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केदारनाथ सिंह द्वारा रचित हिन्दी 'काव्यखण्ड' 'नदी' रचना का संदर्भ, प्रसंग,व्याख्या, काव्य सौंदर्भ

 केदारनाथ सिंह द्वारा रचित हिन्दी 'काव्यखण्ड' 'नदी' रचना का संदर्भ, प्रसंग,व्याख्या, काव्य सौंदर्भ


नदी, गद्यांश प्रसंग,सन्दर्भ, व्याख्या, काव्य सौन्दर्य 



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  1. अगर धीरे चलो वह तुम्हें छू लेगीदौड़ो तो छूट जायेगी नदी अगर ले लो साथ वह चलती चली जायेगी कहीं भी यहाँ तक कि कबाड़ी की दुकान तक भी




सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के हिन्दी 'काव्यखण्ड' के 'नदी' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवि केदारनाथ सिंह द्वारा रचित 'विविधा' से ली गई है। 


प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि ने मानव जीवन में नदी की महत्ता की ओर संकेत किया है और कहा है कि नदी मनुष्य का साथ हर क्षण निभाती है।


व्याख्या – कवि नदी का महत्त्व बताते हुए कहता है कि नदी सिर्फ बहते जल का स्रोत मात्र नहीं है, वह हमारी जीवन धारा है। वह हमारी सभ्यता और संस्कृति का जीवन्त रूप है। नदी हमारी रग-रग में प्रवाहित हो रही है। यदि हम गम्भीरतापूर्वक नदी को अपनी सभ्यता-संस्कृति से जोड़कर विचार करते हैं उसके साथ संवाद स्थापित करते हैं, तो नदी हमारे अन्तर्मन को छूकर हमें प्रसन्न कर देती है।


इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति आधुनिकता को पाने की होड़ में अन्धाधुन्ध भागता जाता है और नदी अर्थात् अपनी सभ्यता और संस्कृति को अनदेखा कर देता है, तो यह नदी उससे दूर हो जाती है और वह व्यक्ति नदी से दूर होता जाता है अर्थात् आधुनिकता की अन्धी दौड़ में शामिल व्यक्ति अपनी सभ्यता-संस्कृति को भूलता जाता है और उससे अलग होता जाता है।


यदि प्रगति की ओर बढ़ता आदमी नदी (सभ्यता और संस्कृति) का थोड़ा-सा भी ध्यान रखता है, तो नदी उसका अनुसरण करती उसके पीछे-पीछे वहाँ तक चली जाती है, जहाँ तक व्यक्ति उसे ले जाना चाहता है। फिर तो व्यक्ति उसे संसार के किसी कोने में ले जाए, यहाँ तक कि कबाड़ी की दुकान पर भी जाने के लिए नदी तैयार रहती है। वह सच्चे साथी की तरह कभी भी हमारा साथ नहीं छोड़ती, क्योंकि वह हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। 



काव्य सौन्दर्य


कवि द्वारा अपनी सभ्यता-संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा दी गई है।


भाषा               सहज और सरल खड़ी बोली


शैली               वर्णनात्मक व प्रतीकात्मक


गुण                प्रसाद


रस                 शान्त


छन्द              अतुकान्त व मुक्त


शब्द-शक्ति       अभिधा तथा लक्षणा



अलंकार


अनुप्रास अलंकार 'ले लो', 'चलती चली', 'कि कबाड़ी की में क्रमश: 'ल', 'च' और 'क' वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।


मानवीकरण अलंकार इस पद्यांश में 'नदी' को एक जीवन साथी के रूप में व्यक्त किया है, इसलिए यहाँ मानवीकरण अलंकार है।




  1. छोड़ दो तो वहीं अँधेरे में करोड़ों तारों की आँख बचाकर वह चुपके से रच लेगी एक समूची दुनिया एवं छोटे-से घोंघे में सचाई यह है कि तुम कहीं भी रहो तुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों में भी प्यार करती है एक नदी




सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के हिन्दी 'काव्यखण्ड' के 'नदी' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवि केदारनाथ सिंह द्वारा रचित 'विविधा' से ली गई है।



प्रसंग – कवि के कहने के अनुसार मनुष्य भले ही सभ्यता और संस्कृति की उपेक्षा करे, किन्तु सभ्यता और संस्कृति उसका पीछा नहीं छोड़ती है।


व्याख्या – कवि कहते हैं कि यदि मनुष्य अपनी सभ्यता और संस्कृति से दूरी बनाता है, थोड़े समय के लिए भी उससे दूर होता है या अलग हो जाता है, तो वह सारे समाज से अलग हो जाता है। यह सभ्यता और संस्कृति अजर-अमर है, जो किसी-न-किसी रूप में हमेशा जीवित रहती है। यदि इसका थोड़ा-सा भी अंश कहीं छूट जाता है, तो यह विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए अपना विकास कर लेती है।


अपने अस्तित्वरूपी बीज बचाए रखने के लिए इसे घोंघे जितना कम स्थान चाहिए। उसी थोड़े से स्थान में पल बढ़ कर संस्कृति अपना विकास कर लेती है। नदी अर्थात् सभ्यता और संस्कृति जीवन के सबसे कठिन समय में भी हमारा साथ नहीं छोड़ती है।


जब कभी दानवी प्रवृत्तियाँ मानवता पर आक्रमण करती हैं, तब भी सभ्यता और संस्कृति अपने आपको बचाए रखती है और मनुष्य का साथ नहीं छोड़ती है। यह मनुष्य को बहुत प्यार करती है, तभी तो अपने से बाँधे रखकर उसे अपने से अलग नहीं होने देती।


काव्य सौन्दर्य


अपनी सभ्यता-संस्कृति को अनदेखी करने वाला व्यक्ति समाज से कटकर अलग-थलग पड़ जाता है।


भाषा             सहज और सरल खड़ी बोली


शैली              वर्णनात्मक व प्रतीकात्मक


गुण                 प्रसाद


रस                  शान्त


छन्द               अतुकान्त व मुक्त


शब्द-शक्ति        अभिधा तथा लक्षणा




अलंकार


उपमा अलंकार 'छोटे-से घोंघे में' वाचक शब्द 'से' होने से उपमा अलंकार है।


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