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Class 10 science chapter 14 our environment हमारा पर्यावरण full solutions notes

 Class 10 science chapter 14 our environment full solutions notes


कक्षा 10 वी विज्ञान अध्याय 14 हमारा पर्यावरण का सम्पूर्ण हल








हमारा पर्यावरण(Our Environment)


'जीव के चारों ओर उपस्थित वह क्षेत्र, जो उन्हें घेरे रहता है तथा उसकी जैविक क्रियाओं पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है, पर्यावरण कहलाता है। इस परिवृत्ति में जीव से सम्बन्धित वे सभी तत्व, वस्तुएँ, स्थितियाँ और दशाएँ सम्मिलित हैं, जो जीवों के जीवन एवं विकास को प्रभावित करती हैं।


अपशिष्ट पदार्थों के प्रकार एवं हमारे पर्यावरण पर उनका प्रभाव


हम अपने दैनिक जीवन में कुछ ऐसे अनुपयोगी या अवाँछित वस्तुओं का निष्कासन करते हैं, जो अपशिष्ट कहलाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं


(i) ठोस अपशिष्ट (Solid waste) नगरपालिका का कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट, आदि।


(ii) गैसीय अपशिष्ट (Gaseous waste) उद्योगों की चिमनी एवं वाहनों से निकला धुँआ।


(iii) तरल अपशिष्ट (Liquid waste) वाहित मल, औद्योगिक रसायन, रंजक, आदि।


अपघटन के आधार पर अपशिष्ट दो प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं


1. जैवनिम्नीकृत अपशिष्ट


वे पदार्थ, जो वातावरण में कुछ समय बाद स्वतः ही ऊष्मा या सूक्ष्मजीवों की क्रियाओं द्वारा नष्ट या अपघटित हो जाते हैं, जैवनिम्नीकृत अपशिष्ट कहलाते हैं। कार्बनिक अपशिष्टों या जैवनिम्नीकृत पदार्थों के अपघटन से खाद एवं जैव-गैस (Biogas) का उत्पादन किया जाता है, जो क्रमशः खेतों में उर्वरक के रूप में एवं भोजन पकाने में प्रयुक्त होती है।



2. अजैवनिम्नीकृत अपशिष्ट


वे अपशिष्ट जो अपघटन की क्रियाओं द्वारा विघटित होकर उपयोगी पदार्थ में परिवर्तित नहीं होते हैं; जैसे-काँच, प्लास्टिक, DDT, आदि। अजैवनिम्नीकृत अपशिष्ट कहलाते हैं। ये पर्यावरण हेतु विषाक्त व हानिकारक होते हैं तथा अधिक मात्रा में एकत्रित होने पर पारितन्त्र एवं जीवों हेतु प्राणघातक हो सकते हैं। ये पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। ये जल को प्रदूषित कर जलीय पारितन्त्र को नष्ट करते हैं।


मानवीय क्रियाकलापों का प्राकृतिक पर्यावरण पर प्रभाव


वर्तमान में प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन, औद्योगिक विकास, वनोन्मूलन, जनसंख्या वृद्धि, आदि मानवीय क्रियाकलाप पर्यावरण को बहुत अधिक प्रदूषित एवं असन्तुलित कर रहे हैं।


कचरा प्रबन्धन


ठोस अपशिष्टों के कारण जल तथा भूमि प्रदूषण होता है तथा अनेक संक्रामक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस कारण इनका उचित निस्तारण आवश्यक है। वर्तमान में ठोस अपशिष्ट के नियन्त्रण के लिए 3R (Reduce, Reuse and Recycling) अर्थात् अपशिष्ट के उत्पादन में कमी लाना, पुरानी वस्तुओं को पुन उपयोग करना तथा पुनः चक्रण तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।


ठोस अपशिष्ट निस्तारण की विधियाँ


ठोस अपशिष्टों के निस्तारण हेतु प्रयुक्त प्रमुख विधियाँ निम्न हैं।


(i) पुनः चक्रण (Recycling) – इसके अन्तर्गत पुनः उपयोग में आ सकने वाले अपशिष्टो का अन्य पदार्थों के कच्चे माल के लिए उपयोग किया जाता है, उदाहरण लकड़ी, लोहा एवं अन्य धातुएँ, कागज, रबर, आदि।



(ii) कम्पोस्टिंग (Composting) इसके अन्तर्गत असंक्रामक जैवनिम्नीकृत अपशिष्टों; जैसे-घरेलू कचरा, चमड़ा, पादप अपशिष्ट, आदि का उपयोग भूमि में दबाकर खाद निर्माण में किया जाता है।


(ii) सैनेटरी लैण्ड फिलिंग (Sanitary Land Filling) इसके अन्तर्गत शहर से दूर बंजर भूमि में विशाल बहुमंजिला गड्ढे खोदकर इनमें अपशिष्ट भरा जाता है। महानगरों में अपशिष्ट के निस्तारण में यह तकनीक उपयोग में ली जाती है। यहाँ गड्ढे आस्तरित (Coated) होते हैं तथा लीचिंग के निकास की उचित व्यवस्था होती है।


(iv) दहन (Burning) इस तकनीक में अपशिष्ट को उच्च तापमान पर जला दिया जाता है। यह तकनीक संक्रामक तथा विषाक्त अपशिष्टों के लिए उपयुक्त है।


(v) वाहित मल उपचार (Sewage treatment) महानगरों के वाहित मल को नदियों या जल स्रोतों में डालने से पूर्व तथा पुनः उपयोग में लाने से पहले वाहित मल उपचार संयंत्र (STP) में उपचारित किया जाता है। यहाँ विभिन्न भौतिक (जैसे-निस्यंदन, अवसादन, अभिकेंद्रण) तथा जैविक (सूक्ष्मजीवीय अपघटन) विधियों द्वारा वाहित मल का उपचार किया जाता है। इस कार्य हेतु यहाँ अनेक विशाल टैंक या कक्ष बनाए जाते हैं।


रेलगाड़ियों में प्रयोज्य (निवर्तनीय) कागज के कपों का उपयोग


कुछ वर्षों पूर्व भारतीय रेलवे द्वारा रेलों में चाय के लिए काँच के गिलासों का उपयोग किया जाता था, किन्तु सफाई की कमी के कारण इनकी जगह निवर्तनीय प्लास्टिक के कपों ने ले ली। इन लाखों अजैवनिम्नीकृत कपों के निस्तारण में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुई। अतः इनकी जगह पर्यावरण हितैषी मिट्टी के कपों या कुल्हड़ों ने ले ली। ये कुल्हड़ महँगे होने के साथ-साथ उपजाऊ ऊपरी मृदा की परत के दोहन का कारण भी बन गए। इस कारण इनकी जगह कागज के निवर्तनीय कपों ने ली, जो जैवनिम्नीकृत होने के कारण पर्यावरण हितैषी थे।



बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से समूहों में केवल जैवनिम्नीकरणीय पदार्थ नहीं हैं?


(a) घास, पुष्प एवं चमड़ा


(b) घास, लकड़ी एवं प्लास्टिक


 (c) फलों के छिलके, केक एवं नींबू का रस


(d) केक, लकड़ी एवं घास


उत्तर (b) प्लास्टिक अजैवनिम्नीकृत पदार्थ है।


प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-से पर्यावरण मित्र व्यवहार कहलाते हैं?



(a) बाजार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना


(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना


(c) माँ द्वारा स्कूटर से विद्यालय छोड़ने की बजाय तुम्हारे विद्यालय तक पैदल जाना 


(d) उपरोक्त सभी


उत्तर (d) उपरोक्त सभी, कपड़े के थैले का प्रयोग, लाइट व पंखे को उपयोग के बाद बन्द करना, वाहन की जगह पैदल जाना सभी पर्यावरण मित्र व्यवहार कहलाते हैं।


प्रश्न 3. घरों के कचरों में होता है


(a) अजैवनिम्नीकरण


(b) जैवनिम्नीकरणीय प्रदूषक


(c) हाइड्रोकार्बन्स


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) घरों से उत्पन्न अधिकांश कचारों का अपघटन जीवाणुओं द्वारा होता है। अतः ये जैवनिम्नीकरणीय प्रदूषक (Biodegradable pollutants) कहलाते हैं।



प्रश्न 4. निम्न में से नगरपालिका ठोस अपशिष्ट नहीं है।


(a) टूटे फर्नीचर


(b) खाली प्लास्टिक ड्रम


 (C) सब्जियों के छिलके


(d) टूटे शीशे


उत्तर (b) खाली प्लास्टिक के ड्रम औद्योगिक ठोस अपशिष्ट कहलाते हैं।


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक



प्रश्न 1. अजैवनिम्नीकृत अपशिष्टों द्वारा उत्पन्न एक समस्या बताइए।


उत्तर अजैवनिम्नीकृत अपशिष्ट जल को प्रदूषित कर जलीय पारितन्त्र को नष्ट करते हैं व अनेक जल-जनित रोगों का कारण बनते हैं।


 प्रश्न 2. जैवनिम्नीकरणीय तथा अजैवनिम्नीकरणीय अपशिष्टों को दो पृथक् कूड़ेदानों में क्यों फेकना चाहिए? 



उत्तर ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि अजैवनिम्नीकरणीय अपशिष्टों का पुन:चक्रण करके उन्हें पुनः प्राप्त किया जा सकता है तथा जैवनिम्नीकरणीय अपशिष्टों से जैव-गैस तथा खाद का उत्पादन कर सकते हैं।



प्रश्न 3. बाजार में खरीददारी करते समय प्लास्टिक की थैलियों की अपेक्षा कपड़े के थैले क्यों लाभप्रद हैं?


 उत्तर कपड़े के थैले जैव-निम्नीकृत पदार्थों से मिलकर बने होते हैं। अतः यह पर्यावरण में आसानी से अपघटित हो जाते हैं व पर्यावरण मैत्री होते हैं। इसलिए बाजार में खरीदारी करते समय प्लास्टिक की थैलियों की अपेक्षा कपड़े के थैले लाभप्रद है।


प्रश्न 4. किन्हीं दो अजैव निम्नीकरणीय अपशिष्टों के नाम लिखिए। 


उत्तर (i) प्लास्टिक (ii) काँच की वस्तुएँ।


प्रश्न 5. नगरपालिका एवं औद्योगिक अपशिष्टों के उदाहरण दीजिए।


 उत्तर 

(i) नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Wastes), उदाहरण- घरों, कार्यालयों, दुकानों का कचरा, वाहितमल का कीचड़, सब्जी, फल तथा बाजार, अपशिष्ट, आदि।


(ii) औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial Wastes), उदाहरण-रंजक, कागज के टुकड़े, फ्लाई ऐश, लोहा, प्लास्टिक, आदि।


प्रश्न 6. वाहित मल शोधन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


उत्तर वाहित मल उपचार महानगरों के वाहित मल को नदियों या जल स्रोतों में डालने से पूर्व तथा पुनः उपयोग में लाने से पहले वाहित मल उपचार संयंत्र (STP) में उपचारित किया जाता है। यहाँ विभिन्न भौतिक (जैसे-निस्यंदन, अवसादन, अभिकेंद्रण) तथा जैविक (सूक्ष्मजीवीय अपघटन) विधियों द्वारा वाहित मल का उपचार किया जाता है। इस कार्य हेतु यहाँ अनेक विशाल टैंक या कक्ष बनाए जाते हैं।


       लघु उत्तरीय प्रश्न 4 अंक





प्रश्न 1. जैवनिम्नीकरणीय और गैर-जैवनिम्नीकरणीय पदार्थों में अन्तर कीजिए। उदाहरण दीजिए


उत्तर 

जैवनिम्नीकरणीय और गैर-जैवनिम्नीकरणीय पदार्थों में अन्तर निम्न प्रकार है


जैवनिम्नीकरणीय पदार्थ

गैर- जैवनिम्नीकरणीय पदार्थ

वे पदार्थ जो वातावरण में सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित हो जाते है व जिनका पुनचक्रण किया जा सकता है।

वे पदार्थ जो वातावरण में सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित नहीं होते  तथा जिनका है व जिनका पुनचक्रण नहीं किया जा सकता है।

ये पर्यावरण-मैत्री है।

यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

उदाहरण घरेलू अपशिष्ट, कागज, कपड़ा, आदि।


उदाहरण प्लास्टिक, सीसा, पारा व रेडियोधर्मी प्रदूषक, आदि।



प्रश्न 2. जैवनिम्नीकरण एवं अजैवनिम्नीकरण से आप क्या समझते हैं? इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन कीजिए। 


अथना हमारे द्वारा उत्पादित अजैवनिम्नीकरणीय कचरे से कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?



उत्तर जैवनिम्नीकृत पदार्थ वे पदार्थ, जो वातावरण में कुछ समय बाद स्वतः ही ऊष्मा या सूक्ष्मजीवों की क्रियाओं द्वारा नष्ट या अपघटित हो जाते हैं, जैवनिम्नीकृत अपशिष्ट कहलाते हैं।


जैवनिम्नीकृत पदार्थों के प्रभाव ये केवल मात्रात्मक रूप में अधिक हो जाने पर ही प्रदूषकों की भांति व्यवहार करते हैं। जैवनिम्नीकृत पदार्थों के प्रभाव निम्न है


(i) औद्योगिक अपशिष्टों को मृदा में दबाने से मृदा की उर्वरता कम हो जाती है, जिससे फसल की उत्पादकता भी कम हो जाती है। 


(ii) बड़ी मात्रा में इन अपशिष्टों के एकत्रित होने के कारण इनमे रोगजनक - मक्खियाँ एवं मच्छर उत्पन्न हो जाते हैं, जो लोगों को बीमार कर देते हैं।


(iii) जलस्रोतों में ये अपशिष्ट डालने पर वे प्रदूषित हो जाते हैं तथा अनेक जल-जनित रोगों के कारण बनते हैं।


अजैवनिम्नीकृत पदार्थ ये अपशिष्ट सूक्ष्मजीवों, विकिरण, ऑक्सीकरण या रासायनिक अपघटन की प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा विघटित होकर उपयोगी पदार्थ के रूप में परिवर्तित नहीं होते हैं; उदाहरण काँच, प्लास्टिक, BHC, अपमार्जक, DDT, आदि। इन्हें संरक्षित या दृढ़ या अजैवनिम्नीकृत प्रदूषक के नाम से भी जाना जाता है। अजैवनिम्नीकृत पदार्थों के प्रभाव


(i) कीटनाशकों के लम्बे समय तक अपघटित न होने के कारण ये मृदा एवं वायु में से आहार श्रृंखला में प्रवेश कर जीवों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। रेडियोधर्मी तत्वों एवं जल में भारी धातुओं के एकत्रित होने के कारण मानव समेत सभी जीवों के लिए ये प्राणघातक हो सकते हैं।


(ii) ये जल को प्रदूषित कर जलीय पारितन्त्र को नष्ट कर सकते हैं।


(iii) अजैवनिम्नीकरणीय कचरा; जैसे-प्लास्टिक थैलियाँ, डिस्पोजेबल कप, आदि से नदियों एवं नालियों में जल का प्रवाह रुक जाता है, जिससे वहाँ का जल प्रदूषित हो जाता है। कचरे के एकत्रीकरण के कारण अनेक मच्छर, मक्खियाँ, आदि उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे बीमारियाँ फैलने का डर होता है।


 (iv) अजैवनिम्नीकरणीय पदार्थ; जैसे-पीड़कनाशी व रसायन, आदि की सान्द्रता खाद्य शृंखला के उत्तरोत्तर पोषक स्तरों पर बढ़ती जाती हैं, जो स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती है। अजैव-निम्नीकरणीय कचरे, जैसे-प्लास्टिक थैलियाँ, आदि जीव जन्तुओं द्वारा खाए जाने पर प्राणघातक हो सकते हैं। अजैवनिम्नीकरणीय पदार्थों, जैसे-रंजको रसायनों, आदि को ग्रहण करने पर ये शरीर में अनेक गंभीर रोग उत्पन्न कर देते हैं। 


प्रश्न 3. यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैवनिम्नीकरणीय हो, तो क्या इसका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?



 उत्तर यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैवनिम्नीकरणीय होगा, तो इसका हमारे पर्यावरण पर कम हानिकारक प्रभाव पड़ेगा, क्योकि जैवनिम्नीकरणीय कचरा, जैसे-कागज, आदि को पुनः चक्रित करके प्रयोग में ला सकते हैं तथा ये जैव अपघटित पदार्थ जल्दी नष्ट हो जाते हैं। ये पर्यावरण मैत्री होते हैं। यह सूक्ष्मजीवों द्वारा आसानी से अपघटित हो जाते हैं। इनका प्रयोग अपघटन के पश्चात् जैव-गैस उत्पादित कर भोजन पकाने के लिए किया जाता है। इनके अपघटन के पश्चात् अपशिष्ट को खाद के रूप में प्रयोग कर उर्वरको का इस्तेमाल कम किया जा सकता है। अत: इस प्रकार जैव-निम्नीकरणीय पदार्थ अनेक रूपों में उपयोग किए जा सकते हैं व इनका पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।


प्रश्न 4. आपके घर में उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट पदार्थों के नाम लिखिए। उनके निपटारे के लिए आप क्या कार्यवाही करेंगे? 


अथना आप किस प्रकार ठोस अपशिष्टों के निस्तारण की समस्या को कम करने में सहायता कर सकते हैं? कोई दो विधियाँ बताइए।


उत्तर हमारे घरों में अपशिष्ट पदार्थ, जैसे- कपड़ा, लोहा, लकड़ी, कागज, फलों व सब्जियों के छिलके, आदि उत्पन्न होते हैं, जिनका निम्नलिखित विधियों द्वारा निस्तारण किया जा सकता है।


(i) पुनःचक्रण इसके अन्तर्गत पुनः उपयोग में आ सकने वाले अपशिष्टों का अन्य पदार्थों के कच्चे माल के लिए उपयोग किया जाता है; उदाहरण लकड़ी लोहा एवं अन्य धातुएं कागज, रबर, आदि।


(ii) कम्पोस्टिंग इसके अन्तर्गत असंक्रामक जैवनिम्नीकृत अपशिष्टों; जैसे-घरेलू कचरा, चमड़ा, पादप अपशिष्ट, आदि का उपयोग भूमि में दबाकर खाद निर्माण में किया जाता है। 


(iii) सैनेटरी लैण्डफिलिंग इसके अन्तर्गत शहर से दूर बन्जर भूमि में विशाल बहुमंजिला गड्ढे खोदकर इनमें अपशिष्ट भरा जाता है।


 (iv) दहन इस तकनीक में अपशिष्ट को उच्च तापमान पर जला दिया जाता है। यह तकनीक संक्रामक तथा विषाक्त अपशिष्टों के लिए उपयुक्त है। 


विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 7 अंक


प्रश्न 1. उर्वरक उद्योगों के सह-उत्पाद क्या है? पर्यावरण पर इनका कैसा प्रभाव पड़ेगा?



उत्तर उर्वरक, उद्योगों के सह-उत्पाद पीड़कनाशी और कुछ रासायनिक उर्वरक हैं। यह अजैवनिम्नीकरणीय होते हैं, जो प्रत्येक पोषी स्तर में संचित हो जाते हैं। ये मिट्टी और जल के साथ मिल जाते हैं। इससे, ये पीड़कनाशक पादपों द्वारा पानी और खनिजों के साथ अवशोषित कर लिए जाते हैं। जब शाकाहारी इन पादपों को खाते हैं, तो ये जहरीले रसायन आहार श्रृंखला के माध्यम से उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जब माँसाहारी जीव, शाकाहारी को खाते हैं, तो ये पीड़कनाशक उनके शरीर में प्रवेश करते हैं।


मनुष्य सर्वाहारी होता है, जो पादपों और शाकाहारी दोनों को खाता है। इस प्रकार उत्पादक स्तर से पीड़कनाशक आहार शृंखला में प्रवेश करते हैं और आहार शृंखला द्वारा भोजन के स्थानांतरण की प्रक्रिया में ये हानिकारक रसायन प्रत्येक पोषक स्तर पर इनकी सांद्रता में क्रमिक वृद्धि द्वारा सर्वोच्च उपभोक्ता में उच्चतम सांद्रता में संचित हो जाते हैं, जिसे जैव-आवर्धन कहते हैं। इसके अतिरिक्त ये जल प्रदूषण (सुषोषिता) एवं मृदा प्रदूषण (भूमि के बंजर होने) के कारण भी होते हैं




प्रश्न 2. पर्यावरण पर कृषि प्रक्रमों के कुछ हानिकारक प्रभाव बताइए।


उत्तर पर्यावरण पर कृषि प्रक्रमों के कुछ हानिकारक प्रभाव निम्न हैं 


1. वनोन्मूलन कृषि के लिए बड़े वन क्षेत्रों को काटा जाता है, जिससे पर्यावरणीय असन्तुलन उत्पन्न होता है।


 2. कृषि रसायनों के दुष्प्रभाव


(i) कृषि रसायनों के अधिक उपयोग से निकटवर्ती पेयजल स्रोत तथा भू-जल प्रदूषित होता है।


(ii) अधिक रसायनो तथा उर्वरकों के उपयोग से उपजाऊ मृदा बंजर हो जाती है। 


(iii) कृषि उर्वरक वर्षा जल में बहकर निकटवर्ती जलस्रोत में सुपोषिता उत्पन्न कर देते हैं।


(iv) अजैवनिम्नीकृत कृषि रसायन; जैसे-DDT खाद्य, श्रृंखला में प्रवेश कर उच्च उपभोक्ता में गंभीर रोग उत्पन्न कर देते हैं, जिसे जैव-आवर्धन (Biomagnification) कहते हैं।


 (v) मानव में हानिकारक रसायनों वाली फसल को खाने पर आंत का

कैंसर, नपुंसकता, बाँझपन, रुधिर का कैंसर, जीर्णता, गर्भस्थ शिशु मृत्यु, अल्पायु, आदि लक्षण या रोग उत्पन्न हो जाते हैं। 


(vi) कृषि रसायनों के अधिक प्रयोग से किसान मित्र जन्तु, जैसे- केचुआ, चिड़िया, नाइट्रोजनी जीवाणु मर जाते हैं तथा स्थानीय पारितन्त्र असन्तुलित हो जाता है।


(vii) कृषि रसायनों के जलीय तन्त्रों में मिलने पर जलीय जीवों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।


(viii) जलीय पारितन्त्र का सन्तुलन बिगड़ सकता है, क्योंकि हानिकारक उर्वरकों की मात्रा जलीय जीवों में बढ़ने के कारण कई जलीय जीव विलुप्त के कगार पर हैं।




प्रश्न 3. जीवमण्डल की परिभाषा दीजिए। जीवमण्डल के कौन-से तीन प्रमुख भाग हैं?


उत्तर


जीवमण्डल


स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी पाए जाते हैं जीवमण्डल कहलाता है। जीवमण्डल में ऊर्जा तथा पदार्थों का निरन्तर आदान-प्रदान जैविक तथा अजैविक घटकों के मध्य होता रहता है। जीवमण्डल का विस्तार लगभग 14-15 किमी होता है। वायुमण्डल में 7-8 किमी ऊपर तक तथा समुद्र में 6-7 किमी गहराई तक जीवधारी पाए जाते हैं। जीवमण्डल के तीन प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं


1. स्थलमण्डल (Lithosphere) यह पृथ्वी का ठोस भाग है। इसका निर्माण चट्टानों, मृदा, रेत आदि से होता है। पौधे अपने लिए आवश्यक खनिज लवण मृदा से घुलनशील अवस्था में ग्रहण करते हैं।


2. जलमण्डल (Hydrosphere) स्थलमण्डल पर उपस्थित तालाब, कुएँ, झील, नदी, समुद्र आदि मिलकर 'जलमण्डल' बनाते हैं। जलीय जीवधारी अपने लिए आवश्यक खनिज जल से प्राप्त करते हैं। जल जीवन के लिए अति महत्त्वपूर्ण होता है। यह जीवद्रव्य का अधिकांश भाग बनाता है। पौधे जड़ों के द्वारा या शरीर सतह से जल ग्रहण करते हैं। जन्तु जल को भोजन के साथ ग्रहण करते हैं तथा आवश्यकतानुसार इसकी पूर्ति जल पीकर भी करते हैं।


3. वायुमण्डल (Atmosphere) पृथ्वी के चारों ओर स्थित गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल में विभिन्न गैसें सन्तुलित ह मात्रा में पाई जाती हैं।


प्रश्न 4. निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए


 1. अम्ल वर्षा


2. ओजोन की न्यूनता


उत्तर- 1. अम्ल वर्षा अम्ल वर्षा वायु में उपस्थित नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड के कारण होती है। ये गैसीय ऑक्साइड वर्षा के जल के साथ मिलकर क्रमश: नाइट्रिक अम्ल तथा सल्फ्यूरिक अम्ल बनाते हैं। वर्षा के साथ ये अम्ल भी पृथ्वी पर नीचे आ जाते हैं। इसे ही अम्ल वर्षा या अम्लीय वर्षा (acid rain) कहते हैं।


 इसके कारण अनेक ऐतिहासिक भवनों, स्मारकों, मूर्तियों का संक्षारण हो जाता है जिससे उन्हें काफी नुकसान पहुँचता है। अम्लीय वर्षा के कारण, मृदा भी अम्लीय हो जाती है जिससे धीरे-धीरे उसकी उर्वरता कम हो जाती है। इस कारण वन तथा कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


2. ओजोन की न्यूनता रेफ्रीजरेटर, अग्निशमन यन्त्र तथा ऐरोसॉल स्प्रे में उपयोग किए जाने वाले क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन (CFC) से वायुमण्डल में ओजोन परत का ह्रास होता है।


हानियाँ ओजोन परत में ह्रास के कारण सूर्य से पराबैंगनी (UV) किरणें अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुँचती हैं। पराबैंगनी विकिरण से आँखों तथा प्रतिरक्षी तन्त्र को नुकसान पहुँचता है। इससे त्वचा का कैंसर भी हो जाता है। ए ओजोन परत के ह्रास के कारण वैश्विक वर्षा, पारिस्थितिक असन्तुलन तथा वैश्विक खाद्यान्नों की उपलब्धता पर भी प्रभाव पड़ता है।


प्रश्न 5. ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?


ओजोन परत हमारे लिए क्यों आवश्यक है?



उत्तर- ओजोन परत की क्षति हमारे लिए अत्यंत चिंता का विषय है क्योंकि यदि इसकी क्षति अधिक होती है तो अधिक-से-अधिक पराबैंगनी विकिरणें भी पृथ्वी पर आएँगी जो हमारे लिए निम्न प्रकार से हानिकारक प्रभाव डालती हैं


(i) इनका प्रभाव त्वचा पर पड़ता है जिससे त्वचा के कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।


(ii) पौधों में वृद्धि दर कम हो जाती है।


(iii) ये सूक्ष्म जीवों तथा अपघटकों को मारती हैं इससे पारितंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है


(iv) उत्पन्न हो जाता है। ये पौधों में पिगमेंटों को नष्ट करती हैं।



ओजोन परत की क्षति कम करने के उपाय 


(i) एरोसोल तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन यौगिक का कम-से-कम उपयोग करना। 


(ii) सुपर सोनिक विमानों का कम-से-कम उपयोग करना। 


(iii) संसार में नाभिकीय विस्फोटों पर नियंत्रण करना।




प्रश्न 6. ग्रीन हाउस प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए।


अथवा


पृथ्वी ऊष्मायन पर टिप्पणी लिखिए। 


अथवा


 भूमण्डलीय ऊष्मायन के लिए उत्तरदायी चार कारकों का उल्लेख कीजिए।



उत्तर- CO2 की बढ़ती सान्द्रता ग्रीन हाउस प्रभाव डालती है। आमतौर पर जब CO2 की सान्द्रता सामान्य हो तब पृथ्वी का ताप तथा ऊर्जा का सन्तुलन बनाए रखने के लिए ऊष्मा पृथ्वी से परावर्तित हो जाती है, परन्तु CO2 की अधिक सान्द्रता पृथ्वी से लौटने वाली ऊष्मा को परावर्तित होने से रोकती है जिससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने लगती है, इसको ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) कहते हैं। इसके अलावा कुछ ऊष्मा पर्यावरण में उपस्थित पानी की भाप से भी रुकती है। लगभग 100 वर्ष पहले CO2 की पर्यावरण में सान्द्रता लगभग 110 ppm थी, परन्तु अब बढ़कर लगभग 350 ppm तक पहुँच गई है। आज से करीब 40 वर्ष बाद यह सान्द्रता 450 ppm तक पहुँच जाने की सम्भावना है। इससे पृथ्वी के ऊष्मायन में वृद्धि हो सकती है। 



पृथ्वी के ऊष्मायन का प्रभाव ध्रुवों पर सबसे अधिक होगा, इनकी बर्फ पिघलने लगेगी। एक अनुमान के अनुसार सन् 2050 तक पृथ्वी का ताप 5°C तक बढ़ सकता है जिससे समुद्र के निकटवर्ती क्षेत्र शंघाई, सेन फ्रान्सिस्को आदि शहर प्रभावित होंगे। उत्तरी अमेरिका सूखा तथा गर्म प्रदेश बन सकता है। विश्वभर का मौसम बदल जाएगा। भारत में मानसून के समाप्त होने की सम्भावना है। विश्वभर में अनाज के उत्पादन पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। फल, सब्जी आदि के उत्पादन भी प्रभावित होंगे। बढ़ते ताप से पादप तथा जीव-जन्तुओं की जीवन क्रियाएँ भी प्रभावित होंगी।


प्रश्न 7. पारितन्त्र से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।


अथवा


 पारितन्त्र किसे कहते हैं?



उत्तर- 


पारितन्त्र किसी स्थान विशेष में पाए जाने वाले जैविक तथा अजैविक घटकों के पारस्परिक सम्बन्धों को सामूहिक रूप से पारितन्त्र (ecosystem) कहते हैं। पारितन्त्र के निम्नलिखित दो प्रमुख घटक होते हैं


(I) सजीव या जैविक घटक समस्त जन्तु एवं पौधे जीवमण्डल में जैविक घटक के रूप में पाए जाते हैं। जैविक घटक को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है


1. उत्पादक Producers हरे प्रकाश संश्लेषी पौधे उत्पादक कहलाते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड एवं पानी की सहायता से प्रकाश एवं पर्णहरिम की उपस्थिति में ग्लूकोज का निर्माण करते हैं। ग्लूकोज अन्य भोज्य पदार्थों (प्रोटीन, मण्ड व वसा) में परिवर्तित हो जाता है, जिसको जन्तु भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। प्रकाश


6CO₂ + 12H₂0 → C₆H₁₂0₆ + 60₂+H₂O


 2. उपभोक्ता (Consumers) जन्तु पौधों द्वारा बनाए गए भोजन पर आश्रित रहते हैं, इसलिए जन्तुओं को उपभोक्ता कहते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज तत्व हमारे भोजन के अवयव हैं जो अनाज, बीज, फल, सब्जी आदि से प्राप्त होते हैं। ये सभी पौधों की ही देन हैं। कुछ जन्तु मांसाहारी होते हैं जो अपना भोजन शाकाहारी जन्तुओं का शिकार करके प्राप्त करते हैं। उपभोक्ता निम्न प्रकार के होते हैं-


(i) प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता (Primary consumers) ये शाकाहारी होते हैं। इसके अन्तर्गत वे जन्तु आते हैं जो अपना भोजन सीधे हरे पौधों से प्राप्त करते हैं; जैसे- खरगोश, बकरी, टिड्ढा, चूहा, हिरन, भैंस, गाय, हाथी आदि।


(ii) द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता या मांसाहारी (Secondary consumers or Carnivores) ये मांसाहारी होते हैं एवं प्राथमिक उपभोक्ताओं या शाकाहारी प्राणियों का शिकार करते हैं, जैसे—सर्प, मेढक, गिरगिट, छिपकली, मैना पक्षी, लोमड़ी, भेड़िया, बिल्ली आदि।


(iii) तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता या तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary consumers) इसमें द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं  को खाने वाले जन्तु आते हैं; जैसे-सर्प मेढक का शिकार करते हैं, बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों का शिकार करती हैं, चिड़ियाँ मांसाहारी मछलियों का शिकार करती हैं। कुछ जन्तु एक से अधिक श्रेणी के उपभोक्ता हो सकते हैं (जैसे-बिल्ली, मनुष्य आदि) । ये मांसाहारी एवं शाकाहारी दोनों होते हैं, अतः ये सर्वभक्षी (omnivore) कहलाते हैं।


3. अपघटनकर्ता या अपघटक (Decomposers) ये जीवमण्डल के सूक्ष्म जीव हैं; जैसे—जीवाणु व कवक । ये उत्पादक तथा उपभोक्ताओं के मृत शरीर को सरल यौगिकों में अपघटित कर देते हैं। ऐसे जीवों को अपघटक (decomposers) कहते हैं। ये विभिन्न कार्बनिक पदार्थों को उनके सरल अवयवों में तोड़ देते हैं। सरल पदार्थ पुनः भूमि में मिलकर पारितन्त्र के अजैव घटक का अंश बन जाते हैं।


(II) निर्जीव या अजैविक घटक इसके अन्तर्गत निर्जीव वातावरण आता है, जो विभिन्न जैविक घटकों का नियन्त्रण करता है। अजैव घटक को निम्नलिखित तीन उप-घटकों में विभाजित किया गया है



1. अकार्बनिक (Inorganic) इसके अन्तर्गत पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, लोहा, सल्फर आदि के लवण, जल तथा वायु की गैसें; जैसे—ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, अमोनिया आदि; आती हैं।


2. कार्बनिक (Organic) इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा आदि सम्मिलित हैं। ये मृतक जन्तुओं एवं पौधों के शरीर से प्राप्त होते हैं। अकार्बनिक एवं कार्बनिक भाग मिलकर निर्जीव वातावरण का निर्माण करते हैं।


3. भौतिक घटक (Physical components) इसमें विभिन्न प्रकार के जलवायवीय कारक; जैसे—वायु, प्रकाश, ताप, विद्युत आदि; आते हैं।


प्रश्न 8.खाद्य-श्रृंखला एवं खाद्य-जाल में अन्तर



खाद्य-श्रृंखला एवं खाद्य-जाल में अन्तर



खाद्य-श्रंखला

खाद्य-जाल


यह एक सरल प्रकार की संरचना है, जिसमें ऊर्जा का स्थानान्तरण एक जीव से दूसरे जीव में होता है।

खाद्य-जाल एक जटिल संरचना है। विभिन्न पारिस्थितिक तन्त्र से खाद्य-शृंखलाएँ परस्पर मिलकर खाद्य-जाल बनाती हैं।


इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा में होता है।

इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होते हुए भी कई पथों से होकर गुजरता है।


खाद्य-शृंखला में सामान्यतः जीवों की संख्या कम होती है।


एक सरल खाद्य-जाल में जीवों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है।


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