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जैव-प्रौद्योगिकी सिद्धान्त एवं प्रक्रम PDF।।Biotechnology Principles and processes Class 12th biology pdf notes

 जैव-प्रौद्योगिकी सिद्धान्त एवं प्रक्रम PDF अध्याय 08 कक्षा 12वी जीव विज्ञान

Biotechnology Principles and processes Class 12th biology pdf notes 

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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट Subhansh classes.com पर यदि आप गूगल पर जैव-प्रौद्योगिकी सिद्धान्त एवं प्रक्रम PDF notes सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आ गए हैं हम आपको अपनी इस पोस्ट में Biotechnology Principles and processes class 12th pdf notes NCERT Book का बताएंगे इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें यदि आपने अभी तक class 12th biology के सभी चैप्टर के नोट्स नहीं पढ़े हो तो आपको इस पोस्ट के लास्ट मे सभी की लिंक दे दी जायेगी जिससे आप उन्हें भी आसानी से पढ़ सकेंगे।


{ Short Introduction of Biotechnology Principles and processes }


जैव-प्रौद्योगिकी

यह विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत जैविक तन्त्रों एवं जैविक क्रियाओं का उपयोग मानव कल्याण हेतु किया जाता है। यह विज्ञान की आधुनिक शाखा है, जिसमें जैव रसायन, सूक्ष्मजैविकी, आण्विक जीव विज्ञान, आनुवंशिकी, आदि के अध्ययन का विस्तृत उपयोग किया जाता है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कार्ल इरके ने किया था।


जैव-प्रौद्योगिकी के सिद्धान्त

इसके द्वारा कोशिकाओं की आनुवंशिक रूपरेखा को परिवर्तित किया जाता है। पुनर्योग DNA के निर्माण हेतु वाँछित जीन को प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएन एन्जाइम द्वारा तोड़ा या काटा जाता है। तत्पश्चात् इस DNA खण्ड को DNA लाइगेज द्वारा दूसरे DNA अणु के साथ जोड़कर पुनर्योगज DNA का निर्माण किया जाता है। 


जैव-प्रौद्योगिकी की सहायक तकनीकें

जैव-प्रौद्योगिकी में निम्न तकनीकें प्रयुक्त होती हैं


1. रासायनिक अभियान्त्रिकी (Chemical engineering) इसमें सूक्ष्मजीवियों का कृत्रिम, रोगाणुरहित वातावरण में संवर्धन कराकर जैव-प्रौद्योगिकीय उत्पाद प्राप्त किए जाते हैं; जैसे-प्रतिजैविक, एन्जाइम, आदि।


2. आनुवंशिक अभियान्त्रिकी (Genetic engineering) इसमें प्राणी शरीर के बाहर DNA में हेर-फेर (Manipulation) किया जाता है, जिसके फलस्वरूप उस प्राणी की नई आनुवंशिक प्रभेद (Genetic strains) बनाई जा सकती है तथा इनमें नए लक्षण विकसित किए जा सकते हैं। आनुवंशिक अभियान्त्रिकी का आधार DNA का पुनर्योगज है।


नोट स्टैन्ले कोहन व हरबर्ट बोयर ने सर्वप्रथम पुनयोगज DNA का निर्माण किया था।


पुनर्योगज DNA तकनीक के साधन

आनुवंशिक अभियान्त्रिकी हेतु निम्न साधनों की आवश्यकता होती हैं 


1. एन्जाइम्स (Enzymes) पुनर्योगज DNA तकनीक या आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में निम्न एन्ज़ाइम प्रयुक्त होते हैं 


(i) विदलन एन्जाइम (Cleavage enzyme) ये एन्ज़ाइम DNA के वाँछित खण्ड उत्पन्न करते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं


(a) एक्सोन्यूक्लिएज (Exonuclease) ये DNA के 5' या 3' सिरों से न्यूक्लियोटाइड को पृथक करते हैं।


(b) एण्डोन्यूक्लिएज (Endonuclease) ये DNA के अणु को मध्य से काटते हैं।


प्रतिबन्धन या रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज इन्हें आण्विक कैंची या चाकू भी कहते हैं। ये DNA में विशिष्ट विलोमपद या पैलिन्ड्रोमिक (Palindromic) न्यूक्लियोटाइड्स को पहचानकर, वहाँ पर DNA को काटते हैं; जैसे-Eco Rll पैलिन्ड्रोम न्यूक्लियोटाइडों के ऐसे अनुक्रम होते हैं जिन्हें आगे व पीछे दोनों ओर से पढ़ने पर एक ही क्रम बनता है; जैसे-मलयालम (Malayalam) Hind III एन्जाइम की खोज स्मिथ एवं नैथन्स ने हीमोफिल्स इन्फ्लूएन्जी नामक जीवाणु में की थी।


(ii) DNA लाइगेज ये टूटे हुए पूरक DNA खण्डों को जोड़ते हैं। नोट आण्विक आकार के आधार पर DNA, एन्जाइम से बड़े होते हैं। एन्जाइम एक प्रोटीन है जिनका निर्माण DNA द्वारा ही किसी जीन से होता है। DNA सबसे बड़ा जैव अणु है। इसमें 'जीवों' की सभी आनुवंशिक सूचनाएँ पाई जाती हैं।


2. क्लोनिंग वाहक या संवाहक (Cloning vectors) संवाहक में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए


(i) प्रतिकृतिकरण का उद्भव (Origin of replication) DNA रज्जुक का यह खण्ड प्रतिकृति के समय आरम्भ बिन्दु के रूप में कार्य करता है।


(ii) मार्कर जीन या वरणयोग्य चिन्हक (Marker gene or Selectable marker) यह अरूपान्तरित कोशिकाओं से रूपान्तरित कोशिकाओं के वरण में सहायक होता है।


(iii) क्लोनिंग या पहचान स्थल (Cloning or Recognition site) वाहक में प्रतिबन्धन एन्जाइम की क्रिया हेतु एक पहचान स्थल होना चाहिए। पुनर्योगज तकनीक में निम्न वाहक प्रयुक्त होते हैं


वाहक (Vector) आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में जिस DNA अणु में वाँछित जीन को जोड़ा जाता है, उसे वाहक कहते हैं।


प्लाज्मिड (Plasmid) यह जीवाणु कोशिकाओं में पाया जाने वाला अतिरिक्त गुणसूत्रीय पदार्थ है, जो एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जा सकता है।


उदाहरण-pBR322। यह सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला प्लाज्मिड है। एपिसोम प्लाज्मिड्स से सम्बन्धित है।


नोट

• pBR322 में बिना गुणसूत्रीय नियन्त्रण के स्वतन्त्र रूप से जीवाणु कोशिकाओं के अन्दर प्रतिकृति करने की क्षमता होती है।


•जीवाणुभोजी द्वारा एक जीव से दूसरे जीव में DNA का स्थानान्तरण पारगमन कहलाता है।


•बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) ये विषाणु पारक्रमण द्वारा जीवाणुओं को संक्रमित करते हैं। ये भी क्लोनिंग वाहक के रूप में प्रयुक्त होते हैं जैसे-लैम्डा (λ) फेज वाहका 


पादपों व जन्तुओं में जीन क्लोनिंग हेतु वाहक (Vectors for gene cloning in plants and animals) पादपों में एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीकेसिएन्स के Ti- प्लाज्मिड को क्लोनिंग वाहक के रूप में प्रयोग करते हैं। जन्तुओं में जीन क्लोनिंग हेतु रिट्रोविषाणु (Retrovirus) का प्रयोग किया जाता है। 


पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी के प्रक्रम


पुनर्योगज DNA तकनीक निम्न चरणों में पूर्ण होती है 


1. सर्वप्रथम वांछित जीन के विलगन हेतु उपयुक्त एन्जाइम (लाइसोजाइम बैक्टीरिया सेलुलेज- पादप कोशिका काइटिनेज कवक) द्वारा कोशिका का विघटन कराते हैं। फिर राइबोन्यूक्लिएज द्वारा DNA व प्रोटिएज द्वारा प्रोटीन को अपघटित कराकर DNA प्राप्त किया जाता है।


 2. तत्पश्चात् प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज द्वारा DNA अणु के खण्ड प्राप्त किए जाते हैं। इन DNA खण्डों को जैल-इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा पृथक किया जाता है। 


3. स्रोत DNA व वाहक DNA को एक ही प्रतिबन्धन एन्जाइम द्वारा काटा जाता है। फिर स्रोत DNA से प्राप्त वाँछित DNA खण्ड या जीन' को वाहक के साथ DNA लाइगेज द्वारा जोड़ दिया जाता है।


4. पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (PCR) इस अभिक्रिया में सर्वाधिक प्रयोग होने वाला एन्जाइम DNA पॉलीमरेज है। इसके द्वारा वाँछित DNA खण्ड की अनेक प्रतियाँ प्राप्त कर ली जाती हैं। PCR तकनीक DNA संवर्धन के लिए आवश्यक है। इस तकनीक की खोज कैरी मुलिस (Kary Mullis) ने की थी। यदि द्विसूत्री DNA का विकृतिकरण नहीं हो, तो प्रारम्भक अपने पृथक् DNA रज्जुकों पर पूरक अनुक्रमों का तापानुशीतन करने में समर्थ नहीं होगा और प्रारम्भक का दीर्घीकरण नहीं होगा।


5. पुनर्योगज DNA को पोषद् के भीतर प्रवेश कराने हेतु विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है; जैसे रूपान्तरण (Transformation) क्रिया के लिए

जीवाणु कोशिकाओं को CaCl₂से उपचारित किया जाता है। जिससे जीवाणु कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली सुग्राही हो जाती है और उसके द्वारा माध्यम) से विभाजित DNA को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है व पारगमन द्वारा DNA स्थानान्तरण के लिए जीवाणुभोजी का प्रयोग होता है। बाह्य DNA के परपोषी कोशिकाओं में प्रत्यक्ष रूप से वाहक के बिना प्रवेश को प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण (Direct gene transfer) कहते हैं। ऊष्मीय झटका (Heat shock), इलेक्ट्रोपोरेशन (Electroporation), जीन गन (Gene gun) व सूक्ष्मअन्तःक्षेपण (Microinjection), आदि प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण की विधियाँ हैं। 


6. वाँछित जीन का पुंजकीकरण या क्लोनिंग (Cloning) करके तथा लक्ष्य प्रोटीन की अभिव्यक्ति को प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को अनुकूलतम बनाने के पश्चात् इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जा सकता है। इसके लिए बायोरिएक्टर (Boreactor) का उपयोग किया जाता है। DNA खण्डों की पुजकीकरण विधि को 'शॉटगन विधि' कहते हैं। बायोरिएक्टर (Bioreactor) ये बड़े-बड़े पात्र होते हैं। इनका उपयोग सूक्ष्मजीवियों द्वारा विशिष्ट जैविक उत्पादों के वृहत् स्तर पर उत्पादन हेतु किया जाता है।


• विलोकित हौज बायोरिएक्टर (Stirred tank bloreactor) सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला बायोरिएक्टर है।


• अनुप्रवाह संसाधन (Downstream processing) यह जैव संश्लेषण . अवस्था के पश्चात् उत्पाद के परिष्करण व विपणन से पूर्व उसका पृथक्करण व शोधन है।


नोट अर्द्धसूत्री विभाजन-1 की पैकीटीन अवस्था में क्रॉसिंग ऑवर की घटना होती है, जिसमे नॉन-सिस्टर क्रोमैटिड्स के कुछ खण्डों का आदान-प्रदान होता है। इस अवस्था में पुनर्योगज DNA बनते हैं। मनुष्य की द्विगुणित कोशिका में मानव DNA की मोलर सान्द्रता निम्न होगी


मानव द्विगुणित कोशिका में गुणसूत्रों की कुल संख्या x623x10²³ = 46 x 6.023x10²³ = 2.77 x 10¹⁸ मोल्स


अतः मानव कोशिका में DNA की मोलर सान्द्रता = 2.77 x 10⁸ मोल्स होगी।


{ Biotechnology Principles and processes Objective Questions }

[ जैव-प्रौद्योगिकी सिद्धान्त एवं प्रक्रम बहुविकल्पीय ]


      [  बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक  ]


प्रश्न 1. जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग होता है?


(a) कृषि क्षेत्र में


(b) चिकित्सा में


(c) वैक्सीन निर्माण में


(d) उपरोक्त सभी


उत्तर (d) जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग कृषि क्षेत्र में चिकित्सा में तथा वैक्सीन निर्माण में होता है।


प्रश्न 2. विज्ञान की किस शाखा के अन्तर्गत जीवों के DNA में परिवर्तन किया जाता है?


(a) जैव-प्रौद्योगिकी 


(b) कोशिका विज्ञान


(c) सूक्ष्मजैविकी


(d) जैव रसायन


उत्तर (a) जैव-प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत जीवों के DNA में परिवर्तन किया जाता है।


प्रश्न 3. जीनी अभियान्त्रिकी की नींव किस एन्जाइम की खोज से पड़ी?


(a) प्रतिबन्धन अन्त: न्यूक्लिएज


(b) DNA लाइगेज


(c) DNA गाइरेज 


(d) DNA पॉलीमरेज


उत्तर (a) प्रतिबन्धन अन्त: न्यूक्लिएज


प्रश्न 4. कौन-सा एन्जाइम डी.एन.ए. को विशिष्ट जगह पर काटने के लिए जाना जाता है?


(a) एक्सोन्यूकिल्एज 


(b) एण्डोन्यूक्लिएज


(c) पॉलीमरेज


(d) ये सभी


उत्तर (d) एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम डी.एन.ए. को विशिष्ट जगह पर काटने के लिए जाना जाता है।


प्रश्न 5. जीनी- इन्जीनियरिंग में जैविक कैची का कार्य करने वाला एन्जाइम है?


अथवा DNA का रासायनिक चाकू है


(a) लाइगेज


(b) न्यूक्लिएज 


(c) पॉलीमरेज


(d) रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज


 उत्तर (d) रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज


प्रश्न 6. प्रतिबन्धन अन्तः न्यूक्लिएज का उपयोग आनुवंशिक इन्जीनियरिंग में निम्नलिखित में से किस अणु को बनाने में किया जाता है


(a) DNA के पुनर्योगज अणु


(b) RNA के पुनर्योगज अणु


(c) DNA तथा RNA दोनों के पुनर्योगज अणु


 (d) उपरोक्त में से कोई नहीं


उत्तर (a) DNA के पुनर्योगज अणु


प्रश्न 7. निम्न में से कौन-सा कथन रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम के लिए सत्य नहीं है?


 (a) यह पैलिण्ड्रोमिक न्यूक्लियोटाइड क्रम को पहचानता है।


(b) यह एक एण्डोन्यूक्लिएज है


(c) यह विषाणुओं से पृथक किया जाता है


 (d) विभिन्न DNA रज्जुको को समान, सलांग छोर पर काटता है


उत्तर (c) यह विषाणुओं से पृथक् किया जाता है।


प्रश्न 8. निम्न में से कौन-सा जीवाणु रेस्ट्रिक्शन एण्डो न्यूक्लिज का स्रोत नहीं है


(a) हीमोफाइलस इन्फ्लुएन्जी


 (b) इश्चेरिचिया कोलाई


(c) एक्रोबैक्टीरियम ट्यूमिकेसिएन्स 


(d) बैसिलस एमायलोलिक्सीफे सिएन्स


उत्तर (c) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमिफेसिएन्स नामक

जीवाणु से Ti- प्लाज्मिड प्राप्त किया जाता है।


प्रश्न 9. कौन-सा एन्जाइम DNA खण्डों को जोड़ने का काम करता है?


 (a) लाइगेज


(b) एण्डोन्यूक्लिएज


(c) एक्सोन्यूक्लिएज


(d) काइटिनेज


उत्तर (a) लाइगेज


 प्रश्न 10. लक्ष्य स्थल DNA के वह क्षेत्र हैं, जो दोनों दिशाओं में समान पढ़े जाते हैं, इन्हें कहते हैं 


(a) सलांग छोर


(b) कुन्द छोर


(c) पेलिन्ड्रोम्स


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (c) पेलिन्ड्रोम्स लक्ष्य स्थल DNA के वह क्षेत्र हैं, जो दोनों दिशाओं में समान पढ़े जाते हैं, इन्हें पेलिन्ड्रोम्स कहते हैं।


प्रश्न 11. प्लाज्मिड निम्नलिखित में से किन कोशिकाओं में पाए जाते हैं?


(a) जीवाणु कोशिकाओं में 


(b) जन्तु कोशिकाओं में


(c) रोग संक्रमित कोशिकाओं में


(d) पादप कोशिकाओं में 


उत्तर (a) जीवाणु कोशिकाओं में


प्रश्न 12. एपिसोम (Episome) निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है?

(a) गुणसूत्र


(b) RNA


 (c) प्लाज्मिड्स 


(d) गॉल्जीकाय


उत्तर (c) प्लाज्मिड्स


प्रश्न 13. जन्तु कोशिकाओं में क्लोनिंग के लिए उपयुक्त संवाहक है?


(a) Su 40


(b) pBR327 


(c) PUC


(d) pBR322


उत्तर (d) जन्तु क्लोनिंग हेतु pBR322 वाहक का प्रयोग किया जाता है।


प्रश्न 14. पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (PCR) को किसने खोजा ?


(a) कैरी मुलिस ने


(b) जॉनसन ने 


(c) स्मिथ तथा नैथन्स ने 


(d) डॉ. खुराना ने


उत्तर (a) PCR की खोज कैरी मुलिस ने

की थी। 


प्रश्न 15. एक जीव से दूसरे जीव में जीवाणुभोजी द्वारा DNA का स्थानान्तरण कहलाता है ?


(a) रूपान्तरण


(b) संयुग्मन


(c) पारगमन


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (c) जीवाणुभोजी द्वारा एक जीव से दूसरे जीव में DNA का है। स्थानान्तरण पारगमन कहलाता है।


प्रश्न 16. प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण की विधि है।


(a) इलेक्ट्रोपोरेशन


(b) जीन गन


(c) माइक्रोइन्जेक्शन 


(d) ये सभी


उत्तर (d) इलेक्ट्रोपोरेशन, जीन गन, माइक्रोइन्जेक्शन सभी प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण की विधियों हैं।


प्रश्न 17. शॉटगन विधि का प्रयोग होता है। 


(a) जीन पुंजकीकरण के लिए


(c) जीन चिकित्सा के लिए 


(b) जीन-संश्लेषण के लिए


(d) आनुवंशिक नियन्त्रण के लिए


उत्तर (a) जीन पुंजकीकरण के लिए


प्रश्न 18. पुनर्योगज DNA तकनीक में DNA खण्डों का उनके आकार के अनुसार पृथक्करण किस विधि द्वारा किया जाता है?


 (a) जैल-इलेक्ट्रोफोरेसिस


(b) अपकेन्द्रण


(c) क्रोमेटोग्राफी


 (d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (a) पुनर्योगज DNA तकनीक में DNA खण्डों का पृथक्करण जैल- इलेक्ट्रोफोरेसिस विधि द्वारा किया जाता है।


[ 6 ]

       (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक )


प्रश्न 1. जैव-प्रौद्योगिकी से आप क्या समझते हैं?

उत्तर –  यह विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत जैविक तन्त्रों एवं जैविक क्रियाओं का उपयोग मानव कल्याण हेतु किया जाता है। यह विज्ञान की आधुनिक शाखा है, जिसमें जैव रसायन, सूक्ष्मजैविकी, आण्विक जीव विज्ञान, आनुवंशिकी, आदि के अध्ययन का विस्तृत उपयोग किया जाता है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कार्ल इरेक ने किया था।


प्रश्न 2. rDNA में r' क्या है?

उत्तर – rDNA में r से अभिप्राय रिकॉम्बीनेन्ट (पुनर्योगज) DNA से है।


 प्रश्न 3. पुनर्योगज या पुनर्संयोजन DNA का निर्माण सर्वप्रथम किसने किया था?

उत्तर – स्टैनले कोहेन हर्बर्ट बोयर (Stanley Cohen and Herbert Boyer, 1972) ने सर्वप्रथम पुनर्योगज DNA का निर्माण किया था।


प्रश्न 4. कक्षा ग्यारहवीं में जो आप पढ़ चुके हैं उसके आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि आण्विक आकार के आधार पर एन्जाइम बड़े हैं या DNA आप इसके बारे में कैसे पता लगाएगें ?


उत्तर –  आण्विक आकार के आधार पर एन्जाइम, DNA से छोटे होते हैं क्योंकि DNA में किसी भी जीव की समस्त क्रियाओं, संरचनाओं से सम्बन्धित आनुवंशिक सूचनाएं निहित होती हैं। दूसरी ओर एन्जाइम एक प्रकार के प्रोटीन होते हैं, जिनका निर्माण DNA के ही किसी एक जीन द्वारा होता है। DNA न्यूक्लियोटाइडों का बहुलक होता है, जिसमें न्यूक्लियोटाइडों की एक बहुत लम्बी श्रृंखला होती है, जबकि एन्जाइम में पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला इतनी ज्यादा बड़ी नहीं होती है। DNA सबसे बड़ा जैव अणु है। इसमें जीवों की सभी आनुवंशिक सूचनाएँ पाई जाती हैं।


प्रश्न 5. पुनर्योगज DNA का निर्माण कैसे किया जाता है?

उत्तर –आनुवंशिक अभियान्त्रिकी तकनीक में प्रतिबन्धन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइमों द्वारा वाँछित DNA जीन को क्रमशः काट कर एवं वाहक से जोड़कर पुनर्योगज DNA का निर्माण किया जाता है। 


प्रश्न 6. उस एन्जाइम का नाम लिखिए जो DNA अणु को खण्डों में तोड़ देता है। 


अथवा उस एन्जाइम का नाम लिखिए जो जीवाणुभोजी के DNA को काटता है।


उत्तर – प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एवं एक्सोन्यूक्लिएज।


प्रश्न 7. एक्सोन्यूक्लिरज और एण्डोन्यूक्लिएज में क्या अन्तर है?

 उत्तर – एक्सोन्यूक्लिएज DNA के सिरे से न्यूक्लियोटाइड्स को अलग करते हैं, जबकि एण्डोन्यूक्लिएज DNA को भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं।


प्रश्न 8. बाह्य डी.एन.ए. और संवाहक डी.एन.ए. के मिश्रण से बनने वाला डी. एन. ए. क्या कहलाता है? 

उत्तर – बाह्य डी.एन.ए. और संवाहक डी.एन.ए. के मिश्रण से बनने वाला डी.एन.ए. पुनर्योगज डी.एन.ए. कहलाता है।


प्रश्न 9. जीन अभियान्त्रिकी में उपयोग होने वाले दो वाहकों (Vectors) का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – जीन अभियान्त्रिकी में जीवाणु के प्लाज्मिड एवं बैक्टीरियोफेज या जीवाणुभोजी (विषाणु) दोनों का उपयोग वाहक के रूप में किया जाता है।


प्रश्न 10. वाहक में प्रतिबन्धित एन्जाइम की पहचान के लिए एक से अधिक स्थल नहीं होने चाहिए, क्यों? कारण दीजिए।

उत्तर – वाहक में एक ही पहचान या क्लोनिंग स्थल होना चाहिए। जहाँ प्रतिबन्धन एन्जाइम क्रिया कर सके तथा जिससे विजातीय DNA को पहचाना जा सके। यदि एक से अधिक पहचान स्थल हो, तो प्रतिबन्धन एन्जाइम की क्रिया द्वारा वाहक अनेक स्थानों पर कट जाएगा तथा जीन क्लोनिंग की क्रिया जटिल हो जाएगी।


प्रश्न 11. प्लाज्मिड क्या है? स्पष्ट कीजिए। 

अथवा प्लाज्मिड्स कहाँ पाए जाते हैं? इनके क्या उपयोग है?

उत्तर – ये जीवाणुओं में पाया जाने वाला अतिरिक्त गुणसूत्रीय पदार्थ है, जो एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जा सकता है, जिसे प्लाज्मिड कहते हैं। प्लाज्मिड्स प्रायः जीवाणुओं व यीस्ट में पाए जाते हैं। इनका प्रयोग DNA पुनयोंगज तकनीक में संवाहक के रूप में किया जाता है। T- प्लाज्मिड एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएन्स जीवाणु से प्राप्त होता है।


प्रश्न 12. किसी एक क्लोनिंग संवाहक का नाम लिखिए, जिसमें बिना गुणसूत्रीय नियन्त्रण के स्वतन्त्र रूप से जीवाणु कोशिकाओं के अन्दर प्रतिकृति करने की क्षमता होती है। 

उत्तर – pBR322 में बिना गुणसूत्रीय नियन्त्रण के स्वतन्त्र रूप से जीवाणु कोशिकाओं के अन्दर प्रतिकृति करने की क्षमता होती है।


 प्रश्न 13. प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर – बाह्य DNA की परपोषी कोशिकाओं में प्रत्यक्ष रूप से वाहक के बिना निवेशन को प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण कहते हैं।


प्रश्न 14. DNA खण्डों की पुंजकीकरण विधि को क्या कहते हैं? 

 उत्तर –  DNA खण्डों की पुंजकीकरण विधि को 'शॉटगन विधि' कहते हैं। 


प्रश्न 15. समर्थ कोशिका के निर्माण में CaCl₂का क्या योगदान होता है?

उत्तर - रूपान्तरण (Transformation) क्रिया के लिए जीवाणु कोशिकाओं को CaCl₂ से उपचारित किया जाता है, जिससे जीवाणु कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली सुग्राही हो जाती है और उसके द्वारा माध्यम से विभाजित DNA को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है।


प्रश्न 16. PCR अभिक्रिया में विकृतिकरण चरण के छूट जाने पर अभिक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा?


उत्तर - यदि द्विसूत्री DNA का विकृतिकरण नहीं हो, तो प्रारम्भक अपने पृथक् DNA रज्जुकों पर पूरक अनुक्रमों का तापानुशीतन करने में समर्थ नहीं होगा और प्रारम्भक का दीर्घीकरण नहीं होगा।


प्रश्न 17. अर्द्धसूत्री विभाजन को ध्यान में रखते हुए क्या आप बता सकते हैं कि पुनर्योगज DNA किस अवस्था में बनते हैं? 

उत्तर – अर्द्धसूत्री विभाजन-I की पैकोटीन अवस्था में क्रॉसिंग ऑवर की घटना होती है, जिसमें नॉन-सिस्टर क्रोमैटिड्स के कुछ खण्डों का आदान-प्रदान होता है।


प्रश्न 18. मानव की कोशिका में DNA की मोलर सान्द्रता क्या होगी? अपने अध्यापक से परामर्श लीजिए।

 उत्तर – मनुष्य की द्विगुणित कोशिका में मानव DNA की मोलर सान्द्रता निम्न होगी मानव द्विगुणित कोशिका में गुणसूत्रों की कुल संख्या × 623x10²³

= 46 x 6.023x10²³ = 2.77 x 10¹⁸ मोल्स


अतः मानव कोशिका में DNA की मोलर सान्द्रता = 2.77 x 10⁸ मोल्स होगी।

 

[ Biotechnology Principles and processes Questions Answer ]

          लघु उत्तरीय प्रश्न-I 2 अंक


प्रश्न 1. प्रतिबन्धन एन्जाइमों का नामकरण किस प्रकार किया जाता है?

उत्तर – प्रतिबन्धन एन्जाइमों के नामकरण हेतु विशिष्ट पद्धति का प्रयोग किया जाता है, इसमें पहला वर्ण जीव के वंश तथा दूसरा व तीसरा वर्ण उसकी जाति (पृथक कोशिका) को दर्शाता है। चौथा वर्ण प्रभेद (Strain) के प्रथम वर्ण को दर्शाता है, जबकि अन्त का रोमन अंक जीवाणु (सूक्ष्मजीव) से एक एन्जाइम के पृथक्करण क्रम को इंगित करता है; उदाहरण-Eco RI में E - इश्वेरिचिया, co-कोलाई तथा R.प्रभेद (Strain) से लिया गया है तथा I रोमन नम्बर यह दर्शाता है, कि यह जीवाणु, E. coli RY 13 से पृथक किया गया प्रथम एन्जाइम है।


प्रश्न 2. प्लाज्मिड DNA व गुणसूत्रीय DNA में अन्तर बताइए । 

उत्तर  – प्लाज्मिड DNA व गुणसूत्रीय DNA में निम्नलिखित अन्तर हैं।


प्लाज्मिड DNA

गुणसूत्रीय DNA

ये प्रायः वृत्ताकार एवं आकार (1.5-1500 kb) में अपेक्षाकृत छोटी होती है।

इनका आकार अपेक्षाकृत काफी बड़ा होता है।

इन्हें वाहक के रूप में काम में लाया जाता है।

इन्हें वाहक के रूप में काम में नहीं लिया जाता है।

ये अतिरिक्त गुणसूत्रीय रचनाएँ होती है।

यह मुख्य गुणसूत्रीय रचना है।


प्रश्न 3. वाहक DNA अणु का चयन किन लक्षणों के आधार पर किया जाता है? समझाइए ।

उत्तर – पुनर्योगज DNA तकनीक में वांछित जीन को अन्य किसी जीन के DNA अणु से जोड़कर पुनर्योगज DNA अणु का निर्माण किया जाता है। जिस DNA अणु में वांछित जीन को जोड़ते है, उसे वाहक (Vector) कहते हैं।


इसका चयन निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर करते हैं


1. यह माप में छोटा होना चाहिए।


2. इसमें प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम की क्रिया के लिए कहीं पर वैसा ही एक विलोमपद होना चाहिए जैसे विलोमपदों पर दाता (Donor) जीव के DNA अणुओं का विखण्डन हुआ है।


 3. इसमें वॉलित जीन को अपने में निवेशित (Insert) कर लेने की क्षमता होनी चाहिए। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, वाहक अणुओं के रूप में मुख्यतया प्लाज्मिड और बैक्टीरियोफेज का उपयोग किया जाता है।


प्रश्न 4. क्लोनिंग वाहक pBR322 का नामांकित चित्र बनाइए।


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प्रश्न 5. माइक्रोप्रोजेक्टाइल बम्बार्डमेन्ट विधि क्या है?

 उत्तर –  प्रत्यक्ष जोन स्थानान्तरण की इस तकनीक में DNA विलोपित टंगस्टन या स्वर्ण मुद्रा कणों (विजातीय DNA) की सम्पीडित गन से कोशिका पर बमबारी की 'जाती है। यह विधि पादपों में अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि स्वर्ण या टंगस्टन धातु के DNA विलोपित सूक्ष्म कण उच्च वेग से बमवारी द्वारा पादप कोशिका की भित्ति को पार कर जाते हैं तथा DNA को केन्द्रक में अन्तरित कर देते हैं। इसे बायोलिस्टिक या जीनगन विधि भी कहते हैं।

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प्रश्न 6. क्या आप बता सकते हैं कि प्रतिवेदक (रिपोर्टर) एन्जाइम को वरणयोग्य चिन्ह की उपस्थिति में बाहरी DNA को परपोषी कोशिकाओं में स्थानान्तरण के लिए मॉनिटर करने के लिए किस प्रकार प्रयोग में लाया जा सकता है?


उत्तर – एक बार जब ग्राही कोशिकाओं को DNA ग्रहण करने के लिए सक्षम बना दिया जाता है, तो ग्राही कोशिकाओं में लाइगेटिक (Ligated) DNA प्रवेश करवाने के कई तरीके होते हैं; जैसे—अगर पुनर्योगज DNA को जिसमें एस्पिसिलीन एन्टीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधकता हो व इस DNA को ई. कोलाई में स्थानान्तरित किया जाता है, तो परपोषी कोशिकाएं एस्पिसिलीन प्रतिरोधी कोशिकाओं में रूपान्तरित हो जाएंगी, जब क्लोनिंग वाहक/वेक्टर (जीवाणु, पादप या जन्तु कोशिका) में विजातीय (Foreign) DNA का कोई खण्ड (Piece) स्थानान्तरित किया जाता है, तो वह गुणित हो जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज, DNA लाइगेज, DNA पॉलीमरेज एवं उचित प्लाज्मिड अथवा वायरल संवाहक (Vectors) का उपयोग किया जाता है।


प्रश्न 7. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए।


 (i) प्रतिकृतियन का उद्भभव 


(ii) बायोरिएक्टर


 (iii) अनुप्रवाह संसाधन


(iv) PCR


(v) प्रतिबन्धित एन्जाइम


(vi) पुनर्योगज DNA


(vii) DNA पॉलीमरेज 


(viii) DNA लाइगेज


(i) प्रतिकृतिकरण का उद्भभव (Origin of replication) यह प्रतिकृतिकरण के प्रारम्भ में उपस्थित अनुक्रम या स्थल (Sequence or site) है। DNA का कोई खण्ड इस स्थल से बंधकर परपोषी कोशिकाओं में द्विगुणन करने में सक्षम है।


यह अनुक्रम स्वायत्त रूप से प्रतिकृतिकरण की अनुमति देता है तथा इस प्रकार बाहक परपोषी कोशिकाएं स्वयं की अनेक प्रतिलिपियां उत्पन्न कर सकती हैं। इसलिए लक्ष्य DNA को अत्यधिक संख्या प्राप्त करने के लिए, अत्यधिक प्रतिरूप बनाने में सहायक उत्पत्ति अनुक्रम (Ori sequence) संवाहक में क्लोन किया जाता है।


(ii) बायोरिएक्टर (Bicreactor) व्यावसायिक दृष्टि से वांछित उत्पाद के अधिक उत्पादन के लिए बायोरिएक्टर का उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा 100-1000 लीटर तक संवर्धन का संशोधन किया जा सकता है। बायोरिएक्टर एक बड़े पात्र के समान होता है, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पादपों, जन्तुओं या मानव कोशिकाओं के संवर्धन से प्राप्त कच्चे पदार्थों को जैविक रूप से विशिष्ट उत्पादों तथा एन्जाइम्स आदि में परिवर्तित किया जा सकता है। बॉयोरिएक्टर वांछित उत्पाद की प्राप्ति के लिए अनुकूलतम् परिस्थितियाँ जैसे-आधारी पदार्थ, ताप, pH, विटामिन, लवण या ऑक्सीजन, आदि उपलब्ध कराता है। विलोडित हौज वायोरिएक्टर सर्वाधिक उपयोग में आने वाला बायोरिएक्टर है।


(iii) अनुप्रवाह संसाधन (Downstream processing) जैव संश्लेषण अवस्था के पश्चात् उत्पाद के परिष्करण व विपणन से पूर्व उसका पृथक्करण व शोधन किया जाता है। इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं। प्रत्येक उत्पाद हेतु सुनिश्चित गुणवत्ता नियन्त्रण परीक्षण की आवश्यकता होती है। अनुप्रवाह संसाधन व गुणवत्ता नियन्त्रण परीक्षण प्रत्येक उत्पाद के लिए भिन्न-भिन्न होता है।


[ Biotechnology Principles and processes Questions Answer notes ]

    [ लघु उत्तरीय प्रश्न-II 3 अंक ]


प्रश्न 1. आनुवंशिक अभियान्त्रिकी क्या है? इसे पुनर्योगज DNA तकनीक क्यों कहते हैं? 


अथवा आनुवंशिक इन्जीनियरिंग पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा पुनर्योगज DNA तकनीक की व्याख्या कीजिए।


उत्तर – आण्विक जीव विज्ञान (Molecular biology) के क्षेत्र में हुई असाधारण प्रगति ने जैव-प्रौद्योगिकी के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण क्षेत्र आनुवंशिक अभियान्त्रिकी को जन्म दिया है। जीन या आनुवंशिक अभियान्त्रिकी तकनीक के सहयोग से किसी एक प्रजाति के जीवों के आनुवंशिक वाहक जीन का प्रत्यारोपण अन्य प्रजाति के जीवों में किया जाता है तथा वाँछित गुणो युक्त जीव प्राप्त किए जाते हैं। 


आधुनिक वैज्ञानिकों ने संकरण द्वारा नहीं बल्कि जीवों के आनुवंशिक पदार्थ (DNA) में जोड़-तोड़ (Manipulation) करके सूक्ष्मजीवों, पादपों तथा जन्तुओं की मानव के लिए अधिक उपयोगी नस्लों की उत्पत्ति की विधियों का आविष्कार किया, जिसे आनुवंशिक अभियान्त्रिकी (Genetic engineering) कहते हैं। आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में कृत्रिम विधियों द्वारा कोशिकाओं की आनुवंशिक रूपरेखा में परिवर्तन किया जाता है। इसमें पुनर्संयोजन DNA बनाने के लिए जोन का स्थानान्तरण या पुनसंयोजन होता है। इस तकनीक में दो भिन्न जीवों के DNA को संयुक्त कर पुनसंयोजन DNA उत्पन्न किया जाता है। इस तकनीक को DNA पुनसंयोजन तकनीक (DNA recombinant technique) भी कहा जाता है। 


प्रश्न 2. प्रतिबन्धित एन्जाइम क्या हैं? इनका कार्य लिखिए। 

उत्तर – प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज (Restriction endonucleases) ये आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के सबसे महत्त्वपूर्ण एन्जाइम है। इनको आण्विक कैची/चाकू कहा जाता है। इनकी खोज का श्रेय आबर को जाता है। इस एन्जाइम का सर्वप्रथम पृथक्करण नैथन्स व स्मिथ नामक वैज्ञानिक ने किया।


रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम् DNA को विशिष्ट स्थलों पर काट सकता है। ये जीवाणु द्वारा प्रतिरक्षा साधन के रूप में संश्लेषित होते हैं। विशिष्ट एण्डोन्यूक्लिएज द्विरज्जुकीय, DNA को सीमित स्थलों पर काटते हैं। यह विदलन (Cleavage) DNA के अभिज्ञान अनुक्रमों (Recognition sequences) की संख्या पर निर्भर करता है। अभिक्रिया के आधार पर रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है 


प्रारूप-I के एन्जाइम विलोम पदों पर DNA अणु के दोनों सूत्रों को एक ही स्थान पर काटते है। अतः दोनों कटे सिरे सपाट होते हैं, इन्हें कुन्द छोर (Blunt ends) कहते हैं। ये लगभग 75 न्यूक्लियोटाइड का रिक्त स्थान बनाने की क्षमता रखते हैं तथा इनके सुचारू रूप से क्रियान्वयन हेतु Mg⁺⁺ एवं A एडिनोसिल मौथियोनीन को फैक्टर की आवश्यकता होती है।


• प्रारूप-II के एन्जाइम विलोम पदों पर DNA के दोनों सूत्रों को अलग-अलग बिन्दुओं पर काटते हैं। अत: प्रत्येक कटे सिरे पर एक सूत्र का छोर दूसरे सूत्र के छोर से आगे निकला रहता है और इसका सम्पूरक होता है। ऐसे छोरों को सलांग छोर (Sticky ends) कहते हैं। ये एन्जाइम निर्धारित या परिभाषित लम्बाई तथा क्रम के DNA खण्ड उत्पन्न करते हैं तथा सफल क्रियान्वयन हेतु Mg⁺⁺ की आवश्यकता होती है। इनका अधिकांशतया जीन जोड़-तोड़ में प्रयोग होता है।


प्रारूप-III के एन्जाइम ये प्रारूप-II के एन्जाइमों से समानता दर्शाते हैं हालांकि सफल क्रियान्वयन के लिए ATP एडिनोसिल मौथियोनीन तथा Mg⁺⁺ की आवश्यकता होती हैं। इस प्रकार ये प्रारूप- I तथा प्रारूप-II के माध्यमिक होते है।


प्रश्न 3. क्या सुकेन्द्रीय कोशिकाओं में प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज मिलते हैं? स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - नहीं, प्रायः सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम नहीं होते हैं। क्योंकि सुकेन्द्रकीय जीवों में DNA मिथाइलेज नामक एन्जाइम द्वारा मिथाइलीकृत हो जाता है। यह प्रक्रम DNA को प्रतिबन्धन एन्जाइम से बचाता है। ये एन्जाइम केवल प्राक्केन्द्रकीय जीवों की कोशिका में पाए जाते हैं एवं विषाणु को संक्रमण होने पर उसके DNA को नष्ट कर प्रतिरक्षा तन्त्र की भूमिका निभाते हैं। हालांकि यीस्ट में प्रतिबन्धन न्यूक्लिएज एन्जाइम पाए जाते हैं।


प्रश्न 4. क्लोनिंग हेतु वाहक में बाँछित विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 


अथवा जैव-प्रौद्योगिकी में क्लोनिंग संवाहकों का क्या महत्त्व है? 


 उत्तर - वाहक में क्लोनिंग हेतु निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिएँ


1. प्रतिकृतिकरण का उद्भव (Origin of replication) यह DNA रज्जुक का एक खण्ड है, जो प्रतिकृति के समय आरम्भ बिन्दु के रूप में कार्य करता है। DNA का कोई खण्ड इस स्थल से बँधकर परपोषी कोशिकाओं में द्विगुणन करने में सक्षम होता है। यह अनुक्रम स्वायत्त रूप से प्रतिकृतिकरण की अनुमति देता है तथा इस प्रकार वाहक परपोषी कोशिकाओं में स्वयं की अनेक प्रतिलिपियाँ उत्पन्न कर सकता है। 


2. मार्कर जीन या वरणयोग्य चिन्हक (Marker gene or Selectable marker) एक अच्छे वाहक में वरण योग्य चिन्हक की उपस्थिति भी एक आवश्यक विशेषता होती है। यह रूपान्तरित परपोषी कोशिकाओं के वरण (चयन) की अनुमति प्रदान करता है तथा अरूपान्तरित कोशिकाओं को पहचानकर उनको नष्ट करने में सहायक होता है। यह रूपान्तरित परपोषी कोशिकाओं की वृद्धि का प्रेरण करता है। सामान्यतया प्रतिजैविक औषधियों (टेट्रासाइक्लिन, क्लोरैम्फेनिकॉल, कैनामाइसिन तथा एम्पिसिलिन) के प्रति प्रतिरोधक कूटयुक्त जीन, ई. कोलाई के लिए उपयोगी वरण चिन्ह समझे जाते हैं।


3. क्लोनिंग या पहचान स्थल (Cloning or Recognition site) वाहक में एक ही पहचान या क्लोनिंग स्थल होना चाहिए। जहाँ प्रतिबन्धन एन्जाइम क्रिया कर सके तथा जिससे विजातीय DNA को पहचाना जा सके। यदि एक से अधिक पहचान स्थल हों, तो प्रतिबन्धन एन्जाइम की क्रिया द्वारा वाहक अनेक स्थानों पर कट जाएगा तथा जीन क्लोनिंग भी जटिल हो जाएगी।


प्रश्न 5. प्लाज्मिड्स क्या होते हैं? प्राणियों के जीवन में इनकी उपयोगिता लिखिए।


अथवा प्लाज्मिड्स कहाँ पाए जाते हैं? इनका उपयोग कहाँ होता है?


अथवा प्लाज्मिड के चार प्रमुख गुण लिखिए।


 अथवा प्लाज्मिड्स की व्याख्या कीजिए। इनका उपयोग बताइए।


उत्तर - जैव- प्लाज्मिड जीवाणु के अतिरिक्त DNA की स्वायत्त (Autonomous) इकाइयों होते हैं, जो मुख गुणसूत्रीय DNA से अलग स्वतन्त्र रूप से विभाजित हो सक्षम होते हैं। यह जीन अभियान्त्रिकी में सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला वाहक है। सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला प्लाज्मिड वाहक pBR322 है। प्लाज्मिड में निम्न प्रमुख गुण पाए जाते हैं


1. इनमें स्वतन्त्र रूप से प्रतिकृतिकरण की क्षमता भी होती है।


 2. ये स्वतन्त्र रूप से वंशागत होते हैं।


3. इन पर प्रतिजैविक, प्रतिरोधक जीन्स स्थित होते हैं।


4. प्लाज्मिड, पोषद् के मुख्य गुणसूत्र से पृथक् रहकर द्विगुणन करते हैं।


प्लाज्मिडों की उपयोगिता आण्विक जैव-वैज्ञानिकों के लिए होती है क्योंकि ये वैज्ञानिक इनको आनुवंशिक वाहक के रूप में प्रयोग कर ऐच्छिक जीन को कोशिका में प्रवेश कराकर उनकी वृद्धि कर सकते हैं। जब प्लाज्मिड में ऐच्छिक जीन प्रविष्ट की जाती हैं तथा ये रूपान्तरित प्लाज्मिड पोषद जीवाणु कोशिका में रख दिए जाते हैं, तो प्लाज्मिड तथा इनके जीन पूर्ण जीवाणु की उस जनसंख्या के साथ द्विगुणित होने लगते हैं, जिनका अवतरण पूर्वज पोषद कोशिका से हुआ है। यदि जीन ऐसे प्रोटीन को कोड करें; जैसे- मानव थायरॉइड-उत्प्रेरक हॉर्मोन (TSH) ऐसी प्रोटीन जीवाणु के अन्दर जमा हो जाती है, जहाँ से इसे काट कर निकाला जा सकता है।


इश्वेरिचिया कोलाई (E. coli) में ऐसे 20 प्लाज्मिड रखे जा सकते हैं। अतः एक समय में 20 'TSH जीनों को रखा जा सकता है तथा ये सभी जीन मिलकर एक जीन की तुलना में इस हॉर्मोन की 20 गुना अधिक मात्रा उत्पन्न कर सकते हैं। 


प्रश्न 6. जैल विद्युत कण संचलन तकनीक को समझाइए |


अथवा जैल-इलेक्ट्रोफोरेसिस (जैल वैद्युत संचालन) से आप क्या समझते हैं? DNA खण्ड के पृथक्करण एवं विलगन की तकनीकी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।


उत्तर - जेल- इलेक्ट्रोफोरेसिस एक पृथक्करण तकनीक है, जिसके द्वारा DNA खण्डों को आकृति, आकार, पृष्ठ क्षेत्रफल (Surface area) तथा आण्विक भार (Molecular weight) के आधार पर पृथक् किया जाता है। इसका प्रयोग प्रतिबन्ध एन्जाइम खण्डों को अलग करने में भी किया जाता है। DNA के कटे खण्डों को एगारोज जैल या पॉलीएक्रिलएमाइड युक्त एक पतली जिलेटिन की पट्टी पर रखते हैं तथा बफर विलयन से ढक देते हैं, अब इसमें विद्युत का प्रवाह किया जाता है। DNA अणु में प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में एक ऋणावेशित फॉस्फेट समूह (Negatively charged PO group) होता है।


इसलिए DNA के एनोड धनात्मक इलेक्ट्रोड की ओर आकर्षित होते हैं तथा पृथक् हो जाते हैं। कम लम्बाई के DNA अधिक लम्बाई के DNA खण्डों की तुलना में तीव्रता से गति करते हैं, क्योंकि इस पर घर्षण बल की मात्रा कम होती है। इस गति के अन्त में विद्युत धारा का प्रवाह रोक दिया जाता है। इस प्रक्रिया को जैल- इलेक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है। 


 प्रश्न 7. वाहक द्वारा पुनर्योगज DNA के पोषद जीवाणु में प्रवेश की विधियों का वर्णन कीजिए।


उत्तर - पुनर्योग DNA अणुओं को पोषद कोशिका के अन्दर प्रवेश कराने हेतु प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष माध्यमों का प्रयोग किया जाता है। वाहक द्वारा पुनर्योगज DNA को पोषद जीवाणु में प्रवेश, जीन स्थानान्तरण की अप्रत्यक्ष विधि है। 

यह निम्नलिखित विधियों द्वारा सम्पन्न होता है


1. रूपान्तरण द्वारा (By transformation) इस विधि द्वारा कोशिका या एककोशिकीय जीव (जीवाणु) अपने वातावरण से विजातीय या वाह्य DNA अणुओं के नग्न खण्डों को ग्रहण कर लेता है। ये DNA खण्ड जीवाणु के DNA अणु के समजात खण्ड़ों से पुनसंयोजित हो जाते हैं। यह क्रिया रूपान्तरण कहलाती है। इस क्रिया के लिए जीवाणु कोशिकाओं को CaCl₂से उपचारित किया जाता है। जिससे जीवाणु कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली सुग्राही हो जाती है और उसके माध्यम से विजातीय DNA को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। 


2. पारगमन (Transduction) एक जीव से दूसरे जीव में जीवाणुभोजी द्वारा DNA का स्थानान्तरण, पारगमन कहलाता है। इस विधि में जीवाणुभोजी अपने DNA अणु में पोषद् जीवाणु के DNA अणु का कुछ भाग संयोजित कर लेते हैं। जब ये विषाणु अन्य जीवाणुओं को संक्रमित करते हैं, तो अपने DNA अणु से नवसंयोजित भाग को मुक्त कर देते हैं। DNA का यह भाग फिर नए पोषद् जीवाणु के DNA अणु में संयोजित हो जाता है।


प्रश्न 8. विलोडित हौज बायोरिएक्टर पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा एक बायोरिएक्टर के प्रारूप का वर्णन कीजिए। साधारण विलोडक हौज एवं दण्ड विलोडक हौज में अन्तर बताइए।


उत्तर - बायोरिएक्टर एक बड़े पात्र के समान होता है, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पादपों, जन्तुओं या मानव कोशिकाओं के संवर्धन से प्राप्त कच्चे पदार्थों को जैविक रूप से विशिष्ट उत्पादों तथा एन्जाइमों, आदि में परिवर्तित किया जा सकता है। वायोरिएक्टर वांछित उत्पाद की प्राप्ति के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ जैसे-आधारी पदार्थ, ताप, pH विटामिन, लवण या ऑक्सीजन, आदि उपलब्ध कराता है। खिलोडित हौज बायोरिएक्टर सर्वाधिक उपयोग में आने वाला बायोरिएक्टर है।


विलोडित हौज बायोरिएक्टर (Stirred tank bioreactor) यह बेलनाकार एवं घुमावदार आधार वाला होता है। इसमें निम्नलिखित भाग होते हैं


(i) प्रक्षोभक तन्त्र (Agitator system)


(ii) O₂प्रदाय तन्त्र (O₂ delivery system)


 (iii) झाग नियन्त्रण तन्त्र (Foam control system)


(iv) ताप नियन्त्रण तन्त्र (Temperature control system) 


(v) pH नियन्त्रण तन्त्र (pH control system)


(vi) प्रतिचयन द्वार (By sampling) विलोडित हौज बायोरिएक्टर दो प्रकार का होता है-साधारण विलोडन हौज बायोरिएक्टर और दण्ड विलोडक हौज बायोरिएक्टर ।


साधारण विलोडन हौज बायोरिएक्टर (Simple stirred tank bioreactor) में अन्तर्वस्तुओं को मिश्रित करने की व्यवस्था होती है।


दण्ड विलोडक हौज वायोरिएक्टर (Sparged stirred tank. bioreactor) में भी अनावस्तुओं को मिश्रित करने की व्यवस्था होती है तथा यह ऑक्सीजन (O₂) को भी समान रूप से वितरित करने की व्यवस्था प्रदान करता है।

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(a) साधारण विलोडन हौज बायोरिएक्टर तथा (b) दण्ड विलोडन हौज बायोरिएक्टर


(Biotechnology Principles and processes Long Questions Answers)

        (     दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5 अंक     )


प्रश्न 1. आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में प्रयुक्त उपकरणों पर प्रकाश डालिए।


 उत्तर -आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में निम्न उपकरण/ साधन सहायक होते हैं


1. एन्जाइम्स (Enzymes) आनुवंशिक अभियान्त्रिकी या पुनर्योगज DNA तकनीक में विभिन्न एन्जाइम, जैसे-विदलन एन्जाइम (प्रतिबन्धन या बन्धेज एन्जाइम, एक्सोन्यूक्लिएज, एण्डोन्यूक्लिएज), लयन एन्जाइम (Lyases), संयोजक एन्जाइम (Ligases), संश्लेषी एन्जाइम (Synthesising enzyme) तथा क्षारकीय फॉस्फेटेज (Alkaline phosphatase) कार्यरत होते हैं।


(i) विदलन एन्जाइम (Cleavage enzymes) इस समूह के एन्जाइम DNA अणु को वाँछित खण्डों में पृथक् करते हैं। इन्हें पुन: तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है


एक्सोन्यूक्लिएजेज (Exonucleases) ये एन्जाइम DNA अणु के 5' या ' सिरों से न्यूक्लियोटाइड को पृथक् करते हैं।


एण्डोन्यूक्लिएजेज (Endonucleases) ये एन्जाइम DNA अणु को मध्य (विशिष्ट स्थानों) से काटते/पृथक् करते हैं।


प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएजेज (Restriction endonucleases) ये आनुवंशिक अभियान्त्रिक के सबसे महत्वपूर्ण एन्जाइम है। इनको आण्विक ऊँची / चाकू (Molecular scissors or Molecular scalpel) भी कहा जाता है।


•प्रत्येक प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम DNA में विशिष्ट विलोमपद (Palindromic) न्यूक्लियोटाइड्स के अनुक्रम को पहचानता है जैसे-Eco RIG-A-A-T-T-C अनुक्रम को पहचान कर उसे G एवं A के मध्य में से काटता है।


(ii)DNA लाइगेज (DNA ligase) मे एन्जाइस टूटे हुए पूरक DNA खण्डों को फॉरफोस्टर क्यों (3'OH तथा 5'PO₄s के मध्य के द्वारा जोड़ने संयोजन करने का कार्य करते हैं, इनको आण्विक संयोजक (Molecular hinder) या ऊतक लाइगेज (Tissue ligase) भी कहा जाता है।


 (iii) सिन्वेटेज या संश्लेषी एन्जाइम (Synthetase or Synthesising enzyme) ये DNA संश्लेषण के लिए आवश्यक एन्जाइम हैं। ये दो प्रकार के होते हैं


• DNA पॉलीमरेज (DNA polymerase) इस एन्जाइम का DNA टैम्पलेट पर DNA खण्डों की असंख्य प्रतियाँ बनाने में उपयोग किया जाता है। DNA की इन प्रतियों को संश्लेषित DNA (Synthetic DNA) कहते हैं। यह अभिक्रिया पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (Polymerase Chain Reaction or PCR) कहलाती है।


• प्रतिवर्ती ट्रान्सक्रिप्टेज (Reverse transcriptase) इनकी . आवश्यकत्ता RNA टैम्पलेट के पूरक DNA बनाने में होती है। इसलिए इसे DNA या पूरक DNA (Complementary DNA) भी कहते हैं।


 (iv) क्षारीय फॉस्फेटेज (Alkaline phosphatase) इनका उपयोग DNA के 5' सिरे से फॉस्फेट समूह को हटाने में किया जाता है, जिससे पुनः सिरे जुड़कर वृत्ताकार DNA का रूप न धारण कर लें।



2. क्लोनिंग वाहक या संवाहक (Cloning vectors) जिस DNA अणु मे वाँछित जीन को जोड़ते हैं, उसे वाहक कहते हैं। वाहक में एक ही पहचान या क्लोनिंग स्थल होना चाहिए, जहाँ प्रतिबन्धन एन्जाइम क्रिया कर सके तथा जिससे विजातीय DNA को जोड़ा जा सके।


पुनयोगज DNA तकनीक में निम्नलिखित वाहक उपयोग में लिए जाते हैं 


प्लाज्मिड (Plasmid) यह सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला वाहक है। इनमें प्रतिजैविकता, लैंगिक कारक, भारी धातुओं के लिए प्रतिरोधक जीन आदि पाए जाते हैं। इन्हें आकार में छोटे होने के कारण कोशिका से आसानी से अलग किया जा सकता है। प्लाज्मिड, एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जा सकता है। सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला प्लाज्मिड चाहक pBR322 है।


बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) से वे विषाणु हैं, जो जीवाणुओं की संक्रमित करते हैं। ये क्लोनिंग वाहक के रूप में भी प्रयोग किए जाते हैं, जैसे- लैम्डा (λ) फेज वाहक तथा M-13 फेज वाहक ।


अर्बुद प्रेरक प्लाज्मिड (Tumour inducing plasmid) इनका प्रयोग पादपों में क्लोनिंग वाहक के रूप में किया जाता है। इन्हें एग्रोक्टीरियम ट्यूफेसिएन्स नामक जीवाणु से प्राप्त किया जाता है। रिट्रोविषाणु (Retrovirus) इनका प्रयोग जन्तु क्लोनिंग हेतु वाहक के रूप में किया जाता है, क्योंकि यह विषाणु सामान्य जन्तु कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं में रूपान्तरित कर देता है।


कॉस्मिड (Cosmid) इसका उपयोग 45 kb लम्बे DNA खण्ड को क्लोनिंग हेतु किया जा सकता है।


फैज्मिड वाहक (Phagemid vectors) यह जीवाणुभोजी तथा प्लाज्मिड द्वारा निर्मित एक संयुक्त संरचना है। जिसका उपयोग बड़े DNA खण्डों के वहन हेतु किया जाता है। 


प्रश्न 2. प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण क्या है? इसकी किन्हीं चार विधियों का उल्लेख कीजिए।


उत्तर – प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण (Direct gene transfer) विजातीय बाह्य DNA के परपोषी कोशिकाओं में प्रत्यक्ष रूप से निवेशन को प्रत्यक्ष जीन

स्थानान्तरण कहते हैं।


प्रत्यक्ष जीन का स्थानान्तरण निम्न चरणों में किया जाता है


• ऊष्मीय झटका (Heat shock) कोशिकाएँ 0°C ताप पर कैल्शियम आयनयुक्त विलयन में वाहक ऊष्मायित की जाती है, अचानक ताप में 40°C तक वृद्धि कर दी जाती है। यह ऊष्मीय झटका कुछ कोशिकाओं को वाहक प्राप्ति में सूक्ष्म कारक बन जाती है। अचानक ऊष्मा का स्तर बढ़ने से कोशिका में छिद्र हो जाते हैं। यह जीवाणु तथा जन्तु कोशिका में प्रयोग की जाती है।


इलेक्ट्रोपोरेशन (Electroporation) उच्च वोल्टेज की विद्युत धारा प्रवाह से कोशिका की भित्ति/कला अस्थायी रूप से कट, फट जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वाहक कोशिका में प्रवेश करने में सक्षम हो जाते हैं। जीवाणु कोशिका में जीन अन्तरण या स्थानान्तरण का यह सर्वाधिक सस्ता तथा कार्य क्षमतावान तरीका है।


जीन गन या वायोलिस्टिक (Gene gun or Biolistics) प्रत्यक्ष जीन अन्तरण की इस असाधारण तकनीक में DNA विलेपित टंगस्टन या स्वर्ण मुद्रा कणों (विजातीय DNA) की सम्पीडित गन से कोशिका पर बमबारी की जाती है। यह विधि पादपों में अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि स्वर्ण या टंगस्टन धातु के DNA विलेपित सूक्ष्म कणों की उच्च वेग बमबारी, पादप कोशिका भित्ति को पार कर जाते हैं तथा DNA को केन्द्रक में अन्तरित कर देते हैं। इसको बायोलिस्टिक या माइक्रोप्रोजेक्टाइल बम्बार्डमेन्ट भी कहते हैं।


सूक्ष्म अन्त:क्षेपण (Microinjection) इस विधि में वांछित गुणों युक्त पुनर्योगज DNA को प्रत्यक्ष रूप से कोशिका में अन्तःक्षिप्त (Inject) किया जाता है। यह विधि जन्तु कोशिका में वैक्टर संयोजन के लिए उपयोगी है। विजातीय DNA को केन्द्रक में एक सूक्ष्म पिपेट द्वारा प्लाज्मा झिल्ली में छिद्र (Puncher) करके अन्तःक्षिप्त किया जाता है।


लाइपोसोम्स (Liposomes) वाहक को लाइपोसोम में रखा जा सकता है, जो लघु झिल्लीमय पुटिकाएं (Vesicles) होती है। लाइपोसोम कोशिका झिल्ली के साथ संयुक्त होकर, कोशिका में DNA का अन्तरण करती है। इस विधि द्वारा जीन चिकित्सा में जीन का अन्तरण किया जाता है।


 प्रश्न 3. ई. कोलाई जीवाणु में मानव जीन की क्लोनिंग एवं अभिव्यक्ति के प्रायोगिक चरणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 


अथवा DNA पुनर्योगज तकनीक का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 


अथवा DNA तकनीक पर एक निबन्ध लिखिए। 


उत्तरपुनर्योगज DNA तकनीक किसी बाह्य स्रोत या जीव से प्राप्त वाँछित विजातीय जीव या DNA को पोषद के DNA से जोड़कर वांछित उत्पाद या गुण प्राप्त करना, पुनर्योगज DNA तकनीक कहलाती है तथा विजातीय DNA युक्त पोषद् DNA, पुनर्योगज DNA कहलाता है।


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DNA खण्ड के दोनों सूत्रों के नाइट्रोजनी क्षारकों के मध्य के हाइड्रोजन बन्ध टूट जाते हैं और DNA खण्ड के दोनों सूत्र अलग हो जाते हैं।


यह क्रिया विकृतिकरण (Denaturation) कहलाती है। अब वाँछित जीन के अनुलेखन (Transcription) से बनने वाले mRNA को प्राप्त करके एकसूत्रीय DNA खण्डों के मिश्रण में मिला देते हैं। mRNA, वाँछित DNA के टेम्पलेट से जुड़कर DNA-RNA सम्मिश्र या संकर का निर्माण करते हैं।


(v) द्विसूत्री DNA खण्ड का संश्लेषण इस अन्तिम चरण में DNA-RNA सम्मिश्र वाले खण्ड को एकसूत्रीय DNA मिश्रण से पृथक् करने के पश्चात् mRNA को भी पृथक् कर लिया जाता है। अब DNA के साँचा सूत्र पर सम्पूरक सूत्र का संश्लेषण, DNA पॉलीमरेज एन्जाइम की सहायता से कराकर, इसे सामान्य द्विसूत्री DNA खण्ड में परिवर्तित कर लेते हैं तथा यह विधि संकरण (Hybridisation) कहलाती है।


2. वाहक DNA अणु का चयन पुनर्योगज DNA तकनीक के इस द्वितीय चरण में वाँछित जीन को अन्य किसी जीन के DNA अणु से जोड़कर पुनर्योगज DNA अणु का निर्माण किया जाता है। जिस DNA अणु में वाँछित जीन को जोड़ते हैं, उसे वाहक (Vector) कहते हैं।


3. वाँछित जीन को वाहक DNA से जोड़कर पुनर्योगज DNA अणु का निर्माण पुनर्योगज DNA तकनीक के तीसरे चरण में वांछित जीन को वाहक DNA अणु (प्लाज्मिड) से जोड़कर पुनर्योगज DNA का निर्माण किया जाता है।


सर्वप्रथम वाहक DNA या प्लाज्मिड अणु को इसके विलोमपद पर किसी प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम की सहायता से काट देते हैं। इसके कटे हुए सिरे सलांगी (Sticky) होते हैं।


इसी एन्जाइम की सहायता से वाँछित जीन के सिरों को भी सलांगी सिरों में परिवर्तित कर दिया जाता है। अब DNA लाइगेज एन्जाइम की सहायता से वाँछित जीन को वाहक अणु से जोड़ दिया जाता है। यह क्रिया तापानुशीतन (Annealing) कहलाती है। इस प्रकार पुनयोंगज DNA का निर्माण हो जाता है।


4. पुनर्योगज DNA को पोषद् जीवाणु के अन्दर प्रवेश कराना पुनर्योगज DNA अणुओं को पोषद् कोशिका के अन्दर प्रवेश करवाया जाता है। पोषद्

के रूप में मुख्यतया ई. कोलाई का उपयोग किया जाता है, परन्तु आजकल बैसिलस सब्टिलिस (Bacillus subtilis) नामक जीवाणु (Bacteria) और यीस्ट (Yeast) कोशिकाओं का भी उपयोग किया जाता है। निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा पोषद् में पुनर्योगज DNA का प्रवेश कराया जाता है


(i) रूपान्तरण द्वारा 

 (ii) पारगमन 

(iii) वाहकरहित जीन स्थानान्तरण विजातीय या बाह्य DNA की परपोषी कोशिकाओं में प्रत्यक्ष रूप से वाहक के बिना निवेशन को प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण (Direct gene transfer) कहते हैं। इसकी कुछ विधियों के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।


5. पुनर्योगज DNA अणु का पुंजकीकरण पुनर्योगज DNA अणु की अनेक प्रतिलिपियाँ प्राप्त करना आनुवंशिक अभियान्त्रिकी या पुनर्योगज DNA तकनीक का अन्तिम चरण है, इसे DNA क्लोनिंग या जीन क्लोनिंग कहते हैं। इस क्रिया में जीवाणु कोशिका के अन्दर पुनर्योगज DNA बार- बार द्विगुणन करता है, जिससे इसकी अनेक प्रतिलिपियाँ निर्मित हो जाती हैं। इनमें से केवल रूपान्तरित जीवाणु कोशिकाएँ ही प्रतिजैविक की उपस्थिति में जीवित रह जाती हैं।


6. पुनर्योगज DNA से विजातीय जीन उत्पाद को प्राप्त करना वाँछित जीन का पुंजकीकरण (Cloning) करके तथा लक्ष्य प्रोटीन की अभिव्यक्ति को प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के पश्चात् कोई भी इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन कर सकता है।


यदि कोई प्रोटीन कूटलेखन (Encoding) जीन किसी विषमजात परपोषी में अभिव्यक्त होता है, तो यह पुनर्योगज प्रोटीन (Recombinant protein) कहलाता है। वाँछित जीन युक्त परपोषी कोशिकाओं का छोटे पैमाने पर प्रयोगशाला में संवर्धन (Culture) किया जा सकता है। अनेक तकनीकों द्वारा इस संवर्धन से प्रोटीन का निष्कर्षण और शोधन किया जा सकता है।


कोशिकाओं के सतत् संवर्धन के लिए पुराने पोषक माध्यम को निकालने और ताजा पोषक माध्यम को डालने की व्यवस्था की जाती है, जिससे कोशिकाएँ संख्या में और अधिक सक्रिय बनी रहें तथा वाँछित प्रोटीन अधिक मात्रा प्राप्त होती रहे।


[ Class 12 MCQ Biotechnology Principles and Processes ]


Q.जैव प्रौद्योगिकी का सिद्धांत क्या है?

उत्तर – जैव प्रौद्योगिकी का सिद्धान्त-

रासायनिक इंजीनियरिंग प्रक्रम में रोगाणु रहित वांछित जीवाणु या सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं के वृद्धि द्वारा लाभदायक जैव प्रौद्योगिकी पदार्थ जैसे- प्रतिजैविक, टीके, एंजाइम, हार्मोन आदि का निर्माण करना।


Q.जैव प्रौद्योगिकी क्या है विस्तार से समझाइए?

उत्तर –जैवप्रौद्योगिकी या जैवतकनीकी, प्रौद्योगिकी का वो विषय है जो अभियान्त्रिकी और तकनीकी के डाटा और विधियों को जीवों और जीवन तन्त्रों से सम्बन्धित अध्ययन और समस्या के समाधान के लिये उपयोग करता है। इसे रासायनिक अभियान्त्रिकी, रसायन शास्त्र या जीव विज्ञान में संबंधित माना जाता है।


Q.जैव प्रौद्योगिकी के दो मुख्य सिद्धांत क्या हैं?

उत्तर – (i)दाता जीव से डीएनए का अलगाव । 

(ii)प्रतिबंध एंडोन्यूक्लाइजेस का उपयोग कर डीएनए विखंडन ।


Q.जैव प्रौद्योगिकी के जनक कौन थे?

उत्तर – करोली एरेकी (जर्मन: कार्ल एरेकी, 20 अक्टूबर 1878 17 जून 1952) एक हंगेरियन कृषि - इंजीनियर थे। 'बायोटेक्नोलॉजी' शब्द उनके द्वारा 1919 में बनाय गया था। कुछ लोग उन्हें बायोटेक्नोलॉजी के "पिता" के रूप में भी मानते हैं।


Q.जैव प्रौद्योगिकी कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर –जैव प्रौद्योगिकी के प्रकार अथवा क्षेत्र :- जैव प्रौद्योगिकी को दो क्षेत्रो में विभाजित किया जाता है। परंपरागत जैव प्रौद्योगिकी :- इसके है अंतर्गत प्रचलित विधियों द्वारा विभिन्न उत्पाद तैयार किए जाते हैं। जैसे की किण्वन द्वारा शराब, बीयर, डबल रोटी बिस्किट आदि का निर्माण किया जाता है।


Q.जैव प्रौद्योगिकी के 4 प्रकार क्या हैं?

उत्तर – आज, पाँच शाखाएँ जिनमें आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी विभाजित है - मानव, पर्यावरण, औद्योगिक, पशु और पौधे - हमें भूख और - बीमारी से लड़ने में मदद करती हैं, अधिक सुरक्षित, स्वच्छ और कुशलता से उत्पादन करती हैं, हमारे पारिस्थितिक पदचिह्न को कम करती हैं और ऊर्जा बचाती हैं।


Q.जैव प्रौद्योगिकी कैसे काम करती है?

उत्तर –बायोटेक्नोलॉजी, जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से सीधे सेल की जेनेटिक सामग्री के साथ काम करती है। यदि हम एक उच्च शक्ति वाले माइक्रोस्कोप के तहत एक सेल की जांच करते हैं, तो हमें क्रोमोसोम नामक लंबी, धागे जैसी संरचनाएं दिखाई देंगी। डीएनए (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) से बने ये गुणसूत्र जीन नामक वर्गों में व्यवस्थित होते हैं।


Q.जैव प्रौद्योगिकी के क्या उपयोग हैं?

उत्तर –उपयोग : वैक्सीन और एंटीबायोटिक्स के उत्पादन में, पुनरोत्पादन उपचार, जीन थैरेपी, स्टेम सेल थैरेपी आदि लाल जैव-प्रौद्योगिकी के कुछ अनुप्रयोग हैं। समुद्री संसाधनों और ताजे पाने के जीवों का प्रयोग उत्पादों एवं औद्योगिक अनुप्रयोग में किया जाता है । औद्योगिक क्रियाओं में उपयोगी है।


Q.जैव प्रौद्योगिकी के तीन उपकरण कौन से हैं?

उत्तर –बायोटेक्नोलॉजी की तीन महत्वपूर्ण तकनीकें हैं: (1) रिकॉम्बिनेंट डीएनए टेक्नोलॉजी (जेनेटिक इंजीनियरिंग)

 (2) प्लांट टिश्यू कल्चर और 

(3) ट्रांसजेनिक (जेनेटिकली मॉडिफाइड ऑर्गेनिज्म) ।


Q.भारतीय जैव प्रौद्योगिकी का जनक कौन है?

उत्तर –पुष्पमित्र भार्गव


Q.जैव प्रौद्योगिकी का सबसे महत्वपूर्ण भाग क्या है?

उत्तर –बायोटेक्नोलॉजी का सबसे प्रमुख क्षेत्र जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से थेराप्यूटिक प्रोटीन और अन्य दवाओं का उत्पादन है।


Q.जैव प्रौद्योगिकी क्रांति कब शुरू हुई ?

उत्तर –डीएनए की खोज के बाद के 20 या इतने वर्षों में, डीएनए में हेरफेर करने के लिए उपकरण और जिसे अब पुनः संयोजक इंजीनियरिंग के रूप में जाना जाता है, विकसित किए गए थे। कुछ लोगों ने 1970 के दशक के मध्य को जैव प्रौद्योगिकी के युग की शुरुआत के रूप में वर्णित किया है।


Q.जैव प्रौद्योगिकी के जनक कौन है और पहली जैव प्रौद्योगिकी दवा कौन सी है?

Ans.कोआ रोली एरेकी (जर्मन: कार्ल एरेकी) को जैव प्रौद्योगिकी के "पिता" के रूप में माना जाता है क्योंकि 1919 में जीव विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संलयन का वर्णन करने के लिए 'जैव प्रौद्योगिकी' शब्द उनके द्वारा गढ़ा गया था। उन्होंने बढ़ावा दिया कि कच्चे माल को उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित करने के लिए जीव विज्ञान का उपयोग किया जा सकता है।


Q.प्रथम जैव प्रौद्योगिकी कंपनी कौन सी थी ?

उत्तर – 1976 में दक्षिण सैन फ्रांसिस्को में, बॉयर और वेंचर कैपिटलिस्ट रॉबर्ट स्वानसन ने दुनिया की पहली बायोटेक्नोलॉजी कंपनी जेनेंटेक की स्थापना की। जेनेंटेक के पायनियर और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में उनके सहयोगी प्रयोगशाला में yay को संश्लेषित करने वाले पहले व्यक्ति थे।


Q.जैव प्रौद्योगिकी का उद्देश्य क्या है?

उत्तर –अपने सरलतम रूप में, जैव प्रौद्योगिकी जीव विज्ञान पर आधारित तकनीक है- जैव प्रौद्योगिकी प्रौद्योगिकियों और उत्पादों को विकसित करने के लिए सेलुलर और जैव आणविक प्रक्रियाओं का उपयोग करती है जो हमारे जीवन और हमारे ग्रह के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।


Q.जैव प्रौद्योगिकी में कितने रंग होते हैं?

उत्तर – का फारस्की (2012) ने जैव प्रौद्योगिकी के मुख्य क्षेत्रों को अलग करने के लिए एक रंग कोड विकसित किया: सफेद ( औद्योगिक), हरा (कृषि), नीला (समुद्री और ताजा पानी), लाल ( दवा), भूरा (रेगिस्तानी जैव प्रौद्योगिकी), बैंगनी (पेटेंट और आविष्कार), दूसरों के बीच में।


Q.जैव प्रौद्योगिकी के तीन प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?

उत्तर– बायोटेक्नोलॉजी में वुडी प्लांट बायोलॉजी के तीन पहलू शामिल हैं: (1) इन विट्रो कल्चर, (2) प्लांट मेटाबोलाइट्स की मात्रा निर्धारित करने के लिए प्रतिरक्षात्मक तरीकों का उपयोग, और (3) जेनेटिक इंजीनियरिंग, यानी सामान्य यौन प्रजनन के बिना जीवों के बीच जीन का स्थानांतरण |


Q.जैव प्रौद्योगिकी में क्या पढ़ाया जाता है?

उत्तर – बायोटेक जैव रसायन, सूक्ष्म जीव विज्ञान, खाद्य प्रौद्योगिकी, फोरेंसिक विज्ञान, फार्मास्युटिकल और स्वास्थ्य सेवा, जैव सूचना विज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी सहित असंख्य विषयों को आश्रय देता है।


Q.भारत में जैव प्रौद्योगिकी की स्थापना कब हुई थी?

उत्तर – इतिहास 1986 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत बायोटेक्नोलॉजी विभाग (डी बी टी) की अलग से स्थापना करने से भारत में आधुनिक जीवविज्ञान और जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्रों विकास को नई शक्ति मिली है।


Q.जैव प्रौद्योगिकी का हमारे जीवन में क्या महत्व है?

उत्तर –जैवप्रौद्योगिकी रासायनिक निर्माण प्रक्रियाओं में कदमों को 80% या उससे अधिक तक सुव्यवस्थित करके, कपड़ों की सफाई के लिए तापमान को कम करके और सालाना 4. 1 बिलियन डॉलर की संभावित बचत करके, परिचालन लागत पर 50% या उससे अधिक की बचत करने के लिए निर्माण प्रक्रिया दक्षता में सुधार करके, उपयोग और निर्भरता को कम करके दनिया को ईंधन देती है।


Q.भारत का पहला जैव प्रौद्योगिकी जिला कौन सा है?

उत्तर – प्रदेश में प्रथम जैव प्रौद्योगिकी पार्क की स्थापना लखनऊ में की गई थी।


Q.जैव प्रौद्योगिकी में शामिल दो वैज्ञानिक कौन हैं?

उत्तर –इन चार वैज्ञानिकों-क्रिक, फ्रैंकलिन, वाटसन और विल्किंस ने डीएनए की डबल- हेलिक्स संरचना की खोज की, जिसने आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी का आधार बनाया।


Q.जैव प्रौद्योगिकी की शुरुआत कहां से हुई ?

उत्तर –हंगरी के कैरोली एरेकी ने 1919 के दौरान हंगरी में "बायोटेक्नोलॉजी " शब्द गढ़ा था, जो कच्चे माल को अधिक उपयोगी उत्पाद में परिवर्तित करने के आधार पर एक तकनीक का वर्णन करता है। उन्होंने एक हजार सूअरों के लिए एक बूचड़खाने का निर्माण किया और 50,000 सूअरों के लिए जगह के साथ एक मोटे खेत का भी निर्माण किया, जिसमें एक वर्ष में 100,000 से अधिक सूअरों का पालन-पोषण होता था।


Q.जैव प्रौद्योगिकी का सबसे पुराना उदाहरण क्या है?

उत्तर –जैव प्रौद्योगिकी का सबसे पहला उदाहरण पौधों और जानवरों को पालतू बनाना है। पालतू बनाना 10,000 साल पहले शुरू हुआ जब हमारे पूर्वजों ने पौधों को भोजन के विश्वसनीय स्रोत के रूप में रखना शुरू किया। चावल, जौ और गेहूं पहले पालतू पौधों में से थे।


Q.जैव प्रौद्योगिकी पार्क कहाँ स्थित है?

उत्तर –सही उत्तर लखनऊ है। जैव प्रौद्योगिकी पार्क, लखनऊ, को जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित किया गया है।


Q.भारत में कितने जैव प्रौद्योगिकी उद्योग हैं?

उत्तर –बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने भारतीय किसानों को सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों और संस्थानों से जोड़ने वाले 51 बायोटेक किसान हब को वित्त पोषित किया है, जिनमें से 44 चालू हैं। ये केंद्र देश के 15 अर्गो- जलवायु क्षेत्रों में स्थित हैं और 169 जिलों में गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं।


Q.जैव प्रौद्योगिकी खराब क्यों है?


उत्तर –मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित करता है।

जैव प्रौद्योगिकी से उन्नत फसलें मिट्टी से बहुत सारे पोषक तत्वों को सोख लेती हैं। पोषक तत्वों का अधिक सेवन मिट्टी की उर्वरता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, इसलिए हो सकता है कि भविष्य की फसलें न उगाई जा सकें या काटी जा सकें। इसके अतिरिक्त, किसान अक्सर इस समस्या को कम करने में मदद के लिए उर्वरकों का उपयोग करेंगे।


Q.जैव प्रौद्योगिकी के प्रभाव क्या हैं?

उत्तर –कृषि जैव प्रौद्योगिकी बीजों से किसानों को लाभ। दशकों के प्रलेखित साक्ष्यों से पता चलता है कि कृषि जैव प्रौद्योगिकी एक सुरक्षित और लाभकारी तकनीक है जो पर्यावरण और आर्थिक स्थिरता दोनों में योगदान करती है। किसान बायोटेक फसलों को चुनते हैं क्योंकि वे उपज बढ़ाते हैं और उत्पादन लागत कम करते हैं


Q.जैव प्रौद्योगिकी का सामाजिक प्रभाव क्या है?

उत्तर – कुछ लोग इसे सकारात्मक रूप से देखते हैं, यह सोचते हुए कि यह हो सकता है। दुनिया को बेहतर बनाने और कुछ गंभीर समस्याओं को हल करने में मदद करें। अन्य लोग अधिक संदेहपूर्ण हो सकते हैं, यह सोचकर कि यह अभी भी कुछ हद तक प्रायोगिक है और इसके कुछ नकारात्मक दुष्प्रभाव हो सकते हैं।


Q.भारत का पहला बायोटेक पार्क कहां है?

उत्तर –जितेंद्र सिंह ने जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के घाट्टी में उत्तर भारत के पहले बायोटेक पार्क का उद्घाटन किया- सीएसआईआर-भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान।


Q.क्या रोटी एक जैव प्रौद्योगिकी है?

उत्तर –पनीर की तरह, ब्रेड सबसे पुराने पारंपरिक जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों में से एक है। पिछली शताब्दी के आखिरी दशक में, हालांकि, आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी ने पुनः संयोजक एंजाइमों के रूप में बेकिंग उद्योग में रोटी सुधारक और कच्चे माल के रूप में प्रवेश किया है जो आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों से उत्पन्न हो सकते हैं।


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