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कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 6 जल संसाधन का सम्पूर्ण हल/class 10 social science chapter 6 jal sansadhan notes pdf in hindi

 कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 6 जल संसाधन का सम्पूर्ण हल


class 10 social science chapter 6 jal sansadhan notes pdf in hindi


class 10 social science notes



 3.         जल संसाधन









याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1• तीन-चौथाई धरातल जल से ढका हुआ है। जल एक नवीकरणीय संसाधन है।


2 • सारा जल जलीय चक्र में गतिशील रहता है जिससे जल नवीकरण सुनिश्चित होता है।


3● विश्व में जल के कुल आयतन का 96.5 प्रतिशत भाग महासागरों में पाया जाता है और केवल 2.5 प्रतिशत भाग अलवणीय जल है। विश्व में अलवणीय जल का लगभग 70 प्रतिशत भाग अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ की चादरों और हिमनदों के रूप में मिलता है।



4. एक ओर इजराइल जैसे 25 सेमी औसत वार्षिक वाले देश में जल का कोई अभाव नहीं है तो दूसरी ओर 114 सेमी औसत वार्षिक वर्षा वाले हमारे देश में प्रतिवर्ष किसी भाग में सूखा अवश्य पड़ता है।


5• बाँधों को बहुउद्देश्य परियोजनाएँ भी कहा जाता है जहाँ एकत्रित जल के अनके उपयोग समन्वित होते हैं।


6• जवाहरलाल नेहरू बाँधों को आधुनिक भारत के मंदिर कहा करते थे। 



7.नर्मदा बचाओ आंदोलन एक गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) है जो जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में लामबंद करता है। मूल रूप से शुरू में यह आंदोलन जंगलों के बाँध के पानी में डूबने जैसे पर्यावरण मुद्दों पर केंद्रित था। अब इस आंदोलन का लक्ष्य बाँध से विस्थापित गरीब लोगों को सरकार से संपूर्ण पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया है।


8• कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोयना पर जल विद्युत परियोजना के लिए बाँध बनाकर जल की दिशा में परिवर्तन कर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सरकारों द्वारा आपत्ति जताए जाने से हुई। इससे इन राज्यों में पड़ने वाले नदी के निचले हिस्सों में जल प्रवाह कम हो जाएगा और कृषि और उद्योग पर विपरीत असर पड़ेगा। • मेघालय में नदियों व झरनों के जल को बाँस द्वारा बने पाइप द्वारा एकत्रित करके 200 वर्ष पुरानी विधि प्रचालित है।





महत्त्वपूर्ण शब्दावली


बाँध-बाँध बहते जल को रोकने, दिशा देने या बहाव कम करने के लिए खड़ी की गई बाधा है जो आमतौर पर जलाशय, झील अथवा जलभरण बनाती है। बाँध का अर्थ जलाशय से लिया जाता है न कि इसके ढाँचे से। 



बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना उसे कहते हैं जिसमें नदियों पर बाँध बनाकर एक बार में अनेक उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है: जैसे-सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, बिजली उत्पादन, मछली पालन आदि। 


भौम जल-जल जो रिस-रिसकर भूमि में समा जाता है।


वर्षाजल संग्रहण वर्षाजल संग्रहण का अर्थ है कि वर्षा के जल को उसी स्थान पर एकत्रित करना जहाँ वर्षा हो रही है। 



बॉस ट्रिप सिंचाई प्रणाली नदियों व झरनों के जल को बॉस के बने पाइप द्वारा एकत्रित करके सिंचाई करना बॉस ड्रिप सिंचाई प्रणाली कहलाती है। इसमें पानी का बहाव 20 से 80 बूँद प्रति मिनट तक घटाकर पौधे पर छोड़ दिया जाता है।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. भारत विश्व वृष्टि मात्रा का कितना प्रतिशत प्राप्त करता है?


(क) 4%


(ख) 6%


(ग) 8%


(घ) 10%


उत्तर-


(क) 4%


प्रश्न 2.विश्व में सर्वाधिक वर्षा किस स्थान पर होती है?


(क) मॉसिनराम


(ख) चेन्नई


(ग) ब्लादिवोस्टक


(घ) न्यूयॉर्क


उत्तर- (क) मॉसिनराम


प्रश्न 3. भारत की पहली नदी घाटी परियोजना किस नदी पर बनायी गई?


(क) दामोदर 


(ख) नर्मदा 


(ग) कोसी


(घ) चिनाब


उत्तर


(क) दामोदर


प्रश्न 4. बहु-उद्देशीय परियोजनाओं को किसने 'आधुनिक भारत का मंदिर' कहा ?


(क) महात्मा गांधी


(ख) जवाहरलाल नेहरू 


(ग) विनोबा भावे


(घ) अन्ना हजारे



उत्तर-


(ख) जवाहरलाल नेहरू


प्रश्न 5. टिहरी बाँध परियोजना किस राज्य में स्थित है?


(क) पंजाब


ख) गुजरात


 (ग) उत्तराखण्ड 


(घ) मध्य प्रदेश


उत्तर-


(ग) उत्तराखण्ड


प्रश्न 6.निम्नलिखित में से कौन-सा वक्तव्य बहु-उद्देशीय नदी परियोजनाओं के पक्ष में दिया गया तर्क नहीं है



 (क) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ उन क्षेत्रों में जल लाती हैं जहाँ जल की कमी होती है।


(ख) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ जल बहाव को नियंत्रित करके बाढ़ पर काबू पाती हैं। 


(ग) बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से बृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।


 (घ) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ हमारे उद्योग और घरों के लिए विद्युत पैदा करती हैं।


उत्तर (ग) बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से बृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।


प्रश्न 7.सलाल बाँध किस नदी पर बना है?



(क) महानदी


 (ख) चिनाव


(ग) सतलुज


(घ) कृष्णा



उत्तर-


(ख) चिनाव




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. जल के बारे में क्या भविष्यवाणी की गई है?


उत्तर 2025 में विश्व के अनेक देशों में 20 करोड़ लोग जल की नितांत कमी झेलेंगे। भविष्यवाणी है कि 2025 तक भारत का एक बड़ा हिस्सा विश्व के अन्य देशों और क्षेत्रों की तरह जल की नितान्त कमी महसूस करेगा।


प्रश्न 2. सरदार सरोवर बाँध कहाँ और किस नदी पर बना है?


उत्तर सरदार सरोवर बाँध गुजरात राज्य में नर्मदा नदी पर बना है। 



प्रश्न 3. कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत क्यों हुई थी?


उत्तर कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोयना पर जल विद्युत परियोजना के लिए बाँध बनाकर जल की दिशा में परिवर्तन कर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सरकारों द्वारा आपत्ति जताए जाने से हुई। इससे इन राज्यों में पड़ने वाले नदी के निचले हिस्से में जल प्रवाह कम हो जाएगा और कृषि उद्योग पर विपरीत असर पड़ेगा।


प्रश्न 4.भारत के एक ऐसे क्षेत्र का उदाहरण दीजिए जहाँ पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है फिर भी जल की कमी है।


उत्तर- मेघालय की राजधानी शिलांग में छत वर्षा जल संग्रहण प्रचलित है।


यह रोचक इसलिए है क्योंकि चेरापूँजी और मॉसिनराम जहाँ विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है शिलांग से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह शहर पीने के जल की कमी की गंभीर समस्या का सामना करता है।


प्रश्न 5. भारत का कौन-सा राज्य है जहाँ छत वर्षाजल संग्रहण ढाँचों को बनाना आवश्यक कर दिया गया है?


उत्तर- तमिलनाडु देश का एकमात्र राज्य है जहाँ पूरे राज्य में हर घर में छत वर्षा जल संग्रहण ढाँचों का बनाना आवश्यक कर दिया गया है। इस संदर्भ में दोषी व्यक्तियों पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है।


प्रश्न 6. अलवणीय जल किस प्रकार से प्राप्त होता है?


उत्तर- अलवणीय जल हमें सतही अपवाह और भौम जल स्रोत से प्राप्त होता है जिसका लगातार नवीकरण और पुनर्भरण जलीय चक्र द्वारा होता रहता है।


प्रश्न 7. स्वतंत्रता के बाद भारत में बहु-उद्देशीय योजनाओं को आरम्भ करने का प्रमुख उद्देश्य क्या था?


उत्तर- इससे कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास होगा, औद्योगीकरण में तेजी आएगी तथा शहरी अर्थव्यवस्था का विकास होगा।


प्रश्न 8. व्याख्या कीजिए कि जल किस प्रकार नवीकरण योग्य संसाधन है?


 उत्तर- जल एक नवीकरण योग्य संसाधन है क्योंकि जल एक बार प्रयोग करने पर समाप्त नहीं होता। हम इसका बार-बार प्रयोग कर सकते हैं अर्थात इसकी पुन: पूर्ति संभव है; जैसे-जल का प्रयोग यदि उद्योगों में या घरेल कामकाज में किया जाता है तो इससे जल दूषित हो जाता है किंतु समाप्त नहीं होता। इस जल को साफ करके फिर से इस्तेमाल करने योग्य बनाया जा सकता है।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. दुर्लभता क्या है और इसके मुख्य कारण क्या हैं? 


या जल दुर्लभता क्या है? इसके तीन मुख्य कारण बताइए ।


उत्तर- जल के विशाल भंडार तथा नवीकरणीय गुणों के होते हुए भी यदि जल की कमी महसूस की जाए तो उसे जल दुर्लभता कहते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में जल की कमी या दुर्लभता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हो सकते हैं


1. बढ़ती जनसंख्या - जल अधिक जनसंख्या के घरेलू उपयोग में ही नहीं बल्कि अधिक अनाज उगाने के लिए भी चाहिए। अतः अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए जल संसाधनों का अतिशोषण करके सिंचित क्षेत्र को बढ़ा दिया जाता है।


2. जल का असमान वितरण - भारत में बहुत-से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ सूख पड़ता है। वर्षा बहुत कम होती है। ऐसे क्षेत्रों में भी जल दुर्लभता या जल की कमी देखी जा सकती है।


3. निजी कुएँ या नलकूप - बहुत-से किसान अपने खेतों में निजी कुएँ व नलकूपों से सिंचाई करके उत्पादन बढ़ा रहे हैं किंतु इसके कारण लगातार भू-जल का स्तर नीचे गिर रहा है और लोगों के लिए जल की उपलब्धता में कमी हो सकती है।


4. औद्योगीकरण – स्वतंत्रता के बाद हुए औद्योगीकरण के कारण भारत में अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। उद्योगों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति जल विद्युत से की जाती है। इस कारण भी जल की कमी का सामना करना पड़ता है।



प्रश्न 2. बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से होने वाले लाभ और हानियों की तुलना कीजिए।



उत्तर नदियों पर बांध बनाकर एक साथ कई उद्देश्यों को पूरा किया जाता है, जैसे-बाद नियंत्रण, सिचाई, विद्युत उत्पादन तथा मत्स्य पालन। ऐसी योजनाओं को बहुउद्देशीय योजनाएँ कहा जाता है। इस परियोजना से कुछ लाभ होते हैं तो कुछ हानियाँ भी होती हैं।


लाभ-नदियों पर बाँध बनाकर केवल सिंचाई ही नहीं की जाती अपितु इनका उद्देश्य विद्युत उत्पादन, घरेलू और औद्योगिक उत्पादन, जल आपूर्ति, बाढ़ नियंत्रण, मनोरंजन, आंतरिक नौचालन और मछली पालन भी है। इसलिए बाँधों को बहुउद्देशीय परियोजनाएँ भी कहा जाता है। यहाँ एकत्रित जल के अनेक उपयोग समन्वित होते हैं।


हानियाँ- नदियों पर बाँध बनाने और उनका बहाव नियंत्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो जाता है जिसके कारण तलछट बहाव कम हो जाता है। अत्यधिक तलछट जलाशय की तलों पर जमा होता रहता है जिससे नदी का तल अधिक चट्टानी हो जाता है। नदी जलीय जीव आवासों में भोजन की कमी हो जाती है। बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँट देते हैं जिससे जलीय जीवों का नदियों में स्थानांतरण अवरुद्ध हो जाता है। बाढ़ के मैदान में बने जलाशयों से वहाँ मौजूद वनस्पति और मिट्टियाँ जल में डूब जाती हैं। इन परियोजनाओं के कारण स्थानीय लोगों को अपनी जमीन, आजीविका और संसाधनों से लगाव व नियंत्रण आदि को कुर्बान करना पड़ता है।


प्रश्न 3.औद्योगीकरण और शहरीकरण किस प्रकार जल दुर्लभता के लिए उत्तरदायी रहे हैं?


उत्तर


स्वतंत्रता के बाद भारत में तेजी से औद्योगीकरण और शहरीकरण हुआ। उद्योगों की बढ़ती हुई संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। उद्योगों को अत्यधिक जल के अलावा उनको चलाने के लिए ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है। इसकी काफी हद तक पूर्ति जल विद्युत से होती है। शहरों की बढ़ती संख्या और जनसंख्या तथा शहरी जीवन-शैली के कारण न केवल जल और ऊर्जा की आवश्यकता में बढ़ोतरी हुई है अपितु इनसे संबंधित समस्याएँ और भी गहरी हुई हैं। यदि शहरी आवास समितियों को देखें तो पाएँगे कि उनके अंदर जल आपूर्ति के लिए नलकूप स्थापित किए गए हैं। इस प्रकार शहरों में जल संसाधनों का अतिशोषण हो रहा है और जल दुर्लभता उत्पन्न हो रही है।




प्रश्न4. 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' से आप क्या समझते हैं?


उत्तर


कुछ सामाजिक संगठन बहुउद्देशीय नदी परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं। इसमें एक आंदोलन 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' है। यह आंदोलन एक गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाया जा रहा है जो जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं को गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में लामबंद करता है। मूल रूप से शुरू में यह आंदोलन जंगलों के बाँध के पानी में डूबने जैसे मुद्दों पर केन्द्रित था। हाल ही में इस आंदोलन का लक्ष्य बाँध से विस्थापित गरीब लोगों को सरकार से संपूर्ण पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया है।


प्रश्न 5. प्राचीन काल के जल संग्रहण के साक्ष्यों पर प्रकाश डालिए।


उत्तर- पुरातत्त्व व ऐतिहासिक अभिलेख/दस्तावेज बताते हैं कि हमने प्राचीन काल से ही सिंचाई के लिए पत्थरों और मलबे से बाँध, जलाशय या झीलों के तटबंध और नहरों जैसी सर्वश्रेष्ठ जलीय कृतियाँ बनाई हैं, जो निम्नलिखित हैं—


(i) ईसा से एक शताब्दी पहले इलाहाबाद के नजदीक श्रिंगवेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था।


(ii) चंद्रगुप्त मौर्य के समय में बृहत् स्तर पर बाँध, झील व सिंचाई तंत्रों का निर्माण करवाया गया।


 (iii) कलिंग (ओडिशा), नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश), बेन्नूर (कर्नाटक) तथा कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में उत्कृष्ट सिंचाई तंत्र बनाए गए। 


(iv) 11वीं शताब्दी में सबसे बड़ी कृत्रिम झील भोपाल झील बनाई गई।


 (v) 14वीं सदी में इल्तुतमिश ने दिल्ली में सिरी फोर्ट झील में जल की सप्लाई के लिए हौज खास (एक विशिष्ट तालाब) बनवाया।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. बहुउद्देशीय परियोजना से होने वाले प्रमुख लाभों का वर्णन कीजिए। 



उत्तर स्वतंत्रता से पहले जो सिंचाई योजनाएं बनाई जाती थीं, वे केवल एक ही कार्य करती थी अर्थात् सिंचाई की व्यवस्था करना तथा खेतों तक पानी पहुंचाना। इसलिए इन योजनाओं का लाभ काफी सीमित था। किंतु स्वतंत्रता के पश्चात् बनाई गई विभिन्न परियोजनाओं के बहुमुखी उद्देश्य होते हैं इसलिए इनसे अनेक लाभ भी होते हैं जो निम्नलिखित हैं


(i) इन परियोजनाओं से जल संग्रहण तथा भंडारण में सहायता मिलती है जिसे हम सिंचाई आदि कार्य के लिए प्रयोग कर सकते हैं: जैसे- राजस्थान नहर में सतलुज नदी का पानी सिंचाई के लिए, उपयोग में लाया जाता है।


(ii) बहुमुखी परियोजनाओं से बाढ़ रोकने में सहायता मिलती है; जैसे- दामोदर नदी को पहले 'बंगाल का शोक' कहा जाता था. क्योंकि इस नदी की बाढ़े पश्चिम बंगाल के लोगों के दुःख का कारण बनती थी, किंतु दामोदर परियोजना के निर्माण के बाद बाढ़ पर नियंत्रण पा लिया गया है।


(iii) ये परियोजनाएँ जल विद्युत के विकास में भी अनेक प्रकार से सहायक होती हैं। वर्षा के दिनों में यह बड़ी मात्रा में पानी एकत्र कर लेती है। जिससे पूरे वर्ष जल विद्युत प्राप्त होती रहती है। जल को बार-बार ऊँचाई से नीचे गिराकर जल विद्युत पैदा की जाती है। जल से प्राप्त की जाने वाली विद्युत प्रदूषणरहित होती है।


(iv) इन परियोजनाओं से वनरोपण में भी जल का उपयोग किया जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में नहरों द्वारा नौका परिवहन में सहायता मिलती है।


(v) बहुउद्देशीय परियोजनाएँ एक ही समय में अनेक प्रयोजनों की सिद्धि करती हैं। ये जल विद्युत के अतिरिक्त सिंचाई के लिए उपयुक्त सुविधाएँ, नौका परिवहन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ और मत्स्य पालन के लिए उत्तम क्षेत्र प्रदान करती है।


प्रश्न 2. वर्षाजल संग्रहण से क्या अभिप्राय है? वर्षाजल संग्रहण के मुख्य तरीके कौन-से हैं? इसके लाभों का वर्णन कीजिए।


उत्तर वर्षाजल संग्रहण का अर्थ यह है कि वर्षा के जल का उसी स्थान पर प्रयोग करना जहाँ यह भूमि पर गिरती है। वर्षाजल संग्रहण के प्रमुख तरीके निम्नलिखित है


(i) पहला तरीका यह है कि पानी को भवनों की छतों से ही इकट्ठा कर लेना चाहिए।


(ii) दूसरा तरीका है कि आस-पास पड़ने वाली वर्षा का बहने वाला पानी तालाबों आदि में इकट्ठा कर लेना चाहिए ताकि बाद में उसका उपयोग किया जा सके।


(iii) जल संग्रहण का तीसरा तरीका यह है कि वर्षा के मौसम में जब नदियों में बाढ़ आई हुई हो तो इस पानी को अतिरिक्त भूमि में खड्ड बनाकर भर लेना चाहिए।



इस प्रकार से किए वर्षाजल संग्रहण का अनेक प्रकार से लाभ उठाया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं


(i) इसे साफ करके स्थानीय लोगों की पानी की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है।


(ii) इस पानी का वर्षा के कम होने या न होने के समय खेतों की सिंचाई के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।


(iii) इस खड़े पानी का यह भी लाभ होता है कि धरातल के नीचे पानी का स्तर ऊँचा रहता है जिसे कुओं और नलकूपों द्वारा बाहर निकालकर प्रयोग में लाया जा सकता है।


 (iv) 'वर्षाजल संग्रहण से अधिक वर्षा के समय बाढ़ की स्थिति से भी बचा जा सकता है।


(v) वर्षाजल संग्रहण के परिणामस्वरूप शहरों में गंदे जल की निकास व्यवस्था पर भी इतना बोझ नहीं पड़ता।


प्रश्न 3. राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल संग्रहण किस प्रकार किया जाता है? व्याख्या कीजिए।



उत्तर- राजस्थान के अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में विशेषकर बीकानेर, फलोदी और बाड़मेर में पीने का जल एकत्र करने के लिए छत वर्षाजल संग्रहण का तरीका आमतौर पर अपनाया जाता है। इस तकनीक में हर घर में पीने का पानी संगृहीत करने के लिए भूमिगत टैंक अथवा 'टाँका' हुआ करते हैं। इनका आकार एक बड़े कमरे जितना हो सकता है। इसे मुख्य घर या आँगन में बनाया जाता है। ये घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े होते हैं। छत से वर्षा का पानी इन पाइपों से होकर भूमिगत टाँका तक पहुँचता था जहाँ इसे एकत्रित किया जाता था। वर्षा का पहला जल छत और पाइपों को साफ करने में प्रयोग होता था और उसे संगृहीत नहीं किया जाता था। इसके बाद होने वाली वर्षा का जल संग्रह किया जाता


ढाँका में वर्षा जल अगली वर्षा ऋतु तक संगृहीत किया जा सकता है। यह इसे जल की कमी वाली ग्रीष्म ऋतु तक पीने का जल उपलब्ध करवाने वाला स्रोत बनाता है। वर्षा जल को प्राकृतिक जल का शुद्धतम रूप माना जाता है। कुछ घरों में तो टाँकों के साथ-साथ भूमिगत कमरे भी बनाए जाते हैं क्योंकि जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठंडा रखता था जिससे ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।


आज राजस्थान में छत वर्षाजल संग्रहण की रीति इंदिरा गांधी नहर से उपलब्ध बारहमासी पेयजल के कारण कम होती जा रही है। हालाँकि कुछ घरों में टाँकों की सुविधा अभी भी है क्योंकि उन्हें नल के पानी का स्वाद पसन्द नहीं है।


प्रश्न 4. परंपरागत वर्षाजल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपनाकर जल संरक्षण एवं भंडारण किस प्रकार किया जा रहा है?



उत्तर प्राचीन भारत में उत्कृष्ट जलीय निर्माणों के साथ-साथ जल संग्रहण ढाँचे भी पाए जाते थे। लोगों को वर्षा पद्धति और मृदा के गुणों के बारे में गहरा ज्ञान था। उन्होंने स्थानीय पारिस्थितिकीय परिस्थितियों और अपनी जल आवश्यकतानुसार वर्षाजल, भौमजल, नदी जल और बाढ़ जल संग्रहण के अनेक तरीके विकसित कर लिए थे। आधुनिक काल में भी भारत के कई राज्यों में इन परंपरागत विधियों को अपनाकर जल संरक्षण किया जा रहा है; जैसे- राजस्थान के बहुत-से घरों में छत वर्षा जल संग्रहण के लिए भूमिगत 'ढाँचों का निर्माण किया जाता है। इसमें वर्षा के जल को संगृहीत करके उपयोग में लाया जाता है। इसी प्रकार कर्नाटक के मैसूर जिले में स्थित एक गाँव में ग्रामीणों ने अपने घरों में जल आवश्यकता की पूर्ति छत वर्षाजल संग्रहण व्यवस्था से की हुई है। मेघालय में नदियों व झरनों के जल को बाँस द्वारा बने पाइप द्वारा एकत्रित करने की 200 वर्ष पुरानी विधि प्रचलित है। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खेतों में वर्षा जल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाए जाते थे ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके। राजस्थान के जैसलमेर जिले में 'खदीन' और अन्य क्षेत्रों में 'जोहड़' इसके उदाहरण हैं। पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने 'गुल' अथवा 'कुल' जैसी वाहिकाएँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए बनाई हैं। पश्चिम बंगाल में बाढ़ के मैदान में लोग अपने खेतों की सिंचाई के लिए बाढ़ जल वाहिकाएँ बनाते थे। यही तरीका आधुनिक समय में भी अपनाया जाता है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक काल में भी परंपरागत वर्षाजल संग्रहण की पद्धतियों को अपनाकर जल संरक्षण एवं भंडारण किया जा रहा है।



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