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Up pre board exam paper class 10 hindi full solutions 2022//यूपी प्री बोर्ड परीक्षा पेपर कक्षा 10वी हिन्दी पेपर का सम्पूर्ण हल

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यूपी प्री बोर्ड परीक्षा पेपर 2022 कक्षा 10वी हिन्दी पेपर का सम्पूर्ण हल

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     प्री-बोर्ड परीक्षा


                         कक्षा 10 


                           हिन्दी




समय : 3.00 घण्टे



पूर्णांक : 70



1. (क) निम्नलिखित कथनों में से कोई एक कथन सत्य है, पहचानकर लिखिए- 1


(अ) जयशंकर प्रसाद आलोचक के रूप में प्रसिद्ध है। 

(ब) रामचन्द्र शुक्ल महान् कवि के रूप में प्रसिद्ध है।


(स) भारतेन्दु हरिश्चन्द रीतिकाल के रचनाकार है।


 (द) अजन्ता के लेखक जयप्रकाश भारती है।



उत्तर –ब


(ख) निम्नलिखित कृतियों में से किसी एक के लेखक का नाम लिखिए


(अ) एक घूँट।   – जय शंकर प्रसाद


(ब) 'पंचपात्र'


(स) शिक्षा एवं संस्कृति


(द) अनन्त आकाश'


(ग)' प्रेमचन्द अपने घर में' किस विधा की रचना है ?


उत्तर – संस्मरण


(घ) हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत एक उपन्यास का नाम लिखिए।


उत्तर – अनाम दास का पोथा


(ड) हिन्दी के किसी एक प्रसिद्ध निबन्ध लेखक का नाम लिखिए।


उत्तर – हजारी प्रसाद द्विवेदी


2. (क्र. ) छायावादी युग की दो प्रमुख प्रवृत्तियाँ लिखिए।



(i) श्रृंगार और प्रेम वेदना

(ii) सौन्दर्य भावना




 (ख) आधुनिक काल के किसी एक कवि और उसकी एक रचना का नाम लिखिए।


रामनरेश त्रिपाठी – पथिक


(ग) निम्नलिखित रचनाओं में से किसी एक रचना के रचयिता का नाम लिखिए


(अ) युगपथ


(ब) जमीन पक रही है


(स) पंचवटी। – मैथिलीशरण गुप्त


(द) त्रिधारा


3. निम्नलिखित में से किसी एक गद्यांश के नीचे दिये प्रश्नों के उत्तर दीजिए।6


कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सदवृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि वृद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाह के समान होगी जो उस निरन्तर उन्नति की और उठाती जाएगी।


प्र० 


(अ) प्रस्तुत अवतरण के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।


पाठ का नाम – मित्रता


लेखक – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


(ब) रेखांकित अशों की व्याख्या कीजिए। 


रेखांकित अंश की व्याख्या आचार्य शुक्ल जी कहते हैं कि मानव जीवन पर संगति का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। बुरे और दुष्ट लोगों की संगति घातक बुखार की तरह हानिकारक होती है। जिस प्रकार भयानक ज्वर व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्ति व स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है तथा कभी-कभी रोगी के प्राण भी ले लेता है, उसी प्रकार बुरी संगति में पड़े हुए व्यक्ति की बुद्धि, विवेक, सदाचार, नैतिकता व सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं तथा वह उचित-अनुचित व अच्छे-बुरे का विवेक भी खो देता है। मानव जीवन में युवावस्था सबसे महत्त्वपूर्ण अवस्था होती है। कुसंगति किसी भी युवा पुरुष की सारी उन्नति व प्रगति को उसी प्रकार बाधित करती है, जिस प्रकार किसी व्यक्ति के पैर में बँधा हुआ भारी पत्थर उसको आगे नहीं बढ़ने देता, बल्कि उसकी गति को अवरुद्ध करता है। उसी प्रकार कुसंगति भी हमारे विकास व उन्नति के मार्ग को अवरुद्ध करके अवनति व पतन की ओर धकेल देती है तथा दिन-प्रतिदिन विनाश की ओर अग्रसर करती है। दूसरी ओर, यदि युवा व्यक्ति की संगति अच्छी होगी तो वह उसको सहारा देने वाली बाहु (हाथ) के समान होगी, जो अवनति के गर्त में गिरने वाले व्यक्ति की भुजा पकड़कर उठा देती है तथा सहारा देकर खड़ा कर देती है और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर कर देती है।



(स) युवा पुरुष की संगति के बारे में क्या कहा गया है?


उत्तर– युवा पुरुष यदि बुरी संगति करता है, तो विकास की अपेक्षा उसका विनाश होना तय है। यदि वह अच्छी संगति करेगा, तो उन्नति के पथ पर आगे बढ़ता जाएगा।




आज हम इसी निर्मल, शुद्ध, शीतल और स्वस्थ अमृत की तलाश में है और हमारी इच्छा, अभिलाशा और प्रयत्न है कि वह इन सभी अलग-अलग बहती हुई नदियों में अभी भी उसी तरह बहता रहे और इनको वह अमर तत्व देता रहे, जो जमाने के हजारों थेपड़ों को बरदाश्त करता हुआ भी आज हमारे अस्तित्व को कायम रखे हुए है और रखेगा।


प्र० (अ) प्रस्तुत गद्याशं के पाठ और लेखक का नाम लिखिए। 


(ब) गद्याश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(स) हमारे अस्तित्व को कौन कायम रखे हुए हैं? 


(द) किस अमर तत्व की ओर संकेत किया गया है?


4. निम्न पद्यांश में से किसी एक की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा उसका काव्य सौन्दर्य भी लिखिए।


दुसह दुराज प्रजातु कौं, क्यों न बढ़े दुख-दंदु । अधिक अँधेरी जग करत, मिलि मावस रवि-चंदु ।।


अथवा


चढ़ चेतक पर तलवार उठा, रखता था भूतल पानी को ।।


राणा प्रताप सिर काट-काट करता था सफल जवानी को ।।


सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड के 'पद' शीर्षक से उद्धृत है। यह श्री श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित काव्य 'हल्दीघाटी' से लिया गया है।



प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने महाराणा प्रताप और उनके सेना नायक के वीरत्व का वर्णन किया है।


व्याख्या – महाराणा प्रताप की सेना और मुगलों की सेना के मध्य भयानक युद्ध चल रहा था। जिस प्रकार भूमि के नीचे पानी में हलचल होने पर उफान उठता है और उस उफान में बहुत कुछ तहस-नहस हो जाता है। उसी प्रकार अपने मान-सम्मान की रक्षा हेतु महाराणा प्रताप के हृदय में उफान उठ गया था। उन्होंने अपने घोड़े पर बैठकर तलवार उठा ली और अपने विरोधियों का संहार करना आरम्भ कर दिया।


मेवाड़ के राजकुमार ने मुगलों की सेनाओं के सर धड़ अलग करके अपनी जवानी की सार्थकता को सिद्ध किया था। महाराणा प्रताप के इस रौद्र रूप को देखकर मेवाड़ सेनानायक और सिपाहियों में उत्साह का संचार होने लगा था। पहले की अपेक्षा अब मेवाड़ की सेना ने भी युद्ध में अपना प्रयास बढ़ा दिया और विपक्षियों को ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


काव्य सौन्दर्य


भाषा       खड़ी बोली


रस         वीर


शैली       प्रबन्ध


गुण      ओज


शब्द-शक्ति।    अभिधा


छन्द – मुक्त


अलंकार


 'चढ़ चेतक' में 'च' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है। काट-काट में काट वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है



5. (क) निम्नलिखित लेखको मे से किसी एक लेखक का जीवन परिचय एवं उनकी एक रचना का नाम लिखिए।    3


(अ) जयशंकर प्रसाद


(ब) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद


(स) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


उत्तर


जय शंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय


जीवन-परिचय



जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उनका जन्म 1890 ई. में काशी के  'सुँघनी साहू' नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके यहाँ तम्बाकू का व्यापार होता था। उनके पिता देवीप्रसाद और पितामह शिवरत्न साहू थे। इनके पितामह परम शिवभक्त और दयालु थे। उनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य प्रेमी थे। प्रसाद जी का बचपन सुखमय था। बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थों की यात्राएँ कीं। यात्रा से लौटने के बाद पहले उनके पिता का और फिर चार वर्ष पश्चात् ही उनकी माता का निधन हो गया।



प्रसाद जी की शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण का प्रबन्ध उनके बड़े भाई शम्भूरत्न ने किया और क्वीन्स कॉलेज में उनका नाम लिखवाया, किन्तु उनका मन वहाँ न लगा। उन्होंने अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन स्वाध्याय से घर पर ही प्राप्त किया। उनमें बचपन से ही साहित्यानुराग था। वे साहित्यिक पुस्तकें पढ़ते और काव्य रचना करते रहे। पहले तो उनके भाई उनकी काव्य-रचना में बाधा डालते रहे, परन्तु जब उन्होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्य-रचना में अधिक लगता है, तब उन्होंने इसकी पूरी स्वतन्त्रता उन्हें दे दी। प्रसाद जी स्वतन्त्र रूप से काव्य-रचना के मार्ग पर बढ़ने लगे। इसी बीच उनके बड़े भाई शम्भूरन जी का निधन हो जाने से घर की स्थिति खराब हो गई। व्यापार भी नष्ट हो गया। पैतृक सम्पत्ति बेचने से कर्ज से मुक्ति तो मिली,


पर वे क्षय रोग का शिकार होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में 15 नवम्बर, 1937 को इस संसार से विदा हो गए।



रचनाएँ –  जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के स्वनाम धन्य रत्न हैं। उन्होंने काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है।



'कामायनी' जैसे विश्वस्तरीय महाकाव्य की रचना करके प्रसादजी ने हिन्दी साहित्य को अमर कर दिया। कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई अद्वितीय रचनाओं का सृजन किया। नाटक के क्षेत्र में उनके अभिनव योगदान के फलस्वरूप नाटक विधा में 'प्रसाद युग' का सूत्रपात हुआ। विषय वस्तु एवं शिल्प की दृष्टि से उन्होंने नाटकों को नवीन दिशा दी। भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय भावना, भारत के अतीतकालीन गौरव आदि पर आधारित 'चन्द्रगुप्त', 'स्कन्दगुप्त' और 'ध्रुवस्वामिनी' जैसे प्रसाद-रचित नाटक विश्व स्तर के साहित्य में अपना बेजोड़ स्थान रखते हैं। काव्य के क्षेत्र में वे छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक कवि थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं



काव्य –  आँसू, कामायनी, चित्राधार, लहर और झरना।



 कहानी – आँधी, इन्द्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि।



उपन्यास – तितली, कंकाल और इरावती।



नाटक –  सज्जन, कल्याणी - परिणय, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, प्रायश्चित, जनमेजय का नागयज्ञ, विशाखा, ध्रुवस्वामिनी आदि।



निबन्ध काव्य-कला एवं अन्य निबन्ध।



भाषा-शैली –  प्रसाद जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है। भावमयता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग न के बराबर हुआ है। प्रसाद जी ने विचारात्मक, चित्रात्मक, भावात्मक, अनुसन्धानात्मक तथा इतिवृत्तात्मक शैली का प्रयोग किया है।



हिन्दी साहित्य में स्थान



युग प्रवर्तक साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने गद्य और काव्य दोनों ही विधाओं में रचना करके हिन्दी साहित्य को अत्यन्त समृद्ध किया है। 'कामायनी' महाकाव्य उनकी कालजयी कृति है, जो आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ रचना कही जा सकती है।



अपनी अनुभूति और गहन चिन्तन को उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। हिन्दी साहित्य में जयशंकर प्रसाद का स्थान सर्वोपरि है।




(ख) निम्नलिखित कवियों मे से किसी एक कवि का जीवन परिचय एवं उनकी एक रचना का नाम लिखिए।

3


(अ) तुलसीदास


(ब) बिहारी


(स) सुमित्रानंदन पंत



बिहारी जी का जीवन परिचय


जीवन परिचय- कवि बिहारी जी का जन्म 1603 ई० में ग्वालियर के पास बसुआ (गोविंदपुर गांव) में माना जाता है। उनके पिता का नाम पंडित केशव राय चौबे था। बचपन में ही ये अपने पिता के साथ ग्वालियर से ओरछा नगर आ गए थे। यहीं पर आचार्य केशवदास से इन्होंने काव्यशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की और काव्यशास्त्र में पारंगत हो गए।


ये माथुर चौबे कहे जाते हैं। इनका बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ। युवावस्था में ये अपनी ससुराल मथुरा में जाकर रहने लगे-




"जन्म ग्वालियर जानिए, खंड बुंदेले बाल।


तरुनाई आई सुधर, मथुरा बसि ससुराल।।"




बिहारी जी को अपने जीवन में अन्य कवियों की अपेक्षा बहुत ही कटु अनुभवों से गुजरना पड़ा, फिर भी हिंदी साहित्य को इन्होंने काव्य-रूपी अमूल्य रत्न प्रदान किया है। बिहारी, जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के आश्रित कवि माने जाते हैं। कहा जाता है कि जयसिंह नई रानी के प्रेमवश में होकर राज-काज के प्रति अपने दायित्व भूल गए थे, तब बिहारी ने उन्हें एक दोहा लिखकर भेजा,




नहि परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।


अली कली ही सौं विंध्यौ, आगे कौन हवाल।।



जिससे प्रभावित होकर उन्होंने राज-काज में फिर से रुचि लेना शुरू कर दिया और राज दरबार में आने के पश्चात उन्होंने बिहारी को सम्मानित भी किया। आगरा आने पर बिहारी जी की भेंट रहीम से हुई। 1662 ईस्वी में बिहारी जी ने 'बिहारी सतसई' की रचना की। इसके पश्चात बिहारी जी का मन काव्य रचना से भर गया और ये भगवान की भक्ति में लग गए। 1663 ई० में ये रससिद्ध कवि पंचतत्व में विलीन हो गए।





रचनाएं- 'बिहारी सतसई' मुक्तक शैली में रचित बिहारी जी की एकमात्र कृति है, जिसमें 723 दोहे हैं। बिहारी सतसई को 'गागर में सागर' की संज्ञा दी जाती है। वैसे तो बिहारी जी ने रचनाएं बहुत कम लिखी हैं, फिर भी विलक्षण प्रतिभा के कारण इन्हें महाकवि के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है।




भाषा-शैली- बिहारी जी ने साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा साहित्यिक होने के साथ-साथ मुहावरेदार भी है। इन्होंने अपनी रचनाओं में मुक्तक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली के अंतर्गत ही इन्होंने 'समास शैली'  का विलक्षण प्रयोग भी किया है। इस शैली के माध्यम से ही इन्होंने दोहे जैसे छंद को भी सशक्त भावों से भर दिया है।




हिंदी साहित्य में स्थान- बिहारी जी रीतिकाल के अद्वितीय कवि हैं। परिस्थितियों से प्रेरित होकर इन्होंने जिस साहित्य का सृजन किया, वह साहित्य की अमूल्य निधि है। बिहारी के दोहे रस के सागर हैं, कल्पना के इंद्रधनुष है व भाषा के मेघ हैं। ये हिंदी साहित्य की महान विभूति हैं, जिन्होंने अपनी एकमात्र रचना के आधार पर हिंदी साहित्य जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।



कई कवियों ने इनके दोहों पर आधारित अन्य छंदों की रचना की है। इनके दोहे सीधे हृदय पर प्रहार करते हैं। इनके दोहों के विषय में निम्नलिखित उक्ति प्रसिद्ध है-




"सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।


देखन में छोटे लगै, घाव करैं गंभीर।।"






6. निम्नलिखित का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए। सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामयाः ।


सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत् ॥


अथवा


॥ॐ ॥ श्वेतकेतुरूणेय आस त ह पितोवाच श्वेतकेतो वस ब्रह्मचर्यन


वै सोम्यास्मत्कुलीमोड मनुष्य ब्रह्मबन्धुरिव भवतीति ।।


7. (क) अपनी पाठ्य पुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' से कण्ठस्थ किया हुआ कोई एक इलोक लिखिए जो इस प्रश्न पत्र मे न आया हो।


उत्तर


कोकिल! यापय दिवसान् तावद् विरसान् करीलविटपेषु । 

यावन्मिलदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लुसति।।



(ख) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्ही दो प्रश्नों का उत्तर संस्कृत मे दीजिए।     2


(क) दुमुर्ख: क: आसीत ?


उत्तर– दुमुर्ख चांडाल: आसीत।


(ख) श्वेतकेतु क: आसीत? 


उत्तर– स्वेतकेतु: आरूणे: आसीत



(ग) कि जिल्ला भोश्य से महीम?


(घ) वातात् शीघ्रतर किम् अस्ति ?


(इ) आतुरस्य मित्र कि अस्ति?





8. (क) करूण अथवा हास्य रस की परिभाषा लिखिए तथा एक उदाहरण दीजिए। 2 


उत्तर परिभाषा –  प्रिय व्यक्ति या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के संयोग से शोक स्थायी भाव का संचार होता है।


उदाहरण


अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ। खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल ।।



(ख) उत्प्रेक्षा अथवा यमक अलंकार का लक्षण तथा उदाहरण लिखिए। 


उत्प्रेक्षा अलंकार


परिभाषा जब उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है, तब 'उत्प्रेक्षा अलंकार' होता है। इसमें प्रायः मनु, मानो, मनौ, मनहुँ, जनु, जानो, निश्चय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।


उदाहरण


(i) सोहत ओढ़े पीत-पट स्याम सलोने गात। मनहुँ नीलमणि सैल पर आतपु पर्यो प्रभात ।।


• इस काव्यांश में श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर नीलमणि पर्वत की तथा पीत-पट पर प्रातःकालीन धूप की सम्भावना व्यक्त की गई है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।



(ग) निम्नलिखित में प्रयुक्त छन्द को पहचानकर लिखिए। 2


बंदहुँ मुनि पद कंज. रामायन जेहि निरमयउ।


सरवर सुकोमल मजु, दोस रहित दूसन सहित।


उत्तर –  प्रस्तुत उदाहरण में सोरठा छन्द है। स्पष्टीकरण- इस उदाहरण के पहले (बंदहूँ मुनि पद कंज) और तीसरे (सरवर सुकमल मंजु) चरणों में 11-11 मात्राएँ तथा दूसरे (रामायन जेहि निरमयउ) और चौथे (दोस रहित दूसन रहित) चरणों में 13-13 मात्राएँ हैं तथा सम चरणों के अन्त में जगण (ISI) का निषेध है। अतः यह सोरठा छन्द का उदाहरण है।


9. (क) निम्नलिखित उपसर्गो मे किन्ही तीन के मेल से एक-एक शब्द बनाइए। 3


(1) अधि।    – अधिकार


 (2) अति      – अतिशीघ्र


(3) उप।     – उपनयन


(5) सु 


(6) अभि


(ख) निम्नलिखित में से किन्ही दो प्रत्ययों का प्रयोग करके एक-एक शब्द


बनाइए।


(1) आवट।      – बनावट


(2) ईय


(3) आवा


(4) आइन


(5) हट।         – गरमाहट


(ग) निम्नलिखित में से किन्हीं दो का समास विग्रह कीजिए तथा समास का नाम


लिखिए।


(1) अल्पज्ञान 


(2) अष्टग्रह।    – आठ ग्रहों का समूह– दिगु


(3) अन्न-जल। – अन्न और जल– द्वंद


(4) आशा-निरासा


(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो के तत्सम रूप लिखिए।


(1) बुद्धा


(2) अनाज – अनाज


(4) श्राप    – शाप 


(ङ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो शब्दो के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए। 2


(1) रात्रि


(2) गाय  – गौ, धेनु


(3) गंगा   – मंदाकिनी, भागीरथी


10. (क) निम्न में से किन्हीं दो में सन्धि कीजिए और सन्धि का नाम लिखिए।


(1) आदि + अन्त


(2) सदा + एव – सदेव – यण


(3) अस्य + एव


(4) गुरु + आज्ञा।    –  गुरुज्ञा


(5) कवि + आदि


(ख) निम्न शब्दों के रूप तृतीया विभक्ति एकवचन में लिखिए।


(1) रमा या हरि


(2) मति या नदी। 


उत्तरमति – मत्या


(ग) निम्न में से किसी एक की धातु, लकार, • पुरुष । तथा वचन लिखिए।


(1) पठाम:


उत्तर

 

धातु – पठ


लाकर – लटलकार


पुरुष – उत्तम


वचन– बहुवचन


(2) पसि


(3) कुरुतम्


(3) घरम


(4) पर्वत



(घ) निम्नलिखित में से किन्ही दो का संस्कृत में अनुवाद कीजिए ।       2


(1) दान से कीर्ति बढ़ती है।


(2) छात्रों को पढ़ने में मन लगाना चाहिए।


(3) हमे अपना घर साफ रखना चाहिए। 


(4) हम सब भारत के नागरिक हैं।


11. (क) निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए।


 (3) प्रदूषण - एक समस्या


 (4) बेरोजगारी की समस्या


(1) कोविड की चुनौती


(2) बढ़ती जनसंख्या



बेरोजगारी की समस्या और समाधान पर निबंध



मुख्य बिन्दु – प्रस्तावना, बेरोज़गारी का अर्थ, बेरोज़गारी के कारण, बेरोज़गारी कम करने के उपाय, बेरोज़गारी के दुष्प्रभाव, उपसंहार




 प्रस्तावना – आज अनेक समस्याएँ भारत के विकास में बाधा उत्पन्न कर रही हैं।बेरोज़गारी की समस्या इनमें से एक है। हर वर्ग का युवक इस समस्या से जूझ रहा है। 




बेरोज़गारी का अर्थ – बेकारी का अर्थ है-जब कोई योग्य तथा काम करने का इच्छुक व्यक्ति काम माँगे और उसे काम न मिल सके अथवा जो अनपढ़ और अप्रशिक्षित हैं, वे भी काम के अभाव में बेकार हैं।



कुछ बेरोज़गार काम पर तो लगे हैं, लेकिन वे अपनी योग्यता से बहुत कम धन कमा पाते हैं, इसलिए वे स्वयं को बेरोज़गार ही मानते हैं। बेरोज़गारी के कारण देश का आर्थिक विकास रुक जाता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, यह संख्या वर्ष 1985 में 3 करोड़ से अधिक थी, जबकि एक अन्य अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष यह संख्या लगभग 70 लाख की गति से बढ़ रही है।



बेरोज़गारी के कारण



बेरोज़गारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं। 




1. जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होना।



2. शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक शिक्षा के स्थान पर सैद्धान्तिक शिक्षा को अधिक महत्त्व दिया जाना।



3. कुटीर उद्योगों की उपेक्षा करना।



4. देश के प्राकृतिक संसाधनों का पूरी तरह से उपयोग नहीं करना। 5. भारतीय कृषि की दशा अत्यन्त पिछड़ी होने के कारण कृषि क्षेत्र में भी बेरोज़गारी का बढ़ना।



6. कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी के कारण उद्योगों को संचालित करने के लिए विदेशी कर्मचारियों को बाहर से लाना।



बेरोज़गारी कम करने के उपाय –



बेरोज़गारी कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए



1. जनता को शिक्षित कर जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना। 



2. शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन तथा सुधार करना।



3. कुटीर उद्योगों की दशा सुधारने पर ज़ोर देना।



4. देश में विशाल उद्योगों की अपेक्षा लघु उद्योगों पर अधिक ध्यान देना। मुख्य उद्योगों के साथ-साथ सहायक उद्योगों का भी विकास करना।




5. सड़कों का निर्माण, रेल परिवहन का विकास, पुलों व बाँधों का निर्माण तथा वृक्षारोपण आदि करना, जिससे अधिक-से-अधिक संख्या में बेरोज़गारों को रोज़गार मिल सके।



6. सरकार द्वारा कृषि को विशेष प्रोत्साहन एवं सुविधाएँ देना, जिससे गाँवों युवा को छोड़कर शहरों की ओर न जाएँ।



बेरोज़गारी के दुष्प्रभाव – बेरोज़गारी अपने आप में एक समस्या होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक समस्याओं को भी जन्म देती है। उन्हें यदि हम बेरोज़गारी के दुष्परिणाम अथवा दुष्प्रभाव कहें, तो अनुचित नहीं होगा। बेरोज़गारी के कारण निर्धनता में वृद्धि होती है तथा भुखमरी की समस्या उत्पन्न होती है। बेरोज़गारी के कारण मानसिक अशान्ति की स्थिति में लोगों के चोरी, डकैती, हिंसा, अपराध, हत्या आदि की ओर प्रवृत्त होने की पूरी सम्भावना बनी रहती है। अपराध एवं हिंसा में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण बेरोज़गारी ही है। कई बार तो बेरोज़गारी की भयावह स्थिति से तंग आकर लोग आत्महत्या भी कर बैठते हैं।



उपसंहार – बेरोज़गारी किसी भी देश के लिए एक अभिशाप से कम नहीं है। इसके कारण नागरिकों का जीवन स्तर बुरी तरह से प्रभावित होता है तथा देश की आर्थिक वृद्धि भी बाधित होती है, इसलिए सरकार तथा सक्षम निजी संस्थाओं द्वारा इस समस्या को हल करने लिए ठोस कदम उठाए जाने की तत्काल आवश्यकता है।






12. अपने खण्ड काव्य के आधार पर निम्न प्रश्नो मे से किसी एक का उत्तर दीजिए। 3


(क) 'मातृभूमि के लिए ' खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए। 'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के प्रधान पात्र के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।


(ख)


(ग)


'तुमुल' खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्र चित्रण कीजिए।


'तुमुल' खण्डकाव्य के 'मेघनाद-प्रतिज्ञा' सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।


'कर्ण' खण्डकाव्य के षष्ट सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।


'कण' खण्डकाव्य के नायक का चरित्राकन कीजिए।


(घ) 'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का कथानक लिखिए। 'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के उस पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया हो।


(ङ) 'ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए। 'ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।


(च) 'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य का कथावस्तु लिखिए। 'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के आधार पर भरत के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।


(छ) 'मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए।


'मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग की कथावस्तु लिखिए।


(ज) 'अग्रपूजा' खण्डकाव्य की कथावस्तु सक्षेप में लिखिए। 'अग्रपूजा' खण्डकाव्य के नायक का चरित्राकन कीजिए।


(झ) 'जय सुभाष ' खण्डकाव्य के चौथे सर्ग की कथावस्तु लिखिए। 'जय सुभाष' खण्डकाव्य के आधार पर सुभाषचन्द्र बोस का चरित्रांकन कीजिए।


हिन्दी [ कक्षा-10 J



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