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Organisms and Environment Class 12th biology notes pdf in hindi।।जीव और पर्यावरण कक्षा 12वी जीव विज्ञान नोट्स हिन्दी में

Organisms and Environment Class 12th biology notes pdf in hindi


 जीव और पर्यावरण कक्षा 12वी जीव विज्ञान नोट्स हिन्दी में 

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{ Short Introduction of Organisms and environment }


पारिस्थितिकी (Ecology) क्या है 


'पारिस्थितिकी' (Ecology) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम एच. रेटर ने सन् 1868 में ऑइकोलॉजी के रूप में किया। अर्नेस्ट हेकल ने सन् 1886 में पारिस्थितिकी की निम्न परिभाषा दी,


'जीवधारियों के कार्बनिक तथा अकार्बनिक वातावरण से बने पारस्परिक सम्बन्धों के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।


 • जीव पारिस्थितिकी की इकाई होते हैं।


•पारिस्थितिकी सिद्धान्त का प्रतिपादन ए. जी. टैन्सले ने किया था।


प्रो. रामदेव मिश्रा को भारतीय पारिस्थितिकी का जनक कहा जाता है। 


पारिस्थितिकी की सामान्यतया दो शाखाएँ होती हैं


1. स्वपारिस्थितिकी (Autecology) इसमें केवल एक जीव या एक जाति के प्राणियों का उनके वातावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। 


2. समुदाय पारिस्थितिकी (Synecology) इसमें किसी स्थान पर पाए जाने वाले समस्त जीवों के समूह (Community) के तथा वहाँ के वातावरण के साथ बने पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।


आवास एवं पारिस्थितिकीय निकेत किसे कहते है 


आवास प्रत्येक जीव के लिए एक प्राकृतिक वास स्थान है, जहाँ जीव वास करता है। आवास में जीव का कार्य अर्थात् उसकी अभिलाक्षणिक क्षमता, सहनशीलता तथा संसाधनों के उपभोग की क्षमता निकेत (Niche) कहलाती है। एक आवास में अनेक निकेत होते हैं।


इकोटॉन क्या है 


दो पारितन्त्रों के मिलने पर बना संक्रमण क्षेत्र, जिसमें दोनों पारितन्त्रों के जीव मिलते हैं, इकोटोन कहलाता है; जैसे- दलदल (Wetland), ज्वारनदमुख (Estuaries), आदि।


पारिस्थितिकीय कारक 


पर्यावरण का वह प्रत्येक भाग, जो संजीवों पर प्रभाव डालता है, पारिस्थितिक कारक कहलाता है।

 किसी स्थान के वानस्पतिक समूह को निम्न प्रकार के कारक प्रभावित करते हैं


प्रमुख अजैव कारक निम्न लिखित है


1. जलवायवीय या अजैवीय कारक

जलवायु सम्बन्धी कारक पादप के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं, सामान्यतया जलवायु ही किसी भी क्षेत्र के वातावरण को निर्धारित करती है। 

इनमें प्रमुख जलवायवीय कारक निम्नलिखित हैं।


• प्रकाश (Light) पादपों के लिए सूर्य ही एकमात्र ऊर्जा का स्रोत है। प्रकाश की आवश्यकता के अनुसार, पादपों को प्रकाशरागी (Photophilous) तथा छायारागी (Sciophilous) या छायाप्रिय (Shade loving) वर्गों में रखा गया है। प्रकाश का प्रभाव पादपों के प्रकाश-संश्लेषण, वाष्पोत्सर्जन, गतिविधि, प्रजनन, बीज के अंकुरण एवं भौगोलिक वितरण पर पड़ता है। प्रकाश का गुण, मात्रा एवं अवधि अथवा दीप्तिकाल, ये तीनों ही पादपों पर अपना प्रभाव डालते हैं।


• तापमान (Temperature) ताप वायु की गति, वाष्पन, जलवृष्टि, समुद्री धाराओं का संचालन, पृथ्वी की चट्टानों का छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर मिट्टी के कणों का निर्माण एवं अनेक जैविक क्रियाओं को प्रभावित करता प्रायः समस्त जैविक क्रियाएँ 0-50°C तापमान के अन्तर्गत होती हैं। इस तापमान की सीमा के

बाहर जैविक क्रियाएँ तुरन्त धीमी पड़ जाती हैं अथवा रुक जाती हैं। 

नोट पूरे वर्ष तापक्रम में होने वाले परिवर्तनों को सहने वाले पादप यूरिथर्मल (Eurythermal) कहलाते हैं।


जल (Water) पादपों की वृद्धि एवं विकास जल की प्राप्ति पर ही निर्भर करती है। पृथ्वी पर उपस्थित जल का अधिकांश भाग वर्षा से प्राप्त होता है। जल प्राप्ति के आधार पर पादपों को जलोद्भिद् (Hydrophytes ), समोद्भिद् (Mesophytes). मरुद्भिद् (Xerophytes) एवं लवणोद्भिद् (Halophytes) वर्गों में रखा जाता है।


वायु (Wind) तेज वायु मृदा अपरदन, अधिक वाष्पोत्सर्जन व वाष्पीकरण, वृक्षों के टूटने का प्रमुख कारण है। वायु परागण तथा फलों व बीजों के प्रकीर्णन में भी सहायक होती है।


वायुमण्डलीय गैसें (Atmospheric gases) पृथ्वी के तल से लगभग 15 किमी ऊपर तक की वायु से मौसम, जलवायु, आदि प्रभावित होते हैं, जिससे जीवधारियों पर उनका प्रभाव पड़ता है। 

नोट वायुमण्डल में नाइट्रोजन (N₂) = 78%, ऑक्सीजन (O₂) = 21% व कार्बन 'डाइऑक्साइड (CO₂) = 0.03% होता हैं।


2. मृदीय कारक

मृदा पृथ्वी की सतह की ऊपरी उपजाऊ परत है। मृदा निर्माण को मृदाजनन (Pedogenesis) कहते हैं। भारत में निम्न प्रकार की मृदाएँ पाई जाती है. काली मृदा, लेटेराइट मृदा, लाल मृदा, पर्वतीय मृदा, मरुस्थलीय मृदा, दलदली मृदा व तराई मृदा।


मृदा में उपस्थित सम्पूर्ण जल होलार्ड (Holard), पादपों द्वारा अवशोषित किया जाने वाला जल चेसाई (Chesard) तथा शेष जल इकार्ड (Echard) कहलाता है।


• विभिन्न स्थानों पर पाई जाने वाली मृदा की प्रकृति व गुण अलग-अलग होते हैं। मृदा संघटक, कण का आमाप और पुंजन मृदा की जलधारण क्षमता व अन्तः सवर्ण (Percolation) का निर्धारण करते हैं।


•किसी क्षेत्र की वनस्पति का निर्धारण वहाँ की मृदा के pH खनिज संघटन व स्थलाकृति के आधार पर होता है।


•मृदा परिच्छेदिका (Soil profile) पृथ्वी की सतह से नीचे शैलों तक भूमि की उर्ध्वकाट (Vertical section) को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं।


नोट चिकनी मृदा के कणों का व्यास 0.002 मिमी से भी कम होता है।


3. स्थलाकृतिक कारक

पृथ्वी के धरातल की आकृति जैसे- समुद्रतल से ऊँचाई भूमि की बाल एवं ढलान की दिशा से भी वनस्पति प्रभावित होती है।


4. जैवीय कारक

प्रत्येक पादप या जन्तु दूसरे पादपों अथवा जन्तुओं के साथ रहकर समुदाय Community) का निर्माण करता है। एक समुदाय के सभी सदस्यों का एक-दूसरे से व उस स्थान के वातावरण से सम्बन्ध बना रहता है।


किसी स्थान पर उपस्थित विभिन्न प्रकार के सभी राजीव जैसे- पादप, जन्तु मनुष्य तथा सूक्ष्मजीव, आदि जैविक कारकों (Biotic factors) के अन्तर्गत आते हैं। ये

पारितन्त्र में भिन्न-भिन्न भूमिकाएँ निभाते हुए पारिस्थितिक तन्त्र को सन्तुलित बनाए रखते हैं। 


• अजैवीय कारकों के प्रति अनुक्रियाएँ


अजैवीय कारकों के विरुद्ध जीव प्रतिकूल एवं विषम परिस्थितियों में अस्तित्व संघर्ष के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनाते हैं


• नियमन (Regulation) जीव अपने शरीर के आमूल-चूल तापमान का परासरण नियमन (Osmoregulation) द्वारा बाह्य वातावरण के साथ सामंजस्य बना लेते हैं। जिससे शरीर का तापमान, परासरणी सान्द्रण, आदि स्थिर रहता है। 


• संरूपण (Conformation) अधिकतर जीव आन्तरिक पर्यावरण एक जैसा नहीं बनाए रख पाते हैं। उनके शरीर का तापमान वातावरणीय तापमान के अनुसार बदलता रहता है। जलीय प्राणियों में शरीर के तरल की परासरणी सान्द्रता वातावरणीय जल की परासरणी सान्द्रता के अनुसार बदलती है। इन जीवों (जन्तु एवं पादप) को संरूपी (Conforment) कहते हैं।


• प्रवास (Migration) जब परिस्थितियाँ जीव के लिए अनुकूल नहीं होती, तो वे अपने जीवन को बचाने के लिए अनुकूल क्षेत्रों में चले जाते हैं, उदाहरण-

साइबेरिया प्रवासी पक्षी। 


• निलम्बन (Suspension) प्रतिकूल परिस्थितियों में अनेक जीवाणु, कवक एवं निम्न पादपों में विभिन्न प्रकार के मोटी भित्ति वाले बीजाणु उत्पन्न होते हैं। जिससे उन्हें विषम परिस्थितियों में जीवित रहने में सहायता मिलती है और जब उन्हें अनुकूल एवं उपयुक्त वातावरण मिल जाता है तब वे अपना अंकुरण प्रारम्भ करते हैं।


अनुकूलन

अनुकूलन से तात्पर्य, उन विशेष बाह्य अथवा आन्तरिक लक्षणों से हैं, जिनके कारण जीव किसी विशेष वातावरण में रहने, वृद्धि करने, फलने-फूलने तथा प्रजनन के लिए पूर्णतया सक्षम बन पाते हैं।


1. मरुद्भिद पादपों में अनुकूलन

•जड़े लम्बी व अधिक विकसित होती हैं, जिनमें मूलरोम तथा मूलगोप (Root cap) विकसित रहते हैं। तना कठोर व गठीला होता है।

• पत्तियाँ छोटी या रूपान्तरित हो जाती हैं, उदाहरण-नागफनी में पत्तियाँ काँटों में बदल जाती हैं तथा तना चपटा, मांसल तथा हरा हो जाता है, जिसे पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) कहते हैं।


•पत्तियों में रन्ध्र कम या पैसे हुए (Surken) होते हैं; उदाहरण-नागफनी, कनेर व कैजुराइना ।


• पत्तियों के ऊपर उपचर्म (Cuticle) की मोटी परत पाई जाती है।


2. जलोद्भिद पादपों में अनुकूलन


•इनमें मूल तन्त्र का अभाव या कम विकसित होती हैं, क्योंकि जल व खनिजों का अवशोषण पूर्ण सतह से ही होता है।


•पतियाँ पतली एवं पीतेदार होती हैं; उदाहरण- वैलिसनेरिया (Vaisneria) 


•इनमें वायुकोष पाए जाते हैं, जिससे ये जल की सतह पर हल्के होकर तैरते हैं; उदाहरण- टाइफा ।


3. लणोद्भिद पादपों में अनुकूलन

ये पादप समुद्र तटीय क्षेत्र दलदल (Wetland) में पाए जाते हैं। यहाँ से वन मैन्ग्रोव कहलाते हैं। ये भारत में बंगाल के सुन्दरवन मुम्बई, केरल व अण्डमान निकोबार द्वीप समूहों के समुद्री तटों पर पाए जाते हैं। इनमें निम्न विशेषताएँ पाई जाती है


जरायुजी अंकुरण (Viviparous germination) ऑक्सीजन की कमी के कारण पादपों पर ही बीजों का अंकुरण हो जाता है, उदाहरण- राइजोफोरा।


श्वसन मूल (Respiratory roots) इनकी जड़े ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्ती होती है। अतः ये भूमि से बाहर निकलकर श्वसन का कार्य करती हैं, जिसे न्यूमेटोफोर (Pneumatophore) कहते हैं। उदाहरण- राइजोफोरा


4. मरुस्थलीय / मरुद्भिद् जन्तुओं में अनुकूलन मरुद्भिद् जन्तु जल की आवश्यकता की पूर्ति आन्तरिक वसा के ऑक्सीकरण से पूर्ण करते हैं।


•कंगारु चूहा अपने उपापचय द्वारा बने जल पर निर्भर रहते हैं, यह कभी जल नहीं पीते हैं।


•कई जन्तुओं में मूत्र को सान्द्रित करने की क्षमता होती है, जैसे-ऊँट । 


• मरुस्थल प्रदेशों में पाए जाने वाले कुछ जीव ग्रीष्म निष्क्रियता दर्शाते हैं।


5. ठण्डे वातावरण के जन्तुओं में अनुकूलन

ऐलन के अनुसार, ठण्डी जलवायु में रहने वाले स्तनधारियों के कर्म एवं पाद सामान्यतया छोटे होते हैं, ताकि ऊष्मा का क्षय कम हो। ध्रुवीय समुद्रों में सील जैसे स्तनधारियों में त्वचा के नीचे वसा की मोटी परत होती है, जो ऊष्मारोधी (Insulator) का कार्य करती है और शरीर की ऊष्मा हानि को कम करती है।


6. उच्च तुंगता वाले मानवों में अनुकूलन मैदानी भागों में रहने वाले व्यक्ति जब पहाड़ों पर ऊँचाईयों पर जाते हैं, तो वे तुंगता रोग (Altitude sickness) से ग्रसित हो जाते हैं। 


• उनमें हृदय स्पन्दन एवं जी मिचलाने जैसी शिकायते होने लगती हैं। जिसका कारण ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी होना है।


•शरीर कम ऑक्सीजन उपलब्ध होने की क्षतिपूर्ति, लाल रुधिर कोशिका का उत्पादन बढ़ाकर, हीमोग्लोबिन की बंधनकारी क्षमता घटाकर और श्वसन दर बढ़ाकर कर लेता है।


नोट कुछ सूक्ष्मजीव 100°C से अधिक तापमान पर, जैव-रासायनिक क्रियाओं द्वारा अनुकूलन उत्पन्न कर जीवित रहने में सक्षम होते हैं।


समष्टि या जनसंख्या

एक ही समय में एक ही क्षेत्र में रहने वाले एक ही जाति के जीवों के समूह को जनसंख्या या समष्टि कहते हैं। समष्टि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं 


1. घनत्व (Density) एक निश्चित स्थान एवं समय में आवास के इकाई आयतन में पाए जाने वाले प्राणियों की कुल संख्या समष्टि का घनत्व कहलाती है।

D= N / S


2. जन्म दर (Birth rate or Natality) किसी जनसंख्या में एक निश्चित समयावधि में नए सदस्यों के उत्पन्न होने की दर को जन्म दर कहते हैं।


3 मृत्यु दर (Death rate of Mortality) किसी जनसंख्या में एक निश्चित समयावधि में मरने वाले व्यक्तियों की मख्या मृत्यु दर कहलाती है।


4. आयु वितरण (Age distribution) किसी समष्टि में प्रत्येक आयु वर्ग (प्रजनन पूर्व प्रजनन समय तथा प्रजनन उपरान्त) में सदस्यों की संख्या को आयु

वितरण कहते हैं।


5. आयु संरचना (Age structure) आयु संरचना किसी समष्टि में उपस्थित व्यक्तियों के आयु वर्गों का प्रतिशत है। आयु संरचना किसी भी समष्टि की जन्मदर व मृत्यु दर दोनों से प्रभावित होती है।


6. आयु पिरामिड (Age pyramid) किसी समष्टि में उपस्थित जीवो के विभिन्न आयु वर्गों के सदस्यों की संख्या को रेखागणितीय रूप से प्रदर्शित करने पर

जो संरचना प्राप्त होती है. उसे आयु पिरामिड कहते हैं।


7. जैविक विभव (Biotic potential) किसी पर्यावरणीय गतिरोध के अभाव में जीव की अन्तर्निहित प्रजनन या संख्या वृद्धि क्षमता ही जैविक विभव कहलाती है।


8. पर्यावरणीय प्रतिरोध (Ecological estan जनसंख्या या जैविक विभव या नियंत्रण पर्यावरणीय प्रतिरोध कहलाता है। यह अजैविक तथा जैविक कारकों के सीमित प्रभाव को दर्शाता है।


समष्टि वृद्धि क्या है 

प्रत्येक जाति की वृद्धि लाक्षणिक प्रतिरूप (Characteristic pane के साथ बढ़ती है। इन लाक्षणिक प्रतिरूपों को ही वृद्धि चक्र (Growth curve) कहते हैं। इस वृद्धि के दो मौलिक रूप होते हैं


1. S-वक्र या सिग्मॉइड वक्र इस प्रकार की वृद्धि में प्रारम्भ में धीमी गति से, शीघ्र ही तीव्र गति से व अन्त में प्रतिस्पर्धा या सीमित संसाधनों के कारण स्थिर वृद्धि देखने को मिलती है। इसे निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है।


dN/dt = rN[ (K – N)/K]  = rN[ 1 – N/K]


2. J वक्र या ज्यामितीय वक्र जब किसी समष्टि के लिए असीमित संसाधन हो तथा पर्यावरणीय प्रतिरोध न हों तब सुमष्टि में निरन्तर तीव्रता से वृद्धि होती है तथा इसके पश्चात् एकसाथ रुक जाती है, क्योंकि अचानक से पर्यावरणीय गतिरोध अधिक प्रभावशाली हो जाते हैं। इस प्रकार की समष्टि वृद्धि के लिए J-आकार का वक्र प्राप्त होता है। इस प्रकार की वृद्धि को निम्नलिखित समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।


dN/dt =rN


समष्टि पारस्परिक क्रियाएँ


जैविक समुदाय में पारस्परिक निर्भरता तथा पारस्परिक अन्तः क्रियाएँ निरन्तर होती रहती है. इनमें कुछ प्रमुख पारस्परिक अन्त क्रियाएँ निम्नलिखित हैं


 1. परभक्षण (Predation) यह एक ऐसी ऋणात्मक पारस्परिक क्रिया है, जिसमें एक जीव दूसरे जीव का भक्षण करता है, उदाहरण के लिए सभी माँसाहारी परभक्षण की क्रिया करते है, केवल 25% ही पादपभक्षी हैं। अनेक परभक्षियों का उपयोग पीड़कों के जैव नियन्त्रण में किया जाता है, उदाहरण-चींटीखोरों, गौरेया, मेंढक, आदि के द्वारा कीटों व पीड़कों की संख्या नियन्त्रण में रहती है। 

नोट ऐसे जीव जो पादप का रस या उसके कोमल भागों का भक्षण करते है, पादपभोजी कहलाते हैं, कीटभक्षी पादप कुछ पादप नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए अपनी विशिष्ट संरचनाओं द्वारा कीटों का भक्षण करते हैं। ऐसे पादप कीटभक्षी पादप कहलाते हैं, जैसे-ड्रोसेरा, नेपेन्थीस ।


2. प्रतिजीविता या विरोधी (Antibiosis or Antagonism) एक जीव की जटिल उपापचयी क्रियाओं द्वारा उत्पन्न वृद्धिरोधक रासायनिक पदार्थों द्वारा किसी दूसरे जीव की वृद्धि को पूर्ण या आंशिक रूप से रोक देना प्रतिजीविता कहलाती है।


3. सहभोजिता (Commensalism) एक जीव-दूसरे जीव को हानि पहुँचाए बिना ही लाभान्वित होता है, जैसे ऑर्किड, आरोही एवं कण्ठलताएँ।


 4. परजीविता (Parasitism) जब एक जीव या पादप भोजन के लिए दूसरे जीव या पादप पर आश्रित होता है। ये कई प्रकार के होते हैं; उदाहरण-पूर्ण तना परजीवी (Cuscuta), पूर्ण मूल परजीवी (Orobanche), टीनिया, आदि।


 5. मृतोपजीवी (Saprophytes) ये मृत या सड़े-गले जीवों या कार्बनिक पदार्थों से भोजन ग्रहण करते हैं, जैसे म्यूकर, राइजोपस एवं जीवाणु


6. सहोपकारिता या सहजीविता (Symbiotic) यह दो भिन्न जातियों के मध्य एक प्रकार का धनात्मक अन्तर्सम्बन्ध है, जिससे दोनों जीवों या किसी एक को ही लाभ होता है, परन्तु दोनों में से हानि किसी को नहीं होती हैं, जैसे-लाइकेन में शैवाल व कवक । मनुष्य की आंत में सूक्ष्मजीव ई. कोलाई व लेक्टोबैसिलस ।


7. प्रतिस्पर्धा (Competition) दो या दो से अधिक सदस्यों के बीच स्थान, जल, खनिज ऊर्जा एवं अन्य संस्थानों के लिए स्पर्धा रहती है; जैसे दो शेरों या बाघों में।


की-स्टोन प्रजातियाँ

वे प्रजातियों, जो किसी समुदाय में प्रचुरता या जैवभार की अल्पता के उपरान्त भी समुदाय के अभिलक्षणों को प्रभावित करती है, की स्टोन प्रजातियाँ कहलाती हैं। ये प्रजातियाँ अपनी परस्पर क्रियाओं से समुदाय की संरचना एवं जैविक घटकों को परिवर्तित करती है। ऑस्ट्रेलिया के कंगारू चूहे स्टोन प्रजाति के अन्तर्गत आते हैं तथा इनके निष्कासन मात्र से रेगिस्तान हरे-भरे चरागाहों में बदल सकते हैं।


(Organisms and Environment Objective Questions Answer )

{जीव और पर्यावरण से पूछे जाने वाले सभी महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर}


          बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. जीव तथा उसके वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन कहलाता है


(a) पारिस्थितिकी


(b) पारिस्थितिक तन्त्र


(c) पादप भूगोल 


(d) पादप सामाजिकी


उत्तर (a) पारिस्थितिकी


प्रश्न 2. पारिस्थितिकी सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाले वैज्ञानिक का नाम बताइए।


(a) ए. जी. टैन्सले


(b) के. आर. स्पोर्न


 (c) जे. डी. वाट्सन


(d) एफ. एच. सी. क्रिक


उत्तर (a) ए. जी. टैन्सले


प्रश्न 3. पारिस्थितिक तन्त्र से सम्बन्धित भारतीय वैज्ञानिक है 


(a) बीरबल साहनी 


(b) आर. मिश्रा


(c ) राम उदार


(d) के. सी. मेहता


उत्तर (b) प्रो. रामदेव मिश्रा को भारतीय पारिस्थितिकी का जनक कहा जाता है।


प्रश्न 4.स्वपारिस्थितिकी है


(a) समष्टि का पर्यावरण से सम्बन्ध


(b) जीव का पर्यावरण से सम्बन्ध 


(c) समुदाय का पर्यावरण से सम्बन्ध


(d) जीवोम का पर्यावरण से सम्बन्ध


उत्तर (b) किसी प्राणि या किसी एक जाति एवं उनके वातावरण के बीच पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन स्वपारिस्थितिकी कहलाता है।


प्रश्न 5. पारिस्थितिक निकेत है


(a) समुद्री तल


(b) पारिस्थितिक रूप से अनुकूलित क्षेत्र 


(c) किसी समुदाय के जीव का जैविक पर्यावरण में स्थान


(d) किसी झील के तल पर उपस्थित जन्तु एवं वनस्पति 


उत्तर (c) पारिस्थितिक निकेत किसी जीव का जैविक पर्यावरण में स्थान एवं उसकी क्रियाशीलता दर्शाता है।


प्रश्न 6. इकोटॉन (Rootone) है


(a) प्रदूषित क्षेत्र 


(b) किसी झील का तल


(c) दो समुदायों के सम्मिश्रण का स्थल


(d) एक समुदाय के विकास का क्षेत्र


उत्तर (c) इकोटॉन वह स्थान व क्षेत्र है जहाँ दो प्रमुख समुदायों का सम्मिश्रण होता है या यह दो जीवोम के बीच का संक्रमण (Transition) क्षेत्र होता है।


प्रश्न 7. पूरे वर्ष तापक्रम में होने वाले परिवर्तनों को सहने वाले पादप कहलाते हैं


(a) स्टनोथर्मल


(b) यूरिथर्मल


(c) माइक्रोधर्मल


(d) हेकस्टोथर्मल


उत्तर (b) यूरिथर्मल


प्रश्न 8. मृदा में उपस्थित जल की कुल मात्रा को कहते हैं


(a) होलार्ड


(b) बेसार्ड 


 (c) इकार्ड


 (d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (a) होलार्ड


प्रश्न 9. चिकनी मृदा के कणों का व्यास होता है।


(a) 0.20-2.0 मिमी


(b) 0.02-0.20 मिमी


(c) 0.002-0.02 मिमी


(d) 0.002 मिमी से कम


उत्तर (d) चिकनी मृदा के कणों का व्यास 0.002 मिमी से भी कम होता है।


प्रश्न 10. जड़ें सुविकसित होती हैं


(a) जलोद्भिद में 


(b) मरुद्भिद में


(c) लवणोद्भिद में


 (d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) मरुद्भिद् में।


प्रश्न 11 समुद्र के किनारे उगने वाले पादप कहलाते हैं। 


(a) जलोद्भिद्


(c) हैलियोफाइट


(b) लवणोद्भिद्


 (d) मीसोफाइट


उत्तर (b) लवणोद्भिद्


प्रश्न 12. निम्नलिखित में कौन-सा लक्षण मरुस्थलीय पौधे का नहीं है? 


(a) पत्ती पर मोटी उपत्वचा होती है।


(b) रन्ध्र गहरे गर्त में व्यवस्थित होते हैं। 


(c)पत्तियों का कार्य तना करने लगता है।


(d) पत्तियों पर रन्ध्र, दोनों सतहों पर, बराबर संख्या में पाए जाते हैं


 उत्तर (d) पत्तियों पर रन्ध्रों का दोनों सतहों पर बराबर संख्या में पाया जाना मरुस्थलीय पौधों का लक्षण नहीं है। में यह सहजीवी सहचर्य हैं


प्रश्न 13. लाइकेन्स जो पारिस्थितिक अनुक्रम को प्रारम्भ करने से सक्षम हैं, 


(a) शैवाल और जीवाणु


(c) जीवाणु और कवक 


(d) जीवाणु और फंजाई 


(b) शैवाल ओर कवक


उत्तर (b) शैवाल और कवक


प्रश्न 14.लाइकेन्स में फंगस तन्तु पोषण प्राप्त करते हैं


(a) वायु से 


(b) शैवालों से


(c) मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों से 


(d) उपरोक्त में से किसी से नहीं


उत्तर (b) शैवालों से


प्रश्न 15. ऐसी पारस्परिक क्रिया जिसमें एक जाति को लाभ होता है और दूसरी को न लाभ होता है न हानि, उसे कहते हैं


 (a) अन्तरजातीय परजीविता 


(c) सहोपकरिता 


(d) स्पर्धा


(b) सहभोजिता


उत्तर (b) सहभोजिता


[ Organisms and Environment Short Question Answers जीव और पर्यावरण से पूछे जाने वाले सभी महत्वपूर्ण अतिलघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर ]


         अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. पारिस्थितिक तन्त्र के जीवीय या जैविक घटकों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

उत्तर पारिस्थितिक तन्त्र में पाए जाने वाले सभी जीव जैसे- पादप, जन्तु मानव सूक्ष्मजीव, जीवाणु, विषाणु, कवक, आदि इसके जैविक घटक होते हैं। ये परितन्त्र में भिन्न-भिन्न भूमिकाएं निभाते हुए पारिस्थितिक तन्त्र को सन्तुलित बनाए रखते हैं।


प्रश्न 2. वायुमण्डल में N₂ तथा CO₂ का क्या प्रतिशत है? 

उत्तर N₂ = 78% तथा CO₂ = 0.03% 


प्रश्न 3. निकेत को परिभाषित कीजिए।

 उत्तर - प्रत्येक जीव जाति विशिष्ट कार्य एवं आवास ग्रहण करती है। कार्य क्रियाशीलता एवं आवास के सम्मिश्रण को पारिस्थितिकी निकेत कहते हैं।


प्रश्न 4. इकोटोन पर टिप्पणी लिखिए।

 उत्तर दो पारितन्त्रों के मिलने पर बना संक्रमण क्षेत्र, जिसमें दोनों पारितन्त्रों के जीव मिलते हैं, इकोटोन कहलाता है; जैसे- दलदल (Wetland),

ज्वारनदमुख (Estuarines), आदि।


 प्रश्न 5. अधिकांश जीवधारी 45°C से अधिक तापमान पर जीवित नहीं रह सकते। कुछ सूक्ष्मजीव (Microbes) ऐसे आवास में जहाँ तापमान 100°C अधिक है, कैसे जीवित रहते हैं?


उत्तर कुछ सूक्ष्मजीवी 100° C से अधिक तापमान पर इसलिए जीवित रह सकते है, क्योंकि वह कई प्रकार के जैव-रासायनिक अनुकूलन उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं, जैसे कठोर कोशिका भिति का पाया जाना, उच्च ताप पर क्रियाशील एन्जाइम, आदि।


प्रश्न 6. मैदानों की अपेक्षा अधिक ऊँचाई के प्रदेशों में प्रकाश की तीव्रता अधिक व तापमान कम क्यों होता है? 


उत्तर अधिक ऊँचाई के प्रदेशों में प्रकाश की तीव्रता अधिक होने के कारण सूर्य से पृथ्वी की दूरी तथा वायु में उपस्थित अशुद्धि एवं वाष्प का कम होना है, जबकि

कम वायुमण्डलीय दाब के कारण इन प्रदेशों का तापमान कम होता है


 प्रश्न 7. दो बाह्योष्मी प्राणियों के नाम लिखिए।

उत्तर सांप एवं छिपकली।


प्रश्न 8. नागफनी के पादप में पत्तियाँ काँटों में क्यों परिवर्तित हो जाती हैं?

अथवा मरुद्भिद् पादपों में काँटे किसका रुपान्तरण हैं?


उत्तर मरुदभिद पादपों (जैसे-नागफनी) में पत्तियों वाप्पोत्सर्जन की दर को कम करने के लिए काँटों में रूपान्तरित हो जाती है। इससे जल की हानि को कम

किया जा सकता है।


प्रश्न 9. जलोदभिद पादपों में जड़ें प्रायः अविकसित होती है, क्यों? 

उत्तर – जलोद्भिद् पादप शरीर की सतह से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण कर लेते हैं। अतः इनमें जड़ें अविकसित होती हैं।


प्रश्न 10. जरायुजी अंकुरण क्या है? यह किस पादप में पाया जाता है? 


अथवा जरायुजता क्या है?


अथवा जरायुजी अकुंरण किस पादप में पाया जाता है?


अथवा मैंग्रोव पादपों पितृस्थ अंकुरण (जरायुजता) एक विशिष्ट अनुकूलन है। स्पष्ट कीजिए।


 अथवा पितृस्थ अकुंरण पर टिप्पणी लिखिए।


उत्तर – जब बीज का अंकुरण मातृ पादप पर ही हो जाता है तो उसे जरायुजी अंकुरण कहते हैं तथा यह गुण जरायुजता कहलाता है। जरायुजता मैंग्रोव वनों

(लवणोद्भिदों) (उदाहरण- राइजोफोरा) में पाया जाने वाले विशिष्ट अनुकूलन है। इससे पादप मृदा की अत्यधिक लवणीय दशा से बच कर वृद्धि करता है।


 प्रश्न 11. उस पादप का नाम लिखिए, जिसमें ऋणात्मक श्वसन मूलें पाई जाती हैं?

उत्तर राइजोफोरा (Rhizophora)


प्रश्न 12. दो कीट भक्षी पादपों के नाम लिखिए।

उत्तर नेपेन्थीज (Nepenthes) एवं यूट्रीकुलेरिया (Utricularia) 


प्रश्न 13. चरघाताकी वृद्धि के समीकरण को लिखिए।


उत्तर dN/dt = rN


जहाँ r = प्राकृतिक वृद्धि की नैसर्गिक दर

t= समय


N= समष्टि का आकार (जनसंख्या)


dN/ dt समष्टि के आकार में परिवर्तन की दर (वृद्धि दर)


प्रश्न 14. सहजीवी से आप क्या समझते हैं?

 अथवा सहजीवी पादप पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर यह दो भिन्न जातियों के मध्य एक प्रकार का धनात्मक अन्तसम्बन्ध है,जिसमें दोनों जीवों या किसी एक को ही लाभ होता है, परन्तु दोनों में से हानि किसी को नहीं होती है; उदाहरण- लाइकेन।


प्रश्न 15. मानव की आँत में पाए जाने वाले किन्हीं दो सूक्ष्मजीवों के वैज्ञानिक नाम बताइए।

उत्तर मानव की आँत में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव इस प्रकार है-इश्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) व लैक्टोबैसिलस (Lactobacillus)।


प्रश्न 16. वे जीव, जो पादप रस या पादप के कोमल भागों को खाते हैं, क्या कहलाते हैं? हैं।

उत्तर ऐसे जीव जो पादप का रस या उसके कोमल भागों का भक्षण करते पादपभोजी शाकाहारी जन्तु कहलाते हैं।


प्रश्न 17. कीट/पीड़कों (Pest/Insects) के प्रबन्ध के लिए जैव-नियन्त्रण विधि के पीछे क्या पारिस्थितिक सिद्धान्त है? 

उत्तर – परभक्षियों; जैसे-गौरेया, मेढक, चोटीखोर द्वारा कीटो व पीड़कों के भक्षण से इनकी संख्या नियन्त्रण में रहती है। प्रकृति में पीड़कों व कौटों के नियन्त्रण की यह महत्वपूर्ण विधि है।


प्रश्न 18. की-स्टोन (Key-stone) प्रजाति किसे कहते हैं?

अथवा की-स्टोन प्रजाति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। अथवा किस की स्टोन प्रजाति के निष्कासन मात्र से रेगिस्तान हरे-भरे चरागाह में बदल सकते हैं?


उत्तर वे प्रजातियों, जो किसी समुदाय में प्रचुरता या जैवभार की अल्पता के उपरान्त भी समुदाय के अभिलक्षणों को प्रभावित करती है, की स्टोन प्रजातियों कहलाती है। ये प्रजातियाँ अपनी परस्पर क्रियाओं से समुदाय की संरचना एवं जैविक घटकों को परिवर्तित करती है। जैसे-ऑस्ट्रेलिया में कंगारू चूहों के निष्कासन मात्र से रेगिस्तान हरे-भरे चरागाहों में बदल सकते हैं।


[ Organisms and Environment Short Question Answers]


            लघु उत्तरीय प्रश्न I 2 अंक


प्रश्न 1. पारिस्थितिकी किसे कहते हैं? पारिस्थितिकी की कितनी शाखाएँ होती है?


उत्तर जीव तथा उसके वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन पारिस्थितिकी कहलाता है। पारिस्थितिकी की सामान्यतया दो शाखाएं होती है


1. स्वपारिस्थितिकी (Autecology) इसमें केवल एक जीव या एक जाति के प्राणियों का उनके वातावरण के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है। 


2. समुदाय पारिस्थितिकी (Synecology) इसमें किसी स्थान पर पाए जाने वाले समस्त जीव समूह के वहाँ के वातावरण से पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।


प्रश्न 2. बायोस्फीयर पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – जैवमण्डल पृथ्वी का वह भाग होता है, जहाँ सजीव निवस करते हैं। यह 'स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल में सम्मिलित रूप से विद्यमान होता है। प्रायः यह जल में समुद्र तल से 6 किमी नीचे एवं वायु मे स्थल से 8 किमी ऊपर तक पाया जाता है।


प्रश्न 3. पर्यावरणीय कारक किसे कहते हैं? इसके प्रकार लिखिए।

अथवा वनस्पति समूह को प्रभावित करने वाले किन्ही दो पारिस्थितिक कारकों का उल्लेख कीजिए।


अथवा अजीवीय (Abiotic) पर्यावरणीय कारकों की सूची बनाइए।


उत्तर – पर्यावरण का वह प्रत्येक भाग, जो सजीवों पर अपना प्रभाव डालता है, पर्यावरणीय कारक कहलाता है।


ये निम्न प्रकार के होते हैं


1. जलवायवीय कारक (Climatic factors); जैसे- प्रकाश, ताप, जल एवं वायु।


 2. मृदीय कारक (Edaphic factors) जैसे मृदा के कणों को आमाप, मृदीय जल एवं वायु। 


3. स्थलाकृतिक कारक (Topographic factors), जैसे-ऊँचाई एवं हाल


4. जैविक कारक (Biotic factors); जैसे- पादप, जन्तु, जीवाणु, विषाणु आदि।


प्रश्न 4. प्रकाश का पादपों पर प्रभाव लिखिए।


अथवा पादपों के लिए प्रकाश के महत्त्व पर टिप्पणी कीजिए। 


उत्तर प्रकाश पादप के जीवन को निम्न प्रकार से प्रभावित करता है


1. पादप सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरिम का निर्माण करते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का महत्त्वपूर्ण अवयव होता है। 


2. यह पादप अंगों का तापमान बढ़ा देता है, जिससे पादप की जैविक क्रियाएँ प्रभावित होती है।


3. प्रकाश द्वारा तापमान वृद्धि के कारण वाष्पोत्सर्जन की दर प्रभावित होती है।


4. प्रकाश के कारण रन्ध्रो (Stomata) के खुलने व बन्द होने की क्रिया प्रभावित होती है।


5. प्रकाश बीज अंकुरण एवं भौगोलिक वितरण पर भी प्रभाव डालता है। 


 प्रश्न 5. छायोद्भिद को उदाहरण देते हुए लिखिए।

उत्तरछायोभिद् या छाया प्रिय (Sciophilous or Heliophobous) पादप वे पादप, जो केवल छायादार स्थानों में ही अच्छी प्रकार से उगते हैं, अधिक प्रकाश में यह मुरझा जाते है जैसे एबीस (Abies), पाइसिया (Picea), टेक्सस (Taxus), आदि। ये पादप दुर्बल, पर्व लम्बे तथा पीलापन लिए होते हैं। इनकी जड़ें कम विकसित होती है। इनकी पत्तियाँ बड़ी, चौड़ी, पतली व कोमल होती है। इनकी कोशिकाएँ बड़ी तथा इनके बीच अन्तरकोशिकीय स्थान अधिक बड़े होते है। इन पादपों में बाह्यत्वचा पतली तथा रन्ध्र बड़े व दोनो सतहों पर होते हैं। इनमें पुष्प खिलने के लिए अधिक समय लेते हैं तथा इनकी संख्या बहुत कम होती है। इनमें सूखे व ताप से बचने की क्षमता कम होती है।


प्रश्न 6. शीत निष्क्रियता से उपरति किस प्रकार भिन्न है?

 उत्तरशीत निष्क्रियता (Hibernation) शीत ऋतु में प्रतिकूल परिस्थितियों में जन्तु पलायन से बचने के लिए व अपने आप को जीवित रखने के लिए शीत निष्क्रियता में चले जाते हैं उदाहरण- भालू, गिलहरी, आदि। 

उपरति (Diapause) प्रतिकूल परिस्थिति में प्राणिप्लवक की अनेक जातियाँ उपरति में आ जाती हैं, जो निलम्बित परिवर्धन (Suspended development) की एक अवस्था है। 


प्रश्न 7. अगर समुद्री मछली को अलवणीय जल (फ्रेश वाटर) की जलजीवशाला (Aquarium) में रखा जाता है, तो क्या वह मछली जीवित रह पाएगी? क्यों और क्यों नहीं?


उत्तर – समुद्री मछली अलवणीय जल में रखने पर मृत हो आती है, क्योंकि समुद्री मछली लवणीय जल के लिए अनुकूलित होती है, जब जल इसके शरीर में जाता है, तो अन्तःपरासरण की क्रिया होती है और मछली के शरीर में लवण अवशोषण की क्रियाविधि नहीं हो पाती है।


प्रश्न 8. ऊँचाई तुंगता प्रभाव क्या है? इसके लक्षण बताइए। 


अथवा लक्षणप्रारूपी (Phenotypic) अनुकूलन की परिभाषा दीजिए। एक उदाहरण दीजिए।


उत्तर मैदानी भागों में रहने वाले व्यक्ति जब पहाड़ों पर ऊंचाईयों पर जाते है, वे तुंगता रोग (Altitude sickness) से प्रसित हो जाते हैं। उन्हें हृदय स्पन्दन एवं जी मिचलाने जैसी शिकायतें होने लगती है। जिसका कारण ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी होना है, परन्तु व्यक्ति उस क्षेत्र के प्रति पर्यानुकूलित हो जाता है और उसे तुंगता रोग नहीं होता है। शरीर कम ऑक्सीजन उपलब्ध होने की क्षतिपूर्ति लाल रुधिर कोशिका का उत्पादन बढ़ाकर हीमोग्लोबिन की बंधनकारी क्षमता घटाकर और श्वसन दर को बढ़ाकर कर लेता है। इस प्रकार के अनुकूलन को लक्षणप्रारूपी अनुकूलन कहते हैं। 


प्रश्न 9. पादपों में शाकाहारिता (Herbivore) के विरुद्ध रक्षा करने की महत्त्वपूर्ण विधियाँ बताइए। 


उत्तर पत्तियों में निम्न रक्षात्मक अनुकूलन पाए जाते हैं

•पत्ती के किनारों पर कांटों का होना।

•पतियों का कांटों के रूप में रूपान्तरित होना

•पतियों के किनारे ब्लेड के समान धारदार होना

• पादपों में विशिष्ट गन्ध का होना, जिससे कीट या जानवर उसे खा ना सकें।


प्रश्न 10. कारण स्पष्ट कीजिए।

(i) जलोदभिदों में वायु अवकाश अत्यधिक विकसित होते हैं। 


अथवा जलोदभिद पादपों में वायु अवकाशों के मुख्य कार्य क्या है?



(ii) मध्योदद्भिद् पादप नमक के जल में रखने पर मर जाता है। 


उत्तर (i) जलोद्भिद पादपों में पाए जाने वाले वायु अवकाश पादपों को जल में तैरने में सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त यह गैसों के विनिमय में भी सहायता करते हैं।


(ii) मध्योदभिद्या समोदभिद पाद ऐसे स्थानों पर पाए जाते हैं, जहाँ पर जल की उचित मात्रा उपलब्ध होती है। नमक के जल में रखने पर या अत्यधिक उर्वरक का प्रयोग करने पर जीवद्रव्यकुंचन के कारण पादपों से जल बाहर निकल जाता है और कुछ समय पश्चात् पादप मर जाते हैं।


प्रश्न 11. किसी जलोद्भिद् पादप के पर्णवृत्त की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए।




प्रश्न 12 अनुकूलन किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए कि लवण मृदोद्भिद् पौधे अपने वातावरण के अनुकूल है। 

उत्तर वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को सहने के लिए वातावरणीय प्रभावों के कारण जीवों में संरचनात्मक कार्यात्मक तथा आकारिकीय परिवर्तन ही पारिस्थितिकीय अनुकूलन कहलाता है। 


प्रश्न 13. एक आवास में प्रति इकाई क्षेत्रफल में जनसंख्या घनत्व अलग-अलग इकाइयों में मापा जाता है। निम्न की मापक इकाइयों लिखिए।


(i) जीवाणु


(ii) बरगद


 (iii) हिरण


 (iv) मछली


उत्तर


(i) संख्या प्रति घन इकाई


(ii) जैवभार / संख्या प्रति इकाई वर्ग क्षेत्रफल


(iii) संख्या प्रति वर्ग क्षेत्रफल


(iv) जैवभार / संख्या प्रति घन आयतन प्रति वर्ग क्षेत्रफल


प्रश्न 14. सहजीवन पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा सहजीविता किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए। 


उत्तरसहजीवन (Symbiosis) इस पारस्परिक सम्बन्ध में दोनों जीवों को परस्पर लाभ होता है। यह सहजीवी (Symbiotic) सम्बन्ध कहलाता है; उदाहरण-


1. कवकों और उच्चकोटि के पादपों की जड़ों के बीच कवकमूल (माइकोराइजा) सहचर्य है। यहाँ कवक मृदा से पोषक तत्वों के अवशोषण में पादपों की सहायता करते हैं, जबकि बदले में पादप कवकों को ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट के रूप में प्रदान करते हैं।


2. मटर कुल के पादपों की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु की उपस्थिति । 


3. लाइकेन में कवक तथा शैवाल का सहचर्य सम्बन्ध, जहाँ शैवाल कवक को भोजन उपलब्ध करवाता है तथा बदले में कवक से जल तथा खनिज लवण प्राप्त करता है।


प्रश्न 15. सहोपकारिता (परस्परता) किसे कहते हैं? उदाहरण देकर इसे स्पष्ट कीजिए ।


अथवा सहोपकारिता को परिभाषित कीजिए । अथवा परस्परता तथा सहभोजिता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।


अथवा निम्नलिखित शब्दों को परिभाषित कीजिए तथा प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। 


(i) परजीविता


(ii) सहोपकारिता


अथवा सहोपकारिता (परस्परता) पर टिप्पणी कीजिए।


अथवा सहोपकारिता को परिभाषित कीजिए तथा इसका एक उदाहरण दीजिए।


अथवा उपयुक्त उदाहारणों के साथ सहोपकारिता की व्याख्या कीजिए।


उत्तरसहोपकारिता (परस्परता) इस पारस्परिक सम्बन्ध में दोनों जीवों या पादपों को लाभ होता है। यह सम्बन्ध अविकल्पी (लाइकेन, कवकमूल, आदि) तथा विकल्पी (पुष्पों में कीट परागण) प्रकार का हो सकता है। 


सहभोजिता इसमें दो जीव साथ-साथ रहते हैं, किन्तु इसमें एक ही लाभान्वित होता है तथा दूसरे को हानि नहीं होती है; जैसे-अधिपादप ऑर्किड, दूसरे पादपों पर उगते हैं एवं एकीनस (जो एक चूषक मछली है।) तथा शार्क के बीच।


प्रश्न 16. सहभोजिता किसे कहते हैं? इस पर टिप्पणी कीजिए। 

अथवा सहभोजिता (कमेसलिज्म) को परिभाषित कीजिए तथा इसका एक उदाहरण दीजिए।


 अथवा सहभोजिता से आप क्या समझते हैं? एक उदाहरण दीजिए।


अथवा सहभोजिता का वर्णन कीजिए। 


अथवा ऑर्किड पादप आम के पेड़ की शाखा पर उग रहा है। ऑर्किड और आम के पेड़ के बीच पारस्परिक क्रिया को आप कैसे स्पष्ट करेंगे?

उत्तर –  जब एक जीव या पादप बिना दूसरे जीव या पादप को हानि पहुँचाए ही लाभान्वित होता है, तो इसे सहजता (Commensalism) कहते हैं; उदाहरण- ऑर्किड, आरोही एवं कण्ठलताएँ।


यदि दोनों सहयोगी भौतिक सम्बन्ध स्थापित किए बिना ही परस्पर लाभान्वित होते है, तो इसे आदि-सहयोग कहते हैं; जैसे-मूलपरिवेश सूक्ष्म वनस्पति जात (Rhizosphere microflora ) एवं सी एनीमोन जो हर्मिट क्रेब के खोल के ऊपर रहता है तथा उसे रक्षाकवच प्रदान करता है, क्योंकि सी-एनीमोन में दंश कोशिकाएं (Stinging cells) उपस्थित होती हैं। इसके बदले में हर्मिट क्रेब के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहने के कारण सी-एनीमोन को भोजन तथा प्रजनन करने के लिए नए-नए स्थान मिलते रहते हैं। सहभोजिता दो जीवों के मध्य होने वाली ऐसी पारस्परिक क्रिया है। जिसमें एक प्रजाति को तो लाभ होता है, जबकि दूसरी प्रजाति अप्रभावित रहती है अर्थात् उसे न तो कोई लाभ होता है और न कोई हानि; उदाहरण अधिपादप एवं आम का वृक्ष ।


अधिपादप पादप (Epiphytic plants) पादप जगत में अधिपादप वे पादप हैं, जो स्वपोषी हैं, परन्तु दूसरे पादपों पर उगते हैं। ऑर्किड इसका प्रमुख उदाहरण है। अधिपादप पादप स्थान परजीवी (Space parasite) है। ये दूसरे पादपों पर उगते हैं, परन्तु अपना भोजन स्वयं बनाते हैं और उस पादप को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाते हैं। ये पादप अपनी आर्द्रताग्राही लटकने वाली जड़ों (Hygroscopie roots) की मदद से वायुमण्डल से नमी का अवशोषण (Absorption) करते हैं।


प्रश्न 17. प्रतिजीविता व परजीविता को स्पष्ट कीजिए।

अथवा परजीविता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


 उत्तरप्रतिजीविता (Antagonism or Antibiosis) एक जीव की जटिल उपापचयी क्रियाओं द्वारा उत्पन्न वृद्धिरोधक रासायनिक पदार्थ द्वारा किसी दूसरे जीव की वृद्धि को पूर्ण या आंशिक रूप से रोक देना विरोधी अथवा प्रतिजीविता कहलाता है। 


परजीविता (Parasitism) इसमें कुछ पादप, अन्य पादपों पर भोजन के लिए आश्रित होते हैं; जैसे करकुटा पूर्ण तना परजीवी, विस्कम तथा लोरेन्यस -आशिक तना परजीवी, रेफ्लेशिया व अशिकी पूर्ण जड़ परजीवी तथा सेन्टेलम एल्बम- आंशिक जड़ परजीवी है। प्रतिजीविता तथा परजीविता में एक जीव या पादप (पोषद्) को हानि होती है, जबकि प्रायः दूसरे जीव या पादप को लाभ होता है।


प्रश्न 18. छ्दमावरण को उपयुक्त उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।

उत्तरछदमावरण या हलावरण (Camouflage) जीव की वातावरण में छिप जाने की क्षमता ताकि शत्रु उसे पहचान न सके हलावरण कहलाता है। उदाहरण सबसे सामान्य उदाहरण कैमोलियॉन (Chameleon) शत्रु को देखते ही त्वचा का रंग परिवर्तित कर देता है ताकि शत्रु उसे पहचान न सके। दूसरे उदाहरण- मेन्टिस (Mantis), डेड लीफ बटरफ्लाई (Dead leaf butterfly), आदि है।


प्रश्न 19. परजीवी तथा मृतोपजीवी पादपों में अन्तर कीजिए। 

उत्तर – परजीवी तथा मृतोपजीवी पादपों में निम्नलिखित अन्तर हैं


परजीवी पादप

मृतोपजीवी पादप

यह जीवित पादपों से भोजन प्राप्त करते हैं।

यह मृत पादप या जन्तुओं से भोजन प्राप्त करते हैं।

प्रायः इनमें चूषकांग होते हैं, जिनसे ये पोषद (Host) से भोजन प्राप्त करते हैं।

ये सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों को विघटित करके सरल पदार्थों में बदल देते हैं।

ये रोगजनक होते हैं।

ये पदार्थों का पुनः चक्रण करते हैं।

वे आर्थिक रूप से प्रायः हानिकारक होते हैं।

ये प्राय: लाभदायक होते हैं।

उदाहरण-अमरबेल, बैलेनोफोरा, चन्दन, विस्कम, आदि।

इनके उदाहरण निम्न हैं, जैसे-यीस्ट, राइजोक्स, कवक, मोनोटापा, आदि।





                लघु उत्तरीय प्रश्न-II 3 अंक


प्रश्न 1. मृदा परिच्छेदिका पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। अथवा मृदा परिच्छेदिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।


उत्तरमृदा परिच्छेदिका (Boil profile) पृथ्वी की सतह से नीचे शैलों तक भूमि की उपकार को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं। यह मृदा के विभिन्न भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों को दर्शाती है। एक मृदा परिच्छेदिका को निम्न स्तरों (Zones) में विभाजित किया जाता है।


1. संस्तर-O (Horizon-O) यह मृदा की सबसे ऊपरी परत होती है, जो अन अपघटित तथा अल्प अपघटित मृत कार्बनिक पदार्थों की बनी होती है। 


2. संस्तर-A (Horizon-A) इस स्तर को ऊपरी मृदा भी कहते हैं। इसमें अन अपघटित (Undecomposed), अर्ध-अपघटित (Partially decomposed) एवं पूर्ण अपघटित (Completely decomposed), ह्यूमस (Humus) ऊपर से नीचे की ओर होता है। इस संस्तर से विलेयशील लवण घुलकर, निक्षालित होकर निचले, संस्तर में जाते हैं, इसी कारण इसे अवक्षालन का क्षेत्र भी कहते है। इसमें अधिकतर पादपों की जड़ें उगती हैं। इसे अवक्षालन का क्षेत्र भी कहते हैं।


3. संस्तर-B (Horizon-B) इस स्तर में धातुओं के ऑक्साइड, विलेयशील खनिज पदार्थ, आदि आधिक्य में पाए जाते हैं। यह गहरे रंग की परत समपोद क्षेत्र भी कहलाती है। इसमें वृक्षों की जड़ें पाई जाती हैं। यह संस्तर O तथा A के साथ ऊपरी मृदा तथा केवल A के साथ सोलम (Solum) का निर्माण करता है।


4. संस्तर C (Horizon-C) इस स्तर को अवमृदा (Subsoil) भी कहते हैं।

इसमें अपक्षीय चट्टाने पाई जाती हैं, जिनके द्वारा मृदाजनन होता है। 


5. संस्तर - R (Horizon-R) यह मृदा परिच्छेदिका का सबसे निचला स्तर होता है। इसमें कठोर अन अपक्षीण चट्टाने पाई जाती है।


प्रश्न 2. पादपों में आकारिकीय अनुकूलनों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए

उत्तर –विभिन्न प्रकार के परिस्थितिकी आवासों में पाए जाने वाले पादपों में कुछ भिन्नताएँ पाई जाती हैं, जो इन्हें उस विशिष्ट आवास में जीवित रहने के योग्य बनाती हैं। पृथक वातावरणीय कारकों के कारण उत्पन्न इन विभिन्नताओं को अनुकूलन कहते हैं।


पादपों में पृथक-पृथक आवासों में निम्न आकारिकीय अनुकूलन पाए जाते हैं


1. जलोद्भिद


(a) वायुकोष


(b) जड़े अविकसित या अनुपस्थित 


(c) रन्ध्रों की संख्या कम या अनुपस्थित


(d) बाह्यत्वचा पर श्लेष्म आवरण


2. मरुद्भिद


 (a) वायुकोष


(b) पत्तियाँ छोटी या अनुपस्थित


(c) उपचर्म या मोम का बाह्य आवरण


(d) रन्ध्र गर्त में


3. लवणोद्भिद 


(a) जरायुजी अंकुरण


(b) ऋणात्मक गुरुत्वानुकर्षी श्वसन मूल या न्यूमेटोफोर


(c) बाह्यत्वचा पर उपचर्म का मोटा आवरण 


(d) बड़े अन्तरकोशिकीय अवकाश


प्रश्न 3. जलोद्भिद् तथा मरुद्भिद् पादपों में उदाहरण सहित अन्तर कीजिए।


उत्तर जलोद्भिद् तथा मरुद्भिद् पादपों में निम्नलिखित अन्तर हैं


जलोद्भिद्

मरुद्भिद्

तना लम्बे पर्वो (Internodes) वाला दुर्बल, वायुकोषों युक्त तथा स्पंजी होता है। यान्त्रिक ऊतक अनुपस्थित होते हैं।

तना मांसल, पर्णाभ रूप में रूपान्तरित होता है। यान्त्रिक ऊतक विकसित होते हैं।

पत्तियाँ कटी-फटी, पतली, फीते के आकार की तथा रन्ध्रविहीन होती हैं। तैरने वाली पत्तियों में रन्ध्र पाए जाते हैं।

पत्तियाँ कोंटों में रूपान्तरित या शुष्क तथा मोटी होती हैं। रन्ध्र धसे से हुए होते हैं।

उपचर्म नहीं पाई जाती है।

उपचर्म सभी भागों में पाई जाती है।

जड़ें अविकसित या अनुपस्थित होती हैं। कुछ जड़ों में रूट पॉकेट्स पाए जाते हैं।

जड़ें अधिक विकसित एवं अधिक गहराई तक फैली होती हैं।

सभी भागों में श्लेष्म स्रावित होता है,जिससे ये जल से सड़ते या गलते नहीं हैं।

अधिकतर भागों में अन्दर रबरक्षीर, आदि रहते हैं, जो जल की हानि को रोकते हैं।

उदाहरण-हाइड्रिला (Hydrilla), कमल (Nelumbium), समुद्रसोख (Eichhomnia), जलधनिया (Ranunculus), आदि।


उदाहरण-नागफनी (Opuntia), रसकस (Ruscus), डण्डाथोर (Euphorbia), धींक्वार (Aloe), पीली कटेली (Argemone), आदि।


प्रश्न 4. मैन्ग्रोव वनस्पतियाँ कहाँ पाई जाती हैं? इनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 


अथवा लवणोद्भिद के मुख्य लक्षण लिखिए।


उत्तर मैन्ग्रोव वनस्पतियाँ या पादप (लवणोद्भिद्) समुद्र के किनारे दलदलीय स्थानों (Wetland) पर या लवणों के आधिक्य वाले स्थानों पर पाए जाते हैं; जैसे- सुन्दरवन (बंगाल)।


यहाँ भूमि में ऑक्सीजन की कमी के कारण जड़ें बाहर निकल कर श्वसन क्रिया करने लगती हैं, जिन्हें श्वसन मूल (Pneumatophores) कहते हैं। इनमें अंकुरण पितृस्थ जरायुज (Viviparous) प्रकार का होता है, जिसमें पादप पर ही बीजों का अंकुरण हो जाता है; जैसे-राइजोफोरा। लवणोद्भिद के अन्य लक्षण निम्नलिखित हैं


1. इनकी जड़ें दो प्रकार की होती हैं- वायवीय (Aerial) तथा भूमिगत (Subterranean)। वायवीय जड़ें दलदल से बाहर सीधी निकल जाती हैं। और खूँटों जैसी रचनाओं के रूप में दिखायी देती है। ये जड़ें ऋणात्मक गुरुत्वाकर्षी (Negatively geotropic) होती है। इन पर अनेक छिद्र होते हैं।


2. इनके तने प्रायः मोटे, मांसल व सरस होते हैं। 


3. इनकी पत्तियाँ प्रायः मोटी व सरस होती है। ये सदाबहार होती है।कुछ पादपों में ये पतली तथा छोटी होती है।


 प्रश्न 5. मरुस्थलीय प्राणियों के अनुकूलन बताइए।

उत्तर –  मरुद्भिद् जन्तुओं में निम्न अनुकूलन पाए जाते हैं 

1. मरुस्थल या रेगिस्तानी या बंजर क्षेत्रों में रहने वाले जन्तुओं में दो प्रकार का अनुकूलन पाया जाता है, प्रथम जल की कमी कम करके और दूसरी मरुस्थलीय परिस्थिति के प्रति सहनशीलता दर्शाकर।


2. मरुस्थलीय जन्तुओं को कम जल की आवश्यकता होती है, क्योंकि ये जल की आवश्यकता की पूर्ति आन्तरिक वसा के ऑक्सीकरण से पूरी करते हैं। 


3. कंगारु चूहा अपने उपापचय द्वारा बने जल पर निर्भर रहता है, यह कभी जल नहीं पीता है, इनमें उत्सर्जी पदार्थों को हटाने के लिए जल के बहुत कम आयतन की आवश्यकता होती है।


4. कई जन्तुओं में मूत्र को सन्द्रित करने की क्षमता होती है जैसे-ऊँट अपने मूत्र को जल की उपलब्धता नहीं होने पर रोक लेता है, जिससे वह कई दिनों

तक बिना जल के रह सकता है। 


5. मरुस्थलीय प्रदेशों में पाए जाने वाले कुछ जीव ग्रीष्म निष्क्रियता दर्शाते हैं।


प्रश्न 6. निम्नलिखित के बीच अन्तर कीजिए


(i) शीत निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता


(ii) बाह्योष्मी और आन्तरोष्मी जन्तु


(iii) समष्टि और समुदाय


उत्तर (i) शीत निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता में अन्तर


शीत निष्क्रियता

ग्रीष्म निष्क्रियता

यह सर्दियों से बचने की सुप्त अवस्था होती है।

ये ताप तथा शुष्कन से बचने के लिए ग्रीष्म निष्क्रियता में चले जाते हैं।

जन्तु गर्म जगह पर आराम करते हैं उदाहरण-भालू,मेंढक

जन्तु ठंडी व छाया वाले स्थान पर करते हैं, आराम करते हैं; उदाहरण-मेंढक, छिपकली


(ii)  बाह्योष्मी और आंतरोष्मी में अन्तर


बाह्योष्मी जन्तु

आंतरोष्मी जन्तु

ये ठंडे रुधिर वाले जन्तु होते हैं।

ये गर्म रुधिर वाले जन्तु होते हैं।

ये अपने शरीर का तापमान नियमन करने में असमर्थ होते हैं।

ये अपने शरीर का तापमान नियमन कर सकते हैं।

ये दोनों क्रियाएँ शीत निष्क्रियता को प्रदर्शित करती हैं।

इनकी क्रियाएँ अपसामान्य होती है।

ये कम निष्क्रिय जन्तु होते हैं।

ये अधिक सक्रिय जन्तु होते हैं।


(iii) समष्टि (Population) एक प्रजाति के व्यष्टियों का समूह जिनमें अन्तः प्रजनन के द्वारा जननक्षम सन्तति प्राप्त होती है तथा वे एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहते है, समष्टि कहलाती है।


समुदाय (Community) जीवों के वे समूह जो कई विभिन्न प्रजातियों से सम्बन्धित होते हैं परन्तु एक ही प्रवास के क्षेत्र में रहकर आपास में अन्तर्सम्बद्ध होते है, समुदाय कहलाते है।


प्रश्न 7. समष्टि की किन्हीं तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।

उत्तर 'किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में, किसी दिए गए समय पर निवास एवं परस्पर प्रजनन करने वाली समान जाति के जीवधारियों के समूह को उस जीव की समष्टि कहते हैं। यह जीवीय समुदाय की इकाई कहलाती है। किसी भी विशिष्ट क्षेत्र की समष्टि स्थिर (Constant) नहीं होती है, यह भी घटती-बढ़ती रहती है।


समष्टि के गुण (Properties of Population) किसी भी जीव की समष्टि में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं


1. समष्टि आकार व घनत्व


 2. जन्म दर


3. मृत्यु दर


4. लिंग अनुपात 


5. आयु संरचना 


6. समष्टि वृद्धि


7. परिक्षेपण


8. वहन क्षमता 


9. पर्यावरणीय प्रतिरोध


1. समष्टि आकार व घनत्व (Population Size and Density) किसी भी निश्चित क्षेत्र की समष्टि में जीवों की संख्या कभी भी स्थिर या एक जैसी नहीं होती है। यह समय के साथ परिवर्तित होती रहती है। अतः किसी स्थान पर इकाई क्षेत्र में निश्चित समय पर उपस्थित एक ही जाति के कुल सदस्यों की संख्या को समष्टि घनत्व कहते हैं। समष्टि घनत्व को निम्न सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।


D = N/S


यहाँ D = समष्टि घनत्व 


N = जीवों की कुल संख्या


S = क्षेत्र


2. जन्म दर (Birth Rate or Natality) एकांकी जीवन के सन्दर्भ में जन्म (Birth) का प्रयोग किया जाता है, परन्तु समष्टि के लिए जन्म दर का प्रयोग किया जाता है। किसी समष्टि में नए जीवों के उत्पन्न होने की दर को ही जन्म दर कहते हैं। जन्म दर की समष्टि के सदस्यों की संख्या को वृद्धि के रूप में प्रकट किया जाता है। समष्टि में नए सदस्य कोशिका विभाजन द्वारा, बीज अंकुरण द्वारा, हैचिंग (Hatching) की प्रक्रिया द्वारा या जन्म द्वारा उत्पन्न हो सकते हैं।


किसी समष्टि में पारिस्थितिक जन्म दर को निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है


B =  ∆Nn / N.∆t


यहाँ पर N = प्रारम्भिक जीवों की संख्या


n= समष्टि में नए जीव


t= समय


3. मृत्यु दर (Death Rate or Mortality) किसी समष्टि में इकाई समय में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं। मानव जनसंख्या के

लिए मृत्यु दर प्रति एक हजार व्यक्तियों पर मरने वाले व्यक्तियों की एक वर्ष. की औसत संख्या है।


प्रश्न 8. सहजीविता (सिम्बायोसिस) से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। 


 उत्तर -  सहजीविता या सहजीवन (Symbiosis) सहजीविता एक प्रकार की धनात्मक पारस्परिक क्रिया है जिसमे दो या दो से अधिक जातियों के जीव एक-दूसरे के साथ होते हैं तथा एक या सभी सहभागी जीवों को लाभ होता है। सहजीविता को सम्बन्ध के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है A. सहोपकारिता (Mutualism) सहोपकारिता दो प्रजातियों के मध्य ऐसा सहकारी स्थाई सम्बन्ध है, जिसमें दोनों जातियों को लाभ होता है, क्योंकि दोनों जातियों एक-दूसरे पर कार्यिकीय निर्भरता (Physiological interdependence) दर्शाती है। सहोपकारिता का यह सम्बन्ध सजीवों के सभी जगतो (Kingdoms) में देखा जा सकता है तथा यह अविकल्पी (Obligate) तथा विकल्पी (Facultative) दोनों प्रकार का हो सकता है।

 (i) अविकल्पी सहोपकारिता (Obligate] Mutualism) इस प्रकार के सम्बन्ध में दोनों जीवों का एक-दूसरे के साथ स्थाई रूप से रहना आवश्यक होता है।


लाइकेन में शैवाल सहभागी (Phycobiont) प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करता है तथा कवक सहभागी जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण तथा आधार प्रदान करता है।


(ii) विकल्पी सहोपकारिता (Facultative Mutualism) इस प्रकार के सम्बन्ध में दोनों जीवों के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, परन्तु दोनों जीव स्वतन्त्र रूप से जीवनयापन करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार के सम्बन्ध में भी दोनों जीवों को लाभ होता है। उदाहरण-जन्तुओं द्वारा पुष्पों में परागण में जन्तु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस सहोपकारी सम्बन्ध में कीट को पादपों से मकरंद के रूप में आहार (Healthy food) मिलता है। बदले में कीट, पादपों में परागण की प्रक्रिया में सहायक होते है।


B. सहभोजिता (Commensalism) सहजीवन का दूसरा स्वरूप सहभोजिता है। यह दो जीवों के मध्य होने वाली ऐसी पारस्परिक क्रिया है जिसमें एक प्रजाति को तो लाभ होता है, जबकि दूसरी प्रजाति अप्रभावित रहती है उसे न तो कोई लाभ होता है और ना ही कोई हानि। इस प्रकार का सम्बन्ध स्थाई या अस्थाई प्रकार का हो सकता है। इस आधार पर सहभोजिता दो प्रकार की होती है


(i) सतत् सम्पर्क के साथ सहभोजिता (Commensalism with Permanent Contact) इस प्रकार के सम्बन्ध में दो जीवों के मध्य स्थाई सम्पर्क होता है, जैसे-अधिपादप पादप 


(ii) असतत् सम्पर्क के साथ सहभोजिता (Commensalism without Continuous Contact) इस प्रकार के सम्बन्ध में सहभोजी केवल अस्थाई रूप से सम्पर्क में रहते हैं, जैसे- पायलट मछली (Nacrutes ductore) शार्क के नीचे तैरती रहती है शार्क मछली के प्रवाह के सापेक्ष, परन्तु उससे किसी प्रकार का सम्बन्ध स्थापित नहीं करती है। पायलट मछली को शिकारी जन्तुओं से सुरक्षा प्राप्त हो जाती है. जबकि शार्क मछली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।


C: आद्य सहयोग (Protocooperation) यह इस प्रकार का पारस्परिक सम्बन्ध है, जिसमें दोनों जीवों का साथ रहना बाध्य नहीं है, परन्तु जब ये एक दूसरे के साथ सम्बन्ध में आते हैं, तो एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं। आद्य सहयोग में दोनों जीव एक-दूसरे के बगैर भी जीवनयापन कर सकते हैं; जैसे समुद्री एनीमोन, हर्मिट केकड़े के खोल पर चिपक जाता है। इस कारण समुद्री एनीमोन को भौगोलिक भ्रमणशीलता उपलब्ध हो जाती है और अधिक भोजन उपलब्ध हो जाता है। बदले में समुद्री एनीमोन अपने देश कोशिकाओं के द्वारा हर्मिट केकड़े की सुरक्षा करता है।


प्रश्न 9. पोषद् जातियों में वास करने हेतु परजीवी जीवों में पाए जाने वाले विभिन्न अनुकूलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।


 अथवा पोषद् जातियों में वास करने हेतु परजीवियों ने कई प्रकार की अनुकूलताओं का विकास किया है। इनके उदाहरण दीजिए।


उत्तर विषमपोषी जीव, जो परपोषी के शरीर से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, परजीवी (Parasite) कहलाते हैं। परजीवियों के भोजन प्राप्त करने हेतु कुछ प्रमुख अनुकूलन निम्न प्रकार हैं।


1. अनेक आन्तरिक परजीवियों में अवायवीय श्वसन (Anaerobic respiration) पाया जाता है, जिसके कारण वे पोषक के आन्तरंगों में आसानी से रह पाते हैं।


2. परजीवियों में आवश्यक अंगों का अभाव पाया जाता है; जैसे- अमरबेल में पत्तियों व खटमल में पंखों का अभाव।


3. पोषक से चिपकने के लिए इनमें विशिष्ट प्रकार के चूषक (Suckers) या चिपकने वाले अंगों (Adhesive organs) का विकास हो गया।


4. जिन परजीवियों को बनाया हुआ भोजन मिलता है, उनमें पाचन तन्त्र(Digestive system) का अभाव पाया जाता है। 


5. इनका जीवन चक्र प्रायः जटिल होता है। अतः इनको आसानी से खत्म नहीं किया जा सकता। इनके जीवन चक्र में एक या दो मध्यस्थ पोषक (Intermediate host) सम्मिलित होते हैं; जैसे-लिवर(Liver fuke) एक परजीवी है तथा इसका जीवन चक्र दो मध्यस्थ पोषकों (घोघा व मछली) पर निर्भर करता है।


प्रश्न 10. परभक्षण पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा परभक्षी की परिभाषा लिखिए।


 परभक्षी तथा शिकार के मध्य अन्तःक्रिया का वर्णन कीजिए।


उत्तर – परभक्षण (Predation) परभक्षण एक विशिष्ट प्रकार का सक्रिय अन्तर्सम्बन्ध है, जिसमें एक जन्तु दूसरे जन्तु को मारकर खा जाता है। वह जन्तु जो मार रहा है अथवा शिकार कर रहा है, वह शिकारी अथवा परभक्षी या भक्षी (Predator) कहलाता है, जबकि वह जीव जिसे खाया जा रहा है अथवा जिसका शिकार हो रहा है, वह भक्ष्य या शिकार (Prey) कहलाता है। इस प्रकार के सम्बन्ध में केवल परभक्षी को ही लाभ पहुँचता है। भक्ष्य सदा हानि में रहता है।।


परभक्षण के उदाहरण


शाकाहारी (Herbivores) इसमें जन्तु हरे पादपों उनके बीज, फल, आदि को खाकर पूरी तरह नष्ट कर देते हैं।


मांसाहारी (Carnivores) इसमें मांसाहारी जीव अपने भोजन के लिए शाकाहारियों को मार देते हैं जैसे-मेढक कीट का भक्षण करता है।


 कीटभक्षी पादप कुछ पादप, जो नाइट्रोजन की कमी वाली मृदा में उगते हैं, नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए कीटों का भक्षण करते है; उदाहरण- नेपेन्थीस, यूट्रीकुलेरिया, आदि।


 परभक्षी तथा भक्ष्य (शिकार) के मध्य अन्तः क्रिया परभक्षी की संख्या भक्ष्य से कम होती है। परभक्षी भक्ष्य को खाकर उसकी जनसंख्या को प्रभावित करता है, परन्तु यदि परभक्षी एकाहारी है, तो एक समय ऐसा भी आ सकता है, जब भक्ष्य की संख्या नगण्य हो जाए और परभक्षी को भूखा रहना पड़े, जिस कारण परभक्षी मरने लगते हैं तथा एक बार फिर मक्ष्य की संख्या में वृद्धि होती है। इस प्रकार वातावरण में परभक्षी व भक्ष्य की संख्या का सन्तुलन बना रहता है। परभक्षी केवल शिकार ही नहीं करता है, बल्कि किसी दूसरे परभक्षी का शिकार भी बन सकता है; जैसे-मेढक कीटों का भक्षण करता है, परन्तु साँप, मेंढको का भक्षण करते हैं। इस प्रकार पारितन्त्र में विभिन्न पोषी स्तरों में सन्तुलन बना रहता है।


प्रश्न 11. 'जातियों में प्रतियोगिता का प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा प्रतिस्पर्धा पर टिप्पणी कीजिए। 


अथवा अन्तराजातीय स्पर्धा पर टिप्पणी कीजिए।


उत्तर स्पर्धा या प्रतियोगिता एक प्रकार की ऋणात्मक अन्तक्रिया (Negative interaction) है, जो एक ही प्रकार के संसाधनों को उपयोग करने वाले दो या अधिक जीवों के मध्य होती है। इस प्रकार की प्रतियोगिता, स्थान, भोजन, ऊर्जा, प्रकाश, खनिज व जल, आदि संसाधनों के लिए हो सकती है। प्रतियोगिता या स्पर्धा समुदाय की संरचना तथा जातियों की विभिन्नता को प्रभावित करती है। इसमें कमजोर प्रतियोगी के समाप्त होने की सम्भावना अधिक रहती है।


यह दो प्रकार की होती है


1. अन्तरजातीय प्रतियोगिता यह स्पर्धा एक ही जाति के सदस्यों के बीच होती है। यह प्रतियोगिता अन्तरजातीय स्पर्धा से अधिक गम्भीर व तीव्र होती है।


अत:एक ही जाति के सभी सदस्यों की आवश्यकताएँ समान होती है। अतः एक ही जाति के सदस्य स्थान, आहार, ऊर्जा, प्रकाश, वायु, आदि सभी संसाधनों के लिए आपस मे सीधे प्रतियोगिता करते हैं। इस प्रतियोगिता में बचने के लिए पादप अपने बीजों के प्रकणन के लिए अनेक उपायों को अपनाते है।


2. अन्तरजातीय प्रतियोगिता यह प्रतियोगिता अलग-अलग जातियों के सदस्यों के मध्य होती है। पारितन्त्र में पादप तथा जन्तु एक साथ रहते हैं।

पादपों तथा जन्तुओं को विभिन्न जातियों के मध्य होने वाली प्रतियोगिता की प्रक्रिया अनेक प्रकार से व्यक्त होती है; जैसे- पादपों के समुदाय में विभिन्न जातियों में आवास, आहार, जल, प्रकाश, पोषक तत्व, आदि की प्रतियोगिता सामान्य रूप से पाई जाती है, परन्तु जन्तुओं के बीच परभक्षी भक्ष्य (Predator-prey) सम्बन्ध स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसमे विभिन्न परभक्षी (Predator) जन्तु अपने भक्ष्य (Prey) के लिए प्रतियोगिता करते हैं।


उदाहरण- पार्थीनियम (Parthenium) या कांग्रेस घास के द्वारा रसायनों (फिनोलिक यौगिक) का स्त्रावण होता है, जिससे इसके आस-पास दूसरे पादपों के बीजों का अंकुरण रुक जाता है। इसी प्रकार क्लोरेला गरिस (Chlorella vulgaris) नामक शैवाल क्लोरेलिन (Chlorellin) नामक रसायन का स्त्रावण करता है, जो अन्य शैवालों, कवकों, आदि की वृद्धि को रोकता है।


प्रश्न 12. की स्टोन प्रजातियों से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए ।


अथवा की स्टोन प्रजाति पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। 


उत्तरकी स्टोन प्रजातियाँ (Key stone species) वह प्रजाति अथवा प्रजातियों का समूह, जिसका समुदाय अथवा पारिस्थितिकी पर प्रभाव मात्र उनकी अत्यधिक संख्या के कारण ही नही बल्कि, आशा से कहीं अधिक उनके कार्यों से अभिव्यक्त होता है, उसे की-स्टोन प्रजाति (Key-stone species) कहा जाता है।की-स्टोन प्रजातियाँ सूक्ष्म जलवायु (Microclimate), मृदा की रचना तथा मृदा रसायन एवं खनिजों के स्तर को भी परिवर्तित और प्रभावित करने में सक्षम होती है।


ये प्रजातियाँ अपनी परस्पर क्रियाओं से समुदाय की संरचना और जैविक घटकों को परिवर्तित करती हैं तथा वातावरण में स्थिरता लाती हैं; उदाहरण- विशाल वृक्ष तथा उसकी सभी शाखाएँ अपने आस-पास के भौतिक पर्यावरण को प्रभावित करके एक सूक्ष्म जलवायु क्षेत्र (Microclimate area) निर्मित करती हैं। वृक्ष के नीचे प्रकाश की तीव्रता, तापमान, आपेक्षिक आर्द्रता, आदि में काफी परिवर्तन आ जाता है। अतः वृक्ष के नीचे जीवधारियों को सामुदायिक संरचना, ऊर्जा प्रवाह, पदार्थों का चक्रण, आदि इस वृक्ष द्वारा प्रभावित होता है। यह वृक्ष एक की-स्टोन प्रजाति की तरह कार्य करता है।


          दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5 अंक


प्रश्न 1. जैविक अनुक्रिया के तरीकों का स्वच्छ आरेखीय निरूपण दर्शाइए।

उत्तर – अजीवीय कारकों के प्रति अनुक्रियाएँ (Responses to Abiotic Factors) अजीवीय कारकों में अत्यधिक परिवर्तन होते रहते हैं। जीव इन परिवर्तनों के अनुसार अपने आप को अनुकूलित करते रहते हैं। यह परिवर्तन अधिकांश जातियों में आन्तरिक पर्यावरण विकसित करने में सहायक होते हैं। ये आन्तरिक पर्यावरण जब स्थायी हो जाते हैं, तो इसे समस्थापन (Homeostasis) कहते है। अजीवीय कारकों के विरुद्ध जीव प्रतिकूल एवं विषम परिस्थितियों में अस्तित्व संघर्ष के लिए निम्नलिखित विधियों अपनाते हैं


(i) नियमन (Regulation) कुछ जीव अपने शरीर के आमूल-चूल तापमान का परासरण नियमन (Osmoregulation) द्वारा बाह्य वातावरण के साथ सामंजस्य बना लेते हैं। इस प्रकार वे अच्छी तरह से जीवनयापन करते हैं अर्थात् कुछ जीव समस्थापन (Homeostatsis) कार्यिकीय साधनों द्वारा बनाए रखते हैं। जिससे शरीर का तापमान, परासरणी सान्द्रण, आदि स्थिर रहता है। सभी पक्षी एवं स्तनधारी और कुछ निम्न कशेरुकी और अकशेरुकी इस प्रकार का नियमन (ताप नियमन तथा परासरण नियमन) बनाए रखने में सक्षम होते है। जिससे अपने शरीर का ताप स्थिर बना रहता हैं चाहे वे अंटार्कटिका (Antarctica) में रहे या सहारा (Sahara) में; जैसे- -मनुष्य के शरीर का तापमान 37°C स्थिर रहता है।


(ii) संरूपण (Conformation) अधिकतर जीव आन्तरिक पर्यावरण एक जैसा नहीं बनाए रख पाते हैं उनके शरीर का तापमान वातावरणीय तापमान के अनुसार बदलता रहता है। जलीय प्राणियों में शरीर के तरल की परासरणी सान्द्रता वातावरणीय जल की परासरणी सान्द्रता के अनुसार बदलती है। इन जीवों (जन्तु एवं पादप) को संरूपी (Conforment) कहते हैं। हम देखते हैं कि बहुत-से लोग गर्मी के माह में (जिनके पास कूलर / एयर कन्डीसनर नहीं होता) अपने शरीर का पसीना निकल जाने देते हैं। और उपानुकूलतम (Suboptiman) निष्पादन से ही संतोष करते हैं। शरीर से ताप हानि या ताप लाभ पृष्ठीय क्षेत्रफल पर निर्भर करता है। छोटे जन्तुओं में उनके शारीरिक आयतन के सापेक्ष पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक उपलब्ध होता है इसलिए इनमें शरीर से ऊष्मा की हानि तीव्र होती है सर्दियों में शारीरिक ऊष्मा की प्राप्ति के लिए उपापचयी क्रियाओं द्वारा इनको अधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। इसलिए छोटे जन्तुओं में बड़े जन्तुओं की अपेक्षा समस्थैतिकता बनाए रखने हेतु अधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। इसलिए ठण्डे क्षेत्रों में बहुत छोटे जीव नहीं पाए जाते हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों में बड़े एवं भीमकाय शरीर वाले जन्तु; जैसे-ध्रुवीय भालू पाए जाते हैं। जिससे उनकी कम ऊष्मा खर्च होती है। ऐसी स्थिति में वह ऊष्मा अपनी उपापचयी क्रियाओं द्वारा करते हैं।


(iii) प्रवास (Migration) जब परिस्थितियाँ जीव के लिए अनुकूल नहीं होती, तो वे अपने जीवन को बचाने के लिए अनुकूल क्षेत्रों में चले जाते हैं। उदाहरण- साइबेरिया (Siberia) प्रवासी पक्षी (फिंच) अधिक सर्दी होने के कारण राजस्थान स्थित 'केवला देव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo national park), भरतपुर (Bharatpur) में आ जाते हैं और जब साइबेरिया में सर्दी कम हो जाती है, तो लौट जाते हैं।


(iv) निलम्बन (Suspension) प्रतिकूल परिस्थितियों में अनेक जीवाणु, कवक एवं निम्न पादपों मे विभिन्न प्रकार के मोटी भित्ति वाले बीजाणु उत्पन्न होते हैं। जिससे उन्हें विषम परिस्थितियों में जीवित रहने में सहायता मिलती है। और जब उन्हें अनुकूल एवं उपयुक्त वातावरण मिल जाता है तब वे अपना अंकुरण प्रारम्भ करते हैं। उच्च जीव (जन्तु एवं पादप) में भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए अनुकूल वातावरण का चयन करते हैं; जैसे-शीत ऋतु में ध्रुवीय भालू शीत निष्क्रियता (Hibernation) में चले जाते हैं। मछलियाँ एवं घोंघे ग्रीष्म ऋतु में सम्बन्धित ताप तथा जलशुष्कन जैसी परिस्थिति से बचने के लिए ग्रीष्म निष्क्रियता (Aestivation) में चले जाते हैं।


प्रश्न 2. मरुद्भिद् क्या हैं? इनके आकारिकीय एवं आन्तरिक लक्षणों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।


अथवा मरुद्भिद् पादपों के लक्षण लिखिए।


अथवा मरुद्भिद् पादपों के विभिन्न आकारिकीय अनुकूलनों का वर्णन कीजिए। 


अथवा मरुद्भिद् पादपों में होने वाले विभिन्न अनुकूलनों का चित्र सहित वर्णन कीजिए।


अथवा पारिस्थितिक अनुकूलन किसे कहते हैं? सिद्ध कीजिए कि मरुद्भिद् पौधे अपनी आन्तरिक रचना के आधार पर पर्यावरण के अनुकूल है।


उत्तर – शुष्क आवास में पाई जाने वाली वनस्पति को मरुद्भिद् कहते हैं। इस प्रकार के आवास कार्यिकी दृष्टि से शुष्क होते हैं। ये निम्न प्रकार के हो सकते हैं।


1. भौतिक दृष्टि से शुष्क आवास स्थल (Physically dry habitat) इन स्थानों पर मृदा में जल धारिता (Water holding capacity) की कमी पाई जाती है, जैसे-मस्थल एवं चट्टाने।


2. कार्यिकी दृष्टि से शुष्क आवासस्थल (Physiologically dry habitat) इन स्थानों पर जल उपलब्ध होते हुए भी पादप इसका उपयोग नहीं कर पाते,जैसे  लवणीय, अम्लीय या ठंडे स्थान।


3. भौतिक व कार्यिकी दृष्टि से शुष्क आवास स्थल (Physically and physiologically dry habitat) कुछ स्थानों के पादप भूमि में जल धारण करने की क्षमता कम होने तथा जल का उपयोग नहीं करने के कारण ये आवासस्थल कायिकी व भौतिक दृष्टी से शुष्क आवास स्थल होते है जैसे-पर्वतों की वनस्पति। 


शुष्कोभिद् (मरुद्भिद) पादपों में आकारिकीय अनुकूलन


इनमें निम्न आकारिकीय अनुकूलन पाए जाते हैं 


1. जड़ों में अनुकूलन (Adaptation in roota) इनका जड़ तन्त्र अधिक विकसित होता है। ये अधिक गहराई तक जाती है। जैसे-एल्फाल्फा (Alfalfa) की जड़ें 130 फीट गहराई तक जा सकती हैं। इनकी जड़ों के मूलरोम व मूलगोप अधिक विकसित होते हैं। कभी-कभी जड़ें जल संचय भी करती है जैसे-एस्पैरैगस  (Asparagus)


2. तनों में अनुकूलन (Adaptation in stems) अधिकतर पादपों में तना काष्ठीय, शुष्क, कठोर तथा मोटी छाल से ढका रहता है। कुछ पादपों में बल्ब का रूप ले लेता है; जैसे-अगैव (Agave)। कभी-कभी तना पत्ती का कार्य करता है; जैसे-रसकस, नागफनी में। इसे पर्णकाय स्तम्भ कहते हैं;एस्पैरैगस  में पर्णाभ पर्व पाए जाते हैं।


3. पत्तियों में अनुकूलन (Adaptation in leaves) नागफनी में पत्तियों कांटो में (पर्णाभ स्तम्भ), पर्किन्सोनिया में पर्णव्रंत चपटा हरा होकर पर्णफलक जैसा रूप ले लेता है तथा प्रकाश संश्लेषण भी करता है। इसे पर्णाभव्रंत  (Phyllode) कहते हैं, में रूपान्तरित हो जाती है। पत्तियों की सतह चिकनी व चमकदार होती है, जो ऊष्मा को परावर्तित कर देती है।


शारीरिकीय अनुकूलन मरुदभिद् में निम्न शारीरिकीय अनुकूलन पाए जाते हैं


 बाह्यत्वचा (Epidermis) कनेर की पत्ती में यह बहुस्तरीय होती है तथा उपत्वचा (Cuticle) का मोटा स्तर होता है। कैपेरिस में ऊपरी सतह पर मोम की परत होती है।


• रन्ध्र (Stomata) ये कम तथा धंसे हुए (Sunken) होते हैं, जैसे- कनेर, कैजुराइना, आदि में।


अधस्त्वचा (Hypodermis) यह बहुस्तरीय होती है।

• यान्त्रिक ऊतक (Mechanical tissue) ये पूर्ण विकसित होते हैं। 


पर्ण मध्योतक (Mesophyll tissue) पत्तियों में खम्भ ऊतक व स्पंजीमृदूतक पाए जाते हैं।


बल्कुट (Cortex) कोशिकाओं के बीच अन्तरकोशिकीय स्थान कम होता है।


संवहन ऊतक (Vascular tissue) बहुस्तरीय बण्डल आच्छद द्वारा घिरे रहते हैं।


प्रश्न 3. जलोद्भिद पादपों में पारिस्थितिकीय अनुकूलनों का वर्णन कीजिए।


 उत्तर – ये जलीय वातावरण में पाए जाते हैं, जो जलनिमग्न या तैरते हुए होते हैं। इनमें अनुकूलन निम्न प्रकार के होते हैं


जलोद्भिद् पादपों में आकारिकीय अनुकूलन इनमें निम्न आकारिकीय अनुकूलन पाए जाते हैं


1. जड़ों में अनुकूलन (Adaptation in roota) इनकी जड़े बहुत कम विकसित होती है, क्योंकि पादप का सम्पूर्ण भाग जल का अवशोषण करता रहता है। कभी-कभी जड़ें नहीं पाई जाती है, जैसे वाल्फिया (Wolffia). सिरेटोफिल्लम (Cerutaphyllum)|


•लेम्ना (Lemna) में जड़ें केवल सन्तुलन का कार्य करती है।


•इनमें मूलरोम अनुपस्थित रहते हैं।


• इनमें मूल गोप (Root cap) नहीं पाया जाता है।


•सिंघाड़े (Trapa) की जड़ें हरी होने से प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करती है।


2. तनों में अनुकूलन (Adaptation in stems) जलनिमग्न पादपों में तने लम्बे, पतले, मुलायम तथा स्पंजी होते हैं। स्वतन्त्र तैरने वाले पादपों में यह होसिन दिशा में तैरता है जैसे-एजोला (Aaslila), समुद्रसेोख (Eichhornia) तथा पिस्टिया (Pistia) में स्टोलन होता है। स्थिर तैरक पादपों में तना धरातल पर फैला रहकर प्रकन्द (Rhizome) बना लेता है और कीचड़ में स्थिर रहता है; जैसे जलकुम्भी व कमलः


3. पत्तियों में अनुकूलन (Adaptation in leaves) जल निमग्न पादपों की पत्तियाँ पतली फीतेनुमा होती है; जैसे-वैलिसनेरिया (Vallisneria) तथा तैरने वाले पादपों में ये बड़ी, चपटी व पूर्ण होती हैं। सिंघाड़े व समुद्रसोख में पर्णवृत्त फूला रहता है।


4. जलोद्भिद पादपों में शारीरिकीय अनुकूलन

 बाह्यत्वचा पर उपत्वचा नहीं होती, परन्तु तैरने वाले पादपों की बाह्यत्वचा पर श्लेष्मीय परत होती है; जैसे- जलकुम्भी जल निमग्न पादपों में रन्ध्र नहीं पाए जाते। जल निमग्न पादपों के तनों में अधस्त्वचा नहीं होती है; जैसे हाइडिला पोटामोटॉन में यान्त्रिक ऊतक नहीं पाए जाते है, परन्तु वल्कुट विकसित होती है।


• वायु गुहिकाएँ (Air cavities) पाई जाती है, जिससे पादप हल्के होकर जल में तैर सकते हैं। संवहन बण्डल कम विकसित होते हैं।


प्रश्न 4. अनुकूलन को परिभाषित कीजिए। उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।

उत्तर – अनुकूलन वातावरणीय कारक किसी भी पारितन्त्र में उपस्थित जीवों की बाह्य आकारिकी (External morphology) व आन्तरिक संरचना को प्रत्यक्ष (Direct) व अप्रत्यक्ष (Indirect) रूप से प्रभावित करता है। इन वातावरणीय परिवर्तनों को सहने के लिए तथा इनके अनुसार, अपनी कार्यिकी (Physiology) व शारीरिकी (Anatomy) को बदलने की क्षमता पादपों व जन्तुओं दोनों में होती है। अतः वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को सहने के लिए वातावरणीय प्रभावों के कारण जीवों में संरचनात्मक (Structural), कार्यात्मक (Physiological) तथा आकारिकीय (Morphological) परिवर्तन ही पारिस्थितिकीय अनुकूलन कहलाते हैं।

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