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मैथिलीशरण गुप्त जी की गद्यांश रचना''भारत माता का मन्दिर यह' के गद्यांश की सन्दर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्य सौन्दर्य

 मैथिलीशरण गुप्त जी की गद्यांश रचना''भारत माता का मन्दिर यह' के गद्यांश की सन्दर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्य सौन्दर्य




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  1. भारत माता का मन्दिर यह समता का संवाद जहाँ सबका शिव कल्याण यहाँ है पावें सभी प्रसाद यहाँ । जाति-धर्म या सम्प्रदाय का, नहीं भेद-व्यवधान यहाँ, सबका स्वागत, सबका आदर सबका सम सम्मान यहाँ । राम, रहीम, बुद्ध, ईसा का, सुलभ एक सा ध्यान यहाँ, भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के गुण गौरव का ज्ञान यहाँ ।



सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्यखण्ड के 'भारत माता का मन्दिर यह' शीर्षक से उद्धृत है। यह काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित है।


प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में मैथिलीशरण गुप्त जी ने भारत के गौरवशाली रूप का गुणगान करते हुए उसकी कल्याणकारी भावना का वर्णन किया है।


व्याख्या – कवि कहता है कि भारत ऐसा अद्वितीय देश है जिसकी कल्याणकारी भावना उसे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है। कवि ने इस पद्यांश में भारत को ऐसे मन्दिर के रूप में स्थापित करके दिखाया है, जहाँ प्रत्येक मानव को अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार समान रूप से है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ सबका कल्याण होता है और सभी प्रसन्नता रूपी प्रसाद ग्रहण करते हैं।


इस देश में जाति-धर्म या किसी सम्प्रदाय की प्रगति को लेकर भेद-भाव रूपी बाधाएँ नहीं हैं। यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख तथा ईसाई सभी सम्प्रदायों का स्वागत हृदय से किया जाता है और बिना किसी भेद-भाव के समान रूप से सभी को सम्मान दिया जाता है। इस देश में जो स्थान राम का वही स्थान रहीम, बुद्ध और ईसा मसीह का है भी है। भारत में भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के बारे में सभी लोगों को बताया जाता है और उनके प्रति आदर और सम्मान का भाव रखने हेतु प्रेरित किया जाता है। 



काव्य सौन्दर्य


भाषा         खड़ी बोली 


गुण           प्रसाद


शैली          मुक्तक/गीतात्मक


छन्द             मुक्त


शब्द शक्ति       अभिधा



अलंकार


 'सबका स्वागत सबका आदर, सबका सम सम्मान यहाँ इस पंक्ति में 'स' वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।


 'भिन्न-भिन्न' में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। 'गुण गौरव' में 'ग' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।



  1. नहीं चाहिए बुद्धि बैर की भला प्रेम का उन्माद यहाँ सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ । सब तीर्थों का एक तीर्थ यह हृदय पवित्र बना लें हम आओ यहाँ अजातशत्रु बनें, सबको मित्र बना लें हम। रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने मन के चित्र बना लें हम। सौ-सौ आदर्शों को लेकर एक चरित्र बना लें हम।



सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्यखण्ड के 'भारत माता का मन्दिर यह' शीर्षक से उद्धृत है। यह काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित है।


प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने भारत की गौरवशाली महिमा का वखान किया है।


व्याख्या कति कहता है कि हमारे देश में असीमित प्रेम और मानवता की भावना विद्यमान है, इसीलिए हमें किसी से बैर या दुश्मनी की आवश्यकता नहीं है। इसी प्रेम की आसीमितता के कारण यहाँ प्रत्येक व्यक्ति का कल्याण होता है और सभी प्रसन्न रहते हैं। कवि ने भारत देश को सभी तीर्थों का तीर्थ कहते हुए हमें अपना मन शुद्ध बनाए रखने के लिए प्रेरित किया है। कवि ने समस्त देशवासियों से अनुरोध करते हुए कहा है कि हमें शत्रुहीन बनना है और सभी से मित्रता करनी है। हमारे सम्मुख देश में स्थापित सौहार्द, समानता के गुण हैं, इन्हीं सद्गुणों को ग्रहण करते हुए हमें अपने भविष्य का निर्माण करना है। कवि आगे कहता है, भारत में गाँधी, भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे अनेक महान् व्यक्तियों का जन्म हुआ है, जिनके आदर्शों पर चलकर समस्त भारतवासियों को अपना चरित्र निर्माण करना चाहिए।


काव्य सौन्दर्य


भाषा           खड़ी बोली


शैली           मुक्तक/गीतात्मक


गुण             प्रसाद


छन्द              मुक्त


 शब्द शक्ति     अभिधा




अलंकार


'सौ-सौ में एक शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।


है।


  1. बैठो माता के आँगन में नाता भाई-बहन का समझे उसकी प्रसव वेदना वही लाल है माई का एक साथ मिल बॉट ला अपना हर्ष विषाद यहाँ हैसबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ ।मिला सेव्य का हमें पूजारी सकल काम उस न्यायी का मुक्ति लाभ कर्तव्य यहाँ है एक-एक अनुयायी का कोटि-कोटि कण्ठों से मिलकर

उठे एक जयनाद यहाँ पावें सभी प्रसाद यहाँ





प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने गाँधीवादी विचारधारा प्रकट करते हुए भारत माता का गुणगान किया है।



व्याख्या – कवि कहता है कि भारत माता के विस्तृत आँगन रूपी क्षेत्र में सभी व्यक्तियों को बन्धुत्व की भावना एवं भाई-चारे की भावना स्थापित करनी चाहिए। कवि ने भारत माता के सच्चे सपूत की पहचान बताते हुए कहा है कि जब देश में भेद-भाव एवं साम्प्रदायिकता की स्थिति उत्पन्न होती है, तब भारत माता की असहनीय पीड़ा को समझने वाला व्यक्ति ही उसका सच्चा सपूत होता है। कवि आगे कहता है कि भारत माता के सभी बच्चों को अपने सुख-दुःख को बाँटना चाहिए, जिससे प्रेम और बन्धुत्व की भावना प्रकट होगी तथा सबका कल्याण सम्भव होगा।


कवि कहता है कि भारत माता को महात्मा गाँधी जैसे सपूतों की आवश्यकता है। महात्मा गाँधी जैसे अहिंसा के पुजारी ने अपने सेवाभाव से समस्त भारतीयों को स्वतन्त्रता एवं न्याय दिलाने का कर्त्तव्य पूर्ण किया था। गाँधी जी का अनुसरण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने भारत माता की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष एवं बलिदान को ही अपना कर्त्तव्य माना है तथा उसी को मुक्ति-मार्ग के रूप में स्वीकारा है। कवि ने भारतीयों की एकता और अखण्डता के बारे में कहा है कि वे एक साथ भारत माता की जयकार लगाते हैं। इन्हीं सबके कारण कवि ने भारत में सबका कल्याण माना है। भारत में स


काव्य सौन्दर्य


भाषा         खड़ी बोली


शैली          मुक्तक/गीतात्मक


गुण             प्रसाद


छन्द            मुक्त


शब्द शक्ति     अभिधा 


अलंकार 


'कोटि-कोटि कण्ठों' में 'क' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।


'एक-एक अनुयायी' में 'एक' वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है


 मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय तथा रचनाएं


मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय एवं रचनाएं



maithilesharan gupt ji ka jivan parichay aur rachnaye




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             संक्षिप्त परिचय


नाम

मैथिलीशरण गुप्त

जन्म

1886 ई.

जन्म स्थान

चिरगाँव, झाँसी, उ.प्र.

पिता का नाम

सेठ रामचरण गुप्त

माता का नाम


काशीबाई

गुरु

महावीरप्रसाद द्विवेदी

मृत्यु

1964 ई.

मृत्यु स्थान

चिरगाँव झाँसी

कृतियाँ

भारत भारती, साकेत, यशोधरा, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध आदि।


साहित्य में योगदान

अपने काव्य से राष्ट्रीय भावों की गंगा बहाने का श्रेय गुप्त जी को है। द्विवेदी युग के यह अनमोल रत्न रहे हैं।





जीवन-परिचय


राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झाँसी जिले के चिरगाँव नामक स्थान पर 1886 ई. में हुआ था। इनके पिताजी का नाम सेठ रामचरण गुप्त और माता का नाम काशीबाई था। इनके पिता को हिन्दी साहित्य से विशेष प्रेम था, गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ा। इनकी प्राथमिक शिक्षा चिरगाँव तथा माध्यमिक शिक्षा मैकडोनल हाईस्कूल (झाँसी) से हुई। घर पर ही अंग्रेजी, बांग्ला, संस्कृत एवं हिन्दी का अध्ययन करने वाले गुप्त जी की प्रारम्भिक रचनाएँ कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले 'वैश्योपकारक' नामक पत्र में छपती थीं। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आने पर उनके आदेश, उपदेश एवं स्नेहमय परामर्श से इनके काव्य में पर्याप्त निखार आया। भारत सरकार ने इन्हें 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया। 12 दिसम्बर, 1964 को माँ भारती का यह सच्चा सपूत सदा के लिए पंचतत्त्व में विलीन हो गया।


साहित्यिक परिचय


गुप्त जी ने खड़ी बोली के स्वरूप के निर्धारण एवं विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। गुप्त जी की प्रारम्भिक रचनाओं में इतिवृत्त कथन की अधिकता है, किन्तु बाद की रचनाओं में लाक्षणिक वैचित्र्य एवं सूक्ष्म मनोभावों की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। गुप्त जी ने अपनी रचनाओं में प्रबन्ध के अन्दर गीति-काव्य का समावेश कर उन्हें उत्कृष्टता प्रदान की है।



कृतियाँ (रचनाएँ)


गुप्त जी के लगभग 40 मौलिक काव्य ग्रन्थों में भारत-भारती (1912), रंग में भंग (1909), जयद्रथ वध, पंचवटी, झंकार, झंकार, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जय भारत, विष्णु प्रिया आदि उल्लेखनीय हैं।


भारत-भारती ने हिन्दी भाषियों में जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावना जगाई। 'रामचरितमानस' के पश्चात् हिन्दी में राम काव्य का दूसरा प्रसिद्ध उदाहरण 'साकेत' है। 'यशोधरा' और 'साकेत' मैथिलीशरण गुप्त ने दो नारी प्रधान काव्यों की रचना की।


भाषा-शैली


हिन्दी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में गुप्त जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। गुप्त जी की भाषा में माधुर्य भावों की तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सौन्दर्य अद्भुत है। वे गम्भीर विषयों को भी सुन्दर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। इनकी भाषा में लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों के प्रयोग से जीवन्तता आ गई है। गुप्त जी मूलतः प्रबन्धकार थे, लेकिन प्रबन्ध के साथ-साथ मुक्तक, गीति, गीति-नाट्य, नाटक आदि क्षेत्रों में भी उन्होंने अनेक सफल रचनाएँ की हैं। इनकीरचना 'पत्रावली' पत्र शैली में रचित नूतन काव्य शैली का नमूना है। इनकी शैली में गेयता, प्रवाहमयता एवं संगीतात्मकता विद्यमान है।


हिन्दी साहित्य में स्थान


मौथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत रचनाओं के कारण हिन्दी साहित्य में इनका विशेष स्थान है। हिन्दी काव्य राष्ट्रीय भावों की पुनीत गंगा को बहाने का श्रेय गुप्त जी को ही है। अतः ये सच्चे अर्थों में लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं को भरकर उनमें जन-जागृति लाने वाले राष्ट्रकवि हैं। इनके काव्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।


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