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up ncert class 10 science chapter 6 Life Processes जैव प्रक्रम full solutions notes in hindi

 up ncert class 10 science chapter 6 Life Processes full solutions notes in hindi


यूपी बोर्ड कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 6 जैव प्रक्रम का सम्पूर्ण हल 









            अध्याय – 6
जैव प्रक्रम (Life Processes)



 महत्वपूर्ण परिभाषा



1.अनुरक्षण कार्य में भाग लेने वाले सभी प्रक्रमों को सम्मिलित रूप से जैव प्रक्रम कहते हैं।


2.भोजन ग्रहण करने से लेकर, पाचन, अवशोषण, कोशिकाओं तक परिवहन, ऊर्जा उत्पादन में इनका उपयोग, स्वांगीकरण तथा भविष्य के लिए शरीर में इन पदार्थों का संचय होने तक की सम्पूर्ण क्रियाओं को सम्मिलित रूप से पोषण कहते हैं।


3.स्वपोषी पोषण (autotrophic nutrition) में जीव अपना भोजन सरल अकार्बनिक पदार्थों व ऊर्जा का उपयोग करके स्वयं बनाते हैं।


4.हरे पौधे अपना भोजन पर्णहरिम की सहायता से सूर्य के प्रकाश में, कार्बन डाइऑक्साइड व जल द्वारा स्वयं बनाते हैं। यह प्रक्रिया प्रकाश-संश्लेषण कहलाती है।


5.विषमपोषी पोषण (hetrotrophic nutrition) अन्तर्गत वे सभी जीव आते हैं जो अपना भोजन स्वयं नहीं बनाते अर्थात् हरे पौधों को छोड़कर अन्य सभी जीव।


6. सभी जीवों में कोशिकीय स्तर पर ऑक्सीजन की उपस्थिति में जैविक ऑक्सीकरण (biological oxidation) की क्रिया को श्वसन कहते हैं।


7.हमारे शरीर में भोज्य पदार्थों, वर्ज्य पदार्थों ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड तथा लवण आदि का परिवहन रुधिर द्वारा होता है।


8.आंतरिक परिवहन हेतु मनुष्य में दो प्रकार का परिसंचरण तंत्र (circulatory system) होता है, जिन्हें रुधिर परिसंचरण तंत्र (blood vascular system) एवं लसीका परिसंचरण तंत्र (lympatic circulatory system) कहते हैं।


9.मानव में उत्सर्जी अंग के रूप में एक जोड़ी वृक्क एक मूत्र वाहिनी, एक मूत्राशय तथा एक मूत्र मार्ग होता है।




बहुविकल्पीय प्रश्न   1 अंक




प्रश्न 1. केवल जल में घुलनशील होता है।


 (a) विटामिन-A


 (b) विटामिन-D


(c) विटामिन-K 


(d) विटामिन-C


उत्तर (d) विटामिन-C जल में घुलनशील होता है।


प्रश्न 2. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक हैं


 (a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल


(b) क्लोरोफिल


(c) सूर्य का प्रकाश


(d) उपरोक्त सभी


उत्तर (d) स्वपोषी पोषण के लिए ये सभी, जैसे- पर्णहरित, सूर्य का प्रकाश, कार्बन डाइऑक्साइड व जल आवश्यक है।


प्रश्न 3. पादपों में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण होता है 


 (a) जड़ में 


(b) पत्ती में


 (d) तने में 


(d) पुष्प में



उत्तर (b) प्रायः पादपों की पत्तियों में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण होता है।




प्रश्न 4. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाली ऑक्सीजन गैस कहाँ से प्राप्त होती है? 


(a) कार्बन डाइऑक्साइड से 


(b) जल से


(c) वायु से 


(d) पर्णहरिम के विघटन से 


उत्तर (b) प्रकाश संश्लेषण क्रिया में मुक्त O₂का स्रोत जल होता है।


प्रश्न 5. हरितलवक के स्ट्रोमा में कौन-सी क्रिया होती है?


(a) प्रकाशिक अभिक्रिया 


(b) अप्रकाशिक अभिक्रिया


 (d) इनमें से कोई नहीं


(c) दोनों (a) व (b)


उत्तर (b) हरितलवक के स्ट्रोमा में प्रकाश की अनुपस्थिति में अप्रकाशिक अभिक्रिया (कैल्विन चक्र) सम्पन्न होती है।



प्रश्न 6. द्वार कोशिकाएँ पाई जाती हैं 


(a) जड़ों में 


(b) रन्ध्रों में 


(c) वात रन्ध्रों में 


(d) इन सभी में 


उत्तर (b) रन्ध्रों में दो सेम के बीज के आकार की द्वार कोशिकाएँ पाई जाती हैं।


प्रश्न 7. पादपों में वायु प्रदूषण कम करने वाली प्रक्रिया है


(a) श्वसन


(b) प्रकाश-संश्लेषण


(c) वाष्पोत्सर्जन 


(d) प्रोटीन



उत्तर (b) प्रकाश-संश्लेषण द्वारा वायुमण्डल का शुद्धिकरण (ऑक्सीजन की मुक्ति) होता है, जिससे प्रदूषण में कमी आती है।


प्रश्न 8. प्रत्येक जबड़े में अग्रचर्वणकों की संख्या होती है 


(a) एक जोड़ी


 (b) दो जोड़ी


 (c) तीन जोड़ी 


(d) चार जोड़ी



उत्तर (b) प्रत्येक जबड़े में अग्रचर्वणकों की संख्या दो जोड़ी होती हैं। 


प्रश्न 9. मनुष्य में दूध के दाँतों की संख्या कितनी होती है? 


(a) 20


 (b) 24 


(c) 28


 (d) 32



उत्तर (a) शिशुओं में दूध के दाँत 20 होते हैं, इनमें मुख्यतया अग्रचर्वणक दाँत नहीं पाए जाते हैं।


प्रश्न 10. निम्नलिखित में से मनुष्य की लार में पाया जाता है 


(a) टायलिन


(b) लाइसोजाइम


(C) पेप्सिन


(d) दोनों (a) व (b)


उत्तर (d) मनुष्य की लार में टायलिन तथा लाइसोजाइम दोनों एन्जाइम पाए जाते हैं, जिसमें टायलिन मण्ड पर क्रिया करके उसे शर्करा में बदल देता है तथा लाइसोजाइम जीवाणुओं को नष्ट करता है।


प्रश्न 11. ग्रासनली द्वार पर लटकी पत्ती के समान उपास्थि रचना कहलाती है


(a) एपीफैरिंक्स 


(b) घांटीढापन 


(c) एल्वियोलाई 


(d) श्लेष्मावरण 


उत्तर (b) ग्रासनली द्वार पर पत्ती के समान लटकी हुई उपास्थि की बनी संरचना घांटीढापन कहलाती है। ये भोजन को श्वासनली में जाने से रोकती है।


प्रश्न 12.आहारनाल की 'C' के आकार की संरचना है 


(a) आमाशय


(b) ग्रहणी


(c) ग्रसनी


(d) कृमिरूप परिशेषिका


उत्तर (b) आहारनाल की 'C' के आकार की संरचना ग्रहणी कहलाती है।। यह लगभग 25 सेमी लम्बी होती है।


प्रश्न 13.कृमिरूप परिशेषिका का भाग है।



(a) छोटी ऑत 


(b) अग्न्याशय


(c) बड़ी आँत


 (d) ग्रासनली 


उत्तर (c) बड़ी आँत में सीकम से लगभग 7-10 सेमी लम्बी कृमिरूपी परिशेषिका जुड़ी रहती है, जो सेलुलोस के पाचन में मदद करती है।



 प्रश्न 14. यकृत स्रावित करता है


(a) लार 


(b) अग्न्याशय रस


(c) जठर रस


(d) पित्तरस


 


उत्तर (d) यकृत से पित्तरस का स्त्रावण होता है।


प्रश्न 15. पित्तरस का स्त्राव होता है।



 (a) पित्ताशय में 


(b) यकृत में


(b) अग्न्याशय रस


(d) अग्न्याशय में 



प्रश्न 16. अग्न्याशयी रस किसके पाचन में सहायक होता है?



(a) प्रोटीन के


(b) प्रोटीन एवं वसा के


(C) प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट के


(d) इन सभी के


उत्तर (d) अग्न्याशयी रस प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा सभी के पाचन में सहायक होता है। इस कारण इसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता है।




प्रश्न 17. पित्त का निर्माण होता है


(a) पित्ताशय


(b) यकृत


(c) अग्न्याशय


(d) वृषण


उत्तर (b) पित्त का निर्माण यकृत द्वारा होता है, जोकि बाद में पित्ताशय में संचयित होता है।




प्रश्न 18 . ग्लाइकोजेनेसिस क्रिया में बनता है


(a) ग्लूकोस


(b) ग्लाइकोजन 


(c) विटामिन्स


 (d) प्रोटीन्स



उत्तर (b) ग्लाइकोजेनेसिस की क्रिया में यकृत अतिरिक्त ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में बदल देता है।





अतिलघु उत्तरीय प्रश्न         2 अंक



प्रश्न 1. सन्तुलित आहार किसे कहते हैं?


उत्तर – वह भोजन, जिसमें भोजन के सभी घटक (वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, प्रोटीन, खनिज लवण तथा जल) आवश्यक तथा सन्तुलित मात्रा में उपस्थित हों, सन्तुलित आहार कहलाता है।



प्रश्न 2. पोषण को परिभाषित कीजिए तथा मृतोजीवी एवं परजीवी पोषण में अन्तर बताइए।


उत्तर – जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं। मृतोजीवी जीव मृत कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से ऊर्जा प्राप्त करते हैं

 (उदाहरण- कुछ जीवाणु, कवक), जबकि परजीवी बड़े पोषद् (Host) पर आश्रित रहते हुए उनसे निरन्तर पोषण प्राप्त करते हैं (उदाहरण- टीनिया, जोंक, अमरबेल ) 


प्रश्न 3. स्वपोषी पोषण क्या है? उदाहरण देकर संक्षेप में समझाइए । 


 अथवा स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी है? इसके उपोत्पाद या अन्तिम उत्पाद क्या है?



उत्तर – स्वपोषण का शाब्दिक अर्थ है स्वयं को पोषित करना, जैसे-हरे पादप कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और जल (H₂O) से प्रकाश तथा पर्णहरिम की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं कर लेते हैं। इस प्रकार वे जीव, जो अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं, स्वपोषी कहलाते हैं तथा ऐसा पोषण स्वपोषी पोषण कहलाता है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले अधिकांश पौधे स्वपोषित हैं। स्वपोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ जल, कार्बन डाइऑक्साइड, पर्णहरित व सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति होती है और इसके उपोत्पाद ग्लूकोस व ऑक्सीजन है।


पर्णहरित


6CO₂ +12H₂O जल सूर्य का प्रकाश →C₂H₁₂0₆+ 6H₂O+ 60₂ ग्लूकोस जल ऑक्सीजन


कार्बनडाइ ऑक्साइड


प्रश्न 4. वसा का पाचन आहारनाल के किस भाग में होता है? उस पाचक रस का नाम लिखिए, जो वसा के पाचन में सहायक होता है? 


अथवा हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?



उत्तर – वसा का पाचन मुख्य रूप से आहारनाल की छोटी आँत में होता है। ग्रहणी में पित्त रस द्वारा वसा का इमल्सीकरण होता है तथा छोटी आँत में पाए जाने वाले लाइपेज एन्जाइम द्वारा वसा का पाचन किया जाता है। यह भोजन की वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल के अणुओं में विखण्डित कर देता है। 


लघु उत्तरीय प्रश्न 4 अंक




प्रश्न 1. जैव क्रियाएँ किसे कहते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए। ये कितने प्रकार की होती है?



उत्तर समस्त जीवधारियों में उसकी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शरीर में कुछ संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक क्रियाएँ सदैव चलती रहती हैं, जो जीव को जीवित बनाए रखने के लिए आवश्यक होती हैं, इन्हें जैविक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे-पोषण, श्वसन, परिवहन, उत्सर्जन, वृद्धि, जनन, आदि। जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण विशेष प्रकार से होता है। जीवधारी विभिन्न प्रकार से इन क्रियाओं को सम्पादित करते हैं, फिर भी इनमें मौलिक समानता पाई जाती है। जन्तुओं और पौधों में होने वाली समस्त जैविक क्रियाएँ मूलतया समान होती हैं। निम्न श्रेणी के जीवधारियों में जैविक क्रियाओं का संचालन सरल और उच्च श्रेणी के जीवधारियों में जैविक क्रियाओं का संचालन जटिल होता है।


जीवों में होने वाली समस्त जैव-रासायनिक अभिक्रियाओं को दो समूहों में बाँट लेते हैं


(i) अपचयी क्रियाएँ इन जैव क्रियाओं में जटिल कार्बनिक पदार्थ सरल कार्बनिक पदार्थों में विखण्डित हो जाते हैं; जैसे- पाचन, श्वसन, आदि।


 (ii) उपचयी क्रियाएँ इन जैव प्रक्रियाओं में सरल कार्बनिक पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का सश्लेषण होता है; जैसे- पौधों में प्रकाश-संश्लेषण, जन्तुओं में प्रोटीन, वसा, न्यूक्लिक अम्ल, आदि का संश्लेषण।





प्रश्न 2. प्रकाश-संश्लेषण की परिभाषा लिखिए तथा इसकी रासायनिक अभिक्रिया का समीकरण दीजिए।


अथवा प्रकाश-संश्लेषण की प्रणाली की व्याख्या कीजिए।




उत्तर 'प्रकाश-संश्लेषण वह जैव-रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सरल अकार्बनिक यौगिकों; जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को प्रकाशीय ऊर्जा (सूर्य का प्रकाश) तथा पर्णहरिम की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस) के रूप में बदल दिया जाता है।'


इसे निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है


                सूर्य का प्रकाश

6CO₂ + 12H₂O → C₆H₁₂0₆+ 6H₂O + 6 0₂

डाइऑक्साइड

                     पर्णहरिम     ग्लूकोस



इस क्रिया में ऑक्सीजन मुक्त होती है। यहाँ उत्पन्न कार्बोहाइड्रेट को पादपों में ऊर्जा की आवश्यकता अनुसार श्वसन में उपयोग कर लिया जाता है तथा शेष ग्लूकोस मण्ड के रूप में संचित होकर खाद्य भण्डारण का निर्माण करता है।


प्रश्न 3. पित्तरस क्या है? यह रस कहाँ स्त्रावित तथा एकत्र होता है?


 उत्तर पित्तरस यकृत की कोशिकाओं में बनता है। यह पित्ताशय नामक संरचना में संचित रहता है, जोकि यकृत के नीचे स्थित होती है। पित्तरस में पाचक एन्जाइम उपस्थित नहीं होते हैं, किन्तु यह वसा के पाचन में सहायक है। 


प्रश्न 4. मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि का नाम लिखिए तथा उसके कार्य का वर्णन कीजिए।



उत्तर –  मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि यकृत होती है।


चकृत के कार्य


i.पित्त रस का स्रावण करना


ii.यूरिया का संश्लेषण करना।


iii.हिपेरिन प्रतिस्कन्दन कारक का प्रावण


iv.ग्लाइकोजन का संचय करना। 


प्रश्न 5. पाचन क्रिया भौतिक क्रिया है अथवा रासायनिक क्रिया है। 


उत्तर पाचन क्रिया मुख्यतया एक रासायनिक क्रिया है, साथ-ही-साथ इसमें कुछ भौतिक क्रियाएँ भी सम्पन्न होती हैं।


(i) रासायनिक पाचन इसके अन्तर्गत पाचक ग्रन्थियों द्वारा स्त्रावित रस के एन्जाइम्स जटिल अघुलनशील भोज्य पदार्थों को सरल घुलनशील इकाइयों में तोड़ देते हैं।


(ii) यान्त्रिक या भौतिक पाचन इसमें भोजन को चबाना, आमाशय में भोजन की लुगदी बनाना, आहारनाल में क्रमाकुंचन गति (पेशीय संकुचन) के कारण भोजन को आगे खिसकाना, आदि सम्मिलित हैं।


प्रश्न 6. क्रमाकुंचन से आप क्या समझते हैं?


अथवा आहारनाल में होने वाली क्रमाकुंचन गति का क्या लाभ है?




उत्तर – आहारनाल में होने वाली क्रमाकुंचन गति भोजन को पाचन नलिका में सुगमता से (लेई के समान) आगे बढ़ाने में सहायक होती है। आमाशय में यह भोजन के पाचन में सहायक भी होती है। क्रमाकुंचन गति स्वायत्त तन्त्रिका के नियन्त्रण में एक प्रतिवर्ती क्रिया के रूप में होती है।




प्रश्न 7. वसा का पाचन आहारनाल के किस भाग में होता है? उस पाचक रस का नाम लिखिए, जो वसा के पाचन में सहायक होता है? 


 अथवा हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?



उत्तर – वसा का पाचन मुख्य रूप से आहारनाल की छोटी आँत में होता है। ग्रहणी में पित्त रस द्वारा वसा का इमल्सीकरण होता है तथा छोटी आँत में पाए जाने वाले लाइपेज एन्जाइम द्वारा वसा का पाचन किया जाता है। यह भोजन की वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल के अणुओं में विखण्डित कर देता है। 



प्रश्न 8. पोषण क्या है? स्वपोषी पोषण की परिभाषा लिखिए। यह कितने प्रकार का होता है, प्रत्येक का एक-एक उदाहरण भी लिखिए? 


 अथवा स्वपोषी पोषण से आप क्या समझते हैं? प्रकाश-संश्लेशण में इसकी भूमिका बताइए।



उत्तर  स्वपोषी पोषण दो प्रकार का होता है


(i) प्रकाश-संश्लेषी अधिकांश पौधे तथा कुछ जीवाणु पर्णहरित तथा प्रकाश की उपस्थिति में वायुमण्डल से CO₂ तथा मृदा से जल (H₂O) लेकर भोजन का निर्माण करते हैं। इस क्रिया में ऊर्जा का उपयोग होता है।


(ii) रसायन-संश्लेषी कुछ जीवाणु जल की अपेक्षा विभिन्न प्रकार के रसायनों की ऊर्जा का उपयोग कर खाद्य संश्लेषण करते हैं। यह क्रिया पर्णहरित की अनुपस्थिति में होती है; जैसे-नाइट्रीकारक जीवाणु, सल्फर जीवाणु, आदि। 



प्रश्न 9. प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।


उत्तर प्रकाश-संश्लेषण की दर को बाह्य और अन्त:कारक प्रभावित करते हैं। ये कारक निम्न हैं


(i) प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक ये निम्नवत् हैं


प्रकाश (Light) प्रकाश-संश्लेषण की दर दृश्य प्रकाश की उपस्थिति में अधिकतम होती है। प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने के साथ बढ़ती है, लेकिन तीव्रता बहुत अधिक बढ़ाने पर प्रकाश-संश्लेषण की दर अचानक कम हो जाती है, क्योंकि अधिक तीव्रता पर पर्णहरिम का सोलेराइजेशन हो जाता है।


कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) वायुमण्डल में CO₂मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर भी बढ़ जाती है। 


• तापमान (Temperature) पादपों में प्रकाश-संश्लेषण की दर 10-35°C तापमान तक बढ़ती है। इससे कम अथवा अधिक तापक्रम पर एन्जाइम का विकृतीकरण हो जाता है, जिससे प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है।


खनिज लवण (Minerals) खनिज लवणों; जैसे-Mg, Mn, Fe. Mo, S की कमी से भी प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है।




जल (Water) जल से प्राप्त हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन करती है। अत: जल की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ जाती है।


(ii) प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले अन्तःकारक पत्ती की संरचना, रन्ध्र की संरचना, स्थिति, संख्या और वितरण एवं खम्भ ऊतक की कोशिकाओं में पर्णहरिम की मात्रा, आदि होते हैं।




प्रश्न 10. आमाशय किसे कहते हैं? इसके तीन प्रमुख कार्य लिखिए। 


अथवा आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?


उत्तर आमाशय उदर गुहा में स्थित J-आकार की थैलेनुमा संरचना है। यह आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग है, जिसकी लम्बाई लगभग 24 सेमी तथा चौड़ाई 10 सेमी होती है।



आमाशय के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं


(i) आमाशय में पेशीय क्रमाकुंचन गति के कारण भोजन लुगदी (Chyme) में रूपान्तरित होता है।


(ii) जठर रस में उपस्थित HCI भोजन को सड़ने से बचाता है तथा जीवाणुओं को नष्ट करता है।


(iii) आमाशय से स्रावित जठर रस में उपस्थित पेप्सिन, रेनिन तथा लाइपेज एन्जाइम क्रमश: प्रोटीन, दुग्ध तथा वसा का पाचन करते हैं।







प्रश्न 11 . रन्ध्र क्या है? इसकी उपयोगिता स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर पादप की पत्तियाँ तथा अन्य कोमल वायवीय भागों की बाह्य त्वचा में छोटे-छोटे छिद्र पाए जाते हैं। इन्हें रन्ध्र कहते हैं। प्रकाश-संश्लेषण के लिए, गैसों का आदान-प्रदान रन्ध्रों के द्वारा होता है।


प्रश्न 12. दन्त क्षरण से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।


उत्तर दन्त क्षरण में इनेमल व डेन्टाइन का मृदुकरण होने लगता है। इसमें जीवाणुओं द्वारा शर्करा से अम्लों का निर्माण होता है, जिससे इनेमल का क्षरण होता है। यहाँ दाँतों में फँसे भोजन के कणों पर जीवाणुओं के समूह चिपक कर दंतप्लैक का निर्माण करते हैं। दाँतों में ब्रश करने से ये प्लैक अम्ल उत्पन्न होने से पहले ही हटा दिया जाता है। सूक्ष्मजीवों के मसूड़ों में पहुँचने के कारण सूजन व संक्रमण उत्पन्न हो जाते हैं।




प्रश्न 13 . लार में कौन-सा एन्जाइम होता है और वह किसका पाचन करता है?


 अथवा लार में कौन-सा एन्जाइम पाया जाता है? उसका नाम लिखिए तथा बताइए कि यह क्या कार्य करता है?



अथवा भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?


उत्तर लार में टायलिन या एमाइलेज एन्जाइम पाया जाता है। यह स्टार्च का आंशिक पाचन करता है। मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। लार में उपस्थित टायलिन नामक एन्जाइम की उपस्थिति में मण्ड या स्टार्च माल्टोस शर्करा में बदल जाता है।



प्रश्न 14. जैव क्रियाएँ किसे कहते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए। ये कितने प्रकार की होती है?




उत्तर समस्त जीवधारियों में उसकी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शरीर में कुछ संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक क्रियाएँ सदैव चलती रहती हैं, जो जीव को जीवित बनाए रखने के लिए आवश्यक होती हैं, इन्हें जैविक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे-पोषण, श्वसन, परिवहन, उत्सर्जन, वृद्धि, जनन, आदि। जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण विशेष प्रकार से होता है। जीवधारी विभिन्न प्रकार से इन क्रियाओं को सम्पादित करते हैं, फिर भी इनमें मौलिक समानता पाई जाती है। जन्तुओं और पौधों में होने वाली समस्त जैविक क्रियाएँ मूलतया समान होती हैं। निम्न श्रेणी के जीवधारियों में जैविक क्रियाओं का संचालन सरल और उच्च श्रेणी के जीवधारियों में जैविक क्रियाओं का संचालन जटिल होता है। जीवों में होने वाली समस्त जैव-रासायनिक अभिक्रियाओं को दो समूहों में बाँट लेते हैं


(i) अपचयी क्रियाएँ इन जैव क्रियाओं में जटिल कार्बनिक पदार्थ सरल कार्बनिक पदार्थों में विखण्डित हो जाते हैं; जैसे- पाचन, श्वसन, आदि।


(ii) उपचयी क्रियाएँ इन जैव प्रक्रियाओं में सरल कार्बनिक पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का सश्लेषण होता है; जैसे- पौधों में प्रकाश-संश्लेषण, जन्तुओं में प्रोटीन, वसा, न्यूक्लिक अम्ल, आदि का संश्लेषण।




प्रश्न 15. पाचन क्रिया भौतिक क्रिया है अथवा रासायनिक क्रिया है। 


 उत्तर पाचन क्रिया मुख्यतया एक रासायनिक क्रिया है, साथ-ही-साथ इसमें कुछ भौतिक क्रियाएँ भी सम्पन्न होती हैं


(i) रासायनिक पाचन इसके अन्तर्गत पाचक ग्रन्थियों द्वारा स्त्रावित रस के एन्जाइम्स जटिल अघुलनशील भोज्य पदार्थों को सरल घुलनशील इकाइयों में तोड़ देते हैं।


(ii) यान्त्रिक या भौतिक पाचन इसमें भोजन को चबाना, आमाशय में भोजन की लुगदी बनाना, आहारनाल में क्रमाकुंचन गति (पेशीय संकुचन) के कारण भोजन को आगे खिसकाना, आदि सम्मिलित हैं।


पोषण किसे कहते हैं परिभाषा उदाहरण सहित


सभी जीवों को जीवित रहने के लिए तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। अतः जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं। 


पोषक तत्व


भोजन में उपस्थित वे तत्व जो जीवों में वृद्धि, विकास, मरम्मत, प्रतिरक्षा हेतु आवश्यक होते हैं, पोषक तत्व (Nutrients) कहलाते हैं। 


सन्तुलित आहार


वह भोजन, जिसमें भोजन के सभी घटक (वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, प्रोटीन, खनिज लवण तथा जल) आवश्यक तथा सन्तुलित मात्रा में उपस्थित हों, सन्तुलित आहार कहलाता है।


नोट मनुष्य में उपापचयी क्रियाओं के लिए विटामिन्स होते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं-जल में विलेय व वसा में विलेय


• जल में विलेय विटामिन्स- B व C


• वसा में विलेय विटामिन्स - A, D,Eव K



पोषण की विधियाँ


जीवों में पोषण प्राप्त करने की अनेक विधियाँ पाई जाती हैं। इन्हें दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है; स्वपोषी एवं विषमपोषी (परपोषी) पोषण। 



स्वपोषी पोषण


कुछ जीव (जैसे-पादप व जीवाणु) सरल अकार्बनिक तत्वों (जल एवं CO2) द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। इस प्रकार प्राप्त पोषण, स्वपोषी पोषण कहलाता है। 



विषमपोषी (परपोषी) पोषण


जबकि अन्य जीव (जैसे-जन्तु, कुछ जीवाणु व कवक) जटिल कार्बनिक तत्वों (जैसे-कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन) को सरल तत्वों में तोड़कर एवं स्वांगीकृत करके पोषण प्राप्त करते हैं। यह विषमपोषी (परपोषी) पोषण कहलाता है। इस कार्य हेतु ये जीव जैव-उत्प्रेरकों का उपयोग करते हैं, जिन्हें एन्जाइम कहते हैं।



प्रश्न 16.मनुष्य के दन्तविन्यास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 


अथवा मनुष्य के दाँतों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।


अथवा मनुष्य में पाए जाने वाले दाँतों के प्रकार तथा उनके कार्यों का वर्णन कीजिए।



उत्तर – मनुष्य का दन्तविन्यास भोजन को काटने तथा चबाने के लिए मनुष्य के दोनों जबड़ों में दाँत पाए जाते हैं। मनुष्य के दाँत गर्तदन्ती (Thecodont), द्विबारदन्ती (Diphyodont) तथा विषमदन्ती (Heterodont) होते हैं। मनुष्य में निम्नलिखित चार प्रकार के दाँत पाए जाते हैं 


(i) कृन्तक (Incisors) यह चार ऊपरी जबड़े में तथा चार निचले जबड़े में सामने की ओर स्थित होते हैं। ये भोजन को कुतरने या काटने के काम आते हैं। 


(ii) रदनक (Canines) इनके शिखर नुकीले होते हैं। ये भोजन को चीरने-फाड़ने का काम करते हैं। ऊपरी और निचले जबड़े में दो-दो रदनक होते हैं। ये माँसभक्षियों में अधिक विकसित होते हैं।


(iii) अग्रचर्वणक (Premolars) इनकी संख्या ऊपरी तथा निचले जबड़े में चार-चार होती है। ये भोजन को चबाने का कार्य करते हैं। 


(iv) चर्वणक (Molars) ये ऊपरी तथा निचले जबड़े में छः-छः होते हैं। इनका शिखर अधिक चौड़ा व उभारयुक्त होता है। ये भी भोजन को पीसने का कार्य करते हैं। 


वयस्क मानव का दन्तसूत्र I 2/2, C 1/1 ,Pm 2/2, M 3/3 , 8/8 × 2 = 32



दन्तसूत्र में I = कृन्तक, C = रदनक, Pm = अग्रचर्वणक तथा M = चर्वणक को दर्शाते हैं।



प्रश्न 17. मनुष्य की लार ग्रन्थियों के नाम लिखिए। ये कहाँ स्थित होती हैं और कहाँ खुलती हैं?



उत्तर लार ग्रन्थियाँ – मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पृथक् वाहिनियों द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं, जो निम्नवत् हैं


(i) कर्णपूर्व या पैरोटिड ग्रन्थियाँ ये कर्ण पल्लवों के नीचे स्थित होती हैं तथा स्टेन्सन (Stensen) की नलिका के द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं।


(ii) अधोहनु या सबमैक्सिलरी ग्रन्थियाँ ये निचले जबड़े के पश्च भाग पर स्थित होती हैं तथा वॉरटन (Whorton) की नलिका के द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं।


(iii) अधोजिह्वा या सबलिंग्वल ग्रन्थियाँ ये जिह्वा के नीचे स्थित सबसे छोटे आकार की ग्रन्थियाँ हैं। ये रिविनस (Rivinus) की नलिकाओं के द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं।



 मानव पाचन तन्त्र कि क्रियाविधि तथा स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।







भोजन के पाचन की क्रियाविधि


जटिल व अघुलनशील खाद्य पदार्थों को भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं के द्वारा घुलनशील पदार्थों में बदलकर, इन्हें अवशोषण योग्य छोटे-छोटे सरल घटकों में तोड़ने की क्रिया को पाचन (Digestion) कहते हैं।


(i) अन्तर्ग्रहण इसमें भोजन को चबाना, आमाशय में भोजन की लुगदी बनना, आहारनाल में क्रमाकुंचन गति (पेशीय संकुचन) के कारण भोजन को आगे खिसकाना, आदि सम्मिलित हैं। क्रमाकुंचन गति स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के नियन्त्रण में एक प्रतिवर्ती प्रतिक्रिया के रूप में होती है।


(ii) पाचन इसके अन्तर्गत पाचक ग्रन्थियों द्वारा स्रावित रस के एन्जाइम्स जटिल अघुलनशील भोज्य पदार्थो को सरल घुलनशील इकाइयों में तोड़ देते हैं।


(iii) अवशोषण प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, न्यूक्लिक अम्ल तथा न्यूक्लियोटाइड के अन्तिम उत्पादों का अवशोषण रसांकुर के भीतर उपस्थित रुधिर केशिकाओं में, जबकि वसा के अन्तिम उत्पाद का अवशोषण लसिका वाहिनियों द्वारा होता है। पचे हुए सरल खाद्य अणुओं का अवशोषण आहारनाल की छोटी आँत में होता है। वसा का पाचन मुख्य रूप से छोटी आँत में होता है।


(iv) स्वांगीकरण पचे हुए पदार्थ कोशिका के जीवद्रव्य में पहुँचने के बाद, उसी में विलीन हो जाते हैं। इसे स्वांगीकरण कहते हैं।


(v) मल विसर्जन पाचन समाप्त होने के पश्चात् आहारनाल में कुछ अपशिष्ट पदार्थ शेष रह जाते हैं, जिनका पाचन संपन्न नहीं हो पाता है। अतः इनका मानव शरीर से उत्सर्जन हो जाता है।


नोट पाचन क्रिया भौतिक क्रिया भी है व रासायनिक भी। भौतिक क्रिया के अन्तर्गत चबाना, क्रमाकुंचन, भोजन की लुगदी बनाना, आदि होते हैं, जबकि रासायनिक क्रिया में विभिन्न एन्जाइमों के द्वारा भोजन का अपचयन होता है।



प्रश्न 18. पर्णरन्ध्रों (स्टोमेटा) के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।



अथवा रन्ध्र (स्टोमेटा) का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए। 


अथवा बताइए कि द्वार कोशिकाएँ किस प्रकार रन्ध्रों के खुलने तथा बन्द होने का नियमन करती है?


अथवा रन्ध्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा द्वार (गार्ड) कोशिकाओं का वर्णन कीजिए।


 उत्तर - रन्ध्र की संरचना रन्ध्र मुख्य रूप से पत्तियों की बाह्यत्वचा पर पाए जाते हैं। प्रत्येक रन्ध्र में दो अर्द्धचन्द्राकार सेम के बीज के आकार की द्वार कोशिकाएँ (Guard cells) तथा मध्य में एक रन्ध्रीय गुहा (Stomatal cavity) पाई जाती है। द्वार कोशिकाओं की बाहरी भित्ति पतली तथा आन्तरिक भित्ति मोटी होती है। इसमें हरितलवक पाए जाते हैं।


पर्णरन्ध्र के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि रन्ध्रीय गति रक्षक कोशिकाओं की आशूनता पर निर्भर करती है। रक्षक कोशिकाओं के पर रन्ध्र खुल जाते हैं और श्लथ (Flaccid) दशा में रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। दिन के समय रक्षक कोशिकाओं की CO₂प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में प्रयुक्त आशून होने हो जाने के कारण इनका माध्यम क्षारीय हो जाता है। इससे फॉस्फोरायलेज एंजाइम के सक्रियण के कारण रक्षक कोशिकाओं में संचित स्टार्च ग्लूकोस में बदल जाता है। फलस्वरूप रक्षक कोशिकाओं की सान्द्रता बढ़ जाती है। ये समीपवर्ती कोशिकाओं से जल ग्रहण करके आशून (स्फीत) हो जाती है। रक्षक कोशिका की भीतरी मोटी सतह के भीतर की ओर खिंचाव आने से रन्ध्र खुल जाते हैं। रात्रि में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया नहीं होती है। अतः रक्षक कोशिकाओं में श्वसन के कारण CO₂ की मात्रा बढ़ जाने से इनका माध्यम अम्लीय हो जाता है। इसके फलस्वरूप रक्षक कोशिकाओं का ग्लूकोस स्टार्च में बदल जाता है। इसके कारण रक्षक कोशिकाओं की सान्द्रता में कमी हो जाती है। रक्षक कोशिकाओं से जल समीपवर्ती कोशिकाओं में विसरित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाएँ श्लथ स्थिति में आ जाती है और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

पादपों में रन्ध्र की उपयोगिता




(i) वाष्पोत्सर्जन में सहायक,


 (ii) प्रकाश-संश्लेषण तथा श्वसन क्रिया (गैसीय विनिमय) में सहायक।


 


प्रश्न 19. आहारनाल से सम्बन्धित पाचक ग्रन्थियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए और उनके मुख्य कार्य बताइए।


उत्तर – पाचक ग्रन्थियाँ आहारनाल में यकृत तथा अग्न्याशय मुख्य पाचक ग्रन्थियाँ होती हैं।


यकृत यह शरीर की सबसे बड़ी पाचक ग्रन्थि है। इसका भार लगभग 1500 ग्राम होता है। इसके ऊपर स्थित एक छोटी थैलीनुमा संरचना पित्ताशय (Gall bladder) कहलाती है, जिसमें पित्त रस एकत्रित होता है।


अग्न्याशय – यकृत के बाद यह शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रन्थि है। यह लगभग 12-15 सेमी लंबी तथा 'J' के आकार की होती है। यह उदरगुहा में आमाशय व शेषांत्र के बीच स्थित होती है। यह एक मिश्रित ग्रन्थि (Mixed gland) है। इसका बाह्यस्रावी भाग क्षारीय अग्न्याशयी रस का स्रावण करता है तथा अन्तःस्रावी भाग हॉर्मोन्स का स्रावण करता है। 


अग्न्याशय के कार्य निम्नलिखित हैं



(i) इसके बाह्यस्रावी भाग से अग्न्याशयी रस का स्रावण होता है, जिसमें तीन प्रमुख एन्जाइम्स; जैसे-ट्रिप्सिन, एमाइलॉप्सिन तथा स्टीएप्सिन उपस्थित होते हैं।


(ii) अन्तःस्रावी भाग से इन्सुलिन तथा ग्लूकैगॉन का स्रावण होता है, जो रुधिर में शर्करा की मात्रा का नियमन करते हैं।




प्रश्न 20. अग्न्याशय की संरचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए| 


अथवा अग्न्याशय के अन्तःस्रावी भाग में स्थित एल्फा तथा बीटा कोशिकाओं से निकलने वाले हॉर्मोन्स के नाम तथा कार्य का वर्णन कीजिए।


अथवा अग्न्याशय द्वारा स्रावित दो पाचक एन्जाइम के नाम एवं कार्य लिखिए।


अथवा अग्न्याशय की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए।


 उत्तर – संरचना की दृष्टि से अग्न्याशय छोटे-छोटे पिण्डकों से बना होता है। इन पिण्डकों की कोशिकाएँ घनाकार तथा स्रावी होती हैं। पिण्डकों के मध्य में लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएँ समूह के रूप में पाई जाती हैं। यह एक मिश्रित ग्रन्थि है।


 इसके दो भाग होते हैं


(i) बहि:स्रावी भाग व (ii) अन्तःस्रावी भाग


इसका बहिःस्रावी भाग व अग्न्याशयी रस स्रावित करता है। यह पूर्ण पाचक रस है। इसमें प्रोटीन पाचक ट्रिप्सिन तथा काइमोट्रिप्सिन, कार्बोहाइड्रेट पाचक एमाइलेज तथा वसा पाचक अग्न्याशयी लाइपेज एन्जाइम होते हैं। अतः अग्न्याशय के निष्क्रिय हो जाने पर भोजन का पूर्ण पाचन नहीं हो सकेगा।



अग्न्याशय में स्थित अन्तःस्रावी भाग की लैगरहैन्स की द्वीपिकाओं की B-कोशिकाओं से इन्सुलिन हॉर्मोन तथा a-कोशिकाओं से ग्लूकैगॉन हॉर्मोन स्रावित होता है। इन्सुलिन आवश्यकता से अधिक शर्करा (ग्लूकोस) को ग्लाइकोजन में और ग्लूकैगॉन हॉर्मोन ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में बदलने का कार्य करते हैं। अतः अग्न्याशय के निष्क्रिय या नष्ट हो जाने से शरीर में शर्करा का सन्तुलन बिगड़ जाता है। 



प्रश्न 21. मुख से लेकर आमाशय तक होने वाली पाचन क्रिया को प्रभावित करने वाले एन्जाइमों के कार्यों का उल्लेख कीजिए।


अथवा पाचक एन्जाइमों का क्या कार्य है?



उत्तर – मुख से लेकर आमाशय तक अनेक एन्जाइम स्त्रावित होते हैं, जो भोजन के पाचन में सहायक होते हैं।


मुख में कार्बोहाइड्रेट का पाचन होता है। लार में a-एमाइलेज या टाइलिन (a-amylase or Ptyalin) नामक पाचक एन्जाइम होता है, जो मण्ड को शर्करा में परिवर्तित कर देता है। इसमें लाइसोजाइम (Lysozyme) भी होता है, जो प्रतिजीवाणु कारक होता है। 


आमाशय के मध्य भाग में फण्डिक ग्रन्थियाँ उपस्थित होती है। ये जठर रस स्त्रावित करती है, जिसमें पेप्सिन (Pepsin), रेनिन (Renin) नामक एन्जाइम होते हैं। ये श्लेष्म तथा गैस्ट्रिन (Gastrin) नामक हॉर्मोन भी स्रावित करती है। ये HCI अम्ल का भी स्त्रावण करती है, जोकि जठर रस को अम्लीय माध्यम (pH 1.5-2.5) प्रदान करता है एवं निष्क्रिय पेप्सिनोजन (Pepsinogen) को सक्रिय पेप्सिन (Pepsin) में बदल देता है। रेनिन दुग्ध प्रोटीन का पाचन करता है।


पेप्सिन प्रोटीन का पाचन करता है तथा लाइपेज वसा का पाचन करता है। 



प्रश्न 22. पाचक रस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 


अथवा मनुष्य में पाए जाने वाले पाचक रसों के कार्यों का वर्णन कीजिए।


अथवा पित्तरस भोजन के पाचन में किस प्रकार सहायता करता है? 


उत्तर – पाचक रस भोजन के पाचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पाचक रस निम्न प्रकार के होते हैं


(i) लार ये भोजन को निगलने में सहायक होती है तथा कार्बोहाइड्रेट को पचाने में भी भाग लेती है। लार में उपस्थित टायलिन नामक एन्जाइम मण्ड को शर्करा में बदल देता है।


(ii) जठर रस जठर (आमाशय) की ग्रन्थियों से जठर रस निकलता है तथा जिसमें HCI, पेप्सिन, लाइपेज तथा रेनिन नामक एन्जाइम उपस्थित होते हैं।


(iii) पित्तरस तथा अग्न्याशयी रस ग्रहणी में अग्न्याशय से निकलने वाला अग्न्याशयी रस तथा यकृत से निकलने वाला पित्तरस आकर मिलते हैं। पित्तरस में कोई एन्जाइम नहीं होता है। यह भोजन के अम्लीय माध्यम को क्षारीय माध्यम में बदल देता है तथा पित्त लवण वसा का इमल्सीकरण करते हैं। अग्न्याशयी रस में ट्रिप्सिन, लाइपेज, एमाइलॉप्सिन, आदि एन्जाइम उपस्थित होते हैं, जो क्षारीय माध्यम में ही सक्रिय होते हैं।


(iv) आँत रस इसके एन्जाइम अधपचे भोजन पर क्रिया करते हैं। आँत रस में निम्न एन्जाइम क्रिया करते हैं


(a) सुक्रेज यह शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है।


(b) लैक्टेज यह लैक्टोस शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है।


(c) माल्टेज यह माल्टोस शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है।


(d) इरेप्सिन यह शेष प्रोटीन तथा उसके अवयवों को अमीनो अम्लों में बदल देता है। 



विस्तृत उत्तरीय प्रश्न    7 अंक


प्रश्न 1. पोषण क्या है? पोषण की आवश्यकता क्यों पड़ती है? पोषण के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए। पाचन तथा पोषण में अन्तर बताइए।



अथवा 'भोजन ऊर्जा का स्रोत है' कथन की पुष्टि कीजिए 


अथवा क्या किसी जीव के लिए 'पोषण' आवश्यक है? विवेचना कीजिए।



उत्तर – पोषण जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं। सभी जीवों को जीवित रहने के लिए तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है।


पोषण के आधार पर जीव दो प्रकार के होते हैं


(i) स्वपोषी – वे जीवधारी, जो प्रकाश या रासायनिक ऊर्जा का उपयोग कर अकार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन बनाते हैं। उदाहरण पादप, नील हरित शैवाल, आदि।


(ii) परपोषी – जो जीवधारी अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं नहीं कर पाते हैं, बल्कि भोजन हेतु अन्य जीवों; जैसे- पादप या जन्तुओं पर निर्भर होते हैं, परपोषी कहलाते हैं; उदाहरण मानव, शेर, चील, जोंक, आदि। 


पोषण या भोजन की आवश्यकता


(i) ऊर्जा की आपूर्ति विभिन्न जैविक कार्यों में व्यय होने वाली ऊर्जा की आपूर्ति भोजन के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप होती है। ऊर्जा उत्पादन हेतु मुख्यतया कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस), वसा तथा कभी-कभी प्रोटीन का भी उपयोग होता है। इनसे मुक्त रासायनिक ऊर्जा ATP के रूप में संचित हो जाती है। ATP जैविक कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।


(ii) शरीर की वृद्धि पचे हुए खाद्य पदार्थों का जीवद्रव्य द्वारा आत्मसात् कर लेना स्वांगीकरण कहलाता है। इससे जीवद्रव्य की मात्रा में वृद्धि होती है और जीवधारियों में भी वृद्धि होती है। प्रोटीन्स, खनिज लवण, विटामिन्स, आदि शरीर की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


(iii) शरीर में टूट-फूट की मरम्मत भोजन के पोषक तत्व मुख्यतया प्रोटीन्स से शरीर में प्रतिदिन होने वाली टूट-फूट की मरम्मत होती है। खनिज लवण व विटामिन्स, मरम्मत क्रियाओं को प्रेरित करते हैं।


(iv) रोगों से रक्षा सन्तुलित भोजन स्वास्थ्यवर्धक होता है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। भोजन के अवयव; जैसे-प्रोटीन्स, विटामिन्स, खनिज लवण, आदि इस कार्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पोषक पदार्थ हैं। 




पाचन और पोषण में अन्तर



पाचन

पोषण

जटिल और अघुलनशील भोज्य पदार्थों को भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा घुलनशील पदार्थों में बदलने की क्रिया को पाचन कहते हैं।

जीवों द्वारा भोजन और अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं।




प्रश्न 2. स्वयंपोषी पोषण एवं विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है? 


उत्तर


स्वयंपोषी एवं विषमपोषी पोषण में अन्तर



स्वयंपोषी पोषण


विषमपोषी पोषण

वे जीव जो स्वयं अपने भोजन का निर्माण करते हैं, स्वपोषी कहलाते हैं तथा पोषण का यह प्रकार स्वपोषी या स्वयंपोषी पोषण कहलाता है।

वे जीव जो भोजन हेतु अन्य जीवों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आश्रित रहते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं तथा पोषण का यह प्रकार विषमपोषी पोषण कहलाता है।

ये दो प्रकार के होते हैं - रसायन संश्लेषी एवं प्रकाश-संश्लेषी

ये तीन प्रकार के होते हैं - परभक्षी, परजीवी तथा मृतोपजीवी।

स्वपोषी जीव पारितन्त्र में उत्पादक कहलाते हैं।

विषमपोषी जीव पारितन्त्र में उपभोक्ता या अपघटक कहलाते हैं।

स्वपोषी जीव उपचय क्रियाओं द्वारा सरल तत्वों से जटिल यौगिकों का निर्माण करते हैं।


विषमपोषी जीव अपचय क्रियाओं द्वारा जटिल तत्वों से सरल यौगिकों का निर्माण करते हैं।

यह पोषण, विषमपोषी पोषण की तुलना में अधिक ऊर्जा दक्ष होता है।

यह पोषण, स्वपोषी पोषण की कम ऊर्जा दक्ष होता है। तुलना में

नील-हरित, शैवाल, सल्फर एवं कुछ नाइट्रीकारक जीवाणु तथा सभी हरे पादप इसी श्रेणी में आते हैं।

सभी जन्तु, कवक एवं अन्य जीवाणु इस श्रेणी में आते हैं।




प्रश्न 3. प्रयोग द्वारा सिद्ध कीजिए कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए प्रकाश एवं कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यक है। 


अथवा प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का क्या महत्त्व है? प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें।


 उत्तर – प्रकाश की आवश्यकता का प्रदर्शन सर्वप्रथम एक गमले में लगे पादप को अन्धकार में 48-72 घण्टे रखकर स्टार्चविहीन कर लेते हैं। एक पत्ती के दोनों ओर काला कागज क्लिप की सहायता से लगाकर पादप को 3-4 घण्टे के लिए प्रकाश में रख देते हैं। फिर पत्ती को तोड़कर आयोडीन का परीक्षण करते हैं।







(a) स्टार्च परीक्षण से पूर्व 


(b) स्टार्च परीक्षण के बाद


 पर्णहरिम की आवश्यकता का प्रदर्शन


पत्ती का वह भाग, जो काले कागज से ढका था, नीला नहीं होता है, क्योंकि इसमें प्रकाश के अभाव में स्टार्च का निर्माण नहीं हुआ, जबकि पत्ती का शेष भाग स्टार्च के कारण नीला हो जाता है। अतः प्रयोग से स्पष्ट है कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए प्रकाश आवश्यक है।


कार्बन डाइऑक्साइड गैस की आवश्यकता का प्रदर्शन एक बड़े एवं चौड़े मुँह की बोतल में KOH का घोल लेते हैं। एक मण्डरहित पादप की पत्ती को चौड़े मुँह की बोतल के अन्दर इस प्रकार लगाते हैं कि उसका आधा भाग बोतल में तथा आधा बोतल के बाहर रहता है।


प्रकाश-संश्लेषण में कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता


इस उपकरण को 3-4 घण्टे तक धूप में रखकर आयोडीन परीक्षण करने पर पत्ती का वह भाग, जो बोतल के बाहर था, नीला पड़ जाता है, परन्तु बोतल के अन्दर के भाग पर आयोडीन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।


इसका कारण यह है कि बोतल के अन्दर वाले भाग में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा स्टार्च का निर्माण नहीं हुआ, क्योंकि बोतल में CO, उपलब्ध नहीं थी। इस बोतल की कार्बन डाइऑक्साइड KOH द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। इस प्रयोग से स्पष्ट है कि प्रकाश-संश्लेषण क्रिया के लिए CO, आवश्यक है। इस प्रयोग को मोल का प्रयोग कहते हैं।





प्रश्न 4. मनुष्य के पाचन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए।


अथवा मनुष्य की आहारनाल तथा उससे सम्बन्धित पाचक ग्रन्थियों का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए। अग्न्याशयी रस का पाचन की कार्यिकी में क्या महत्त्व है


अथवा मानव आहारनाल का वर्णन कीजिए



उत्तर मनुष्य की आहारनाल मनुष्य की आहारनाल 8-10 मीटर लम्बी होती है। विभिन्न भागों में इसका व्यास अलग-अलग होता है। इसके निम्नलिखित भाग होते हैं।


(i) मुख, मुखगुहा तथा ग्रसनी मुखगुहा ऊपरी तथा निचले जबड़े के मध्य स्थित होती है। व्यस्क में दोनों जबड़ों पर 16-16 दाँत लगे होते हैं। प्रत्येक जबड़े पर सामने दो जोड़ी कृन्तक, एक-एक रदनक, दो-दो अग्रचर्वणक तथा उसके बाद तीन-तीन चर्वणक होते हैं। अग्रचर्वणक व चर्वणकों को दाढ़ कहते हैं। मनुष्य में दाँतों के प्रकार, उनकी संख्या व उनके कार्य निम्न तालिका में दिए गए हैं


दाँतों के प्रकार


प्रत्येक जबड़े में दाँतों की संख्या


दाँतों का कार्य


कृन्तक (1)


दो जोड़ी (4)


भोजन को कुतरना


रदनक (C)


एक जोड़ी (2)


भोजन को फाड़ना व चीरना


अग्रचर्वणक (Pm) दो जोड़ी (4)


भोजन को चबाना व पीसना


भोजन को पीसना


चर्वणक (M)


तीन जोड़ी (6)


जिह्वा मुखगुहा के फर्श पर जिह्वा स्थित होती है, जो भोजन के स्वाद का के अनुभव कराती है। इसके अतिरिक्त भोजन चबाते समय उसमें लार मिलाने में सहायता करती है। यह चबाए गए भोजन को निगलने में भी मदद करती है। 



मुखगुहा की दीवारों में लार ग्रन्थियाँ होती हैं। मुखगुहा के ऊपरी भाग को तालू कहते हैं। मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है। ग्रसनी के अन्दर एक बड़ा छिद्र होता है। इसको निगलद्वार कहते हैं। इसके द्वारा ग्रासनली ग्रसनी में खुलती है। इसके पास ही श्वासनली का छिद्र व घांटीद्वार होता है।


(ii) भोजन नली या ग्रसिका या ग्रासनली यह लम्बी वलित नलिका होती है और श्वासनली के नीचे स्थित होती है। यह उपास्थिल, छल्ले युक्त होती है। यह तन्तुपट या डायफ्राम को भेदकर उदरगुहा में स्थित आमाशय (Stomach) में खुलती है।


(iii) आमाशय यह Jआकार की थैलीनुमा रचना होती है। इसकी लम्बाई लगभग 25-30 सेमी और चौड़ाई 7-10 सेमी होती है। इसका चौड़ा प्रारम्भिक भाग कार्डियक, मध्य भाग फण्डिक तथा अन्तिम संकरा भाग पाइलोरिक भाग कहलाता है। आमाशय की जठर ग्रन्थियों से जठर रस स्रावित होता है।


(iv) ग्रहणी यह आमाशय के साथ C-आकार की संरचना होती है। इसकी लम्बाई लगभग 25 सेमी होती है। पित्त नलिका तथा अग्न्याशय नलिका ग्रहणी के निचले भाग में खुलती है।


(v) छोटी आँत यह ग्रहणी के निचले भाग से प्रारम्भ होती है। यह नली सबसे अधिक लम्बी होती है। अत: यह कुण्डलित अवस्था में उदरगुहा में स्थित होती है। इसके चारों ओर बड़ी आँत होती है। क्षुद्रान्त्र की भित्ति में आँत्रीय ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनसे पाचक आँत्रीय रस निकलता है। इसकी भित्ति में अनेक छोटे-छोटे अँगुली के आकार के रसांकुर होते हैं।


(vi) बड़ी आँत या वृहदान्त्र यह अधिक चौड़ी होती है। छोटी आँत से इसकी लम्बाई कम होती है। छोटी आँत एक छोटे-से थैले जैसे भाग में खुलती है, जिसका एक सिरा 7-10 सेमी लम्बी संकरी व बन्द नली के रूप में एक ओर निकला रहता है। इसे कृमिरूप परिशेषिका कहते हैं।


थैले के दूसरी ओर से लगभग 3 इंच चौड़ी नली, कोलन निकलती है, जो निकलने के बाद एक ओर गुहा के ऊपर की ओर उठती है, बाद में समानान्तर होकर नीचे उतरती है तथा अन्त में मलाशय में खुल जाती है।


(vii) मलाशय यह बड़ी आँत का ही अन्तिम भाग है। यह लगभग 7-8 सेमी लम्बा होता है। यहाँ अपशिष्ट भोजन एकत्रित होता है। 


(viii) गुदा मलाशय का अन्तिम भाग छल्लेदार माँसपेशियों का बना होता है।


इसके बाहर खुलने वाले छिद्र को गुदाद्वार (Anal aperture) कहते हैं। 




प्रश्न 5. मानव में पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा यकृत के कार्यों का वर्णन कीजिए।



उत्तर





यकृत के कार्य यकृत शरीर की सबसे बड़ी एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थि हैं। इसके महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नवत् हैं


(i) यकृत पित्तरस स्रावित करता है। यह क्षारीय तरल होता है। पित्तरस भोजन का माध्यम क्षारीय करता है। यह भोजन को सड़ने से बचाता है। हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है तथा आहारनाल में क्रमाकुंचन गति उत्पन्न करता है। पित्त वर्णक तथा लवणों को आहारनाल के माध्यम से उत्सर्जित करता है। पित्तरस वसा का इमल्सीकरण करता है।


(ii) आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस को ग्लाइकोजन के रूप में संचित करता है। इसे ग्लाइकोजेनेसिस कहते हैं।


(iii) आवश्यकता पड़ने पर अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्लों को शर्करा में बदल देता है। इसे ग्लाइकोनियोजेनेसिस कहते हैं। 


(iv) यकृत कोशिकाएँ ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में बदल देती है। इसे ग्लाइकोजिनोलाइसिस कहते हैं।


(v) यकृत अनके अकार्बनिक पदार्थों का संचय करता है तथा यकृत वसा एवं विटामिन संश्लेषण में सहायता करता है।


(vi) यकृत कोशिकाएँ प्रोथ्रॉम्बिन तथा फाइब्रिनोजन रुधिर प्रोटीन का संश्लेषण करती है, जो चोट लगने पर रुधिर का थक्का बनाने का कार्य करती है।


(vii) यकृत में यूरिया का संश्लेषण एवं विषैले पदार्थों को कम हानिकारक बनाने का कार्य करता है। 


प्रश्न 6. मानव पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए। पाचन क्रिया का वर्णन कीजिए।


अथवा मानव पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाकर आमाशय तथा क्षुद्रान्त्र में होने वाली पाचन-क्रिया का वर्णन कीजिए।



 उत्तर

मानव में पाचन की क्रियाविधि निम्न अंगों द्वारा पूर्ण होती है


1. मुखगुहा में पाचन मुखगुहा में स्टार्च पर टायलिन या एमाइलेज एन्जाइम कार्य करता है और स्टार्च को माल्टोस में अपघटित कर देता है। मनुष्य की लार में उपस्थित लाइसोजाइम नामक एन्जाइम बैक्टीरिया को नष्ट करता है।


ग्रासनली में कोई पाचक एन्जाइम स्रावित नहीं होता। भोजन ग्रासनली से कार्डियक अवरोधक द्वारा होता हुआ आमाशय में पहुँचता है।


2. आमाशय में पाचन भोजन ग्रासनली से होकर आमाशय में प्रवेश करता है। आमाशय में प्रोटीन व वसा का पाचन प्रारम्भ हो जाता है, लेकिन कार्बोहाइड्रेट का पाचन नहीं होता।


आमाशयी रस एवं HCI भोजन को जीवाणुरहित एवं अम्लीय माध्यम प्रदान करता है। पेप्सिन, प्रोटीन का पाचन करके उन्हें पेप्टोन्स में परिवर्तित कर देता है। रेनिन, दुग्ध को दही में परिवर्तित करता है। यह आंशिक पचित भोजन काइम कहलाता है।





                   B. श्वसन


श्वसन एक जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण अभिक्रिया है, जिसमें विशेष मानव अंग वातावरण से ऑक्सीजन (O₂) को ग्रहण करके उसे शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचाते हैं। अतः श्वसन वह क्रिया है, जिसमें कोशिका में कार्बनिक यौगिकों (प्रायः ग्लूकोस) का ऑक्सीकरण होता है।


इस क्रिया में CO₂तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा को विशेष अणुओं में विभवीय ऊर्जा के रूप में संचित किया जाता है। यह ऊर्जा मानव शरीर की विभिन्न उपापचयी क्रियाओं द्वारा उपयोग में लाई जाती है। इस क्रिया में जीवित कोशिकाओं में कार्बनिक भोज्य पदार्थों का जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण होता है। यह क्रिया एन्जाइमों की सहायता से सामान्य ताप पर होती है। कार्बनिक पदार्थों में संचित रासायनिक ऊर्जा गतिज ऊर्जा के रूप में मुक्त होती है। यह मुक्त ऊर्जा ATP में संचित होती है, जोकि जैविक क्रियाओं के काम आती है।


C₆H₁₂0₆ + 60₂  → 6CO₂ + 6H₂0+ 38 ATP




बहुविकल्पीय प्रश्न      1. अंक


प्रश्न1. ग्लाइकोलाइसिस की प्रक्रिया सम्पन्न होती है.



(a) कोशिकाद्रव्य में


(b) राइबोसोम्स में


(c) माइटोकॉण्ड्रिया में


(d) अन्तःप्रद्रव्यी जालिका में


उत्तर (a) ग्लाइकोलाइसिस की प्रक्रिया कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होती है।


प्रश्न 2. प्रचलित रूप से ऊर्जा गृह कहलाता है


(a) क्लोरोप्लास्ट


(b) राइबोसोम्स


(c) माइटोकॉण्ड्रिया


(d) लाइसोसोम्स


उत्तर (c) माइटोकॉण्ड्रिया को प्रचलित रूप से ऊर्जा गृह कहते हैं।


प्रश्न 3. ATP तथा NADP.2H का निर्माण होता है



(a) माइटोकॉण्ड्रिया में


(b) क्लोरोप्लास्ट में


(c) परॉक्सीसोम्स में


(d) लाइसोसोम्स में


उत्तर (a) माइटोकॉण्ड्रिया में ATP तथा NADP.2H का निर्माण होता है।


प्रश्न 4. ग्लाइकोलाइसिस के अन्त में कितने ATP अणुओं का लाभ होता है?


(a) दो


(b) शून्य


(c) चार


(d) आठ



उत्तर (a) ग्लाइकोलाइसिस के अन्त में दो ATP अणुओं का शुद्ध लाभ होता है। यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है।



प्रश्न 5. एक अणु ग्लूकोस के पूर्ण ऑक्सीकरण से कितने ATP अणु प्राप्त होते हैं?


(a) 32


(b) 34


(c) 36


(d) 38


उत्तर (d) एक अणु ग्लूकोस के पूर्ण ऑक्सीकरण से कुल 38 ATP अणु प्राप्त होते हैं।


प्रश्न 6. कोशिकीय प्रक्रमों में ऊर्जा मुद्रा है


(a) माइटोकॉण्ड्रिया


(b) ग्लूकोस


(c) ATP


(d) पाइरुवेट


उत्तर (c) ATP को ऊर्जा की मुद्रा कहा जाता है।




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न        2 अंक


प्रश्न 1. श्वसन को परिभाषित कीजिए।


अथना श्वसन क्रिया को परिभाषित कीजिए तथा बताइए कि इस क्रिया में किस प्रकार ऊर्जा ATP में स्थानान्तरित होती है?



 उत्तर श्वसन वह क्रिया है, जिसमें कोशिका में कार्बनिक यौगिकों (प्रायःग्लूकोस) का ऑक्सीकरण होता है। इस क्रिया में CO₂ तथा ऊर्जा उत्पन्न होती


हैं। इस ऊर्जा को विशेष ATP अणुओं में विभवीय ऊर्जा के रूप में संचित किया जाता है। 


C₆H₁₂O₆ + 60₂→ 6CO₂ + 6H₂O + 673 किलो कैलोरी ऊर्जा 



 प्रश्न 2. उस श्वसन प्रक्रिया का नाम लिखिए, जिसमें O₂की आवश्यकता नहीं होती।



उत्तर अनॉक्सीश्वसन में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। इस क्रिया में ग्लूकोस का पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता है। अतः यहाँ एथिल एल्कोहॉल (C₂H₅OH) तथा CO₂बनते हैं। इसमें ग्लूकोस के एक अणु से ATP के दो अणु प्राप्त होते हैं।




प्रश्न 3. श्वसन क्रिया कोशिका के किस अंगक में होती है?


 उत्तर श्वसन क्रिया कोशिका के कोशिकाद्रव्य तथा माइटोकॉण्ड्रिया में होती है। कोशिकीय श्वसन को दो भागों में विभाजित किया गया है




(i) ग्लाइकोलाइसिस यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होती है।


(ii) क्रेब्स चक्र यह क्रिया माइटोकॉण्ड्रिया में सम्पन्न होती है।




प्रश्न 4. श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के वाहक का नाम लिखिए।



उत्तर श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन का परिवहन हीमोग्लोबिन द्वारा होता है और कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन मुख्यतया बाइकार्बोनेट के रूप में होता है। कुछ मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का वहन हीमोग्लोबिन और रुधिर प्लाज्मा द्वारा भी होता है।



प्रश्न 6. श्वसन तथा दहन में अन्तर लिखिए।


अथवा श्वसन तथा दहन में कोई चार अन्तर बताइए।




उत्तर


श्वसन और दहन में अन्तर में



श्वसन

दहन

यह जैविक नियन्त्रण में होने वाली जैव- रासायनिक ऑक्सीकरण क्रिया है।

यह अनियन्त्रित रासायनिक ऑक्सीकरण की क्रिया है।

यह क्रिया सामान्य ताप (25-45°C) पर होती है तथा इसमें कम ऊर्जा उत्पन्न होती है।


यह क्रिया उच्च ताप पर होती है तथा इसमें उच्च ऊष्मा (ऊर्जा) उत्पन्न होती है।


यह क्रिया एन्जाइम्स की सहायता से होती है।

इसमें एन्जाइम्स की आवश्यकता नहीं होती है।








लघु उत्तरीय प्रश्न      4 अंक




प्रश्न 1. श्वसन क्रिया को समझाइए। ऑक्सी तथा अनॉक्सी श्वसन में अन्तर बनाइए। 


अथवा वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए, जिनमें अवायवीय श्वसन होता है। 


अथवा वायवीय श्वसन किस प्रकार अवायवीय श्वसन से भिन्न होता है?


उत्तर श्वसन जीवित कोशिकाओं में होने वाली वह ऑक्सीकरण क्रिया है, जिसमें विभिन्न जटिल कार्बनिक पदार्थों; जैसे-कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, आदि के अपघटन से कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल मुक्त होते हैं व ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिए ATP के रूप में संचित हो जाती है।


C₆H₁₂0₆ + 60₂ →  6CO₂ + 6H₂O + 673 किलो कैलोरी (38 ATP) 




 ऑक्सी श्वसन तथा अनॉक्सी श्वसन में निम्न अन्तर है


ऑक्सी श्वसन

अनॉक्सी श्वसन

यह उच्च वर्गीय पादपों में मिलता है।

यह प्रोकैरियोटिक सूक्ष्मजीवों, जैसे जीवाणुओं, यीस्ट तथा कवक में मिलता है।

ऊर्जा अधिक मात्रा (लगभग 38 ATP-673 किलो कैलोरी) में निकलती है।


ऊर्जा बहुत कम मात्रा (2ATP-27 किलो कैलोरी) में निकलती है।


इस क्रिया में O2 की आवश्यकता होती है


इस क्रिया में O2 की आवश्यकता नहीं होती है। होती है।


इस क्रिया के अन्त में शर्करा का सम्पूर्ण ऑक्सीकरण होकर CO2 तथा H2O बनता है।

क्रिया के अन्त में शर्करा का अपूर्ण ऑक्सीकरण होने से CO2 तथा C2H5OH बनते हैं।







प्रश्न 2. श्वसन तथा श्वासोच्छ्वास में अन्तर कीजिए।


उत्तर




श्वसन और श्वासोच्छ्वास में अन्तर



श्वसन


श्वसन एक अपचयी क्रिया है, जिसमें ग्लूकोस का ऑक्सीकरण होता है,जिससे CO₂ और ऊर्जा उत्पन्न होती हैं

यह एक भौतिक प्रक्रिया है, जिसमें शरीर ऑक्सीजन का अन्तर्ग्रहण करता है और CO₂का बहिःक्षेपण करता है।


यह क्रिया कोशिकाओं के अन्दर होती है।

यह क्रिया कोशिकाओं के बाहर होती है।

इस क्रिया में एन्जाइमों की आवश्यकता होती हैं

इसमें एन्जाइम्स की आवश्यकता नहीं होती

इस क्रिया में मुख्य श्वसनांग माइटोकॉण्ड्रिया होता है।

इसमें मुख्य श्वसनांग फेफड़े होते हैं।







प्रश्न 3. मनुष्य की श्वसन क्रिया में गैसीय विनिमय तथा गैसीय परिवहन किस प्रकार होता है? स्पष्ट कीजिए।



अथवा मनुष्य में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का विनिमय किस अंग में होता है? उसके कार्य को चित्र के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।


अथवा मानव में साँस लेने की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।


उत्तर – गैसीय विनिमय मनुष्य में कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन का विनिमय फेफड़ों में स्थित संरचना वायु कोष्ठों द्वारा होता है। प्रत्येक वायुकोष या वायुकोष्ठक शल्की उपकला की चपटी पतली कोशिकाओं से बनता है। इनकी कम मोटाई सरलता से गैसीय विनिमय में विशेष योगदान देती है। वायुकोष्ठक या वायुकोषों की बाह्य सतह पर रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है, जो फुफ्फुस धमनी के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है। इन केशिकाओं से शरीर में ऑक्सीजनरहित रुधिर आता है, इसमें CO, की मात्रा अधिक होती है वायुकोष्ठको से CO, बाहर विसरित हो जाती है तथा O, रुधिर केशिकाओं से रुधिर में विसरित हो जाती है। वायुकोष्ठकों की , युक्त रुधिर केशिकाएँ आपस में मिलकर रुधिर वाहिनी का निर्माण करती हैं। ये अपेक्षाकृत मोटी होती हैं तथा फुफ्फुस शिरा में खुलती हैं।






0₂ का परिवहन फेफड़ों की वायु में O, का विसरण दाब अधिक होने के कारण 02 विसरण द्वारा रुधिर कोशिकाओं में पहुँचकर हीमोग्लोबिन से क्रिया करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन नामक अस्थायी यौगिक बनाती है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन ऊतक में पहुँचकर हीमोग्लोबिन तथा O, में विघटित हो जाता है। इस प्रकार ऊतक या कोशिकाओं को O, प्राप्त होती रहती है।


CO₂ का परिवहन कोशिकाओं में भोज्य पदार्थों के जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है। इसी के साथ CO₂ तथा H₂O भी बनते हैं। CO₂ निम्न प्रकार से फेफड़ों तक पहुँचती है


(i) कार्बोनिक अम्ल के रूप में लगभग 5-7% CO₂ घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है। रुधिर प्लाज्मा में



(ii) कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन लगभग 10-23% CO₂ हीमोग्लोबिन से क्रिया करके कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है।


(iii) बाइकार्बोनेट्स के रूप में लगभग 70-85% CO₂ सोडियम तथा पोटैशियम बाइकार्बोनेट बनाती है। श्वसन सतह पर क्लोराइड शिफ्ट के फलस्वरूप CO₂ मुक्त होकर वातावरण में चली जाती है। 





प्रश्न 4. कोशिकीय श्वसन द्वारा मोचित ऊर्जा किस अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त होती है? इस अणु के अनृस्थ सहलग्नता खण्डित होने पर कितनी ऊर्जा मोचित होती है? 


उत्तर – कोशिकीय श्वसन द्वारा मोचित ऊर्जा ATP अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त होती है। इसमें प्रयुक्त अभिक्रियाओं में 2 ATP अणु ऊर्जा उपयोग में आती है। एक अणु ADP से ATP के निर्माण के लिए 12 किलो कैलोरी ऊर्जा आवश्यक होती है, अतः कोशिकीय श्वसन क्रिया में 38 ATP अणुओं में कुल 456 किलो कैलोरी ऊर्जा अनुबन्धित होती है। शेष ऊर्जा (673 किलो कैलोरी) ऊष्मा के रूप में विमुक्त हो जाती है।




प्रश्न 5. हीमोग्लोबिन क्या है? यह कहाँ पाया जाता है? श्वसन क्रिया में इसकी क्या भूमिका है?


अथवा हीमोग्लोबिन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


अथवा हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?



उत्तर – हीमोग्लोबिन यह एक जटिल प्रोटीन है। इसका निर्माण लौहयुक्त वर्णक हीम तथा ग्लोबिन प्रोटीन से होता है। सभी पृष्ठवंशियों में यह लाल रुधिराणुओं में पाया जाता है। केंचुएँ तथा अपृष्ठवंशियों में यह रुधिर प्लाज्मा में घुला रहता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से मिलकर अस्थायी यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाता है। कोशिकाओं तथा ऊतकों में पहुँचकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन विखण्डित होकर ऑक्सीजन को मुक्त कर देता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। अत: हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन श्वसन वर्णक का कार्य करता है, जो ऑक्सीजन के लिए उच्च बन्धुता रखता है। यह श्वसन में सहायता करता है तथा रुधिर में पाए जाने के कारण पूरे शरीर ऑक्सीजन का संचरण इसी के माध्यम से होता है, यदि इसकी अनुपस्थिति रहेगी, तो ऑक्सीजन के परिवहन के बिना हम जीवित नहीं रह पाएँगे।




विस्तृत उत्तरीय प्रश्न      7 अंक




प्रश्न 1. श्वसन की परिभाषा लिखिए। मनुष्य के फेफड़ों की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।


अथवा श्वसन किसे कहते हैं? मनुष्य के श्वसन अंगों का निम्नांकित चित्र बनाकर उनके कार्यों का वर्णन कीजिए।



उत्तर जैविक कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा कार्बनिक भोज्य पदार्थों के जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। कोशिकाओं के इस जैविक प्रक्रम को श्वसन कहते हैं। मनुष्य में श्वसनांग नासिका, नासामार्ग, कण्ठ या स्वरयन्त्र या ग्रसनी, श्वास नलिका एवं फेफड़े (मुख्य श्वसन अंग) होते हैं। 


(i) नासिका एवं नासामार्ग चेहरे पर नासिका, दो बाह्य नासाछिद्रों से बाहर खुलती है। नासिका नासागुहा में खुलती है तथा यह गुहा पीछे घुमावदार, टेढ़े-मेढ़े मार्ग, नासामार्ग में खुलती है। नासामार्ग सीलिया युक्त श्लेष्मक कला से ढका रहता है। इसकी कोशिकाएँ श्लेष्म स्रावित करती हैं। नासामार्ग पीछे ग्रसनी (Pharynx) में खुलता है। यहाँ उपस्थित रोम तथा श्लेष्मा द्वारा वायु का निस्यन्दन होता है। 


(ii) ग्रसनी नासामार्ग से वायु गले में स्थित ग्रसनी में आती है। ग्रसनी में वायुनाल तथा ग्रासनाल दोनों खुलती हैं। वायुनाल के छिद्र को घांटीद्वार (Glottis) कहते हैं। इस पर एक ढक्कन के समान संरचना पाई जाती है। इस ढक्कननुमा संरचना को घांटीढापन (Epiglottis) कहते हैं। यह भोजन करते समय भोजन के कणों को वायुनाल में जाने से रोकता है। 


(iii) वायुनाल यह 10-12 सेमी लम्बी तथा 1.5-2.5 सेमी व्यास की उपास्थिल छल्लेनुमा नली होती है। यह निम्न दो भागों में बँटी होती हैं


(a) कण्ठ या स्वर यन्त्र यह वायुनाल का अगला बक्सेनुमा भाग है, जो उपास्थि की बनी तीन प्रकार की चार प्लेटों से मिलकर बना होता है। इसकी गुहा को कण्ठ कोष कहते हैं। कण्ठ कोष में दो जोड़ी वाक् रज्जु (Vocal cords) होते हैं। इन वाक् रज्जुओं में कम्पन्न से ही ध्वनि उत्पन्न होती है। इस कारण इसे ध्वनि उत्पादक अंग भी कहते हैं। हमारे गले में कण्ठ (Larynx) की उपास्थि ही उभार के रूप में होती है। इसे टेंटुआ (Adam's apple) भी कहते हैं।





(b) श्वासनली यह गर्दन की पूरी लम्बाई में फैली होती है। इसका कुछ भाग वक्ष गुहा में भी पहुँचता है। इसकी दीवार पतली, लचीली तथा 'C' आकार की उपास्थि से निर्मित 16-20 अधूरे छल्लों से बनी होती है। ये छल्ले श्वासनली (Trachea) में वायु न होने पर इसे पिचकने गुहा में आकर दो शाखाओं, श्वसनियों (Bronchi) में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक श्वसनी अपनी तरफ के फेफड़े में प्रवेश करने के पश्चात् अनेक छोटी शाखाओं, श्वसनिकाओं (Bronchioles) में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक श्वसनिका अन्त में फुफ्फुस के वायुकोषों (Alveoli) में समाप्त हो जाती है। इस प्रकार श्वास के समय ली गई वायु नासिका से वायुकोषों तक पहुँचती है। 


(iv) फेफड़े या फुफ्फुस यह प्रमुख श्वसनांग है। यह वक्षगुहा में हृदय के पार्श्व में स्थित कोमल एवं लचीला अंग है। प्रत्येक फेफड़े के चारों ओर दोहरी झिल्लीयुक्त गुहा होती है, जिसे फुफ्फुस गुहा (Pleural cavity) कहते हैं। झिल्लियों को फुफ्फुसावरण कहते हैं एवं इसमें एक लसदार तरल पदार्थ होता है। ये फुफ्फुसावरण व तरल पदार्थ फेफड़ों की रक्षा करते हैं। एक जोड़ी फेफड़े में दायाँ फेफड़ा बाएँ की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है। यह अधूरी खाँच द्वारा तीन पिण्डों में विभक्त रहता है। बायाँ फेफड़ा एक ही अधूरी खाँच द्वारा दो पिण्डों में बँटा रहता है। इन खाँचों के अतिरिक्त फेफड़े की बाहरी सतह सपाट तथा चिकनी होती है। फेफड़े स्पंजी एवं असंख्य वायुकोषों में विभक्त रहते हैं।


प्रत्येक वायुकोष (Alveolus) शल्की उपकला से बना होता है, जिसकी बाहरी सतह पर रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है। यह फुफ्फुस धमनी के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है।


रुधिर केशिकाओं एवं फेफड़ों की गुहा में स्थित वायु में O₂एवं CO₂का विसरण द्वारा आदान-प्रदान होता है।




प्रश्न 2. मनुष्य में श्वास लेने की क्रियाविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।


अथवा मनुष्य के श्वसन अंगों की विशेषताएँ लिखिए। श्वसन और दहन में अन्तर स्पष्ट कीजिए । मनुष्य में श्वासोच्छ्वास की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।


अथवा प्राणियों की श्वसन सतह में क्या विशेषताएँ होनी चाहिए? 


उत्तर – मनुष्य के श्वसन अंग की विशेषताएँ श्वसन अंगों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं


(i) श्वसन सतह में रुधिर केशिकाओं का जाल जितना अधिक फैला होगा, वायु-विनिमय उतना ही सुचारु रूप से होगा।


(ii) श्वसन अंग का पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होना चाहिए।


(iii) श्वसन सतह नम और पतली होनी चाहिए।


(iv) श्वसन अंग तक कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन को लाने व ले जाने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।



प्राणियों की श्वसन सतह की विशेषताएँ


जन्तुओं में श्वसन के प्रकारों एवं श्वसनांगों में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है। कुछ जीवों में त्वचा द्वारा सरलतापूर्वक श्वसन संपन्न हो जाता है, तो कुछ में इस कार्य हेतु जटिल तन्त्र पाया जाता है। जीवों में प्रभावी गैसीय विनिमय हेतु श्वसन सतह में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए


(i) पतली भित्ति


(ii) तीव्र विसरण हेतु नमी


(iii) बड़ा पृष्ठीय क्षेत्रफल


(iv) रुधिर प्रवाह का आधिक्य।



मनुष्य में श्वासोच्छ्वास क्रियाविधि


श्वासोच्छ्वास क्रियाविधि निम्नलिखित दो चरणों में पूर्ण होती हैं


(i) अन्तः श्वसन (Inspiration) इस क्रिया में शुद्ध वायु (O) श्वसनांगों द्वारा फेफड़ों में पहुँचती है। इस प्रक्रिया में डायफ्राम एवं बाह्य अन्तरापर्शुक (Internal intercostal) पेशियाँ संकुचित हो जाती हैं एवं डायफ्राम समतल (Flattened) हो जाता है। निचली पसलियाँ बाहर एवं ऊपर की ओर फैलती हैं तथा छाती फूल जाती है, जिसके फलस्वरूप वक्षगुहा (Thoracic cavity) का आयतन बढ़ जाता है और फेफड़ों में वायु का दाब कम हो जाता है। अन्ततया वायु नासारन्ध्र (Nostrils), कण्ठद्वार (Larynx) तथा श्वासनली (Trachea) में होते हुए फेफड़ों में भर जाती है।






मनुष्य में साँस लेने की क्रिया का प्रदर्शन


(ii) निःश्वसन (Expiration) इस क्रिया में आन्तरिक अन्तरापर्शुक पेशियों तथा डायफ्राम में शिथिलन से ही पसलियाँ, स्टर्नम और डायफ्राम अपनी पूर्व स्थिति में आ जाते हैं, जिससे वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाने से फेफड़ों का आयतन कम हो जाता है। फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और वायु बाहर निकल जाती है।



                 C. परिवहन




मानव में परिवहन


कोशिकाओं तक भोजन तथा O2 को पहुँचाने के लिए, कोशिकाओं में उपापचय के फलस्वरूप बने उत्सर्जी पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक पहुँचाने के लिए एवं हॉर्मोन्स, आदि के वितरण के लिए शरीर में परिसंचरण तन्त्र (Circulatory system) की आवश्यकता होती है। इसके अन्तर्गत रुधिर, लसिका, हृदय एवं वाहिनियाँ आती हैं। जिसमें रुधिर एवं लसिका प्रमुख तरल ऊतक होते हैं। मानव का परिसंचरण तन्त्र निम्न दो भागों में बँटा होता है


1. रुधिर परिसंचरण तन्त्र


मानव में यह तन्त्र रुधिर, हृदय तथा रुधिर वाहिनियों से मिलकर बना होता है। रुधिर परिसंचरण की खोज विलियम हार्वे ने की थी।


(i) रुधिर


यह एक संयोजी ऊतक है, जो प्लाज्मा (55%), रुधिर कणिकाओं (RBC, WBC, प्लेटलेट्स), प्रतिस्कन्दकों (हिपेरिन), अकार्बनिक लवणों (पोटैशियम, कैल्शियम क्लोराइड), वर्णकों (हीमोग्लोबिन), आदि का जटिल सम्मिश्रण होता है। रुधिर ऑक्सीजन व पोषक पदार्थों के परिवहन तथा रुधिर का थक्का जमाने में आवश्यक होता है। लाल रुधिराणुओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन के कारण ही रुधिर का रंग लाल होता है। मानव नर के एक घन मिमी रुधिर में 50-55 लाख घन मिली लाल रुधिर कणिकाएँ पाई जाती हैं। लाल रुधिर कणिकाओं की सतह पर प्रतिजन व प्लाज्मा में प्रतिरक्षी पाए जाते हैं।


(ii) हृदय


यह दोहरी झिल्ली से बनी थैलीनुमा संरचना में सुरक्षित रहता है, जिसे हृदयावरण (Pericardium) कहते हैं। हृदयावरण की दोनों झिल्लियों के मध्य हृदयावरणीय तरल पदार्थ पाया जाता है, जो हृदय की बाह्य आघातों से सुरक्षा करता है। मनुष्य के हृदय में चार वेश्म होते हैं अर्थात् दो अलिन्द व दो निलय। बायाँ निलय सबसे बड़ा वेश्म होता है।


             बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक




प्रश्न 1. मनुष्य के हृदय में कोष्ठों (वेश्मों) की संख्या होती है 


(a) एक


(b) दो


(C) तीन


(d) चार


उत्तर (d) मानव हृदय में चार वेश्म; दो अलिन्द और दो निलय होते हैं।


प्रश्न 2. पल्मोनरी शिरा खुलती है या रुधिर लाती है



 (a) दाएँ अलिन्द में।      (c) बाएँ निलय में


(b) बाएँ अलिन्द में।         (d) दाएँ निलय में


उत्तर (b) दो पतली फुफ्फुसीय अथवा पल्मोनरी शिराएँ बाएँ अलिन्द में खुलती हैं। ये फेफड़ों से शुद्ध रुधिर लाती हैं।


 प्रश्न 3. फुफ्फुस धमनियों से अशुद्ध रुधिर चला जाता है



(a) हृदय में 


(b) फेफड़ों में


(c) शरीर की अग्र एवं पश्च महाधमनियों में


(d) दाएँ अलिन्द में


उत्तर (b) फुफ्फुसीय धमनियाँ हृदय से अशुद्ध रुधिर को शुद्धिकरण अथवा ऑक्सीजनीकरण के लिए फेफड़ों तक ले जाती हैं।


प्रश्न 4. फेफड़ों में शुद्ध रुधिर आता है। 


(a) बाएँ अलिन्द से


(b) दाएँ अलिन्द से 


(C) बाएँ निलय से


(d) दाएँ निलय से


उत्तर (c) फेफड़ों में बाएँ निलय से शुद्ध रुधिर आता है।


प्रश्न 5. शुद्ध रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती है



(a) शिराएँ


(b) महाशिरा 


(C) दायाँ निलय


(d) महाधमनी



उत्तर (d) महाधमनी शुद्ध रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती है और साथ ही शरीर की कोशिकाओं में पोषक पदार्थ, ऑक्सीजन और हॉर्मोन भी पहुँचाती है।


प्रश्न 6. दाएँ निलय से अशुद्ध रुधिर किस अंग में जाता है? 


(a) फेफड़ों में 


(b) आहारनाल में


(C) हृदय में


(d) त्वचा में


उत्तर (a) दाएँ निलय से अशुद्ध रुधिर फुफ्फुसीय धमनी द्वारा फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए जाता है।


प्रश्न 7. पादपों में जाइलम का कार्य होता है।



(a) उत्सर्जी वर्ज्य पदार्थों का संवहन


(b) जल का संवहन


(C) भोजन का संवहन


(d) अमीनो अम्लों का संवहन


उत्तर (b) पादपों में जल का संवहन जाइलम द्वारा होता है।


प्रश्न 8. जल तथा खनिज लवणों को कौन-सा ऊतक पादप के विभिन्न भागों में पहुँचाता है? 


(a) मृदूतक


(b) जाइलम


(c) फ्लोएम


(d) कैम्बियम



उत्तर (b) जाइलम पादपों में जल तथा खनिज लवणों को जड़ से पादप के विभिन्न भागों में पहुंचाता है।


प्रश्न 9. फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण होता है 



(a) सुक्रोस के रूप में


(b) प्रोटीन के रूप में


(c) हॉर्मोन्स के रूप में


(d) वसा के रूप में


उत्तर (a) फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण सुक्रोस शर्करा के रूप में होता है।




प्रश्न 10. गर्मियों के दिनों में किस कारण दोपहर में पादप मुरझा जाते हैं?


 (a) वाष्पोत्सर्जन की कमी के कारण


 (b) वाष्पोत्सर्जन की अधिकता के कारण


 (c) प्रकाश-संश्लेषण की कमी के कारण


 (d) प्रकाश-संश्लेषण की अधिकता के कारण


 उत्तर (b) वाष्पोत्सर्जन की अधिकता के कारण पादप दोपहर में मुरझा जाते हैं। 



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न   2 अंक



प्रश्न 1. दो तरल ऊतकों के नाम लिखिए।


उत्तर रुधिर तथा लसिका प्रमुख तरल ऊतक हैं। रुधिर में लाल रुधिर कणिकाएँ पाई जाती है, जबकि लसिका में ये अनुपस्थित होती हैं। रुधिर में श्वेत रुधिर कणिकाएँ कम, जबकि लसिका में अधिक होती हैं।



प्रश्न 2. मानव नर के एक घन मिमी रुधिर में कितनी लाल रुधिर कणिकाएँ होती हैं?




उत्तर मानव नर के एक घन मिमी रुधिर में 50-55 लाख घन मिली लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs) पाई जाती है। RBCs में केन्द्रक, गॉल्जीकाय, माइटोकॉण्ड्रिया तथा सेन्ट्रियोल परिपक्वन के समय विलुप्त हो जाते हैं। 


प्रश्न 3. हीमोग्लोबिन कहाँ होता है? इसका मुख्य कार्य लिखिए। 


उत्तर रुधिर का रंग लाल रुधिराणुओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन के कारण लाल होता है। हीमोग्लोबिन एक लौह संयुक्त प्रोटीन है, जिसमें O₂ तथा CO₂ के साथ जुड़ने की क्षमता होती है। हीमोग्लोबिन O₂कणों को वायु कोषों से प्राप्त कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन में परिवर्तित हो जाता है और ऑक्सीजन का शरीर के सभी अंगों तक परिवहन करता है।




प्रश्न 4. रुधिर में प्रतिजन तथा प्रतिरक्षी कहाँ उपस्थित होते हैं? 


उत्तर रुधिर में प्रतिजन लाल रुधिराणुओं (RBC) की सतह पर तथा प्रतिरक्षी प्लाज्मा में उपस्थित होते हैं। प्रतिजन विशेष ग्लाइकोप्रोटीन्स होते हैं। RBCs की सतह पर दो प्रकार के प्रतिजन-A व B एवं दो ही प्रकार के प्रतिरक्षी a व b पाए जाते हैं।


प्रश्न 5. मनुष्य के हृदय में कितने वेश्म होते हैं? इनमें सबसे बड़ा वेश्म कौन-सा है? 


उत्तर मानव हृदय एक गहरे लाल रंग की तिकोनी मांसल संरचना है। इसमें चार वेश्म (Chamber) होते हैं। इसके आगे के चौड़े भाग को अलिन्द (Auricle) तथा पीछे के संकरे भाग को निलय (Ventricle) कहते हैं। अलिन्द व निलय एक पट द्वारा दाएँ व बाएँ अलिन्द व निलय में बँटे होते हैं। बायाँ निलय सबसे बड़ा वेश्म होता है।



प्रश्न 6. मनुष्य के हृदय का दायाँ एवं बायाँ भागों में बँटवारे से होने वाले लाभ का वर्णन कीजिए।



उत्तर हृदय का दायाँ व बाँया बँटवारा ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकने में लाभदायक होता है। इस तरह का विभाजन शरीर को उच्च दक्षता पूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति करता है। मनुष्य को उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, इसलिए दोहरा परिसंचरण बहुत लाभदायक है।


प्रश्न 7. रुधिर वाहिनियाँ किन्हें कहते हैं? इनके प्रकार लिखिए।



उत्तर रुधिर हृदय के द्वारा पम्प होता हुआ विस्तृत रूप से फैली मोटी पतली रुधिर वाहिनियों में निरन्तर बहता रहता है। ये रुधिर वाहिनियाँ तीन प्रकार की होती है


1. धमनी


2. शिराएँ


3. केशिकाएँ



प्रश्न 8. फुफ्फुसीय धमनी में किस प्रकार का रुधिर पाया जाता है और क्यों ?


 उत्तर फुफ्फुसीय धमनी में अशुद्ध रुधिर पाया जाता है। यह इसे शुद्ध करने के लिए फेफड़ों में पहुँचाती है।



फुफ्फुसीय धमनी के अलावा सभी धमनियों में शुद्ध (O₂) रुधिर बहता है, जिसके कारण ये गुलाबी रंग की प्रतीत होती है।



प्रश्न 9. धमनी किसे कहते हैं? पल्मोनरी धमनी में किस प्रकार का रुधिर पाया जाता है?


उत्तर धमनी परिसंचरण तन्त्र की वह वाहिनिकाएँ होती हैं, जो रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाती हैं। पल्मोनरी धमनी में अनॉक्सीकृत रुधिर पाया जाता है।


प्रश्न 10. धमनी तथा शिरा को परिभाषित करें।


उत्तर 


धमनी वह रुधिर वाहिनियाँ, जो रुधिर का परिवहन हृदय से सम्पूर्ण शरीर के अंगों या ऊतकों तक करती है, धमनी कहलाती हैं। यह गुलाबी रंग की होती है। 


शिरा वह रुधिर वाहिनियाँ, जो रुधिर को सम्पूर्ण शरीर से एकत्रित करके हृदय तक लाती है, शिरा कहलाती हैं। यह चमकीली नीली या बैंगनी होती है।



प्रश्न 11. धमनी, शिरा व केशिका में पारस्परिक सम्बन्ध का नामांकित चित्र बनाइए।






प्रश्न 12. रुधिर दाब किसे कहते हैं?


उत्तर वह दबाव, जिसके कारण रुधिर धमनियों में प्रवाहित होता है, रुधिर दाब या रक्त चाप कहलाता है। ये दो प्रकार का, प्राकुंचन रुधिर दाब (120mmHg) तथा अनुशिथिलन रुधिर दाब (80mmHg) होता है। रुधिर दाब को स्फिग्मोमैनोमीटर यन्त्र द्वारा मापा जाता है।



प्रश्न 13. परासरण किसे कहते हैं?


उत्तर जब दो विभिन्न सान्द्रता वाले विलयनों को एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा अलग कर दिया जाता है, तो कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर जल अथवा विलायक के अणुओं की गति करने की क्रिया को परासरण कहते हैं।




प्रश्न 14. जाइलम तथा फ्लोएम में अन्तर स्पष्ट कीजिए। अथवा जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के परिवहन में क्या अन्तर है?




जाइलम तथा फ्लोएम में अन्तर



जाइलम (दारु)

फ्लोएम (पोषवाह)

दारु एक जटिल ऊतक, है, जो वाहिनिकाओं, वाहिकाओं, दारु मृदूतक और दारु रेशों से मिलकर बना होता है।

यह चालनी नलिकाओं, सहकोशिकाओं, पोषवाह मृदूतक और पोषवाह रेशों से मिलकर बना होता है।

वाहिकाओं का निर्माण परस्पर उपस्थित कोशिकाओं की भित्ति के पूर्ण अथवा आंशिक विघटन से होता है।

चालनी नलिकाएँ आपस में चालनी पट्टिकाओं द्वारा जुड़ी रहती हैं।

दारु मृदूतक कोशिकाएँ जीवित होती हैं।

चालनी नलिकाएँ और सहकोशिकाएँ जीवित होती हैं।


दारु का मुख्य कार्य जड़ों द्वारा अवशोषित जल और खनिज लवणों को पादप के अन्य भागों में पहुँचाना होता है।

इसका मुख्य कार्य पत्तियों द्वारा निर्मित भोज्य पदार्थों को पादप के अन्य भागों में पहुंचना होता है







प्रश्न 15. पादपों में जल एवं खनिज तथा खाद्य उत्पादों के संवहन हेतु वाहिकाओं का वर्णन कीजिए व उनके नाम बताइए।


उत्तर पादपों में जल व खनिज लवणों का संवहन जाइलम वाहिकाओं द्वारा होता है। भोजन का संवहन फ्लोएम की चालनी नलिकाओं द्वारा होता है। पत्तियों के द्वारा बना भोजन इन नलिकाओं द्वारा पादपों के विभिन्न भागों में पहुँचता है। 


प्रश्न 16. मूलदाब की परिभाषा दीजिए।


उत्तर मूलदाब वह दाब है, जो जड़ों की वल्कुट कोशिकाओं द्वारा पूर्ण स्फीत अवस्था में उत्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप कोशिकाओं में एकत्रित जल न केवल जाइलम में पहुँचता है, बल्कि तने में भी कुछ ऊँचाई तक चढ़ता है।


   लघु उत्तरीय प्रश्न   4 अंक



प्रश्न 1. बन्द और खुले रुधिर परिसंचरण से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।



उत्तर – रुधिर परिसंचरण दो प्रकार का होता है


(i) बन्द रुधिर परिसंचरण इसमें रुधिर, रुधिर वाहिनियों में बहता है। रुधिर वाहिनियों के अन्तर्गत धमनियाँ, शिराएँ और रुधिर केशिकाएँ आती हैं। रुधिर केशिकाओं द्वारा पदार्थों का आदान-प्रदान होता है; उदाहरण केंचुएँ व मानव में स्पष्ट रुधिर वाहिनियों का बन्द परिसंचरण तन्त्र होता है।


(ii) खुला रुधिर परिसंचरण इसमें रुधिर, रुधिर पात्रों या गुहा में भरा होता है अर्थात् वाहिनियों का अभाव होता है। यहाँ अंग रुधिर में डूबे रहते हैं; उदाहरण आर्थ्रोपोडा के सदस्यों (कॉकरोच, मकड़ी, आदि) में।


प्रश्न 2. मनुष्य में दोहरे परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?


अथवा मनुष्य में दोहरे रुधिर परिसंचरण को आरेखित चित्र द्वारा दर्शाइए। 


अथवा मानव हृदय में रुधिर परिसंचरण को 'दोहरा परिसंचरण' क्यों कहते हैं? 


उत्तर मनुष्य में प्रत्येक चक्र में दो बार रुधिर हृदय में जाता है, इसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं। हृदय कई कोष्ठों में बँटा होता है। ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर फुफ्फुस से हृदय में बाईं ओर स्थित कोष्ठ-बायाँ अलिन्द में आता है। इस रुधिर को एकत्रित करते समय बायाँ अलिन्द शिथिल रहता है। जब अगला, कोष्ठ बायाँ निलय

फैलता है, तब यह संकुचित होता है, जिससे रुधिर इसमें स्थानांतरित होता है। इसके पश्चात् जब बायाँ निलय संकुचित होता है, तब रुधिर शरीर में पम्पित हो जाता है। ऊपर वाला दायाँ कोष्ठ, दायाँ अलिन्द जब फैलता है, तो शरीर से विऑक्सीजनित रुधिर इसमें आ जाता है। जैसे ही दायाँ अलिन्द संकुचित होता है, नीचे वाला संगत कोष्ठ, दायाँ निलय फैल जाता है। यह रुधिर को दाएँ निलय में स्थानांतरित कर देता है, जो रुधिर को ऑक्सीजनीकरण हेतु विभाजन फुफ्फुस में पंप कर देता है।


मनुष्य में दोहरे परिसंचरण की आवश्यकता हृदय का दायाँ व बायाँ बँटवारा ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकने में लाभदायक होता है। इस तरह का विभाजन शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति कराता है। मनुष्य को उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, इसलिए दोहरा परिसंचरण बहुत लाभदायक है।


मनुष्य में दोहरे रुधिर परिसंचरण तन्त्र को निम्न चित्र द्वारा दर्शाया गया है




प्रश्न 3. रुधिर के चार कार्य बताइए।


 उत्तर रुधिर के कार्य निम्नलिखित हैं



(i) गैसों का परिवहन रुधिर गैसों (O₂तथा CO₂) का परिवहन करता है। रुधिर की लाल रुधिर कणिकाएँ हीमोग्लोबिन तथा ऑक्सीजन से क्रिया करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन का निर्माण करती हैं। यह ऊतकों में पहुँचकर ऑक्सीजन और हीमोग्लोबिन में टूट जाता है। ऑक्सीजन ऊतकों द्वारा ग्रहण कर ली जाती है तथा CO₂का परिवहन हीमोग्लोबिन एवं कार्बोनेट लवण करते हैं।


(ii) पोषक पदार्थों का परिवहन आँत में अवशोषित भोज्य पदार्थ रुधिर प्लाज्मा द्वारा ऊतकों में पहुँचाए जाते हैं।


(iii) उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन शरीर में उपापचयी क्रियाओं के कारण यूरिया, आदि उत्सर्जी पदार्थ बनते रहते हैं। ये रुधिर द्वारा पहले यकृत में फिर यकृत से वृक्कों में पहुँचते हैं।


(iv) शरीर ताप का नियन्त्रण और नियमन रुधिर शरीर के सभी भागों में ताप को समान बनाए रखता है तथा हॉमोनों का परिवहन करता है।



प्रश्न 4. मानव रुधिर की संरचना एवं कार्य का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।


अथवा रुधिर के चार कार्यों को लिखिए।



उत्तर मानव रुधिर एक तरल संयोजी ऊतक है। यह जल से थोड़ा गाढ़ा एवं हल्का क्षारीय (pH 7.3-7.4) होता है।




 रुधिर के निम्न दो मुख्य घटक हैं।


(i) प्लाज्मा (Plasma) यह रुधिर का लगभग 55% भाग बनाता है, जिसमें 90% जल तथा 10% में जटिल कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। इसे रुधिर का निर्जीव भाग कहते हैं, क्योंकि इसमें रुधिर कणिकाओं का अभाव होता है। प्लाज्मा के कार्बनिक पदार्थों में प्रतिरक्षी, ग्लूकोस, अमीनो अम्ल, वसीय अम्ल, हॉमोन, एन्जाइम, विटामिन तथा प्रोटीन (जैसे-एल्ब्युमिन, ग्लोब्यूलिन, प्रोथ्रॉम्बिन, फाइब्रिनोजन, हिपैरिन) आदि पदार्थ आते हैं।


हिपैरिन (Heparin) मानव रुधिर में प्रतिस्कन्दक (Anticoagulant) की भूमिका निभाता है। यह रुधिर वाहिनियों में रुधिर के स्कन्दन (Clotting) को रोकता है।


इसके विपरीत प्रोथ्रॉम्बिन (Prothrombin) व फाइब्रिनोजन (Fibrinogen) प्रोटीन चोट लगने पर रुधिर के स्कन्दन में मदद करते हैं। अकार्बनिक पदार्थों में पोटैशियम, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम के फॉस्फेट, बाइकार्बोनेट, सल्फेट, क्लोराइड, आदि सम्मिलित होते हैं।


(ii) रुधिर कणिकाएँ या रुधिराणु (Blood corpuscles) ये रुधिर का लगभग 45% भाग बनाते हैं। रुधिर में रुधिर कणिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं 


(a) लाल रुधिर कणिकाएँ


 (b) श्वेत रुधिर कणिकाएँ 


(c) रुधिर प्लेटलेट्स। 



प्रश्न 5. रुधिर तथा लसिका में दो-दो अन्तर बताइए। अथवा रुधिर तथा लसिका में भिन्नता बताइए। 


उत्तर रुधिर तथा लसिका में अन्तर निम्नलिखित हैं



रुधिर


लसिका

रुधिर में लाल रुधिराणु पाए जाते हैं।इसलिए रुधिर का रंग लाल होता है।

लसिका में लाल रुधिराणु नहीं पाए जाते हैं। इसलिए लसिका का रंग श्वेत होता है।

इसमें विलेय प्लाज्मा प्रोटीन अधिक होती है तथा न्यूट्रोफिल्स की संख्या भी अधिक होती है।

इसमे अविलेय प्लाज्मा प्रोटीन अधिक होती है तथा लिम्फोसाइट्स की संख्या भी अधिक होती है।

ऑक्सीजन तथा पोषक पदार्थ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।

उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है।


WBC की संख्या कम होती है।

WBC की संख्या अधिक होती है।





[4]


प्रश्न 6. हृदय क्या है? एक लेख द्वारा स्पष्ट कीजिए कि यह एक पम्प के रूप में कार्य करता है।


(2019)


उत्तर 

हृदय – यह मानव शरीर का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है, जो विशेष प्रकार की हृदयी पेशियों के द्वारा बना होता है, जो जीवनपर्यन्त रुधिर परिसंचरण का कार्य करता है।


मानव हृदय की क्रियाविधि हृदय पम्प की भाँति कार्य करता है। यह रुधिर को ग्रहण कर दबाव के साथ उसे अंगों की ओर भेजता है। यह नियमित, सतत् एवं जीवनपर्यन्त काम करता रहता है। हृदय की पेशियों के सिकुड़ने की अवस्था को प्रकुंचन (Systol) एवं फैलने को अनुशिथिलन (Diastole) कहते हैं।


अलिन्द के बाद निलय सिकुड़ते हैं तथा निलय के बाद अलिन्द, यह प्रक्रिया लगातार अनवरत् चलती रहती है। इस प्रकार फैलने सिकुड़ने की क्रिया से एक हृदय स्पन्दन बनता है अर्थात् प्रत्येक हृदय स्पन्दन में हद पेशियों को एक बार प्रकुंचन तथा एक बार अनुशिथिलन अवस्था मे आना होता है।


मानव का हृदय एक मिनट में 70-72 बार स्पन्दित होता है, जिसे हृदय स्पन्दन की दर कहते हैं। शरीर के सभी अंगों से अनॉक्सीकृत या अशुद्ध रुधिर ऊपरी एवं निम्न महाशिराओं द्वारा दाहिने अलिन्द में आता है। इसी तरह फेफड़ों द्वारा ऑक्सीकृत या शुद्ध रुधिर बाएँ अलिन्द में आता है। दोनों अलिन्दों के रुधिर से भरने के बाद इनमें एक साथ संकुचन होता है, जिससे इनका रुधिर अलिन्द-निलय छिद्रों द्वारा अपनी ओर के निलयों में आ जाता है।


निलयों में रुधिर आने पर दोनों निलयों में संकुचन होता है। अत: दाहिने निलय का अनॉक्सीकृत या अशुद्ध रुधिर पल्मोनरी महाधमनी द्वारा फेफड़ों में जाता है, जबकि बाएँ निलय का ऑक्सीकृत रुधिर कैरोटिको-सिस्टेमिक महाधमनी द्वारा सम्पूर्ण शरीर में पहुँचता है। यही महाधमनी कशेरुक दण्ड के नीचे पृष्ठ महाधमनी बनाती है। निलयों के संकुचन के समाप्त होने पर अलिन्दों में पुन: संकुचन प्रारम्भ हो जाता है। रुधिर का यह परिसंचरण दोहरा परिसंचरण कहलाता है।


प्रश्न 7. मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।


अथवा हृदय की खड़ी काट का नामांकित चित्र बनाइए।




प्रश्न 8. धमनी एवं शिरा में अन्तर लिखिए। 


उत्तर धमनी एवं शिरा में अन्तर निम्नलिखित हैं





धमनी

शिरा

ये हृदय से रुधिर को अंगों की ओर ले जाती है।

ये शरीर के विभिन्न अंगों से रुधिर को हृदय की ओर लाती है।


धमनियों में शुद्ध रुधिर प्रवाहित होता है (पल्मोनरी धमनी को छोड़कर)।

शिराओं में अशुद्ध रुधिर प्रवाहित होता है। (पल्मोनरी शिरा को छोड़कर)।


धमनियों में रुधिर अत्यधिक दबाव के साथ बहता है।

शिराओं में रुधिर बहुत कम दबाव के साथ बहता है।


धमनियों की भित्ति मोटी व लचीली होती है व इनमें कपाट नहीं पाए जाते हैं।

शिराओं की भित्ति पतली और कम लचीली होती है व इनमें कपाट पाए जाते हैं।





प्रश्न 10. विसरण तथा परासरण में क्या अन्तर है?



उत्तर – विसरण तथा परासरण में अन्तर निम्न प्रकार से हैं



विसरण

परासरण

विसरण क्रिया ठोस द्रव एवं गैस सभी में हो सकती है।


यह क्रिया केवल द्रव और उसमें घुले पदार्थों में ही होती है।

विसरण करने वाले दो पदार्थों के बीच किसी प्रकार की कला की आवश्यकता नहीं होती है।

परासरण के लिए दोनों द्रव्यों के मध्य अर्द्धपारगम्य कला का होना आवश्यक है।

विसरण सभी दिशाओं में होने वाली क्रिया है।

यह निश्चित दिशाओं में होने वाली क्रिया है।


इस क्रिया में विसरण दाब उत्पन्न होता है जिसके कारण अणु गति करते हैं।

इस क्रिया में परासरण दाब उत्पन्न होता है, जो घोल की सान्द्रता पर निर्भर करता है।




प्रश्न 11. विसरण क्रिया तथा रसारोहण को समझाइए।


अथवा रसारोहण पर टिप्पणी लिखिए। 


उत्तर विसरण क्रिया – किसी पदार्थ के सूक्ष्मकणों के अपने अधिक सान्द्रता वाले क्षेत्र से कम सान्द्रता वाले क्षेत्र की ओर गमन को विसरण कहते हैं।


विसरण की क्रिया का कारण, पदार्थ के अणुओं में निरन्तर अनियमित गति का होते रहना है। गैस अथवा द्रव के अणुओं के बीच आकर्षण बल कम होने के कारण अणुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की पर्याप्त स्वतन्त्रता रहती हैं। इसलिए विसरण की क्रिया मुख्यतया द्रवों और गैसों में होती है।



रसारोहण – पादपों की जड़ों द्वारा अवशोषित जल और उसमें उपस्थित लवणों का पादप में ऊपर की ओर चढ़ने की क्रिया को रसारोहण कहते हैं। रसारोहण के माध्यम से जल और लवण पादप के विभिन्न भागों तक पहुँच जाते हैं। इस जल को गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ऊपर चढ़ने हेतु बल की आवश्यकता होती है। यह बल जल के अपने संसंजक बल और आसंजक बल के बीच आकर्षण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। दोनों बल मिलकर जल के अणुओं को वाहिकाओं की संकरी नलिकाओं से होकर ऊपर को खींचते हैं, जो केशिकीय उन्नयन कहलाता है।



प्रश्न 12. वाष्पोत्सर्जन की परिभाषा लिखिए तथा उसको प्रभावित करने वाले केवल चार कारकों का उल्लेख कीजिए


अथवा वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? इस क्रिया को प्रभावित करने वाले चार कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 


उत्तर – वाष्पोत्सर्जन पादपों के वायवीय भागों से वाष्प के रूप में होने वाली जलहानि को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारक निम्न हैं


(i) वायुमण्डलीय आर्द्रता वायु की आर्द्रता बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है और आर्द्रता घटने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।


(ii) वायु की गति इसकी गति, जितनी अधिक होगी वाष्पोत्सर्जन की दर भी उतनी अधिक होगी, लेकिन तेज हवा चलने पर पर्णरन्ध्र बन्द हो जाते हैं और वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।


(iii) तापमान वायुमण्डलीय ताप में वृद्धि होने के कारण वायु की आर्द्रता कम हो जाती है। वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। तापमान कम होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।


(iv) प्रकाश तीव्रता प्रकाश की तीव्रता में वृद्धि के साथ तापमान में वृद्धि और वायुमण्डलीय आर्द्रता कम हो जाती है, जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाता है।


प्रश्न 13. वाष्पोत्सर्जन के चार प्रमुख महत्त्व बताइए।


अथवा वाष्पोत्सर्जन को परिभाषित कीजिए। इसके महत्त्व पर टिप्पणी कीजिए।


अथवा पौधों के लिए वाष्पोत्सर्जन क्यों महत्वपूर्ण है? 


उत्तर 


वाष्पोत्सर्जन का महत्त्व


(i) जड़ों द्वारा अत्यधिक मात्रा में अवशोषित जल इस क्रिया के द्वारा वातावरण में वाष्पित हो जाता है। जिससे जल चक्र बना रहता है।


(ii) वाष्पोत्सर्जन के कारण एक प्रकार का चूषक बल अथवा वाष्पोत्सर्जन खिंचाव उत्पन्न हो जाता है, जो रसारोहण और जल के मृदा में अवशोषण में सहायक होता है।


(iii) वाष्पोत्सर्जन द्वारा पादप का ताप सामान्य बना रहता है।


(iv) अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण फलों में शर्करा की सान्द्रता बढ़ जाती है, जिससे वह अधिक मीठे हो जाते हैं।



प्रश्न 14. वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? प्रयोग द्वारा वाष्पोत्सर्जन क्रिया की विवेचना कीजिए।


अथवा वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? इसके महत्व को चित्र की सहायता से समझाइए।



उत्तर 


प्रयोग एक गमले में लगे स्वस्थ पादप को, जिसमें पत्तियाँ अधिक हों, अच्छी तरह पानी से सींच लेते हैं। इसकी मिट्टी और गमले को रबड़ अथवा पॉलिथीन की चादर से पूरी तरह ढक देते हैं या गमले को काँच की प्लेट पर रखकर बेलजार से ढक देते हैं।




बेलजार के आधार पर ग्रीस लगाकर उपकरण को पूर्णतया वायुरुद्ध कर देते हैं। उपकरण को धूप में रख देते हैं। कुछ समय के बाद बेलजार की भीतरी सतह पर जल की छोटी-छोटी बूँदें दिखाई देने लगती हैं। इस प्रयोग से सिद्ध होता है कि पादप के वायवीय अंगों से जलवाष्प निकलती है, जो संघनित होकर जल की बूँदों के रूप में एकत्र हो जाती है। इससे स्पष्ट है कि पादपों में वाष्पोत्सर्जन होता है।



विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 7 अंक




प्रश्न 1. रुधिर की संरचना तथा कार्य का वर्णन कीजिए


अथवा रुधिर कोशिकाओं के नाम तथा उनके प्रमुख कार्य लिखिए।



उत्तर 


मानव में रुधिर कणिकाएँ निम्नलिखित तीन प्रकार के होती हैं


(i) लाल रुधिर कणिकाएँ (Red Blood Corpuscles or RBCs) ये लाल रंग की केन्द्रकरहित तथा उभयावतल (Biconcave) कणिकाएँ होती हैं। इनका लाल रंग इनमें उपस्थित हीमोग्लोबिन नामक श्वसन वर्णक (Respiratory pigment) के कारण होता है। ये ऑक्सीजन के परिवहन का कार्य करती हैं।


(ii) श्वेत रुधिर कणिकाएँ या ल्यूकोसाइट्स (White Blood Corpuscles or WBCs) ये लाल रुधिर कणिकाओं से बड़ी, केन्द्रकयुक्त, अमीबाभ (Amoeboid) तथा रंगहीन कणिकाएँ होती हैं। श्वेत रुधिराणु दो प्रकार के होते हैं


(a) कणिकामय श्वेत रुधिराणु (Granulocytes) इनका कोशिकाद्रव्य कणिकामय तथा केन्द्रक पालियुक्त होता है। ये असममित आकृति के होते हैं। अभिरंजन गुणधर्मो (Staining characteristics) के आधार पर


इन्हें तीन भागों में बाँटा जा सकता है



एसिडोफिल्स या इओसिनोफिल्स (Acidophils or Eosinophils) रोगों के संक्रमण के समय इनकी संख्या बढ़ जाती है। ये शरीर को प्रतिरक्षा प्रदान करने में सहायक होती हैं तथा एलर्जी व अतिसंवेदनशीलता में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं।


बैसोफिल्स (Basophils) इनका केन्द्रक 2-3 पालियों में विभाजित तथा 'S' आकृति का दिखाई देता है। ये हिपैरिन, हिस्टैमिन एवं सिरोटोनिन नामक पदार्थों का स्रावण करती हैं।


न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) श्वेत रुधिर कणिकाओं में इनकी संख्या सबसे अधिक (60-70%) होती है। इनका केन्द्रक 3-5 पालियों में विभाजित रहता है। ये भक्षकाणु (Phagocytosis) क्रिया में सबसे अधिक सक्रिय होती हैं।


(b) कणिकारहित श्वेत रुधिराणु (Agranulocytes) इन श्वेत रुधिर कणिकाओं के कोशिकाद्रव्य में कणिकाएँ नहीं पाई जाती हैं।


ये दो प्रकार की होती हैं


लिम्फोसाइट्स या लसिकाणु (Lymphocytes) इनका कार्य प्रतिरक्षी (Antibodies) का निर्माण करना तथा शरीर की सुरक्षा करना होता है।


मोनोसाइट्स (Monocytes) ऊतक द्रव्य में जाकर ये वृहद् भक्षकाणु (Macrophages) में परिवर्तित हो जाती हैं। इनका कार्य भक्षकाणु क्रिया द्वारा जीवाणुओं का भक्षण करना होता है।


(iii) रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रॉम्बोसाइट्स (Blood Platelet or Thrombocytes) ये केवल स्तनधारियों के रुधिर में पाई जाती हैं। ये केन्द्रकरहित, गोल या अण्डाकार होती है। ये चोट लगने पर रुधिर का थक्का जमने की क्रिया में सहायक होती है।



प्रश्न 2. मनुष्य में आन्तरिक परिवहन किस प्रकार होता है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।



उत्तर मनुष्य में आन्तरिक परिवहन दो प्रकार से होता है


1. रुधिर परिसंचरण


2. लसिका परिसंचरण


1. रुधिर परिसंचरण तन्त्र रुधिर सदैव निश्चित वाहिनियों में बहता है तथा शरीर के ऊतकों के साथ सीधे सम्पर्क में कभी नहीं आता है। शारीरिक ऊतकों में रुधिर पहुँचाने का यह सबसे उपयुक्त तरीका है। इसमें रुधिर हृदय, धमनियों और शिराओं में बहता है।



2. लसिका परिसंचरण तन्त्र मनुष्य में रुधिर परिसंचरण तन्त्र के अतिरिक्त एक अन्य तरल परिसंचरण तन्त्र भी पाया जाता है, जिसे लसिका परिसंचरण तन्त्र कहते हैं। यह तन्त्र लसिका वाहिनियों (Lymph vessels) द्वारा सम्पूर्ण शरीर में फैला होता है। लसिका परिसंचरण तन्त्र निम्न अंगों से मिलकर बना होता है।


(i) लसिका केशिकाएँ (Lymph capillaries) लसिका केशिकाएँ शरीर के विभिन्न अंगों में स्थित महीन नलिकाएँ हैं। आँत के रसांकुर (Villi) में स्थित इनकी अन्तिम शाखाओं को आक्षीर वाहिनियाँ (Lacteals) कहते हैं।


(ii) लसिका वाहिनियाँ (Lymph vessels) लसिका केशिकाएँ परस्पर मिलकर लसिका वाहिनियों का निर्माण करती हैं। लसिका वाहिनियों के अन्दर लसिका नामक द्रव्य भरा होता है, जो रुधिर प्लाज्मा का ही अंश होता है। बाएँ अग्रपाद, दोनों पश्चपादों, सिर तथा ग्रीवा के बाएँ भागों, आहारनाल, वक्ष एवं उदर गुहा के अन्य भागों की लसिका वाहिनियाँ, शरीर की देहभित्ति के नीचे स्थित एक बड़ी बाईं वक्षीय लसिका वाहिनी (Left thoracic lymph duct) में खुलती है तथा यह वाहिनी उदर गुहा में उपस्थित सिर्स्टना काइली (Cisterna chyli) नामक एक बड़ी थैली से जुड़ी रहती है। आगे यह बाईं अधोक्षक शिरा (Left subclavian vein) में खुलती है।


इसी प्रकार दाएँ हाथ तथा सिर, ग्रीवा एवं वक्ष के दाएँ भागों की लसिका वाहिनियाँ एक बड़ी दाईं वक्षीय लसिका वाहिनी (Right thoracic lymph duct) में खुलती हैं, जो बाईं से छोटी होती है और दाईं अधोक्षक शिरा (Right subclavian vein) में खुलती है।


(iii) लसिका गाँठें (Lymph nodules) कुछ स्थानों पर लसिका वाहिनियाँ फूलकर लसिका गाँठों का निर्माण करती हैं। इनके मुख्य कार्य निम्न हैं


(a) इनमें निर्मित लिम्फोसाइट्स लसिका में मुक्त होती हैं।


(b) ये लसिका को छानकर स्वच्छ करती हैं।


(c) ये प्रतिरक्षी (Antibody) का संश्लेषण करती हैं।


(d) ये जीवाणुओं एवं अन्य हानिकारक पदार्थों को नष्ट करती हैं।


(iv) लसिका अंग (Lymph organs) थाइमस ग्रन्थि, प्लीहा (Spleen) एवं टॉन्सिल्स प्रमुख लसिका अंग हैं।



प्रश्न 3. रुधिर परिवहन को परिभाषित कीजिए। खुले, बन्द तथा दोहरे रुधिर परिवहन तन्त्र को समझाइए। रुधिर की संरचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।


उत्तर शुद्ध रुधिर के हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों में जाने व अंगों से अशुद्ध रुधिर के हृदय में आने को रुधिर परिवहन कहते हैं। रुधिर ऑक्सीजन के परिवहन का मुख्य माध्यम है। रुधिर की लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से क्रिया करके एक अस्थायी यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबिन का निर्माण करता है, जो ऊतकों में पहुँचकर ऑक्सीजन और हीमोग्लोबिन में विखण्डित हो जाता है।



प्रश्न 4. स्वच्छ और नामांकित चित्र की सहायता से मानव हृदय की आन्तरिक संरचना का वर्णन कीजिए। धमनी तथा शिरा में अन्तर बताइए।


अथवा मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना का चित्रों सहित वर्णन कीजिए।



अथवा मानव हृदय का एक स्वच्छ नामांकित व्यवस्थात्मक काट दृश्य बनाइए तथा यह स्पष्ट कीजिए कि हृदय के किस भाग में ऑक्सीजनित रुधिर तथा विऑक्सीजनित रुधिर रहता है? चित्र में रुधिर चक्रण प्रक्रिया को कणाकार चिन्ह से समझाइए। 



अथवा मानव हृदय की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाकर उसकी संरचना का वर्णन कीजिए तथा तीर की सहायता से रुधिर परिसंचरण का मार्ग प्रदर्शित कीजिए। 


उत्तर – मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना हृदय की आन्तरिक संरचना का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है


 (i) अलिन्द एवं निलय मानव हृदय की अनुलम्ब काट का अध्ययन करने पर मनुष्य के चतुष्वेश्मी हृदय में चार पूर्णवेश्म अर्थात् दो अलिन्द तथा दो निलय दिखाई देते हैं। प्रत्येक ओर का अलिन्द व निलय (Atrium and ventricle) आपस में सम्बन्धित होते हैं। अलिन्दों की दीवारें अपेक्षाकृत पतली होती है, जबकि निलयों की दीवारें मोटी होती हैं। दोनों अलिन्द अन्तराअलिन्दीय पट्ट (Interatrial septum) तथा दोनों निलय अन्तरानिलयी पट्ट (Interventricular septum) द्वारा पृथक् होते हैं। मानव हृदय में बायाँ निलय सबसे बड़ा वेश्म होता है। 


(ii) फोसा ओवैलिस अन्तराअलिन्दीय पट्ट के पश्च भाग पर (दाहिनी तरफ) एक छोटा-सा अण्डाकार गड्ढा होता है, जो फोसा ओवैलिस (Fossa ovalis) कहलाता है। भ्रूण में यह छिद्र फोरामेन ओवैलिस के नाम से जाना जाता है।


(iii) महाशिरा दाहिने अलिन्द में दो मोटी महाशिराएँ अलग-अलग छिद्रों द्वारा खुलती हैं, इन्हें अग्र महाशिरा (Inferior vena cava) तथा पश्च महाशिरा (Superior vena cava) कहते हैं।


 (iv) ट्रेबीकुली कॉर्नी गुहाओं की ओर निलयों की दीवार सपाट न होकर छोटे-छोटे अनियमित भंजों के रूप में उभरी होती है, ये भंज ट्रेबीकुली कॉन (Trabeculae carnae) कहलाते हैं।


(v) कोरोनरी साइनस अन्तराअलिन्दीय पट के समीप हृदय की दीवारों से आने वाले रुधिर हेतु कोरोनरी साइनस (Coronary sinus) का छिद्र होता है। इस छिद्र पर कोरोनरी या थिबेसियन कपाट (Thebasian valve) होता है।


(vi) स्पन्दन केन्द्र दाएँ अलिन्द में महाशिराओं के छिद्रों के समीप शिरा, अलिन्द गाँठ (Sino-auricular node) होती है, जो स्पन्दन केन्द्र (Pacemaker)कहलाती है।


(vii) फुफ्फुस तथा धमनी महाकांड चाप दाएँ निलय से फुफ्फुस चाप निकलता हैं, जो अशुद्ध रुधिर को फेफड़ों तक पहुँचाता है। बाएँ निलय से धमनी महाकांड चाप निकलता है, जो सम्पूर्ण शरीर को शुद्ध रुधिर पहुँचाता है। दोनों चापों के एक-दूसरे के ऊपर से निकलने के स्थान पर एक स्नायु आरटीरिओसम (Ligament arteriosum) नामक ठोस स्नायु होता है। भ्रूणावस्था में इस स्नायु के स्थान पर डक्टस आरटीरिओसस (Ductus arteriosus or botalli) नामक एक महीन धमनी होती है।


फुफ्फुस चाप तथा धमनी महाकांड चाप (Pulmonary and cortico-systemic arch) के आधार पर तीन अर्द्धचन्द्राकार कपाट (Semilunar valves) लगे होते हैं। ये कपाट रुधिर को वापस हृदय में जाने से रोकते हैं। अलिन्द, अलिन्द-निलय छिद्र (Atrio-ventricular apertures) द्वारा निलय में खुलते हैं। इन छिद्रों पर वलनीय अलिन्द-निलय कपाट (Cuspid Atrio-ventricular valve) स्थित होते हैं। ये कपाट रुधिर को अलिन्द से निलय में तो जाने देते हैं, परन्तु वापस नहीं आने देते।


(viii) त्रिवलन तथा द्विवलन कपाट दाएँ अलिन्द व निलय के मध्य अलिन्द-निलय कपाट में तीन वलन होते हैं। अतः ये त्रिवलनी कपाट (Tricuspid valve) कहलाते हैं। बाएँ अलिन्द व निलय के मध्य कपाट पर दो वलन होते हैं, जिसे द्विवलन कपाट (Bicuspid valve) या मिटूल कपाट (Mitral valve) कहते हैं। कण्डरा रज्जु या कॉर्डी टेन्डनी (Chordae tendinae) एक तरफ कपाटों से तथा दूसरी तरफ निलय की भित्ति से जुड़े रहते हैं तथा हृदय स्पन्दन के दौरान वलन कपाटों को उलटने से बचाते हैं। 



 प्रश्न 5. मनुष्य के हृदय की संरचना तथा क्रियाविधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 



अथवा मनुष्य के हृदय की बाह्य संरचना का नामांकित चित्र बनाइए तथा दोहरे रुधिर परिसंचरण का महत्त्व बताइए।



उत्तर मनुष्य के हृदय की बाह्य संरचना हृदय वक्षगुहा में फेफड़ों के मध्य में स्थित होता है। इसका अधिकांश भाग वक्ष के बाईं ओर तथा थोड़ा-सा भाग अस्थि के दाईं ओर होता है।






हृदय में दो अलिन्द और दो निलय सहित चार वेश्म होते हैं। हृदय का आकार बन्द मुट्ठी के समान होता है। हृदय का भार 300 ग्राम, रंग गहरा लाल अथवा बैंगनी होता है।


हृदय चारों ओर से दोहरे हृदयावरण से घिरा रहता है। दोनों झिल्लियों के मध्य हृदयावरणीय तरल भरा होता है। हृदय हृद खाँच अथवा कोरोनरी सल्कस द्वारा अलिन्द और निलय में विभाजित रहता है। हृदय के दाएँ अलिन्द में शरीर के विभिन्न भागों से आया अशुद्ध रुधिर भरा होता है।


हृदय के बाएँ अलिन्द में फेफड़ों से आया शुद्ध रुधिर भरा होता है। अग्र और पश्च महाशिराएँ दाएँ अलिन्द में खुलती हैं। पल्मोनरी शिराएँ बाएँ अलिन्द में खुलती हैं। दोनों निलय एक अन्तरानिलयी खाँच द्वारा विभाजित रहते हैं। बायाँ निलय बड़ा और अधिक पेशीय होता है। दाएँ निलय से पल्मोनरी चाप निकलती है। बाएँ निलय से कैरोटिको सिस्टेमिक चाप निकलती है।



प्रश्न 6. वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार से होता है? रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन की क्रियाविधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दुस्रावण में अन्तर लिखिए। 


अथवा वाष्पोत्सर्जन को परिभाषित कीजिए। यह कितने प्रकार का होता है? नामांकित चित्र की सहायता से रन्ध्र के खुलने तथा बन्द होने की क्रिया को दर्शाइए। 


अथवा वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? इस क्रिया में रन्ध्र की क्या भूमिका है? सचित्र समझाइए।


उत्तर – वाष्पोत्सर्जन पादप के वायवीय भागों से वाष्प के रूप में होने वाली जल-हानि को वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) कहते हैं। 


यह तीन प्रकार का होता है


(i) रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन लगभग 80-90% जल-हानि रन्ध्रों द्वारा होती है।


(ii) उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन लगभग 3-9% जल-हानि बाह्यत्वचा या उपचर्म द्वारा होती है।


(iii) वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन काष्ठीय पादपों में लगभग 1% जल-हानि वातरन्ध्रों द्वारा होती है। 


रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन क्रियाविधि वाष्पोत्सर्जन तथा गैसीय विनिमय (ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान) पत्तियों में पाए जाने वाले छोटे छिद्रों अर्थात् रन्ध्र द्वारा होता है। सामान्यतया ये रन्ध्र दिन में खुले रहते हैं और रात में बन्द हो जाते हैं।



रन्ध्र का बन्द होना और खुलना रक्षक कोशिकाओं के स्फीति (Turgor) में बदलाव से होता है। प्रत्येक रक्षक कोशिका की आन्तरिक भित्ति रन्ध्रछिद्र की तरफ काफी मोटी एवं तन्यतापूर्ण होती है। रन्ध्र को घेरे दोनों रक्षक कोशिकाओं में जब स्फीति दाब बढ़ने लगता है, तो पतली बाहरी भित्तियाँ बाहर की ओर खिचती हैं। और आन्तरिक भित्ति अर्द्धचन्द्राकार स्थिति में आ जाती है।




रन्ध्र के खुलने और बन्द होने की विधि


पानी की कमी होने पर जब रक्षक कोशिका की स्फीति समाप्त होती है (या जल तनाव खत्म होता है) जो अन्य आन्तरिक भित्तियाँ पुनः अपनी मूल स्थिति में जाती हैं, तब रक्षक कोशिकाओं की बाह्य झिल्ली ढीली पड़ जाती हैं और रन्ध्र छिद्र बन्द हो जाते हैं।




वाष्पोत्सर्जन और बिन्दुस्रावण में अन्तर



वाष्पोत्सर्जन

बिन्दुस्रावण


वाष्पोत्सर्जन पादप की वायवीय सतह से रन्ध्र, उपत्वचा एवं वातरन्ध्र से होने वाली क्रिया है।

बिन्दुस्राव जलरन्ध्रों से होने वाली एक निश्चित क्रिया है।

इस प्रक्रिया में जल, वाष्प के रूप में विसरित होता है।

इसमें जल कोशिका रस के रूप में उत्सर्जित होता है।


इसके कारण उत्पन्न वाष्पोत्सर्जनाकर्षण के कारण जल 

निष्क्रिय अवशोषण होता है।

यह क्रिया जड़ के मूलदाब के कारण होती है।


अन्तराकोशिकीय स्थानों में जो जलवाष्प संचित होती है, वही रन्ध्रों द्वारा विसरित होती है।

जाइलम वाहिकाओं के खुले सिरों से कोशिका रस तरल रूप में पत्तियों के शीर्ष से निकलता दिखाई देता है।





प्रश्न 7. मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण किस प्रकार होता है? चित्र की सहायता से समझाइए।



अथवा पादपों में जल संवहन का सचित्र वर्णन कीजिए।


अथवा पादप में जल और खनिज लवण के वहन की विधि का वर्णन कीजिए। 


अथवा जड़ों द्वारा जल की अवशोषण विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।


अथवा पादपों में जल का परिवहन किसके द्वारा होता है? इसकी क्रियाविधि समझाइए। 


उत्तर पादपों में जल का परिवहन पादपों में जल परिवहन का निम्न पदों में अध्ययन किया जा सकता है


(i) मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण भूमि में जल का अवशोषण मूलरोमों द्वारा होता है। मूलरोम मृदा कणों के बीच फँसे रहते हैं एवं केशिका जल के सम्पर्क में रहते हैं। प्रत्येक मूलरोम के मध्य में एक बड़ी धानी होती है, जिसके कोशिका रस में खनिज लवण, शर्कराएँ व कार्बनिक अम्ल घुले रहते हैं। भूमि के जल की सान्द्रता कोशिका रस की सान्द्रता से कम होती है



अर्थात् कोशिका रस का परासरण दाब भूमि के जल के परासरण दाब से अधिक होता है। जल कोशिकाद्रव्य के उच्च परासरण दाब के कारण अर्द्धपारगम्य प्लाज्मा झिल्ली में से होकर मूलरोम में प्रवेश करता है।


(ii) जड़ में जल का संवहन जल का मूलरोम में जैसे-जैसे प्रवेश होता है। इसके कारण स्फीति दाब बढ़ जाता है एवं जल कॉर्टेक्स (वल्कुट) की कोशिकाओं में पहुँचने लगता है, जिससे कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ पूर्णतया स्फीति हो जाती है और इनकी लचीली भित्तियाँ कोशिकाओं के अन्तःद्रव्य पर दबाव डालती हैं।


जल के संवहन


परिणामस्वरूप जल जाइलम वाहिकाओं में चला जाता है एवं कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ श्लथ हो जाती है। ये कोशिका जल प्राप्त करके पुनः स्फीति हो जाती है और जल को जाइलम वाहिकाओं में धकेल देती है। इससे कोशिकाओं में एक प्रकार का दाब उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण जल अन्तःत्वचा की मार्ग कोशिकाओं में से होकर जाइलम वाहिकाओं में पहुँचता है और तने में कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है। इस प्रकार के दाब को मूलदाब कहते हैं। यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है।



प्रश्न 8. पादपों में खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण किस प्रकार होता है? यह क्रिया पादपों के लिए क्यों आवश्यक है?


अथवा फ्लोएम में खाद्य स्थानान्तरण की मुंच परिकल्पना को समझाइए। अथवा पादपों में फ्लोएम द्वारा भोज्य पदार्थों के स्थानान्तरण को समझाइए।


उत्तर – खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण पादप प्रकाश-संश्लेषण के फलस्वरूप कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। इन संश्लेषित खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण पत्तियों से तरल अवस्था में पादप के सभी भागों की ओर होता है। मज्जा रश्मियों द्वारा कुछ भोज्य पदार्थ पावय दिशा में भी वितरित कर दिया जाता है। इस प्रकार खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण फ्लोएम के माध्यम से होता है।


मुंच परिकल्पना यह परिकल्पना खाद्य पदार्थों के स्थानान्तरण सम्बन्धित है। इस सम्बन्ध में मुंच की व्यापक प्रवाह की परिकल्पना सर्वमान्य है।






मुंच (1927-30) के अनुसार, भोज्य पदार्थों का स्थानान्तरण अधिक सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थानों की ओर होता रहता है। पर्णमध्योतक कोशिकाओं में निरन्तर भोज्य पदार्थों के बनते रहने के कारण परासरण दाब अधिक बना रहता है।


जड़ अथवा भोजन संचय करने वाले भागों में शर्करा (घुलनशील भोज्य पदार्थ) के निरन्तर उपयोग के कारण अथवा भोज्य पदार्थों के अघुलनशील अवस्था में बदलकर संचित हो जाने के कारण इन कोशिकाओं का परासरणी दाब निरन्तर कम बना रहता है। इसके कारण पर्णमध्योतक कोशिकाओं से भोज्य पदार्थ अविरल रूप से फ्लोएम द्वारा जड़ की ओर प्रवाहित होते रहते हैं।



प्रश्न 9. मूलदाब किसे कहते हैं? नामांकित चित्र की सहायता से मूलदाब दर्शाइए। 


 उत्तर –  यह लगभग दो वायुमण्डलीय दाब के बराबर होता है। इसके फलस्वरूप जल पादपों में कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है।



प्रयोग : मूलदाब का प्रदर्शन मूलदाब प्रदर्शन के लिए गमले में लगा हुआ एक स्वस्थ व शाकीय (Herbaceous) पादप लेते हैं, जिसमें काफी मात्रा में जल दिया जा चुका हो। पादप के तने को गमले की मिट्टी से कुछ सेन्टीमीटर ऊपर से काट देते हैं।




तने के कटे हुए सिरे को रबड़ की नली की सहायता से शीशे के मैनोमीटर से जोड़ देते हैं। इसकी नली में कुछ जल डालकर उसमें पारा भर देते हैं। कुछ समय बाद मैनोमीटर की नली में पारे का तल ऊपर चढ़ता दिखाई देता है। मैनोमीटर की नली में पारे के तल का ऊपर चढ़ना मूलदाब के कारण होता है। इसी दाब के कारण मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल जाइलम वाहिकाओं में ऊपर तक पहुँचा दिया जाता है। यदि किसी पादप का ऊपरी सिरा काट दिया जाए, तो कटे स्थान से रस टपकने लगता है। वह मूलदाब के कारण होता है। इसी प्रकार ताड़ी (खजूर) के पादप के कटे भाग से रस टपकने की क्रिया मूलदाब के कारण ही होती है।




                   D. उत्सर्जन


जैव प्रक्रम जिसमें हानिकारक उपापचयी वर्ज्य पदार्थों का निष्कासन होता है, उत्सर्जन (Excretion) कहलाता है तथा उत्सर्जन को कार्यान्वित करने वाले अंग उत्सर्जी अंग कहलाते हैं। एककोशिकीय जीव सरल विसरण द्वारा कोशिकीय सतह से अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं।


मानव में उत्सर्जन


मानव में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क होते हैं। वृक्क यूरिया (मुख्य उत्सर्जी पदार्थ) को रुधिर में से पृथक् कर मूत्र का निर्माण करता है। इनसे सम्बन्धित अन्य सहायक उत्सर्जी अंग निम्नलिखित हैं


एक जोड़ी मूत्रवाहिनियाँ (Ureters) मूत्र को वृक्क से मूत्राशय में लाती है। 


मूत्राशय (Urinary bladder) मूत्रण तक मूत्र को संचित रखता है। 


मूत्रमार्ग (Urethra) मूत्र को मूत्राशय से शरीर के बाहर की ओर निकालना।


मनुष्य के वृक्क ये संख्या में दो, उदर गुहा में कशेरुकदण्ड के पार्श्व में स्थित, सेम के बीज के आकार की संरचनाएँ हैं। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लम्बा, 6 सेमी चौड़ा तथा 2.5 सेमी मोटा होता है। दायाँ वृक्क बाएँ की अपेक्षा कुछ नीचे स्थित होता है। वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है, किन्तु भीतरी किनारा धँसा हुआ होता है, जिसमें से मूत्र नलिका निकलती है। इस धँसे हुए स्थान को हाइलस कहते हैं। मूत्र नलिका एक पेशीय थैलेनुमा मूत्राशय में खुलती है। मूत्राशय में संचित मूत्र समय-समय पर शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है।


वृक्क की आन्तरिक संरचना वृक्क के मध्य में लगभग खोखला तथा कीप के आकार का भाग होता है। यही क्रमश: संकरा होकर मूत्र नलिका का निर्माण करता इसे पेल्विस कहते हैं। वृक्क का बाहरी भाग वल्कुट (Cortex) तथा भीतरी भाग मेड्यूला (Medulla) कहलाता है।


मेड्यूला में 8-15 त्रिभुजाकार संरचनाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें पिरामिड कहते हैं। ये वल्कुट द्वारा एक-दूसरे से पृथक् रहते हैं, जिन्हें बर्टीनी के रीनल कॉलम कहते हैं।


वृक्क में असंख्य अत्यन्त कुण्डलित तथा लम्बी नलिकाएँ होती हैं। इन्हें वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं। बोमेन सम्पुट वृक्क नलिकाओं का भाग है। बोमेन सम्पुट या मैल्पीघी सम्पुट प्यालेनुमा होता है।


वृक्क के कार्य यह अतिरिक्त जल एवं लवणों का शरीर में से निष्कासन कर परासरण नियमन एवं समस्थैतिकता बनाए रखता है। यकृत में निर्मित यूरिया का रुधिर में से निस्यंदन करता है।


नोटयकृत यूरिया का संश्लेषण करता है। यह रुधिर में उपस्थित अमोनिया का यूरिया में परिवर्तन करता है।


मूत्र का निर्माण


वृक्क के नेफ्रॉन में मूत्र निर्माण निम्नलिखित तीन प्रक्रियाओं द्वारा होता है


परानिस्यंदन कोशिकागुच्छ की रुधिर केशिकाओं में रुधिर का दाब बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए दाब के कारण रुधिर का तरल भाग छनकर बोमेन संपुट में आ जाता है।


वरणात्मक या चयनात्मक पुनरावशोषण यहाँ विसरण तथा सक्रिय पुनरावशोषण द्वारा क्रमशः जल तथा अन्य घटकों का अवशोषण होता है। इस क्रिया में महत्त्वपूर्ण तत्व- ग्लूकोस, विटामिन, अमीनो अम्ल आदि पुनः रुधिर में पहुँचा दिए जाते हैं।


वाहिकीय स्रावण


वृक्क नलिकाओं के समीपस्थ तथा दूरस्थ भाग की नलिकाएँ परिनलिका जाल (Peritubular network) की रुधिर केशिकाओं से हानिकारक उत्सर्जी पदार्थ (जैसे-K+, H+यूरिक अम्ल), जो छनने से रह गए थे, सक्रिय विसरण द्वारा वृक्क की संग्राहक नलिका में मुक्त कर दिए जाते हैं। तत्पश्चात् मूत्र, मूत्रवाहिनी द्वारा मूत्राशय में तब तक एकत्रित रहता है, जब तक कि फैले हुए मूत्राशय का दाब मूत्रमार्ग द्वारा उसे बाहर न कर दें। 



नोट समस्थैतिकता शरीर के अन्तः वातावरण के रासायनिक संघटन को स्थिर एवं सन्तुलित बनाने की जैविक प्रक्रिया समस्थैतिकता (Homeostasis)

कहलाती है।


कृत्रिम वृक्क (अपोहन)


वृक्क के अक्रिय होने की अवस्था में कृत्रिम वृक्क का उपयोग किया जा सकता है। कृत्रिम वृक्क नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पादों को रुधिर से अपोहन द्वारा निकालने की एक युक्ति है। कृत्रिम वृक्क में प्राकृतिक वृक्क की भाँति पुनरावशोषण प्रक्रम नहीं पाया जाता है। वृक्क में परानिस्यन्दन के दौरान प्राप्त 150-180 लीटर नेफ्रिक निस्यन्द में से केवल 1.5 लीटर भाग ही मूत्र के रूप में उत्सर्जित होता है, जिसका कारण पुनरावशोषण होता है।


पादपों में उत्सर्जन


पादप भी जन्तुओं की भाँति उत्सर्जन प्रक्रम का नियमन करते हैं, किंतु पादप उत्सर्जन के लिए जन्तुओं से बिल्कुल भिन्न युक्तियाँ प्रयुक्त करते हैं, जो निम्न हैं


गैसीय अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन पादप दिन में प्रकाश-संश्लेषण के दौरान बनी ऑक्सीजन एवं रात्रि में श्वसन द्वारा उत्पन्न CO, के उत्सर्जन हेतु रन्ध्रों एवं वातरन्ध्रों का उपयोग करते हैं।


तरल अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन


पादप अतिरिक्त जल को वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) तथा बिंदुस्रावण (Guttation) प्रक्रम द्वारा निष्कासित करते हैं। उदाहरण रबड़, लौंग का तेल, गोंद आदि जलीय अपशिष्ट उत्पादों के उदाहरण है।


ठोस अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन


बहुवर्षीय पादपों में मृत कोशिकाओं, ऊतकों या रिक्तिकाओं (जैसे-कठोर काष्ठ) में अपशिष्ट पदार्थ संचित हो जाते हैं, जैसे- टेनिन, लिग्निन, आदि। इसके अतिरिक्त कुछ अपशिष्ट पदार्थ छाल या पर्ण में संचित होकर पादप से पृथक् हो जाते हैं। उदाहरण टेनिन का उपयोग चमड़े के शोधन में किया जाता है।


नोट पादप पर लगी पत्तियों से बूँदों के रूप में जल का स्राव, बिन्दुस्रावण कहलाता है। यह क्रिया मुख्यतया शाकीय पादपों में तीव्र अवशोषण एवं कम वाष्पीकरण की स्थिति में सम्पन्न होती है।


गोंद आन्तरिक पादप ऊतक (मुख्यतया सेलुलोस) का निम्नीकृत उत्पाद है। रेजिन विभिन्न तेलों के ऑक्सीकृत उत्पाद होते हैं।



         बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग क्या हैं?


(a) वृक्क


(b) फेफड़े


(c) त्वचा 


(d) यकृत


 उत्तर (a) मानव का मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क होता है। फेफड़े, यकृत एवं त्वचा अतिरिक्त उत्सर्जी अंगों के अन्तर्गत आते हैं।


प्रश्न 2. मनुष्य में वृक्क, एक तन्त्र का भाग है, जो सम्बन्धित है


(a) पोषण


(b) श्वसन


(c) उत्सर्जन


(d) परिवहन


उत्तर (c) मनुष्य में वृक्क, उत्सर्जन तन्त्र से सम्बन्धित है।


प्रश्न 3. वृक्क बना होता है


(a) मूत्र वाहिनियों से


(b) मैल्पीघियन नलिकाओं से


(c) नेफ्रॉन से


 (d) शुक्रजनक नलिकाओं से




उत्तर (c) प्रत्येक वृक्क में लगभग 8-12 लाख महीन, लम्बे तथा कुण्डलित नेफ्रॉन होते हैं।


प्रश्न 4. बोमेन सम्पुट भाग है


(a) पित्त वाहिनी का


(b) अग्न्याशय वाहिनी का


(c) प्रोस्टेट ग्रन्थि का


(d) वृक्क नलिका का


उत्तर (d) बोमेन सम्पुट वृक्क नलिकाओं का भाग है। बोमेन सम्पुट या मैल्पीघी सम्पुट प्यालेनुमा होता है।


प्रश्न 5. यकृत संश्लेषित करता है


(a) शर्करा


(b) रुधिर


(c) यूरिया


(d) प्रोटीन


उत्तर (c) यकृत यूरिया का संश्लेषण करता है। यह रुधिर में उपस्थित अमोनिया का यूरिया में परिवर्तन करता है।



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न  2 अंक


प्रश्न 1. उत्सर्जन क्या है? एककोशिकीय जीव किस प्रकार अपने अपशिष्टों को निष्कासित करते हैं?


उत्तर उत्सर्जन मनुष्य सहित सभी कशेरुकी जन्तुओं के शरीर में उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बनने वाले हानिकारक नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। एककोशिकीय जीव सरल विसरण द्वारा कोशिकीय सतह से अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं।


प्रश्न 2. निम्न संरचनाओं के क्या कार्य हैं ?


(i) वृक्क


(ii) मूत्रवाहिनी


(iii) मूत्राशय


(iv) मूत्रमार्ग


उत्तर


 (i) वृक्क यूरिया को रुधिर में से पृथक् कर मूत्र का निर्माण करना को वृक्क 


(ii) मूत्रवाहिनी मूत्र से मूत्राशय में लाना।


(iii) मूत्राशय मूत्रण तक मूत्र को संचित रखना।


(iv) मूत्रमार्ग मूत्र को मूत्राशय से शरीर के बाहर की ओर निकालना।


प्रश्न 3. मूत्र का निर्माण कैसे होता है?


उत्तर वृक्कीय धमनी से रुधिर, वृक्क में उच्च रुधिर दाब से वृक्काणु के ग्लोमेरुलस में प्रवेशित होकर निस्यंदित होता है। यहाँ से परानिस्यंदित द्रव कुंडलित नलिकीय भाग में जाता है, जहाँ आवश्यक लवणों, जल, अमीनो अम्ल, आदि का पुनरावशोषण होता है तथा मूत्र का निर्माण होता है।



लघु उत्तरीय प्रश्न 4 अंक



प्रश्न 1. उत्सर्जन किसे कहते हैं? मनुष्य के शरीर में कौन-कौन से उत्सर्जी अंग पाए जाते हैं?


अथवा मानव में उत्सर्जन तन्त्र के कौन-कौन से अंग होते हैं? नामांकित चित्र बनाकर इनको प्रदर्शित कीजिए।




उत्तर 

 मनुष्य के शरीर में उत्सर्जन अंग निम्न हैं



(i) वृक्क (Kidneys) ये मुख्य उत्सर्जी अंग है। ये हानिकारक पदार्थों को रुधिर से छानकर पृथक् कर लेते हैं तथा इन्हें मूत्र के रूप में बाहर निकाल देते हैं।


(ii) त्वचा (Skin) यह उत्सर्जी पदार्थों को पसीने के रूप में मुक्त करती है।


(iii) यकृत (Liver) यह उपापचय के फलस्वरूप बने हानिकारक पदार्थों को कम हानिकारक पदार्थों में बदलकर उत्सर्जन में सहायता करता है। में यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है। मनुष्य


(iv) फेफड़े (Lungs) ये CO2 का उत्सर्जन करते हैं।




प्रश्न 2. मानव के वृक्क की खड़ी काट का चित्र बनाइए और उसके प्रमुख भागों के नाम लिखिए।


उत्तर – मानव के वृक्क की आन्तरिक संरचना को रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है








प्रश्न 3. वृक्क के प्रमुख कार्य कौन-कौन से हैं? लिखिए।


उत्तर – वृक्क के कार्य निम्न हैं



(i) वृक्क रुधिर के माध्यम से शरीर के अन्तःवातावरण को सन्तुलित बनाए रखते हैं तथा रुधिर के pH मान को स्थिर रखते हैं।


(ii) ये नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थों को मूत्र के रूप में बाहर निकालते हैं।


(iii) ये रुधिर के परासरणी दाब पर नियन्त्रण रखकर दाब को भी नियन्त्रित रखते हैं तथा ऑक्सीजन की कमी होने पर RBCs के निर्माण को प्रेरित करते हैं।


(iv) ये अनेक प्रकार के बाह्य पदार्थों (औषधि की अतिरिक्त मात्रा, औषधियों के रंग तथा विषैले पदार्थ) को निष्कासित करते हैं।



प्रश्न 4. वृक्काणु (नेफ्रॉन) का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए तथा इसके कार्यों का वर्णन कीजिए।



उत्तर 


वृक्काणु के कार्य


इसका प्राथमिक कार्य रुधिर में से यूरिया व नाइट्रोजन वर्ज्य पदार्थों को हटाना होता है। इसके अतिरिक्त इसके अन्य कार्य अमोनियम विष, औषधियाँ, रंगा पदार्थ, H+ या K+ आयन, जल, आदि की मात्रा को रुधिर में कम करके रुधिर की समस्थैतिकता को बनाए रखना है। यह मूत्र का निर्माण व चयनात्मक पुनरावशोषण द्वारा लाभदायक पदार्थों को वापस रुधिर में पहुँचाने का कार्य भी करती है।



प्रश्न 5. पादपों के गैसीय और जलीय अपशिष्ट के बारे में बताइए। अथवा पौधों में वातरन्ध्रों की उपयोगिता का उल्लेख कीजिए।


उत्तर पादप भी जन्तुओं की भाँति उत्सर्जन प्रक्रम का नियमन करते हैं, किन्तु पादप उत्सर्जन के लिए जन्तुओं से बिल्कुल भिन्न युक्तियाँ प्रयुक्त करते हैं, जो निम्न हैं



गैसीय अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन पादप दिन में प्रकाश-संश्लेषण के दौरान बनी ऑक्सीजन एवं रात्रि में श्वसन द्वारा उत्पन्न CO₂ के उत्सर्जन हेतु रन्ध्रों एवं तने में उपस्थित वातरन्ध्रों का उपयोग करते हैं। 


तरल अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन पादप अतिरिक्त जल को वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) तथा बिंदुस्रावण (Guttation) प्रक्रम द्वारा निष्कासित करते हैं। पादपों में जल का स्रावण रन्ध्रों द्वारा होता है। इसके अतिरिक्त पादप जाइलम में रेजिन एवं गोंद के रूप में अपशिष्ट पदार्थों को संचित करते हैं। गोंद पादप के आन्तरिक ऊतकों (सेलुलोस) के विघटन द्वारा निर्मित होती है, जबकि रेजिन का निर्माण अनेक आवश्यक तेलों के ऑक्सीकरण द्वारा होता है।


रबर के पादप द्वारा स्रावित लैटेक्स भी अपशिष्ट पदार्थ का उदाहरण है। इसके अतिरिक्त इनमें विभिन्न तेलों; जैसे-लौंग का तेल, चंदन का तेल, आदि का भी स्रावण होता है।



       विस्तृत उत्तरीय प्रश्न  7 अंक


प्रश्न 1. उत्सर्जन से क्या तात्पर्य है? मनुष्य के उत्सर्जी अंगों के नाम लिखिए। वृक्क नलिका का नामांकित चित्र बनाइए ।



अथवा वृक्कों में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। 


अथवा वृक्क की रचना का वर्णन कीजिए।


अथवा मनुष्य के वृक्क की नामांकित चित्रों सहित संरचना, कार्य तथा मूत्र निर्माण क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।


अथवा वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए


उत्तर 


मनुष्य के उत्सर्जी अंग वृक्क, मूत्रवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग मिलकर मुख्य उत्सर्जी तन्त्र बनाते हैं। मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क होता है। यह उत्सर्जन क्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह अमोनिया को यूरिया में बदलता है। अन्य उत्सर्जी अंग हैं


त्वचा - यह पसीने के रूप में उत्सर्जी पदार्थों को मुक्त करती है। 


यकृत - यह उपापचय की क्रिया के फलस्वरूप बनने वाले हानिकारक पदार्थों को कम हानिकारक पदार्थों में परिवर्तित कर उत्सर्जन में सहायक है; जैसे-मनुष्य में अमोनिया को यूरिया में बदलना यकृत का ही कार्य है।



वृक्क ये संख्या में दो, उदर गुहा में कशेरुकदण्ड के पार्श्व में स्थित, सेम के बीज के आकार की संरचनाएँ हैं। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लम्बा, 6 सेमी चौड़ा तथा 2.5 सेमी मोटा होता है। दायाँ वृक्क बाएँ की अपेक्षा कुछ नीचे स्थित होता है।


वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है, किन्तु भीतरी किनारा धँसा हुआ होता है, जिसमें से मूत्र नलिका निकलती है। इस धँसे हुए स्थान को हाइलस कहते हैं। मूत्र नलिका एक पेशीय थैलेनुमा मूत्राशय में खुलती है। मूत्राशय में संचित मूत्र समय-समय पर शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है। 


 


वृक्क की आन्तरिक संरचना वृक्क के मध्य में लगभग खोखला तथा कीप के आकार का भाग होता है। यही क्रमशः संकरा होकर मूत्र नलिका का निर्माण करता है, इसे पेल्विस कहते हैं। वृक्क का बाहरी भाग वल्कुट (Cortex) तथा भीतरी भाग मेड्यूला (Medulla) कहलाता है।




वृक्क में असंख्य अत्यन्त कुण्डलित तथा लम्बी नलिकाएँ होती हैं। इन्हें वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं। ये वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती हैं। वृक्क नलिकाएँ एक बड़ी संग्रह नलिका में खुलती हैं। प्रत्येक संग्रह नलिका पिरामिड में खुलती है। वृक्क में 10-12 पिरामिड दिखाई देते हैं, जो अपने संकरे भाग द्वारा पेल्विस में खुलते हैं।



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