Class 9th hindi up board half yearly exam paper solution 2024-25
कक्षा 9वी हिन्दी अर्द्धवार्षिक परीक्षा पेपर 2024-25
नमस्कार दोस्तों हम आपको अपनी इस पोस्ट में कक्षा 9वी हिन्दी के अर्धवार्षिक परीक्षा पेपर 2024- 25 का सम्पूर्ण हल बताने जा रहे हैं इस लिए पोस्ट को पूरा जरूर पढ़े यदि कुछ पूछना चाहते हैं तो कॉमेंट करे।
अर्द्धवार्षिक परीक्षा पेपर 2024-25
कक्षा-9वी
विषय-हिन्दी
समय - 3 घंटा पूर्णाक :70
नोटः (क) प्रश्न पत्र दो खण्डों 'अ' एवं 'ब' में विभाजित है।
(ख) खण्ड 'अ' में वस्तुनिष्ठ प्रश्न तथा खण्ड 'ब' में वर्णनात्मक प्रश्न हैं।
[ खण्ड-अ : बहुविकल्पीय प्रश्न ]
1. कौन-सा कवि रामभक्ति शाखा से सम्बन्धित नहीं है-1
(a) तुलसीदास
(b) चतुर्भुजदास
(c) अग्रदास
(d) नाभादास
उत्तर – (b) चतुर्भुजदास
2. ज्ञानाश्रयी काव्यधारा के कवि नहीं है-1
(a) कबीरदास
(b) मलूकदास
(c) नन्ददास
(d) रैदास
उत्तर – (c) नन्ददास
3. निम्न में से रसखान की रचना है 1
(a) रतनबादनी
(b) कवितावली
(c) प्रेमवाटिका
(d) शिवाबावनी
उत्तर – (c) प्रेमवाटिका
4. कौन-सा कवि प्रेमाश्रयी शाखा से सम्बन्धित नहीं है-1
(a) जायसी
(c) चन्दबरदाई
(b) मंझन
(d) कुतुबन
उत्तर – (c) चन्दबरदाई
5. भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे।" प्रस्तुत कथन निम्नांकित लेखकों में से किस लेखक का है- 1
(a) नन्ददुलारे बाजपेयी
(b) रामचन्द्र शुक्ल
(c) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(d) रामविलास शर्मा
उत्तर – (c) हजारी प्रसाद द्विवेदी
6. भक्ति-भावना की अधिकता किस काल की प्रमुख विशेषता है-1
(a) आदिकाल
(b) भक्तिकाल
(c) रीतिकाल
(d) आधुनिक काल
उत्तर – (b) भक्तिकाल
7. इनमें से हिन्दी का प्राचीनतम (प्रथम) महाकाव्य कौन-सा है-
(a) श्रीरामचरित मानस
(b) पृथ्वीराज रासों
(c) पृथ्वीराज रासो
(d) प्रियप्रवास
उत्तर – (c) पृथ्वीराज रासो
8. कौन-सी रचना आदिकाल की नहीं है-1
(a) सन्देशरासक
(b) पद्मावत
(c) बीसलदेव रासो
(d) अखरावट / पद्मावत
उत्तर – (b) पद्मावत
9. आदिकाल की काल-अवधि है-1
(a) सन् 743 से 1343 ई0 तक
(c) सन् 1643 से 1843 ई0 तक
(b) सन् 1343 से 1643 ई0 तक
(d) सन् 1843 से अब तक
उत्तर – (a) सन् 743 से 1343 ई0 तक
10. 'आल्हखण्ड' का दूसरा नाम है-1
(a) बीसलदेव
(b) परमाल रासो
(c) खुमाण रासो
(d) हम्मीर रासो
उत्तर – (b) परमाल रासो
11. 'ईख' का तत्सम बताइए-1
(a) विल
(b) पत्ता
(c) चक्षु
(d) इक्षु
उत्तर – (d) इक्षु
12. क्रोध का पर्यायवाची है-1
(a) गुस्सा
(b) सुख
(c) दुःख
(d) अपनत्व
उत्तर – (a) गुस्सा
13. एक ही अर्थ को प्रकट करने वाले शब्द कहलाते हैं-
(a) तत्सम
(b) तदभव
(c) विलोम
(d) पर्यायवाची
उत्तर – (d) पर्यायवाची
14. 'पत्र' का तद्भव बताइए-1
(a) पतंग
(b) पत्ता
(c) दल
(d) पवन
उत्तर (b) पत्ता
15. 'अवनति' का विलोम है-1
(a) उजाला
(b) उन्नति
(c) अलंकार
(d) उपकार
उत्तर –(b) उन्नति
16. 'मति के अनुसार' का समस्त पद है-1
(a) बुद्धिनुसार
(b) मतानुसार
(c) मर्यादानुसार
(d) ये सभी
उत्तर – (a) बुद्धिनुसार
17. 'कर्मक्षेत्र' का समास-विग्रह है-1
(a) कठिन श्रम
(b) कठोर परिश्रम
(c) कर्म के लिए क्षेत्र
(d) कर्मशील व्यक्ति
उत्तर – (d) कर्मशील व्यक्ति
18. परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बनने वाले एक स्वतन्त्र शब्द को कहते हैं- 1
(a) समास
(b) सन्धि
(c) पर्यायवाची
(d) विलोम
उत्तर – (a) समास
19. अमीर-गरीब, राजा-रंक शब्द युग्मों के बीच किस विराम चिह्न का प्रयोग हुआ है- 1
(a) योजक
(b) निर्देशक
(c) अल्प-विराम
(d) पूर्ण विराम
उत्तर – (a) योजक
20. लिखित भाषा में प्रयुक्त होने वाले चिह्न कहलाते हैं-1
(a) धातु-चिहन
(b) विराम चिहन
(c) शब्द-चिह्न
(d) इनमें से कोई नहीं
खण्ड-ब: वर्णनात्मक प्रश्न
21. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 3x2=6
(क) किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है, बड़ी लकीर खींच देना। अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए तर्क और शास्त्रार्थ का मार्ग कदाचित ठीक नहीं है। सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष कर देना। गुरूनानक ने यही किया। उन्होनें जनता को बड़े-से-बड़े सत्य के सम्मुखीन कर दिया। हजारों दीये उस महाज्योति के सामने स्वयं फीके पड़ गये।
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से आचार्य द्विवेदी क्या कहना चाहते हैं? बताइए।
उत्तर – हम किसी रेखा को मिटाये बिना यदि उसे छोटा करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है कि उस रेखा के पास उससे बड़ी रेखा खींच दी जाय। ऐसा करने पर पहली रेखा स्वयं छोटी प्रतीत होने लगेगी। इसी प्रकार यदि हम अपने मन के अहंकार और तुच्छ भावनाओं को दूर करना चाहते हैं, तो उसके लिये भी हमें महानता की बड़ी लकीर खींचनी होगी। अहंकार, तुच्छ भावना, संकीर्णता आदि को शास्त्रज्ञान के आधार पर वाद-विवाद करके या तर्क देकर छोटा नहीं किया जा सकता; उसके लिये व्यापक और बड़े सत्य का दर्शन आवश्यक है। इसी उद्देश्य से मानव जीवन की संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोटा सिद्ध करने के लिए गुरु नानकदेव ने जीवन की महानता को प्रस्तुत किया। गुरु की वाणी ने साधारण जनता को परम सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। परमसत्य के ज्ञान एवं प्रत्यक्ष अनुभव से अहंकार और संकीर्णता आदि इस प्रकार तुच्छ प्रतीत होने लगे, जैसे महाज्योति के सम्मुख छोटे दीपक आभाहीन हो जाते हैं। गुरु की वाणी ऐसी महाज्योति थी, जिसने जन साधारण के मन से अहंकार, क्षुद्रता, संकीर्णता आदि के अन्धकार को दूर कर उसे दिव्य ज्योति से प्रकाशित कर दिया।
(ब) छोटेपन का आभास कराने हेतु लोगों के सामने कैसा आचरण प्रस्तुत करना चाहिए? लिखिए।
उत्तर – मानव जीवन की संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोटा सिद्ध करने के लिए गुरु नानकदेव ने जीवन की महानता को प्रस्तुत किया।
(स) 'हजारो दीयें उस महाज्योति के सामने स्वयं फीके पड़ गये' वाक्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – परमसत्य के ज्ञान एवं प्रत्यक्ष अनुभव से अहंकार और संकीर्णता आदि इस प्रकार तुच्छ प्रतीत होने लगे, जैसे महाज्योति के सम्मुख छोटे दीपक आभाहीन हो जाते हैं
अथवा
(ख) दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृत् िइसमें कोई शक नहीं कि महात्माजी ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों में से अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति का नम्रता के साथ उपासना करके सन्तोष माना और जीवन-सिद्धि प्राप्त की।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ अथवा पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) संसार में कौन-सी दो महान शक्तियाँ हैं?
(स) महात्मा गाँधी ने कौन-सी दो शक्तियों की उपासना की ?
22. निम्न पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।3x2-6
(क) झूठे सुख को सुख कहैं, मानत हैं मन मोद। जगत चबैना काल का, कछु मुख में कुछ गोद ।।
(अ) प्रस्तुत साखी का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ब) प्रस्तुत साखी के माध्यम से कवि ने किस प्रकार की प्रवृति को गलत बताया है?
(ख) ऊधौ जू सूधे गहो वह मारग, ज्ञान की तेरे जहाँ सुन्दरी है।
कोऊ नहीं सिख मानिह ह्या, इस स्यान की प्रीति प्रतीति खरी है।। ये ब्रजबाला सबै इक सी, हरिचंद जू मंडली ही बिगरी है। एक जौ होय तो ज्ञान सिखाइये कूपहि में यहाँ भाँग परी है।।
(अ) इस पद्यांश में गोपियाँ उद्धव से क्या कह रही हैं?
(ब) "कूपहिं में यहाँ भाँग परी है।" से कवि का क्या तात्पर्य है?
(स) गोपियाँ उद्धव से ज्ञान का उपदेश ले जाने के लिए क्यों कह रही हैं?
23. निम्नलिखित संस्कृत-गंद्याशों में से किसी एक का संदर्भ सहित हिन्दी अनुवाद अपने शब्दों में कीजिए। 4
(क) विपन्नः धर्मदासः सम्पत्तिम् अभिलषन् वर्षम् एकं यथोक्तम् अनुष्ठानम् अकरोत्। नित्यं प्रातः जागरणेन तस्य स्वास्थम् अवर्धत्। तेन नियमेन पोषिताः पशवः स्वस्थाः सबलाः च जाताः, गावः महिष्यः च प्रचुरं दुग्धम् अयच्छन् । तदानी तस्य कर्मकराः अपि कृषिकायै सन्नद्धाः अभवन्। अतः तस्मिन् वर्षे तस्य क्षेत्रेषु प्रभुतम् अन्नम् उत्पन्नम् गृहं च धनधान्यपूर्ण जातम्।
उत्तर –
सन्दर्भ – प्रस्तुत - गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के 'सिद्धिमन्त्रः ' नामक पाठ से लिया गया है। इसमें श्रम के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है
हिन्दी अनुवाद - दुःखी धर्मदास ने सम्पत्ति की इच्छा करते हुए एक वर्ष तक जैसा कहा गया था, उसी के अनुसार अनुष्ठा (विधिपूर्वक कार्य किया। प्रतिदिन प्रातः जागने से उसका स्वास्थ्य बढ़ गया। उसके द्वारा नियमपूर्वक पालित पशु स्वस्थ और सबल हो गये। गायों और भैंसों ने अधिक दूध दिया। उस समय उसके मजदूर भी खेती के कार्य में जुट गये। अतः उस वर्ष उसके खेतों में अधिक अनाज उत्पन्न हुआ और घर धन- धान्य से भर गया।
अथवा
(ख) विश्वविश्रुतः स्वामी विवेकानन्दः अस्यैव महाभागस्य शिष्यः आसीत्। तेन न केवलं भारतवर्षे अपितु पाश्चात्यदेशेष्वपि व्यापकस्य मानवधर्मस्य डिण्डिमघोषः कृतः। तेन अन्यैश्च शिष्यैः जनानां कल्याणार्थ स्थाने स्थाने रामकृष्णसेवाश्रमाः स्थापिताः। ईश्वरानुभवः दुःखितानां जनानां सेवया पुष्यति, इति रामकृष्णस्य महान् सन्देशः।
(ख) निम्न संस्कृत पद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी अनुवाद कीजिए। 4
(अ) प्रजापतिसमः श्रीमान् धाता रिपुनिषूदनः । रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता ।।
(ब) उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञ व्यसनेष्वसक्तम् । शूरं कृतज्ञं दृढसौहृदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ।।
उत्तर – सन्दर्भः – यह श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक के 'संस्कृत-भाग में संकलित सुभाषितरत्नानि नामक पाठ से अवतरित है
अनुवाद – जो व्यक्ति उत्साही, तुरन्त कार्य संपन्न करने वाले, कार्यकुशल, दुर्व्यसनों से दूर रहने वाले, शूर (साहसी), कृतज्ञ तथा मित्रता निभाने वाले होते हैं, धन संपत्ति की अधिष्ठात्री महादेवी लक्ष्मी स्वयं उनके घर में निवास करने के लिये जाती है।
24. 'व्यवहार' एकांकी के आधार पर रघुराज सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।5
अथवा
जमींदार रघुराजसिंह की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – जमींदार रघुराजसिंह एक दयालु किस्म के जमींदार थे वो हमेशा किसानों और गरीबों के हित के बारे में सोचते थे उन्होंने उनके हित में कई फैसले भी लिए थे,रघुराजसिंह का मानना था कि किसानों का शोषण करना और उनसे व्यवहार लेना अनुचित है.
उन्होंने किसानों के हित में कई फैसले लिए, जैसे कि लगान कम करना, कर्ज़ माफ़ करना, और बिना नज़राना लिए ज़मीन देना।
25. (क) निम्नलिखित लेखकों में से किसी एक का जीवन-परिचय देते हुए उनकी किन्हीं दो रचनाओं का नाम लिखिए- 4
(अ) काका कालेलकर
(ब) श्रीराम शर्मा
(स) रवीन्द्रनाथ टैगोर
जीवन परिचय – श्री रवीन्द्रनाथ जी (बांग्ला साहित्य के महान् कवि) का स्थान अंग्रेजी साहित्य में शेक्सपियर के समान, हिन्दी साहित्य में तुलसीदास के समान व संस्कृत साहित्य में 'कविकुलगुरु कालिदास' के समान है। उनका नाम आधुनिक भारतीय कलाकारों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि रचनात्मक साहित्यकार के रूप में भी विख्यात हैं। श्री रवीन्द्रनाथ जी दीन और दलित वर्ग की हीन दशा के महान् सुधारक थे। श्री रवीन्द्रनाथ का जन्म कलकत्ता नगर में 7 मई, 1861 को एक धनाढ्य परिवार में हुआ था। इनके पास बहुत अचल सम्पत्ति थी। इनकी माता का नाम श्रीमती शारदा देवी व पिता का नाम देवेन्द्रनाथ था। इनका जीवन नौकर-चाकरों की देखरेख में व्यतीत हुआ। खेल और स्वच्छन्द विहार का समय न मिलने से इनका मन उदास रहता था। शिक्षा के क्षेत्र में 'विश्वभारती' का निर्माण इनकी अनुपम और अमर रचना है। इसमें प्राचीन भारत की आश्रम पद्धति से शिक्षा दी जाती है। आज विश्वभारती संस्था स्वतन्त्र विश्वविद्यालय के समान कार्य करके शिक्षा के प्रचार-प्रसार के रूप में अपनी कीर्ति को सर्वत्र बिखेरकर संसार को आलोकित करने में लगी है। रवीन्द्रनाथ जी की मृत्यु 7 अगस्त, 1949 में हुई, परन्तु उनका काव्य आज भी जन-जन में लोकप्रिय है
कृतियाँ – इन्होंने शैशव संगीत, प्रभात संगीत, सान्ध्य संगीत, नाटकों में रुद्रचण्ड, वाल्मीकि प्रतिभा, विसर्जन, राजर्षि, चोखेरवाली, चित्रांगदा, कौड़ी ओकमल, गीतांजलि आदि अनेक कृतियों की रचना की।
(ख) निम्नलिखित कवियों में से किसी एक का जीवन-परिचय देते हुए उनकी किन्हीं दो रचनाओं का उल्लेख कीजिए- 4
(अ) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ब) मैथिलीशरण गुप्त
(स) जयशंकर प्रसाद
उत्तर – जीवन-परिचयजयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उनका जन्म 1890 ई. में काशी के 'सुँघनी साहू' नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके यहाँ तम्बाकू का व्यापार होता था। उनके पिता देवीप्रसाद और पितामह शिवरत्न साहू थे। इनके पितामह परम शिवभक्त और दयालु थे। उनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य प्रेमी थे। प्रसाद जी का बचपन सुखमय था। बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थों की यात्राएँ कीं। यात्रा से लौटने के बाद पहले उनके पिता का और फिर चार वर्ष पश्चात् ही उनकी माता का निधन हो गया।
प्रसाद जी की शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण का प्रबन्ध उनके बड़े भाई शम्भूरत्न ने किया और क्वीन्स कॉलेज में उनका नाम लिखवाया, किन्तु उनका मन वहाँ न लगा। उन्होंने अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन स्वाध्याय से घर पर ही प्राप्त किया। उनमें बचपन से ही साहित्यानुराग था। वे साहित्यिक पुस्तकें पढ़ते और काव्य रचना करते रहे। पहले तो उनके भाई उनकी काव्य-रचना में बाधा डालते रहे, परन्तु जब उन्होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्य-रचना में अधिक लगता है, तब उन्होंने इसकी पूरी स्वतन्त्रता उन्हें दे दी। प्रसाद जी स्वतन्त्र रूप से काव्य-रचना के मार्ग पर बढ़ने लगे। इसी बीच उनके बड़े भाई शम्भूरन जी का निधन हो जाने से घर की स्थिति खराब हो गई। व्यापार भी नष्ट हो गया। पैतृक सम्पत्ति बेचने से कर्ज से मुक्ति तो मिली,
पर वे क्षय रोग का शिकार होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में 15 नवम्बर, 1937 को इस संसार से विदा हो गए।
रचनाएँ – जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के स्वनाम धन्य रत्न हैं। उन्होंने काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है।
'कामायनी' जैसे विश्वस्तरीय महाकाव्य की रचना करके प्रसादजी ने हिन्दी साहित्य को अमर कर दिया। कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई अद्वितीय रचनाओं का सृजन किया। नाटक के क्षेत्र में उनके अभिनव योगदान के फलस्वरूप नाटक विधा में 'प्रसाद युग' का सूत्रपात हुआ। विषय वस्तु एवं शिल्प की दृष्टि से उन्होंने नाटकों को नवीन दिशा दी। भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय भावना, भारत के अतीतकालीन गौरव आदि पर आधारित 'चन्द्रगुप्त', 'स्कन्दगुप्त' और 'ध्रुवस्वामिनी' जैसे प्रसाद-रचित नाटक विश्व स्तर के साहित्य में अपना बेजोड़ स्थान रखते हैं। काव्य के क्षेत्र में वे छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक कवि थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं
काव्य – आँसू, कामायनी, चित्राधार, लहर और झरना।
कहानी – आँधी, इन्द्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि।
उपन्यास – तितली, कंकाल और इरावती।
नाटक – सज्जन, कल्याणी - परिणय, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, प्रायश्चित, जनमेजय का नागयज्ञ, विशाखा, ध्रुवस्वामिनी आदि।
निबन्ध काव्य-कला एवं अन्य निबन्ध।
26. अपनी पाठ्य पुस्तक से कण्ठस्थ किया हुआ कोई एक श्लोक लिखिए जो इस प्रश्न-पत्र में न आया हो।
27. निम्न प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए।
(क) रामः कस्यां विधायां निपुणः आसीत् ?
(ख) मनुष्य कस्य अनुष्ठानेन अभीष्टं फलं लभते ?
(ग) धर्मदासस्य दारिद्रयस्य कारणं किम् आसीत् ?
(घ) असाधुं केन जयेत् ?
28. निम्नलिखित मुहावरे एवं लोकोक्तियों में से किसी एक का अर्थ बताते हुए वाक्य प्रयोग कीजिए।
(क) दिन में तारे नजर आना
(ख) नानी याद आना
(ग) इधर कुँआ उधर खाई
(घ) ऊँट के मुँह में जीरा
29. निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए-
(ग) दो लड़कियों ने पर्याप्त श्रम किया।
(घ) शिष्य ने गुरू से प्रश्न पूछा।
(ङ) दान से कीर्ति बढ़ती है।
(क) अनुशासन से मनुष्य प्रिय हो जाता है
(ख) विद्या-धन सभी धनों में श्रेष्ठ है।
30. प्रधानाचार्य को छात्रवृत्ति के लिए आवेदन पत्र लिखिए और उसमें अपने घर की स्थिति को भी स्पष्ट कीजिए।4
उत्तर –
छात्रवृत्ति के लिए में आवेदन-पत्र
सेवा में,
श्रीमान प्राचार्य, बाल विद्या मंदिर कालेज
कानपुर, उत्तर प्रदेश
विषय –छात्रवृत्ति के लिए
महोदय,
मैं नम्रतापूर्वक निवेदन करता हूँ कि मेरे पिता की आर्थिक स्थिति दयनीय है। मैं स्कूल फीस का भुगतान करने में असमर्थ हूं। इसलिए मैं प्रार्थना करता हूं कि श्री मान मुझे छात्रवृत्ति प्रदान करें।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
Subhansh
अथवा
फीस माफ करने के लिए प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।
[ पेपर का सम्पूर्ण हल ]
1.(b) चतुर्भुजदास
2.(c) नन्ददास
3.(c) प्रेमवाटिका
4.(c) चन्दबरदाई
5.(c) हजारी प्रसाद द्विवेदी
6. (b) भक्तिकाल
7.(c) पृथ्वीराज रासो
8.(b) पद्मावत
9.(a) सन् 743 से 1343 ई0 तक
10.(b) परमाल रासो
11.(d) इक्षु
12.(a) गुस्सा
13.(d) पर्यायवाची
14.(b) पत्ता
15.(b) उन्नति
16.(a) बुद्धिनुसार
17.(a) समास
18.(a) योजक
19.(a) योजक
20.?
21. (क) का उत्तर
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से आचार्य द्विवेदी क्या कहना चाहते हैं? बताइए।
उत्तर – हम किसी रेखा को मिटाये बिना यदि उसे छोटा करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है कि उस रेखा के पास उससे बड़ी रेखा खींच दी जाय। ऐसा करने पर पहली रेखा स्वयं छोटी प्रतीत होने लगेगी। इसी प्रकार यदि हम अपने मन के अहंकार और तुच्छ भावनाओं को दूर करना चाहते हैं, तो उसके लिये भी हमें महानता की बड़ी लकीर खींचनी होगी। अहंकार, तुच्छ भावना, संकीर्णता आदि को शास्त्रज्ञान के आधार पर वाद-विवाद करके या तर्क देकर छोटा नहीं किया जा सकता; उसके लिये व्यापक और बड़े सत्य का दर्शन आवश्यक है। इसी उद्देश्य से मानव जीवन की संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोटा सिद्ध करने के लिए गुरु नानकदेव ने जीवन की महानता को प्रस्तुत किया। गुरु की वाणी ने साधारण जनता को परम सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। परमसत्य के ज्ञान एवं प्रत्यक्ष अनुभव से अहंकार और संकीर्णता आदि इस प्रकार तुच्छ प्रतीत होने लगे, जैसे महाज्योति के सम्मुख छोटे दीपक आभाहीन हो जाते हैं। गुरु की वाणी ऐसी महाज्योति थी, जिसने जन साधारण के मन से अहंकार, क्षुद्रता, संकीर्णता आदि के अन्धकार को दूर कर उसे दिव्य ज्योति से प्रकाशित कर दिया।
(ब) छोटेपन का आभास कराने हेतु लोगों के सामने कैसा आचरण प्रस्तुत करना चाहिए? लिखिए।
उत्तर – मानव जीवन की संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोटा सिद्ध करने के लिए गुरु नानकदेव ने जीवन की महानता को प्रस्तुत किया।
(स) 'हजारो दीयें उस महाज्योति के सामने स्वयं फीके पड़ गये' वाक्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – परमसत्य के ज्ञान एवं प्रत्यक्ष अनुभव से अहंकार और संकीर्णता आदि इस प्रकार तुच्छ प्रतीत होने लगे, जैसे महाज्योति के सम्मुख छोटे दीपक आभाहीन हो जाते हैं