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Human Health and Disease Class 12 Ncert Notes।।मानव स्वास्थ्य एवं रोग अध्याय 06 कक्षा 12वी जीव विज्ञान नोट्स

 मानव स्वास्थ्य एवं रोग अध्याय 06 कक्षा 12वी जीव विज्ञान नोट्स


Human Health and Disease Class 12 Ncert Notes


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Human Health and Disease class 12th biology notes in hindi सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आ गए हैं इस पोस्ट में हम आपको मानव स्वास्थ्य एवं रोग से सम्बंधित जानकारी देने वाले है इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।


{ Short Introduction of Human Health and Disease Class 12 Ncert }


जब मानव शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ होता है, तब इसे 'स्वास्थ्य' (Health) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, परन्तु जब शरीर में किसी तरह (सामाजिक, मानसिक एवं शारीरिक) का विकार या पीड़ा उत्पन्न हो जाती है, तो इसे 'रोग' (Disease) के रूप में परिभाषित किया जाता है 


अर्थात् जब शरीर के सामान्य प्रकार्यों में गतिरोध उत्पन्न होता है, तो इस स्थिति को 'रोग' (Disease) कहते है। रोगों के कारक को रोगकारक या रोगजनक या रोगाणु कहते हैं।


रोग निम्न प्रकार के होते हैं


जन्मजात या वंशागत रोग वे रोग, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत होते रहते हैं; जैसे- हीमोफीलिया, वर्णान्धता, दाँत्र- कोशिका रक्ताल्पता।


उपार्जित रोग ये रोग जन्म के बाद विभिन्न कारणों से होते हैं; जैसे-कुपोषण सम्बन्धी (क्वाशियोरकोर, मैरेस्मस), रतौन्धी, स्कर्वी एवं कैंसर, व्यसन, अर्थराइटिस, एलर्जी, आदि। 


उपार्जित रोग निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं.


1. संक्रामक रोग ये रोग रोगाणुओं के कारण होते हैं तथा विभिन्न माध्यमों द्वारा संक्रमित मनुष्य से स्वस्थ मनुष्य में पहुँचते रहते हैं; जैसे-मलेरिया, टायफॉइड, जुकाम, अमीबिएसिस, एड्स, आदि। 

संक्रामक रोगों के कारक (रोगजनक) विषाणु, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ, आदि होते हैं।


2. असंक्रामक रोग ये रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरित नहीं होते हैं; जैसे- कैंसर, एलर्जी, डायबिटीज, आदि।


नोट व्यक्ति के विशिष्ट खान-पान या दिनचर्या के कारण होने वाले रोग, जीवन शैली रोग के अन्तर्गत आते हैं; उदाहरण-मोटापा, मधुमेह, कैंसर, आदि।


मानव में सामान्य रोग


मलेरिया (Malaria) यह प्रोटोजोआ-प्लाज्मोडियम के संक्रमण से फैलने वाला रोग है। इस रोग की वाहक मादा एनॉफिलीज मच्छर है। इसके दो पोषद होते हैं


(i) प्राथमिक पोषद-मनुष्य


(ii) द्वितीयक पोषद-मादा एनॉफिलीज


नोट • मनुष्य में प्लाज्मोडियम का अलैंगिक चक्र तथा मादा एनॉफिलीज में लैंगिक चक्र पूर्ण होता है।


TB रोग जीवाणु के कारण होता है न की विषाणु के कारण।


डेंगू बुखार यह विषाणु के कारण होता है। इसका वाहक एडीज एजिप्टाई (Aedes aegypti) मच्छर होता है। इसे पीत ज्वर भी कहते हैं।


चिकनगुनिया रोग यह विषाणु के कारण होता है। इसका वाहक भी एडीज मच्छर है। 


स्वाइन फ्लू यह H₁N₁ विषाणु द्वारा होता है। इस रोग के उपचार हेतु जेनामिविर व टेमीफ्लू औषधि का उपयोग किया जाता है।


दाद यह त्वचा सम्बन्धी रोग है, जो माइक्रोस्पोरम, ट्राइकोफाइटॉन और एपिडर्मोफाइटॉन, आदि वंश के कवक द्वारा उत्पन्न होता है।


अमीबिएसिस (Amoebiasis) यह प्रोटोजोअन एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका द्वारा होने वाला रोग है। यह एक पोषदीय परजीवी है, जिसकी संक्रामक अवस्था-ट्रोफोजॉइट है। यह मनुष्य की आँत में पाया जाता है। निद्रा रोग ट्रिपैनोसोमा नामक प्रोटोजोअन के संक्रमण के कारण होता है।


फाइलेरिएसिस (Filariasis) यह प्रोटोजोअन वुचेरेरिया बैन्क्रॉफ्टाई द्वारा फैलता है। यह द्विपोषदीय परजीवी है: प्राथमिक पोषद-मनुष्य, द्वितीयक पोषद- क्यूलैक्स फैटीगन्स मच्छर है, जो इस रोग का वाहक भी है।


ऐस्कैरिएसिस (Ascariasis) यह रोग हेल्मिन्थ परजीवी 'ऐस्कैरिस' (एकपोषदीय जीव) के द्वारा फैलता है। ऐस्कैरिस के लार्वा में चार त्वक्पतन होते हैं।


आँत ज्वर या टायफॉइड (Typhoid) इसका रोगकारक साल्मोनेला टाइफी जीवाणु होता है। टायफॉइड ज्वर की पुष्टि विडाल (WIDAL) परीक्षण द्वारा की जाती है। इसका संक्रमण ड्रॉपलेट्स तथा संक्रमित भोजन द्वारा होता है।


न्यूमोनिया (Pneumonia) इस न्यूमोनी जाति डिप्लोकोकस या स्ट्रेप्टोकोकस जीवाणु का संक्रमण होता है। 


हैजा (Cholera) या अतिसार भी एक जीवाणुजनित रोग है। इस रोग के कारक साल्मोनेला टाइफीम्यूरियम, शाइजेला शिजी एवं ई. कोलाई जीवाणु है।


सामान्य जुकाम (Common cold) यह 'कोरोना विषाणु या राइनो विषाणु द्वारा होता है।


मधुमेह (Diabetes mellitunj यह मनुष्य में होने वाला एक प्राचीन रोग है, जो शरीर में अग्न्याशय की लैंगर हैन्स द्वीप की अला सक्रियता के परिणामस्वरूप इन्सुलिन की कमी से होता है। प्रभावित व्यक्ति के रुधिर में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ जाती है तथा उसका उत्सर्जन मूत्र के साथ होने लगता है। 


रियूमैटिक हृदय रोग (Rheumatic heart disease) यह 'स्ट्रेप्टोकोकस जीवाणु के संक्रमण द्वारा होता है, जिसमें हृदय कपाट नष्ट हो जाते हैं।


एड्स, सुजाक या गोनोरिया (नीसेरिया गोनोरी), सिफलिस (ट्रियोनिमा पैलिडम),हिपेटाइटिस, आदि रोग लैंगिक सम्पर्क (Sexual contact) से फैलते हैं।


प्रतिरक्षा


जन्तुओं में उपार्जित रोगों से सुरक्षा के लिए एक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है। जन्तुओं का यह गुण प्रतिरक्षा (Immunity) कहलाता है तथा संलग्न अंगों को संयुक्त रूप से प्रतिरक्षा तन्त्र (Immune system) कहते हैं।


रोगजनक आक्रमणकारी के विरुद्ध शरीर का प्रतिरक्षण (प्रतिरक्षा), सहज या जन्मजात या अविशिष्ट तथा उपार्जित या विशिष्ट सक्रिय प्रकार का होता है। 


सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं, शारीरिक रोध, कार्यिकीय रोध, कोशिकीय रोध व साइटोकाइन रोध (उदाहरण- इन्टरफेरॉन) ।


विशिष्ट प्रतिरक्षा तन्त्र को क्रियाविधि तथा संलग्न लसिकाणुओं (Lymphocytes) के आधार पर तरल या रुधिर प्रतिरक्षा तन्त्र या B-कोशिका प्रतिरक्षा या प्रतिरक्षी मध्यस्थता प्रतिरक्षा तन्त्र (Humoral immune system or B-cell immunity or Antibody mediated immune system) तथा कोशिका मध्यस्थता प्रतिरक्षा तन्त्र या T- कोशिका प्रतिरक्षा (Cell mediated immune system or T-cell immunity) में विभाजित किया गया है।


प्रतिजन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय करने वाले प्रोटीन इम्यूनोग्लोब्युलिन पदार्थ हैं, इसकी प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप ही शरीर प्रतिरक्षी (एण्टीबॉडी) या इम्यूनोग्लोब्यूलिन प्रोटीन का निर्माण करता है। शरीर विषाणु के संक्रमण से रक्षा के लिए विशिष्ट प्रकार की प्रोटीन इन्टरफेरॉन का स्रावण करता है। 


इन्टरफेरॉन्स विषाणु प्रोटीन अणु होते हैं। जब कोशिकाएँ विषाणु से संक्रमित होती हैं, तो इस प्रकार के प्रोटीन्स को मुक्त करती हैं, जो आगे और विषाणु के संक्रमण को रोकती है। ये प्रोटीन्स स्वस्थ्य अंसक्रमित कोशिकाओं को विषाणु के संक्रमण से बचाती हैं।


शरीर में प्रतिरक्षा तन्त्र


लसीकाणुओं की उत्पत्ति, परिपक्वन और प्रचुरोद्भवन लसीकाभ अंगों में होता है। अस्थि मज्जा और थाइमस प्राथमिक लसीकाम अंग हैं। यदि मानव शरीर से थाइमस ग्रन्थि निकाल ली जाए, तो T-ल्यूकोसाइट्स कोशिकाओं का परिपक्वन नहीं हो पाएगा तथा - कोशिकाएँ नहीं बनेगी और प्रतिरक्षा तन्त्र प्रणाली पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाएँगी।


नोट साइटोटॉक्सिक लिम्फोसाइट्स को प्राकृतिक विनाशी कोशिकाएँ कहते हैं। 


माता के शुरूआती दूध (शिशु को जन्म देने के पश्चात्) को कोलोस्ट्रम कहते हैं। इसमें प्राकृतिक प्रतिरक्षी (एण्टीबॉडीज) IgA, IgG एवं IgM पाए जाते हैं, इसलिए स्तनपान करने वाले शिशुओं में बीमारियों के लिए अधिक प्रतिरोधक क्षमता होती है।


टीकाकरण और प्रतिरक्षीकरण


मृत या निष्क्रिय सूक्ष्मरोगाणु या उनके उत्पादों से निर्मित यह पदार्थ, जिसे शरीर में प्रवेश कराने पर बिना रोग उत्पन्न किए, रक्षात्मक (Protective) कोशिकाओं के निर्माण या प्रतिरक्षी के निर्माण को प्रेरित करके शरीर में प्रतिरक्षा उत्पन्न कराते हैं, टीका कहलाता है।


मृत, निष्क्रिय सूक्ष्मरोगाणु या उनके उत्पादों से निर्मित पदार्थ अर्थात् टीके को शरीर में प्रवेश कराने की क्रिया को टीकाकरण कहते हैं। टीकाकरण विभिन्न प्रकार के रोगों जैसे पोलियो, डिफ्चीरिया, काली खाँसी, टिटेनस और चेचक के रोगाणुओं के विरुद्ध सक्रिय उपार्जित प्रतिरक्षा को प्रेरित करने का सम्भव उपाय है। नोट टीबी (TB) के लिए BCG का टीका लगाया जाता है।


टीकाकरण का सिद्धान्त प्रतिरक्षा तन्त्र के स्मृति गुण पर आधारित होता है। टीकाकरण से स्मृति-B वT-कोशिकाएँ बनती है, जोकि रोगजनक को जल्दी से पहचानकर प्रतिरक्षियों के उत्पादन द्वारा रोगजनकों (Pathogens) को खत्म करने में मदद करती है। इस प्रकार का प्रतिरक्षण सक्रिय प्रतिरक्षण (Active immunisation) के अन्तर्गत आता है। कई बार घातक रोगजनकों के संक्रमण से रक्षा हेतु प्रतिरक्षियों की आवश्यकता होती है। इसके टीके द्वारा सीधे ही प्रतिरक्षी या प्रतिआविष शरीर में प्रवेश कराया जाता है; जैसे जहरीले साँप के काटने पर या टिटेनस में जो टीके लगाये जाते हैं उनमें पहले से निर्मित प्रतिरक्षी होते हैं। इस प्रकार के प्रतिरक्षीकरण को निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण (Passive immunization) कहते हैं।


प्रत्युर्जता (एलर्जी)


जब एक व्यक्ति किसी विशिष्ट बाह्य पदार्थ (प्रतिजन) के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता दर्शाता है, तब यह स्थिति प्रत्युर्जता (Allergy) कहलाती है, जैसे- छींक आना, त्वचा में खुजली होना, चकते होना, श्वासनली में उत्तेजना, आदि। प्रतिजन, जो प्रत्युर्जता का कारण बनते हैं, प्रत्युर्जक (Allergen) कहलाते हैं। परागकण, कोई विशेष खाद्य पदार्थ, शीत, ताप, सूर्य का प्रकाश, वस्त्र, आदि सामान्य प्रत्यूर्जक हो सकते हैं।


नोट एलर्जी रोग प्रतिरक्षा तन्त्र की अत्यधिक सक्रियता के कारण होता है।


स्व-प्रतिरक्षा


जब शरीर का प्रतिरक्षा तन्त्र 'स्वयं' तथा 'गैर' में विभेद करने में असमर्थ हो जाता है, तब यह शरीर के विरुद्ध ही कार्य करने लगता है तथा स्वयं के प्रतिजन तथा ऊतकों को नष्ट करने लगता है। इस प्रकार प्रतिरक्षा तन्त्र द्वारा स्वयं के प्रतिजन के विरुद्ध प्रतिरक्षियों का निर्माण स्व-प्रतिरक्षण (Auto-immunity) कहलाता है। उदाहरण-पर्निसियस या क्रोनिक रक्ताल्पता, मायस्थेनिया ब्रेविस, हाशीमोटो रोग,रियूमैटिक ज्वरे ।


नोट रियूमेटाइड अर्थराइटिस में शरीर अपनी ही कोशिकाओं पर आक्रमण करने लगता है।


एड्स


• एड्स (AIDS or Acquired Immuno Deficiency Syndrome) एक विषाणु जनित रोग है। एड्स का विषाणु कहलाता है। 


•यह एक RNA विषाणु है। इनके संक्रमण से प्रतिरक्षा प्रणाली निष्क्रिय हो जाती है तथा रोगी में अन्य रोगों

की संम्भावना प्रबल हो जाती है। यही अवस्था एड्स कहलाती है।


 • इसका संक्रमण असुरक्षित यौन सम्बन्ध, रुधिर आधान, संक्रमित सुइयों के प्रयोग तथा संक्रमित माता से गर्भस्थ शिशु को होता है।


•इसके परीक्षण के लिए ELISA टेस्ट या वेस्टर्न ब्लॉट विधि का प्रयोग किया जाता है।


कैंसर


कैंसर (Cancer) इस रोग में कोशिकाएँ अपनी नियन्त्रित विभाजन की क्षमता को खोकर अर्बुद का निर्माण करने लगती हैं। प्रसामान्य कोशिकाओं को नवद्रव्यीय कोशिकाओं में रूपान्तरित करने वाले कारक कार्सिनोजन कहलाते हैं।


ट्यूमर दो प्रकार के होते हैं, सुदम या बैनीग्निन ट्यूमर तथा दुर्दम या मैलीगेन्ट ट्यूमर। मैलीगेन्ट


ट्यूमर


में कोशिकाएँ शरीर के अन्य भागों में पहुँचकर नए ट्यूमर बनाती है, इसे मेटास्टेसिस अवस्था कहते हैं।


ड्रग और एल्कोहॉल कुप्रयोग


औषधियों का वह समूह, जो तन्त्रिका तन्त्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है तथा जिन पर व्यक्ति निर्भर हो जाता है, उन्हें नशीली औषधियाँ या ड्रग्स कहते हैं।


1. उत्तेजक या एण्टीडिप्रेसेन्ट्स (Stimulants) ये औषधियाँ केन्द्रीय तन्त्रिका को प्रभावित करती हैं। इनके सेवन से कष्ट में राहत मिलती है; जैसे-टॉफरेनिल, कैफीन, थाइन, एम्फीटैमाइन्स, मेथिलफेनिडेट, आदि। चाय, कॉफी एवं कोको इसके अन्तर्गत आते हैं।


2. विभ्रामक या साइकेडेलिक या कैनिबिनॉइड्स (Hallucinogens) पदार्थ श्रवण व दृष्टि भ्रम उत्पन्न करते हैं। ये वास्तविकता में विचार तथा भावनाओं में बदलाव लाने वाली औषधियाँ हैं, जैसे-चरस, गाँजा, भाँग व हशीश, मारिजुआना, LSD मेस्कालाइन, सीलोसाइविन, आदि


3. साइकोट्रॉपिक या ओपिएट्स (Opiates) यह नारकोटिक दर्दनाशक औषधियों का एक वर्ग हैं जो शामक या प्रशान्तक (Tranquiliser), निद्राकारक (Sedative) होती हैं। जिसमें अफीम तथा इसके स्राव से बने मॉर्फीन, हेरोइन, पैथिडीन, आदि आते हैं। ये दर्द, चिन्ता, श्वसन दर, रुधिर दाब तथा तनाव को कम करते हैं। मॉर्फीन पैपेवर सोम्नीफैरम से प्राप्त एल्केलॉइड है।


किशोरावस्था, व्यसन और निर्भरता


किशोरावस्था बचपन और प्रौढ़ता के मध्य की कड़ी है, जो मानसिक, लैंगिक और मनोवैज्ञानिक विकास हेतु एक महत्त्वपूर्ण समय होता हैं इस अवधि में व्यक्ति नशीले पदार्थों और एल्कोहॉल के प्रयोग के लिए प्रेरित होता है। इसे व्यसन कहते हैं।


ड्रग/एल्कोहॉल कुप्रयोग के प्रभाव


•'ड्रग एल्कोहॉल की नियमित मात्रा अचानक बन्द कर देने पर विनिवर्तन संलक्षण (Withdrawal syndrome) हो जाता है।


•एल्कोहॉल के दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं- मस्तिष्क पर प्रभाव, पेशीय असन्तुलन, यकृत पर प्रभाव, आमाशय एवं आँतों पर प्रभाव, गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव।


•तम्बाकू (Tobacco) निकोटियाना टोबैकम नामक पादप की पत्तियाँ होती हैं, जिनमें एक विषैला एल्केलॉइड निकोटिन पाया जाता है। यह गले व फेफड़ों को प्रभावित करता है, जिससे रुधिर दाब तथा हृदय गति की दर बढ़ जाती है।


•धूम्रपान या तम्बाकू चबाने से मुँह, गले एवं फेफड़े का कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।


रोकथाम व नियन्त्रण


शिक्षा व उचित मार्गदर्शन, मित्रों व परिवारजनों के संबल, चिकित्सीय सहायता के द्वारा किशोरों को ड्रग व एल्कोहॉल के दुष्प्रभावों से बचाया जा सकता है।


[ Human Health and Disease objective Questions ]


      { बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक }


प्रश्न 1. विषाणु का आनुवंशिक पदार्थ है


(a) DNA अथवा RNA


(b) केवल DNA


(c) केवल RNA


(d) DNA एवं RNA


उत्तर (a) DNA एवं RNA


प्रश्न 2. पीत ज्वर का वाहक है 


(a) एनॉफिलीज 


(b) क्यूलैक्स


 (c) एडीज 


(d) मस्का


उत्तर (c) एडीज


प्रश्न 3. एडीज एजिप्टाई वाहक है?


(a) डेंगू बुखार का


(b) मलेरिया बुखार का


(c) फाइलेरिया का


(d) काला-आजार का


उत्तर (a) डेंगू बुखार का


प्रश्न 4. डेंगू (हड्डी तोड़) बुखार का वाहक है


(a) क्यूलेक्स


(c) एनॉफिलीज


(b) एडीज


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) एडीज मच्छर


प्रश्न 5. चिकनगुनिया रोग का संचरण किसके द्वारा होता है?


(a) घरेलू मक्खी 


(b) एडीज मच्छर


(c) काकरोच 


 (d) मादा एनॉफिलीज


उत्तर (b) एडीज मच्छर


प्रश्न 6. निम्नलिखित में से कौन-सा रोग विषाणुओं के द्वारा उत्पन्न नहीं होता है? 


(a) पोलियो


(b) चेचक


(c) एड्स


(d) TB


उत्तर (d) TB जीवाणु जनित रोग है।


प्रश्न 7. निम्न में से कौन-सा जीवाणु जनित रोग है? 


(a) पोलियो


(b) पायरिया


(c) अतिसार


(d) हाथी पाँव


उत्तर (c) अतिसार जीवाणु जनित रोग है। 


प्रश्न 8. टायफॉइड के रोगजनक का नाम है


(a) एस्कैरिस


(b) साल्मोनेला


(c) प्लाज्मोडियम


(d) अमीबा


उत्तर (b) साल्मोनेला टाइफी जीवाणु 


प्रश्न 9. निम्नलिखित किस रोग की पुष्टि विडाल परीक्षण द्वारा होती है?


(a) टायफॉइ


 (b) मलेरिया


(c) अतिसार


(d) फाइलेरिया


उत्तर (a) टायफॉइड रोग की पुष्टि विडाल परीक्षण द्वारा होती है।


प्रश्न 10. निद्रा रोग किस जन्तु के द्वारा होता है?


(a) युग्लीना


(b) प्लाज्मोडियम


 (c) ट्रिपैनोसोमा


(d) अमीबा


उत्तर (c) ट्रिपैनोसोमा


प्रश्न 11. एण्टीबॉडीज होती है।


(a) लिपिड


(b) खनिज


(c) मोटीन


(a) शर्करा


उत्तर (c) प्रोटीन


प्रश्न 12. एण्टीसीरम में होते हैं।


(a) एण्टीजन


(b) WBC 


(c) एण्टीबॉडी


(d) RBC


 उत्तर (c) एण्टीबॉडी


प्रश्न 13. विषाणु संक्रमण से बचने के लिए शरीर निम्नलिखित में से किस विशेष प्रकार के प्रोटीन को उत्पन्न करता है?


अथवा विषाणुओं से संक्रमित कोशिकाओं द्वारा निर्मित पदार्थ जो अन्य कोशिकाओं को संक्रमण से बचाता है


(a) सैरोटीन


(b) कोलोस्ट्रम


(c) इन्टरफेरॉन


(d) हिस्टैमिन


उत्तर (c) इन्टरफेरॉन


प्रश्न 14. TB के टीके का नाम है।


(a) PAS


(b) OPY


(c) DPT


(d) BCG


उत्तर (d) BCG


प्रश्न 15. निम्न में से कौन-सा / कौन-से रियूमेटॉइड आर्थराइटिस के कारण हैं? सही विकल्प का चुनाव कीजिए।


(a) लिम्फोसाइट अधिक सक्रिय हो जाती हैं 


(b) शरीर अपनी कोशिकाओं पर आक्रमण करता है


(c) शरीर में अधिक एण्टीजन बनते हैं 


(d) शरीर की स्वयं की कोशिकाओं का बाह्य अणुओं या रोगजनकों से मिन्नत करने की क्षमता समाप्त हो जाती है


 उत्तर (b) शरीर अपनी कोशिकाओं पर आक्रमण करता है।


प्रश्न 16. कैंसर रोग के कारक को कहते हैं।


(a) म्यूटाजन्स


(b) इन्टरफेरॉन


(c) कार्सिनोजन्स 


(d) ट्यूमर


उत्तर (c) कार्सिनोजन्स


प्रश्न 17. मैलिंगनेन्ट ट्यूमर में कोशिकाएँ गुणन करती हैं, तेजी से बढ़ती है तथा शरीर के अन्य भागों तक पहुँचकर नए ट्यूमर बनाती हैं। रोग की यह अवस्था कहलाती है


 (a) मेटोजेनेसिस 


(c) टेराटोजेनेसिस


(b) मेटास्टेसिस 


(d) माइटोसिस


उत्तर (b) मेटास्टेसिस


प्रश्न 18. श्वेत रुधिर कणिकाओं के अति-उत्पादन के परिणामस्वरूप होता है


(a) थ्रॉम्बोसाइटोपीनिया


(c) हीमोफीलिया


(b) ल्यूकेमिया 


(d) ये सभी


उत्तर (b) ल्यूकैमिया 


प्रश्न 19.अफीम से प्राप्त मॉर्फीन है


(a) पोम


 (b) एल्केलॉइड 


(c) लैटेक्स


(d) टेनिन


उत्तर (b) एल्केलॉइड


प्रश्न 20. तम्बाकू के सेवन से एड्रीनलीन व नॉन-एड्रीनलीन के स्राव का प्रेरण हो जाता है। तम्बाकू का कौन-सा घटक इसके लिए उत्तरदायी है? 


(a) निकोटिन


(b) टैनिक अम्ल


(c) क्यूरेमिन


(d) कैटेकिन


उत्तर (a) निकोटिन


प्रश्न 21. विनिवर्तन संलक्षण का कारण है। 


(a) एक X गुणसूत्र में वृद्धि


(b) ड्रग को अचानक बन्द कर देना 


(c) तन्त्रिका तन्त्र में विकार 


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) ड्रग को अचानक बन्द कर देना।


      

{ Human Health and Disease Short Question Answers }


         (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक )


प्रश्न 1. मानव स्वास्थ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – विश्व स्वास्थ्य संगठन या WHO (World Health Organisation) की परिभाषा के अनुसार, स्वास्थ्य को तीन आयामों शारीरिक, मानसिक व सामाजिक के आधार पर निर्धारित किया जाता है। 


इस प्रकार स्वास्थ्य शरीर की उस अवस्था को कहा जाता है, जिसमें मानव शरीर शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होता है। 


प्रश्न 2. वंशागत एवं संक्रामक रोग में अन्तर एक-एक वाक्य में लिखिए।

उत्तर –वंशागत रोग ये रोग (जन्मजात) एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होते हैं; जैसे- हीमोफीलिया, दॉत्र कोशिका अरक्तता, फिनाइल कीटोन्यूरिया । संक्रामक रोग ये रोग रोगाणुओं द्वारा उत्पन्न होते हैं और एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलते हैं जैसे-जुकाम, फ्लू, सिफलिस, आदि। 


प्रश्न 3. कुछ रोगजनक ऊतक / अंग विशिष्ट होते हैं उचित उदाहरण से समझाइए 

उत्तर – कुछ रोगजनक ऊतक/ अंग विशिष्ट होते हैं, क्योंकि वे उस अंग/ ऊतक की प्रतिरक्षा क्रिया के प्रति अपने आप को अनुकूलित कर लेते हैं उदाहरण- अमीबिएसिस, आँत ज्वर या टायफॉइड, हैजा, आदि के रोगाणु आँत में संक्रमण उत्पन्न करते हैं तथा आंत्रीय रसों एवं एंजाइमों के प्रति प्रतिरोधी होते है।


प्रश्न 4. निम्नलिखित में से किन्हीं दो रोगों के कारक एवं वाहक का नाम लिखिए। फीलपाँव, मलेरिया, मस्तिष्क ज्वर (डेंगू)। 


अथवा फाइलेरिया रोग के कारक एवं वाहक के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए।


अथवा फाइलेरिया रोग के रोगकारक का जन्तु-वैज्ञानिक नाम लिखिए।


अथवा किस पैथोजन के कारण हाथीपाँव रोग होता है? यह (एलिफैन्टिएसिस) पैथोजन किस संघ से सम्बन्धित है?


अथवा परजीवियों द्वारा उत्पन्न किन्ही दो रोगों के नाम लिखिए।


उत्तर


रोग

कारक

वाहक

हाथी पाँव या फीलपाँव (फाइलेरिया)

बुचेरेरिया बैन्क्रॉफ्टी (संघ-निमेटोडा/ एस्केहल्मिन्धीज)

मादा क्यूलेक्स मच्छर

मलेरिया

प्लाज्मोडियम जाति

मादा एनॉफिलीज मच्छर

मस्तिष्क ज्वर (डेंगू)

फ्लेवी विषाणु

मादा एडीज मच्छर


प्रश्न 5. मनुष्य में विषाणु जनित चार रोगों के नाम लिखिए।

उत्तर – चेचक, हर्पीज, पोलियो, हिपेटाइटिस, डेंगू ज्वर, मम्प्स, खसरा, रेबीज, आदि विषाणु द्वारा उत्पन्न होते हैं।


प्रश्न 6. मनुष्य में साधारण जुकाम उत्पन्न करने वाले दो विषाणुओं के नाम लिखिए।

उत्तर – राइनोविषाणु एवं कोरोना विषाणु ।


प्रश्न 7. यदि दो रोगजनक विषाणु हों, एक DNA के साथ और दूसरा RNA के साथ, तो कौन-सा शीघ्रता से परिवर्तित हाता है? और क्यों?


उत्तर – RNA, DNA की अपेक्षा शीघ्रता से परिवर्तित होता है। DNA अधिक स्थायी होता है और उसकी सुधार प्रक्रिया सर्वोत्तम होती है, जोकि क्षारक युग्म के प्रस्तुतिकरण के साथ ही उसमें उचित परिवर्तन भी करती है।


प्रश्न 8. रियूमैटिक हृदय रोग क्या है? इसके कारक का नाम लिखिए।

उत्तर – रियूमैटिक हृदय रोग में हृदय के कपाट नष्ट हो जाते हैं। इसका कारक स्ट्रेप्टोकोकस जीवाणु होता है।


प्रश्न 9. मनुष्य में अमीवता या आमातिसार (अमीबिएलिस) रोग किससे उत्पन्न होता है?

उत्तर अमीबता (अमीबिएसिस) रोग एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका नामक प्रोटोजोअन परजीवी द्वारा होता है तथा यह मनुष्य की आँत में पाया जाता है।


प्रश्न 10. प्लाज्मोडियम के स्पोरोजॉइट का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा नामांकित चित्र बनाइए।

उत्तर – 

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प्रश्न 11 निम्नलिखित रोगों का संचरण कैसे होता हैं? (i) अमीबता


(ii) ऐस्कैरिसता


उत्तर (i) अमीबता घरेलू मक्खियां इस रोग की वाहक होती है और परजीवी प्रोटोजोअन एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका को संक्रमित व्यक्ति के मल से खाद्य पदार्थों तक ले जाकर इन्हें संदूषित कर देती है।


(ii) ऐस्कैरिसता यह रोग आंत परजीवी कृमि ऐस्कैरिस से होता है। इस रोग का संचरण संदूषित जल व मिट्टी द्वारा होता है।


 प्रश्न 12. ऐस्कैरिस के लाव में कितने त्वपतन होते हैं?

उत्तर – ऐस्कैरिस के लावां में 4 त्वकपतन होते हैं।


प्रश्न 13. मानव शरीर की प्राकृतिक विनाशी कोशिकाएँ किन्हें कहते हैं?

 उत्तर – साइटोटॉक्सिक लिम्फोसाइट को मानव शरीर की प्राकृतिक विनाशी कोशिकाएँ कहते हैं।


प्रश्न 14. यदि मानव शरीर से थाइमस ग्रन्थि निकाल दी जाए, तो उसके प्रतिरोधी संस्थान पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर – यदि मानव शरीर से वाइमस ग्रन्थि निकाल ली जाए तो T-लिम्फोसाइटस कोशिकाओं का परिपक्वन नहीं हो पाएगा तथा T कोशिकाएँ नहीं बनेगी और प्रतिरक्षा तन्त्र प्रणाली पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाएगी।


प्रश्न 15. इन्टरफेरॉन क्या है? इनका कार्य लिखिए। अथवा इन्टरफेरॉन की परिभाषा एवं कार्य लिखिए।

अथवा इन्टरफेरॉन पर टिप्पणी लिखिए। 

अथवा इन्टरफेरॉन तथा प्रियॉन्स क्या है?

उत्तर – इन्टरफेरॉन्स विषाणु प्रोटीन अणु होते हैं। जब कोशिकाएँ विषाणु से संक्रमित होती है, तो इस प्रकार के प्रोटीन्स को मुक्त करती हैं, जो विषाणु के संक्रमण को रोकती है। ये प्रोटीन्स स्वस्थ असक्रमित कोशिकाओं को विषाणु के संक्रमण से बचाती है।


प्रियॉन्स ये संक्रामक प्रोटीन कण हैं। इन पर उच्च ताप व विकिरण का प्रभाव नहीं पड़ता है। ये रोग उत्पन्न करते हैं। 


प्रश्न 16. एक ऐसे प्राणघाती वाइरस रोग का नाम लिखिए, जिसका पूर्ण इलाज सम्भव नहीं है।


अथवा यदि एक रोगी को एण्टीरिट्रोवाइरल औषधि लेने की सलाह दी गई है, तो वह किस रोग से संक्रमित है? रोगकारक का नाम लिखिए। 


उत्तर – वह व्यक्ति एड्स (AIDS) नामक प्राणघाती रोग से संक्रमित है। रोगकारक HIV वाइरस है, जोकि एक रिट्रोवायरस समूह है। इसका अभी तक पूर्ण इलाज सम्भव नहीं है। 


प्रश्न 17. मेटास्टेसिस का क्या अर्थ है? व्याख्या कीजिए

उत्तर – मेटास्टेसिस जब कैंसर कोशिकाएं एक ऊतक से दूसरे ऊतक या अंगों में स्थानान्तरित होती हैं, तो वहाँ द्वितीयक ट्यूमर बनाती है, इस प्रक्रिया को मेटास्टेसिस कहते हैं। इस प्रक्रिया में कैंसर कोशिकाएँ रुधिर के माध्यम से नए स्थानों पर जाकर नए ट्यूमर का निर्माण करती हैं।


प्रश्न 18. कैनाबिनॉइड्स खेलों में प्रतिबन्धित है, क्यों? 

उत्तर – खिलाड़ियों द्वारा कैनाबिनॉइड्स का उपयोग प्रतिबन्धित होता है, क्योंकि खिलाड़ी इसका दुरूपयोग अपनी शारीरिक क्षमता को बढ़ाने के लिए करते हैं, परन्तु इसके द्वारा उनके शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और सामान्य अंग तन्त्र प्रणाली में रुकावट डालता है।


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             लघु उत्तरीय प्रश्न  2 अंक


प्रश्न 1. संक्रामक रोग. किन्हें कहते हैं? संक्रामक रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में किस प्रकार स्थानान्तरित होते हैं? 

उत्तर – संक्रामक रोग वे रोग, जो आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरित हो जाते हैं, 'संक्रामक रोग' कहलाते हैं। ये निम्न दो प्रकार (माध्यम) से फैल सकते है


अप्रत्यक्ष माध्यम


1. संक्रमित खाद्य पदार्थों रुधिर, वायु, जल के सम्पर्क द्वारा।


 2. संक्रमित वर्तन, वस्त्र, खिलौने, साबुन, शल्य उपकरण, आदि द्वारा।


3. वाहक कीटों द्वारा, जैसे-मच्छर, मक्खी, आदि ।


प्रत्यक्ष माध्यम


1. संक्रमित व्यक्ति के सीधे सम्पर्क द्वारा।


 2. माता के जरायु से सीधे शिशु को ।


3. छीकते एवं खाँसते समय थूक की बूंदों के द्वारा 


4. संक्रमित जन्तुओं के काटने से।


5.मृदा में उपस्थित रोगाणुओं के सम्पर्क में आने से।


6. लैंगिक संसर्ग द्वारा।


प्रश्न 2. संक्रामक रोग किसे कहते हैं? मनुष्य में रेबीज का संक्रमण किस प्रकार होता है?

उत्तरसंक्रामक रोग वे रोग, जो आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरित हो जाते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं।


मनुष्य में रेबीज का संक्रमण यह रोग संक्रमित कुत्ते, बन्दर, बिल्ली या शशक (खरगोश) के काटने से होता है। इस रोग का कारण रेबीज विषाणु है। यह विषाणु संक्रमित जन्तु की लार में उपस्थित होता है, उसके काटने पर यह लार के साथ मनुष्य के रुधिर में प्रवेश कर जाता है।


प्रश्न 3. स्वाइन फ्लू के कारक अभिकर्ता का नाम, रोग के लक्षण तथा बचाव के उपाय लिखिए।

 उत्तरस्वाइन फ्लू यह विषाणुजनित संक्रामक रोग है, जो H₁N₁(Hemagglutinin type 1 and Neuraminidase type1) विषाणु द्वारा होता है।


लक्षण रोगी को 100°F या इससे भी अधिक बुखार रहता है। शरीर में कंपकपी, सिरदर्द, कफ बनता है एवं भूख कम हो जाती है। इस रोग का उद्भवन काल लगभग 1-4 दिनों का होता है।


रोकथाम एवं उपचार टीकाकरण (Vaccination) इस रोग के संक्रमण को रोकने या कम करने का सबसे अच्छा तरीका है। इस रोग के उपचार के लिए दो औषधियाँ जेनामिविर या रेलेन्जा (Zanamivir or Relenza) तथा ओसेल्टामिविर या टेमीफ्लू (Oseltamivir or Tamifilu) रोगी को दी जाती

हैं।


प्रश्न 4. पोलियो रोग पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – पोलियो (Polio) यह सामान्यतया बाल्यावस्था में होने वाला पोलियो वाइरस द्वारा उत्पन्न रोग है। इस विषाणु का संक्रमण भोजन या जल के साथ होता है। विषाणु आहारनाल की कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं तथा वृद्धि करते हैं। यहाँ से लसीका तन्त्र व रुधिर परिसंचरण द्वारा विषाणु केन्द्रकीय तन्त्रिका तन्त्र में पहुँच जाता है। पोलियो विषाणु मेरुरज्जु के पृष्ठ श्रृंगों को नष्ट कर देता है। पृष्ठ श्रृंग नष्ट होने के कारण पेशियों को प्रेरणा नहीं पहुँच पाती और धीरे-धीरे पेशियों का ह्रास हो जाता है। रोकथाम के लिए OPV वैक्सीन तरल 'बूँद' के रूप में मुख द्वारा दी जाती है।


प्रश्न 5. डेंगू बुखार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


अथवा डेंगू बुखार के कारक, लक्षण, उपचार एवं बचाव के उपाय का वर्णन कीजिए।

उत्तर – डेंगू (Dengue) फ्लेवी विषाणु द्वारा होता है। इस रोग को एडीज (Andea) मच्छरों की मादाएँ फैलाती है। यह सभी उष्णकटिबन्धीय (Tropical) देशों में, परन्तु मुख्यतया दक्षिणी-पूर्वी एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिका के दक्षिणी एवं मध्य भागों में पाया जाता है। इसमें रोगी ज्वर, सिरदर्द तथा पेशियों में दर्द से पीड़ित रहता है। पेशियों और हड्डियों में अत्यधिक पीड़ा होती है। अत: इसे सामान्यतया हड्डीतोड़ बुखार (Breakbone fever) कहते हैं। इसका कोई टीका (Vaccine) अभी नहीं बना है। रोगी को दर्दनाशक औषधियों ही दी जाती हैं। डेंगू से बचाव के लिए सफाई रखनी चाहिए और वर्षा के जल को एकत्रित होने से रोकना चाहिए।


प्रश्न 6. हिपेटाइटिस रोग के कारण बताइए। इसकी जाँच कैसे की जाती है?


अथवा पीलिया रोग के कारण तथा लक्षण बताइए। इसकी जाँच कैसे की जाती है?


अथवा पीलिया रोग क्या है? यह क्यों होता है?


उत्तर – हिपेटाइटिस एक गम्भीर रोग है, जिसे सामान्यतया 'पीलिया' कहा जाता है। हिपेटाइटिस विभिन्न 'विषाणुओं' द्वारा यकृत में फैलता है, जो भोजन व गन्दे जल द्वारा शरीर में संचरित होता है। इसमें यकृत में सूजन आने के कारण यकृत का आकार बढ़ जाता है।


हिपेटाइटिस या पीलिया पाँच प्रकार के होते हैं हिपेटाइटिस A. B. C. D व E हिपेटाइटिस B इसका सबसे घातक प्रकार है। यह संक्रमित रक्ताधान, लैंगिक सम्पर्क तथा संक्रमित व्यक्ति के कपड़ों के प्रयोग द्वारा भी हो सकता है।


लक्षण इस रोग में यकृत काम करना बन्द कर देता है, जिससे पित वर्णक शरीर में जमा होने लगते हैं और शरीर का रंग पीला हो जाता है। उपापचय दर कम हो

जाने से भूख नहीं लगती तथा जी मिचलाने लगता है।


पीलिया या हिपेटाइटिस के परीक्षण (Tents of Hepatitis)


SBT (सीरम बिलिरुविन टेस्ट) SBT (Serum Bilirubin Test)


• SGPT (सीरम ग्लूटामिक पाविक ट्रान्सएमीनेज) SGPT (Serum Glutamic Pyruvic Transaminase)


ELISA ( विकर सहलग्न प्रतिरक्षा शोषक आमापन) (Enzyme Linked Immuno Sorbent Assay) 


 प्रश्न 7. टायफॉइड ज्वर मनुष्य में किस जीवाणु के संक्रमण द्वारा होता है? इसके संक्रमण का माध्यम क्या है? इस ज्वर के दो प्रमुख लक्षण लिखिए।


अथवा टायफॉइड रोग पर टिप्पणी लिखिए।। 


अथवा टायफॉइड का कारक लक्षण व रोकथाम के उपाय लिखिए। 

उत्तर – टायफॉइड (Typhoid) रोग साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु से होता है। यह रोग प्रायः 1-15 वर्ष के आयुवर्ग के बच्चों में होता है। इस रोग का संचरण घरेलू मक्खी के कारण संक्रमित भोजन होता है।


टायफॉइड रोग के निम्न लक्षण है-मस्तिष्क पीड़ा तथा टायफॉइड ज्वर, जो दोपहर के बाद अपने चरम पर होता है। संक्रमण के प्रथम सप्ताह के प्रत्येक दिन शारीरिक ज्वर में वृद्धि होती जाती है।


परीक्षण, रोकथाम एवं उपचार


1. इसका परीक्षण विडाल परीक्षण द्वारा किया जाता है।


2. शिशुओं को TAB का टीका लगवाना चाहिए, TAB (Typhoid Immunisation Recommendations) टीकाकरण से प्रतिरक्षण का प्रभाव तीन वर्षों तक रहता है। 


3. क्लोरोमाइसिन व टेरामाइसिन चिकित्सक की सलाह से दें।


4. आस-पास सफाई रखनी चाहिए। 


5. पानी उबालकर पीना चाहिए।


6. बाजार की खुली वस्तुएँ नहीं खानी चाहिए।


 7. भोजन ढककर रखना चाहिए।


8. प्रभावशाली मल त्याग विसर्जन व्यवस्था तथा स्वच्छ वातावरण होना चाहिए।


प्रश्न 8. प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र में पोषद के किन भागों में निम्न घटनाएँ। होती हैं। शरीर के अंग तथा पोषद का नाम दीजिए। 


(i) संसेचन 


(ii) बीजाणुओं का निर्माण


(iii) अमीबीय अवस्था


 (iv) अलैंगिक जनन


उत्तर (i) संसेचन यह क्रिया पोषद मादा एनाफिलीज के क्रॉप या अन्नपुट में होती है।


 (ii) बीजाणुओं का निर्माण मादा एनॉफिलीज की लार ग्रन्थियों में बीजाणु निर्माण होता है।


(iii) अमीबीय अवस्था मनुष्य के लाल रुधिराणुओं में पायी जाती हैं


 (iv) अलैंगिक जनन मनुष्य की यकृत कोशिकाओं तथा लाल रुधिराणुओं में इसकी विभिन्न अवस्थाएं पाई जाती है।


प्रश्न 9. एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका तथा एण्टअमीबा जिन्जीवेलिंस शरीर में कहाँ पाए जाते हैं? इनसे उत्पन्न मनुष्य में एक-एक रोग का नाम लिखिए। 


अथवा मनुष्य में आमातिसार (Amoebiasis) रोग किससे उत्पन्न होता है?


अथवा एण्टअमीबा द्वारा कौन-सी बीमारी उत्पन्न होती है? इसका नियन्त्रण कैसे हो सकता है?


 उत्तरएण्टअमीबा जिन्जीवेलिस यह मनुष्य के मसूड़ों में पाया जाने वाला अन्तःपरजीवी है, जो 'पायरिया' रोग उत्पन्न करता है।


एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका यह मानव शरीर की आँत में पाया जाने वाला अन्तः परजीवी प्रोटोजोअन्स है, जो 'अमीबीय पेचिश या आमातिसार' रोग उत्पन्न करता है। 


प्रश्न 10. ऐस्कैरिस के रैन्डिटॉइड लावा का नामांकित चित्र बनाइए।


उत्तर ऐस्कैरिस का रैब्डिटॉइड लाव


प्रश्न 11. हाथीपाँव (फाइलेरिया) या मलेरिया रोग के कारण, बचाव व उपचार को समझाइए ।


अथवा फीलपाँव (फाइलेरिया) की रोगजनकता, लक्षण तथा बचाव के उपाय लिखिए।


अथवा हाथीपाँव पर टिप्पणी लिखिए। अथवा किन्हीं दो रोगवाहक कीटों के जीव वैज्ञानिक नाम लिखिए। उनके द्वारा वाहक रोगों के नाम लक्षण तथा उपचार बताइए।


उत्तरफीलपाँव (Filariasis) फाइलेरिया कृमि जिसका वैज्ञानिक नाम वुचेरेरिया बैंक्रॉफ्टी (Wuchereria bancrofti) है, जिसके द्वारा यह रोग होता है, यह लिम्फ वाहिकाएँ (Lymph vessels) एवं लिम्फ वाहिनियों (Lymph ducts) में ये परजीवी के रूप में रहता है, इसके द्वारा होने वाला रोग का नाम फीलपाँव या हाथीपांव है।


उपरोक्त दोनों ही प्रकार की प्रतिरक्षाएं पुनः जन्मजात (Innate) एवं उपार्जित (Aquired) प्रकार की होती हैं।


सक्रिय प्रतिरक्षा तथा असक्रिय या निष्क्रिय प्रतिरक्षा में निम्नलिखित अन्तर हैं



सक्रिय प्रतिरक्षा

निष्क्रिय प्रतिरक्षा

सक्रिय प्रतिरोध उत्पन्न करने हेतु शरीर में प्रतिजन प्रविष्ट कराए जाते हैं।

इसमें प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर में डाले जाते हैं।

इसमें शरीर की अपनी कोशिकाएँ संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षी विकसित करती हैं।

ये प्रतिरक्षी किसी और प्राणी के शरीर में प्रतिजन प्रविष्ट करके बनाए जाते हैं।

यह क्षमता उत्पन्न होने में समय लगता है।

इससे शरीर में प्रतिरक्षा जल्दी प्राप्त हो जाती है।

यह लम्बे समय तक बनी रहती है।

यह प्रतिरक्षा कुछ समय काम करती है, लम्बे समय तक नहीं। कुछ समय पश्चात् यह नष्ट हो जाती है।

उदाहरण- चेचक के प्रति प्रतिरक्षा

उदारहण- टिटेनस, सर्पदश, आदि का के प्रति प्रतिरक्षा


प्रश्न 12. सेल्फ तथा नॉन-सेल्फ की पहचान के सन्दर्भ में प्रतिरक्षा तन्त्र की विशेषता लिखिए।

उत्तर – प्रतिरक्षा तन्त्र हमारे शरीर की कोशिकाओं के प्रति उदासीन है अर्थात् प्रतिरक्षा तन्त्र समान परमाणु भार, रासायनिक व भौतिक गुणों वाले कोशिकीय अणुओं व प्रतिजनों के मध्य विभेदीकरण करने में सक्षम है। अतः प्रतिजनों के प्रति विशेष क्रियात्मकता प्रदर्शित करता है। यह प्रक्रिया प्रतिरक्षात्मक विशेषता या सेल्फ व नॉन-सेल्फ की पहचान कहलाती है।


प्रश्न 13. प्रतिरक्षी अणु का नामांकन चित्र बनाकर टिप्पणी लिखिए।

अथवा प्रतिरक्षी अणु का नामांकन चित्र बनाइए।


प्रतिरक्षी अणु का नामांकित चित्र बनाइए,एक प्रतिरक्षी अणु का नामांकित चित्र बनाइए,प्रतिरक्षी अणु की संरचना,एक प्रतिरक्षी अणु की रचना का चित्र प्रदर्शित करें।,प्रतिरक्षी की संरचना का चित्र,प्रतिरक्षा तंत्र,बीजांड की संरचना का नामांकित चित्र,बीजांड की संरचना का चित्र बनाने का आसान तरीका,बीजाण्ड का चित्र बनाने का सरल तरीका,मानव प्रतिरक्षा तंत्र,प्रतिरक्षा तंत्र क्या है,बीजांड का चित्र,प्रतिरक्षी के प्रकार,प्रतिरक्षी,प्रतिरक्षी अनु संरचना


किसी प्रतिजन की अनुक्रिया में बनी प्रोटीन, जो उस प्रतिजन विशेष से क्रिया करके उसे निष्क्रिय कर देती है, प्रतिरक्षी कहलाती है। ये तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया के समय बनती हैं। ये इम्यूनोग्लोब्यूलिन प्रोटीन अणु प्रतिजन प्रतिक्रिया के फलस्वरूप बनते हैं। एक सामान्य प्रतिरक्षी (IgG) एक टेट्रापेप्टाइड है, जिसमें दो भारी ‘H' तथा दो हल्की 'L' श्रृंखलाएँ होती हैं। भारी श्रृंखला में 140 तथा हल्की श्रृंखला में 214 अमीनो अम्ल होते हैं। ये दोनों श्रृंखलाएँ परस्पर डाइसल्फाइड बन्ध से जुड़ी रहती हैं।


प्रतिजन जुड़ाव स्थल Y की दोनों भुजाओं के अन्तिम सिरों पर स्थित होते हैं। प्रतिजन या प्रतिरक्षी के मिलने से प्रतिजन-प्रतिरक्षी जटिल बनता है।


प्रश्न 14. प्रतिरक्षीकरण का सिद्धान्त किस पर आधारित है? यह किस प्रकार कार्य करता है? टीकाकरण का उपयोग क्या है? दो उदाहरण दीजिए।


 अथवा टीकाकरण का क्या उपयोग है? उदाहरण दीजिए।


अथवा टीकाकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 


उत्तर – मृत, निष्क्रिय सूक्ष्मरोगाणु या उनके उत्पादों से निर्मित पदार्थ अर्थात् टीके को शरीर में प्रवेश कराने की क्रिया को टीकाकरण कहते हैं। टीकाकरण विभिन्न प्रकार के रोगों जैसे-पोलियो, डिफ्थीरिया, काली खाँसी, टिटेनस और चेचक के रोगाणुओं के विरुद्ध सक्रिय उपार्जित प्रतिरक्षा को प्रेरित करने का सम्भव उपाय है। टीके स्मृति- B व T- कोशिकाएँ बनाते हैं, जो रोगजनक को शीघ्र पहचान लेती है, जिससे ज्यादा मात्रा में प्रतिरक्षी बना लिए जाते हैं।


प्रतिरक्षा तन्त्र इस प्रकार इन प्रतिजनों के विरुद्ध प्रतिरक्षी उत्पादित करने के लिए प्रेरित हो जाता है। अतः टीकाकरण को इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है। शरीर में रोगकारकों का कृत्रिम रूप से प्रवेश कराना टीकाकरण कहलाता है।" टीकाकरण का सिद्धान्त प्रतिरक्षा तन्त्र के स्मृति गुण पर आधारित होता है। टीकाकरण से स्मृति B व T-कोशिकाएँ बनती हैं, जोकि रोगजनक को जल्दी से पहचानकर प्रतिरक्षियों के उत्पादन द्वारा रोगजनकों (Pathogens) को समाप्त करने में मदद करती है।


इस प्रकार का प्रतिरक्षण सक्रिय प्रतिरक्षण (Active Immunisation) के अन्तर्गत आता है। कई बार घातक रोगजनकों के संक्रमण से रक्षा हेतु प्रतिरक्षियों की आवश्यकता होती है। इसमें टीके द्वारा सीधे ही प्रतिरक्षी या प्रतिआविष शरीर में प्रवेश कराया जाता है; जैसे जहरीले सर्प के काटने पर या टिटेनस में जो टीके लगाए जाते हैं, उनमें पहले से निर्मित प्रतिरक्षी होते हैं। इस प्रकार के प्रतिरक्षीकरण को निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण (Passive Immunisation) कहते हैं।


प्रश्न 15. प्रदाह (Inflammatory) प्रक्रिया पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तरप्रदाह या शोध अनुक्रिया किसी स्थान के क्षतिग्रस्त हो जाने, जलने कटने या चोट लगने पर क्षतिग्रस्त कोशिकाओं से एक तीव्र रासायनिक पदार्थ स्त्रावित होता है, जिसे 'हिस्टामिन' कहा जाता है, जिस कारण रुधिर वाहिकाएँ फैल जाती है तथा अधिक रुधिर आपूर्ति से वह क्षतिग्रस्त भाग लाल तथा गर्म हो जाता है। श्वेत रुधिर कणिकाएँ निकलकर क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का भक्षण करने लगती हैं, इस प्रक्रिया को 'प्रदाह प्रतिक्रिया' (Inflammation) कहा जाता है। यह प्रक्रिया चोट को ठीक करने में भी अपनी भूमिका निभाती है।


प्रश्न 16. दिए गए शब्दों के पूर्ण रूप लिखिए।


(a) एमहालटी (MALT)


(b) सीएमआई (CMI)


 (c) एड्स (AIDS)


(d) एनएसीओ (NACO)


(e) एचआईवी (HIV)


उत्तर


(a) एमएएलटी (MALT) म्यूकोसल एसोसिएटेड लिम्फॉइड टिशू (Mucoaal Associated Lymphoid Tissue) या श्लेष्म सम्बन्ध लसीकाभ ऊतक ।


 (b) सीएमआई (CMI) सेल मीडिएटेड इम्युनिटी (Cell Mediated Immunity) या कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा। 


(c) एड्स (AIDS) एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएन्सी सिन्ड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) या उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण। 


(d) एनएसीओ (NACO) नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (National AIDS Control Organisation) या राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण संगठन। 


(e) एचआईवी (HIV) ह्यूमन इम्यूनो डेफिसिएन्सी वाइरस (Human Immuno-deficiency Virus) या मानव प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु।


प्रश्न 17. विसंक्रमण पर टिप्पणी लिखिए।

 उत्तरविसंक्रमण (Sterilisation) किसी स्थान से रासायनिक तथा भौतिक "क्रियाओं द्वारा जीवाणुओं को नष्ट करना विसंक्रमण कहलाता है। इस क्रिया का उपयोग शल्य चिकित्सा उपकरणों, ऑपरेशन थिएटर, शल्य चिकित्सालयों में प्रयोग किए जाने वाले यन्त्रों (Instruments), आदि को विसंक्रमित करने के लिए किया जाता है। इसके लिए ऊष्मा, रसायन तथा छानने की विभिन्न विधियाँ प्रयोग की जाती है। शल्य चिकित्सा उपकरणों का विसंक्रमण ऑटोक्लेव अथवा प्रेशर कुकर में 110-120°C ताप तथा 15 पॉण्ड दाब पर 15 मिनट तक रखकर करते हैं।


प्रश्न 18. एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटैलिस का वर्णन कीजिए।

 उत्तर – यह रोग नवजात शिशु या गर्भस्थ शिशु के Rh कारक के प्रति प्रतिरक्षी उत्पन्न होने के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। Rh धनात्मक, Rh उपस्थित होने पर कहा जाता है, अनुपस्थित होने पर Rh द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यदि किसी Rh व्यक्ति का विवाह Rh स्त्री से होता है और प्रथम सन्तान का रुधिर Rh होता है, तो माता के शरीर में Rh के प्रतिरक्षी उत्पन्न होना प्रारम्भ कर देते हैं। ऐसी स्थिति में प्रथम सन्तान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता परन्तु यदि द्वितीय सन्तान Rh रुधिर की होती है तो प्रथम सन्तान के दौरान उत्पन्न हुए प्रतिरक्षी द्वितीय शिशु के लाल रुधिराणुओं को नष्ट कर देते हैं। इससे गर्भस्थ शिशु में हीमोलिटिक रक्ताल्पता हो जाती है। अधिक घातक अवस्था में गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हो जाती है। यह प्रक्रिया एरियोब्लास्टोसिस फटेलिस कहलाती है।


प्रश्न 19. कैंसर पर टिप्पणी लिखिए।


उत्तर – कैंसर (Cancer) सामान्य कोशिकाओं के अनियन्त्रित, अविभेदित,असामान्य तथा अत्यधिक समसूत्री विभाजन को कैंसर कहा जाता है। कैंसर का अध्ययन ओन्कोलॉजी (Oncology) में किया जाता है।


अनियन्त्रित समसूत्री विभाजन के फलस्वरूप बनी हुई असामान्य व अविभेदित कोशिकाएँ कैंसर कोशिकाएँ कहलाती है। असीमित वृद्धि से कोशिकाएँ धीरे-धीरे गांठों का रूप धारण कर लेती है। जिसके कारण ट्यूमर या नियोप्लाज्म (Tumour or neoplasm) का निर्माण होता है। ट्यूमर दो प्रकार के होते हैं।


1. सुर्दम अर्बुद (Benignant tumour) ये ट्यूमर धीरे-धीरे बढ़ता है तथा शरीर के दूसरे भागों या आस-पास के ऊतकों में नहीं फैलते हैं। इस कारण इन्हें नॉन-मेलीग्नेन्ट अर्बुद भी कहते हैं; उदाहरण-पेशीय अर्बुद (Muscle tumour), मायोमा (Myoma), अस्थि अर्बुद (Bone tumour), ऑस्टीयोमा (Osteoma), लसीका गाँठ अर्बुद (Lymph node tumour), लिम्फोमा (Lymphoma) i


2. दुर्दम अर्बुद (Malignant/Harmful tumour) इसकी उपस्थिति स्थल से कुछ कैंसर ग्रस्त कोशिकाएं रुधिर और लिम्फ में मिलकर शरीर के अन्य भागों में पहुँच जाती है तथा वहाँ पर अर्बुद उत्पन्न करती हैं। 


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            लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. डेंगू व चिकनगुनिया के रोगकारक जीवों एवं नियन्त्रण के उपायों को लिखिए।

उत्तर –  डेंगू (Dengue) डेंगू बुखार डेंगू विषाणु (Dengue virus or DENV) के कारण होता है।


रोकथाम एवं उपचार


1. डेंगू की रोकथाम का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय मच्छरों के प्रजनन की जगहों का नियन्त्रण या उन्हें खत्म कर देना होता है।


 2. आवासीय क्षेत्रों में और उसके आस-पास पानी को जमा नहीं होने देना चाहिए।


3. अंधेरे तथा नमी वाले स्थानों पर कीटनाशको; जैसे DDT का छिड़काव किया जाना चाहिए।


4. इनके अतरिक्त दरवाजों और उड़कियों में जाली लगानी चाहिए, ताकि मच्छर अन्दर न घुस सके एवं पूरे आस्तीन वाली शर्ट तथा पेंट पहननी चाहिए।


5. डेंगू बखार की कोई विशेष प्रतिजैविक औषधि नहीं है। बुखार के समय पैरासिटामोल (Paracetamol) ली जा सकती है, किन्तु एस्प्रीन (Aspirin) कभी भी उपयोग में नहीं लेनी चाहिए।


चिकनगुनिया


यह रोग चिकनगुनिया विषाणु (Chikungunya virus or CHIKV) के कारण होता है।


रोकथाम एवं उपचार


1. चिकनगुनिया की कोई विशेष औषधि नहीं है, इसकी केवल रोकथाम की जा सकती है।


2. मच्छरों की प्रजनन की जगहों का नियन्त्रण करके उन्हें खत्म कर देना ही इस रोग से बचाव का सर्वोत्तम उपाय है।


प्रश्न 2. रोगजनक क्या है? मनुष्य में टायफॉइड ज्वर तथा सामान्य जुकाम उत्पन्न करने वाले रोगजनकों के नाम तथा इन रोगों के लक्षण लिखिए।


उत्तर – अनेक सूक्ष्मजीव, जिसमें जीवाणु विषाणु, कवक, प्रोटोजाआ, कृमि आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं, मानव में विभिन्न संक्रामक रोग उत्पन्न करते हैं। इस कारक सूक्ष्मजीवों को रोगजनक (Pathogens) कहा जाता है।


1. टायफॉइड ज्वर टायफॉइड (Typhoid) रोग साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु से होता है। यह रोग प्रायः 1-15 वर्ष के आयुवर्ग के बच्चों में होता है। इस रोग का संचरण घरेलू मक्खी के कारण संक्रमित भोजन होता है।


टायफॉइड रोग के निम्न लक्षण है-मस्तिष्क पीड़ा तथा टायफॉइड ज्वर, जो दोपहर के बाद अपने चरम पर होता है। संक्रमण के प्रथम सप्ताह के प्रत्येक दिन शारीरिक ज्वर में वृद्धि होती जाती है।


2. साधारण जुकाम अनेक प्रकार के विषाणुओं द्वारा होता है। यह अधिकांशतया राइनोविषाणु (Rhinovirus) या कभी-कभी कोरोना विषाणु (Corona virus) द्वारा होता है। 


लक्षण (Symptoms)

इस रोग के प्रमुख लक्षणों में श्वसन मार्ग की श्लेष्मी कला (Mucus membrane) में सूजन, नासाछिद्रों में कड़ापन (Stiffness), छींक, गले में खराश, श्वास लेने में तकलीफ तथा नाक का बहना, आदि सम्मिलित हैं।


प्रश्न 3. निम्न में से किन्हीं दो पर टिप्पणियाँ लिखिए।


 (i) फीलपाँव (हाथीपाँव)


(ii) पेचिश


(iii) न्यूमोनिया


अथवा मनुष्य में वुचेरेरिया बैन्क्रॉफ्टाई के कारण होने वाले रोगजनक प्रभावों का वर्णन कीजिए तथा इसके रक्षात्मक उपाय एवं उपचार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।


अथवा निमोनिया के कारक लक्षण, उपचार एवं बचाव के उपाय का वर्णन कीजिए ।


उत्तर1. फीलपाँव – फीलपाँव (Filariasis) फाइलेरिया कृमि जिसका वैज्ञानिक नाम वुचेरेरिया बैंक्रॉफ्टी (Wuchereria bancrofti) है, जिसके द्वारा यह रोग होता है, यह लिम्फ वाहिकाएँ (Lymph vessels) एवं लिम्फ वाहिनियों (Lymph ducts) में ये परजीवी के रूप में रहता है, इसके द्वारा होने वाला रोग का नाम फीलपाँव या हाथीपांव है।


 2. अमीबीय पेचिश या अतिसार – अमीबता (अमीबिएसिस) रोग एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका नामक प्रोटोजोअन परजीवी द्वारा होता है तथा यह मनुष्य की आँत में पाया जाता है।


3. न्यूमोनिया (Pneumonia) मनुष्य में निमोनिया के लिए स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी और हीमोफिल्स इन्फ्लुएन्जी (Haemophilus influenzae) उत्तरदायी हैं। इस रोग में फुफ्फुस या फेफड़ों (Lungs) के वायुकोष्ठ संक्रमित हो जाते हैं। इस रोग के संक्रमण से वायुकोष्ठों में तरल भर जाता है, जिसके कारण साँस लेने में परेशानी होती है। इस रोग के लक्षण ज्वर, ठिठुरन, खाँसी, सिरदर्द, आदि हैं।


रोकथाम एवं उपचार


रोगी को ठण्ड से बचाना चाहिए।

खाने में तरल और सुपाच्य भोजन देना चाहिए। 

रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए।


प्रश्न 4. अमीबिएसिस, मलेरिया, टायफॉइड, ऐस्कैरिएसिस तथा न्यूमोनिया के रोग कारकों के नाम बताइए।


अथवा मानव में रोग उत्पन्न करने वाले किन्हीं दो परजीवियों के नाम लिखिए तथा इनके द्वारा उत्पन्न होने वाले रोगों का वर्णन एवं इनके निदान का वर्णन कीजिए।


अथवा निम्नलिखित रोगों का संचरण कैसे होता है?


(i) अमीबता/अमीबिएसिस


(ii) मलेरिया


(iii) ऐस्कैरिएसिस


(iv) न्यूमोनिया


(v) टायफॉइड


अथवा ऐस्कैरिसता क्या है? इकसे बचाव व उपचार का उल्लेख कीजिए।


उत्तर (i) अमीबिएसिस यह रोग एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका नामक प्रोटोजोअन परजीवी द्वारा फैलता है। इसका संचरण संदूषित जल द्वारा होता है।


(ii) मलेरिया यह रोग प्लाज्मोडियम नामक प्रोटोजोअन परजीवी के कारण होता है। यह मादा एनॉफिलीज मच्छर द्वारा फैलता है।


(iii) ऐस्कैरिएसिस यह रोग आँत परजीवी एस्कैरिस से होता है। इसका संक्रमण संदूषित भोजन, जल व मिट्टी द्वारा फैलता है।


(iv) न्यूमोनिया यह रोग स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी तथा हीमोफिलस इन्फ्लुएन्जी जीवाणुओं द्वारा होता है। इस रोग के रोगकारक जीवाणु, कवक या प्रोटोजोआ कोई भी हो सकते हैं। यह वायु द्वारा फैलता है।


(v) टायफॉइड यह रोग साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु द्वारा होता है। इसका संचरण संदूषित जल द्वारा होता है। इसका संचरण संदूषित जल द्वारा होता है।


निदान - विडाल परीक्षण


प्रश्न 5. मलेरिया परजीवी के जीवन-चक्र को रेखाचित्र द्वारा समझाइए ।


अथवा मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र का नामांकित चित्र बनाइए ।


अथवा मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए ।


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प्रश्न 6. जैविकी (जीव विज्ञान) के अध्ययन ने संक्रामक रोगों को नियत्रित करने में किस प्रकार हमारी सहायता की है?


उत्तर (i) जैविकी के अध्ययन से संक्रामक रोगों के वाहकों का पता चलता है। 


(ii) जैविकी के अध्ययन से ही पता चलता है कि संक्रामक रोग के कारक क्या है व इनका जीवन चक्र कैसे चलता है? 


(iii) रोग वाहकों के नियन्त्रण के उपाय पता चलते हैं। 


(iv) संक्रामक रोगों को पहचानने में मदद मिलती है।


(v) संक्रामक रोगों के उपचार हेतु दवाइयां व टीके विकसित करने में सहायता मिलती है। 


प्रश्न 7. सहज (जन्मजात) और उपार्जित प्रतिरक्षा में अन्तर स्पष्ट कीजिए


 अथवा सहज व उपार्जित प्रतिरक्षा में अन्तर बताइए व प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। 


उत्तर


सहज (जन्मजात) प्रतिरक्षा

उपार्जित प्रतिरक्षा

यह जन्म के समय से ही पाई जाती है।

यह रोगाणु या प्रतिजन के प्रभाव से उत्पन्न होती है।

यह एक अविशिष्ट सुरक्षा प्रतिक्रिया है। स्वतः प्राप्त होती है।

यह रोगाणु या प्रतिजन के प्रति होने वाली प्रतिक्रिया से बनाए गए प्रतिरक्षियों से प्राप्त होती है।

यह रोगाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के अवरोध उत्पन्न करती है; जैसे त्वचा रोगाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकती है; मुख की लार एवं आँखों के आँसू रोगाणुओं की वृद्धि को रोकते हैं तथा श्वेत रुधिराणु रोगाणुओं का भक्षण करते हैं।

प्रथम बार किसी रोग के रोगाणुओं से सामना होने पर अनुक्रिया होती है। इसके फलस्वरूप प्रतिरक्षी का निर्माण होता है। इस रोगाणु के पुनः आक्रमण होने पर स्मृति आधारित प्रतिक्रिया बहुत तीव्रता से होती है। उपार्जित प्रतिरक्षा टीकाकरण द्वारा भी प्राप्त की जाती है; उदाहरण टिटेनस, चेचक आदि के टीके


प्रश्न 8. लसीकाणु से B व T- कोशिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। 


अथवा T तथा B लिम्फोसाइट्स का निर्माण तथा परिपक्वन कहाँ होता है?


अथवा प्रौढ़ मानव में T तथा B लिम्फोसाइट्स कहाँ बनते हैं? इनके परिपक्वन से आप क्या समझते हैं?


उत्तर – लसीकाणु (Lymphocytes) एक प्रकार के श्वेत रुधिराणु (WBCs) हैं। भ्रूण में इनका निर्माण यकृत व थाइमस में होता है। थाइमस एवं अस्थि मज्जा प्राथमिक लसीका अंग (Primary lymphoid organ) व टॉन्सिल एवं पैयर्स पैचेज, द्वितीयक लसीका अंग (Secondary lymphoid organ) कहलाते हैं। ये लसीकाणु दो प्रकार के होते हैं


(a) T. लसीकाणु या T. कोशिका (T- lymphocyte or T-cell)


(b) B लसीकाणु या B- कोशिका (B lymphocyte or B-cell) दोनों ही प्रकार की लसीकाणुओं का उद्भव वयस्क की अस्थि मज्जा में उपस्थित हीमोसाइटोब्लास्ट (Haemocytoblast) ऊतक की स्तम्भ कोशिकाओं (Stem cells) द्वारा होता है। इस क्रिया को रक्तोत्पति कहते हैं, परन्तु इनका परिपक्वन (Maturation) अलग-अलग अंगों में होता है।


वे लिम्फोसाइट कोशिकाएँ, जो थाइमस (Thymus) से प्रवसित होती हैं और इनके प्रभाव से विभेदित हो जाती हैं, T-कोशिकाएँ (T-cells) कहलाती हैं, जबकि वे कोशिकाएँ जो अस्थि मज्जा (Bone marrow) में लगातार विभेदित होती रहती हैं, B-कोशिकाएँ (B-cells) कहलाती हैं। प्रौढ़ लिम्फोसाइट्स का अन्तिम रूप से परिपक्वन लिम्फोइड ऊतकों; जैसे-लिम्फनोड्स, तिल्ली एवं टॉन्सिल में होता है।


T- कोशिकाएँ प्रतिदिन कोशिकीय प्रतिरक्षा के लिए उत्तरदायी होती हैं। B-कोशिकाएँ लगभग 20 ट्रिलियन्स (20 लाख करोड़) प्रतिरक्षी उत्पन्न करती हैं. जो ह्यूमोरल प्रतिरक्षा में भाग लेते हैं। T' एवं B दोनों कोशिकाएँ प्रतिजनों से प्रेरित होकर ही अपने कार्यों को करती हैं, लेकिन उनकी प्रतिक्रियाएँ भिन्न होती हैं।


प्रश्न 9. इन्टरफेरॉन्स क्या हैं? प्रतिरक्षी अनुक्रिया में इनका महत्त्व (कार्य) समझाइए |


अथवा 'इन्टरफेरॉन' के विषय में आप क्या जानते हैं? उस वैज्ञानिक का नाम बताइए, जिसने इसका पता लगाया। इसकी रासायनिक प्रकृति एवं शारीरिक प्रतिरक्षा अनुक्रिया में महत्त्व बताइए ।


उत्तर – इन्टरफेरॉन्स यह कशेरुकी जन्तुओं में विषाणु से संक्रमित कोशिकाओं द्वारा स्रावित एक ग्लाइकोप्रोटीन पदार्थ है, जो इन कोशिकाओं को विषाणु से संक्रमण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करते हैं।


आइसैक्स तथा लिण्डनमैन (Isaacs and Lindenmann) ने सन् 1957 में इस प्रकार की प्रोटीन का पता लगाया और चूँकि इसके द्वारा अन्त: कोशिकीय विषाणुओं के गुणन को रोका जाता है, इसलिए इसको इन्टरफेरॉन कहा गया।


इन्टरफेरॉन्स विषाणु के केन्द्रकीय अम्ल (Nucleic acid) संश्लेषक तन्त्र को बाधित करते हैं, किन्तु ये किसी भी प्रकार कोशिका के उपापचय में कोई बाधा नहीं डालते हैं। इन्टरफेरॉन्स कोशिका के बाहर उपस्थित विरिओन्स, आदि को किसी भी प्रकार प्रभावित नहीं करते हैं, न ही संक्रमण रोकने में किसी प्रकार सक्षम हैं। ये केवल अन्तःकोशिकीय (Intracellular) क्रियाएँ ही करते हैं। इन्टरफेरॉन का उपयोग संक्रमित कोशिकाओं द्वारा अन्य स्वस्थ कोशिकाओं को बचाने हेतु भी किया जाता है, जिससे वे सूचना ग्रहण करके अपना बचाव कर सकें। 


प्रश्न 10. लसीकाभ अंग क्या है? मानव में पाए जाने वाले प्राथमिक तथा द्वितीयक लसीकाभ अंगों के एक-एक उदाहरण तथा उनके कार्य लिखिए।


अथवा प्राथमिक व द्वितीयक लसिकाओं के अंगों के नाम बताइए।


उत्तर – लसीका अंग

ऐसे अंग जहाँ लसीकाणु का विभेदीकरण, विभाजन तथा परिपक्वन होता है लसीका अंग कहलाते हैं। इनको प्राथमिक लसीका अंग तथा द्वितीयक लसीका अंगों में विभक्त किया जा सकता है।


1. प्राथमिक लसीका अंग (Primary lymphoid organ) अस्थि मज्जा तथा थाइमस प्राथमिक लसीका अंग कहलाते हैं। पक्षियों में थाइमस तथा फैब्रीकस ब्रुर्सा (Fabricus bursa) प्राथमिक अंग हैं।


स्तनधारियों की अस्थि मज्जा, फैब्रीकस बुर्सा के समतुल्य संरचना है। थाइमस में T-लसीकाणु, जबकि अस्थि मज्जा में B-लसीकाणु का परिपक्वन होता है, जो क्रमश: कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा तथा तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी है।


(i) अस्थि मज्जा (Bone marrow) यह प्रमुख लसीकाभ अंग है जहाँ लसीकाणुओं समेत सभी रुधिर कोशिकाएँ उत्पन्न होती हैं।


(ii) थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland) यह वक्ष गुहा में दोनों फेफड़ों के मध्य स्थित एक अनियमित आकार की ग्रन्थि है। यह भ्रूणावस्था में ही क्रियाशील हो जाती है, जन्म के उपरान्त यह सर्वाधिक क्रियाशीलता दर्शाती है और युवावस्था तक ही सक्रिय रहती है। युवावस्था के बाद इसकी क्रियाशीलता में ह्रास होने लगता है। वयस्क व्यक्ति में इसका आकार बहुत छोटा होता है।


2. द्वितीयक लसीका अंग (Secondary lymphoid organ) प्राथमिक लसीका अंगों में परिपक्वन के पश्चात् B एवं T लसीकाणु द्वितीयक लसीका अंगों, जैसे-लसीका गाँठ (पर्व सन्धि- Lymph node), प्लीहा (Spleen), श्लेष्म लसीका ऊतक (Mucosa Associated Lymphoid Tissue or MALT), लसीका पटक तथा टॉन्सिल की और गमन करते हैं जहाँ इनका विभाजन तथा विभेदीकरण होता है, ये प्रतिजन का विनाश करते हैं। लसीका पुटक आंत की श्लेष्मा झिल्ली में छोटे तथा गोल, अण्डाकार पुटकों के रूप में होते हैं। लम्बे तथा अण्डाकार लसीका पुटकों को पेयर के पिण्ड (Peyer's patches) कहते हैं।


प्रश्न 11. वैक्सीन क्या है? किन्हीं दो वैक्सीनों के नाम एवं उनसे होने वाले लाभ लिखिए।


अथवा वैक्सीन तथा सीरम पर टिप्पणी कीजिए। 


उत्तर वैक्सीन मृत, निष्क्रिय सूक्ष्मरोगाणु या उनके उत्पादों से निर्मित वह पदार्थ,जिसे शरीर में प्रवेश कराने पर बिना रोग उत्पन्न किए, रक्षात्मक (Protective) कोशिकाओं के निर्माण या प्रतिरक्षी के निर्माण को प्रेरित करके शरीर में प्रतिरक्षा उत्पन्न कराते हैं, टीका या वैक्सीन कहलाता है।


 प्रमुख वैक्सीन या टीका


(i) BCG का टीका यह ट्यूबरकुलोसिस बीमारी से सुरक्षा करता है।


 (ii) DPT का टीका यह डिफ्थीरिया, काली खांसी व टिटनेस रोगों से बचाता है।


 सीरम (Serum) रोग द्वारा प्रतिरक्षित व्यक्ति या पोषक के शरीर से प्राप्त रुधिर कणिका रहित तरल (रुधिर प्लाज्मा व लिम्फ) को सीरम कहते हैं। यदि इस सीरम को किसी अन्य असंक्रमित या स्वस्थ व्यक्ति को दिया जाए, तो सीरम में उपस्थित प्रतिजीवी रोगाणुओं के प्रभाव को नष्ट करने की परिस्थितियाँ पैदा करते- हैं; उदाहरण - ATS (एण्टीटिटेनस सीरम) का इन्जेक्शन चोटग्रस्त अथवा गर्भवती महिला को टिटेनस के रोगाणुओं के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने के लिए लगाया जाता है।


प्रश्न 12. टीकाकरण और टॉक्सॉइड्स में अन्तर कीजिए।


अथवा टीका एवं टॉक्सॉइड्स में प्रत्येक का उदाहरण देते हुए अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – टीकाकरण और टॉक्सॉइड्स में निम्नलिखित अन्तर है।



टीकाकरण

टॉक्सॉइड्स

टीके (Vaccine) द्वारा प्रतिरक्षा तन्त्र को

सक्रिय करना टीकाकरण कहलाता है।वैक्सीन में क्षीण जीवित या मृत विषाणु या जीवाणु के कण होते हैं।

ये रूपान्तरित टॉक्सिन्स हैं।

वैक्सीन का प्रयोग संक्रमण से बचाव के लिए होता है।

टॉक्सॉइड्स जीवाणु से प्राप्त होते हैं, जिनका प्रयोग बैक्टीरियल संक्रमण के समय होता है।

सजीव क्षीण विषाणु में प्रतिजनत्व तो बना रहता है, किन्तु इनकी उग्रता समाप्त हो जाती है।

टॉक्सॉइड्स में भी प्रतिजनत्व तो बना रहता है, किन्तु इनकी आविषालुता समाप्त हो जाती है।

ये एण्टीबॉडीज के उत्पादन को प्रेरित करके विषाणु एवं जीवाणु दोनों से प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं।

ये जीवाणु से प्रतिरक्षा प्रदान करते है।

सजीव वैक्सीन्स में विषाणु एवं जीवाणु दोनों प्रोटीन एवं विषाणु RNA दोनों ही होते हैं, जबकि मृत वैक्सीन्स में केवल विषाणु का आच्छद होता है।

टॉक्सॉइड्स जीवाणु के प्रोटीन या ग्लाइकोप्रोटीन हैं।


प्रश्न 13. वह कौन-सी क्रियाविधि है, जिससे एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति के प्रतिरक्षा तन्त्र का ह्रास करता है?

उत्तर – HIV विषाणु प्रतिरक्षा तंत्र की सहायक T-कोशिकाओं पर आक्रमण  करता है। इसकी सतह पर उपस्थित Gp-120 प्रोटीन सहायक T- कोशिका की सतह पर CD₄ से चिपक जाता है और T. कोशिका में प्रवेश कर जाता है। HIV में न्यूक्लिक अम्ल ssRNA होता है। कोशिका में एन्जाइम RNA ट्रान्सक्रिप्टेज की सहायता से यह DNA का निर्माण करता है, जो सरलता से 'T- कोशिका के DNA के साथ संयोजन कर लेता है।


 ऐसी स्थिति में एड्स के विषाणु पूरी तरह सुरक्षित हो जाते हैं। कोई भी दवा इनके विरुद्ध कार्य नहीं करती है, क्योंकि उन्हें मारने के लिए प्रयोग की गई दवा सहायक T- कोशिकाओं को भी नष्ट कर देती हैं।


कुछ वर्षों तक विषाणु लगभग शान्त अवस्था में रहते हैं। रोग के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं, परन्तु अन्दर-ही-अन्दर रोगी का शरीर क्षतिग्रस्त हो जाता है,


क्योंकि HIV विषाणु, सहायक T- कोशिका के भीतर गुणन करके जब बाहर निकलते रहते हैं, तो T- कोशिका में छेद हो जाते हैं और ये नष्ट हो जाती हैं। T- कोशिकाओं की संख्या में कमी से प्रतिरक्षा तन्त्र अत्यन्त कमजोर होकर निष्क्रिय हो जाता है। रोगी में सामान्य रोग के होने की सम्भावना अधिक हो जाती है तथा सामान्य रोग भी आसानी से उपचारित नहीं हो पाते हैं। यह अवस्था एड्स कहलाती है, जो प्राणघातक होती है। 


प्रश्न 14. कैंसर क्या है? कैंसर कोशिकाएँ किस प्रकार सामान्य कोशिकाओं से भिन्न होती हैं?


अथवा कैंसर को परिभाषित कीजिए और इसके विभिन्न प्रकारों पर टिप्पणी लिखिए। 


उत्तर - कैंसर यह रोग शरीर की कोशिकाओं के अनियन्त्रित कोशिका विभाजन के कारण होता है। कोशिकाओं में उपस्थित ऑन्कोजीन्स के सक्रिय हो जाने से अविभेदित कैंसर कोशिकाएँ बनने लगती है।


कुछ पदार्थ कैंसर उत्पन्न करने में सहायक होते हैं, इन्हें कैंसर कारक या कार्सनोजन कहते हैं।


कैंसर को सम्बन्धित ऊतकों के आधार पर निम्न तीन समूहों में बाँट सकते हैं 


1. कार्सीनोमा (Carcinoma) यह बाह्य जनन स्तर से बने अंगों में होता है;


जैसे स्तन कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, आदि। 


2. सार्कोमा (Sarcoma) यह मध्य जनन स्तर से बने अंगों में होता है;


जैसे- अस्थि कैंसर, लसिका ग्रन्थि कैंसर, आदि ।


3. ल्यूकेमिया (Leukaemia) यह श्वेत रुधिर कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि के कारण होता है।


सामान्य कोशिका तथा कैंसर कोशिका में निम्नलिखित अन्तर है 


सामान्य कोशिका

कैंसर कोशिका

इनमें नियन्त्रित कोशिका विभाजन होता है।

इनमें अनियन्त्रित कोशिका विभाजन होता है।

इनका एक निश्चित जीवन चक्र होता है।

इनका एक निश्चित जीवन-चक्र नहीं होता है।

ये एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं।

ये एक-दूसरे से सम्बन्धित नहीं होती हैं।

ये अर्बुद या ट्यूमर बनाती हैं।

ये अर्बुद या ट्यूमर नहीं बनाती हैं।


प्रश्न 15. कैंसर अभिज्ञान की क्या विधि होती है? कैंसर के उपचार के बारे में बताइए।

उत्तरकैंसर अभिज्ञान एवं निदान (Cancer Detection and Diagnosis)


1. बायोप्सी (Biopsy) जब शरीर के किसी भाग में कैंसर का संदेह होता है, तो उस भाग से छोटा-सा टुकड़ा लेकर उसको काटकर अभिरंजित कर जाँच की जाती हैं कि कैंसर है या नहीं।


2. हिस्टोपैथोलॉजिकल (ऊतक विकृति) अध्ययन द्वारा कैंसर का पता लगाया जाता है। आन्तरिक अंगों में कैंसर का पता लगाने के लिए रेडियोग्राफी, एक्स-किरणों द्वारा, कम्प्यूटेड टोमोग्राफी (CT), चुम्बकीय अनुनादी इमेजिंग (MRI), आदि तकनीकों का उपयोग किया जाता है।


3. रुधिर की जाँच अधिश्वेतरक्तता (ल्यूकीमिया) की जाँच के लिए रुधिर के नमूने में रुधिर कणिकाओं की गणना कर मालूम किया जाता है, कि रुधिर कैंसर (ल्यूकीमिया) है या नहीं।


4. प्रतिरक्षियों का उपयोग कर कैंसर का पता लगाया जाता है। 5. कुछ जीन विशेष प्रकार के कैंसरजनों के प्रति सुग्राही होते हैं। अतः उन जीनों की पहचानकर उन व्यक्तियों को उस कैंसरजन से बचने की सलाह दी

जाती है।


 इसके उपचार में निम्नलिखित तकनीके प्रयोग की जाती हैं।


शल्य चिकित्सा (Surgery) द्वारा शरीर की किसी भी गाँठ या प्रभावित ऊतक को निकाल दिया जाता है।


रेडियोथैरेपी (Radiotherapy) द्वारा रोगी के विशिष्ट अंग की कोशिकाओं को विभिन्न विकिरणों द्वारा नष्ट किया जाता है। 


कीमोथैरेपी (Chemotherapy) के अन्तर्गत रासायनिक यौगिकों में उत्पन्न हुई औषधियों द्वारा उपचार किया जाता है। 


रोकथाम एवं उपचार


प्रदूषण को कम करना चाहिए व धूम्रपान नहीं करना चाहिए।


पान, तम्बाकू, गुटखा, शराब, आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।


• स्वयं की शारीरिक संरचना में कोई असामान्य परिवर्तन होने पर तुरन्त चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।


प्रश्न 16. ड्रग क्या है? स्मैक तथा चरस कहाँ से प्राप्त होते हैं?

उत्तर – ड्रग वह पदार्थ है, जो खाने सूँघने या किसी भी माध्यम द्वारा या रूप में सेवन करने पर व्यक्ति में शारीरिक और मानसिक परिवर्तन उत्पन्न कर देते है। यह निषेध (हिरोइन, चरस, कॉकीन) या अनिषेध (शराब, कैफीन, तम्बाकू, आदि) दो प्रकार के होते हैं। नशीले पदार्थों में जिन पदार्थों का उपयोग किया जाता है वे हैं ओपिओइड्स, कैनाबिनॉइड्स एवं कोका एल्केलाइड। यह मुख्यतया पुष्पी पादपों से प्राप्त की जाती हैं।


ओपिओइड्स या स्मैक अफीम पादप से प्राप्त होती है। कैनबिस सेटाइवा के पुष्पक्रम, शीर्ष व पत्ती से चरस (कैनाविनॉइड्स) प्राप्त होती है। 


प्रश्न 17. तम्बाकू का किसी भी रूप में सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ऐसा क्यों? 

उत्तर – धूम्रपान एवं तम्बाकू सेवन से शरीर पर अनेक दुष्प्रभाव पड़ते हैं; जैसे-


1. तम्बाकू में उपस्थित निकोटिन, दमा, क्षय रोग, आदि को उत्पन्न करने में सहायक होता है। सिगरेट, आदि का उपयोग करने से वायु प्रदूषण भी होता है।


2. धूम्रपान या तम्बाकू सेवन से रुधिर परिसंचरण की गति बढ़ जाती है। इससे उच्च रुधिर दाब तथा हृदय सम्बन्धी रोग होने की सम्भावना रहती है। 


3. धूम्रपान या तम्बाकू से मुंह, गले और फेफड़े का कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।


4. अनिद्रा रोग हो जाता है। मानसिक शक्ति क्षीण होती है।


 5. मांसपेशियों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।


6. गर्भवती स्त्रियों के लिए धूम्रपान विशेष रूप से हानिकारक होता है। इससे गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है।


7. धूम्रपान तन्त्रिका तन्त्र को प्रभावित करता है। इसका अप्रत्यक्ष संक्रमण भी होता है, जो इसके धुएँ के सम्पर्क में आने से होता हैं, जो अत्यधिक हानिकारक है।



            दीर्घ उत्तरीय प्रश्न   5 अंक


प्रश्न 1. मानव स्वास्थ्य तथा रोग पर टिप्पणी कीजिए।


अथवा मानव स्वास्थ्य पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।


उत्तर – मानव स्वास्थ्य विश्व स्वास्थ्य संगठन या WHO (World Health Organisation) की परिभाषा के अनुसार, स्वास्थ्य को तीन आयामो शारीरिक, मानसिक व सामाजिक, के आधार पर निर्धारित किया जाता है। इस प्रकार स्वास्थ्य शरीर की उस अवस्था को कहा जाता है, जिसमें प्राणी शरीर शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होता है। 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। WHO की स्थापना सन् 1948 में हुई। इसका मुख्यालय जिनेवा में है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुछ आधारभूत कारक आवश्यक होते हैं, जोकि अच्छे स्वास्थ्य को निर्धारित करते हैं। इन कारकों में सन्तुलित आहार, व्यक्तिगत सफाई और नियमित व्यायाम सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कारक भी हैं, जोकि स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, जिनमें रोगों के बारे में जागरुकता (Awareness), उनके प्रभाव, उनके विरुद्ध टीकाकरण, अपशिष्ट पदार्थों का उचित निपटारा, भोजन, जल की स्वच्छता, आदि सम्मिलित हैं।


रोग शरीर की सामान्य अवस्था में किसी भी प्रकार से असामान्य परिवर्तन या दुर्बलता के उत्पन्न होने को रोग (Disease) कहा जाता है। रोग को शरीर की उस अवस्था से परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें दोषपूर्ण आहार, आनुवंशिक एवं पर्यावरणीय कारकों द्वारा उत्पन्न संक्रमण (Infection), शरीर के सामान्य कार्यों एवं कार्यिकी (Physiology) में असामान्यताएँ (Abnormalities) उत्पन्न कर देता है। इस अवस्था में सम्पूर्ण शरीर या शरीर के कुछ अंगों के सामान्य कार्य

प्रभावित होते हैं।


• रोग के संकेत (Indications of diseases) ज्वर, पीलापन, श्वासदर आदि असामान्य दशाएँ रोग संकेत कहलाती हैं।


रोग लक्षण (Symptoms of diseases) पीड़ा, बेचैनी, व्यग्रता, चक्कर, आदि रोग लक्षण कहलाते हैं।


रोग का निदान या निरूपण (Diagnosis of diseases) रोग संकेतों, रोग लक्षणों व रोग-विज्ञानी परीक्षणों द्वारा रोग का निर्धारण, रोग का निदान या

निरूपण कहलाता है।


उपचार (Therapy) औषधियों, शल्यक्रिया या अन्य विधियों द्वारा रोग समाप्त करना इसका उपचार कहलाता है।


रोकथाम (Prophylaxis) किसी विधि, औषधि या उपकरण की सहायता से किसी सम्भावित रोग को होने से रोकने को रोगरोधन कहते हैं।


रोगों के प्रकार


मानव में होने वाले रोगों को दो भागों में बाँटा जा सकता हैं


1. जन्मजात रोग (Congenital diseases) ये रोग मानव में जन्म से ही होते. है। ये रोग निम्नलिखित कारणों से हो सकते है


(i) किसी जीन में उत्परिवर्तन द्वारा: जैसे-एल्कैप्टोन्यूरिया, फीनाइलकीटोन्यूरिया, रंजकहीनता, दाँत्र कोशिका अरक्तता (Sickle- cell anaemia), हीमोफीलिया, वर्णान्धता, आदि।


(ii) गुणसूत्रीय असामान्यताओं द्वारा जैसे-डाउन, क्लाइनफेल्टर और टर्नर सिण्ड्रोम ।


(iii) वातावरणीय कारकों द्वारा; जैसे-कटा हुआ होंठ और तालु आदि। जीन व गुणसूत्र द्वारा उत्पन्न रोगों के विपरीत, वातावरणीय कारकों द्वारा उत्पन्न रोग बच्चों में वंशागत नहीं होते हैं।


2. उपार्जित रोग ये रोग जन्म से नहीं होते हैं, किन्तु जन्म के बाद किसी भी कारणवश उत्पन्न हो सकते हैं। उपार्जित रोग निम्न दो प्रकार के होते हैं


(i) संक्रामक और संचरणीय रोग (Infectious or Communicable diseases) वे रोग जो प्रोटोजोआ, जीवाणु, विषाणु, कवक और कृमियों द्वारा फैलते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं। संक्रामक रोगों को दो उप-प्रकारों में बाँटा गया है


(a) संसर्गज रोग (Contagious diseases) ये रोग सामान्यतया प्रत्यक्ष (Direct) शारीरिक सम्पर्क से फैलते हैं; उदाहरण-छोटी चेचक, दाद, चेचक, इन्फ्लुएन्जा, खसरा, कुष्ठ (Leprosy) रोग, आदि।


बचाव के उपाय


इसके संक्रमण से बचने के लिए BCG का टीका लगवाना चाहिए। 

सन्तुलित भोजन द्वारा इस रोग से बचा जा सकता है।


उपचार इस रोग में स्ट्रेप्टोमाइसिन औषधि से लाभ होता है। इसके अतिरिक्त ATT(एण्टी ट्यूबरकुलर चिकित्सा) द्वारा इस रोग का उपचार सम्भव है। 


2. हैजा (Cholera) यह रोग विब्रियो कॉलेरी (Vibrio cholerae) जीवाणु द्वारा फैलता है। हैजा मक्खियों द्वारा, संक्रमित जल एवं भोज्य पदार्थों से होता है। 


लक्षण


• इस रोग में रोगी को दस्त, उल्टी और ऐंठन होने लगती है। 

•शरीर में जल की कमी हो जाती है।


•शरीर के भार में कमी आने लगती है।


बचाव के उपाय

• पानी उबालकर पीना चाहिए।

•हैजे का टीका लगवाना चाहिए।

•बासी व खुले भोज्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।'


उपचार


•रोगी को जल व ORS का घोल पिलाना चाहिए।

•हैजा रोग में अमृतधारा तथा नाइट्रोन्यूटिन अम्ल की 5-10 बूँदें जल में मिलाकर देने से लाभ होता है।


असंक्रामक रोग


इन रोगों का संचरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं होता है। ये रोग किसी पोषक पदार्थ की कमी अथवा शरीर की किसी पदार्थ के लिए संवेदनशीलता के कारण अथवा उपापचय त्रुटियों के कारण होते हैं; जैसे- मधुमेह, हृदयघात, गठिया, कैंसर, आदि।


1. मधुमेह (Diabetes) यह मनुष्य में होने वाला हॉर्मोनल विकार है, जो शरीर में अग्न्याशय की लैंगर हैन्स द्वीप की B-कोशिकाओं की अल्प सक्रियता के परिणामस्वरूप इन्सुलिन की कमी से होता है। प्रभावित व्यक्ति के रुधिर में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ जाती है तथा उसका उत्सर्जन मूत्र के साथ होने लगता है।


लक्षण

•रोगी में कमजोरी आ जाती है। 

•भार में कमी होने लगती है।

 • थकावट रहने लगती है। 

•मूत्र शीघ्रता से आने लगता है।


बचाव के उपाय


• इस रोग से बचने के लिए सन्तुलित एवं पोषक आहार लेना चाहिए। 

•भोजन में शर्करा युक्त पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

•नियमित व्यायाम करना चाहिए। 


उपचार डॉक्टर के परामर्श से औषधि समय पर लेनी चाहिए। भोजन उचित मात्रा में और समय पर करना चाहिए। इन्सुलिन लेने से रोग को शीघ्र नियन्त्रित किया जा सकता है।


2. कर्क रोग या कैंसर (Cancer) यह रोग शरीर की कोशिकाओं के अनियन्त्रित कोशिका विभाजन के कारण होता है। कोशिकाओं में उपस्थित ऑन्कोजीन्स के सक्रिय हो जाने से अविभेदित कैंसर कोशिकाएँ बनने लगती हैं। कुछ पदार्थ कैंसर उत्पन्न करने में सहायक होते हैं, इन्हें कैंसर कारक या कार्सनोजन कहते हैं।


कैंसर के कारण (Causes of cancer) जो पदार्थ कैंसर उत्पन्न करते हैं, उन्हें कैंसर कारक या कासनोजन कहते हैं; जैसे- . तम्बाकू चबाना (Tobacco chewing) इससे मुख का कैंसर होता है।


धूम्रपान (Smoking) इससे मुख, गले, स्वर यन्त्र तथा फेफड़ों का कैंसर होता है।


सूर्य की किरणों के कारण (Due to exposure of sun rays) इससे त्वचीय कैंसर की सम्भावना हो जाती है।


लक्षण


• शरीर के किसी तिल या मस्से में अचानक तीव्र वृद्धि होना।

•शरीर के किसी भाग में गाँठ का बनना, जैसे-स्तन कैंसर में। 

•शरीर के भार में निरन्तर कमी होना।


रोकथाम


• प्रदूषण से बचें


• पान, तम्बाकू, गुटखा, शराब, सिगरेट का सेवन नहीं करना चाहिए। . शारीरिक संरचना में असामान्य परिवर्तन होने पर तुरन्त चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। से बचा


उपचार (Treatment) विकिरणों तथा प्रदूषकों से दूर रहकर कैंसर जा सकता है। 

विकिरण चिकित्सा (Radiotherapy) विकिरणी किरणों द्वारा कैंसर ट्यूमर को नष्ट किया जाता है।


कीमोथैरेपी (Chemotherapy) द्वारा भी कैंसर का उपचार किया जाता है।


प्रश्न 3. बीमारी क्या है? वाइरस तथा निमेटोड के द्वारा उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियों की व्याख्या कीजिए तथा इनकी रोकथाम के उपाय लिखिए।

उत्तर – बीमारी या रोग शरीर की सामान्य अवस्था में किसी भी प्रकार से असामान्य परिवर्तन या दुर्बलता के उत्पन्न होने को रोग या बीमारी कहा जाता है।


वाइरस जनित रोग 

1. AIDS 

2. साधारण जुकाम यह अनेक प्रकार के विषाणुओं द्वारा होता है। यह अधिकांशतथ राइनोविषाणु (Rhinovirus) या कभी-कभी कोरोना विषाणु (Corona virus) द्वारा होता है।


रोकथाम एवं उपचार 


(i) व्यक्तिगत स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


(ii) हाथ धोने की आदत को प्रोत्साहन देना चाहिए।


(iii) रोग के उपचार में एरियन (Aspirin), एन्टीहिस्टामिन (Anti-histamines), आदि औषधियाँ तथा नेजल स्प्रे (Nasal spray) कारगर हैं। सामान्य जुकाम लगभग एक सप्ताह में स्वतः ठीक हो जाता है।


निमेटोड जनित रोग

 1. एस्कैरिऐसिस 

2. फीलपाँव 


प्रश्न 4. मलेरिया तथा इसके नियन्त्रण पर टिप्पणी लिखिए। अथवा कौन-सा कीट मलेरिया के परजीवी को फैलाता है? विभिन्न प्रकार के मलेरिया पर टिप्पणी कीजिए।


उत्तर – मलेरिया (Malaria) का रोगकारक प्लाज्मोडियम नामक प्रोटोजोअन्स है, जो द्विपोषदीय परजीवी है। प्राथमिक पोषद मानव द्वितीयक पोषद-मादा एनॉफिलीज है। प्लाज्मोडियम वाइवेक्स, प्लाज्मोडियम ओवेल, प्लाज्मोडियम मलैरी, प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम मलेरिया रोग फैलाने वाले प्रोटोजोआ की विभिन्न जातियाँ हैं।


मलेरिया के प्रकार


यह निम्नलिखित प्रकार का होता है


1. सुदम तृतीयक मलेरिया यह प्लाज्मोडियम वाइवैक्स द्वारा होता है। इसमें ज्वर की पुनरावृत्ति अवधि 48 घण्टे हैं।


2. दुर्दम तृतीयक मलेरिया वह प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम द्वारा होता है। इसमें ज्वर की पुनरावृत्ति 48 घण्टे बाद होती है। संक्रमण के कारण रुधिर कोशिकाओं में थ्रॉम्बोसिस हो जाती है तथा रोगी की मृत्यु हो जाती है।


3. चतुर्थक मलेरिया यह प्लाज्मोडियम मलैरी द्वारा होता है। ज्वर की पुनरावृत्ति 72 घण्टों पश्चात् होती है। यह सब्सीक्विल मलेरिया भी कहलाता है।


4. ओवेल मलेरिया यह प्लाज्मोडियम ओवेल द्वारा होता है। यह सबसे कम हानिकारक है। ज्वर की पुनरावृत्ति 48 घण्टों में होती है।


संक्रमण


जब संक्रमित मादा एनाफिलीज (Anophcles) व्यक्ति को काटती है, तो प्लाज्मोडियम जीवाणुज (Sporousites) के रूप में व्यक्ति में प्रवेश करता है। यह जीवाणु का संक्रामक रूप है। शुरू में परजीवी यकृत में अपनी संख्या बढ़ाते है।


फिर लाल रुधिर कणिकाओं (RBCs) पर आक्रमण करते हैं, जिससे वे फट जाती हैं। इनसे एक विषालु (Toxin) पदार्थ हीमोजॉइन निकलता है, जो ठिठुरन (Chill) तथा उच्च ज्वर के लिए उत्तरदायी है। जब मादा एनॉफिलीज किसी संक्रमित व्यक्ति को काटती है, तो परजीवी उसमें (मच्छर में) प्रवेश करता है। यहाँ ये बहुसंख्यात्मक रूप से बढ़ते हैं तथा जीवाणुज बनाते हैं। इस प्रकार बने जीवाणुज मादा मच्छर की लार ग्रन्थियों में एकत्रित होते हैं। जब यह मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो जीवाणुज को उसके शरीर में प्रवेश करा देता है। मलेरिया परजीवी अपना जीवन चक्र मनुष्य व मादा एनॉफिलीज में पूरा करता है। मनुष्य में परजीवी अलैंगिक अवस्था (Asexual phase) तथा मादा एनॉफिलीज में लैंगिक अवस्था (Sexual phase) को पूरा करता है। मच्छर को मलेरिया परजीवी का द्वितीयक परपोषी (Secondary or Intermediate host) तथा मनुष्य को प्राथमिक परपोषी (Primary or Final host) कहते हैं। हीमोजॉइन कणों के रुधिर कोशिका से निकलने पर बुखार के लक्षण प्रकट होते हैं।


लक्षण


1. इस रोग में रोगी की भूख मर जाती है।


2. रोगी को तीव्र ज्वर चढ़ जाता है। 3. रोगी को कब्ज हो जाती है तथा जी-मिचलाता है।


4. रोगी का मुख सूखने लगता है।


5. रोगी के सिर, पेशियों और जोड़ों में तीव्र दर्द होता है। 


उपचार मलेरिया के उपचार के लिए 300 वर्षों से कुनैन, एक परम्परागत औषधि दी जाती है। यह रोगी के रुधिर में उपस्थित प्लाज्मोडियम की सभी प्रावस्थाओं को नष्ट कर देती है। कुनैन से मिलती-जुलती कृत्रिम औषधियाँ - ऐटीब्रिन बेसोक्विन, एमक्विन, मैलोसाइड, मेलुब्रिन, निवाक्विन, रेसोचिन, कामोक्विन, क्लोरोक्विन, आदि आजकल प्रचलित हैं। पेल्यूडिन, मेपाक्रीन, पैन्टाक्विन, डैराप्रिम, प्राइमाक्विन एवं प्लाज्मोक्विन रोगी के यकृत में उपस्थित प्लाज्मोडियम की प्राबस्थाओं को भी नष्ट करती है।


बचाव तथा नियन्त्रण


1. वयस्क मच्छरों के लार्वा तथा प्यूपा का विनाश मलेरिया से बचाव का सबसे प्रभावी उपाय है।


2. इसके अलावा साफ-सफाई, मच्छरदानियों तथा मच्छर-रोधी क्रीमों का उपयोग भी मलेरिया को नियन्त्रित कर सकता है।


3. तालाब व गड्ढों में जल जमा नहीं रहने देना चाहिए।


4. जल जमा होने वाले स्थानों पर मच्छरों का जनन रोकने हेतु मिट्टी का तेल डालना चाहिए। मच्छर के लार्वा को खाने वाली गम्बूशिया जैसे-मछलियों को तथा बत्तखों को जल में छोड़ देते हैं तथा यूट्रीकुलेरिया (Utricularia) जैसे पादपों को जल में उगाते हैं।


5. मच्छर के जनन स्थानों को नष्ट कर देना चाहिए तथा नालियों को छोड़ना चाहिए। खुला नहीं कीजिए।


6. DDT, BHC, आदि का प्रयोग मच्छर नष्ट करने हेतु करना चाहिए, परन्तु इन दोनों का प्रयोग भारत में प्रतिबन्धित है।


 प्रश्न 5. प्रोटोजोआ द्वारा उत्पन्न होने वाले किन्हीं दो रोगों के नाम लिखिए। इनमें से किसी एक रोग के जनक, लक्षण एवं रोकथाम का उल्लेख कीजिए।


अथवा मनुष्य में पेचिश पैदा करने वाले परजीवी का नाम लिखिए तथा संक्षेप में इसके जीवन चक्र का वर्णन कीजिए।


अथवा एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका के संक्रमण से बचने के लिए चार महत्त्वपूर्ण उपायों का उल्लेख कीजिए।


उत्तर –प्रोटोजोआ द्वारा उत्पन्न होने वाले दो रोगों के नाम निम्नलिखित हैं


(i) मलेरिया


(ii) अमीबिक पेचिश या अमीबिएसिस


अमीबिक पेचिश या अमीबिएसिस

आमातिसार या अमीबिएसिस नामक बीमारी एक प्रोटोजोअन एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका द्वारा होती है। यह प्रोटोजोअन कूटपाद द्वारा भ्रमण करता है। यह दो अलग-अलग रूपों में पाया जाता है


(i) ट्रोफोजोइट (Trophozoite) यह गतिशील रूप हैं, जो भोजन ग्रहण करने में सक्षम होता है। यह संरचना में अमीबा की भाँति प्रतीत होता है, परन्तु इसमें गति के लिए केवल एक ही कूटपाद (Pseudopodium) बनता है। यह प्राणिसमभोजी पोषण (Holozoic mutrition) दर्शाता है। 


(ii) प्रकोषी (Minuta) यह गोलाकार, गतिहीन रूप है, जो पोषण ग्रहण करने में अक्षम है। यह रूप पुटीभवन (Encystment) दर्शाता है तथा अपने चारों ओर पुटी निर्माण करके एक पोषद से दूसरे पोषद में पहुँचता है। संक्रमण एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका बड़ी आंत में विकार स्रावित करके घाव (Ulcer) पैदा कर देता है। इन घावों से रुधिर, म्यूकस, आदि मल के साथ पेचिश के रूप में बाहर आता है। ये परजीवी चतुष्केन्द्रिय पुटिकाओं (Cyst) के रूप में रोगी के मूल के साथ बाहर आते हैं। ये संक्रमित भोजन व जल द्वारा दूसरे मानवों में पहुँचकर रोग फैलाते हैं। यह परजीवी फेफड़ों, यकृत व मस्तिष्क में पहुँचकर सूजन व घाव का कारक बनता है। 


लक्षण


इस रोग के होने से पेट में दर्द व ऐंतन रहती है, वमन की इच्छा होती हैं व पेट भारी रहता है। सिर दर्द व शरीर कमजोर हो जाता है। श्लेष्मा युक्त तथा रुधिर-युक्त दस्त हो जाते हैं। रोगी की आँखों के आस-पास काले घेरे बन जाते हैं व चेहरा मुरझा जाता है। विश्व के 10% व्यक्तियों में यह प्रोटोजोअन पाया जाता है केवल 3% को ही प्रभावित करता है। घरेलू क्यों इसकी अच्छी प्रसारक होती है।


उपचार


रोग हो जाने पर फ्यूमेजिलिन (Fumagilin), इरिथ्रोमायसिन (Erythromycin), बायोमीबिक-D, डिपेन्डॉल-M, डायकोक्विन, ट्राइडेजॉल, मेट्रोजिल, एम्जोल, समेटिन आदि औषधियों का प्रयोग लाभकारी होता है।


 रोकथाम

भोजन को अच्छी तरह से पकाकर खाना चाहिए तथा फल-सब्जियों, आदि को ठीक प्रकार से धोना चाहिए।


नियमित रूप से नहाना, नाखून काटना, भोजन से पूर्व हाथ धोने चाहिए। 


• स्वच्छ जल का प्रयोग करना चाहिए।


 रोगी को स्वस्थ मनुष्यों से अलग रखना चाहिए।


प्रश्न 6. ऐस्कैरिएसिस से आप क्या समझते हैं? इसके बचाव, उपचार और नियन्त्रण का उल्लेख कीजिए

उत्तरऐस्कैरिएसिस यह रोग मनुष्य की आंत में रहने वाले परजीवी ऐस्कैरिस लुम्बिकॉइड्स (Ascaris lumbricoides) नामक गोलकृमि से होता है। संक्रमित भोजन के साथ परजीवी के अण्डे मनुष्य की आँत में पहुँच जाते हैं। आँत में इसका लार्वा छेद करके हृदय, फेफड़े, यकृत को संक्रमित करता है। यह परजीवी हमारी आँत में पचे हुए भोजन पर निर्भर करता है। 


लक्षण व रोगजनकता


इसके मुख्य लक्षण पेट में दर्द, उल्टियाँ, अपेन्डिसाइटिस, अतिसार, गैस्ट्रिक अल्सर, सन्नति (Delirium), घबराहट, ऐंठन (Convulsions), आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। बच्चों में इस रोग से कुपोषण हो जाता है। मन व मस्तिष्क बेचैन रहते हैं। आंत में ऐस्कैरिस की संख्या अधिक होने पर रोगी का उण्डुक (Appendix) अवरुद्ध हो जाता है, जिससे उदरशूल (Colic pain) व उण्डुक पुच्छशोथ (Appendicitis) विकार हो जाते हैं।


 रोगी के पित्तनली, अग्न्याशयी नाल, आदि में ऐस्कैरिस के फँस जाने पर स्थिति गम्भीर हो जाती है। ऐस्कैरिस रोगी के शरीर में घूमता रहता है, जिससे फेफड़े, आँत की दीवारें व रुधिर कोशिकाएँ प्रभावित हो जाती है, जिससे रुधिर नाव प्रारम्भ हो जाता है। शिशु ऐस्कैरिस विपथगामी भ्रमण द्वारा रोगी के मस्तिष्क, वृक्क, नेत्र, मेरुदण्ड, आदि में प्रवेश कर जाता है, जिससे इन अंगों को हानि पहुँचती है।


निदान एवं चिकित्सा


ऐस्कैरिएसिस रोग के संक्रमण की पहचान रोगी के मल में इसके अण्डों की उपस्थिति से होती है। रोगी की आँत से कृमि को निकालने हेतु बथुआ का तेल, डीमेटोड, मीबेन्डाजोल, जीटोमिसोल-पी, हेट्राजान, वर्मिसोल, केट्रॉक्स, जेन्टेल, एन्टीपार, एल्कोपार, डिकैरिस, आदि औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं। हैक्सिल रिसॉसिनॉल नामक दवाई वर्तमान में अत्यधिक प्रभावी औषधि है। 


रोकथाम


अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ रखना, मल-मूत्र का खुले में विसर्जन न करना, प्रदूषित भोजन व सड़े-गले फल-सब्जी, आदि से बचना, भोजन करने से पूर्व हाथों को भली-भाँति धोना, शौचालय की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना व स्वच्छ जल का प्रयोग करना, आदि इस रोग की रोकथाम के प्रमुख उपाय हैं। रोग होने पर इस परजीवी को मारने के लिए पाइपेराजिन सिट्रेट (Piperazine citrate) तथा पाइपेराजिन फॉस्फेट (Piperazine phosphate) औषधियों का प्रयोग किया जाता है।


प्रश्न 7. प्रतिरक्षा तन्त्र से आप क्या समझते हैं? प्रतिरक्षा तन्त्र के आविष्कारक का नाम लिखिए। चेचक रोग के लक्षण, संक्रमण तथा रोकथाम के उपाय लिखिए।


उत्तर – प्रतिरक्षा तन्त्र के जनक एमिल वॉन बेरिंग (Emil von Behring) को माना जाता है।


चेचक (Small pox) इस रोग का कारक वेरीओला विषाणु है। यह रोग एक अत्यन्त संसर्गजन्य रोग है। इसके विषाणु वायु द्वारा या रोगी के प्रत्यक्ष संसर्ग या उसके कपड़ों के संसर्ग के कारण निरोगी मनुष्यों के शरीर में प्रवेश करते हैं। यह रोग छोटे बच्चों से लेकर युवा वर्ग के लोगों तक को हो सकता है। यह रोग 2-10 वर्ष के बच्चों के लिए विशेष प्राणघातक है। इसकी ऊष्मायन अवधि 14-16 दिन होती है। लक्षण (Symptoms) विषाणु के शरीर में प्रवेश होने के लगभग 12 दिनों के भीतर रोग के लक्षण दिखने लगते हैं। अचानक तीव्र ज्वर हो जाता है, कमर एवं सिरदर्द

होने लगता है। तीसरे दिन ज्वर कम होने पर चेहरे एवं कलाई के अगले भाग पर एवं शरीर के समस्त भाग पर लाल फुंसियाँ (Rash) बन जाती हैं और 3-4 दिन के बाद जो फोड़े (Pimple) का रूप धारण कर लेती हैं। इन फोड़ों में पस भर जाती है, जिससे फिर से ज्वर चढ़ जाता है। अब ये फोड़े सूखने लगते हैं और लगभग तीन सप्ताह में उनमें पपड़ी (Crusts) पड़ जाती है। इस रोग के कारण मृत्यु भी हो जाती है और अधिकांश को अन्धापन, बहरापन एवं कुरूपता स्वीकार करनी पड़ती है। यह रोग एक बार होने पर पुनः नहीं होता क्योंकि शरीर में इस रोग के लिए प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है। 


रोकथाम एवं उपचार.


• रोगी को अलग एकान्त स्थान (Isolated) में रखना चाहिए। रोगी के कमरे को विसंक्रमित (Disinfection) करना चाहिए।


रोगी के कपड़ों एवं अन्य सामान को धूप में सुखाना चाहिए तथा बर्तन एवं कपड़ों को उबले जल से धोना चाहिए। 


रोगी के नाखून काट देने चाहिए, जिससे वह खुजा न सके।


यह रोग 1976 से सम्पूर्ण विश्व में समाप्त हो चुका है 


प्रश्न 8. प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया से आप क्या समझते हैं? प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया की प्रमुख विशेषताओं एवं अक्रिय तथा सक्रिय प्रतिरक्षा का वर्णन कीजिए। 


अथवा प्रतिरक्षा तन्त्र से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार के प्रतिरक्षा तन्त्र का वर्णन कीजिए व प्रतिरक्षा तन्त्र के अविष्कारक का नाम बताइए। 


अथवा प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा प्रतिरक्षा से आप क्या समझते हैं? मनुष्य में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्रतिरक्षात्मक तन्त्रों का वर्णन कीजिए। अथवा प्रतिरक्षण तन्त्र से आप क्या समझते हैं? प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए ।


अथवा कोशिका मध्यस्थ तथा प्रतिरक्षी मध्यस्थ प्रतिरक्षा में अन्तर बताइए। 


अथवा आक्रमण की पहचान, नष्ट करने तथा इसे याद रखने के सन्दर्भ में प्रतिरक्षी प्रतिक्रियाओं की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।


अथवा प्रतिरक्षण तन्त्र से आप क्या समझते हैं? प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के दो प्रमुख प्रकार बताइए।


अथवा प्रौढ़ मानव में तथा B-लिम्फोसाइट्स कहाँ बनते हैं? इनके परिपक्वन से आप क्या समझते हैं?


अथवा प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए तथा उपयुक्त उदाहरणों के साथ सक्रिय तथा निष्क्रिय प्रतिरक्षा का वर्णन कीजिए।


अथवा प्रतिरक्षा को परिभाषित कीजिए। उपयुक्त उदाहरणों सहित निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए।


(i) सहज (जन्मजात) और उपार्जित प्रतिरक्षा 


(ii) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा


उत्तर –  हमारे शरीर में रोगों से सुरक्षा हेतु एवं रोगाणु को नष्ट करने हेतु एक अतिविशिष्ट तन्त्र पाया जाता है, जिसे प्रतिरक्षा तन्त्र कहते हैं।


प्रतिरक्षा एवं प्रतिरक्षा तन्त्र


एमिल वॉन बेरिंग को प्रतिरक्षा विज्ञान का जनक कहा जाता है।


प्रतिरक्षा के प्रकार प्रतिरक्षा निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं 

(i) अविशिष्ट प्रतिरक्षा (Non-specific immunity) (ii) विशिष्ट प्रतिरक्षा (Specific immunity) उपरोक्त दोनों ही प्रकार की प्रतिरक्षाएँ पुनः जन्मजात (Innate) एवं उपार्जित (Aquired) प्रकार की होती हैं।


1. अविशिष्ट या सहज या स्वाभाविक प्रतिरक्षा यह प्रतिरक्षा मानव शरीर की सामान्य अवस्था एवं शरीर तन्त्रों की समुचित कार्यिकी पर भी निर्भर करती है। अविशिष्ट प्रतिरक्षा की प्रक्रियाओं में विविध प्रकार के रोगजनक आक्रमणकारी अथवा प्रतिजनों में विभेद करने की क्षमता नहीं होती है, इसीलिए यह प्रतिरक्षा किसी विशेष रोग से सुरक्षा प्रदान करने के अलावा सभी रोगों एवं प्रतिजनों से समान रूप में सुरक्षा प्रदान करती है। इसको सहज अथवा स्वाभाविक प्रतिरक्षा भी इसी कारण से कहा जाता है। अविशिष्ट प्रतिरक्षा का एक रूप जातीय प्रतिरक्षा (Species immunity) है, जिसके अन्तर्गत एक जाति में होने वाला रोग, दूसरी

जाति में नहीं होता है; उदाहरण- चूजों में एन्थ्रैक्स (Anthrax) नहीं होता, क्योंकि एन्थ्रैक्स का जीवाणु 37°0 पर सही प्रकार से वृद्धि कर पाता है, जबकि चूजों का सामान्य तापक्रम 45°C होता है। 


नस्ल प्रतिरक्षा (Racial Immunity) भी अविशिष्ट प्रतिरक्षा का ही एक और रूप है; उदाहरण-काली अफ्रीकी नस्ल के मानवों में हँसियाकार कोशिका अरक्तता (Sickle-cell anaemia) बहुत सामान्य रोग है, परन्तु ये मलेरिया से पीड़ित नहीं होते हैं क्योंकि मलेरिया परजीवी का हँसियाकार कोशिका में पूर्ण क्षमता से वृद्धि कर पाना सम्भव नहीं हो पाता है।


2. विशिष्ट या उपार्जित प्रतिरक्षा


इस प्रतिरक्षा में भिन्न-भिन्न प्रकार के रोगोत्पादक आक्रमणकारियों एवं प्रतिजनों से सुरक्षा के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की पृथक् विशिष्टीकृत कोशिकाएँ होती है, इसलिए इसे विशिष्टीकृत प्रतिरक्षा कहते है। यह जन्मजात न होकर प्रतिजन के प्रभाव से अर्जित की जाती है। अतः उपार्जित प्रतिरक्षा है। इस प्रतिरक्षा में संवेदी अंग विशिष्ट कोशिकाएँ तथा रुधिर में प्रवाहित प्रतिरक्षी होते हैं।


स्मृति (Memmory) तथा अपने एवं बाह्य पदार्थों (प्रतिजन) में विभेद इस प्रकार की प्रतिरक्षा की प्रमुख विशेषता होती है। शरीर द्वारा पहली बार किसी रोगजनक का सामना करने पर अनुक्रिया की तीव्रता कम होती है, यह प्राथमिक अनुक्रिया (Primary response) कहलाती है। इसके उपरान्त यदि उसी रोगजनक द्वारा आक्रमण होता है, तो शरीर द्वारा की गई अनुक्रिया तीव्र होती है, इसे द्वितीयक अनुक्रिया (Secondary response) कहते हैं। विशिष्ट प्रतिरक्षा को पूर्णरूपेण समझने के लिए प्रतिजन का ज्ञान अति-आवश्यक है।


इसमें श्वेत रुधिर कोशिकाएं भाग लेती हैं। प्रतिरक्षा तन्त्र की मुख्य कोशिकाएँ T- लिम्फोसाइट्स तथा B-लिम्फोसाइट्स है, जो लिम्फोसाइट्स थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland) में जाकर परिपक्व होती है, वे T-लिम्फोसाइट्स में विभेदित हो जाती हैं व जो लिम्फोसाइट्स लिम्फ ऊतक में परिपक्व होती हैं, वे B-लिम्फोसाइट्स में विभेदित होती हैं। प्रतिरक्षा तन्त्र दो प्रकार का होता है।


(i) कोशिका मध्यस्थ प्रतिरक्षा प्रतिजन (Antigens) के सम्पर्क में आते ही T-लिम्फोसाइट्स सक्रिय हो जाती हैं। सक्रिय होने के पश्चात् लिम्फोसाइट्स में समसूत्री विभाजन द्वारा संख्या में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप ये चार प्रकार की T-लिम्फोसाइट्स बनाती हैं।


• मारक T- लिम्फोसाइट्स (Killer T lymphocytes) ये कोशिकाएं रोगाणु की कोशिका पर सीधे आक्रमण करके उसे नष्ट कर देती हैं।


• सहायक T-लिम्फोसाइट्स (Helper T lymphocytes) ये मारक T-लिम्फोसाइट्स तथा B लिम्फोसाइट्स की क्रियाशीलता को बढ़ाती हैं। 


• दमनकारी T-लिम्फोसाइट्स (Suppressor T lymphocytes) ये कोशिकाएँ संक्रमण समाप्त होने के पश्चात् शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र की सक्रियता को रोकती है।


• स्मरण कोशिकाएँ (Memory cells) रोगाणु के सम्पर्क में आयी कुछ कोशिकाएं संवेदनशील (Sensitised) होने के पश्चात् लसीका ऊतक में स्मरण कोशिकाओं के रूप में संग्रहित हो जाती हैं। दोबारा वही संक्रमण होने पर ये कोशिकाएँ तुरन्त क्रियाशील हो जाती है। 


(ii) प्रतिरक्षी मध्यस्थ प्रतिरक्षा B लिम्फोसाइट्स प्रतिरक्षियों (Antibodies) का उत्पादन करती हैं। कुछ B लिम्फोसाइट्स सक्रिय होकर प्लाज्मा कोशिकाओं


(Plasma cells) में विभेदित हो जाती हैं। ये प्लाज्मा कोशिकाएं लसीका ऊतक में रहकर प्रतिरक्षी का उत्पादन करती हैं। कुछ B- लिम्फोसाइट्स स्मरण कोशिकाओं के रूप में लसीका ऊतक में संग्रहित हो जाती हैं। शरीर में जब दोबारा वही संक्रमण होता है, तब ये स्मरण कोशिकाएँ अपने जैसी लाखों कोशिकाएं बनाकर तेजी से प्रतिरक्षियों का उत्पादन प्रारम्भ कर

देती है।


प्रश्न 9. मानव के शरीर में संक्रमण से बचने के लिए कौन-सी तीन प्रमुख प्रणालियाँ पाई जाती हैं? प्रतिरक्षी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।


उत्तर – मानव के शरीर में संक्रमण से बचने के लिए निम्न तीन सुरक्षा प्रणालियाँ पाई जाती हैं


1. बाह्य सुरक्षा या प्रथम पंक्ति की रक्षा (External defence or First line of defence) इसके अन्तर्गत भौतिक और रासायनिक अवरोधक शामिल किए गए हैं।


(i) शारीरिक या भौतिक अवरोधक (Physical barriers) इस प्रकार के अवरोधों में त्वचा और श्लेष्म झिल्ली आती हैं, जो शरीर में रोगाणुओं के प्रवेश को बाधित करती है।


• त्वचा (Skin) यह शरीर का सुरक्षात्मक आवरण तैयार करती है तथा त्वचा के अधिचर्म (Epidermis ) की सबसे बाहरी परत जटिल स्ट्रेटम कॉर्नियम होती है, जो जीवाणुओं और विषाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकती है।


स्ट्रेटम कॉर्नियम (Stratum corneum). इसकी कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में किरैटिन नामक कठोर, तन्तुमय प्रोटीन जमा हो जाती है, जो उसे जलरोधी एवं जीवाणुरोधी (Waterproof and germproof) बनाती है। श्वसन, जठरान्त्र तथा जननमूत्र मार्ग से सम्बन्धित अंगों पर श्लेष्म परत पाई जाती है, जो रोगाणुओं को रोकने में सहायक होती है।


श्लेष्म झिल्ली (Mucous membrane) इसके द्वारा श्लेष्म का स्त्रावण होता है, जो सूक्ष्मजीवों को पकड़कर उन्हें अचल कर देता है। श्वसन के दौरान सूक्ष्मजीवी और धूल के कण श्वसन मार्ग में प्रवेश कर जाते हैं, जो श्लेष्म में चिपक जाते हैं।


नेत्र (Eye) नेत्रगोलक के कॉर्निया पर जमे हुए रोगाणुओं को आंसुओं के रूप में नेत्रों से बाहर कर दिया जाता है।


(ii) कार्यिकीय या रासायनिक अवरोधक (Physiological or Chemical barriers) शरीर द्वारा स्त्रावित विभिन्न खावी पदार्थ जैसे आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्त्रावण यकृत द्वारा पित्त (Bile) रस का स्रावण, मुख में लार का स्रावण, स्वेद (Sweat) तथा तेल ग्रन्थियों (Oil glands) से स्त्रावित पदार्थ, आदि रासायनिक अवरोधक शरीर में रोगाणुओं के प्रवेश को बाधित करते हैं। हमारी नाक के रोमों द्वारा कणों के साथ लाए हुए रोगकारकों को छान दिया जाता है। नाक का सावन भी अपने लाइसोजाइम द्वारा बाहर से आने वाले इन हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर देता है। कुछ जीवाणु योनि (Vagina) में सामान्यतया उपस्थित रहते हैं, जो लैक्टिक अम्ल का लावण करते हैं। यह लैक्टिक अम्ल बाह्य जीवाणुओं को मार देता है। इस प्रकार शारीरिक और रासायनिक अवरोधक पहले प्रकार के रक्षा तन्त्र मे सम्मिलित है।


2. आन्तरिक रक्षा या द्वितीय पंक्ति की रक्षा (Internal defence or Second line of defence) आन्तरिक रक्षा प्रतिरोगाणु पदार्थों, प्राकृतिक विनाशी कोशिकाओं, भक्षी कोशिकाओं, प्रदाह प्रक्रिया तथा ज्वर द्वारा प्रदान की जाती है, ये निम्नलिखित है


(i) प्रतिरोगाणु पदार्थ (Antimicrobial substances) ये पदार्थ कोशिकीय रोधक (Cellular barriers) बनाते हैं। जब रोगाणु, त्वचा या श्लेष्मिक कला को भेदकर ऊतक द्रव्य एवं रुधिर में पहुँच जाते हैं, तो बाह्य कोशिकीय तरल (Extra Cellular Fluid or ECF) में पाए जाने वाले कुछ प्रतिरोगाणु पदार्थ इन रोगाणुओं को नष्ट कर देते हैं या निष्क्रिय न देते है जैसे ट्रान्सरिना (Transferrins इन्टरफेस


(ii) प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ (Natural Killer cells or NK cells) ऊतक एवं रुधिर द्रव्य में पहुंचने वाले जो रोगाणु प्रतिरोगाणु पदार्थों के प्रभाव से बच जाते है, उन्हें विशेष श्रेणी के श्वेत रुधिराणु (Lymphocytes) नष्ट कर देते हैं। इन लिम्फोसाइट्स की प्राकृतिक विनाशी कोशिकाएं कहते हैं। ये कोशिकार्य रुधिर के अतिरिक्त लसीका गाँठो (Lymph nodes), प्लीहा (Spleen) तथा लाल अस्थि मज्जा (Bone morrow) में भी उपस्थित होती हैं। ये कोशिकाएँ अविशिष्ट सुरक्षा में भाग लेती हैं तथा परफोरिन ( Perforin) रसायन उत्पन्न करती हैं। यह परफोरिन, लक्ष्य कोशिका में पहुंचकर कोशिका को फाड़ देता है। इस फटी कोशिका का भक्षक कोशिकाओं द्वारा भक्षण कर लिया जाता है; जैसे- विषाणु संक्रमित एवं कैंसर कोशिकाएँ।


(iii) भक्षी कोशिकाएं


उपरोक्त संरचनात्मक घटकों के अतिरिक्त सुरक्षा की द्वितीय पंक्ति में निम्न कार्य प्रणालियाँ भी आती हैं 


(a) प्रदाह या शोथ अनुक्रिया (Inflammatory response) 


(b) ज्वर (Fever) शरीर के ताप में वृद्धि को ज्वर की दशा कहते हैं। ज्वर रोगकारकों द्वारा मुक्त होने वाले विष के कारण या WBCs द्वारा स्रावित पाइरोजन्स (Pyrogens-ज्वर लाने वाले पदार्थ) नामक यौगिकों के कारण आता है। साधारण ज्वर भक्षकाणुओं को उत्तेजित करता है तथा सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को संदमित करता है।


(c) विभिन्न भक्षकाणुओं द्वारा भक्षण (Phagocytosis) की मूल प्रक्रिया अविशिष्ट प्रतिरक्षा की कार्य प्रणाली के अन्तर्गत ही आती हैं।


प्रतिरक्षी की निम्न विशेषताएं होती है 


(i) प्रतिजनी विशिष्टता (Antigen specificity) यह शरीर में प्रवेश करने वाले रोगजनकों (जीवाणु, विषाणु, कवक, आदि) के बीच पाई जाने वाली विभिन्नताओं को पहचानती है।


(ii) प्रतिरक्षात्मक स्मृति (Immunological memory) एक बार किसी भी प्रकार के रोगाणु या प्रतिजन से प्रतिरक्षा के बाद, इस विशेष प्रकार के रोगाणु या प्रतिजन की स्मृति (Memory) बनी रहती है। अगली बार इसी रोगाणु का संक्रमण होने पर प्रतिरक्षा प्रक्रिया अधिक तीव्र और शीघ्रतापूर्वक होती है। अतः एक बार किसी विशेष रोग के हो जाने पर शरीर में इस रोग के लिए स्थाई प्रतिरक्षा स्थापित हो जाती है।


(ii) स्वयं तथा अन्य कोशिकाओं के मध्य विभेद (Diacrimination between sell and non-self) यह प्रतिरक्षा स्वयं तथा अन्य कोशिकाओं के मध्य विभेद कर सकती है। यह इस प्रतिरक्षा की सबसे बड़ी विशेषता है।



प्रश्न 10. प्रतिरक्षा तन्त्र से सम्बन्धित विकारों को समझाइए । 

उत्तर – प्रतिरक्षा तन्त्र एक बहुघटकीय अन्तःक्रिया तन्त्र है, जिसके सुचारू रूप से कार्य नहीं करने से शरीर रोगाणुओं के विरुद्ध प्रतिरोधकता प्रदान करने में असमर्थता दर्शाता है।


प्रतिरक्षा तंत्र की अनुचित कार्यशैली को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है।


1. अतिसंवेदनशील विकार या प्रत्यूर्जता शरीर कभी-कभी बाह्य पदार्थों के प्रति संवेदनशीलता दर्शाता है। जब एक व्यक्ति किसी विशिष्ट बाह्य पदार्थ (प्रतिजन) के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता दर्शाता है, तब स्थिति प्रत्युर्जना (Allergy) कहलाते है जैसे-छीक आना, त्वचा में खुजली होना, चकते होना, श्वासनली में उत्तेजना, आदि प्रतिजन, जो प्रत्यूर्जता का कारण बनते हैं, प्रत्युर्जक (Allergen कहलाते हैं। परागकण, कोई विशेष खाद्य पदार्थ, शीत, ताप, सूर्य का प्रकाश, वस्त्र, आदि सामान्य प्रत्यूर्जक हो सकते हैं।


(i) प्रत्यूर्जता की कार्यिकी (Physiology of allergy) प्रत्यूर्जता के समय मास्ट कोशिकाओं द्वारा हिस्टामीन (Histamine) तथा सीरोटोनिन (Serotonin) नामक रसायनों का स्रावण होता है, जिसके फलस्वरूप प्रत्यूर्जक की अनुक्रिया से इम्यूनोग्लोब्युलिन EdgE) का उत्पादन होता है। ये प्रतिरक्षी माह में उपस्थित मास्ट को मिलते हैं तथा उन्हें रसायन स्रवण के लिए प्रेरित करते हैं, जो प्रदाह अनुक्रिया (Inflammatory response) के लिए उत्तरदायी होते हैं। प्रत्यूर्जता से बचाव के लिए एण्टीहिस्टामीन, एड्रीनेलिन तथा स्टीरॉइड जैसी औषधियाँ दी जाती हैं।


(ii) प्रत्यूर्जता के प्रभाव (Effect of allergy) प्रत्यूर्जता (एलजी) का सामान्य प्रभाव फुफ्फुसीय दमा (Bronchial asthma) है। इस विकार में श्वास लेने में परेशानी होती है। इसके लक्षण बोंकिओल्स (श्वसनिका) से अधिक द्रव्य आना अर्थात् एडिमा श्लेष्म (Oedema mucous) से अधिक गाढ़ा स्राव आना, ब्रांकिओल्स में कुंचन, आदि हैं। जब प्रतिजन प्रतिरक्षी की क्रिया रुधिर में न होकर ऊतक में होती है, तब यह एनाफायलेटिक शॉक (Anaphylatic shock) कहलाती है। पराग ज्वर, अटकेरिया, एक्जीमा, आदि कुछ अन्य प्रत्यूर्जता के दुष्प्रभाव हैं।


2. स्व-प्रतिरक्षण विकार

जब शरीर का प्रतिरक्षा तन्त्र 'स्वयं' तथा 'गैर' में विभेद करने में असमर्थ हो जाता है, तब यह शरीर के विरुद्ध ही कार्य करने लगता है तथा स्वयं के प्रतिजन तथा ऊतकों को नष्ट करने लगता है। इस प्रकार प्रतिरक्षा तन्त्र द्वारा स्वयं के प्रतिजन के विरुद्ध प्रतिरक्षियों का निर्माण स्व-प्रतिरक्षण (Auto-Immunity) कहलाता है। जब शरीर स्वयं की लाल रुधिर कोशिकाओं (RBCs) को नष्ट करने लगता है; यह अवस्था पनिसियस या क्रोनिक रक्ताल्पता (Pernicious or Chronic or Destructive anaemia) कहलाती है। प्रतिरक्षा तन्त्र द्वारा पेशियों का नष्ट होना मायोस्थेनिया ग्रेविस (Myosthenia gravis) कहलाता है, जबकि क्रॉनिक हिपेटाइटिस में यकृत की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। हाशीमोटो रोग (थायरॉइड ग्रन्थि का विनाश), रियूमैटिक ज्वर, मल्टीपल स्क्लेरोसिस तथा आमवाती सन्धिशोथ (रुहमैटाइड अर्थराइटिस) अन्य स्व-प्रतिरक्षण के विकार है।


एस सी आई डी (SCID or Severe Combind Immuno Disorder)एन्जाइम एडीनोसीन डीएमीनेज (Adenosine deaminase) की जीन न्यूनता या उत्परिवर्तन (Mutation) से होता है। एन्जाइम एडीनोसीन डीएमीनेज B. व T लसीकाणुओं के निर्माण में भाग लेता है अर्थात् इस विकार से पीड़ित बच्चों में T तथा B कोशिकाएं नहीं होती है। T- लसीकाणु न होने पर डि जॉर्ज सिन्ड्रोम (Di George's syndrome) तथा B लसीकाणु न होने पर एगामा ग्लोब्युलिनेमिया (Agamma globulinemia) रोग हो जाता है। इस रोग का उपचार जीन थेरैपी द्वारा किया जाता है। 


प्रश्न 11. विषाणु द्वारा उत्पन्न एक रोग का नाम, लक्षण, उपचार तथा बचाव के उपाय बताइए।


अथवा उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता सिण्ड्रोम (एड्स) से आप क्या समझते हैं? इस रोग के लक्षण, कारक, फैलाव तथा नियन्त्रण का वर्णन कीजिए।


उत्तर –  उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता सिण्ड्रोम (एड्स) एक विषाणु जनित रोग है। AIDS का कारक ह्यमन इम्यूनो डेफिशिएन्सी वाइरस (HIV) है। यह एक RNA युक्त विषाणु है, जो रिवर्स ट्रान्सक्रिप्शन द्वारा DNA बना लेता है।


एड्स तथा उसके लक्षण (AIDS and its symptoms) HIV की मुख्य लक्ष्य कोशिकाएं (Target cells) T, लिम्फोसाइट्स होती हैं। इस प्रकार विषाणु शरीर में पहुँचकर इन कोशिकाओं को संक्रमित करता है और एक विषाणु निर्मित करता है, जो पोषद कोशिका के DNA में समाविष्ट हो जाता है। अब यह पोषद कोशिका के तन्त्र का प्रयोग करते हुए, अपने लिए प्रोटीन का आवरण तैयार करता रहता है। तथा RNA का निर्माण भी करता है, जिससे नए विषाणु बनने लगते हैं। लिम्फोसाइट कोशिकाओं के नष्ट होने से प्रतिरक्षा तन्त्र कमजोर होने लगता है।


सामान्यतया 4-12 वर्षों तक तो व्यक्तियों में HIV के संक्रमण का पता तक नहीं चलता। कुछ व्यक्तियों को संक्रमण के कुछ हफ्तों के बाद ही सिरदर्द, घबराहट, हल्का बुखार, आदि हो सकता है। धीरे-धीरे प्रतिरक्षण क्षमता कमजोर होने से जब व्यक्ति पूर्ण रूप से एड्स (AIDS) का शिकार हो जाता है, तो उसमें भूख की कमी, कमजोरी, पूर्ण शरीर में दर्द, खाँसी, मुख व आँत में घाव, सतत् ज्वर एवं अतिसार तथा जननांगों पर मस्से हो जाते हैं। अन्ततः इनका प्रतिरक्षणं तन्त्र इतना दुर्बल हो जाता है कि व्यक्ति अनेक अन्य रोगों से ग्रसित हो जाता है तथा उसकी मृत्यु हो जाती है। 


एड्स रोग का संचरण (Transmission of AIDS) रोगी के शरीर से स्वस्थ मनुष्य के शरीर के साथ रुधिर स्थानान्तरण, यौन सम्बन्ध, इन्जेक्शन की सुई के उपयोग, रोगी माता से उसकी सन्तानों में संचरण, आदि एड्स रोग के विषाणु के संचरण की विधियाँ हैं।


एड्स का निदान एवं उपचार ( Diagnosis and Treatment of AIDS) एड्स की जाँच के लिए ELISA (एन्जाइम सहलग्न प्रतिरोधी शोषक जाँच) किट का प्रयोग किया जाता है। मुम्बई के कैंसर अनुसन्धान संस्थान (Cancer Research Institute) ने 'HIV I तथा HIV-II, W. Biot' किट बनाया। अभी तक एड्स (AIDS) के लिए किसी प्रभावशाली स्थायी उपचार की विधि का विकास नहीं हो पाया है। इसीलिए संसार में सैकड़ों लोगों की मृत्यु प्रतिदिन इस रोग से हो जाती है। ''वर्तमान में लगभग तीस औषधियों में AIDS के इलाज की क्षमता का पता लगाया गया है: जैसे-जिडोवुडीन (Zidovudine), एजोडोथाइमिडीन (Azodothymidine-or AZT), XQ-9302 एम्फोटेरिसीन, आदि।


एड्स पर नियन्त्रण


एड्स पर नियन्त्रण के लिए अभी तक कोई टीका, आदि नहीं बनाया जा सका है। इसे निम्न प्रकार से नियन्त्रित किया जा सकता है


(i) असुरक्षित यौन सम्बन्ध स्थापित नहीं करना चाहिए। (ii) एक बार उपयोग की गई इन्जेक्शन की सुई का प्रयोग दोबारा नहीं किया जाना चाहिए। 


(iii) एड्स संक्रमित व्यक्ति को किसी भी तरह से रुधिर दान नहीं करना चाहिए।


(iv) रुधिरदान से पहले इसकी पूर्ण जाँच अनिवार्य होनी चाहिए।


 प्रश्न 12. निम्नलिखित के सेवन से होने वाले हानिकारक प्रभावों का वर्णन कीजिए तथा इनसे बचने के उपाय भी लिखिए।


(i) एल्कोहॉल (ii) ड्रग (नशीली दवाएँ) (iii) तम्बाकू


अथवा ऐल्कोहॉल के अति प्रयोग पर टिप्पणी कीजिए। अस्थमा ऐल्कोहॉल के कुप्रभाव, रोकथाम तथा उपचार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।


अथवा ऐल्कोहॉल / ड्रग्स के दुरुपयोग पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा ड्रग्स और मदिरा के दुष्प्रयोग पर टिप्पणी लिखिए। अथना एल्कोहॉल / ड्रग के द्वारा होने वाले कुप्रयोग के हानिकारक प्रभावों की सूची बनाएँ।


अथवा व्यसन क्या है? किशोरावस्था में बढ़ते व्यसनों के कुप्रभावों क्या है? उसके रोकथाम पर एक टिप्पणी लिखिए। अथवा व्यसन किसे कहते हैं? नशीली औषधियों के प्रभाव बताइए।


अथवा व्यसन से आप क्या समझते हैं? प्रमुख नशीले पदार्थों के नाम एवं उनके प्रभाव का वर्णन कीजिए।  


अथवा व्यसन क्या है? किशोरावस्था में बढ़ते व्यसनों के कुप्रभाव क्या हैं? उसके रोकथाम पर एक टिप्पणी लिखिए।


उत्तर


(i) एल्कोहॉल (Alcohol) सामान्य रूप से शराब या मंदिरा के नाम से जानी जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक प्रयोग में लाया जाने वाला मादक पेय पदार्थ है। यह रासायनिक रूप से एथिल एल्कोहॉल (CH, OH) है। बर्बरता


(a) एल्कोहॉल / ड्रग के तात्कालिक प्रतिकूल प्रभाव अंधाधुंध व्यवहार, और हिंसा के रूप में व्यक्त होते हैं। 


(b) इनकी अत्यधिक मात्रा के सेवन से श्वसन बात (रेस्पाइरेटरी फेल्योर );हृदय घात (हार्ट फैल्योर) अथवा प्रमस्तिष्क रुधिरस्राव (सेरेब्रल हेमरेज) के कारण बेहोशी, कोमा और मृत्यु हो सकती है।


(c) एल्कोहॉल/ ड्रग के प्रयोग से शैक्षिक और सामाजिक जीवन प्रभावित होता है। बिना किसी स्पष्ट कारण के स्कूल कॉलेज से अनुपस्थिति, व्यक्तिगत स्वच्छता की रुचि में कमी, एकाकीपन, अवसाद, थकावट, आक्रमणशील और विद्रोही व्यवहार परिवार और मित्रों से बिगड़ते सम्बन्ध, सोने और खाने की आदतों में परिवर्तन, भूख और वजन का घटना बढ़ना, आदि इसके प्रभाव हैं।


(d) धन की कमी की स्थिति में एल्कोहॉल ड्रग का सेवन करने वाला व्यक्ति चोरी का सहारा लेने लगता है।


(e) जो व्यक्ति अन्तःशिरा द्वारा ड्रग लेते हैं, उनको एड्स और यकृतशोथ-B जैसे गम्भीर संक्रमण होने की सम्भावना अधिक होती है। 


(f) गर्भावस्था के दौरान इग एवं एल्कोहॉल का उपयोग गर्भ पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।


(g) पुरुषों और महिलाओं में शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन होने लगता है।


(ii) ड्रग्स या नशीली दवाएँ (Drugs) जिन रासायनिक पदार्थों का उपयोग रोगों के निदान, निवारण और उपचार के लिए किया जाता है, उन्हें औषधियाँ (Drugs) कहते हैं। वे औषधियां, जो दृष्टि एवं श्रवण भ्रम उत्पन्न करती हैं


अर्थात् औषधियों का समूह, जो तन्त्रिका तन्त्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। तथा जिन पर व्यक्ति निर्भर हो जाता है, उन्हें नशीली औषधियाँ कहते हैं। इन औषधियों को साइकोट्रॉपिक औषधियाँ (Paychotropic medicines) भी कहते हैं; उदाहरण- चरस, गांजा, हशीश, आदि।


जब किसी औषधि को लगातार लेते रहने से व्यक्ति उस पर आश्रित हो जाता है, तो इस अवस्था को औषधि व्यसन (Drug addiction) कहते हैं। ऐसा व्यक्ति उक्त औषधि के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से रोगी हो जाता है। नशीली औषधियों का आदी व्यक्ति इन औषधियों का प्रयोग करने के बाद, स्वयं को अधिक फुर्तीला और स्वस्थ महसूस करता है। नशीली औषधियों के प्रकार नशीली औषधियों को निम्नलिखित समूहों में बांट सकते हैं


1. शामक या निद्राकारक (Tranquiliser or Hypnotics) वे औषधियाँ केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र पर प्रभाव डालती हैं। मस्तिष्क के तनाव एवं उत्सुकता को कम करती हैं एवं निद्रा लाती हैं; जैसे-बेलियम, लिब्रियम, बॉर्बिट्यूरेट्स, इक्वेनिल, आदि। 


2. उत्तेजक या एण्टीडिप्रेसेन्ट्स (Stimulants or Antidepressants) ये औषधियाँ भी केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र को प्रभावित करती हैं। इनसे कष्ट से राहत मिलती है। रुधिर चाप बढ़ जाता है तथा स्वभाव उम्र हो जाता है; जैसे-टॉफरेनिल, कैफीन, थाइन, एम्फीटैमाइन्स, मेथिलफेनिडेट, आदि। चाय, कॉफी, कोको इसी के अन्तर्गत आते हैं।


3. विभ्रमक या साइकेडेलिक (Hallucinogens or Paychedelic) यह श्रवण व दृष्टि भ्रम उत्पन्न करती है। यह विचार तथा भावनाओं में बदलाव लाने वाली औषधि है; जैसे-चरस, गाँजा, भाँग व हशीश, मैरिजुआना, LSD, मेस्कालाइन, सीलोसाइविन, आदि।


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