महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय banbhatt ka jivan parichay
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महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय
महाकवि बाणभट्ट संस्कृत वाङ्मय में गद्यकाव्य के महान् आचार्य हैं। वह गद्य-शैली के प्रवीण रचयिता एवं उसकी परिष्कृत परम्परा के जनक भी हैं।महाकवि के जीवन काल के विषय में अधिक विवाद नहीं हैं। उन्होंने 'हर्षचरित' में अपने जीवन तथा वंश परम्परा आदि के विषय में संकेत किया है। बाणभट्ट के पूर्वज शोण (सोन) नदी के तट पर रहते थे। बाणभट्ट के पिता का नाम चित्रभानु तथा माता का नाम राजदेवी था। अल्पायु में ही बाण के माता-पिता उन्हें अनाथ छोड़कर इस संसार से चल बसे। बाण देशाटन करते हुए गुरुकुलों तथा राजदरबारों में तथा विद्वानों के सान्निध्य में भी रहे।
बाणभट्ट की विद्वत्ता से प्रभावित होकर सम्राट श्रीहर्ष ने बाण को आश्रय प्रदान किया। वे हर्ष की सभा में पण्डित के पद पर सुशोभित हुए। इसी आधार पर इनके समय निर्धारण में किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं है। हर्ष का राज्याभिषेक 606 ई. में तथा मृत्यु 648 ई. में हुई थी। ह्वेनसांग (चीनी यात्री) हर्ष के समय भारत आया था तथा इसने 629 से 645 ई. तक भारत भ्रमण किया। इसी आधार पर बाणभट्ट का समय 7वीं शताब्दी ई. का पूर्वार्द्ध माना जाता है।
बाणभट्ट की रचनाएँ
मुख्य रूप से बाणभट्ट के दो ग्रन्थ ही उपलब्ध हैं
1. हर्षचरित
2. कादम्बरी
इनके नाम से तीन और ग्रन्थ माने जाते हैं.
1. चण्डीशतक
2. मुकुटताडितक
3. पार्वती परिणय
परन्तु इन तीनों रचनाओं की प्रामाणिकता सन्दिग्ध है।
बाणभट्ट की भाषा-शैली
बाणभट्ट के काव्य में चरित्र-चित्रण की अद्भुत कला है। साथ ही उन्होंने प्रकृति के दृश्यों और उसके स्वरूपों को हृदयंगम कराने के लिए नाना अलंकारों की सहायता ली है। उपमा, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास आदि का प्रयोग कर पाठकों के सामने अपने वर्ण्य विषय की मंजुल अभिव्यंजना की है। कवि ने अपने काव्यों में कहीं-कहीं श्लेष, रूपक तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है। महाकवि की इस भाषा-शैली तथा वर्णन की मधुरता एवं व्यापकता के कारण ही 'बाणोच्छिष्टं जगतसर्वम्' उक्ति के द्वारा सम्पूर्ण काव्यजगत को बाण का उच्छिष्ट कह दिया जाता है। बाणभट्ट रससिद्ध कवि हैं ये किसी भी रस का मार्मिक प्रयोग कर रसास्वादन करने में सिद्धहस्त हैं।
चन्द्रापीडकथा के पात्रों का चरित्र चित्रण
1. कादम्बरी – कादम्बरी बाणभट्ट कृत 'कादम्बरी' की प्रमुख स्त्री पात्र है, वह गन्धव के राजा चित्ररथ की एकमात्र पुत्री है। वह चन्द्रापीड की प्रेमिका, महाश्वेता की सखी और सम्पूर्ण कलाओं में दक्ष है। कादम्बरी के नाम पर ही रचना का नामकरण होने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि कादम्बरी इस रचना की मुख्य पात्र है। महाश्वेता के मुख से ही हमें उसका परिचय मिलता है।
वह चन्द्रापीड को पहली बार देखते ही उस पर अनुरक्त (आसक्त) हो जाती है और सदैव उनके पास रहना चाहती है। एकान्त में चन्द्रापीड के बारे में सोचना और पत्रलेखा के द्वारा चन्द्रापीड को सन्देश भेजना इसके प्रमाण हैं। पत्रलेखा चन्द्रापीड से कादम्बरी की मनोभावना का वर्णन करती हुई कहती है- "वह चन्द्रापीड के मरने पर उसके साथ सती होना चाहती है, किन्तु आकाशवाणी के द्वारा पुनर्मिलन का सन्देश दिए जाने पर यह सब कुछ छोड़कर 'अच्छोद सरोवर' के किनारे ही उसके मृत शरीर की रक्षा और सेवा करती हुई एक तपस्विनी का जीवन व्यतीत करने लगती है।"
कादम्बरी अत्यन्त लज्जाशील और संकोची स्वभाव की है। इसी कारण महाश्वेता के बार-बार आग्रह करने पर भी वह चन्द्रापीड को अपने हाथ से पान देने में संकोच करती है और महाश्वेता के मुख से अपनी दृष्टि हटाए बिना ही उसे पान देती है। इस कारण ही विभिन्न प्रकार से चन्द्रापीड के द्वारा पूछे जाने पर भी स्पष्ट रूप से अपने प्रेम को प्रकट नहीं करती। वह महाश्वेता की प्रिय सखी है। वह महाश्वेता से प्रेम करती है और महाश्वेता उससे प्रेम करती है। वह संगीत, चित्रकारी, शृंगार आदि सम्पूर्ण कलाओं में दक्ष है, इस प्रकार कादम्बरी के चरित्र में अनेक विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।
2. चन्द्रापीड –'कादम्बरी' महाकवि बाण की श्रेष्ठ गद्य-काव्यात्मक रचना है। चन्द्रापीड इस गद्य-काव्य का मुख्य नायक है।
चन्द्रापीड सुन्दर राजकुमार है। जब उसमें यौवन आता है, तब उसका अंग-प्रत्यंग निखर उठता है। शिक्षा प्राप्त कर जब वह घर आता है, तब नवयौवन उसके सौन्दर्य में वृद्धि कर देता है। चन्द्रापीड अत्यन्त तीव्र बुद्धि है। विद्या-मन्दिर में वह आचार्यों द्वारा पढ़ाई गई सम्पूर्ण विद्याओं को बहुत थोड़े समय में ग्रहण कर लेता है। वह सभी शास्त्रों, शस्त्रविद्या, घोड़े और हाथी पर सवारी, पक्षियों की भाषा का ज्ञान आदि सभी में वह पारंगत हो जाता है।
चन्द्रापीड महान् वीर तथा पराक्रमी भी है। वह युवराज बनकर दिग्विजय करने के लिए चलता है, तो चारों दिशाओं को जीतकर सबको अपने अधीन कर लेता है। चन्द्रापीड़ सच्चा मित्र है। वह अपने मित्र वैशम्पायन के बिना नहीं रह सकता। चाहे विद्यालय में पढ़ने जाए अथवा दिग्विजय के लिए प्रस्थान करे, वैशम्पायन उसके साथ रहता है। उसका विश्वास है कि मित्र ही कठिनाई के समय सहायता करता है। चन्द्रापीड को जब यह पता चलता है कि महाश्वेता के शाप से वैशम्पायन मर गया है, तब अपने मित्र के शोक से व्याकुल होकर चन्द्रापीड अपने प्राण त्याग देता है।
चन्द्रापीड, कादम्बरी से प्रेम करता है। कादम्बरी के प्रथम दर्शन से ही वह उससे प्रेम करने लगता है। उसका प्रेम निःस्वार्थ और वासनारहित है। कादम्बरी से मिलन के लिए वह व्याकुल होता है। उज्जयिनी से वर्षा आँधी में चलकर भी वह कादम्बरी के पास पहुँचने का प्रयास करता है। कादम्बरी की प्रत्येक इच्छा को वह पूर्ण करना चाहता है। उसके प्रेम में कहीं भी स्वार्थ अथवा वासना की गन्ध नहीं है। चन्द्रापीड यद्यपि राजा तारापीड का पुत्र अर्थात् लौकिक मनुष्य है, परन्तु वास्तव में वह लोकपाल चन्द्रमा है। शाप के कारण वह पहले चन्द्रापीड के रूप में और फिर राजा शूद्रक के रूप में जन्म लेता है। शापमुक्त होकर वह फिर चन्द्रलोक, हेमकूट और उज्जयिनी पर शासन करता है। चन्द्रापीड चन्द्रमा का अवतार है। वह वीर, बुद्धिमान तथा गुणवान राजकुमार के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुआ है।
3. पुण्डरीक – पुण्डरीक महाकवि बाणभट्ट कृत कादम्बरी का महत्त्वपूर्ण पात्र है। महामुनि श्वेतकेतु से आकृष्ट लक्ष्मी के मानसपुत्र का नाम पुण्डरीक है। तीनों लोकों में श्वेतकेतु का रूप सर्वाधिक सुन्दर है। अतः पुत्र पुण्डरीक भी अत्यन्त सुन्दर युवक है। लक्ष्मी का पुत्र होने से उसमें नैसर्गिक चंचलता भी है। इसलिए महाश्वेता के आकृष्ट होते ही वह अपनी मानसिक दुर्बलता के कारण उस पर आसक्त हो जाता है। महाश्वेता के पुष्पमंजरी विषयक कौतूहल (किसी नए विषय को जानने की इच्छा) को देखकर वह उसके पास चला आता है।
महाश्वेता के गालों के स्पर्शसुख से उसकी अँगुलियाँ काँप जाती हैं और रूद्राक्षमाला उसके हाथ से गिर जाती है। महाश्वेता के प्रेमपाश में आबद्ध हो जाने से कपिंजल उसकी भर्त्सना करता है, तो वह असत्य भी बोल जाता है और कहता है कि वह कामवश नहीं है। बनावटी क्रोध से वह महाश्वेता को प्रेम-फटकार भी सुनाता है, किन्तु अवसर मिलते ही छिपकर तरलिका के पास पहुँच जाता है और महाश्वेता के बारे में सारी बातें पूछता है। वह प्रेमपत्र भी तरलिका के माध्यम से महाश्वेता के पास पहुँचा देता है। पुण्डरीक की धार्मिकता, विद्वता, तपस्विता एवं मित्रता आदि का मूल्यांकन कपिंजल के शब्दों में किया जा सकता है और यह कहा जा सकता है कि पुण्डरीक के अन्दर अनेक विशेषताएँ हैं।
4. महाश्वेता – महाश्वेता अत्यन्त सौन्दर्य से युक्त, श्वेतवर्णा, गन्धर्वराज हंस की आत्मजा सरल स्वभाव, उदारहृदया, अतिथि सेवा परायण, बुद्धिमती तथा तर्कशील आदि स्वभावगत विशेषताओं से युक्त है। महाश्वेता दृढ़ संकल्प वाली, पतिव्रता है, जो मानसिक रूप से पुण्डरीक को अपना पति मान चुकी है। महाश्वेता व्यवहारकुशल, कोमल हृदय से युक्त कठोर तपोव्रत को धारण करने वाली प्रेम, त्याग, करुणा, सहानुभूति, निष्कपटता आदि अनेक मानवीय गुणों से युक्त एक आदर्श नारी है।
5. पत्रलेखा – कुलूत देश के राजा की पुत्री जिसे कुलूत देश को जीतने के पश्चात् राजा अपने साथ ले आए तथा रनिवास में विशिष्ट सेविका के रूप में नियुक्त किया। उज्जयिनी के राजा तारापीड की पत्नी विलासवती द्वारा पत्र लेखा को पाला गया था। वह स्वस्थ, सौन्दर्य से युक्त, आकर्षक व्यक्तित्व वाली, योग्य सेविका व कर्त्तव्यपरायणा थी, जो हर समय अपने कर्तव्य के प्रति तत्पर तथा सजग रहती है। वह चन्द्रापीड की सेविका, सलाहकार तथा सखी भी है।
6. शुकनास – उज्जयिनी के राजा तारापीड का प्रधानमन्त्री शुकनास तीक्ष्णबुद्धि वाला, कर्त्तव्यनिष्ठ, निडर, विवेकशील, दूरदर्शी आदि गुणों से युक्त है। वह युवराज चन्द्रापीड को अनेक प्रकार के उपदेश देकर राजा का कर्तव्य सिखाता है। वह राज्य और राजा के प्रति एकनिष्ठ समर्पित है। प्रधानमन्त्री शुकनास राजा तारापीड का विश्वासपात्र मन्त्री है। राजा तारापीड राज्यभार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी शुकनास पर डालकर निश्चिन्त हो जाते हैं। प्रधानमन्त्री शुकनास दूरदर्शिता से युक्त, अनुभवी, धैर्यवान और निष्ठावान मन्त्री है।
7. शूद्रक – महाकवि बाणभट्ट की कादम्बरी कथा का सम्बन्ध दो जन्मों की कथा से है। राजा शुद्रक पूर्व जन्म में युवराज चन्द्रापीड था तथा चन्द्रापीड पूर्व जन्म में चन्द्रमा था। शूद्रक किसी अभिशाप के कारण पृथ्वी पर दो बार जन्म लेता है, पहला चन्द्रापीड के रूप में दूसरा शूद्रक के रूप में। राजा शूद्रक शारीरिक दृष्टि से अत्यन्त आकर्षक दिखाई देते हैं। इनके चरित्र की बहुत सी विशेषताएँ हैं। सेविकाओं द्वारा घिरे रहने पर भी ये परमसंयमी, जितेन्द्रिय, शास्त्रों में पारंगत, गुणों को ग्रहण करने वाले, धर्मनिष्ठ ईश्वर की उपासना करने वाले, विनयशील, पराक्रमी गुणों व सौन्दर्य की प्रशंसा करने वाले इस प्रकार की अनेक विशेषताओं से युक्त हैं।
8. चाण्डाल कन्या – अत्यधिक सौन्दर्य से युक्त जिसे देखकर राजा शूद्रक जैसा पराक्रमी योद्धा भी आश्चर्यचकित रह जाता है। रूपवती व चतुर चाण्डाल कन्या विवेकशील भी है। उसका हृदय, प्रेम और वात्सल्य से परिपूर्ण है। पिंजड़े में बन्द तोते से भी यह पुत्र के समान व्यवहार करती है। चाण्डाल कुलोत्पन्न होकर भी पवित्र आचरण वाली है।
वास्तविक रूप में चाण्डाल कन्या पुण्डरीक की माता व श्वेतकेतु की पत्नी है, जो शापग्रस्त होने के कारण चाण्डाल कुल में जन्म लेती है।
9. वैशम्पायन शुक – शुक अपने पूर्वजन्मों में श्वेतकेतु का पुत्र पुण्डरीक तथा मन्त्री शुकनास का पुत्र वैशम्पायन था। चन्द्रमा के शाप के फलस्वरूप यह शुकनास के यहाँ जन्म लेता है और महाश्वेता के शाप देने पर तोता बन जाता है। यह शास्त्र ज्ञान तथा पुराणों, राजनीति, इतिहास और सभी विधाओं में निपुण है। शुक मनुष्य की वाणी में बोलता है। यह पूर्वजन्म के विषय में जानने वाला है। यह महाश्वेता से अगाध प्रेम करता है। इस कारण यह महाश्वेता से मिलने के लिए उड़ जाता है।
10. केयूरक कादम्बरी – केयूरक कादम्बरी का सेवक है तथा सदैव कादम्बरी की सेवा में उपस्थित रहता है। वह कादम्बरी के संदेशवाहक केरूप में भी कार्य करता है। वह एक कर्तव्यपरायण स्वामिभक्त, सेवाभावी एवं चतुर सेवक के रूप में कादम्बरी की मनोव्यथा को जानने वाला एवं किसी भी स्थिति में कठिनतर कार्यों को भी सम्पादित करने वाला है।
गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. चन्द्रापीडस्य पिता कः आसीत्?
उत्तर – चन्द्रापीडस्य पिता तारापीडः आसीत् ।
प्रश्न 2. कादम्बरी समुत्थाय कां स्नेहनिर्भरं कण्ठे जग्राह?
उत्तर – कादम्बरी समुत्थाय महाश्वेतां स्नेहनिर्भरं कण्ठे जग्राह ।
प्रश्न 3. कादम्बरी कं प्रणामम् अकरोत् ?
उत्तर – कादम्बरी चन्द्रापीडम् प्रणामम् अकरोत्।
प्रश्न 4. महाश्वेता काम् अनामयं पप्रच्छ?
उत्तर – कादम्बरीम् अनामयं पप्रच्छ ।
प्रश्न 5. कादम्बरी किमर्थं लज्जमानाः भवति?
उत्तर – कृतापराधेव कादम्बरी लज्जमानाः भवति ।
प्रश्न 6. कादम्बरी ताम्बूलं कस्मै प्रायच्छति?
उत्तर – कादम्बरी, चन्द्रापीडाय ताम्बूलं प्रायच्छति ।
प्रश्न 7. महाश्वेता काम् अभाषत् ?
उत्तर – महाश्वेता ताम्बूलदानोद्यतां कादम्बरीम् अभाषत्।
प्रश्न 8. 'अस्मै' में कौन-सी विभक्ति है?
उत्तर – 'अस्मै' में चतुर्थी विभक्ति, एकवचन है।
प्रश्न 9. "सखि, लज्जेऽहम् अनुपजातपरिचया प्रागल्भ्येनानेन" पंक्ति का अनुवाद लिखिए।
उत्तर – 'हे सखी! परिचय प्राप्त नहीं होने के कारण मुझे उनसे वार्तालाप करने में लज्जा आ रही है।'
प्रश्न 10. 'वेपमानाङ्गयष्टि' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'वेपमानङ्गयष्टि' का शाब्दिक अर्थ है- 'काँपते हुए शरीर से।'
प्रश्न 11. का प्रासादम् आरुरोह?
उत्तर – गन्धर्वराजपुत्री प्रासादम् आरुरोह।
प्रश्न 12. शयनीये निपत्य का एकाकिनी चिन्तयामास?
उत्तर – शयनीये निपत्य कादम्बरी एकाकिनी चिन्तयामास ।
प्रश्न 13. का गुरुजनात् न त्रस्तं?
उत्तर – कादम्बरी गुरुजनात् न त्रस्तं ।
प्रश्न 14. 'अम्बा' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'अम्बा' का शाब्दिक अर्थ है- 'माता।'
प्रश्न 15. चन्द्रापीडः कुत्र प्राविशत् ?
उत्तर – चन्द्रापीडः मणिगृहे प्राविशत्।
प्रश्न 16. दोलायमानेन चेतसा कः चिन्तां विवेश?
उत्तर – दोलायमानेन चेतसा चन्द्रापीडः चिन्तां विवेश।
प्रश्न 17. अनाराधित प्रसन्नेन मकरकेतुना मयि नियुक्तताः इति कः चिन्तयति ?
उत्तर – अनाराधित प्रसन्नेन मकरकेतुना मयि नियुक्ताः इति चन्द्रापीडः चिन्तयति।
प्रश्न 18. 'उभयतः' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'उभयतः' का शाब्दिक अर्थ है- 'दोनों ओर'।
प्रश्न 19. शिलापट्टकस्योपरि कः अधिशिश्ये?
उत्तर – शिलापट्टकस्योपरि चन्द्रापीडः अधिशिश्ये।
प्रश्न 20. कादम्बरी कया सह आगतवती?
उत्तर – कादम्बरी मदलेखया सह आगतवती।
प्रश्न 21. कादम्बरी केयूरकं किम् आदेशं दत्तवती?
उत्तर – कादम्बरी केयूरकं चन्द्रापीडसमीपशायिनम् आदेशं दत्तवती ।
प्रश्न 22. 'उत्थाय' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर –'उत्थाय' का शाब्दिक अर्थ है- 'उठकर'।
प्रश्न 23. 'भगवति' में कौन-सी विभक्ति एवं वचन है?
उत्तर – भगवति सप्तमी एकवचन है।
प्रश्न 24. चन्द्रापीडः कस्या तीरे शिलापटम् अधिशिष्ये?
उत्तर – चन्द्रापीड कादम्बरी परिजनो पदिष्टम् शिलापट्टम् अधिशिश्ये।
प्रश्न 25. कादम्बरी कुत्र आरुरोह।
उत्तर – कादम्बरी शयनसौधशिखरम् आरुरोह।
प्रश्न 26. चन्द्रापीडः कं विलोक्य मन्दस्मितम् अकरोत् ?
उत्तर – चन्द्रापीडः महाश्वेतायाः वदनं विलोक्य मन्दस्मितम् अकरोत् ।
प्रश्न 27. कादम्बरी गन्धर्वकुमारान् आहूय किं कथयति?
उत्तर – कादम्बरी कथयति यत् 'प्रापयत कुमारं स्वां भूमिम्।'
प्रश्न 29. कः कन्यकान्तः पुरात् निर्जगाम् ?
उत्तर – चन्द्रापीडः कन्यकान्तः पुरात् निर्जगाम्।
प्रश्न 30. 'बहुभाषिण' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'बहुभाषिण' का शाब्दिक अर्थ है-'अधिक बोलने वाले।'
प्रश्न 31. महाश्वेतायाः वदनं विलोक्य कः मन्दस्मितम् अकरोत् ?
उत्तर – चन्द्रापीडः महाश्वेतायाः वदनं विलोक्य मन्दस्मित् अकरोत्।
प्रश्न 32. अयं गद्य खण्डः कुत्रः चयनितः? पुस्तकास्य लेखकस्य च नाम लिखत ।
उत्तर – अयं गद्यखण्ड: पुस्तकं 'चन्द्रापीड कथा' लेखकस्य महाकवि बाणभट्ट ।
प्रश्न 33. 'स्वाधीनोदयं जन कुमारस्य' इति का अकथयत् ?
उत्तर – अथ कादम्बरी 'स्वाधीनोदयं जन' कुमारस्य इति कथयत्।
प्रश्न 34. विदिताभिप्राया इति पदस्य अर्थ लिखत ।
उत्तर – विदिताभिप्राय का शाब्दिक अर्थ है-अभिप्राय को मानकर।
प्रश्न 35. चन्द्रापीडः केयूरकं किं प्रपच्छ?
उत्तर – चन्द्रापीडः पृच्छति यत् कथय, केयूरक! कञ्चित् कुशलिनी ससखीजना देवी कादम्बरी, भगवती, महाश्वेता च।
प्रश्न 36. केयूरकः कं निवेदयति?
उत्तर – केयूरक: चन्द्रापीडं निवेदयति ।
प्रश्न 37. का अञ्जलिना देवम् अर्चयति?
उत्तर – कादम्बरी अञ्जलिना देवम् अर्चयति।
प्रश्न 38. 'ताम्बूल' का शाब्दिक अर्थ लिखिए ।
उत्तर – 'ताम्बूल' का शाब्दिक अर्थ है-'पान'
प्रश्न 39. केयूरकेन सह चन्द्रापीडः कुत्र प्रविवेश?
उत्तर – केयूरकेन सह चन्द्रापीडः मन्दुराम् प्रविवेश ।
प्रश्न 40. आसीद्वा कच्चित् अस्मदाश्रयिणी कथा? इति कः केन पृच्छति?
उत्तर – इति चन्द्रापीडः, केयूरकेण पृच्छति।
प्रश्न 41. 'विलिप्य' का शाब्दिक अर्थ लिखिए
उत्तर – 'विलिप्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'लेप करके।'
प्रश्न 42. कः मन्दुरां प्रविवेश?
उत्तर – केयूरकेन सहं चन्द्रापीड़: मन्दुरां प्रविवेश।
प्रश्न 43. गन्धर्व राजपुत्री कः आसीत्?
उत्तर – गन्धर्व राजपुत्री 'कादम्बरी' आसीत्।
प्रश्न 44. 'कृत्वा' पद में कौन-सा प्रत्यय है?
उत्तर – कृत्वा पद में क्त्वा प्रत्यय है कृ + क्त्वा
प्रश्न 45. कादम्बरी भवनद्वारं कः आगच्छति?
उत्तर – चन्द्रापीडः कादम्बरी भवनद्वारं आगच्छति।
प्रश्न 46. "क्व देवी कादम्बरी तिष्ठति ? इति कः पृच्छति?
उत्तर – इति चन्द्रापीडः पृच्छति।
प्रश्न 47. हिमगृहस्य मध्यभागम् कः आससाद।
उत्तर – हिमगृहस्य मध्यभागम् चन्द्रापीडः आससाद ।
प्रश्न 48. 'अवतीर्य' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'अवतीर्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'उतरकर ।'
प्रश्न 49. ताम्बूलकरङ्कवाहिनी का आसीत्?
उत्तर – ताम्बूलकरङ्कवाहिनी पत्रलेखा आसीत्।
प्रश्न 50. "अहो मानुषीषु पक्षपातः प्रजापतेः" इति का चिन्तितवती?
उत्तर – इति कादम्बरी चिन्तितवती।
प्रश्न 51. पत्रलेखां कः अदर्शयत् ?
उत्तर – पत्रलेखां केयूरक: अदर्शयत्।
प्रश्न 52. 'करतलेन' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर –'करतलेन' का शाब्दिक अर्थ है- 'हाथ से।'
प्रश्न 53. चन्द्रापीडः किं कथयति?
उत्तर – चन्द्रापीडः कथयति यत् धन्या पत्रलेखा, यामेवम् अनुगृह्णाति ।
प्रश्न 54. चन्द्रापीडः पितुः समीपात् आगतं कम् अद्राक्षीत् ?.
उत्तर – चन्द्रापीडः पितुः समीपात् आगतं लेखाहारकम् अद्राक्षीत्
प्रश्न 55. का पत्रलेखाम् अनिवर्त्यमानाम् न इच्छति ।
उत्तर – कादम्बरी पत्रलेखाम् अनिवर्त्यमानाम् न इच्छति।
प्रश्न 56. 'चक्षुषा' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'चक्षुषा' का शाब्दिक अर्थ है- 'आँखों से ।
प्रश्न 57. मेघनादः कः आसीत्?
उत्तर – मेघनादः चन्द्रापीडस्य सेनापति आसीत्।
प्रश्न 58. भवतां पत्रलेखया सह आगन्तव्यम् इति कः कं प्रति कथयति ?
उत्तर – भवतां पत्रलेखया सह आगन्तव्यम् इति चन्द्रापीडः, मेघनादं प्रति कथयति ।
प्रश्न 59. कः लेखहारकम् उज्जयिनीमार्गम् पृच्छन् प्रतस्थे?
उत्तर – चन्द्रापीडः लेखाहारकम् उज्जयिनीमार्गम् पृच्छन् प्रतस्थे ।
प्रश्न 60. 'पृच्छन्' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'पृच्छन्' का शाब्दिक अर्थ है- 'पूछते हुए।'
प्रश्न 61. द्रविडेन जातिधर्मादिविषयकम् कः अपृच्छत् ?
अथवा चन्द्रापीडः द्रविड़ धार्मिक केन किं प्रपप्रच्छ?
उत्तर – द्रविड़ेन जातिधर्मादिविषयक्त चन्द्रापीडः अपृच्छत्।
प्रश्न 62. प्रदक्षिणां कृत्वा परिभ्रमन् चन्द्रापीडः कम् अपश्यत् ?
अथवा परिभ्रमन चन्द्रापीडः किम् अपश्यत् ?
उत्तर – प्रदक्षिणां कृत्वा परिभ्रमन् चन्द्रापीडः वृद्धद्रविड़धार्मिकेन अपश्यत् ।
प्रश्न 63. तुरगात् अवतीर्य चन्द्रापीडः देवी मन्दिरं प्रविश्य किम् अकरोत?
अथवा चन्द्रापीडः तुरगात् अवतीर्य भक्ति प्रवेश चेतसा का प्रणनाम्?
उत्तर – तुरगात् अवतीर्य चन्द्रापीडः देवी मन्दिरं प्रविश्य भक्ति प्रवेणेन चेतसा तां देवी प्रणनाम् अकरोत्।
प्रश्न 64. 'प्रणम्य' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'प्रणम्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'प्रणाम करके।'
प्रश्न 65. चन्द्रापीडः जरद्रविडधार्मिकं किं दत्तवान् ?
उत्तर – चन्द्रापीडः जरद्द्द्रविड़धार्मिकं धनराशि दत्तवान्।
प्रश्न 66. पौराणां नमस्काराञ्जलिसहस्त्राणि प्रतीच्छन् चन्द्रापीडः कुत्र प्रविवेश?
उत्तर – पौराणां नमस्काराञ्जलिसहस्त्राणि प्रतीच्छन् चन्द्रापीडः उज्जयिन्याम् प्रविवेश ।
प्रश्न 67. करे गृहीत्वा पित्रा चन्द्रापीडं कुत्र अनयत् ?
उत्तर – करे गृहीत्वां पित्रा चन्द्रापीडं विलासवतीभवनं अनयत्।
प्रश्न 68. विलासंवतीभवने आगत्य चन्द्रापीडः किं कृत्वान् ।
उत्तर – विलासवतीभवने आगत्य चन्द्रापीडः स्नानादिक कार्यं कृतवान्।
प्रश्न 69. 'वाजिन' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'वाजिन' का शाब्दिक अर्थ है- 'घोडे से।'
प्रश्न 70. अविदितवृत्तान्ततया भीतेव सविषादं का विज्ञापितवती?
उत्तर – अवितवृत्तान्ततया भीतेव सविषादं पत्रलेखा विज्ञापितवती।
प्रश्न 71. कस्या स्वप्नेषु कः आगत्य प्रतिदिवसम मनोहरान लेखान प्रेषयति?
उत्तर – कादम्बर्यां स्वप्नेषु चन्द्रापीडः आगत्य प्रतिदिवसम् मनोहरान् मदलेखान् प्रेषयति ।
प्रश्न 72. 'सविषादं' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर 'सविषाद' का शाब्दिक अर्थ है- 'डरते हुए।'
प्रश्न 73. "अहो सन्देहदोलाधिरूढं मे जीवितम्” इति कः चिन्तयति?
उत्तर – इति चन्द्रापीडः चिन्तयति।
प्रश्न 74. कस्य विप्रकृष्टमन्तरं ?
उत्तर – हेमकूटविन्ध्याचलयो: विप्रकृष्टमन्तरं ।
प्रश्न 75. प्रतिहार्या उपदिश्यमानमार्गः चन्द्रापीडः कुत्र आगतः ?
उत्तर – प्रतिहार्या उपदिश्यमानमार्गः चन्द्रापीडः जननीसमीपम् आगतः।
प्रश्न 76. 'दोला' का शाब्दिक अर्थ लिखिए ।
उत्तर – 'दोला' का शाब्दिक अर्थ है- 'झूला।'
प्रश्न 77. मेघनादाय का समर्पिता?
अथवा पत्रलेखा कस्मै समर्पिता?
उत्तर – मेघनादाय पत्रलेखा समर्पिता ।
प्रश्न 78. महाश्वेता पुत्रः कुत्र आगच्छत् ?
उत्तर – महाश्वेता पुनः आश्रमम् अगच्छत्।
प्रश्न 79. का उत्तरमागम् अवगुण्ठ्य अस्थात्?
उत्तर – कादम्बरी उत्तमांङ्गम् अवगुण्ठ्य अस्थात्।
प्रश्न 80. 'झटितीं' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'झटितीं' का शाब्दिक अर्थ है- 'शीर्घ ही।
प्रश्न 81. 'मया' किस शब्द का रूप है?
उत्तर – मया अस्मद् शब्द रूप का तृतीय का एकवचन है।
प्रश्न 82. करसहस्त्रम् कः संजहार ?
उत्तर – करसहस्त्रम् तिग्मदीधिति संजहार ।
प्रश्न 83. "उदयगिरिशिखरम् आरूढ़े भगवति चन्द्रमसि, गमनम् आत्मनः समुद्दिश्य" इति कः चिन्तयति?
उत्तर – इति चन्द्रापीडः चिन्तयति।
प्रश्न 84. "वैशम्पायनोऽपि असंनिहितः पार्श्वे" इति कः कथयति?
उत्तर – इति चन्द्रापीडः कथयति ।
प्रश्न 85. कम् उद्दिश्च चन्द्रापीडः चिन्तयामास?
उत्तर – गगनम् आत्मनः समुद्दिश्च चन्द्रापीडः चिन्तयामास यत् "तातेन खलु स्वभुजात् अवरोप्य मरयेव राज्यभारः समारोपितः।” तम् अनाख्याय पदमपि निर्गन्तुं न शक्यते ।
प्रश्न 86. 'अवरोप्य' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'अवरोप्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'उतारकर ।'
प्रश्न 87. तातेन में कौन-सी विभक्ति है?
उत्तर – तृतीया विभक्ति एकवचन।
प्रश्न 88. पत्रलेखाम् कः आह्वयत् ?
उत्तर – पत्रलेखाम् चन्द्रापीडः आह्वयत् ।
प्रश्न 89. पत्रलेखाम् कः व्यसर्जयत् ?
उत्तर – पत्रलेखाम् चन्द्रापीडः व्यसर्जयत्।
प्रश्न 90. "मम जीवितमपि तवैव हस्ते वर्तते । इति कः कथयति?
उत्तर – 'मम जीवितमपि तवैव हस्ते वर्तते' इति चन्द्रापीडः कथयति ।
प्रश्न 91. अस्य गद्यांशस्य प्रणेता कः ?
उत्तर – अस्य गद्यांशस्य प्रणेता महाकवि बाणभट्टः ।
प्रश्न 92. चन्द्रापीडः पत्रलेखाम् आहूय किम् अकथयत् ?
उत्तर – चन्द्रापीडः पत्रलेखाम् आहूय कथयति यत्-पत्रलेखे त्वयपि यान्त्या अध्वनि न विरहपीड़ा भावनीया । न शरीर संस्कारे अनादरः करणीयः । न आहारवेला अतिक्रमणीया । न येन केनचित् अज्ञातेन पथा यात्वयम्। मम जीवितमपि तवैव हस्ते वर्तते। तत् नियतं त्वया आत्मा यत्नेन परिरक्षणीयः ।
प्रश्न 93. चन्द्रापीडः केयूरकं किम् आदिश्य व्यसर्जयत?
उत्तर – चन्द्रापीडः केयूरकं अदिश्चति यत् महाश्वेताश्रमं यावत् त्वयैव सहानया मन्नयनाय आगन्तव्यम।
प्रश्न 94. 'अध्वनिं' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'अध्वनिं' का शाब्दिक अर्थ है- मार्ग में।
प्रश्न 95. निर्गतायां केयूरकेण सह कः अगच्छत्?
उत्तर – निर्गतायां केयूरकेण सह पत्रलेखा अगच्छत्।
प्रश्न 96. कः पितुः पादमूलं गच्छति?
उत्तर – चन्द्रापीडः पितुः पादमूलं गच्छति।
प्रश्न 97. अपररात्रवेलया कति योजनम् अलङ्घयत् ?
उत्तर – अपररात्रवेलया योजनत्रितयम् अलङ्घयत्।
प्रश्न 98. 'उत्तीर्य' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'उत्तीर्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'पार करके।'
प्रश्न 99. सर्वे जनाः किं बभूव ?
उत्तर – सर्वे जनाः जातचिन्तांः बभूव।
प्रश्न 100. का प्रयाणाभिमुखः आस्ते?
उत्तर – सकलः स्कन्धावरः प्रयाणाभिमुखः आस्ते ।
प्रश्न 101. लतामण्डपं कः पश्यति?
उत्तर – वैशम्पायनः लतामण्डपं पश्यति।
प्रश्न 102. 'आदाय' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'आदाय' का शाब्दिक अर्थ है- 'लेकर।'
प्रश्न 103. वारं वारं कस्मै प्रबोध्यति?
उत्तर – वैशम्पायनाय वारंवारं प्रबोध्यति।
प्रश्न 104. कस्य प्रभुत्वम् विगलितं?
उत्तर – वैशम्पायनस्य प्रभुत्वम् विगलितम्
प्रश्न 105. 'प्रबोधयन्ति' का शाब्दिक अर्थ लिखिए। उत्तर – 'प्रबोधयन्ति' का शाब्दिक अर्थ है- 'समझा रहे हैं।'
प्रश्न 106. दिवा रात्रौ च कः अवहत् ?
उत्तर – दिवा रात्रौ च चन्द्रापीडः अवहत्।
प्रश्न 107. अर्धपथे किं बभूव?
उत्तर – अर्धपथे वर्षाकालः बभूव।
प्रश्न 108. वाजिसैन्येन अनुगम्यमानः चन्द्रापीडः कुत्र आससाद?
उत्तर – वाजिसैन्येन अनुगम्यमानः चन्द्रापीडः अच्छोदम् अससाद।
प्रश्न 109. चन्द्रापीडः कुत्र उपजगाम?
उत्तर – चन्द्रापीडः आश्रमम् उपजगाम।'
प्रश्न 110. 'उपजगाम' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'उपजगाम' का शाब्दिक अर्थ है- 'चला गया।'
प्रश्न 111. गुहाद्वारे प्रविश्य चन्द्रापीडः कां पश्यति?
उत्तर – गुहाद्वारे प्रविश्य चन्द्रापीडः महाश्वेतां पश्यति ।
प्रश्न 112. तरलिकां महाश्वेता विषये प्रश्नं कः पृच्छति?
उत्तर – तरलिकां महाश्वेता विषये प्रश्नं चन्द्रापीडः पृच्छति।
प्रश्न 113. चन्द्रापीडस्य प्रश्नोत्तरम् का ददाति?
उत्तर – चन्द्रापीडस्य प्रश्नोत्तरम् महाश्वेता ददाति।
प्रश्न 114. ब्राह्मणयुवानम् का अपश्यत् ?
उत्तर – ब्राह्मणयुवानम् महाश्वेता अपश्यत्।
प्रश्न 115. 'अधोमुखीम्' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'अधोमुखीम' का शाब्दिक अर्थ है- 'नीचे मुख करके।'
प्रश्न 116. चन्द्रापीडस्य हृदयं कीदृशयम् जातम्?
उत्तर – चन्द्रापीडस्य हृदयं अस्फुटं जातम्।
प्रश्न 117. तरलिका कस्य शरीरम् अगृह्णात् ?
उत्तर – तरलिका चन्द्रापीडस्य शरीरम् अगृह्णात् ।
प्रश्न 118. सर्वे किं कुर्वन्ति ?
उत्तर – सर्वे करुणं विलापम् कुर्वन्ति ।
प्रश्न 119. 'उत्सृज्य' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'उत्सृज्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'छोड़कर।'
प्रश्न 120. पत्रलेखा कादम्बरीम् कस्यागमनं निवेदयति ?
उत्तर – पत्रलेखा कादम्बरीम् चन्द्रापीडस्य आगमनं निवेदयति ।
प्रश्न 121. का अधोमुखी धरातलम् उपयान्ती?
उत्तर – कादम्बरी अधोमुखी धरालतम् उपयान्ती ।
प्रश्न 122. कादम्बरी कस्यां कण्ठे गृहीत्वा अवादीत् ?
उत्तर – कादम्बरी, महाश्वेतां कण्ठे गृहीत्वा अवादीत्।
प्रश्न 123. "तवास्ति काचन प्रत्याशा" इति का कां प्रति कथयति?
उत्तर – इति कादम्बरी, महाश्वेतां प्रति कथयति ।
प्रश्न 124. “ अङ्केन” का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'अङकेन' का शाब्दिक अर्थ है- 'गोद में।'
प्रश्न 125. कस्य देहात् अव्यक्तरूपं चन्द्रधवलं ज्योतिः उज्जगाम्।
उत्तर – चन्द्रापीड देहात अव्यक्तरूपं चन्द्रधवलं ज्योति उज्जगाम्।
प्रश्न 126. 'उच्छवसत्' का शाब्दिक अर्थ लिखिए ।
उत्तर – 'उच्छवसत्' का शाब्दिक अर्थ है- 'साँस लेते हुए।'
प्रश्न 127. महेश्वेता कस्मात् उत्पन्नाः?
उत्तर – अप्सरः कुलात् लब्धजन्मनि गौर्याम् उत्पन्नाः।
प्रश्न 128. अधुना एनं वृत्तान्तम् कस्मै निवेदय?
उत्तर – अधुना एनं वृत्तान्तम् श्वेतकेतवे निवेदय ।
प्रश्न 129. अस्य गद्यांशस्य प्रणेता कः?
उत्तर – अस्य गद्यांशस्य प्रणेता महाकवि बाणभट्टः अस्ति।
प्रश्न 130. 'भर्ता' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'भर्ता' का शाब्दिक अर्थ है- 'पति' ।
प्रश्न 131. वयस्येन विना कः शोकावेगान्धः बभूवः ?
उत्तर – वयस्येन विना कपिञ्जलः शोकावेगान्धः बभूवः ।
प्रश्न 132. तुरङ्गम् एव भूत्वा कुत्र अवतर?
उत्तर – तुरङ्गम् एव भूत्वा मर्त्यलोके अवतर।
प्रश्न 133. तं कृताञ्जलिः कः अवदत् ?
उत्तर – तं कृताञ्जलिः कपिञ्जलः अवदत् ।
प्रश्न 134. 'विगतशापः' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'विगतशाप:' का शाब्दिक अर्थ है- 'शापमुक्त' ।
प्रश्न 135. तारापीडस्य तनयं कः भविता?
उत्तर – तारापीडस्य तनयं चन्द्रमा भविता ।
प्रश्न 136. मन्त्री शुकनासस्य तनयं कः भविता?
उत्तर – मन्त्री शुकनासस्य तनयं पुण्डरीकः भविता ।
प्रश्न 137. उज्जयिन्याम् राज्ञः कः आसीत्?
उत्तर – उज्जयिन्याम् राज्ञः तारापीडः आसीत्।
प्रश्न 138. 'महोदधौ' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'महोदधौ' का शाब्दिक अर्थ है- 'महासमुद्र ।'
प्रश्न 139. "लोकान्तरगतस्यापि ते अहमे व राक्षसी विनाशायोपजाता" इति का उकथयति?
उत्तर – इति महाश्वेता कथयति ।
प्रश्न 140. का तपं अंगीकृतवती?
उत्तर – महाश्वेता तपं अंगीकृतवती।
प्रश्न 141. 'अङगीकृतम्' का शाब्दिक अर्थ लिखिए। उत्तर – 'अङगीकृतम्' का शाब्दिक अर्थ है- 'स्वीकार किया।'
प्रश्न 142. कः शोकाविष्टं जाता?
उत्तर – तारापीड शोकाविष्टं जाता।
प्रश्न 143. शापवार्ताः कुत्र श्रूयन्ते?
उत्तर – अगामेषु च पुराणरामायणभारतादिषु शापवार्ताः श्रूयन्ते ।
प्रश्न 144. अगस्त्य शापात् कः अजगरतां प्राप्नोति ?
उत्तर – राजर्षि नहुष अगस्त्यशापात् अजगरतां प्राप्नोति ।
प्रश्न 145. पितृशापात् त्रिशंकोः किम् अभवत्?
उत्तर – पितृशापात् त्रिशंको: चाण्डालः अभवत्।
प्रश्न 146. 'श्रुत्वा' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'श्रुत्वा' का शाब्दिक अर्थ है- 'सुनकर।'
प्रश्न 147. स्वर्गलोकनिवासी महाभिषः भूमौ केन नाम्ना उत्पन्नः?
उत्तर – स्वर्गलोकनिवासी महाभिषः भूमौ 'शान्तनु' नाम्ना उत्पन्नः ।
प्रश्न 148. गङ्गायां कति वसूनाम् उत्पत्तिः भवति?
उत्तर – गङ्गायाम् अष्टानाम् वसूनाम् उत्पत्तिः भवति ।
प्रश्न 149. कस्य स्वप्ने पुण्डरीकस्य दर्शनम् समुपजातम् ।
उत्तर – शुकनासस्य स्वप्ने पुण्डरीकस्य दर्शनम् समुपजातम्।
प्रश्न 150. गमनसंविधानम् कः अकारयत्?
उत्तर – तारापीडः गमनसंविधानम् अकारयत्।
प्रश्न 151. 'वदने' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'वदने' का शाब्दिक अर्थ है- 'मुख में। '
प्रश्न 152. महाश्वेताश्रमम् कः अससाद?
उत्तर – तारापीडः महाश्वेताश्रमम् अससाद।
प्रश्न 153. हियां धावित्वा का गुहाश्यान्तरमविशत् ?
उत्तर – ह्रियां धावित्वा महाश्वेता गुहाभ्यान्तरमविशत् ।
प्रश्न 154. 'लज्जावनम्रमुखी" का?
उत्तर "चित्ररथतनया" (कादम्बरी) लज्जावनम्रमुखी।
प्रश्न 155. 'परित्यज्य' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'परित्यज्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'त्यागकर ।'
प्रश्न 156. स्मितं कृत्वा सर्वान् कः अवादीत्?
उत्तर – स्मितं कृत्वा सर्वान् भगवान् जाबालि अवादीत्।
प्रश्न 157. 'भगवान् जाबालिः पुत्रः कः आसीत्?
उत्तर – भगवान् जाबालिः पुत्रः हारीतः आसीत्।
प्रश्न 158. वैशम्पायनः कस्य पुत्रः आसीत्?
उत्तर – वैशम्पायनः शुकनासस्य पुत्रः आसीत्।
प्रश्न 159. "अही प्रभातप्राया रजनी" इति कः उक्तवान्? उत्तर – इति भगवान् जाबालिः उक्तवान्।
प्रश्न 160. 'रजनी' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर –'रजनी' का शाब्दिक अर्थ है- 'रात।'
प्रश्न 161. कपिञ्जलः केन. विमुक्तं बभूव ?
उत्तर – कपिञ्जलः तुरगभावात् विमुक्तः बभूव।
प्रश्न 162. "शुकजातौ इदानीं सुहृत् ते पतितः" इति क कथयति?
उत्तर – इति श्वेतकेषुः कथयति ।
प्रश्न 163. उपर्युक्त गद्यांशस्य प्रणेता अस्ति।
उत्तर – अस्य गद्यांशस्य प्रणेता "महाकवि बाणभट्ट" अस्ति।
प्रश्न 164. 'आयुष्करं' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'आयुष्करं' का शाब्दिक अर्थ है- 'आयु देने वालों।'
प्रश्न 167. चाण्डाल स्वामी दुहिता कीदृशी वर्तते?
उत्तर – चाण्डाल स्वामी दुहिता प्रथमे वयसि वर्तते ।
प्रश्न 168. "महात्मन्! अहं खलु चाण्डाल जात्या।" इति कः कथयति?
उत्तर – इति चाण्डाल शुकः कथयति ।
प्रश्न 169. चाण्डालबालजनस्य किं भवितव्यम्?
उत्तर – चाण्डालबालजनस्य क्रीडनीयकेन भवितव्यम्।
प्रश्न 170. 'पक्कणं' का शाब्दिक अर्थ लिखिए। उत्तर – 'पक्कणं' का शाब्दिक अर्थ है- 'कबीले में।'
प्रश्न 171. चाण्डाल कन्या शुकम् कुत्र अक्षिपत् ? उत्तर – चाण्डाल कन्या शुकम् दारुपञ्जरे अक्षिपत् ।
प्रश्न 172. "अहो महासंकटे पतितोऽस्मि" इति कः कथयति?
उत्तर – इति शुकः कथयति ।
प्रश्न 173. 'प्रहृष्टवदना' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'प्रहृष्टवदना' का शाब्दिक अर्थ है- 'प्रसन्न मुख वाली।'
प्रश्न 174. तद्वचनम् आकर्ण्य जीवितापहरणाय कः पदं चकारः ?
उत्तर – तद्वचनम् आकर्ण्य जीवितापहरणाय मकरकेतुः पदं चकारः ।
प्रश्न 175. कस्य शरीरं कामानलो ददाह?
उत्तर – वैशम्पायनस्य शरीरं कामानलो ददाह ।
प्रश्न 176. अस्य गद्यांशस्य प्रणेता अस्तिः ?
उत्तर – अस्य गद्यांशस्य प्रणेता “महाकवि बाणभट्ट" अस्ति।
प्रश्न 177. 'काष्ठीभूत्' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'काष्ठीभूत्' का शाब्दिक अर्थ है- 'लकड़ी से बना हुआ।'
प्रश्न 178. कादम्बरी स्नात्वा कस्य पूजाम् अकरोत् ?
उत्तर – कादम्बरी स्नात्वा कामदेवस्य पूजाम् अकरोत् ।
प्रश्न 179. कः मास परावर्तत ?
उत्तर – सुरभिमासः परावर्तत ।
प्रश्न 180. किं परित्यज्यता?
उत्तर – भयम् परित्यज्यताम् ।
प्रश्न 181. कः उन्मीलच्चक्षुः ?
उत्तर – चन्द्रापीडः उन्मीलच्चक्षुः ।
प्रश्न 182. चन्द्रापीडः कां दोर्भ्याम् आबध्नन् अवादीत् ?
उत्तर – चन्द्रापीडः कादम्बरीं दोर्भ्याम् आबध्नन् अवादीत्।
प्रश्न 183. "कण्ठग्रहेण" में कौन-सी विभक्ति है?
उत्तर – तृतीया विभक्ति, एकवचन ।
प्रश्न 184. 'उन्मीलच्चक्षु' का शाब्दिक अर्थ लिखिए। उत्तर 'उन्मीलच्चक्ष' का शाब्दिक अर्थ है- 'आँखें खोलकर ।'
प्रश्न 185. “मन्मथोल्लासकारी" परावर्तत सुरभिमासः अंश का हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
उत्तर – "काम को उल्लासित अर्थात् आनन्दित करने वाला वसन्त मास लौट आया।"
प्रश्न 186. "प्रत्युज्जीवितोऽस्मि तवैव अमुना कण्ठग्रहेण” इति कस्योक्ति ?
उत्तर – इति चन्द्रापीडस्योक्ति।
प्रश्न 187. का अप्सरसां कुलात् उत्पन्ना?
उत्तर – कादम्बरी अप्सरसां कुलात् उत्पन्ना।
प्रश्न 188. महाश्वेतया प्रियतमः कः आसीत्?
उत्तर – महाश्वेतया प्रियतमः पुण्डरीकः आसीत्।
प्रश्न 189. शुकशरीरम् कः परित्यजति?
उत्तर – पुण्डरीकः शुकशरीरम् परित्यजति।
प्रश्न 190. अस्य गद्यांशस्य प्रणेता कः?
उत्तर –अस्य गद्यांशस्य प्रणेता "महाकवि बाणभट्ट" ।
प्रश्न 191. कः विगतशापः संवृत्त?
उत्तर – चन्द्रापीडः विगतशापः संवृत्त ।
प्रश्न 192. 'विगत शापः' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'विगत शाप:' का शाब्दिक अर्थ है- "शाप समाप्त हो गया।"
प्रश्न 193. "गृहीत्वा" में कौन-सा प्रत्यय है?
उत्तर – "क्त्वा" प्रत्यय।
प्रश्न 194. श्वेतकेतुः कं संवर्धितः ?
उत्तर – श्वेतकेतुः पुण्डीकं संवर्धितः ।
प्रश्न 195. परोऽयम् इति कृत्वा कस्योनोपेक्षणीयः ?
उत्तर – परोऽयम् इति कृत्वा पुण्डरीकस्य नोपेक्षणीयः ।
प्रश्न 196. यह गद्यांश किस ग्रन्थ से उद्धृत है?
उत्तर – यह गद्यांश “चन्द्रापीडकथा" से उद्धृत है।
प्रश्न 197. 'तथेति' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'तथेति' का शाब्दिक अर्थ है- 'ऐसा ही होगा।'
प्रश्न 198. सहस्त्रगुण इव कः प्रावर्तत ?
उत्तर – सहस्त्रगुण इव महोत्सवः प्रावर्तत।
प्रश्न 199. कादम्बर्या सह समग्रमेव राज्यं चित्ररथः कस्मै न्यवेदयत्?
उत्तर – कादम्बर्या सह समग्रमेव राज्यं चित्ररथः चन्द्रापीडाय न्यवेदयत्।
प्रश्न 200. "सर्वे खलुः वयं मृताः प्रत्युज्जीविताः पुनः संघटिताश्चय" इति का कथयति?
उत्तर – इति "कादम्बरी" कथयति ।
प्रश्न 201. अस्माकं मध्ये का न दृश्यते
उत्तर – पत्रलेखा अस्माकं मध्ये न दृश्यते ।
प्रश्न 202. 'अर्थ' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'अर्थ' का शाब्दिक अर्थ है- 'इसके पश्चात्।'
प्रश्न 203. दशरात्रं तत्र कः अतिष्ठत् ?
उत्तर – दशरात्रं चन्द्रापीडः अतिष्ठत्।
प्रश्न 204. चन्द्रापीडः राज्यभारं कं समारोपितवान्?
उत्तर – चन्द्रापीडः राज्यभारं पुण्डरीकं समारोपितवान्।
प्रश्न 205. परितुष्टहृदयाभ्यां श्वशुराभ्यां विसर्जितः चन्द्रापीडः कुत्र आजगाम?
उत्तर – परितुष्टहृदयाभ्यां श्वशुराभ्यां विसर्जितः चन्द्रापीडः पितुः पादमूलम् अजगाम्।
प्रश्न 206. 'अध्यगच्छन्' का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर – 'अध्यगच्छन्' का शाब्दिक अर्थ है- 'प्राप्त किया।
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