a

Class 10th Home Science chapter 07 सामान्य संक्रामक रोग notes in hindi

Class 10th Home Science chapter 07 ncert notes in hindi

Class 10th Home Science chapter 07 सामान्य संक्रामक रोग notes in hindi 

class 11th home science chapter 12 in hindi,class 11 home science chapter 12 in hindi,home science class 11 chapter 12 in hindi,rbse class 10 science chapter 1 in hindi,science in hindi,rbse class 10 science chapter 1 notes,class 11 home science ch 12 in hindi,cg open school 10th home science notes chapter 6,class 8 chapter 8 in hindi,class 11th home science chapter 12,class 11 home science chapter 12,10th nios home science chapter 7,nios class 10th home science pdf notes,nios class 10th home science,class 10th home science model paper solution 2023,nios 10th home science (216) notes,class 10th home science nios,class 10 science notes pdf in hindi,home science class 10th,10th class home science paper,home science,home science class 10,home science class 10 in hindi,nios class 10 home science,home science class 10 chapter 1 in hindi,nios class 10th home science notes download kare,class 10th home science notes in hindi,class 10th home science chapter 5 notes,class 10th home science chapter 4 notes in hindi,class 10th home science chapter 1 question answer,class 10th home science syllabus,class 10th home science syllabus in hindi,class 10th home science question paper up board,class 10th home science book,class 10th home science question paper 2023,class 10th home science paper,NCERT Home Science Book Class 10 pdf in Hindi,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 1 प्रश्न उत्तर,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 1,होम साइंस नोट्स इन हिंदी PDF,होम साइंस नोट्स इन हिंदी class 10,गृह विज्ञान पुस्तक NCERT, Class 10,Class 10th Home Science Chapter 1 question answer in Hindi,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 2,कक्षा 10 विज्ञान नोट्स,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 3,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 4,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 5,Most Exam notes class 10,कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 10 नोट्स,कक्षा 10 विज्ञान नोट्स,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 3,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 2,Class 10th Home Science Chapter 1 question answer in Hindi,कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 1 नोट्स,कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 10 नोट्स,कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 5 नोट्स,सामाजिक विज्ञान कक्षा 10 नोट्स 2022,NCERT Home Science book Class 10 pdf in Hindi,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 1,होम साइंस नोट्स इन हिंदी PDF,गृह विज्ञान कक्षा 10 पाठ 1 प्रश्न उत्तर,होम साइंस नोट्स इन हिंदी Class 10,गृह विज्ञान पुस्तक NCERT, Class 10

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट subhanshclasses.com पर यदि आप गूगल पर class 10th home science ncert pdf notes in hindi सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आ गए हैं हम आपको अपनी इस पोस्ट में कक्षा 10वी गृह विज्ञान नोट्स के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले है इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।

           { सामान्य संक्रामक रोग }


Short Introduction 


संक्रामक रोग का अर्थ


रोगाणुओं के माध्यम से एक व्यक्ति या प्राणी से दूसरे व्यक्ति को लगने वाले रोग संक्रामक रोग कहलाते हैं। मुख्य संक्रामक रोग –  चेचक, छोटी माता, खसरा, डिफ्थीरिया, कुकुर खाँसी, टिटनेस, क्षय रोग, आहार विषाक्तता, रेबीज, मलेरिया, हिपेटाइटिस तथा डेंगू आदि।


संक्रामक रोगों का प्रसार

संक्रामक रोगों के रोगाणुओं का प्रसार निम्नलिखित प्रकार से होता है।


1. जल एवं आहार द्वारा हैजा, टायफाइड, अतिसार तथा पेचिश आदि संक्रामक रोग फैलते हैं। संक्रामक रोग न फैले इसके लिए पानी में लाल दवाई मिलाई जाती है। 


2. वायु द्वारा चेचक, छोटी माता, खसरा, तपेदिक (क्षय रोग), डिफ्थीरिया, काली खाँसी आदि रोगों का प्रसार होता है।


3. प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा दाद, खाज, खुजली, कुष्ठ आदि रोग फैलते हैं।


4. रक्त द्वारा मलेरिया, डेंगू, प्लेग, पीत ज्वर, फाइलेरिया, हाइड्रोफोबिया अथवा रेबीज (कुत्ते के काटने से) आदि रोगों का प्रसार होता है। वाहक कीटों (मच्छर, पिस्सू आदि) के काटने से रोगाणु रक्त में प्रवेश करते हैं।


5. चोट या घाव द्वारा टिटनेस रोग का प्रसार होता है।



संक्रामक रोगों की रोकथाम के उपाय


1.स्वास्थ्य विभाग को सूचित करना 


2.रोगग्रस्त व्यक्ति को अलग करना


3. रोग प्रतिरक्षा के उपाय-टीके लगवाना


4. रोगाणुनाशके सम्बन्धी उपाय करना


          संक्रामक रोग तथा रोग प्रतिरक्षा


विभिन्न रोगाणुओं से संघर्ष करने वाली शरीर की क्षमता को रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में यह क्षमता भिन्न-भिन्न होती है। इसके दो प्रकार हैं

1. प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता होती है, जिसे प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।


 2. कृत्रिम अथवा अर्जित रोग-प्रतिरोधक क्षमता रोगग्रस्त होने से बचने एवं स्वस्थ बने रहने के लिए प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता के साथ अतिरिक्त रोग-प्रतिरोधक क्षमता की आवश्यकता होती है।


नोट – संक्रामक रोगों से बचाव का सर्वश्रेष्ठ तरीका टीके लगवाना है। संक्रामक रोगों के फैलने से पहले उस क्षेत्र के निवासियों को रोग प्रतिरक्षा हेतु पहले से इन्जेक्शन या टीके लगवाना टीकाकरण कहलाता है। स्वस्थ व्यक्तियों के टीकाकरण से संक्रामक रोगों के अधिक फैलने की आशंका नहीं रहती।


सामान्य संक्रामक रोगों का परिचय


सामान्य संक्रामक रोगों के परिचय को हम निम्न बिन्दुओं द्वारा समझ सकते हैं


1. चेचक तथा छोटी माता

रोग का कारक वेरियोल वायरस है। इसका उद्भव काल 10 से 12 दिन का होता है। इस रोग में शरीर पर लाल दाने निकलते हैं।


चिकन पॉक्स या छोटी माता यह चेचक के समान ही तीव्र संक्रामक रोग है, परन्तु यह घातक नहीं है। यह शीत ऋतु में होता है। यह वैरिसेला जोस्टर नामक विषाणु से फैलता है। इसका उद्भव काल 12 से 19 दिन का होता है।


2. खसरा

यह रूबिओला वायरस के कारण फैलता है। जाड़े के साथ बुखार, बेचैनी, पूरे शरीर में दाने इसके प्रमुख लक्षण हैं।


3. क्षय रोग / राजयक्ष्मा / तपेदिक

यह रोग माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु से होता है। यह रोग सामान्यतः फेफड़ों में होता है। तपेदिक से बचाव हेतु बी.सी.जी. का टीका लगवाना चाहिए।


4. डिफ्थीरिया

यह रोग कोरिनोबैक्टीरियम डिफ्थीरियाई नामक जीवाणु से होता है। इसमें बच्चों के गले में घाव के साथ बुखार, बोलने, खाने-पीने में कठिनाई होती है। रोगी को श्वास

लेने में कठिनाई होती है।


5. काली खाँसी या कुकुर खाँसी

यह बच्चों के लिए कष्टकारी होता है। गले में दर्द, ज्वर, बेचैनी, आँखों में पानी आना आदि इस रोग के लक्षण हैं।


6. टिटनेस

1.यह क्लोस्ट्रीडियम टिटेनी नामक जीवाणु से होता है। टिटनेस के रोगाणु मुख्यतः घोड़े की लीद, गोबर, जंग लगे लोहे तथा खाद में पाए जाते हैं।


2.चोट लगने या कटने पर रोगाणु रक्त में प्रवेश कर जाते हैं। टिटनेस की रोकथाम के लिए चोट लगने पर एण्टीबायोटिक दवा जैसे टिंक्चर आयोडीन या टिटनेस टॉक्साइड लगानी चाहिए। कटने पर ए.टी.एस. या टेटबैक का इंजेक्शन लगाना चाहिए।


नोट डी.पी.टी. के तीन टीके डिफ्थीरिया, काली खाँसी तथा टिटनेस नामक रोगों से हमारी प्रतिरक्षा करते हैं। यह टीका जन्म से 5 वर्ष की अवस्था तक तीन बार लगाया जाता है।


7. मलेरिया

1. इसका कारण परजीवी रोगाणु प्लाज्मोडियम है। इस रोग का वाहक मादा ऐनाफिलीज मच्छर होता है। सिर में दर्द, जी मिचलाना, वमन होना, ठण्ड लगने के

साथ तीव्र ज्वर इसके प्रमुख लक्षण हैं।


2.मच्छरों से बचाव हेतु मच्छरदानी, क्वाइल, कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है। रात को सोते समय मुँह तथा अन्य खुले भागों पर लौंग, कपूर या यूकेलिप्टिस का तेल लगाना चाहिए।


8. रेबीज या हाइड्रोफोबिया

यह रोग रेबीज विषाणु, रेहैब्डोविषाणु द्वारा होता है। रेबीज एक गम्भीर केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र सम्बन्धी रोग है, जो कुत्ते तथा बन्दर के काटने से होता है। बिल्ली या अन्य जंगली जानवरों के काटने से भी यह रोग होता है। इन जानवरों की लार में यह रोगाणु पाया जाता है और लार द्वारा ही दूसरे व्यक्ति में संक्रमण होता है।


लक्षण

1• विषाणु के शरीर में प्रवेश करने पर यह सबसे पहले उत्तेजना लाता है और उसके बाद मस्तिष्क की कोशिकाओं एवं मेरुरज्जु (Spinal cord) को नष्ट करता है।


2. सिर में तीव्र दर्द होना रोग का एक विशेष लक्षण है। शरीर में तीव्र ज्वर तथा गले एवं छाती की मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है, जिससे रोगी को घबराहट होती है तथा गला बन्द ( खराश) हो जाता है, जिससे रोगी को भोज्य पदार्थ को भी निगलने में अत्यन्त पीड़ा होती है। इस पीड़ा के कारण रोगी (Patient) प्यास लगने पर भी पानी नहीं पी पाता है तथा पानी को देखकर भयभीत हो जाता है। इसी कारण इस रोग को हाइड्रोफोबिया (Hydrophobia) भी कहते हैं। रोगी की बहुत ही दर्दनाक मौत होती है। .


रोकथाम एवं उपचार

1.रेबीज रोकने हेतु कुत्ते एवं बिल्ली के बच्चों का टीकाकरण करवाना चाहिए।


2.रेबीज विषाणु वाले कुत्ते के काटने पर टीकर लगवाना चाहिए। पहले ये टीके 14 होते थे, परन्तु वर्तमान में केवल 6 खुराकें दी जाती हैं। कुत्ते के काटने के बाद 10 दिन तक कुत्ते पर नजर रखनी चाहिए तथा उसमें कोई परिवर्तन, जैसे-अधिक भागना-दौड़ना, आवाज में परिवर्तन एवं अत्यधिक लार का सावण होना आदि दिखे तो उसे मार देना चाहिए।


नोट रेबीज के विषाणु को पथ विषाणु (Street virus) भी कहते हैं। 


9. भोजन की विषाक्तता (फूड प्वायजनिंग) शरीर को हानि पहुँचाने वाले विषैले तत्वों से युक्त भोजन, विषाक्त भोजन कहलाता है।


• साल्मोनेला स्टैफीलोकोकाई आदि समूह के जीवाणुओं के कारण भोजन विषाक्त होता है। सामान्य रूप से भोजन बासी होने पर कुछ जीवाणुओं, कवक आदि के समावेश से, कुछ विषैली वनस्पतियों के समावेश से, बिना कलई के बर्तनों में खट्टे भोज्य पदार्थों को रखने से तथा कीटनाशक दवाइयों के सम्पर्क से भोजन विषाक्त हो जाता है। बचाव के लिए भोजन ताजा एवं भली-भाँति पका हुआ होना चाहिए।


10. हिपेटाइटिस

मानव के यकृत में सूजन (Infarmation) एक विशेष प्रकार के विषाणु हिपेटाइटिस द्वारा होती है। इसके कारण यकृत का आकार बढ़ (Liver enlargement) जाता है। हिपेटाइटिस पाँच प्रकार के होते हैं-हिपेटाइटिस-A, B, C, D और E ये रोग क्रमशः एन्टेरोविषाणु (Enterovirus) HAV, HBV, HCV, HDV और HEV के कारण होते हैं, जो निम्नलिखित हैं।


1. हिपेटाइटिस A इसे महामारी पीलिया (Epidemic jaundice) भी कहते हैं। इसके विषाणु का आनुवंशिक पदार्थ एकलरज्जुक RNA (SSRNA) होता है। यह विषाणु भोजन व गन्दे पानी द्वारा शरीर में संचरित होता है। इसके प्राथमिक लक्षण मलेरिया, डायरिया, बुखार, ठण्ड लगना आदि होते हैं। इसके विषाणु संक्रमण की औसत रोगोद्भवन अवधि 2-21 दिन होती है।


2. हिपेटाइटिस B इस प्रकार के हिपेटाइटिस की IgM तथा एन्टीहिपेटाइटिस-8 विषाणु (Anti-HAV) द्वारा पहचान की जाती है। हिपेटाइटिस-B के विषाणु में वृत्ताकार द्विरज्जुक (Circular double stranded) DNA पाया जाता है। यह माँ के दूध से बच्चे में, रोगी की लार, सीमन, योनि स्राव आदि के द्वारा स्वस्थ व्यक्ति में प्रवेश कर उसे संक्रमित करता है। यह एक आवरण से घिरा रहता है। इसकी ऊष्मायन अवधि सामान्यतया 4-26 सप्ताह होती है। इसके लक्षण जैसे भूख न लगना, हल्का-सा बुखार रहना, जोड़ों में दर्द आदि इसकी रोकथाम के लिए इन्टरफेरॉन -प्रतिविषाणु प्रोटीन बहुत प्रभावकारी होती है।


3. हिपेटाइटिस C इसका विषाणु एक-रेखीय एकलरज्जुक RNA का बना होता है। इसकी ऊष्मायन अवधि 2-22 सप्ताह होती है। इसका विषाणु घाव, दूषित सूई, दाँतों के उपकरण, लैंगिक सम्बन्ध, दूषित रुधिर आदि के द्वारा स्थानान्तरित होता है। इन्टरफेरॉन एवं राइबेविरीन (Ribavirin) इसकी रोकथाम में बहुत अधिक प्रभावी होते हैं।


4. हिपेटाइटिस D इसका विषाणु एकलरज्जुक (Single stranded) RNA का बना होता है। यह रोग प्राकृतिक रूप से हिपेटाइटिस-B के साथ सहसंक्रमण के रूप में होता है। हिपेटाइटिस-B के संक्रमण के पश्चात् हिपेटाइटिस-D के संचरण को पिग्गी बैकलिंग (Piggy backling) कहते हैं। 


5. हिपेटाइटिस E इसके विषाणु में भी रेखीय एकलरज्जुक (Linear single stranded) RNA पाया जाता है।


यह आवरणविहीन होता है। यह हिपेटाइटिस-A के एकलरज्जुक RNA युक्त नग्न विषाणु के रूप में समानता दर्शाता है। इसकी ऊष्मायन अवधि 2-8 सप्ताह होती है। इसका संक्रमण (Infection) विशेषकर गर्भवती महिलाओं में होता है। संचरण फैलने की विधियाँ


संचरण फैलने की प्रमुख विधियाँ निम्न हैं:


1. हिपेटाइटिस A और E के विषाणु सामान्यतया मुख से प्रवेश करते हैं, जबकि हिपेटाइटिस B और D निम्न कारणों से होते है


a.दूषित रक्ताधान से।


b.संक्रमित साथी के साथ लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने से। 


c.अपरा द्वारा संक्रमित माता से गर्भस्थ शिशु को।


2. हिपेटाइटिस-C सामान्यतया दूषित रुधिर चढ़ाने से फैलता है।


लक्षण

ज्वर, उल्टी आना, यकृत का बढ़ जाना (Hepatomegaly) एवं पीलिया आदि इसके सामान्य लक्षण हैं।


हिपेटाइटिस के परीक्षण


• SBT सीरम बिलिरुबीन टेस्ट


• SGPT (सीरम ग्लूटामिक पाइरुविक ट्रान्सएमीनेज)


• ELISA (Enzyme Linked Immuno Sorbent Assay)


रोकथाम एवं उपचार


1• खाद्य पदार्थ तथा जल को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए। 


2•शारीरिक सम्बन्ध बनाते समय कण्डोम का उपयोग करना चाहिए।


3• आराम (Bed rest) करना चाहिए।


4• ज्यादा कार्बोहाइड्रेटयुक्त तथा कम प्रोटीन एवं वसा वाला भोजन करना चाहिए। 


5•इन्टरफेरॉन दवाओं का उपयोग करना चाहिए।


6•रोग की रोकथाम के लिए हिपेटाइटिस का टीकाकरण करवाना चाहिए, जिसमें इम्यूनोग्लोब्यूलिन दी जाती है। हिपेटाइटिस B में 6 माह का γ ग्लोब्युलिन कोर्स अच्छा उपचार है।


11. टायफाइड या मियादी बुखार

इस रोग में बुखार एक निश्चित अवधि तक रहने के कारण इसे मियादी बुखार कहा जाता है। यह एक साल्मोनेला टाइफी नामक रोगाणु से फैलता है।


कारण 

• टायफाइड के रोगाणु मानव शरीर में दूषित जल, दूध एवं भोजन के माध्यम से प्रवेश करते हैं।


लक्षण

1.तीव्र सिर दर्द के साथ तीव्र ज्वर होता है।


2.कभी-कभी शरीर पर मोती के समान छोटे दाने निकल आते हैं।


3.आँतों में सूजन तथा घाव हो जाता है, इसलिए इसे मोतीझरा भी कहते हैं।


बचाव एवं उपचार

.'टी. ए. बी'. (TAB) का टीका लगवाना चाहिए।


• सफाई का विशेष ध्यान (विशेषकर हाथों का) रखना चाहिए।


• संक्रमित रोगी को अलग रखना चाहिए।


• हल्के तथा सुपाच्य आहार के साथ रोगी को दूध तथा फलों का रस दिया जाना चाहिए। 


12. डेंगू बुखार या रीढ़ की हड्डी का बुखार

डेंगू बुखार डेंगू विषाणु (Dengue Virus or DENV) के कारण होता है, जो मच्छर एडीज एजिप्टाई (Aedes aegypti) द्वारा फैलता है।


 लक्षण

डेंगू बुखार (Dengue fever) या डेंगू हीमोरैजिक बुखार (Dengue Hemorrhagic Fever or DHF) एक खतरनाक रोग है। इस रोग के लक्षणों में उच्च बुखार, गम्भीर अग्र सिर दर्द, नेत्रों के पीछे दर्द, पेशियों और सन्धियों का दर्द, भूख न लगना, सीने और अग्रपादों के आगे कनफड़े (मीजल्स) के समान चकत्ते पड़ना, जी मिचलाना, वमन होना, रक्तस्राव आदि सम्मिलित हैं।


डेंगू के परीक्षण

1.ELISA (Enzyme Linked Immuno Sorbent Assay)


2.HI Assay (Hemagglutination Inhibitioh Assay) 


3.रिवर्स ट्रान्सक्रिप्टेज पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction) 


रोकथाम एवं उपचार


1.डेंगू की रोकथाम का सबसे महत्वपूर्ण उपाय मच्छरों के प्रजनन की जगहों को नष्ट कर देना होता है।


2.आवासीय क्षेत्रों में और उसके आस-पास पानी को जमा नहीं होने देना चाहिए।


3.अंधेरे तथा नमी वाले स्थानों पर कीटनाशकों, जैसे-DDT का छिड़काव किया जाना चाहिए। 


4.इनके अतिरिक्त दरवाजों और खिड़कियों में जाली लगानी चाहिए, ताकि मच्छर अन्दर न घुस सकें एवं पूरे आस्तीन वाली शर्ट तथा पेण्ट पहननी चाहिए। 


5.डेंगू बुखार की कोई विशेष प्रतिजैविक औषधि नहीं है। बुखार के समय पैरासिटामोल (Paracetamol) ली जा सकती है, किन्तु एस्पीन (Asperg कमी भी उपयोग में नहीं लेनी चाहिए।


13. चिकनगुनिया

यह रोग चिकनगुनिया विषाणु (Chikungunia virus or CHIKV) के कारण होता है।


इस रोग का संक्रमण मच्छर की एक प्रजाति, एडीज एजिप्टाई के काटने के फलस्वरूप होता है। इस रोग के लक्षणों में उच्च बुखार, पेशियों और सन्धियों का दर्द तथा उनमें सूजन होना आदि है।


रोकथाम एवं उपचार

• चिकनगुनिया की कोई विशेष औषधि नहीं है, इसे केवल रोका जा सकता है। 


•मच्छरों की प्रजनन की जगहों का नियन्त्रण करके उन्हें खत्म कर देना ही इस रोग से बचाव का सर्वोत्तम उपाय है।


14 हाथीपांव


यह रोग फाइलेरिया कृमि वूचेरेरिया बैन्क्रोफ्टाई (Wucherorie bancroit) के द्वारा उत्पन्न होता है। मानव में इस रोग का संक्रमण मादा क्यूलेक्स (Culex) मच्छर के काटने से होता है। ये तीसरे चरण के लार्वा द्वारा होता है, जिन्हें माइक्रोफाइलेरी (Microfilarian) कहते हैं।


जब क्यूलेक्स मच्छर किसी मनुष्य को काटता है, तो माइक्रोफाइलेरी लार्वा कटे स्थान पर एकत्रित हो जाते हैं और त्वचा के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। त्वचा के

भीतर लसीका वाहिनियों की ओर पहुँचकर ये प्रौढ़ में रूपान्तरित हो जाते हैं। इस रोग का प्रभाव जीवित या मृत कृमि के द्वारा होता है।


लसीका ग्रन्थि एवं लसीका गाँठ के पास के ऊतक तथा सम्बन्धित अंग; जैसे-यकृत, प्लीहा तथा अण्डकोष (Spleen and scrotum) टाँगें, पेट एवं जाँघ के मध्य भाग राग (Groin) में सूजन आने के कारण इनका आकार बढ़ जाता हैं। विशेषकर पैर सूजन के फलस्वरूप हाथी के पैर के समान दिखाई देने लगता है, इसलिए इसे हाथीपाँव रोग भी कहते हैं।


रोकथाम एवं उपचार

जो औषधि फीलपाँव या फाइलेरिएसिस रोग में देते हैं, उस औषधि को रोग के प्रभाव के अनुरूप तीन प्रकार से बाँट सकते हैं


1.प्रौढ़ कृमियों के लिए एक आर्सेनिक औषधि एवं MSZI


2.माइक्रोफाइलेरी के लिए डाइएथिल कार्यामेजिन (Diethyl carbamazn)—हेटराजन (Hetrazan) नोटेजिन (Notezine), बेनोसाइट (Banocite), आदि। 


3.संक्रामक लार्वा एवं वयस्क कृमि के लिए पैरामेलामिनिल फिनाइलस्टीबोना Paramelaminial phenylstibona) 


रोग से बचाव हेतु निम्न सावधानियाँ बरतनी चाहिए


1.मच्छरों के काटने से बचाव करना चाहिए।


2 • मच्छरों की रोकथाम के उपाय करने चाहिए।


15. पीत ज्वर

यह एक गम्भीर विषाणु रोग है, जो पीत ज्वर विषाणु के मादा एडिज एजिप्टी (Vedesagype) मच्छर के काटने से फैलता है। इस रोगों के लक्षण बुखार, ठण्ड, भूख में कमी व बैचेनी है। इसमें मुख्यतया दर्द व सिरदर्द होता है, जो तीन दिन में सुधर जाते है। कुछ व्यक्तियों में यह दोबारा हो जाता है, जिससे उदर (abdomen) में दर्द व यकृत को नुकसान होता है। इन सब लक्षण में रुधिर स्राव व वृक्क के रोगों कि आशंका बढ़ जाती है।


16. मस्तिष्क ज्वर

यह नैनिनजाइटिस का जीवाणुविक रूप है, जो निसेरिया मैनिनजाइटिस नामक जीवाणु से होता है। यह मस्तिष्क झिल्ली को संक्रमित करता है। इसके लक्षण गर्दन में कड़ापन, तीव्र ज्वर, उलझन, सिरदर्द व उल्टी आना है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खाँसी व जुकाम से होता है। उचित प्रतिजैविकों (Antibiotics) के प्रयोग से इस रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है।


17. रक्ताल्पता (एनीमिया)

रक्तसन्वतस यानि शरीर में खून की कमी होना। यह रोग शरीर में पाए जाने वाली लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाला एक पदार्थ (कण) रुधिर वार्जिक यानि हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होती है। इस रोग में व्यक्ति अत्यधिक थकान एवं कमजोरी महसूस करता है।


रक्ताल्पता होने के कारण

रक्ताल्पता होने के कारण निम्नलिखित हैं। 


1.भोजन में लौह युक्त पदार्थों की कमी।

2.मुँह, आहार-नाल, आमाशय या आतों में रक्तस्राव होना। 

3.महिलाओं को मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव होना।

4.नवजात या एक वर्ष से कम आयु के शिशुओं द्वारा गाय या बकरी के दूध का सेवन करना।


लक्षण

1• थकान या कमजोरी लगना।

2• चक्कर या बेहोशी छाना। हाँफना या सीने में दर्द होना।

3• त्वचा, होठ, मसूड़ों, आँखों, हथेलियों तथा नाखूनों का पीला पड़ना।

4.शिशुओं में विकास की गति धीमी पड़ना ।


रोकथाम एवं उपचार


1• रक्ताल्पता की शिकायत होने पर चिकित्सक के परामर्श पर ही भोजन लेना चाहिए।


2. भोजन में हरी पत्तेदारी सब्जियाँ, अण्डा, लाल मांस, फल, दुग्ध उत्पाद, मेवे, फलियाँ तथा मछलियों को शामिल करें। यदि एनीमिया हल्का है, तो पहले पूरी

जाँच कराएँ, तत्पश्चात् दवा तथा उचित परामर्श लें।


3.महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान इस बीमारी की शिकायत अधिक होती है। अतः चिकित्सक से परामर्श के पश्चात् ही आयरन की गोलियाँ लें। 


4• आयरन की कमी को दूर करने के लिए विटामिन बी 12 की टेबलेट एवं इंजेक्शन दिया जाता है।


18. इन्फ्लूएंजा

यह वायरस ए और बी के कारण उत्पन्न होता है। यह श्वसन तन्त्र का एक अत्यन्त संक्रामक रोग होता है। यह उन लोगों को अधिक प्रभावित करता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता किसी बीमारी के कारण कम हो गई हो। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खाँसने छींकने या उसके सम्पर्क में रहने से फैल जाता है। इस वायरस के कारण लोगों को बुखार, सर्दी जुकाम, संक्रमण, सिर दर्द और टायफाइड जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।


इन्फ्लूएंजा के लक्षण


असामान्य थकान का होना, कफ, चक्कर तथा छींक आना, ठण्ड के साथ बुखार होना, त्वचा का नीला पड़ना, नाक का बहना, मांसपेशियों में दर्द, साँस का फूलना, साँस लेने में कठिनाई होना, सिर दर्द होना आदि।


इन्फ्लूएंजा के कारण


इन्फ्लूएंजा नाम के वायरस से यह रोग फैलता है। यह वायरस इंसान के नाक, आँख और मुँह के द्वारा शरीर में प्रवेश होता है। जब भी इनमें से किसी भी अंग को हाथ लगाया जाता है, तो व्यक्ति स्वयं ही फ्लू के जीवाणु से संक्रमित करता है।


रोकथाम एवं उपचार


1.ऐसे में आप गर्म पानी करें और उसमें नींबू निचोड़ ले फिर उस पानी का सेवन करें। 


2.इसमें ठण्डा और बासी खाने से दूरी बना कर रखें।


3.लोगों से हाथ न मिलाएँ।


4.शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें।


5.हाथ को अच्छे से धोकर सुखा लें। व्यायाम को नियमित रूप से करें। अपनी हड्डियों की सिकाई गर्म पानी की बोतल के द्वारा करें।


6. पानी का सेवन उबालकर करें। अधिक से अधिक तरल पदार्थ का सेवन करें।


निःसंक्रमण तथा निःसंक्रामक पदार्थ


रोगाणुओं या जीवाणुओं को नष्ट करने की प्रक्रिया को ही नि संक्रमण कहा जाता है। इस प्रक्रिया में प्रयुक्त पदार्थों को निःसंक्रामक पदार्थ कहते हैं। निःसंक्रमण की तीन विधियों निम्नलिखित हैं


1. भौतिक निःसंक्रमण जलाना, वाष्प या भाप द्वारा, सूखी गर्म हवा द्वारा एवं उबालना आदि भौतिक निःसंक्रमण हैं।


2. प्राकृतिक निःसंक्रमण सूर्य से प्राप्त पराबैंगनी किरणें और ऑक्सीजन प्रमुख प्राकृतिक निःसंक्रामक है। 


3. रासायनिक निःसंक्रमण फिनायल, कार्बोलिक एसिड, चूना, ब्लीचिंग पाउडर, पोटेशियम परमैंगनेट, क्लोरीन, डी. डी. टी. आदि रासायनिक निःसंक्रामक हैं।


[ बहुविकल्पीय प्रश्न Objective Questions ]


प्रश्न 1. संक्रामक रोग फैलते हैं।

अथवा संक्रामक रोगों के प्रकार का माध्यम है।

(a) वायु द्वारा 


(b) जल द्वारा 


(c) सम्पर्क द्वारा 


(d) ये सभी


उत्तर (d) ये सभी


प्रश्न 2. रोग के रोगाणु शरीर में प्रवेश करने से रोग उत्पन्न होने तक के काल को कहते हैं


(a) संक्रमण काल 


(b) सम्प्रप्ति काल 


(c) रोग का प्रकोप


(d) रोग सुधार अवधि


उत्तर (b) सम्प्रप्ति काल


प्रश्न 3. वायु द्वारा फैलने वाला रोग है।


 (a) हैजा


 (b) प्लेग


(c) चेचक


(d) रिकेट्स


उत्तर (c) चेचक


प्रश्न 4. संक्रामक रोग से बचाव का मुख्य उपाय है


(a) टीके लगवाना 


(b) प्रातः घूमना


(c) धूप में बैठना


 (d) पौष्टिक आहार ग्रहण


उत्तर (a) टीके लगवाना


प्रश्न 5. संक्रामक रोग न फैले इसके लिए पानी में मिलाई जाती है। 


(a) एस्प्रिन


(b) लाल दवा


 (c) गन्धक 


(d) कैल्शियम


उत्तर (b) लाल दवा


प्रश्न 6. ए.टी.एस. का इंजेक्शन किस रोग से बचाव से लिए लगाया जाता है?


अथवा ए. टी. एस. अथवा टेटबैंक का इंजेक्शन किस रोग से बचाव के लिए लगाया जाता है?


(a) टिटनेस 


(b) डिफ्थीरिया 


(c) हैजा


(d) तपेदिक

उत्तर (a) टिटनेस


प्रश्न 7. कौन-सा रोग छींक और खाँसी से निकलने वाले स्राव से होता है?


 (a) खसरा 


(b) चेचक


(c) छोटी माता


(d) ये सभी


उत्तर (a) खसरा


प्रश्न 8. बी. सी. जी. का टीका किस रोग से बचाव के लिए लगाया जाता है?

अथवा बी. सी. जी. का टीका लगवाना चाहिए


(a) कुकुर खाँसी


(b) टिटनेस


 (c) तपेदिक


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (c) तपेदिक


प्रश्न 9. चेचक के विषाणु का नाम क्या हैं? 


(a) एण्ट अशीवा


(b) वैरिसेला जोस्टर वायरस 


(c) विडियो कोलेरी


(d) साल्मोनेला टाइफी


उत्तर (b) वैरिसेला जोस्टर वायरस 


प्रश्न 10.क्षय रोग किस जीवाणु द्वारा फैलता है


(a) क्यूलेक्स 


(b) माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस


(c) वाइरस


(d) अमीबा


 उत्तर (b) माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस


प्रश्न 11.कौन-सा रोग मुख्यतयाः 2-5 वर्ष के बच्चों में होता है। 


(a) खसरा


 (b) कर्णकर


(c) काली खासी 


(d) डिफ्थीरिया


उत्तर (d) डिफ्थीरिया


प्रश्न 12. डिफ्थीरिया रोग में मुख्य रूप से होता है।


(a) लार ग्रन्थियों में सूजन आना


 (b) लाल दाने निकलना


(c) गले में झिल्लियों का बन जाना 


(d) ये सभी


 उत्तर (c) गले में झिल्लियों का बन जाना


प्रश्न 13. किस रोग के रोगाणु लार में होते हैं?


(a) चेचक


(b) क्षय


(c) कर्णफेर 


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (c)कर्णफेर


प्रश्न 14. डी. पी. टी. का टीका किन रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है।


(a) डायरिया, पोलियो, टिटनेस


(b) डिफ्थीरिया, कुकर खाँसी टिटनेस


(c) डिफ्थीरिया, पोलिया, टायफाइड 


(d) डायरिया, कुकर खाँसी, टिटनेस


उत्तर (b) डिफ्थीरिया, कुकर खांसी टिटनेस


प्रश्न 15. मच्छरों से कौन-सा रोग फैलता है?


(a) चेचक


(b) क्षय रोग


(c) मलेरिया


(d) टायफाइड


उत्तर (c) मलेरिया


प्रश्न 16. निम्नलिखित में किसके काटने पर एण्टीरेबीज का टीका लगाय जाता है?


(a) मच्छर के 


(b) खटमल के 


(c) कुत्ते के


(d) सौंप के


उत्तर (c) कुत्ते के


प्रश्न 17.रेबीज का कारण है।


(a) मच्छर का काटना


(b) कुत्ते का काटना 


(c) साँप का काटना


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) कुत्ते का काटना


प्रश्न 18. मच्छरों द्वारा कौन-सा रोग फैलता है?


(a) हैजा


(b) डेंगू


(c) तपेदिक


(d) डायरिया


उत्तर (b) डेंगू


प्रश्न 19. जल द्वारा कौन-सा रोग फैलता है?


(a) तपेदिक 


(b) टायफाइड


(c) टिटनेस


(d) ये सभी 


उत्तर (b) टायफाइड



प्रश्न 20. टायफाइड के जीवाणु का नाम है।


(a) ट्यूबरकिल वैसिलस


(b) कॉमा बैसिलस


 (c) साल्मोनेला टाइफी


(d) वैरिओला वायरस


उत्तर (c) साल्मोनेला टाइफी


प्रश्न 21. डेंगू रोग फैलता है


(a) दूषित जल से 


(b) दूषित वायु द्वारा


(c) मच्छर के काटने से


(d) ये सभी


उत्तर (c) मच्छर के काटने से


प्रश्न 22. निम्न में से कौन प्राकृतिक निःसंक्रामक पदार्थ है


(a) सूर्य का प्रकाश


(b) कार्बोलिक एसिड


(c) फिनाइल


(d) उपरोक्त में से कोई नहीं


 उत्तर (a) सूर्य का प्रकाश


प्रश्न 23. निम्नलिखित में से कौन-सा पदार्थ रासायनिक निःसंक्रामक नहीं है?


(a) चुना


(b) ब्लीचिंग पाउडर


(c) पोटेशियम परमैंगनेट


(d) जलाना


उत्तर (d) जलाना


(अतिलघु उत्तरीय प्रश्न Question Answers)


प्रश्न 1. संक्रामक रोग किसे कहते हैं?

उत्तर – जो रोग रोगाणुओं के माध्यम से एक व्यक्ति या प्राणी से दूसरे व्यक्ति या प्राणी को लग जाते हैं, उन्हे संक्रामक रोग कहा जाता है।


प्रश्न 2. किन्हीं चार संक्रामक रोगों के नाम लिखिए।

उत्तर – चार संक्रामक रोग निम्नलिखित हैं। 


1. चेचक


2. खसरा


3. क्षय


4. मलेरिया


प्रश्न 3. संक्रामक रोगों के प्रसार के क्या माध्यम हैं?


अथवा संक्रामक रोगों का संक्रमण किस प्रकार से हो सकता है?


अथवा संक्रामक रोग किन-किन माध्यमों से फैलते हैं?


उत्तर – संक्रामक रोगों का संक्रमण निम्न प्रकार से हो सकता है।


1. जल एवं आहार के माध्यम से


 2. वायु के माध्यम से 


3. प्रत्यक्ष सम्पर्क से


4. रक्त के माध्यम से


5 चोट के माध्यम से


प्रश्न 4. दूषित हवा / वायु द्वारा फैलने वाले रोगों के नाम लिखिए।


अथवा वायु द्वारा कौन-कौन-से रोग फैलते हैं?


उत्तर – दूषित हवा / वायु द्वारा फैलने वाले मुख्य रोग निम्नलिखित है


1. चेचक 


2. छोटी माता


3. खसरा


4. तपेदिक


5. डिफ्थीरिया


6. काली खाँसी


प्रश्न 5. रोग प्रतिरक्षा अथवा रोग-प्रतिरोधक क्षमता को परिभाषित कीजिए।

 उत्तर – विभिन्न प्रकार के रोगाणुओं से संघर्ष करने वाली शरीर की क्षमता को रोग-प्रतिरोधक क्षमता अथवा रोग प्रतिरक्षा कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में यह क्षमता भिन्न-भिन्न होती है।


प्रश्न 6. टीकाकरण क्या है? प्रमुख टीकों के नाम लिखिए।

 उत्तर – संक्रामक रोगों के फैलने से पहले उस क्षेत्र के निवासियों को रोग प्रतिरक्षा हेतू पहले से इन्जेक्शन या टीके लगवाना टीकाकरण कहलाता है। स्वस्थ व्यक्तियों के टीकाकरण से संक्रामक रोग के अधिक फैलने की आशंका नहीं रहती। प्रमुख टीके निम्न हैं 


1.डी.पी. टी. का टीका (डिफ्थीरिया, काली खाँसी, टिटनेस हेतु) 


2. बी. सी . जी. का टीका (तपेदिक से बचाव


3. ए. टी. एस. का टीका (टिटनेस से बचाव )


प्रश्न 7. दो निःसंक्रामक पदार्थों के विषय में लिखिए। 


अथवा निःसंक्रामक पदार्थ किसे कहते हैं? निःसंक्रामक पदार्थों के नाम लिखिए। 


उत्तर – रोगाणुओं या जीवाणुओं को नष्ट करने की प्रक्रिया को ही निःसंक्रमण कहा जाता है। निःसंक्रमण में प्रयुक्त पदार्थों को निःसंक्रामक पदार्थ कहते हैं। फिनायल फिनायल के घोल का प्रयोग कमरे की धुलाई घरेलू नालियों तथा शौचालय आदि की नियमित सफाई में किया जाता है, जिससे अनेक प्रकार के रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। लाइसॉल इसके घोल को पानी में मिलाकर कपड़ों तथा बर्तनों को जीवाणुमुक्त किया जाता है।


प्रश्न 8. मुख्य निःसंक्रामक पदार्थों के नाम लिखिए। 

उत्तर – मुख्य निःसंक्रामक पदार्थ निम्नलिखित है।


1. चूना


2. डी.डी.टी. 5. क्लोरीन


3. फिनायल


6. ब्लीचिंग पाउडर


4. काबोलिक एसिड


प्रश्न 9. चेचक का उद्भव काल कितने समय का होता है? 

उत्तर – चेचक का उद्भव काल 10 से 12 दिन का होता है।


प्रश्न 10. क्षय रोग का कारण लिखिए।

उत्तर – क्षय रोग माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है।


प्रश्न 11. क्षय रोग/तपेदिक से बचने के लिए कौन-सा टीका लगवाना चाहिए?

अथवा तपेदिक रोग से बचने के लिए कौन-सा टीका लगवाया जाता है?

उत्तर – क्षय रोग/ तपेदिक से बचने के लिए बी. सी. जी. का टीका लगवाना चाहिए।


प्रश्न 12. टिटनेस के कारण लिखिए। 

उत्तर – टिटनेस रोग क्लॉस्ट्रीडियम टिटेनी नामक जीवाणु के शरीर में प्रवेश से होता है, जो मुख्य रूप से जंग लगे लोहे तथा घोड़े की लीद व गोबर में होते हैं।


प्रश्न 13. टिटनेस फैलाने वाले सूक्ष्म जीवाणु का नाम क्या है? इस रोग की रोकथाम के दो उपाय लिखिए।


उत्तर – टिटनेस फैलाने वाले सूक्ष्म जीवाणु का नाम क्लॉस्ट्रीडियम टिटेनी है। टिटनेस की रोकथाम के दो उपाय निम्न हैं


1. बच्चों के जन्म के समय उनकी नाल काटने के लिए प्रयोग की जाने वाली कैंची, ब्लेड आदि उपकरणों का स्वच्छ तथा कीटाणुरहित होना अत्यन्त आवश्यक है। 


2. बच्चों को इस रोग से बचाने के लिए एण्टी-टिटनेस का इंजेक्शन लगवाना चाहिए। 


प्रश्न 14. डी. पी. टी. के तीन टीके लगवाने से किन-किन रोगों से प्रतिरक्षा होती है?


अथवा डी. पी. टी. का टीका किस बीमारी की रोकथाम के लिए व किस आयु में लगता है?


उत्तर –डी. पी. टी. के तीन टीके डिफ्थीरिया, काली खाँसी तथा टिटनेस नामक रोगो से हमारी प्रतिरक्षा करते हैं। यह टीका जन्म से 5 वर्ष की अवस्था तक तीन बार लगाया जाता है।


प्रश्न 15. मलेरिया के लक्षण लिखिए।

उत्तर – मलेरिया के मुख्य लक्षण हैं-सिर में दर्द, जी मिचलाना, वमन होना,ठण्ड लगने के साथ तीव्र ज्वर होना आदि।


प्रश्न 16. मलेरिया बुखार से बचने के उपाय लिखिए।

उत्तर – मच्छरों से बचाव ही मलेरिया से बचाव का श्रेष्ठ उपाय है। इसके लिए मच्छरदानी, क्वाइल का प्रयोग, मच्छरमार दवाइयाँ, नीम की पत्तियाँ, ऑलआउट आदि का प्रयोग करना चाहिए। रात को सोते समय मुँह तथा अन्य खुले भागो पर लोग, कपूर या यूकेलिप्टिस का तेल लगाना चाहिए।


प्रश्न 17. रेबीज रोग के लक्षण लिखिए। 

उत्तर – रेबीज रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं।


1. रेबीज से हाइड्रोफोबिया रोग हो जाता है तथा इस रोग से व्यक्ति के गले की मांसपेशियाँ निष्क्रिय हो जाती है।


2. विषाणु के शरीर में प्रवेश करने पर ये सबसे पहले उत्तेजना लाता है और उसके बाद मस्तिष्क की कोशिकाओं एवं मेरुरज्जु (Spinal cord) को नष्ट करता है।


प्रश्न 18. हाथीपाँव (फाइलेरिया) के लक्षण लिखिए।

उत्तर – सामान्यतः फाइलेरिया (हाथीपांव) के लक्षण स्पष्ट नहीं दिखाई देते हैं, लेकिन बुखार, शरीर में खुजली, हाथ एवं पैरो में सूजन हाथीपांव के लक्षण है। 


प्रश्न 19. कौन-से जीवाणु भोजन के विषाक्त होने के कारण है?

उत्तर – साल्मोनेला स्टैफलोकोकाई आदि समूह के जीवाणुओं से भोजन विषाक्त होता है।


प्रश्न 20. भोजन विषाक्त होने के कारण लिखिए।

अथवा भोजन विषाक्त क्यों हो जाता है? 

उत्तर – सामान्य रूप से भोजन बासी होने पर कुछ जीवाणुओं, कवक आदि के समावेश से कुछ विषैली वनस्पतियों के समावेश से बिना कलई के बर्तनों में खट्टे भोज्य पदार्थों को रखने से तथा कीटनाशक दवाइयों के सम्पर्क से विषाक्त हो जाता है।


प्रश्न 21. विषाक्त भोजन से क्या तात्पर्य है? 

उत्तर – ऐसे पदार्थों से युक्त भोजन जो व्यक्ति के शरीर में जाने के बाद विषैले प्रभाव उत्पन्न करते हैं, वह विषाक्त भोजन कहलाता है।


प्रश्न 22. टायफाइड उत्पन्न करने वाले जीवाणु का नाम क्या है? 

 उत्तर – टायफाइड उत्पन्न करने वाले जीवाणु का नाम साल्मोनेला टाइफी है।


प्रश्न 23. टायफाइड के रोगाणु मानव शरीर में किसके माध्यम से पहुँचते हैं?

उत्तर –  टायफाइड के रोगाणु मानव शरीर में मुख्यतः पानी तथा दूध के माध्यम से पहुँचते है।


प्रश्न 24. टायफाइड रोग के लक्षण लिखिए।

अथवा मियादी बुखार (टायफाइड) के कोई दो लक्षण बताइए

उत्तर – टायफाइड रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं।

1. तीव्र सिर दर्द के साथ तीव्र ज्वर होता है।


2. कभी-कभी शरीर पर मोती के समान छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं।


3. इस रोग के प्रभाव से आंतों में सूजन तथा घाव हो जाते हैं।


प्रश्न 25. टायफाइड के रोगी का आहार कैसा होना चाहिए?

उत्तर –  टायफाइड के रोगी का आहार निम्न प्रकार का होना चाहिए।


 1. रोगी का भोजन हल्का होना चाहिए।


2. रोगी को साबूदाने की खीर, फलों का रस आदि देना चाहिए।


3. रोगी को पानी उबालकर व ठण्डा करके देना चाहिए।


[लघु उत्तरीय प्रश्न Short Question Answers]


प्रश्न 1. रोग प्रतिरक्षा से आप क्या समझते हैं? इस क्षमता को बढ़ाने हेतु, क्या उपाय करने चाहिए? 


अथवा रोग प्रतिरक्षा से आप क्या समझती हैं? रोग प्रतिरक्षा के प्रकार व प्राप्ति के स्रोत का विवरण दीजिए।


 उत्तर – विभिन्न रोगाणुओं से संघर्ष करने वाली शरीर को इस क्षमता को ही 'रोग-प्रतिरक्षा' या रोग-प्रतिरोधक क्षमता अथवा रोग-प्रतिबन्धक शक्ति (Immunity Power) कहते है। प्रत्येक व्यक्ति में यह क्षमता या शक्ति भिन्न- भिन्न स्तरों में पाई जाती है। यही नहीं एक ही व्यक्ति में भी यह क्षमता भिन्न-भिन्न समय में कम या अधिक हो सकती है। रोग प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है


1. प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता प्राकृतिक रूप से ही प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में विभिन्न रोगों का मुकाबला करने की क्षमता होती है, जो जन्मजात होती है। मनुष्य को इसको प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमत कहते हैं।


2. कृत्रिम अथवा अर्जित रोग-प्रतिरोधक क्षमता रोगग्रस्त होने से बचने एवं स्वस्थ बने रहने के लिए प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता के साथ अतिरिक्त रोग-प्रतिरोधक क्षमता की आवश्यकता होती है। यह अतिरिक्त क्षमता विभिन्न उपाये द्वारा प्राप्त की जा सकती है। इस अतिरिक्त रोग-प्रतिरोधक क्षमता को ही स्वास्थ्य विज्ञान की भाषा में कृत्रिम अथवा अर्जित रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते है।


रोग प्रतिरक्षा की प्राप्ति के स्रोत नियमित और सन्तुलित जीवनशैली तथा स्वच्छ खान-पान के अतिरिक्त टीके या इंजेक्शन पद्धति द्वारा भी अतिरिक्त रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास किया जाता है। 


प्रश्न 2. खसरा रोग के कारण, लक्षण एवं बचने के उपाय लिखिए।


उत्तरखसरा

खसरा भी चेचक की भाँति एक संक्रामक रोग है, जो एक विशेष प्रकार के विषाणु के कारण होता है। यह वायु द्वारा फैलता है तथा बच्चों में अधिक होता है। इसके रोगाणु गले के श्लेष्म तथा नाक के स्राव में भी पाए जाते हैं, जो हवा में मिलकर संक्रमण का कारण बन जाते हैं। इस रोग के संक्रमण से रोग के लक्षण उत्पन्न होने में लगभग 10-15 दिन लगते हैं। कभी-कभी यह अवधि 20 दिन तक भी हो सकती है।


खसरे के लक्षण


खसरे के विषाणु व्यक्ति के शरीर में पहुंचने के कुछ समय पश्चात् निम्न लक्षण प्रकट होते हैं— जाड़े के साथ बुखार, बेचैनी, आंखें लाल होना, खांसी, छोक, प्रारम्भ में कानों के पीछे दाने तथा बाद में पूरे शरीर में दाने, तीव्र बुखार, 4-5 दिन में दाने मुरझाने और कम होने लगते है।


           खसरे से बचाव के उपाय


इस रोग से बचने के प्रमुख उपाय निम्नवत् है


1. खसरा रोग से ग्रस्त बच्चे को घर के अन्य व्यक्तियो से अलग हवादार कमरे में रखें। 


2. रोगी की नाक व मुंह से निकले स्राव को पुराने, किन्तु स्वच्छ कपड़े से पोछे और उसे जला दे।


3. रोगी के चूकने वाले बर्तन में निःसंक्रामक पदार्थ डाले।


4. रोगी बालक के खिलौने, वस्त्र तथा वर्तन किसी निःसंक्रामक पदार्थ द्वारा साफ करें। जब घर या नगर में यही बीमारी फैल रही हो तो सफाई से रहना, नाक व गले की सफाई करना, किसी निःसंक्रामक द्वारा कुल्ला करना व रोगी से दूर रहना ही इस रोग से बचने के उपाय है।


5. रोगी के परिवार वालों को चाहिए कि वे रोग उत्पन्न होते हो इसकी सूचना नगरपालिका को अवश्य दें, जिससे कि सफाई आदि का विशेष प्रबन्ध हो सके।


                    खसरे का उपचार


यदि खसरा बिगड़े नहीं तो किसी प्रकार के उपचार की आवश्यकता नहीं है। रोगी की उचित देखभाल करने से ही वह ठीक हो सकता है, क्योंकि इसके साथ निमोनिया होने का भय रहता है। अतः अधिक गर्मी तथा अधिक ठण्ड से रोगी को बचाना चाहिए।


प्रश्न 3. काली खाँसी के लक्षण लिखिए।


अथवा काली खाँसी के लक्षण, कारण व बचने के उपाय लिखिए।


अथवा काली खासी के लक्षण और रोकथाम के उपाय लिखिए।


उत्तर – काली खाँसी

यह एक संक्रामक रोग है, जो बचपन में बार-बार होता है। इस रोग के कारण अधिकांश बच्चों को अत्यधिक कष्ट होता है, इसका सम्माप्ति काल 4 से 14 दिन तक होता है। प्रायः खसरा होने के बाद असावधानी से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग को उत्पन्न करने वाला रोगाणु होमोकिट्स परटूसिस वैसिलस है। कुलों को यह रोग प्रायः होता रहता है. इसलिए इसे कुकुर खाँसी भी कहते हैं।


काली खाँसी के लक्षण


इस रोग में निम्नलिखित लक्षण प्रकार होते हैं


1. बच्चे के गले में दर्द होता है।


 2. ज्वर भी हो जाता है।


3. बेचैनी होती है।


4. आँखों से पानी आता है।


काली खाँसी का संक्रमण


रोगी के बातचीत करने अथवा खाँसने व छींकने से रोग के जीवाणु वायु में मिलकर श्वास द्वारा अन्य स्वस्थ बच्चे के शरीर में पहुँच जाते हैं तथा उसे रोगग्रस्त कर देते हैं।


काली खाँसी के बचाव के उपाय


इस रोग से बचने के प्रमुख उपाय निम्नवत् हैं।


1. स्वस्थ बालकों को रोगों से अलग रखना चाहिए।


 2. अन्य बच्चों को इस रोग से बचाव का टीका लगवाना चाहिए।


3. रोगी के ठीक हो जाने के बाद उसके प्रयोग में आई वस्तुओं तथा कमरे इत्यादि को निःसंक्रमित कर देना चाहिए।


प्रश्न 4. टिटनेस होने के क्या कारण हैं? टिटनेस के लक्षण, रोकथाम और उपचार लिखिए।


अथवा टिटनेस रोग के कारण बताइए। 


उत्तरटिटनेस

टिटनेस एक अत्यधिक भयंकर एवं घातक रोग है, जिसमें अधिकांश व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। यह रोग एक विशेष प्रकार जीवाणु 'क्लॉस्ट्रीडियम टिटेनी के शरीर में प्रवेश करने से होता है।


टिटनेस के जीवाणु मुख्य रूप से घोड़े की लीद, गोबर, जंग लगे लोहे तथा खाद में पाए जाते हैं। जब कहीं चोट लग जाए या कट जाए तो उस स्थान से टिटनेस के रोगाणु रक्त में प्रवेश कर तेजी से वृद्धि करके अति शीघ्र रोग के भयंकर लक्षण प्रकट कर देते हैं। इस रोग का सम्प्राप्ति काल 2-14 दिन का होता है।


              टिटनेस के लक्षण


इस रोग में निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं।


1. इस रोग में पीड़ित व्यक्ति के शरीर की मांसपेशियों में अकड़न पैदा हो जाती है।


2. जबड़े सख्ती से भिच जाते हैं।


3. गर्दन एक ओर खिंच जाती है।


4.रोड़ की हड्डी धनुष के आकार की हो जाती है, इसी कारण इसे धनु रोग अथवा हनुस्तम्भ रोग भी कहा गया है। 


5. अन्तिम अवस्था में रोगी के फेफड़े व हृदय काम करना बन्द कर देते हैं।


टिटनेस का उपचार


इस रोग के उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं 


1. रोगी को शीघ्र अति शीघ्र अच्छे अस्पताल में ले जाना चाहिए, जहाँ उसका व्यवस्थित रूप से उपचार हो सके। 


2. रोगी को शान्त एवं स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिए।


3. चोट लगने पर तुरन्त कोई अच्छी दवा जैसे-टिक्चर आयोडीन या टिटनेस टॉक्सइड लगानी चाहिए।


4. बच्चों के जन्म के समय उनकी नाल काटने के लिए प्रयोग की जाने वाल कैची, ब्लेड आदि उपकरणों का स्वच्छ तथा कीटाणुरहित होना अत्यन्त आवश्यक है।


5. बच्चों को इस रोग से बचाने के लिए एण्टी-टिटनेस का इंजेक्शन लगवाना चाहिए।


6. चोट लग जाने पर टेटबैक का जेक्शन लगवाना चाहिए।


प्रश्न 5. मलेरिया रोग से बचने के क्या उपाय है? इस रोग के क्या लक्षण है?


अथवा मलेरिया रोग फैलने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय लिखिए।


अथवा मलेरिया रोग के कारण और बचने के उपाय लिखिए।


उत्तर –  मलेरिया


मलेरिया एक संक्रामक रोग है, जो एक कोशिकीय परजीवी रोगाणु 'प्लाज्मोडियम के मानव शरीर में प्रवेश करने से फैलता है। मलेरिया फैलाने का कार्य एनाफिलीज जाति के मादा मच्छर द्वारा किया जाता है।


मलेरिया रोग के लक्षण

सिर में दर्द, जी मिचलाना, वमन होना तथा जाड़े के साथ तीव्र ज्वर होना आदि मलेरिया के मुख्य लक्षण है। इस रोग में अत्यधिक कमजोरी आ जाती है, रक्त की

कमी हो जाती है तथा रोगी की तिल्ली बढ़ जाती है।


मलेरिया से बचाव के उपाय


मच्छरों से बचाव ही मलेरिया से बचाव का श्रेष्ठ उपाय है। ये उपाय निम्न है


1. तेज बुखार में ठण्डे पानी की पट्टियां माथे पर रखने से शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है।


2. मलेरिया होने पर 3 ग्राम चूना 70 मिली पानी में अच्छे से घोल ले और इसमें नींबू निचोड़कर पीने से राहत मिलती है।

गुनगुने पानी में नींबू का रस मिलाकर पीने से भी बुखार कम होने लगता है।


 मलेरिया का उपचार


मलेरिया की जाँच करवाकर योग्य चिकित्सक के परामर्श के अनुसार दवा का सेवन करना चाहिए तथा विश्राम करना चाहिए। मलेरिया में सादे एवं सुपाच्य भोजन के साथ दूध का सेवन करना चाहिए।


प्रश्न 6. मच्छरों को समाप्त (खत्म करने के उपाय बताइए। 


अथवा मच्छरों को मारने एवं उनकी वृद्धि रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते है।


 उत्तरमच्छरों को समाप्त करने के उपाय


मच्छरों को समाप्त करने के निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए


1. गन्दे नालों, कूड़ाघरों, गड्ढों आदि में मिट्टी का तेल छिड़ककर मच्छर के अण्डों को नष्ट कर देना चाहिए।


2. मच्छर मार दवा मॉर्टिन, गुडनाइट, हिट आदि का प्रयोग करना चाहिए।


3. रात में मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए।


4. घरों में नीम की पत्ती, धूप आदि से भी मच्छर भागते हैं।


5. रात को सोते समय मच्छर भगाने वाले लोशन, ओडोमॉस आदि का इस्तेमाल करें।


6. घर के कूलर का पानी बदलते रहें। छत तथा अन्य किसी जगह पानी इकट्ठा न होने दें।


प्रश्न 7. भोजन विषाक्त कैसे होता है? विषाक्त भोजन स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित करता है?


अथवा विषाक्त भोजन से आप क्या समझती है? विषाक्त भोजन से मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?


अथवा भोजन विषाक्तता से आप क्या समझती हैं? भोजन विषाक्तता के लक्षण बताइए। भोजन विषाक्तता से बचने के लिए क्या उपाय करने चाहिए?


अथवा भोजन की विषाक्ता होने के विभिन्न कारण व इसके बचाव के उपाय लिखिए।


अथवा विषाक्त भोजन से बचने के उपाय लिखिए।


उत्तर – भोजन विषाक्तता

ऐसे पदार्थों से युक्त भोजन जो व्यक्ति के शरीर में जाने के बाद विषैले प्रभाव उत्पन्न करते हैं, 'विषाक्त भोजन' कहलाता है। स्वस्थ व्यक्ति में भोजन की विषाक्तता समस्या पैदा करती है।


भोजन विषाक्तता के लक्षण / प्रभाव

सामान्यतः ऐसा भोजन ग्रहण करने से मानव शरीर पर निम्नलिखित प्रभाव / लक्षण उत्पन्न होते हैं


1. जी मिचलाना तथा शरीर का थका-थका प्रतीत होना।


2. उल्टी (वमन), दस्त आदि लग जाना।


 3. पेट में दर्द, पेन आदि का होना।


4. ज्वर होना। 


5. शरीर में अत्यधिक कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन आदि होना।


6. नाड़ी की गति तीव्र हो जाना।


7. शरीर में जल की कमी अर्थात् निर्जलीकरण (Dehydration) हो जाना।


8. जल की पर्याप्त मात्रा ग्रहण न करने तथा उपचार न किए जाने की स्थिति में व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। 


भोजन विषाक्तता से बचने के उपाय


1. ताजा भोजन ही प्रयोग करना चाहिए। 


2. भोजन को भली-भांति पकाकर खाना चाहिए।


3. भोजन पकाने के बाद यदि देर तक रखना है, तो फ्रिज में रखा जाना चाहिए तथा भोजन करने से पूर्व उसे उचित ताप पर गर्म करना चाहिए।


4. विषैले पदार्थों के विषय में जानकारी रखनी चाहिए।


5. दूषित भोजन को कदापि प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।


प्रश्न 8. चिकनगुनिया रोग के कारण और बचने के उपाय लिखिए। 


 अथवा चिकनगुनिया रोग के लक्षण एवं उसका उपचार लिखिए। 


 उत्तर – चिकनगुनिया रोग के लक्षण


चिकनगुनिया रोग के लक्षण निम्नलिखित है 


1. अचानक तेज बुखार आना। 


2. जोड़ों में दर्द होना


3. शरीर पर लाल चकत्ते पड़ना। 


4. मांसपेशियों में खिंचाव और दर्द होना।


5. चक्कर आना।


7. सिर में तेज दर्द होना


6. उल्टी आना।


           चिकनगुनिया रोग के उपचार

चिकनगुनिया रोग के उपचार निम्नलिखित है 


1. पपीते के पत्तों का जूस (रस) निकालकर उसका सेवन करना चाहिए।


2. लहसुन और अजवाइन को तेल में एकसाथ मिलकर गर्म करने के पश्चात् जोड़ों पर हल्के हाथों से मालिश करें।


3. कच्ची गाजर का सेवन करें।


4. नीम की सुखी हुई पत्तियाँ, तुलसी, किशमिश और अजवाइन को एक गिलास पानी में उबालकर दिन में दो से तीन बार सेवन करें।


5. लौंग के तेल में लहसुन को पीसकर डालें, इसके बाद किसी भी कपड़े में लपेटकर जोड़ों पर बाँध दें।


प्रश्न 9. रक्ताल्पता से क्या अभिप्राय है?

अथवा रक्ताल्पता का अर्थ, कारण व लक्षण बताइए।

उत्तर – रक्ताल्पता (एनीमिया) का साधारण अर्थ रक्त (खून) की कमी है। यह लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाले एक पदार्थ (कण) रुधिर वर्णिका यानि हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होती है। हीमोग्लोबिन के अणु में अनचाहे परिवर्तन आने से भी रक्ताल्पता के लक्षण प्रकट होते हैं। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर में ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है और इसकी संख्या में कमी आने से शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति में भी कमी आती है जिसके कारण व्यक्ति थकान और कमजोरी महसूस कर सकता है।


रक्ताल्पता का कारण

रक्ताल्पता के प्रमुख कारण निम्न हैं


1. शरीर द्वारा लौह और अन्य आहार के उपयोग में समस्या।


2. लौह तत्त्व युक्त भोजन का अपर्याप्त सेवना


 3. मुंह, आहार- नाल, आमाशय या आंतों में रक्तस्राव।


4. योनिक रक्तस्राव या भारी मासिक स्राव।


5. एक वर्ष से कम आयु के शिशुओं द्वारा गाय या बकरी के दूध का सेवन।


6. शिशुओं को दिए जाने वाले खाद्य अनुकल्प में लौह तत्व की कमी।


रक्ताल्पता के लक्षण

रक्ताल्पता के प्रमुख लक्षण निम्न हैं


1. थकान या कमजोरी अनुभव करना।


2. त्वचा, होठ, मसूड़ों, आंखों, नाखून और हथेलियों का पीला होना।


 3. स्पष्ट सोचने में परेशानी या भ्रम अनुभव करना।


4. चक्कर आना या बेहोशी छाना



5. हाँफना या सीने में दर्द।


6. दिल की धड़कनों का तेज होना।


 7. शिशुओं और बच्चों का धीमा विकास।


प्रश्न 10. इन्फ्लुएंजा रोग के लक्षण एवं इसके उपचार लिखिए। 

उत्तर – इन्फ्लुएंजा (श्लैष्मिक ज्वर) एक विशेष समूह के वायरस के कारण मानव समुदाय में होने वाला एक संक्रामक रोग है। इसमें ज्वर और अति दुर्बलता विशेष लक्षण हैं। फुफ्फुसों के उपद्रव की इसमें बहुत सम्भावना रहती है। यह रोग प्रायः महामारी के रूप में फैलता है।


लक्षण


1. कपकपी, नाक बहना, सिरदर्द


2. मांसपेशियों में पीड़ा और शरीर में दर्द


13. अतिसार और उल्टी


4. सूखी खाँसी जो नमी युक्त हो सकती है।


5. थकावट (ऊर्जा की कमी)


6. कान में दर्द


उपचार


1. संक्रमित व्यक्ति को बच्चों से दूर रखें। रोगी यदि बालक है, तो उसे घर से बाहर न जाने दें।


2. अधिक-से-अधिक आराम करें।


3. भोजन में तरल आहार लें।


4. एक वर्ष में टीका अवश्य लगवाएँ।


प्रश्न 11. हिपेटाइटिस के प्रकार और लक्षण लिखिए ।

उत्तरहिपेटाइटिस

मानव के यकृत में सूजन (Infarmation) एक विशेष प्रकार के विषाणु हिपेटाइटिस द्वारा होती है। इसके कारण यकृत का आकार बढ़ (Liver enlargement) जाता है। हिपेटाइटिस पाँच प्रकार के होते हैं-हिपेटाइटिस-A, B, C, D और E ये रोग क्रमशः एन्टेरोविषाणु (Enterovirus) HAV, HBV, HCV, HDV और HEV के कारण होते हैं, जो निम्नलिखित हैं।


1. हिपेटाइटिस A इसे महामारी पीलिया (Epidemic jaundice) भी कहते हैं। इसके विषाणु का आनुवंशिक पदार्थ एकलरज्जुक RNA (SSRNA) होता है। यह विषाणु भोजन व गन्दे पानी द्वारा शरीर में संचरित होता है। इसके प्राथमिक लक्षण मलेरिया, डायरिया, बुखार, ठण्ड लगना आदि होते हैं। इसके विषाणु संक्रमण की औसत रोगोद्भवन अवधि 2-21 दिन होती है।


2. हिपेटाइटिस B इस प्रकार के हिपेटाइटिस की IgM तथा एन्टीहिपेटाइटिस-8 विषाणु (Anti-HAV) द्वारा पहचान की जाती है। हिपेटाइटिस-B के विषाणु में वृत्ताकार द्विरज्जुक (Circular double stranded) DNA पाया जाता है। यह माँ के दूध से बच्चे में, रोगी की लार, सीमन, योनि स्राव आदि के द्वारा स्वस्थ व्यक्ति में प्रवेश कर उसे संक्रमित करता है। यह एक आवरण से घिरा रहता है। इसकी ऊष्मायन अवधि सामान्यतया 4-26 सप्ताह होती है। इसके लक्षण जैसे भूख न लगना, हल्का-सा बुखार रहना, जोड़ों में दर्द आदि इसकी रोकथाम के लिए इन्टरफेरॉन -प्रतिविषाणु प्रोटीन बहुत प्रभावकारी होती है।


3. हिपेटाइटिस C इसका विषाणु एक-रेखीय एकलरज्जुक RNA का बना होता है। इसकी ऊष्मायन अवधि 2-22 सप्ताह होती है। इसका विषाणु घाव, दूषित सूई, दाँतों के उपकरण, लैंगिक सम्बन्ध, दूषित रुधिर आदि के द्वारा स्थानान्तरित होता है। इन्टरफेरॉन एवं राइबेविरीन (Ribavirin) इसकी रोकथाम में बहुत अधिक प्रभावी होते हैं।


4. हिपेटाइटिस D इसका विषाणु एकलरज्जुक (Single stranded) RNA का बना होता है। यह रोग प्राकृतिक रूप से हिपेटाइटिस-B के साथ सहसंक्रमण के रूप में होता है। हिपेटाइटिस-B के संक्रमण के पश्चात् हिपेटाइटिस-D के संचरण को पिग्गी बैकलिंग (Piggy backling) कहते हैं। 


5. हिपेटाइटिस E इसके विषाणु में भी रेखीय एकलरज्जुक (Linear single stranded) RNA पाया जाता है।


यह आवरणविहीन होता है। यह हिपेटाइटिस-A के एकलरज्जुक RNA युक्त नग्न विषाणु के रूप में समानता दर्शाता है। इसकी ऊष्मायन अवधि 2-8 सप्ताह होती है। इसका संक्रमण (Infection) विशेषकर गर्भवती महिलाओं में होता है। संचरण फैलने की विधियाँ


संचरण फैलने की प्रमुख विधियाँ निम्न हैं:


1. हिपेटाइटिस A और E के विषाणु सामान्यतया मुख से प्रवेश करते हैं, जबकि हिपेटाइटिस B और D निम्न कारणों से होते है


a.दूषित रक्ताधान से।


b.संक्रमित साथी के साथ लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने से। 


c.अपरा द्वारा संक्रमित माता से गर्भस्थ शिशु को।


2. हिपेटाइटिस-C सामान्यतया दूषित रुधिर चढ़ाने से फैलता है।


लक्षण

ज्वर, उल्टी आना, यकृत का बढ़ जाना (Hepatomegaly) एवं पीलिया आदि इसके सामान्य लक्षण हैं।


हिपेटाइटिस के परीक्षण


• SBT सीरम बिलिरुबीन टेस्ट


• SGPT (सीरम ग्लूटामिक पाइरुविक ट्रान्सएमीनेज)


• ELISA (Enzyme Linked Immuno Sorbent Assay)


रोकथाम एवं उपचार


1• खाद्य पदार्थ तथा जल को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए। 


2•शारीरिक सम्बन्ध बनाते समय कण्डोम का उपयोग करना चाहिए।


3• आराम (Bed rest) करना चाहिए।


4• ज्यादा कार्बोहाइड्रेटयुक्त तथा कम प्रोटीन एवं वसा वाला भोजन करना चाहिए। 


5•इन्टरफेरॉन दवाओं का उपयोग करना चाहिए।


6•रोग की रोकथाम के लिए हिपेटाइटिस का टीकाकरण करवाना चाहिए, जिसमें इम्यूनोग्लोब्यूलिन दी जाती है। हिपेटाइटिस B में 6 माह का γ ग्लोब्युलिन कोर्स अच्छा उपचार है।


प्रश्न 12. विसंक्रामक पदार्थों की व्याख्या कीजिए।


अथवा निसंक्रामक पदार्थों की व्याख्या कीजिए।


उत्तर – रोगाणुओं को नष्ट करने की प्रक्रिया को ही निःसंक्रमण कहा जाता है।

निःसंक्रमण की इस प्रक्रिया में प्रयुक्त पदार्थ निःसंक्रामक पदार्थ कहलाते हैं। प्रमुख निसंक्रामक पदार्थों की व्याख्या इस प्रकार है।


1. फिनॉयल यह कार्बोलिक अम्ल से बनाया जाता है, यद्यपि फिनॉयल कार्बोलिक अम्ल से अधिक प्रभावी होता है। फिनॉयल मिश्रित जल के दूधिया घोल का प्रयोग, घर को कीटाणुमुक्त करने में किया जाता है। यह स्नानघर व शौचालय की सफाई में भी उपयोगी है।


2. कार्बोलिक एसिड यह कोलतार से निकलता है। इसके घोल का प्रयोग वस्त्र आदि को निःसंक्रमित करने में किया जाता है।


3. फार्मेलिन यह एक तीव्र गन्ध वाला निःसंक्रामक है। इसका घोल शौचालय के कीटाणुओं को मारने में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त लाइजॉल एवं आइजॉल अन्य तरल निःसंक्रामक पदार्थ हैं।


4. चूना यह जीवाणुओं को नष्ट करने वाला एक सस्ता रसायन है। दीवारों पर चूने की सफेदी का प्रयोग कीटाणुओं को नष्ट करने में सहायक है। फर्श, नाली तथा शौच आदि के स्थान पर चूने का छिड़काव उपयोगी होता है। 


5.ब्लीचिंग पाउडर यह पाउडर जल को रोगाणुमुक्त करने में सहायक होता है।इस पाउडर से क्लोरीन गैस निकलती है।


 6. पोटैशियम परमैगनेट यह निःसंक्रामक लाल दवा के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुंओं एवं तालाबों के जल को कीटाणुरहित करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।


[दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Question Answers ]


प्रश्न 1. संक्रामक रोग क्या होते हैं, कैसे फैलते हैं तथा इन्हें फैलने से रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?


अथवा संक्रामक रोग कैसे फैलते हैं? इन्हें फैलने से कैसे रोका जा सकता है?


अथवा वायु द्वारा रोग कैसे फैलते हैं? वर्णन कीजिए।


उत्तरसंक्रामक रोगों का फैलना

सभी प्रकार के संक्रामक रोग सम्बन्धित रोगाणुओं या जीवाणुओं के शरीर में प्रवेश करने के परिणामस्वरूप होते हैं। ये रोगाणु या जीवाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में निम्नलिखित प्रकार से फैलते हैं


1. जल एवं आहार के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति नियमित रूप से जल एवं आहार ग्रहण करता है। यदि पर्यावरण में किसी रोग के रोगाणु अधिक संख्या में हों तो हमारे जल एवं आहार में भी व्याप्त हो सकते हैं। आहार तथा जल में पहुंचकर ये रोगाणु अनुकूल परिस्थितियों पाकर तेजी से बढ़ जाते हैं। इस प्रकार के रोगाणुयुक्त जल अथवा आहार को जब कोई व्यक्ति ग्रहण करता है, तो ये रोगाणु व्यक्ति के शरीर में पहुँच जाते हैं। उदाहरण के लिए हैजा, टायफाइड, अतिसार तथा पेचिश आदि रोग दूषित जल एवं आहार के माध्यम से फैलते हैं। 


2. वायु के माध्यम से वायु धूलकणों के साथ-साथ रोगाणुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाती है, इसके अतिरिक्त अनेक रोगाणु व जीवाणु एक लम्बी अवधि तक वायु में निलम्बित रहते हैं। इस प्रकार की अशुद्ध वायु में साँस लेने से अनेक रोग हो जाते हैं। वायु द्वारा संक्रमित होने वाले मुख्य रोग है-चेचक, छोटी माता, खसरा, तपेदिक, डिफ्थीरिया, काली खांसी आदि।


3. प्रत्यक्ष सम्पर्क के माध्यम से जब कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी रोगी व्यक्ति के सीधे सम्पर्क में आता है तो रोग के कीटाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में भी प्रवेश कर जाते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा त्वचा सम्बन्धी विभिन्न रोगों का संक्रमण होता है। प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा संक्रमित होने वाले मुख्य रोग हैं-दाद, खाज, खुजली, कुष्ठ आदि। इसके अतिरिक्त विभिन्न यौन सम्बन्धी रोग (एड्स आदि) भी प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा ही फैलते हैं।


4. रक्त द्वारा या कीड़ों के माध्यम से रोगाणुओं के मानव शरीर में प्रवेश का एक माध्यम रक्त भी है। विभिन्न प्रकार के कीट, जैसे-मच्छर, पिस्सू आदि हमें काटते या डंक चुभाते रहते हैं। इससे इन फोटो के मुंह का सीधा सम्बन्ध हमारे रक्त के साथ हो जाता है। यदि ये कोट किसी रोग के रोगाणुओं से युक्त हो तो इनके मुखागों या डंक के माध्यम से वे रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। तथा शरीर को संक्रमित कर देते है। इस प्रक्रिया से संक्रमित होने वाले मुख्य रोग है-मलेरिया, डेंगू, प्लेग, पीत ज्वर, फाइलेरिया आदि पागल कुत्ते के काटने के परिणामस्वरूप होने वाला हाइड्रोफोबिया नामक रोग भी इसी श्रेणी का एक संक्रामक रोग है।


5. चोट या घाव के माध्यम से शरीर के किसी अंग में चोट अथवा घाव लगने वाला स्थान यदि खुला होता है, तो वहाँ मिट्टी आदि से रोगाणु प्रवेश कर जाते हैं। टिटनेस इसी प्रकार फैलने वाला रोग है।


संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के उपाय

संक्रामक रोगों से बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।


 1. संक्रामक रोग से ग्रसित व्यक्ति को शीघ्र ही अस्पताल में भर्ती करवाना चाहिए।


 2. व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों से अलग किसी स्वच्छ कमरे में रखना चाहिए।


3. संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका होने पर इनसे बचाव के टीके लगवाने चाहिए। 


4. आवासीय स्थानों पर मक्खियों, मच्छरों एवं अन्य कीटों को समय-समय पर नष्ट करने के उपाय करते रहना चाहिए।


5. ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में रोगाणुमुक्त पेयजल की व्यवस्था करनी चाहिए।


6. संक्रामक रोगों के फैलने की सूचना निकटतम स्वास्थ्य अधिकारी को शीघ्र ही देनी चाहिए।


7. विभिन्न उपायों द्वारा रोगाणुनाशक का कार्य यथासम्भव रूप से करना चाहिए।


8. बच्चों को विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाव के सभी टीके निर्धारित समय पर अवश्य लगवाने चाहिए।


9. साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिए, जिससे बीमारी के रोगाणु न फैल सकें।


प्रश्न 2. चेचक रोग के लक्षण, कारण और बचने के उपाय लिखिए। 


उत्तरचेचक रोग

चेचक को बड़ी माता भी कहा जाता है। यह एक अत्यन्त संक्रामक, भयानक एवं घातक रोग है।


चेचक रोग के लक्षण


 1. आरम्भ में सिर व कमर में दर्द होता है।


2. तीव्र ज्वर भी हो सकता है।


3. जी मिचलाना तथा उल्टी हो सकती है।


4. लक्षण प्रकट होने पर आँखें लाल हो जाती हैं


5. तीन-चार दिन बाद मुंह पर लाल दाने निकल आते हैं।


6. बुखार खत्म होने पर दाने सम्पूर्ण शरीर में फैल जाते हैं।


7. चेचक के दाने पहले लाल होते हैं, बाद में इनमें गाढ़ा तरल द्रव भर जाता है। 


8. 9-12 दिन बाद दाने मुरझाकर खुरण्ड बनने लगते है। 


10-11 दिन बाद खुरण्ड भी गिर जाते हैं तथा इनके स्थान पर लाल निशान के दाग या गड्ढे शेष रह जाते हैं।


चेचक फैलने के कारण


इस रोग का संक्रमण वायु के माध्यम से होता है। इस रोग के फैलने का प्रमुख कारण एक विशेष विषाणु या वायरस हैं, जो श्वसन-तन्त्र के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। इस रोग के विषाणु को 'वेरियोला वायरस' कहते हैं।


चेचक से बचाव के उपाय


चेचक से बचने तथा इसको फैलने से रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं। 


1. रोग से बचने के लिए परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को समय पर टीका अवश्य लगवा लेना चाहिए। चेचक के रोगी को बिल्कुल अलग रखना चाहिए तथा अन्य व्यक्तियों को उसके सम्पर्क में नहीं आने देना चाहिए।


2. चेचक के लक्षण दिखाई देते ही किसी अच्छे चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए तथा उसके निर्देशों के अनुसार कार्य करना चाहिए।


 3. रोगी के द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले बर्तनों एवं अन्य वस्तुओं को बिल्कुल अलग रखना चाहिए। 


4. रोगी के मल-मूत्र, थूक तथा उल्टी आदि पर कोई तेज निःसंक्रामक डालकर या जमीन में गाड़कर अथवा जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।


 6. रोगी की सेवा करने वाले व्यक्ति को चेचक का टीका अवश्य लगवाना चाहिए। इस व्यक्ति को भी अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क से बचना चाहिए।


 6. रोगी के दानों से उतरने वाली पपड़ी अथवा खुरण्डों को सावधानीपूर्वक एकत्र करके आग में जला देना चाहिए।


प्रश्न 3. पीलिया रोग के लक्षण, कारण व बचाव के उपाय लिखिए

 उत्तर –  हिपेटाइटिस को सामान्यतः पीलिया के नाम से जाना जाता है। मानव के यकृत में सूजन (Inflammation) एक विशेष प्रकार के विषाणु हेपेटाइटिस द्वारा होती है। इसके कारण यकृत का आकार बढ़ (Liver enlargement) जाता है। हेपेटाइटिस पाँच प्रकार के होते हैं--A. B. CD EI ये रोग एन्टेरोविषाणु (Enterovirus) HAV, HBV HCV. HDV और HEV के कारण होते हैं।


हेपेटाइटिस (पीलिया) रोग के कारण


(a) हेपेटाइटिस A और B के विषाणु सामान्यतया मुख से प्रवेश करते हैं, जबकि हेपेटाइटिस B और D निम्न कारणों से होते है।


(i) दूषित रक्ताधान से। 


(ii) संक्रमित साथी के साथ लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने से।


(iii) अपरा द्वारा संक्रमित माता से गर्भस्थ शिशु को 


(b) हेपेटाइटिस सामान्यतया दुषित रुधिर चढ़ाने से फैलता है।


इसके सामान्य लक्षण है।

हेपेटाइटिस रोग के लक्षण

ज्वर, उल्टी आना, यकृत का बढ़ जाना (Hepatomegaly), पीलिया, आदि


रोकथाम एवं उपचार


(a) खाद्य पदार्थ तथा जल को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।


 (b) शारीरिक सम्बन्ध बनाते समय कण्डोम का उपयोग करना चाहिए।


(c) आराम (Bed rest) करना चाहिए।


(d) ज्यादा कार्बोहाइड्रेटयुक्त तथा कम प्रोटीन एवं वसा वाला भोजन करना चाहिए।


(e) इन्टरफेरॉन दवाओं का उपयोग करना चाहिए।


(f) रोग की रोकथाम के लिए हेपेटाइटिस का टीकाकरण करवाना चाहिए, जिसमे इम्यूनोग्लोब्युलिन दी जाती है। हेपेटाइटिस B में 6 माह का 7- ग्लोब्यूलिन कोर्स अच्छा उपचार है।


प्रश्न 4. क्षय रोग के सामान्य लक्षण एवं रोकथाम के उपाय लिखिए। 


अथवा किसी एक संक्रामक रोग के लक्षण एवं बचने के उपाय लिखिए।


अथवा संक्रामक रोग किसे कहते है? किसी एक संक्रामक रोग के लक्षण तथा बचने के उपाय लिखिए।


अथवा संक्रामक रोग किसे कहते हैं? किसी एक संक्रामक रोग के कारण, लक्षण तथा रोकथाम के उपाय लिखिए।


उत्तर –संक्रामक रोग

ऐसे रोग, जो कुछ बैक्टीरिया अथवा रोगाणुओं के शरीर में प्रवेश कर जाने के परिणामस्वरूप हुआ करते हैं, इन रोगों को स्वास्थ्य विज्ञान की शाखा में संक्रामक रोग या छूत का रोग कहते हैं। ये रोग एक व्यक्ति अथवा प्राणी से दूसरे व्यक्ति अथवा प्राणी को शीघ्रता से लग जाते हैं तथा अनेक व्यक्तियों अथवा प्राणियों को रोगग्रस्त बना देते हैं। रोगाणु अति सूक्ष्म तथा असंख्य प्रकार के होते हैं। भिन्न-भिन्न रोगों को उत्पन्न करने वाले भिन्न-भिन्न रोगाणु होते हैं। रोगाणुओं के माध्यम से संक्रमित होने वाले मुख्य संक्रामक रोग है-चेचक, छोटी माता, खसरा, डिफ्थीरिया, कुकुर खाँसी, टिटनेस, क्षय रोग, मियादी बुखार, आहार विषाक्तता, मलेरिया आदि।


क्षय रोग


क्षय को तपेदिक रोग भी कहा जाता है। यह एक अत्यन्त दुष्कर विश्वव्यापी संक्रामक रोग है। पहले तो यह माना जाता था कि मृत्यु के साथ हो रोगी को इस रोग से छुटकारा मिलता है, परन्तु अब सही समय पर इलाज द्वारा इस रोग का उपचार सम्भव है। प्राचीन समय में ऐसा माना जाता था कि यह रोग धनवान व्यक्तियों तथा राजाओं को ही होता था, इसलिए इसे तपेदिक रोग कहते है। इस रोग में मनुष्य का धीरे-धीरे क्षय होता जाता है और अन्त में उसकी मृत्यु हो जाती है, इसलिए इसे क्षय रोग भी कहा जाता है।


भारत एवं विश्व में लाखों व्यक्ति प्रत्येक वर्ष इस रोग के शिकार होते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, विश्व के सम्पूर्ण क्षय रोगियों की एक-तिहाई संख्या भारत में है।


क्षय रोग के प्रकार


इस रोग के जीवाणु शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकते हैं,परन्तु सामान्यतः यह फेफड़ों में होता है। कभी-कभी तो ग्रन्थियों तथा हड्डियों में भी यह रोग हो जाता है।


क्षय रोग के कारण


क्षय रोग (तपेदिक) एक जीवाणु द्वारा फैलने वाला रोग है, जिसका नाम माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस है। यह गंदगी, नमी तथा अन्धेरे स्थानों पर अधिक पनपता है। मक्खियों के द्वारा भी यह जीवाणु स्वच्छ भोजन को संक्रमित कर मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है। इस रोग से संक्रमित व्यक्ति के झूठे बर्तन, वस्त्र आदि के प्रयोग से भी यह रोग फैल जाता है।


क्षय रोग के उत्पन्न होने में निम्नलिखित परिस्थितियों सहायक होती है।


 1. रोग के खाँसने, छींकने, बोलने तथा उसके बलगम के साथ रोगाणु लगभग 3 फुट की दूरी तक किसी व्यक्ति को संक्रमित कर सकते हैं।


2. श्वास सम्बन्धी अन्य रोगों, जैसे- प्लू, निमोनिया, जुकाम, खाँसी आदि से शरीर दुर्बल हो जाता है। दुर्बल व्यक्ति को ये जीवाणु शीघ्र प्रभावित करते हैं। 


3. क्षमता से अधिक श्रम (शारीरिक व मानसिक) टी.बी. रोग से प्रसित होने का कारण बन सकता है।


 4. मानसिक रूप से अस्वस्थ तथा मादक पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्ति इस रोग से प्रसित हो जाते हैं।


5. रोगग्रस्त गाय के दूध के सेवन से भी व्यक्ति इस रोग से ग्रसित हो जाता है।


6. क्षय रोग की सम्भावना मधुमेह पीड़ित व एच. आई. वी. रोगी में अधिक होती है।


              क्षय रोग के लक्षण


क्षय रोग के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित है।


1. इस रोग के होते ही आरम्भ में थकावट महसूस होती है। 


2. धीरे-धीरे रोगी को भूख कम लगने लगती है।


3. रोगी भली-भांति कार्य नहीं कर पाता।


4. बार-बार जुकाम और खाँसी होते रहते हैं और बलगम अधिक मात्रा में बाहर निकलता है।


5. साँस तेजी से चलने लगती हैं तथा पसीना बहुत जल्दी आ जाता है।


 6. शरीर में खून की कमी हो जाने से त्वचा पीली पड़ जाती है।


7. छाती में दर्द होने लगता है।


8. बलगम या कफ के साथ खून आने लगता है। 


9. जीवाणुओं की क्रियाशीलता के कारण फेफड़े गल जाते हैं।


10. शरीर अत्यधिक दुर्बल हो जाता है।


         क्षय रोग से बचाव के उपाय


तपेदिक से बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए


1. बी. सी. जी. का टीका लगवाना चाहिए। 


2. टी. बी. के रोगी के सम्पर्क में आने से बचना चाहिए।


3. रोगी के कपड़े, बर्तन, बिस्तर आदि अलग रखने चाहिए।


4. नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।


5. सुबह-शाम खुली हवा में टहलने से शरीर में शुद्ध वायु प्रवेश करती है, जो लाभप्रद होती है।


6. प्रत्येक व्यक्ति को नियमित रूप से शुद्ध जल तथा पौष्टिक भोजन लेना चाहिए।


7. इधर-उधर न थूककर केवल थूकदान का ही प्रयोग करना चाहिए।


 8. घर, मोहल्ले, गाँव व नगरों में सार्वजनिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


प्रश्न 5. मियादी बुखार (टायफाइड़) के कारणों, लक्षणों, बचाव के उपायों तथा उपचार का सामान्य परिचय दीजिए। 


अथवा टायफाइड (मियादी बुखार) से बचाव के उपाय लिखिए। 


उत्तर –  अशुद्ध जल तथा अशुद्ध जल द्वारा पकाए गए भोजन के माध्यम से फैलने खाले रोगों में एक मुख्य संक्रामक रोग टायफाइड है। सामान्य रूप से यह रोग एक निश्चित अवधि (4-6 सप्ताह) तक रहता है, इसलिए इसे मियादी बुखार कहा जाता है।


टायफाइड अथवा मियादी बुखार के कारण


1. यह एक संक्रामक रोग है, जो साल्मोनेला टाइफी नामक रोगाणु या बैक्टीरिया के माध्यम से फैलता है।


2. यह रोग दूषित जल, दूध एवं भोजन के माध्यम से फैलता है।


3. शरीर में प्रवेश के उपरान्त ये जीवाणु व्यक्ति की आंत में पहुंचकर बढ़ते हैं तथा व्यक्ति को रोग का शिकार बना देते हैं। 


4. फल, सलाद व सब्जियाँ शुद्ध जल से अच्छी प्रकार से न धोने पर रोग की उत्पत्ति का कारण बन सकते हैं।


5. रोगी द्वारा प्रयुक्त बर्तन व अन्य पदार्थ निःसंक्रमित न किए जाने पर रोग को फैलाने में सहायक होते हैं।


6. मक्खियाँ भी भोज्य पदार्थों को जीवाणुयुक्त बनाती हैं।


7. टाइफाइड रोगी के मल-मूत्र के साथ लाखों जीवाणु शरीर से बाहर निकलते हैं। साफ-सफाई न करने से ये जीवाणु अन्य जगह फैलते हैं।


8. इस रोग का सम्प्राप्ति काल 4 से 10 दिन तक हो सकता है।


रोग के लक्षण


इस रोग के बैक्टीरिया संक्रमण के एक से तीन सप्ताह के अन्दर सक्रिय होकर रोगी में निम्नलिखित लक्षण प्रकट करते हैं।


1. प्रारम्भिक अवस्था में रोगी व्यक्ति के सिर में तेज दर्द होता है तथा व्यक्ति बहुत अधिक बेचैनी अनुभव करने लगता है।


2. प्रथम सप्ताह में सिर दर्द के उपरान्त तीव्र ज्वर 101-105° फॉरेनहाइट तक बढ़ता है।


 3. द्वितीय सप्ताह में ज्वर समान रहता है, तृतीय एवं चतुर्थ सप्ताह में यह घटते हुए सामान्य हो जाता है, लेकिन छठे सप्ताह तक कमजोरी बनी रहती है।


4. रोगी के शरीर पर छोटे-छोटे लाल रंग के दाने भी निकल आते हैं, इसलिए इस रोग को मोतीझरा भी कहते हैं।


5. जिन्हा मध्य में सफेद तथा सिरों पर लाल हो जाती है।


 6. इस रोग का प्रभाव आँतों पर भी पड़ता है, इससे आँतों में सूजन तथा घाव हो जाते हैं। 


7. अन्य लक्षणों में पेट फूलना, सन्निपात के समान स्थिति, सामान्य न रहना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। मल-मूत्र विसर्जन


            रोग से बचाव के उपाय

इस रोग से बचाव के उपाय निम्नलिखित है। 


1. इस संक्रामक रोग से बचाव के लिए चिकित्सक के परामर्श से समय-समय पर टी.ए.बी.' (TAB) का टीका लगवाना चाहिए। 


2. सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए जैसे- हाथ, अंगुली नाखून आदि की सफाई खाने से पूर्व हाथ साबुन से धोने चाहिए।


3. टायफाइड के मरीज को अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क से बचाना चाहिए।


 4. रोगी व्यक्ति की वस्तुओं, खाने पीने के बर्तन, विस्तर कपड़ों आदि को अलग रखना चाहिए।


5. रोगी के मल-मूत्र को खुला नहीं छोड़ना चाहिए, भली-भांति विसर्जित करना चाहिए।


 6. इस रोग से बचने के लिए जल एवं दूध को सदैव उबालकर पीना चाहिए।


रोग का उपचार


1. रोग के लक्षण प्रकट होते ही, योग्य चिकित्सक से उपचार कराना चाहिए)


2. रोगी के विश्राम का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


 3. रोगी के आहार का समुचित ध्यान रखना चाहिए।


4. हल्के तथा सुपाच्य आहार के साथ रोगी को दूध तथा फलों का रस दिया जाना चाहिए। 


5. रोगी को रोग के समय एवं रोगमुक्त होने के उपरान्त भी कुछ समय तक मसालेदार तथा गरिष्ठ आहार से बचना चाहिए।


प्रश्न 6. टिप्पणी कीजिए : डेंगू अथवा डेंगू के लक्षण, कारण एवं रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिए। 


अथवा डेंगू रोग के कारण, लक्षण एवं उनसे बचने के उपायों का वर्णन कीजिए।



अथवा डेंगू रोग के कारण और उपचार लिखिए।


 अथवा डेंगू के विषय में विस्तार से समझाइए ।


उत्तर – डेंगू बुखार के कारण

डेंगू बुखार डेंगू विषाणु (Dengue virus or DENV) के कारण होता है, जो मच्छर एडीज एजिप्टाई (Aedes aegypt) द्वारा फैलता है। डेंगू का इलाज समय पर करना बहुत जरूरी है। डेंगू मच्छर वायरस को संचरित करते (या फैलाते हैं। डेंगू बुखार को 'हड्डी तोड़ बुखार के नाम से भी जाना जाता है। डेंगू बुखार के कुछ लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकते तथा मांसपेशियों और जोड़ो में दर्द शामिल हैं।


डेंगू रक्तस्रावी बुखार हैं, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएँ) में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होता है। WHO की पुरानी पद्धति में डेंगू रक्तस्रावी बुखार को चार चरणों में विभक्तः

किया गया था, जिनको ग्रेड I-IV कहा जाता था। 


1. ग्रेड I में व्यक्ति को बुखार होता है, उसे आसानी से घाव होते हैं तथा उसका टूर्निकेट परीक्षण सकारात्मक होता है। 


2. ग्रेड II में व्यक्ति को त्वचा तथा शरीर के अन्य भागों में रक्तस्त्राव होता है।


3. ग्रेड III में व्यक्ति परिसंचरण झटके (शॉक) दर्शाता है।


4. ग्रेड IV में व्यक्ति के परिसंचरण झटके इतने गम्भीर होते हैं कि उसका रक्तचाप तथा हृदय दर महसूस नहीं की जा सकती है।


                डेंगू कैसे फैलता है।


1. डेंगू की सबसे ज्यादा समस्या बरसात के मौसम में देखने को मिलती है।


2. डेंगू फैलाने वाले मच्छर दिन में काटते हैं। 


3. डेंगू मच्छर ठहरे हुए पानी में पनपते हैं; जैसे-कूलर के पानी में, रुके हुए नालों में और आस-पास की नालियों में। 


4. डेंगू कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्तियों को आसानी से हो जाता है।


डेंगू की पहचान और लक्षण


1. डेंगू के लक्षण 8 से 14 दिन बाद दिखते हैं।


2. तेज ठण्ड लगकर बुखार आता है। 


3. सिर और आँखों में दर्द होता है।


4. शरीर और जोड़ों में दर्द होता है।


5. भूख कम लगती है।


6. जी मिचलाना, उल्टी और दस्त आने लगते हैं।


7. चमड़ी के नीचे लाल धब्बे आने शुरू हो जाते है। 


8. गम्भीर स्थिति में आँख, नाक से खून आ जाता है।


     डेंगू किस प्रकार प्रभावित होता है


डेंगू होने पर शरीर निम्न प्रकार से प्रभावित होता है


1. मरीज को सिर दर्द रहता है।


2. मांसपेशियों में तेज दर्द होने लगता है।


3. ब्लड प्रेशर रक्तचाप घटता-बढ़ता है, जिससे शिथिलता और कमजोरी बनी रहती है।


4. फेफड़ों में पानी भर जाता है।


5. दस्त, उल्टी और थकान होने लगती है।


6. शरीर में लाल निशान, धब्बे, चकत्ते और खुजली होने लगती है। 


7. स्थित गम्भीर हो जाए तो मुँह और नाक से खून आने लगता है। 


8.मूत्र और मल के रास्ते भी खून आने लगता है।


डेंगू बुखार की रोकथाम


मच्छरों को नियन्त्रित करने तथा लोगों को इससे काटने से बचाने के लिए WHO कुछ विशिष्ट सुझाव भी देता है। एडीज़ एजिप्टाई मच्छर को नियन्त्रित करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसके निवास से मुक्ति पाई जाए। लोगों को पानी के खुले पात्रों को खाली नहीं रखना चाहिए (जिससे मच्छर इनमें अण्डा न दे सके)। इन क्षेत्रों में मच्छरों को नियन्त्रित करने के लिए कीटनाशकों या जैवकि नियन्त्रण एजेंटों का भी उपयोग किया जा सकता है।


ठहरे हुए पानी को समाप्त करना चाहिए, क्योंकि यह मच्छरों को आकर्षित करता है और इसलिए भी कि इस ठहरे हुए पानी में जीवाणुओं के पैदा होने से लोगों को स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ हो सकती हैं।


मच्छरों के काटने से बचने के लिए लोग ऐसे कपड़े पहन सकते हैं, जो पूरी तरह से उनकी त्वचा को ढक कर रखें। वे कीटरोधियों (जैसे कीटरोधी स्प्रे) का उपयोग कर सकते हैं, जो मच्छरों को दूर रखेंगे। लोग आराम करते समय मच्छरों से सुरक्षा के लिए मसहरी (मच्छरदानी) का भी उपयोग कर सकते हैं।


प्रश्न 7. निसंक्रमण से क्या आशय है? निसंक्रमण की भौतिक एवं रासायनिक विधियों का सविस्तार वर्णन कीजिए।


उत्तर – निःसंक्रमण एवं निःसंक्रामक पदार्थ

संक्रामक रोग के जीवाणुओं को समाप्त करने तथा बढ़ने से रोकने के लिए जो प्रक्रिया की जाती है, उसे निःसंक्रमण कहते हैं। इस प्रक्रिया में प्रयुक्त किए गए पदार्थों को निःसंक्रामक पदार्थ कहते हैं। निःसंक्रमण की निम्नलिखित तीन विधियाँ होती हैं


1. भौतिक निःसंक्रमण

भौतिक निःसंक्रमण के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं


 (i) उबालना रोगी द्वारा प्रयोग की गई सभी वस्तुओं को जल में उबालकर निःसंक्रमण किया जाता है। इस जल को 100°C सेण्टीग्रेड तक गर्म करके रोगी के कपड़े, बिस्तर, तौलिया आदि को 20 मिनट तक उबालना चाहिए। उबालते समय जल में 2% सोडियम कार्बोनेट भी मिलाया जा सकता है, जिससे कीटाणुनाशक शक्ति और बढ़ जाती है।


(ii) जलाना संक्रामक रोग के रोगी के जीवाणुओं से संक्रमित पदार्थों को जला देना चाहिए, जिससे कीटाणु पूर्णरूपेण नष्ट हो जाते हैं। 


(iii) वाष्प गर्म भाप भी निःसंक्रमण है। भाप का दबाव बढ़ाने पर भारी वस्त्रों को भी निःसंक्रमित किया जा सकता है।


2. रासायनिक निःसंक्रमण रासायनिक निःसंक्रामक तत्त्व रोगाणुओं को मारने तथा बढ़ने से रोकने के लिए प्रयुक्त होते हैं। इन रासायनिक निःसंक्रामकों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।


(i) तरल रासायनिक निःसंक्रामक तरल रासायनिक तत्त्वों को, जिनका प्रयोग पानी में घोल बनाकर किया जाता है, तरल रासायनिक निःसंक्रमण कहा जाता है। तरल रासायनिक निःसंक्रमण तत्त्वों के अन्तर्गत निम्न पदार्थ आते हैं।


(a) फिनाइल


(b) कार्बोलिक एसिड


(c) फॉर्मेलिन


(ii) ठोस रासायनिक निःसंक्रामक रोगाणुओं को नष्ट करने में कुछ ठोस रासायनिक निःसंक्रामक तत्त्वों का भी प्रयोग किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं।


(a) चूना


(b) पोटैशियम परमैंगनेट


इनके अतिरिक्त डी.डी.टी., क्लोरीन, पोटैशियम परमैंगनेट, बोरिक अम्ल, हाइड्रोजन परॉक्साइड जैसे अनेक रासायनिक पदार्थ निःसंक्रामक के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।


(iii) गैसीय रासायनिक निःसंक्रामक ठोस व तरल रासायनिक निःसंक्रमिक पदार्थों की भाँति ही कुछ गैसे जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक हैं। इन गैसों में मुख्य हैं—सल्फर डाइ-ऑक्साइड तथा क्लोरीन आदि। गन्धक भी कीटाणुनाशक होती , जिसे जलाकर कमरे में रखने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।


FAQ.


Q.होम साइंस में क्या क्या पढ़ना होता है?

Ans.होम साइंस शिक्षा के अन्तर्गत पाक शास्त्र, पोषण, गृह अर्थशास्त्र, उपभोक्ता विज्ञान, बच्चों की परवरिश, मानव विकास,आन्तरिक सज्जा, वस्त्र एवं परिधान, गृह-निर्माण आदि का अध्ययन किया जाता है।


Q.गृह विज्ञान की 5 शाखाएं कौन सी हैं ?

Ans.गृह विज्ञान की निम्न शाखाएं – अन्तर्गत पाक शास्त्र, पोषण, गृह अर्थ शास्त्र, उपभोक्ता विज्ञान, मानव विकास, आंतरिक सज्जा, वस्त्र व परिधान, गृह निर्माण इत्यादि शाखाएं है।


Q.गृह विज्ञान का दूसरा नाम क्या है ?

Ans.अमेरिका में इसे 'गृह अर्थशास्त्र' (Home Economics) तथा इंग्लैण्ड व भारत में इसे 'गृह विज्ञान' (Home Science) के नाम से प्रचलित है। 


Q.गृह विज्ञान के जनक कौन है?

Ans.गृह विज्ञान का जनक जस्टस फ्रीहेर वॉन लीबिग को माना जाता हैं।


Q.गृह विज्ञान की शुरुआत कब हुई थी ?

Ans.भारत में गृह विज्ञान का अध्ययन सर्वप्रथम 1920 से 1940 तक ब्रिटिश काल से शुरू किया गया था। 


Q.गृह विज्ञान का पुराना नाम क्या है ?

Ans. गृह विज्ञान के पुराने कई नाम प्रचलित थे जैसे गृह शिल्प या घरेलू अर्थशास्त्र


Q.भारत में विज्ञान का जनक कौन है?

Ans. भारत में विज्ञान के  जनक सर जगदीश चंद्र बोस (1858 - 1937) माना जाता हैं 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad