महादेवी वर्मा जी की गधांश रचना, हिमालय 'वर्षा सुन्दरी' के 'प्रति रचनाओं की संदर्भ,प्रसंग, व्याख्या, काव्य सौदंर्भ
महादेवी वर्मा जी की गधांश रचनाओं की संदर्भ प्रसंग व्याख्या
हिमालय
टूटी है तेरी कब समाधि, झंझा लौटे शत हार- हार; बह चला दृगों से किन्तु नीर! सुनकर जलते कण की पुकार ! सुख से विरक्त दुःख में समान!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड 'हिमालय से शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'सान्ध्य गीत' से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने हिमालय की दृढ़ता का वर्णन किया है, साथ ही उसके प्रति अपनी भावात्मक अनुभूति का वर्णन किया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि हे हिमालय! तुम तो एक तपस्वी की भाँति समाधि लगाकर बैठे हो। तुम्हारी यह समाधि कब टूटी है? आँधी के सैकड़ों झटके तुम्हें लगे, पर वे तुम्हारा कुछ न बिगाड़ सकें। तुम विचलित नहीं हुए। वे स्वयं ही हार मान कर चले गए।
एक ओर तो तुम्हारे अन्दर इतनी दृढ़ता एवं कठोरता है कि कोई भी बाधा तुम्हारे मार्ग की रुकावट नहीं बन सकती और दूसरी ओर तुम इतने सहृदय और भावुक हो कि धूप में जलते हुए कण की पुकार सुनकर तुम्हारे नेत्रों से आँसुओं की धारा फूट पड़ती है। तुम किसी का दुःख नहीं देख सकते। तुम एक योगी हो जो सुख से विरक्त रहते हो अर्थात् सुख की कामना नहीं करते। तो तुम भाव सुख और दुःख स्थित रहते हो और यही भावना तुम्हारी उच्चता की प्रतीक है।
काव्य सौन्दर्य
यहाँ हिमालय का मानवीकरण किया गया है। उसे वाले योगी के समान बताया है। सुख और दुःख में समान रहने वाले योगी के समान बताया है।
भाषा खड़ी-बोली हिन्दी
गुण माधुर्य
शैली गीति
छन्द अतुकान्त मुक्त
रस शान्त
शब्द-शक्ति लक्षणा
अलंकार
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार 'हार-हार' में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने से यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
मानवीकरण अलंकार इस पद्यांश में समाधि' शब्द में मानवरूपी प्रस्तुति की गई है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
2.मेरे जीवन का आज मूक,
तेरी छाया से हो मिलाप,
तन तेरी साधकता छू ले,
मन ले करुणा की थाह नाप!
उर में पावस दृग में विहान!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड 'हिमालय से शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'सान्ध्य गीत' से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री हिमालय को देखकर उसके गुणों को अपने मन में सहेजने की कामना करती है।
व्याख्या – महादेवी जी कहती हैं कि मैं तो यह कामना करती हूँ कि मैं अपने जीवन के मौन को तुम्हारी छाया में मिला दूँ अर्थात् वह हिमालय के गुणों को अपने आचरण में उतारना चाहती हैं। वह कामना करती हुई कहती है कि मेरा शरीर भी तुम्हारी तरह कठोर साधना शक्ति से परिपूर्ण हो और मेरा मन इतनी करुणा से भर जाए, जितनी करुणा तुम्हारे हृदय में भरी हुई है। मेरे हृदय में भी वर्षा का निवास है तथा नेत्रों में प्रात:कालीन सौन्दर्य भरा हुआ है अर्थात् मेरे हृदय में करुणा के कारण सरसता बनी रहे। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार हिमालय सारे कष्टों को सहन करता है, वैसे ही मैं भी संकटों से विचलित न होऊँ।
काव्य सौन्दर्य
कवयित्री हिमालय के गुणों को अपनाना चाहती है। वह स्वयं को हिमालय के समान साधना और करूणा से भरना चाहती है।
भाषा खड़ी बोली हिन्दी
शैली भावात्मक गीति
गुण माधुर्य
रस शान्त
छन्द अतुकान्त-मुक्त
शब्द-शक्ति लक्षणा
अलंकार
अनुप्रास अलंकार 'तन तेरी' में 'त' वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
मानवीकरण अलंकार इस पद्यांश में हिमालय का मानवीकरण किया गया है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
वर्षा सुन्दरी के प्रति
3.रूपसि तेरा घन-केश-पाश! श्यामल श्यामल कोमल कोमल, लहराता सुरभित केश-पाश! नभ- गंगा की रजतधार में धो आई क्या इन्हें रात ? कम्पित हैं तेरे सजल अंग, सिहरा सा तन हे सद्यस्नात! भीगी अलकों के छोरों से चूती बूँदें कर विविध लास! रूपसि तेरा घन-केश-पाश!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्यखण्ड के 'वर्षा सुन्दरी' के 'प्रति' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'नीरजा' से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा का सुन्दरी के रूप में वर्णन किया गया है। इसमें वर्षा का मानवीकरण किया गया है। व्याख्या महादेवी जी कहती हैं कि हे वर्षा रूपी सुन्दरी! तेरे घने केश रूपी जाल बादलों के समान श्यामल हैं अर्थात् अत्यन्त कोमल हैं। ये सुगन्ध से भरकर लहरा रहे हैं। वह सुन्दरी से प्रश्न करती हैं कि क्या तू इन केशों को आकाशगंगा की चाँदी के समान श्वेत धारा में धोकर आई है? तेरे अंग भीगे हुए हैं और ठण्ड से कॉप रहे हैं। तेरा शरीर ऐसे सिहर रहा है, जैसे कोई महिला अभी-अभी स्नान करके आई हो। तेरे भीगे हुए बालों की लटों से जल की बूँदें टपक रही हैं, जो नृत्य करती हुई-सी प्रतीत होती हैं। हे सुन्दरी! तेरा यह बादलरूपी बालों का समूह अत्यन्त सुन्दर लग रहा है।
काव्य सौन्दर्य
यहाँ वर्षा का सुन्दरी के रूप में चित्रण किया गया है।
भाषा साहित्यिक खड़ी बोली
गुण माधुर्य
छन्द अतुकान्त मुक्त
शैली चित्रात्मक
रस श्रृंगार
अलंकार
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार 'श्यामल श्यामल' और 'कोमल कोमल' में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने से यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
रूपक अलंकार 'रूपसि तेरा घन-केश-पाश!' में बादलरूपी घने बालों के समूह का वर्णन किया गया है, जिस कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
मानवीकरण अलंकार पूरे पद्यांश में वर्षा का सुन्दरी के रूप में चित्रण कर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है, जिस कारण यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
4.सौरभ भीना झीना गीला लिपटा मृदु अंजन-सा दुकूल; चल अंचल से झर झर झरते पथ में जुगनू के स्वर्ण फूल;दीपक से देता बार-बार तेरा उज्ज्वल चितवन-विलास! रूपसि तेरा घन-केश-पाश!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्यखण्ड के 'वर्षा सुन्दरी' के 'प्रति' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'नीरजा' से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा का सुन्दरी के रूप में सजीव चित्रण किया गया है।
व्याख्या – कवयित्री वर्षा को सम्बोधित करती हुई कहती है कि हे वर्षारूपी सुन्दरी! तेरे शरीर पर सुगन्ध से भरा महीन, गीला, कोमल और श्याम वर्ण का रेशमी वस्त्र लिपटा हुआ है, जो आँखों के काजल के समान प्रतीत हो रहा है अर्थात् यह काले बादल इस तरह प्रतीत हो रहे हैं जैसे किसी सुन्दरी के सुगन्धित, कोमल और काले रंग के वस्त्र हो । तेरे चंचल आँचल से रास्ते में जुगनू रूपी स्वर्ण निर्मित फूल झर रहे हैं। बादलों में चमकती बिजली तुम्हारी उज्ज्वल दृष्टि है। जब तुम अपनी ऐसी सुन्दर दृष्टि किसी पर डालती हो तो उसके मन में प्रेम के दीपक जगमगाने लगते हैं। हे रूपवती वर्षा सुन्दरी! तेरे ये बादलरूपी घने केश अत्यधिक सुन्दर हैं। काव्य सौन्दर्य वर्षा का मानवीकरण किया गया है।
भाषा साहित्यिक खड़ी बोली
रस श्रृंगार
शैली चित्रात्मक
छन्द चित्रात्मक
गुण माधुर्य
अलंकार
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार 'झर-झर' और 'बार-बार' में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने से यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
उपमा अलंकार 'मृदु अंजन-सा दुकूल में रेशमी वस्त्र को काजल सा बताया गया है अर्थात् उपमेय में उपमान की समानता है, जिस कारण यहाँ उपमा अलंकार है।
रूपक अलंकार 'जुगनू के स्वर्ण फूल' में तारों का वर्णन स्वर्ण रूपी फूल के समान किया गया है, जिस कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
5.उच्छ्वसित वक्ष पर चंचल है तेरी निश्वासें छू भू को केकी-रव की नूपुर-ध्वनि सुन रूपसि तेरा घन-केश-पाश!बक-पाँतों का अरविन्द-हार;
बन बन जाती मलयज बयार, जगती-जगती की मूक प्यास!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्यखण्ड के 'वर्षा सुन्दरी' के 'प्रति' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'नीरजा' से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा का मानवीकरण कर उसका सुन्दरी के रूप में चित्रण किया गया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती हैं कि हे वर्षा रूपी सुन्दरी! दीर्घ श्वास के कारण तेरा वक्षस्थल कम्पित हो रहा है, जिसके कारण बगुलों की पंक्ति रूपी कमल के फूलों की माला चंचल-सी प्रतीत हो रही है। जब तुम्हारे मुख से निकली बूँदरूपी साँसे पृथ्वी पर गिरती हैं, तो उनके पृथ्वी के स्पर्श से उठने वाली एक प्रकार की महक मलयगिरि की सुगन्धित वायु प्रतीत होती है तुम्हारे आने पर चारों ओर नृत्य करते हुए मोरों की मधुरध्वनि सुनाई पड़ने लगती है, जोकि तुम्हारे पैरों में बँधे हुए घुंघरुओं के समान मालूम पड़ती है। जिसको सुनकर लोगों के मन में मधुर प्रेम की प्यास जाग्रत होने लगती है।तात्पर्य यह है कि मोरों की मधुर आवाज से वातावरण में जो मधुरता छा जाती है, वह लोगों को आनन्द और उल्लास से जीने की प्रेरणा प्रदान करती है। हे वर्षा रूपी सुन्दरी! तेरा केश रूपी पाश काले-काले बादलों के समान है।
काव्य सौन्दर्य
यहाँ प्रकृति का मानवीकरण हुआ है।
भाषा साहित्यिक खड़ी बोली
शैली चित्रात्मक
छन्द। अतुकान्त मुक्त
रस श्रृंगार
गुण माधुर्य
अलंकार
अनुप्रास अलंकार 'जगती-जगती' में 'ज', 'ग' और 'त' वर्ण की पुनरावृत्ति हो रही है, जिस कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
यमक अलंकार यहाँ जगती-जगती में दो अर्थ जाग्रत होना, संसार का प्रयोग हो रहा है, जिस कारण यहाँ यमक अलंकार है।
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार 'बन बन' और 'जगती जगती' में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने से यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
6.इन स्निग्ध लटों से छा दे तन झुक सस्मित शीतल चुम्बन से दुलरा दे ना, बहला दे ना दे रूपसि तेरा घन-केश-पाश!पुलकित अंकों में भर विशाल; अंकित कर इसका मृदुल भाल; यह तेरा शिशु जग है उदास!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्यखण्ड के 'वर्षा सुन्दरी' के 'प्रति' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'नीरजा' से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री ने वर्षा में मातृत्व की और संसार में उसके शिशु की कल्पना की है।
व्याख्या कवयित्री वर्षारूपी सुन्दरी से आग्रह करती है कि हे वर्षा सुन्दरी ! तुम अपने कोमल बालों की छाया में इस संसाररूपी अपने शिशु को समेट लो।उसे अपनी रोमांचित और विशाल गोद में रखकर, के साथ चूम लो। हे सुन्दरी ! उसके मस्तक को मुस्कुराहट तुम्हारे बादलरूपी बालों की छाया से, मधुर चुम्बन और दुलार से इस संसाररूपी शिशु का मन बहल जाएगा और उसकी उदासी भी दूर हो जाएगी। हे वर्षारूपी सुन्दरी! तुम्हारी बादलरूपी काली केश राशि बड़ी मोहक प्रतीत हो रही है।
काव्य सौन्दर्य
भाषा साहित्यिक खड़ी बोली
शैली चित्रात्मक और भावात्मक
गुण माधुर्य
रस शृंगार और वात्सल्य
छन्द अतुकान्त-मुक्त
अलंकार
रूपक अलंकार 'शिशु जग' में उपमेय में उपमान का आरोप है,इसलिए यहाँ रूपक अलंकार है।
मानवीकरण अलंकार इस पद्यांश में वर्षा को माता एवं पृथ्वी को पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
Mahadevi Verma ka jivan Parichay//महादेवी वर्मा जी का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय
Mahadevi Verma ka sahityik Parichay
जीवन परिचय
महादेवी वर्मा
जीवन परिचय : एक दृष्टि में
जीवन परिचय- हिंदी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध कवियित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म वर्ष 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद शहर में हुआ था। इनके पिता गोविंदसहाय वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। माता हेमरानी साधारण कवयित्री थीं एवं श्री कृष्ण में अटूट श्रद्धा रखती थीं। इनके नाना जी को भी ब्रज भाषा में कविता करने की रुचि थी। नाना एवं माता के गुणों का महादेवी पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई थी। नौ वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ, किंतु इन्हीं दिनों इनकी माता का स्वर्गवास हो गया, ऐसी विकट स्थिति में भी इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा।
अत्यधिक परिश्रम के फल स्वरुप इन्होंने मैट्रिक से लेकर एम.ए. तक की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्ष 1933 में इन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या पद को सुशोभित किया। इन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया साथ ही नारी की स्वतंत्रता के लिए ये सदैव संघर्ष करती रही। इनके जीवन पर महात्मा गांधी का तथा कला साहित्य साधना पर रविंद्र नाथ टैगोर का प्रभाव पड़ा।
साहित्यिक परिचय- महादेवी जी साहित्य और संगीत के अतिरिक्त चित्रकला में भी रुचि रखती थीं। सर्वप्रथम इनकी रचनाएं चांद नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। ये 'चांद' पत्रिका की संपादिका भी रहीं। इनकी साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने इन्हें पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें 'सेकसरिया' तथा 'मंगला प्रसाद' पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा इन्हें एक लाख रुपए का भारत-भारती पुरस्कार दिया गया तथा इसी वर्ष काव्य ग्रंथ यामा पर इन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ' पुरस्कार प्राप्त हुआ। ये जीवन पर्यंत प्रयाग में ही रहकर साहित्य साधना करती रहीं। आधुनिक काव्य के साथ साज-श्रंगार में इनका अविस्मरणीय योगदान है। इनके काव्य में उपस्थित विरह-वेदना अपनी भावनात्मक गहनता के लिए अमूल्य मानी जाती है। इसी कारण इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है। करुणा और भावुकता इनके काव्य की पहचान है। 11 सितंबर, 1987 को यह महान कवयित्री पंचतत्व में विलीन हो गई।
रचनाएं- महादेवी जी ने पद्य एवं गद्य दोनों ही विधाओं पर समान अधिकार से अपनी लेखनी चलाई। इनकी कृतियां निम्नलिखित हैं-
1.नीहार- यह महादेवी जी का प्रथम काव्य संग्रह है। उनके इस काव्य में 47 भावात्मक गीत संकलित हैं और वेदना का स्वर मुखर हुआ है।
2. रश्मि- इस काव्य संग्रह में आत्मा-परमात्मा के मधुर संबंधों पर आधारित 35 कविताएं संकलित हैं।
3.नीरजा- इस संकलन में 58 गीत संकलित है, जिनमें से अधिकांश विरह-वेदना से परिपूर्ण है। कुछ गीतों में प्रकृति का मनोरम चित्र अंकित किया गया है।
4.सान्ध्य गीत- 58 गीतों के इस संग्रह में परमात्मा से मिलन का चित्रण किया गया है।
5. दीपशिखा- इसमें रहस्य-भावना प्रधान 51 गीतों को संग्रहित किया गया है।
6. अन्य रचनाएं- अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, श्रृंखला की कड़ियां, पथ के साथी, क्षणदा, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध, संकल्पिता, मेरा-परिवार, चिंतन के क्षण आदि प्रसिद्ध गद्य रचनाएं हैं, इनके अतिरिक्त-सप्तवर्णा, सन्धिनी, आधुनिक कवि नामक गीतों के समूह प्रकाशित हो चुके हैं।
भाषा शैली- महादेवी जी ने अपने गीतों में स्निग्ध और सरल, तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण आदि अलंकारों की छटा देखने को मिलती है। इन्होंने भावात्मक शैली का प्रयोग किया, जो सांकेतिक एवं लाक्षणिक है। इनकी शैली में लाक्षणिक प्रयोग एवं व्यंजना के प्रयोग के कारण अस्पष्टता व दुरुहता दिखाई देती है।
हिंदी साहित्य में स्थान- महादेवी जी की कविताओं में नारी ह्रदय की कोमलता और सरलता का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है। इनकी कविताएं संगीत की मधुरता से परिपूर्ण हैं। इनकी कविताओं में एकाकीपन की भी झलक देखने को मिलती है। हिंदी साहित्य में पद्य लेखन के साथ-साथ अपने गद्य लेखन द्वारा हिंदी भाषा को सजाने-संवारने तथा अर्थ- गाम्भीर्य प्रदान करने का जो प्रयत्न इन्होंने किया है, वह प्रशंसा के योग्य है। हिंदी के रहस्यवादी कवियों में इनका स्थान सर्वोपरि है।
शिक्षा - छठी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत ही 9 वर्ष बाल्यावस्था में ही महादेवी वर्मा का विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा के साथ कर दिया गया। इससे उनकी शिक्षा का क्रम टूट गया क्योंकि महादेवी के ससुर लड़कियों से शिक्षा प्राप्त करने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन जब महादेवी के ससुर का स्वर्गवास हो गया तो महादेवी जी ने पुनः शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। वर्ष 19-20 में महादेवी जी ने प्रयाग से प्रथम श्रेणी में मिडिल पास किया। (वर्तमान उत्तर प्रदेश का हिस्सा प्रयागराज) संयुक्त प्रांत के विद्यार्थियों में उनका स्थान सर्वप्रथम रहा। इसके फलस्वरूप उन्हें छात्रवृत्ति मिली। 1924 में महादेवी जी ने हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और पुनः प्रांत बार में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस बार भी उन्हें छात्रवृत्ति मिली। वर्ष 1926 में उन्होंने इंटरमीडिएट और वर्ष 1928 में बीए की परीक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में प्राप्त की। व्हाट्सएप 1933 में महादेवी जी ने संस्कृत में मास्टर ऑफ आर्ट m.a. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार उनका विद्यार्थी जीवन बहुत सफल रहा। b.a. में उनका एक विषय दर्शन भी था पूर्णविराम इसलिए उन्होंने भारतीय दर्शन का गंभीर अध्ययन किया इस अध्ययन की छाप उन पर अंत तक बनी रही।
महादेवी जी ने अपनी रचनाएं चांद में प्रकाशित होने के लिए भेजी। हिंदी संसार में उनकी उन प्रारंभिक रचनाओं का अच्छा स्वागत हुआ। इससे महादेवी जी को अधिक प्रोत्साहन मिला और फिर से वे नियमित रूप से काव्य साधना की ओर अग्रसर हो गई।
महादेवी जी का संपूर्ण जीवन शिक्षा विभाग से ही जुड़ा रहा। मास्टर ऑफ आर्ट m.a. की परीक्षा पास करने के पश्चात ही वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य नियुक्त हो गई। उनकी कर्तव्यनिष्ठा में शिक्षा के प्रति लगाव और कार्यकुशलता के कारण ही प्रयाग महिला विद्यापीठ में निरंतर उन्नति की। महादेवी जी ने वर्ष 1932 में महिलाओं की प्रमुख पत्रिका चांद की संपादक बनी।
पुरस्कार - महादेवी वर्मा ने वर्ष 1934 में निरजा पर ₹500 का पुरस्कार और सेकसरिया पुरस्कार जीता। वर्ष 1944 में आधुनिक कवि और निहार पर 1200 का मंगला प्रसाद पारितोषिक भी जीता । भाषा साहित्य संगीत और चित्रकला के अतिरिक्त उनकी रूचि दर्शनशास्त्र में भी थी। महादेवी वर्मा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1956 में पद्म भूषण से तथा वर्ष 1988 में पदम विभूषण से सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा उन्हें भारतेंदु पुरस्कार प्रदान किया गया। वर्ष 1982 में काव्य संकलन यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
काव्य साधना - महादेवी वर्मा छायावादी युग की प्रसिद्ध कवित्री हैं। छायावाद आधुनिक काल की एक सहेली होती है जिसके अंतर्गत विविध सौंदर्य पूर्ण अंगों पर चेतन सत्ता का आरोप कर उनका मानवीय करण किया जाता है। इस प्रकार इस में अनुभूति और सौंदर्य चेतना की अभिव्यक्ति को प्रमुख स्थान दिया जाता है। महादेवी जी के काव्य में यह दोनों विशेषताएं हैं। अंतर मात्र इतना है कि जहां छायावाद के अन्य कवियों ने प्रकृति में उल्लास का अनुभव किया है वहीं इसके उलट महादेवी जी ने वेदना का अनुभव किया है। महादेवी वर्मा ने अपने काव्य में कल्पना के आधार पर प्रकृति का मानवीकरण कर उसे एक विशेष भाव स्मृति और गीत काव्य से विभूषित किया है इसलिए महादेवी जी की रचनाओं में छायावाद की विभिन्न भागवत और कलाकात विशेषताएं मिलती हैं।
काव्य भाव - महादेवी जी के काव्य की मूल भावना वेदना-भाव लेकिन जीवन में वेदना-भाव की उपज दो कारणों से होती है।
जीवन में किसी अभाव के कारण
दूसरों के कष्टों से प्रभावित होने के कारण
मृत्यु - महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को प्रयाग (वर्तमान प्रयागराज) मैं हुआ । महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की एक विख्यात कवित्री थी स्वतंत्रता सेनानी और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महान महिला थी।
महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन - जब महादेवी वर्मा मात्र 11 वर्ष की थी तभी उनका विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया गया था। किंतु विधि को कुछ और ही मंजूर था। महादेवी जी का वैवाहिक जीवन सुख में नहीं रहा। इनका जीवन असीमित आकांक्षाओं और महान आशाओं को प्रति फलित करने वाला था। इसलिए उन्होंने साहित्य सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया।
महादेवी वर्मा को मिले पुरस्कार एवं सम्मान - महादेवी वर्मा को अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। इनको हर क्षेत्र में पुरस्कार मिले।
1.साहित्य अकादमी फेलोशिप (1979)
2.ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)
3.पद्मभूषण पुरस्कार (1956)
4.पदम विभूषण (1988)
महादेवी वर्मा के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
महादेवी वर्मा के दो काव्य संग्रहों के नाम लिखिए?
महादेवी वर्मा के दो काव्य संग्रहों के नाम - नीरजा, निहार
महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध रचना पर कौन सा पुरस्कार दिया गया?
महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। उनको मॉडर्न मीरा भी कहा जाता है। महादेवी वर्मा को 27 अप्रैल 1982 में काव्य संकलन यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप। 1988 में पद्म विभूषण और 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
महादेवी वर्मा की मृत्यु कब हुई?
महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को प्रयाग (वर्तमान प्रयागराज) मैं हुआ । महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की एक विख्यात कवित्री थी स्वतंत्रता सेनानी और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महान महिला थी।
महादेवी वर्मा की भाषा शैली लिखिए।
महादेवी जी ने अपने गीतों में स्निग्ध और सरल, तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण आदि अलंकारों की छटा देखने को मिलती है। इन्होंने भावात्मक शैली का प्रयोग किया, जो सांकेतिक एवं लाक्षणिक है। इनकी शैली में लाक्षणिक प्रयोग एवं व्यंजना के प्रयोग के कारण अस्पष्टता व दुरुहता दिखाई देती है।
महादेवी वर्मा का जन्म कहां हुआ था?
हिंदी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध कवियित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म वर्ष 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद शहर में हुआ था
महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय दीजिए?
महादेवी जी साहित्य और संगीत के अतिरिक्त चित्रकला में भी रुचि रखती थीं। सर्वप्रथम इनकी रचनाएं चांद नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। ये 'चांद' पत्रिका की संपादिका भी रहीं। इनकी साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने इन्हें पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें 'सेकसरिया' तथा 'मंगला प्रसाद' पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा इन्हें एक लाख रुपए का भारत-भारती पुरस्कार दिया गया तथा इसी वर्ष काव्य ग्रंथ यामा पर इन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ' पुरस्कार प्राप्त हुआ। ये जीवन पर्यंत प्रयाग में ही रहकर साहित्य साधना करती रहीं। आधुनिक काव्य के साथ साज-श्रंगार में इनका अविस्मरणीय योगदान है। इनके काव्य में उपस्थित विरह-वेदना अपनी भावनात्मक गहनता के लिए अमूल्य मानी जाती है। इसी कारण इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है। करुणा और भावुकता इनके काव्य की पहचान है। 11 सितंबर, 1987 को यह महान कवयित्री पंचतत्व में विलीन हो गई।
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