यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना
Class 10 social science chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना का सम्पूर्ण हल
up board class 10 social science notes in hindi
खण्ड 2 :जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज
3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना
याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु
1."वैश्वीकरण या भूमंडलीकृत विश्व की प्रक्रिया का अपना एक दीर्घकालिक इतिहास रहा है। प्राचीनकाल से ही एक-दूसरे देश के बीच यात्रा व्यापार,सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता रहा था। यहाँ तक कि विभिन्न बीमारियों का प्रसार भी एक स्थान के लोगों अथवा उनके जानवरों आदि के कारण हुआ।
2.सिल्क मार्ग को ही सिल्क रूट कहा जाता है। इस मार्ग से चीन में बना सिल्क या रेशम दूसरे देशों में पहुँचता था। इस मार्ग ने व्यापार तथा धर्म व संस्कृति के प्रसार के माध्यम से विश्व को जोड़ने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
3. कोलम्बस के अमेरिका पहुँचने के साथ ही आलू, सोया आदि खाद्य पदार्थों का यूरोप और एशिया पहुँचना शुरू हो गया। यूरोप और आयरलैंड के जन-जीवन पर आलू का सबसे अधिक प्रभाव हुआ। यहाँ तक कि जब किसी बीमारी के कारण वहाँ आलू की फसल खराब हो गयी तो आयरलैंड के लाखों लोग मौत के मुँह में समा गए।
4. पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं के विजय अभियान के समय उनके साथ बीमारियों का वैश्विक प्रसार भी हुआ। उनके पास किसी भी प्रकार के परम्परागत हथियार तो नहीं थे। उनके साथ चेचक के कीटाणु भी अमेरिका पहुॅचे और इस बीमारी के प्रकोप से वहाँ लाखों लोग मर गए। इससे उनकी जीत का रास्ता और भी अधिक आसान हो गया। इसीलिए यह कहा जाता है कि उनके साथ हुआ बीमारियों का वैश्विक प्रसार: अमेरिकी क्षेत्रों के उपनिवेशीकरण में सहायक हुआ।
5• अठारहवी शताब्दी तक चीन और भारत संसार के सर्वाधिक धनी देश माने जाते थे। इसके बाद यूरोप विश्व व्यापार का केन्द्र बन गया।
6.अर्थशास्त्रीयो ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की एक-दूसरे से सम्बद्ध गतियों या प्रवाहों का उल्लेख किया है। इनका लोगों के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इनमें पहला प्रवाह व्यापार का होता है, दूसरा प्रवाह श्रम का होता है और तीसरा प्रवाह पूंजी का होता है।
7• 19 वीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटेन के स्वरूप को परिवर्तित करने में अनेक परिवर्तन सहायक हुए। साथ ही ब्रिटेन की सरकार ने भी ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाने हेतु कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए।
कॉर्न-लॉ कहा जाता था।
8.ब्रिटेन की सरकार ने बड़े भूस्वामियों के दबाव में आकर मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। जिन कानूनों के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी, उन्हें
कॉर्न-लॉ कहा जाता था।
9.1890 ई. तक वैश्विक कृषि व्यवस्था का उदय हो चुका था और इसके फलस्वरूप संसार के देशों में अनेक उल्लेखनीय परिवर्तन हुए। भोजन हेतु के साथ ही कपास, रबड़ व अन्य उत्पादनों में विश्व व्यापार की वृद्धि हुई।
10. भारत के पंजाब में जमीन को उपजाऊ बनाकर गेहूँ व कपास की खेती हेतु कैनाल कॉलोनी' (नहर बस्ती) बसायी गयी। इस कैनाल कॉलोनी में उन मजदूरों को था जिन्हें खेतों, नहर निर्माण आदि के काम में लगाया जाता था।
11. यूरोप के शक्तिशाली देश अफ्रीका के विशाल क्षेत्र और वहाँ के खनिज पदार्थों को देखकर वहाँ आकर्षित हुए। उन्होंने एक-एक करके आफ्रीका के क्षेत्रों पर करना करना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि 1885 ई. में बर्लिन की बैठक में यूरोपीय देशों ने अफ्रीका के मानचित्र पर लकीरें खींचकर उसका आपस में बँटवारा कर लिया। इस प्रकार यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका को गुलाम बना लिया।
12.अफ्रीका में 1890 के दशक में रिडरपेस्ट नामक बीमारी तेजी से फैल गई। मवेशियों में प्लेग की तरह फैलने वाली यह बीमारी 1892 में अफ्रीका के अटलांटिक तट तक जा पहुँची। इस बीमारी ने अपने रास्ते में आने वाले 90 प्रतिशत मवेशियों को मौत की नींद सुला दिया।
13. भारत के लाखों मजदूरों को भी एक अनुबंध के तहत अपना देश छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। अनुबंधित (गिरमिटिया) श्रमिकों का बाहर के देशों में ले जाने के लिए उनकी भर्ती एजेंटों के द्वारा की जाती थी। ये एजेंट लोगों को अनेक प्रकार के झूठ बोलकर उन्हें बहकाते थे। अनुबंध व्यवस्था को नयी दास प्रथा भी कहा जाता था।अनुबंध समाप्त हो जाने के उपरान्त भी अधिकांश श्रमिक उन्हीं देशों में बस गए। भारत में इस नयी दास प्रथा का विरोध हुआ और अन्ततः उसकी समाप्ति हो गयी।
14. 1914 ई. से 1919 ई. के बीच विश्व के शक्तिशाली देशों की आपसी औपनिवेशिक प्रतिस्पर्द्धा और उनके साम्राज्यवादी इरादों के कारण प्रथम विश्वयुद्ध हुआ। यह मानव सभ्यता के इतिहास का भीषण युद्ध कहा जाता है। इसमें सभी प्रकार के मारक हथियारों आदि का प्रयोग किया गया। इसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व की भारी तबाही हुई। लाखों लोग इसके कारण प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूप में मारे गए और असंख्य लोग घायल हुए। इस युद्ध के न केवल यूरोप पर, समस्त विश्व की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव हुए।
15.1929 ई. में सम्पूर्ण विश्व को महामंदी के संकट का सामना करना पड़ा। इस महामंदी के प्रमुख कारण थे-कृषि क्षेत्रों में अति उत्पादकता की समस्या और अमेरिका से लिए कर्जे को न चुका पाना। इस महामंदी ने समस्त यूरोप और अमेरिका को बुरी तरह प्रभावित किया। यहाँ तक कि भारत पर भी इसके प्रभाव हुए।
16● 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ और 1945 ई. तक यह युद्ध लगातार चलता रहा। इस युद्ध के भी अत्यन्त विनाशकारी प्रभाव हुए। युद्धोत्तर काल में पुनर्निर्माण के कार्य करना एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया। इस युद्ध के बाद विश्व में दो बड़ी शक्तियों
अमेरिका और सोवियत संघ का उदय हुआ और सम्पूर्ण विश्व इन दोनों शक्तियों के खेमों में बट गया।
17● 1944 ई. में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटन वहस नामक स्थान पर ब्रेटन वुड्स समझौता' हुआ। इसके साथ ही इस समझौते के आधार पर विश्व की वही शक्तियों की आर्थिक शक्तियों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने हेतु विश्व बैंक और आई. एम. एफ. की स्थापना की गयी। इन दोनों को 'ब्रेटन वुड्स
की जुड़वाँ संताने भी कहा जाता है। इन दोनों संस्थानों
ने 1947 ने औपचारिक रूप से काम करना शुरू किया।
18.द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त विकासशील देशों ने अपनी आर्थिक उन्नति हेतु नयी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की माँग की और इसी के परिणामस्वरूप जी-77 देश के नाम से विकासशील देशों का एक संगठन बना।
महत्त्वपूर्ण शब्दावली
1.वीटो-इसे निषेधाधिकार भी कहा जाता है। इसके माध्यम से एक ही सदस्य की असहमति द्वारा किसी भी प्रस्ताव को खारिज किया जा सकता है।
2.आयात शुल्क यह किसी दूसरे देश से आने वाली वस्तुओं पर वसूल किया जाने वाला एक कर होता है। यह कर या शुल्क उस स्थान पर लिया जाता है जहाँ से
वह वस्तु देश में आती है अर्थात् किसी सड़क सीमा बन्दरगाह अथवा हवाई अड्डे पर
3.विनिमय दर - इस व्यवस्था के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा हेतु विभिन्न देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं को एक-दूसरे से जोड़ा जाता है। यह दो प्रकार की होती है स्थिर विनिमय दर और परिवर्तनशील विनिमय दर कहा जाता है।
4.स्थिर विनिमय दर-जब विनिमय दर स्थिर होती है और उसमें आने वाले उतार-चढ़ावों को नियंत्रित करने हेतु सरकारों को हस्तक्षेप करना होता है तो इस प्रकार की विनिमय दर को स्थिर विनिमय दर' कहा जाता है।
5. लचीली विनिमय दर-इस प्रकार की विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में विभिन्न मुद्राओं की माँग या आपूर्ति के आधार पर सिद्धान्ततः सरकारों के हस्तक्षेप के बिना ही घटती या बढ़ती रहती है।
6.वैश्वीकरण विश्व को आर्थिक रूप से एकीकृत करने की प्रक्रिया।
7.कौड़ियों-प्राचीन काल में पैसे या मुद्रा के रूप में प्रयुक्त की आने वाली वस्तुएँ
8.कुटीर उद्योग-ग्रामीण क्षेत्रों में घरों में चलाए जाने वाले उद्योग।
9. पूजी का प्रवाह- इस प्रकार के प्रवाह में पूँजीपति अपनी पूँजी को दूर स्थित क्षेत्रों में अल्प या दीर्घ अवधि के लिए निवेश कर देते हैं।
10• सिल्क मार्ग-जमीन या समुद्र से होकर गुजरने वाले ये मार्ग न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़ते थे, बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से जोइते थे। इस मार्ग से ही चीन से पश्चिमी देशों को विशेष रूप से रेशम (सिल्क) का निर्यात किया जाता था। इसी कारण इस मार्ग को सिल्क मार्ग कहा जाता था।
11● प्राथमिक उत्पाद जो उत्पाद सीधे प्रकृति की सहायता से प्राप्त किए जाते हैं, उन्हें प्राथमिक उत्पाद' कहा जाता है, जैसे- कृषि उत्पादों में गेहूँ और कपास
और खनिज उत्पादों में कोयला आदि।
12• उपनिवेशवाद-अपने राजनीतिक, आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए एक शक्तिशाली देश के द्वारा किसी दूसरे देश की अर्थव्यवस्था और उसके शासन पर कब्जा करके उसका शोषण करना: उपनिदेशवाद' कहा जाता है।
13● कॉर्न लॉ-ब्रिटेन में बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर वहाँ की सरकार ने मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। जिन कानूनों के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी थी. उन्हें ही 'कॉर्न-लॉ' कहा जाता था।
14• होसे-त्रिनिदाद में आप्रवासी लोगों के द्वारा मुहर्रम के सालाना जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले का रूप दिया गया था। इस मेले को ही 'होसे कहा जाता है।
15 • गिरमिटिया मजदूर-औपनिवेशिक शासन के समय अनेक लोगों को काम करने के लिए फिजी, गुयाना, वेस्टइंडीज आदि स्थानों पर ले जाया गया था। इन मजदूरों को ही बाद में गिरमिटिया मजदूर कहा जाने लगा। मजदूरों को एक अनुबंध के तहत ले जाया जाता था। बाद में इस अनुबंध को गिरमिट' कहा जाने लगाते
16● व्यापार अधिशेष वह व्यापारिक स्थिति, जिसमें आपसी व्यापार से किसी देश को लाभ हो, उसे व्यापार अधिशेष' कहा जाता है।
17 • हायर परवेज-वस्तुओं को खरीदने की वह व्यवस्था, जिसमें खरीदार उस वस्तु की कीमत किश्तों (साप्ताहिक या मासिक) में चुकाता है, 'हायर परचेज के नाम से जानी जाती है।
महत्त्वपूर्ण तिथियाँ
1● 15वीं शताब्दी कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज।
2● 19वीं शताब्दी- श्रमिकों की अनुबंध व्यवस्था का आरम्भ।
3.1820 ई-चीन के साथ अफीम का व्यापार शुरू होना।
4• 1660 ई. इस दशक में संसार के बन्दरगाहों पर बड़े एम्पोरियम खोले गए।
5● 1885 ई. यूरोपीय के शक्तिशाली देशों की वर्लिन में बैठक।
6•1890 ई.- अफ्रीका में रिडरपेस्ट नामक बीमारी का प्रसार ।
7 ● 19वीं सदी का अन्त-उपनिवेशवाद का विस्तार ।
8● 1914-1919 ई. प्रथम विश्वयुद्ध ।
9.1920 ई. अमेरिका में बृहत् उत्पादन पद्धति के आधार पर उत्पादन का शुरू होना।
10.1929 ई.- विश्व में आर्थिक महामंदी का संकट।
11.1944 ई.-ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर विश्व के बड़े देशों का मौद्रिक एवं आर्थिक सम्मेलन। साथ ही मुद्राकोष-आई.एम.एफ. और विश्व बैंक का गठन।
12● 1939 ई. और 1945 ई.-द्वितीय विश्वयुद्ध । 1947 ई. विश्व बैंक और आई.एम.एफ. का औपचारिक रूप से कार्य आरम्भ करना।
13 ● 1949 ई.-चीन की क्रांति।
14.1970 ई. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का एशिया के देशों में विस्तार ।
बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक
प्रश्न 1. अठारहवीं शताब्दी तक संसार के कौन-से देश सबसे धनी देश माने जाते थे?
(क) जापान और भारत
(ख) फ्रांस और अमेरिका
(घ) चीन और इटली
(ग) चीन और भारत
उत्तर-
(ग) चीन और भारत
प्रश्न 2. महामंदी का प्रारम्भ किस वर्ष हुआ?
(क) 1919 ई.
(ख) 1924 ई.
(ग) 1929 ई.
(घ) 1934 ई.
उत्तर- (ग) 1929 ई.
प्रश्न 3. ब्रिटेन की सरकार ने बड़े भूस्वामियों के दबाव में आकर मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। जिस कानून के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी, उसे क्या कहा जाता है?
(क) ब्लैक-लॉ
(ख) कॉर्न-लॉ
(ग) क्रोप-लॉ
(घ) प्रोडक्शन-लॉ
उत्तर (ख) कॉर्न-लॉ
प्रश्न 4. जमीन को उपजाऊ बनाकर गेहूँ व कपास की खेती हेतु 'कैनाल कॉलोनी कहाँ बसायी गयी?
(क) गुजरात में
(ख) उत्तर प्रदेश में
(ग) पंजाब में
(घ) ओडिशा में
उत्तर
(ग) पंजाब में
प्रश्न 5.यूरोपीय देशों ने मानचित्र पर लकीरें खींचकर किस महाद्वीप का आपस में बँटवारा कर लिया?
(क) एशिया
(ख) अफ्रीका
(ग) अमेरिका
(घ) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर-
(ख) अफ्रीका
प्रश्न 6. संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?
(क) वाशिंगटन
(ख) जिनेवा
(ग) न्यूयॉर्क
(घ) ऑस्ट्रिया
उत्तर
(ग) न्यूयॉर्क
प्रश्न 7.अफ्रीका में किस बीमारी के प्रसार से अधिकांश जानवरों की मृत्यु हो गयी?
(क) प्लेग
(ख) रिंडरपेस्ट
(ग) मलेरिया
(घ) एनीमल फीवर
उत्तर
(ख) रिंडरपेस्ट
प्रश्न 8. अनुबंध व्यवस्था' को और किस नाम से जाना जाता है?
(क) आपसी समझौता
(ख) गुलाम-प्रथा
(ग) सशर्त प्रथा
(घ) नयी दास-प्रथा
उत्तर-
(घ) नयी दास-प्रथा
प्रश्न 9.1914 ई. से 1919 ई. के बीच विश्व के शक्तिशाली देशों की आपसी औपनिवेशिक प्रतिस्पर्द्धा और उनके साम्राज्यवादी इरादों के कारण कौन-सा युद्ध हुआ?
(क) प्रथम विश्वयुद्ध
(ख) द्वितीय विश्वयुद्ध
(ग) रूस-जापान युद्ध
(घ) अणुबम युद्ध
उत्तर-
(क) प्रथम विश्वयुद्ध
प्रश्न 10. युद्धोत्तर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में किस कार-निर्माता की 'बृहत् उत्पादन पद्धति' का योगदान रहा?
(क) हेनरी फोर्ड का
(ख) टाटा का
(ग) मार्कोनी का
(घ) बिड़ला का
उत्तर
(क) हेनरी फोर्ड का
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक
प्रश्न 1. नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- इसका तात्पर्य एक ऐसी व्यवस्था से था, जिसमें विकासशील देश अपने संसाधनों पर सही मायनों में नियंत्रण कर सके, जिसमें उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिले, कच्चे माल के सही दाम मिलें और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिल सके।
प्रश्न 2. स्थिर विनिमय दर प्रणाली से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- जब विनिमय दर स्थिर होती है और उनमें आने वाले उतार-चढ़ावों को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को हस्तक्षेप करना पड़ता है तो ऐसी विनिमय दर को स्थिर विनिमय दर कहा जाता है।
प्रश्न 3.आयात शुल्क से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- किसी दूसरे देश से आने वाली चीजों पर वसूल किया जाने वाला शुल्क। यह कर या शुल्क उस जगह लिया जाता है जिस जगह से वह चीज देश में प्रवेश करती है यानी सीमा पर, बंदरगाह पर या हवाई अड्डे पर।
प्रश्न 4. भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – एक देश की अर्थव्यवस्था को दूसरे देश की अर्थव्यवस्था से तथा संपूर्ण विश्व के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था का एक-दूसरे से विभिन्न क्षेत्रों के माध्यम से जुड़ा होना ही भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण कहलाता है।
प्रश्न 5. रेशम मार्ग क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर- रेशम मार्ग एक ऐसा मार्ग था जो एशिया के विशाल भागों को परस्पर जोड़ने के साथ ही यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका से जा मिलता था। यह मार्ग ईसा पूर्व में ही अस्तित्व में आ चुका था और लगभग 15वीं शताब्दी तक अस्तित्व में था, इस मार्ग से अधिकांशतः रेशम का व्यापार होता था इसलिए इसे रेशम मार्ग कहा जाता था।
प्रश्न 6. व्यापार अधिशेष की परिभाषा दीजिए। भारत के साथ ब्रिटेन को व्यापार अधिशेष कैसे प्राप्त होता था?
उत्तर- व्यापार अधिशेष के अन्तर्गत निर्यात की कीमत आयात से अधिक होती है। ब्रिटेन में भारत से खनिज सम्पदा और खाद्यान्न भेजा जाता था और उसके बदले में ब्रिटेन के उद्योगों में तैयार माल भारत में आयात होता था उसकी बाजार कीमत भेजे गए माल से कहीं ज्यादा होती थी।
प्रश्न 7. 19वीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा उपनिवेश कायम करने के क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर- उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा उपनिवेश कायम करने पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े
(i) एशिया और अफ्रीका महाद्वीप में कष्टदायक आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय परिवर्तन आए।
(ii) साम्राज्यवादी देशों ने अफ्रीका देशों को आपस में एक मेज पर बैठकर बाँट लिया था।
प्रश्न 8. अफ्रीका में आने के लिए यूरोपियों के लिए प्रमुख आकर्षण के कारण क्या थे?
उत्तर- यूरोपीय देश खनिज संसाधनों के लिए अफ्रीका की ओर आकर्षित हुए तथा अफ्रीका के विशाल भू-क्षेत्रों और बाजार पर यूरोपीय देशों की नजर थी।
प्रश्न 9.उन्नीसवीं शताब्दी में हजारों लोग यूरोप से अमेरिका क्यों जाने लगे थे?
उत्तर- यूरोप में गरीबी की भरमार, भूखमरी, बीमारियाँ, धार्मिक टकराव व धार्मिक असंतुष्टों को कठोर दण्ड देने के कारण, अमेरिका में संसाधनों की बहुलता के कारण तथा अमेरिका में खेती योग्य भूमि ज्यादा थी और जनसंख्या कम थी।
प्रश्न 10. जब हम कहते हैं कि सोलहवीं सदी में दुनिया 'सिकुड़ने' लगी थी तो इसका क्या मतलब है?
उत्तर- यहाँ दुनिया के 'सिकुड़ने' का मतलब है- विश्व के विभिन्न महाद्वीपों के व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों में वृद्धि होना।
लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक
प्रश्न 1. 1929 की महामंदी का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- 1929 की महामंदी का प्रभाव भारत पर भी पड़ा। महामंदी ने भारतीय व्यापार को फौरन प्रभावित किया। 1928 से 1934 के बीच देश के आयात-निर्यात घटकर लगभग आधे रह गए थे। 1928 से 1934 के बीच भारत में गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत गिर गई। शहरी निवासियों के मुकाबले किसानों और काश्तकारों को ज्यादा नुकसान हुआ। यद्यपि कृषि उत्पादों की कीमत तेजी से नीचे गिरी लेकिन सरकार ने लगान वसूली में छूट देने से इन्कार कर दिया। सबसे बुरी मार उन काश्तकारों पर पड़ी जो विश्व बाजार के लिए - उपज पैदा करते थे। टाट का निर्यात बंद होने से कच्चे पटसन की कीमतों में 60 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट आ गई। मंदी के इन्हीं सालों में भारत कीमती धातुओं खासतौर से सोने का निर्यात करने लगा। 1931 में मंदी अपने चरम पर थी और ग्रामीण भारत असंतोष व उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। यह मंदी शहरी भारत के लिए अधिक दुखदायी नहीं रही। कीमतें गिरते जाने के बावजूद शहरों में रहने वाले ऐसे लोगों की हालत ठीक रही जिनकी आय निश्चित थी।
प्रश्न 2: हमारे खाद्य पदार्थ विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का किस प्रकार उदाहरण पेश करते हैं?
उत्तर हमारे खाद्य पदार्थ दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कई उदाहरण पेश करते हैं। जब भी व्यापारी और मुसाफिर किसी नए देश में जाते थे, जाने-अनजाने वहाँ नयी फसलों के बीज बो आते थे। माना जाता है कि नूडल्स चीन से पश्चिम में पहुँचे या संभव है कि पास्ता अरब यात्रियों के द्वारा पाँचवीं सदी में सिसली पहुँचा। इसी तरह के आहार भारत और जापान में भी पाए जाते हैं। आलू, सोया, मूँगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद और ऐसे ही बहुत सारे खाद्य पदार्थ लगभग पाँच सौ साल पहले हमारे पूर्वजों के पास नहीं थे। ये खाद्य पदार्थ यूरोप और एशिया में तब पहुँचे जब कोलंबस ने अमेरिका को खोजा। इन अनुमानों के आधार पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि आधुनिक काल से पहले भी दूर देशों के बीच सांस्कृतिक लेन-देन चल रहा होगा।
प्रश्न 3. अमेरिका की खोज से दुनिया में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- 16वीं सदी में जब यूरोपीय जहाजियों ने एशिया तक का समुद्री रास्ता ढूंढ़ लिया और जब वे अमेरिका तक जा पहुँचे तो दुनिया छोटी-सी दिखाई देने लगी। कई सदियों से हिंद महासागर के पानी में फलता-फूलता व्यापार तरह-तरह के सामान, लोग, ज्ञान और परंपराएँ एक जगह से दूसरी जगह आ जा रही थीं। भारतीय उपमहाद्वीप इसमें अहम भूमिका रखता था। यूरोपियों के आगमन से यह आवाजाही बढ़ने लगी। अब तक अमेरिका का दुनिया से कोई संपर्क नहीं था लेकिन 16वीं सदी से उसकी विशाल भूमि और बेहिसाब फसलें व खनिज पदार्थ हर दिशा में जीवन का रंग-रूप बदलने लगी। 17वीं सदी के आते-आते पूरे यूरोप में दक्षिण अमेरिका की धन-संपदा के बारे में तरह-तरह के किस्से बनने लगे थे। 16वीं सदी के मध्य तक आते-आते पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की विजय का सिलसिला शुरू हो गया था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था। इस प्रकार दुनिया में बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने शुरू हो गए थे।
प्रश्न 4. 19वीं सदी के अंत में विश्व में किस प्रकार उपनिवेशवाद फैला?
उत्तर- 19वीं सदी के आखिरी दशकों में व्यापार बढ़ा और बाजार तेजी से फैलने लगे। यह केवल फैलते व्यापार और संपन्नता का ही दौर नहीं था। व्यापार में बढ़ोतरी और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ निकटता का एक परिणाम यह हुआ कि दुनिया के बहुत सारे भागों में स्वतंत्रता और आजीविका के साधन छिनने लगे। 19वीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपियों की विजयों से बहुत सारे कष्टदायक आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय परिवर्तन आए और औपनिवेशिक समाजों को विश्व अर्थव्यवस्था में समाहित कर लिया गया। 1885 में यूरोप के ताकतवर देशों की बर्लिन में एक बैठक हुई, जिसमें अफ्रीका के नक्शे पर लकीरें खींचकर उनको आपस में बाँट लिया गया। 19वीं सदी के अंत में ब्रिटेन और फ्रांस ने अपने शासन वाले विदेशी क्षेत्रफल में भारी वृद्धि कर ली थी। बेल्जियम और जर्मनी नयी औपनिवेशिक ताकतों के रूप में सामने आए। 1890 के दशक के आखिरी वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका भी औपनिवेशिक ताकत बन गया।
प्रश्न 5. भारत के सूती वस्त्र उद्योग पर उपनिवेशवाद का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
भारत में पैदा होने वाली महीन कपास का यूरोपीय देशों को निर्यात किया जाता था। औद्योगीकरण के बाद ब्रिटेन में भी कपास का उत्पादन बढ़ने लगा था। इस कारण वहाँ के उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह कपास तथा सूती वस्त्रों के आयात पर रोक लगाए। फलस्वरूप ब्रिटेन में आयतित कपड़ों पर सीमा शुल्क थोप दिए गए। वहाँ महीन भारतीय कपड़े का आयात कम होने लगा। 19वीं सदी की शुरुआत में ही ब्रिटिश कपड़ा उत्पादक दूसरे देशों में भी अपने कपड़ों के लिए नए-नए बाजार ढूँढ़ने लगे थे। सीमा ■ शुल्क की व्यवस्था के कारण ब्रिटिश बाजारों से बेदखल हो जाने के बाद भारतीय कपड़ों को दूसरे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। सन् 1800 के आसपास निर्यात में सूती कपड़े का प्रतिशत 30 था जो 1815 में घटकर 15 प्रतिशत रह गया। 1870 तक यह अनुपात केवल = 3 प्रतिशत रह गया।
प्रश्न 6.प्रथम विश्वयुद्ध के ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
प्रथम विश्व युद्ध से पहले ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। युद्ध के बाद सबसे लंबा संकट उसे ही झेलना पड़ा। युद्ध के बाद भारतीय बाजार में पहले वाली (वर्चस्व वाली) स्थिति प्राप्त करना ब्रिटेन के लिए बहुत मुश्किल हो गया था। युद्ध के खर्चे की भरपाई करने के लिए ब्रिटेन ने अमेरिका से जमकर कर्जे लिए थे। इसका परिणाम यह हुआ कि युद्ध खत्म होने तक ब्रिटेन भारी विदेशी कर्जों में दब चुका था। युद्ध के कारण आर्थिक उछाल का जो माहौल था अब वह खत्म हो चुका था, जिससे उत्पादन गिरने लगा और बेरोजगारी बढ़ गई। सरकार ने भारी भरकम युद्ध संबंधी व्यय में भी कटौती शुरू कर दी ताकि शांतिकालीन करों के सहारे ही उनकी भरपाई की जा सके। इन सारे प्रयासों से रोजगार भारी तादाद में खत्म हो गए। 1921 में हर पाँच में से एक ब्रिटिश मजदूर के पास काम नहीं था।
प्रश्न 7.अफ्रीका में रिंडरपेस्ट आने के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर .जमीन और मवेशी अफ्रीकी लोगों की आय के मुख्य स्रोत थे। जब यूरोपियनों ने अफ्रीकी लोगों को श्रमिक बनाना चाहा तो उन्होंने इनकार कर दिया। रिंडरपेस्ट पशुओं का एक रोग है जो अफ्रीकी पशुओं में फैल गया था। इसके फैलने से अफ्रीका के 90 प्रतिशत मवेशी मौत का शिकार हुए। पशुओं के मारे जाने से अफ्रीकियों के रोजी-रोटी के साधन नष्ट हो गए। अपनी सत्ता को और सुदृढ़ करने तथा अफ्रीकियों को श्रम बाजार में ढकेलने के लिए वहाँ के बागान मालिकों, खान मालिकों और औपनिवेशिक सरकारों ने बचे हुए पशु अपने कब्जे में ले लिए। इस प्रकार बचे हुए पशु संसाधनों पर कब्जे से यूरोपीय उपनिवेशकारों को पूरे अफ्रीका को जीतने व गुलाम बना लेने का सुनहरा अवसर हाथ लग गया था।
प्रश्न 8. सिल्क मार्ग ने किस प्रकार विश्व को जोड़ने का प्रयास किया?
उत्तर- सिल्क मार्ग वह मार्ग था जिसके द्वारा चीनी रेशम का व्यापार होता था। यह मार्ग जमीन और समुद्र दोनों में थे। इन मार्गों ने विश्व को जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो निम्नलिखित थी
(i) ये मार्ग एशिया के विशाल क्षेत्रों को जोड़ने के साथ-साथ एशिया,यूरोप और उत्तरी अमेरिका महाद्वीपों को भी आपस में जोड़ते थे।
(ii) इन मार्गों द्वारा रेशम के साथ-साथ चीनी पॉटरी का भी निर्यात होता था। साथ ही भारत व दक्षिण पूर्व एशिया से कपड़े, मसाले और चीन व विश्व के अन्य भागों में जाते थे।
(iii) इन सामानों की कीमत यूरोप द्वारा सोने व चाँदी के रूप में चुकाई जाती थी।
(iv) इन मार्गों द्वारा व्यापार के साथ-साथ सांस्कृतिक व धार्मिक आदान-प्रदान भी होता था।
(v) बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, मुस्लिम धर्म इसी मार्ग द्वारा ही संभवतः विश्व के अन्य भागों में फैले।
प्रथा 9 वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
उत्तर 1890 में वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का उदय हो गया था। इसके कारण श्रम विस्थापन रुझानों, पूँजी प्रवाह, पारिस्थितिकी और तकनीक में कई बदलाव आए, जो इस प्रकार थे
(i) इसमें खाद्य पदार्थ गाँव या कस्बों की बजाए विश्व के अन्य स्थानों से पहुंचने लगे।
(ii) इस व्यवस्था में जमीन के मालिक स्वयं कृषि कार्य नहीं करते थे। वे यह कार्य औद्योगिक मजदूरों से करवाने लगे।
(iii) खाद्य पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए रेलनेटवर्क, पानी के जहाजों का प्रयोग किया जाने लगा।
(iv) दक्षिणी यूरोप, एशिया, अफ्रीका तथा कैरीबियन द्वीप समूह के मजदूरों को ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन तथा अमेरिका ले जाकर कम वेतन पर कार्य करवाया गया।
प्रश्न 10. 19वीं शताब्दी की अनुबंध व्यवस्था (नयी दास प्रथा) ने एक नई संस्कृति को जन्म दिया। कैसे?
उत्तर
19वीं शताब्दी की अनुबंध व्यवस्था (नयी दास प्रथा) द्वारा एशिया, अफ्रीका व चीन आदि देशों और महाद्वीपों से आए लोगों ने अपने नए स्थानों पर एक नई संस्कृति को जन्म दिया। इसका स्वरूप निम्नलिखित था
(i) त्रिनिदाद में मुहर्रम के सालाना जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले का रूप दे दिया गया, जिसे 'होसे हुसैन' के नाम से जाना गया। इसमें सभी धर्मों व नस्लों के मजदूर हिस्सा लेते थे।
(ii) भारतीय आप्रवासियों व कैरीबियन द्वीप समूह के लोगों ने मिलकर एक नए धर्म 'रास्ताफरियानवाद' को जन्म दिया। बाद में जैमेका के रैगे गायक बॉव मालें ने इसे विश्व ख्याति दिलाई।
(iii) त्रिनिदाद, गुयाना में मशहूर चटनी म्यूजिक भी भारतीय आप्रवासियों की देन है जो उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति का प्रतीक है। इस प्रकार 'नई दास प्रथा' ने नई सांस्कृतिक वातावरण को जन्म दिया जो अनुबंधित श्रमिकों की नई जगहों पर नई पहचान बनी।
प्रश्न 11. सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए।
एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिकी महाद्वीपों के बारे में चुनिए ।
उत्तर एशिया (चीन)- 15वीं शताब्दी तक बहुत सारे 'सिल्क मार्ग' क अस्तित्व में आ चुके थे। इसी रास्ते से चीनी पॉटरी जाती थी और इसी रास्ते से अ भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले दुनिया के दूसरे भागों में पहुँचते थे। वापसी में सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ यूरोप से एशिया पहुँचती थी। अमेरिका-सोलहवीं सदी में जब यूरोपीय जहाजियों ने एशिया तक का समुद्री जि रास्ता खोज लिया और वे अमेरिका तक जा पहुँचे तो अमेरिका की विशाल भूमि वि और बेहिसाब फसलें और खनिज पदार्थ हर दिशा में जीवन का रंग-रूप बदलने उ लगे। आज के पेरू और मैक्सिको में मौजूद खानों से निकलने वाली कीमती जु धातुओं, खासतौर से चाँदी ने भी यूरोप की संपदा को बढ़ाया और पश्चिम कि एशिया के साथ होने वाले उसके व्यापार को गति प्रदान की।
प्रश्न 12. ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है ?
उत्तर युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह था कि औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोज़गार बनाए रखा जाए। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। इसी को ब्रेटन वुड्स समझौते के नाम से जाना जाता है।
सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गई। युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए पैसे का इंतजाम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक का गठन किया गया। इसी वजह से विश्व बैंक और आई.एम.एफ. को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रिटेन वुड्स ट्विन भी कहा जाता है। इसी आधार अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को अक्सर ब्रेटन वुड्स व्यवस्था भी कहा जाता है।
प्रश्न 13. महामंदी के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर 1929 में आर्थिक महामंदी की शुरुआत हुई। इस मंदी के प्रमुख न कारण निम्नलिखित थे
(i) औद्योगिक क्रांति के कारण अमेरिका तथा ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य होने लगा था। 1930 तक तैयार माल का इतना बड़ा भण्डार एकत्र हो गया कि उनका कोई खरीददार न रहा।
(ii) कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन के कारण कृषि उत्पादों की कीमतें गिरने लगी। किसानों ने अपनी घटती आय को बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन करना शुरू कर दिया किंतु इससे कीमतें और गिरने लगी। खरीददारों के अभाव में कृषि उपज पड़ी पड़ी सड़ने लगी।
(iii) संकट से पूर्व बहुत-से देश अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था चलाते थे। 1928 के कुछ समय पहले विदेशों में अमेरिका का कर्ज एक अरब डॉलर था। साल भर के भीतर यह कर्ज घटकर केवल चौथाई रह गया था। जो देश अमेरिकी कर्ज पर सबसे ज्यादा निर्भर थे उनके सामने गहरा संकट खड़ा हो गया।
(iv) यूरोप में कई बड़े बैंक धराशायी हो गये। कई देशों की मुद्रा की कीमत बुरी तरह गिर गई। अमेरिकी सरकार इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आयातित पदार्थों पर दो गुना सीमा शुल्क वसूल करने लगी।
(v) अमेरिका के शेयर बाजार में शेयरों की कीमत में गिरावट आ गई। इसकी वजह से वहाँ लाखों व्यापारियों का दीवाला निकल गया।
प्रश्न 14. जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं? जी-77 को किस आधार पर ब्रेटन वुड्स । की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- वे विकासशील देश जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए थे किंतु 50 से 60 के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तेज प्रगति से उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। इस समस्या को देखते हुए उन्होंने एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली के लिए आवाज उठाई और अपना एक संगठन बनाया जिसे समूह-77 या जी-77 के नाम से जाना जाता है। ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का जन्म हुआ था
जिन्हें ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानें कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर केवल कुछ शक्तिशाली विकसित देशों का ही प्रभुत्व था इसलिए
उनसे विकासशील देशों को कोई लाभ नहीं हुआ। इसलिए ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की प्रतिक्रिया स्वरूप विकासशील देशों ने जी-77 नामक संगठन बनाकर नई आर्थिक प्रणाली की माँग की ताकि उनके आर्थिक उद्देश्य पूरे हो सकें। उनके प्रमुख आर्थिक उद्देश्यथे-अपने संसाधनों पर उनका पूरा नियंत्रण हो, कच्चे माल के सही दाम मिले और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजारों से बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिले।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक
प्रश्न 1.बताइए पूर्व-आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद की ?
उत्तरं
(i) 16वीं सदी के मध्य तक पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की। विजय का सिलसिला शुरू हो गया था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था।
(ii) यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक ताकत के दम पर नहीं जीतती थीं। स्पेनिश विजेताओं के पास तो कोई परंपरागत किस्म का सैनिक हथियार नहीं था। यह हथियार तो चेचक जैसे थे जो स्पेनिश सैनिकों और अफ़सरों के साथ वहाँ जा पहुंचे थे।
(iii) लाखों साल से दुनिया से अलग-थलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग-प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी।
(iv) इस नए स्थान पर चेचक बहुत मारक साबित हुई। एक बार संक्रमण शुरू होने के बाद तो यह बीमारी पूरे महाद्वीप में फैल गई।
(v) जहाँ यूरोपीय लोग नहीं पहुँचे थे, वहाँ के लोग भी इसकी चपेट में आने लगे। इसने सभी समुदायों को खत्म कर डाला। इस तरह घुसपैठियों की जीत का रास्ता आसान होता चला गया।
(vi) बंदूकों को तो खरीदकर या छीनकर हमलावरों के खिलाफ़ भी इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु चेचक जैसी बीमारियों के मामले में तो ऐसा नहीं किया जा सकता था क्योंकि हमलावरों के पास उससे बचाव का तरीका भी था और उनके शरीर में रोग-प्रतिरोधी क्षमता भी विकसित हो चुकी थी। इस तरह से बिना किसी चुनौती के बड़े साम्राज्यों को जीतकर अमेरिका में उपनिवेशों की स्थापना हुई।
प्रश्न 2.खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर 1890 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था सामने आ चुकी थी। इससे तकनीक में भी बदलाव आ चुके थे। खाद्य उपलब्धता पर भी तकनीक का प्रभाव पड़ने लगा जो इस प्रकार था
1. रेलवे का विकास -अब भोजन किसी आस-पास के गाँव या कस्बे से नहीं बल्कि हज़ारों मील दूर से आने लगा था। खाद्य पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। पानी के जहाजों से इसे दूसरे देशों में पहुँचाया जाता था।
2. नहरों का विकास-खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव का बहुत अच्छा उदाहरण हम पंजाब में देखते हैं। यहाँ ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अर्द्ध-रेगिस्तानी परती जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया ताकि निर्यात के लिए गेहूं की खेती की जा सके। इससे पंजाब में गेहूं का उत्पादन कई गुना बढ़ गया और गेहूँ को बाहर बेचा जाने लगा।
3. रेफ्रिजरेशन तकनीक का विकास - 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था। उस समय जिंदा जानवर ही भेजे जाते थे, जिन्हें यूरोप ले जाकर काटा जाता था। लेकिन जिंदा जानवर बहुत ज्यादा जगह घेरते थे। काफी संख्या में ये लंबे सफर में मर जाते थे। अधिकांश का वजन गिर जाता था या वे खाने लायक नहीं रहते थे। इसलिए मांस खाना एक महँगा सौदा था। नई तकनीक के आने पर यह स्थिति बदल गई। पानी के जहाज़ों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गई, जिससे जल्दी खराब होने वाली चीजों को भी लंबी यात्राओं पर ले जाया जा सकता था। अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सब जगह से जानवरों की बजाए उनका मांस ही यूरोप भेजा जाने लगा। इससे न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्चा कम हो गया। बल्कि यूरोप में मांस के दाम भी गिर गए। अब अधिकांश लोगों के भोजन में मांसाहार शामिल हो गया।
प्रश्न 18वीं शताब्दी के अंत में हुए उन परिवर्तनों का वर्णन कीजिए जिन्होंने ब्रिटेन के स्वरूप को बदल दिया।
उत्तर
18वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटेन में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए जिन्होंने इसके स्वरूप को बदल दिया। ये परिवर्तन निम्नलिखित थे
(i) 18वीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटेन की आबादी तेजी से बढ़ने लगी थी। इससे देश में भोजन की माँग बढ़ी।
(ii) जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योग बढ़ने लगे, कृषि उत्पादों की माँग भी बढ़ने लगी।
(iii) कृषि उत्पाद महंगे होने लगे।
(iv) बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर सरकार ने मक्का के आयात पर 'कॉर्न-लॉ' द्वारा पाबंदी लगा दी।
(v) खाद्य पदार्थों की ऊँची कीमतों से परेशान उद्योगपतियों और शहरी बाशिंदों ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वह कॉर्न लॉ को समाप्त कर दें।
(vi) कॉर्न-लॉ के खत्म होने के बाद कम कीमत पर खाद्य पदार्थों का आयात किया जाने लगा। आयातित खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से भी कम थी। फलस्वरूप ब्रिटिश किसानों की हालत बिगड़ने लगी क्योंकि वे आयातित माल की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे।
(vii) विशाल भू-भागों पर खेती बंद हो गई थी। हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए।
(viii) खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट आई तो ब्रिटेन में उपभोग का स्तर बढ़ गया।
(ix) 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटेन की औद्योगिक प्रगति काफी तेज़ रही जिससे लोगों की आय में वृद्धि हुई।
(x) खाद्य पदार्थों का और ज्यादा मात्रा में आयात होने लगा।
(xi) दुनिया के हर हिस्से में ब्रिटेन का पेट भरने के लिए ज़मीनों को साफ करके खेती की जाने लगी। इन कृषि क्षेत्रों को बंदरगाहों से जोड़ने के लिए रेलवे का विकास किया।
(xii) ज्यादा मात्रा में माल ढुलाई के लिए नई गोदियाँ बनाई और पुरानी गोदियों को फैलाया गया।
(xiii) नयी ज़मीनों पर खेती करने के लिए यह ज़रूरी था कि दूसरे इलाकों के लोग वहाँ आकर बस गए।
(xiv) इन सारे कामों के लिए पूँजी और श्रम की ज़रूरत थी। इसके लिए लंदन जैसे वित्तीय केंद्रों से पूँजी आने लगी।
(xv) 1890 तक तकनीकी परिवर्तन हो चुके थे। भोजन किसी आस-पास के गाँव या कस्बे से नहीं बल्कि हज़ारों मील दूर से आने लगा था।
(xvi) अपने खेतों पर खुद काम करने वाले किसान ही खाद्य पदार्थ पैदा नहीं कर रहे थे। अब यह काम ऐसे औद्योगिक मज़दूर करने लगे थे जो संभवतः हाल ही में वहाँ आए थे।
(xvii) खाद्य पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। पानी के जहाज़ों से इसे दूसरे देशों में पहुँचाया जाता था। इन जहाजों पर दक्षिण यूरोप, एशिया और अफ्रीका के मज़दूरों से बहुत कम वेतन पर काम करवाया जाता था।
प्रश्न 4. यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने किस प्रकार अफ्रीका को गुलाम बनाया ?
उत्तर
यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने अफ्रीका को गुलाम इस प्रकार बनाया
(i) प्राचीन काल से ही अफ्रीका में जमीन की कोई कमी नहीं रही जबकि वहाँ की आबादी बहुत कम थी। सदियों तक अफ्रीकियों की ज़िंदगी व कामकाज ज़मीन और पालतू पशुओं के सहारे ही चलता रहा है।
(ii) वहाँ पैसे या वेतन पर काम करने का चलन नहीं था। 19वीं सदी के आखिर में अफ्रीका में ऐसे उपभोक्ता बहुत कम थे, जिन्हें वेतन के पैसे से खरीदा जा सकता था।
(iii) 19वीं सदी के अंत में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका के विशाल भू-क्षेत्र और खनिज भंडारों को देखकर इस महाद्वीप की ओर आकर्षित हुई थीं।
(iv) यूरोपीय लोग अफ्रीका में बागानी खेती करने और खादानों का दोहन करना चाहते थे ताकि उन्हें वापस यूरोप भेजा जा सके।
(v) लेकिन वहाँ के लोग वेतन पर काम नहीं करना चाहते थे। अतः मजदूरों की भर्ती के लिए मालिकों ने कई तरीके अपनाए।
(vi) उन पर भारी-भरकम कर लाद दिए गए जिनका भुगतान केवल तभी किया जा सकता था जब करदाता खादानों या बागानों में काम करता हो। खानकर्मियों को बाड़ों में बंद कर दिया गया।
(vii) उनके खुलेआम घूमने-फिरने पर पाबंदी लगा दी गई।
(viii) तभी वहाँ रिडरपेस्ट नामक विनाशकारी पशु रोग फैल गया। यह बीमारी ब्रिटिश आधिपत्य वाले एशियाई देशों से आये जानवरों के जरिए फैली थी।
(ix) अफ्रीका के पूर्वी हिस्से से शुरू होकर बीमारी पूरे महाद्वीप में जंगल की आग की तरह फैल गई।
(x) इस बीमारी ने अफ्रीका के 90 प्रतिशत मवेशियों को मौत की नींद सुला दिया।
(xi) पशुओं के खत्म हो जाने से अफ्रीकियों के रोजी-रोटी के साधन ही खत्म हो गए।
(xii) अपनी सत्ता को और मज़बूत करने तथा अफ्रीकियों को श्रम बाज़ार में ढकेलने के लिए वहाँ के बागान मालिकों, खान मालिकों और औपनिवेशिक सरकारों ने बचे-खुचे पशु भी अपने कब्जे में ले लिए।
(xiii) इससे यूरोपीय उपनिवेशकारों को पूरे अफ्रीका को जीतने व उसे गुलाम बना लेने का बेहतरीन मौका हाथ लग गया।
प्रश्न 5. 19वीं सदी की अनुबंध व्यवस्था, जिसे नयी दास प्रथा भी कहा जाता था, का अर्थ बताइए। भारत के संदर्भ में इसका उल्लेख कीजिए।
या उन्नीसवीं शताब्दी में भारत से विदेश को श्रमिकों को क्यों ले जाया गया? ये श्रमिक अधिकतर किस प्रदेश के थे? उन्हें किस शर्त पर स्वदेश लौटने की छूट दी जाती थी?
उत्तर 19वीं सदी की अनुबंध व्यवस्था को काफी लोगों ने 'नयी दास प्रथा' का नाम दिया है। 19वीं सदी में भारत और चीन के लाखों मज़दूरों को बागानों, खादानों और सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था।
भारत के संदर्भ में-भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को खास तरह के अनुबंध या एग्रीमेंट के तहत ले जाया जाता था। इन अनुबंधों में यह शर्त होती थी कि यदि मजदूर अपने मालिक के बागानों में पाँच साल काम कर लेंगे तो वे स्वदेश लौट सकते हैं।
भारत के ज्यादातर अनुबंधित श्रमिक मौजूदा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु के सूखे इलाकों से जाते थे। 19वीं सदी के मध्य में इन इलाकों में भारी बदलाव आने लगे थे। कुटीर उद्योग खत्म हो रहे थे, ज़मीनों का किराया बढ़ रहा था। खानों और बागानों के लिए ज़मीनों को साफ किया जा रहा था। इन परिवर्तनों से गरीबों के जीवन पर गहरा असर पड़ा। वे बँटाई पर ज़मीन तो ले लेते थे लेकिन उसका भाड़ा नहीं चुका पाते थे। काम की तलाश में उन्हें इ अपने घर-बार छोड़ने पड़े। भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को मुख्य रूप से कैरीबियाई द्वीप समूह, मॉरीशस व फ़िजी से लाया जाता था। तमिल अप्रवासी भ सीलोन और मलाया जाकर काम करते थे। अधिकांश अनुबंधित श्रमिकों को असम के चाय बागानों में काम करवाने के लिए ले जाया जाता था।
मजदूरों की भर्ती का काम मालिकों के एजेंट किया करते थे। एजेंटों को कमीशन मिलता था। अधिकतर अप्रवासी अपने गाँव में होने वाले उत्पीड़न और गरीबी से बचने के लिए भी इन अनुबंधों को मान लेते थे। एजेंट भी भावी अप्रवासियों को फुसलाने के लिए झूठी जानकारियाँ देते थे। अधिकतर श्रमिकों को यह भी नहीं बताया जाता था कि उन्हें लंबी समुद्री यात्रा पर जाना है
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