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यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 7 कृषि का सम्पूर्ण हल/up board class 10 social science chapter 7 krashi notes

 यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 7 कृषि का सम्पूर्ण हल


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7            कृषि


याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.कृषि हमारे देश की प्राचीन आर्थिक क्रिया है। इसकी दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है।


2.कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है। साथ ही, विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी पैदा करती है।


3● भारत विश्व में सबसे अधिक फलों और सब्जियों का उत्पादन करता है।


4. रोपण कृषि एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है। इस प्रकार की खेती में लंबे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। रोपण कृषि उद्योग और कृषि के बीच एक अंतरापृष्ठ हैं। भारत में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण फसलें हैं।


5● भारत में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें-चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दालें, चाय, कॉफी, गन्ना, तिलहन, कपास और जूट इत्यादि हैं।



6● रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य में बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों कुछ मुख्य रबी फसलें हैं।


7 ● भारत में अधिकांश लोगों का खाद्यान्न चावल है। भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है।


8● ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। भारत विश्व में दालों और तिलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है। देश में कुल बोए गए क्षेत्र के 12 प्रतिशत भाग पर कई तिलहन की फसलें उगाई जाती हैं। ब्राजील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। गन्ना, चीनी, गुड़, खांडसारी और शीरा बनाने के काम आता है।


9.मूँगफली खरीफ की फसल है तथा देश में मुख्य तिलहनों के कुछ उत्पादन का आधा भाग इसी फसल से प्राप्त होता है। आंध्र प्रदेश मूँगफली का सबसे बड़ा

उत्पादक राज्य है।


10● चाय की खेती रोपन कृषि का एक उदाहरण है। इस महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ की फसल को शुरूआत में अंग्रेज भारत लाए थे। असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि चाय के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।


11. भारत में अरेबिका किस्म की कॉफी पैदा की जाती है। जो आरंभ में यमन से लाई गई थी।




महत्त्वपूर्ण शब्दावली




निर्वाह कृषि- ऐसी कृषि प्रणाली जिसमें किसान अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए उत्पादन करता है। इसमें भूमि के छोटे टुकड़े पर आदिम कृषि औजारों तथा परिवार के श्रम की मदद से की जाती है।


गहन कृषि यह श्रम-गहन खेती है जहाँ अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में जैव-रासायनिक निवेशों और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।


रोपण कृषि–यह एक प्रकार की वाणिज्यिक कृषि हैं जिसमें लंबे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। यह कृषि और उद्योगों के बीच एक अंतरापृष्ठ है। यह कृषि एक व्यापक क्षेत्र में अत्यधिक पूँजी और श्रमिकों की सहायता से की जाती है। भारत में चाय, कॉफी, रबड़ तथा गन्ना इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण फसलें हैं।


विस्तृत कृषि–वह कृषि जिसमें किसान भूमि के नए-नए क्षेत्रों को कृषि के अधीन लाकर अधिक उत्पादन करता है।


हरित क्रांति कृषि के क्षेत्र में अधिक उपज वाले बीजों का प्रयोग, आधुनिक तकनीक, अच्छी खाद, उर्वरकों का प्रयोग करने से कुछ फसलों विशेषकर गेहूँ के उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि को हरित क्रांति का नाम दिया गया है।


श्वेत क्रांति दूध के उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि के लिए पशुओं की नस्लें सुधारने की कोशिश की गई। इससे दूध के उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि हुई जिसे

श्वेत क्रांति कहते हैं।


सार्वजनिक वितरण प्रणाली सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक कार्यक्रम है जो ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में खाद्य पदार्थ और अन्य आवश्यक वस्तुएँ सस्ती दरों पर उपलब्ध कराती है।


वैश्वीकरण एक देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था से जोड़ना वैश्वीकरण कहलाता है।


रेशम उत्पादन रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन रेशम उत्पादन कहलाता है।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.निम्नलिखित में से कौन-सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल लंबे-चौड़े क्षेत्र में उगायी जाती है?



(क) स्थानांतरी कृषि


(ख) रोपण कृषि


(ग) बागवानी


(घ) गहन कृषि


उत्तर- (ख) रोपण कृषि


प्रश्न 2.इनमें से कौन-सी रबी फसल है?



(क) चावल


(ख) मोटे अनाज


(ग) चना (काला चना)


(घ) कपास


उत्तर-


(ग) चना (काला चना)


प्रश्न 3. इनमें से कौन-सी एक फलीदार फसल है?



(क) दालें


(ख) मोटे अनाज


 (घ) तिल


(ग) ज्वार तिल


उत्तर


(क) दालें


(ग) दीपा


(ख) रोका


(क) जूट


(घ) रबर


प्रश्न 4. सरकार निम्नलिखित में से कौन-सी घोषणा फसलों को सहायता देने के लिए करती है?




(क) अधिकतम सहायता मूल्य


 (ख) न्यूनतम सहायता मूल्य


(ग) मध्यम सहायता मूल्य


(घ) प्रभावी सहायता मूल्य


उत्तर-


(ख) न्यूनतम सहायता मूल्य


प्रश्न 5.निम्न में से कौन खरीफ की फसल है?


(क) चना


(ख) धान


(ग) कपास


(घ) ख तथा ग दोनों


उत्तर- (घ) ख तथा ग दोनों


प्रश्न 6.निम्नलिखित में से कौन-सी रबी की फसल है?


(क) धान


(ख) बाजरा


(ग) गेहूँ


(घ) मक्का


उत्तर- (ग) गेहूँ


प्रश्न  7.भूदान-आन्दोलन किसके द्वारा आरम्भ किया गया?


(क) महात्मा गांधी 


(ग) विनोबा भावे


(ख) जवाहरलाल नेहरू


(घ) इन्दिरा गांधी


उत्तर


(ग) विनोबा भावे



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. भारत की महत्त्वपूर्ण रोपण फसलें कौन-कौन सी हैं?


उत्तर


भारत में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण फसलें हैं।


प्रश्न 2. भारत की चार रबी और चार खरीफ फसलों के नाम बताइए।


उत्तर


भारत की चार प्रमुख रबी फसलें गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों हैं तथा खरीफ फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली आदि प्रमुख हैं।



प्रश्न 3. कर्तन दहन कृषि या स्थानांतरित कृषि किस प्रकार की जाती है?


उत्तर किसान जमीन के पेड़-पौधों को साफ करके फसल उगाते हैं। जब मृदा की उर्वरता कम हो जाती है तो किसान उस भूमि के टुकड़े से स्थानांतरित हो जाते हैं और कृषि के लिए भूमि का दूसरा टुकड़ा साफ करते हैं।


प्रश्न 4. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानांतरित या कर्तन दहन कृषि को किन नामों से पुकारा जाता है ?


उत्तर- भारत में स्थानांतरित कृषि को मध्य प्रदेश में बेबर या दहिया, आंध्र प्रदेश में 'पोडू' अथवा 'पेंडा' उड़ीसा (ओडिशा) में पामाडाबी, कोमान या बरीगाँ, पश्चिम घाट में कुमारी, दक्षिण पूर्वी राजस्थान में वालरे-या वाल्टरे हिमालयन क्षेत्र में खिल झारखंड में कुरुवा उत्तर पूर्वी प्रदेशों में झूम और अंडमान निकोबार में दीपा के नाम से जाना जाता है।


प्रश्न 5. रोपण कृषि की दो विशेषताएँ बताइए।


उत्तर-


रोपण कृषि की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—


(i) रोपण कृषि व्यापक क्षेत्र में की जाती है। 


(ii) इस कृषि में अधिक पूँजी और श्रमिकों की आवश्यकता होती है।





प्रश्न 6. जीविका निर्वाह कृषि की दो विशेषताएँ बताइए।


उत्तर जीविका निर्वाह कृषि की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


 (i) निर्वाह कृषि भूमि के छोटे टुकड़ों में पौराणिक ढंग से की जाती है।


(ii) इस प्रकार की कृषि प्रायः मानसून मृदा को प्राकृतिक उर्वरता और फसल उगाने के लिए पर्यावरणीय परिस्थितियों की निर्भर करती है। 


प्रश्न 7.गहन कृषि की दो विशेषताएँ बताइए।


उत्तर


गहन कृषि की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


 (i) उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में रासायनिक खाद और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।



(ii) भूमि का आकार छोटा होने के कारण भूमि पर कई-कई फसलें उगाई गई



प्रश्न 8. चाय की भौगोलिक दशाओं के बारे में वर्णन कीजिए।


उत्तर- चाय के लिए भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं—


(i) चाय का पौधा उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु, ह्यूमस और जीवांश युक्त गहरी मिट्टी तथा सुगम जल निकास वाले ढलवाँ क्षेत्रों में उगाया जाता है।


(ii) चाय को उगाने के लिए वर्ष भर कोष्ण, नम और पालारहित जलवा की आवश्यकता होती है।



प्रश्न 9 भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएँ और जहाँ यह पैदा की जाती है उन क्षेत्रों का विवरण दीजिए।



उत्तर- गेहूँ भारत की एक प्रमुख खाद्य फसल है। यह देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भागों में पैदा की जाती है। देश में गेहूँ उगाने वाले दो मुख्य क्षेत्र हैं- उत्तर पश्चिम में गंगा-सतलुज का मैदान और दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ भाग गेहूँ पैदा करने वाले प्रमुख राज्य हैं।


लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक




प्रश्न 1. भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का क्या महत्त्व है? 


उत्तर कृषि की दृष्टि से भारत एक महत्त्वपूर्ण देश है। इसकी दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है। कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है। खाद्यान्नों के अतिरिक्त यह विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त कुछ उत्पादों; जैसे—चाय, कॉफी, मसाले इत्यादि का भी निर्यात किया जाता है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। सकल घरेलू उत्पादन में 26% योगदान कृषि का है। कृषि हमारे देश की प्राचीन आर्थिक क्रिया है। पिछले हजारों वर्षों में भौतिक पर्यावरण, प्रौद्योगिकी और सामाजिक, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुसार खेती करने की विधियों में परिवर्तन हुआ है।


प्रश्न 2. भारतीय कृषि की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।




कृषि की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


1. प्रकृति पर निर्भरता - भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है।यही कारण है कि वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था को सर्वाधिक प्रभावित करती है। जिस वर्ष मानसूनी वर्षा नियमित होती है, कृषि उत्पादन भी यथेष्ट मात्रा में प्राप्त होता है। 


2. कृषि की निम्न उत्पादकता- भारत में कृषि उपजों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अपेक्षाकृत अन्य देशों से कम है। प्रति श्रमिक की दृष्टि से भारत में कृषि श्रमिक की औसत वार्षिक उत्पादकता केवल 105 डॉलर है।



 3. खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता- भारतीय कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता रहती है क्योंकि 100 करोड़ से अधिक जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए ऐसा किया जाना आवश्यक है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुल कृषि भूमि के लगभग 65.8% भाग पर खाद्यान्न तथा शेष भाग में व्यापारिक व अन्य फसलों का उत्पादन किया जाता है।



प्रश्न 3. गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त लिक दशाओं का वर्णन कीजिए। 


उत्तर

गन्ना एक उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय फसल है। यह फसल 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान और 75 सेमी से 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाली उष्ण और आर्द्र जलवायु में बोई जाती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसे अनेक मिट्टियों में उगाया जा सकता है। इसके लिए बुआई से लेकर कटाई तक काफी शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। गन्ना, चीनी, गुड़, खांडसारी और शीरा बनाने के काम आता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा गन्ना के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।


प्रश्न 4. भारत में पाई जाने वाली प्रमुख रेशेदार फसलों का वर्णन कीजिए।


 उत्तर कपास, जूट, सन और प्राकृतिक रेशम भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख रेशेदार फसलें हैं।


1, प्राकृतिक रेशम–रेशम कीड़े के कोकून से प्राप्त होता जो


मलबरी पेड़ की हरी पत्तियों पर पलता है। 2. कपास-भारत को कपास के पौधे का मूल स्थान माना जाता है। कपास सूती वस्त्र उद्योग का मुख्य कच्चा माल है। दक्कन पठार के शुष्कतर भागों में काली मिट्टी कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसके लिए उच्च तापमान, हल्की वर्षा या सिंचाई, डी 210 पालारहित दिन और खिली धूप की आवश्यकता होती है। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश कपास के मुख्य उत्पादक राज्य हैं। 3. जूट-जूट को 'सुनहरा रेशा' कहते हैं। जूट की फसल बाढ़ के मैदानों में 'जल निकास' वाली उर्वरक मिट्टी में उगाई जाती है। इसके बढ़ने के



समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। पश्चिम बंगाल, बिहार,


असम और ओडिशा तथा मेघालय जूट के मुख्य उत्पादक राज्य है।


प्रश्न 5 आत्मनिर्वाह या जीविका कृषि क्या है? इसके मुख्य प्रकारों का


विवरण दीजिए। उत्तर आत्मनिर्वाह या जीविका खेती-जो खेती व्यापारिक उद्देश्यों के



स्थान पर जीवन निर्वाह के उद्देश्यों के लिए की जाती है, आत्मनिर्वाह या नजीविका खेती कहलाती है। इस खेती में परम्परागत पद्धति और अल्पतम पूँजी न निवेश किया जाता है। अमेजन नदी की घाटी, अफ्रीका में सहारा के दक्षिण, में मध्य व पश्चिमी तथा पूर्वी अफ्रीकी देश तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के भारत, 5 चीन आदि देशों में इस प्रकार की खेती की जाती है। इस खेती के दो प्रकार


प्रचलित हैं— (क) स्थानान्तरण कृषि अथवा झूमिंग कृषि, (ख) स्थायी कृषि 



(क) स्थानान्तरण कृषि अथवा झूमिंग कृषि- इस कृषि के अन्तर्गत कृषक अपने आवास और कृषि क्षेत्र परिवर्तित करते रहते हैं। इस खेती में वनों को साफ करके दो-तीन वर्षों तक खेती करने पर खाली छोड़ दिया जाता है। स्थानान्तरण कृषि में मोटे अनाज मक्का, ज्वार, बाजरा आदि का उत्पादन किया जाता है।


(ख) स्थायी कृषि—इस कृषि में कृषि क्षेत्र बदला नहीं जाता है। इस खेती का विकास स्थानान्तरण कृषि से ही हुआ है। इसकी खेती की मुख्य विशेषताएँ भी स्थानान्तरण कृषि के समान हैं। यह कृषि प्रमुख रूप से उष्णार्द्र प्रदेशों की निम्न भूमियों में अर्द्ध-उष्ण और शीतोष्ण कटिबन्धीय पठारों पर उष्ण कटिबन्धीय पहाड़ी भागों में की जाती है। प्रश्न 


प्रश्न 6. भारत में घटते खाद्य उत्पादन के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।


उत्तर भारत में खाद्य फसलों की कृषि का स्थान फलों, सब्जियों, तिलहनों और औद्योगिक फसलों की कृषि लेती जा रही है। इससे अनाजों और दालों के अंतर्गत निवल बोया गया क्षेत्र कम होता जा रहा है। इसके कई निम्न कारण हैं-


(i) भूमि के गैर कृषि भू-उपयोगों और कृषि के बीच बढ़ती भूमि की प्रतिस्पर्धा के कारण बोए गए क्षेत्र में कमी आई है।


(ii) उर्वरकों, कीटनाशकों के अधिक प्रयोग ने भूमि की उपजाऊ क्षमता को कम किया है।


 (iii) असक्षम जल प्रबंधन से जलाक्रांतता और लवणता की समस्याएँ खड़ी हो गई हैं। 


(iv) कुएँ और नलकूप अत्यधिक सिंचाई के कारण सूख गए हैं। इससे सीमांत और छोटे किसान कृषि छोड़ने पर मजबूर हो गए।


 (v) अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ और बाजार के अभाव में भी किसान हतोत्साहित होते हैं। इससे किसानों को खरीद मूल्य कम मिलता है. परंतु उन्हें मजबूरी में अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं।


प्रश्न 7. रबड़ की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- रबड़ भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है। परंतु विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है। इसको 200 सेमी से अधिक वर्षा और 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। रबड़ एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है जो उद्योगों से प्रयुक्त होता है। इसे मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और मेघालय में गारों पहाड़ियों में उगाया जाता है।




प्रश्न 8. उपनिवेशकाल में वैश्वीकरण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?


उत्तर- उपनिवेशकाल में भी वैश्वीकरण की स्थिति मौजूद थी। 19वीं शताब्दी में जब यूरोपीय व्यापारी भारत आए तो उस समय भी भारतीय मसाले विश्व के विभिन्न देशों में निर्यात किए जाते थे और दक्षिण भारत में किसानों को इन फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। ब्रिटिश काल में अंग्रेज़ व्यापारी भारत के कपास क्षेत्र की ओर आकर्षित हुए और भारतीय कपास को • ब्रिटेन में सूती वस्त्र उद्योग के लिए कच्चे माल के रूप में निर्यात किया गया। बिहार के चम्पारण गाँव के किसानों को खाद्यान्नों के स्थान पर नील की खेती करने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि यह ब्रिटेन के सूती वस्त्र उद्योगों के लिए कच्चा माल था। इस प्रकार उपनिवेशकाल में वैश्वीकरण के कारण भारतीय किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा।


प्रश्न 9. भूदान-ग्रामदान आंदोलन के विषय में विस्तृत जानकारी दीजिए।


उत्तर- महात्मा गांधी ने विनोबा भावे, जिन्होंने उनकी सत्याग्रह आंदोलन में •महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभायी थी, को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित किया। भावे जी गांधीजी की 'ग्राम स्वराज' अवधारणा से अत्यधिक प्रभावित थे। अतः गांधी जी की हत्या के बाद उनके संदेश को लोगों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने लग पूरे देश की पदयात्रा की। जब वे आंध्र प्रदेश के गाँव पोचमपल्ली पहुँचकर वहाँ भाषण दे रहे थे, उसी समय कुछ भूमिहीन गरीब ग्रामीणों ने उनसे अपने आर्थिक भरण-पोषण के लिए कुछ भूमि माँगी। भावे जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि यदि वे सहकारी खेती करें तो वे भारत सरकार से बात करके उनके लिए ज़मीन उपलब्ध करवा सकते हैं। इसी समय श्री रामचंद्र रेड्डी नामक धनवान किसान ने अपनी 80 एकड़ भूमि 80 भूमिहीन किसानों को देने की पेशकश की। इस प्रयास को 'भूदान' के नाम से जाना गया। इसके बाद भावे जी ने कई यात्राएँ की और कुछ बड़े जमींदारों ने उनके विचारों से प्रभावित होकर अपने कई गाँव भूमिहीनों में बाँटने की पेशकश की जिसे 'ग्रामदान के नाम से जाना गया। इस कार्य में कुछ ऐसे जमींदार भी सम्मिलित थे जिन्होंने भूमि सीमा कानून से बचने के लिए अपनी भूमि का कुछ हिस्सा दान में दिया था। भावे जी के द्वारा आरंभ किए गए इस भूदान-ग्रामदान आंदोलन को भारत में रक्तहीन


क्रांति के नाम से जाना गया है।



 प्रश्न 10. सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाइए। 




उत्तर- सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रम निम्नलिखित हैं


(i) जोतों की चकबंदी।


(ii) जमींदारी प्रथा की समाप्ति। 


(iii) अधिक उपज देने वाले बीजों के द्वारा हरित क्रांति।


(iv) पशुओं की नस्ल में सुधार कर दुग्ध उत्पादन में श्वेत क्रांति ।



 (v) बाढ़, चक्रवात, आग तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रावधान।


(vi) किसानों को कम दर पर ऋण दिलाने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना की गई।


(vii) किसानों के लाभ के लिए किसान क्रेडिट कार्ड और दुर्घटना बीमा योजना शुरू की गई। व्यक्तिगत


(viii) आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विशेष किसान कार्यक्रम प्रसारित किए गए। 


(ix) किसानों को दलालों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य की घोषणा सरकार करती है।


(x) कुछ महत्त्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की घोषणा भी सरकार करती है।



प्रश्न 11. दिन-प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसके परिणामों की कल्पना कर सकते हैं?


उत्तर- भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि भूमि में कमी आई है। भूमि के आवासन इत्यादि गैर कृषि उपयोगों तथा कृषि के बीच बढ़ती भूमि की प्रतिस्पर्धा के कारण कृषि भूमि में कमी आई है। भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ घटता खाद्य उत्पादन देश की भविष्य की खाद्य सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लगाता है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण घटते आकार के जोतों पर यदि खाद्यान्नों की खेती ही होती रही तो भारतीय किसानों का भविष्य अंधकारमय है। भारत में 60 करोड़ लोग लगभग 25 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर निर्भर हैं। इस प्रकार एक व्यक्ति के हिस्से में औसतन आधा हेक्टेयर से भी कम कृषि भूमि आती है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रित करने की कोशिश करनी होगी नहीं तो खाद्य संकट उत्पन्न हो जाएगा। तथा किसानों की स्थिति दयनीय हो जाएगी।



प्रश्न 12. चावल (धान) की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।



या चावल की उपज के लिए आवश्यक तीन भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।



उत्तर- भारत में अधिकांश लोगों का खाद्यान्न चावल है। चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। चावल एक खरीफ फसल है जिसे उगाने के लिए उच्च तापमान (25° सेल्सियस से ऊपर) और अधिक आर्द्रता (100 सेमी से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे सिंचाई करके उगाया जाता है। चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है। नदी घाटियों और डेल्टा प्रदेशों में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी चावल के लिए आदर्श होती है। नहरों के जल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है। चावल जून-जुलाई में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के शुरू होने पर उगाया जाता है और पतझड़ की ऋतु में काटा जाता है।





दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. भारत में पाए जाने वाले मोटे अनाजों का वर्णन कीजिए। इन अनाजों के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियाँ बताइए।


उत्तर- ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा अत्यधिक होती है।


ज्वार – क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है। अधिकतर आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। महाराष्ट्र राज्य इस फसल का सबसे बड़ा उत्पादक है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश इसके अन्य मुख्य उत्पादक राज्य हैं।


बाजरा - यह बलुआ और उथली काली मिट्टी में उगाया जाता है। राजस्थान बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा इसके अन्य मुख्य उत्पादक राज्य हैं।



रागी – यह शुष्क प्रदेशों की फसल है। यह लाल, काली, बलुआ दोमट और उथली काली मिट्टी पर अच्छी तरह उगायी जाती है। कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, झारखंड में भी यह महत्त्वपूर्ण फसल है।



मक्का – यह खाद्यान्न व चारा दोनों रूपों में प्रयोग होती है। यह एक खरीफ की फसल है जो 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान में और पुरानी जलोद मिट्टी पर अच्छी प्रकार से उगायी जाती है। कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश मक्का के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।



प्रश्न 2. भारतीय कृषि ने खाद्य उत्पादन में घटती प्रवृत्ति क्यों प्रारंभ कर दी है?


या कृषि की तीन प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए। या भारत में कृषि क्षेत्र की समस्याएँ लिखिए।


 उत्तर भारत में हजारों वर्षों से कृषि की जा रही है, परंतु प्रौद्योगिकी और संस्थागत परिवर्तन के अभाव में लगातार भूमि संसाधन के प्रयोग से कृषि का विकास अवरुद्ध हो जाता है। भारत में कृषि के पिछड़ेपन के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं


1. भूमि की उपजाऊ शक्ति का ह्रास-भारत की कृषि भूमि पर हजारों वर्षों से खेती की जा रही है जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो गई है। अधिक रसायनों तथा उर्वरकों का प्रयोग करने से भी भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो गई है।


2. मृदा अपरदन - भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का एक अन्य बड़ा कारण मृदा अपरदन है। पेड़ों को काटने, पशुओं द्वारा अतिचराई से पानी तथा हवा के तेज बहाव के कारण मृदा अपरदन तेजी से होता है। जिससे भूमि खेती के योग्य नहीं रहती।


3. खेती के पुराने उपकरण तथा ढंग- देश के कई भागों में किसान अभी भी पुराने उपकरणों से खेती करता है जिससे कम उत्पादन होता है। अभी भी किसान मानसून और भूमि की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करता है।


4. खेतों का छोटा आकार-भारत में अभी भी किसान गरीब है। उसके खेतों का आकार छोटा है तथा उत्तराधिकार कानून के अनुसार खेतों का आकार और भी छोटा हो जाता है जिससे खेत आर्थिक रूप से अलाभकारी हो जाते हैं।


5. सिंचाई सुविधाओं का अभाव-जल की कमी के कारण सिंचाई क्षेत्र में कमी आई है। भूमिगत जल के भण्डार में कमी आती जा रही है। परिणामस्वरूप कई कुएँ और नलकूप सूख गए हैं इससे सीमांत और छोटे किसान कृषि छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं।


6. अपर्याप्त भण्डारण सुविधाएँ- अपर्याप्त भण्डारण सुविधाएँ तथा बाजार के अभाव में भी किसान हतोत्साहित होते हैं। इस प्रकार किसान दोहरा नुकसान उठाते हैं। एक तो कृषि लागतों के लिए उ अधिक दाम देने पड़ते हैं तथा दूसरी ओर खरीद मूल्य बढ़ाने के लिए अ संघर्ष करना पड़ता है। किसानों की पैदावार एक साथ मंडी में पहुँचती अ है जिसके कारण खरीद मूल्य कम मिलता है।


आज भारतीय कृषि दोराहे पर है। भारतीय कृषि को सक्षम और लाभदायक बनाना है तो सीमांत और छोटे किसानों की स्थिति सुधारने पर जोर देना होगा। भारत में जलवायु विभिन्नता का विभिन्न प्रकार की कीमती फसलें उगाकर उपयोग किया जा सकता है।


प्रश्न  कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा गए उपाय सुझाइए।


उत्तर लोगों को आजीविका प्रदान करने वाली कृषि में कुछ संस्थागत तथा प्रौद्योगिक भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश के 60 प्रतिशत से भी अधिक सुधार किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं


(i) जमींदारी प्रथा का उन्मूलन-किसानों के लिए जमींदारी प्रथा एक अभिशाप थी। इसलिए सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करके वै भूमिहीन काश्तकारों को जमीन का मालिकाना हक दे दिया तथा जोतों की अधिकतम सीमा निश्चित कर दी गई।



(ii) खेतों की चकबंदी- पहले किसानों के पास छोटे-छोटे खेत थे जो आर्थिक रूप से गैर-लाभकारी होते थे इसलिए छोटे खेतों की चकबंदी कर दी गई। 


(iii) हरित क्रांति—सरकार ने किसानों को अधिक उपज देने वाले बीज उपलब्ध करवाये जिससे कृषि विशेषकर गेहूँ की कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इसे 'हरित क्रांति' का नाम दिया गया।


 (iv) प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण किसानों को पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए कई छोटी-बड़ी सिंचाई परियोजनाएँ शुरू की गईं। 



(v) फसल बीमा-फसले प्रायः सूखा, बाढ़, आग आदि के कारण नष्ट हो जाती थीं जिससे किसानों को बहुत हानि उठानी पड़ती थी। इन आपदाओं से बचने के लिए फसल बीमा योजना शुरू की गई। इसके द्वारा फसल नष्ट हो जाने पर किसानों को पूरा मुआवजा मिलने लगा जिससे उसे सुरक्षा प्राप्त हुई।


(vi) सरकारी संस्थाएँ-किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना की गई। ये संस्थाएँ किसानों को महाजनों के चंगुल से बचाती हैं। रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा मौसम की जानकारी तथा कृषि संबंधी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।


(vii) किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने 'किसान क्रेडिट कार्ड' और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना शुरू की है।


 (viii) किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य और कुछ महत्त्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की सरकार घोषणा करती है।


(ix) खेती में आधुनिक उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया जाने लगा। इससे उत्पादन में वृद्धि हुई।


(x) भारतीय कृषि में सुधार के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिससे कृषि के उत्पादन में वृद्धि हो सके।


प्रश्न 4.भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए।


 उत्तर- वैश्वीकरण से हमारा तात्पर्य है- विश्व के अनेक देशों का आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में एक-दूसरे के निकट आ जाना। वैश्वीकरण के कारण विभिन्न चीजें एक देश से दूसरे देश में आने-जाने लगीं जिससे उच्चकोटि की चीजें ही बाजार में टिक सकी हैं। वैश्वीकरण के कृषि पर कुछ अच्छे प्रभाव पड़े, जो निम्नलिखित हैं


(i) भारत दूसरे देशों को अन्न का निर्यात कर अपनी जरूरत का अन्य सामान खरीदने लगा।


 (ii) विभिन्न फसलों की माँग बढ़ने से भारत में इन चीजों का अधिक उत्पादन होने लगा।


(iii) अंतर्राष्ट्रीय बाजार में टिकने के लिए भारतीय किसानों ने अपने उत्पादन की गुणवत्ता व उसका स्तर बढ़ाने की कोशिश की।


 (iv) वैश्वीकरण के कारण अधिक उत्पादित होने वाली चीजों को दूसरे देशों को बेचकर अच्छे दाम प्राप्त किए जा सकते हैं।


(v) कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से बहुत से देशों में नई-नई चीजों की पैदावार होने लगी जो पहले सम्भव नहीं था। 



वैश्वीकरण के कृषि पर कुछ बुरे प्रभाव भी पड़े, जो निम्नलिखित हैं


(i) विश्व के धनी देशों ने विभिन्न विकासशील देशों में अपना सस्ता अनाज और अन्य कृषि से प्राप्त वस्तुएँ बड़ी मात्रा में भरनी शुरू कर दीं जिससे विकासशील देशों के किसान उनका मुकाबला न कर सकें तथा कृषि का काम छोड़ने पर मजबूर हो गए।


(ii) विश्व के धनी देश निर्धन देशों से सस्ती दरों पर अनाज खरीदने की कोशिश करते हैं।


(iii) कृषि के वैश्वीकरण के कारण छोटे किसानों को कृषि कार्य को छोड़ना पड़ा क्योंकि वे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाए।


(iv) कृषि के वैश्वीकरण ने व्यापारिक कृषि को बढ़ावा दिया। किसानों ने वही वस्तु पैदा की जिसकी बाजार में माँग थी, न कि जनता की आवश्यकता पूरी करने वाली चीजों का उत्पादन किया।


(v) कृषि के वैश्वीकरण के कारण ही भारत को लंबे समय तक ब्रिटेन का उपनिवेश बनकर कृषि पर अतिरिक्त बोझ को वहन करना पड़ा। 1990 के बाद, वैश्वीकरण के तहत भारतीय किसानों को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चावल, कपास, रबड़, चाय, कॉफी, जूट, मसालों का मुख्य उत्पादक होने के बावजूद भारतीय कृषि विश्व के विकसित देशों से स्पर्धा करने में असमर्थ है, क्योंकि उन देशों में कृषि को अत्यधिक सब्सिडी दी जाती है। यदि भारतीय कृषि को सक्षम बनाना है तो छोटे किसानों की स्थिति सुधारनी होगी।



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