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Class 10th Home Science Chapter 11 हड्डियों की टूट और मोच pdf notes in hindi

 Class 10th Home Science Chapter 11 हड्डियों की टूट और मोच pdf notes in hindi


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खण्ड ङ : प्राथमिक चिकित्सा और गृह परिचय


अध्याय 11 हड्डियों की टूट और मोच



         { Short Introduction }


अस्थि भंजन का अर्थ व कारण

शरीर की यदि किसी भी हड्डी में दरार आ जाती है या कोई हड्डी टूट जाए, तो उसे अस्थि गंजन या हड्डी टूटना कहते हैं। अस्थि भजन, शरीर के किसी अंग पर अत्यधिक दबाव पड़ने अथवा झटका लगने आदि अन्य कारणों से हो सकता है।


अस्थि भंजन के लक्षण 

अस्थि भंजन के लक्षण निम्नलिखित हैं


1.प्रभावित व्यक्ति की हड्डी में अत्यधिक पीड़ा व चरमराहट होती है, उससे सम्बन्धित अंग अपना कार्य करना बन्द कर देते हैं तथा उनकी आकृति अस्वाभाविक हो जाती है।


2.जिस स्थान की हड्डी अनेक बार टूट चुकी हो, उस स्थान का रंग नीला-काला हो जाता है।


3.हड्डी टूटने का वास्तविक पता एक्स-रे द्वारा किया जा सकता है।


अस्थि भंजन के विभिन्न प्रकार अस्थि भंजन के प्रकार निम्नलिखित हैं।


1. साधारण अस्थि भंजन इस प्रकार के अस्थि भंजन में हड्डी केवल एक ही स्थान से टूटती है तथा आस-पास के ऊतकों को किसी विशेष प्रकार की क्षति नहीं पहुँचती। इस अस्थि भंजन में किसी प्रकार का घाव अथवा रक्तस्राव नहीं होता है।


 2. बहुखण्डी अस्थि भंजन इस प्रकार के अस्थि भंजन की स्थिति में प्रभावित स्थान की हड्डी के कई टुकड़े हो जाते हैं।


3. जटिल अस्थि भंजन इस प्रकार के अस्थि भंजन में हड्डी के टूटने के साथ-साथ उसके समीप स्थित कोमल अंगों को आघात लग जाता है, इस अस्थि भंजन को जटिल अस्थि भंजन कहा जाता है; जैसे-पसली का टूटकर फेफड़े में धस जाना।


4. पच्चड़ी अस्थि भंजन इस प्रकार के अस्थि भंजन में किसी एक हड्डी का टूटा हुआ सिरा दूसरी हड्डी में धँस जाता है। इस प्रकार के अस्थि भंजन में पीड़ित को अत्यधिक कष्ट होता है।


5. संयुक्त अस्थि भंजन संयुक्त अस्थि भंजन की स्थिति में टूटने वाली हड्डी का एक सिरा मांस एवं त्वचा को फाड़कर बाहर निकल जाता है, इसके परिणामस्वरूप प्रभावित अंग विकृत हो जाता है एवं रोगाणुओं द्वारा घाव के संक्रमित होने की आशंका बनी रहती है।


6. कच्चा अस्थि भंजन इस प्रकार के अस्थि-भंजन में हडिड्याँ पूर्णतः टूटती नहीं, बल्कि उसमें लोच आ जाती है अथवा दरार पड़ जाती है। इस प्रकार का अस्थि भंजन प्रायः बच्चों में होता है। संक्षेप में हड्डियों में दरार आने की प्रक्रिया को कच्चा अस्थि मंजन कहा जाता है।


अस्थि भंजन के प्राथमिक उपचार

अस्थि भंजन के प्राथमिक उपचार निम्नलिखित हैं 1.प्रभावित अंग की देखभाल की जानी चाहिए।


2.चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए। 


3.अधिक रक्तस्राव को रोकने के लिए टूर्नीकेट का प्रयोग करना चाहिए। 


4.उचित सहारे का प्रयोग कर रोगी को आराम से लिटा देना चाहिए। 


5.टूटी हुई हड्डी को सहारा देते हुए स्थिर रखने हेतु खपच्चियों का प्रयोग करना चाहिए। रोगी को गर्म पेय पिलाना एवं धैर्य बँधाना चाहिए। 


नोट – खोपड़ी व पसलियों के टूटने पर खपच्चियों नहीं बाँधी जा सकती


कुछ मुख्य हड्डियों के टूटने की पहचान तथा उपचार 


1. कूल्हे की हड्डी टूटने पर अत्यधिक दर्द होता है. बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा होती है। इसमें घायल को आराम से लिटाकर फूलों को उकते हुए पट्टियाँ धनी चाहिए तथा अलिक से सम्पर्क करना चाहिए।


2. जाँच की हड्डी टूटने पर तलवा घरातल से ऊपर नहीं उठता। घायल पैर, स्वस्थ पैर की तुलना में छोटा हो जाता है एवं सूजन आ जाती है। घायल व्यक्ति को पीठ के बल लिटाना चाहिए। घायल पैर को सीधा खींचकर स्वस्थ पैर के साथ रुई की गद्दी रखकर बाँध देना चाहिए खपच्चियों से सहारा देना चाहिए तथा तुरन्त चिकित्सा व्यवस्था करनी चाहिए।


3. सिर की हड्डी टूटने पर घायल को कुर्सी पर सीधा बैठा देना चाहिए, गीले कपड़े की तह बनाकर सिर के ऊपर रखनी चाहिए एवं तुरन्त चिकित्सा की व्यवस्था करनी चाहिए।


 4. जबड़े की हड्डी टूटने पर मसूढ़ों से रक्तस्राव होता है, बोलने में कठिनाई होती है। इसमें हथेली की सहायता से निचले जबड़े को ऊपरी जबड़े के साथ धीरे-धीरे बन्द करना चाहिए एवं रोगी को बोलने नहीं देना चाहिए तथा अविलम्ब चिकित्सा की व्यवस्था करनी चाहिए।


 5. कन्धे की हड्डी टूटने पर घायल के कन्धे के नीचे एक चौड़ी पट्टी का मध्य भाग रखकर बगल से लेकर स्वस्थ कन्धे के ऊपर बाँध देना चाहिए। प्रभावित हाथ को उचित सहारा देना चाहिए एवं चिकित्सा का प्रबन्ध करना चाहिए।


मोच का अर्थ

अस्थि- सन्धियों के बन्धन सूत्रों में आने वाला खिंचाव या टूट ही मोच आना कहलाता है।


मोच आने के लक्षण

शरीर के किसी अंग में मोच आने के निम्नलिखित लक्षण हैं। 


1• मोच से ग्रसित अंग में सूजन आ जाती है तथा वह कमजोर हो जाता है।


2.मोच के स्थान पर त्वचा का रंग नीला अथवा काला हो जाता है। मोच से प्रभावित अंग शिथिल हो जाता है।


मोच के उपचार

मोच आने पर निम्नलिखित उपचार किए जाने चाहिए

1.व्यक्ति को आरामदायक स्थिति में लिटाना चाहिए।

2.जूते या सैण्डिल उतार देने चाहिए।

3.अंग पर कसकर पट्टी बाँधनी चाहिए तथा उस पर बर्फ का पानी डालते रहना चाहिए। 

4.दर्द निवारक मरहम (आयोडेक्स आदि) की हल्की मालिश करनी चाहिए।

5.कभी-कभी गर्म सेंक भी दी जा सकती है।


 जोड़ उतरने का अर्थ

शरीर के किसी जोड़ या सन्धि का अपने सामान्य स्थिति अथवा अपने निश्चित स्थान से हट जाने की क्रिया को अस्थि का खिसकना या जोड़ उतरना कहा जाता है। अस्थि खिसकने की क्रिया जोड़ों में किसी प्रकार के खिचाव आने से होती है। जोड़ का उतरना प्रमुखतः कन्धे, कोहनी, कूल्हे तथा जबड़े इत्यादि में होता है। 


जोड़ उतरने के लक्षण

जोड़ उतरने के लक्षण निम्नलिखित हैं. 

1. सन्धि स्थल पर अत्यधिक पीड़ा होती है।

2.सम्बन्धित अंग सामान्य कार्य करना बन्द कर देता है। 3.अंग के आकार में विकृति तथा सूजन आ जाती है।


जोड़ उतरने के उपचार 

जोड़ उतरने के उपचार निम्न हैं

1.प्रभावित व्यक्ति को अत्यधिक आराम से लिटाना चाहिए। 

2.कुछ स्थानों पर कपड़े की गद्दी या तकिया लगाना चाहिए।

3. पीड़ा कम करने के लिए प्रभावित स्थान पर बर्फ की थैली रखनी चाहिए।

4. हड्डी विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिए।


[ बहुविकल्पीय प्रश्न Objective Questions ]


प्रश्न 1. अस्थियों की टूट को क्या कहते हैं?


(a) मोच


(b) अस्थि


(c) अस्थि-विस्थापन


(d) अस्थि भंग


उत्तर (d) अस्थि भंग


प्रश्न 2. अस्थि भंग के लक्षण हैं


(a) सूजन आ जाती है


 (c) अंग निष्क्रिय हो जाता है 


(b) दर्द होता है


(d) ये सभी


उत्तर (d) ये सभी


प्रश्न 3. यदि अस्थि एक से अधिक स्थान पर टूटती

है, तो अस्थि भंजन कहलाती हैं. 


(a) बहुखण्डी


(b) कच्चा


 (c) संयुक्त


 (d) साधारण


उत्तर (a) बहुखण्डी


प्रश्न 4. कौन-सी वस्तु का प्रयोग अस्थि भंग में अधिक रक्तस्राव रोकने के लिए किया जाता है?


 (a) बर्फ का प्रयोग


(b) टूर्नीकेट का प्रयोग


(c) रूई से दबाना 


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) टूनींकेट का प्रयोग


प्रश्न 5. हँसुली की अस्थि भंग होने पर बाँधेंगे


(a) सेण्ट जॉन्स झोल (गलपट्टी)


 (b) लम्बी (रोलर) पट्टी


(c) पतली पट्टी 


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (a) सेण्ट जॉन्स झोल (गलपट्टी)


प्रश्न 6. उन अंगों के नाम बताइए, जिनमें हड्डी टूटने पर खपच्चियाँ नहीं बाँधी जाती हैं


(a) खोपड़ी व पसलियाँ 


(b) टाँग व अग्रबाहु


(c) जाँघ व कूल्हा 


(d) ये सभी


उत्तर (a) खोपड़ी व पसलियाँ


अथवा कौन-सा अंग है, जिसमें हड्डी टूटने पर खपच्ची नहीं बाँधी जाती है?


(a) घुटना


(b) खोपड़ी


(d) कोहनी


(c) कलाई


उत्तर (b) खोपड़ी


प्रश्न 7. मोच की पहचान है

अथवा मोच का लक्षण है


(a) पीड़ा/ दर्द होना


(b) सूजन होना


(c) मांसपेशियों में खिंचाव


(d) ये सभी


उत्तर (d) ये सभी


प्रश्न 8. मोच आने पर निम्नलिखित में से किसका प्रयोग करते हैं?


(a) डिटॉल


(b) आयोडेक्स


(c) सेवलॉन


(d) कोल्ड क्रीम


उत्तर (b) आयोडेक्स


[ अतिलघु उत्तरीय प्रश्न Question Answers ]


प्रश्न 1. अस्थि भंग किसे कहते हैं?

अथवा हड्डियों की टूट से आप क्या समझती है?

उत्तर – शरीर की यदि किसी भी हड्डी में दरार आ जाती है या कोई हड्डी टूट जाए, तो उसे अस्थि भंग या हड्डी टूटना कहते हैं।


प्रश्न 2. अस्थि भंग के कोई दो लक्षण लिखिए। अथवा अस्थि भंग की पहचान क्या है?

उत्तर – अस्थि भंग होने वाले स्थान पर अत्यधिक पीड़ा होती है तथा सृजन आ जाती है।


प्रश्न 3. अस्थि भंग के चार प्रकार लिखिए।।

अथवा अस्थि भंजन के मुख्य प्रकार बताइए।

उत्तर – अस्थि भंजन के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं


1. साधारण भंजन


2. बहुखण्डी भंजन


3. जटिल भंजन


4. पच्चड़ी भंजन


 5. संयुक्त भंजन


6. कच्चा भंजन 


प्रश्न 4. कच्चे अस्थि भंजन से क्या अभिप्राय है?'

उत्तर – हड्डियों में दरार आने की प्रक्रिया को कच्चा अस्थि-भंजन कहा जाता है। 


प्रश्न 5. अस्थिभंग का मुख्य उपचार बताइए।

अथवा अस्थि भंजन के कोई चार प्राथमिक उपचार बताइए। 

उत्तर – अस्थि भंजन के चार प्राथमिक उपचार निम्न हैं

1. प्रभावित अंग की देखभाल की जानी चाहिए। 

2. चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

3. अधिक रक्तस्राव को रोकने के लिए दूर्नीकट का प्रयोग करना चाहिए।

 4. उचित सहारे का प्रयोग कर रोगी को आराम से लिटा देना चाहिए।


प्रश्न 6. हड्डी टूटने के दो प्राथमिक उपचार लिखिए।

उत्तर – हड्डी टूटने के दो प्राथमिक उपचार निम्न हैं।

1. अस्थि भंग की स्थिति में यथाशीघ्र किसी योग्य चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए, ताकि पीड़ित को जल्द से जल्द राहत पहुँचाई जा सके।


 2. पीड़ित व्यक्ति की टूटी हड्डी को स्थिर रखने के लिए उसे बाँस की खपच्ची, कार्ड बोर्ड के टुकड़े, छड़ी अथवा अन्य किसी लकड़ी की सहायता से बाँध देना चाहिए।


प्रश्न 7. खपच्चियों का प्रयोग क्यों किया जाता है?

अथवा अस्थि भंजन में खपच्चियों का प्रयोग क्यों किया जाता है? 

उत्तर – खपच्चियों का प्रयोग टूटी हुई हड्डी को सहारा देने व उसे स्थिर रखने के लिए अस्थि भंजन की स्थिति में किया जाता है। 


प्रश्न 8. कौन-से अस्थिभंग में खपच्चियों का प्रयोग नहीं किया जाता। 

उत्तर – खोपड़ी व पसलियों के टूटने पर खपच्चियों का प्रयोग नहीं किया जाता है।


प्रश्न 9. किस प्रकार के अस्थिभंग में रोगी को बर्फ चूसने के लिए दी जाती है 

उत्तर – पसली की हड्डी टूटने पर पीड़ित व्यक्ति को बर्फ चूसने के लिए दी जाती है।


प्रश्न 10. तिकोनी पट्टी का प्रयोग किस तरह की चोट पर करते हैं? 

 उत्तर – जबड़े की हड्डी टूटने पर तिकोनी पट्टी का प्रयोग किया जाता है।


प्रश्न 11. मोच क्या है?

अथवा मोच आने से क्या अभिप्राय है?

उत्तर – अस्थि-सन्धियों के बन्धन सूत्रों में आने वाला खिंचाव या टूट ही मोच आना कहलाता है।


प्रश्न 12. मोच के लक्षण लिखिए।

अथवा मोच के दो लक्षणों को बताइए।

उत्तर मोच के दो लक्षण निम्नलिखित है

 1. सम्बन्धित अंग में सूजन आती है।

 2. मांसपेशियों में खिचाव होता है।


प्रश्न 13. मोच आने पर क्या सामान्य उपचार किया जाना चाहिए?

उत्तर – मोच आने पर निम्न सामान्य उपचार किए जाने चाहिए 

1. सर्वप्रथम आहत व्यक्ति को आरामदायक स्थिति में लिटा या बैठा देना चाहिए।


2. पीड़ा कम करने के लिए प्रभावित स्थान पर बर्फ की थैली रगड़ी जा सकती है। 


3. चोट वाले स्थान पर कपडे कसे हो, तो उनको काटकर वहाँ से हटा देना चाहिए।


प्रश्न 14. जोड़ उत्तरना और मोच में दो अन्तर लिखिए।

उत्तर – जोड़ उत्तरमा और मोच में दो अन्तर निम्न हैं


    

जोड़ उत्तरना

मोच

सन्धि स्थल पर अत्यधिक पीड़ा होती है।

सम्बन्धित अंग में सूजन आ जाती है।

सम्बन्धित अंग सामान्य कार्य करना बन्द कर देता है।

मांसपेशियों में खिंचाव होता है।


[ लघु उत्तरीय प्रश्न Question Answers ]


प्रश्न 1. अस्थि भंजन या फ्रेक्चर किसे कहते हैं? अस्थि भंग के कारण बताइए। 

उत्तरअस्थि भंजन (भंग)/हड्डी की टूट

शरीर में हड्डियों का टूटना अस्थि भंग कहलाता है। अस्थि भंजन में यह आवश्यक नहीं है कि हड्डी पूर्ण रूप से टूटे, बल्कि उसमें यदि दरार भी आती है, तो उसे अस्थि भंजन कहा जाता है। अस्थि भंजन की स्थिति में पीडित व्यक्ति को दर्द तथा अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ होती हैं। अस्थियाँ सामान्यतः प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष भंजन से टूटती हैं।


अस्थि भंजन (भंग) के कारण व्यक्ति की अस्थि भंग होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं


1. शरीर के किसी अंग पर अधिक दबाव पड़ने से अस्थि भंग हो सकता है।


 2. झटका लग जाने से अस्थि भंग हो सकता है।


3. शरीर पर कोई वजन पड़ जाने से अस्थि भंग हो सकता है।


 4. यात्रा करते समय वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने से अस्थि भंग हो सकता है।


5. व्यक्ति के गिर जाने से अस्थि भंग हो सकता है।


6. चोट लगने से अस्थि भंग हो सकता है। 


7. लड़ाई-झगड़े में आघात एवं प्रहार से अस्थि भंग हो सकता है।


प्रश्न 2. अस्थि भंग में क्या प्राथमिक उपचार करना चाहिए?

अथवा अस्थि भंजन के कोई दो प्राथमिक उपचार क्या हैं?

उत्तर अस्थि भंग की स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा अस्थि भंग की स्थिति में निम्नलिखित विधियों द्वारा प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है


अस्थि भंग की स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा


• रक्तस्राव को रोककर

• चिकित्सक की सहायता लेकर

• घायल अंग की देखभाल करके

• टूटी हड्डी की देखभाल करके


1. रक्तस्राव को रोककर कई मौकों पर ऐसा देखा जाता है कि अस्थि भंग की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति के रक्त की वाहिनियाँ फट जाती है, जिसके फलस्वरूप अत्यधिक रक्तस्राव होने लगता है। ऐसी स्थिति में किसी स्वच्छ कपड़े द्वारा दबाव डालकर रक्तस्राव को रोकने का प्रयास करना चाहिए। यदि आवश्यकता हुई तो टूर्नीकेट का भी प्रयोग किया जा सकता है।


2. चिकित्सक की सहायता लेकर अस्थि भंग की स्थिति में अविलम्ब किसी योग्य चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए, ताकि पीड़ित को जल्द-से-जल्द राहत पहुँचाई जा सके। योग्य चिकित्सक यदि उपलब्ध न हो तो प्राथमिक चिकित्सा के आवश्यक उपाय करने चाहिए।


3. घायल अंग की देखभाल करके अस्थि भंग की स्थिति में पीड़ित के घावों को संक्रमण से बचाने के लिए घाव को संक्रमणरहित घोल (डिटॉल, सेवलॉन या अन्य घोल) द्वारा साफ करना चाहिए तथा घाव के स्थान पर एण्टीसेप्टिक क्रीम लगाकर स्वच्छ रूई अथवा कपड़े से पायल अंग को क देना चाहिए।


4. टूटी हड्डी की देखभाल करके अस्थि भंग की स्थिति में प्राथमिक उपचार दुर्घटना स्थल पर ही किया जाना अधिक उचित रहता है। पीड़ित की टूटी हड्डी को स्थिर रखने के लिए उसे बाँग की कमानी या खपच्ची, कार्ड बोर्ड के टुकड़े, छड़ी अथवा अन्य किसी लकड़ी की सहायता से बाँध देना चाहिए।


प्रश्न 3. अस्थि भंग और मोच के दो अन्तर लिखिए।

अथवा हड्डी की टूट/अस्थि भंग एवं मोच में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

 उत्तर – हड्डी की टूट एवं मोच में निम्नलिखित अन्तर है


हड्डी की टूट

मोच

हड्डी में दरार पड़ने अथवा टूटने को हड्डी की टूट कहा जाता है।

मांसपेशियों में खिचाव आने या सन्धि-स्थल के बनान सूत्रों के टूट जाने को मोच कहा जाता है।

हड्डी की टूट हड्डी में होती है।

मोच हड्डियों की सन्धि विशेषत: पूर्ण चल सन्धियों में होती है।

हड्डी की टूट हड्डी पर दबाव पड़ने अथवा चोट लगने के कारण होती है।

मोच, सन्धि पर खिचाय पड़ने व ऊँचा नीचा होने के कारण होती है।

हड्डी टूटने पर चरमराहट का अनुभव भी होता है।

मोच में किसी प्रकार की चरमराहट नहीं होती।

हड्डी टूटने पर सम्बन्धित अंग का रंग नहीं बदलता है।

मोच आने वाले स्थान का रंग नीला या काला हो जाता है।

जिस अंग की हड्डी टूटती है, वह अंग अपनी स्वाभाविक दशा में नहीं।रहता तथा लटक जाता है।

मोच आने पर सम्बन्धित अंग अपनी स्वाभाविक दशा में ही रहता है।


प्रश्न 4. अस्थि का खिसकना (जोड़ उतरना किसे कहते हैं? अस्थि के खिसकने के लक्षण एवं उपचार लिखिए।


 उत्तर – अस्थि खिसकने का अर्थ

शरीर के किसी जोड़ या सन्धि का अपनी सामान्य स्थिति अथवा अपने निश्चित स्थान से हट जाने की क्रिया को अस्थि का खिसकना या जोड़ उतरना कहा जाता है। अस्थि खिसकने की क्रिया जोड़ों में किसी प्रकार के खिचाव आने से होती है। जोड़ का उतरना प्रमुखतः कन्धे, कोहनी, कूल्हे तथा जबड़े इत्यादि में होता है।


अस्थि खिसकने के लक्षण

अस्थि खिसकने के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं।

 1. जोड़ उतरने वाले स्थल पर अत्यधिक पीड़ा होती है।


2. सन्धि अचल हो जाती है।


3. सम्बन्धित सन्धि अथवा जोड़ वाले अंग अचल हो जाते हैं।


4. सम्बन्धित अंग को हिलाने-डुलाने पर अत्यधिक पीड़ा होती है।


5. जोड़ के आस-पास सूजन आ जाती है।


अस्थि खिसकने के उपचार

अस्थि खिसकने की स्थिति में सम्भावित प्राथमिक उपचार निम्नवत् है


1. सर्वप्रथम आहत व्यक्ति को आरामदायक स्थिति में लिटा या बैठा देना चाहिए। 


2. प्रभावित अंग को आराम पहुंचाने के लिए कुछ स्थानों पर कपड़े की गद्दी,पैड या तकिया भी लगाया जा सकता है।


3. पीड़ा को कम करने के लिए प्रभावित स्थान पर बर्फ की थैली रखी जा सकती है।


4. अस्थि - विशेषज्ञ से सम्पर्क कर उचित चिकित्सा की व्यवस्था करनी चाहिए।


 प्रश्न 5. पैर की हड्डी टूट जाने पर क्या प्राथमिक उपचार किया जाना चाहिए।


अथवा पैर की हड्डी टूट जाने पर क्या प्राथमिक चिकित्सा देनी चाहिए?

उत्तर –  पैर की हड्डी टूटना पैर की हड्डी दौड़ने, कूदने किसी भारी वस्तु के गिर जाने से टूट जाती है। पैर की हड्डी टूटने पर निम्नलिखित लक्षण स्पष्ट होते हैं


1. इन हड्डियों के टूटने पर अत्यधिक दर्द होता है।


2. पाँव न उठ पाना, पैर का आकार बदलना इसके मुख्य लक्षण है।


उपचार –पैर की हड्डी टूटने पर निम्नलिखित उपचार दिया जाता है


1. चोटिल व्यक्ति के चप्पल-जूते आदि उतार देने चाहिए।


2. पैर के तलवे के साथ खपच्चियों लगाकर एड़ी से अंगुली तक एक साथ बाँध दें।


 3. एड़ी के नीचे सहारा देकर उसे ऊँचा उठाना चाहिए। 


4. तुरन्त ही अस्थि विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।


प्रश्न 6. कन्धे का जोड़ उतरने पर क्या उपचार देना चाहिए? 

 उत्तर – मानव अस्थि संस्थान में कई स्थानों पर दो या दो अधिक अस्थियाँ परस्पर सम्बद्ध होती है, जिसे अस्थि सन्धि कहते हैं। किसी दुर्घटना वश अंगों में खिंचाव आना या हड्डियों के अपने स्थान से हटने की प्रक्रिया को जोड़ उत्तरना कहते हैं। कन्धे के जोड़ उतरने पर निम्नलिखित उपचार करना चाहिए


1. सर्वप्रथम घायल व्यक्ति को आरामदायक स्थिति में लिटाना या बैठा देना चाहिए।


2. प्रभावित अंग को आराम की स्थिति में लाने के लिए कुछ स्थानों (आसपास) पर रुई के गद्दे, पैड या तकिया लगाएँ। 

3. दर्द को कम करने के लिए प्रभावित स्थान पर बर्फ की थैली रखी जा सकती है।


4. चोट वाले स्थान के कपड़ों को ढीला कर दें, यदि ढीला करने में मुश्किल आ रही हो तो उनको काटकर ढीला कर दें। 


5. कन्धे का जोड़ उतरने पर बाहों को हिलाना डुलाना मुश्किल हो जाता है। अतः कन्धे के नीचे एक चौड़ी पट्टी लगाकर ऊपर की तरफ बाँध दें। 


6. जोड़ उतरने पर श्वसन क्रिया में अवरोध होने लगता है। अतः शीघ्र ही चिकित्सक से परामर्श लें।


[दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Question Answers ]


प्रश्न 1. अस्थि भंग से आप क्या समझती हैं? अस्थि भंग के लक्षण बताइए।


अथवा अस्थि भंजन के मुख्य लक्षण क्या हैं? अस्थि भंजन की सामान्य प्राथमिक चिकित्सा आप किस प्रकार करेंगे


 उत्तर – अस्थि भंजन (भंग)/हड्डी की टूट

शरीर में हड्डियों का टूटना अस्थि भंग कहलाता है। अस्थि भंजन में यह आवश्यक नहीं है कि हड्डी पूर्ण रूप से टूटे, बल्कि उसमें यदि दरार भी आती है, तो उसे अस्थि भंजन कहा जाता है। अस्थि भंजन की स्थिति में पीडित व्यक्ति को दर्द तथा अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ होती हैं। अस्थियाँ सामान्यतः प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष भंजन से टूटती हैं।


अस्थि भंजन के लक्षण

अस्थि भंजन के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं


1. अस्थि भंजन से प्रभावित अंग को स्वाभाविक ढंग से हिलाने-डुलाने पर पीड़ा होती है। हड्डी टूटने वाले स्थान के आस-पास सूजन आ जाती है।


 2. हड्डी टूटने वाले स्थान पर पीड़ित व्यक्ति को असहनीय पीड़ा होती है, जिससे व्यक्ति दर्द से तड़पने लगता है।


3. टूटी हुई हड्डी के टुकड़े आपस में रगड़ खाने पर 'कर-कर' की ध्वनि उत्पन्न करते हैं। हड्डी टूटने वाले अंग की शक्ति नष्ट हो जाती है।


4. अस्थि भंजन के कारण प्रभावित अंग की आकृति बिगड़ जाती है।


 5. अस्थि भंजन की स्थिति में ऊतकों के नीचे रक्त प्रवाहित होने के कारण त्वचा का रंग नीला पड़ जाता है।


6. टूटी हुई हड्डी के एक सिरे दूसरे सिरे के ऊपर चढ़े हुए प्रतीत होते हैं। 


7. संयुक्त तथा जटिल अस्थि भंजन में पीड़ित व्यक्ति भारी दुर्बलता अनुभव करता है तथा वह मूच्छित भी हो सकता है।


8. प्रभावित अंग स्वाभाविक ढंग से हिलता-डुलता नहीं है।



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