहते हैं। Y गुणसूत्र पर होलेण्ड्रिक जीन पाए जाते हैं।


• कुछ कीटों, जैसे- कॉकरोच, टिड्डा तथा पादप जैसे- डायोस्कोरिया में XX-XO प्रकार का नर विषमयुग्मकी लिंग निर्धारण पाया जाता है।


.कुछ पक्षियों, सरीसृपों, मछलियों तथा पादपों; जैसे-फ्रेगेरिया में ZZ-ZW प्रकार का मादा विषमयुग्मकी लिंग निर्धारण पाया जाता है। कुछ कीटों, जैसे मॉथ में ZZZ0 प्रकार का मादा विषमयुग्मकी लिंग निर्धारण पाया जाता है।


.मधुमक्खी में लिंग निर्धारण गुणसूत्र समुच्चय की संख्या द्वारा होता है। एक शुक्राणु व अण्ड के युग्मन से मादा विकसित होती है, जबकि अगुणित ड्रॉन (नर) (Drone-male) अनिषेकजनन द्वारा विकसित होते हैं।


मानव में लिंग निर्धारण


युग्मकजनन में, अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है। स्त्री में सभी युग्मक (अण्ड) 22 + X गुणसूत्र वाले तथा पुरुष में युग्मक (शुक्राणु) दो प्रकार के 22 + X तथा 22 + Y गुणसूत्रों वाले होते हैं। निषेचन के समय X-गुणसूत्र वाले शुक्राणु के अण्ड से मिलनेपर पुत्री व Y गुणसूत्र वाले शुक्राणु के अण्ड से मिलने पर पुत्र उत्पन्न होता है।


नोट • सन्तान को पिता से 50% जीन्स व माता से भी 50% जीन्स प्राप्त होते हैं। 


एकयुग्मजी यमज एक निषेचित अण्डाणु से विकसित होते हैं। ये समान लिंगी होते हैं एवं इनकी जीनी संरचना समान होती है। 


द्वियुग्मजी यमज इनका विकास अलग-अलग निषेचित अण्डाणु से होता है। ये पृथकलिंगी हो सकते हैं तथा इनकी जीन संरचना भिन्न होती है।


लिंग सहलग्न वंशागति


लिंग सहलग्न लक्षणों या विशेषकों का जनक से सन्तानों में संचरण, लिंग सहलग्न वंशागति कहलाता है। यदि आनुवंशिक रोग एक बाह्य रूप से सामान्य, किन्तु वाहक स्त्री से केवल कुछ नर सन्तति में संचरित होता है, तो वह लिंग सहलग्न अप्रभावी रोग कहलाता है। मानव में इसके उदाहरण निम्न प्रकार से हैं


1. वर्णान्धता (Colour blindness) इस रोग से ग्रसित व्यक्ति लाल व हरे रंग का भेद नहीं कर पाता। इसका जीन X-गुणसूत्र पर उपस्थित होता है और अप्रभावी होता है और मादा इसकी वाहक होती है।


इस रोग से ग्रसित व्यक्तियों को रेलवे ड्राइवर नहीं बनाया जाता है, क्योंकि रेलवे सिग्नल ना पहचान पाने के कारण दुर्घटना की सम्भावना रहती है।


2. हीमोफीलिया (Haemophilia) इस रोग से पीड़ित व्यक्ति में चोट लगने पर रुधिर का थक्का नहीं बनता या बहुत देर से बनता है और लगातार रुधिर बहने से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। यह रोग अप्रभावी X-सहलग्न जीन के कारण होता है।


उत्परिवर्तन


ह्यूगो डी ब्रीज के अनुसार किसी जाति के पादपों या जन्तुओं में जो आकस्मिक विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं, उन्हें उत्परिवर्तन कहते हैं।


 उत्परिवर्तन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं


1. गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन


(i) गुणसूत्रीय संख्या में परिवर्तन (Change in Number of the Chromosomes) गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन निम्नलिखित दो प्रकार से होता है


(a) बहुगुणिता (Polyploidy) इस प्रकार के उत्परिवर्तन में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित संख्या (Haploid number) की 3, 4, 5 या 6 गुनी तक होती है। बहुगुणिता के उदाहरण जन्तुओं की अपेक्षा पादपों में अधिक देखे गए हैं। उदाहरण- गेहूँ की द्विगुणित ऐन्कॉर्न (Einkorn) 14 गुणसूत्र, चतुर्गुणित इम्मर (Emmer) 28 गुणसूत्र ।


(b) विषमगुणिता (Heteroploidy) एक गुणसूत्रीय समुच्चय (Set) में से एक या अधिक गुणसूत्रों की संख्या में अधिकता या कमी का हो जाना, विषमगुणिता कहलाती है। टर्नर सिन्ड्रोम (Turner's syndrome) एवं क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम (Klinefelter's syndrome) X गुणसूत्रों की विषमगुणिता के उदाहरण हैं।


(ii) गुणसूत्रों की संरचना में परिवर्तन (Change in Structure of Chromosomes) इन उत्परिवर्तनों के कारण गुणसूत्रों की संरचना में रूपान्तरण हो जाता है। यह दो प्रकार का होता है


(a) अन्तः गुणसूत्रीय रूपान्तरण (Intrachromosomal modification); जैसे-विलोपन (Deletion) तथा उत्क्रमण (Inversion) I


(b) अन्तरागुणसूत्रीय रूपान्तरण (Interchromosomal modification); जैसे- द्विआवृत्ति (Duplication) तथा स्थानान्तरण (Translocation) |


2. जीन या बिन्दु उत्परिवर्तन

इस उत्परिवर्तन में जीन की रासायनिक संरचना परिवर्तित हो जाती है। ये उत्परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं


(i) प्रतिस्थापन उत्परिवर्तन ( Substitution mutation) इस उत्परिवर्तन में DNA अणु में स्थित एक या अधिक नाइट्रोजनी क्षार (Nitrogenous bases) किसी दूसरे नाइट्रोजनी क्षार से विस्थापित हो जाता है। उदाहरण-मानव में हँसियाकार रुधिराणु रक्ताल्पता (Sickle-cell anaemia) नामक रोग।


(ii) फ्रेम-शिफ्ट उत्परिवर्तन (Frame-shift mutation) इस प्रकार के उत्परिवर्तन में DNA अणु में कुछ न्यूक्लियोटाइड की कमी हो जाती है या कुछ का जुड़ाव हो जाता है, जिसके फलस्वरूप आनुवंशिक सूचना परिवर्तित हो जाती है।


वंशावली विश्लेषण


ऐसा चार्ट, जिसके अन्तर्गत लक्षणों की आनुवंशिकता का चित्रण किया जाता है, वंशावली चार्ट कहलाता है। इस चार्ट की सहायता से किसी सन्तति में, किसी विशेषक की उपस्थिति की सम्भावनाओं को ज्ञात किया जा सकता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रम वंशावली विश्लेषण कहलाता है।


मानवों में मेण्डेलियन विकार


ये विकार दो प्रकार के होते हैं


1. लिंग गुणसूत्रों में जीन उत्परिवर्तन के कारण इसके निम्न उदाहरण हैं


(i) दाँत्र कोशिका अरक्तता (Sickle-cell anaemia) यह एकल जीन उत्परिवर्तन के कारण होता है। इसमें हीमोग्लोबिन की β श्रृंखला में छठें अमीनो अम्ल,ग्लूटामिक अम्ल का स्थान वैलीन ले लेता है। इसमें लाल रुधिराणु दाँत्र आकार की हो जाती है और ऑक्सीजन का परिवहन नहीं कर पाती हैं।


(ii)फिनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria) इसमें उत्परिवर्तन के कारण फिनाइल एलेनीन को टायरोसीन में अपचयित करने वाले एन्जाइम फिनाइल एलेनीन हाइड्रोक्सीलेज का संश्लेषण नहीं हो पाता, जिससे फिनाइल एलेनीन का स्तर बढ़ जाता है, जो मस्तिष्क विकास में बाधा पहुँचाता है।


(ii) थैलेसीमिया (Thalassemia) यह अप्रभावी उत्परिवर्तित जीन के कारण होता है। इससे पीड़ित व्यक्ति हीमोग्लोबिन का संश्लेषण नहीं कर पाता है।


2. गुणसूत्रीय या क्रोमोसोम विकार ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं


(i) एडवर्ड सिन्ड्रोम यह 18 वें ऑटोसोम गुणसूत्र की त्रिगुणिता (Trisomy) के कारण होता है। इससे प्रभावित बच्चों में मानसिक व शारीरिक वृद्धि कम होती है।


(ii) टर्नर सिन्ड्रोम यह रोग एक लिंग गुणसूत्र के कम होने के कारण होता है। इससे प्रभावित मादा में 45(44+XO या AAXO) गुणसूत्र होते हैं। इनमें अण्डाशय कम विकसित, लम्बाई कम तथा गर्दन जालयुक्त होती है।


(ii) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम इससे पीड़ित पुरुषों में एक या अधिक X-गुणसूत्र बढ़ जाते हैं; जैसे- 44+XXY, 44+XXXY, आदि। इनमें वृषण अल्पविकसित, स्तन के समान रचनाओं की उपस्थिति, चेहरे तथा शरीर पर बालों की अल्पवृद्धि, शुक्राणु का न बनना (अर्थात् बन्ध्यता), मस्तिष्क का कम विकसित होना, आदि लक्षण पाए जाते हैं।


(iv) डाउन सिन्ड्रोम यह रोग 21वें ऑटोसोम गुणसूत्र की त्रिगुणता (Trisomy) से होता है। इस प्रकार इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति में गुणसूत्रों की संख्या 46 के स्थान पर 47 होती है।


इस रोग से ग्रसित व्यक्ति में चेहरा मंगोलियन लोगों की भाँति, माथा चौड़ा, गर्दन एवं अंगुलियाँ छोटी तथा फूली हुई, कद छोटा, मन्द बुद्धि या विमन्दित, खुरदरी त्वचा, मोटी जीभ, उभरा हुआ निचला होठ, आदि लक्षण सामान्यतया पाए जाते हैं। इस कारण इस रोग को मंगोलियन जड़ता (Mongolian Idiocy) भी कहते हैं।


[ अभी तक हमने जाना Principles of Inheritance and Variation के बारे में अब आपको इस अध्याय से बोर्ड परीक्षा में पूछे जाने वाले सभी प्रश्न उत्तर के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें। ]


      { बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक }


प्रश्न 1. आनुवंशिकी जीव विज्ञान की एक शाखा है, जिसके अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है।


(a) आनुवंशिकी एवं विविधता का


(b) आनुवंशिकता एवं उत्परिवर्तन का 


(c) समानताओं और विषमताओं का


(d) उद्विकास एवं संरक्षण का


उत्तर (a) आनुवंशिकी एवं विविधता का


प्रश्न 2. आनुवंशिकी का जनक किसे कहा जाता है?


(a) ह्यूगो डी ब्रीज


(b) कार्ल कॉरेन्स


(c) ग्रेगर जॉन मेण्डल


(d) एरिक वॉन शेरमाक


उत्तर (c) ग्रेगर जॉन मेण्डल


प्रश्न 3. वंशागति की (आनुवंशिक) इकाई है


(a) गुणसूत्र


(b) जीनप्रारूप


(d) जीन


(c) गॉल्जीकाय


उत्तर (d) जीन


प्रश्न 4. मेण्डल के एक गुण प्रसंकरण में कौन-सी पीढ़ी हमेशा विषमयुग्मजी होती है?


(a) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी


(b) द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी


(c) तृतीय सन्तानीय पीढ़ी


(d) जनक पीढ़ी


उत्तर (a) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी


प्रश्न 5. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन प्रभाविता नियम के लिए सही है? 


(a) कारक जोड़े में होते हैं।


(b) लक्षणों का निर्धारण कारक नामक विविक्त (डिस्क्रीट) इकाइयों द्वारा होता है


 (c) यदि कारक जोड़ो के दो सदस्य असमान हों, तो इनमें से एक कारक दूसरे कारक पर प्रभावी होता है


(d) उपरोक्त सभी


 उत्तर (d) उपरोक्त सभी कथन


प्रश्न 6. मेण्डल के एक संकर संकरण में F₂पीढ़ी में लक्षण प्रारूप अनुपात प्राप्त हुआ


(a) 3:1 


(b) 1:3


(c) 1:2:1


(d) 1:1:2

उत्तर (a) 3:1


प्रश्न 7. यदि एक विषमयुग्मजी लम्बे पादप का एक समयुग्मजी बौने पादप के साथ क्रॉस कराया जाए, तो बौने पादपों का प्रतिशत होगा 


(a) 50%


 (b) 25% 


(c) 75%


(d) 10%


उत्तर (a) बौने पादप 50% प्राप्त होगे


प्रश्न 8. प्रभाविता एवं पृथक्करण के नियमों का प्रतिपादन किसने किया था?


(a) डार्विन


(b) लैमार्क


(c) डी ब्रीज


(d) मेण्डल


उत्तर (d) प्रभाविता एवं पृथक्करण के नियमों का प्रतिपादन मेण्डल ने किया।


प्रश्न 9. द्विसंकर टेस्ट क्रॉस का अनुपात है


(a) 3:1 


(b) 1:1


(c) 9:3:3:1


(d) 1:1:1:1


उत्तर (c) 9:3: 3:1


प्रश्न 10. प्रथम सन्तानीय पीढ़ी की सन्तान का दोनों जनकों में से किसी एक के साथ किया गया संकरण है 


(a) परीक्षण संकरण (टेस्ट क्रॉस)


(b) संकर पूर्वज या प्रतीत संकरण (बैक क्रॉस)


(c) अन्योन्यता संकरण (रेसीप्रोकल क्रॉस)


(d) एक संकर संकरण (मोनोहाइब्रिड क्रॉस)


उत्तर (b) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी की सन्तान को दोनों जनकों में से किसी एक के साथ किया गया संकरण संकर पूर्वज संकरण कहलाता है।


प्रश्न 11. गुलाबी पुष्प वाले गुलाबॉस में स्वनिषेचन से प्राप्त प्रारूपी अनुपात होगा


(a) 1:2:1


 (b)3:1


(c) 1:1:1:1


(d) 2:1


उत्तर (a) 1: 2:1 


प्रश्न 12. व्यक्ति जिसका जीनोटाइप IᴬIᴮहै, AB रुधिर वर्ग प्रदर्शित करता है। 

यह किसके कारण है?


 (a) प्लियोट्रॉपी


(b) सहप्रभाविता


(c) पृथक्करण


(d) अपूर्ण प्रभाविता


उत्तर (b) सहप्रभाविता


प्रश्न 13. मानव में ABO रुधिर वर्गों के कितने जीनोटाइप सम्भव है


(a) 2


(b) 4 


(c) 6 


(d) 8


उत्तर (c) 6


प्रश्न 14.रुधिर वर्ग- O वाली स्त्री AB रुधिर वर्ग के पुरुष के साथ विवाह करती है,

उनके पुत्र का रुधिर वर्ग कौन-सा हो सकता है?


(a) A रुधिर वर्ग


(b) B रुधिर वर्ग


(c) A या B रुधिर वर्ग


(d) AB रुधिर वर्ग


उत्तर (c) A या B रुधिर वर्ग हो सकता है।


प्रश्न 15. सन्तान को पिता से कितने जीन्स प्राप्त होते हैं?


 (a) 25%


 (b) 50

 

(c) 75%


(d) 25-50% 


उत्तर (b) प्रत्येक सन्तान के 50% जीन्स माता से तथा 50% जीन्स पिता से प्राप्त होते हैं। 


प्रश्न 16.होलेण्ड्रिक जीन किस क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं? 


 (a) X क्रोमोसोम


(b) Y क्रोमोसोम 


(c) XY क्रोमोसोम


(d) ऑटोसोम


उत्तर (b) Y क्रोमोसोम


प्रश्न 17. मनुष्य में सन्तान का लिंग निर्धारण होता है  


(a) माँ के लिंग गुणसूत्र से


(b) अण्डाणु के भाप से


(c) शुक्राणु के माप से 


(d) पिता के लिंग गुणसूत्र से 


उत्तर (d) मनुष्य में सन्तान का लिंग निर्धारण पिता के लिंग गुणसूत्र से होता है।


प्रश्न 18.कीटों के कुछ टेक्सॉन में 17 क्रोमोसोम व कुछ अन्य में 18 क्रोमोसोम होते हैं। 17 व 18 क्रोमोसोम वाले यह जीव होते हैं


(a) क्रमश: नर व मादा


(b) क्रमश: मादा व नर


 (c) सभी नर


(d) सभी मादा 


उत्तर (a) 17 व 18 क्रोमोसोम वाले यह जीव क्रमशः नर व मादा होते हैं। 


प्रश्न 19.अगर एक आनुवंशिक रोग एक बाह्य रूप से सामान्य किन्तु वाहक स्त्री से केवल कुछ नर सन्तति में संचरित होता है, रोग है


(a) ऑटोसोमल प्रभावी 


(b) ऑटोसोमल अप्रभावी


(c) लिंग सहलग्न प्रभावी


(d) लिंग सहलग्न अप्रभावी


उत्तर (d) लिंग सहलग्न अप्रभावी


प्रश्न 20. किस कारण से वर्णान्धता का विकास होता है?


(a) अधिक सुरापान से


(b) आनुवंशिकी से


(c) विटामिन-A की कमी से


 (d) अतिसक्रिय एड्रीनल (अधिवृक्क) ग्रन्थि से


उत्तर (b) आनुवंशिकी से


प्रश्न 21. टर्नर सिन्ड्रोम के लिए निम्न में से कौन-सा संकेत सही है?


 (a) AAXO


 (b) AAXYY


(c) AAXXY


(d) AAXXX


उत्तर (a) AAXO


प्रश्न 22. कौन-सा आनुवंशिक विकार 21 वें क्रोमोसोम की त्रिसूत्रता के कारण है?


(a) क्लाइनफेल्टर सिण्ड्रोम


(b) टर्नर सिण्ड्रोम


(c) डाउन सिण्ड्रोम


 (d) थैलेसीमिया


उत्तर (c) डाउन सिण्ड्रोम


प्रश्न 23. मंगोली जड़ता किसके कारण होती है?


(a) लिंग गुणसूत्रों की एकल सूत्रता


(b) 21वीं जोड़ी के अलिंग सूत्रों की एकल सूत्रता


 (c) लिंग गुणसूत्रों की एकाधिसूत्रता


(d) 21वीं जोड़ी के अलिंग सूत्रों की एकाधिसूत्रता


 उत्तर (d) 21वीं जोड़ी के अलिंग सूत्रों की एकाधिसूत्रता


{ अभी तक हमने जो भी प्रश्न पढ़े वो सभी बहुविकल्पीय प्रश्न थे,अब आगे जो भी प्रश्न आपको पढ़ाए जाएंगे वो सभी लिखित प्रश्न उत्तर होगे।

लिखित प्रश्नों में सबसे पहले आपको 1 –1 नम्बर के प्रश्न अति लघु उत्तरीय प्रश्न बताएं जाएंगे इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।}


Principles of Inheritance and Variation

         { अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक }


प्रश्न 1. आनुवंशिकता एवं विभिन्नता को एक-एक वाक्य में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – जीवों की आकारिकीय लक्षणों में अन्तर ही विभिन्नता (Variation) कहलाती है। आनुवंशिक लक्षणों के जनकों से सन्तति में पहुंचने को आनुवंशिकता कहते हैं।


प्रश्न 2. वंशागति या आनुवंशिकता (Heredity) तथा आनुवंशिकी (Genetics) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।


उत्तर – आनुवंशिकता तथा आनुवंशिकी में निम्नलिखित अन्तर है


आनुवंशिकता –जीवों के वे सभी लक्षण, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं, आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं तथा इनके स्थानान्तरण की प्रक्रिया को आनुवंशिकता कहते हैं।


आनुवंशिकी – जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें वंशागति एवं जीवों में विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है आनुवंशिकी कहलाती है।



प्रश्न 3. जीन की परिभाषा लिखिए। ये कहाँ पाई जाती हैं? 

उत्तर – जीन (Gene) या कारक (Factor) जीन गुणसूत्र पर स्थित एक रचना है,जो किसी आनुवंशिक गुण को पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानान्तरित करती है। यह वंशागति की इकाई है। जीन शब्द का प्रतिपादन जॉहनसन ने किया था।


प्रश्न 4. एलील क्या हैं?

उत्तरयुग्मविकल्पी (Allele) एक लक्षण के तुलनात्मक रूपों के जीन्स एलील (Allele) कहलाते हैं अर्थात् एक ही जीन के दो या अधिक विकल्प; जैसे- पुष्प का रंग (लाल एवं सफेद), तने की लम्बाई (लम्बा एवं बौना-Tt)।


प्रश्न 5. संकर पूर्वज संकरण (बैक क्रॉस) से क्या तात्पर्य है? अथवा परीक्षार्थ संकरण (टेस्ट क्रॉस) किसे कहते हैं?

अथवा संकर पूर्वज संकरण एवं परीक्षण संकरण में अन्तर बताओं ।


उत्तर (i) प्रतीप संकरण या संकर पूर्वज संकरण (Back cross) F₁ पीढ़ी में प्राप्त विषमयुग्मजी संकर का इसके समयुग्मजी जनक से क्रॉस, प्रतीप संकरण कहलाता है। इसमें संकरण शुद्ध जनक से कराते हैं।


(ii) परीक्षार्थ संकरण (Test cross) F₁ पीढ़ी में प्राप्त विषमयुग्मजी संकर का समयुग्मजी अप्रभावी जनक के साथ क्रॉस परीक्षार्थ संकरण कहलाता है। इसमें जब विषमयुग्मजी लम्बे पादप का समयुग्मजी बौने पादप के साथ क्रॉस कराया जाता है, तो बौने पादप 50% प्राप्त होते हैं। इसमें संकरण शुद्ध अप्रभावी जनक से कराते हैं। इससे जीव का जीनप्रारूप ज्ञात होता है।


प्रश्न 6. अन्योन्यता प्रसंकरण या व्युत्क्रम प्रसंकरण क्या है? इसे उपयुक्त उदाहरण सहित समझाइए |

उत्तरअन्योन्यता या व्युत्क्रम प्रसंकरण मेण्डल ने एक संकर संकरण की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए व्युत्क्रम संकरण का उपयोग किया। इसके अन्तर्गत उन्होंने बौने तने वाले पादपों के पराग कणों को लम्बे तने वाले पादपों के वर्तिकाग्रों (Stigmas) पर स्थानान्तरित करके तथा लम्बे तने वाले पादपों के पराग कणों को बौने तने वाले पादपों के वर्तिकाम्रों पर स्थानान्तरित करके इनका अध्ययन किया। मेण्डल ने देखा कि इन संकरणों के पश्चात् भी F₁, F₂, एवं F₃-पीढ़ी के पादपों में तनों की लम्बाई की वंशागति यथावत् रही। अतः मेण्डल ने पाया कि लक्षणों की वंशागति पर लैंगिकता का कोई प्रभाव नहीं होता।


प्रश्न 7. मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए कितने लक्षणों का चयन किया? किन्हीं दो लक्षणों के नाम लिखिए।


अथवा मेण्डल ने जिन लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया उनमें से चार के नाम लिखिए।


अथवा मेण्डल ने मटर के पौधे में कितने जोड़ी विपरीत लक्षणों का अध्ययन किया था?


उत्तर- मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पादप के सात जोड़ी लक्षणों का तुलनात्मक चयन किया, जैसे-


(i) बीज का रंग


(ii) बीज का आकार


(iii) पुष्प का रंग


(iv) पुष्प की स्थिति


प्रश्न 8. आप क्या सोचते हैं, यदि मेण्डल द्वारा चुने गए लक्षण एक ही गुणसूत्र पर स्थित होते, तो क्या मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम भिन्न होते?

उत्तर -यदि मेण्डल द्वारा चुने गए लक्षण एक ही गुणसूत्र पर स्थित होते, तो सहलग्नता के कारण उनका स्वतन्त्र रूप से अपव्यूहन न होता। अतः मेण्डल का वृतीय नियम स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम प्रतिपादित न हुआ होता।


प्रश्न 9. अपूर्ण प्रभाविता तथा सहप्रभाविता में जीन रूपों एवं दृश्य रूपों का अनुपात बताइए।

उत्तर -अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance) में F₁-पीढ़ी की सन्तति में कोई लक्षण प्रभावी या अप्रभावी ना होकर मध्यवर्ती (Intermediate) परिणाम देता है; उदाहरण-गुलाबॉस (Mirabilis jalapa) के लाल व सफेद पुष्पों के पादपों के मध्य क्रॉस कराने पर F₁ -पीढ़ी में गुलाबी पुष्प वाले पादप उत्पन्न हुए। जब इन F₁, -पीढ़ी के पादपों का स्वनिषेचन कराया गया तो जीव एवं लक्षण प्रारूपी अनुपात 1: 2 :1 प्राप्त हुआ। 


प्रश्न 10. सहप्रभाविता को उदाहरण सहित समझाइए |


 अथवा सहप्रभाविता क्या है? उदाहरण सहित इसकी व्याख्या कीजिए।


उत्तर – सहप्रभाविता में दोनों ही जनकों के लक्षण पृथक् रूप से F₁- पीढ़ी में प्रकट होते हैं; उदाहरण - यदि एक लाल रंग के पशु का श्वेत रंग के पशु से क्रॉस कराया जाता है, तो F₁-पीढ़ी में चितकबरी सन्तान उत्पन्न होती है।


प्रश्न 11. सर्वग्राही तथा सर्वदाता रुधिर वर्ग कौन से हैं? इनके नाम लिखिए।


अथवा रुधिर वर्ग AB तथा O में क्या अन्तर है?

अथवा किस रुधिर वर्ग का मनुष्य सर्वग्राही होता है? उत्तर – AB रुधिर वर्ग का मनुष्य सर्वग्राही और O रुधिर वर्ग का मनुष्य सर्वदाता होता है।


प्रश्न 12. रुधिर वर्ग 'O' वाली एक स्त्री का विवाह, रुधिर वर्ग 'AB' वाले पुरुष के साथ होता है। उनके बच्चों में कौन-कौन-से रुधिर वर्ग होने की सम्भावना है?

उत्तर रुधिर वर्ग 'O' वाली एक स्त्री का विवाह, रुधिर वर्ग 'AB' वाले पुरुष से होने पर उनके बच्चों का रुधिर वर्ग A या B होगा। 


प्रश्न 13. रुधिर वर्ग 'A' वाली माँ और रुधिर वर्ग 'O' वाले पिता के बच्चों में किस प्रकार का रुधिर वर्ग सम्भव होगा? 

उत्तर – रुधिर वर्ग 'A' वाली माँ और रुधिर वर्ग 'O' वाले पिता के बच्चों में रुधिर वर्ग A या O होगा।


प्रश्न 14. वंशागति का क्रोमोसोमवाद किसने दिया था?

 उत्तर – वंशागति का गुणसूत्रीय क्रोमोसोम सिद्धान्त सटन और बोवेरी (Sutton and Boveri) ने सन् 1902 में दिया।


प्रश्न 15. दो विषमयुग्मजी जनकों का कॉस नर और मादा में किया गया। मान लें, दो स्थल (Loci) सहलग्न है, तो द्विसंकर क्रॉस में F₁-पीढ़ी के लक्षणप्रारूप के लक्षणों का वितरण क्या होगा? 

 उत्तरमॉर्गन के अनुसार, यदि एक गुणसूत्र पर स्थित होने से जीनों में सहलग्नता अधिक है तो उनमें जीन विनिमय कम होगा व F₁ पीढ़ी में लक्षणप्रारूप जनकों के अधिक समान होंगे।


प्रश्न 16. अपूर्ण सहलग्नता का एक उदाहरण दीजिए।

उत्तर – ड्रोसोफिला में शरीर का रंग एवं पंखों का प्रकार। 


प्रश्न 17. XX-XY लिंग निर्धारण तन्त्र पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – इसे लायगीयस प्रक्रिया (Lygaeus method) भी कहते हैं। इसमें मादा समयुग्मको (XX) तथा नरक (XY) होता है एवं लिंग निर्धारण नर के शुक्राणु पर निर्भर करता है; उदाहरण- अधिकांश कीट, ड्रोसोफिला, मानव, आदि।


प्रश्न 18. एकयुग्मजी एवं द्वियुग्मजी यमज में अन्तर लिखिए।

उत्तर – एकयुग्मजी यमज (Monozygotic twins) ये एक निषेचित युग्मनज से विकसित होते हैं। ये समलिंगी होते हैं एवं इनकी जीन संरचना समान होती है। 


द्वियुग्मजी यमज (Dizygotic twins) इनका विकास अलग-अलग निषेचित युग्मनजों से होता है ये पृथकूलिंगी हो सकते है एवं इनकी जीन संरचना भिन्न होती है।


प्रश्न 19. लिंग सहलग्न लक्षण को परिभाषित कीजिए। मनुष्य में लिंग सहलान वंशागति के द्वारा उत्पन्न व्याधियों के नाम लिखिए।


 अथवा मनुष्य में लिंग सहलग्न वंशागति के द्वारा उत्पन्न दो व्याधियों के नाम लिखिए।


अथवा लिंग सहलग्न गुण से आप क्या समझते हैं? मानव में किन्हीं दो लिंग सहलग्न गुणों का नाम लिखिए।


अथना किन्हीं दो लिंग सहलग्न बीमारियों के नाम लिखिए।


उत्तर – प्राणियों में कुछ आनुवंशिक लक्षणों की वंशागति लिंग से सम्बन्धित होती है। अतः इनका नियमन लिंग गुणसूत्रों द्वारा होता है। ये लक्षण लिंग सहलग्न लक्षण कहलाते हैं।


वर्णान्धता एवं हीमोफीलिया मनुष्य में लिंग सहलग्न वंशागति द्वारा होने वाली व्याधियाँ हैं।


प्रश्न 20. वर्णान्धता क्या है? मनुष्य में वर्णान्धता की वंशागति का संक्षिप्त विवरण दीजिए।


अथवा वर्णान्ध व्यक्ति को रेलवे ड्राइवर क्यों नहीं बनाया जाता है? 


उत्तर – इस रोग से ग्रसित व्यक्ति लाल व हरे रंग में भेद नहीं कर पाता है।

इसका जीन X गुणसूत्र पर उपस्थित होता है व अप्रभावी होता है और मादा इसकी वाहक होती है। ऐसे व्यक्तियों को रेलवे ड्राइवर नहीं बनाया जाता है अन्यथा उचित रेलवे सिग्नल ना पहचान पाने के कारण रेल दुर्घटना की सम्भावना बनी रहती है।


प्रश्न 21 डाउन सिन्ड्रोम क्या है? इस पर टिप्पणी लिखिए। अथवा डाउन सिन्ड्रोम को मंगोलियन जड़ता क्यों कहते हैं?


 अथवा डाउन सिन्ड्रोम कायिक गुणसूत्रों के किस जोड़े में एक गुणसूत्र बढ़ने से उत्पन्न होता है?


अथवा मानव में 21वें क्रोमोसोम की त्रिसूत्रता (एक अतिरिक्त प्रति) के कारण कौन-सा विकार उत्पन्न होता है?

अथवा मंगोलियाई जड़ता क्या है? इसे किसने खोजा था? 


अथवा डाउन सिण्ड्रोम को सर्वप्रथम किसने खोजा था? इसमें किस कायिक गुणसूत्र के जोड़े में एक गुणसूत्र अधिक होता है?


उत्तरडाउन सिन्ड्रोम (Down's syndrome) को सर्वप्रथम लैगडॉन डाउन ने 1866 में खोजा था। यह रोग 21 वे जोड़ी ऑटोसोम गुणसूत्र की एक अधिक प्रति के कारण होता है, जो त्रिगुणता (Trisomy) कहलाती है। इस प्रकार इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति में गुणसूत्रों की संख्या 46 के स्थान पर 47 होती है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति में चेहरा मंगोलियन लोगों की भाँति, माथा चौड़ा, गर्दन एवं अंगुलियां छोटी तथा फूली हुई, कद छोटा, मन्द बुद्धि वा विमन्दित खुरदरी त्वचा, मोटी जीभ, उभरा हुआ निचला होंठ, आदि लक्षण सामान्यतया पाए जाते हैं। इस कारण इस रोग को मंगोलियन जड़ता (Mongolian idiocy ) भी कहते है।


प्रश्न 22. ऑटोसोमल ट्राइसोमी के दो उदाहरण दीजिए तथा इनमें गुणसूत्रों की संख्या एवं अन्य आपसी मान्यताएँ बताइए।

उत्तरएडवर्ड सिन्ड्रोम (Edward's syndrome) में 18वीं जोड़ी गुणसूत्र की और डाउन सिन्ड्रोम (Down's syndrome) में 21वीं जोड़ी गुणसूत्र की ट्राइसोमी पाई जाती है। इनमें गुणसूत्रों की संख्या 47 होती हैं। ये दोनों रोग गुणसूत्रों की एकाधिसूत्रता या ट्राइसोमी के कारण होते हैं।


प्रश्न 23, क्लाइनफेल्टर एवं टर्नर सिण्ड्रोम में गुणसूत्रों की संख्या लिखिए।

अथवा टर्नर सिण्ड्रोम में गुणसूत्र के सूत्र क्या है?


उत्तर – क्लाइनफेल्टर सिण्ड्रोम-46 से अधिक (44+XXY, 44+ XXXY, आदि)


टर्नर सिण्ड्रोम -45 (44+XO)


प्रश्न 24. एक पुरुष में लिंग गुणसूत्र समीकरण XXY है। इसको किस प्रकार का सिन्ड्रोम कहेंगे? 


अथवा क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम किसे कहते हैं? यह कैसे बनते हैं? ऐसे मनुष्य, जिनमें यह उपस्थित है, के लक्षण लिखिए।


उत्तर – यदि एक पुरुष में लिंग गुणसूत्र समीकरण XXY है, तो इसे क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम (Klinefelter's syndrome) से प्रसित कहेंगे। इससे पीड़ित पुरुषों में एक या अधिक X गुणसूत्र पाए जाते हैं; जैसे- 44+ XXY, 44+ XXXY, आदि । युग्मकजनन में अर्द्धसूत्री विभाजन में हुई त्रुटि के कारण यह विकार होता है। इस सिन्ड्रोम में वृषण अल्पविकसित, स्तन के समान रचनाओं की उपस्थिति, चेहरे तथा शरीर पर बालों की अल्पवृद्धि, शुक्राणु का न बनना, मस्तिष्क कम विकसित होना, आदि लक्षण पाए जाते हैं।


{ अभी तक हमने इस अध्याय से एक एक अंक के पूछे जाने वाले सभी प्रश्नों के बारे में जानकारी प्राप्त की है अब आगे हम 2 अंक वाले प्रश्नों को पढ़ेंगे। }


       [ लघु उत्तरीय प्रश्न-I 2 अंक ]


प्रश्न 1. समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी से क्या तात्पर्य है?

 अथवा समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

अथवा समयुग्मजी एलील जोड़ा से आप क्या समझते हैं? उदाहरण दीजिए।


उत्तरसमयुग्मजी (Homozygous) यह एक द्विगुणित अवस्था है, जिसमें दोनों एलील एकसमान होते हैं। जैसे-TT अथवा जब किसी पादप के इकाई लक्षण के लिए कारकों के युग्म (Factor pairs) या जीन्स (Genes) समान होते हैं, तो यह पादप उस लक्षण के लिए समयुग्मजी कहलाता है। समयुग्मजी उस लक्षण के लिए शुद्ध होते हैं। ऐसे पादप के सभी युग्मक एकसमान होते हैं। 


विषमयुग्मजी (Heterozygous) यह एक द्विगुणित अवस्था है, जिसमें दोनों एलील असमान होते हैं; जैसे-Tt अथवा जब किसी पादप के इकाई लक्षण के लिए कारकों के युग्म अथवा जीन्स विपरीत प्रभाव वाले होते हैं, तो यह पादप उस लक्षण के लिए विषमयुग्मजी कहलाता है। विषमयुग्मजी उस लक्षण के लिए संकर होते हैं। ऐसे पादपों से दो प्रकार के युग्मक बनते हैं।


प्रश्न 2. प्रभाविता और अप्रभाविता में विभेद कीजिए।

उत्तर –  प्रत्येक जीवधारी के लक्षण इकाईयों के रूप में होते हैं। ये लक्षण किसी विशेष जीन (Gene) के युग्म से निर्देशित होते हैं। इस युग्म का एक जीन माता से और दूसरा पिता से प्राप्त होता है।


संतति में एक जोड़ी परस्पर विरोधी जीनों के उपस्थित होने पर एक जीन दूसरे जीन की अभिव्यक्ति को रोक कर स्वयं प्रकट होता है। यह जीन प्रभावी जीन या कारक (Dominant factor) कहलाता है तथा जीन के इस गुण को प्रभाविता कहते हैं, जबकि दूसरा जीन, जो प्रदर्शित नहीं होता है, अप्रभावी जीन या कारक (Recessive factor) कहलाता है। तथा जीन के इस गुण को अप्रभाविता कहते हैं। 


प्रश्न 3. जीनप्रारूप तथा दृश्यप्रारूप पर टिप्पणी कीजिए ।

अथवा लक्षणप्रारूप एवं जीनप्रारूप में अन्तर स्पष्ट कीजिए।


अथवा लक्षणप्रारूप एवं जीनप्रारूप से आप क्या समझते हैं? 


उत्तर – जीनप्रारूप या समजीनी (Genotype) जीन संरचना के आधार पर संकरण पश्चात् प्राप्त संततियों के अनुपात को जीनप्रारूप अनुपात कहते हैं। यह जीव के आनुवंशिक संगठन को अभिव्यक्त करता है। समान जीनप्रारूप वाले जीवों का समलक्षण भी समान होता है।


दृश्यप्रारूप या लक्षणप्रारूप या समलक्षणी (Phenotype) जब तुलनात्मक लक्षणों को ध्यान में रखकर जीवधारियों के मध्य संकरण (Hybridisation) कराया जाता है, तो प्राप्त सन्तानों के बाह्य अनुपात को दृश्यप्रारूप अथवा समलक्षणी (Phenotype) कहते हैं। यह जीव के बाह्य लक्षणों; जैसे-रंग, रूप, आकार, आकृति तथा स्वभाव को अभिव्यक्त करता है।


प्रश्न 4. प्रथम सन्तति पीढ़ी एवं द्वितीय सन्तति पीढ़ी में अन्तर बताइए

उत्तर 1. प्रथम सन्तति (F₁) पीढ़ी (F₁-generation) (फिलियल प्रोजेनी) वह सन्तति, जो दो आनुवंशिक रूप से भिन्न, दो जनकों के मध्य संकरण (Cross) कराने पर उत्पन्न हो, प्रथम सन्तति पीढ़ी कहलाती है।


2. द्वितीय सन्तति (F₂) पीढ़ी (F₂-generation) वह सन्तति, जो F', -सन्तति के जीवों के मध्य स्व-संकरण (Self-cross) से उत्पन्न हो, द्वितीय सन्तति पीढ़ी कहलाती है।


प्रश्न 5. परीक्षार्थ संकर क्या है? उचित चित्र द्वारा समझाइए ।


अथवा मेण्डल के परीक्षार्थ क्रॉस को केवल चित्र द्वारा समझाइए। 


 उत्तर -(i) प्रतीप संकरण या संकर पूर्वज संकरण (Back cross) F₁ पीढ़ी में प्राप्त विषमयुग्मजी संकर का इसके समयुग्मजी जनक से क्रॉस, प्रतीप संकरण कहलाता है। इसमें संकरण शुद्ध जनक से कराते हैं।


(ii) परीक्षार्थ संकरण (Test cross) F₁ पीढ़ी में प्राप्त विषमयुग्मजी संकर का समयुग्मजी अप्रभावी जनक के साथ क्रॉस परीक्षार्थ संकरण कहलाता है। इसमें जब विषमयुग्मजी लम्बे पादप का समयुग्मजी बौने पादप के साथ क्रॉस कराया जाता है, तो बौने पादप 50% प्राप्त होते हैं। इसमें संकरण शुद्ध अप्रभावी जनक से कराते हैं। इससे जीव का जीनप्रारूप ज्ञात होता है।

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प्रश्न 6. मेण्डल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पादप चुनने से क्या लाभ हुए?

उत्तर -मेण्डल द्वारा चयन किए मटर के पादप से निम्नलिखित लाभ हैं 


1. मटर का पादप वार्षिक पादप है। अतः इसका जीवन चक्र छोटा होता है, जिससे कुछ ही समय में इसकी अनेक पीढ़ियों के अध्ययन में सुविधा मिलती है।


2. मटर के पादप में द्विलिंगी पुष्प पाए जाते हैं अर्थात् नर व मादा जननांग एक ही पुष्प पर पाए जाते हैं।


3. मटर के पादपों में अनेक तुलनात्मक लक्षण पाए जाते हैं।


4. इनमें स्व-परागण की क्रिया पाई जाती है। 


5. इनमें कृत्रिम पर- परागण द्वारा संकरण कराया जा सकता है।


6. संकरण द्वारा प्राप्त सन्तति पूर्ण उर्वर या जननक्षम होती है।


प्रश्न 7. मेण्डल के प्रभाविता के नियम को समझाइए | 

अथवा मेण्डल के प्रभाविता के नियम का आरेखीय निरूपण कीजिए 


अथवा मेण्डल के प्रभाविता के नियम का वर्णन कीजिए।


उत्तर – इस नियम का आधार, एकसंकर क्रॉस है। इसके अनुसार, जब दो समयुग्मजी (शुद्ध नस्ली) पादयों में संकरण कराया जाता है, तो F₁-पीढ़ी में प्रकट होने वाले लक्षणों को प्रभावी (Dominant) तथा F₁ -पीढ़ी में न दिखने वाले लक्षणों को अप्रभावी (Recessive) लक्षण कहते हैं; उदाहरण एकसंकर क्रॉस में जब एक बौने पादप का संकरण एक लम्बे पादप से कराया जाता है, तब F₁ पीढ़ी में सभी लम्बे पादप ही उत्पन्न होते हैं जोकि एक प्रभावी लक्षण है। 


प्रश्न 8. मटर के एक शुद्ध लम्बे लाल पुष्प वाले पादप का संकरण शुद्ध बौने व सफेद पुष्प वाले पादप से कराया गया है। F₁ -पीढ़ी तथा पीढ़ी में F₂ किस प्रकार के पादप प्राप्त होंगे ? रेखाचित्र द्वारा समझाइए।


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प्रश्न 9. पीले बीज वाले लम्बे पादपों (YyT) का संकरण हरे बीज वाले लम्बे (yyTt) पादप से करने पर निम्न में से किस प्रकार के फीनोटाइप सन्तति की आशा की जा सकती है? 

(i) लम्बे हरे

(ii) बौने हरे

मेंडल के नियम,मेंडल के वंशागति के नियम की के नियम,प्रभाविता का नियम,#प्रभाविता का नियम,मेंडल के वंशागति के नियम,युग्मकों की शुद्धता का नियम,मेंडल का द्वितीय नियम,#मेंडल के आनुवंशिकता के नियम,#मेंडल के वंशागति के नियम,पृथक्करण का नियम,मेंडल का दूसरा नियम,सह प्रभाविता का चेकर बोर्ड,वंशागति के नियम,#युग्मको की शुद्धता का नियम,मेण्डलवाद के विचलन,पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार,अनुवांशिकता का नियम,# पृथक्करण या विसंयोजन का नियम,वंशागति तथा विविधता के सिद्धान्त


प्रश्न 10. अपूर्ण प्रभाविता पर टिप्पणी कीजिए।

अथवा अपूर्ण प्रभाविता की खोज किसने की? मिराबिलिस जलापा के लाल पुष्प (RR) वाले पादप को सफेद पुष्प (VT) वाले पादप से क्रॉस कराया गया और F₁- पीढ़ी में प्राप्त पादपों को स्व-परागित कराया गया। F₂-पीढ़ी में फीनोटाइप व जीनोटाइप अनुपात क्या होगा? रेखाचित्र द्वारा समझाइए |


अथवा अपूर्ण प्रभाविता क्या है? इसे उदाहरण सहित समझाइए ।


उत्तर - अपूर्ण प्रभाविता कुछ पेड़-पादपों व जन्तुओं में F₁-पीढ़ी की सन्तति में कोई भी लक्षण पूर्णतया प्रभावी नहीं होता है अर्थात् मध्यवर्ती होता है, इसे अपूर्ण प्रभाविता कहते है।


 कॉरेन्स ने गुलाबांस (Mirabilia jalupa) में देखा कि लाल फूल वाले पादप को सफेद फूल वाले पादप से क्रॉस कराने पर गुलाबी फूल वाले पादप उत्पन्न होते हैं और ये स्व- परागण करवाने पर F₂- पीढ़ी में 1:2:1 का लक्षणप्रारूप व जीनप्रारूप अनुपात दर्शाते हैं।

अपूर्ण प्रभाविता,अपूर्ण प्रभाविता क्या है,अपूर्ण प्रभाविता का नियम,अपूर्ण प्रभाविता को उदाहरण सहित समझाइए,अपूर्ण प्रभाविता उदाहरण सहित,अपूर्ण प्रभाविता का नियम उदाहरण सहित,अपूर्ण प्रभाविता के उदाहरण,अपूर्ण प्रभाविता को समझाइए,अपूर्ण प्रभाविता का उदाहरण सहित व्याख्या,अपूर्ण प्रभाविता की व्याख्या,अपूर्ण प्रभाविता किसे कहते हैं,आसान विधि से समझे अपूर्ण प्रभाविता,अपूर्ण प्रभाविता एवं सह-प्रभाविता,अपूर्ण प्रभाविता की खोज किसने की


प्रश्न 11. एक स्त्री, जिसका रुधिर वर्ग O है, उसने एक पुरुष, जिसका रुधिर वर्ग AB है, से विवाह किया। उनकी भावी सन्तानों में कौन-कौन से रुधिर वर्ग हो सकते हैं? रेखाचित्र द्वारा समझाइए । 


उत्तर – O तथा AB रुधिर वर्ग वाले माता-पिता की सन्ताने A तथा B रुधिर वर्ग की हो सकती हैं।

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प्रश्न 12. आनुवंशिकी में टी. एच. मॉर्गन के योगदान का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।


उत्तरटी. एच. मॉर्गन (TH Morgan) ने ड्रोसोफिला मैलेनोगैस्टर (Drosophila melanogaster) पर अनेक प्रयोग किए और वंशागति का गुणसूत्रीय सिद्धान्त (Chromosomal theory of inheritance) प्रतिपादित किया। मॉर्गन ने सहलग्नला एवं लिंग सहलग्न जीन को वंशागति के अध्ययन के लिए ड्रोसोफिला में अनेक दिसंकर संकरण (Dihybrid cross) किए। उदाहरण- पीले शरीर तथा सफेद नेत्रों वाली मक्खियों का संकरण भूरे शरीर तथा लाल नेत्रों वाली मक्खियों के साथ किया।


ड्रोसोफिला पर किए गए द्विसंकर संकरण प्रयोगों से मॉर्गन को F₂- पीढ़ी में 9: 3:3: 1 अनुपात प्राप्त नहीं हुआ, जैसा कि मेण्डल ने मटर पर किए गए प्रयोगों से प्राप्त किया था। अत: मॉर्गन ने स्पष्ट किया कि एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित कुछ जीन्स साथ-साथ वंशागत होते हैं, इन्हें सहलग्न जीन कहते हैं तथा यह गुण सहलग्नता कहलाता है। 


  प्रश्न 13. लॉयन की संकल्पना क्या है? इसका महत्त्व बताइए। 


उत्तर -लॉयन संकल्पना (Lyon concept) मैरी लॉयन (Mary lyon) के अनुसार, कायिक कोशिका में जितने भी X-गुणसूत्र होते हैं, उनमें से एक X गुणसूत्र क्रियात्मक रूप में सक्रिय होता है संघनित X गुणसूत्र बार काय (Barr body) के रूप में दिखाई देते हैं। लॉयन के अनुसार, बार काय की संख्या X गुणसूत्रों की संख्या से एक कम होती है।


महत्त्व


1. वार काय का प्रयोग गर्भावस्था में सन्तान का लिंग निर्धारण करने में किया जाता है।


2. जिन व्यक्तियों में अनियमित लिंग गुणसूत्र पाए जाते हैं, उनकी जीन रचना का निर्धारण करने में भी वार काय सहायक है।


प्रश्न 14. लिंग प्रभावित, लिंग-सीमित तथा लिंग सहलग्न लक्षण पर टिप्पणी कीजिए। 

उत्तर -लिंग प्रभावित लक्षण (Sex influenced traits) इन लक्षणों के जीन सामान्य दैहिक गुणसूत्रों पर उपस्थित होते हैं, किन्तु ये लक्षण नर और मादा में अलग प्रकार से प्रकट होते हैं; जैसे-मनुष्य में गंजापन (Baldness)। 


लिंग सीमित लक्षण इन लक्षणों के जीन कायिक (Autosomes) गुणसूत्रों पर उपस्थित होते हैं, लेकिन इनका विकास केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है;

जैसे- मादा स्तनी में दुग्ध स्रावण । 


लिंग सहलग्न जीन इनके जीन लिंग गुणसूत्रों पर उपस्थित होते हैं, किन्तु ये सामान्य दैहिक लक्षणों को प्रभावित करते हैं; जैसे- वर्णान्धता।


प्रश्न 15. वर्णान्धता पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर -होरनर (Horner: 1876) ने सर्वप्रथम यह पता लगाया कि कुछ व्यक्ति लाल व हरे रंग का भेद नहीं कर पाते हैं, इसीलिए इस रोग को वर्णान्धता या लाल-हरा अन्धापन (Red-green blindness) कहते हैं। इसे प्रोटॉन दोष या डाल्टोनिज्म (Proton defect or daltonism) भी कहते हैं। जब कोई वर्णान्ध पुरुष किसी सामान्य स्त्री से विवाह करता है, तो उसके सभी पुत्र सामान्य होंगे, क्योंकि पुत्रों को X गुणसूत्र माता से तथा Y गुणसूत्र पिता से प्राप्त होता है, परन्तु सभी पुत्रियाँ वर्णान्धता के जीन की वाहक (Carrier) होती हैं, क्योंकि यह जीन पुरुष के X गुणसूत्र में स्थित है।


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इन पुत्रियों में वर्णान्धता विकसित नहीं होगी तथा ये सामान्य पुत्रों की तरह वर्ण बोध कर पाएगी, क्योंकि ये संकर है अर्थात् इन्हें पिता से एक सुप्त (अप्रभावी) जीन जबकि माता से एक प्रबल जीन प्राप्त होता है। अतः ये सुप्त जीन के वाहक का कार्य करेंगी।


प्रश्न 16. लाल-हरी वर्णान्धता की आवृत्ति पुरुषों में महिलाओं की अपेक्षा कई गुना अधिक क्यों होती है?


उत्तर -लाल-हरी वर्णान्धता (Red and Green Colour blindness) एक X लिंग सहलग्न अप्रभावी विकार है। महिलाओं में दो X क्रोमोसोम होने के कारण यह विषमयुग्मजी अवस्था में प्रकट नहीं होता है। क्योंकि सामान्य एलील प्रभावी होता है। पुरुषों में केवल एक X क्रोमोसोम पाया जाता है। अतः पुरुषों में दूसरा अर्थात् Y क्रोमोसोम इसका समजात नहीं होता, जिसके कारण यह रोग पुरुषों में अभिव्यक्त हो जाता है। स्त्रियों में रोग की अभिव्यक्ति के लिए उनका रोगकारी। जीन के लिए समयुग्मकी होना आवश्यक है। ऐसी स्थिति बहुत कम होती है। 


प्रश्न 17. एक वर्णान्धता की वाहक स्त्री का विवाह एक सामान्य पुरुष से होता है तो उनकी सन्तान में वर्णान्धता के बारे में समझाइए । 


 अथवा सामान्य दृष्टि वाले दम्पति का एक पुत्र सामान्य तथा एक वर्णान्ध है। इस दम्पत्ति की पुत्रियों में सामान्य दृष्टि का क्या अनुपात होगा?


उत्तर -जब कोई सामान्य पुरुष किसी ऐसी स्त्री से विवाह करता है, जो वर्णान्धता के जीन की वाहक होती है, तो इनके 50% पुत्र वर्णान्ध तथा 50% पुत्र सामान्य होते हैं। इसी प्रकार 50% पुत्रियाँ इस रोग के जीन की वाहक होती हैं और शेष 50% पुत्रियाँ सामान्य होती हैं।

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प्रश्न 18. कोई भी बच्चा वर्णान्ध पैदा नहीं हुआ, जबकि उनके पिता वर्णान्ध थे। कारण सहित समझाइए


उत्तर - जब एक सामान्य स्त्री का विवाह एक वर्णान्ध पुरुष के साथ किया जाता है, तो इन दोनों से उत्पन्न होने वाली सभी पुत्रियाँ वर्णान्धता की वाहक होंगी। अतः इनमें वर्णान्धता (Colour blindness) के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं, जबकि सभी पुत्र सामान्य होंगे। इसे निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है

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प्रश्न 19. कुछ मनुष्यों में चोट लगने के बाद खून लगातार बहता रहता है, क्यों? कारण सहित स्पष्ट कीजिए। अथवा हीमोफीलिया को ब्लीडर रोग क्यों कहते हैं?


उत्तर - चोट लगने के बाद खून का लगातार बहते रहना हीमोफीलिया रोग के कारण होता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति में चोट लगने पर रुधिर का थक्का नहीं बनता या बहुत देर से बनता है और लगातार रुधिर बहने से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। इसका कारण रुधिर में रुधिर स्कन्दन कारक - VIII का अभाव होता है। यह एक X- लिंग सहलग्न अप्रभावी आनुवंशिक विकार है।


प्रश्न 20 हीमोफीलिया से ग्रसित एक पुरुष का विवाह एक सामान्य स्त्री से करा दिया गया। उसकी सन्तानों में इस रोग की वंशागति को रेखाचित्र की सहायता से समझाइए ।


उत्तर- हीमोफिलिक पुरुष तथा सामान्य स्त्री द्वारा हीमोफीलिया की वंशागति किसी हीमोफिलिक पुरुष द्वारा किसी सामान्य स्त्री से विवाह करने पर उनके सभी पुत्र सामान्य होंगे, किन्तु सभी पुत्रियाँ इस रोग की वाहक होंगी।

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प्रश्न 21. उत्परिवर्तन क्या है? स्पष्ट कीजिए।

अथवा उत्परिवर्तन को परिभाषित कीजिए।

अथवा गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? 


उत्तर -किसी जीव के जीनों की संरचना तथा व्यवस्था में उत्पन्न आकस्मिक वंशागत परिवर्तन को उत्परिवर्तन कहा जाता है। इन उत्परिवर्तनों के कारण ही सन्ततियाँ अपने जनकों से भिन्न हो जाती हैं। ये जैव विकास में सीधी भूमिका निभाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं।


1. गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन इसमें गुणसूत्रों में स्थित जीन्स की संख्या में या उनके व्यवस्था क्रम में बदलाव आ जाता है। 


2. जीन या बिन्दु उत्परिवर्तन इसमें जीन की रासायनिक संरचना परिवर्तित हो जाती है।


[ अभी तक हमने 2 अंकीय प्रश्नों को पढ़ा है अब हम लघु उत्तरीय प्रश्न-II 3 अंक के प्रश्नों को पढ़ेंगे इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें यदि आपको पोस्ट पसन्द आ रही हो तो अपने दोस्तो को भी शेयर करें।]


      { लघु उत्तरीय प्रश्न-II 3 अंक }


प्रश्न 1. मेण्डल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 


उत्तरमेण्डल का जन्म ऑस्ट्रिया (Austria) के ब्रुन (Brunn) शहर के छोटे से गाँव सिलीसिया में 22 जुलाई, 1822 में हुआ था। माध्यमिक शिक्षा लेने के पश्चात् सन् 1847 में वे ब्रुन शहर के एक चर्च में पादरी नियुक्त हुए। मेण्डल ने वहीं मटर (Pisum sativum) के पौधे पर अपने संकरण (Hybridisation) के प्रयोग किए। उन्होंने सन् 1857 से इस पौधे में सात विपर्यासी (विपरीत) लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया। लगातार आठ वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद सन् 1865 में प्राप्त सिद्धान्त एवं निष्कर्षो को उन्होंने ब्रुन की 'नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी' (Natural history society) की सभा में रखा।


इन सिद्धान्तों तथा निष्कर्षो को सन् 1866 में पादप संकरण के प्रयोग (Experiments of plant hybridisation) के नाम से प्रकाशित किया गया, परन्तु उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों पर अनेक वर्षों तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। सन् 1884 में उनकी मृत्यु हो गई।


सन् 1900 में हॉलैण्ड के वैज्ञानिक ह्यूगो डी ब्रीज (Hugo de Vries), जर्मनी के कार्ल कॉरेन्स (Cari Correns) तथा ऑस्ट्रिया के शैरमाक (Tachermak) ने अपनी खोज के द्वारा मेण्डल के नियमों की पुष्टि की। उन्होंने मेण्डल के प्रयोगों से अनेक निष्कर्ष निकाले, जिनके आधार पर मेण्डल के सिद्धान्तों को नियमों का रूप दिया। इन्हीं सिद्धान्तों एवं निष्कर्षो की खोज के आधार पर ही मेण्डल को आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है। 


प्रश्न 2. एक संकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए प्रभाविता नियम की व्याख्या कीजिए।


अथवा एक संकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए प्रभाविता नियम एवं विसंयोजन नियम की व्याख्या कीजिए। 


अथवा मेण्डल के पृथक्करण नियम का रेखाचित्रों के माध्यम से वर्णन कीजिए।


अथवा मेण्डल के पृथक्करण के नियम को उदाहरण देकर समझाइए | 


उत्तरप्रभाविता का नियम इस नियम के अनुसार, जब परस्पर विपर्यासी (विपरीत) लक्षण वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो F पीढ़ी की सन्तानों में जो लक्षण प्रदर्शित होता है, उसे प्रभावी लक्षण कहते हैं तथा जो लक्षण इस पीढ़ी की सन्तानों में प्रदर्शित नहीं होता है, अप्रभावी लक्षण कहलाता है। इस नियम को मेण्डल के एकसंकर संकरण प्रयोग द्वारा समझाया जा सकता है।


 एकसंकर संकरण द्वारा प्रभाविता के नियम की पुष्टि


किसी जीव के मात्र एक तुलनात्मक आनुवंशिक लक्षण पर ध्यान केन्द्रित करके, जो संकरण कराया जाता है, उसे एकसंकर संकरण (Monobybrid cross) कहते हैं उदाहरण- मेण्डल ने मटर के पौधे की लम्बाई पर ध्यान केन्द्रित करके अपने संकरण प्रयोग किए। उन्होंने पाया कि, जब शुद्ध लम्बे पौधे (TT) का शुद्ध बौने पौधे (tt) के साथ संकरण कराया जाता है, तो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F₁) में सदैव लम्बे पौधे प्राप्त होते हैं। साथ ही इन प्रथम पीढ़ी के लम्बे पौधों में स्व-परागण कराके उत्पन्न बीजों को जब पुनः बोया गया, तो द्वितीय सन्तानीय पीड़ी (F₂) में लम्बे व बौने दोनों प्रकार के पौधे मिलें।


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ऊपर दिए गए रेखाचित्र से यह स्पष्ट है, कि लम्बे और बौने पौधों में से प्रथम सन्तानीय पीड़ी (F₁) में सिर्फ लम्बे पौधे ही देखे गए अर्थात् मटर के पौधों में लम्बापन, उनके बौनेपन पर प्रभावी है, जोकि मेण्डल के प्रभाविता के नियम की पुष्टि करता है।


प्रश्न 3. सहप्रभाविता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। अथवा सहप्रभाविता को उदाहरण सहित समझाइए 

उत्तर -सहप्रभाविता (Codominance) इसमें दोनों ही जनकों के लक्षण पृथक् रूप से F₁-पीढ़ी में प्रकट होते हैं। जनकों के लक्षण सहप्रभावी युग्मविकल्पी कहलाते हैं, उदाहरण-यदि एक लाल रंग के पशु का श्वेत रंग के पशु से क्रॉस कराया जाता है, तो F₁ पीढ़ी में चितकबरी सन्तान उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 4. बहुप्रभावी जीन्स घातक जीन्स क्यों कहलाते हैं? एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।


अथवा बहुजीनी वंशागति क्या है? इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए । 


उत्तर -कुछ जीन्स एक से अधिक गुणों को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं, ऐसे जीन्स बहुप्रभावी जीन्स कहलाते हैं। जीवों में कुछ जीन्स ऐसे भी होते हैं, जो उनके विशेष लक्षणों को तो प्रभावित करते ही हैं, साथ ही ये जीन्स उनके जीवन-चक्र की किसी-न-किसी अवस्था में घातक भी होते हैं। इन्हें घातक जीन कहते हैं।

उदाहरण-फ्रांसिसी वैज्ञानिक एल. क्यूनॉट (L Cuenot; 1905) ने पता लगाया कि घरेलू चूहे (Mus musculus) में बालों का पीला रंग (Y), भूरे (Agouti) रंग (y) पर प्रभावी होता है।


इनके संकरण कराने पर उन्हें F₁-पीढ़ी, में दोनों प्रकार के चूहे 1:1 के अनुपात में मिले। इससे उन्हें आशंका हुई कि चूहों की आबादी में पीले बालों वाले शुद्ध नस्ली अर्थात् समयुग्मजी (YY) चूहे नहीं होते हैं। जब उन्होंने दो पीले बालों वाले चूहों में संकरण कराया, तो हर बार पीले एवं भूरे बालों वाले चूहे 2:1 के अनुपात में उत्पन्न हुए, जबकि मेण्डल पद्धति के अनुसार, इसका अनुपात 3 : 1 होना चाहिए था। इस संकरण की मादाओं की जाँच करने पर पता चला कि प्रभावी समयुग्मजी (YY) भ्रूण भ्रूणीय विकास की अन्तिम अवस्था में ही मृत हो जाते हैं अर्थात् यह सिद्ध हुआ कि जीन Y के दो प्रभाव हैं। विषमयुग्मजी अवस्था (Yy) में यह पीले बालों के रूप में प्रदर्शित होता है, जबकि समयुग्मजी अवस्था (YY) में यह मृत्युकारक या घातक (Lethal ) होता है।


प्रश्न 5. मनुष्य में कौन-कौन से रुधिर वर्ग पाए जाते हैं? रुधिर वर्ग की वंशागति किस प्रकार होती है


अथवा मानव रुधिर वर्ग से आप क्या समझते हैं? इसके संधान का क्या महत्त्व है? रुधिर वर्ग की वंशागति को चित्र द्वारा समझाइए ।

अथवा रुधिर वर्ग पर टिप्पणी कीजिए।


अथवा मानव में ABO रुधिर वर्ग को वंशागति का वर्णन कीजिए। 

उत्तर -मानव रुधिर वर्ग का महत्त्व रुधिर आधान में रुधिर वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान है। जब किसी रोगी को रुधिर दिया जाता है, तो दाता के रुधिर से ग्राही का रुधिर मिलना चाहिए नहीं तो रोगी के रुधिर में अन्तः शिरीय समूहन (Clumping) हो जाता है, जोकि घातक होता है। अतः रुधिर वर्ग का अध्ययन करने से पता चलता है कि कौन-से वर्ग को किस वर्ग का रुधिर चढ़ाया जा सकता है।


प्रश्न 6. एक शिशु का रुधिर वर्ग '0' है। यदि पिता व माता के रुधिर वर्ग क्रमशः 'A' व 'B' हैं, तो जनकों के जीनोटाइप और उनके अन्य सन्तति में जीनोटाइप पता कीजिए।

उत्तर -रुधिर वर्गों की वंशागति मेण्डल के नियमों के अनुसार होती है। लाल रुधिराणुओं पर प्रतिजन एक प्रभावी जीन 'I' के कारण उपस्थित होते हैं। यदि अप्रभावी जीन ‘i' उपस्थित होता है, तब लाल रुधिराणु पर कोई प्रतिजन नहीं पाए जाते हैं तथा रुधिर वर्ग O होता है।

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प्रश्न 7. हीमोफीलिया पिता तथा वाहक माता की सन्तानों में रोग की वंशागति किस प्रकार होती है

उत्तर -हीमोफीलिया (Haemophilia) एक X. लिंग सहलग्न रोग है। इसका अप्रभावी जीन X-लिंग गुणसूत्र पर उपस्थित होता है। पुरुष में इसका युग्मविकल्पी अनुपस्थित होने के कारण अप्रभावी जीन की उपस्थिति से हीमोफीलिया रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं।


स्त्रियों में इस रोग के लक्षण उसी अवस्था में प्रकट होते हैं, जब लिंग गुणसूत्र रोग के जीन के लिए समयुग्मजी हो। हीमोफीलिया का जीन केवल एक X गुणसूत्र पर उपस्थित होने पर स्त्रियाँ रोग की वाहक होती हैं। हीमोफीलिया से ग्रसित पिता एवं वाहक माता की सन्तानों में 50% पुत्र हीमोफीलिक, 50% पुत्र सामान्य, 50% पुत्रियां हीमोफीलिक और 50% पुत्रियाँ वाहक होती हैं।

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प्रश्न 8. मानव में लिंग निर्धारण से क्या तात्पर्य है? इसकी क्रियाविधि का रेखाचित्र द्वारा वर्णन कीजिए।


अथवा मानव में लिंग निर्धारण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। 


अथवा मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है? 


 अथवा मानव में लिंग निर्धारण कब और कैसे होता है? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।


अथवा लिंग गुणसूत्र क्या है? मनुष्य के लिंग निर्धारण में इसकी भूमिका समझाइए |


अथवा हमारे समाज में लड़कियाँ पैदा होने पर दोष केवल महिलाओं को दिया जाता है? बताएँ कि यह क्यों सही नहीं है?


अथवा मनुष्य में लिंग निर्धारण पर टिप्पणी लिखिए।


उत्तर – मानव में लिंग निर्धारण मानव में दो प्रकार के गुणसूत्र पाए जाते हैं।


 1. दैहिक या कायिक गुणसूत्र (Autosomes) ये कायिक लक्षणों का निर्धारण करते हैं एवं संख्या में 22 जोड़ी पाए जाते हैं।

2. लिंग गुणसूत्र (Sex chromosome or Allosomes) ये लिंग निर्धारण करने वाले जीन हैं, जो संख्या में एक जोड़ी होते हैं।


 लिंग निर्धारण की XY विधि स्त्री में दोनों लिंग गुणसूत्र X होते हैं और पुरुष में एक लिंग गुणसूत्र X और दूसरा Y होता है। अतः स्त्री में अण्डजनन के फलस्वरूप बने सभी अण्डाणुओं में एक अगुणित सेट दैहिक गुणसूत्रों का और एक X लिंग गुणसूत्र का होता है (22 + X)। अतः सारे अण्डाणु एकसमान होते हैं। इसलिए स्त्री को समयुग्मकी लिंग (Homogametic sex) कहते है।


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इसके विपरीत पुरुष में शुक्राणुजनन के फलस्वरूप बने आये शुक्राणुओं में एक अगुणित सेट दैहिक गुणसूत्रों का और X गुणसूत्र एवं आधे शुक्राणुओं में एक सेट दैहिक गुणसूत्रों का और Y गुणसूत्र होते हैं। अतः इनमें दो प्रकार के शुक्राणुओं का निर्माण होता है। लगभग 50% शुक्राणु (22X) और शेष 50% (22+Y)

गुणसूत्रों वाले होते हैं।


इसलिए पुरुष को विषमयुग्मकी लिंग (Heterogametic sex) कहते हैं। निषेचन के समय यदि (22+Y) वाले शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ होता है, तब नर सन्तान (पुत्र) पैदा होती है तथा यदि अण्डाणु का समेकन (22+3X) शुक्राणु के साथ होता है, तब मादा सन्तान (पुत्री) पैदा होती हैं।


प्रश्न 9. आनुवंशिक रोग क्या है? डाउन सिन्ड्रोम (मंगोलता) वाले व्यक्ति में गुणसूत्र की संख्या कितनी होती है? इसके क्या लक्षण होते हैं? 


अथवा डाउन सिन्ड्रोम किसे कहते हैं? इसके कारण एवं लक्षण बताइए। 


अथवा आनुवंशिक रोग क्या है? मनुष्य में इस रोग के दो उदाहरण लिखिए। 


अथवा डाउन सिण्ड्रोम क्या है? इसके लक्षण व कारण बताइए कि माँ की उम्र 40 के होने के बाद डाउन सिण्ड्रोम से पीड़ित बच्चा होने की सम्भावनाएँ अधिक होती है? 


उत्तरआनुवंशिक रोग (Hereditary diseases) वे रोग, जिनका वहन जीन्स

(Genes) द्वारा एक पौड़ी से दूसरी पोड़ी में संचरण होता है, आनुवंशिक रोग कहलाते हैं; 

उदाहरण (i) डाउन सिन्ड्रोम (ii) वर्णान्धता। 


 डाउन सिन्ड्रोम (Down's syndrome) रोग को मंगोलियन जड़ता या मंगोलिज्म भी कहते हैं। इंग्लैण्ड के लैंगडन डाउन (1866) ने मंगोली जड़ता का अध्ययन किया, इन्होंने इस रोग से ग्रस्त व्यक्तियों के गुणसूत्रों की ट्राइसोमिक अवस्था का वर्णन किया। इसमें 21वी जोड़ी के ऑटोसोम्स में 2 की जगह 3 गुणसूत्र होते हैं, इसलिए इनमें कुल गुणसूत्र 2n + 1 = 47 होते हैं।


इसका कारण युग्मक निर्माण के समय होने वाले अर्द्धसूत्री विभाजन में 21वें अलिंगसूत्र का अलग-अलग न हो पाना है। यह घटना नॉन-डिस्जंक्शन (Non-disjunction) कहलाती है। माँ के 40+ आयु का होने पर नॉन-डिस्जंक्शन जैसी घटनाओं की सम्भावना बढ़ जाती है, क्योंकि अधिक आयु में कोशिकाएँ गुणसूत्रीय विकारों के लिए अधिक ग्राह्मी होती है। ऐसे व्यक्तियों की आँखे तिरछी मोटी हथेली तथा पैर अनियमित तथा मुख खुला होता है, ये मन्द बुद्धि के होते हैं तथा कद में भी छोटे होते हैं। इनकी आयु 12-14 वर्ष तक ही होती है।


प्रश्न 10. सिकल सेल एनीमिया (दाँत्र कोशिका अरक्तता) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर –  यह एक उपापचयी विकार (Metabolic disorder) है, जो अप्रभावी सुप्त जीन के कारण हीमोग्लोबिन की आण्विक संरचना (Molecular structure) में अनियमितता से उत्पन्न होता है। सामान्य हीमोग्लोबिन को Hbᴬ तथा असामान्य हीमोग्लोबिन को Hbˢ द्वारा प्रदर्शित करते हैं। हीमोग्लोबिन की आण्विक संरचना में चार पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ होती हैं, जिनमें से दो एल्फा तथा दो बीटा (β) श्रृंखलाएं होती है। बीटा श्रृंखलाओं में प्रथम स्थान पर अमीनो अम्ल एकलक (Monomer) वैलीन (Valine) तथा छठे स्थान पर अमीनो अम्ल एकलक


ग्लूटैमीन (Glutamine or glutamic acid) उपस्थित होते हैं। बीटा श्रृंखलाओं में इस ग्लूटॅमीन की उपस्थिति एक प्रबल जीन के द्वारा नियन्त्रित होती है। इस जीन के साथी सुप्त या अप्रभावी जीन के नियन्त्रण में बीटा श्रृंखलाओं में छठे स्थान पर ग्लूटेमीन के बजाय, वैलीन के अणु को उपस्थिति होती है। ऐसे हीमोग्लोबिन अणु में, रुधिर में ऑक्सीजन की कमी (Hypoxia) होने पर प्रथम स्थान का वैलीन अणु छठे स्थान के वैलीन अणु से जुड़ जाता है।


इसके कारण होमोग्लोबिन अशु की आकृति विकृत होकर हंसियाकार हो जाती है और यह ऑक्सीजन का संवहन नहीं कर पाता है। यह RBC मलेरिया के परजीवी हेतु प्रतिरोधी होती है। इस प्रकार बालाओं में छठे स्थान पर वैलीन वाला होमोग्लोबिन Hbˢ त्रुटिपूर्ण या विकृत होता है एवं समयुग्मजी अप्रभावी (Hbˢ Hbˢ) स्थिति में ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। हालांकि इस रोग से ग्रसित व्यक्ति (Hbᴬ Hbˢ) में आधी RBCs सामान्य होती है। अतः यह व्यक्ति अधिक मेहनत न करे तो सामान्य जीवन जी सकता है।


प्रश्न 11. वंशावली विश्लेषण क्या है? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है।

उत्तर – ऐसा चार्ट, जिसके अन्तर्गत लक्षणों की आनुवंशिकता का चित्रण किया जाता है, वंशावली चार्ट कहलाता है। यह किसी पीढ़ी या जीव के लिए निर्मित किया जा सकता है। इस चार्ट की सहायता से किसी सन्तति में, किसी विशेषक की उपस्थिति की सम्भावनाओं को ज्ञात किया जा सकता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रम वंशावली विश्लेषण कहलाता है। वंशावली विश्लेषण के महत्त्व निम्नलिखित हैं-


1. यह अप्रभावी युग्मविकल्पी (Allele) को सम्भावना की जानकारी के लिए उपयोगी है, जो सन्तति में थैलेसीमिया (Thalassemia), हीमोफीलिया (Haemophilia) तथा वर्णान्धता (Colour blindness) जैसे विकारों के कारक बनते हैं।


2. वंशावली विश्लेषण द्वारा पूर्वजों में विशेषक या गुणों की उत्पत्ति का पता लगाया जा सकता है।


3. समान वंशीय तथा गोत्रीय लोगों के मध्य विवाहों के दुष्प्रभावों तथा लाभदायक पहलुओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।


4. वंशावली विश्लेषण का प्रयोग आनुवंशिकीय काउन्सलिंग (Genetic counselling) में किया जाता है।


5. इस विश्लेषण को चिकित्सा अनुसन्धान में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।



             { दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5 अंक }


प्रश्न 1. मेण्डल का पृथक्करण का नियम क्या है? इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम क्यों कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।


अथवा मेण्डल का लक्षणों के पृथक्करण का नियम क्या है? चैकर बोर्ड द्वारा आरेखीय निरूपण सहित वर्णन कीजिए। इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम क्यों कहते हैं?

उत्तर – पृथक्करण का नियम (Law of Segregation) एक आनुवंशिक लक्षण की विभिन्नताओं या तुलनात्मक रूपों के कारक बहुत समय साथ रहने पर भी अपरिवर्तित व शुद्ध बने रहते हैं, जिसके कारण युग्मकजनन के समय युग्मकों में जाने वाले कारक (Factor) एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं, इसलिए इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of purity of gametes) भी कहते हैं। जब F-पीढ़ी के संकर पादपों में स्व-परागण कराया जाता है, तो द्वितीय पीढ़ी में पैतृक लक्षण 3: 1 के निश्चित अनुपात में पृथक् हो जाते हैं। अत: प्रत्येक युग्म के विपरीत लक्षण, युग्मकों के बनते समय एक-दूसरे से पृथक् होकर अलग-अलग युग्मकों में चले जाते हैं।


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इन परिणामों से स्पष्ट है कि बौनेपन का लक्षण, जो ए- पीढ़ी में प्रकट नहीं हुआ था, वह लम्बेपन के साथ मिश्रित नहीं हुआ था, अपितु बौनेपन का लक्षण अप्रभावी (Recessive) होने की वजह से F₁-पीढ़ी में छिपा रहता


युग्मकों के निर्माण के समय कारकों का विसंयोजन होने के कारण F₁ - पीढ़ी के कुछ पादपों में बौनेपन का लक्षण फिर से शुद्ध (समयुग्मजी) अवस्था में आ जाने के कारण प्रकट हो जाता है।


प्रश्न 2. आनुवंशिकी क्या है? मेण्डल के पृथक्करण के नियम तथा स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम की व्याख्या कीजिए।

अथवा द्विसंकर क्रॉस पर आधारित मेण्डल के वंशागति सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।


अथवा मटर के एक शुद्ध लम्बे लाल पुष्प वाले पादप का संकरण शुद्ध बौने व सफेद पुष्प वाले पादप से कराया गया। तथा F₁-पीढ़ी में किस प्रकार के पादप प्राप्त होंगे? रेखाचित्र द्वारा समझाइए 


अथवा मेण्डल के स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम का वर्णन कीजिए, इसकी पुष्टि द्विसंकर संकरण का रेखाचित्र बनाकर कीजिए।


अथवा वंशागति को परिभाषित कीजिए। मेण्डल के स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम का वर्णन कीजिए।


 उत्तर आनुवंशिकी आनुवंशिकीय विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें वंशानुगति एवं विभिन्नताओं का अध्ययन होता है। आनुवंशिक लक्षणों के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होने की प्रक्रिया की आनुवंशिकता या वंशागति कहते हैं।


पृथक्करण का नियम (Law of Segregation) एक आनुवंशिक लक्षण की विभिन्नताओं या तुलनात्मक रूपों के कारक बहुत समय साथ रहने पर भी अपरिवर्तित व शुद्ध बने रहते हैं, जिसके कारण युग्मकजनन के समय युग्मकों में जाने वाले कारक (Factor) एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं, इसलिए इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of purity of gametes) भी कहते हैं। जब F-पीढ़ी के संकर पादपों में स्व-परागण कराया जाता है, तो द्वितीय पीढ़ी में पैतृक लक्षण 3: 1 के निश्चित अनुपात में पृथक् हो जाते हैं। अत: प्रत्येक युग्म के विपरीत लक्षण, युग्मकों के बनते समय एक-दूसरे से पृथक् होकर अलग-अलग युग्मकों में चले जाते हैं।


स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment) इसे स्वतंत्र प्रतिसम्मिश्रण का नियम भी कहते है। इस नियम के अनुसार एक आनुवंशिक लक्षण का प्रभावी कारक स्वतंत्र रूप से दूसरे लक्षण के प्रभावी कारक से ही नहीं, बल्कि अप्रभावी कारक से भी मिल सकता है और एक लक्षण का अप्रभावी कारक दूसरे के प्रभावी कारक (Dominant factor) से ही नहीं, बल्कि अप्रभावी कारक (Recessive factor) से भी मिल सकता है अर्थात किसी जीव में एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति से पूर्णतया स्वतन्त्र होती है।


जब दो जोड़े तुलनात्मक विरोधी लक्षणों के मध्य संकरण कराया जाता है इसे द्विसंकर संकरण (Dihybrid cr) कहते हैं। मेण्डल ने शुद्ध गोल और पीले बीज वाले पादप का संकरण शुद्ध झुर्रीदार व हरे बीज वाले पादप से कराया, तो F₁- पीढ़ी में सभी पादप गोल और पीले बीज वाले थे।


F₁ पीढ़ी के पादपों में स्वपरागण कराने पर F पीढ़ी में गोल व पीले गोल व हरे, झरीदार व पीले तथा झुर्रीदार व हरे बीजों वाले पादप क्रमश: 9:3:3:1 के अनुपात में प्राप्त होते हैं।


लक्षणों की इस प्रकार स्वतन्त्र रूप से अभिव्यक्ति को मेण्डल के स्वतन्त्र अपव्यूहन नियम द्वारा वर्णित किया गया है।

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लक्षणप्रारूप अनुपात 9:3: 3:1 जीनप्रारूप अनुपात 1: 2:2:4:1:2:1:2:1 शुद्ध लम्बे लाल पुष्प वाले पादप एवं शुद्ध बौने सफेद पुष्प वाले पादप के संकरण का चित्र

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प्रश्न 3. ABO रुधिर वर्ग की विस्तृत विवेचना कीजिए तथा उनकी वंशागति समझाइए ।


अथवा गुणात्मक विकल्पता से आप क्या समझते है? मानव के रुधिर वर्गों के प्रकार एवं उनकी वंशागति का वर्णन कीजिए।


अथवा बहुविकल्पी क्या है? ABO रुधिर वर्गों का वर्णन कीजिए तथा उनकी वंशागति समझाइए।


उत्तरगुणात्मक विकल्पता या बहुगुण युग्मविकल्पीवाद यदि किसी लक्षण का निर्धारण करने वाले तीन या तीन से अधिक जीन्स में कोई भी जीन समजात गुणसूत्रों में समान स्थान (Loci) पर उपस्थित होता है, तो इन्हें बहुगुण विकल्पी कहते हैं; उदाहरण-मनुष्य में रुधिर वर्गों की वंशागति (Inheritance of blood groups in human) मानव में रुधिर वर्गों की खोज लैण्डस्टीनर (Landsteiner) ने की थी।


मनुष्य में ABO रुधिर वर्गों की वंशागति, बहुगुण एलीलवाद का मुख्य उदाहरण है। बर्नस्टीन (Berninstein; 1924-25) के अनुसार, ABO रुधिर वर्ग मनुष्य का एक आनुवंशिक लक्षण है जो सन्तानों में मेण्डल के नियमों के अनुसार माता-पिता से प्राप्त जीन्स के आधार पर विकसित होता है।


इन जीन्स की वंशागति दो नहीं, बल्कि तीन तुलनात्मक लक्षणों के जीन्स पर निर्भर करती है।


सामान्यतया किसी एक व्यक्ति में दो ही एलील्स होते हैं, परन्तु आबादी के जीन समूह (Gene pool) में इनकी होती है। अत: बहुगुणीलवाद का सम्बन्ध समष्टि आनुवंशिकी (Population genetics) से होता है। 


सन्तान के लाल रुधिराणुओं में प्रतिजन (Antigen) के निर्माण होने और नहीं होने का निर्धारण निम्नलिखित तीन प्रकार के जीन करते हैं-


(a) Iᴬ जीन, जो प्रतिजन A का संश्लेषण करता है। 


(b) Iᴮजीन जो प्रतिजन B का संश्लेषण करता है।


(c) lᴼ जीन, जो प्रतिजन की अनुपस्थिति को दर्शाता है।


जीन Iᴬ एवं Iᴮ जीन lᵒके लिए प्रभावी (Dominant) होते हैं, लेकिन वे जीन्स परस्पर एक-दूसरे के लिए प्रभावी न होकर सहप्रभावी (Codominant) होते है। कोई भी व्यक्ति इन तीन जीन्स में से किन्हीं दो को ही प्राप्त कर सकता है।


अतः छः प्रकार के जीनप्रारूपों में निम्न चार लक्षणप्रारूप सम्भावित होते हैं।


रुधिर वर्ग A- Iᴬ Iᴬ या Iᴬ lᵒ रुधिर वर्ग B-lᴮ lᴮ या lᴮlᵒ रुधिर वर्ग AB- lᴬ lᴮ  रुधिर वर्ग O -lᴼ lᴼ


अतः जनकों से Iᴬ Iᴬ या Iᴬ lᵒ जीन्स प्राप्त करने वाली सन्तानों के लाल रुधिराणुओं में प्रतिजन A एवं lᴮ lᴮ या lᴮ lᵒ जीन्स प्राप्त करने वाली सन्तानों में प्रतिजन B बनता है। अतः जिस सन्तान को जनको से lᴬ lᴮ  प्राप्त होगे उनमें दोनों प्रतिजन AऔरB बनेंगे। इसका मुख्य कारण दो जीन्स में परस्पर प्रभाविता का अभाव अर्थात् सहप्रभाविता (Lack of Dominance or Codominance) हैं। जो सन्तानें जीन्स lᵒ lᵒ प्राप्त करती हैं, उनमें कोई प्रतिजन नहीं बनेगा। जीन lᵒ अन्य दोनों जीन्स lᴬ एवं lᴮ के लिए अप्रभावी (Recessive) होता है, इसीलिए lᴬ lᵒ एवं lᴮ lᵒ जीन्स प्राप्त करने वाली सन्तानों में क्रमश: प्रतिजन A एवं B बनते हैं। रुधिर वर्ग A, B और  O की वंशागति को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है. 

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प्रश्न 4. वंशागति के गुणसूत्र सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।

 उत्तर – बोवेरी एवं सटन (Boveri and Sutton: 1902) ने पता लगाया कि युग्मकों के बनने की प्रक्रिया, युग्मकजनन (Garnetogenesis) में समजात गुणसूत्रों का युग्मकों में पृथक्करण एवं नर तथा मादा युग्मकों के संयुग्मन की प्रक्रिया, निषेचन (Fertilisation) में समजात गुणसूत्रों का फिर से जोड़ियों से मिलना बिल्कुल मेण्डल के द्वारा बताए गए एकल आनुवंशिक कारकों (Unit hereditary factors) की तरह ही होता है। इन समानताओं के कारण वैज्ञानिकों में यह धारणा बनी कि गुणसूत्र ही मेण्डल के कारकों (Mendelian factors) का कार्य करते हैं। इसी आधार पर सटन एवं बोवेरी ने सन् 1902 में 'वंशागति के गुणसूत्रीय मत का प्रतिपादन किया था।


इस सिद्धान्त के अनुसार,


(i) मेण्डल के कारकों का जोड़ा समजात गुणसूत्रों (Homologous chromosomes) के जोड़े पर भौतिक रूप से स्थित होता है। अतः यह कहा जा सकता है कि समजात गुणसूत्र के जोड़े के प्रत्येक गुणसूत्र पर एक कारक उपस्थित होता है।


(ii) अर्द्धसूत्री (Meionis division) विभाजन की प्रक्रिया के दौरान इस समजात गुणसूत्रों का ही पृथक्करण तथा स्वतन्त्र अपव्यूहन होता है अर्थात् इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि गुणसूत्र ही मेण्डल के कारकों के वाहक होते हैं।


प्रश्न 5. लिंग-सहलग्न जीन (लक्षण की) वंशागति किसे कहते हैं? मनुष्य में किसी एक लिंग सहलग्न लक्षण की वंशागति को रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।


अथवा लिंग सहलग्न गुण से आप क्या समझते हैं? अप्रभावी X-लक्षणों के किन्ही दो रोगों के नाम लिखिए। रेखाचित्र के माध्यम से किसी एक रोग की वंशागति को स्पष्ट कीजिए।


अथवा लिंग सहलग्न वंशागति क्या है? मनुष्य में हीमोफीलिया तथा वर्णान्धता की वंशागति का वर्णन कीजिए।


अथवा लिंग- सहलग्न लक्षण क्या है? मनुष्य में ऐसे दो लक्षणों की वंशागति को संक्षेप में समझाइए |


अथवा लिंग सहलग्न वंशागति पर टिप्पणी कीजिए। अथना क्रिस-क्रॉस वंशागति से आप क्या समझते हैं? दुर्बल x सहलग्न लक्षणों के दो उदाहरण बताइए तथा किसी एक के वंशागति को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।


अथवा लिंग सहलग्न लक्षण से आप क्या समझते हैं? रेखाचित्रों की सहायता से मनुष्य में दो लिंग-सहलग्न लक्षणों की वंशागति का वर्णन कीजिए।


उत्तरलिंग सहलग्न वंशागति प्राणियों में कुछ आनुवंशिक लक्षणों की वंशागति उनके लिंग से सम्बन्धित होती है अर्थात् उन विशिष्ट लक्षणों का नियमन करने वाले जीन लिंग-गुणसूत्रों पर स्थित होते है। इस प्रकार के लक्षणों को लिंग- सहलग्न लक्षण (Sex-linked characters) और उनकी वंशागति को लिंग सहलग्न वंशागति (Sex-linked inheritance) कहते हैं।


मनुष्य में भी कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जिनके जीन्स लिंग गुणसूत्रो से सहलग्न रहकर पीढ़ी दर पीढ़ी वंशागत होते रहते हैं। इस प्रकार की वंशागति को क्रिस कॉस वंशागति कहते हैं।


वर्णान्धता तथा हीमोफीलिया मानव में लिंग सहलग्न वंशागति के उदाहरण है। 


1. वर्णान्धता (Colourblindness) 


2. हीमोफीलिया (Haemophilia) 


प्रश्न 6. आनुवंशिक विकार से आप क्या समझते हैं? लिंग सीमित और लिंग प्रभावित जीन्स में विभेद कीजिए। हीमोफीलिया पर टिप्पणी लिखिए।


उत्तरलिंग सीमित लक्षण (Sex limited traits) ऐसे आनुवंशिक लक्षणों के जीन दैहिक गुणसूत्र में होते हैं। इनकी वंशागति सामान्य मेण्डेलियन पद्धति के अनुसार होती है, परन्तु इनका विकास पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है। गाय, भैंस तथा अन्य जन्तुओं में दुग्ध का उत्पादन, मानव में दाढ़ी-मूँछ, भेड़ों की कुछ जातियों में केवल नर में सींगों का विकास आदि लिंग सीमित लक्षण हैं।


लिंग प्रभावित या लिंग नियन्त्रित लक्षण (Sex - Influenced or Sex-controlled characters) मानव में कुछ कायिक लक्षण भी लिंग गुणसूत्रों पर पाए जाते हैं, परन्तु इन जीनों का प्रकटीकरण व्यक्ति के लिंग से प्रभावित होता है अर्थात् हम यह कह सकते हैं कि पुरुष एवं स्त्री में समान जीनप्रारूप (Genotype) होने के बावजूद भी लक्षणप्रारूप (Phenotype) भिन्न-भिन्न होता है। मानवों में गंजेपन (Baldness), का कारण विकिरण, थायरॉइड अनियमितता या आनुवंशिक हो सकता है। आनुवंशिक गंजापन (Pattern baldness or Alopecia) के लिए एक दैहिक गुणसूत्री युग्मविकल्पी जीन जोड़ी (B, b) उत्तरदायी होती है।


प्रश्न 7. लिंग निर्धारण पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा लिंग निर्धारण क्या है? पक्षियों तथा मधुमक्खियों में लिंग निर्धारण समझाइए ।


अथवा लिंग निर्धारण से आप क्या समझते हैं? मानव में लिंग निर्धारण को रेखाचित्र के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।


अथवा लिंग-निर्धारण क्या है? मानव तथा मधुमक्खियों में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।


उत्तर – लिंग-निर्धारण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा यह सुनिश्चित होता है कि एकलिंगी जन्तुओं में लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाला नया प्राणी नर होगा या मादा । जन्तुओं में लिंग निर्धारण की प्रमुख प्रक्रियाएँ निम्न हैं


1. XX-XY प्रक्रिया (XX-XY Method) यह लिंग-निर्धारण की सबसे सामान्य विधि है। यह कुछ स्तनियों एवं कीटों में पाई जाती है; जैसे- ड्रोसोफिला, आदि। इस प्रकार की विधि के अन्तर्गत मादाओं में समान संरचना वाले दो X-लिंग गुणसूत्र (जैसे- XX) उपस्थित होते हैं। अतः ये मादाएँ केवल एक ही प्रकार के अण्डों का निर्माण करती हैं, जिनमें X-लिंग गुणसूत्र उपस्थित होता है। इसके अन्तर्गत नर तो प्रकार के लिंग गुणसूत्र (X एवं Y) रखते हैं एवं इनसे X एवं Y युक्त दो प्रकार के शुक्राणुओं का निर्माण होता है। भ्रूण के लिंग का निर्धारण शुक्राणु के गुणसूत्र पर निर्भर करता है। 


2. XX-XO प्रक्रिया (XX-XO Method) इस प्रक्रिया के द्वारा लिंग-निर्धारण कुछ कीटों; जैसे-समूह-हेमीप्टेरा (बग) व आर्थोप्टेरा में पाया जाता है। इसके अन्तर्गत मादाओं में दो X-लिंग गुणसूत्र तथा नरों में केवल एक X-लिंग गुणसूत्र उपस्थित होता है। इन जन्तुओं में अयुग्मित X- लिंग गुणसूत्रों की 'उपस्थिति (XO) 'नरत्व' (Maleness) को तथा युग्मित X-लिंग गुणसूत्रों की उपस्थिति (XX) 'मादत्व' (Femaleness) को निर्धारित करती है।


3. ZZ-ZW एवं ZZ - ZO प्रक्रिया (ZZZW and ZZ-ZO Method) इस प्रक्रिया में मादा विषमयुग्मकी तथा नर समयुग्मकी होते हैं। इसमें नर में दो समान प्रकार के X- लिंग गुणसूत्र उपस्थित होते हैं। इनकी मादाओं में या केवल एक X- लिंग गुणसूत्र होता है; (जैसे- XO) या एक X एवं एक Y-लिंग गुणसूत्र होता है; (जैसे-XY ) ।


XX-XY एवं XX-XO, पद्धति से दुविधा हटाने के लिए, इस पद्धति को क्रमश: ZZ-ZW एवं ZZ-ZO से इंगित किया जाता है। यह प्रक्रिया विभिन्न कशेरुकी जन्तुओं; जैसे-मत्स्य, सरीसृप तथा पक्षी वर्ग में पाई जाती है।


लिंग निर्धारण की अगुणित-द्विगुणित क्रियाविधि (Haploid-Diploid Mechanism of Sex Determination)


इस प्रकार के लिंग निर्धारण की क्रियाविधि हाइमेनोप्टेरन्स (Hymenopterans) कीट जैसे कि मधुमक्खियों (Honeybees), ततैया (Wasp) और चींटियों (Ants) में देखने को मिलती है।


मधुमक्खियों में सामान्यतया निम्नलिखित तीन प्रकार के सदस्य होते हैं


1. द्विगुणित रानी (Diploid Queen) इसका विकास निषेचित अण्डे से होता है। केवल रानी मक्खी में जनन की क्षमता पाई जाती है।


2. द्विगुणित श्रमिक (Diploid Workers) ये अर्द्धविकसित (बंध्य) मादाएँ हैं जिनका विकास निषेचित अण्डों से होता है, परन्तु इनमें जनन अंग विकसित नहीं होते हैं।


3. अगुणित नर या ड्रोन (Haploid Male or Drone) इनका विकास अनिषेचित अण्डों से अनिषेकजनन द्वारा होता है। ये नर शुक्राणु उत्पन्न करने की क्षमता रखता है। इस प्रकार के विकास को आर्हीनोटोकी (Arhenotoky) कहते हैं।


अतः अनिषेचित अण्डाणुओं से नर का विकास तथा निषेचित अण्डाणुओं से मादा का विकास होता है। अतः मादाएँ द्विगुणित (2n) एवं नर अगुणित (n) होते हैं तथा अण्डाणु अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis division) द्वारा एवं शुक्राणु समसूत्री विभाजन (Mitosis division) द्वारा निर्मित होते हैं।


मधुमक्खी में द्विगुणित लार्वा से उर्वर रानी या बन्ध्य मादा श्रमिक (Sterile female workers) का विकास भोजन की गुणवता पर आश्रित होता है। यदि लार्वा को भोजन के रूप में श्रमिक मक्खियों के मुख से स्रावित शाही जैली मिल जाती है तो वह रानी मक्खी में विकसित हो जाती है। इसके विपरीत यदि लार्वा को पोषण के रूप में पराग कण युक्त मकरन्द प्राप्त होता है तो वह बन्ध्य मादा श्रमिक के रूप में विकसित हो जाता है। अतः यहाँ वातावरण (पोषण) बन्ध्यता व अबन्ध्यता को नियन्त्रित करता है, न कि लिंग निर्धारण को ।


प्रश्न 8. जीन विनिमय का वर्णन करते हुए, इसके प्रकार तथा महत्त्व पर टिप्पणी कीजिए।


उत्तर – अर्द्धसूत्री विभाजन के समय समजात गुणसूत्रों (Homologous chromosomes) के परस्पर जुड़े हुए अबहन अर्द्धगुणसूत्रों (Non-sister chromatids) के बीच खण्डों के आदान-प्रदान को जीन विनिमय कहते हैं। यह प्रथम पूर्वावस्था की पैकीटीन उप-अवस्था में चार सूत्रीय अवस्था (Tetrad stage) में होता है। जीन विनिमय की क्रियाविधि से सम्बन्धित दो वाद प्रस्तुत किए गए


1. कॉपी चोइस वाद (Copy Choice Theory) बिलिंग के अनुसार, पुनयोजन (Recombination) नवीन संश्लेषित जीनों के द्वारा होता है।


2. विखण्डन एवं पुनर्योन परिकल्पना (Breakage and Reunion Theory) मुलर के अनुसार, सर्वप्रथम दोनों अर्द्धगुणसूत्र बिना किसी विनिमय के टूट जाते हैं तथा टूटे हुए खण्ड पुनः जुड़कर नए संयोजन बनाते हैं, जबकि सेरेब्रोविस्की के अनुसार, अर्द्धगुणसूत्र पहले एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं और स्पर्श स्थल पर विखण्डन के पश्चात् विनिमय होता है। विनिमय से, नये लक्षणों का उद्गम होता है और सहलग्न समूह, जीनों की प्रकृति तथा अनेक क्रम, आदि का अध्ययन किया जा सकता है।


 जीन विनिमय के प्रकार

सामान्यतया जीन विनिमय तीन प्रकार का होता है


1. सरल जीन विनिमय (Simple Crossing Over) इसमें अर्द्धगुणसूत्र केवल एक स्थान से टूटता है। इससे दो जीन विनिमित या क्रॉस ओवर अर्द्धगुणसूत्र तथा दो जीन अविनिमित या नॉन-क्रॉस ओवर अर्द्धगुणसूत्र बनते हैं।


2. दोहरा जीन विनिमय (Double Crossing Over) चतुष्क में अर्द्धगुणसूत्र में दो स्थान पर जीन विनिमय होता है। इसमें दो प्रकार का किएज्मा निर्माण हो सकता है


(i) पारस्परिक या रेसीप्रोकल जीन विनिमय (Reciprocal Crossing Over) इसमें दो अर्द्धगुणसूत्रों के बीच दो किएज्मा का निर्माण होता है।

इस प्रकार दो दोहरे जीन विनिमय वाले अर्द्धगुणसूत्र तथा दो बिना जीन विनिमय अर्द्धगुणसूत्र बनते हैं।


(ii) पूरक या कॉम्प्लीमेन्टरी जीन विनिमय (Complimentary Crossing Over) इसमें चारों या तीन अर्द्धगुणसूत्रों के बीच किएज्मा निर्माण होता है एवं दोनों गुणसूत्रों के दोनों अर्द्धगुणसूत्र किएज्मा निर्माण में सम्मिलित होते हैं, किन्तु दूसरे किएज्या निर्माण में दूसरे दो अर्द्धगुणसूत्र सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार चार एक जीन विनिमय वाले अर्द्धगुणसूत्र बनते हैं, किन्तु चारों अर्द्धगुणसूत्र चार प्रकार के होते हैं। यदि किएज्मा निर्माण में तीन अर्द्धगुणसूत्र भाग लेते है तब एक अर्द्धगुणसूत्र बिना विनिमय वाला रह जाता है। अतः एक अर्द्धगुणसूत्र दो जीन विनिमय वाला तथा दो अर्द्धगुणसूत्र एक-एक जीन विनिमय वाले बनते हैं।


3. बहुजीन विनिमय (Multiple Crossing Over) समान गुणसूत्र जोड़े में कई स्थानों पर जीन विनिमय होता है। ऐसा जीन विनिमय बहुत कम होता है।


जीन विनिमय का महत्त्व इस घटना का बहुत अधिक आनुवंशिक महत्त्व है, जो निम्नलिखित हैं


1. यह प्रमाण देते हैं कि एक गुणसूत्र पर जीन्स रेखीय रूप में व्यवस्थित होते हैं। 


2. यह गुणसूत्रीय मापन में सहायक होता है, जीन विनिमय का प्रतिशत दो जीन्स के मध्य की दूरी के समानुपाती होता है।


3. यह आनुवंशिक विभिन्नताओं का मुख्य कारक है। यह अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) की क्रिया के दौरान युग्मको में आनुवंशिक लक्षणों में विभिन्नताएँ उत्पन्न करता है।


4. इस घटना की उपयोगिता ब्रीडिंग एवं नई विकसित किस्मो (Variety) में भी पाई जाती है। इससे नए पुनर्संयोजक तैयार किए जाते हैं।


5. जीन विनिमय के कारण जीवों में नए गुणों के उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है।


प्रश्न 9. सहलग्नता की मॉर्गन संकल्पना बताते हुए, इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर –जब दो या दो से अधिक जीन एक ही गुणसूत्र पर पास-पास स्थित होते हैं तो अर्द्धसूत्री विभाजन के पश्चात् भी ये जीन एक-दूसरे से पृथक नहीं होते तथा एक साथ बने रहते हैं अर्थात् ये जीन सह-वंशागति प्रदर्शित करते हैं, इन जीनों को सहलग्न जीन (Linked gene) तथा इस गुण को सहलग्नता कहते हैं। लिंकेज शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सटन एवं बोवेरी (Sutton and Boveri) ने सन् 1903 में किया था।


 सहलग्नता के प्रकार सामान्यतया सहलग्नता दो प्रकार की होती हैं- 


1. पूर्ण सहलग्नता (Complete linkage) इस प्रकार की सहलग्नता नर ड्रोसोफिला में पाई जाती है। जब एक गुणसूत्र पर स्थित सहलग्न जीन अर्द्धसूत्री विभाजन के समय अलग नहीं होते हैं तथा इससे अगली पीढ़ी में पैतृक प्रकार के ही लक्षण मिलते हैं।


इस प्रकार की प्रक्रिया को पूर्ण सहलग्नता कहते हैं। प्रायः जीवों में पूर्ण सहलग्नता देखने को नहीं मिलती है क्योंकि इनमें अर्द्धसूत्री विभाजन के समय जीन विनिमय की क्रिया होती है; उदाहरण-जब धूसर रंग के शरीर व अवशेषी पंख वाली जंगली ड्रोसोफिला का संकरण, काले रंग के शरीर व लम्बे पंखों वाली ड्रोसोफिला के साथ कराया जाता है, तो F-पीढ़ी के सभी जन्तुओं का शरीर धूसर रंग तथा लम्बे पंखों युक्त पूर्ण विकसित था। जब F-पीढ़ी के नर संकर का काले रंग के शरीर तथा अवशेषी पंखों वाली मादा ड्रोसोफिला के साथ संकरण कराया जाता है तो F₂-पीढ़ी में केवल दो प्रकार के जन्तु बराबर संख्या में बनते हैं।


इस संकरण में केवल पैतृक संयोग बनते है और जीन्स अलग नहीं होते है अर्थात् सभी सन्ततियाँ पैतृक लक्षणों वाली उत्पन्न हुई तथा इनका अनुपात 1:1 था। अतः यह पूर्ण सहलग्नता कहलाती है।


2. अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete linkage) जब समजात गुणसूत्रों (Homologous chromosomes) के बीच जीन विनिमय की क्रिया हो जाती है तथा इससे अगली पीढ़ी की सन्तानों में पैतृक प्रकार तथा पुनर्संयोजित प्रकार (Recombinant type) के लक्षण उत्पन्न होते हैं।


इस प्रक्रिया को अपूर्ण सहलग्नता कहते हैं अर्थात् अपूर्ण सहलग्नता में सहलग्न जीनों के एक-दूसरे से पृथक् होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसका प्रमुख कारण जीन के मध्य की दूरी व अर्द्धसूत्री विभाजन के समय होने वाला जीन विनिमय है। [1]


सहलग्नता के लिए मॉर्गन की संकल्पना (Morgan's concept of linkage) थॉमस हंट मॉर्गन ने सन् 1910-11 में फलमक्खी (Drosophila melanogaster) पर अपने प्रयोगों द्वारा सहलग्नता का गुणसूत्रीय सिद्धान्त (Chromosomal theory of linkage) प्रस्तुत किया। मॉर्गन ने अपने प्रयोग में सामान्य रंग के शरीर और सामान्य पंखों वाली (BBVV) ड्रोसोफिला का काले रंग के शरीर और अवशेषी पंखों वाली (bbvv) ड्रोसोफिला के साथ संकरण कराया, जिससे F-पीढ़ी में सभी मक्खियाँ सामान्य रंग के शरीर और सामान्य पंखों वाली थी, क्योंकि इन लक्षणों के जीन्स (BV) प्रभावी है और काले रंग व अवशेषी अंगों के जीन्स (bv) अप्रभावी है।


इसके पश्चात् उन्होंने F₁-पीढ़ी के सामान्य रंग और सामान्य पंखों वाली संकर (BVbv) मक्खियों का काले रंग व अवशेषी पंखों वाली (bbvv) मक्खियों के साथ संकरण कराया। मेण्डल की व्याख्या के अनुसार, F,-पीढ़ी में निर्मित प्राणियों में परिक्षार्थ संकरण में 1 : 1:1:1 का अनुपात होना चाहिए था, किन्तु ऐसा न होकर पैतृक प्रकार और नए पुनर्संयोजित लक्षणप्रारूप (Parental types and new recombinant phenotypes) 83 : 17 के अनुपात में प्राप्त हुए। यदि पैतृक लक्षणप्रारूप का अनुपात 50% से अधिक आता हैं, तो यह जीन्स के मध्य सहलग्नता (Linkage) को प्रदर्शित करता है।


अत: यह निष्कर्ष निकाला गया, कि सामान्य रंग के शरीर और सामान्य पंखों वाले लक्षणों के जीन्स एवं काले रंग के शरीर व अवशेषी पंखों के जीन्स ने, द्विसंकर संकरण में सहलग्न रूप से प्रतिभाग लिया है। 


मॉर्गन के सहलग्नता के गुणसूत्रीय सिद्धान्त के प्रमुख लक्षण निम्न हैं-


वे जीन जो सहलग्नता दर्शाते हैं, एक ही गुणसूत्र पर स्थित होते हैं।


सहलग्न जीन जब वंशागति करते हैं तो वे जीन मूल समूहों में बने रहते हैं।


वे जीन जो गुणसूत्र पर अधिक पास-पास स्थित होते हैं, अधिक सहलग्नता प्रदर्शित करते हैं। इसके विपरीत जो सहलग्न जीन दूसरे से अधिक दूरी पर स्थित होते हैं, जीन विनिमय (Crossing over) के कारण उनके एक-दूसरे से पृथक् होने की सम्भावना बढ़ जाती है।


एक गुणसूत्र पर उपस्थित सभी जीन मिलकर सहलग्न समूह का निर्माण करते हैं तथा इन समूहों की संख्या उस जीव की जाति के अगुणित गुणसूत्रों की संख्या के बराबर होती है।


इस अध्याय से बोर्ड परीक्षा में पूछे जाने वाले सभी प्रश्नों के उत्तर इस पोस्ट में आपको बताएं गए हैं, यदि आपको पोस्ट पसन्द आई हो तो अपने दोस्तो को भी शेयर करें यदि आप कुछ पूछना चाहते हैं तो आप कॉमेंट करके ज़रूर बताइएगा।

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