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Class 10th Hindi chapter 2 ममता जयशंकर प्रसाद /गद्यांशों के रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या एवं प्रश्नोत्तर

 Class 10th Hindi chapter 2 ममता यशंकर प्रसाद 


गद्यांशों के रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या एवं प्रश्नोत्तर


रोहतास दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता,हे भगवान! तब के लिए! विपद के लिए,काशी के उत्तर में धर्मचक्र विहार मौर्य,"मैं ब्राह्मणी हूँ, अश्वारोही







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  1. रोहतास दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, सोन नदी के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही है। ममता विधवा थी। उसका यौवन सोन नदी के समान ही उमड़ रहा था। मन में वेदना, मस्तक में आँधी, आँखों में पानी की बरसात लिए, वह सुख के कंटक-शयन में विकल थी। वह रोहतास-दुर्गपति के मन्त्री चूड़ामणि की अकेली दुहिता थी, फिर उसके लिए कुछ अभाव होना असम्भव था, परन्तु वह विधवा थी-हिन्दू-विधवा संसार में सबसे तुच्छ निराश्रय प्राणी है-तब उसकी विडम्बना का कहाँ अन्त था?



प्रश्न


(क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।


(ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(ग) उपरोक्त गद्यांश में हिन्दू-विधवा की स्थिति कैसी बताई गई है?


(घ) ममता कौन थी? वह क्या देख रही थी?


(ङ) ममता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।


उत्तर


(क) सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'गद्य खण्ड' में संकलित 'ममता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक 'जयशंकर प्रसाद' हैं।


(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि रोहतास दुर्ग (राजप्रासाद) के मुख्य द्वार के पास अपने कक्ष में बैठी हुई ममता सोन नदी के तेज बहाव को देख रही है। लेखक ममता के यौवन और सोन नदी के प्रबल वेग से प्रवाहित होने की तुलना करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार सोन नदी अपने तेज बहाव से उफनती हुई बह रही है, उसी प्रकार ममता का यौवन भी पूर्ण रूप से अपने उफान पर है। ममता रोहतास दुर्गपति के मन्त्री की इकलौती पुत्री है, जोकि बाल-विधवा है। रोहतास दुर्गपति के मन्त्री की पुत्री होने के कारण ममता सभी प्रकार के भौतिक सुख-साधनों से सम्पन्न है, परन्तु वह विधवा जीवन के कटु सत्य को अभिशाप रूप में झेलने के लिए विवश है। उसके मन मस्तिष्क में दुःख रूपी आँधी तथा आँखों से आँसू बह रहे हैं। उसका मन भिन्न-भिन्न प्रकार के विचारों और भावों की आँधी से भरा हुआ है। उसकी स्थिति काँटों की शय्या पर सोने वाले व्याकुल व्यक्ति के समान है अर्थात् जिस प्रकार काँटों की शय्या पर सोने वाला व्यक्ति हर समय व्याकुल रहता है, उसी प्रकार सभी प्रकार के भौतिक सुख-साधनों से परिपूर्ण होते हुए भी ममता का जीवन दुःखदायी प्रतीत होता है। बाल्यावस्था में ही विधवा हो जाने के कारण ही ममता की स्थिति दयनीय हो गई थी। हिन्दू समाज में विधवा स्त्रियों को संसार का सबसे तुच्छ प्राणी माना जाता है। प्रत्येक विधवा स्त्री को विभिन्न प्रकार के कष्ट सहने पड़ते हैं तथा समाज में अनेक प्रतिबन्धों का सामना करना पड़ता है। विधवा का जीवन स्वयं विधवा के लिए भार-सा बन जाता है। ममता भी एक ऐसी ही स्त्री थी, जो सभी प्रकार के भौतिक साधन होते हुए भी असहाय और दयनीय स्थिति का सामना कर रही थी। वह अपने बाल-विधवा जीवन के भार को ढो रही थी, जिससे छुटकारा पाने का हिन्दू समाज में कोई विकल्प ही नहीं है।


(ग) उपरोक्त गद्यांश में हिन्दू-विधवा की स्थिति को दयनीय, शोचनीय, तुच्छ और उस प्राणी के समान बताया गया है, जिसे कोई आश्रय नहीं देना चाहता है। वह तरह-तरह के दुःख सहने के लिए विवश होती है।


(घ) ममता रोहतास-दुर्ग के सेनापति चूड़ामणि की इकलौती पुत्री थी, जो बचपन में विधवा हो गई थी। वह अपने कमरे में बैठकर सोन नदी के उफनते बहाव को देख रही थी।


(ङ) ममता रोहतास दुर्ग के सेनापति चूड़ामणि की इकलौती पुत्री थी, जो बचपन में विधवा होकर हिन्दू समाज द्वारा बनाए गए नियमों में बँधकर अपना जीवन व्यतीत कर जी रही थी। उसके जीवन में दुःख की सीमा न थी। भौतिक सुखों का ढेर लगा होने पर भी ममता सुखी न थी।


  1. हे भगवान! तब के लिए! विपद के लिए! इतना आयोजन! परमपिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस! पिताजी, क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू भू-पृष्ठ पर न बचा रह जाएगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? यह असम्भव है। फेर दीजिए पिताजी, मैं कॉप रही हूँ-इसकी चमक आँखों को अन्धा बना रही है।




उत्तर


(क) सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'गद्य खण्ड' में संकलित 'ममता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक 'जयशंकर प्रसाद' हैं।



(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि चाँदी के दस थालों में लाए गए ढेर सारे सोने को देखकर ममता चकित होकर अपने पिता से कहती है कि हे भगवान! उस समय के लिए जब आपका मन्त्रित्व न रहेगा, उन विपदा भरे दिनों के लिए इतना सारा आयोजन अभी से ही, यह अच्छा नहीं है। रिश्वत में लिया गया इतना सारा सोना लेकर आपने ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध कार्य और उसका अपमान किया है। यदि ईश्वर की इच्छा से हमें दुःख मिलने वाला है, तो हमें उसे सहने के लिए सहर्ष तैयार रहना चाहिए। पिताजी! मन्त्रित्व न रहने पर भी हमें पेट भरने के लिए कम-से-कम भीख तो मिल ही जाएगी। इस रिश्वत की अपेक्षा तो भीख माँगकर जीवित रहना अधिक उचित है। इस पृथ्वी पर उस समय भी बहुत से हिन्दू ऐसे होंगे, जो हम ब्राह्मणों को दो मुट्ठी अनाज भीख में दे देंगे।


() ममता बाल-विधवा थी, जो ब्राह्मण जाति से सम्बन्ध रखती थी। ईश्वर और भाग्य में उसकी प्रबल आस्था थी। वह सुख-दुःख दोनों को ही ईश्वर को इच्छा मानती थी। आने वाले कुसमय के लिए रिश्वत के रूप में धन एकत्र करने को वह ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध मानती थी। इस प्रकार गद्यांश में ममता की भाग्यवादी, करुणामयी, निर्लोभी तथा ईश्वरवादी मनोवृत्ति को स्पष्ट किया गया है।


  1. काशी के उत्तर में धर्मचक्र विहार मौर्य और गुप्त सम्राटों की कीर्ति का खण्डहर था। भग्न चूड़ा, तृण गुल्मों से ढके हुए प्राचीन, ईंटों के ढेर में बिखरी हुई भारतीय शिल्प की विभूति, ग्रीष्म की चन्द्रिका में अपने को शीतल कर रही थी। जहाँ पंचवर्गीय भिक्षु गौतम का उपदेश ग्रहण करने के लिए पहले मिले थे, उसी स्तूप के भग्नावशेष की मलिन में एक झोंपड़ी के दीपालोक में एक स्त्री पाठ कर रही थी


“अनन्याश्चिन्तयन्तो मा ये जनाः पर्युपासते-"


प्रश्न


(क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।


(ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(ग) धर्मचक्र कहाँ स्थित था?


(घ) पंचवर्गीय भिक्षु कौन थे? ये गौतम से क्यों और कहाँ मिले थे?


उत्तर


(क)सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'गद्य खण्ड' में संकलित 'ममता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक 'जयशंकर प्रसाद' हैं।



(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या प्रसाद जी कहते हैं कि काशी के उत्तर में अनेक बौद्ध स्मारक हैं। इन स्मारकों को मौर्य वंश एवं गुप्त वंश की शान बढ़ाने के लिए बनवाया गया था। ये स्मारक अब टूट-फूट चुके हैं। इनकी टूटी-फूटी चोटियाँ, दीवारें, कंगूरे खण्डहर बन गए हैं। इन पर झाड़ियाँ उग आई हैं, पत्ते बिखरे हैं। इन खण्डहरों को देखकर ऐसा लगता है मानो ईंट के ढेर में बिखरी हुई भारतीय शिल्पकला की आत्मा ग्रीष्म ऋतु की चाँदनी से स्वयं को शीतलता प्रदान कर रही थी।


(ग) धर्मचक्र काशी नगर के उत्तर में स्थित है, जिसे भगवान गौतम बुद्ध ने सारनाथ नामक स्थान पर स्थापित किया था।


() पंचवर्गीय भिक्षु गौतम बुद्ध के प्रथम पाँच शिष्य थे, ये पाँचों शिष्य गौतम बुद्ध से उपदेश ग्रहण करने के लिए काशी के उत्तर में स्थित उन खण्डहरों में मिले थे, जो सारनाथ नामक स्थान पर स्थित है।


  1. "मैं ब्राह्मणी हूँ, मुझे तो अपने धर्म-अतिथि देव की उपासना का पालन करना चाहिए, परन्तु यहाँ ……. नहीं – नहीं, सब विधर्मी दया के पात्र  नहीं।परन्तु यह दया तो नहीं …...कर्त्तव्य करना है। तब?

  मुगल अपनी तलवार टेककर उठ खड़ा हुआ। ममता ने कहा-"क्या आश्चर्य है कि तुम छल करोः ठहरो।" "छल! नहीं, तब नहीं, स्त्री! जाता हूँ, तैमूर का वंशधर स्त्री से छल करेगा? जाता हूँ। भाग्य का खेल है।"


प्रश्न


(क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।


(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(ग) ममता के मन में क्या अन्तर्द्वन्द्व चल रहा था?


 (घ) ममता मन-ही-मन क्या विचारती है?


(ङ) 'क्या आश्चर्य है कि तुम छल करो।' यह कथन किसने, किससे कहा और क्यों?


(च) 'छल! नहीं, तब नहीं स्त्री! जाता हूँ।' यह कथन किसके द्वारा किसे और क्यों कहा गया?


उत्तर


(क) सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'गद्य खण्ड' में संकलित 'ममता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक 'जयशंकर प्रसाद' हैं।



(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या लेखक कहता है कि जब हुमायूँ ममता की झोंपड़ी में शरण लेता है, तब ममता के मन में अन्तर्द्वन्द्व चलता है कि वह हुमायूँ की मदद करे अथवा नहीं। ममता मन-ही-मन विचार करती है कि मैं तो ब्राह्मणी हूँ और सच्चा ब्राह्मण कभी अपने धर्म से विमुख नहीं होता, इसलिए मुझे तो अपने अतिथि-धर्म का पालन करना ही चाहिए और उसकी सेवा करनी चाहिए, परन्तु दूसरी ओर उसके मन में विचार आया कि यह तो अत्याचारी, पापी है।


इन मुगलवंशियों ने तो मेरे पिताजी की हत्या की थी। यदि कोई और पापी होता तो उसके प्रति दया दिखाकर उसे सहारा दिया जा सकता था, परन्तु पिता की हत्या करने वाले को कभी नहीं। एक बार पुनः उसके मन में विचलन होना आरम्भ हो जाता है और वह कहती है-मैं इसके ऊपर दया-भाव तो नहीं दिखा रही हूँ, परन्तु अपना कर्त्तव्य निर्वाह कर रही हूँ।


(ग) ममता के मन में अन्तर्द्वन्द्व चल रहा था कि हुमायूँ की मदद करे अथवा नहीं। 


() ममता मन-ही-मन यह विचारती है कि मैं तो ब्राह्मणी हूँ और सच्चा ब्राह्मण कभी अपने धर्म से विमुख नहीं होता।



(ङ)क्या आश्चर्य है कि तुम भी छल करो।" यह कथन ममता ने हुमायूँ से कहा, क्योंकि ममता के पिता की हत्या भी मुगलों ने छल से ही की थी।


(च) "छल! नहीं, तब नहीं स्त्री! जाता हूँ।" यह कथन हुमायूँ द्वारा ममता से कहा गया, हुमायूँ ने कहा तैमूरवंशी कुछ भी कर सकते हैं, परन्तु किसी स्त्री के साथ छल कभी नहीं कर सकते।


5 अश्वारोही पास आया। ममता ने रुक-रुककर कहा-"मैं नहीं जानती कि वह शहंशाह था या साधारण मुगल; पर एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे वह रहा। मैंने सुना था कि वह मेरा घर बनवाने की आज्ञा दे चुका था। मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खो जाने के डर से भयभीत रही। भगवान ने सुन लिया, मैं आज इसे छोड़े जाती हूँ। अब तुम इसका मकान बनाओ या महल मैं अपने चिर-विश्राम गृह में जाती हूँ।”



प्रश्न


(क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।


(ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(ग) वह आजीवन क्यों भयभीत रही?


(घ) (i) 'शहंशाह' शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?


 (ii) 'चिर-विश्राम-गृह' से क्या आशय है?



उत्तर


(क)  सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'गद्य खण्ड' में संकलित 'ममता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक 'जयशंकर प्रसाद' हैं।


(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या प्रसाद जी कहते हैं कि मरणासन्न पड़ी ममता ने अश्वारोही सैनिक को अपने पास बुलाया और कहा कि किसी समय इस झोपड़ी में रात बिताने वाले व्यक्ति ने एक सैनिक को यहाँ घर बनवाने के लिए कहा था। मैं इस झोंपड़ी को खोने के भय से पूरी ज़िन्दगी डरती रही, क्योंकि इस झोंपड़ी के साथ उसके जीवन की बहुत-सी यादें जुड़ी हुई थीं। मैं जब तक ज़िन्दा रही, तब तक ईश्वर ने इसे बचाए रखने की मेरी प्रार्थना सुन ली। अब मैं यह दुनिया छोड़कर जा रही हूँ। अब तुम चाहे मकान बनवाओ या महल। मैं तो मृत्यु की गोद में चिर-विश्राम करने जा रही हूँ, जहाँ मुझे अनन्त काल तक विश्राम मिलेगा।


(ग) ममता आजीवन इसलिए भयभीत रही, क्योंकि पता नहीं कब उसकी झोपड़ी को गिराकर महल बनाने का आदेश दे दिया जाए और उसके सामने रहने

की समस्या आ जाए। वह जीवनभर अपनी झोंपड़ी छोड़ना नहीं चाहती थी।


(घ) (i) 'शहंशाह' शब्द अकबर के पिता हुमायूँ के लिए प्रयुक्त हुआ है, जिसने ममता की झोपड़ी में शरण ली थी और शेरशाह से अपनी जान बचाई थी।


(ii) "चिर-विश्राम-गृह' से आशय मौत की गोद से है, जहाँ जाकर आदमी सांसारिक भाग-दौड़ से मुक्ति पा जाता है और सदा के लिए विश्राम करता है।


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