गुरुनानक देव जी का जीवन परिचय।।Gurunanak dev ji ka jivan Parichay
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सिख धर्म के आदि संस्थापक गुरुनानक का जन्म पंजाब के तलवण्डी नामक (ननकाना पाकिस्तान में) ग्राम में विक्रम संवत् 1526 में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कल्याणदास (कालू मेहता) और माता का नाम तृप्ता देवी था। उनका लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार में हुआ था। बचपन में ही उन्हें संसार से अनासक्ति हो गई थी। इस बात का पता इससे चलता है कि बचपन में वे एकान्त में बैठकर कुछ ध्यान-सा करते दिखाई देते थे। एक बार उन्होंने अपनी तख्ती पर परमात्मा के माहात्म्य का वर्णन लिख दिया था, जिसे देखकर शिक्षक को आश्चर्य हुआ। उन्होंने यज्ञोपवीत को अनित्य जानकर धारण नहीं किया था। पिता के द्वारा व्यापार के लिए दिए गए बीस रुपयों को वे भूखे-प्यासे साधुओं को देकर घर लौट आए थे। गुरुनानक शाम के समय परमात्मा का चिन्तन और कीर्तन करते थे। नानक की संसार से विरक्ति को रोकने के लिए बहनोई जयराम ने उनको 19 वर्ष की आयु में 'सुलक्खिनी' नाम की कन्या के साथ विवाह बन्धन में बाँध दिया।
ईश्वर के दूत के रूप में
एक बार वे नदी में स्नान करने के लिए सेवक के साथ गए और सेवक को वस्त्र देकर नदी में उतर गए, किन्तु वहाँ से नहीं निकले। तीन दिन बाद जब वे प्रकट हुए, तो उन्होंने बताया कि विधाता ने उन्हें दुखियों के दुःखों को दूर करने और ईश्वरतत्त्व का उपदेश देने के लिए संसार में भेजा है।
गृह-त्याग
नानक दीनों का उद्धार करने, मनुष्यों में भेदभावों को दूर करने और तीनों तापों से संतप्त संसार को उपदेश रूपी अमृत से शीतल करने के लिए माता-पिता, पत्नी, पुत्र, बहन और मित्रों को छोड़कर भ्रमण के लिए घर से निकल पड़े। नानक ने धर्म के बाह्याचारों और पाखण्डों का उन्मूलन किया और धर्म के सच्चे स्वरूप को बताया।
पाखण्डों का खण्डन
नानक ने धर्म के बाह्याचारों और पाखण्डों का उन्मूलन किया और धर्म के सच्चे स्वरूप को बताया। उन्होंने दलितों, पतितों, दीनों और दुखियों के पास जाकर उन्हें उपदेश देकर सान्त्वना दी। वे दीन-दुखियों का ही आतिथ्य स्वीकार करते थे।
सेवा आदि भावों का प्रसार
नानक ने 20 वर्ष तक भारत में भ्रमण किया। भ्रमण करके उन्होंने देश की दयनीय दशा देखी और देश की उन्नति के लिए श्रम की प्रतिष्ठा, दीनता का त्याग, अपरिग्रह और सेवा आदि भावों का प्रसार किया। उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। उन्होंने भारत को 'हिन्दुस्तान' कहकर पुकारा।
उपदेश
नानक ने अपने विचारों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए करतारपुर को अपना निवास स्थल बनाया। उन्होंने ज्ञानयोग और कर्मयोग का समन्वय स्थापित किया। निष्काम कर्म, सेवावृत्ति, करुणा, सदाचरण आदि चारित्रिक गुणों को ईश्वर की प्राप्ति का कारण बताया। उन्होंने 'लंगर' नाम की सहमोज प्रथा का प्रचलन किया।
हिन्दुओं को आदेश
हिन्दू धर्म पर यवनों के अत्याचारों को देखकर उन्होंने पंजाब के हिन्दुओं को आदेश दिया कि प्रत्येक गृहस्थ अपने बड़े पुत्र को सिख बनाए। उनके द्वारा स्थापित सिख धर्म संसार के कोने-कोने में अपनी ईमानदारी, श्रम और सत्यनिष्ठा, साहस, तथा मानव सेवा के लिए आज भी जाना जाता है। लगन
लंगर प्रथा के चलन (सूत्रपात) का कारण
नानक बचपन से ही दीन-हीन लोगों में ईश्वर के दर्शन पाते थे। अतः उन्होंने दीन-हीनों की सेवा को ईश्वर सेवा के रूप में निरूपित किया। उनके समय में हिन्दू धर्म में जाति प्रथा और छुआछूत का बोलबाला था। गुरुनानक को ये दोनों प्रथाएँ मानव के प्रति अपराध लगती थीं। अतः उन्होंने इन्हें दूर करने के लिए 'लंगर के नाम से सहभोज प्रथा का सूत्रपात किया, जिसमें बिना किसी भेदभाव और छुआछूत के सभी लोग एकसाथ बैठकर भोजन करते थे।
देहावसान
गुरुनानक विक्रम संवत् 1596 में 70 वर्ष की आयु भोगकर ईश्वरतत्त्व में विलीन हो गए। वे लगातार सेवाभाव, प्रेम, राष्ट्रभक्ति, देश की अखण्डता, ईश्वर और करुणा के गीत गाते रहे। उनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा रहेगा।
Q.गुरु नानक देव का जन्म कहाँ हुआ ?
Ans.नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 में पंजाब के लाहौर जिले में रावी पर तलवंडी गाँव में हुआ था।
Q.गुरु नानक जी का जन्म कौन से ग्राम में हुआ ?
Ans.गुरु नानक जी का जन्म पाकिस्तान के लाहौर जिले में रावी पर तलवंडी ग्राम में हुआ।
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