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class 10 science chapter 07 How do Organisms Reproduce जीव जनन कैसे करते हैं? notes in hindi

 class 10 science chapter 07 How do Organisms Reproduce notes in hindi


कक्षा 10वी विज्ञान अध्याय 07जीव जनन कैसे करते हैं? का सम्पूर्ण हल

Subhansh

  जीव जनन कैसे करते हैं


  How do organisms reproduce











07 जीव जनन कैसे करते हैं?


महत्त्वपूर्ण परिभाषा


1.जीव सदृश प्रतीत होते हैं, क्योंकि इनका अभिकल्प, आकार एवं आकृति समान होता है।


2.जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीव अपने समान सन्तान उत्पन्न करता है; अतः यह जीवन चक्र (life cycle) को पूर्ण करने तथा वंश को चलाये रखने के लिए अनिवार्य क्रिया है।


3.कुछ बहुकोशिकीय जीवों विशेषकर तन्तुवत शैवालों एवं कवकों में प्रौढ़ तन्तु दो या अधिक खण्डों (fragments) में टूट जाते हैं।


4.पूर्णरूपेण विभेदित कुछ बहुकोशिक जीवों में अपने कायिक भाग से नए जीव के निर्माण की क्षमता होती है। यदि किन्हीं कारणों से जीव क्षत-विक्षत हो जाता है या इसका कुछ भाग टूटकर अलग हो जाता है तो ऐसे बना प्रत्येक टुकड़ा वृद्धि एवं विकास करके नया जीव बन जाता है।


5.मुकुल हाइड्रा के शरीर पर एक स्थान पर कोशिकाओं के नियमित विभाजन के कारण उभार के रूप में विकसित होता है।


6.लैंगिक जनन वह प्रक्रिया है। जिसमें दो विशेष कोशिकायें, जिन्हें युग्मक, (gamets) कहते हैं, के संयुग्मन (fasion) से बने युग्मनज (zygote) के विभाजन एवं वृद्धि से नयी सन्तान का विकास होता है। इस प्रकार के संयुग्मन को निषेचन (fertilization) कहते हैं।


7.एकलिंगी जंतुओं में बहुधा लैंगिक द्विरूपता (sexual diamorphism) पाई जाती है अर्थात् इनमें नर (male) तथा मादा (female) को अलग-अलग में पहचाना जा सकता है।


8.जनन कोशिकाओं का उत्पादन करने वाले अंग तथा जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंगों को संयुक्त रूप से नर जनन तंत्र कहते हैं।


9.परिवार कल्याण हेतु बच्चों की संख्या सीमित कर, परिवार को नियोजित करने की प्रक्रिया को परिवार नियोजन (family planning) कहते हैं।






प्रत्येक जीव कुछ निश्चित समय तक ही जीवित रहता है, जो उस जीव का जीवनकाल (Lifespan) कहलाता है। अतः अपनी जाति या वंश की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए अपने जैसे जीवों को उत्पन्न करने की क्रिया को जनन कहते हैं।


जनन का आधार


जनन के पश्चात् उत्पन्न सन्तति अपने जनक के समान होती है। इसका प्रमुख कारण आनुवंशिक पदार्थ डीऑक्सीराइबोस न्यूक्लिक अम्ल (DNA) है, जो सम्पूर्ण जीव की आनुवंशिक इकाई होती है। यह जनन कोशिका के केन्द्रक में संघनित गुणसूत्र के रूप में उपस्थित होता है। इनमें आनुवंशिक गुणों का सन्देश छुपा होता है, जो जनक से सन्तति पीढ़ी में जाता है, परन्तु इन सन्ततियों में कभी-कभी वातावरणीय कारकों के द्वारा DNA की संरचना में परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है और सन्तति में जनक की तुलना में कुछ विविधताएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिन्हें विभिन्नताएँ कहते हैं। विभिन्नताओं की अनुपस्थिति में कोई भी जाति विकास नहीं कर सकती। ऐसा होने पर उस जाति के सभी सदस्य समान होंगे।


विभिन्नता का महत्त्व


1.ये पर्यावरणीय परिवर्तनों के लिए पूर्व अनुकूलन का कार्य करती हैं।

2. ये जाति अस्तित्व के संघर्ष में सहायक होती हैं।


3.ये उन्नत जातियों के निर्माण एवं विकास में सहायक होती हैं। 


4.इनके द्वारा नए लक्षणों का विकास होता है।


5.ये जाति निर्माण में सहायक होती हैं।


जनन के प्रकार


यह दो प्रकार का होता है


1. अलैंगिक जनन


2. लैंगिक जनन


1. अलैंगिक जनन (एकल जीवों में प्रजनन की विधि)


इस प्रकार के जनन में विशेष जनन कोशिकाओं के बिना ही, एक जनक द्वारा नई सन्तति का निर्माण होता है। इसके फलस्वरूप, जिस सन्तति का जन्म होता है, वह आनुवंशिक रूप से पूरी तरह अपने जनक के समान होती है। इसके अन्तर्गत निम्न विधियाँ आती हैं


(i) विखण्डन


इस विधि में परिपक्व जीव विभाजित होकर दो या अधिक कोशिकाओं में विभक्त हो जाता है। इसमें सर्वप्रथम केन्द्रक विभाजित होता है तथा बाद में कोशिकाद्रव्य विभाजित होता है। इस विधि द्वारा प्रायः एककोशिकीय जन्तु प्रजनन करते हैं।


यह दो प्रकार का होता है


(a) द्विविखण्डन कुछ प्रोटोजोअन्स जैसे- अमीबा, पैरामीशियम आदि में कोशिकाएँ विभाजन द्वारा सामान्यतया दो बराबर भागों में विभक्त हो जाती हैं; इस प्रक्रिया में पहले केन्द्रक का विभाजन होता है, तत्पश्चात् कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) का विभाजन होता है, जिससे प्रत्येक कोशिका दो सन्तति कोशिकाओं में बँट जाती है।


(b) बहुविखण्डन कुछ एककोशिकीय जन्तुओं में कोशिकाद्रव्य विभाजित होकर सूक्ष्म विखण्ड बना लेते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में कोशिका आवरण फटने पर ये विखण्ड मुक्त होकर स्वतन्त्र जीवों के रूप में विकसित हो जाते हैं, उदाहरण प्लाज्मोडियम (मलेरिया परजीवी)।



(ii) खण्डन द्वारा


इस विधि में बहुकोशिकीय जीव पूर्ण वृद्धि करके दो या अधिक खण्डों में टूट जाते हैं। इसके पश्चात् प्रत्येक खण्ड वृद्धि करके पूर्ण जीव बना लेता है; उदाहरण स्पाइरोगायरा, राइजोपस, यूलोथिक्स, हाइड्रा


(iii) पुनरुद्भवन (पुनर्जनन)


किसी जन्तु के किसी भी कटे हुए भाग से नए जन्तु की उत्पत्ति को पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) कहते हैं, उदाहरण हाइड्रा, प्लेनेरिया, आदि।


(iv) मुकुलन


इस प्रक्रिया में एक छोटा सा उभार बाहर की ओर निकलने लगता है, जिसे मुकुल (Bud) कहते हैं। यह मुकुल धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और मातृकोशिका से अलग होकर स्वतन्त्र पादप बना लेता है; उदाहरण यीस्ट, हाइड्रा ।


(v) कायिक प्रवर्धन


पादप के किसी भी कायिक भाग से सम्पूर्ण पादप प्राप्त करने की प्रक्रिया को कायिक प्रवर्धन कहते हैं। यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है


(a) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन पादपों में स्वतः होने वाले कायिक प्रवर्धन को प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन कहते हैं। यह जड़, तना, पत्तियों, आदि द्वारा हो सकता है। भूमिगत तनों द्वारा आलू (कन्द), प्याज (शल्ककन्द), अदरक (प्रकन्द) तथा अरबी (घनकन्द), आदि में कायिक जनन होता है। पर्णकलिकाओं द्वारा ब्रायोफिल्लम में कायिक जनन होता है।


(b) कृत्रिम कायिक प्रवर्धन इसमें निम्न या अशुद्ध जाति के पादप पर उच्च या शुद्ध किस्म के पादप को रोपित किया जाता है। इस विधि में निम्न किस्म के जाति के तने को तिरछा काट लिया जाता है, जिसे स्कन्ध कहते हैं; उदाहरण गुलाब,गन्ना, अंगूर, चमेली, आदि।


(vi) बीजाणु द्वारा


बीजाणु का निर्माण एककोशिकीय और बहुकोशिकीय दोनों ही प्रकार के जीवों में होता है। एककोशिकीय पादपों में बहुविखण्डन के पश्चात् चलबीजाणुओं का निर्माण होता है; उदाहरण क्लैमाइडोमोनास ।


बीजाणु निर्माण में, जनक पादप अपने बीजाणुधानी में सैकड़ों प्रजनन इकाईयाँ पैदा करता है, जिन्हें 'बीजाणु' कहते हैं। जब पादपों की यह बीजाणुधानी फटती है, तो ये बीजाणु वायु, भूमि, भोजन या मृदा पर बिखर जाते हैं और नए पादप को जन्म देते हैं। राइजोपस, म्यूकर, आदि कवक बीजाणु निर्माण के उदाहरण हैं।


2. लैंगिक जनन


प्रजनन की वह क्रिया जिसमें विशेष जनन कोशिकाएँ अर्थात् दो युग्मकों के मिलने से बनी रचना युग्मनज द्वारा नए जीव की उत्पत्ति होती है। युग्मकों के संयोग को संयुग्मन या निषेचन कहते हैं। युग्मकों का निर्माण एक ही जनक या दो अलग-अलग जनकों (नर एवं मादा) से हो सकता है।


लैंगिक जनन का महत्व


(i) जाति / स्पीशीज़ की समष्टि में पाई जाने वाली विभिन्नता उस स्पीशीज़ के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक है अर्थात् लैंगिक जनन में जनक दो विपरीत लिंगों के होने से विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।


(ii) कायिक कोशिकाओं में गुणसूत्रों एवं DNA की संख्या आधी होती है। लैंगिक जनन में युग्मन द्वारा सन्तति में DNA एवं गुणसूत्रों की मात्रा पुनर्स्थापित हो जाती है।



पुष्पीय पादपों में लैंगिक जनन


पादपों में पुष्प जनन हेतु बनी एक विशिष्ट संरचना होती है। पुष्प एक संघनित रूपान्तरित तना होता है। पुष्प वृन्त के शिखर पर पुष्पासन होता है। पुष्पासन पर चार पुष्प चक्र लगे होते हैं। इन्हें परिधि से केंद्र की और क्रमशः बाह्य दलपुंज, दलपुंज, पुमंग तथा जायांग कहते हैं।


(i) बाह्य दलपुंज इसकी इकाई संरचना बाहादल कहलाती है। यह पुष्प का सबसे बाहरी चक्र होता है। बाहादल पुष्पासन पर सबसे बाहर की ओर स्थित तथा हरे रंग के होते हैं। यह कलिकावस्था में पुष्प की रक्षा करते हैं।


(ii) दलपुंज इसकी इकाई, दल कहलाती है। यह पुष्प का द्वितीय चक्र होता है। यह प्राय: रंगीन होते हैं तथा परागण में सहायक होते हैं। 


(iii) पुमंग यह पुष्प का तीसरा चक्र होता है। इसका निर्माण पुंकेसरों द्वारा होता है। यह पुष्प का नर जनन अंग होता है। परागकोष में परागकण या लघुबीजाणु

(Microspores) बनते हैं।


(iv) जायांग या स्त्रीकेसर यह पुष्प का सबसे भीतरी चक्र होता है। इसका निर्माण अण्डप से होता है। जायांग के मध्य का पतला लम्बा भाग वर्तिका कहलाता है। यह पुष्प का मादा जनन अंग है। अण्डाशय में बीजाण्ड बनते हैं। वर्तिकाग्र परागण के समय परागकणों को ग्रहण करते हैं। निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड से बीज तथा अण्डाशय से फल का निर्माण होता है।


#. जब पुष्प में पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है, तो पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं, जैसे-पपीता, तरबूजा


#.जब पुष्प में पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं, तो उन्हें उभयलिंगी पुष्प कहते हैं, जैसे-गुड़हल, सरसों।


परागण – किसी पुष्प के परागकणों का उसी पुष्प या उसी जाति के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचने की क्रिया को 'परागण' कहते हैं। परागकण परागकोष में स्थित होते हैं। परागण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है,


(i) स्व-परागण एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर या पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर या कायिक जनन द्वारा तैयार किए गए, उसी

जाति के किसी अन्य पादप के वर्तिकाग्र पर पहुँचने को 'स्व-परागण' कहते हैं।


(i) पर-परागण जब एक पुष्प के परागकण लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न उसी जाति के अन्य पादप के वर्तिकाग्र पर विभिन्न माध्यमों से पहुंचते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं। एकलिंगी पुष्पों पपीता, मक्का में पर-परागण पाया जाता है। पर-परागण कीटों द्वारा, वायु द्वारा, जल द्वारा और जन्तुओं के माध्यम से होता है।


नोट कीट परागण साल्विया में, मक्का में वायु परागण जबकि वैलिस्नेरिया में जल परागण होता है।


पादपों में निषेचन क्रिया


पुष्पी पादपों में बीजाण्ड के भ्रूणकोष में निषेचन क्रिया होती है। परागकण का जनन केन्द्रक दो नर युग्मक बनाता है। परागकण से निकली परागनलिका बीजाण्ड में प्राय: बीजाण्डद्वार से प्रवेश करके दोनों नर युग्मकों को मुक्त कर देती है।


एक नर युग्मक अण्डकोशिका से संलयित होकर द्विगुणित (20) युग्मनज बनाता है। यह सत्य निषेचन कहलाता है। दूसरा नर युग्मक द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक से मिलकर त्रिगुणित (30) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बनाता है।


यह वृद्धि करके पोषक ऊतक भ्रूणपोष का निर्माण करता है। इस प्रक्रिया को त्रिक संलयन (Triple fusion) कहते हैं। यहाँ निषेचन की क्रिया दो बार (सत्य निषेचन व त्रिक संलयन) होती हैं। अतः इसे द्विनिषेचन (Double fertilisation) भी कहते हैं। द्विनिषेचन आवृतबीजी पादपों का विशिष्ट लक्षण है। आवृतबीजी पादपों में निषेचनोपरान्त बीज कवच का निर्माण अच्यावरण (Integuments) से होता है। बीज में भावी पादप अथवा भ्रूण होता है, भ्रूण द्वारा नवोद्भिद पादप को जन्म देने की प्रक्रिया को अंकुरण कहते हैं।


नोट निषेचन के पश्चात् अण्डाशय फल में तथा बीजाण्ड बीज में परिवर्तित हो जाता है। 



मानव में लैंगिक जनन


किसी भी प्राणी के जनन करने योग्य हो जाने को यौवनारम्भ (Adolescent) कहते हैं। इसकी आयु पुरुषों में 15-18 वर्ष तक तथा स्त्रियों में 11-14 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में स्त्री एवं पुरुषों के लक्षणों में कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव आते हैं, जोकि गौण लैंगिक लक्षण कहलाते हैं; जैसे- पुरुषों में भारी स्वर, शुक्राणुओं का निर्माण, हॉर्मोन श्रावण एवं स्त्रियों में स्तन विकास, मासिक धर्म, आदि। 



नर जनन तन्त्र


(i) वृषण पुरुषों में एक जोड़ी वृषण, उदरगुहा से बाहर शिश्न के पास वृषण कोष (Scrotal sacs or scrotum) में सुरक्षित पाए जाते हैं। वृषण कोष की थैलेनुमा संरचना होती है, जिसका तापमान शरीर से लगभग 2-2.5°C कम रहता है। वृषणों में कुण्डलित शुक्रनलिकाएँ उपस्थित होती हैं, जिनमें शुक्राणुजनन होता है।


(ii) अधिवृषण वृषणों से चिपकी नलिकाकार, लम्बी संरचना होती है। इनमें शुक्राणु परिपक्व होते हैं।


(iii) शुक्रवाहिनियाँ शुक्राणु इनके द्वारा उदरगुहा में स्थित शुक्राशय में पहुँचते हैं।


 (iv) शुक्राशय यह थैलीनुमा संरचना होती है। इसका क्षारीय पोषक तरल का स्रावण होता है, जिसमें शुक्राणु गति करते हैं। शुक्राणु इस तरल के साथ मिलकर वीर्य (Semen) का निर्माण करते हैं। शुक्राशय से निकलने वाली एक छोटी नलिका शुक्रवाहिनी से मिलकर स्खलन नलिका (Ejaculatory duct) बनाती है।


(v) मूत्रमार्ग शुक्राशय स्खलन नलिका की सहायता से मूत्रमार्ग में खुलता है, जो शिश्न के शीर्ष सिरे पर मूत्र जनन छिद्र द्वारा बाहर खुलता है। यह शुक्राणु तथा मूत्र के बाहर निकलने का संयुक्त मार्ग होता है।


(vi) शिश्न यह बेलनाकार पेशीय मैथुनांग (Copulatory organ) होता है, जो मैथुन क्रिया में सहायक होता है। यह रुधिर एवं पेशियों द्वारा निर्मित होता है। 


(vii) सहायक ग्रन्थियाँ प्रोस्टेट (Prostate), काउपर (Cowper), पेरीनियल (Perineal) ग्रन्थि नर जनन तन्त्र की सहायक ग्रन्थियाँ होती हैं। ये वीर्य निर्माण, शुक्राणुओं को पोषण देने तथा उनको जीवित रखने में सहायता करती हैं। 



मादा जनन तन्त्र


(i) अण्डाशय इनमें अण्ड कोशिका का निर्माण होता है। ये मादा हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजन का भी स्रावण करते हैं।


(ii) अण्डवाहिनियाँ अथवा फैलोपियन नालिका अण्डकोशिकाओं को अण्डाशय से गर्भाशय तक पहुँचाती हैं।


(iii) गर्भाशय यह दोनों अण्डवाहिनियों के खुलने का स्थान होता है। भ्रूण का परिवर्धन एवं भरण-पोषण यहीं होता है।



 (iv) योनि नलिका समान, मूत्राशय तथा मलाशय के मध्य स्थित होती है। यह मैथुनांग है एवं रजोधर्म के स्रावण का मार्ग भी है।


(v) सहायक ग्रन्थियाँ बार्थोलिन एवं पेरीनियल सहायक ग्रन्थियाँ होती हैं।




 निषेचन एवं पश्च निषेचन परिवर्तन


नर तथा मादा युग्मक अगुणित होते हैं। मैथुन के समय शुक्राणु योनि मार्ग में स्थापित होते हैं जहाँ से वे ऊपर की ओर गति करके अण्डवाहिका तक पहुँच जाते हैं, जहाँ अण्डकोशिका से मिल जाते हैं। इस शुक्राणु एवं अण्डकोशिका के संयोजन को निषेचन कहते हैं। जिसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है।


निषेचन के एक सप्ताह पश्चात् निषेचित अण्ड या युग्मनज (Zygote) गर्भाशय में स्थापित हो जाता है। यह प्रक्रिया गर्भाधान (Implantation) कहलाती है। भ्रूण (Embryo) को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है, इसके लिए एक विशेष प्रकार की संरचना होती है, जिसे जरायु या अपरा (Placenta) कहते हैं। युग्मनज गर्भ में लगभग 9 माह के समय में विकसित हो जाता है। गर्भाशय की पेशियों के लयबद्ध संकुचन से शिशु का जन्म होता है।


मासिक चक्र


अण्डाशय प्रत्येक माह एक अण्डे का मोचन करता है। अतः निषेचन अण्ड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय प्रतिमाह तैयारी करता है, जैसे-स्पंजी, अन्तः मित्ति, मांसल, परन्तु निषेचन ना होने की अवस्था में यह परत धीरे-धीरे टूट कर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। इस चक्र में लगभग एक माह का समय लगता है। अतः इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं। इसकी अवधि 2 से 8 दिनों की होती है।


जनन स्वास्थ्य


"जनन स्वास्थ्य का तात्पर्य, जनन के समस्त स्वस्थ विषयों के योग से है, जिसमें शारीरिक, भावनात्मक, व्यावहारिक तथा सामाजिक पहलू भी सम्मिलित हैं।"



लिंगानुपात


यह जनसंख्या में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या का अनुपात होता है। एक स्वस्थ समाज हेतु पुरुषों एवं महिलाओं की संख्या लगभग समान होनी चाहिए। वर्तमान में हमारे देश में कुछ क्षेत्रों में पुत्र की चाह में भ्रूण परीक्षण कर गर्भस्थ लड़की की हत्या कर देने के कारण इसमें असन्तुलन उत्पन्न हो गया है। अतः गर्भस्थ शिशु के लिंग परीक्षण पर कानूनन प्रतिबन्ध लगाया जा चुका है।


जनसंख्या आकार


एक समष्टि या जनसंख्या में कुल व्यक्तियों की संख्या जनसंख्या का आकार कहलाती है। वर्तमान में विश्व भर में मानवों की तीव्रता से बढ़ती जनसंख्या चिन्ता का प्रमुख कारण है। इसमें जन्म दर एवं मृत्यु दर सम्मिलित होती है। एक वृद्धि करती हुई जनसंख्या में जन्म दर, मृत्यु दर से अधिक होती है।


 जन्म दर नियन्त्रण


परिवार कल्याण हेतु बच्चों की संख्या सीमित कर, परिवार को नियोजित करने की प्रक्रिया को परिवार नियोजन कहते हैं। नीचे दी गई अस्थायी और स्थायी विधियों द्वारा आसानी से परिवार को नियोजित किया जा सकता है


(a) लूप अथवा कॉपर-टी स्त्रियाँ लूप लगवाकर गर्भधारण करने से अपना बचाव कर सकती हैं। यह सिर्फ गर्भधारण को रोकती है, यौन रोगों से रक्षा नहीं करती है।


(b) निरोध निरोध का प्रयोग पुरुष द्वारा किया जाता है। इसके प्रयोग से गर्भधारण होने की कोई भी सम्भावना नहीं होती है।


(C) गर्भ निरोधक गोलियाँ आजकल ऐसी गोलियाँ उपलब्ध हैं, जिनके सेवन से गर्भधारण की सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं। स्त्रियों के लिए अनेक प्रकार की गर्भ निरोधक गोलियाँ उपलब्ध हैं; जैसे-माला-डी, पर्ल्स, सहेली, आदि।


(d) गर्भ समापन गर्भधारण करने के बाद भी एक सीमित काल के भीतर, किसी कुशल व शिक्षित विशेषज्ञ डॉक्टर से गर्भ समापन कराया जा सकता है। 


(e) महिला का ऑपरेशन (नसबन्दी-Tubectomy) यह विधि पूर्ण तथा स्थाई विधि है। इस विधि में स्त्रियों की अण्डवाहिनी को काटकर बाँध दिया जाता है, जिससे अण्डाणु अण्डवाहिका (Fallopian tube) में आगे नहीं बढ़ पाते हैं।


(f) पुरुष का ऑपरेशन (नसबन्दी-Vasectomy) पुरुषों में शुक्रवाहिनी के ऑपरेशन से भी गर्भधारण की समस्या स्थाई रूप से दूर हो जाती है। इसमें पुरुष की शुक्रवाहिनी काट कर बाँध दी जाती है।


यौन संचारित रोग


वे रोग, जो सम्भोग के समय यौन सम्बन्धों द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचारित होते हैं, यौन संचारित रोग कहलाते हैं, इन्हें रजित रोग (Veneral Diseases or VD) भी कहते हैं।



 बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक

प्रश्न 1. जीवों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं


(a) वर्धी (कायिक) जनन द्वारा


(b) अलैंगिक जनन द्वारा


(c) लैंगिक जनन द्वारा


(d) बीजाणु निर्माण द्वारा


उत्तर (c) जीवों में विभिन्नताएँ लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होती हैं। ये विभिन्नताएँ भिन्न-भिन्न गुणसूत्रों की संरचना में परिवर्तन के कारण विकसित होती हैं।


प्रश्न 2. अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है


(a) अमीबा में


(c) प्लाज्मोडियम में


(b) यीस्ट में


(d) लीशमानिया में


उत्तर (b) यीस्ट में अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है।


प्रश्न 3. मुकुलन पाया जाता है


(a) प्लेनेरिया में


(c) लिशमानिया में


(b) हाइड्रा में


(d) इन सभी में



उत्तर (b) हाइड्रा में अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा सम्पन्न होता है।



प्रश्न 4. पौधों में कायिक प्रवर्धन के लिए कौन-सा भाग अधिक अनुकूल है?


(a) तना


(b) पत्ती 


(c) जड़ 


(d) प्रकलिका



उत्तर (a) पौधों में कायिक प्रवर्धन के लिए तना सबसे अधिक अनुकूल होता है।



प्रश्न 5. परागकोष में होते हैं


(a) बाह्यदल 


(b) अण्डाशय


(C) बीजाण्ड


(d) परागकण 


उत्तर (d) परागकोष में परागकण होते हैं।


प्रश्न 6. लघुबीजाणु उत्पन्न होते हैं


(a) पुमंग में


(b) जायांग में


(C) पुंकेसरों में


(d) परागकोष में


उत्तर (d) पुंकेसर के परागकोष में परागधानी में सूक्ष्म बीजाणुजनन द्वारा अगुणित परागकण या लघुबीजाणु बनते हैं।


प्रश्न 7. एक पुष्प के स्त्रीकेसर के मध्य भाग को कहते हैं


(a) वर्तिकाग्र 


(b) वर्तिका


(c) अण्डाशय


(d) अण्ड (बीजाण्ड)


उत्तर (b) स्त्रीकेसर या जायांग पुष्प के मादा जननांग है। इसकी इकाई को अण्डप कहते हैं। जायांग का मध्य पतला भाग वर्तिका कहलाता है। 


प्रश्न 8. परागकणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण कहलाता है.



(a) परागण


(b) अण्डोत्सर्ग


(C) निषेचन


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (a) परागकणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण परागण कहलाता है। ये दो प्रकार का होता है; स्व-परागण तथा पर परागण


प्रश्न 9. कीट परागण होता है


(a) मक्का में।       (C) साल्विया में


(b) वैलिस्नेरिया में।    (d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (c) कीट परागण साल्विया में होता है, जबकि मक्का में वायु परागण तथा वैलिस्नेरिया में जल परागण होता है।


प्रश्न 10. निषेचन के दौरान, परागकण से निकलने वाली परागनलिका सामान्यतया किसके द्वारा बीजाण्ड में प्रवेश करती है?


(a) अध्यावरण


(b) बीजाण्डद्वार 


(C) निभागी


(d) अण्डद्वार


उत्तर (b) निषेचन के दौरान प्रायः परागनलिका बीजाण्ड में बीजाण्डद्वार की ओर से प्रवेश कर नर युग्मकों को मुक्त करती है।


प्रश्न 11.परागकण का जनन केन्द्रक नर युग्मक बनाता है


(a) 4


(b) 2


(c) 3


(d) 1


उत्तर (b) परागकण का जनन केन्द्रक 2 नर युग्मक बनाता है। एक नर युग्मक सत्य निषेचन में तथा दूसरा त्रिक संलयन में भाग लेता है।


प्रश्न 12. पुष्पीय पादपों में निषेचन होता है


(a) बीजाण्ड में 


(b) अण्डाशय में


 (C) पराग नलिका में


(d) भ्रूणकोष में


 उत्तर (d) पुष्पीय पादपों में निषेचन बीजाण्ड के भ्रूणकोष में होता है। यह एक थैलीनुमा संरचना होती है, जिसमें एक अण्डकोशिका, दो सहायक कोशिकाएँ, तीन प्रतिध्रुवीय कोशिकाएँ तथा एक द्वितीयक केन्द्रक पाया जाता है।




प्रश्न 13. द्विनिषेचन पाया जाता है।


अथवा द्विनिषेचन विशेष लक्षण है 


(a) सभी जीवों में 


(b) सभी पादपों में


(c) आवृतबीजी पादपों में


(d) केवल जलीय पादपों में



उत्तर (c) द्विनिषेचन पुष्पी पादपों या आवृतबीजी पादपों का विशिष्ट लक्षण है।



प्रश्न 14. द्विनिषेचन क्रिया में त्रिक संलयन के पश्चात् बनने वाले ऊतक का नाम है


(a) भ्रूणपोष


(b) भ्रूण


(c) मूलांकुर


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (a) द्विनिषेचन क्रिया में त्रिक संलयन के पश्चात् बनने वाले ऊतक को भ्रूणपोष कहते हैं। भ्रूणपोष में भोज्य पदार्थ एकत्रित हो जाता है। भ्रूण के परिवर्धन के समय उसे पोषण देता है।


प्रश्न 15. निषेचन के बाद पुष्प का कौन-सा भाग फल में बदल जाता है? 


(a) पुंकेसर


(b) वर्तिका


(c) अण्डाशय


 (d) बीजाण्ड


उत्तर (c) निषेचन के बाद अण्डाशय फल में परिवर्तित हो जाता है। बीजाण्ड बीज में परिवर्तित हो जाता है।


प्रश्न 16. जाइगोट में गुणसूत्रों की संख्या होती है



 (a) 4X


(b) 3X


(c) 2X


(d) X


उत्तर (d) जाइगोट (युग्मनज) में गुणसूत्रों की संख्या X होती है।


प्रश्न 17. नर जनन अंगों से सम्बन्धित ग्रन्थि है।


(a) प्रोस्टेट ग्रन्थि


(C) एड्रीनल ग्रन्थि


(b) श्वेत ग्रन्थि


(d) एपिडिडाइमिस


उत्तर (a) प्रोस्टेट ग्रन्थि नर जनन अंगों से सम्बन्धित ग्रन्थि है। यह वीर्य निर्माण, शुक्राणुओं को पोषण देने तथा उनको जीवित रखने में सहायता करती है।


प्रश्न 18. निम्नलिखित में से कौन-सा टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन का कार्य नहीं है?



 (a) लड़कों में यौवानावस्था के लक्षणों का नियन्त्रण


(b) शुक्राणुओं के उत्पादन का नियन्त्रण


(C) हड्डियों और पेशियों का विकास


(d) शरीर वृद्धि के लिए उपापचय का नियमन



 उत्तर (c) हड्डियों और पेशियों का विकास टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन का कार्य नहीं है।


प्रश्न 19. निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तन्त्र का भाग नहीं है?


(a) अण्डाशय।         (b) गर्भाशय


(c) शुक्रवाहिका।        (d) डिम्बवाहिनी 


उत्तर (c) शुक्रवाहिका नर जनन अंग से सम्बन्धित नलिका है।





  अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक

     


प्रश्न 1. एककोशिकीय एवं बहुकोशिकीय जीवों की जनन पद्धति में क्या अन्तर है?


उत्तर – एककोशिकीय जीवों की अपेक्षा बहुकोशिकीय जीवों को जनन के लिए अपेक्षाकृत अधिक जटिल विधि की आवश्यकता होती है, क्योंकि विशेष कार्य हेतु इनमें विशिष्ट कोशिकाएँ संगठित होकर ऊतक का निर्माण करती हैं तथा ऊतक संगठित होकर अंग बनाते हैं, शरीर में इनकी स्थिति भी निश्चित होती है, जबकि एककोशिकीय जीव सरल संरचना वाले होते हैं तथा इनमें जनन की कोई विशेष कोशिकाएँ भी नहीं होती हैं। 


प्रश्न 2. पुनरूद्भवन से क्या तात्पर्य है? पुनरूद्भवन को एक उदाहरण से स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर– किसी जन्तु के किसी भी कटे हुए भाग से नए जन्तु की उत्पत्ति को पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) कहते हैं; उदाहरण हाइड्रा, प्लेनेरिया, आदि। 



प्रश्न 3. पादपों में अलैंगिक जनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 


अथवा अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं?



उत्तर – इस प्रकार के जनन में विशेष जनन कोशिकाओं के बिना ही एक जनक द्वारा नई सन्तति का निर्माण होता है। इसके फलस्वरूप, जिस सन्तति का जन्म होता है, वह आनुवंशिकी रूप से पूरी तरह अपने जनक के समान होती है। अतः इनकी सन्ततियों में विभिन्नताएँ होने की प्रायः सम्भावनाएँ नहीं होती हैं।


अलैगिक जनन विधि मुख्यतया एकल जीव, निम्न पादपों तथा जन्तुओं में पाई जाती उदाहरण प्रोटोजोआ, कवकों तथा कुछ निम्न जीव; जैसे-प्रोटिस्टा, स्पंज, सीलेन्ट्रेटा व प्लेनेरिया, आदि।


इसके विपरीत लैंगिक प्रजनन द्वारा युग्मकों के संलयन से विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं, जो जाति के अस्तित्व के लिए जरूरी है। ये विभिन्नताएँ जैव-विकास का मुख्य आधार हैं। यह जनन सामान्यतया निम्न श्रेणी के जन्तुओं में अनुपस्थित होता है, किन्तु उच्च श्रेणी के जन्तुओं में उपस्थित होता है।


प्रश्न 4. पादपों में कायिक जनन की दो विधियों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए। 



उत्तर – पादपों में कायिक जनन विभिन्न वर्धी भागों के आधार पर विभिन्न प्रकार का होता है। इनमें से दो उदाहरण निम्न हैं



(i) जड़ों द्वारा जड़ों में भोजन का संचय होता है। जड़ों पर अपस्थानिक कलिकाएँ उपस्थित होती हैं। अनुकूल परिस्थितियों में यह नए पादप का निर्माण करती है; उदाहरण शकरकन्द, सतावर, आदि।


(ii) पत्ती द्वारा मांसल पत्तियों में भोजन का संग्रह होता है। यह पर्ण कलिकाओं का निर्माण करती है। अनुकूल परिस्थितियों में यह नए पादप का निर्माण करती है; उदाहरण ब्रायोफिल्लम, बिगोनिया, घाव पत्ता, आदि।


प्रश्न 5. जीवों के जनन की विखण्डन एवं खण्डन विधि को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।



उत्तर (i) विखण्डन इस विधि में कोशिका दो भागों में विभाजित होकर नई सन्तति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं; उदाहरण जीवाणु, यूग्लीना


(ii) खण्डन इसमें सूकाय के कायिक सूत्र या तन्तु टूट जाते हैं तथा इन टूटे सूत्रों का प्रत्येक भाग वृद्धि करके नए पादप का निर्माण कर लेता है; उदाहरण शैवाल, कवक, आदि।




प्रश्न 6. अगर प्लेनेरिया या हाइड्रा को कई टुकड़ों में काट दें, तो इसका क्या परिणाम होगा? इस क्रिया का वर्णन कीजिए। 


अथवा प्लेनेरिया में पुनरुद्भवन द्वारा अलैंगिक जनन का वर्णन कीजिए।


 उत्तर – यदि प्लेनेरिया या हाइड्रा को अनेक टुकड़ों में काटा जाता है, तो प्रत्येक भाग वृद्धि एवं विभाजन द्वारा सम्पूर्ण हाइड्रा या प्लेनेरिया का निर्माण कर लेता है। शरीर के नवनिर्माण की इस प्रक्रिया को पुनरुद्भवन कहते हैं। ट्रेम्बले के अनुसार, पुनः 1.6 मिमी तक का हाइड्रा का टुकड़ा पूर्ण जीव का निर्माण कर सकता है। 



प्रश्न 7. पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए। 


उत्तर पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र निम्न हैं






प्रश्न 8. पुष्पीय पौधों में लैंगिक जनन किन अंगों के द्वारा होता है? एकलिंगी तथा उभयलिंगी पुष्प क्या हैं? उदाहरण सहित बताइए। 



उत्तर – पुष्पीय पौधों में लैंगिक जनन पुंकेसर या पुमंग (नर जनन अंग) और स्त्रीकेसर या जायांग (मादा जनन अंग) के द्वारा होता है।


जननांगों के आधार पर पुष्प दो प्रकार के होते हैं 


(i) एकलिंगी पुष्प जब पुष्प में पुंकेसर या स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है, तो पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं, जैसे-पपीता, तरबूज, आदि ।



 (ii) उभयलिंगी पुष्प जब एक ही पुष्प में पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं, तो पुष्प उभयलिंगी कहलाते हैं, जैसे-गुड़हल, सरसों, आदि।


प्रश्न 9. पुमंग एवं जायांग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।



उत्तर पुमंग एवं जायांग में अन्तर निम्न प्रकार से हैं





पुमंग

जायांग

यह नर जनन अंग है व इसकी प्रत्येक इकाई को पुंकेसर कहते हैं।

यह मादा जनन अंग है व इसकी प्रत्येक इकाई को अण्डप कहते हैं।

पुंकेसर का अगला फूला हुआ भाग परागकोष कहलाता है, जिसमें नर युग्मक या परागकण बनते हैं।

अण्डप का निचला फूला हुआ भाग अण्डाशय कहलाता है, जिसमें बीजाण्ड उपस्थित होता है। बीजाण्ड में मादा युग्मक या अण्ड बनता है।





प्रश्न 10. परागण पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा स्वपरागण तथा परपरागण में विभेद कीजिए। 


उत्तर किसी पुष्प के परागकणों का उसी पुष्प या उसी जाति के दूसरे पादप के किसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं। यह पादपों में लैंगिक जनन हेतु एक अत्यन्त आवश्यक क्रिया है। इसके अभाव में पादप में बीज का निर्माण नहीं होता है। 



स्व-परागण तथा पर-परागण में अन्तर



स्व-परागण

परपरागण

यह एक ही पुष्प या एक ही पादप के दो पुष्पों में अथवा कायिक जनन द्वारा तैयार अन्य पादप के पुष्पों में होता है।

यह एक ही जाति के लैंगिक प्रजनन द्वारा तैयार दो भिन्न पादपों के पुष्पों के मध्य 

होता है।

इसमें पुष्प का द्विलिंगी होना आवश्यक है।


पुष्प द्विलिंगी अथवा एकलिंगी हो सकते हैं। नर व मादा पुष्प अलग-अलग पादपों पर भी हो सकते हैं।





प्रश्न 11. एकलिंगी पुष्पों में परागण किस प्रकार का होता है? समझाइए।


उत्तर जब एक पुष्प के परागकण लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न उसी जाति के अन्य पादप के वर्तिकाग्र पर विभिन्न माध्यमों से पहुँचते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं। एकलिंगी पुष्पों में प्राय: पर-परागण पाया जाता है; जैसे-पपीता, मक्का, आदि। इसका कारण एकलिंगी पुष्पों में नर तथा मादा जननांग अलग-अलग होते है। पर-परागण कीटों, वायु, जल द्वारा और जन्तुओं के माध्यम से होता है।



प्रश्न 12. मक्का में परागण किस माध्यम से होता है?


उत्तर मक्का में पर-परागण वायु द्वारा होता है। इसमें परागकण अत्यधिक मात्रा में बनते हैं, क्योंकि वायु के माध्यम से इनकी हानि बहुत अधिक होती है। परागकण हल्के, शुष्क तथा जलरोधी होते हैं। 



प्रश्न 13. भ्रूणपोष केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती है?



उत्तर – भ्रूणपोष केन्द्रक त्रिगुणित (3n) होता है। त्रिसमेकन से बना त्रिगुणित केन्द्रक, प्राथमिक भ्रूणकोष केन्द्रक के बाद में भ्रूणपोष का निर्माण करता है, जो भ्रूण के परिवर्धन के समय भ्रूण के पोषण के काम आता है। भ्रूणपोष के कारण भ्रूण का उचित परिवर्धन होता है तथा अच्छे व स्वस्थ बीज बनते हैं।




प्रश्न 14. पुष्प का कौन-सा भाग फल एवं बीज उत्पन्न करता है? 


उत्तर निषेचन पश्चात् अण्डाशय फल में व अण्डाशय भित्ति, फल भित्ति में बदल जाती है व बीजाण्ड द्वारा बीज का निर्माण होता है।


प्रश्न 15. अलैंगिक तथा लैंगिक जनन में कोई चार अन्तर लिखिए। उत्तर अलैगिक तथा लैंगिक जनन में अन्तर निम्नलिखित हैं



अलैगिक जनन


लैंगिक जनन

इसके द्वारा शरीर का बना कोई भाग या इससे बनी हुई विशिष्ट संरचनाएँ नए जीव का निर्माण करती है।

इस प्रकार के जनन में नर एवं मादा युग्मक मिलकर नए जीव का निर्माण करते हैं।


यह अपेक्षाकृत सरल होता है तथा सन्तति आनुवंशिक तौर पर जनक के समान होती है।


यह जटिल प्रक्रिया है तथा सन्तति आनुवंशिक तौर पर जनक से भिन्न होती है

अलैंगिक जनन में विखण्डन, मुकुलन, द्विविभाजन, बीजाणुजनन, आदि विधियां उपयोग में आती हैं।


इसमें नर तथा मादा (जन्तुओं में) के

युग्मकों को क्रमशः शुक्राणु एवं अण्डाणु कहते हैं, जो परस्पर मिलकर युग्मनज का निर्माण करते हैं।

यह जनन सामान्यतया निम्न श्रेणी के जन्तुओं में उपस्थित होता है, किन्तु उच्च श्रेणी के जन्तु में अनुपस्थित होता है।

यह जनन सामान्यतया निम्न श्रेणी के जन्तुओं में अनुपस्थित होता है, किन्तु उच्च श्रेणी के जन्तुओं में उपस्थित होता है।





प्रश्न 16. तम्बाकू के पौधे में नर युग्मक में 24 गुणसूत्र होते हैं। मादा युग्मक में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होगी? युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होगी? 


उत्तर – तम्बाकू के नर तथा मादा युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या 24 और युग्मनज में गुणसूत्रों संख्या 48 होगी क्योंकि लैंगिक जनन करने वाले जीवों में युग्मकजनन के कारण युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी (अगुणित) रह जाती है, परन्तु निषेचन के समय नर तथा मादा युग्मकों के संलयन के फलस्वरूप सन्तति में गुणसूत्रों की संख्या जनकों के समान हो जाती है।


 प्रश्न 17. मानव के वृषण के कार्य का उल्लेख कीजिए।


उत्तर – मानव में वृषण एक नर जननांग है। ये उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होता है, जिसका मुख्य कार्य शुक्राणुओं का उत्पादन करना है। इसका तापमान शरीर के तापमान से 2-3°C कम होता है, जो शुक्राणुओं के निर्माण में सहायक होता है।




प्रश्न 18. (i) मानव शरीर में शुक्राणु के निर्माण से निकास तक के पथ को बताइए।


 (ii) मानव में प्रोस्टेट ग्रन्थि एवं शुक्राशय की क्या भूमिका है?


उत्तर (i) शुक्रजनन नलिका वृषण → शुक्रवाहिका → अधिवृषण योनि ←मूत्रमार्ग ←जननमूत्र कोटर ←शुक्रवाहिनी ←


(ii) शुक्राशय शुक्राणु के लिए श्यान द्रव्य बनाते हैं, जो वीर्य का भाग होता है। यह शुक्राणु को संरक्षण एवं पोषण प्रदान करता है। 


प्रोस्टेट ग्रन्थि क्षारीय द्रव स्रावित करती है, जो मूत्रमार्ग में अपशिष्ट मूत्र से उत्पन्न अम्लता को निष्प्रभावित करता है। यह वीर्य का मुख्य भाग भी बनाता है।



प्रश्न 19. यदि निषेचन न हो, तो गर्भाशय में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं?


अथवा ऋतुस्राव क्यों होता है?


उत्तर – यदि निषेचन नहीं होता है, तो गर्भाशय की भीतरी परत, जो मोटी और ऊतकीय होती है। यह परत धीरे-धीर टूटकर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। इस चक्र में एक महीने का समय लगता है। यह ऋतुस्राव या रजोधर्म कहलाता है। ऋतुस्राव की अवधि 2-8 दिनों की होती है।




प्रश्न 20. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है?


 उत्तर – माँ का शरीर गर्भधारण के बाद उसके विकास के लिए विशेष रूप से अनुकूलित होता है। अतः गर्भाशय प्रत्येक माह भ्रूण को ग्रहण करने एवं उसके पोषण हेतु तैयारी करता है। इसकी आन्तरिक परत मोटी होती जाती है तथा भ्रूण के पोषण हेतु रुधिर प्रवाह भी बढ़ जाता है। भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषक पदार्थ तथा ऑक्सीजन मिलती है। इसके लिए एक विशेष संरचना अपरा या प्लेसेन्टा होती है।



प्रश्न 21. गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं? उत्तर गर्भनिरोधक युक्तियों को अपनाने के निम्न कारण हैं


(i) इसके द्वारा जन्म दर पर नियन्त्रण किया जाता है। 


(ii) इनके द्वारा जल्दी-जल्दी गर्भधारण को रोका जा सकता है, क्योंकि जल्दी-जल्दी गर्भधारण करने से स्त्री और सन्तानों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है


(iii) इसकी सहायता से जनसंख्या नियन्त्रण किया जा सकता है।


(iv) इन युक्तियों के प्रयोग से लैंगिक या यौन संचारित रोगों से बचा जा सकता है; जैसे-एड्स।



प्रश्न 22. यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है, तो क्या यह उसकी यौन संचारित रोगों से रक्षा करेगी? 


 उत्तर नहीं, यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है, तो यह उसकी यौन संचारित रोगों से रक्षा नहीं करेगी, क्योंकि यह केवल गर्भधारण को रोकने की युक्ति है।

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  लघु उत्तरीय प्रश्न 4 अंक


लघु उत्तरीय प्रश्न अंक 4


प्रश्न 1. बीजरहित पादपों में जनन क्रिया किस विधि द्वारा होती है?उदाहरण भी दीजिए।



 उत्तर निम्न श्रेणी के अनेक पादप ऐसे होते हैं, जिनमें बीजों का निर्माण नहीं होता है। इस प्रकार के पादपों में अलैंगिक जनन पाया जाता है। सामान्यतया बीजरहित पादपों में अलैगिक जनन की विधियाँ निम्न प्रकार होती हैं


(i) विखण्डन इस विधि में कोशिका दो भागों में विभाजित होकर नई सन्तति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं; उदाहरण जीवाणु, युग्लीना।


(ii) मुकुलन इस प्रकार के पादपों की मातृ कोशिका पर एक मुकुल (कायिक उभार) का विकास होता है। मुकुल वृद्धि करके मातृ पादप से पृथक् हो जाती है और बाद में यह मुकुल वृद्धि कर नया पादप बनता है; उदाहरण यीस्ट |


(iii) खण्डन इसमें सूकाय के कायिक सूत्र या तन्तु टूट जाते हैं तथा इन टूटे सूत्रों का प्रत्येक भाग वृद्धि करके नए पादप का निर्माण कर लेता है; उदाहरण शैवाल, कवक, आदि।


(iv) बीजाणुओं द्वारा निम्न श्रेणी के पादपों में विभिन्न प्रकार के बीजाणुओं का निर्माण होता है, जो अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित होकर नए पादप (चलबीजाणु, अचलबीजाणु, हिप्नोस्पोर्स, क्लैमाइडोस्पोर, आदि) का निर्माण करते हैं; उदाहरण शैवाल, ब्रायोफाइटा, आदि।


प्रश्न 2. कायिक जनन का क्या महत्त्व है?


अथवा वर्धी जनन पर टिप्पणी कीजिए। अथवा कायिक जनन किसे कहते हैं? पादपों में इस विधि से क्या लाभ हैं? 


अथवा कुछ पादपों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?



उत्तर – कायिक प्रवर्धन या जनन जब पादप का कोई भी वर्धी भाग, मातृ पादप से अलग होकर एक नए पादप का निर्माण करता है, तो इसे कायिक जनन कहते हैं। कायिक जनन द्वारा उगाए गए पादपों में बीज की आवश्यकता नहीं होती है और बीज द्वारा उगाए गए पादपों की अपेक्षा पुष्प व फल कम समय में आ जाते हैं; उदाहरण गुलाब, अंगूर, केला, संतरा, आदि। 



कायिक जनन के लाभ



(i) इस विधि द्वारा कम समय में अनेक पादप विकसित किए जा सकते हैं।


(ii) नए पादप, मातृ पादप के समान होते हैं और इनमें विभिन्नताएँ नहीं होती हैं। 



(iii) कायिक जनन द्वारा विकसित पादप बाह्य वातावरण से अप्रभावित रहते हैं।


(iv) पादपों के वाँछित लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी बने रहते हैं।


प्रश्न 3. कायिक प्रवर्धन किसे कहते हैं? इसकी विधियों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।


अथवा पादपों में कायिक प्रजनन की दो विधियों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए 


अथवा कायिक जनन किसे कहते हैं? तने द्वारा इस विधि का एक उदाहरण दीजिए।




उत्तर –कायिक प्रवर्धन विभिन्न वर्धी भागों के आधार पर निम्न प्रकार का होता है


 (i) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन इस क्रिया में प्राकृतिक रूप से पादप का कोई भी अंग या रूपान्तरित भाग मातृ पादप से अलग होकर नया पादप बनाता है। यह अनुकूल परिस्थितियों में सम्पन्न होता है। कायिक अंगों से जनन के आधार पर प्राकृतिक कायिक जनन को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है


(a) जड़ों द्वारा जड़ों में भोजन संचय होता है तथा इन पर अपस्थानिक कलिकाएँ उपस्थित होती हैं, वे पादप का निर्माण करती हैं;


उदाहरण शकरकन्द, सतावर, पुदीना, आदि।


 (b) पत्ती द्वारा मांसल पर्णों (पत्तियों) में भोजन संग्रह होता है। इनमें पर्ण कलिकाओं का निर्माण होता है, जो नए पादप का निर्माण करती हैं; उदाहरण ब्रायोफिल्लम, बिग्नोनिया, घाव पत्ता, आदि।


(c) तनों द्वारा जिन तनों में भोजन संग्रह होता है, उनमें पर्वसन्धियों पर अपस्थानिक कलिकाएँ उपस्थित होती हैं, जो नए पादप के निर्माण में सहायक होती हैं; उदाहरण आलू।



(ii) कृत्रिम कायिक प्रवर्धन मानव द्वारा पादपों में कृत्रिम ढंग से किए गए कायिक जनन को कृत्रिम कायिक जनन या प्रवर्धन कहते हैं। 


पादपों में कृत्रिम कायिक जनन की विधियाँ निम्नलिखित हैं


(a) दाब लगाना वह पादप, जिनकी शाखाएँ कठोर होती हैं। अतः सरलता से कलम के रूप में प्रवर्धित नहीं हो पाती हैं। इसलिए पादप पर लगे शाखा के कुछ भाग को छीलकर शाखा को भूमि में दबा देते हैं। बाद में, मृदा में दबे हुए भाग से अपस्थानिक जड़ें निकल आती हैं। अब इस अवस्था में शाखा को जनक पादप से काटकर अलग करके इसे मिट्टी में रोप देते हैं; उदाहरण नींबू, चमेली, अंगूर, आदि।


(b) कलम लगाना इस विधि में अच्छे विकसित परिपक्व पादपों की शाखाओं को काटकर भूमि में दबा दिया जाता है। इन शाखाओं पर कुछ कक्षस्थ कलिकाओं का होना आवश्यक है। शाखा के भूमिगत भाग की पर्व सन्धियों से अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं। इनकी कक्षस्थ कलिकाएँ वृद्धि करके एक नए पादप का निर्माण करती हैं इस विधि द्वारा पादपों को उगाया जाता है; उदाहरण गुलाब, गन्ना, गुड़हल, आदि।



(c) पैबन्द लगाना या रोपण इसमें निम्न या अशुद्ध जाति के तने को तिरछा काट लिया जाता है, जिसे स्कन्ध (Stock) कहते हैं तथा उच्च किस्म की जाति के पादप की एक शाखा या कलम (श्यान) को इसी प्रकार तिरछी काटकर मिलान करके इसके साथ जोड़ दिया जाता है। कुछ दिनों पश्चात् स्कन्ध तथा कलम दोनों आपस में जुड़ जाते हैं।


प्रश्न 4. एक पुष्प का नामांकित चित्र बनाए। इसके विभिन्न भागों के कार्यों का उल्लेख कीजिए।


 उत्तर पुष्प तने का विशिष्ट रूपान्तरण होता है। इसके विभिन्न भाग जनन के लिए रूपान्तरित हो जाते हैं। पुष्प का फूला हुआ या चपटा भाग पुष्पासन कहलाता है।


पुष्पासन पर क्रमश: बाह्यदल, दल, पुंकेसर तथा अण्डप लगे रहते हैं। पुष्पीय भागों को दो समूह में वर्गीकृत किया जा सकता है



1. सहायक चक्र




(i) बाह्य दलपुंज यह पुष्प का सबसे बाहरी चक्र होता है। इसमें इकाई बाह्यदल होते हैं। दल प्रायः हरे होते हैं। यह कलिकावस्था में पुष्प की सुरक्षा करते हैं।




(ii) दलपुंज यह पुष्प का द्वितीय चक्र होता है। इसका निर्माण दल की इकाईयों से होता है। ये प्राय: रंगीन होते हैं एवं परागण में सहायक होते हैं।



2. जनन चक्र


(i) पुमंग यह पुष्प का तीसरा चक्र होता है। इसका निर्माण पुंकेसरों से होता है। यह पुष्प का नर भाग है। पुंकेसर परागकोष, योजी तथा पुंतन्तु से मिलकर बना होता है। परागकोष में परागकण या लघुबीजाणु निर्मित होते हैं।



(ii) जायांग यह पुष्प का सबसे भीतरी चक्र होता है, जिसका निर्माण अण्डप द्वारा होता है। अण्डप का निर्माण अण्डाशय, वर्तिका तथा वर्तिकाग्र से होता है। अण्डाशय में बीजाण्ड बनते हैं। वर्तिकाग्र परागण के समय परागकणों को ग्रहण करती है।



प्रश्न 5. आवृतबीजी बाह्य अण्डप के अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए।


उत्तर आवृतबीजी बाह्य अण्डप के अनुदैर्ध्य काट को निम्न चित्र से दर्शाया गया है




प्रश्न 6. परागकण क्या है? ये कहाँ पाए जाते हैं? विभिन्न प्रकार के परागकण का उल्लेख कीजिए।


उत्तर पादप में परागकण नर युग्मक होते हैं। ये पुंकेसर के फूले हुए भाग परागकोष में पाए जाते हैं। 


परागण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है


(i) स्वपरागण किसी पादप के पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर या उस पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर अथवा कायिक जनन द्वारा तैयार किए गए उसी जाति के किसी अन्य पादप के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचने की क्रिया को स्व-परागण कहते हैं।



(ii) पर-परागण जब एक पुष्प के परागकण लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न उसी जाति के अन्य पादप के वर्तिकाग्र पर विभिन्न माध्यमों में पहुँचते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं। पर परागण कीटों द्वारा, वायु द्वारा, जल द्वारा और जन्तुओं के माध्यम से होता है।



प्रश्न 7. परागण तथा निषेचन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। अथवा परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?


उत्तर परागण तथा निषेचन में अन्तर निम्न प्रकार से हैं



परागण

निषेचन

इस क्रिया में परागण समान जाति के पुष्पों के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं।

निषेचन में नर तथा मादा युग्मको का संलयन होता है। 

परागण के लिए बाह्य माध्यम, जैसे-वायु, जल, कीट, जन्तु, आदि की आवश्यकता होती है।


इसके लिए माध्यम अर्थात् बाह्य साधन की आवश्यकता नहीं होती है।

परागण एक बाह्य क्रिया है।

यह एक आन्तरिक क्रिया होती है।

इसके लिए किसी पूर्व क्रिया कि आवश्यकता नहीं पड़ती है।

पादपों में निषेचन हेतु पहले परागण क्रिया होना आवश्यक होता है।



प्रश्न 8. स्व-परागण तथा पर परागण में दो-दो अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा एक-एक उदाहरण दीजिए।


  अथवा परागण किसे कहते हैं? स्व-परागण एवं पर-परागण में उदाहरण सहित अन्तर स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर 




स्व-परागण

पर परागण


यह एक ही पुष्प या एक ही पादप के दो पुष्पों में या कायिक जनन द्वारा तैयार अन्य पादप के पुष्पों में होता है।

यह एक ही जाति के लैंगिक प्रजनन द्वारा तैयार दो भिन्न पादपों के पुष्पों के मध्य होता है।


इसमें पुष्प का द्विलिंगी होना आवश्यक है।


पुष्प द्विलिंगी या एकलिंगी हो सकते हैं। नर व मादा पुष्प अलग-अलग पादपों पर भी हो सकते हैं। 


इसमें बाह्य माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।


इसमें परागकणों को अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचने के लिए बाह्य माध्यम (जल, वायु, कीट, पक्षी, आदि) की आवश्यकता पड़ती है


पुष्पों में समकालपक्वता पाई जाती है। अर्थात् परागकोष एवं वर्तिका समान समय में परिपक्व होते हैं, उदाहरण सदाबहार, मूँगफली।


पुष्पों में भिन्नकालपक्वता पाई जाती अर्थात् पुष्प का परागकोष तथा वर्तिकाग्र अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं; उदाहरण सूरजमुखी, गेंदा।





प्रश्न 9. पुष्प में निषेचन क्रिया को प्रदर्शित करने हेतु स्त्रीकेसर की लम्ब काट का नामांकित चित्र बनाइए एवं वर्णन कीजिए। 



उत्तर निषेचन – नर तथा मादा केन्द्रकों का संलयन निषेचन कहलाता है।  वर्तिकाग्र (Stigma) से परागण के समय एक तरल पदार्थ स्रावित होता है, इन तरल पदार्थों का अवशोषण करके परागकण फूल जाते हैं। परिणामस्वरूप जनन छिद्रों से पराग नलिका बाहर निकल आती है तथा वृद्धि करके रसायनानुवर्तन द्वारा वर्तिकाग्र एवं वर्तिका से होती हुई युग्मकों समेत अण्डाशय में स्थित बीजाण्ड में प्रवेश कर जाती है। पराग नलिका बीजाण्ड में प्रवेश कर नर युग्मकों को मुक्त कर देती है। एक नर युग्मक अण्ड कोशिका से संलयित होकर द्विगुणित युग्मनज (Zygote) का निर्माण करता है। तत्पश्चात् यह द्विगुणित युग्मनज वृद्धि और विभाजन के फलस्वरूप भ्रूण का निर्माण करता है।







प्रश्न 10. द्विनिषेचन तथा त्रिक संलयन किसे कहते हैं?


अथवा आवृतबीजियों में द्विनिषेचन किसे कहते हैं? 


अथवा द्विनिषेचन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


उत्तर पुष्पी पादपों में निषेचन के दौरान परागकण की परागनलिका बीजाण्ड में प्रवेश कर दो नर युग्मकों को मुक्त कर देती है। एक नर युग्मक अण्ड कोशिका से संलयित होकर युग्मनज बनाता है, जिससे भ्रूण का विकास होता है। इसे सत्य निषेचन भी कहते हैं तथा दूसरा नर युग्मक द्वितीयक केन्द्रक (2n) को निषेचित करता है, इससे त्रिगुणित भ्रूणपोष केन्द्रक (3n) बनता है, जो त्रिगुणित भ्रूणपोष बनता है। इस प्रक्रिया को त्रिक संलयन कहते हैं। यहाँ निषेचन की क्रिया दो बार (सत्य व त्रिक संलयन) होती है। अतः इसे द्विनिषेचन भी कहते हैं।




प्रश्न 11. पुष्प में निषेचन के उपरान्त होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।


 उत्तर नर तथा मादा युग्मकों के संलयन को निषेचन कहते हैं।


निषेचन के पश्चात् होने वाले परिवर्तन निम्न हैं


(i) बाह्यदल ये प्रायः मुरझाकर गिर जाते हैं, परन्तु कई पादपों में चिरस्थायी होते हैं; उदाहरण टमाटर, बैंगन, आदि।


(ii) दल, पुंकेसर, वर्तिकाग्र, वर्तिका मुरझाकर गिर जाते हैं।


 (iii) अण्डाशय व अण्डाशय भित्ति अण्डाशय फल में तथा अण्डाशय भित्ति फलभित्ति में बदल जाती है।


(iv) बीजाण्ड ये बीज का निर्माण करता है।


(a) अण्डद्वार ये बीजद्वार बनाता है।


(b) बीजाण्डकाय ये नष्ट हो जाता है।


(c) भ्रूणकोष अण्डकोशिका ये भ्रूण बनाती है।


सहायक कोशिकाएँ ये नष्ट हो जाती हैं। 


प्रतिमुख कोशिकाएँ ये नष्ट हो जाती हैं।


द्वितीयक केन्द्रक ये भ्रूणपोष बनाता है, जो भ्रूण के परिवर्धन के समय भ्रूण के पोषण के काम आता है।


इस प्रकार अन्त में फल तथा इसके अन्दर एक या अनेक भ्रूणपोषी या अभ्रूणपोषी बीज होते हैं।


प्रश्न 12. यौवनारम्भ क्या है? यौवनावस्था प्रारम्भ होने के समय बालक/बालिका में उत्पन्न होने वाले तीन-तीन गौण लैंगिक लक्षणों का वर्णन कीजिए।


अथवा गौण लैंगिक लक्षण किसे कहते हैं? यौवनारम्भ के समय बालक एवं बालिकाओं के शरीर में विकसित होने वाले प्रत्येक के दो-दो गौण लक्षणों का उल्लेख कीजिए।




अथवा गौण लैंगिक लक्षण किसे कहते हैं? लड़के व लड़कियों में कितने वर्ष की आयु में इनका विकास होता है? 


अथवा यौवनारम्भ के समय लड़कियों में कौन-कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं?




उत्तर – किसी भी प्राणी के जनन करने योग्य हो जाने को यौवनारम्भ (Adolescent) कहते हैं। इसकी आयु पुरुषों में 15-18 वर्ष तक तथा स्त्रियों में 11-14 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में स्त्री एवं पुरुषों के लक्षणों में कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव आते हैं, जोकि गौण लैंगिक लक्षणों के कारण होते हैं। अतः गौण लैंगिक लक्षण लैंगिक विभेद के वे लक्षण हैं, जोकि किसी जन्तु में पैदा होने के बाद विशेषकर यौवनावस्था में प्रदर्शित होते हैं तथा नर एवं मादा द्वारा एक-दूसरे को परस्पर आकर्षित करने के उपयोग में आते हैं। पुरुष एवं स्त्री में पाए जाने वाले द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विवरण निम्नलिखित हैं



पुरुष के द्वितीयक (गौण) लैंगिक लक्षण


 (i) चेहरे व शरीर पर बाल उग जाते हैं तथा स्वर भारी हो जाता है।


(ii) वृषण कोषों तथा शिश्न के आकार में वृद्धि हो जाती है।


(iii) शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणुओं का निर्माण शुरू हो जाता है। 



(iv) अस्थियाँ व पेशियाँ मजबूत तथा कन्धे चौड़े हो जाते हैं व शरीर की लम्बाई बढ़ने लगती है।


(v)  बगल जननांगों के आस-पास, बगलो, आदि स्थानों पर बाल उग जाते हैं। वृषण से स्त्रावित हॉर्मोन्स (टेस्टोस्टेरॉन व एण्डोस्टेरॉन) नर में यौवनावस्था को प्रेरित करते हैं।




स्त्री के द्वितीयक (गौण) लैंगिक लक्षण


 (i) बाह्य जननांगों तथा स्तनों का विकास प्रारम्भ हो जाता है।


(ii) अण्डोत्सर्ग तथा मासिक धर्म या आर्तव चक्र प्रारम्भ हो जाता है।


(iii) श्रोणि मेखला तथा नितम्ब चौड़े हो जाते हैं।


(iv) स्वर मधुर व तीव्र हो जाता है।


(v) बगल, जननांगों, आदि के आस-पास बाल उग जाते हैं। मादा में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन अण्डाशय के कार्यों व विकास का नियन्त्रण करते हैं तथा मादा में यौवानावस्था को प्रेरित करते हैं।



प्रश्न 13. जनसंख्या वृद्धि के चार कारण लिखिए।




उत्तर जनसंख्या वृद्धि के कारण जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं। 



(i) निम्न सामाजिक स्तर हमारे देश में लोगों का रहन-सहन का स्तर निम्न (Low) है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली अधिकांश जनता निर्धन है, जो यह विश्वास करती है कि जितने अधिक बच्चे होंगे, वे उतना ही अधिक धनोपार्जन करेंगे। इस कारण निर्धन परिवार के लोग परिवार नियोजन पर ध्यान नहीं देते हैं।


(ii) निरक्षरता भारत में निरक्षरता का प्रतिशत अधिक है। अतः लोग छोटे परिवार का महत्त्व नहीं समझते हैं, इस कारण लगातार सन्तानोत्पत्ति होती रहती है।



(iii) सामाजिक रीति-रिवाज हमारे देश में बच्चों को ईश्वर की देन माना जाता है। परिवार में पुत्र का जन्म भी आवश्यक समझा जाता है। यह भी माना जाता है कि वंश का नाम पुत्र से ही चलता है। इस कारण पुत्र प्राप्ति की कामना में लोग कई सन्ताने पैदा कर लेते हैं। इसके कारण परिवार बड़ा हो जाता है। 


(iv) कम आयु में विवाह ग्रामीण तथा अशिक्षित परिवारों में आज भी बाल विवाह की प्रथा प्रचलन में हैं। अनेक कानूनी प्रतिबन्धों के बावजूद कम आयु में ही अनेक विवाह सम्पन्न हो जाते हैं, जिसके कारण कम आयु में ही ये दम्पति सन्तान उत्पन्न करने लगते हैं।



प्रश्न 14. जनसंख्या- एक समस्या पर संक्षिप्त विवरण दीजिए।


अथवा जनसंख्या वृद्धि से होने वाली चार हानियाँ (समस्याएँ) लिखिए। 


अथवा जनसंख्या वृद्धि का मानव समाज पर दुष्प्रभाव पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।



उत्तर जनसंख्या किसी विशेष स्थान, क्षेत्र या नगर में रहने वाले कुल लोगों की संख्या, जनसंख्या कहलाती है। जनसंख्या में बढ़ोत्तरी को जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है, जो वर्तमान में चिन्ता का विषय है।


जनसंख्या वृद्धि के कारण हानियाँ 



जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं


(i) शिक्षा व्यवस्था की समस्या बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में शिक्षण संस्थाएँ कम होने से विद्यालयों में उपस्थित संसाधनों पर बोझ पड़ता है तथा बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रवेश पाना कठिन हो गया है, जैसे-विद्यालयों के कमरे, फर्नीचर, खेल के मैदान, आदि बढ़ती जनसंख्या के लिए पर्याप्त नहीं हैं।


 (ii) रोजगार की समस्या जनसंख्या वृद्धि से बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। 


(iii) खाद्य आपूर्ति की समस्या जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात में खाद्यानों का उत्पादन कम हो रहा है, जिसके कारण लोगों को खाद्य सामग्री कम मात्रा में उपलब्ध हो पा रही है। बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। 


(iv) स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवा समस्या परिवार में बच्चे अधिक होने से माँ का स्वास्थ्य खराब हो जाता है, जिससे बच्चों की उचित परवरिश नहीं होने से वे बीमार तथा दुर्बल हो जाते हैं। हमारे देश में अस्पतालों की संख्या कम होने के साथ-साथ उन्हें पर्याप्त औषधियाँ भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। 


प्रश्न 15. परिवार नियोजन किसे कहते हैं? मानव जनसंख्या वृद्धि को रोकने के उपायों का उल्लेख कीजिए।


अथवा परिवार नियोजन को परिभाषित कीजिए। नियोजित परिवार के लिए दो स्थाई विधियों का उल्लेख कीजिए ।


अथवा परिवार नियोजन के किन्हीं दो उपायों का वर्णन कीजिए। परिवार नियोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


अथवा परिवार नियोजन की भिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।


 अथवा मानव जनसंख्या का नियन्त्रण करने के समुचित उपायों का उल्लेख कीजिए।


अथवा परिवार नियोजन की स्थायी विधियाँ कौन-सी होती हैं? किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


अथवा परिवार नियोजन पर संक्षिप्त में टिप्पणी लिखिए।


उत्तर परिवार कल्याण हेतु बच्चों की संख्या सीमित कर, परिवार को नियोजित करने की प्रक्रिया को परिवार नियोजन (Family planning) कहते हैं। जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करने की प्रक्रिया या उपायों में परिवार नियोजन की विधियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। परिवार नियोजन की विधियाँ निम्नलिखित हैं


(i) अस्थायी विधियाँ


(a) सुरक्षित काल में सम्पर्क मासिक धर्म से एक सप्ताह पूर्व व एक सप्ताह बाद का समय सुरक्षित काल माना जाता है। इस काल में लैंगिक सम्पर्क स्थापित करने पर गर्भधारण की सम्भावना कम रहती है, परन्तु यह विधि अधिक विश्वसनीय नहीं है।


(b) धैर्य असुरक्षित काल में आत्मसंयम रखना चाहिए तथा लैंगिक सम्पर्क स्थापित नहीं करना चाहिए।


(c) लूप स्त्रियाँ लूप लगवाकर गर्भधारण करने से अपना बचाव कर सकती हैं।


 (d) निरोध निरोध का प्रयोग पुरुष तथा स्त्री में से किसी एक द्वारा किया जाता है। इसके प्रयोग से गर्भधारण होने की कोई भी सम्भावना नहीं हो सकती है।


(e) गर्भ निरोधक गोलियाँ आजकल ऐसी गोलियाँ उपलब्ध सेवन से गर्भधारण की सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं। 


(f) गर्भ समापन गर्भधारण करने के बाद भी एक सीमित काल के भीतर, हैं, जिनकेकिसी कुशल व विशेषज्ञ डॉक्टर से गर्भ समापन कराया जा सकता है।



(ii) स्थायी विधियाँ


(a) स्त्री का नसबन्दी ऑपरेशन स्त्री में अण्डनलिका के ऑपरेशन के बाद गर्भधारण नहीं हो सकता, यह विधि स्थाई होती है। यह कार्य सन्तान उत्पत्ति के समय ही कराया जा सकता है।


(b) पुरुष का नसबन्दी ऑपरेशन पुरुष में शुक्रनलिका के ऑपरेशन से भी गर्भधारण की समस्या स्थाई रूप से दूर हो जाती है


 (iii) अन्य विधियाँ


(a) टीका गर्भधारण रोकने हेतु सीमित प्रभाव वाला टीका विकसित कर लिया गया है।


(b) विवाह योग्य आयु लड़के के लिए 25 वर्ष तथा लड़की के लिए 21 वर्ष की जानी चाहिए।



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  विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 7 अंक



प्रश्न 1. पादपों में प्रजनन पर एक निबन्ध लिखिए। 


उत्तर प्रत्येक सजीव अपनी जाति की निरन्तरता बनाए रखने हेतु अपने जैसे ही जीव उत्पन्न करता है, इसी प्रक्रिया को प्रजनन कहते हैं।



पादपों में प्रजनन मुख्यतया दो प्रकार का होता है 



(v) कायिक जनन जब पादप के कायिक भागों, जैसे-जड़, तना, पत्ती, आदि के द्वारा नए पादप की उत्पत्ति होती है, तो इस प्रक्रिया को कायिक जनन या प्रवर्धन कहते हैं। यह दो प्रकार से होता है 


 महत्त्व (i) अलैंगिक जनन से प्राप्त सन्तति सदैव जनक के समान होती है।


(ii) इससे कम समय में अधिक सन्तति प्राप्त होती है।


2. लैंगिक जनन उच्च पादपों में लैंगिक जनन हेतु विशिष्ट संरचना पुष्प, (रूपान्तरित तना या प्ररोह) पाई जाती है। यहाँ नर तथा मादा जननांगों में बने अगुणित युग्मक निषेचन द्वारा नए पादप का निर्माण करते हैं। पुष्प यह एक संघनित तना होता है, जिससे क्रमशः बाह्य दलपुंज, दलपुंज,पुमंग तथा जायांग उपस्थित होते हैं। पादपों में लैंगिक जनन चार चरणों में सम्पन्न होता है


(i) युग्मकजनन नर जननांग (पुमंग) तथा मादा जननांग (जायांग) में क्रमश: अगुणित नर युग्मक तथा मादा युग्मक के निर्माण की प्रक्रिया को युग्मकजनन कहते हैं। परागकण नर युग्मकोद्भिद् होता है तथा भ्रूणकोष मादा युग्मकोद्भिद् होता है।


(ii) परागण परागकणों का मादा के वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं।


(iii) निषेचन अगुणित नर मादा युग्मकों के संलयन की प्रक्रिया को निषेचन कहते हैं। इससे द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है, जो भ्रूण बनता है। 



(iv) फल तथा बीज का निर्माण निषेचन पश्चात् अण्डाशय, फल तथा बीजाण्ड बीज में परिवर्तित हो जाता है। बीज के अंकुरण से नए पादप का निर्माण होता है।


महत्त्व (i) लैगिक जनन से सन्तति में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।


 (ii) इससे नई जातियाँ विकसित होती हैं।


प्रश्न 2. परागण की परिभाषा लिखिए। पर-परागण की विभिन्न विधियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। इसके महत्त्व को समझाइए।



उत्तर 

पर-परागण की विधियाँ पादपों में पर-परागण कीटों, वायु, जल एवं जन्तुओं द्वारा होता है, जो निम्न प्रकार से है



(i) कीटों द्वारा परागण कीटों को आकर्षित करने के लिए पादपों में विशेष युक्तियाँ; जैसे-पुष्पों का रंग, सुगन्ध, मकरन्द, आदि की उपस्थिति पाई जाती है। कीट परागित पुष्प बड़े ही आकर्षक एवं मकरन्द युक्त होते हैं।इन पुष्पों के वर्तिकाग्र प्रायः चिपचिपे होते हैं, 


उदाहरण- आक, साल्विया, पीपल, आदि।




(ii) वायु द्वारा परागण अनेक पादपों में वायु द्वारा परागण होता है। इसके लिए अनेक युक्तियाँ पाई जाती हैं; जैसे-पुष्प प्राय: छोटे और समूह में लगे होते हैं। इन पुष्पों में सुगन्ध, मकरन्द और रंग का अभाव होता है। इनकी वर्तिकाग्र खुरदरे एवं चिपचिपे होते हैं। परागकण हल्के और शुष्क होते हैं; उदाहरण गेहूँ, मक्का, ज्वार, आदि।



 (iii) जल द्वारा परागण यह परागण जल में उगने वाले पादपों में पाया जाता है। जल परागण के लिए पुष्पों के परागकणों, वर्तिका, वर्तिकाग्र, आदि में अनेक अनुकूलन पाए जाते हैं। पुष्प रंगहीन, मकरन्दहीन और गन्धहीन होते हैं। परागकण हल्के होते हैं, इनका घनत्व अधिक होता है तथा ये संख्या में अधिक होते हैं। इससे परागकण जल सतह पर तैरते हुए मादा पुष्प के सम्पर्क में आते हैं। परागकण वर्तिकाग्र द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं; उदाहरण वैलिस्नेरिया, हाइड्रिला, सिरेटोफिलम, आदि।


(iv) जन्तु परागण कुछ पादपों में परागण घोंघों, पक्षियों, चमगादड़, आदि की सहायता से होता है; उदाहरण सेमल, कदम्ब, बिगोनिया, आदि में 



पर-परागण का महत्त्व


(i) पर-परागण द्वारा पादपों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।


 (ii) विभिन्नताओं के परिणामस्वरूप पादपों में नई एवं उन्नत प्रजातियाँ विकसित होती हैं। अत: पर-परागण जैव-विकास में सहायक होता है।


(iii) पर-परागण के द्वारा स्वस्थ एवं रोग प्रतिरोधक पादप विकसित होते हैं।


(iv) पर-परागण के द्वारा बनने वाले बीज स्वस्थ, संख्या में अधिक एवं अधिक जनन क्षमता वाले होते हैं। 



 प्रश्न 3. पर-परागण किसे कहते हैं? पर-परागण की विभिन्न विधियों के नाम लिखिए। परागकण के अंकुरण का सचित्र वर्णन कीजिए।



उत्तर 


पर परागण जब एक पुष्प के परागकण लिंगी जनन द्वारा उत्पन्न उसी जाति के अन्य पादप के वर्तिकाग्र पर विभिन्न माध्यमों से पहुँचते हैं, तो इसे पर परागण कहते हैं। एक लिंगी पुष्प, पपीता, मक्का, आदि में पर-परागण पाया जाता है।



 परागकण का अंकुरण वर्तिकाग्र से परागण के समय एक तरल पदार्थ स्रावित होता है, जिसमें प्राय: शर्करा या मैलिक अम्ल जैसे रसायन पाए जाते हैं। इन तरल पदार्थों का अवशोषण करके परागकण फूल जाते हैं। परिणामस्वरूप अन्त: चोल जनन छिद्रों से परागनलिका के रूप में बाहर निकल आता है। परागनलिका में दो केन्द्रक पाए जाते हैं, जिन्हें जनन केन्द्रक तथा वर्धी केन्द्रक कहते हैं।





परागनलिका रसायनानुवर्तन वृद्धि करके वर्तिका से होती हुई अण्डाशय में स्थित बीजाण्ड में प्रवेश कर जाती है। परागनलिका में जनन केन्द्रक सूत्री विभाजन द्वारा दो नर युग्मक का निर्माण करते हैं। परागनलिका इन नर युग्मकों को बीजाण्ड में पहुँचाती है, जिसके फलस्वरूप निषेचन क्रिया सम्पन्न होती है। 



प्रश्न 5. पुरुष के जनन अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए।


अथवा मानव के नर जनन तन्त्र का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए। 




उत्तर


 प्रजनन जीवधारियों द्वारा लैंगिक क्रियाओं के फलस्वरूप अपने जैसी सन्तानों को उत्पन्न करने की क्रिया को प्रजनन कहते हैं। मनुष्य एकलिंगी प्राणी है। नर जनन तन्त्र इसके अन्तर्गत निम्नलिखित अंग आते हैं



(i) वृषण पुरुष में एक जोड़ा वृषण (Testes) उदर गुहा से बाहर की ओर, थैले जैसी रचनाओं, वृषणकोष (Scrotal sacs) में स्थित होते हैं। वृषण लगभग 4-5 सेमी लम्बा, 2.5 सेमी चौड़ा तथा 3 सेमी मोटा होता है।


प्रत्येक वृषण के भीतर अनेक महीन तथा कुण्डलित शुक्र नलिकाएँ (Seminiferous tubules) होती हैं। इनमें स्थित जनन कोशिकाएँ (Germ cells) शुक्राणुजनन की क्रिया के द्वारा शुक्राणुओं (Sperms) का निर्माण करती हैं। वृषण के शरीर से बाहर कोष में स्थित होने से इनका ताप शरीर से लगभग 2-2.5°C कम रहता है। इससे शुक्राणु निर्माण में सहायता मिलती है।







(ii) अधिवृषण या एपिडिडाइमिस शुक्राणु दूसरी अनेक नलिकाओं से होते हुए वृषण के बाहर की ओर स्थित एक अति कुण्डलित नलिका से बने अधिवृषण या एपिडिडाइमिस (Epididymis) में प्रवेश करते हैं। यह लगभग 6 मीटर लम्बी अत्यधिक कुण्डलित संरचना होती है, जो वृषण के अग्र, पश्च एवं भीतरी भाग को ढके रहती है। अधिवृषण (Epididymis) में शुक्राणु परिपक्व होते हैं।


(iii) शुक्रवाहिनी अधिवृषण के अन्तिम छोर से एक मोटी संरचना शुक्रवाहिनी (Vas deferens) निकलती है। शुक्राणु, शुक्रवाहिनी के द्वारा उदरगुहा में स्थित

शुक्राशय में पहुंचते हैं।



(iv) शुक्राशय यह एक थैलीनुमा रचना होती है। शुक्रवाहिनी उदरगुहा में पहुँचकर मूत्रनली (Ureter) के साथ एक फन्दा बनाती हुई शुक्राशय में प्रवेश करती है। शुक्राणु, शुक्राशय स्राव के साथ मिलकर वीर्य (Semen) निर्मित करते हैं।


(v) मूत्रमार्ग शुक्राशय एक संकरी नली, जिसे स्खलन नलिका (Ejaculatory duct) कहते हैं, के द्वारा मूत्राशय (Urinary bladder) के संकरे भाग मूत्रमार्ग (Urethra) में खुलता है। मूत्रमार्ग शिश्न के शीर्ष पर स्थित एक छिद्र द्वारा खुलता है। इस छिद्र को मूत्र जनन छिद्र कहते हैं। शिश्न मैथुन क्रिया में सहायक होता है।


(vi) सहायक ग्रन्थियाँ जनन अंगों के अतिरिक्त अनेक सहायक ग्रन्थियाँ; जैसे-प्रोस्टेट (Prostate), काउपर्स (Cowper's), पेरीनियल (Perineal), आदि होती हैं, जो वीर्य बनाने सहित शुक्राणुओं के पोषण और उनको जीवित रखने में सहायक होती हैं। 






प्रश्न 6. स्त्री के जनन अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए। 


उत्तर मादा जनन तन्त्र इसके अन्तर्गत निम्न जनन अंग आते हैं।


(i) अण्डाशय एक जोड़ी अण्डाशय उदरगुहा में स्थित होते हैं। अण्डाशय संयोजी ऊतक से बनी ठोस अण्डाकार संरचना (लगभग 3 सेमी लम्बा, 2 सेमी चौड़ा तथा 1 सेमी मोटा) होती है। अण्डाशय में ग्राफियन पुटिकाएँ छोटे-छोटे दानों-जैसी रचनाओं के रूप में उभरी होती हैं। यहीं अण्डाणु का निर्माण होता है।


(ii) अण्डवाहिनी इसका प्रारम्भिक भाग अण्डाशय से सटी हुई झालरदार कीपनुमा संरचना अण्डवाहिनी मुखिका (Oviducal funnel) बनाता है, जो फैलोपियन नलिका में खुलती है। अण्डवाहिनी का प्रारम्भिक संकरा भाग फैलोपियन नलिका तथा पश्च भाग गर्भाशय कहलाता है। अण्डे का निषेचन फैलोपियन नलिका में होता है। 


(iii) गर्भाशय दोनों अण्डवाहिनी मिलकर पेशीय थैलीनुमा एवं उल्टे नाशपाती के आकार की संरचना गर्भाशय में खुलती हैं। इसका सामान्य आकार 8 सेमी लम्बा, 5 सेमी चौड़ा

तथा 2 सेमी मोटा होता है। गर्भाशय अत्यधिक फैल सकता है। गर्भावस्था में भ्रूण का रोपण गर्भाशय में होता है।


(iv) योनि यह लगभग 8 सेमी लम्बी नलिकारूपी संरचना होती है। मूत्राशय तथा योनि मादा जनन छिद्र द्वारा शरीर से बाहर खुलती है। मादा जनन छिद्र भाग की बाह्य सतह पर एक पेशीय संरचना क्लाइटोरिस होती है। 


(v) सहायक ग्रन्थियाँ


(a) बार्थोलिन ग्रन्थियाँ ये योनि के पार्श्व में स्थित होती हैं। इनसे स्रावित तरल योनि को क्षारीय तथा चिकना बनाता है। 


(b) पेरीनियल ग्रन्थियाँ इनसे विशिष्ट गन्धवत् तरल स्रावित होता है, जो लैंगिक आकर्षण उत्पन्न करता है।




प्रश्न 7. परिवार नियोजन की आवश्यकता एवं उसकी विधियों पर निबन्ध लिखिए।


अथवा भारत की जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण एवं परिवार नियोजन के उपायों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।


अथवा परिवार नियोजन के विभिन्न उपायों को समझाइए।


अथवा जनसंख्या वृद्धि के कारण लिखिए।



उत्तर – भारत की जनसंख्या वृद्धि हमारे देश की जनसंख्या सन् 1981 में लगभग 70 करोड़ थी और आज 121 करोड़ से भी अधिक हो गई है। जनसंख्या में इस विस्फोटक वृद्धि के कारण भोजन, आवास, शिक्षा में कमी, रोजगार की समस्या, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा का अभाव उत्पन्न हो गया है।


जनसंख्या में इस विस्फोटक वृद्धि के कारण देश के आर्थिक विकास में अवरोध उत्पन्न हो रहा है। अत: इस वृद्धि पर रोक लगाना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है। 



जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण


(i) कानूनी व्यवस्था जनसंख्या नियन्त्रण हेतु संविधान में कठोर कानूनी व्यवस्था होनी चाहिए। संविधान के 42वें संशोधन (सन् 1976) में संसद और विधान सभाओं को जनसंख्या नियन्त्रण के लिए कानून बनाने के अधिकार प्रदान किए गए हैं। अत: राज्य सरकारों को परिवारों को सीमित रखने सम्बन्धी कानून बनाने चाहिए।


(ii) शिक्षा व्यवस्था जनसंख्या वृद्धि रोकने तथा परिवार को सीमित करने के सम्बन्ध में जनता को शिक्षित करने के कार्यक्रम में तेजी लानी चाहिए।


(iii) आर्थिक स्थिति में सुधार लोगों को समय पर उचित रोजगार तथा व्यवसाय मिलने चाहिए, जिससे उनके आर्थिक स्तर में सुधार हो सके।


(iv) परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों को बढ़ाना परिवारों को सीमित रखने हेतु लोगों में परिवार कल्याण कार्यक्रमों में रूचि बढ़ानी होगी। इस हेतु सीमित परिवार वाले व्यक्तियों के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, मुफ्त इलाज ,सरकारी नौकरियों की व्यवस्था, में प्राथमिकता, आदि कार्यक्रम चलाने चाहिए।



जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करने के लिए परिवार नियोजन की आवश्यकता है। परिवार नियोजन की विधियों को उपयोग में लाकर जनसंख्या वृद्धि से होने वाली हानियों को समाप्त किया जा सकता है।


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