सुभद्रा कुमारी चौहान जी का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय
Subhadra Kumari Chauhan ji ka jivan Parichay avm rachnaye
नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट www.Subhanshclasses.com में यदि आप गूगल पर सर्च कर रहे हैं subhadra kumari chauhan ji ka jeevan parichay तो आप बिल्कुल सही जगह पर आ गए हैं हम आपको आपके सभी टॉपिक पर पत्र लिखना शिखायेगे। यदि आप YouTube पर देखना चाहते हैं तो आप अपने यूट्यूब पर सर्च करे Subhansh classes वहा पर आपको हमारा चैनल मिल जायेगा, आप उसे जल्दी से subscribe कर लीजिए। हमारे यूट्यूब चैनल पर आपको पढाई से सम्बंधित सभी जानकारी दी जायेगी
संक्षिप्त जीवन परिचय
जीवन-परिचय
स्वतन्त्रता संग्राम की सक्रिय सेनानी, राष्ट्रीय चेतना की अमर गायिका एवं वीर रस की एकमात्र कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म वर्ष 1904 में इलाहाबाद के के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इन्होंने प्रयाग के 'क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज' में शिक्षा प्राप्त की। 15 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह खण्डवा के ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान के साथ हुआ। विवाह के बाद गाँधी जी की प्रेरणा से ये पढ़ाई-लिखाई छोड़कर देश सेवा में सक्रिय हो गईं तथा राष्ट्रीय कार्यों में भाग लेने लगीं। इन्होंने कई बार जेल-यात्राएँ भी कीं। माखनलाल चतुर्वेदी की प्रेरणा से इनकी देशभक्ति का रंग और भी गहरा हो गया। वर्ष 1948 में एक मोटर दुर्घटना में इनकी असामयिक मृत्यु हो गई।
सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाओं में देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता का स्वर मुखरित हुआ है। इनके काव्य की ओजपूर्ण वाणी ने भारतीयों में नवचेतना का संचार कर दिया। इनकी अकेली कविता 'झाँसी की रानी' ही इन्हें अमर कर देने के लिए पर्याप्त है। इनकी कविता 'वीरों का कैसा हो वसन्त' भी राष्ट्रीय भावनाओं को जगाने वाली ओजपूर्ण कविता है। इन्होंने राष्ट्रीयता के अलावा वात्सल्य भाव से सम्बन्धित कविताओं की भी रचना की।
कृतियाँ (रचनाएँ)
सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने साहित्यिक जीवन में भले ही कम रचनाएँ लिखीं, लेकिन उनकी रचनाएँ अद्वितीय हैं। देशभक्ति की भावना को काव्यात्मक रूप प्रदान करने वाली इस कवयित्री की रचनाएँ निम्नलिखित हैं
काव्य संग्रह मुकुल और त्रिधारा। कहानी संकलन सीधे-सादे चित्र, बिखरे मोती तथा उन्मादिनी।
'मुकुल' काव्य संग्रह पर इनको 'सेकसरिया' पुरस्कार प्रदान किया गया।
भाषा-शैली
सुभद्रा जी की शैली अत्यन्त सरल एवं सुबोध है। इनकी रचना-शैली में ओज, प्रसाद और माधुर्य भाव से युक्त गुणों का समन्वित रूप देखने को मिलता है। राष्ट्रीयता पर आधारित इनकी कविताओं में सजीव एवं ओजपूर्ण शैली का प्रयोग हुआ है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
सुभद्रा जी हिन्दी साहित्य में अकेली ऐसी कवयित्री हैं, जिन्होंने राष्ट्रप्रेम को जगाने वाली कविताएँ लिखीं। इनकी कविताओं ने भारतीयों को स्वतन्त्रता संग्राम में स्वयं को झोंक देने के लिए प्रेरित किया। इन्होंने नारी की जिस निडर छवि को प्रस्तुत किया, वह नारी जगत् के लिए अमूल्य देन है। हिन्दी साहित्य में इनको गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है।
सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित 'त्रिधारा' 'काव्यखण्ड' के 'झाँसी की रानी की समाधि पर' की सन्दर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्य सौन्दर्य
1.इस समाधि में छिपी हुई है,एक राख की ढेरी।जल कर जिसने स्वतन्त्रता की, दिव्य आरती फेरी ।। यह समाधि, यह लघु समाधि है,झाँसी की रानी की।अंतिम लीलास्थली यही है,लक्ष्मी मरदानी की ।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के 'काव्यखण्ड' के 'झाँसी की रानी की समाधि पर' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा
रचित 'त्रिधारा' से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान और उनकी समाधि की गौरव-गाथा प्रस्तुत की है।
व्याख्या – कवयित्री लक्ष्मीबाई की समाधि की ओर संकेत करती हुई कहती हैं कि इस समाधि में उस वीरांगना की राख छिपी हुई है, जिसने स्वयं जलकर स्वतन्त्रता की देवी की अलौकिक आरती उतारी थी अर्थात् जिस प्रकार आरती उतारने के लिए दीप या कपूर आदि जलाया जाता है, उसी प्रकार लक्ष्मीबाई ने आरती के दीप के रूप में स्वयं को प्रस्तुत कर दिया था।
कवयित्री कहती हैं कि यह समाधि भले ही छोटी-सी है, पर यह लक्ष्मीबाई के साहस एवं वीरतापूर्ण बड़े-बड़े कारनामों की यादों को अपने अन्दर समेटे हुए है। यह झाँसी की रानी की अन्तिम लीला स्थली है। यहीं उन्होंने वीरता एवं साहस से युद्ध करते हुए अंग्रेज़ों के विरुद्ध अपना आखिरी युद्ध लड़ा था और उन्हें यहीं वीरगति
प्राप्त हुई थी।
काव्य सौन्दर्य
काव्यांश में रानी लक्ष्मीबाई के वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति पाने का वर्णन हुआ है।
भाषा सरल, सुबोध खड़ी बोली
गुण प्रसाद एवं ओज
शैली ओजपूर्ण आख्यानक गीति
रस वीर
छन्द तुकान्त-मुक्त
शब्द-शक्ति अभिधा
अलंकार
अनुप्रास अलंकार 'आरती फेरी' और 'लक्ष्मी मरदानी में 'र'और 'म' वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
यहीं कहीं पर बिखर गई वह,भग्न विजयमाला-सी। उसके फूल यहाँ संचित हैं,है यह स्मृतिशाला-सी।।सहे वार पर वार अंत तक,लड़ी वीर बाला-सी।आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर,चमक उठी ज्वाला-सी।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के 'काव्यखण्ड' के 'झाँसी की रानी की समाधि पर' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा
रचित 'त्रिधारा' से लिया गया है।
प्रसंग – इन पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई की वीरता एवं अत्यन्त साहस के साथ अंग्रेजों से किए गए युद्ध का वर्णन है, जिसमें उन्हें वीरगति प्राप्त हुई थी।
व्याख्या – कवयित्री रानी लक्ष्मीबाई को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करती हुई कहती है कि इसी समाधि के आस-पास वह वीर महिला टूटी हुई विजयमाला के समान बिखर गई थी अर्थात् उनकी विजयरूपी माला टूट कर यहीं बिखर गई थी। वे इस विजयमाला को और आगे न ले जा सकी, क्योंकि वे अंग्रेजों से युद्ध करते-करते शहीद हो गई थीं। रानी की अस्थियाँ इसी समाधि में संचित हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को उनकी वीरता के स्मृति चिह्न के रूप में याद दिलाएंगी तथा देश के लिए कुछ कर गुज़रने की प्रेरणा देंगी।
कवयित्री रानी द्वारा अंग्रेजों के साथ किए गए युद्ध का वर्णन करती हुई कहती हैं कि रानी लक्ष्मीबाई अपने जीवन के अन्त तक अंग्रेज़ सैनिक की तलवारों के वार पर वार सहती रही। जिस तरह यज्ञ में हवन सामग्री की आहुति पड़ते ही ज्वाला प्रज्वलित हो उठती है, उसी प्रकार रानी के इस बलिदान ने स्वतन्त्रता की वेदी पर आहुति का काम किया। लोगों में इससे स्वतन्त्रा पाने की लालसा भड़क उठी और वे क्रान्ति के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो उठे। रानी के युद्धभूमि में इस प्रकार वीरगति पाने से उनका यश चारों ओर फैल गया।
काव्य सौन्दर्य
कवयित्री ने रानी द्वारा किए गए वीरता एवं साहसपूर्ण युद्ध का वर्णन किया है,जिसमें रानी शहीद हो गईं।
भाषा सरल, सुबोध खड़ी बोली
गुण ओज
छन्द तुकान्त मुक्त
शैली ओजपूर्ण आख्यानक गीति
रस वीर
शब्द-शक्ति अभिधा
अलंकार
रूपक अलंकार रानी की अस्थियों को फूल रूपी अस्थियाँ कहा गया है, जिस कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
बढ़ जाता है मान वीर का,रण में बलि होने से। मूल्यवती होती सोने की,भस्म यथा सोने से ।। रानी से भी अधिक हमें अब,यह समाधि है प्यारी।यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की,आशा की चिनगारी ।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के 'काव्यखण्ड' के 'झाँसी की रानी की समाधि पर' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा
रचित 'त्रिधारा' से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान का वर्णन करते हुए कवयित्री कहती हैं कि देश की आजादी की रक्षा हेतु अपना बलिदान देने से रानी का गौरव और भी बढ़ गया है।
व्याख्या – युद्धभूमि से पलायन कायरों की निशानी है तथा युद्ध करते हुए वीरगति पाना वीरों की निशानी है। कवयित्री इन पंक्तियों में कह रही हैं कि स्वतन्त्रता की रक्षा करते हुए वीरगति पाने से वीरों का मान बढ़ जाता है। रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई, इसलिए उनका मान भी ऐसे बढ़ गया, जैसे सोने से भी अधिक मूल्यवान उसकी भस्म होती है।
रानी ने भी अपना बलिदान देकर हम भारतीयों में स्वतन्त्रता की ज्योति जलाई है,
इसलिए उनकी यह समाधि हमें बहुत प्रिय है। इस समाधि में स्वतन्त्रता रूपी आशा की चिंगारी छिपी हुई है, जो अग्नि के रूप में फैलकर हम भारतीयों को भविष्य में अन्य किसी की दासता से मुक्त होने के लिए प्रेरित करती रहेगी। यह समाधि हम भारतीयों के अन्दर की स्वतन्त्रता की ज्योति को कभी बुझने नहीं देगी तथा आजादी न मिलने तक हमें निरन्तर इसके लिए संघर्ष करने की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी।
काव्य सौन्दर्य
कवयित्री ने रानी की समाधि को अधिक प्रिय होने तथा देश के लिए बलिदान देने पर उनकी महत्ता बढ़ने का भाव व्यक्त किया है।
भाषा सरल-सुबोध खड़ी बोली
शैली ओजपूर्ण आख्यानक गीति
गुण ओज एवं प्रसाद
छन्द तुकान्त-मुक्त
रस वीर
शब्द-शक्ति अभिधा
अलंकार
रूपक अलंकार 'आशा की चिनगारी' में आशा रूपी चिनगारी की बात की गई, जिस कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते। उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जन्तु ही गाते ।।पर कवियों की अमर गिरा में,इसकी अमिट कहानी ।स्नेह और श्रद्धा से गाती है,वीरों की बानी ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के 'काव्यखण्ड' के 'झाँसी की रानी की समाधि पर' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा
रचित 'त्रिधारा' से लिया गया है।
प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने रानी की समाधि की अन्य समाधियों से तुलना करते हुए, उनकी समाधि को श्रेष्ठ बताया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती हैं कि हमारे देश में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि से सुन्दर अनेक समाधियाँ देखने को मिलती हैं, परन्तु उन समाधियों का महत्त्व इस समाधि की तरह नहीं है। उन समाधियों पर क्षुद्र जन्तु; जैसे— कीड़े-मकोड़े, छोटे-छोटे जीव-जन्तु; जैसे- झींगुर और छिपकलियाँ आदि ही रात में गाते हैं। तात्पर्य यह है कि वे समाधियाँ गौरव-गान करने के लायक नहीं हैं, वे उपेक्षित हैं, तभी तो उन पर छोटे जीव-जन्तु निवास करते हैं। रानी लक्ष्मीबाई की समाधि गौरव से परिपूर्ण एक ऐसी समाधि है, जिसकी अमिट कहानी कवियों की अमर वाणी से सदा-सदा गाई जाती रहेगी। इस देश के लोग स्नेह और श्रद्धा से वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की अमर-कथा का गुणगान करते हैं।
काव्य सौन्दर्य
रानी लक्ष्मीबाई की समाधि को अन्य समाधियों से श्रेष्ठ बताया गया है।
भाषा सरल, साहित्यिक खड़ी बोली
शैली ओजपूर्ण आख्यानक गीति
गुण ओज
रस वीर
छन्द तुकान्त-मुक्त
शब्द-शक्ति व्यंजना
अलंकार
अनुप्रास अलंकार 'सुन्दर समाधियाँ' और 'अमर गिरा' में 'स' और 'र' वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
देखे👉👉👉👉
ये भी देखें 👉👉भी👉👉
ये भी देखे 👉👉👉👉
ये भी देखे 👉👉👉👉
👉👉👉
👉essay on lockdown samasya aur samadhan
👉👉👉
👉एकल खाते को ज्वाइंट खाते में बलवाने हेतू
👉👉👉
👉application for issuing new bank passbook
ये भी देखे👉👉👉👉
ये भी देखें 👉👉👉👉
ये भी देखे 👉👉👉👉
ये भी देखे 👉👉👉👉
👉👉👉
👉essay on lockdown samasya aur samadhan
👉👉👉
👉एकल खाते को ज्वाइंट खाते में बलवाने हेतू
👉👉👉
👉application for issuing new bank passbook
यदि आपको हमारी पोस्ट पसन्द आई हो तो अपने दोस्तो को भी शेयर करें यदि आपको कुछ पूछना है तो कॉमेंट करके जरुर बताएं यदि आपने अभी तक हमारे यूट्यूब चैनल Subhansh classes को subscribe नही किया हो तो अभी जल्दी से subscribe krliajia