शंकराचार्य का जीवन-परिचय ।। Shankaracharya Biography
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शंकर का जन्म मालावार प्रान्त में पूर्णा नदी के किनारे पर शलक ग्राम में 788 ई. में नम्बूद्र कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम सुभद्रा था। उन्होंने 8 वर्ष की आयु में ही समस्त वेद-वेदांगों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी।
ईश्वर के अवतार
गीता में कहा गया है, कि जब-जब धर्म का आचरण करने वाले साधुजनों पर अत्याचार किया जाता है अर्थात् धर्म की हानि होती है, तब-तब साधुजनों की रक्षा करने और पापियों का विनाश करने के लिए ईश्वर किसी महापुरुष के रूप में धरा (धरती) पर जीवन धारण करते हैं। त्रेता युग में राक्षसों का संहार करने के लिए 'राम' के रूप में, द्वापर युग में कुनृपतियों के विनाश के लिए 'कृष्ण' के रूप में ईश्वर ने भूमि पर जन्म लिया। उसी प्रकार से कलियुग में भगवान् शिव ने देश में व्याप्त मोह मालिन्य को दूर करने के लिए और वैदिक धर्म की स्थापना करने के लिए शंकराचार्य के रूप में जन्म लिया।
संन्यास की दीक्षा लेना
वन के मार्ग में घूमते हुए एक गुफा में बैठे हुए गौड़पाद के शिष्य गोविन्दपाद के पास गए। शंकर की अद्वितीय प्रतिभा से प्रभावित होकर गोविन्दपाद ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दे दी और विधिवत् वेदान्त के तत्त्वों का अध्ययन कराया।
भाष्यों की रचना
शंकर ने वैदिक धर्म के उद्धार के लिए गाँव-गाँव और नगर-नगर का भ्रमण किया तथा काशी पहुँचे। वहाँ उन्होंने व्यास सूत्रों, उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता के भाष्यों की रचना की।
संन्यास ग्रहण करना
एक बार शंकर पूर्णा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी एक शक्तिशाली घड़ियाल (मगरमच्छ) ने उनका पैर पकड़ लिया। घड़ियाल ने उन्हें तब तक नहीं छोड़ा, जब तक उनकी माता ने उन्हें संन्यास लेने की आज्ञा न दे दी। माता की आज्ञा और घड़ियाल से मुक्ति पाकर उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया।
मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ
एक दिन शंकर के मन में महान् विद्वान् मण्डन मिश्र से मिलने की इच्छा इस उद्देश्य को लेकर हुई कि उनसे शास्त्रार्थ किया जाए। मण्डन मिश्र के घर जाकर शंकर ने उनसे शास्त्रार्थ करके उन्हें पराजित कर दिया।
मण्डन मिश्र की पत्नी के कामशास्त्र के प्रश्नों का उत्तर देकर उसे भी पराजित कर दिया। अन्त में मण्डन मिश्र ने आचार्य शंकर का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया।
वैदिक धर्म का प्रचार
प्रयाग में शंकर ने वैदिक धर्म उद्धार के लिए प्रयत्नशील कुमारिल भट्ट के दर्शन किए। कुमारिल भट्ट ने वैदिक धर्म के कर्मकाण्ड को लेकर सम्प्रदायवादियों को परास्त कर दिया था, लेकिन शंकर ने कर्मकाण्ड की मोक्ष में व्यर्थता बताकर कुमारिल के मत का खण्डन करके ज्ञान की महिमा का प्रतिपादन किया। अन्त में 32 वर्ष की अल्पायु में ही शंकर ने अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया।
शंकर के सिद्धान्त
शंकर ने महर्षि व्यास द्वारा रचित 'ब्रह्मसूत्र' पर भाष्य की रचना की और व्यास के मत के आधार पर ही वैदिक धर्म को पुनर्जीवित किया। उन्होंने वेद और उपनिषदों के तत्त्व का ही निरूपण किया। उनके मत के अनुसार, संसार में सुख-दुःख भोगता हुआ जीव ब्रह्म ही है। माया द्वारा उत्पन्न अज्ञान से व्यापक ब्रह्म दुःख का अनुभव करता है। उन्होंने जीव और ब्रह्म की एकता का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार, अनेक रूपात्मक सृष्टि का आधार ब्रह्म ही है।
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Q: शंकराचार्यजी कौन थे ?
Ans साक्षात् भगवान् शिव के अवतार कहें जाते थे.
Q: शंकराचार्य जी का जन्म कब हुआ ?
Ans 788 ई.
Q.वर्तमान शंकराचार्य कौन कौन है?
Ans.वर्तमान में स्वामी भारती कृष्णतीर्थ इसके शंकराचार्य हैं जो 36वें मठाधीश हैं. भारत के पूर्व में गोवर्धन मठ है जो ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में है. इस मठ के अंतर्गत दीक्षित होने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'वन' और 'आरण्य' विशेषण लगाए जाते हैं. मठ का महावाक्य 'प्रज्ञानं ब्रह्म' है और 'ऋग्वेद' को इसके अंतर्गत रखा गया है.
Q.शंकराचार्य ने क्या उपदेश दिया था?
उत्तर: आदि शंकराचार्य एक भारतीय दार्शनिक और धर्मशास्त्री थे जिन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत का प्रचार किया था। छोटी उम्र में ही उन्होंने भौतिक सुखों का त्याग कर दिया था। शंकराचार्य ने प्राचीन 'अद्वैत वेदांत' के दर्शन के साथ-साथ उपनिषदों की मूल अवधारणाओं को समझाया।
Q.शंकराचार्य कौन थे उनके उपदेश लिखिए?
Ans.आदि शंकर (संस्कृत: आदिशङ्कराचार्यः) ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान- कर्मसमुच्चयवाद का खण्डन किया।
Q.सबसे पहले शंकराचार्य कौन थे?
Ans.कब हुई शंकराचार्य की शुरुआत
इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य से मानी जाती है. आदि शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में एक के तौर पर जाना जाता है. आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये.
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