Navratri 2024 kaun sa din kis mata ka hai
नवरात्रि महोत्सव कौन सा दिन किस माता का है।
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेब साइट Subhansh classes.com पर यदि आप गूगल पर सर्च कर रहे है नवरात्रि 2024 में कौन सा दिन किस माता का है उनकी पूजा कैसे करें हम इस पोस्ट में पूरी जानकारी देने वाले है इसलिए पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें यदि आपको पोस्ट पसन्द आए तो अपने दोस्तो को भी शेयर करें।
प्रथम दिवस
मां शैलपुत्री
बरसती रहती है कृपा कर्ज, व्याधियों और शनि प्रकोप से बचने के लिए करें मां शैलपुत्री की आराधना ।
साधना मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः ।
मां भगवती का पहला स्वरूप मां शैलपुत्री हैं। नवरात्रि के पहले दिन भक्त, मां के इसी स्वरूप की आराधना करते हैं। मां का यह स्वरूप लावण्यमयी एवं अतिरूपवान है। दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प लिए मां शैलपुत्री अपने वाहन वृषभ पर विराजमान रहती हैं। उनके हाथ में सुशोभित कमल पुष्प, अविचल ज्ञान और शांति का प्रतीक है। भगवान शंकर की भांति उनका भी निवास पर्वतों पर है। मां शैलपुत्री की उपासना में योगी और साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। इसी स्थान से योग साधना का आरंभ होता है। मां, साधक को साधना में लीन होने की शक्ति, साहस और बल प्रदान करती हैं, साथ ही आरोग्य का वरदान भी देती हैं। मां शैलपुत्री समस्त वन्य जीव-जंतुओं पर अपनी कृपा बरसाती हैं। जो भी उनकी पूजा-उपासना श्रद्धा भक्ति के साथ करता है, मां उन्हें अभयदान देती हैं। मां शैलपुत्री अपने भक्तों को आकस्मिक आपदाओं से भी मुक्त रखती हैं। उन्हें धन-वैभव, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाती हैं।
पूजा कैसे करें
पूजा में सफेद और लाल रंग नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को सफेद या लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। गाय के दूध से बने पकवान एवं मिष्ठान्न का भोग लगाने से मां शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं और दरिद्रता को दूर कर भक्त के परिवार के सभी सदस्यों को रोग मुक्त करती हैं। मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए कन्या को कंघा, हेयर ब्रश, हेयर क्रीम या बैंड उपहार में दें। पिपरमिंट युक्त मीठे मसाले का पान, अनार या गुड़ से बने पकवान का भी अर्पण किया जा सकता है। तत्पश्चात सपरिवार आरती करें।
द्वतीय दिवस
मां ब्रह्मचारिणी
हे मां, हमें भी दो स्मरण शक्ति
मां ब्रह्मचारिणी के पूजन से मनुष्य में तप, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।
साधना मंत्र ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः।
ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। धवल वस्त्र, दाहिने हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल लिए मां ब्रह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली देवी; सत, चित्त, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही जिनका स्वभाव है। मां की आभा पूर्ण चंद्रमा के समान निर्मल और कांतिमय है। मां ब्रह्मचारिणी की शक्ति का स्थान 'स्वाधिष्ठान चक्र' में है। नवरात्रि के दूसरे दिन भक्त एवं योगी, मां के इसी विग्रह की पूजा-अर्चना करते हैं। मां अपने भक्तों को उनके प्रत्येक कार्य में सफलता प्रदान करती हैं। जो भी साधक या भक्त मां ब्रह्मचारिणी की आराधना भक्तिभाव से करता है, वह जीवन में कभी भी नहीं भटकता, यानी मां के उपासक सन्मार्ग से कभी नहीं हटते और जीवन के कठिन संघर्षों में भी बिना विचलित हुए अपने कर्तव्य का पालन करते रहते हैं। मां के इस रूप के पूजन से दीर्घायु प्राप्त की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना करने से मनोकूल जीवन-साथी की प्राप्ति होती है।
पूजा कैसे करें
माता को चढ़ाएं मिश्री : मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल के फूल बेहद पसंद हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन इन्हीं पुष्पों को अर्पित किया जाता है और चीनी, मिश्री तथा पंचामृत का भोग लगाया जाता है। प्रसाद भेंट करने और आचमन के पश्चात पान-सुपारी भेंटकर प्रदक्षिणा करें। इसके बाद घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। मां की प्रसन्नता के लिए खुशबूदार तेल की शीशी कन्याओं को दें।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें- 'आवाहन न जानामि न जानामि विसर्जनम | पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि । ।'
तृतीय दिवस
मां चंद्रघंटा ,आरोग्य और संपदा की मां
देवी सभी बाधाओं और संकटों को दूर करने वाली हैं।
साधना मंत्र ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः
मां के तीसरे शक्ति-विग्रह का नाम चंद्रघंटा है। मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना भक्त नवरात्रि के तीसरे दिन करते हैं। चंद्रघंटा स्वरूप में मां का रंग सोने के समान चमकीला और तेजस्वी है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र है, जिससे उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। मां के इस रूप में दस हाथ हैं। एक हाथ में कमल का फूल, एक में कमंडल, एक में त्रिशूल, एक में गदा, एक में तलवार, एक में धनुष और एक में वाण हैं। एक हाथ हृदय पर, एक हाथ आशीर्वाद मुद्रा में और एक हाथ अभय मुद्रा में रहता है। मां के गले में सफेद फूलों की माला रहती है और उनका वाहन बाघ है। देहधारियों में उनके इस रूप का स्थान 'मणिपुर 'चक्र' है। साधक मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए 'मणिपुर चक्र' में ध्यान लगाते हैं। मां की कृपा से श्रद्धालुओं को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और दिव्य ध्वनियां सुनाई पड़ती हैं। मां का यह स्वरूप दानव, दैत्य, राक्षसों को कंपाने वाला और प्रचंड ध्वनि उनकी हिम्मत पस्त कर देने वाली होती है। घंटे की ध्वनि के साथ मां की आरती : मां के इस स्वरूप की पूजा करने से घर और मन में शांति आती है। साथ ही परिवार का कल्याण होता है।
पूजा कैसे करें
इस दिन मां को दूध या उससे बनी चीजें अर्पित करनी चाहिए। इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है। मां को सफेद फूलों के साथ-साथ लाल फूल भी चढ़ाए जा सकते हैं। गुड़ और लाल सेब मां को बहुत पसंद हैं। मां चंद्रघंटा की आरती के समय घंटा बजाने का भी विधान है। उनकी प्रसन्नता के लिए कन्याओं को आईना, रोली और खिलौना आदि भेंट करें।
चतुर्थ दिवस
मां कूष्मांडा,हमें भी दो यश और आयु, मां
मां कूष्मांडा के पूजन से जटिल से जटिल रोगों से मिलती है मुक्ति।
साधना मंत्र ॐ देवी कूष्मांडायै नमः।
शक्ति का चौथा स्वरूप मां कूष्मांडा हैं। नवरात्रि के चौथे दिन भक्त मां के इसी रूप की चारों ओर पूजा करते हैं। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था अंधकार-ही-अंधकार था, तब मां कूष्मांडा ने महाशून्य में अपने मंद हास से उजाला करते हुए 'अंड' की उत्पत्ति की, जो कि बीज रूप में ब्रह्म के मिलने से ब्रह्मांड बना। यही मां का अजन्मा और आद्यशक्ति रूप है। जीवों में मां कूष्मांडा का स्थान 'अनाहत चक्र' में माना गया है। नवरात्रि के चौथे दिन योगी इसी चक्र में ध्यान लगाते हैं। मां कूष्मांडा का निवास स्थान सूर्य लोक में है। उस लोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल उन्हीं में है। मां कूष्मांडा अष्टभुजा हैं। उनके सात हाथों में क्रमश: कमंडल, धनुष, वाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र और गदा हैं। आठवें हाथ में सर्वसिद्धि और सर्वनिधि देने वाली जपमाला है। मां का वाहन 'बाघ' है। मां कूष्मांडा की उपासना से जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है, सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।
पूजा कैसे करें
मां कूष्मांडा को चढ़ाएं लाल गुलाब : नवरात्रि के चौथे दिन अत्यंत पवित्र और शांत मन से मां कूष्मांडा की उपासना संपूर्ण विधि-विधान से करनी चाहिए। कहा जाता है कि मां कूष्मांडा लाल गुलाब चढ़ाने पर अति प्रसन्न होती हैं। रोगों से निजात, दीर्घजीवन, प्रसिद्धि और शोहरत पाने के लिए माता को मालपुए का भोग लगाएं। इस उपाय से बुद्धि भी कुशाग्र होती है। तत्पश्चात इस प्रसाद को दान करें और स्वयं भी ग्रहण करें। इस दिन कन्याओं को मिठाई और कोल्ड क्रीम आदि भेंट करें।
पांचवां दिवस
मां स्कंदमाता देवी अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
साधना मंत्र – ॐ देवी स्कंदमातायै नमः।
मां स्कंदमाता यह मां का पांचवां विग्रह स्वरूप है। देव सेनापति बनकर तारकासुर का वध करने वाले और मयूर (मोर) को वाहन रूप में अपनाने वाले स्कंद की माता होने के कारण ही उनको स्कंदमाता के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के पांचवें दिन मां के इसी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। योगी इस दिन पुष्कल चक्र या विशुद्ध चक्र में मन एकाग्र करते हैं। यही चक्र प्राणियों में मां का स्थान है। मां का यह विग्रह स्वरूप चार भुजाओं वाला है। उन्होंने अपनी गोद में भगवान स्कंद को बिठा रखा है। दाहिनी ओर की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प वरण किया हुआ है और बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा से मां, भक्तों को आशीर्वाद और वर प्रदान करती हैं। नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। मां का वर्ण पूरी तरह निर्मल कांति वाला सफेद है और वे कमलासन पर विराजती हैं। वाहन के रूप में उन्होंने सिंह को अपनाया है। मां स्कंदमाता की उपासना से साधक को मृत्यु लोक में ही परम शांति तथा सुख मिलता है और वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर बढ़ता है।
सुख-शांति के लिए स्कंदमाता की पूजा : मां स्कंदमाता की साधना का संबंध व्यक्ति की सेहत, बुद्धि, चेतना, तंत्रिका तंत्र और रोगमुक्ति से है। नवरात्रि के पांचवें दिन भक्तों को केले का भोग लगाना चाहिए या फिर इसे प्रसाद के रूप में दान करना चाहिए। इससे परिवार में सुख-शांति आती है। मां स्कंदमाता की साधना से असाध्य रोगों का निवारण होता है और गृहक्लेश से मुक्ति मिलती है। बुद्धिबल में वृद्धि के लिए मां को मंत्रों के साथ छह इलायची चढ़ाएं। इस दिन सामर्थ्य अनुसार किसी कन्या को कोई भी आभूषण भेंट करें।
षष्ठम दिवस
मां कात्यायनी विजय के मार्ग पर मां की कृपा
मां कात्यायनी के भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की होती है प्राप्ति।
साधना मंत्र ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।
मा का यह छठा विग्रह स्वरूप है और मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना भक्त नवरात्रि के छठे दिन करते हैं। सुनहले और चमकीले वर्ण, चार भुजाएं और रत्नाभूषणों से अलंकृत देवी शक्ति का छठा स्वरूप मां कात्यायनी हैं। इस रूप में मां खूंखार और झपट पड़ने वाली मुद्रा में सिंह पर सवार हैं। उनका आभामंडल विभिन्न देवों के तेज अंशों से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है। प्राणियों में मां कात्यायनी का वास 'आज्ञा चक्र' में होता है। साधक इस दिन इसी चक्र में ध्यान लगाते हैं। मां के इस स्वरूप में दाहिनी ओर की ऊपर वाली भुजा अभय और नीचे वाली भुजा वर देने वाली मुद्रा में रहती है। बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में उन्होंने चंद्रहास खड्ग (तलवार) धारण की है और नीचे वाली भुजा में कमल का फूल है। एकाग्रचित और पूर्ण समर्पित भाव से मां की उपासना करने वाला भक्त बड़ी सहजता से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कर लेता है। मां कात्यायनी अमोघ फल देकर प्रत्येक क्षेत्र में विजय दिलाती हैं।
पूजा कैसे करें
मां कात्यायनी को चढ़ाएं शहद : नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी का ध्यान गोधूलि बेला में किया जाता है। मां कात्यायनी अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं। मान्यता है कि अविवाहित कन्याएं अगर मां कात्यायनी की पूजा करती हैं तो विवाह का योग जल्दी बनता है और योग्य वर की प्राप्ति होती है। मधु यानी शहद का भोग लगाकर मां कात्यायनी को प्रसन्न किया जा सकता है। इस दिन मां को प्रसन्न करने के लिए फूल और फल कन्याओं को भेंट करें।
सप्तम दिवस
मां कालरात्रि,
ग्रह बाधा से मुक्ति भूत-प्रेतों से मुक्ति दिलाने वाली मां कालरात्रि की पूजा से सभी दुख-संताप दूर हो जाते हैं।
साधना मंत्र ॐ देवी कालरात्र्यै नमः।
कालरात्रि, देवी भगवती का सातवां विग्रह रुप हैं। मां के तीनों नेत्र ब्रह्मांड के गोले की तरह गोल हैं। गले में विद्युत जैसी छटा देने वाली सफेद माला सुशोभित है। मां कालरात्रि की चार भुजाएं हैं और वाहन गधा है। मां का यह स्वरूप भयानक है, लेकिन वे भक्तों को शुभ फल ही प्रदान करती हैं। इसी कारण उनको 'शुंभकरी' भी कहा जाता है। योगी इस दिन 'सहस्त्रार चक्र' में ध्यान लगाते हैं। मां कालरात्रि ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए राह खोल देती हैं। साधक के ऐसा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मां के एक हाथ में चंद्रहास खड्ग और एक हाथ में कांटेदार कटार है तथा दो हाथ वरमुद्रा व अभय मुद्रा में हैं। मां नकारात्मक, तामसी और राक्षसी प्रवृत्तियों का विनाश करके भक्तों को दानव, दैत्य, राक्षस, भूत-प्रेत आदि से अभय प्रदान करती हैं। उनकी उपासना से प्रतिकूल ग्रहों द्वारा उत्पन्न बाधाएं समाप्त होती हैं और जातक अग्नि, जल, जंतु, शत्रु आदि के भय से मुक्त हो जाता है।
पूजा कैसे करें
मां कालरात्रि को अर्पित करें गुड़ : नवरात्रि का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। सप्तमी की रात्रि को सिद्धियों की रात भी कहा जाता है। इस दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना से भक्तों के सभी दुख-संताप दूर हो जाते हैं। मां शत्रुओं का नाश करते हुए अशुभ ग्रहों के दोष से मुक्ति दिलाती हैं। इस दिन माता को प्रसन्न करने के लिए गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें। इससे घर में दरिद्रता का वास नहीं रहता। इस दिन कन्याओं को रूमाल और खुशबूदार चीजें भेंट करें।
अष्ठम दिवस
मां महागौरी,सफलता की राह पर आशीर्वाद
मां महागौरी की पूजा से संतान संबंधी कष्टों से मिलता है छुटकारा।
साधना मंत्र,ॐ देवी महागौर्यै नमः ।
शक्ति का अष्टम रूप मां महागौरी हैं। नवरात्रि के आठवें दिन जो भक्त मां महागौरी की पूजा श्रद्धाभक्ति के साथ करते हैं, उनके सारे असंभव कार्य सिद्ध हो जाते हैं। वे अक्षय पुण्यों के अधिकारी हो जाते हैं। मां के समस्त वस्त्राभूषण और उनका वाहन भी हिम के समान सफेद या गौर वर्ण वाला वृषभ अर्थात बैल है। वस्त्र और आभूषण श्वेत होने के कारण ही उनको श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। मां महागौरी की चार भुजाएं हैं। एक हाथ में डमरू और एक हाथ में त्रिशूल है तथा अन्य दो हाथ अभय और वर मुद्रा में हैं। मां मनुष्य की प्रवृत्ति को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं। मां का यह स्वरूप भक्तों को तुरंत और अमोघ फल प्रदान करता है। मां महागौरी की कृपा से साधक को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। जो महिलाएं नित मां महागौरी की पूजा श्रद्धाभाव से करती हैं, वे सदैव सौभाग्यवती रहती हैं। कुंवारी कन्याओं को योग्य वर और पुरुष को सुखमय जीवन तथा आनंद की प्राप्ति होती है।
पूजा कैसे करें
महागौरी को नारियल का भोग : श्वेत वस्त्र धारण किए मां महागौरी, भक्तों को पुत्रवत स्नेह करने वाली हैं। इनकी पूजा के बाद शहद, कमलगट्टे और खीर से हवन करने से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्रि के आठवें दिन पूजा अर्चना कर नारियल का भोग लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। मान्यता है कि इस दिन नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करने से हर प्रकार की बाधा दूर हो जाती है। मां महागौरी की पूजा करने के बाद पकवान, मिठाई, हलवा आदि कन्याओं को दान करें।
नवम दिवस
मां सिद्धिदात्री सिद्धि और मोक्ष की देवी
मां सिद्धिदात्री को ही जगत को संचालित करने वाली देवी कहा गया है।
साधना मंत्र ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।
सिद्धिदात्री स्वरूप में देवी की पूजा महानवमी यानी नवरात्रि के अंतिम दिन की जाती है। इस रूप में मां श्रद्धालुओं को समस्त प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। मां सिद्धिदात्री चतुर्भुज सिंहवाहिनी हैं। गति के समय मां सिंह और अचला रूप में कमल पुष्प के आसन पर मा मी बैठती हैं। उनके दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में गदा, ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र रहता है। बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प और ऊपर वाले हाथ में शंख विद्यमान है। अपने इस शक्ति विग्रह में मां भक्तों को ब्रह्मांड की सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं। नवरात्रि पूजन के अंतिम दिन भक्त उनके इसी रूप की शास्त्रीय विधि-विधान से पूजा करते हैं। उनके इस स्वरूप की पूजा संसारी जन ही नहीं, बल्कि देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक आदि भी करते हैं। नवरात्रि के सिर्फ नौवें दिन भी यदि कोई भक्त एकाग्रता और निष्ठा से उनकी विधिवत पूजा करता है तो उसे सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने वाले की सभी लौकिक और पारलौकिक कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
मोक्षदायिनी मां सिद्धिदात्री: देवी सिद्धिदात्री सब प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि के नौवें दिन उनकी पूजा आराधना की जाती है। उनकी कृपा से मनुष्य सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त कर मोक्ष पाने में सफल होता है।
पूजा कैसे करें
पूजन हवन करने के बाद ही व्रत का पारायण किया जाता है। मां सिद्धिदात्री को हलवा, पूरी, चना, खीर, पूए आदि का भोग लगाएं। मां को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को वस्त्र, रुपये और भोज्य पदार्थ भेंट करें।