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कक्षा 10वी हिन्दी संस्कृत खण्ड अध्याय 2 अन्योक्तिविलास : (अन्योक्तियों का सौन्दर्य) के सभी गद्यांशों का सन्दर्भ सहित अनुवाद

 कक्षा 10वी हिन्दी संस्कृत खण्ड अध्याय 2 अन्योक्तिविलास : (अन्योक्तियों का सौन्दर्य) के सभी गद्यांशों का सन्दर्भ सहित अनुवाद

प्रश्न 1. कूप: किमर्थ दुःखम् अनुभवति?    उत्तर अहम् नितरी नीच: अस्मि इति विचार्य कृपः दुःखम् अनुभवति।   प्रश्न 2. अत्यन्त सरस हृदयो यतः किं ग्रहीतासि?    उत्तर अत्यन्त सरस हृदयो यतः परेषा गुणा ग्रहोतासि ।   प्रश्न 3. नीर-क्षीर-विषये हंसस्य का विशेषताः अस्ति   उत्तर यत् हंस: नीरें और पृथक पृथक करोति। इदमेव तस्य विशेषताः अस्ति।     प्रश्न 4. कवि हंसं किं बोधयति?    उत्तर कवि हंस बोधयति यत् त्या नीर क्षीर विवेके आलस्यं न कुर्यात्   प्रश्न 5. कवि कोकिल कि कथयति?   अथवा    कतिः कोकिलं किं बोधयति ?   उत्तर कविः कोकिलं कथयति यत् यावत् रसालः न समुल्लसति तावत् त्वं करीलवृक्षेषु दिवसान् यापया   प्रश्न 6. कवि चातकं किम उपदिशति (शिक्षयति)?   उत्तर कवि चातकम् उपदिशति यत् यथा सर्वे अम्भोदा: जलं न यच्छन्ति तथैव सर्वे अनाः घनं न यच्छन्ति, अतः सर्वेषां गुरतः दीनं वचन मा ब्रूहि   प्रश्न 7. सुवर्णस्य मुख्यं दुःखं किम् अस्ति?    अथवा    स्वर्णस्य किं मुख्य दुःखम् अस्ति?   उत्तर सुवर्णस्य मुख्यं दुःखं अस्ति यत् जनाः नाम् गुज्जया सह तोलयन्ति।     प्रश्न 8. कोशगतः भ्रमर किम अचिन्तयत् ?    उत्तर कोशगत भ्रमरः अचिन्तयत् यत् रात्रिर्गमिष्यति, सुप्रभातं भविष्यति,भास्वानुदेस्यति पङ्कजालि: हसिष्यति।    प्रश्न 9. यदा भ्रमरः चिन्तयति तदा गजः किम अकरोत?   अथवा    गजः काम् उज्जहार?   उत्तर यदा भ्रमरः चिन्तयति तदा गज: नलिनीम् उज्जहार।

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श्लोक 1


नितरां नीचोऽस्मीति त्वं खेदं कूप! कदापि मा कृथाः।

अत्यन्तसरसहृदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि ।।




सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'अन्योक्तिविलासः' नामक पाठ से लिया गया है।


प्रस्तुत श्लोक में अपने अवगुणों पर दुःखी न होने तथा दूसरे के गुणों को ग्रहण करने को श्रेष्ठ बताया गया है।


अनुवाद हे कुएँ! 'मैं अत्यधिक नीचा (गहरा) हूँ', तुम इस प्रकार कभी दुःखी मत होओ, क्योंकि तुम अत्यन्त सरस हृदय (जल से भरे हुए) हो और दूसरों के गुणों (रस्सियों) को ग्रहण करने वाले हो।


श्लोक 2


नीर-क्षीर- विवेके हंसालस्य त्वमेव तनुषे चेत् । विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतं पालयिष्यति कः।।



सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'अन्योक्तिविलासः' नामक पाठ से लिया गया है।



प्रस्तुत श्लोक में अपने कुलधर्म व कर्त्तव्यपालन की शिक्षा दी गई है। 


अनुवाद हे हंस! यदि तुम ही नीर और क्षीर अर्थात् दूध और पानी का विवेक करने में आलस्य करोगे, तो इस संसार में कौन ऐसा (व्यक्ति) है, जो अपने कुलधर्म (दूध और पानी को अलग करना) व कर्तव्य का पालन करेगा ?


श्लोक 3


कोकिल! यापय दिवसान तावद् विरसान करीलविटपेषु। यावन्मिलदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लुसति ।।



सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'अन्योक्तिविलासः' नामक पाठ से लिया गया है।


प्रस्तुत श्लोक में बुरे दिनों में भी धैर्य रखने को प्रेरणा दी गई है। 


अनुवाद हे कोयल! जब तक भौरों से युक्त को अम का पेड़ लहराने नहीं लगता, तब तक तुम अपने नीरस (शुष्क) दिन को भी प्रकार से करील के पेड़ पर ही बिताओ। भाव यह है कि जब तक अच्छे दिन नहीं आते तब तक व्यक्ति को अपने बुरे दिनों को किसी न किसी प्रकार से व्यतीत कर चाहिए।


श्लोक 4


रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयताम्। अम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नेतादृशाः ।


केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा। यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ।


सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'अन्योक्तिविलासः' नामक पाठ से लिया गया है।



प्रस्तुत श्लोक में चातक के माध्यम से यह बताया गया है कि हमें किसी के सामने दीन वचन बोलकर याचना नहीं करनी चाहिए।


अनुवाद हे हे चातक! सावधान मन से क्षण भर सुनो। आसमान में बादल रहते हैं, पर सभी एक जैसे (दानी, उदार) नहीं होते हैं। कुछ तो बहुत से पृथ्वी को गीला कर देते हैं, पर कुछ तो व्यर्थ में गर्जना करते हैं। अतः तुम जिस-जिस को देखते हो अर्थात् किसी को भी देखकर उसके सामने दीन वचन मत कहो।


भाव यह है कि हर किसी के सामने याचना नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हर कोई दानी नहीं होता, जो हमें कुछ दे।


श्लोक 5


न वै ताडनात तापनाद वह्निमध्ये

न वै विक्रयात् क्लिश्यमानोऽहमस्मि ।

सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं

यतो मां जना गुञ्जया तोलयन्ति ।।



सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'अन्योक्तिविलासः' नामक पाठ से लिया गया है।




प्रस्तुत श्लोक में स्वर्ण के माध्यम से गुणवान और स्वाभिमानी व्यक्ति के मन की व्यथा को व्यक्त किया गया है।



अनुवाद में (स्वर्ण) न तो पीटे जाने से, न अग्नि में तपाए जाने से और न ही बेचे जाने से दुःखी होता हूँ। मेरे दुःख का सबसे बड़ा रण तो है कि लोग है कि मेरी तुलना किसी तुच्छ वस्तु से की जाती है अर्थात् गुणवान व स्वाभिमानी मुझे रत्ती (घुँघची) से तोलते हैं। सोने का अर्थात् मेरे दुःख का कारण तो एक ही है कि मेरी तुलना किसी तुच्छ वस्तु से की जाती है अर्थात गुणवान व स्वाभिमानी व्यक्ति को कष्टों को सहने में इतनी पीड़ा नहीं होती, जितनी मानसिक पीड़ा उसके स्वाभिमान को ठेस लगने से होती है।




श्लोक 6


रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभात।

भास्वानुदेष्यति हसिस्यति पङ्कजालिः ।। इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे। हा हन्त हन्त! नलिनी गज उज्जहारः।।


सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'अन्योक्तिविलासः' नामक पाठ से लिया गया है।



प्रस्तुत श्लोक में कमलिनी में बन्द भौरे के माध्यम से जीवन की क्षणभंगुरता को बताया गया है।


अनुवाद खिले कमल के पराग का रसपान करता कोई भौंरा सूर्यास्त होने पर कमल में बन्द हो गया। वह रात भर यही सोचता रहा कि 'रात्रि बीत जाएगी, सुन्दर सवेरा होगा, सूर्य उदय होगा, कमल के झुण्ड खिल जाएँगे। दुःख का विषय है कि कमल की पंखुड़ियों में बन्द भौरे के इस प्रकार की बातें सोचते-सोचते किसी हाथी ने कमलिनी को उखाड़ लिया (और भौरा कमल के "पुष्प में बन्द रह गया)। भाव यह है कि व्यक्ति सोचता कुछ है, पर ईश्वर की इच्छा से कुछ और ही हो

जाता है।


            प्रश्न उत्तर


प्रश्न 1. कूप: किमर्थ दुःखम् अनुभवति? 


उत्तर अहम् नितरी नीच: अस्मि इति विचार्य कृपः दुःखम् अनुभवति।


प्रश्न 2. अत्यन्त सरस हृदयो यतः किं ग्रहीतासि?


 उत्तर अत्यन्त सरस हृदयो यतः परेषा गुणा ग्रहोतासि ।


प्रश्न 3. नीर-क्षीर-विषये हंसस्य का विशेषताः अस्ति


उत्तर यत् हंस: नीरें और पृथक पृथक करोति। इदमेव तस्य विशेषताः अस्ति। 



प्रश्न 4. कवि हंसं किं बोधयति? 


उत्तर कवि हंस बोधयति यत् त्या नीर क्षीर विवेके आलस्यं न कुर्यात्


प्रश्न 5. कवि कोकिल कि कथयति?


अथवा 


कतिः कोकिलं किं बोधयति ?


उत्तर कविः कोकिलं कथयति यत् यावत् रसालः न समुल्लसति तावत् त्वं करीलवृक्षेषु दिवसान् यापया


प्रश्न 6. कवि चातकं किम उपदिशति (शिक्षयति)?


उत्तर कवि चातकम् उपदिशति यत् यथा सर्वे अम्भोदा: जलं न यच्छन्ति तथैव सर्वे अनाः घनं न यच्छन्ति, अतः सर्वेषां गुरतः दीनं वचन मा ब्रूहि


प्रश्न 7. सुवर्णस्य मुख्यं दुःखं किम् अस्ति? 


अथवा 


स्वर्णस्य किं मुख्य दुःखम् अस्ति?


उत्तर सुवर्णस्य मुख्यं दुःखं अस्ति यत् जनाः नाम् गुज्जया सह तोलयन्ति। 



प्रश्न 8. कोशगतः भ्रमर किम अचिन्तयत् ?


 उत्तर कोशगत भ्रमरः अचिन्तयत् यत् रात्रिर्गमिष्यति, सुप्रभातं भविष्यति,भास्वानुदेस्यति पङ्कजालि: हसिष्यति। 


प्रश्न 9. यदा भ्रमरः चिन्तयति तदा गजः किम अकरोत?


अथवा


 गजः काम् उज्जहार?


उत्तर यदा भ्रमरः चिन्तयति तदा गज: नलिनीम् उज्जहार।


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