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अलंकार किसे कहते हैं कितने प्रकार के होते हैं सभी की परिभाषा उदाहरण सहित//छंद किसे कहते हैं कितने प्रकार का होता है सभी की परिभाषा उदाहरण सहित

  अलंकार किसे कहते हैं कितने प्रकार के होते हैं सभी की परिभाषा उदाहरण सहित 


छंद किसे कहते हैं कितने प्रकार का होता है सभी की परिभाषा उदाहरण सहित


सोरठा छंद और रोला छंद की परिभाषा उदाहरण सहित

              


उपमा अलंकार, रूपक अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित



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                     अलंकार


अर्थ एवं परिभाषा


'अलंकार' दो शब्दों 'अलम्' तथा 'कार' से मिलकर बना है। अलम् का अर्थ ‘भूषण या सजावट' तथा कार का अर्थ 'करने वाला' होता है अर्थात् जो अलंकृत या भूषित करें वह अलंकार है। अलंकार का शाब्दिक अर्थ है-आभूषण। जिस प्रकार आभूषण शरीर की शोभा बढ़ाते हैं, वैसे ही अलंकार के प्रयोग से काव्य में चमत्कार, सौन्दर्य और आकर्षण उत्पन्न हो जाता है।


वस्तुतः भाषा को शब्द एवं शब्द के अर्थ से सुसज्जित एवं सुन्दर बनाने और आनन्द प्रदान करने वाली प्रक्रिया को 'अलंकार' कहा जाता है। 'अलंकार' काव्य भाषा के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। यह भाव की अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावी बनाते हैं।




अलंकार के प्रकार / भेद


अलंकार मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।


1. शब्दालंकार काव्य में शब्दों के प्रयोग द्वारा जो चमत्कार या सौन्दर्य उत्पन्न होता है, शब्दालंकार होता है। अनुपास, यमक और श्लेष प्रमुख शब्दालंकार हैं। 


2. अर्थालंकार ऐसे शब्द, जो वाक्य में प्रयुक्त होकर उसके अर्थ को चमत्कृत या अलंकृत करने वाला स्वरूप प्रदान करते हैं, 'अर्थालंकार' कहलाते हैं। 'अर्थालंकार' की निर्भरता शब्द पर न होकर शब्द के अर्थ पर होती है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, दृष्टान्त, मानवीकरण इत्यादि प्रमुख अर्थालंकार हैं।


3. उमयालंकार शब्द तथा अर्थ दोनों पर समान रूप से आश्रित रहने वाले अलंकार को 'उभयालंकार कहा जाता है। 


नोट नवीनतम पाठ्यक्रम के अन्तर्गत 'उपमा', 'रूपक' और 'उत्प्रेक्षा अलंकार को ही सम्मिलित किया गया है।


उपमा अलंकार


परिभाषा जब किसी वस्तु का वर्णन करने के लिए उससे अधिक प्रसिद्ध वस्तु से गुण, धर्म आदि के आधार पर उसकी समानता की जाती है, तब उपमा अलंकार होता है। अन्य शब्दों में, जहाँ पर उपमेय की उपमान से किसी समान धर्म के आधार पर तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है।


 उदाहरण


(1) मुख मयंक सम मंजु मनोहरा


• इस काव्य-पंक्ति में 'मुख' उपमेय है, 'चन्द्रमा' उपमान है, 'मनोहर' समान धर्म है तथा 'सम' वाचक शब्द होने से उपमा अलंकार परिपुष्ट हो रहा है।


 (ii) प्रातः नम था, बहुत नीला शंख जैसे।


• इस काव्य-पंक्ति में 'नम' की उपमा 'शंख' से दी जा रही है। यहाँ 'शंख' 'उपमान' है, 'नम' उपमेय है तथा 'नीला' समान धर्म है। यहाँ 'जैसे' समानतावाचक शब्द का प्रयोग हुआ है।


रूपक अलंकार 


परिभाषा जब उपमेय और उपमान में भेद होते हुए भी दोनों में अभिन्नता प्रकट की जाए और उपमेय को उपमान के रूप में दिखाया जाए, तो रूपक अलंकार होता है।


उदाहरण


(i) चरण कमल बन्दौ हरिराई।


• इस काव्य-पंक्ति में उपमेय 'चरण पर उपमान 'कमल' का आरोप कर दिया गया है। दोनों में अभिन्नता है, दोनों एक हैं। इस अभेदता के कारण यहाँ रूपक अलंकार है।


(ii) उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग

बिकसे सन्त-सरोज सब, हरषे लोचन भृंग।। •


 इस काव्य-पंक्ति में उपमेय 'राम' है तथा उपमान 'सूर्य' है।


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👉अलंकार संस्कृत और हिंदी दोनों भाषाओं में

उत्प्रेक्षा अलंकार



परिभाषा जब उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपनेय में उपमान सम्भावना व्यक्त की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें प्रायः मनु, मानो, मनो, मनहुँ, जनु, जानो, निश्चय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। 

उदाहरण


(1) सोहत आईपी-पट स्याम सलोने गात। 

मनहुँ नीलमणि सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।।


• इसकाव्यांश में श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर नीलमणि पर्वत की तथा पीत-पट पर प्रातःकालीन धूप की सम्भावना व्यक्त की गई है। अतः यही उत्प्रेक्षा अलंकार है।


(ii) चलो मनो आँगन कठि, ताते राते पायें।


• इस काव्य-पंक्ति मे चरणों के लाल होने का कारण बताते हुए कहा गया है मानो कठोर औंगन में चली हो, इसलिए पैर लाल हो गए होंगे। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।


संदेह अलंकारजब उपमेय और उपमान में समानता देखकर यह तय नहीं हो पाता है कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है, तब वहां संदेह अलंकार होता है। अथार्त जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ पर संदेह अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।

सन्देह अलंकार का उदाहरण

1. सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है। सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है। स्पष्टीकरण - साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साडी इसका निश्चय नहीं हो पाने के कारण सन्देह अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास अलंकार जब किसी भी वर्ण की बार-बार आवृत्ति हो तब जो चमत्कार होता है वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है।

अथवा 

जिस रचना में व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न होता है वहां पर अनुप्रास अलंकार होता है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

1."तरनि-तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये।"

2.कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि ।

3.प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि

4.बरसत बारिद बून्द गहि

5.जो खग हौं बसेरो करौं मिल, कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन ।

6.बुझत स्याम कौन तू गोरी । 

8.• कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि

9• चमक गई चपला चम चम

उपमा एवं उत्प्रेक्षा अलंकार में अन्तर


उपमा अलंकार में उपमेय' और 'उपमान' में समानता निश्चयपूर्वक प्रकट की जाती है। 


उदाहरण मुख चन्द्रमा के समान है। चरण कमल के समान है।


इन वाक्यों में 'मुख' तथा चन्द्रमा की और चरण' तथा 'कमल' के बीच समानता निश्चयपूर्वक प्रकट की गई है। इस प्रकार उपमा अलंकार में समानता समान गुण (धर्म) के आधार पर सामने आती है। उत्प्रेक्षा अलंकार में 'उपमेय और उपमान में समानता की सम्भावना मात्र प्रकट की जाती है।


 उदाहरण मुख मानो चन्द्रमा है। चरण मानो कमल है।


इन वाक्यों में मुख' तथा 'चरण के क्रमशः 'चन्द्रमा' और 'कमल' होने की सम्भावना प्रकट की गई है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।


उपमा एवं रूपक अलंकार में अन्तर


उपमा में 'उपमेय' और 'उपमान में समानता स्थापित की जाती है, किन्तु रूपक अलंकार में उपमेय' तथा 'उपमान' में अभेद स्थापित किया जाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण के अनुसार, उपमा अलंकार में 'मुख' को चन्द्रमा के समान माना जाता है, जबकि रूपक अलंकार में मुख' को 'चन्द्रमा' ही कहा जाता है।




                     प्रश्न उत्तर




प्रश्न 1. उपमा के चार अंग कौन-कौन से है? एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।


अथवा 


उपमा अलंकार की परिभाषा लिखकर एक उदाहरण दीजिए।


अथवा


 उपमा के चारों अवयवों का लक्षण सहित उल्लेख कीजिए। 


अथवा


 उपमा अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए। 


उत्तर परिभाषा जब किसी वस्तु का वर्णन करने हेतु उससे अधिक प्रसिद्ध वस्तु से गुण, धर्म आदि के आधार पर उसकी समानता की जाती है, तब उपमा अलंकार होता है। अन्य शब्दों में, जहाँ पर उपमेय की उपमान से किसी समान धर्म के आधार पर तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। 


उपमा अलंकार के अवयव या अंग


उपमा अलंकार के निम्न चार अवयव या अंग होते हैं


 (i) उपमेय जिसकी उपमा दी जाती है, वह उपमेय कहलाता है। 

(ii) उपमान जिससे उपमा दी जाती है अथवा जिससे तुलना की जाती है, वह उपमान होता है। 


(ii) समान धर्म उपमेय-उपमान का वह गुण, जिसके कारण दोनों में समता व्यक्त की जाती है, समान धर्म होता है।


(iv) वाचक शब्द समानता व्यक्त करने वाले शब्द वाचक शब्द कहलाते हैं.


जैसे-सम, सा, सी, सरिस, जैसे, इव, समान आदि।


उदाहरण


"सिन्धु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह


स्पष्टीकरण


उपरोक्त उदाहरण में सिन्धु' उपमान है, 'एक निर्वासित' उपमेव है, 'विस्तृत और अाह समान धर्म है तथा सा वाचक शब्द है। अतः यह उपमा अलंकार का उदाहरण है।


प्रश्न 2. रूपक अलंकार की परिभाषा तथा उदाहरण लिखिए।


अथवा

 रूपक अलंकार की परिभाषा सोदाहरण लिखिए। 


 उत्तर परिभाषा जब उपमेय और उपमान में भेद होते हुए भी दोनों में समता की जाए और उपमेय को उपमान के रूप में दिखाया जा रूपक अलंकार है।


"विज्ञान-बान पर चड़ी हुई सभ्यता बने जाती है।"


उदाहरण स्पष्टीकरण


उपरोक्त पंक्ति में 'विज्ञान' उपमेय तथा 'यान' उपमान है, परन्तु 'विज्ञान' पर यान' का भेदरहित आरोप है। अत: यह रूपक अलंकार का उदाहरण है।


प्रश्न 3. उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा लिखिए तथा एक उदाहरण दीजिए।


अथवा उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए। 


अथवा उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा सोदाहरण सहित लिखिए। 


 उत्तर परिभाषा जब उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।


 उदाहरण


"पाई अपूर्व थिरता मृदु वायु ने थी, मानो अचंचल विमोहित हो बनी थी।"


स्पष्टीकरण उपरोक्त काव्य-पंक्तियों में वायु के अचंचल अर्थात् स्थिर होने के कारण की सम्भावना करते हुए कहा गया है कि मानो वह मोहित हो गई है। वास्तव में, निर्जीव वायु को यहाँ मोहित माना जा रहा है, एक सम्भावना व्यक्त की जा रही है। अत: यह उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण है।


प्रश्न 4. उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अन्तर बताइए।



उत्तर उपमा अलंकार में 'उपमेय' और 'उपमान' की गुण, धर्म आदि सम्बन्धी समानता निश्चयपूर्वक प्रकट की जाती है, जबकि उत्प्रेक्षा अलंकार में उपमेय में उपमान की सम्भावना मात्र प्रकट की जाती है।


प्रश्न 5. "सोहत ओढ़े पीतु-पटु, स्याम सलोने गात मनो नीलमनि सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात।"


उत्तर उपरोक्त काव्य-पंक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार है। 


परिभाषा जब उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार उपस्थित होता है।


 



                         छन्द


अर्थ एवं परिभाषा


'छन्द' शब्द का शाब्दिक अर्थ है-'बन्धन'। जब वर्णों की संख्या, क्रम, मात्रा- गणना,तुक तथा यति गति आदि नियमों को ध्यान में रखकर शब्द योजना की जाती है, उसे'छन्द' कहते हैं। यह काव्य रचना का मूल आधार है। 'छन्द शब्द का सर्वप्रथम


उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। 'हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार, "अक्षर, अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, मात्र गणना तथा यति गति आदि से सम्बन्धित विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य रचना 'छन्द' कहलाती है। "


छन्द के अंग


छन्दबद्ध काव्य समझने अथवा रचना के लिए छन्द के निम्नलिखित अंगों का ज्ञान होना आवश्यक है।


1. चरण चरण या पाद छन्द की उस इकाई का नाम है, जिसमें अनेक छोटी-बड़ी ध्वनियों को सन्तुलित रूप से प्रदर्शित किया जाता है। साधारणतया छन्द के चार चरण होते हैं। पहले तथा तीसरे चरण को विषम चरण तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहते हैं।


2. मात्रा और वर्ण किसी ध्वनि के उच्चारण में जो समय लगता है, उसकी सबसे छोटी इकाई को मात्रा कहते हैं। छन्दशास्त्र में दो से अधिक मात्रा किसी वर्ण की नहीं होतीं। मात्रा स्वरों की होती है, व्यंजनों की नहीं। यही कारण है कि मात्राएँ गिनते समय व्यंजनों पर ध्यान नहीं दिया जाता। वर्ण का अर्थ अक्षर से है। इसके दो भेद होते हैं 


(i) ह्रस्व वर्ण जिन वर्णों के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व वर्ण कहते हैं। छन्दशास्त्र में इन्हें लघु कहा जाता है। इनकी एक मात्रा मानी

गई है तथा इनका चिह्न '' है।


 हिन्दी में अ, इ, उ तथा ॠ चार लघु वर्ण हैं।


लघु के नियम 


लघु के नियम निम्न हैं.


 ह्रस्व स्वर से युक्त व्यंजन लघु वर्ण कहलाता है। 


यदि लघु स्वर में स्वर के ऊपर चन्द्रबिन्दु () है, तो उसे लघु ही माना जाएगा; जैसे-सँग, हँसना आदि।



. छन्दों में कहीं-कहीं हलन्त ( ) आ जाने पर लघु ही माना जाता है। • ह्रस्व स्वर के साथ संयुक्त स्वर हो, तो भी लघु ही माना जाता है। कभी-कभी उच्चारण की सुविधा के लिए भी गुरु को लघु ही मान


लिया जाता है। संयुक्त वर्ण से पूर्व ह्रस्व स्वर पर जोर न पड़े, तो वह भी लघु लिया जाता है। .


मान


(ii) दीर्घ वर्ण जिन वर्णों के उच्चारण में ह्रस्व वर्ण से दोगुना समय लगता है, उन्हें दीर्घ वर्ण' कहते हैं। इन्हें गुरु भी कहा जाता है। इनकी दो मात्राएँ होती हैं तथा इनका चिह्न 'S' है। आ, ई, ऊ, ओ, औ आदि दीर्घ वर्ण हैं।


गुरु के नियम


गुरु के नियम निम्न हैं


दीर्घ स्वर और उससे युक्त व्यंजन गुरु माने जाते हैं। 


यदि ह्रस्व स्वर के पश्चात् विसर्ग (:) आ जाए, तो वह गुरु माना जाता; जैसे-प्रातः आदि।


. अनुस्वार () वाले सभी स्वर एवं सभी व्यंजन भी गुरु माने जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर अन्तिम ह्रस्व स्वर को गुरु मान लिया जाता है।


 संयुक्त अक्षर या उसके ऊपर अनुस्वार हो तो भी ह्रस्व स्वर गुरु माना जाता है।


 3. यति छन्द पढ़ते समय उच्चारण करने की सुविधा के लिए तथा लय को ठीक रखने के लिए कहीं कहीं विराम लेना पड़ता है। इसी विराम या ठहराव को 'यति' कहते हैं। 


4. गति छन्द पढ़ने की लय को गति कहते हैं। हिन्दी के छन्दों में गति प्रायः अभ्यास और नाद के नियमों पर ही निर्भर है।


 5. तुक छन्द के चरणों के अन्त में वर्णों की आवृत्ति को 'तुक' कहते हैं।


6. संख्या, क्रम तथा गण छन्द में मात्राओं और वर्णों की गिनती को 'संख्या' कहते हैं तथा छन्द में लघु वर्ण और गुरु वर्ण की व्यवस्था को 'क्रम' कहते हैं। तीन वर्णों के समूह को 'गण' कहते हैं। गणों का प्रयोग वर्णिक (वृत्त) में लघु-गुरु के क्रम को बनाए रखने के लिए होता है। इनकी संख्या आठ निश्चित की गई है।




छन्द के भेद


सामान्यतः वर्ण और मात्रा के आधार पर छन्दों के निम्न चार भेद हैं


 1. वर्णिक छन्द जिन छन्दों में केवल वर्गों की संख्या और नियमों का पालन किया जाता है, वे 'वर्णिक छन्द' कहलाते हैं। घनाक्षरी, रूपघनाक्षरी,देवघनाक्षरी, मुक्तक, दण्डक, सवैया आदि वर्णिक छन्द हैं। 


2. मात्रिक छन्द यह छन्द मात्रा की गणना पर आधारित होता है, इसीलिए इसे 'मात्रिक छन्द' कहा जाता है। जिन छन्दों में मात्राओं की समानता के नियम का पालन किया जाता है, किन्तु वर्णों की समानता पर ध्यान नहीं दिया जाता, उन्हें मात्रिक छन्द कहा जाता है। दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय आदि प्रमुख मात्रिक छन्द हैं।



3. उभय छन्द जिन छन्दों में मात्रा और वर्ण दोनों की समानता एक साथ पाई जाती है, उन्हें उभय छन्द' कहते हैं।


4. मुक्त छन्द इन छन्दों को स्वच्छन्द छन्द भी कहा जाता है। इनमें मात्रा और वर्णों की संख्या निश्चित नहीं होती।


नोट नवीनतम पाठ्यक्रम में केवल 'सोरठा' तथा 'शेला' छन्द शामिल किए गए हैं। अतः आगे इन्हें ही विस्तारपूर्वक दिया जा रहा है। इसके लिए 2 अंक निर्धारित हैं।


                 सोरठा छन्द


सोरठा (परिभाषा / लक्षण/पहचान एवं उदाहरण)


परिभाषा दोहे का उल्टा रूप सोरठा' कहलाता है। यह एक अर्द्धसम मात्रिक छन्द है अर्थात् इसके पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों में मात्राओं की संख्या समान रहती है। इसके विषम (पहले और तीसरे चरणों में 11-11 और सम (दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में ही होता है तथा सम चरणों के अन्त में जगण (ISI) का निषेध होता है।


उदाहरण


"मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़े गिरिवर गहन ।

जासु कृपा सु दयाल, द्रवौ सकल कलिमल दहन।।"


स्पष्टीकरण


उपरोक्त उदाहरण के पहले (मूक होइ वाचाल) और तीसरे (जासु कृपा सु दयाल) चरण में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ हैं तथा दूसरे (पंगु चदै गिरिवर गहन) और चौथे (द्रवी सकल कलिमल दहन) चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ हैं। विषम चरणों में तुक है तथा सम चरणों में जगण (ISI) नहीं है। अतः यह सोरठा छन्द का उदाहरण है।




रोला छन्द


रोला (परिभाषा/लक्षण/पहचान एवं उदाहरण)


 परिभाषा रोला एक सम मात्रिक छन्द है अर्थात् इसके प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या समान रहती है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं तथा ग्यारह और तेरह मात्राओं पर यति होती है।


उदाहरण 


"कोठ पापिह पंचत्व, प्राप्त सुनि जमगन धावत। 

बनि बनि बावन वीर, बढ़त चौचंद मचावत।

 पैतकि ताकी लोच, त्रिपथगा के तट लावत।

तो है ग्यारह होत, तीन पाँचहि बिसरावत।।"


स्पष्टीकरण


उपरोक्त उदाहरण में चार चरण हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ है। ग्यारह और तेरह मात्राओं पर यति है। अतः यह रोला छन्द का उदाहरण है।




                    प्रश्न उत्तर




प्रश्न 1. निम्नलिखित में प्रयुक्त छन्द को पहचानकर लिखिए


बंद मुनि पद समापन जेहि निरम्यउ।


सरवर सुकमल मंजू, दोस रहित दूसन सहितः।



उत्तर प्रस्तुत उदाहरण में सोरठा छन्द है। 


स्पष्टीकरण- इस उदाहरण के पहले (चंदई मुनि पद क्रज) और तीसरे (सर सुकमल मंजु) चरणों में 11-11 मात्राएँ तथा दूसरे (रामायन जेहि निरमयड) और चौथे (दोस रहित दूसन रहित) चरणों में 13-13 मात्राएं है तथा सम चरणों के अन्त में जगण (1S1) का निषेध है। अतः यह सोरठा छन्द का उदाहरण है।



प्रश्न 2. रोला छन्द की परिभाषा, लक्षण तथा उदाहरण भी दीजिए।


अथवा रोला छन्द की परिभाषा सोदाहरण लिखिए।


अथवा रोला छन्द की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।


 अथवा रोला छन्द का लक्षण और उदाहरण दीजिए।


उत्तर 


 परिभाषा रोला एक सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है तथा 11 और 13 मात्राओं पर (विराम) यति होती है।


उदाहरण


भई थकित छबि चकित हेरि हर-रूप मनोहर है आनहिं के प्रान रहे तन धरे धरोहर ।। भयो कोप कौ लोप चोप औरै उमगाई। चित चिकनाई चढ़ी कढ़ी सब रोष रुखाई।।


लक्षण रोला एक सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं तथा 11 और 13 मात्राओं पर यति (विराम) होती है।


प्रश्न 3. सोरठा छन्द का लक्षण व परिभाषा बताइए।


अथवा सोरठा छन्द का उदाहरण लक्षण सहित बताइए।


अथवा सोरठा की परिभाषा सोदाहरण लिखिए।


अथवा सोरठा छन्द का लक्षण और उदाहरण दीजिए।


अथवा सोरठा छन्द की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।


उत्तर 


परिभाषा दोहे का उल्टा रूप सोरठा कहलाता है। यह एक अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके पहले और तीसरे चरणों में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में ही होते हैं तथा सम चरणों के अन्त में जगण (ISI) नहीं होता है।




उदाहरण


नील     सरोरुह     स्याम


तरुन      अरुन   बारिज नयन


करउ       सोमम     उर  धाम


सदा       क्षीर      सागर सयन



स्पष्टीकरण इस छन्द के पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मात्राएँ हैं। अतः यह 'सोरठा' छन्द है।


प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण (परिभाषा) भी बताइए।


(i) जीती जाती हुई, जिन्होंने भारत बाजी । निज बल से बल मेट, विधर्मी मुगल कुराजी।। जिनके आगे ठहर, सके जंगी न जहाजी। हैं ये वही प्रसिद्ध छत्रपति भूप शिवाजी ।।


(ii) भरत चरित करि नेम, तुलसी जे सादर सुनहि। सियाराम पद प्रेम, अवसि होइ मन रस विरति ।।


उत्तर


 (i) छन्द रोला



लक्षण रोला एक सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं तथा 11 और 13 मात्राओं पर यति (विराम) होती है।


(ii) छन्द सोरठा


लक्षण दोहे का उल्टा रूप सोरठा कहलाता है। यह एक अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके पहले और तीसरे चरणों में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में ही होते हैं तथा सम चरणों के अन्त में जगण (ISI) नहीं होता है।



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