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उपमा,रूपक, यमक, अनुप्रास अलंकार उदाहरण सहित संस्कृत में।।Alankar in Sanskrit

 संस्कृत में अलंकार 

उपमा,रूपक, यमक, अनुप्रास अलंकार उदाहरण सहित संस्कृत में

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट subhanshclasses.com पर हम आपको अपनी इस पोस्ट में उपमा, रूपक, अनुप्रास तथा यमक अलंकार संस्कृत में उदाहरण सहित बताएं जाएंगे इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें यदि आपको पोस्ट पसन्द आए तो अपने दोस्तों को भी शेयर करें।

                           अलंकार 

परिभाषा

अलङ्कार शब्द का अर्थ है- आभूषण।


'अलङ्क्रीयते' इति अलङ्कारः' अर्थात् वह साधन जो शोभा या सुन्दरता बढ़ाता है अलङ्कार कहलाता है। जिस प्रकार शरीर की सुन्दरता बढ़ाने के लिए आभूषणों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार काव्य की सुन्दरता या शोभा बढ़ाने के लिए भी अलङ्ककारों की आवश्यकता होती है; 

यथा-'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलङ्कारान् प्रचक्षते।' अर्थात् वे धर्म, जिनके द्वारा काव्य की शोभा बढ़ती है, अलङ्कार कहलाते हैं।


अलंकार के भेद


अलंकार के तीन भेद होते हैं


(क) शब्दालंकार – शब्दों में चमत्कार अथवा सौन्दर्य उत्पन्न करने वाले अलंकार, शब्दालंकार कहलाते हैं।


(ख) अर्थालंकार – जिन अलंकारों से अर्थ में चमत्कार अथवा सौन्दर्य उत्पन्न होता है, उन्हें अर्थालंकार कहा जाता है।


(ग) उभयालंकार – जो शब्द और अर्थ दोनों के द्वारा काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, वे उभयालंकार कहलाते हैं।


नोट हमारे पाठ्यक्रम में शब्दालंकारों में अनुप्रास और यमक तथा अर्थालंकारों में उपमा और रूपक अलंकार निर्धारित हैं।


(क) शब्दालंकार


1. अनुप्रास – स्वरों में समानता न होते हुए भी समान व्यंजनों अथवा वर्णों का बार-बार आना अर्थात् वर्णों की बार-बार आवृत्ति, अनुप्रास अलंकार कहलाती है।

लक्षण –'अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्।


उदाहरण – लताकुञ्जं गुञ्जन्मदवदलिपुजं चपलयन्,

समालिङ्गन्नङ्गं द्रुततरमनङ्ग प्रबलयन्। मरुन्मन्दं मन्दं दलितमरविन्दं तरलयन् रजोवृन्दं विन्दन् किरति मकरन्दं दिशिदिशि ।।


स्पष्टीकरण – इस श्लोक में 'जं' 'जं'; 'ङ्ग 'ङ्ग' और 'न्द' 'न्द' वर्णों में वर्णसाम्य होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।


2. यमक – स्वरों और व्यंजनों के सार्थक समूह अर्थात् (शब्द) की पुनरावृत्ति जब इस प्रकार हो कि प्रत्येक आवृत्ति में शब्द का अर्थ अलग-अलग हो तब यमक अलंकार होता है। निरर्थक पदों की आवृत्ति में भी यमक अलंकार होता है।

 लक्षण 'सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जनसंहतेः। क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।।'


उदाहरण – नवपलाशपलाशवनं पुरः स्फुटपरागपरागतापङ्कजम्। मृदुलतान्तलतान्तमलोकयत् सः सुरभि सुरभि सुमनो भरैः ।।


स्पष्टीकरण – इस श्लोक में पलाश-पलाश, पराग-पराग, लतान्त-लतान्त, सुरभिं-सुरमिं पदों की आवृत्ति हुई है, परन्तु अर्थ भिन्न-भिन्न होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है।


(ख) अर्थालंकार


3. उपमा – जब किसी वस्तु का वर्णन करने के लिए उससे अधिक प्रसिद्ध वस्तु से गुण, धर्म आदि के आधार पर उसकी समानता की जाती है, तब उपमा अलंकार होता है।


अन्य शब्दों में, जहाँ दो वस्तुओं के बीच समानता का भाव व्यक्त किया जाता है। 

लक्षण "प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यम् उपमा।" अर्थात् उपमान की किसी साधारण धर्म के कारण उपमेय के साथ समानता प्रदर्शित हो तो वह उपमा अलंकार कहलाता है।


उदाहरण – मधुरः सुधावद धरः पल्लवतुल्योतिपेलवः पाणिः। चकितमृगलोचनाभ्यां सदृशी चपले च लोचने तस्याः।।


स्पष्टीकरण अत्र 'अधर, पाणि एवं च लोचने एतानि त्रीणि उपमेयानि, 'सुधा, पल्लवं चकितमृगलोचनम्' एतानि त्रीणि उपमानानि 'मधुरः, अतिपेलवः चपलः च एते त्रयः साधारण धर्मः एवं च 'वत्, तुल्य, सदृश' आदयः उपमावाचक शब्दाः सन्ति । अतः अत्र उपमा अलंकार अस्ति।


नोट – उपमा वाचक शब्द निम्नलिखित हैं- इव, सम, तुल्य, सदृश आदि।


संस्कृत में उपमा अलंकार

परिभाषा – साधर्म्यमुपमा भेदे जहाँ काव्य पंक्ति में उपमान की उपमेय के साथ किसी साधारण धर्म के कारण समानता प्रदर्शित की जाती है तो वहाँ उपमा अलंकार होता है।


उदाहरण – वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये। जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ।।


लक्षण "प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यम् उपमा।" अर्थात् उपमान की किसी साधारण धर्म के कारण उपमेय के साथ समानता प्रदर्शित हो तो वह उपमा अलंकार कहलाता है।


4. रूपक – जहाँ उपमेय और उपमान में अभेद आरोप या एकरूपता प्रदर्शित की जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है।

लक्षण 'तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः।'

उदाहरण – अनलंकृतशरीरोऽपि चन्द्रमुख आनन्दयति मम हृदयम्।


स्पष्टीकरण – इस वाक्य में प्रयुक्त चन्द्रमुख शब्द में एक अलंकार है। यहाँ पर मुख पर चन्द्रमा का आरोप होने से रूपक अलंकार है अर्थात् जहाँ प्रसिद्ध उपमेय तथा उपमानों के बीच अतिसादृश्य दिखाने के लिए काल्पनिक अभेद का आरोप किया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है।


रूपक अलंकार संस्कृत में


परीभाषा – तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययो जहाँ उपमेय तथा उपमान में अभेद आरोप या दोनों में एकरूपता प्रदर्शित की जाती है तो वहाँ रूपक अलंकार होता है।


लक्षण – 'तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः।’


उदाहरण – पर्याप्तपुष्पस्तबकस्तनाभ्यः स्फुरत्प्रवालोष्ठमनोहराभ्यः । 

लतावधूभ्य स्तरवोऽप्यवापुः 

विनम्रशाखाभुजबन्धनानि ।।


अलंकारों से संबन्धित महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर


प्रश्न 1. काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को क्या कहा जाता है

उत्तर – काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलङ्कार कहा जाता है।


प्रश्न 2. "काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलङ्कारान् प्रचक्षतेः" का क्या अर्थ है?

 उत्तर –'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलङ्कारान् प्रचक्षते' का अर्थ है- "वे धर्म, जिनके द्वारा काव्य की शोभा बढ़ती है; अलङ्कार कहलाते हैं।"


प्रश्न 3. अलङ्कार के कितने भेद होते हैं?

उत्तर – अलङ्कार के तीन भेद होते हैं, जो निम्न प्रकार हैं

(i) शब्दालंकार


(ii) अर्थालंकार


(iii) उभयालंकार


प्रश्न 4. शब्दालंकार से क्या तात्पर्य है?

उत्तर – शब्दों द्वारा चमत्कार या सौन्दर्य उत्पन्न करने वाले अलंकारों को शब्दालंकार कहते हैं; यथा-अनुप्रास, यमक आदि।


प्रश्न 5. अर्थालंकार किसे कहते हैं?

उत्तर – जिन अलंकारों से अर्थ में चमत्कार अथवा सौन्दर्य उत्पन्न होता है; उन्हें अर्थालंकार कहते हैं; यथा-उपमा, रूपक आदि।


प्रश्न 6. उभयालंकार से आप क्या समझते हो?

उत्तर – जो अलंकार शब्द तथा अर्थ दोनों के द्वारा काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, उभयालंकार कहलाते हैं; यथा-अतिशयोक्ति, मानवीकरण आदि।


प्रश्न 7. 'धनदपुरमिवाप्सरोऽवकीर्णम्' इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? 

उत्तर – 'धनदपुरमिवाप्सरोऽवकीर्णम्' पंक्ति में उपमा अलंकार है।


प्रश्न 8. 'प्रतीयते धातुरिवेहितं फलैः' पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? 

उत्तर – 'प्रतीयते धातुरिवेहितं फलैः' पंक्ति में उपमा अलंकार है।


प्रश्न 9. उपमा के कितने पक्ष (अंग) होते हैं?

उत्तर – उपमा के चार पक्ष (अंग) होते हैं-उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचकशब्द।


प्रश्न 10. वनान्तशय्याकठिनीकृताकृती कचाचितौ विष्वगिवागजौ गजौ। कथं त्वमेतौ धृति संयमौ यमौ विलोकयन्नुत्सहसे न बाधितुम्।। उक्त श्लोक में कौन-कौन से अलंकार प्रयुक्त हैं?

उत्तर – इस श्लोक में उपमा तथा यमक दोनों ही अलंकार प्रयुक्त हैं।


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