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Class 10th Home Science Chapter 12 श्वसन तन्त्र का प्रारम्भिक ज्ञान तथा प्राकृतिक एवं कृत्रिम श्वसन notes in hindi

Class 10th Home Science Chapter 12 श्वसन तन्त्र का प्रारम्भिक ज्ञान तथा प्राकृतिक एवं कृत्रिम श्वसन notes in hindi 

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            [ Short Introduction ]

शरीर में ऑक्सीजन का महत्त्व

कोशिकाओं के अन्दर भोज्य पदार्थों को तोड़कर उनसे ऊर्जा की प्राप्ति ऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा होती है। ऑक्सीकरण के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। अतः ऑक्सीजन मानव शरीर के लिए जीवन का आधार है। ऑक्सीकरण क्रिया में कार्बन डाइ-ऑक्साइड मुक्त होती है, जिसका शरीर से निष्कासन आवश्यक है।


श्वसन तन्त्र का अर्थ

वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण कर शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड गैस को बाहर निकालने की प्रक्रिया संयुक्त रूप से श्वसन क्रिया कहलाती है। श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले शरीर के अंगों को सम्मिलित रूप से श्वसन तन्त्र कहते हैं। श्वसन एक अनैच्छिक क्रिया है।


श्वसन तन्त्र के अंग

1.श्वसन तन्त्र के प्रमुख अंग फेफड़े हैं। मुख्य नासिका तथा नासामार्ग, कण्ठ या स्वर यन्त्र तथा श्वास नाल अन्य सहायक अंग हैं।


2.श्वसन तन्त्र के मुख्य अंग फेफड़े संख्या में दो होते हैं। ये गहरे कत्थई-स्लेटी रंग के अत्यन्त कोमल एवं लचीले अंग हैं। ये वायु से ऑक्सीजन ग्रहण करके रक्त को शुद्ध करने का कार्य करते हैं। पेड़ पौधे प्रकृति में ऑक्सीजन का सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं।


3.शरीर से कार्बन डाइ-ऑक्साइड के उत्सर्जन का कार्य भी फेफड़े ही करते हैं।


4.फेफड़ों की भीतरी संरचना मधुमक्खी के छत्ते की तरह असंख्य वायुकोषों में बँटी रहती है। श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का आदान-प्रदान इसी भीतरी संरचना में होता है।


रुधिर का शुद्धिकरण : फेफड़ों में गैसीय लेन-देन

श्वसन क्रिया में दो उपक्रियाएँ निहित होती हैं-प्रःश्वसन तथा निःश्वसन। प्रः श्वसन का अर्थ है 'साँस अन्दर ग्रहण करना' तथा निःश्वसन का अर्थ है 'साँस बाहर निकालना।' प्रःश्वसन में भीतर जाने वाली बाहरी वायु एवं निःश्वसन में निकलने वाली वायु के रासायनिक प्रभाव निम्नलिखित हैं।


1.रुधिर में पाई जाने वाली असंख्य लाल रुधिर कणिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन होता है। इस पदार्थ में विद्यमान लौह तत्त्व की प्रचुरता के कारण रुधिर का रंग लाल होता है। हीमोग्लोबिन वायु की ऑक्सीजन को सरलता से अपने साथ बन्धित कर लेता है। इस कारण इस पदार्थ को श्वसनरंगा कहते हैं।


2.अवशोषित ऑक्सीजन के कारण हीमोग्लोबिन तथा सम्पूर्ण रुधिर का रंग अधिक चटकीला लाल हो जाता है। ऐसे रुधिर को शुद्ध रुधिर कहते हैं।


3.फुफ्फुसीय धमनी के द्वारा आया हुआ रुधिर पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड युक्त होता है तथा इसमें ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है। ऐसे रुधिर को अशुद्ध रुधिर कहते हैं। अशुद्ध रुधिर में कार्बन डाइ-ऑक्साइड रुधिर के तरल भाग प्लाज्मा में घुली रहती है।


4.इस प्रकार फेफड़े के वायुकोषों में प्लाज्मा में घुली कार्बन डाइऑक्साइड स्वयं ही विसरित हो जाती है। इसी समय अशुद्ध रुधिर में वायुकोष से ऑक्सीजन आकर हीमोग्लोबिन से मिल जाती है और अशुद्ध रुधिर, शुद्ध रुधिर में बदल जाता है।


उचित श्वसन क्रिया

पूर्ण एवं शुद्ध वायु का फेफड़ों में बार-बार आना, उसमें से अधिकतम ऑक्सीजन का रुधिर द्वारा अवशोषण तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड का निष्कासन शरीर के लिए अधिकतम ऊर्जा उत्पादन हेतु आवश्यक है और इस प्रकार के श्वसन को स्वस्थ श्वसन अथवा उचित श्वसन कहते हैं।


नाक से साँस लेने के लाभ

नाक में बालों की उपस्थिति स्वच्छ एवं स्वस्थ श्वसन में सहायक होती है। श्वसन के समय वायु में उपस्थित धूलकणों एवं अशुद्धियों को नाक के बालों द्वारा रोक लिया जाता है। इस प्रकार नाक में उपस्थित बालों की वजह से शरीर के लिए श्वसन के माध्यम से स्वच्छ वायु प्राप्त होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। मुँह से साँस लेना हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।


व्यायाम का श्वसन क्रिया पर प्रभाव

व्यायाम के श्वसन क्रिया पर प्रभाव निम्नलिखित हैं।

 1. रक्त संचार में बाधा नहीं पड़ती।

2. शरीर में स्फूर्ति आती है।

3. उच्छ्वास तथा प्रःश्वास की गति बढ़ जाती है।


कृत्रिम श्वसन से आशय एवं आवश्यकता

1.किसी मनुष्य के शरीर में कृत्रिम विधियों द्वारा फेफड़ों तक शुद्ध वायु पहुँचाने की प्रक्रिया को कृत्रिम श्वसन कहते हैं।


2.मानव शरीर में फेफड़ों के कार्य करना बन्द कर देने की स्थिति में शरीर को कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता होती है, क्योंकि फेफड़ों के कार्य करना बन्द कर देने पर प्राकृतिक श्वसन क्रिया अवरुद्ध हो जाती है तथा दम घुटने लगता है।


कृत्रिम श्वसन की विधियाँ

कृत्रिम श्वसन की प्रमुख तीन विधियाँ हैं।


1. शेफर विधि पानी में डूबने की दुर्घटना से ग्रसित व्यक्ति को इस विधि द्वारा कृत्रिम श्वास दिया जाता है।


2. सिल्वेस्टर विधि दुर्घटनाओं में मूर्च्छित व्यक्ति को इस विधि द्वारा कृत्रिम श्वास दिया जाता है। इस विधि में कृत्रिम श्वसन देने के लिए दो व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। सिल्वेस्टर विधि में घायल को समतल स्थान पर लिटाया जाता है।


3. लाबार्ड विधि छाती की हड्डी अथवा पसली टूट जाने की स्थिति में रोगी को कृत्रिम श्वास उपलब्ध कराने के लिए लाबार्ड विधि का प्रयोग किया जाता है।


[ बहुविकल्पीय प्रश्न Objective Questions ]

प्रश्न 1. श्वसन अंग का प्रमुख भाग है

(a) आमाशय

(b) अग्न्याशय

(c) फेफड़े

(d) यकृत

उत्तर (c) फेफड़े

प्रश्न 2. कौन-सा अंग श्वसन तन्त्र का भाग नहीं होता है?

(a) नाक

(b) फेफड़े

(c) यकृत

(d) श्वास नली

उत्तर (c) यकृत

प्रश्न 3. कौन-सा अंग श्वसन क्रिया में सहायता नहीं करता?

(a) नाक

(b) हाथ

(c) फेफड़े

(d) मुख

उत्तर (b) हाथ

प्रश्न 4. कौन-सा अंग श्वसन क्रिया में सहायता करता है?

 (a) हाथ

(b) फेफड़े

(c) कान

(d) पैर

उत्तर (b) फेफड़े

प्रश्न 5. प्रकृति में ऑक्सीजन का सन्तुलन बनाए रखते हैं

(a) मनुष्य

(b) कीट-पतंगे

(c) वन्यजीव

(d) पेड़-पौधे

उत्तर (d) पेड़-पौधे

प्रश्न 6. रुधिर की शुद्धि किस तन्त्र के किस अंग में होती है?

(a) पाचन तन्त्र के आमाशय में

(b) रक्त परिभ्रमण तन्त्र के हृदय में 

(c) श्वसन तन्त्र की श्वास नलिका में

(d) श्वसन तन्त्र के फेफड़ों में

उत्तर (d) श्वसन तन्त्र के फेफड़ों में


प्रश्न 7. रक्त का शुद्धिकरण होता है। अथना श्वसन तन्त्र के किस अंग में रक्त का शुद्धिकरण होता है? 

अथवा ऑक्सीजन द्वारा रक्त का शुद्धिकरण कहाँ से होता है?

अथवा मानव शरीर का कौन-सा अंग रक्त को शुद्ध करता है?

(a) फेफड़े 

(b) यकृत

(c) आमाशय

(d) आँत

उत्तर (a) फेफड़े


प्रश्न 8. मानव शरीर में एकमात्र धमनी जो विऑक्सीजनित (ऑक्सीजन रहित) रक्त वहन करती है। 

(a) दाई हार्दिकी धमनी

(b) बाई हार्दिकी धमनी

(c) फुफ्फुसी धमनी

(d) ब्रीया धमनी

उत्तर (c) फुफ्फुसी धमनी

प्रश्न 9. मानव शरीर में फेफड़ों की संख्या होती है।

(a) 1

(b) 2

(c) 4

(d) 5

उत्तर (b) 2

प्रश्न 10. रक्त का लाल रंग किस तत्त्व के कारण होता है?

(a) लौह 

(b) वसा

(c) प्रोटीन

(d) कैल्शियम

उत्तर (a) लौह


प्रश्न 11. फुफ्फुसीय धमनी कौन-सा रक्त ले जाती है?

(a) शुद्ध रक्त 

(b) अशुद्ध रक्त

 (c) पाचक रस 

(d) हीमोग्लोबिन

उत्तर (b) अशुद्ध रक्त

प्रश्न 12. श्वसन क्रिया में रक्त का शुद्धिकरण किस गैस के द्वारा होता है?

(a) नाइट्रोजन 

(b) हाइड्रोजन

(c) ऑक्सीजन

 (d) कार्बन डाइ ऑक्साइड

उत्तर (c) ऑक्सीजन


प्रश्न 13. श्वसन प्रक्रिया में कौन-सी गैस बाहर निकलती है?

(a) कार्बन डाइ ऑक्साइड

(b) ऑक्सीजन

(c) ओजोन

(d) हाइड्रोजन

उत्तर (a) कार्बन डाइऑक्साइड

प्रश्न14. श्वसन क्रिया है

(a) ऐच्छिक

(b) अनैच्छिक

(c) अनावश्यक

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर (b) अनैच्छिक


प्रश्न 15. वायुमण्डल की वायु, वायुमार्ग से पहुँचती है

(a) हृदय में 

(b) फेफड़ों में

(c) ओजोन

(d) गले में

उतर –(c) पेट में


प्रश्न 16. कृत्रिम विधि से श्वास कब दिलाई जाती है?

(a) जल में डूब जाने पर 

(c) मोच आने पर 

(b) फाँसी लगने पर

(d) जुकाम होने पर

उत्तर (a) जल में डूब जाने पर


प्रश्न 17. दम घुटता है।

(a) पानी में डूबने पर

(b) बुखार आने पर

(c) सिर में दर्द होने पर 

(d) इन सभी में

उत्तर (a) पानी में डूबने पर


प्रश्न 18. सिल्वेस्टर विधि से कृत्रिम श्वसन देने में कितने व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है?

(a) एक

(b) तीन

(c) दो

(d) चार

उत्तर (c) दो

प्रश्न 19. सिल्वेस्टर विधि में घायल को लिटाया जाता है

(a) दलान पर

(b) घुमावदार स्थान पर

(c) समतल स्थान पर

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर (c) समतल स्थान पर


प्रश्न 20. सिल्वेस्टर विधि का प्रयोग होता है

(a) डूबने पर

(b) बेहोश होने पर

(c) हड्डी टूटने पर

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर (b) बेहोश होने पर

प्रश्न 21. किस विधि में करवट के बल लिटाया जाता है?

(a) कृत्रिम श्वसन

(c) लाबार्ड विधि

(b) प्राकृतिक विधि

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर (c) लाबार्ड विधि


[ अतिलघु उत्तरीय प्रश्न Short Question ]

प्रश्न 1. मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन क्यों आवश्यक है?

 अथवा ऑक्सीजन का शरीर में क्या महत्त्व है?

उत्तर – कोशिकाओं के अन्दर भोज्य पदार्थों को तोड़कर उनसे ऊर्जा की प्राप्ति ऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा होती है। ऑक्सीकरण के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। अतः ऑक्सीजन मानव शरीर के लिए जीवन का आधार है। ऑक्सीकरण क्रिया में कार्बन डाइ ऑक्साइड मुक्त होती है।


प्रश्न 2. श्वसन क्रिया से आप क्या समझते हैं? अथवा प्राकृतिक श्वसन से आप क्या समझती हैं?

उत्तर – वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण कर शरीर से कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस को बाहर निकालने की प्रक्रिया संयुक्त रूप से श्वसन क्रिया कहलाती है।


प्रश्न 3. श्वसन क्रिया में कौन-कौन-सी गैसों का आदान-प्रदान होता है?

उत्तर – श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइ ऑक्साइड गैसों का आदान-प्रदान होता है।


प्रश्न 4. श्वसन तन्त्र के चार प्रमुख अंगों के नाम लिखिए।

अथवा श्वसन तन्त्र के अंगों के नाम लिखिए।

अथवा श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले अंगों के नाम लिखिए।

उत्तर –  श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले अंग निम्नलिखित हैं

1. मुख्य नासिका

2. श्वास नाल

3. स्वर यन्त्र

4. फेफड़े


प्रश्न 5. वायुकोष कहाँ पाए जाते हैं?

उत्तर – वायुकोष फेफड़ों में पाए जाते हैं।


प्रश्न 6. श्वसन क्रिया में कौन-कौन-सी उपक्रियाएँ निहित होती हैं?

 उत्तर – श्वसन क्रिया में दो उपक्रियाएँ निहित होती हैं।

1. प्रः श्वसन

2. निःश्वसन


प्रश्न 7. नाक में विद्यमान बालों का क्या प्रयोजन होता है?

अथवा नाक से श्वास लेने के मुख्य लाभ लिखिए। 

उत्तर – नाक में बालों की उपस्थिति स्वच्छ एवं स्वस्थ श्वसन में सहायक होती है। श्वसन के समय वायु में उपस्थित धूलकणों एवं अशुद्धियों को नाक के बालों द्वारा रोक लिया जाता है। इस प्रकार नाक में उपस्थित बालों की वजह से शरीर के लिए श्वसन के माध्यम से स्वच्छ वायु प्राप्त होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।


प्रश्न 8. व्यायाम से श्वसन क्रिया पर पड़ने वाले दो प्रभावों को लिखें।

उत्तर – व्यायाम के फलस्वरूप श्वसन क्रिया पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं।

 1. रक्त संचार में बाधा नहीं पड़ती।

2. शरीर में स्फूर्ति आती है।

3. उच्छ्वास व प्रःश्वास की गति बढ़ जाती है।


प्रश्न 9. प्राकृतिक श्वसन क्रिया के अवरुद्ध होने पर किस अनिष्ट की आशंका रहती है?

उत्तर – प्राकृतिक श्वसन क्रिया के अवरुद्ध होने पर व्यक्ति की मृत्यु हो जाने की आशंका बनी रहती है।


प्रश्न 10. कृत्रिम श्वसन क्रिया से आप क्या समझते हैं?

अथवा कृत्रिम श्वसन का अर्थ बताइए।

उत्तर – किसी मनुष्य के शरीर में कृत्रिम विधियों द्वारा फेफड़ों तक शुद्ध वायु पहुँचाने की प्रक्रिया को कृत्रिम श्वसन क्रिया कहते हैं। मानव शरीर में फेफड़ों के कार्य बन्द कर देने की स्थिति में शरीर को कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता होती है।


प्रश्न 11. कृत्रिम श्वसन की कितनी विधियाँ है? 

उत्तर – कृत्रिम श्वसन की निम्नलिखित तीन विधियाँ हैं

1. शेफर विधि 

2. सिल्वेस्टर विधि

 3. लाबार्ड विधि


प्रश्न 12. मुख से श्वास लेना क्यों हानिकारक है? 

उत्तर – मुँह से श्वास लेने पर वायु में उपस्थित धूलकण एवं हानिकारक तत्व फेफड़ों तक पहुँच जाते हैं, जोकि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।


 [ लघु उत्तरीय प्रश्न Question Answers ]

प्रश्न 1. श्वसन का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?

अथवा रक्त की शुद्धि एवं श्वसन क्रिया में क्या सम्बन्ध है

अथवा श्वसन क्रिया का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

अथवा श्वसन क्रिया क्यों आवश्यक है?

अथवा श्वसन क्रिया का शरीर में क्या महत्त्व है?

उत्तर – मानव जीवन के संचालन के लिए श्वसन क्रिया अत्यन्त आवश्यक है। श्वसन क्रिया के माध्यम से भोजन में उपस्थित रासायनिक पदार्थों से ऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा मुक्त कराई जाती है। इसी ऊर्जा से कोशिका को ईंधन प्राप्त होता है। रक्त में ऑक्सीजन की आवश्यक आपूर्ति फेफड़ो में श्वसन क्रिया के द्वारा होती है। इस प्रकार शरीर में होने वाली ऑक्सीकरण क्रियाएँ श्वसन क्रिया पर निर्भर होती है। ऑक्सीजन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य शरीर में आवश्यक ताप को बनाए रखना भी है। श्वसन क्रिया से फेफड़ों में रक्त का शुद्धिकरण होता है, जिससे रक्त का हीमोग्लोबिन वायु से ऑक्सीजन सोखता है तथा अशुद्ध रक्त के प्लाज्मा से कार्बन डाइ ऑक्साइड वायु में मुक्त होती है। इस प्रकार श्वसन क्रिया के परिणामस्वरूप शरीर को अनावश्यक एवं हानिकारक कार्बन डाइ ऑक्साइड से मुक्ति मिल जाती है।


प्रश्न 2. श्वसन क्रिया की दर से क्या तात्पर्य है?

 उत्तर – श्वसन क्रिया निरन्तर एवं नियमित रूप से होने वाली अनैच्छिक क्रिया है। सामान्यतः एक स्वस्थ व्यक्ति में यह क्रिया 15-18 बार प्रति मिनट की दर से होती है। शिशु में इसकी दर काफी अधिक प्रायः 25-40 बार प्रति मिनट तक होती है। स्पष्टतः प्रत्येक वयस्क व्यक्ति प्रति 4 सेकण्ड में एक बार प्रः श्वसन एवं निःश्वसन की क्रिया सम्पन्न करता है। मानव में अपने शरीर की माँग के अनुरूप श्वसन की दर को सन्तुलित एवं स्थिर बनाए रखने की महत्त्वपूर्ण क्षमता होती है। दर के नियमन एवं संचालन का उत्तरदायित्व मस्तिष्क में स्थित एक जोड़े श्वास केन्द्र का होता है। ये केन्द्र श्वसन क्रिया से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की पेशियों, पसलियों तथा तन्तुपट आदि के संकुचन एवं शिथिलन को नियन्त्रित करते हैं।


प्रश्न 3. प्रःश्वसन और निःश्वसन (उच्छ्वसन) से आप क्या समझते हैं?

उत्तर –  श्वसन क्रिया की दो उपक्रियाओं का विवरण निम्नलिखित है।

1. प्रः श्वसन वह क्रिया जिससे वायु फेफड़ों में भरती है, प्रःश्वसन कहलाती है। यह क्रिया डायफ्राम के चपटा होने तथा पसलियों के थोड़ा बाहर व आगे की ओर उठ जाने के कारण वक्षगुहा के बढ़ जाने से होती है। वक्षगुहा का आयतन बढ़ने से फेफड़े फूल जाते हैं एवं इनके वायुकोषों में वायु का दबाव कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वायुमण्डल की वायु नासामार्ग एवं श्वसन नाल से होती हुई फेफड़ों तक पहुँच जाती है।


2. निःश्वसन वह क्रिया जिससे वायु फेफड़ों से बाहर निकलती हैं, निःश्वसन या उच्छ्वसन कहलाती है। इस क्रिया में पेशियों के शिथिलन से पसलियाँ एवं डायफ्राम अपनी पूर्व सामान्य स्थिति में लौट आते हैं, जिससे वक्षीय गुहा के आयतन पर दबाव पड़ता है। परिणामस्वरूप फेफड़ों की वायु बाहर निकल जाती है। इस प्रकार निःश्वसन की क्रिया सम्पन्न होती है।


प्रश्न 4. प्रः श्वसन व उच्छ्वसन की वायु में क्या अन्तर है? 

 उत्तर – शरीर में वायु के प्रवेश करने वाली प्रक्रिया प्रःश्वसन तथा शरीर से वायु बाहर निकलने वाली प्रक्रिया उच्छ्वसन कहलाती है। प्रःश्वसन में शुद्ध वायु अन्दर जाती है तथा उच्छ्वसन में अशुद्ध वायु शरीर से बाहर निकलती है। 


प्रश्न 5. नाक से साँस लेने से क्या लाभ हैं?

अथवा मुँह की अपेक्षा नाक से श्वास लेने के क्या लाभ हैं?

उत्तर – हमारे शरीर में श्वसन तन्त्र का प्रवेश द्वार नाक है। नाक से श्वास लिया जाना प्राकृतिक अथवा नैसर्गिक प्रक्रिया है। नाक से श्वास लेने के लाभ निम्नलिखित है।


1. वायु में उपस्थित धूलकण एवं अन्य प्रकार की गन्दगी को नाक में स्थित बालों द्वारा रोक लिया जाता है, जिससे फेफड़ों तक स्वच्छ वायु पहुंचती है। 


2. नाक तथा श्वासनली आदि की रक्त कोशिकाओं द्वारा नाक से प्रवेश करने वाली वायु को गर्म किया जाता है, जिससे कि फेफड़ों को गर्म वायु उपलब्ध होती है। अधिक ठण्डी वायु फेफड़ों के लिए हानिकारक होती है।


3. श्लेष्मिक कला से बनी हुई वायु नलिका भित्ति द्वारा वायु में उपस्थित जीवाणुओं एवं धूलकणों को रोक लिया जाता है। इस कारण फेफड़ों तक पहुँचने वाली वायु अनेक जीवाणुओं से मुक्त होती है।


प्रश्न 6. " श्वसन क्रिया का व्यायाम और विश्राम से घनिष्ठ सम्बन्ध है।" इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।  

उत्तर – व्यायाम श्वसन क्रिया के लिए लाभकारी होता है, इसे निम्नलिखित लाभ के रूपों में देखा जाता है


1. रक्त प्रवाह की गति का तीव्र होना व्यायाम के फलस्वरूप श्वास की गति तेज होती है, जिससे रक्त प्रवाह में तेजी आती है। परिणामतः हृदय भी तेजी से धड़कता है।


2. श्वास का गहरा होना व्यायाम के पश्चात् श्वास स्वतः ही गहरी हो जाती गहरी श्वास लेना लाभदायक होता है, इससे फेफड़ों को अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध होती है।


3. अत्यधिक पसीने का आना शरीर में ऑक्सीजन की ज्यादा मात्रा पहुंचने के कारण रक्त शुद्धिकरण की गति तीव्र हो जाती है तथा शुद्धिकरण के फलस्वरूप उत्पन्न हुए व्यर्थ पदार्थ पसीने के रूप में बाहर निकल जाते हैं।


 4. अधिक भूख लगना व्यायाम करने से ऊर्जा का अधिक ह्रास होता है, जिसके कारण भूख ज्यादा लगती है तथा शरीर को पर्याप्त पोषक तत्त्व मिल जाते हैं।


5. विश्राम विश्राम करने से श्वास हल्की-हल्की आती है। थकान दूर हो जाती है एवं शरीर में कार्य करने हेतु नई ऊर्जा का संचार होता है। 


प्रश्न 7. दम घुटने के कुछ सामान्य कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – दम घुटने के सामान्य कारण निम्नलिखित हैं 

1. पानी में डूबने की स्थिति में स्वसन मार्ग तथा फेफड़ों में जल प्रवेश कर जाने पर दम घुटने लगता है।बाहर से नाक बन्द हो जाने पर दम घुटने लगता है। 

2. श्वसन मार्ग में किसी विषैली गैस के प्रवेश कर जाने पर दम घुट सकता है।

3. गले में स्थित वायु मार्ग में कोई वस्तु अटक जाने पर दम घुट सकता है। 

4. श्वासनलिका के कुछ समय के लिए दब जाने पर, जैसे-गला घोटने, दबाने अथवा फाँसी लगाने से दम घुटने का अनुभव होता है। 

5. गले में सूजन होने पर दम घुटने लगता है। 

6. मस्तिष्क के श्वसन नियन्त्रण केन्द्र में किसी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने पर जैसे- बिजली का झटका लगने पर एवं विषैली गैस सूंघने से दम घुटने  लगता है।


प्रश्न 8. प्राकृतिक एवं कृत्रिम श्वसन क्रिया में क्या अन्तर है?

उत्तर प्राकृतिक एवं कृत्रिम श्वसन क्रिया में निम्नलिखित अन्तर है

प्राकृतिक श्वसन

कृत्रिम श्वसन

यह एक नैसर्गिक क्रिया है

यह क्रिया प्राकृतिक श्वसन में विघ्न पड़ने पर की जाती है तथा सीमित समय के लिए होती है।

यह स्वतः एक अनैच्छिक क्रिया के रूप में होती है।

यह क्रिया आवश्यकता पड़ने पर दूसरे व्यक्ति के माध्यम से की जाती है।

यह स्वतः ही पसलियों तथा तन्तु पट की क्रिया पर निर्भर करती है एवं व्यक्ति की स्वयं की मांसपेशियों द्वारा सम्पादित होती है।

यह सदैव अन्य व्यक्तियों द्वारा कराई जाने वाली 

क्रिया है तथा दूसरे व्यक्तियों को इसमें श्रम करना 

होता है। उन्हीं के द्वारा यह क्रिया सम्पादित होती है।

यह एक ही विधि द्वारा होने वाली क्रिया है।

यह रोगी की स्थिति एवं आवश्यकताओं के अनुसार अलग- अलग विधियों द्वारा की जाती है।


[ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Question ]

प्रश्न 1. श्वसन तन्त्र की संरचना एवं कार्यों का सचित्र वर्णन कीजिए।  अथवा श्वसन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाते हुए श्वसन क्रिया का महत्त्व बताइए।

अथवा मानव श्वसन तन्त्र का चित्र बनाइए तथा श्वसन की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।

अथवा श्वसन तन्त्र से आप क्या समझते हैं? श्वसन तन्त्र के मुख्य अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए।

अथवा मानव श्वसन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए श्वसन क्रिया की दर और इनके नियमन से आप क्या समझते हैं?

 अथवा श्वसन तन्त्र के मुख्य अंग कौन-कौन से हैं? चित्र द्वारा वर्णन कीजिए।

उत्तरश्वसन तन्त्र

शरीर की आन्तरिक क्रियाओं को घटित होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा की प्राप्ति शरीर सामान्यतः कोशिकाओं के अन्दर भोज्य पदार्थों को तोड़कर करता है। कोशिकाओं के अन्दर भोज्य पदार्थों की तोड़ने की क्रिया को ऑक्सीकरण कहते हैं। ऑक्सीकरण के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। ऑक्सीजन ही हमारे रक्त को शुद्ध करती है। ऑक्सीजन की प्राप्ति के लिए प्राणियों द्वारा बाहरी वातावरण से वायु ग्रहण की जाती है तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड के उत्सर्जन हेतु पुनः इसे छोड़ा जाता है। वायु ग्रहण करना एवं इसे छोड़ने की प्रक्रिया श्वसन या श्वासोच्छ्वास क्रिया कहलाती है। इस प्रक्रिया में सहायता करने वाले अंग श्वसनांग कहलाते हैं। ये सभी श्वसनांग, जो सम्मिलित रूप से श्वसन का कार्य करते हैं, श्वसन तन्त्र कहलाते हैं।


श्वसन तन्त्र के मुख्य अंग या श्वसनांग

श्वसन क्रिया प्रत्येक जीवित प्राणी तथा मनुष्य के लिए अनिवार्य होती है। श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले प्रमुख अंग निम्नलिखित है।

 1. नासागुहा वायु आवागमन के लिए नाक में जो छिद्र होता है, उसे नासा द्वार या नथुने कहा जाता है। अन्दर की ओर इनसे दो मार्ग जाते हैं। एक पर्दे के माध्यम से दोनों मार्गों को एक-दूसरे से पृथक् किया जाता है। तालू की हड्डी नासिका को मुँह से पृथक करती है, जिसकी स्थिति नासागुहा के निचले आधार में होती है। 


श्लेष्मिक कला द्वारा नासागुहा का मार्ग बना हुआ रहता है। (वायु में उपस्थित धूलकणों एवं जीवाणुओं को रोकने के लिए नासागुहा की सतह पर छोटे-छोटे रोए होते है। श्लेष्मिक कला का चिपचिपा पदार्थ भी जीवाणुओं को चिपकाकर अन्दर प्रवेश करने से रोकता है। दोनों नासाद्वारो को मिलाकर एक नली

बनती है, जोकि ग्रसनी में खुलती है।


2. कण्ठ यह श्वास नली के ऊपरी सिरे पर होता है। कण्ठच्छद उपास्थि का बना हुआ एक ढक्कन होता है, जो कण्ठद्वार पर स्थित होता है। कण्ठच्छद भोजन को श्वासनली में जाने से रोकता है। श्वासनली को बनाने वाले उपास्थि के अधूरे छल्लों में से ऊपरी छल्ला

'अवटु उपास्थि' सामने से चौड़ा तथा उभरा हुआ होता है।

पुरुषों के कण्ठ में इसे बाहर से छूकर अनुभव किया जा सकता है। दूसरा छल्ला चारों ओर से पूरा होता है तथा मुद्रिका उपास्थि कहलाता है। दोनों छल्लों के बीच रेशेदार तन्तु भरे रहते हैं।


3. श्वासनली कण्ठ से होकर वायु श्वासनली अथवा वायुनलिका में प्रवेश करती है. इसकी गोलाई 2.5 सेमी तथा लम्बाई लगभग 10-12 सेमी होती है। यह नली 'C' के आकार के रेशेदार तन्तुओं से निर्मित छल्लों से बनी होती है, जोकि पीछे की ओर खुले रहते हैं। इनके ऊपर श्लेष्मिक कला मढ़ी होती है। नली के ऊपर तथा पिछले भाग में श्लेष्मिक कला मढ़ी होती है। जब भोजन ग्रासनली से गुजरता है, तो ग्रासनली फूलती है और श्वासनली की पिछली झिल्ली दब जाती है। इस प्रकार ग्रासनली को फूलने का स्थान मिल जाता है।

श्वासनली गले से होकर वक्ष में जाती है। वक्ष में यह दो भागों में विभक्त हो जाती है- श्वसनी अथवा ब्रॉन्कस दोनों श्वसनी दोनों फेफड़ों में जाकर अनेक शाखाओं तथा उपशाखाओं में बंट जाती हैं। अति विभाजन के फलस्वरूप ये सौत्रिक तन्तुकी केवल सूक्ष्म नलिकाएं बनकर रह जाती है। प्रत्येक सूक्ष्मतर स्वसनिका के अन्त में वायुकोष होते हैं, जिनका बाहर की वायु से इन श्वसनिकाओं द्वारा सम्पर्क बना रहता है।


4. फेफड़े अथवा फुफ्फुस यह मानव श्वसन तन्त्र का सबसे महत्वपूर्ण अंग है. इनकी संख्या दो होती है एवं ये वक्ष गुहा में दाई एवं बाई ओर स्थित होते हैं। इनका रंग नीलापन लिए हुए भूरा होता है। जन्म से पहले इसका रंग लाल तथा नवजात शिशु के फेफड़ों का रंग गुलाबीपन लिए हुए होता है।


यह स्पंज की तरह होते हैं। दायाँ फेफड़ा बाएं फेफड़े से कुछ चौड़ा तथा भारी होता है। दायाँ फेफड़ा तीन तथा बायाँ फेफड़ा दो भागों में बंटा हुआ होता है। ये भाग पुनः कई छोटे-छोटे भागों में बँट जाते हैं। इन प्रत्येक छोटे-छोटे भागो में वायु प्रणाली की शाखाएं तथा उपशाखाएं पहुंचती है। प्रत्येक नली द्वारा हवा की थैली का एक गुच्छा निर्मित किया जाता है, जिसे 'हवा कोठरी' का नाम दिया जाता है, इन्हें वायुकोष भी कहा जाता है। इस तरह प्रत्येक फेफड़ा इन करोड़ों वायुकोषों का समूह है।


इन कोषों की दीवारें बहुत पतली होती है। इन कोषों के चारों ओर फुफ्फुसीय धमनियों की महीन तथा सूक्ष्म शाखाएँ होती हैं। यहीं पर कोशिकाओं तथा वायुकोषों की दीवारों में से गैसों की अदला-बदली होती है अर्थात् रक्त में मिली हुई कार्बन डाइ ऑक्साइड अलग हो जाती है तथा उसमें ऑक्सीजन मिल जाती है। इसी कारण अशुद्ध रक्त पुनः शुद्ध हो जाता है। 


श्वसन क्रिया की दर एवं इसका नियमन

श्वसन क्रिया निरन्तर एवं नियमित रूप से होने वाली अनैच्छिक क्रिया है। सामान्यतः एक स्वस्थ व्यक्ति में यह क्रिया 16-18 बार प्रति मिनट की दर से होती है। शिशु में इसकी दर काफी अधिक, प्रायः 25-10 बार प्रति मिनट तक होती है। स्पष्टतः प्रत्येक वयस्क व्यक्ति प्रति 4 सैकण्ड में एक बार प्रः श्वसन एवं निःश्वसन की क्रिया सम्पन्न करता है।


मानव में अपने शरीर की मांग के अनुरूप श्वसन की दर को सन्तुलित एवं स्थिर बनाए रखने की महत्वपूर्ण क्षमता होती है। दर के नियमेन एवं संचालन का उत्तरदायित्व मस्तिष्क में स्थित एक जोड़े श्वास केन्द्र का होता है। ये केन्द्र श्वसन क्रिया से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की पेशियों, पसलियों तथा तनुष्ट आदि के संकुचन एवं शिथिलन को नियन्त्रित करते हैं।


श्वसन क्रिया का महत्त्व

श्वसन क्रिया महत्त्वपूर्ण जैविक क्रिया है, जो सभी जीवधारियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है। श्वसन क्रिया के अभाव में जीवित रहना असम्भव है। श्वसन क्रिया द्वारा प्राणी ऑक्सीजन ग्रहण करता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। श्वसन स्वतः चलने वाली क्रिया है, परन्तु किसी दुर्घटनावश श्वसन क्रिया रुकने पर प्राणी की मृत्यु भी हो सकती है।


प्रश्न 2. फेफड़े श्वसन क्रिया में किस प्रकार सहायक हैं? फेफड़ों की रचना चित्र द्वारा समझाइए । 

अथवा फेफड़े की आन्तरिक बनावट पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 

अथवा उच्छ्वास तथा प्रःश्वास क्रिया में क्या अन्तर है? फेफड़ों में रक्त शुद्ध होने की प्रक्रिया समझाइए ।

 अथवा फेफड़ों का श्वसन क्रिया से क्या सम्बन्ध है? फेफड़ों की रचना चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए। 

अथवा फेफड़े की रचना एवं कार्य को चित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।

अथवा फेफड़ों में रक्त की शुद्धि किस प्रकार होती है? विस्तारपूर्वक बताइए।

अथवा श्वसन तन्त्र के कार्य लिखिए तथा फेफड़ों में रक्त का शुद्धिकरण किस प्रकार होता है? स्पष्ट कीजिए।

अथवा फेफड़े किस प्रकार श्वसन क्रिया में सहायक हैं?

उत्तर – फेफड़ों की संरचना

फेफड़े मानव शरीर में श्वसन तन्त्र का एक प्रमुख अंग हैं। मानव शरीर में इनकी संख्या दो होती है। दायाँ फेफड़ा बाएं फेफड़े की अपेक्षा बड़ा होता है. ये फेफड़े वक्ष गुहा के बाएं एवं दाएँ स्थित होते है। इनकी संरचना अत्यन्त कोमल, लचीली, स्पंजी तथा गहरे स्लेटी भूरे रंग की होती है। इनके चारों ओर एक पतली झिल्ली का आवरण होता है, जिनके भीतर एक लसदार तरल भरा रहता है, जिसे प्लूरा अथवा फुफ्फुसीय आवरण कहा जाता है। गुहा को फुफ्फुसीय गुहा कहते हैं। ये सब रचनाएं फेफड़ों की सुरक्षा करती है। दायाँ फेफड़ा दो अधूरे खाँचों द्वारा तीन पिण्डों में बँटा रहता है। बाएँ फेफड़े में एक अधूरी खाँच होती है तथा यह दो पिण्डों में बेटा होता है। फेफड़ों में मधुमक्खी के छत्ते की तरह असंख्य वायुकोष होते हैं। एक वयस्क मनुष्य में इन वायुकोषों की संख्या लगभग 15 करोड़ तक होती है। प्रत्येक वायुकोष का सम्बन्ध एक श्वसनी शोध (Bronchtis) से होता है। प्रत्येक श्वसनी जो श्वास नाल के दो भागों में बँटने से बनती है, फेफड़े के अन्दर प्रवेश

कर अनेक शाखा व उपशाखाओं में बंट जाती है। अत्यन्त महीन उपशाखाएँ जो अन्तिम रूप से बनती हैं, कृषिका नलिकाएँ (Alveolar ducts) कहलाती है।


प्रत्येक कृषिका नलिका के सिरे पर अंगूर के गुच्छे की भाँति अनेक वायुकोष (Alveoli) जुड़े रहते हैं। प्रत्येक वायुकोष अति महीन झिल्ली का बना होता है. इनको बनाने वाली कोशिकाएँ चपटी होती है। इसकी बाहरी सतह पर रुधिर केशिकाओं (Blood Capillaries) का जाल फैला रहता है। यह जाल फुफ्फुस धमनी के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है। इन कोशिकाओं में शरीर का ऑक्सीजनरहित रक्त आता है तथा इसमें कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है। यह कार्बन डाइ ऑक्साइड वायुकोष की वायु में विसारित हो जाती है। बाद में ये कोशिकाएं मिलकर फुफ्फुस शिरा बनाती हैं। 

उच्छ्वास तथा प्रश्वास क्रिया में अन्तर

श्वसन में दो क्रियाएं होती है-उच्छवास (निःश्वसन) तथा प्रः श्वसन शरीर में वायु के प्रवेश करने वाली प्रक्रिया प्रश्न तथा शरीर से वायु बाहर निकलने वाली प्रक्रिया उच्छ्वसन कहलाती है। प्रःश्वसन में शुद्ध वायु अन्दर जाती है। तथा उच्क्सन में अशुद्ध वायु शरीर से बाहर निकलती है।


फेफड़ों के कार्य (रक्त शुद्ध करने की प्रक्रिया) फेफड़ों का मुख्य कार्य अशुद्ध रक्त को शुद्ध करना है। श्वसन क्रिया के दौरान फेफड़े वायु से ऑक्सीजन सोखते हैं तथा इसमें रक्त से प्राप्त कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO 2) को छोड़ते हैं। इस प्रकार गैसीय विनिमय द्वारा फेफड़ों में रक्त का शुद्धिकरण होता है। ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड का लेन-देन वायुकोषों की महीन झिल्ली के आर-पार, बाहरी वायु तथा रुधिर के बीच होता है।

इस प्रकार लगभग 280 मिली ऑक्सीजन प्रति मिनट वायु से रुधिर में आती है और बदले में लगभग 200 मिली कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर से वायु में चली जाती है। रुधिर में पाई जाने वाली असंख्य लाल रक्त कणिकाओं में हीमोग्लोबिन होता है। यही हीमोग्लोबिन वायु की ऑक्सीजन को सरलता से अपने साथ बन्धित कर लेता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का उत्तम स्वीकारक भी होता है।

यह ऑक्सीजन को तत्काल ग्रहण कर ऑक्सी हीमोग्लोबिन बना लेता है। इसी समय रक्त के तरल पदार्थ प्लाज्मा में उपस्थित कार्बन डाइ ऑक्साइड वायुकोषों में उपस्थित वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता कम होने के कारण स्वयं ही प्रवेश कर जाती है। इस प्रकार रुधिर में वायु से ऑक्सीजन तथा वायु में रुधिर से कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है। इसके बाद ऑक्सीजनयुक्त रक्त फेफड़ों से शिराओं के द्वारा हृदय में पहुँचता है, जहाँ से यह शरीर के विभिन्न अंगों में प्रवाहित होता है।


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