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Class 10th Home Science Chapter 10 रोग की अवस्था में आहार PDF notes hindi

Class 10th Home Science Chapter 10 रोग की अवस्था में आहार PDF notes hindi 


10 रोग की अवस्था में आहार

Class 10th Home Science Chapter 10 रोग की अवस्था में आहार PDF notes hindi


नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट subhanshclasses.com पर यदि आप गूगल पर class 10th home science ncert pdf notes in hindi सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आ गए हैं हम आपको अपनी इस पोस्ट में कक्षा 10वी गृह विज्ञान नोट्स के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले है इसलिए आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।

[ Short Introduction ]


स्वस्थ अवस्था में व्यक्ति को पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार दिया जाता है, जबकि रोगावस्था में व्यक्ति के आहार में रोग की प्रकृति के अनुरूप किसी एक या अधिक पोषक तत्त्वों की मात्रा कम या अधिक कर दी जाती है। इसके अतिरिक्त रोगी का भोजन सुपाच्य होना चाहिए।


रोगावस्था में आहार के प्रकार –  रोगावस्था में दिया जाने वाला आहार दो प्रकार का हो सकता है


1. तरल आहार तरल आहार में खाद्य सामग्री तरल या द्रव अवस्था में होती है।तरल आहार में ठोस या अर्द्ध ठोस खाद्य सामग्री को सम्मिलित नहीं किया जाता। तरल आहार के मुख्य उदाहरण हैं-नींबू का पानी, जौ का पानी, चाय, दूध, फलों का रस, पतली दाल आदि। 


2. नर्म या कोमल आहार इसमें नर्म एवं सुपाच्य ठोस सामग्री विद्यमान होती है;जैसे खिचड़ी, दलिया, साबूदाना, घुटी हुई सब्जी आदि ।


रोगी के आहार में पोषक तत्त्वों का प्रयोग कार्बोहाइड्रेट (ऊजो का प्रमुख साधन)

ऊर्जा के लिए तुरन्त ग्लूकोज लेना चाहिए, जबकि मधुमेह रोगी के भोजन में कार्बोहाइड्रेट का अभाव होना चाहिए, क्योंकि इस रोग में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है।


प्रोटीन (शरीर निर्माण में सहायक)

प्रोटीन हमारे शरीर की टूट-फूट की मरम्मत करता है तथा हमारे शरीर की वृद्धि में सहायक होता है। दालों एवं अण्डे में प्रोटीन सबसे अधिक पाया जाता है। प्रोटीन के मुख्य स्रोत दूध, अण्डा, सोयाबीन, दाल आदि हैं।


वसा – भोजन में वसा की मात्रा अधिक होने पर भोजन गरिष्ठ हो जाता है तथा इसका पाचन भी देर से होता है। यह मोटापे में वृद्धि करता है, कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है तथा इससे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग होने की आशंका बढ़ जाती है।


विटामिन एवं खनिज लवणों (सुरक्षात्मक पोषक तत्त्व) की आवश्यकता –  मानव शरीर में स्वस्थ तथा अस्वस्थ, दोनों ही अवस्था में विटामिन और विभिन्न खनिजों से युक्त भोजन करना चाहिए। यह मानव शरीर के लिए अति आवश्यक है। उदाहरण के लिए कैल्सियम हड्डी एवं दाँतों को मजबूत बनाता है। शरीर में इसकी कमी से एनीमिया रोग हो जाता है।


विटामिन्स के स्रोत तथा उनकी कमी से होने वाले रोग


विटामिन

स्रोत

कमी से होने वाले रोग

विटामिन A

हरी-पीली सब्जियाँ, पपीता, अण्डा

रतौंधी (नेत्र रोग)

विटामिन B (थायमीन)

मूँगफली, तिल, अण्डा आदि

बेरी-बेरी

विटामिन C

खट्टे फल- नींबू, सन्तरा, मौसमी नारंगी, आँवला आदि

स्कर्वी (मसूढ़ों का फूलना)

विटामिन D

मछली, यकृत, सूर्य की किरणें

रिकेट्स (बच्चों में सूखा रोग)

विटामिन E

पत्ते वाली सब्जियाँ, अंकुरित अनाज आदि

जनन शक्ति कम होना आदि

विटामिन K

टमाटर, हरी सब्जियाँ आदि

रक्त का थक्का बनना

नोट (i) विटामिन A, D, E एवं K बसा में, जबकि B एवं C जल में घुलनशील हैं। 


(ii) ताजे मौसमी फल एवं हरी सब्जियाँ, विटामिन एवं खनिज लवणों की प्राप्ति के उत्तम स्रोत हैं। ये विभिन्न रोगों से बचाने में सहायक हैं।


रोगी को भोजन कराना

रोगी को भोजन समयानुसार उसकी सुविधा एवं आराम को दृष्टि में रखकर देना चाहिए। आहार उसकी आवश्यकता के अनुकूल होना चाहिए। 


विभिन्न रोगों की अवस्था में उपयोगी आहार


1. ज्वर की अवस्था में अधिक कैलोरी, प्रोटीन एवं विटामिन युक्त हल्का एवं सुपाच्य आहार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में कई बार देना चाहिए; जैसे-फल तथा सब्जियों का सूप आदि।


2. अतिसार तथा पेचिश में पाचन क्षमता घटने एवं निर्जलीकरण (जल की कमी) की स्थिति में नर्म एवं तरल आहार देना उपयुक्त है। इसमें सूप, दही, मट्ठा, माँड लाभकारी होते हैं। आहार में रेशे वाले पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मसालेदार एवं तला-भुना भोजन, वसा युक्त भोजन, अरवी, बीज वाले फल आदि का समावेश नहीं होना चाहिए।


3. गैस्ट्रोइण्ट्राइटिस (आंत्रशोध) में पेट में अम्लीयता बढ़ने की स्थिति में तरल,सुपाच्य कोमल आहार लेना चाहिए जैसे सब्जियों का मसालेरहित सूप।


4. कब्ज के रोगी को रेशेदार भोज्य पदार्थों की अधिकता वाले भोजन के साथ हरी सब्जियाँ, फल, सम्पूर्ण दालें तथा चोकर युक्त आटे की रोटियाँ आदि पदार्थों का अपने भोजन में समावेश करना चाहिए।


5. टायफाइड (मियादी बुखार) में रोगी को अधिक प्रोटीन युक्त, वसारहित, हल्का एवं सुपाच्य आहार; जैसे- दूध, अण्डा, पनीर, फलों का रस आदि लेना चाहिए।


6. क्षय रोग में सामान्य से अधिक कैलोरी युक्त पौष्टिक आहार लेना चाहिए। आहार में प्रोटीन, कैल्सियम, विटामिन A व B की मात्रा अधिक होनी चाहिए। इस रोग में मिर्च-मसाले वाला भोजन नहीं देना चाहिए। रोगी को रोटी, दाल, दलिया, सूजी, अण्डा, दूध, मक्खन, पनीर, पत्ते वाली सब्जियाँ आदि देना चाहिए।


7. मलेरिया में पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार देना चाहिए। रोगी को खिचड़ी,दलिया, साबूदाना, हरी सब्जियाँ आदि देनी चाहिए।


8. लू लगने पर ठण्डा पानी, प्याज एवं पुदीने का रस तथा कच्चे आम का पन्ना देना चाहिए।



रोगी व्यक्ति के लिए विभिन्न प्रकार के आहार


आहार

सम्बन्धित रोग में लाभदायक

साबूदाना

उदर रोग

कस्टर्ड

टीबी तथा टायफाइड

पुडिंग

मलेरिया व इन्फ्लुएंजा

सूजी

दाढ़ या दाँत का दर्द

दाल का सूप

टायफाइड या अन्य ज्वर

फटे दूध का पानी

मियादी बुखार

टोस्ट वाटर

मियादी बुखार उतरने के पश्चात्

जीवनरक्षक घोल : ओ. आर. एस. (नमक, चीनी व पानी का घोल)

अतिसार एवं पेचिश

जौ का पानी

पथरी होने पर


नोट 1. दाल का सूप बनाने की विधि दाल को साफ करके और धोने के बाद थोड़ा नमक डालकर आग (चूल्हे) पर चढ़ा दीजिए। जब दाल खूब गल जाए, तब इसका पानी अलग कर लीजिए। इस सूप में थोड़ा-सा नींबू डालकर रोगी को दिया जा सकता है। 


2. ह्रे वाटर तैयार करने की विधि दूध उबालते समय उसमें नींबू का रस डालने से दूध फट जाता है। छानकर पानी व छेना अलग कर लिया जाता है। फटे दूध के पानी में खनिज लवण, विटामिन, शर्करा, प्रोटीन आदि पौष्टिक तत्त्व होते हैं।


3.टोस्ट वाटर तैयार करने की विधि डबल रोटी के टुकड़े को आग पर सेंक लें, फिर एक बर्तन में पानी को उबालकर टोस्ट डालें और उस पानी को छान लें यही टोस्ट वाटर है। नमक, नींबू, काली मिर्च अथवा चीनी मिलाकर रोगी को दें। होस्ट का पानी अधिकतर टायफाइड के रोगी को ज्वर उतरने के पश्चात् दिया

जाता है।


[ बहुविकल्पीय प्रश्न Objective Questions ]


प्रश्न 1. रोगी का भोजन होना चाहिए


(a) गरिष्ठ


(b) चटपटा


(c) सुपाच्य


(d) बिना पका


उत्तर (c) सुपाच्य


प्रश्न 2. निम्न में से कौन-सा साफ तरल आहार नहीं है?


(a) फलों का रस 


(b) नींबू पानी


(c) दाल का पानी


(d) चाय


उत्तर (d) चाय


प्रश्न 3. किसके प्रयोग से तुरन्त ऊर्जा मिलती है?


अथवा कौन-सा पदार्थ लेने से तुरन्त ऊर्जा मिलती है?


(a) विटामिन


 (b) ग्लूकोज


(c) प्रोटीन


(d) खनिज लवण


उत्तर (b) ग्लूकोज


प्रश्न 4. ऊर्जा देने वाला तत्त्व है

अथवा भोजन में ऊर्जा का प्रमुख साधन है

अथवा ऊर्जा का प्रमुख साधन है


(a) कार्बोहाइड्रेट 


(b) खनिज लवण


(c) प्रोटीन


(d) विटामिन


उत्तर (a) कार्बोहाइड्रेट


प्रश्न 5. कार्बोहाइड्रेट का स्रोत है।


(a) टमाटर


 (b) आलू


(c) भिण्डी


(d) पालक


उत्तर (b) आलू


प्रश्न 6. आहार में कार्बोहाइड्रेट का सेवन किस रोग में नहीं करना चाहिए?


 (a) बेरी-बेरी में


(b) मधुमेह में


(C) तपेदिक में


(d) एनीमिया में


उत्तर (b) मधुमेह में


प्रश्न 7. मधुमेह रोग किस तत्त्व की अधिकता से होता है ?


(a) प्रोटीन


(b) वसा


(c) शर्करा


(d) विटामिन


उत्तर (c) शर्करा


प्रश्न 8. प्रोटीन का उत्तम स्रोत है।


(a) पालक


(b) सोयाबीन


(c) केला


(d) चावल


उत्तर (b) सोयाबीन


प्रश्न 9. शहरीर की वृद्धि में कौन-सा मुख्य पोषक तत्त्व सहायक है?

अथवा शरीर के निर्माण या वृद्धि में सहायक है


(a) प्रोटीन 


(b) वसा


(c) विटामिन


(d) कार्बोहाइड्रेट


उत्तर (a) प्रोटीन


प्रश्न 10. प्रोटीन का मुख्य काम है


(a) शरीर की वृद्धि एवं विकास करना


(b) केवल ऊर्जा प्रदान करना


 (c) अस्थि निर्माण करना


(d) हृदय गति सामान्य रखना


उत्तर (a) शरीर की वृद्धि एवं विकास करना


प्रश्न 11. अधिक भोजन शरीर के लिए


 (a) लाभकारी है


 (b) हानिकारक है


 (c) शक्तिवर्द्धक है 


(d) ये सभी 


उत्तर (b) हानिकारक है


प्रश्न 12. लौह तत्त्व की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है ? 


(a) बेरी-बेरी 


(b) एनीमिया


(c) मराम्मस


(d) तपेदिक


उत्तर (b) एनीमिया


प्रश्न 13. प्रोटीन की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है? 


(a) बेरी-बेरी 


(b) एनीमिया


(c) मराम्मस


(d)तपेदिक


उत्तर (c) मराम्मस


प्रश्न 14. अण्डे में पर्याप्त मात्रा में क्या होता है?


(a) प्रोटीन 


(b) आयरन 


(c) कार्बोहाइड्रेट


(d) विटामिन


उत्तर (a) प्रोटीन


प्रश्न 15 मोटापा किस तत्व की अधिकता से होता है


(a) कार्बोहाइड्रेट


(b) वसा 


(c) प्रोटीन 


(d) ये सभी


उत्तर (b) वसा


प्रश्न 16. हड्डियाँ सम्बन्धी विकार का कारण है 


(a) प्रोटीन की कमी


(b) कैल्सियम की कमी 


(c) वसा की कमी 


(d) विटामिन की कमी


उत्तर (b) कैल्सियम की कमी


प्रश्न 17. दाँतों को मजबूत करने वाला तत्त्व कौन-सा है ?


(a) प्रोटीन


(b) कैल्सियम


(c) कार्बोहाइड्रेट


(d) वसा


उत्तर (b) कैल्सियम


प्रश्न 18. विटामिन A का अच्छा स्रोत है


अथवा विटामिन A सबसे अधिक किसमें पाया जाता है?


(a) दाल


(b) दूध


(c) खट्टे फल


(d) हरी-पीली सब्जियाँ


उत्तर (d) हरी-पीली सब्जियाँ


प्रश्न 19.विटामिन A सबसे अधिक मात्रा में किस फल में मिलता है?


(a) केला


(c) सेब


(d) आँवला


(b) पपीता


उत्तर (b) पपीता


प्रश्न 20. विटामिन C का अच्छा स्रोत है?


(a) दाल


(b) खट्टे फल


(c) हरी सब्जियाँ


(d) दूध


उत्तर (b) खट्टे फल


प्रश्न 21. स्कर्वी रोग होता है


अथवा स्कर्वी रोग किस विटामिन की कमी से होता है?


(a) विषाणु द्वारा 


(b) जीवाणु द्वारा


(c) अमीबा द्वारा


(d) विटामिन C की कमी से


उत्तर (d) विटामिन C की कमी से


प्रश्न 22. नेत्रों के लिए कौन-सा तत्त्व आवश्यक है?


 (a) कैल्सियम


(b) विटामिन B


(c) ग्लूकोज


(d) विटामिन A


उत्तर (d) विटामिन A


प्रश्न 23. विटामिन A की कमी से कौन-सा रोग होता है? 


(a) रतौंधी


(c) बेरी-बेरी


(b) स्कर्वी


(d) त्वचा रोग


उत्तर (a) रतौंधी



प्रश्न 24. विटामिन D की कमी से कौन-सा रोग होता है? 


(a) जुकाम 


(b) स्कर्वी


(c) रिकेट्स


(d) बेरी-बेरी


उत्तर (c) रिकेट्स


प्रश्न 25. सूर्य किरण से किस पोषक तत्त्व की प्राप्ति होती है? 


(a) प्रोटीन


(b) वसा


(c) विटामिन


(d) खनिज लवण


उत्तर (c) विटामिन


प्रश्न 26. बेरी-बेरी रोग किस विटामिन की कमी से होता है?


(a) विटामिन A 


(b) थायमीन 


(c) विटामिन C


(d) विटामिन D


उत्तर (b) थायमीन


प्रश्न 27. विटामिन C का उत्तम स्रोत है


(a) आँवला 


(b) चावल


(c) गेहूँ


(d) मक्का


उत्तर (a) आंवला


प्रश्न 28.सूर्य की रोशनी हमें देती है।


(a) विटामिन C


(c) विटामिन A


(b) विटामिन D


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) विटामिन D


प्रश्न 29. विटामिन का समूह जो वसा में घुलनशील है 


(a) विटामिन A, B, C और D 


(b) विटामिन A, D, E और K


(c) विटामिन D B, C और K 


(d) विटामिन B, C, E और K


उत्तर (b) विटामिन A, D, E और K


प्रश्न 30. वसा में घुलनशील विटामिन नहीं है


(a) विटामिन A 


(b) विटामिन B


(c) विटामिन D


 (d) विटामिन E


उत्तर (b) टामिन B


प्रश्न 31. अतिसार में रोगी का भोजन होना चाहिए


(a) स्वादिष्ट 


(c) तरल


(b) ठोस


(d) गरिष्ठ


उत्तर (c) तरल


प्रश्न 32. पेचिस के रोगी का भोजन कैसा होना चाहिए? 


(a) केवल फल


 (b) केवल दूध


 (c) दही चावल


(d) सब्जी रोटी


उत्तर (c) दही चावल


प्रश्न 33.गैट्रोइण्ट्राइटिस रोगी के आहार में वर्जित है


(a) ठोस पदार्थ


 (b) प्रोटीन


(c) रेशेदार पदार्थ


 (d) ये सभी


उत्तर (d) ये सभी


प्रश्न 34. कौन-सा विटामिन जल में घुलनशील है?


 (a) विटामिन A


(b) विटामिन B


 (c) विटामिन D


(d) विटामिन K


उत्तर (b) विटामिन B


प्रश्न 35. कब्ज के रोगी का आहार है। 


(a) नर्म व तरल आहार 


(b) रेशेयुक्त आहार


(c) ठोस आहार


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) रेशेयुक्त आहार


प्रश्न 36. क्षय रोगी को क्या नहीं देना चाहिए?


(a) सुपाच्य भोजन


(b) दूध


(c) मिर्च-मसाले वाला भोजन 


(d) अण्डा 


उत्तर (c) मिर्च-मसाले वाला भोजन


प्रश्न 37. लू लगने पर रोगी को क्या देना चाहिए?


(a) गर्म चाय


(b) गर्म दूध


 (c) आम का पन्ना


(d) फटे दूध का पानी 


उत्तर (c) आम का पन्ना


(अतिलघु उत्तरीय प्रश्न Short Question Answers)


प्रश्न 1. रोगी के लिए हल्के भोजन से क्या तात्पर्य है?

उत्तर – रोगी को सुपाच्य अथवा हल्का भोजन देने से तात्पर्य यह है कि उसे बीमारी के समय ऐसा भोजन दिया जाना चाहिए, जो कम समय में सहजता से पच सके। सहज पचने वाले भोजन का अवशोषण शीघ्र ही हो जाता है। रोगी को सामान्यतः विस्कुट, साबूदाना, सूजी, दलिया, कस्टर्ड, फल तथा उबली हुई सब्जियाँ दी जानी चाहिए।


प्रश्न 2. तरल आहार से क्या तात्पर्य है?

अथवा  किन्हीं चार तरल आहारों के नाम बताइए। उत्तर – तरल आहार में खाद्य सामग्री तरल या द्रव अवस्था में होती है। तरल आहार में ठोस या अर्द्ध-ठोस खाद्य सामग्री को सम्मिलित नहीं किया जाता। तरल आहार के मुख्य उदाहरण हैं-नींबू का पानी, जौ का पानी, चाय, दूध, फलों का रस, पतली दाल आदि।


प्रश्न 3. रोगी को तरल आहार क्यों दिया जाता है? 

उत्तर – रोगी सामान्य आहार चबाने तथा पचाने में असमर्थ होता है। अतः उसे तरल आहार दिया जाता है।


प्रश्न 4. भोजन के पौष्टिक तत्त्वों के नाम बताइए। उत्तर – भोजन के मुख्य पौष्टिक तत्व है-कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज लवण ।


प्रश्न 5. मधुमेह के रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए? 

उत्तर – मधुमेह के रोगी को कम कैलोरी युक्त भोजन दिया जाना चाहिए, जिसमें कार्बोहाइड्रेट/शर्करा आदि की मात्रा कम होनी चाहिए।


प्रश्न 6. अण्डे में कौन-कौन-से पोषक तत्त्व पाए जाते हैं? 

उत्तर – अण्डे में मुख्यत: प्रोटीन नामक पोषक तत्त्व बहुतायत में होता है। इसके साथ ही खनिज लवण, विटामिन, वसा व कार्बोहाइड्रेट तत्त्व भी पाए जाते हैं। 


प्रश्न 7. दालों में सबसे अधिक कौन-सा तत्त्व पाया जाता है? इसका शरीर में क्या कार्य है? 

उत्तर – दालों में प्रोटीन सबसे अधिक पाया जाता है। प्रोटीन हमारे शरीर की टूट-फूट की मरम्मत करता है तथा हमारे शरीर की वृद्धि में सहायक होता है।


प्रश्न 8. अधिक वसा युक्त भोजन करना क्यों हानिकारक है?

अथवा मोटापा कैसे रोका जाता है?

उत्तर – भोजन में वसा की मात्रा अधिक होने पर भोजन गरिष्ठ हो जाता है तथा इसका पाचन भी देर से होता है। यह मोटापे में वृद्धि करता है, कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है तथा इससे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग होने की आशंका बढ़ जाती है।


प्रश्न 9. वसा में घुलनशील विटामिन्स के नाम बताइए।

उत्तर – विटामिन्स A, D, E एवं K वसा में घुलनशील हैं।


 प्रश्न 10. कुषोषण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही 'कुपोषण' कहलाता है। इसके कारण मनुष्यों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे शीघ्रता से अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।


प्रश्न 11. हमारे शरीर में विटामिन C के दो कार्य लिखिए। 

उत्तर – हमारे शरीर में विटामिन C के दो कार्य निम्नलिखित है।


1. यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। 


2. शरीर की रक्त वाहिकाओं को मजबूत बनाने में सहायक होता है।


प्रश्न 12. किन-किन फलों में विटामिन C प्रचुर मात्रा में पाया जाता है?

 उत्तर विटामिन C के प्रमुख स्रोत खट्टे फल जैसे नींबू, आंवला, अमरूद,सन्तरा, नारंगी, अन्ननास एवं मौसमी आदि हैं।


प्रश्न 13. फलों का आहार में क्या महत्त्व है?

उत्तर – फल विटामिन तथा खनिज तत्त्व आदि की प्राप्ति के उत्तम स्रोत हैं। ये स्वादिष्ट, सुपाच्य एवं शक्तिदायक आहार होते हैं।


प्रश्न 14. तरल भोजन अतिसार के रोगी को देना क्यों उपयुक्त माना जाता है? 

उत्तर – अतिसार तथा पेचिश होने की दशा में व्यक्ति की पाचन क्षमता घट जाती है तथा बार-बार मल त्याग करने से निर्जलीकरण की समस्या भी उत्पन्न होती है. इसी कारण अतिसार होने पर रोगी को तरल भोजन देना उपयुक्त माना जाता है। 


प्रश्न 15. अतिसार की अवस्था में किस प्रकार के भोज्य पदार्थ नहीं दिए जाने चाहिए?

उत्तर – अतिसार की अवस्था में आहार में तन्तु वाले पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अचार, चटनी, मसाले, तला हुआ भोजन, वसा युक्त भोजन, अरवी, बीज वाले फल आदि को नहीं देना चाहिए।


 प्रश्न 16. पेचिश के लक्षण लिखिए।

उत्तर – पेट में तीव्र दर्द होना तथा बार-बार मल त्याग करना पेचिश का प्रमुख लक्षण है।


प्रश्न 17. रेशेयुक्त आहार किन रोगों में दिया जाना चाहिए? अपना कब्ज के रोगी के आहार में मुख्यतया किन भोज्य पदार्थों का समावेश होना चाहिए?

उत्तर – कब्ज के रोगी को रेशेदार भोज्य पदार्थों की अधिकता वाले भोजन के साथ हरी सब्जियों, फल, सम्पूर्ण दालें तथा चोकर युक्त आटे की रोटियों आदि पदार्थों का अपने भोजन में समावेश करना चाहिए। 


प्रश्न 18. आम के पन्ने की क्या उपयोगिता है?

उत्तर – कच्चे आम के पन्ने का सेवन ग्रीष्म ऋतु में बच्चों, वयस्क तथा वृद्धों को लू लगने पर किया जाता है।


प्रश्न 19. स्वास्थ्य लाभ के समय टायफाइड / मियादी बुखार में रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए?

 उत्तर – स्वास्थ्य लाभ के समय टायफाइड रोगी को क्रमशः अर्द्ध-तरल, नर्म तथा ठोस आहार दिया जाना चाहिए। रोगी को अधिक प्रोटीन युक्त तथा कैलोरी युक्त सुपाच्य आहार देना चाहिए जैसे- अण्डे, दूध, फलों का रस, सब्जियों का सूप,चावल का पानी, खिचड़ी, दलिया आदि।


प्रश्न 20. दलिया बनाने की विधि लिखिए।

उत्तर – दलिया को साफ कर बिना पानी से धोए गर्म घी में गुलाबी होने तक भूना जाना चाहिए। फिर अलग बर्तन में पानी उबालकर भूना हुआ दलिया उसमें डाला जाता है। अन्त में दलिया गल जाने पर अपनी इच्छा के अनुसार दूध तथा चीनी मिला दिया जाता है, जबकि नमकीन दलिया बनाने के लिए दूध तथा चीनी के स्थान पर नमक, काली मिर्च व नींबू का प्रयोग किया जाता है।


प्रश्न 21. लू लगने पर क्या बचाव करेंगी?

अथवा लू लगने पर रोगी को क्या देना चाहिए?


उत्तर –  लू लगने पर रोगी को कच्चे आम का पन्ना बनाकर पिलाना चाहिए। रोगी को प्याज व पुदीने की चटनी बनाकर भी दी जा सकती है। स्वास्थ्य लाभ की स्थिति में रोगी को सरल व सुपाच्य आहार के साथ ही ठण्डा व हल्का ठोस आहार भी दिया जा सकता है।


प्रश्न 22. फटे दूध का पानी एवं जौ का पानी किन रोगों में दिया जाता है? 

उत्तर – फटे दूध का पानी मियादी बुखार में तथा जौ का पानी पत्थरी के रोगी को दिया जाता है।


प्रश्न 23. फटे दूध के पानी को तैयार करने की विधि लिखिए 

अथवा फटे दूध का पानी किस रोगी को देते हैं और क्यों?


अथवा फटे दूध का पानी किस रोगी को देते हैं? इसे बनाने की क्या विधि है?

उत्तर – दूध उबालते समय उसमें नींबू का रस डालने से दूध फट जाता है। छानकर पानी व छेना अलग कर लिया जाता है। इस प्रकार प्राप्त फटे दूध के पानी में खनिज लवण, विटामिन, शर्करा, प्रोटीन आदि पौष्टिक तत्त्व होते हैं। इसका प्रयोग नियादी बुखार अर्थात् टायफाइड के मरीज के लिए किया जाता है।


प्रश्न 24. निर्जलीकरण से क्या तात्पर्य है?

 उत्तर – निर्जलीकरण शरीर में पानी की कमी के कारण होता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब शरीर से निकलने वाले पानी की मात्रा (पसीना, मल-मूत्र के रूप में) दिनभर में प्राप्त की जाने वाली पानी की मात्रा से अधिक हो जाती है।


प्रश्न 25. दाल का सूप बनाने की विधि लिखिए।

उत्तर –  दाल को साफ करके और धोने के उपरान्त थोड़ा नमक डालकर आग (चूल्हे) पर चढ़ा दीजिए। जब दाल खूब गल जाए, तब इसका पानी अलग कर

लीजिए। इस सूप में थोड़ा-सा नींबू डालकर रोगी को दिया जा सकता है।


प्रश्न 26. टोस्ट वाटर तैयार करने की विधि लिखिए।

उत्तर – डबल रोटी के टुकड़े को आग पर सेक लें, फिर एक बर्तन में पानी को उबालकर टोस्ट डाले और उस पानी को छान लें। यही टोस्ट वाटर है। नमक, नींबू, काली मिर्च अथवा चीनी मिलाकर रोगी को दें। टोस्ट का पानी अधिकतर टायफाइड के रोगी को ज्वर उतरने के पश्चात् दिया जाता है। 


प्रश्न 27. रोग की समाप्ति पर रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए?

उत्तर –  रोग की समाप्ति के कुछ दिनों बाद तक रोगी को सामान्य सन्तुलित, सुपाच्य एवं पौष्टिक भोजन देना चाहिए तथा अधिक मिर्च-मसाला व तेल वाला भोजन नहीं देना चाहिए। रोग की समाप्ति के बाद लौकी, तोरी, रोटी, खिचड़ी आदि देना चाहिए।


[ लघु उत्तरीय प्रश्न Question Answers ]


प्रश्न 1. रोगी को तरल आहार क्यों दिया जाता है?

अथवा रोगी को तरल आहार क्यों दिया जाता है? किसी एक प्रकार के तरल आहार बनाने की विधि का वर्णन कीजिए।


 अथवा रोगी को तरल पदार्थ कब और क्यों दिया जाता है? कौन-कौन-से तरल पदार्थ रोगियों को दे सकते हैं? 


अथवा रोगी को तरल आहार क्यों दिया जाता है? किन्हीं दो प्रकार के तरल आहार बनाने की विधि लिखिए। 


अथवा रोगी के लिए टमाटर का सूप बनाने की विधि लिखिए।


अथवा रोगी को किस प्रकार का भोजन देना चाहिए?


उत्तर – सामान्य रूप से तेज ज्वर, अतिसार, उल्टी तथा जी मिचलाना आदि अवस्थाओं में व्यक्ति की आहार सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जो आहार दिया जाता है, उसे तरल आहार कहते हैं।


तरल आहार – ऐसे रोगों की स्थिति में रोगी सामान्य आहार चबाने में असमर्थ होता है अर्थात् सामान्य आहार ग्रहण करते ही उसका जी मिचलाने लगता है तथा उल्टी होने लगती है, इसलिए उसे तरल आहार दिया जाता है। कुछ तरल आहार हैं-नींबू का पानी, जौ का पानी, चाय, दूध, फलों का रस, पतली दाल आदि। दो प्रकार के तरल आहार एवं उन्हें बनाने की विधि निम्नलिखित है


1. टमाटर का सूप टमाटरों को साफ पानी में धो लेते हैं। इसके बाद चीनी मिट्टी अथवा कलई के बर्तन में टमाटरों को उबालने के बाद चम्मच से मिला देते हैं। अन्त में पानी को साफ कपड़े में छान लिया जाता है। सूप में रोगों की इच्छानुसार नमक, काली मिर्च एवं थोड़ी चीनी मिलाई जा सकती है। ,


2. चावल का पानी चावल को साफ करके एवं धोकर थोड़े समय के लिए पानी में भिगो देते हैं। अब चावल को पानी में उबालते हैं। चावल के गलने पर नीचे

उतार लेते हैं। पानी को कपड़े से छानकर उसमें नमक व काली मिर्च मिलाकर रोगी को देते हैं।


प्रश्न 2. रोगी की आहार व्यवस्था में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।


 अथवा रोगी को किस प्रकार का भोजन देना चाहिए। 


अथवा रोगी को भोजन देते समय कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतेंगी।


अथवा रोगी के भोजन की व्यवस्था करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? 


उत्तररोगी के भोजन की व्यवस्था करते समय ध्यान रखने योग्य बातें – 

रोगी के भोजन की व्यवस्था के समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए तथा निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए


1. सर्वप्रथम भोजन डॉक्टर के निर्देशानुसार देना चाहिए।


 2. भोजन इस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए कि उसके पौष्टिक तत्त्वः जैसे प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण आदि नष्ट नहीं होने चाहिए।


3. भोजन बनाते समय साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


4. जहाँ तक सम्भव हो उबली हुई सब्जियाँ देनी चाहिए। अधिक मिर्च, तेल, मसाले वाला भोजन नहीं होना चाहिए। 


5.भोजन के साथ नींबू, काला नमक आदि का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए। 


6.रोगी को जो भोजन दिया जा रहा हो, वह उन तत्त्वों से परिपूर्ण हो,जिनकी कमी से वह रोग उत्पन्न हुआ।

रोगी को अधिकतर हल्का भोजन जैसे-खिचड़ी, डबल रोटी (Bread),पालक की सब्जी, पतली-पतली रोटियाँ आदि देनी चाहिए।


प्रश्न 3. पेचिश के रोगी को किस प्रकार का भोजन देना चाहिए?

उत्तर –

पेचिश के रोगी का भोजन


पेचिश नामक रोग दूषित जल अथवा भोजन के माध्यम से संक्रमित होने वाले रोगाणुओं के शरीर में प्रवेश के परिणामस्वरूप होता है। इस रोग में बार-बार मल त्याग करना पड़ता है।


अतः इस रोग में चिकित्सा के साथ रोग की गम्भीरता के कारण आहारनाल को विश्राम देना आवश्यक होता है। इस रोग के रोगी को निम्नलिखित प्रकार का भोजन दिया जाना चाहिए


1. दस्तों की अधिक आवृत्ति की अवस्था में केवल तरल पदार्थ भोजन के रूप में दिया जाना चाहिए। 


2. आहार में तन्तु वाले पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अचार, चटनी, मसाले, तला हुआ भोजन, वसा युक्त भोजन, अरवी, बीज वाले फल आदि का समावेश कदापि नहीं करना चाहिए।


3. नर्म चावल, सूप व दही, खूब पका हुआ केला, फलों का रस, खाद्यान्नों का माँड, वसाहीन शोरबा आदि पदार्थ देना लाभकारी है।


4. इससे रोगी के शरीर में जल की कमी हो जाती है, इसलिए जल अधिक मात्रा में देते रहना चाहिए। 


5. रोग के सुधार होने पर या स्वास्थ्य लाभ के प्रारम्भ में अर्द्ध-तरल भोजन प्रारम्भ किया जाना चाहिए, जैसे-दाल का पानी, स्टार्च युक्त भोजन (जैसे साबूदाना खिचड़ी, आइसक्रीम आदि।


 6. रुग्णावस्था में सूप और स्वास्थ्य लाभ होने पर कोमल ठोस आहार; जैसे- सूजी की खीर, रेशेरहित सब्जियाँ दी जानी चाहिए। 


प्रश्न 4. मियादी बुखार से क्या तात्पर्य है? ऐसे रोगी को आप कैसा आहार देंगी।

अथवा मियादी बुखार के रोगी की पोषकीय आवश्यकताओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए। 


अथवा मियादी बुखार में दिए जाने वाले आहार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।


अथवा मियादी बुखार में रोगी को क्या आहार दिया जाना चाहिए? 


अथवा मियादी रोगी/ टायफाइड रोगी के रोग की अवधि में स्वास्थ्य लाभ के समय किस प्रकार का भोजन देना चाहिए?


अथवा मियादी बुखार में किस प्रकार का भोजन देना चाहिए? 


उत्तर –मियादी बुखार या टायफाइड एक विशेष प्रकार का ज्वर होता है, जो आहारनली में जीवाणुओं के संक्रमण से आरम्भ होता है। आँतों में सूजन, घाव, पाचन शक्ति का क्षीण होना आदि इसके सामान्य लक्षण हैं।


मियादी बुखार में आहार


मियादी बुखार में दिए जाने वाले आहार का निर्धारण करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है


 1. रोगी को सुपाच्य, रेशेरहित, वसारहित, हल्का एवं अधिक प्रोटीन युक्त आहार दिया जाना चाहिए।


2. मियादी बुखार आंतों की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है। अतः रोगी को मिर्च-मसाले युक्त आहार, चोकर युक्त आटे की रोटी, सलाद, कच्ची सब्जियाँ, बीज वाले फल, चाय-कॉफी आदि पेय पदार्थ बिल्कुल नहीं दिए जाने चाहिए। 3. रोगी को दूध, अण्डा, पनीर, फलों का रस आदि देना लाभकारी होता है। इनसे रोगी को प्रोटीन एवं अन्य पोषक तत्त्वों की प्राप्ति हो जाती है। ज्वर नियन्त्रित होने पर टोस्ट वाटर, ब्रेड, मक्खन आदि भी दिया जा सकता है। स्वास्थ्य लाभ की अवस्था में रोगी को क्रमशः अर्द्ध-तरल, नर्म तथा ठोस आहार दिया जाना चाहिए।


 प्रश्न 5. गॅस्ट्रोइण्ट्राइटिस रोग के क्या लक्षण हैं, इसके रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए?

उत्तर – गैस्ट्रोइण्ट्राइटिस पाचन तन्त्र से सम्बन्धित रोग है, जो सामान्यतः अपोषक खाद्य पदार्थों के कारण होता है। इस रोग में पेट में जलन, दबाने से पेट में दर्द, पेट में भारीपन आदि का अनुभव होता है। पेट में अम्लीयता बहुत बढ़ जाती है। गैस्ट्रोइण्ट्राइटिस में रोगी को निम्नलिखित आहार दिया जाना चाहिए


1. अम्लीयता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का भोजन में समावेश नहीं होना चाहिए। 


2. रोगी को सुपाच्य, तरल तथा अति कोमल आहार दिया जाना चाहिए।


3. गम्भीर स्थिति में केवल गर्म जल पीने के लिए दिया जाना चाहिए। 


4. सब्जियों का मसाले रहित सूप रोगी के लिए अच्छा आहार होता है।


5. स्थिति में सुधार होने पर रोगी को हल्का व सुपाच्य आहार; जैसे- खिचड़ी तथा साबूदाना आदि दिया जा सकता है।


 प्रश्न 6. फटे दूध का पानी (हे वाटर) बनाने की विधि लिखिए। यह किस रोगी को दिया जाता है? 

उत्तर –;फटे दूध का पानी (हे वाटर) बनाने की विधि इस प्रकार है • इसे बनाने के लिए किसी स्टील के बर्तन में दूध को आग पर गर्म करते हैं। जब दूध उबलने लगे तब नींबू के रस की 2-3 बूंद उसमें डालते हैं। इससे दूध

फट जाता है। उसका छेना व पानी अलग हो जाता है। फटे हुए दूध को कपड़े से छानकर उसमें रोगी की इच्छानुसार काला नमक, काली मिर्च या चीनी मिलाकर दिया जाता है।


• यह पेय सामान्यतः अतिसार, मियादी बुखार आदि रोग में रोगी को दिया जाता है।


प्रश्न 7. जीवनरक्षक घोल क्या है? इसे कैसे तैयार करते हैं?


अथवा जीवनरक्षक घोल को परिभाषित कीजिए। अथवा जीवनरक्षक घोल (ओ. आर. एस.) किस रोगी को दिया जाता है?

• अथवा शरीर के निर्जलीकरण की पूर्ति के लिए आप क्या करेंगे?


 उत्तर – हमारे शरीर में आवश्यक रूप से जल की एक सामान्य मात्रा की आवश्यकता होती है। किन्तु जब किसी भी कारण से हमारे शरीर में जल की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है, तो इसे निर्जलीकरण (डीहाइड्रेशन) कहा जाता है। इस परिस्थिति में चिकित्सक सर्वप्रथम जीवनरक्षक घोल (ओ.आर.एस.) मरीज को देते हैं। शरीर में निर्जलीकरण को दूर करने के लिए पानी के साथ ही आवश्यक खनिज लवणों को भी शरीर में पहुंचाया जाता है, क्योंकि दस्त एवं उल्टी में पानी के साथ जरूरी खनिज लवण; जैसे—नमक, पोटैशियम आदि भी निकल जाते हैं। जीवनरक्षक घोल के एक पैकेट में 20 ग्राम ग्लूकोज, 3.5 ग्राम नमक, 2.5 ग्राम सोडा एवं 1.5 ग्राम पोटैशियम क्लोराइड होता है। पूरे पैकेट को एक लीटर पानी में घोलकर तैयार किया जाता है। इसे मरीज को तब तक थोड़ा-थोड़ा पिलाते हैं, जब तक रोगी के शरीर में पानी की कमी दूर नहीं हो जाती ।


जीवरक्षक घोल निर्जलीकरण के अतिरिक्त चक्कर आना, कमजोरी लगना, जीभ आना मुंह सूखना, सूखी त्वचा, रक्तचाप का कम होना, पेशाब में कमी आदि समस्य को दूर करने में भी काफी उपयोगी होता है।


प्रश्न 8. क्षय रोग से ग्रस्त व्यक्ति को रोग की अवधि तथा स्वास्थ्य लाभ के समय क्या आहार दिया जाना चाहिए? 


 अथवा क्षय रोग से पीड़ित व्यक्ति के भोजन में किन पौष्टिक तत्त्वों की प्रमुखता होनी चाहिए?


उत्तर – क्षय रोग में आहार

क्षय रोग एक विशेष प्रकार के जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है। इस रोग में व्यक्ति को निरन्तर हल्का ज्वर रहता है तथा कमजोरी बढ़ने के साथ शरीर का वजन भी घटने लगता है। इस रोग की अवस्था में व्यक्ति को अधिक कैलोरी युक्त पौष्टिक आहार की

आवश्यकता होती है। रोगी के आहार में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, कैल्सियम,विटामिन A तथा B की मात्रा सामान्य से अधिक होनी चाहिए।


क्षय रोग की अवस्था में रोगी को रोटी, दाल, दलिया, डबल रोटी, सूजी, अण्डा, माँस का शोरबा, सब्जियों का सूप, दूध, क्रीम, मक्खन, पनीर, पत्ते वाली सब्जियाँ तथा पीले रंग की सब्जियाँ दी जानी चाहिए। रोगी को थोड़े-थोड़े समय के उपरान्त कई बार आहार दिया जाना चाहिए। प्रोटीन की अतिरिक्त मात्रा की पूर्ति के लिए आहार में प्रोटीन युक्त भोज्य पदार्थों का समावेश होना चाहिए। क्षय रोग के रोगी को शुद्ध वायु का सेवन अवश्य करना चाहिए। स्वास्थ्य लाभ के समय रोगी को सन्तुलित पौष्टिक आहार देते रहना आवश्यक है। आहार में वसा एवं प्रोटीन की मात्रा को सामान्य स्तर पर देने का प्रयास करना चाहिए। आहार में दाल, रोटी, हरी सब्जियाँ, अण्डे, दूध आदि का समावेश अनिवार्य रूप से होना चाहिए।


प्रश्न 9. मलेरिया रोग में दिए जाने वाले आहार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।

 उत्तर – मलेरिया नामक रोग मच्छर के काटने से फैलता है। इस रोग में सर्दी लगने एवं कँपकँपी के साथ तेज ज्वर होता है। इस रोग का संक्रमण बहुत ही प्रबल होता है। मलेरिया की अवस्था में रोगी को पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार दिया जाना चाहिए। यदि ज्वर तेज हो, तो रोगी को कुछ समय के लिए तनिक भी आहार नहीं दिया जाना चाहिए। ज्वर के नियन्त्रित होने की अवस्था में व्यक्ति को उसकी रुचि के अनुसार खिचड़ी, दलिया, साबूदाना तथा हरी सब्जियाँ आदि दिए जा सकते हैं। 


प्रश्न 10. सूप क्या है? सब्जियों के सूप बनाने की विधि लिखिए


अथवा हरी सब्जियों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है? सब्जियों का सूप बनाने की विधि लिखिए।


उत्तर – सूप एक प्रकार का खाद्य पदार्थ है, जो सब्जियों, दालों तथा मांस को अन्य पदार्थ में मिलाकर बनाया जाता है। यह रोगी को दिया जाने वाला प्रमुख तरल आहार है। भोजन में सब्जियों का अधिक महत्त्व होता है। सब्जियों में विशेषकर हरी सब्जियों में विटामिन एवं खनिज लवणों की अधिकता होती है तथा ये इनकी प्राप्ति के उत्तम स्रोत हैं। सब्जियों को पकाकर तथा इनका सूप बनाकर उपयोग में लाया जाता है।


सब्जियों का सूप बनाने की विधि

सब्जियां जैसे- पालक, गाजर, परमल, लौकी आदि को बराबर मात्रा में लेकर उन्हें धोकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। एक भगौने में पानी लेकर सभी सब्जियों को उसमें उबालें। आवश्यकतानुसार नमक भी डालें। सब्जियों के गल जाने पर उन्हें उतारकर छान लें। इस सूप में नींबू तथा काली मिर्च डालकर रोगी को दें। यह सूप ज्वर के समय तथा उसके पश्चात् दिया जाता है। बच्चों एवं बूढ़ों के लिए यह उत्तम सूप है।


प्रश्न 11. रोगी के लिए खिचड़ी और सब्जियों का सूप बनाने की विधि लिखिए।


उत्तर – खिचड़ी बनाने की विधि

 खिचड़ी एक हल्का नमकीन भोजन है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन के तत्व उपस्थित रहते हैं। रोग की अवस्था में यह एक प्रमुख खाद्य है। रोगी के लिए खिचड़ी पकाने के लिए दो भाग मूंग की दाल तथा एक भाग महीन चावल लेते हैं। दाल-चावल को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। साफ करने के बाद इन्हें पानी से दो-तीन बार अच्छी तरह धो लेना चाहिए। एक भगौने में अनुमान से पानी लेकर आग पर रख दीजिए। पानी गर्म होने पर धुले हुए दाल-चावल तथा नमक (अनुमान से) डाल दीजिए। यदि आवश्यक समझे तो थोड़ी हल्दी भी डाल दीजिए। खिचड़ी को धीमी आग पर पकाना चाहिए तथा चम्मच से चलाते रहना चाहिए। जब दाल चावल पककर एक हो जाएं, तब समझ लेना चाहिए कि खिचड़ी पककर तैयार हो गई है। रोगी को खिचड़ी देते समय उसकी इच्छानुसार काली मिर्च तथा नींबू मिला सकते हैं।


[दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Question Answers ]


प्रश्न 1. स्वस्थ व्यक्ति के भोजन से आप क्या समझते हैं? सामान्य स्वस्थ व्यक्ति और रोगी के भोजन में क्या अन्तर है? रोगी को भोजन देते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?


अथवा स्वस्थ व्यक्ति और रोगी व्यक्ति के भोजन में क्या अन्तर है? 

उत्तर – स्वस्थ व्यक्ति एवं रोगी के भोजन में अन्तर स्वस्थ व्यक्ति को सामान्य, पौष्टिक तथा सन्तुलित आहार ग्रहण करना चाहिए, परन्तु यदि व्यक्ति किसी साधारण अथवा गम्भीर रोग से पीड़ित है, तो रोग की प्रकृति के अनुसार रोगी के आहार में आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए। इस प्रकार के आहार को आहार एवं पोषण विज्ञान की भाषा में 'उपचारार्थ आहार' कहते हैं। कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो किसी पोषक तत्त्व की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं, जबकि कुछ रोग पाचन तन्त्र अथवा उत्सर्जन तन्त्र की अव्यवस्था के कारण उत्पन्न होते है। अतः रोग की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए उपचारार्थ आहार के तत्त्वों के अनुपात एवं मात्रा आदि का निर्धारण किया जाता है। आहार के निर्धारण में यह ध्यान रखा जाता है कि रोगी को जिन पोषक तत्त्वों की आवश्यकता हो, उन सभी तत्त्वों का आहार में समुचित मात्रा में समावेश होना चाहिए। रोग की अवस्था में रोगी को दो प्रकार का आहार देना चाहिए-तरल आहार एवं अर्द्ध-तरल आहार।


रोगी को भोजन कराना


रोग की अवस्था में व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसकी शारीरिक गतिविधियों कम हो जाती है। इससे व्यक्ति की भूख व पाचन क्रिया भी प्रभावित होती है। इससे कुछ रोगी अत्यधिक कमजोर हो जाते हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए रोगी को भोजन कराते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है


1. रोग की अवस्था में रोगी के भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोगी को नियमित भोजन देना चाहिए, जिससे उसकी भूख नष्ट न हो।


 2. रोगी को भोजन डॉक्टर की सलाह से उचित रूप में तथा समयानुसार देना चाहिए।


3. रात्रि की अपेक्षा दिन में भोजन देना अधिक उचित है।


4. सोते हुए रोगी को जगाकर भोजन नहीं देना चाहिए। 


5. रोगी के पास भोजन लाने से पूर्व उसे और उसके आस-पास के स्थान को भोजन हेतु पूरी तरह तैयार कर लेना चाहिए; 

जैसे- (i) रोगी के मुँह हाथ को स्पंज कर देना चाहिए।

(ii) रोगी के आस-पास का स्थान पूर्णतः स्वच्छ कर लेना चाहिए। 

(iii) बिस्तर तथा वस्त्रों की रक्षा के लिए तौलिए का प्रयोग करना चाहिए।

 (iv) यदि डॉक्टर ने उठने से मना किया है, तो तकिए के सहारे उसे पलंग पर ही बैठा देना चाहिए।


6. भोजन अपेक्षित ठण्डा या गर्म होना चाहिए।


7. भोजन लाने में स्वच्छता एवं आकर्षण हो, जिससे भोजन के प्रति रोगी की रुचि बढ़े। भोजन कराने में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।


8. रोगी के भोजन करने के पश्चात् जूठे बर्तन तुरन्त हटा देने चाहिए।


 9. उठने में असमर्थ रोगी को केवल तरल पदार्थ ही भोजन के रूप में दिए जाने चाहिए। रोगी को भोजन कराते समय प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। भोजन की प्यालियाँ, कटोरियाँ तथा प्लेट अधिक भरी नहीं होनी चाहिए।


प्रश्न 2. अर्द्ध तरल आहार क्या है? इसकी आवश्यकता कब पड़ती है? किसी एक के बनाने की विधि लिखिए।


उत्तरअर्द्ध तरल आहार

अर्द्ध तरल आहार या नरम आहार उस सुपाच्य आहार को कहते हैं, जिसमें खाद्य सामग्री पूर्ण रूप से द्रव या तरल अवस्था में नहीं होती। इसमें कुछ नरम ठोस खाद्य सामग्री उपस्थित होती है। नरम आहार में मिर्च-मसालों व रेशेदार खाद्य सामग्री का बहुत कम प्रयोग किया जाता है।


कुछ रोग; जैसे-आमाश्य का आँत्रिक विकार, शरीर में हुए तीव्र संक्रमण तथा शल्य क्रिया के उपरान्त व्यक्ति को सामान्य आहार नहीं दिया जाता है, क्योंकि वह उसे पचा पाने में असमर्थ होता है। ऐसी अवस्था में चिकित्सक रोगी को नरम आहार (Soft diet) लेने की सलाह देते हैं। गले हुए चावल, फल व उनका रस, दलिया, खिचड़ी आदि नरम आहार के उदाहरण हैं।


साबूदाना साबूदाना हल्का व शीघ्र पचने वाला भोज्य पदार्थ है, जो कई प्रकार से बनाकर रोगी को दिया जा सकता है। इसे सामान्यतः दूध या पानी में पकाया जाता है। इसे निम्न दो विधि से बनाया जा सकता है


1. मीठा साबूदाना मीठा सामूदाना बनाने के लिए साबूदाना, दूध तथा चीनी की आवश्यकता होती है। सबसे पहले साबूदाने को धोकर पानी में भिगो दिया जाता है। फिर दूध को उबालकर उसमें साबूदाना डालकर पकने के लिए रख दिया जाता है। जब साबूदाना गल जाए, तो उसे नीचे उतारकर उसमें चीनी डालकर ठण्डा होने पर रोगी को परोसना चाहिए।


2. नमकीन साबूदाना नमकीन साबूदाना बनाने के लिए साबूदाना, नमक, काली मिर्च तथा पानी की आवश्यकता होती है। साबूदाने को धोकर पानी में पकाया जाता है। जब साबूदाना गल जाए, तब उसमें नमक, काली मिर्च आदि डालकर रोगी को परोसना चाहिए।


प्रश्न 3. सब्जियों का सूप, टमाटर का सूप, दाल का सूप बनाने की विधि लिखिए।

उत्तर – सूप एक प्रकार का खाद्य पदार्थ है, जो सब्जियों, दालों तथा माँस को अन्य पदार्थ में मिलाकर बनाया जाता है।

यह रोगी को दिया जाने वाला प्रमुख तरल आहार है। भोजन में सब्जियों का अधिक महत्त्व होता है। सब्जियों में विशेषकर हरी सब्जियों में विटामिन एवं खनिज लवणों की अधिकता होती है तथा ये इनकी प्राप्ति के उत्तम स्रोत हैं। सब्जियों को पकाकर तथा इनका सूप बनाकर उपयोग में लाया जाता है।


सब्जी का सूप सब्जियाँ; जैसे-पालक, गाजर, परमल, लौकी आदि को बराबर मात्रा में लेकर उन्हें धोकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। एक भगौने में पानी लेकर सभी सब्जियों को उसमें उबालें। आवश्यकतानुसार नमक भी डालें।

सब्जियों के गल जाने पर उन्हें उतारकर छान लें। इस सूप में नींबू तथा काली मिर्च डालकर रोगी को दें। यह सूप ज्वर के समय तथा उसके पश्चात् दिया जाता है। बच्चों एवं बूढ़ों के लिए यह उत्तम सूप है।


टमाटर का सूप टमाटरों को साफ पानी में धो लेते हैं। इसके बाद चीनी मिट्टी अथवा कलई के बर्तन में टमाटरों को उबालने के बाद चम्मच से मिला देते हैं। अन्त में पानी को साफ कपड़े में छान लिया जाता है।

सूप में रोगी की इच्छानुसार नमक, काली मिर्च एवं थोड़ी चीनी मिलाई जा सकती है।


दाल का सूप दाल का सूप बनाने के लिए दाल (मूंग या मसूर की दाल) को धोकर पानी में थोड़ा नमक डालकर आग पर पकाते हैं। दाल गलने पर इसके दाने फट जाते हैं, तत्पश्चात् इसे गैस से उतारकर छान लिया जाता है। इस पानी में नींबू, काली मिर्च आदि डालकर रोगी को दिया जाता है।



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