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Class 10 hindi up board exam paper 24 march full solutions 2022/कक्षा 10वी हिंदी वार्षिक परीक्षा पेपर 2022 का सम्पूर्ण हल

 Up board exam paper 2022 class 10 hindi full solutions


Class 10 hindi up board exam paper 24 march full solutions 2022


कक्षा 10वी हिंदी वार्षिक परीक्षा पेपर 2022 का सम्पूर्ण हल



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पूरे पेपर का सम्पूर्ण हल


प्रश्न 1.



उत्तर


(क) (ii) 'गुनाहों का देवता' उपन्यास के लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं ।


(ख) अतीत के चल चित्र – महादेवी वर्मा


(ग) कलम का सिपाही– प्रेम चन्द्र


(घ) बालकृष्ण भट्ट – शिक्षा दान


(ड) आवारा मसीहा – विष्णु प्रभाकर





प्रश्न . 2(क) छायावाद की दो प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। 




उत्तर छायावादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्न हैं


(i) वैयक्तिक अनुभूति की प्रबलता 


(ii) सौन्दर्य भावना


(iii) शृंगार और प्रेम वेदना


(iv) करुणा और नैराश्य की भावना


(v) प्रकृति का मानवीकरण


(vi) रहस्य भावना



प्रश्न 2 . (ख) रीतिकाल की किन्हीं दो/चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।




उत्तर – रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्न हैं


(i) रीति ग्रन्थों की रचना


(ii) शृंगार रस की प्रधानता


(iii) ब्रजभाषा का प्रयोग


(iv) प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण


इस काल के प्रमुख कवियों के नाम बिहारी तथा केशवदास हैं।




प्रश्न 2. (ग) किसी एक प्रगतिवादी कवि का नाम लिखिए।



उत्तर प्रगतिवादी कवि और उनकी रचनाएँ निम्न हैं




रामधारी सिंह 'दिनकर' – नागार्जुन परशुराम की प्रतीक्षा, हुँकार प्यासी पथराई आँखें


सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' – आराधना, अनामिका, परिमल




प्रश्न 3. क


उत्तर


(क) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'गद्य खण्ड' में संकलित ‘मित्रता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं।



(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या आचार्य शुक्ल जी कहते हैं कि मानव जीवन पर संगति का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। बुरे और दुष्ट लोगों की संगति घातक बुखार की तरह हानिकारक होती है। जिस प्रकार भयानक ज्वर व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्ति व स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है तथा कभी-कभी रोगी के प्राण भी ले लेता है, उसी प्रकार बुरी संगति में पड़े हुए व्यक्ति की बुद्धि, विवेक, सदाचार, नैतिकता व सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं तथा वह उचित-अनुचित व अच्छे-बुरे का विवेक भी खो देता है। मानव जीवन में युवावस्था सबसे महत्त्वपूर्ण अवस्था होती है। कुसंगति किसी भी युवा पुरुष की सारी उन्नति व प्रगति को उसी प्रकार बाधित करती है, जिस प्रकार किसी व्यक्ति के पैर में बँधा हुआ भारी पत्थर उसको आगे नहीं बढ़ने देता, बल्कि उसकी गति को अवरुद्ध करता है। उसी प्रकार कुसंगति भी हमारे विकास व उन्नति के मार्ग को अवरुद्ध करके अवनति व पतन की ओर धकेल देती है तथा दिन-प्रतिदिन विनाश की ओर अग्रसर करती है। दूसरी ओर, यदि युवा व्यक्ति की संगति अच्छी होगी तो वह उसको सहारा देने वाली बाहु (हाथ) के समान होगी, जो अवनति के गर्त में गिरने वाले व्यक्ति की भुजा पकड़कर उठा देती है तथा सहारा देकर खड़ा कर देती है और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर कर देती है।


(ग) युवा पुरुष यदि बुरी संगति करता है, तो विकास की अपेक्षा उसका विनाश होना तय है। यदि वह अच्छी संगति करेगा, तो उन्नति के पथ पर आगे बढ़ता जाएगा।




प्रश्र 4. क


उत्तर


सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के काव्यखण्ड के 'धनुष-भंग' शीर्षक से उद्धृत है। यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड' से लिया गया है।



प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वन में जा रहे हैं। ग्रामीण स्त्रियों ने सीता जी से उनके पति के विषय में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया। इस पर सीता जी ने संकेतों के माध्यम से श्रीराम जी के विषय में सब बता दिया।


व्याख्या गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ग्राम वधुओं ने सीता जी से राम के विषय में पूछा कि ये साँवले और सुन्दर रूप वाले तुम्हारे क्या लगते हैं? उनकी यह अमृत के समान मधुर वाणी सुनकर सीता जी समझ गईं कि ये स्त्रियाँ बहुत चतुर हैं, वे उनके

मनोभावों को समझ गईं। ये प्रभु (श्रीराम) के साथ मेरा सम्बन्ध जानना चाहती हैं। तब सीता जी ने उनके प्रश्न का उत्तर अपनी मुस्कुराहट तथा संकेत भरी दृष्टि से ही दे दिया। उन्होंने अपनी मर्यादा का पूर्ण रूप से पालन किया। उन्होंने संकेत के द्वारा ही यह समझा दिया कि ये मेरे पति हैं। अपने नेत्र तिरछे करके, इशारा करके, समझा कर मुस्कुराती हुई आगे बढ़ गईं अर्थात् उन्हें कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।


तुलसीदास जी कहते हैं कि उस समय वे स्त्रियाँ श्रीराम की सुन्दरता को एकटक देखती हुई, अपने नेत्रों को आनन्द प्रदान करने लगीं अर्थात् उनके सौन्दर्य को देखकर अपने जीवन को धन्य मानने लगीं। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो प्रेम के सरोवर में रामरूपी सूर्य उदित हो गया हो और ग्राम वधुओं के नेत्ररूपी कमल की सुन्दर कलियाँ खिल गई हों अर्थात् उनके नेत्रों ने अपने जीवन को सफल बना लिया हो।



काव्य सौन्दर्य


कवि ने सीता जी द्वारा ग्रामीण वधुओं को संकेतपूर्ण उत्तर देने से भारतीय नारी की मर्यादा को चित्रित किया है।


भाषा।    ब्रज


रस        शृंगार


गुण        माधुर्य



शैली।      चित्रात्मक व मुक्तक


छन्द          सवैया


शब्द-शक्ति     व्यंजना


अलंकार


अनुप्रास अलंकार 'सुनि सुन्दर', 'जानकी जानी', 'तिरछे करि', 'तुलसी तेहि' और 'लोचन लाहु' में क्रमशः 'स', 'ज', 'न', 'र', 'त’ और 'ल' वर्ण की पुनरावृत्ति से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।


रूपक अलंकार 'सुधारस साने' में उपमेय और उपमान में कोई भेद नहीं है, इसलिए यहाँ रूपक अलंकार है।


उत्प्रेक्षा अलंकार 'मनो मंजुल कंज कली' में उपमेय में उपमान की सम्भावना को व्यक्त किया गया है। इसलिए यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।




प्रश्न 5.


आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का जीवन परिचय




जीवन-परिचय


हिन्दी भाषा के उच्चकोटि के साहित्यकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की गणना प्रतिभा सम्पन्न निबन्धकार, समालोचक, इतिहासकार, अनुवादक एवं महान् शैलीकार के रूप में की जाती है। गुलाबराय के अनुसार, "उपन्यास साहित्य में जो स्थान मुंशी प्रेमचन्द का है, वहीं स्थान निबन्ध साहित्य में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का है।"


आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 1884 ई. में बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रबली शुक्ल था। इण्टरमीडिएट में आते ही इनकी पढ़ाई छूट गई। ये सरकारी नौकरी करने लगे, किन्तु स्वाभिमान के कारण यह नौकरी छोड़कर मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला अध्यापक हो गए। हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं का ज्ञान इन्होंने स्वाध्याय से प्राप्त किया। बाद में 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' काशी से जुड़कर 'शब्द-सागर' के सहायक सम्पादक का कार्यभार सँभाला। इन्होंने काशी विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष का पद भी सुशोभित किया।


शुक्ल जी ने लेखन का शुभारम्भ कविता से किया था। नाटक लेखन की ओर भी इनकी रुचि रही, पर इनकी प्रखर बुद्धि इनको निबन्ध लेखन एवं आलोचना की ओर ले गई। निबन्ध लेखन और आलोचना के क्षेत्र में इनका सर्वोपरि स्थान आज तक बना हुआ है।


जीवन के अन्तिम समय तक साहित्य साधना करने वाले शुक्ल जी का निधन सन् 1941 में हुआ।


रचनाएँ शुक्ल जी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। इनकी रचनाएँ निम्नांकित हैं


 निबन्ध चिन्तामणि (दो भाग), विचारवीथी।


आलोचना रसमीमांसा, त्रिवेणी (सूर, तुलसी और जायसी पर आलोचनाएँ)। इतिहास हिन्दी साहित्य का इतिहास।


सम्पादन तुलसी ग्रन्थावली, जायसी ग्रन्थावली, हिन्दी शब्द सागर, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भ्रमरगीत सार, आनन्द कादम्बिनी।




प्रश्र ,5. ख


उत्तर 


सूरदास जी का जीवन परिचय



जीवन-परिचय


भक्तिकालीन महाकवि सूरदास का जन्म 'रुनकता' नामक ग्राम में 1478 ई. में पण्डित रामदास जी के घर हुआ था। पण्डित रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान् 'सीही' नामक स्थान को सूरदास का जन्म स्थल मानते हैं। सूरदास जन्म से अन्धे थे या नहीं, इस सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद हैं।


विद्वानों का कहना है कि बाल-मनोवृत्तियों एवं चेष्टाओं का जैसा सूक्ष्म वर्णन सूरदास जी ने किया है, वैसा वर्णन कोई जन्मान्ध व्यक्ति कर ही नहीं सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे सम्भवतः बाद में अन्धे हुए होंगे। वे हिन्दी भक्त कवियों में शिरोमणि माने जाते हैं।


सूरदास जी एक बार वल्लभाचार्य जी के दर्शन के लिए मथुरा के गऊघाट आए और उन्हें स्वरचित एक पद गाकर सुनाया, वल्लभाचार्य ने तभी उन्हें अपना शिष्य बना लिया। सूरदास की सच्ची भक्ति और पद रचना की निपुणता देखकर वल्लभाचार्य ने उन्हें श्रीनाथ मन्दिर का कीर्तन भार सौंप दिया, तभी से वह मन्दिर उनका निवास स्थान बन गया। सूरदास जी विवाहित थे तथा विरक्त होने से पहले वे अपने परिवार के साथ ही रहते थे।


वल्लभाचार्य जी के सम्पर्क में आने से पहले सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे तथा बाद में अपने गुरु के कहने पर कृष्णलीला का गान करने लगे। सूरदास जी की मृत्यु 1583 ई. में गोवर्धन के पास 'पारसौली' नामक ग्राम में हुई थी।


कृतियाँ (रचनाएँ)


भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी, जिनमें से केवल आठ से दस हजार पद ही प्राप्त हो पाए हैं। 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' के पुस्तकालय में ये रचनाएँ सुरक्षित हैं। पुस्तकालय में सुरक्षित रचनाओं के आधार पर सूरदास जी के ग्रन्थों की संख्या 25 मानी जाती है, किन्तु इनके तीन ग्रन्थ ही उपलब्ध हुए हैं, जो निम्नलिखित हैं



1. सूरसागर यह सूरदास जी की एकमात्र प्रामाणिक कृति है। यह एक गीतिकाव्य है, जो 'श्रीमदभागवत' ग्रन्थ से प्रभावित है। इसमें कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धव-गोपी संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है।



प्रश्न 6. क


उत्तर


सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'संस्कृत खण्ड' में संकलित 'वाराणसी नामक पाठ से लिया गया है। इस गद्यांश में वाराणसी नामक प्राचीन नगर के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।


इस अंश में वाराणसी के प्राचीन गौरव एवं महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।


अनुवाद यह नगरी भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा का केन्द्रस्थल है। यहीं से संस्कृत साहित्य और संस्कृति का प्रकाश चारों ओर फैला है। मुगल युवराज दाराशिकोह ने यहीं आकर भारतीय दर्शनशास्त्रों का अध्ययन किया था। वह उनके ज्ञान से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उपनिषदों का अनुवाद फारसी भाषा में करवाया।



प्रश्र 7. क


उत्तर


श्लोक 


कोकिल! यापय दिवसान् तावद् विरसान् करीलविटपेषु । यावन्मिलदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लुसति।।




प्रश्न 7.( ख)

उत्तर


(i) वाराणसी कस्याः भाषायाः केन्द्रम् अस्ति? 


उत्तर  – वाराणसी संस्कृत भाषायाः केन्द्रस्थलम् अस्ति।


(ii). चन्द्रशेखरः कः आसीत् ?


उत्तर– चन्द्रशेखर: एक: प्रसिद्धः क्रान्तिकारी देशभक्तः आसीत्।


प्रश्न 8. उत्तर


करुण रस


परिभाषा-करुण रस का स्थायी भाव शोक है। शोक नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है। 


उदाहरण


मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन सा पटक रही थी शीश। अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश ॥ श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता के विलाप का यह उदाहरण करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।


स्पष्टीकरण- 1. स्थायी भाव-शोक।


2. विभाव


(क) आलम्बन - श्रवण। आश्रय-पाठक।


(ख) उद्दीपन-दशरथ की उपस्थिति।


3. अनुभाव – सिर पटकना, प्रलाप करना आदि।


 4. संचारी भाव-स्मृति, विषाद आदि।




 उपमा अलंकार


परिभाषा (लक्षण) – जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति की किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से समान गुण-धर्म के आधार पर तुलना की जाए या समानता बतायी जाएं, वहाँ उपमा अलंकार होता है; जैसे—'राधा के चरण गुलाब के समान कोमल हैं।' यहाँ राधा के चरण की तुलना या समानता गुलाब से दिखाई गयी है। इसलिए यहाँ उपमा अलंकार है। उपमा अलंकार के निम्नलिखित चार अंग होते हैं


1. उपमेय-जिस वस्तु की समानता बतायी जाती है; वह उपमेय (प्रस्तुत) होता है। ऊपर दिये गये उदाहरण में 'राधा के चरण' उपमेय हैं।


2. उपमान-जिस वस्तु से समानता की जाती है; वह वस्तु उपमान (अप्रस्तुत) कहलाती है। ऊपर दिये गये उदाहरण में 'गुलाब' उपमान है। 


3. वाचक समानता अथवा पहचान को व्यक्त करने वाला शब्द 'वाचक कहलाता है। ऊपर दिये गये उदाहरण में 'समान' शब्द वाचक है।


4. साधारण धर्म-जो गुण उपमान और उपमेय में समान रूप से रहता है; वह साधारण धर्म कहलाता है। ऊपर दिये गये उदाहरण में 'कोमल' शब्द साधारण धर्म है; क्योंकि यह राधा के चरण और गुलाब दोनों में है।


उदाहरण (1) 'हरिषद कोमल कमल-से।' मुरत मयंक सम स्पष्टीकरण–उपमेय हरिपद । उपमान – कमल। वाचक शब्द से। साधारण धर्म-कोमल। 



(2) 'पीपर पात सरिस मन डोला।'


स्पष्टीकरण-उपमेय-मन । उपमान–पीपर पात। वाचक शब्द सरिस। साधारण धर्म-डोला।'


अन्य उदाहरण


यहीं कहीं पर बिखर गयी वहा भग्न विजयमाला-सी। 


2. आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला-सी।


3. तम के तागे-सी जो हिल-डुल, चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल ।


4. करि कर सरिस सुभग भुजदण्डा।


5. अनुलेपन-सा मधुर स्पर्श था। 6. सजल नीरद-सी कल कान्ति थी।


7. अराति सैन्य सिन्धु में सुबाडवाग्नि-से जलो।




सोरठा



परिभाषा (लक्षण) सोरठा अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। पहले और तीसरे चरण के अन्त में गुरु-लघु (51) आते हैं और कहीं-कहीं तुक भी मिलती है। यह दोहे का उल्टा होता है। उदाहरण


जेहिं सुमिरत सिधि होइ, गणनायक करिवर बदन।


करहु अनुग्रह सोइ, बुद्धिरासि सुभ-गुन-सदन ॥




9.( क)


(i)अनु   –  अनुप्रयोग


(ii)परि   –  परिवार


 (iii) अभि – अभिमान


(iv)अप     – अपमान




(ख)


पन   –अपनापन


आई  –पढ़ाई


(ग)


(i)पाप-पुण्य        – द्वंद समास


(ii)नवरत्न।        – द्विगु समास



(घ)


कुआँ   –    कूप


चरन   –  चरण


दूध     –  दुग्ध


(ड)


पक्षी –  पखेरू, नभचर


अग्नि –  दहक, अनल



प्रश्न 10.


(i)     प्रत्येक  –     प्रति+ एक

                            (यण सन्धि)



पितृज्ञा     – पित्र + आज्ञा (यण सन्धि)



(ख)


(i) मधु –मधुनों


(ii) फल – फलानाम्




हसाम -


पावक


लट् लकार


एक वचन


उत्तम पुरुष हस धाड












जनसंख्या वृद्धि पर निबंध |Essay on Population 


जनसंख्या वृद्धि पर निबंध | Essay on Population in Hindi 



जनसंख्या वृद्धि की समस्या और उसके निराकरण के उपाय


 जनसंख्या वृद्धि एक अभिशाप



जनसंख्या वृद्धि वृद्धि की समस्या और समाधान



प्रस्तावना:- भूमिका, प्राचीन स्थिति, वर्तमान स्थिति, देश के लिए बोझ, परिवार के लिए बोझ, उपसंहार।


भूमिका:- देश की बढ़ती हुई जनसंख्या एक भयावह समस्या है। भारत ही नहीं, बल्कि इस भयावह समस्या से तो समूचा विश्व ही मानो विनाश की कगार पर जा पहुंचा है। स्वाधीन भारत में देश की समृद्धि के लिए किए गए सरकार के सभी निर्णय और किए गए श्रेष्ठ कार्यों में गतिरोध उत्पन्न होने का एक प्रमुख कारण जनसंख्या का निरंतर बढ़ते जाना है। अतः सरकार ने इसके समाधान के लिए परिवार नियोजन का आह्वान किया है।


प्राचीन स्थिति:- सृष्टि के प्रारंभ में जनसंख्या बहुत कम थी और प्रकृति का वरदान रूपी हाथ मानव के शीश पर मुक्त रूप से अपनी कृपाएं बिखराया  करता था। समाज की समृद्धि, सुरक्षा और सभ्यता के विकास के लिए जनसंख्या वृद्धि अति आवश्यक थी। वंश वृद्धि पवित्र कार्य माना जाता था। वेदों में 10 पुत्रों की कामना की गई है। कौरव 100 भाई थे। ये बातें उस समय के लिए कदाचित आवश्यक और उपयोगी भी थीं, पर आज के लिए नहीं।


वर्तमान स्थिति:- आज स्थिति बदल चुकी है। वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 55 करोड़ थी। वर्ष 1976 के आरंभ में यह 60 करोड़ से ऊपर थी। नए आंकड़ों के अनुसार, अब यह एक अरब से ऊपर पहुंच चुकी है।


देश के लिए बोझ:- वस्तुत: देश की जनसंख्या ही उसकी शक्ति का आधार होती है, परंतु अनियंत्रित गति से इसका बढ़ते जाना निश्चय ही देश के लिए बोझ सिद्ध होगा। सीमा से अधिक आबादी किसी देश के लिए गौरव की बात कदापि नहीं कही जा सकती। ऐसी दशा में तो जनसंख्या एक अभिशाप ही कही जाएगी। भारत इस समय आबादी की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।


परिवार के लिए बोझ:- स्वाधीनता के उपरांत भारत में संपत्ति के उत्पादन व वितरण की गलत नीतियों के कारण रोजगार इतना नहीं बढ़ा कि सबको किसी एक स्तर तक समान रूप से रहने, खाने, पढ़ने और स्वस्थ रहकर अपना योगदान देने का अवसर मिले। यह भी अनुचित है कि शिक्षा तथा आर्थिक विकास के परिणामों की प्रतीक्षा करते-करते परिवार नियोजन का प्रश्न अनदेखा कर दें।

      वास्तविक तथ्य यह है कि जब तक आर्थिक विकास होगा, तब तक जनसंख्या इतनी बढ़ चुकी होगी कि वह समग्र विकास को निगल जाएगी। प्रगति की सभी योजनाएं धरी-की-धरी रह जाएंगी। जनसंख्या का अनियंत्रित ढंग से बढ़ना समग्र विकास को नष्ट कर डालेगा। देश के नेताओं और कर्णधारों का मत उचित है कि अधिक संतानों का होना आर्थिक असुरक्षा का बड़ा कारण है। जनसंख्या के बढ़ने से परिवार का जीवन स्तर गिरता है।

     जीवन का विकास रुक जाता है और नैतिक तथा चारित्रिक पतन बढ़ता जाता है। जनसंख्या के बढ़ते जाने से मांग अधिक होती जाती है और उत्पादन व पूर्ति कम होती जाती है, जिसके कारण कीमतें बढ़ती हैं यानी महंगाई बढ़ती जाती है। इससे बेकारी की समस्या बढ़ती जाती है तथा देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है। परिवार नियोजन का महत्व आर्थिक तथा मानवीय दोनों ही दृष्टियों से है। आर्थिक दृष्टि से सीमा से अधिक लोगों का पालन-पोषण कर उन्हें श्रेष्ठ मनुष्य बनाना संभव नहीं। जनसंख्या को बढ़ने से रोकने के लिए शिक्षा को बढ़ावा देना अनिवार्य है।


उपसंहार:- भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। देश में कुछ धार्मिक पुरुष, हिंदुओं की जनसंख्या घटने के डर से परिवार नियोजन का विरोध करते हैं। ईसाई तथा इस्लाम धर्म भी अपने-अपने धार्मिक दृष्टिकोण से इसका विरोध करते हैं। ऐसी देश-विरोधी भावनाओं को राष्ट्र के उत्थान के लिए नष्ट करना नितांत आवश्यक है। आपातकालीन स्थिति में सरकार ने इस राष्ट्रीय समस्या का युद्ध स्तर पर समाधान निकालने का जो निश्चय किया था, उसको क्रियान्वित करने में कहीं-कहीं ज्यादती भी हुई। तथापि सरकार द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों, संदेशों तथा शिक्षा के प्रसार ने अच्छे परिणाम भी प्रदान किए हैं। जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में ही देश की भलाई है।


जनसंख्या वृद्धि पर निबंध, Population growth essay in Hindi (200 शब्द)


आज के समय में जनसंख्या दुनिया की अग्रणी समस्याओं में से एक बन गई है। इसके लिए हम सभी को त्वरित और गंभीर ध्यान देने की आवश्यकता है। बढ़ती जनसंख्या के कारण सबसे खराब स्थिति अब कई देशों में देखी जा सकती है जहां लोग भोजन, आश्रय, शुद्ध पानी की कमी से जूझ रहे हैं और प्रदूषित हवा से सांस लेना पड़ रहा है।


बढ़ी हुई जनसंख्या प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित करती है:


यही संकट दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है और हमारे प्राकृतिक संसाधनों को पूरी तरह से प्रभावित कर रहा है क्योंकि अधिक लोग पानी, भोजन,भूमि, पेड़ और अधिक जीवाश्म ईंधन के अधिक उपभोग के परिणाम स्वरुप पयार्वरण को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। वर्तमान समय में अधिक जनसंख्या प्राकृतिक सौंदर्य के अस्तित्व के लिए अभिशाप बन गई है। पर्यावरण में प्रदूषण के कारण लोग विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं।


जनसंख्या बेरोजगारी का कारण बन सकती है,और किसी भी देश के आर्थिक विकास को भी प्रभावित कर सकती है। जनसंख्या के लगातार बढ़ते स्तर के कारण कई देशों में गरीबी भी बढ़ रही है। लोग सीमित संसाधनों और पूरक आहार के तहत जीने के लिए बाध्य हैं।


भारत सहित कई देशों में जनसंख्या में अपनी सभी सीमाओं को पार कर लिया है और इसके परिणाम स्वरूप हम उच्च अशिक्षा स्तर, शराब स्वास्थ्य सेवाओं और ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी पाते हैं।


जनसंख्या की समस्या पर निबंध, population growth in India essay in Hindi (300 शब्द)


प्रस्तावना


विश्व की जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और यह दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता बनती जा रही है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार दुनिया में जनसंख्या पहले ही 7.6 बिलियन को पार कर गई है। जनसंख्या में वृद्धि दुनिया के आर्थिक, पर्यावरण और सामाजिक विकास को प्रभावित करती है।


विभिन्न जनसंख्या वाले विभिन्न देश


दुनिया के सभी देशों में जनसंख्या वृद्धि एक समान नहीं है। कुछ देशों में उच्च विकास होता है जबकि कुछ मध्यम या उनकी जनसंख्या में बहुत कम वृद्धि होती है। यह बहुत सी चुनौतियां पैदा करता है क्योंकि उच्च विकास वाले देश गरीबी, आर्थिक खर्च, बेरोजगारी ,ताजे पानी की कमी, भोजन, शिक्षा संसाधनों की कमी आदि के कारण जनसंख्या विस्फोट के परिणाम स्वरूप होते हैं जबकि कम जनसंख्या वृद्धि वाले देशों में श्रम शक्ति की कमी होती है।


जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव


आइए देखें कि जनसंख्या विभिन्न तरीकों से किसी देश को कैसे प्रभावित करती है:


  • जनसंख्या बढ़ने से प्राकृतिक संसाधनों की अधिक खपत होती है।

  • आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन संख्या वृद्धि के रूप में नहीं है,जबकि सबकुछ के लिए मांग में वृद्धि हुई है।

  • बेरोजगारी में वृद्धि कभी-कभी कमाई के अन्य नाजायज तरीकों के प्रति युवाओं की गलतफहमी के कारण।

  • सरकार को बुनियादी आवश्यकताओं जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी ढांचा, सिंचाई,पानी आदि पर अधिक खर्च करना पड़ता है, जबकि राजस्व में जनसंख्या वृद्धि के अनुसार वृद्धि नहीं हो रही है, इसलिए मांग और आपूर्ति में अंतर लगातार बढ़ रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।

  • बेरोजगारी व्यय की क्षमता को कम कर देती है और परिवारों ने इसकी बचत को मूलभूत आवश्यकता पर खर्च किया है और अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते हैं।

  • कम योग्यता और बच्चों के लिए रोजगार की कम संभावना है, जब वह अपनी कामकाजी उम्र तक पहुंचते हैं यह अर्थव्यवस्था और औद्योगिक विस्तार में वृद्धि को प्रभावित करता है।




जनसंख्या विस्फोट पर निबंध, population explosion essay in Hindi (400 शब्द )



प्रस्तावना


हालांकि जनसंख्या पर एक विश्वव्यापी समस्या है लेकिन अभी भी कुछ देशों में जनसंख्या आवश्यक दर से कम है जो एक गंभीर मुद्दा भी है क्योंकि इन देशों में कम लोगों का मतलब उस देश के विकास के लिए समर्थन और काम करने के लिए कम श्रम शक्ति है।


ओवरपापुलेशन निश्चित रूप से किसी भी देश के लिए कई मायनों में हानिकारक है लेकिन इसका कुछ सकारात्मक पक्ष भी है। आबादी बढ़ने से एक ऐसे देश के लिए जन शक्ति में वृद्धि होती है जहां अधिक लोग आसानी से विभिन्न क्षेत्रों के विकास में मदद करते पाए जाते हैं।


कैसे जनसंख्या वृद्धि एक देश के लिए अच्छी है?


किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए नियंत्रित जनसंख्या वृद्धि भी आवश्यक है। आइए देखें कैसे:


यदि किसी देश की जनसंख्या निरंतर है या नहीं बढ़ रही है, तो यह युवा लोगों की तुलना में अधिक वृद्धि लोगों का निर्माण करेगा। उस देश के पास काम करने के लिए पर्याप्त श्रम शक्ति नहीं होगी। जापान सबसे अच्छा उदाहरण है क्योंकि वहां सरकार उम्र के अंतर को कम करने के प्रयास में जन्म दर बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है।


दूसरा सबसे अच्छा उदाहरण चीन से लिया जा सकता है क्योंकि 25 साल पहले यहां सरकार ने एक परिवार में एक बच्चे के शासन को लागू किया था। कुछ वर्षों के बाद जब चीन की विकास दर कम होने लगी और युवा  श्रमशक्ति कम हो रही थी तब हाल ही में उन्होंने इस प्रतिबंध को हटा दिया और माता-पिता को एक के बजाय दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी।


जनसंख्या वृद्धि से अधिक जनशक्ति और बुनियादी/विलासिता के लिए आवश्यक वस्तुओं की अधिक खपत पैदा होगी। अधिक खपत का मतलब है की खपत को पूरा करने के लिए अधिक उद्योग वृद्धि। अधिक उद्योग को अधिक जनशक्ति की आवश्यकता होती है।


मनी सरकुलेशन में सुधार होगा और देश के रहने की लागत में सुधार होगा। देश में लोग पैसा कमाएंगे और अपने बच्चों को शिक्षित करेंगे ताकि वे देश की तरक्की के लिए काम कर सके। मूल रूप से यह सब जनसंख्या के नियंत्रित वृद्धि पर निर्भर करता है। यदि जनसंख्या वृद्धि आवश्यकता से अधिक है, तो यह बेरोजगारी, गरीबी आदि की समस्या पैदा करेगी।


निष्कर्ष 


जनसंख्या पर हमेशा किसी देश की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है लेकिन किसी देश को कई तरीकों से सफलता प्राप्त करने के लिए नियंत्रण जनसंख्या वृद्धि की भी आवश्यकता होती है। क्या संसाधन अधिक आबादी वाले देशों के लिए सीमित हो सकते हैं, लेकिन अतिरिक्त संसाधन पैदा करने और नए अविष्कार करने के लिए अतिरिक्त श्रम शक्ति की आवश्यकता है।




बढ़ती हुई जनसंख्या पर निबंध,

Essay on Increasing Population in Hindi (500 शब्द)


प्रस्तावना



जनसंख्या किसी विशेष क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या की गिनती है। यह कुछ देशों में खतरनाक दर तक पहुंच गई है। अधिक जनसंख्या शिक्षा, परिवार नियोजन के अनुचित ज्ञान, विभिन्न स्थानों से प्रभाव जैसे कई कारणों के कारण हो सकती है।



भारत विश्व में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है।



सर्वेक्षण के अनुसार इस पूरी दुनिया में लगभग 7.6 बिलियन मनुष्यों का निवास है, जिसके बीच दुनिया की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारत में रहता है, यानी 125 करोड़ से अधिक लोग अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि के परिणाम स्वरुप लगभग 21% भारतीय गरीबी रेखा से नीचे हैं, इससे भविष्य में विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं, और इस प्रकार एक सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जीने के लिए इसे नियंत्रित करना आवश्यक है।



2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ को पार कर गई है, और यह दुनिया में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। वर्तमान में गए आंकड़े 130 करोड़ को पार कर सकता है, और निकट भविष्य में या चीन से आगे निकल जाएगा। जनसंख्या वृद्धि के रूप में भारत एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। यह भारत की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालना है और गरीबी लोगों के निम्न जीवन स्तर के लिए भी जिम्मेदार है।



गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) उपभोक्ताओं की भारी आबादी को पूरा करने के लिए सरकार की रियायती दर पर बुनियादी चीजें प्रदान करने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है। जैसा कि सरकार बुनियादी वस्तुओं पर सब्सिडी प्रदान कर रही है इसे अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए विकास परियोजनाओं के लिए उपयोग की जाने वाली न्यूनतम राशि के साथ छोड़ दिया गया है।



सरकार के पास सामाजिक सेवाओं जैसे कि शिक्षा,अस्पताल, आवास, बुनियादी ढांचे आदि पर खर्च करने के लिए कम मात्रा है। जो अनिवार्य रूप से एक प्रगतिशील देश के लिए आवश्यक है। इसलिए हमारी अर्थव्यवस्था की नियोजित वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट पर कुछ प्रभावी जांच की आवश्यकता है।



निरक्षरता अधिक जनसंख्या का प्रमुख कारण है।



भारत में जनसंख्या वृद्धि के लिए निरक्षरता मुख्य कारण है। गरीबी रेखा के नीचे बीपीएल रहने वाले लोगों को इस जनसंख्या वृद्धि के परिणाम के बारे में पता नहीं है।जो उनकी निरक्षरता के कारण हैं लोग सोचते हैं कि अधिक बच्चों का मतलब है कि वह इसके प्रभाव को महसूस किए बिना परिवार के लिए अधिक पैसा कमाएंगे।



कभी-कभी माता-पिता लड़के की इच्छा करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वह अपना नाम और परिवार का नाम रोशन करेगा। कभी कभी भी एक लड़की की इच्छा में तीन से चार लड़कियों को जन्म देते हैं।



कैसे ओवरपापुलेशन बेरोजगारी का कारण बनता है:



ओवरपापुलेशन भारत में बेरोजगारी का मुख्य कारण है। हम देख सकते हैं कि किसी भी परीक्षा या रिक्त के लिए, लाखों आवेदन प्राप्त होते हैं। यह प्रतिस्पर्धा को बढ़ाता है और कभी-कभी लोग नौकरी पाने के लिए रिश्वत का उपयोग करते हैं। यह उस प्रणाली को भ्रष्टाचार को भी बढ़ाता है जो भारत की बढ़ती चिंता है।



भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार की भूमिका 



सरकार ने परिवार नियोजन के लाभों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए कई पहल की है। कुछ प्रमुख कदम यहां दिए गए हैं।



सरकार ने कानून में संशोधन किया है और लड़के और लड़की की शादी के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की है। सरकार लोगों में परिवार नियोजन के महत्व, लड़कों और लड़कियों की समानता, टीवी पर विभिन्न विज्ञापनों, गांव में पोस्टर आदि के बारे में जागरूकता पैदा कर रही है।


सरकार न्यूनतम फीस लेकर मध्यान भोजन, मुफ्त वर्दी, किताबे आदि प्रदान कर के बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा दे रही है।



निष्कर्ष



किसी देश को विकसित और शक्तिशाली बनाने के लिए उस देश के प्रत्येक नागरिक को दूसरों पर दोष लगाने के अलावा अपने स्वयं के अंत पर कदम उठाने की जरूरत है। एक राष्ट्र के विनाश के लिए जनसंख्या का सबसे बड़ा कारण हो सकता है हमें राष्ट्र के रूप में सफलता प्राप्त करने के लिए समस्या के प्रभावी समाधान का पता लगाना चाहिए।



जनसंख्या वृद्धि पर निबंध Essay on Population Growth in Hindi (600 शब्द)



प्रस्तावना



वर्तमान स्थिति में अतिवृष्टि की समस्या वैश्विक संकट की श्रेणी में आती है। जो दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। यह निबंध विशेष रूप से इसके कारणों, इसके प्रभावों और सबसे महत्वपूर्ण समाधान के मुद्दे को समझने के लिए लिखा गया है।



अधिक जनसंख्या : कारण, प्रभाव और समाधान



अत्याधिक जनसंख्या का अर्थ है संख्या की तुलना में किसी क्षेत्र में लोगों की संख्या में वृद्धि, वह क्षेत्र विशेष के संसाधन टिक सकते हैं। इस समस्या के पीछे कई कारण है!



जनसंख्या वृद्धि के कारण 



विकासशील देशों में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है। ऐसे वृद्धि का कारण मुख्य रूप से परिवार नियोजन के ज्ञान की कमी है। ज्यादातर लोग जो जनसंख्या वृद्धि में योगदान कर रहे हैं। वह निरक्षर है और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। वह इसके निहितार्थ को समझे बिना कम उम्र में अपने बाल विवाह कर रहे हैं।



ज्यादातर लोग नौकरी के अवसरों या रोजगार और जीवनशैली में सुधार के लिए ग्रामीण क्षेत्र में शहरी क्षेत्रों/शहर में आते हैं। यह शहर में असंतुलन और संसाधनों की कमी पैदा करता है। चिकित्सा प्रोद्योगिकी/उपचार में सुधार कई गंभीर बीमारियों के लिए मृत्यु दर को कम करता है। बहुत से पुराने रोग या घातक वायरस जैसे- खसरा, छोटी चेचक का इलाज चिकित्सा सेवाओं में सुधार के साथ किया जा रहा है।


चिकित्सा विज्ञान में सुधार के साथ है यह उन दंपतियों के लिए संभव हो गया है। जो गर्भधारण करने में असमर्थ हैं। परिजन उपचार विधियों से गुजारना चाहते हैं, और उनके अपने बच्चे हैं इसके अलावा जागरूकता के कारण लोग नियमित जांच और प्रसव के लिए अस्पताल जाते हैं। जो मां और बच्चे के लिए सुरक्षित होते हैं।



जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव



जैसे-जैसे आबादी बढ़ेगी भोजन और पानी जैसी बुनियादी जागरूकता की खपत भी बढ़ेगी। हालांकि पृथ्वी सीमित मात्रा में पानी और भोजन का उत्पात कर सकती है, जो खपत की तुलना में कम है, जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।



जंगल में जानवरों की प्रभावित करने वाले शहरीकरण के विकास को पूरा करने के लिए


वन कम हो रहे हैं। जिससे प्रदूषण और परिस्थितिकी में असंतुलन हो रहा है। कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस आदि के अति प्रयोग के कारण प्राकृतिक संसाधन बहुत तेजी से घट रहे हैं। यह हमारे पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पैदा कर रहा है।



जनसंख्या वृद्धि के साथ वाहनों और उद्योगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है वायु की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करना। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्रीन हाउस गैसों की रिहाई की मात्रा में वृद्धि जिसके कारण हिमशैलों और ग्लेशियरों से बर्फ पिघलने लगती है। जलवायु के पैटर्न में परिवर्तन समुद्र के स्तर में वृद्धि कुछ ऐसे परिणाम है। जिनका हमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण सामना करना पड़ सकता है।




निष्कर्ष 



बेहतर जीवन जीने के लिए हर परिवार को अपने बच्चों को संपूर्ण पौष्टिक भोजन, उचित आश्रय, सर्वोत्तम शिक्षा और अन्य महत्वपूर्ण संसाधन उपलब्ध कराने के लिए उचित ढंग से परिवार नियोजन की आवश्यकता होती है। एक देश तभी सफलता प्राप्त कर सकता है। जब उसके नागरिक स्वस्थ, खुशहाल और संतुष्ट जीवन जी सकें। इस प्रकार नियंत्रित जनसंख्या विश्व के प्रत्येक देश के लिए सफलता की कुंजी है। 


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