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class 12 chemistry chapter 05 surface chemistry पृष्ठ रसायन notes in hindi

 class 12 chemistry chapter 05 surface chemistry notes in hindi


कक्षा 12 रसायन विज्ञान अध्याय 05 पृष्ठ रसायन नोट्स







पृष्ठ रसायन कक्षा 12 नोट्स





अध्याय 05 पृष्ठ रसायन (surface chemistry)




रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत ठोस पदार्थों के पृष्ठों की प्रकृति एवं उन पर घटित होने वाले भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रमों का विश्लेषण किया जाता है, पृष्ठ रसायन कहलाती है।


अधिशोषण


ठोस पदार्थ या द्रव पदार्थ की सतह पर अणुओं का आकर्षित होना तथा पृष्ठ पर संग्रहित हो जाना अधिशोषण कहलाता है। अधिशोषण एक सतही तथा तीव्र प्रक्रम है। अधिशोषण प्रक्रम में, वह ठोस पदार्थ जिस पर अधिशोषण होता है, अधिशोषक कहलाता है, जबकि अधिशोषित पदार्थ (गैस अथवा द्रव) अधिशोष्य कहलाता है।


अधिशोषण के प्रकार


(i) भौतिक अधिशोषण इस प्रकार के अधिशोषण में अधिशोष्य तथा अधिशोषक के मध्य उपस्थित आकर्षण बल दुर्बल वाण्डर वाल्स बल होते हैं।


(ii) रासायनिक अधिशोषण इस प्रकार के अधिशोषण में अधिशोष्य तथा अधिशोषक के मध्य उपस्थित आकर्षण बल प्रबल रासायनिक आबन्ध के तुल्य होते हैं।




अधिशोषण समतापी


एक गणितीय समीकरण जो किसी निश्चित ताप पर गैसीय अधिशोष्य के दाब (p) एवं अधिशोषण की मात्रा के बीच सम्बन्ध बताती है, अधिशोषण समतापी कहलाती हैं। अधिशोषण की मात्रा को अधिशोषक के इकाई द्रव्यमान पर अधिशोषित, अधिशोष्य के द्रव्यमान के रूप में व्यक्त किया जाता है।


अतः अधिशोषण की मात्रा = X / m


(i) फ्रैंडलिक अधिशोषण समतापी यह उन अधिशोषणों पर लागू होता है, जहाँ अधिशोषक के पृष्ठ पर अधिशोष्य एकाण्विक परत बना लेता है। इसके अनुसार, x/m = kρ¹/ₙ यह उच्च दाब पर लागू नहीं होती है। 


(ii) लैंगम्यूर अधिशोषण समतापी इर्विग लैंगम्यूर ने सन् 1916 में गैसों के अणुगति सिद्धान्त के आधार पर एक सामान्य अधिशोषण समतापी को व्युत्पन्न किया। इसे लैंगम्यूर अधिशोषण समतापी नाम दिया गया। इसके अनुसार, x/m = ap /(1+ bρ) जहाँ a एवं b स्थिरांक हैं तथा इनके मान अधिशोष्य गैस की प्रकृति, ठोस अधिशोषक की प्रकृति एवं ताप पर निर्भर करते हैं।


 किसी ठोस सतह पर गैसों का अधिशोषण निम्न कारकों के द्वारा प्रभावित होता है।


(i) ठोस अधिशोषक की प्रकृति किसी गैस के अधिशोषण की मात्रा अधिशोषक की प्रकृति पर निर्भर करती हैं। ठोस अधिशोषक के पृष्ठ पर अवशिष्ट बल क्षेत्र जितना अधिक होगा, अधिशोषण की मात्रा उतनी ही अधिक होगी।


(ii) अधिशोषक का पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिशोषक का पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होने पर ताप व दाब की दी गई परिस्थितियों में अधिशोषण की मात्रा भी अधिक होती हैं।


 (iii) ताप का प्रभाव अधिशोषण एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रम है। अतः विपरीत प्रक्रम या विशोषण ऊष्माशोषी होता है। इस कारण यदि इस साम्य के ताप में वृद्धि की जाती है, तो ला-शातेलिए के सिद्धान्त के अनुसार ताप में वृद्धि के साथ विशोषण होता है अर्थात् नियत दाब पर, ताप में वृद्धि के साथ, अधिशोषण की सीमा (x/m) में कमी होती है।


(iv) ठोस पर अधिशोषित होने वाली गैसों की प्रकृति सरलता से द्रवित होने वाली जैसे जैसे- SO₂, NH₃. HCI और CO₂आदि स्थायी गैसों जैसे H₂ N₂  O₂ आदि (जो आसानी से द्रवीभूत नहीं होती हैं) की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से अधिशोषित होती है।


(v) दाब का प्रभाव अधिशोषक के प्रति इकाई द्रव्यमान द्वारा गैस के अधिशोषण की मात्रा, गैस के दाब पर निर्भर करती है।


जिओलाइट्स इनकी आकृति वरणात्मक उत्प्रेरक है। ZSM-5 पेट्रोलियम उद्योग में प्रयुक्त होने वाला एक महत्त्वपूर्ण जिओलाइट उत्प्रेरक है।


विलयनों का वर्गीकरण


अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली से विसरण के आधार पर पदार्थों को कोलॉइड तथा क्रिस्टलाभ में वर्गीकृत किया गया है। अर्द्ध पारगम्य झिल्ली या चर्म पत्र से विसरित होने वाले पदार्थ (जलीय विलयन के रूप में) क्रिस्टलाभ कहलाते हैं, जैसे- ग्लूकोस, नमक, आदि। जबकि इनसे विसरित न होने वाले पदार्थ (जलीय विलयन के रूप में) कोलॉइड कहलाते हैं, जैसे- गोंद, स्टार्च, आदि।


कोलॉइडी अवस्था


कोलॉइड कोई पदार्थ नहीं है, बल्कि पदार्थ की एक अवस्था है, जो कणों अथवा अणुओं के आकार पर निर्भर करती है।



कोलॉइडों के लक्षण


(i) कोलॉइडी निकाय विषमांगी होते हैं। इनमें दो प्रावस्थाएँ, (अर्थात् परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम) उपस्थित होती हैं। 


(ii) कोलॉइडी कणों का आकार 10A -100 A के मध्य होता है।


(iii) किसी कोलॉइडी निकाय का रंग उसकी परिक्षिप्त प्रावस्था में उपस्थित कणों द्वारा अवशोषित और प्रकीर्णित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है।


 (iv) कोलॉइडी विलयन फिल्टर पेपर से विसरित हो जाते हैं, जबकि चर्म पत्र या जन्तु झिल्लियों से विसरित नहीं होते हैं।


कोलॉइडी तन्त्र के प्रकार


(i) परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम की अवस्था के आधार पर कोलॉइडी कण निम्न प्रकार वर्गीकृत किए जा सकते हैं





(ii) प्रकृति के आधार पर कोलॉइडी सॉल निम्न दो प्रकार के होते हैं


 (a) द्रवस्नेही सॉल उचित विलायक के साथ पदार्थ को मिलाने अथवा गर्म करने पर सुगमता से प्राप्त होने वाले कोलॉइडी तन्त्र द्रवस्नेही कोलॉइड कहलाते हैं। ये उत्क्रमणीय सॉल होते हैं।


उदाहरण जिलेटिन, स्टार्च, प्रोटीन, गोंद, रबर, आदि। 


(b) द्रवविरोधी सॉल यदि परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के कणों के मध्य कोई बन्धुता नहीं होती है, तो इस प्रकार के कोलॉइड सॉल को द्रवविरोधी सॉल कहते हैं। ये अनुत्क्रमणीय सॉल होते हैं।


उदाहरण As₂S₃ , Fe (OH)₃. गन्धक सॉल, आदि। 


(iii) आवेश के आधार पर कोलॉइडी सॉल निम्न दो प्रकार के होते हैं


(a) धनात्मक कोलॉइडी विलयन (सॉल) ऐसे कोलॉइडी विलयन जिनमें परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों पर धनावेश होता है, धनात्मक कोलॉइडी विलयन कहलाते हैं। उदाहरण Fe(OH)₃ सॉल, Al(OH)₃सॉल, SnO₂ प्रबल अम्लीय माध्यम में जिलेटिन, आदि।


(b) ऋणात्मक कोलॉइडी विलयन (सॉल) ऐसे कोलॉइडी विलयन जिनमें परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों पर ऋणावेश होता है, ऋणात्मक कोलॉइडी विलयन कहलाते हैं। उदाहरण Au सॉल, Ag सॉल, Pt सॉल, आदि।


(iv) परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों के प्रकार के आधार पर कोलॉइडी सॉल निम्न तीन प्रकार के होते हैं


(a) बहुआण्विक कोलॉइड विलेय करने पर यदि पदार्थ के परमाणु या अणु परस्पर संगुणित होकर बड़ा कोलॉइडी कण बनाते हैं, तो इस प्रकार के कोलॉइडी कणों को बहुआण्विक कोलॉइड कहते हैं।


(b) वृहद्आण्विक कोलॉइड जब अणु बड़े आकार के होते हैं और परिक्षेपण माध्यम में घुलकर कोलॉइडी सीमा के कण बनते हैं, तो इस प्रकार के पदार्थ को वृहद्आण्विक कोलॉइड कहते हैं।


(C) संगुणित कोलॉइड या सहचारी कोलॉइड कुछ पदार्थ निम्न सान्द्रता पर किसी माध्यम में घोलने पर सामान्य विद्युत अपघट्य की भाँति व्यवहार करते हैं, लेकिन उच्च सान्द्रता पर संगुणित कणों के बनने के कारण कोर्लोइडी तन्त्र की भाँति व्यवहार करते हैं। इस प्रकार के पदार्थ संगुणित कि या सहचारी कोलॉइड कहलाते हैं।



कोलॉइडी सॉल के निर्माण की विधियाँ


(i) पेप्टीकरण ताजे बने अवक्षेप को विद्युत अपघट्य मिलाकर कोलॉइडी विलयन में परिवर्तित करने के प्रक्रम को पेप्टीकरण कहते हैं। इस प्रक्रम में प्रयुक्त विद्युत-अपघट्य को पेप्टीकारक कहते हैं।


उदाहरण Fe(OH)₃ + FeCl₃→ Fe(OH)₃: Fe³+ + 3CI- अवक्षेप पेप्टीकारक कोलॉइडी विलयन


(ii) विद्युत परिक्षेपण विधि या ब्रेडिग ऑर्क विधि

इस विधि द्वारा Pt, Au, Ag, आदि के कोलॉइडी विलयनों को बनाया जाता है। इस विधि में दो इलेक्ट्रोडों के मध्य विद्युत-विसर्ग की ऊष्मा से कोलॉइडी विलयन बनाया जाता है।


(iii) रासायनिक विधियाँ


(a) अपचयन द्वारा 


2AuCl₃ +  3SnCl₂ →2Au+ 3SnCl₄


इस प्रकार प्राप्त गोल्ड को इसके बैंगनी रंग के कारण, पर्पिल ऑफ कैसियस कहते हैं।




(b) उभय-अपघटन द्वारा


As₂O₃   +  3H₂S  →  As₂S₃   + 3H₂O


(c) ऑक्सीकरण विधि


H₂S    +    Br₂  → S   + HBr



कोलॉइडी विलयनों का शोधन


कोलाइडी विलयनो का शोधन, अपोहन विद्युत अपोहन तथा अतिसूक्ष्म निस्यंदन विधि द्वारा किया जाता है।


कोलॉइडी विलयनों के गुणधर्म


(i) टिण्डल प्रभाव अन्धेरे में रखे कोलॉइडी विलयन में से जब तीव्र प्रकाश प्रवाहित करते हैं, तो इन किरणों का मार्ग नीले प्रकाश द्वारा दृश्यमान हो जाता है, इस परिघटना को टिण्डल प्रभाव कहते हैं।



(ii) ब्राउनियन या ब्राउनी गति कोलॉइडी कणों की तीव्र टेढ़ी-मेढ़ी (zig-zag) गति को बाउनी गति कहते हैं। कोलोंइडी कणों पर गति करते हुए परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के असमान प्रहारों के कारण ब्राउनी गति उत्पन्न होती है। ब्राउनी गति के द्वारा कोलॉइडी विलयन स्थायित्व प्राप्त करते हैं तथा इसके द्वारा आयोगाद्रो संख्या का मान ज्ञात किया जाता है।


(iii) विद्युत कण संचलन विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में कोलॉइडी कण विपरीत आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर गमन करते हैं। विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में कोलॉइडी कणों का इस प्रकार इलेक्ट्रोड की ओर अभिगमन, विद्युत कण संचलन कहलाता है। 



(iv) स्कन्दन या ऊर्णन दो विपरित आवेशित द्रवविरोधी सॉलों को परस्पर उचित अनुपात में मिलाने पर दोनों सॉल एक दूसरे को अवक्षेपित कर देते हैं। इसे इनका पारस्परिक स्कन्दन कहते हैं।


हार्डी-शुल्जे नियम


इस नियमानुसार, विपरीत आवेशित आयन की संयोजकता जितनी अधिक होती है, कोलॉइडी विलयन के लिए इसकी स्कन्दन क्षमता भी उतनी ही अधिक होती है।


उदाहरण धनावेशित सॉल जैसे- Fe(OH)₃ के लिए ऋणायनों की स्कन्दन क्षमता का क्रम निम्न होता है


[Fe(CN)₆]⁴- > PO₄³- > SO₄² - > Cl- 


ऋणावेशित सॉल जैसे- As₂S₃ के लिए धनायनों की स्कन्दन क्षमता का क्रम निम्न होता है


     Al³+ > Ba²+ > Na+


स्कन्दन मान या ऊर्णन मान


"किसी विद्युत अपघट्य का वह न्यूनतम सान्द्रण जो सॉल को स्कन्दित करने के लिए आवश्यक होता है, स्कन्दन अथवा ऊर्णन मान कहलाता है।"


अथवा


"एक लीटर कोलॉइडी विलयन को स्कन्दित करने के लिए विद्युत अपघट्य के मिलीमोलों की संख्या को उसका ऊर्णन मान कहते हैं।" 


स्कन्दन मान   =  K (1/स्कन्दन क्षमता)


स्कन्दन या ऊर्णन मान को मिली मोल/लीटर में व्यक्त करते हैं।


रक्षण क्षमता तथा स्वर्णक


"द्रवस्नेही कोलॉइड की मिलीग्राम में वह मात्रा, जो दिए हुए स्वर्ण के कोलॉइडी विलयन के 10 मिली में उपस्थित होने पर उसका 1 मिली 10% NaCl विलयन द्वारा स्कन्दन होने से रक्षण करती है, स्वर्ण संख्या कहलाती है।" अतः द्रवस्नेही कोलॉइड को रक्षी कोलॉइड कहते हैं।


किसी रक्षी कोलॉइड की स्वर्ण संख्या जितनी अधिक होती है, उसकी स्कन्दन शक्ति उतनी ही कम होती है। अतः रक्षी कोलॉइड की स्वर्ण संख्या बढ़ने पर उसकी रक्षण क्षमता घटती है।


रक्षण क्षमता = K/ स्वर्ण संख्या



कोलॉइडी विलयन के अनुप्रयोग



 (i) साबुन की निर्मलन किया


(ii) फिटकरी द्वारा गने पानी को साफ करना


 (iii) कोलॉइडी अवस्था में औषधियों का अधिक प्रभावी होना


(iv) समुद्र तथा नदी के मिलन बिन्दु पर डेल्टा का निर्माण


नैनो पदार्थ


ये पदार्थ जिनका आकार 1-100 नैनों  मी की परास में होता है, नैनो पदार्थ कहलाते हैं। 


उपयोग इनका प्रयोग लघु सुई के रूप में तथा दुर्घटनाग्रस्त रोगियों के रक्त से ऑक्सीजन मुक्त मूलकों के अवशोषण के लिए प्रतिऑक्सीकारक के रूप में,

दन्त शल्यचिकित्सा आदि में किया जाता है।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1. अंक


प्रश्न 1. किसी विलायक में परिक्षिप्त पदार्थ के कणों का आकार 50A से 12000A की परास में है, विलयन होगा




(a) निलम्बन


(b) वास्तविक विलयन


(c) कोलॉइडी विलयन 


(d) संतृप्त विलयन


उत्तर (a) विलयन में परिक्षिप्त पदार्थ के कणों का आकार 100 A से अधिक होने पर वह निलम्बन होता है।


प्रश्न 2. कोहरा किस प्रकार का कोलॉइडी निकाय है?


(a) द्रव में गैस


(b) गैस में द्रव


(c) द्रव में द्रव


(d) गैस में ठोस


उत्तर (b) कोहरा एक कोलॉइडी निकाय है, जिसमें परिक्षेपण माध्यम (गैस) में परिक्षिप्त प्रावस्था (द्रव) उपस्थित होती है।


प्रश्न 3. निम्न में से कौन-सा प्राकृतिक कोलॉइड नहीं है?


(a) रक्त


(b) NaCl


(c) शर्करा


(d) RCOONa



 उत्तर (d) RCOONa, (साबुन) प्राकृतिक कोलॉइड नहीं है।



प्रश्न 4. झाग अथवा फोम किस प्रकार का कोलॉइडी विलयन है? 


 (a) गैस में द्रव         (c) द्रव में गैस


(b) द्रव में द्रव।           (d) गैस में ठोस


उत्तर (c) जब गैस परिक्षिप्त अवस्था तथा द्रव परिक्षेपण माध्यम होता है, तो झाग उत्पन्न होता है।


प्रश्न 5.मक्खन एक कोलॉइडी रूप होता है, जब



 (a) वसा परिक्षिप्त होती है जल में


(b) जल परिक्षिप्त होता है वसा में 


(c) केसीन निलम्बित होता है जल में


(d) उपरोक्त में से कोई नहीं


उत्तर (c) मक्खन एक कोलॉइडी रूप होता है, जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था जल (द्रव) होती है, तथा परिक्षेपण माध्यम वसा (ठोस) होती है। इस प्रकार के कोलॉइडी तन्त्र को जैल कहते हैं।


प्रश्न 6. जब वायु परिक्षेपण माध्यम होती है, तो बना हुआ सॉल कहलाता है



(a) ऐल्कोसॉल


(b) हाइड्रोसॉल


(c) बेन्जोसॉल


 (d) ऐरोसॉल


उत्तर (d) वे कोलॉइडी तन्त्र, जिनमें वायु परिक्षेपण माध्यम के रूप में उपस्थित रहती है, ऐरोसॉल कहलाते हैं। उदाहरण कोहरा, धुन्ध, धूल, बादल, द्रव स्प्रे, आदि।




प्रश्न 7. निम्न में जलविरोधी कोलॉइड है



(a) स्टार्च 


(b) गोंद 


(c) स्टैनिक ऑक्साइड


(d) जिलेटिन



उत्तर (c) ऐसे सॉल जो केवल पदार्थों (परिक्षिप्त प्रावस्था) को परिक्षेपण माध्यम से मिश्रित करने से नहीं बनते हैं, जलविरोधी कोलॉइडी सॉल कहलाते हैं। जैसे-स्टैनिक ऑक्साइड जलविरोधी कोलॉइड है।



प्रश्न 8. कोलोइडों को शुद्ध करने की विधि है


(a) पेप्टीकरण 


(b) स्कन्दन


 (c) अपोहन


 (d) ब्रेडिग ऑर्क विधि


 उत्तर (c) कोलाइडों को शुद्ध करने की विधि 'अपोहन' है। अन्य तीन कोलाइडों के निर्माण की विधियाँ हैं।


प्रश्न 9. ब्राउनी गति का कारण है 


(a) द्रव अवस्था में तापमान का उतार-चढ़ाव


(b) कोलॉइडी कणों पर आवेश का आकर्षण व प्रतिकर्षण 


(c) परिक्षेपण माध्यम के अणुओं का कोलॉइडी कणों पर संघात


(d) कणों का आकार


उत्तर (c) कोलॉइडी कणों पर गति करते हुए परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के असमान प्रहारों के कारण ब्राउनियन गति उत्पन्न होती है। 


प्रश्न 10. निम्न में से कौन-सा गुण प्रकाशिक गुण है



 (a) टिण्डल प्रभाव 


(b) स्कंदन


(c) विद्युत कण संचलन


(d) ये सभी


उत्तर (a) प्रकाश के बिखरने के गुण को टिण्डल प्रभाव कहते हैं।



 प्रश्न 11. किसी आयन का स्कन्दन प्रभाव निर्भर करता है, उसके धनायन के


(a) आकार पर 


(b) संयोजकता पर


(c) आवेश के चिन्ह पर


(d) संयोजकता तथा आवेश के चिन्ह पर 


उत्तर (d) हार्डी-शुल्जे नियम के अनुसार, किसी आयन की स्कन्दन क्षमता उसकी संयोजकता तथा आवेश के चिन्ह पर निर्भर करती है।


प्रश्न 12. पर्पिल ऑफ कैसियस है


(a) Fe(OH)₃ सॉल


 (c) सल्फर सॉल


(b) Au सॉल 


(d) As₂S₃ सॉल


उत्तर (b) ऑरिक क्लोराइड (AuCl₂) के तनु विलयन को स्टैनस क्लोराइड विलयन के द्वारा अपचयित करने पर बैंगनी रंग का गोल्ड सॉल प्राप्त होता है।


प्रश्न 13. A, B, C तथा D सॉल की गोल्ड संख्या क्रमशः 0.001, 0.15, 20 तथा 25 हैं। सबसे प्रभावी रक्षी कोलॉइड है 


(a) A


(b) B


(c) C


(d) D



उत्तर (a) रक्षण क्षमता स्वर्ण संख्या सॉल A सर्वाधिक प्रभावी रक्षी कोलॉइड है।


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. भौतिक अधिशोषण एवं रासायनिक अधिशोषण में उपयुक्त उदाहरण द्वारा अन्तर स्पष्ट कीजिए।




उत्तर


(i) भौतिक अधिशोषण किसी ठोस की सतह पर जब गैस का अधिशोषण वाण्डर वाल्स बलों के कारण होता है, तो इसे भौतिक अधिशोषण कहते हैं।


(ii) रासायनिक अधिशोषण जब किसी ठोस की सतह पर गैस के अधिशोषण में रासायनिक बन्ध बनते हैं, तो इसे रासायनिक अधिशोषण कहते हैं। भौतिक अधिशोषण, ताप बढ़ाने पर रासायनिक अधिशोषण में परिवर्तित हो जाता है।



प्रश्न 2. कोलॉइडी विलयन किसे कहते हैं? समझाइए।


उत्तर वह विलयन, जिसकी अवस्था विलयन में उपस्थित कणों तथा अणुओं के आकार पर निर्भर करती है, कोलॉइडी विलयन कहलाता है। इस प्रकार के विलयनों में पदार्थ के कणों का आकार 1 नैनोमीटर या 10Â तथा 1000 नैनोमीटर या 100Ä के मध्य होता है।


धनात्मक कोलॉइडों के उदाहरण Al(OH)₃, Fe(OH)₃, आदि।







प्रश्न 5. द्रवस्नेही सॉल द्रवविरोधी सॉल की अपेक्षा अधिक स्थायी क्यों होते हैं?


उत्तर द्रवस्नेही सॉल अत्यधिक जलयोजित होते हैं तथा जलयोजन के कारण ये अत्यधिक स्थिर होते हैं और आसानी से स्कन्दित नहीं होते हैं। इसके विपरीत द्रवविरोधी सॉल जलयोजित न होने के कारण आसानी से स्कन्दित हो जाते हैं, तथा इस कारण ये कम स्थायी होते हैं।


प्रश्न 6. समझाइए, कि As₂S₃, के कोलॉइडी कण ऋणावेशित क्यों होते हैं?


उत्तर As₂S₃ के कोलॉइडी कणों का ऋणावेशित होने का कारण, जब As₂S₃को H₂S के साथ संतृप्त किया जाता है, तो As₂S₃ का कोलॉइडी सॉल प्राप्त होता है।



As₂S³, S²- आयन को अवशोषित करता है (जो H₂S व As₂S₃ के बीच समआयन है) तथा इस प्रकार यह ऋणावेशित होता है।


As₂S₃ + H₂S. → [As₂S₃]S² : 2H+




प्रश्न 7. पेप्टीकारक क्या है? फेरिक हाइड्रॉक्साइड के अवक्षेप के लिए उपयुक्त पेप्टीकारक लिखिए। 


अथवा पेप्टीकारक की क्रिया को एक उदाहरण द्वारा समझाइए। 


 उत्तर पेप्टीकरण ताजे बने अवक्षेप को विद्युत अपघट्य मिलाकर पुनः कोलॉइडी विलयन में परिवर्तित करने के प्रक्रम को पेप्टीकरण कहते हैं। इस प्रक्रम में प्रयुक्त विद्युत अपघट्य को पेप्टीकारक कहते हैं।



उदाहरण फेरिक हाइड्रॉक्साइड [Fe(OH)₃] में फेरिक क्लोराइड (FeCl₃) पेप्टीकारक का तनु विलयन मिलाकर स्थायी सॉल प्राप्त किया जाता है।


Fe(OH)₃ + FeCl₃ अवक्षेप पेप्टीकारक → Fe(OH)₃: Fe³ + : कोलॉइडी परत : 3CI-




प्रश्न 8. टिण्डल प्रभाव क्या है? यह क्यों होता है? अथवा टिण्डल प्रभाव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


उत्तर अन्धेरे में रखे कोलॉइडी विलयन में से जब तीव्र प्रकाश पुंज प्रवाहित करते हैं, तो इन किरणों का मार्ग नीले प्रकाश द्वारा दृश्यमान हो जाता है, इस परिघटना

को टिण्डल प्रभाव कहते हैं। यह बड़े आकार के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है। 



प्रश्न 9. टिण्डल प्रभाव क्या है? इसको प्रभावित करने वाले दो कारक लिखिए।



उत्तर 


टिण्डल प्रभाव को प्रभावित करने वाले दो कारक निम्नलिखित हैं


(i) प्रकाश की तीव्रता


(ii) कणों का आकार


प्रश्न 10. ब्राउनी गति क्या है? कोलॉइडी कणों का आकार और परिक्षेपण माध्यम की श्यानता इसे किस प्रकार प्रभावित करते हैं? 


 उत्तर 


ब्राउनी गति कोलॉइडी कणों इस तीव्र टेढ़ी-मेढ़ी गति को ब्राउनी गति कहते हैं। ब्राउनी गति, कोलॉइडी कणों के आकार के साथ-साथ परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के टकराने के कारण उत्पन्न होती हैं। जैसे-जैसे कणों का आकार तथा परिक्षेपण माध्यम की श्यानता बढ़ती जाती है, यह प्रभाव कम होता जाता है। तथा ब्राउनी गति धीमी होती जाती है। अन्त में, जब परिक्षिप्त कण बड़े होकर निलम्बन के कणों के समान हो जाते हैं, तो ब्राउनी गति प्रदर्शित नहीं होती हैं।


प्रश्न 11. निम्नलिखित विलयनों का ऋणात्मक सॉल के प्रति स्कन्दन क्षमता का  क्रम लिखिए।


1M FeCl₃, 1 M NaCl, 1M BaCl₂, 1M Th (NO₃)₄


उत्तर हार्डी-शुल्जे नियमानुसार, विपरीत आवेशित आयनों की संयोजकता के बढ़ने से, कोलॉइडी विलयन की स्कन्दन क्षमता बढ़ती है। अतः ऋणावेशित सॉल के स्कन्दन के लिए दिए गए विभिन्न धनायनों की स्कन्दन क्षमता का क्रम निम्न प्रकार है


1M NaCl < 1 M BaCl₂< 1M FeCl₂ < 1M Th (NO₃)₄




प्रश्न 12. स्कन्दन क्या है? एक उदाहरण देकर समझाइए । 


उत्तर कोलॉइडी कणों के विद्युत अपघट्य की सूक्ष्म मात्रा की उपस्थिति में समआयन को अधिशोषित करने के कारण इन पर धन अथवा ऋण आवेश होता है। समान विद्युत आवेश के कारण ये दूर-दूर रहते हैं, जिससे कोलॉइडी तन्त्र स्थायी होता है। इन कणों पर लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल बहुत सूक्ष्म होता है। तथा इसी कारण गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में भी ये कण नीचे नहीं बैठते है। जब इन कणों का आवेश किसी भी कारण से समाप्त हो जाता है, तो ये कण परस्पर टकराकर बड़े कण बना लेते हैं तथा अवक्षेपित होकर नीचे बैठ जाते हैं। यह प्रक्रम स्कन्दन या अवक्षेपण कहलाता है।


उदाहरण


[AgI]Ag+ + I-      →    2AgI



प्रश्न 13. विद्युत अपघट्य के ऊर्णन मान को समझाइए ।


अथवा स्कन्दन मान को समझाइए




उत्तर स्कन्दन मान या ऊर्णन मान



"किसी विद्युत अपघट्य का वह न्यूनतम सान्द्रण जो सॉल को स्कन्दित करने के लिए आवश्यक होता है, स्कन्दन अथवा ऊर्णन मान कहलाता है।"


अथवा "एक लीटर कोलॉइडी विलयन को स्कन्दित करने के लिए विद्युत अपघय के मिलोमोलों की संख्या को उसका ऊर्णन मान कहते हैं।"


स्कन्दन मान समानुपाती 1/स्कन्दन क्षमता



स्कन्दन या ऊर्णन मान को मिली मोल/लीटर में व्यक्त करते हैं। 



प्रश्न 14. नदियाँ समुद्र में मिलने से पहले डेल्टा का निर्माण करती हैं, क्यों?




अथना डेल्टा निर्माण की क्रिया को समझाइए। 


उत्तर 


डेल्टा का निर्माण समुद्र व नदी के मिलने के स्थान पर रेत तथा मिट्टी के विशाल भण्डार एकत्रित हो जाते हैं, इसे डेल्टा कहा जाता है। 


डेल्टा निर्माण की क्रिया नदी के जल में मिट्टी तथा रेत के कोलॉइडी कण रहते हैं, जो ऋणावेशित होते हैं। समुद्र के जल में धनावेशित आयन जैसे Na+, Mg²+. Ca²+ आयन इत्यादि होते हैं। जब नदी का जल समुद्र के जल के सम्पर्क में आता है, तो नदी के जल में उपस्थित मिट्टी तथा रेत के कणों का ऋणावेश समुद्री जल के घनावेशित आयनों के द्वारा नष्ट हो जाता है। इस कारण इनका स्कन्दन हो जाता है तथा डेल्टा का निर्माण होता है। 



प्रश्न 15. बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का स्प्रे करने पर वर्षा का होना कैसे सम्भव है? 



उत्तर बादलों की प्रकृति कोलॉइडी होने के कारण इन पर आवेश होता है। सिल्वर आयोडाइड एक विद्युत अपघट्य है। बादलों पर इसका स्प्रे करने के परिणामस्वरूप स्कंदन होता है जिससे वर्षा हो जाती है।


प्रश्न 16. गर्म जल के आधिक्य में FeCl₃मिलाकर एक कोलॉइड बनाया जाता है। इस कोलॉइड में आधिक्य में सोडियम क्लोराइड मिलाने पर क्या होगा ?


उत्तर गर्म जल के आधिक्य में FeCl₃मिलाने पर Fe³+ आयनों के अधिशोषण से धनावेशित जलयोजित फेरिक ऑक्साइड का सॉल बनता है। आधिक्य में NaCl मिलाने पर, ॠणावेशित CI- आयन धनावेशित जलयोजित फेरिक ऑक्साइड को उदासीन करके इसका स्कंदन कर देते हैं।


प्रश्न 17. कोट्रेल धूम्र अवक्षेपक में किस प्रकार धुएँ के कोलॉइडी कणों का अवक्षेपण होता है?


उत्तर कोट्रेल धूम्र अवक्षेपक में धुएँ को इसके कणों के आवेश से विपरीत आवेश वाले इलेक्ट्रोडो के कक्ष में से गुजारा जाता है। कण इन प्लेटों के सम्पर्क में आकर अपना आवेश खो देते हैं एवं अवक्षेपित हो जाते हैं।


प्रश्न 18. क्या होता है जब अपोहन अधिक समय तक किया जाता है?



उत्तर विद्युत अपघट्य की आंशिक मात्रा में उपस्थिति, कोलॉइडी विलयन के स्थायित्व के लिए आवश्यक है। अधिक समय तक अपोहन करने से विद्युत अपघट्य पूर्णतया हट जाते हैं तथा कोलॉइड का स्कंदन हो जाता है।


प्रश्न 19. इओसिन रंजक की उपस्थिति में सिल्वर हैलाइड का सफेद अवक्षेप रंगीन क्यों हो जाता है? 


उत्तर सिल्वर हैलाइड अवक्षेप के पृष्ठ पर इओसिन (रंगीन) का अधिशोषण हो जाता है।



प्रश्न 20. कोयले की खानों में उपयोग किए जाने वाले गैस मास्क में सक्रियित चारकोल की क्या भूमिका है? 


 उत्तर सक्रियित चारकोल कोयले की खानों में उपस्थित विषैली गैसों को अपने पृष्ठ पर अधिशोषित कर लेता है।


प्रश्न 21. फॉस्फेट आयन की स्कंदन शक्ति क्लोराइड आयन से अधिक क्यों होती है? हार्डी शुल्जे नियम से समझाइए। 


 उत्तर विद्युत अपघट्य की कम से कम मात्रा जो किसी सॉल के अवक्षेपण के लिए आवश्यक है, इसकी स्कंदन शक्ति कहलाती है। साधारणतः ऊर्णीक आयन की संयोजकता जितनी अधिक होती है उतनी ही अधिक उसकी अवक्षेपण की क्षमता होती है। इसे हार्डी-शल्जे नियम कहते हैं। फॉस्फेट आयन पर 3 आवेश तथा क्लोराइड आयन पर -1 आवेश होता है। अधिक आवेश के कारण फॉस्फेट की स्कंदन शक्ति क्लोराइड आयन से अधिक होती है।


प्रश्न 22. समुद्र और नदी के जल के मिलने के स्थान पर डेल्टा का निर्माण कैसे होता है?


 उत्तर नदी का जल मृदा का कोलॉइडी विलयन होता है। समुद्र के जल में बहुत सारे विद्युत अपघट्य होते हैं। वह स्थान जहाँ नदी का जल समुद्री जल से मिलता है वहाँ समुद्री जल में उपस्थित विद्युत अपघट्य नदी के जल में उपस्थित मिट्टी के कोलॉइडी कणों का स्कंदन कर देते हैं। स्कंदित मृदा के जमने से डेल्टा का निर्माण हो जाता है।




प्रश्न 23. नैनो पदार्थ क्या है? समझाइए । 


उत्तर वे पदार्थ जिनका आकार 1-100 नैनोमी की परास में होता है, नैनो पदार्थ कहलाते हैं।


नैनो पदार्थों के गुणों तथा स्थूल पदार्थों के गुणों में भिन्नता होती है। इसका कारण यह है, कि संगत सूक्ष्म कणों की अपेक्षा समान द्रव्यमान वाले नैनोकणों का पृष्ठ क्षेत्रफल अत्यधिक होता है तथा पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होने के कारण इनकी क्रियाशीलता भी अत्यधिक होती है। अब तक कई नैनो पदार्थों का निर्माण किया जा चुका है, जिनमें बोरॉन तथा कार्बन के नाइट्राइड आदि आते हैं। नैनो तकनीक द्वारा कार्बन तथा बोरॉन नाइट्राइट की नैनो ट्यूबों का निर्माण किया गया जिनमें आश्चर्यजनक गुण पाए गए। इनकी आकृति पाइप या लघु सिलेण्डर के समान होती हैं। तथा इनका व्यास 5-15 नैनोमी परास में होता है।


लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक




प्रश्न 1. अधिशोषण एवं अवशोषण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए। प्रत्येक का एक-एक उदाहरण भी दीजिए।



उत्तर अधिशोषण एवं अवशोषण में अन्तर निम्न प्रकार हैं। 




अधिशोषण

अवशोषण

यह एक पृष्ठीय (Surface) घटना है।


यह एक अन्तरंग (Bulk) घटना है।

इसमें अधिशोष्य केवल अधिशोषक की सतह पर ही एकत्रित होता है।

इसमें अधिशोषक के अभ्यन्तर में अधिशोष्य का सान्द्रण सर्वत्र समान होता है।

प्रारम्भ में अधिशोषण की दर अधिक

होती है तथा साम्य स्थापित होने तक धीरे-धीरे कम होती जाती है।

अवशोषण समान दर से सम्पन्न होता है।

उदाहरण जल वाष्प का सिलिका जैल द्वारा अधिशोषण होता है।

उदाहरण अमोनिया जल के द्वारा अवशोषित होती है।







प्रश्न 2. भौतिक अधिशोषण एवं रासायनिक अधिशोषण में क्या अंतर है? 


अथवा भौतिक अधिशोषण तथा रसावशोषण में चार मुख्य अन्तर लिखिए।





भौतिक अधिशोषण

रासायनिक अधिशोषण

यह वान्डरवाल्स बलों के कारण उत्पन्न होता है

यह रासायनिक बंध बनने के कारण

इसकी प्रकृति विशिष्ट नहीं होती है।

इसकी प्रकृति अतिविशिष्ट होती है।

यह उत्क्रमणीय प्रक्रम है।

यह अनुत्क्रमणीय प्रक्रम है।

अधिशोषण की एन्थैल्पी कम होती है। ( लगभग 20 – 40kJmol-¹)

अधिशोषण की एन्थैल्पी उच्च होती है। (लगभग 80-240kJmol-¹)

यह गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है। अधिक आसानी से द्रवणीय गैसें सहजता से अधिशोषित होती हैं।

यह भी गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है। वे गैसें जो अधिशोषक से क्रिया कर सकती हैं, रासायनिक अधिशोषण दर्शाती हैं।

भौतिक अधिशोषण के लिए निम्न ताप सहायक होता है।

रासायनिक अधिशोषण के लिए उच्च ताप सहायक होता है। 

इसमें सुप्रेक्ष्य सक्रियण ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है।

कभी-कभी उच्च सक्रियण ऊर्जा की आवश्यकता होती है।




प्रश्न 3. कारण बताइये कि सूक्ष्म विभाजित पदार्थ अधिक प्रभावी अधिशोषक क्यों होता है?


उत्तर सूक्ष्म विभाजित पदार्थ अधिक प्रभावशाली अधिशोषक है क्योंकि


 (i) पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होने से अधिशोषण का परिमाण बढ़ता है।


(ii) सक्रिय केन्द्रों की संख्या अधिक होने से अधिशोषण का परिमाण बढ़ जाता है।


प्रश्न 4. अधिशोषक के सक्रियण से आप क्या समझते हैं? यह कैसे प्राप्त किया जाता है?



उत्तर अधिशोषक के सक्रियण का अर्थ है, अधिशोषक की अधिशोषण शक्ति को बढ़ाना। यह अधिशोषक के पृष्ठीय क्षेत्रफल को बढ़ाकर किया जा सकता है

जिसे निम्न प्रकार प्राप्त किया जा सकता है, 


(i) अधिशोषित गैसों को हटाकर अर्थात् लकड़ी के चारकोल को निर्वात् में या अति उच्चतापीय भाप में 650 K से 1330 K ताप के मध्य गर्म करके सक्रिय किया जा सकता है।


(ii) अधिशोषक को छोटे टुकड़ों में तोड़कर।


(iii) अधिशोषक के पृष्ठ को रफ (ऊबड़ खाबड़) बनाकर।


प्रश्न 5. अधिशोषण हमेशा ऊष्माक्षेपी क्यों होता है?


उत्तर जब किसी ठोस के पृष्ठ पर गैस का अधिशोषण होता है तो इसकी (गैस की) एन्ट्रॉपी घट जाती है अर्थात् ∆S ऋणात्मक हो जाता है। समीकरण ∆G = ∆H - T∆S के आधार पर किसी प्रक्रम के स्वतः प्रवर्तित होने के लिये मुक्त ऊर्जा (गिब्स ऊर्जा) का मान ऋणात्मक होना चाहिए क्योंकि T∆S का मान ऋणात्मक है। अतः ∆G ऋणात्मक तभी हो सकता है जबकि ∆H का मान पर्याप्त ऋणात्मक हो। इस प्रकार अधिशोषण हमेशा ऊष्माक्षेपी होता है।



प्रश्न 6.उत्क्रमणीय तथा अनुत्क्रमणीय कोलॉइड में क्या अन्तर है? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। 


अथवा उत्क्रमणीय तथा अनुत्क्रमणीय कोलॉइडों में विभेद कीजिए। निम्नलिखित में से उत्क्रमणीय तथा अनुत्क्रमणीय कोलॉइडों का चयन कीजिए।

 Fe(OH)₃, स्टार्च, As₂S₃, जिलेटिन । 


अथवा निम्नलिखित गुणों के आधार पर, द्रव-विरोधी और द्रव-स्नेही सॉल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।


(i) श्यानता


(ii) विद्युत अपघटय का प्रभाव


(iii) पृष्ठ तनाव


(iv) विद्युत आवेश 


ANSWERS


गुण

द्रवस्नेही कोलॉइड

(उत्क्रमणीय कोलॉइड)

द्रवविरोधी कोलॉइड 

(अनुत्क्रमणीय कोलॉइड)

जलयोजन

ये अत्यधिक जलयोजित होते हैं।

ये अधिक जलयोजित नहीं होते हैं।

स्थायित्व

इनका कोलॉइडी विलयन अधिक स्थायी होता है। अर्थात् इनके कोलॉइडी विलयन का आसानी से अवक्षेपण हो नही जाता है।


इनका कोलॉइडी विलयन कम स्थायी होता है। अर्थात् इनके कोलॉइडी विलयन का आसानी से अवक्षेपण हो जाता है।

दृश्यता

प्रक्षेपित कण अतिसूक्ष्मदर्शी से न तो दृश्य होते हैं न ही इन्हें पहचाना जा सकता है

प्रक्षेपित कण यद्यपि देखें नहीं जा सकते लेकिन इन्हें अतिसूक्ष्मदर्शी द्वारा पहचाना पहचाना जा सकता है।


श्यानता

इनकी श्यानता परिक्षेपण माध्यम की श्यानता से अधिक होती है।

इनकी श्यानता परिक्षेपण माध्यम की श्यानता के लगभग बराबर होती है।

विद्युत अपघटयों का प्रभाव

कोई प्रभाव नहीं

विद्युत अपघटय की कम मात्रा डालने पर कोलॉइडी विलयन का अवक्षेपण हो जाता है।

पृष्ठ तनाव:

इसमें परिक्षिप्त माध्यम का पृष्ठ तनाव समान होता है।

इसमें परिक्षिप्त एवं परिक्षेपण माध्यम का पृष्ठतनाव समान होता है। 

विद्युत आवेश

कणों पर बहुत कम या शून्य आवेश होता है।

कणों पर एक निश्चित धनात्मक एवं ऋणात्मक आवेश होता है।



उदाहरण गोंद, स्टार्च, जिलेटिन आदि के जल में कोर्लोइड।


उदाहरण धातु, धातु ऑक्साइडों, 

धातु हाइड्रॉक्साइडों [Fe(OH)₃]. धातु सल्फाइडों (As₂S₃), आदि के जल में कोलॉइड ।



 प्रश्न 7. द्रवरागी एवं द्रवविरागी सॉल क्या होते हैं? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। द्रवविरोधी सॉल आसानी से स्कंदित क्यों हो  जाते हैं? 



उत्तर 


 द्रवविरागी सॉल के स्कंदन का कारण सॉल के कणों पर उपस्थित आवेश को हटाकर या आवेश को उदासीन करके द्रवविरागी सॉल का स्कंदन या अवशेषण हो जाते हैं। अर्थात् ये कण एक-दूसरे के समीप आकर पुजित हो जाते हैं एवं गुरुत्व बल के कारण नीचे बैठ जाते हैं (दूसरे शब्दों में, स्कंदन या अवशेषण हो जाते हैं)। विद्युत अपघट्य की थोड़ी सी मात्रा मिलाकर ऐसा किया जाता है।



प्रश्न 8. बहुअणुक एवं वृहदाणुक कोलॉइड में क्या अन्तर है? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। सहचारी कोलॉइड इन दोनों प्रकार के कोलॉइडों से कैसे भिन्न हैं?




उत्तर 


बहुआण्विक कोलॉइड जब किसी पदार्थ के बहुत से परमाणु या लघु अणु एकत्रित होकर पुंज जैसी ऐसी स्पीशीज बनाते हैं जिनका आकार (साइज) कोलॉइडी सीमा में होता है तब बहु आण्विक कोलॉइड बनता है। 


उदाहरण गोल्ड सॉल, सल्फर सॉल (S₈) 


वृहदाणुक कोलॉइड वृहदाणुक उचित विलायक में घुलकर ऐसा विलयन बनाते हैं जिनमें वृहदाणुओं का आकार कोलॉइडी सीमा में होता है। इस विलयन को वृहादाणुक कोलॉइड कहते हैं। ये बहुत स्थायी होते हैं और अनेक अर्थों में यथार्थ विलयनों के समान होते हैं। 


उदाहरण सेलुलोस, प्रोटीन आदि।


सहचारी कोलॉइड ये कोलॉइड कम सान्द्रताओं पर सामान्य प्रबल विद्युत अपघट्य के समान व्यवहार करते हैं परन्तु उच्च सान्द्रताओं पर कणों का पुंज जिन्हें मिसेल कहते हैं, बनने के कारण कोलॉइड के समान व्यवहार करते हैं। ये अपना कोलॉइडी व्यवहार केवल एक निश्चित ताप से अधिक ताप, जिसे क्राफ्ट ताप कहते हैं एवं एक निश्चित सान्द्रता जिसे क्रांतिक मिसेल सान्द्रता (CMC) कहते हैं, पर प्रदर्शित करते हैं। 


उदाहरण साबुन एवं संश्लेषित परिमार्जक




प्रश्न 9. गोल्ड सॉल बनाने की ब्रेडिंग ऑर्क विधि का वर्णन कीजिए। 



उत्तर गोल्ड सॉल बनाने की ब्रेडिंग ऑर्क विधि



इस विधि में परिक्षेपण माध्यम में उपस्थित धातुओं के दो इलेक्ट्रोडों के मध्य विद्युत ऑर्क उत्पन्न किया जाता है। परिक्षेपण माध्यम को शीतलन मिश्रण के द्वारा ठण्डा करते हैं। ऑर्क से अत्यधिक ताप उत्पन्न होता है, जो थोड़ी-सी धातु को वाष्पित कर देता है तथा यह वाष्प संघनित होकर कोलॉइडी आकार के कण बनाती है। इस प्रकार से बने कोलॉइडी कण माध्यम में परिक्षिप्त अवस्था में रहकर धातु का सॉल बनाते हैं। 


प्रश्न 10. रक्षी कोलॉइड क्या हैं? दो रक्षी कोलॉइडों के नाम लिखिए।


उत्तर 


रक्षी कोलॉइड किसी द्रवस्नेही कोलॉइड का प्रयोग (विद्युत अपघट्य मिलाए जाने पर) द्रवविरोधी कोलॉइडी विलयनों की स्कन्दन से रक्षा करने के प्रक्रम को कोलॉइडी विलयन का रक्षण कहा जाता है। इस रक्षण के लिए प्रयुक्त द्रवस्नेही कोलॉइड को रक्षी कोलॉइड कहा जाता है तथा द्रवविरोधी कोलॉइड को रक्षित कोलॉइड कहते हैं। 


उदाहरण गोल्ड सॉल (एक द्रवविरोधी सॉल) में जिलेटिन सॉल (एक द्रवस्नेही सॉल) को मिलाने पर, सोडियम क्लोराइड विलयन के द्वारा गोल्ड सॉल का स्कन्दन आसानी से नहीं होता है। इस प्रकार जिलेटिन यहाँ एक रक्षी कोलॉइड के रूप में कार्य करता है तथा गोल्ड सॉल रक्षित कोलॉइड है।


प्रश्न 11. निम्नलिखित परिस्थितियों में क्या प्रेक्षण होगें 


(i) जब प्रकाश किरण पुँज कोलॉइडी सॉल में से गमन करता है?


(ii) जब जलयोजित फेरिक ऑक्साइड सॉल में NaCl विद्युत अपघट्य मिलाया जाता है? 


(iii) जब कोलॉइडी सॉल में से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है?


उत्तर (i) जब प्रकाश किरण पुँज कोलॉइडी सॉल में से गमन करता है तो प्रकाश का प्रकणन होता है और किरण का पथ प्रदीप्त हो जाता है।


(ii) जब जलयोजित फेरिक ऑक्साइड सॉल में NaCl विद्युत अपघट्य मिलाया जाता है तो फेरिक हाइड्रॉक्साइड सॉल के कणों पर उपस्थित धनावेश, Cl- आयनों पर उपस्थित ॠणावेश से उदासीन हो जाता है जिससे स्कंदन हो जाता है।


(iii) जब कोलॉइडी सॉल में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो कोलॉइडी कण विपरीत आवेश युक्त इलेक्ट्रोड की ओर गमन करते हैं। यह परिघटना विद्युत कण संचलन कहलाती है। 



प्रश्न 12. "कोलॉइड एक पदार्थ नहीं, पदार्थ की एक अवस्था है" इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।



 उत्तर कोलॉइड एक पदार्थ नहीं, पदार्थ की अवस्था है यह एक सत्य कथन है। क्योंकि कुछ पदार्थ किन्हीं दशाओं में क्रिस्टलाभ हैं लेकिन अन्य दशाओं में कोलॉइड होते हैं उदाहरण NaCl इस प्रकार का एक पदार्थ है जिसे सामान्यतः क्रिस्टलाभ कहते हैं। यह जलीय माध्यम में क्रिस्टलाभ के समान व्यवहार करता है लेकिन बेन्जीन में मिश्रित करने पर यह कोलॉइड जैसा व्यवहार करता है। अत: ऊपर दिया गया कथन सही है।


पुनः कोलॉइडी कणों का व्यास 1 से 1000nm के क्षेत्र में होता है। यदि कणों का व्यास 1nm से कम है तो विलयन वास्तविक विलयन है, और यदि यह 1000nm से अधिक है तो विलयन एक निलम्बन है। कोलॉइडी अवस्था इन दोनों के बीच की माध्यमिक अवस्था है।




प्रश्न 13. मिसेल क्या है? मिसेल निकाय का एक उदाहरण दीजिए। 


उत्तर कोलॉइडी कणों का वह पुँज जिसमें जलरागी और जल विरागी दोनों भाग होते हैं, मिसेल कहलाता है। ये एक निश्चित ताप से अधिक ताप, जिसे क्राफ्ट ताप कहते हैं एवं एक निश्चित सान्द्रता, जिसे क्रांतिक मिसेल सान्द्रता (CMC) कहते हैं, से अधिक पर बनते हैं। इनके अणु गोलीय आकार में इस प्रकार एकत्रित हो जाते हैं कि इनका हाइड्रोकार्बन या अध्रुवीय भाग गोले के केन्द्र की ओर इंगित होता है तथा ध्रुवीय भाग गोले के पृष्ठ पर रहता है। उदाहरण जल में साबुन का विलयन मिसेल निकाय का उदाहरण है।


प्रश्न 14. निम्न पदों को उचित उदाहरण सहित समझाइए


 (i) ऐल्कोसॉल


 (ii) ऐरोसॉल


(iii) हाइड्रोसॉल


उत्तर (i) ऐल्कोसॉल यदि ठोस (परिक्षिप्त प्रावस्था) को ऐल्कोहॉल ( परिक्षेपण माध्यम) में मिश्रित किया जाता है तो बनने वाले कोलॉइड को ऐल्कोसॉल कहते हैं। उदाहरण नाइट्रेट एथेनॉल में सेलुलोस का विलयन।


(ii) ऐरोसॉल वह कोलॉइड जिसमें एक ठोस या द्रव, गैस में परिक्षेपित (परिक्षेपित माध्यम) रहता है, एरोसॉल कहते हैं। उदाहरण धुआँ, धूल (ठोस गैस में), कोहरा, धुंध, बादल, कीटनाशक स्प्रे आदि।


(iii) हाइड्रोसॉल (जलरागी सॉल) वह सॉल जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था जल में परिक्षेपित (परिक्षेपित माध्यम) होती है, हाइड्रोसॉल कहलाते हैं। उदाहरण जीवित कोशिका में कोशिका तरल, रूधिर आदि।



प्रश्न 18. सॉल तथा जैल में क्या अन्तर है? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।



उत्तर 


सॉल एक प्रकार का कोलॉइड है, जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था ठोस तथा परिक्षेपण माध्यम द्रव है। इसमें कणों का आकार 1 नैनोमीटर से 1 माइक्रोमीटर होता है। उदाहरण प्रोटीन। 



जैल एक कोलॉइड का प्रकार है, जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था द्रव तथा परिक्षेपण माध्यम ठोस होती है। उदाहरण पनीर ।



प्रश्न 19. टिण्डल प्रभाव को समझाइए।


अथवा टिण्डल प्रभाव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


उत्तर वह विलयन, जिसकी अवस्था विलयन में उपस्थित कणों तथा अणुओं के आकार पर निर्भर करती हैं, कोलॉइडी विलयन कहलाता है।


इस प्रकार के विलयनों में पदार्थ के कणों का आकार 1 नैनोमीटर या 10Á तथा 1000 नैनोमीटर या 100Å के मध्य होता है। 


टिण्डल प्रभाव या प्रकाशीय गुण अन्धेरे में रखे कोलॉइडी विलयन में से जब तीव्र प्रकाश पुँज प्रवाहित करते हैं, तो इन किरणों का मार्ग नीले प्रकाश द्वारा दृश्यमान हो जाता है, तथा एक शंकु जैसी आकृति प्राप्त होती है। इस प्रभाव को सबसे पहले टिण्डल ने देखा था, इसलिए शंकु जैसी आकृति को टिण्डल शंकु तथा इस प्रभाव को टिण्डल प्रभाव कहते हैं।


प्रश्न 20. विद्युत अपोहन द्वारा कोलॉइडी विलयन के शोधन का सचित्र वर्णन कीजिए।


अथवा कोलॉइडी विलयनों के शुद्धिकरण की विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।




उत्तर बिद्युत अपोहन अपोहन प्रक्रम को तीव्र करने हेतु विद्युत क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है, तो यह प्रक्रम विद्युत अपोहन कहलाता है। विद्युत अपोहन क्रिया द्वारा कम समय में कोलॉइड को शुद्ध अवस्था में प्राप्त करना सम्भव है, क्योंकि विद्युत धारा प्रवाहित करने पर आयनिक अशुद्धियाँ तीव्रता से विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोडों की ओर गमन करने लगती हैं। यद्यपि इस प्रक्रम के द्वारा अचालक अशुद्धियों जैसे-ऐल्कोहॉल, शक्कर, आदि के व्यक्करण को तीव्र नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये अशुद्धियाँ विद्युत धारा के द्वारा प्रभावित नहीं होती हैं।




इसमें प्रयुक्त उपकरण अपोहन के समान होता है, परन्तु इसमें अपोहन क्रिया को तीव्र करने हेतु बाह्य पात्र में इलेक्ट्रोड लगे होते हैं।


नोट अपोहन का प्रयोग मुख्यतया कृत्रिम किडनी मशीन में रक्त के शुद्धिकरण में होता है। किडनी के कार्य न करने की स्थिति में शरीर द्वारा रक्त को शुद्ध नहीं किया जा सकता। इस स्थिति में रक्त में विलेय अशुद्धियों को अपोहन द्वारा पृथक् करके रक्त प्रवाह में पुनः ले जाया जाता है।


प्रश्न 21. निम्नलिखित को उदाहरण द्वारा समझाइए।



(i) धनात्मक कोलॉइडी विलयन 


(ii) टिण्डल प्रभाव या ब्राउनियन गति



उत्तर




ब्राउनी गति या गतिज गुण "कोलॉइडी कण सदैव तीव्र गति से टेढ़े-मेढ़े गमन करते हुए प्रतीत होते हैं,, जब इनका किसी अतिसूक्ष्मदर्शी से निरीक्षण किया जाता है। कोलॉइडी कणों का तीव्र गति से टेढ़े-मेढ़े चलना ब्राउनी गति कहलाता है। चूँकि इस गति का निरीक्षण सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्राउन ने किया था, इसलिए इसे उनके नाम पर ब्राउनी गति कहते हैं।


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