Class 12th Biology Chapter 2 human reproduction Notes in hindi
मानव जनन कक्षा 12वी जीव विज्ञान नोट्स pdf
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{ मानव जनन Human Reproduction}
'वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा जीव अपने समान जीव की उत्पत्ति करता है, वह प्रक्रिया जनन कहलाती है।' मनुष्य जरायुज (Viviparous) होते हैं अर्थात् मनुष्य में निषेचित अण्डे का भ्रूणीय विकास गर्भाशय में ही होता है तथा ये सुविकसित शिशु को जन्म देते हैं। मनुष्य एकलिंगी (Unisexual) प्राणी है एवं नर तथा मादा जननांगों या लैंगिक लक्षणों में ही नहीं, वरन् ये आकारिकी लक्षणों (बाह्य लक्षणों) में भी लैंगिक द्विरूपता (Sexual dimorphism) दर्शाते हैं।
नर या पुरुष जनन तन्त्र
नर जनन तन्त्र को निम्नलिखित अंगों में विभक्त किया जाता है
1. प्राथमिक जनन अंग-वृषण (Primary reproductive organ-Testis) यह ग्रन्थिल अण्डाकार ग्रन्थि है, जो देहगुहीय एपिथीलियम से आवरित रहती है तथा वृषण कोष (Scrotum) में उपस्थित होती है।
वृषण कोष का तापमान शरीर के तापमान से 2-3°C कम होता है, जिस पर शुक्राणुओं का निर्माण होता है। शुक्रजनन नलिकाएँ (Seminiferous tubules) वृषणों की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती हैं। इन शुक्रनलिकाओं में, शुक्रजननीय कोशिकाएँ (Spermatogenic cells), जो शुक्राणु बनाती हैं तथा अवलम्बन कोशिकाएँ (Supporting cells) या सर्टोली कोशिकाएँ जो शुक्राणु को पोषण प्रदान करती हैं, उपस्थित होती हैं। नलिकाओं के बीच-बीच में लीडिंग कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं, जो टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन का त्रावण करती हैं।
2. सहायक जनन अंग नर जनन में सहायक अंग निम्न प्रकार के होते हैं
(i) शुक्रवाहिकाएँ (Vasa efferentia) ये वृषण से निकलने वाली पतली नलिकाएँ होती है, जो कुण्डलित होकर अधिवृषण बनाती हैं।
(ii) अधिवृषण (Epididymis) यह शुक्रवाहिकाओं का समूह होता है, जिसमें शुक्राणु परिपक्व होते हैं।
(iii) शुक्रवाहिनी (Vas deferens) ये अधिवृषण से निकलती हैं तथा मूत्रमार्ग के चारों ओर फैलकर शुक्राशय (Seminal vesicle) बनाती हैं। यह शुक्राणुओं का संग्रह तथा परिवहन करती हैं।
(iv) मूत्रमार्ग (Urethra) मूत्र तथा वीर्य दोनों इसी मार्ग द्वारा शरीर से बाहर आते हैं।
(v) शिश्न (Penis) यह उत्तेजनशील मैथुन अंग (Erectile copulatory organ) होता है। जो शुक्राणुओं के मादा जनन मार्ग में परिवहन हेतु सहायक होता है।
3. सहायक ग्रन्थियाँ ये प्रायः तीन प्रकार की होती हैं
(i) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland) यह ग्रन्थि क्षारीय द्रव स्रावित करती है, जो मूत्रमार्ग में अवशिष्ट मूत्र से उत्पन्न अम्लता को समाप्त करता है।
(ii) काउपर ग्रन्थियाँ (Cowper's glands) इन्हें बल्बोयूरेथ्रल ग्रन्थियाँ (Bulbourethral glands) भी कहते हैं। ये क्षारीय द्रव स्रावित करती हैं, जो मूत्रमार्ग को क्षारीय करता है, जिससे शुक्राणु सुरक्षित रहते हैं।
(iii) शुक्राशय (Seminal vesicle) शुक्राशय शुक्राणु के लिए श्यान द्रव्य बनाते हैं, जो वीर्य (Semen) के आयतन का भाग होता है। यह शुक्राणु को संरक्षण एवं पोषण प्रदान करता है।
नोट शुक्रजनन नलिकाएँ वृषण की भीतरी सतह पर नलिकाओं के एक घने जाल में खुलती हैं, इसे वृषण जालिका (Rete testes) कहते हैं। इससे 5-20 शुक्र वाहिकाएँ निकलकर एपिडिडाइमिस नलिका (Epididymis duct) में खुलती है।
मादा या स्त्री जनन तन्त्र
मादा जनन तन्त्र निम्नलिखित अंगों में विभक्त किया जाता है
1. प्राथमिक जनन अंग अण्डाशय (Primary reproductive organ-Ovaries) मादा में एक जोड़ी अण्डाशय श्रोणि (Pelvic) गुहा में गर्भाशय के दोनों ओर, अण्डवाहिनियों के पीछे, नीचे की ओर स्थित होते हैं। ये मीसोवेरियन स्नायु द्वारा वृक्क के पीछे देह भित्ति से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक अण्डाशय अण्डाशयी स्नायु (Ovarian ligament) द्वारा गर्भाशय से तथा अण्डाशयी फिम्ब्री (Ovarian fimbrae) द्वारा अण्डवाहिनी से जुड़ा रहता है। अण्डाशय में परिधि की ओर ग्राफियन पुटिकाएँ होती हैं, जिनमें अण्डाणु का निर्माण होता है। ये अण्डाणु एस्ट्रोजन (Oestrogen) एवं FSH के प्रभाव में उत्पन्न होते हैं।
2. सहायक जनन अंग सहायक जनन अंग निम्नलिखित होते हैं
(i) फैलोपियन नलिका (Fallopian tube) ये एक जोड़ी पतली व कुण्डलित' नलिकाएँ होती हैं, जो अण्डाशय को गर्भाशय से जोड़ती है। इसके तुम्बिका एवं संकीर्ण पथ के सन्धि स्थान पर अण्डाणु का शुक्राणु से निषेचन होता है।
(ii) गर्भाशय (Uterus) यह पेशीय थैलीनुमा संरचना है, जिसमें भ्रूण का विकास होता है।
(iii) योनि (vagina) यह सम्भोग (Mating) के दौरान शिश्न से वीर्य ग्रहण करती है तथा शिशु के जन्म के समय जन्म नाल के रूप में कार्य करती है।
(iv) भग (Vulva) स्त्री के बाह्य जनन अंगों को सामूहिक रूप से भग कहते हैं।
3. सहायक ग्रन्थियाँ ये प्रायः दो प्रकार की होती हैं
(i) बार्थोलिन ग्रन्थियाँ (Bartholin's glands) ये मलाशय व वेस्टीब्यूल के बीच स्थित होती हैं तथा चिपचिपा द्रव स्रावित करती हैं, जो मैथुन में सहायक होता है।
(ii) स्तन ग्रन्थियाँ (Mammary glands) एक जोड़ी स्तन ग्रन्थियाँ वक्ष के अधर भाग में स्थित होती हैं। ये दुग्ध स्रावण करने वाली ग्रन्थियाँ हैं।
युग्मकजनन
वृषण अथवा अण्डाशय की जननिक उपकला (Germinal epithelium) की कोशिकाओं से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा युग्मक निर्माण की क्रिया को युग्मकजनन (Gametogenesis) कहते हैं। नर में नर युग्मक या शुक्राणु (Sperm) तथा मादा में मादा युग्मक या अण्डाणु या डिम्बाणु (Ovum) बनते हैं।
शुक्रजनन
यह प्रक्रिया वृषण की शुक्रजन नलिकाओं (Seminiferous tubules) में होती है। शुक्रजनन की गुणन प्रावस्था में जनन उपकला की कोशिकाओं में बार-बार समसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणुजनन कोशिकाएँ (Spermatogonia) बनती हैं। वृद्धि प्रावस्था में शुक्राणुजन कोशिकाएँ पोषक पदार्थ एकत्र कर प्राथमिक प्रशुक्राणुजन (Primary spermatocytes) बनाती है जो परिपक्वन प्रावस्था में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा प्राकृशुक्राणु या प्रशुक्राणु (Spermatids) बनाती हैं।
प्राक्शुक्राणु के परिपक्व शुक्राणु में परिवर्तित होने की क्रिया शुक्रकायान्तरण (Spermiogenesis) कहलाती है।
शुक्राणु
इसके प्रमुख तीन भाग होते हैं।
1. शीर्ष
3. पुच्छ
2. मध्य खण्ड
शीर्ष भाग में केन्द्रक के ऊपर एक टोपी के समान रचना एक्रोसोम पाई जाती है। इससे स्रावित हायल्यूरोनिडेज एन्जाइम मादा अण्डाणु के बाहर उपस्थित द्वितीयक भित्ति को भेदने का कार्य करता है, जिससे शुक्राणु, अण्डाणु में प्रवेश करके उसे निषेचित कर सके।
अण्डजनन
इसकी गुणन प्रावस्था में अण्डाशय के भीतर की प्रारम्भिक जनन कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन द्वारा अण्डाणुजन या अण्डजननी कोशिकाएँ (Oogonia) बनती हैं। वृद्धि प्रावस्था में अण्डजनन कोशिकाएँ पोषक पदार्थ या पीतक (Yolk) एकत्र कर प्राथमिक अण्डक (Primary oocyte) बनाती हैं।
डिम्बोत्सर्ग (Ovulation) के पश्चात् अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा प्राथमिक अॅण्ड कोशिका एक बड़ी द्वितीयक अण्ड कोशिका तथा छोटी प्रथम ध्रुव कोशिका बनाती है। तत्पश्चात् द्वितीयक अण्ड कोशिका समसूत्री विभाजन द्वारा एक छोटी द्वितीय ध्रुव कोशिका तथा बड़ा अण्डाणु बनाती है।
नोट मानव स्त्री के एक अण्डाणु मे 23 गुणसूत्र उपस्थित होते हैं, जिसमें 22 कायिक गुणसूत्र और एक लिंग गुणसूत्र 'X' होता है।
आर्तव (मासिक) चक्र
मादा में जननकाल के प्रारम्भ के साथ ऋतुस्राव प्रारम्भ होता है, जो जननकाल की समाप्ति के पश्चात् रुक जाता है। इस काल में प्रति माह अण्डाशय से एक अण्डे का उत्सर्जन होता है। निषेचन न होने की स्थिति में गर्भाशय की दीवार एवं अण्डाशय में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, इस चक्र को मासिक या आर्तव चक्र कहते हैं। मासिक चक्र की तीन अवस्थाएँ होती हैं
(i) क्रम प्रसारी अवस्था (Proliferative phase) FSH पुटिकाओं को एस्ट्रोजन के स्रावण के लिए प्रेरित करता है। इस अवस्था का अन्तराल 1-12 दिनों का होता है।
(ii) खावित अवस्था (Secretory phase) कॉर्पस ल्यूटियम प्रोजेस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजन की अधिक मात्रा का स्रावण करता है। इस अवस्था का अन्तराल 12-14 दिन का होता है। इसे प्रोग्रेसिव प्रावस्था भी कहते हैं, क्योंकि अन्तःस्तर सगर्भता तथा रोपण के लिए तैयार हो जाता है।
(iii) मासिक अवस्था (Menstrual phase) यह पुराने मासिक चक्र की अन्तिम तथा नए मासिक चक्र की प्रारम्भिक अवस्था होती है। यदि अण्डाणु निषेचित नहीं है, तो कॉर्पस ल्यूटियम प्रोजेस्टेरॉन स्तर में कमी के कारण नष्ट हो जाता है। इसमें गर्भाशयी एण्डोमीट्रियम के टूटने से रुधिर का खाय होता है। यह खाय लगभग 5 दिन चलता है। यह FSH, LH, एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरॉन के द्वारा नियन्त्रित होता है। यदि
निषेचन नहीं होता है, तो कॉर्पस ल्यूटियम कॉर्पस एल्बिकेन्स में परिवर्तित हो जाता है, जो काले धब्बे की तरह दिखाई देता है।
निषेचन एवं अन्तर्रोपण
अगुणित नर शुक्राणु (n) व अगुणित मादा अण्डाणु (n) युग्मकों के संयोजन को निषेचन कहते हैं, जिसके फलस्वरूप द्विगुणित (27) युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है। स्तानियों में फैलोपियन नलिकाओं में यह क्रिया सम्पन्न होती है।
निषेचन के पूर्व अण्डाणु से फर्टीलाइजन का खावण होता है। यह शुक्राणु की सतह पर एन्टीफर्टीलाइजिन नामक ग्राही से क्रिया करता है, जिसके फलस्वरूप दोनों में आसंजन हो जाता है। निषेचन के समय एक्रोसोम हायल्यूरोनिडेज (Hyaluronidase) एन्जाइम का मोचन करता है, जो अण्डाणु को घेरे हुए कोरोना रेडिएटा में उपस्थित हायल्यूरोनिक अम्ल को घोल देता है।
*निषेचन के 24 घण्टे बाद से युग्मनज में विदलन की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। युग्मनज का समसूत्री विभाजन द्वारा लगातार बढ़ती हुई संख्या और घटते हुए आकार की कोशिकाओं में सतत् विखण्डन विदलन (Cleavage) कहलाता है। विदलन के फलस्वरूप बनी कोशिकाओं को कोरकखण्ड (Blastomeres) कहते
हैं। विदलन का प्रकार अण्डे में पीतक की मात्रा व वितरण पर निर्भर करता है।
*लगातार विदलनों के पश्चात् कोशिकाओं की एक ठोस गेंद बन जाती है, जिसे मोरुला (Morula) कहते हैं। मोरुला में कोरकगुहा (Blastocoel) अनुपस्थित होती है।
* तत्पश्चात् लगातार विदलन के फलस्वरूप कोरकखण्डों के मध्य में एक गुहा (कोरकगुहा) विकसित हो जाती है, जो कोशिकीय आवण जैसे कार्बोहाइड्रेट व एल्ब्यूमिन से भरी रहती है, इस अवस्था को ब्लास्टुला या कोरक कहते हैं। पक्षियों में इसे ब्लास्टोसिस्ट तथा स्तनियों में ब्लास्टोडर्मिक आशय कहते हैं। भ्रूण का गर्भाशय की दीवार से जुड़ना रोपण (Implantation) कहलाता है। ब्लास्टुला अवस्था में भ्रूण को सर्वप्रथम गर्भाशय से जोड़ने का कार्य
अपरा / कोरिऑन नामक झिल्ली करती है।
सगर्भता तथा भ्रूणीय परिवर्धन
भ्रूण के अन्तर्रापण के पश्चात् इसकी ब्लास्टोमीयर्स कोशिकाएँ आकारजनिक (Morphogenetic) विकास गतियाँ करते हैं। ये प्रमुख गतियाँ एपीबोली अर्थात् भावी एक्टोडर्म कोशिकाओं का चारों ओर फैलना तथा एम्बोली अर्थात् भावी अन्तस्त्वचा व मध्यजननस्तर कोशिकाओं का अन्दर की ओर चलना होता है। इन गतियों के कारण भ्रूण का गर्भाशय तीन जनन स्तरीय बन जाता है तथा आर्केन्टेरॉन (Archenteron) या गैस्ट्रोसील (Gastrocoel) गुहा का निर्माण हो जाता है और अन्त में विभिन्न अंगों की प्रारम्भिक रचनाएँ बनती हैं, जैसे-रुधिर, वृक्क, हृदय, जनद, त्वचा की डर्मिस, आदि का उद्भव भ्रूणीय मीसोडर्म से होता है।
बाह्य भ्रूणीय झिल्लियाँ
ये झिल्लियाँ भ्रूण की बाह्य ब्लास्टोडर्म से विकसित होती हैं और वास्तविक भ्रूण के निर्माण में भाग नहीं लेती हैं। अत: इन्हें बाह्य भ्रूणीय कलाएँ (Extraembryonic membrane) कहते हैं। भ्रूण कलाएँ पीतक कोष, एम्निऑन, कोरिऑन तथा अपरापोषिका प्रकार की होती है।।
प्लेसेन्टा या अपरा
अपरा (Placenta ) वह संरचना है, जिसके द्वारा जरायुज स्तनधारियों का विकासशील भ्रूण या गर्भ अपना पोषण मातृ गर्भाशयी रुधिर से प्राप्त करता है। यह पोषण के अतिरिक्त भ्रूण के श्वसन, प्रतिरक्षण व उत्सर्जन सम्बन्धी कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अपरा से गर्भावस्था में कोरिओनिक गोनैडोट्रॉपिन, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन तथा रिलेक्सिन नामक हॉर्मोनों का स्राव होता है।
नोट • सभी यूथीरियन स्तनियों में रुधिर जरायु अपरा पाया जाता है; जैसे मनुष्य तथा कपि।
प्रसव
गर्भावधि पूर्ण होने पर शिशु का जन्म गर्भाशय की अनैच्छिक पेशियों में संकुचन (Involuntary muscular contraction) की लम्बी प्रक्रिया से होता है, इसे प्रसव संकुचन (Labour contraction) कहते हैं तथा इस अनुभव को प्रसव वेदना (Labour pain) भी कहते हैं।
दुग्धस्रावण
सगर्भता अवधि के अन्त में शिशु के जन्म के पश्चात् स्तन ग्रन्थियों में प्रोलैक्टिन हॉर्मोन द्वारा दुग्धस्रावण प्रारम्भ हो जाता है। यह पीयूष ग्रन्थि के अग्र पिण्ड से सावित होता है। प्रसव पश्चात् प्राप्त प्रथम दुग्ध को प्रथम स्तन्य या कोलोस्ट्रम कहते हैं। यह हॉर्मोन अति पोषक द्रव होता है जो शिशु के प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत बनाता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक
प्रश्न 1. वृषण की अन्तराली (लीडिंग) कोशिकाओं से स्रावित हॉर्मोन है।
(a) टेस्टोस्टेरॉन
(b) एस्ट्रोजन
(c) FSH
(d) प्रोजेस्टेरॉन
उत्तर (a) टेस्टोस्टेरॉन
प्रश्न 2. एण्ड्रोजन स्रावित होता है।
(a) लीडिंग कोशिकाओं द्वारा
(b) सर्टोली कोशिकाओं द्वारा
(c) स्पर्मटिड्स द्वारा
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर (a) एण्ड्रोजन (टेस्टोस्टेरॉन) का स्रावण वृषण की लीडिंग कोशिकाओं द्वारा होता है।
प्रश्न 3. निम्न में से कौन नर सहायक ग्रन्थि नहीं है?
(a) शुक्राशय
(b) तुम्बिका
(c) प्रोस्टेट
(d) बल्बोयूरेथल ग्रन्थि
उत्तर(b) तुम्बिका
प्रश्न 4. स्पर्मिएशन शुक्राणुओं के कहाँ से मुक्त होने की क्रिया है?
(a) शुक्रजनन नलिका
(b) शुक्रवाहिका
(c) अधिवृषण
(d) प्रोस्टेट ग्रन्थि
उत्तर (a) शुक्रजनन नलिका
प्रश्न 5. निम्न में से किसमें 23 गुणसूत्र होते हैं?
(a) स्पर्मेटोगोनिया
(b) युग्मनज
(c) द्वितीयक ऊसाइट
(d) ऊगोनिया
उत्तर (c) द्वितीयक ऊसाइट
प्रश्न 6. ग्राफियन पुटिका पाई जाती है
(a) स्तनियों के अण्डाशय में
(b) लसीका गाँठों में
(c) स्तनियों की प्लीहा में
(d) मेंढक के अण्डाशय में
उत्तर
(a) स्तनियों के अण्डाशय में
प्रश्न 7. मोरुला परिवर्धन की अवस्था है
(a) युग्मनज व कोरक पुटी के बीच की
(b) कोरक पुटी व गैस्टुला के बीच की
(c) अन्तर्रोपण के बाद की
(d) अन्तर्रोपण व प्रसव के बीच की
उत्तर (a) युग्मनज व कोरक पुटी के बीच की
प्रश्न 8. स्त्री में अन्तर्रोपण के समय भ्रूण किस अवस्था में होता है?
(a) मोरुला अवस्था
(b) ब्लास्टुला अवस्था
(c) गैस्टुला अवस्था
(d) निरुला अवस्था
उत्तर
(b) स्त्री में अन्तर्रोपण के समय भ्रूण ब्लास्टुला अवस्था में होता है।
प्रश्न 9. ब्लास्टुला अवस्था में भ्रूण को सर्वप्रथम गर्भाशय से जोड़ने का कार्य निम्न में से कौन-सी झिल्ली करती है?
(a) एम्निऑन
(b) अपरा/कोरिऑन
(c) एलेन्टॉइस
(d) योक सैक
उत्तर (b) अपरा/कोरिऑन
प्रश्न 10. निम्न में से कौन-सा हॉर्मोन मानव अपरा द्वारा स्रावित नहीं होता?
(a) hCG
(b) एस्ट्रोजन
(c) प्रोजेस्टेरॉन
(d) LH
उत्तर
(d) LH (ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन) का स्रावण अग्र पीयूष ग्रन्थि द्वारा होता है।
प्रश्न 11. निम्नलिखित में से किसका उद्भव भ्रूणीय मीसोडर्म से होता है?
(a) मस्तिष्क
(b) फेफड़ा
(c) रुधिर
(d) यकृत
उत्तर
(c) रुधिर
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक
प्रश्न 1. वृषण के दो कार्य लिखिए।
उत्तर (i) नर लैंगिक हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्त्रावण करना ।
(ii) नर युग्मक (शुक्राणु) का निर्माण करना।
प्रश्न 2. वृषण जालिका क्या है?
उत्तर शुक्रजनन नलिकाएँ वृषण की भीतरी सतह पर नलिकाओं के एक घने जाल में खुलती हैं, इसे वृषण जालिका (Rete testes) कहते हैं। इससे 5-20 शुक्र वाहिकाएँ निकलकर एपिडिडाइमिस नलिका (Epididymis duct) में खुलती है।
प्रश्न 3. सर्टोली कोशिकाओं पर टिप्पणी लिखिए। अथवा उन कोशिकाओं का नाम लिखिए, जो विकसित हो रहे शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करती है।
उत्तर वृषण की शुक्रनलिकाओं में उपस्थित अवलम्बन कोशिकाएँ (Supporting cells) या सॉली कोशिकाएँ परिवर्धनशील शुक्राणु कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती हैं।
प्रश्न 4. लीडिंग कोशिकाओं द्वारा संश्लेषित व स्रावित वृषण हॉर्मोन का नाम लिखिए। लीडिंग कोशिकाओं के क्या कार्य है?
उत्तर कृष्ण की लीडिंग कोशिकाएँ टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन सावित करती है, जो नर के सहायक जनन अंगों तथा द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के विकास में सहायक होती है।
प्रश्न 5. शुक्राणु में एक्रोसोम का क्या महत्त्व है?
उत्तर शुक्राणु के शीर्ष भाग में केन्द्रक के ऊपर एक टोपी के समान रचना एक्रोसोम पाई जाती है। इससे स्रावित हायल्यूरोनिडेज एन्जाइम मादा अण्डाणु के बाहर उपस्थित द्वितीयक भित्ति को भेदने का कार्य करता है, जिससे शुक्राणु अण्डाणु में प्रवेश करके उसे निषेचित कर सके।
प्रश्न 6. तुम्बिका संकीर्ण पथ संन्धि का मादा जनन नाल में क्या महत्त्व है?
उत्तर फैलोपियन नलिका के लुम्बिका संकीर्ण पथ सन्धि स्थान पर अण्डाणु का शुक्राणु से निषेचन होता है।
प्रश्न 7. शुक्राणुजनन का क्या अर्थ है ?
शुक्राणुजनन को परिभाषित कीजिए।
अथवा नर जर्म कोशिकाएँ किस विभाजन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं?
उत्तर नर के वृषणों की जननिक (जर्म) उपकला कोशिकाओं से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणु निर्माण की क्रिया को शुक्रजनन या शुक्राणुजनन कहते हैं। यह प्रक्रिया वृषण की शुक्रजन नलिकाओं (Seminiferous tubules) में होती है।
प्रश्न 8. प्राक्- शुक्राणु द्वितीयक प्राक्- शुक्राणुजन से किस प्रकार के कोशिका विभाजन द्वारा बनते हैं?
उत्तर प्राक् शुक्राणु अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा बनते हैं।
प्रश्न 9. उस प्रक्रिया का नाम लिखिए, जिसमें ग्राफियन पुटिका फटकर द्वितीयक अण्डक को अण्डाशय से मोचित करता है।
उत्तर द्वितीयक अण्डाणु कोशिका के ग्राफियन पुटिका से बाहर मुक्त होने की प्रक्रिया को अण्डोत्सर्ग या डिम्बोत्सर्ग कहते हैं।
प्रश्न 10. आर्तव चक्र क्या है?
उत्तर मादा में जननकाल के प्रारम्भ के साथ ऋतुस्राव प्रारम्भ होता है, जो जननकाल की समाप्ति के पश्चात् रुक जाता है। इस काल में प्रति माह अण्डाशय से एक अण्डे का उत्सर्जन होता है। निषेचन न होने की स्थिति में गर्भाशय की दीवार एवं अण्डाशय में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, इस चक्र को ही मासिक या आर्तव चक्र कहते हैं।
प्रश्न 11. अग्र पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्रावित दो गोनैडोट्रॉपिन हॉर्मोनों के नाम लिखिए।
उत्तर अग्र पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्ववित दो गोनैडोट्रॉपिन हॉर्मोन्स के LH. ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन तथा PSH-फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हॉर्मोन है।
प्रश्न 12. आर्तव चक्र में LH सर्ज की महत्ता बताइए।
उत्तर आर्तव चक्र के मध्य में L.H सर्ज अण्डोत्सर्ग को प्रेरित करता है।
प्रश्न 13. आप क्या सोचते हैं कि कुतिया, जिसने 6 बच्चों को जन्म दिया है, के अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित हुए थे
उत्तर कुतिया के अण्डाशय से 6 अण्डे मोचित हुए थे।
प्रश्न 14. स्तनियों में निषेचन कहाँ होता है?
अथवा महिलाओं में डिम्बाणु का निषेचन कहाँ होता है? निषेचन कला का निषेचन कला बन जाने के पश्चात् अन्य शुक्राणु डिम्बाणु में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। मुख्य कार्य बताइए।
उत्तर स्तनी महिलाओं में डिम्बाणु का निषेचन फैलोपियन नलिका में होता है।
प्रश्न 15. फर्टीलाइजिन तथा एण्टीफर्टीलाइजिन प्रक्रिया पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर निषेचन के पूर्व अण्डाणु से फर्टीलाइजन का स्त्रावण करता है। यह शुक्राणु की सतह पर एण्टीफर्टीलाइजिन नामक ग्राही से क्रिया करता है, जिसके फलस्वरूप दोनों में आसंजन हो जाता है।
प्रश्न 16. युग्मनज क्या है? इसमें गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती है?
उत्तर अगुणित शुक्राणु (n) और अगुणित अण्डाणु (2) के संयोजन से युग्मनज का निर्माण होता है। इसमें गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (27) होती है।
प्रश्न 17. मानव में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती है?
उत्तर मानव में गुणसूत्रों की संख्या 23 जोड़ी (46) होती है।
प्रश्न 18. मोरुला तथा ब्लास्टुला में एक अन्तर लिखिए।
उत्तर युग्मनज के विदलन के फलस्वरूप कोशिकाओं से बनी ठोस गेंद सदृश्य संरचना मोरुला कहलाती है। ब्लास्टुला अवस्था में, खोखले गेंद सदृश्य भ्रूण में कोरकगुहा या ब्लास्टोसील पाई जाती है।
प्रश्न 19. भ्रूण के मीसोडर्म स्तर द्वारा विकसित किन्हीं चार अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर रुधिर, वृक्क, हृदय, जनद, त्वचा की डर्मिस, आदि का उद्भव भ्रूणीय मीसोडर्म से होता है।
प्रश्न 20. मानव में परिवर्द्धित भ्रूण किस अंग से पोषण व ऑक्सीजन प्राप्त करता है
उत्तर मानव में भ्रूण गर्भाशय से अपरा (Placenta ) द्वारा जुड़ा होता है। इसी के द्वारा विकासशील भ्रूण या गर्भ अपना पोषण मातृ गर्भाशयी रुधिर से प्राप्त करता है। अपरा भ्रूण को पोषण के अतिरिक्त भ्रूण के श्वसन, प्रतिरक्षण व उत्सर्जन सम्बन्धी कार्यों में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रश्न 21. ऐसे दो जन्तुओं के नाम लिखिए, जिसमें रुधिर जरायु अपरा पाया जाता है।
उत्तर सभी यूथीरियन स्तनियों(Haemochorial) में रुधिर- जराय अपरा पाया जाता है; जैसे-मनुष्य तथा कपि करता है?
प्रश्न 22. शिशु जन्म के बाद कौन-सा हॉर्मोन दुग्ध मुक्त करता है? उसका स्रोत बताइए।
उत्तर शिशु जन्म के बाद प्रोलैक्टिन हॉर्मोन दुग्ध स्रावित कराता है। यह पीयूष प्रन्थि के अग्र पिण्ड से स्रावित होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न- 2 अंक
प्रश्न 1. लैंगिक जनन से आप क्या समझते हैं? मानव शरीर में नर तथा मादा युग्मक कहाँ बनते हैं? पूर्णशक्त युग्मनज क्या है?
उत्तर लैंगिक जनन में दो भिन्न जनकों की अगुणित जनन कोशिकाओं के संयुग्मन से नए जीव का निर्माण होता है। इसमें नर तथा मादा युग्मकों अर्थात् शुक्राणु, और अण्डाणु का संयुग्मन निषेचन है, जिसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज बनता है।
नर युग्मक (शुक्राणु का निर्माण वृषण (Testis) की शुक्रजनन नलिकाओं में होता है तथा मादा युग्मक (अण्डाणु) का निर्माण अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका में होता है।
एककोशिकीय युग्मनज, जिसमें वृद्धि एवं विभाजन द्वारा बहुकोशिकीय एवं विकसित भ्रूण का निर्माण होता है, पूर्णशक्त युग्मनज कहलाता है।
प्रश्न 2. नर मानव में वृषण उदर गुहा के बाहर क्यों होते हैं?
उत्तर नर मानव में वृषण शरीर से बाहर वृषण कोष (Scrotum) में उपस्थित होते हैं। वृषण कोष का तापमान शरीर के तापमान से 2-3°C कम होता है, जिस पर शुक्राणुओं का निर्माण होता है। शरीर का तापमान अधिक होने के कारण शरीर के अन्दर शुक्राणुओं का निर्माण सम्भव नहीं हैं। अतः जन्म के समय वृषण अपने मूल स्थान से हटकर वृषण कोष में आ जाते हैं।
प्रश्न 3. शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटन क्या हैं?
उत्तर शुक्रीय प्रद्रव्य में फ्रक्टोस (Fructose), शर्करा, प्रोस्टाग्लैडिन्स (Prostaglandins) तथा सीमीनोजेलिन (Semenogelin) नामक प्रोटीन होते है। फ्रक्टोस शर्करा शुक्राणुओं में श्वसन क्रियाधार की भाँति कार्य कर ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करती है। प्रोस्टाग्लैडिन्स शुक्राणुओं को सक्रिय बनाए रखने तथा स्त्री की योनि में पेशियों के संकुचन को प्रेरित करते है। सीमीनोजेलिन स्खलन के पश्चात् वीर्य का स्कन्दन करता है, जिसके कारण वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
प्रश्न 4. शुक्रजनन नलिका की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए ।
अथना शुक्रजनन प्रक्रिया को दर्शाने वाली मानव शुक्रजन नलिका की खड़ी काट का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए।
प्रश्न 5. अण्डाशय के अनुप्रस्थ काट (TS) का एक नामांकित आरेख बनाइए ।
प्रश्न 6. स्त्री में एक पूर्ण विकसित ग्राफियन फॉलिकल का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए। (वर्णन की आवश्यकता नहीं है)
अथवा ग्राफियन पुटिका (ग्राफियन फॉलिकल) का एक नामांकित आरेख बनाइए ।
प्रश्न 7. निम्नलिखित के कार्य बताइए।
(i) पीत पिण्ड
(ii) अग्रपिण्डक
उत्तर (i) पीत पिण्ड यह ग्राफियन पुटिका के फटने के पश्चात् बनी एक ग्रन्थिल रचना है, जिससे प्रोजेस्टेरॉन, एस्ट्रोजन्स, रिलेक्सिन, आदि हॉर्मोन का स्रावण होता है। प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन भ्रूण के आरोपण तथा अपरा के निर्माण में सहायक होता है।
(ii) अग्रपिण्डक शुक्राणु के शीर्ष पर गॉल्जीकाय से बनी टोपी-सदृश संरचना को अग्रपिण्डक कहते हैं। इससे मुक्त होने वाले जल-अपघटनी। एन्जाइम अण्डाणु के रक्षात्मक आवरण का अपघटन करते हैं, जिसके फलस्वरूप शुक्राणु अण्डाणु में प्रवेश कर जाता है।
प्रश्न 8. शुक्रजनन की प्रक्रिया के नियमन में शामिल हॉर्मोनों के नाम बताइए
उत्तर शुक्रजनन किशोरावस्था से ही प्रारम्भ होने वाली प्रक्रिया है, क्योंकि इस समय गोनैडोट्रॉपिन रिलीजिंग हॉर्मोन (GnRH) अधिक मात्रा में स्रावित होता है।
यह हाइपोथैलेमस द्वारा स्रावित हॉर्मोन है, जो अपने स्तर में वृद्धि के कारण अग्र पीयूष ग्रन्थि को दो गोनैडोट्रॉपिन हॉर्मोन्स ल्यूटिनाइजिंग या पीत पिण्डक हॉर्मोन (LH) और पुटिका प्रेरक हॉर्मोन (FSH) के स्रावण के लिए उद्दीपित करता है। ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन लीडिंग कोशिकाओं पर कार्य कर पुंजनों (Androgens) के संश्लेषण व स्रावण को उद्दीपित करते हैं। पुंजन शुक्राणुजनन की प्रक्रिया को उद्दीपित करते हैं। पुटिका प्रेरक हॉर्मोन सर्टोली कोशिकाओं पर कार्य कर कुछ ऐसे घटकों के स्रावण को उद्दीपित करते हैं, जो शुक्राणुजनन की प्रक्रिया में सहायक होते हैं।
प्रश्न 9. मानव अण्डाणु का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर
प्रश्न 10. एक माह में मानव अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित होते हैं? यदि स्त्री ने समरूप जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया हो, तो आप क्या सोचते हैं कि कितने अण्डे मोचित हुए होंगे? क्या आपका उत्तर बदलेगा यदि जन्म हुए जुड़वाँ बच्चे द्विअण्डज यमज थे?
उत्तर स्त्रियों में प्रत्येक आर्तव चक्र के फलस्वरूप प्रतिमाह एक अण्ड (Ovum) ही मोचित होता है।
समरूप जुड़वाँ (Identical twins) बच्चों का जन्म एक निषेचित युग्मनज से ही होता है। यहाँ प्रथम विभाजन के फलस्वरूप बनी कोरकखण्ड एक-दूसरे से पृथक् होकर समरूप जुड़वाँ का विकास करती है।
द्विअण्डज जुड़वाँ (Fraternal twins) बच्चों का विकास अलग-अलग निषेचित युग्मनज से होता हैं। इनकी जीनी संरचना भी अलग होती है। इसका अर्थ है, कि जितने द्विअण्डज जुड़वाँ होते हैं, उतने ही अण्डाणुओं का निषेचन अलग-अलग शुक्राणुओं से होता है। अतः यहाँ दो अण्डाणुओं का निर्माण होगा।
प्रश्न 11. सगर्भता की स्थिति में पीत पिण्ड लम्बे समय तक सक्रिय रहता है। यद्यपि, निषेचन न होने की स्थिति में यह केवल 10-12 दिनों तक ही सक्रिय रहता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर अण्डोत्सर्ग के पश्चात् ग्राफियन पुटिका पीत पिण्ड का रूप धारण कर लेती है। यह उच्च सान्द्रता में प्रोजेस्टेरॉन का स्त्रावण करता है, जो गर्भाशय के अन्तः स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है। यह अन्तःस्तर अन्तर्रोपण व सगर्भता की अन्य क्रियाओं के लिए आवश्यक होता है।
इसी कारण, सगर्भता की स्थिति में पीत पिण्ड अधिक समय तक सक्रिय रहता है। परन्तु, निषेचन के अभाव में अन्तःस्तर को बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होती है। अतः पीत पिण्ड 10-12 दिनों में नष्ट हो जाता है।
प्रश्न 12. (i) एक द्वितीयक शुक्र कोशिका से कितने चल शुक्राणु या स्पर्मेटोजोआ बनते हैं?
(ii) युग्मनज का प्रथम विचलन विभाजन कहाँ होता है?
उत्तर (i) एक द्वितीयक शुक्र कोशिका में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा 4 चल शुक्राणु बनते हैं।
(ii) युग्मनज में प्रथम विदलन अण्डवाहिनी के संकीर्ण पथ या इस्थमस में होता है, जब यह गर्भाशय की ओर गति कर रहा होता है।
प्रश्न 13. विदलन को परिभाषित कीजिए। विदलन एवं समसूत्री कोशिका विभाजन में अन्तर कीजिए।
उत्तर निषेचन के 24 घण्टे बाद से युग्मनज में विदलन की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। युग्मनज का समसूत्री विभाजन द्वारा लगातार बढ़ती हुई संख्या और घटते हुए
आकार की कोशिकाओं में सतत् विखण्डन विदलन (Cleavage) कहलाता है।
विदलन और समसूत्री विभाजन में निम्नलिखित अन्तर है।
प्रश्न 14. अपरा तथा इसके हॉर्मोन्स पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – अपरा से सम्बन्धित हॉर्मोन्स इससे दो प्रोटीन हॉर्मोन्स मानव कोरिऑनिक गोडोट्रॉपिक (hCG) हॉर्मोन तथा प्लेसेन्टल लैक्टोजन हॉर्मोन का स्रावण होता है।
ये क्रमशः गर्भधारण में तथा दुग्ध ग्रन्थियों को स्त्रावण हेतु प्रेरित करने में सहायता करते हैं। अपरा से दो स्टीरॉइड हॉर्मोन्स एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरॉन भी स्रावित होते हैं। ये क्रमशः गर्भाशय की पेशियों के संकुचन तथा कॉर्पस ल्यूटियम की क्रिया को नियन्त्रण में रखते है।
प्रश्न 15. प्रथम स्तन्य (कोलोस्ट्रम) किसे कहते हैं?
अथवा डॉक्टर नवजात शिशु के विकास के आरम्भिक दिनों में स्तनपान कराने की सलाह क्यों देते हैं?
उत्तर प्रसव पश्चात् दुग्धस्रावण के आरम्भिक कुछ दिनों में स्रावित गाढ़े दुग्ध को प्रथम स्तन्य या खीस कहते हैं। पोषक तत्वों की प्रचुरता के अतिरिक्त इसमें कई प्रकार के प्रतिरक्षी समाहित होते हैं, जो नवजात शिशु रोग में प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न करने के लिए आवश्यक होते हैं। यही कारण है कि डॉक्टर एक स्वस्थ शिशु की समुचित वृद्धि एवं विकास के लिए प्रसव के बाद आरम्भ के कुछ दिनों माह तक शिशु को स्तनपान कराने की सलाह देते हैं।
प्रश्न 16. प्रसव के समय होने वाले मुख्य परिवर्तन लिखिए। अथवा प्रसव (परट्युरिशन) क्या है? प्रसव को प्रेरित करने में कौन-से हॉर्मोन शामिल होते हैं
उत्तर प्रसव की क्रिया तन्त्रिकीय-अन्तःस्रावी (Neuroendocrine) क्रिया द्वारा प्रेरित होती है। शिशु के पूर्ण विकसित होने पर गर्भ एवं अपरा दोनों से प्रसव के लिए संकेत उत्पन्न होते हैं। ये संकेत गर्भाशय में हल्के संकुचनों को प्रेरित करते हैं, इसे गर्भ निक्षेप प्रतिक्रिया (Foetal ejection reflex) कहते हैं।
इसके द्वारा माता की पीयूष ग्रन्थि से ऑक्सीटोसिन स्रावण की क्रिया सक्रिय होती है, जिससे गर्भाशय में संकुचन होने लगते हैं। ये संकुचनरन्तर बढ़ते रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शिशु के गर्भाशय से बाहर निकलने की क्रिया होती है, जिसे शिशु जन्म या प्रसव (Parturition) कहते हैं। पीत पिण्ड से सावित रिलैक्सिन हॉर्मोन प्रसव के समय गर्भाशय ग्रीवा तथा श्रोणि मेखला के स्नायु को शिथिल करता है, जिससे प्रसव के समय शिशु को जन्म लेने में आसानी रहती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II 3 अंक
प्रश्न 1. शुक्रजनक नलिका की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर प्रत्येक वृषण पिण्डक के संयोजी ऊतक में 2 या 3 स्तरीय पतली एवं अति कुण्डलित शुक्रजन नलिकाएँ (Seminiferous tubules) होती है। इन्हीं नलिकाओं में नर जनन कोशिकाएँ अथवा शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन (Spermatogenesis) द्वारा होता है।
संयोजी ऊतक में शुक्रजन नलिकाओं के अतिरिक्त रुधिर केशिकाएँ, तन्त्रिका तन्तु तथा अन्तःसावी (Endocrine) कोशिकाओं के अनेक छोटे-छोटे समूह स्थित होते है। इन अन्तःसावी कोशिकाओं को अन्तराली कोशिकाएँ या सीडिंग कोशिकाएँ (Leydig's cell) कहते हैं। ये नर हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) का स्राव करती हैं। नर हॉर्मोन नर की सहायक जनन ग्रन्थियों तथा द्वितीयक लैंगिक
लक्षणों के विकास में सहायता प्रदान करते हैं। शुक्रजन नलिका के चारों ओर सयोजी ऊतक का बना एक पतला झिल्ली युक्त आवरण होता है, जिसे आधार कला (Tunica propria) कहते हैं। इस कला के अन्तः भाग की ओर जननिक उपकला (Germinal epithelium) का एककोशिकीय स्तर होता है, जिसमें दो प्रकार की कोशिकाएँ होती है, जो निम्न है
(i) शुक्रजन कोशिकाएँ या नर जनन कोशिकाएँ
(ii) अवलम्बन वा सटोला कोशिकाएँ
प्रश्न 2. मादा स्तन ग्रन्थियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा एक उपयुक्त चित्र द्वारा स्तन ग्रन्थि के संगठन की व्याख्या कीजिए।
अथवा स्तन ग्रन्थि पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – कार्यशील स्तन ग्रन्थियाँ मादा स्तनधारियों की विशेषता है। नर एवं मादा,दोनों के वक्ष भाग में सामने की ओर दो उभरे हुए वर्णयुक्त चूचुक (Nipples) उपस्थित होते हैं। प्रत्येक चुचुक के चारों ओर का क्षेत्र वर्णयुक्त होता है। इसे स्तन-परिवेश या एरियोला (Areola) कहते हैं। मादा में चुचुकों के चारों ओर का अधिकांश भाग वसा के जमाव तथा पेशियों की प्रचुरता के कारण स्तनों (Breasts) के रूप में फूला रहता है। प्रत्येक स्तन 15-20 पालियों में बँटा रहता है एवं प्रत्येक पाली में कई छोटी पालिकाएँ होती हैं। प्रत्येक पालिका में अंगूर के गुच्छों के भाँति अनेक दुग्ध ग्रन्थियों होती है, जिन्हें कृषिका (Alveoli) कहते हैं।
गर्भावस्था के समाप्त होने पर ये कृषिकाएं फैल जाती है और इनसे दुग्ध का स्वावण होने लगता है, जो पालिकाओं में कुछ छोटी-छोटी द्वितीय वाहिनिकाओं (Secondary ductules) में बहता है। ये नलिकाएं मिलकर प्रत्येक पाली में एक दुग्ध वाहिनी (Mammary duct) बनाती हैं।
इस प्रकार प्रत्येक स्तन में 15-20 दुग्धनाल (Lactiferous duct) होती हैं, जो चूचुक के शिखर पर एक पृथक् छिद्र द्वारा बाहर निकलती है। बाहर खुलने से पूर्व इनका कुछ भाग छोटी-सी तुम्बिका (Ampulla) के रूप में फूला रहता है नर में दुग्ध ग्रन्थियाँ सक्रिय नहीं होती हैं।
प्रश्न 3. यौवनारम्भ क्या है? इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं के शरीर में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर यौवनारम्भ (Puberty) प्राणी के प्रजनन करने योग्य हो जाने को यौवनारम्भ कहते हैं।
पुरुष में यौवनारम्भ का प्रारम्भ पुरुष (बालक) में यौवनारम्भ 13-16 वर्ष की आयु में होता है। वृषण द्वारा स्रावित टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) और एण्ड्रोस्टेरॉन (Androsterone) लिंग हॉर्मोन्स से यौवनारम्भ प्रेरित होता है, जिसके फलस्वरूप बालकों में निम्नलिखित लक्षण विकसित होने लगते हैं
1. पुरुष की आवाज भारी होने लगती है और शरीर की लम्बाई में वृद्धि होती है।
2. अस्थियाँ और माँसपेशियाँ अधिक सुदृढ़ हो जाती हैं एवं कन्धे भी चौड़े हो जाते हैं।
3. दाढ़ी, मूँछ निकल आती हैं और मैथुन अंग शिश्न और वृषण कोष सुविकसित हो जाते हैं।
4. शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणुओं का निर्माण आरम्भ हो जाता है।
स्त्री में यौवनारम्भ का प्रारम्भ
स्त्री (बालिकाओं) में, यौवनारम्भ लड़कों की अपेक्षा जल्दी प्रारम्भ हो जाता है।
इनमें 11-13 वर्ष की आयु में आर्तव चक्र प्रारम्भ हो जाता है। एस्ट्रोजन (Oestrogen) और FSH हॉर्मोन्स यौवनावस्था को प्रेरित करते हैं, जिसके फलस्वरूप बालिकाओं में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं
1. बाह्य जननांगों और स्तनों का विकास होने लगता है।
2. आर्तव चक्र (Menstrual cycle) और अण्डोत्सर्ग (Ovulation) का प्रारम्भ होने लगता है।
3. चेहरे, जाँघ और नितम्बों पर वसा का संचय प्रारम्भ हो जाता है तथा श्रोणि मेखला (Pelvic girdle) फैलकर चौड़ी हो जाती है।
4. स्वर तीव्र और मधुर होने लगता है तथा कक्षीय और जघन क्षेत्रों पर बालों का उगना प्रारम्भ होने लगता है।
प्रश्न 4. शुक्राणुजनन क्या है? शुक्राणुजनन की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा शुक्राणुजनन क्या है? शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा वृषणों में शुक्राणुओं का निर्माण होता है, शुक्राणुजनन कहलाती है। यह प्रक्रिया लैंगिक हॉर्मोन्स द्वारा प्रभावित होती है।
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया निम्नलिखित तीन चरणों में पूर्ण होती हैं।
1. गुणन प्रावस्था (Multiplication phase) में शुक्रजनन नलिकाओं की जननिक एपिथीलियम की कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणुजन कोशिकाओं या स्पर्मेटोगोनिया का निर्माण होता है। ये कोशिकाएँ द्विगुणित (2n) होती हैं।
2. वृद्धि प्रावस्था (Growth phase) में शुक्राणुजन कोशिकाएँ पोषक पदार्थों का संचय करके प्राथमिक शुक्रकोशिका (Primary spermatocytes) में रूपान्तरित हो जाती हैं।
3. परिपक्वन प्रावस्था ( Maturation phase) में प्राथमिक शुक्रकोशिकाओं में प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाओं का निर्माण होता है। यह द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा पूर्व शुक्राणु कोशिका या स्पर्मेटड बनाती है। अतः एक प्राथमिक शुक्र कोशिकाओं से चार अगुणित पूर्व शुक्राणु कोशिकाओं का निर्माण होता है।
शुक्र-कायान्तरण (Spermiogenesis) द्वारा इन अचल पूर्व शुक्राणु कोशिकाओं से परिपक्व चल शुक्राणु बनते हैं।
प्रश्न 5. मानव के शुक्राणु की संरचना का वर्णन कीजिए। अथवा मानव शुक्राणु का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर शुक्राणु की संरचना प्रत्येक शुक्राणु तीन भागों में विभेदित होता है
1. शीर्ष (Head) शुक्राणु का शीर्ष प्रायः फूला हुआ, घुण्डीदार होता है, परन्तु अनेक जन्तुओं में यह लम्बा, दण्डनुमा होता है। इसमें केन्द्रक स्थित होता है और केन्द्रक के चारों ओर थोड़ा-सा कोशिकाद्रव्य होता है। इसके शीर्ष पर गॉल्जीकाय की बनी एक्रोसोम नामक टोपीनुमा संरचना होती है, जो जल-अपघटनी एंजाइमों का स्रावण कर अण्डाणु की भित्ति को नष्ट कर निषेचन में सहायक होता है।
2. मध्य खण्ड (Middle piece) यह केन्द्रीय पतला, दण्डनुमा भाग होता है, जो छोटी-सी ग्रीवा (Neck) द्वारा शीर्ष से जुड़ा रहता है। मध्य खण्ड में माइटोकॉण्ड्रिया उपस्थित होते हैं। जो गति हेतु ऊर्जा प्रदान करते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया के आगे ग्रीवा में एवं पीछे दो तारककेन्द्र (Centrioles) स्थित होते हैं।
3. पुच्छ (Tail) पुच्छ प्रायः लम्बी, कोड़ेनुमा और अत्यधिक गतिशील होती है। पुच्छ द्वारा शुक्राणु तरल माध्यम में गति करता है।
प्रश्न 6. 'मानव भ्रूण के रोपण' पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर ब्लास्टोसिस्ट या भ्रूण का गर्भाशय की दीवार से जुड़ना रोपण (Implantation) कहलाता है। यह क्रिया निषेचन के 7-8 दिन बाद होती है। इसमें भ्रूण के ऊपर उपस्थित जोना पेलुसिडा (Zona pellucida) आवरण विलुप्त हो जाता है, जिससे ट्रोफोब्लास्ट (Trophoblast) कोशिकाएँ गर्भाशय के अन्त:स्तर (Endometrium) के सीधे सम्पर्क में आ जाती हैं। कोरिऑन स्तर गर्भाशय के अन्त:स्तर एण्डोमेट्रियम के साथ जरायु अपरा बनाता है। ये जरायु • कोशिकाएँ ह्यूमन कोरिऑनिक गोनैडोट्रॉपिन हॉर्मोन को स्रावित करती हैं। ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाओं से स्रावित लाइटिक एन्जाइम गर्भाशय की एण्डोमैट्रियम कोशिकाओं को नष्ट करता है, जिससे भ्रूण पूर्ण रूप से एण्डोमेट्रियम में धँस जाता है। ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाएँ रसांकुर बनाती हैं। इन रसांकुरों की कोशिकाएँ विभाजित होकर सिन्साइशियों ट्रोफोब्लास्ट (Syncytio trophoblast) बनाती हैं जो गर्भाशय की भित्ति से जुड़ जाता है। यह प्रक्रिया ही रोपण कहलाती है। 3]
प्रश्न 7. भ्रूणीय (गर्भ) झिल्लियों पर टिप्पणी कीजिए। अथवा किन्हीं दो गर्भ झिल्लियों के नाम तथा कार्य लिखिए।
उत्तर मानव भ्रूण के चारों ओर तीन झिल्लियाँ उपस्थित होती है, जो निम्नलिखित है
1. पीतक कोष भ्रूण के भोजन का मुख्य स्रोत पीतक है। यह एक कोष-समान निवेशित कला (Investing membrane) द्वारा घिरा होता है, जिसे पीतक कोष (Yolk sac) कहते हैं। पीतक कोष पीतक की रक्षा करता है एवं उसे सही स्थिति में बनाए रखता है। उसे पचाता और अवशोषित करता है। इस प्रकार यह भ्रूण के पोषण का प्राथमिक अंग होता है। इसमें रुधिर का भी निर्माण होता है।
2. एम्निऑन व कोरिऑन साथ-साथ विकसित होती है। आन्तरिक स्तर वास्तविक एम्निऑन कहलाता है तथा बाह्य स्तर सीरमी कला या कोरिऑन कहलाता है। एम्निऑन व कोरिऑन के बीच की भ्रूण बाह्य प्रगुहा कोरिऑनिक गुहा (Chorionic cavity) कहलाती है। एम्निऑन भ्रूण के चारों और एक तरल स्रोत प्रदान करके भ्रूण में हो सकने वाली जल की कमी को दूर करता है व एम्निऑन तरल (Amniotic fluid) एक रक्षा गद्दी (Protective cushion) की भाँति कार्य करता है। कोरिऑन, अपरापोषिका के साथ श्वसन पोषण तथा उत्सर्जन में सहायक होता है।
3. अपरापोषिका एम्निऑन व कोरिऑन के बीच भ्रूण की बाह्य प्रगुहा अपरापोषिका पाई जाती है। यह एक आशय के समान संरचना होती हैं, जो भ्रूणीय श्वसन अंग तथा भ्रूणीय मूत्राशय का कार्य करती है।
प्रश्न 8. अपरा की परिभाषा दीजिए। इसके दो कार्य लिखिए।
अथवा अपरा से क्या तात्पर्य है? अपरा के प्रकार तथा कार्य का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा अपरा (प्लेसेण्टा) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा अपरा क्या है? इसके मुख्य कार्य लिखिए। अथवा अपरा की परिभाषा दीजिए तथा इसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – अपरा (Placenta ) वह संरचना है, जिसके द्वारा जरायुज स्तनधारियों का विकासशील भ्रूण या गर्भ मातृक गर्भाशयी रुधिर से अपना पोषण प्राप्त करता है।
भ्रूणीय झिल्लियों के आधार पर अपरा निम्नलिखित प्रकार की होती हैं।
1. पीतक कोष अपरा (Yolk sac placenta ) इसमें अपरा पीतक कोष से बना होता है; जैसे कंगारू में।
2. कोरिओएलैन्टोइक अपरा (Chorioallantoic placenta ) इसमें अपरा कोरिऑन और एलेन्टॉइस (Allantois) झिल्लियों से बनता है जैसे मनुष्य में 3. जरा अपरा (Chorionic placenta ) इसमें अपरा कोरिऑन झिल्ली से बना होता है; जैसे-यूथीरियन प्राणियों में।
अपरा के कार्य
1. अपरा के द्वारा विकसित होते भ्रूण को पोषण एवं ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
2. अपरा द्वारा उत्सर्जी पदार्थ भ्रूण के रुधिर से विसरण द्वारा माता के रुधिर में चले जाते हैं। अत: अपरा उत्सर्जन में भी सहायक है।
3. अपरा चयनात्मक अवरोधक (Selective barrier) की भांति कार्य करता है। यह माता के रुधिर से लाभदायक पदार्थों को भ्रूण के रुधिर में प्रवेश करने देता है. किन्तु हानिकारक पदार्थों को भ्रूण में प्रवेश करने से रोकता है।
4. अपरा द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन्स गर्भावस्था बनाए रखने और शिशु जन्म में सहायता करते हैं।
प्रश्न 9. 'मानव में भ्रूणीय प्रवर्धन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर मानव में निषेचन पश्चात् निर्मित युग्मनज एककोशिकीय एवं द्विगुणित (Diploid) संरचना होती है। इसमें समसूत्री विभाजन (Mitosis) होता है, जिसके फलस्वरूप यह बहुकोशिकीय भ्रूण में बदल जाता है। युग्मनज में इस प्रक्रिया को विदलन (Cleavage) कहते हैं, सम्पूर्ण बहुकोशिकीय भ्रूणावस्था तक पहुँचने के लिए युग्मनज पहले मॉरुला (Morula), ब्लास्टुला (Blastula) तथा फिर गैस्टुला (Gastrula) प्रावस्था में बदलता है। मनुष्य तथा सभी स्तनियों में अधिकांश भ्रूण का परिवर्धन मादा शरीर के अन्दर (गर्भाशय में) होता है, इसे जरायुजता (Viviparity) कहते हैं तथा ऐसे जीव जरायुज (Viviparous) कहलाते हैं।
मानव में भ्रूण को विकसित होने में 9 माह का समय लगता है। इस पूरे समय के दौरान भ्रूण मादा (स्त्री) के गर्भाशय में रोपित रहता है और अपरा (Placenta) के द्वारा अपनी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, जोकि एक तश्तरीनुमा संरचना होती है, जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी रहती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5 अंक
प्रश्न 1. नर जनन तन्त्र या पुरुष के जनन अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा मानव के नर जनन तन्त्र का नामांकित चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए।
अथवा मानव के नर जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए। वृषण का मुख्य कार्य क्या है?
अथवा मानव के नर जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए। इसमें शुक्राणु कहाँ संचित रहते हैं?
उत्तर नर जनन अंगों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँट सकते हैं
1. मुख्य जनन अंग इन अंगों में अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है। वृषण (Testis) मानव में एक जोड़ी वृषण उदर गुहा से बाहर वृषण कोष (Scrotal sac) में स्थित होते हैं। वृषण लगभग 4-5 सेमी लम्बा 2.5 सेमी चौड़ा व 3 सेमी मोटा होता है। वृषण अनेक कुण्डलित नलिकाओं के बने होते हैं, जो शुक्रजनन नलिकाएँ कहलाती हैं। इन शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणुओं का निर्माण होता है। वृषण में उपस्थित लीडिंग कोशिकाएँ नर लैंगिक हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्त्रावण करती हैं।
2. सहायक जनन अंग ये अंग जनन की प्रक्रिया में सहायक होते हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित है
अधिवृषण (Epididymis) ये लगभग 6 मीटर लम्बी, पतली तथा अत्यधिक कुण्डलित नलिका होती है, जो वृषण के अग्र पश्च तथा भीतरी भाग को ढकने में सहायक है। यह अति कुण्डलित होकर लगभग 4 सेमी लम्बी, चपटी एवं कोमा (,) के आकार की संरचना बनाती है। एपिडिडाइमिस में शुक्राणु का संग्रहण व परिपक्वन होता है। एपिडिडाइमिस के तीन भाग होते हैं-शीर्ष एपिडिडाइमिस (Caput .epididymis), मध्य भाग या एपिडिडाइमिस काय (Corpus epididymis) तथा पुच्छ एपिडिडाइमिस (Cauda epididymis)।
शुक्रवाहिनी (Vas deferens) एपिडिडाइमिस से एक शुक्रवाहिनी निकलकर उदरगुहा में प्रवेश करते हुए शुक्राशय से होते हुए मूत्रमार्ग के अधर भाग में खुलती है।
शुक्राशय (Seminal vesicle) यह एक द्विपालित थैलीनुमा ग्रन्थिल संरचना होती है। इससे चिपचिपा द्रव स्रावित होता है, जो वीर्य का मुख्य भाग बनाता है तथा शुक्राणुओं का पोषण करता है।
मूत्रमार्ग (Urethra) मूत्र तथा वीर्य इसी मार्ग द्वारा शरीर से बाहर आते हैं।
शिश्न (Penis) यह मैथुन अंग है। यह वृषण कोषों के मध्य स्थित होता है। शिश्न के मध्य से मूत्रमार्ग गुजरता है, जो शिश्न के अग्र छोर पर खुलता है।
3. सहायक जनन ग्रन्थियाँ इन ग्रन्थियों के स्राव जनन प्रक्रिया में सहायक होते है।
ये निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland) यह ग्रन्थि मूत्रमार्ग के अधर तल पर स्थित होती है। यह अनेक पिण्डों (Lobules) की बनी होती है। इस ग्रन्थि से हल्का क्षारीय तरल स्रावित होता है, जो मूत्रमार्ग की अम्लीयता को नष्ट करता है, जिससे शुक्राणु सक्रिय बने रहते हैं।
काउपर्स ग्रन्थियाँ (Cowper's glands) ये एक जोड़ी ग्रन्थियाँ मूत्रमार्ग के दाएँ व बाएँ ओर स्थित होती हैं। काउपर्स ग्रन्थियाँ मैथुन से पहले एक क्षारीय एवं चिकने द्रव का स्रावण करती हैं। यह मूत्रमार्ग की अम्लता को समाप्त करता है तथा योनि मार्ग को चिकना बनाकर मैथुन में सहायक है।
पेरीनियल ग्रन्थियाँ (Perineal glands) एक जोड़ी ग्रन्थियाँ मलाशय के पास स्थित होती हैं। इनसे स्रावित रसायन विशेष सम्भोग उत्तेजक गन्ध प्रदान करता है।
प्रश्न 2. मनुष्य में मादा जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
अथवा मानव में मादा जनन तन्त्र का नामांकित चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए |
अथवा उपयुक्त चित्र की सहायता से मानव में मादा जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
अथवा मानव के मादा जनन तन्त्र का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए । इसके दो अंगों के कार्य का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – मादा जनन तन्त्र का निम्नलिखित तीन भागों में बाँट सकते हैं
1. मुख्य जनन अंग इनमें अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है।
अण्डाशय (Ovaries) मादा में एक जोड़ी अण्डाशय श्रोणि (Pelvis) गुहा में गर्भाशय के दोनों तरफ, अण्डवाहिनियों के पीछे, नीचे के ओर स्थित होते हैं। ये अण्डाशयधर (Mesovarium) द्वारा वृक्क के पीछे देह भित्ति से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक अण्डाशय अण्डाशयी स्नायु (Ovarian ligament) द्वारा गर्भाशय से तथा अण्डाशयी फिम्ब्री (Ovarian fimbrae) द्वारा अण्डवाहिनी से जुड़ा रहता है। अण्डाशय में परिधि की ओर ग्राफियन पुटिकाएँ होती हैं, जिनमें अण्डाणु का निर्माण होता है। ये लिंग हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन का भी स्रावण करते हैं।
2. सहायक जनन अंग ये अंग जनन की प्रक्रिया में सहायक होते हैं।
अण्डवाहिनियाँ या फैलोपियन नलिका (Fallopian tube) ये एक जोड़ी पतली व कुण्डलित नलिकाएँ होती है। प्रत्येक अण्डवाहिनी वायुकोष्ठिका या इन्फन्डीबुलम, तुम्बिका (Ampulla), इस्थमस या संकीर्ण पथ (Isthmus) तथा गर्भाशय भाग में विभाजित होती है। अण्डवाहिनियों की भित्ति का बाह्य आवरण पेरीटोनियम (Peritoneum) होता है तथा इसके नीचे पेशीय आवरण (Muscular coat) होता है। इनके मुख पर कीप के आकार की झालरदार कीप (Fimbriated funnel) होती है। इसके बाद का कुण्डलित भाग फैलोपियन नलिका कहलाता है।
गर्भाशय (Uterus) यह मूत्राशय (Urinary bladder) के ऊपर तथा पीछे स्थित उल्टे नाशपती के आकार की संरचना है, स्नायु (Ligaments) के द्वारा शरीर से चिपका रहता है। गर्भाशय की दीवार सरल पेशीय तन्तुओं की बनी होती है, जिसे मायोमेट्रियम (Miometrium) कहते है। गर्भाशय का ल्यूमेन श्लेष्मिका झिल्ली के द्वारा घिरा रहता है, जिसे एण्डोमेट्रियम (Endometrium) कहते हैं। गर्भाशय में भ्रूण, अपरा (Placenta) के द्वारा जुड़ा रहता है।
योनि (Vagina) यह मूत्रमार्ग तथा गुदा के बीच अग्र भाग में झिल्लीमय पेशीय नलिका होती है। यह सम्भोग (Mating) के दौरान शिश्न से वीर्य ग्रहण करती है तथा शिशु के जन्म के समय जन्म नाल के रूप में कार्य करती है।
भग (Vulva) मादा मानव के बाह्य जनन अंगों को सामूहिक रूप से भग कहते हैं। यह मोन्स प्यूबिस (Mons pubis), बृहद्भगोष्ठ (Inbia majora), लघुभगोष्ठ (Labia minora) पेरिनियम (Perinium), भगशेफ (Clitoris) एवं प्रत्राण (Vestibule) से मिलकर बनता है। भगशेफ नर शिश्न के समांग (Homologous) होता है और संवेदनशील अंग है।
3. सहायक ग्रन्थियाँ इन ग्रन्थियों के स्राव जनन प्रक्रिया में सहायक होते हैं ये निम्नवत हैं
बार्थोलिन ग्रन्थियाँ (Bartholins glands) ये एक जोड़ी होती हैं, जो मलाशय व प्रभ्राण के बीच स्थित होती है। ये चिपचिपा व सावित करती हैं, जो मैथुन में सहायक होता है।
स्तन ग्रन्थियाँ (Mammary glands) एक जोड़ी स्तन ग्रन्थियाँ वक्ष के अधर भाग में स्थित होती है। ये दुग्धस्रावण करने वाली ग्रन्थियाँ हैं।
प्रत्येक ग्रन्थि 15-20 पालिकाओं की बनी होती हैं। इन पर उभरे हुए सूचक पाए जाते हैं। चूचुक (Nipple) के चारों ओर उपस्थित गोलाकार वर्णक युक्त भाग को एरियोला (Areola) कहते हैं।
प्रश्न 3. अण्डाणुजनन क्या है? अण्डाणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। अण्डाणुजनन तथा शुक्राणुजनन में समानताएँ एवं असमानताएँ बताइए।
अथवा अण्डाणुजनन तथा शुक्राणुजनन में अन्तर लिखिए।
अथवा युग्मकजनन की परिभाषा लिखिए। अण्डाणुजनन की क्रिया समझाइए । अण्डाणुजनन तथा शुक्राणुजनन में अन्तर बताइए।
अथवा शुक्राणुजनन एवं अण्डजनन का वर्णन कीजिए। इन दोनों में समानता एवं अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा मानव में अण्डाणुजनन की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए तथा शुक्राणुजनन से इसकी तुलना कीजिए।
अथवा पुरुष में शुक्रजनन का वर्णन कीजिए तथा शुक्राणु का नामांकित चित्र बनाइए।
अथवा युग्मकजनन क्या है? नामांकित चित्र की सहायता से मानव में शुक्रजनन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर –युग्मकजनन (Gametogenesis) यह एक जटिल प्रक्रम है, जिसमें अर्द्धसूत्री और समसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित (Haploid) जनन कोशिका या युग्मकों (शुक्राणु/ अण्डाणु) का निर्माण होता है।
अण्डाणुजनन (Oogenesis) मादा में अण्डाशयों की जननिक उपकला की प्राथमिक जनन कोशिकाओं (Primordial germ cells) में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित अण्डाणु बनने की प्रक्रिया को अण्डजनन कहते हैं।
अण्डाणुजनन प्रक्रिया अण्डजनन की प्रक्रिया को तीन भागों में बाँटा गया है
1. गुणन प्रावस्था (Multiplication phase) में अण्डाशय के निर्माण के समय ही प्राथमिक अण्डाणुजन कोशिकाएँ समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होकर अण्डाशयी पुटिकाओं (Ovarian follicles) के रूप में एकत्रित हो जाती हैं, जिसमें से एक कोशिका अण्डाणु मातृ कोशिका (Egg mother cell) के रूप में विभेदित होती है।
2. वृद्धि प्रावस्था (Growth phase) बहुत लम्बी होती है। अण्डाणु मातृ कोशिका, अण्डाणु जनन कोशिका या ऊगोनियम (Oogonium) में विभेदित होकर वृद्धि प्रावस्था में प्रवेश करती है। यह अधिक मात्रा में पोषक पदार्थों को संचित करके आकार में वृद्धि कर लेती है। इसे पूर्व अण्डाणु कोशिका या प्राथमिक ऊसाइट (Primary oocyte) कहते हैं।
3. परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase) ग्राफियन पुटिका के परिपक्व होने के बाद इसमें उपस्थित प्राथमिक अण्डक (Primary oocyte) में प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन होता है, जो असमान होता है, जिसके फलस्वरूप एक अगुणित द्वितीयक अण्डक (Haploid secondary oocyte) और एक छोटी ध्रुवीय काय (Polar body) का निर्माण होता है।
ग्राफियन पुटिका के फटने से यह द्वितीयक अण्डाणु कोशिका मुक्त होकर फैलोपियन नलिका में प्रवेश कर जाती है। इसमें द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन शुक्राणु के अण्डाणु में प्रवेश के पश्चात् होता है।
शुक्राणुजनन और अण्डाणुजनन में अन्तर निम्नलिखित हैं
शुक्राणुजनन और अण्डाणुजनन में समानताएँ
1. दोनों क्रियाएँ तीन प्रावस्था में पूर्ण होती हैं- गुणन प्रावस्था, वृद्धि प्रावस्था और परिपक्वन प्रावस्था ।
2. दोनों क्रियाएं जनदों की जनन उपकला कोशिकाओं में होती हैं।
3. दोनों क्रियाओं में मुख्य भूमिका अर्द्धसूत्री विभाजन की होती हैं।
युग्मकजनन का महत्त्व यह एक जटिल प्रक्रम है। इसमें अर्द्धसूत्री और समसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है। नर और मादा युग्मकों के निषेचन के समय संयोजन (Fusion) से द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है। युग्मकजनन और निषेचन के फलस्वरूप जीवधारी का गुणसूत्र प्रारूप निश्चित बना रहता है।
प्रश्न 4. मादाओं में रजोधर्म या मासिक चक्र का सविस्तार वर्णन कीजिए। अथवा आर्तव चक्र क्या है? आर्तव चक्र (मेन्स्ट्रुअल साइकिल) का नियमन कौन-सा हॉर्मोन करता है?
उत्तर– मादा में जननकाल के प्रारम्भ के साथ ऋतुस्राव प्रारम्भ होता है, जो जननकाल की समाप्ति के पश्चात् रुक जाता है। इस काल में प्रति माह अण्डाशय से एक अण्डे का उत्पादन होता है। निषेचन न होने की स्थिति में गर्भाशय की दीवार एवं अण्डाशय में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, इस चक्र को मासिक या आर्तव चक्र कहते हैं। यह चक्र औसतन 28 दिन में पूरा होता है, तत्पश्चात् रुधिर का स्राव शुरू हो जाता है। इसी रुधिर के साथ अनिषेचित अण्डा भी योनि द्वारा बाहर आ जाता है, इसे मासिक धर्म या रजोधर्म (Menstruation cycle) कहते हैं। अतः एक रजोधर्म से दूसरे रजोधर्म के मध्य के घटना चक्र को आर्तव चक्र कहते हैं।
मासिक चक्र की प्रक्रिया को प्रमुख रूप से तीन प्रावस्थाओं में बाँटा जा सकता है।
1. रजोस्त्राव प्रावस्था (Menstruation phase) प्रत्येक मासिक चक्र का प्रारम्भ रुधिर स्राव से प्रारम्भ होता है, जो लगभग 5 दिनों तक चलता है। रुधिर में मादा हॉर्मोन्स एस्ट्रोजन (Oestrogen) तथा प्रोजेस्टेरॉन की मात्रा के अत्यधिक कम हो जाने से गर्भाशयी भित्ति की धमनियाँ सिकुड़कर रुधिर की आपूर्ति कम कर देती हैं, जिससे भित्ति की अनेक कोशिका मृत हो जाती हैं।
2. पूर्व अण्डोत्सर्गीय प्रावस्था (Pre-ovulatory phase) यह मासिक चक्र के छठे से लेकर 13 वें दिन की अवधि होती है। छठें दिन पीयूष ग्रन्थि से स्रावित हॉर्मोन के प्रभाव से वृद्धिशील पुटिकाओं में और अधिक वृद्धि होती. है तथा इनसे एस्ट्रोजन तथा इन्हिबिन हॉर्मोन का स्रावण होने लगता है। इसलिए इस प्रावस्था को पुटिकीय प्रावस्था (Follicular phase) कहते हैं।
परिवर्धनशील पुटिका परिपक्व ग्राफियन पुटिका बन जाती है और यह अण्डाशय की सतह पर उभर आती है। पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित दूसरे हॉर्मोन LH की मात्रा बढ़ने से ग्राफियन पुटिका से एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्रावण बढ़ जाता है और जिसके कारण ये फट जाती हैं तथा द्वितीयक अण्ड कोशिका अण्डोत्सर्ग के लिए तैयार हो जाती है।
अण्डोत्सर्ग के एक-दो दिन पहले ग्राफियन पुटिका से प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन की कुछ मात्रा सावित होती है और 14वें दिन LH हॉर्मोन के प्रभाव से अण्डोत्सर्ग होता है। मुक्त हुई द्वितीयक अण्डक कोशिका अण्डवाहिनी में चली जाती है तथा एस्ट्रोजन हॉर्मोन के प्रभाव के कारण गर्भाशय की भित्ति का पुनः निर्माण हो जाता है।
3. पश्च-अण्डोत्सर्गीय प्रावस्था (Post-ovulatory phase) यह मासिक चक्र की अन्तिम अवधि होती है, जो 15-28 वें दिन की अवधि होती है। इसमें LH के प्रभाव के कारण फटी हुई ग्राफियन पुटिका में कॉर्पस ल्यूटियम (Corpus luteum) बन जाता है। यह सात दिन वृद्धि करने के पश्चात् प्रोजेस्टेरॉन का स्रावण करती है। LH द्वारा इसकी मात्रा एवं स्रावण का नियन्त्रण होता है। अण्डाणु का निषेचन न होने की स्थिति में कॉर्पस ल्यूटियम विघटित होकर एक श्वेत कॉर्पस एल्बिकैन्स (Corpus albicans) बनाता है। यह रुधिर में प्रोजेस्टेरॉन की मात्रा को कम करता है। अण्डाणु का निषेचन होने पर प्रोजेस्टेरॉन गर्भाशय को सम्भावित सगर्भता के लिए तैयार करता है।
इसके कारण गर्भाशय की अन्तःभित्ति रोपण हेतु अधिक मोटी हो जाती है।
प्रश्न 5. निषेचन क्रिया किसे कहते हैं? मनुष्य में निषेचन के समय होने वाली क्रियाओं का उल्लेख कीजिए तथा अण्डाणु में शुक्राणु के प्रवेश का नामांकित चित्र बनाइए। निषेचन का महत्त्व बताइए।
उत्तर – निषेचन (Fertilisation) अगुणित नर शुक्राणु (n) व अगुणित मादा अण्डाणु (n) युग्मकों के संयोजन को निषेचन कहते हैं, जिसके फलस्वरूप द्विगुणित (2n) युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है। स्तनियों में फैलोपियन नलिकाओं में यह क्रिया सम्पन्न होती है।
अण्डाशय में ग्राफियन पुटिका के फट जाने से एक द्वितीयक अण्डक कोशिका मुक्त होकर अण्डवाहिनी में आ जाता है। यह कोशिका अण्डवाहिनी की भित्ति में उपस्थित पक्ष्माभ तथा श्लेष्मा के द्वारा तरंग गति से गर्भाशय की ओर अग्रसर होती है। निषेचन की क्रिया इसके बाद होती है। शुक्राणुओं की सतह पर 'असंख्य एण्टीफर्टिलाइजिन नामक ग्राही स्थल उपस्थित रहते हैं। अण्डाणु की सतह पर उपस्थित फर्टिलाइजिन इन ग्राही स्थलों के प्रति आसंजकता प्रदर्शित करता है, जिसके कारण शुक्राणु अण्डाणु की ओर गति करते हैं। अण्डोत्सर्ग के पश्चात् द्वितीयक अण्डक कोशिका लगभग 24 घण्टों तक तथा स्खलन के बाद शुक्राणु लगभग 48 घण्टे तक निषेचन के योग्य होते हैं।
मैथुन क्रिया के बाद शुक्राणु मादा की योनि एवं गर्भाशय से होते हुए शीघ्र ही अण्डवाहिनी में पहुँच जाते हैं, परन्तु शुक्राणु अपनी मूल दशा में अण्डक का निषेचन नहीं कर सकते हैं। अतः निषेचन के योग्य होने के लिए इनमें कुछ परिवर्तन होते हैं, जिसे सामर्थ्यधारिता (Capacitation) कहते हैं।
इन परिवर्तनों के फलस्वरूप एक्रोसोम पर से ग्लाइकोप्रोटीन स्तर तथा कोशिका कला की कुछ प्रोटीन्स हट जाती है। सामर्थ्यधारिता प्रक्रिया शुक्राणु को निषेचन के लिए तथा अण्डाणु से संकेत ग्रहण करने के लिए तैयार करती है। तत्पश्चात् सैकड़ों सामर्थ्यधारी शुक्राणु अपने एक्रोसोम द्वारा अण्डक की प्रसारण किरीट (Corona radiata) भित्ति से चिपक जाते हैं।
इस समय एक्रोसोम से हाइलुरोनिडेज (Hyaluronidase) तथा न्यूरिमिनीडेज (Nuriminidase) नामक एन्जाइम मुक्त होते हैं। ये एन्जाइम अण्डक की कोरोना रेडिएटा तथा पारभासी आवरण या जोना पेल्युसिडा (Zona pellucida) भित्ति को विघटित करके शुक्राणु के अण्डक में प्रवेश के लिए मार्ग बनाते हैं। इस प्रकार शुक्राणु अण्डक कोशिका की कोशिका कला तक पहुँच जाते हैं। जैसे ही किसी शुक्राणु का इस कला से सम्पर्क होता है, अण्डक कोशिका से कुछ एन्जाइम मुक्त होकर पारभासी स्तर को अन्य सभी शुक्राणुओं के लिए अभेद्य बना देते हैं। तत्पश्चात् अण्डक कोशिका उत्तेजित होकर द्वितीय परिपक्वन विभाजन (अर्द्धसूत्री विभाजन-II) पूर्ण करती है, जिससे अण्डक परिपक्व अण्डाणु बन जाता है। इसमें मादा केन्द्रक होता है तथा एक छोटी द्वितीय ध्रुवीय कोशिका बन जाती है। शुक्राणु अण्डाणु में सक्रिय ध्रुव के निकट से प्रवेश करता है। शुक्राणु का केवल शीर्ष तथा मध्य भाग ही अण्डाणु में प्रवेश करता है। इस तरह शुक्राणु एवं अण्डाणु के केन्द्रकों के समेकन से एक द्विगुणित कोशिका बनती है, जो युग्मनज या निषेचित अण्डाणु कहलाती है।
निषेचन का महत्त्व
निषेचन के निम्नलिखित महत्त्व होते हैं
(i) दो अगुणित युग्मकों के संलयन के फलस्वरूप बना युग्मनज, गुणसूत्रों की संख्या को पुनः द्विगुणित करता है।
(ii) शुक्राणु निषेचन क्रिया में अण्डे के अन्दर पहुँचकर अण्डक कोशिका को द्वितीयक परिपक्वन विभाजन के लिए सक्रिय करता है।
(iii) निषेचन युग्मनज में विदलन या भ्रूणीय विकास के लिए प्रेरित करता है।
(iv) अलग-अलग युग्मकों के संलयन से सन्तान में पैतृक लक्षणों का समावेश होता है, जिससे आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। ये विभिन्नताएँ जैव-विकास के लिए आवश्यक होती हैं।
प्रश्न 6. मनुष्य में भ्रूणीय विकास की प्रक्रिया का ब्लास्टुला निर्माण तक वर्णन कीजिए।
अथवा विदलन की परिभाषा दीजिए। मानव भ्रूण विकास में युग्मनज से लेकर कोरकपुटी (ब्लास्टोसिस्ट) के निर्माण तक होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
अथवा अन्तर्रोपण से पूर्व युग्मनज अनेक विकासीय अवस्थाओं से गुजरता है। प्रत्येक अवस्था की उचित चित्र की सहायता से व्याख्या कीजिए।
उत्तर – मानव में प्रत्यक्ष भ्रूणीय विकास माता के गर्भाशय (Uterus) में होता है। भ्रूणीय विकास निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है
3. ब्लास्टुलाभवन (Blastulation) विदलन के फलस्वरूप एककोशिकीय युग्मनज 16-32 कोशिकीय ठोस गेंदनुमा मोरुला अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। निषेचन के 5-6 दिन बाद मोरुला फैलोपियन नलिका से होते हुए गर्भाशय में पहुँच जाता है। मोरुला की कोशिकाएँ गर्भाशय की ग्रन्थियों से स्रावित पोषक पदार्थों को ग्रहण करने लगती हैं। विदलन विभाजनों के फलस्वरूप धीरे-धीरे मोरुला में कोरकगुहा या ब्लास्टोसील का निर्माण होता है। अब यह भ्रूण कोरक या ब्लास्टुला कहलाता है। ब्लास्टुला में बाहर की ओर कोशिकाओं की एक परत होती है, जो पोषकोरक या ट्रोफोब्लास्ट या ट्रोफोएक्टोडर्म कहलाती है। इन कोशिकाओं से अपरा का निर्माण होता है। ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाएँ गर्भाशय में उपस्थित पोषक रस का अवशोषण करती हैं। इससे ब्लास्टुला की गुहिका में द्रव एकत्रित हो जाता है। प्राणी ध्रुव (Animal pole) की ओर एकत्रित कोशिकाओं के समूह को अन्तः कोशिका समूह (Inner cell mass) कहते हैं। अन्तःकोशिका समूह के ऊपर स्थित ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाओं की सतह रॉबर की कोशिकाएँ (Cells of Rauber) कहलाती हैं।
4. रोपण (Implantation) निषेचन के 7वें दिन ब्लास्टोसिस्ट का गर्भाशय की भित्ति में रोपण प्रारम्भ हो जाता है। ट्रोफोब्लास्ट की बाह्य सतह पर रसांकुरों का निर्माण होता है। ये ट्रोफोब्लास्टीय रसांकुर कहलाते हैं। इनकी सहायता से ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय की भित्ति में रोपित हो जाता है और जरायु (Placenta) निर्माण तक इसी के द्वारा पोषण प्राप्त करता है। जरायु की कोशिकाएँ ह्यूमन कोरिऑनिक गोनैडोट्रॉपिन हॉर्मोन (human Chorionic Gonadotropin Hormone or hCGH) का स्रावण करती हैं, जो गर्भावस्था बनाए रखने में सहायता करता है।
प्रश्न 7. मानव भ्रूण विकास की गैस्टुलाभवन प्रावस्था का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर – गैस्टूलाभवन (Gastrulation) ब्लास्टुला की सतह से कुछ विशेष कोशिकाओं की गति, स्थानान्तरण व पुनर्विन्यास द्वारा एकस्तरीय ब्लास्टुला द्विस्तरीय संरचना बनाता है। भ्रूण परिवर्धन की इस अवस्था को गैस्ट्रूला (Gastrula) तथा गैस्टूला बनने में होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं के प्रक्रम को गैस्टूलेशन या गैस्ट्रलाभवन कहते हैं।
गैस्टूलेशन की क्रिया तीन प्रकार की संरचना विकास गतियों द्वारा पूर्ण होती हैं
1. अध्यारोहण (Epiboly)
3. अन्तर्वलन (Involution)
2. एम्बोली (Emboly)
इन तीनों प्रकार की गतियों में घूर्णन (Rotation), अधर अपसरण (Divergence) तथा अभिसरण (Convergence) क्रियाएँ होती हैं। भ्रूण में तीन जनन स्तरों का बनना गैस्टूलेशन की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया होती है। इसमें भविष्य का अंग तन्त्र बनाने वाले भाग ब्लास्टोसिस्ट की सतह से निश्चित स्थान की ओर गति करते हैं और ये प्राथमिक तीन जनन स्तरों में व्यवस्थित हो जाते हैं। ब्लास्टोसिस्ट की अविभेदित कोशिकाएँ छोटे-छोटे समूहों में गति करके कोशिकाओं की परतें बनाती हैं। ये परतें तीनों जनन स्तर बाह्यस्तर (Ectoderm), मध्यस्तर (Mesoderm) तथा अन्त:स्तर (Endoderm) का निर्माण करते हैं। इस प्रकार कोशिकाओं की गति को मॉर्फोजेनेटिक या विकास गति कहते हैं।
भ्रूणीय विकास के दूसरे सप्ताह के अन्त तक जननिक बिम्ब (Germinal disc) में एपिब्लास्ट एवं हाइपोब्लास्ट ही होती है। दूसरे शब्दों में, यह द्विस्तरीय (Bilaminar) ही रहता है। तीसरे सप्ताह की प्रमुख प्रक्रिया तीन प्रारम्भिक जनन स्तरों (Primordial germinative layers) की स्थापना होती है। अधिकोरक • अर्थात् एपिब्लास्ट की एम्निओटिक गुहा की तरफ खुली सतह पर संकरी खाँच (Groove) के रूप में एक आद्य रेखा (Primitive streak) के बनने से इसका प्रारम्भ होता है। रेखा के दोनों सिरे फूले हुए होते हैं। अगला फूला सिरा आद्य घुण्डी (Primitive node) कहलाता है।
इसके बीच में आद्य गर्त (Primitive pit) होता है। अब एपिब्लास्ट की इधर-उधर की कोशिकाएँ आद्य रेखा की ओर स्थानान्तरित होती हैं। इस रेखा पर पहुँचकर ये एपिब्लास्ट से अलग होकर एपिब्लास्ट तथा अध:कोरक अर्थात् हाइपोब्लास्ट के मध्य में धँसना प्रारम्भ कर देती है। कोशिकाओं के इस प्रकार भीतर धँसना इनका अन्तर्वेशन (Invagination) कहलाता है।
इन कोशिकाओं में से कुछ हाइपोब्लास्ट की कोशिकाओं का स्थान लेकर भ्रूणीय एण्डोडर्म (Embryonic endoderm) बनती है। इसके फलस्वरूप हाइपोब्लास्ट धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। अन्य अन्तर्वेशित कोशिकाएँ इस एण्डोडर्म तथा एपिब्लास्ट के बीच में फैलकर भ्रूणीय मीसोडर्म (Embryonic mesoderm) का निर्माण करती हैं। एपिब्लास्ट में बची हुई कोशिकाएँ भ्रूणीय एक्टोडर्म (Embryonic ectoderm) का निर्माण करती है। इस प्रकार, तीनों प्रारम्भिक अंकुरण स्तरों की उत्पत्ति एपिब्लास्ट से ही होती है। भ्रूण का जननिक बिम्ब अब त्रिस्तरीय (Trilaminar) हो जाता है। इन तीन स्तरों के बाद में अन्य सभी ऊतकों व अंगों का विकास होता है।
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