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यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 16 लोकतंत्र की चुनौतियाँ/class 10 social science notes in hindi

 यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 16 लोकतंत्र की चुनौतियाँ


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7     लोकतंत्र की चुनौतियाँ


याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु




1. लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में सभी सुझाव या प्रस्ताव 'लोकतांत्रिक सुधार' या 'राजनीतिक सुधार' कहे जाते हैं। 



2.लोकतांत्रिक सुधार तो मुख्यतः राजनीतिक दल ही करते हैं। इसलिए राजनीतिक सुधारों का जोर मुख्यतः लोकतांत्रिक कामकाज को ज्यादा मजबूत बनाने पर होना चाहिए।


3.यह मान लेना समझदारी नहीं कि संसद कोई ऐसा कानून बना देगी जो हर राजनीतिक दल और सांसद के हितों के खिलाफ हो।


4.सबसे बढ़िया कानून वे हैं जो लोगों को लोकतांत्रिक सुधार करने की ताकत देते हैं। सूचना का अधिकार कानून लोगों को जानकार बनाने और लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने का अच्छा उदाहरण है। ऐसा कानून भ्रष्टाचार पर रोक लगाने तथा कठोर दंड का प्रावधान करने वाले मौजूदा कानूनों की मदद करता है।



5. उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्वेक्षण कराया और पाया कि ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर पदस्थ अधिकतर डॉक्टर अनुपस्थित थे। वे शहरों में रहते हैं, निजी प्रैक्टिस करते हैं और महीने में सिर्फ एक या दो बार अपनी नियुक्ति वाली जगह पर घूम आते हैं। गाँव वालों को साधारण रोगों के इलाज के लिए भी शहर जाना होता है।


महत्त्वपूर्ण शब्दावली


चुनौतियाँ-लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली वे बाधाएँ जिन्हें दूर किए बिना लोकतंत्र का विकास संभव नहीं होता।


लोकतांत्रिक व्यवस्था—यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके केंद्र में लोग हों अर्थात् लोगों के द्वारा बनाई सरकार, जो लोगों के हितों के लिए काम करेगी तथा लोगों की इच्छा तक ही बनी रहेगी।


 सांप्रदायिकता–जब किसी एक धर्म के लोग अपने-आपको दूसरे धर्मों से ऊपर समझते हैं तथा अपने धर्म के लिए दूसरे धर्मों को नीचा दिखाते हैं तो यह प्रवृत्ति सांप्रदायिकता कहलाती है। 


जातिवाद-जब समाज का मुख्य आधार जाति हो तथा एक जाति के लोग अपनी जाति को श्रेष्ठ तथा अन्य जातियों को हीन समझें तो यह स्थिति जातिवाद

कहलाती है।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.चुनौतियों से लोकतांत्रिक व्यवस्था


(ख) मजबूत होती है


(घ) व्यवस्थित होती है


(क) कमजोर होती है.


(ग) मजबूर होती है


उत्तर


(ख) मजबूत होती है


प्रश्न 2.राजनीति एक …...का क्षेत्र है।


(क) संभावनाओं 


(ख) विकल्पों


(ग) प्रयासों


(घ) ये सभी


उत्तर-


(क) संभावनाओं


प्रश्न 3. लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के विषयक सभी प्रस्ताव कहलाते हैं।


(क) लोकतांत्रिक सुधार


(ख) राजनीतिक सुधार


 (ग) (क) और (ख) दोनों 


(घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर-


(ग) (क) और (ख) दोनों




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1.धर्मनिरपेक्षता से क्या तात्पर्य है?



उत्तर राज्य का अपना कोई धर्म न हो तथा राज्य में रहने वाले व्यक्ति स्वेच्छा से कोई भी धर्म अपना सकें तथा राज्य धर्म के आधार पर नागरिकों में भेदभाव न करे तो यह स्थिति धर्म-निरपेक्षता कहलाती है।


प्रश्न 2.लोकतांत्रिक व्यवस्था क्या है?


उत्तर यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके केंद्र में लोग हों अर्थात् लोगों के द्वारा बनाई सरकार, जो लोगों के हितों के लिए काम करेगी तथा लोगों की इच्छा तक ही बनी रहेगी।


प्रश्न 3. एक अच्छे लोकतंत्र को किस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है?


उत्तर- जनता शासक को चुने और शासक जनता की भावनाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप काम करे।


प्रश्न 4. उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्वेक्षण के उपरांत क्या पाया?


उत्तर


उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्वेक्षण कराया और पाया कि ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पदस्थ अधिकतर डॉक्टर अनुपस्थित थे। वे शहरों में रहते हैं, निजी प्रैक्टिस करते हैं और महीने में सिर्फ एक या दो बार अपनी नियुक्ति वाली जगह पर घूम आते हैं। गाँव वालों को साधारण रोगों के इलाज के लिए भी शहर जाना होता है।



प्रश्न 5 चुनौतियों का अर्थ बताइए।


उत्तर


चुनौतियों का अर्थ है— लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली वे बाधाएँ जिन्हें दूर किए बिना लोकतंत्र का विकास संभव नहीं होता।


प्रश्न 6.लोकतंत्र के लिए किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख करें।


उत्तर- (i) बुनियादी आधार बनाने की चुनौती


(ii) विस्तार की चुनौती |


प्रश्न 7. लोकतांत्रिक सुधार अथवा राजनीतिक सुधार क्या हैं? आमतौर पर, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के बारे में सभी सुझाव


उत्तर


प्रस्ताव 'लोकतांत्रिक सुधार' या 'राजनीतिक सुधार' कहे जाते हैं।


प्रश्न 8. सूचना का अधिकार कानून क्या है?


 उत्तर- सूचना का अधिकार-कानून लोगों को जानकार बनाने और लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने का एक अच्छा उदाहरण है।


लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1."विधिक-संवैधानिक बदलावों को लाने मात्र से ही लोकतंत्र की चुनौतियों का हल नहीं किया जा सकता।" उदाहरण सहित इस कथन की न्यायसंगत पुष्टि कीजिए।



उत्तर- कानून बनाकर राजनीति को सुधारने की बात सोचना बहुत लुभावना न लग सकता है। नए कानून सारी अवांछित चीजें खत्म कर देंगे, यह सोच लेना भले ही सुखद हो लेकिन इस लालच पर लगाम लगाना ही बेहतर है। निश्चित रूप से सुधारों के मामले में कानून की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सावधानी से 1 बनाए गए कानून गलत राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित और अच्छे र कामकाज को प्रोत्साहित करेंगे। पर विधिक संवैधानिक बदलावों को ला देने भर से लोकतंत्र की चुनौतियों को हल नहीं किया जा सकता। उदाहरणस्वरूप क्रिकेट एल.बी.डब्ल्यू. के नियम में बदलाव से बल्लेबाजों द्वारा अपनाए वाले बल्लेबाजी के नकारात्मक दाँव-पेंच को कम किया जा सकता है पर यह जाने कोई भी नहीं सोच सकता कि सिर्फ नियमों में बदलाव कर देने भर से क्रिकेट में खेल सुधर जाएगा उचित नहीं है।


प्रश्न 2.संसार के कुछ देश 'लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती' का किस प्रकार सामना कर रहे हैं? 


उत्तर संसार के कुछ देश लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का सामना कर रहे हैं। कई देशों में एकात्मक शासन व्यवस्था कायम है, ऐसी स्थिति में शासन का केंद्र एक स्थान पर होता है, जबकि लोकतंत्र का विस्तार तभी हो सकता है जब स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ हैं।


प्रश्न 3.विश्व में कुछ देश किस प्रकार लोकतंत्र को बुनियादी आधार बनाने की चुनौती का सामना कर रहे हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।



उत्तर- दुनिया के एक-चौथाई हिस्से में अभी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है। इन इलाकों में लोकतंत्र के लिए बहुत ही मुश्किल चुनौतियाँ हैं। इन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ जाने और लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए जरूरी बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इसमें मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करने और एक संप्रभु तथा कारगर शासन-व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।


प्रश्न 4.भारत में लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का वर्णन कीजिए।



उत्तर- अधिकांश लोकतंत्रीय व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना शामिल है। भारत में भी लोकतंत्र के विस्तार की ज़रूरत है। इसके लिए स्थानीय संस्थाओं को अधिक अधिकार-संपन्न बनाना होगा। संघात्मक शासन के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना होगा, राज्यों की स्वायत्तता को बढ़ाना होगा, केंद्र का राज्यों पर नियंत्रण कम करना होगा। महिलाओं, अल्पसंख्यकों तथा अन्य समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। लोगों को जागरूक बनाना होगा, तभी लोकतंत्र का विस्तार हो सकेगा।


प्रश्न 5 लोकतंत्र के लिए ज़रूरी पहलुओं का वर्णन कीजिए।


उत्तर- लोकतंत्र के लिए कुछ ज़रूरी पहलू निम्नलिखित हैं


(i) लोकतांत्रिक अधिकार लोकतंत्र का प्रमुख पहलू है। यह अधिकार सिर्फ़ वोट देने, चुनाव लड़ने और राजनीतिक संगठन बनाने भर के लिए नहीं है। इसमें सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को शामिल करते हैं, जिन्हें लोकतांत्रिक शासन को अपने नागरिकों को देना ही चाहिए।


(ii) सत्ता में हिस्सेदारी को लोकतंत्र की भावना के अनुकूल माना गया है। इस प्रकार सरकारों और सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है।


(iii) लोकतंत्र बहुमत की तानाशाही या क्रूर शासन व्यवस्था नहीं हो सकता और अल्पसंख्यक आवाजों का आदर करना लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है।


(iv) समाज में विद्यमान हर प्रकार के भेदभाव को मिटाना लोकतांत्रिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण काम है। 


(v) लोकतांत्रिक व्यवस्था में हमें कुछ न्यूनतम नतीजों की उम्मीद तो करनी ही चाहिए।



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. लोकतंत्र के सम्मुख प्रमुख चुनौतियों का वर्णन कीजिए। 



 उत्तर अलग-अलग देशों के सामने अलग-अलग तरह की चुनौतियाँ होती हैं। तीन प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं


(i) दुनिया के जिन देशों में अभी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है इन इलाकों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ जाने और लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए ज़रूरी बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इसमें मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करने और एक संप्रभु तथा कारगर शासन-व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।


(ii) अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना शामिल है। स्थानीय अधिकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ हैं। इसका यह भी मतलब है कि कम-से-कम चीजें ही लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रहनी चाहिए। भारत और दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों में से एक अमेरिका जैसे देशों के सामने भी यह चुनौती है।


(iii) तीसरी चुनौती लोकतंत्र को मज़बूत करने की है। हर लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने किसी-न-किसी रूप में यह चुनौती रहती ही है। इसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं और व्यवहारों को मज़बूत बनाना शामिल है। यह काम इस तरह से होना चाहिए कि लोग लोकतंत्र से जुड़ी अपनी उम्मीदों को पूरा कर सकें। लेकिन अलग-अलग समाजों में आम आदमी की लोकतंत्र में अलग-अलग तरह की अपेक्षाएँ होती हैं। इसलिए यह चुनौती दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग अर्थ और अलग स्वरूप ले लेती है। संक्षेप में कहें तो इसका मतलब संस्थाओं की कार्य-पद्धति को सुधारना और मज़बूत करना होता है, ताकि लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में वृद्धि हो। इसके लिए फैसला लेने की प्रक्रिया पर अमीर और प्रभावशाली लोगों के नियंत्रण और प्रभाव को कम करने की ज़रूरत होती है।


प्रश्न 2.एक अच्छे लोकतंत्र की परिभाषा दीजिए। इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।


उत्तर- लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें लोग अपने शासकों का स्वयं चुनाव करते हैं। ये शासक संविधान के बुनियादी नियमों और नागरिकों के अधिकारों को मानते हुए कानून बनाते हैं। चुनाव में लोगों को शासकों को बदलने और अपनी पसंद जाहिर करने का पर्याप्त अवसर और विकल्प मिलता है। ये अवसर सबको समान रूप से मिलते हैं।


लोकतांत्रिक शासन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 


(i) लोकतांत्रिक शासन में अंतिम सत्ता जनता के हाथों में होती है। जनता अपने शासकों का चुनाव करती है और जब चाहे तब उन्हें उनके पद से हटा सकती है।



(ii) लोकतांत्रिक शासन में सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है, इसलिए वह संविधान के नियमों तथा जनता के हितों को ध्यान में रखकर कानून बनाती है। '


(iii) लोकतांत्रिक देशों में लोगों को वोट डालने, चुनाव लड़ने और राजनीतिक संगठन बनाने के अतिरिक्त विभिन्न सामाजिक और आर्थिक अधिकार भी प्राप्त होते हैं।


(iv) लोकतांत्रिक शासन समाज में विद्यमान मतभेदों का शांतिपूर्ण तरीके से निपटारा कर सकता है। लोकतंत्र विभिन्न सामाजिक टकरावों को कम करने की कोशिश करता है।


(v) लोकतंत्र में नागरिकों को सरकार गलत नीतियों की आलोचना करने का पूरा अधिकार होता है।


(vi) लोकतंत्र देश के बहुसंख्यक समुदाय के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय के हितों की भी रक्षा करता है।


(vii) एक अच्छा लोकतांत्रिक शासन वह होगा जिसमें अधिक-से-अधिक जनता अधिक-से-अधिक भागीदारी दिखाए। सरकारी मसलों पर जनता अपनी राय दे, यदि जनता राजनीतिक रूप से शिक्षित होगी तो वह लोकतंत्र में भागीदारी कर सकेगी, जो एक अच्छे लोकतंत्र की प्रमुख विशेषता है।


(viii) अच्छे लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराए जाने चाहिए, जिससे सही प्रतिनिधि चुनकर सरकार में आ सकें।


(ix) लोकतांत्रिक देश में जनता को राजनीतिक समानता प्राप्त होती है। कोई भी व्यक्ति सरकार में जा सकता है और राजनीतिक दल का निर्माण कर सकता है।


(x)एक लोकतांत्रिक देश में सरकार विभिन्न प्रकार की असमानताओं को कम करने की कोशिश करती है।



इस प्रकार एक अच्छे लोकतंत्र की कई विशेषताएँ हैं। जहाँ ये सभी विशेषताएँ में होती हैं वहाँ लोकतंत्र को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।


प्रश्न 3. भारतीय लोकतंत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं? किन्हीं तीन का उल्लेख कीजिए।


उत्तर


भारतीय लोकतंत्र के समक्ष तीन प्रमुख चुनौतियाँ निम्न प्रकार हैं


 1. असामाजिक तत्त्वों की भूमिका- भारत में चुनावों में असामाजिक तत्त्वों की भूमिका बहुत बढ़ गयी है। चुनावों के दौरान मतदाताओं पर किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में मतदान करने के लिए दबाव डाला जाता है। चुनाव के दौरान मत खरीदे और बचे जाते हैं और मतदान केन्द्रों पर कब्जा किया जाता है।


2. जातिवाद और संप्रदायवाद- जातिवाद एवं संप्रदायवाद भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख उपस्थित एक गम्भीर समस्या है। चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन करते समय सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण को महत्त्व देते हैं। मतदाता भी मतदान करते समय जातिवाद तथा संप्रदायवाद से प्रभावित होकर मतदान करते हैं। कई राजनीतिक दलों का गठन भी संप्रदाय तथा जातिवाद के आधार पर किया गया है। जातिवाद के आधार पर लोगों में आपसी झगड़े होते रहते हैं जो लोकतन्त्र की बड़ी समस्या का कारण बनते हैं।


3. सामाजिक तथा आर्थिक असमानता- किसी भी देश में लोकतंत्र की सफलता के लिए सामाजिक एवं आर्थिक समानता का होना अनिवार्य होता है। भारत में इसका अभाव है। समाज में सभी नागरिकों को समान नहीं समझा जाता। जाति, धर्म तथा वंश आदि के आधार पर नागरिकों में भेदभाव किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से अमीर तथा गरीब की खाई बहुत बड़ी है।


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